Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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jay
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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ye kahaani samapt ab dusari shuru
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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दूसरी सुहागरात
प्रेम गुरु की कलम से......
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्ता भार्या तथैव च:
यस्मिन्नैव कुले नित्यं कल्याण तत्रेव ध्रुवं - मनु स्मृति
मधुर की डायरी के कुछ अंश :
11 जनवरी, 2006
विधाता की जितनी भी सृष्टि है वो रूपवती है, संसार की हर वस्तु चाहे जड़ हो या चेतन, क्षुद्र (अनु) हो या महान सभी का एक रूप होता है। सृष्टि का अर्थ ही है रूप निर्माण और जब रूप बन जाता है तब उसमें सौंदर्य का रंग चढ़ता है।
कई बार मुझे आश्चर्य होता है कि जितने भी नव निर्माण (सृजन), अविष्कार या खोजें हुई हैं वो अधिकतर पुरुषों ने ही की हैं स्त्रियों का योगदान बहुत कम है। ओशो ने इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण बताया है। दरअसल यह सब ईर्ष्यावश होता है, पुरुष स्त्री से ईर्ष्या करता है। पर मैंने तो सुना भी था और अनुभव भी किया है कि पुरुष तो हमेशा स्त्री से प्रेम करता है तो यह ईर्ष्या वाली बात कहाँ से आ गई?
दरअसल स्त्री इस दुनिया का सबसे बड़ा सृजन करती है एक बच्चे के रूप में इस संसार को विस्तार और अमरता देकर उसे किसी और नये सृजन या निर्माण की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। चूँकि हमारा समाज सदियों से पुरुष प्रधान सत्तात्मक रहा है तो पुरुष का अहम उसे अपने आप को स्त्री से हीन (निम्नतर) मानने ही नहीं देता। अवचेतन मन में दबी इसी ईर्ष्या के वशीभूत जंगलों, पहाड़ों और रेगिस्तानों की खाक छानता है, आविष्कार और खोज किया करता है।
किसी भी स्त्री के लिए मातृत्व सुख से बढ़ कर कोई सुख नहीं हो सकता, एक बच्चे के जन्म के बाद वो पूर्ण स्त्री बन जाती है।
मैंने भी इस संसार के जीवन चक्र को आज बढ़ाने का अपना कर्म पूरा कर लिया है।
ओह... मैं भी प्रेम की संगत में रह कर घुमा फिरा कर बात करने लगी हूँ। मिक्‍कु अब तो तीन महीने का होने को आया है, अपनी दूसरी माँ की गोद में वो तो चैन से सोया होगा पर मेरे लिए उसकी याद तो एक पल के लिए भी मन से नहीं हटती।
आप सोच रहे होंगे- यह दूसरी माँ का क्या चक्कर है?
मैं मीनल, मेरी चचेरी बहन (सावन जो आग लगाए) की बात कर रही हूँ। उसकी शादी दो साल पहले हुई थी पर अब उसका अपने पति से अलगाव हो गया है, उस समय वो गर्भवती थी और मिक्‍कु के जन्म के 5-7 दिन पहले ही उसको भी बच्चा हुआ था पर पता नहीं भगवान कि क्या इच्छा थी अथक प्रयासों के बाद भी डाक्टर बच्चे को नहीं बचा पाए। मीनल तो अर्ध-विक्षिप्त सी ही हो गई थी। उस बेचारी की तो दुनिया ही उजड़ गई थी।
मिक्‍कु के जन्म के बाद मेरे साथ भी बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी, मेरी छाती में दूध ही नहीं उतरा ! तो भाभी और चाची ने सलाह दी कि क्यों ना मिक्‍कु को मीनल को दे दिया जाए। उसकी मानसिक हालत को ठीक करने का इससे अच्छा उपाय कोई और तो हो ही नहीं सकता था। मिक्‍कु कितना भाग्यशाली रहेगा कि उसे दो माताओं का प्यार मिलेगा। मेरे पास इससे अच्छा विकल्प और क्या हो सकता था?
मैं दिसंबर में भरतपुर लौट आई थी। मैं तो सोचती थी कि इतने दिनों के बाद जब मैं प्रेम से मिलूँगी तो वो मुझे अपनी बाहों में भर कर उस रात को इतना प्रेम करेगा कि मुझे अपना मधुर मिलन ही याद आ जाएगा।
चूँकि हमारा समाज सदियों से पुरुष प्रधान सत्तात्मक रहा है तो पुरुष का अहम उसे अपने आप को स्त्री से हीन (निम्नतर) मानने ही नहीं देता। अवचेतन मन में दबी इसी ईर्ष्या के वशीभूत जंगलों, पहाड़ों और रेगिस्तानों की खाक छानता है, आविष्कार और खोज किया करता है।
शादी के बाद के दो साल तो कितनी जल्दी बीत गये थे, पता ही नहीं चला। हम दोनों ने अपने दाम्पत्य जीवन का भरपूर आनन्द भोगा था। प्रेम तो मुझे सारी सारी रात सोने ही नहीं देता था। हमने घर के लगभग हर कोने में, बिस्तर पर, फर्श पर, बाथरूम और यहाँ तक कि रसोईघर में भी सेक्स का आनन्द लिया था। प्रेम तो मेरी लाडो और उरोज़ों को चूसने का इतना आदि बन गया था कि बिना उनकी चुसाई के उसे नींद ही नहीं आती थी।
और मुझे भी उनके "उसको" चूसे बिना कहाँ चैन पड़ता था। कई बार तो प्रेम इतना उत्तेजित हो जाता था कि वो मेरे मुँह में ही अपने अमृत की वर्षा कर दिया करता था। मेरी भी पूरी कोशिश रहती थी कि मैं उनकी हर इच्छा को पूरा कर दूँ और उन्हें अपना सब कुछ सौंप कर पूर्ण समर्पिता बन जाऊँ !
पर प्रेम तो कहता है कि कोई भी स्त्री पूर्ण समर्पिता तभी बनती है जब पति की हर इच्छा पूरी कर दे। कई बार प्रेम मेरे नितंबों के बीच अपना हाथ और अँगुलियाँ फिराता रहता है। कभी कभी तो महारानी (मुझे क्षमा करना मैं गाण्ड जैसा गंदा शब्द प्रयोग नहीं कर सकती) के मुँह पर भी अंगुली फिराता रहता है। उसने सीधे तौर पर तो नहीं कहा पर बातों बातों में कई बार उसका आनन्द ले लेने के बाबत कहा था।
उसने बताया कि प्रेम आश्रम वाले गुरुजी कहते हैं- जिस आदमी ने अपनी खूबसूरत पत्नी की गाण्ड नहीं मारी, उसका यह जीवन तो व्यर्थ ही गया समझो ! वो तो मानो जिया ही नहीं !
छीः ... कितनी गंदी सोच है। मेरा तो मानना था कि यह सब अप्राक्रातिक और गंदा कार्य होता है। यह कामुक व्यक्तियों की मानसिक विकृति की निशानी है। पर प्रेम तो इसके लिए इतना आतुर था कि उसने मुझे कई बार इससे सम्बंधित नग्न फिल्में भी दिखाई थी और कुछ कामुक साहित्य भी पढ़ने को दिया था, राजशर्मास्टॉरीज पर भी कई कहानियाँ पढ़वाई। पर मुझे पता नहीं क्यों यह सब अनैतिक और पाप-कर्म जैसा लगता था। उसके बार बार बोलने पर अंत में मुझे उसे यहाँ तक कहना पड़ा कि अगर उसने फिर कभी ऐसी बात की तो मैं उससे तलाक ले लूँगी।
आजकल तो प्रेम पता नहीं किन ख़यालों में ही डूबा रहता है। रात को भी हम जब पति-पत्नी धर्म निभाते हैं तो वो जोश और आतुरता कहीं दिखाई नहीं देती। अब तो बस अपना काम निकालने के बाद वो चुपचाप सो ही जाता है। वरना तो सारी रात आपस में लिपट कर सोए बिना हम दोनों को ही नींद नहीं आती थी।
मैंने सुधा भाभी (नंदोईजी नहीं लंडोईजी) से भी एक दो बार इस बाबत बात की थी। तो उसने जो बताया मैं हूबहू लिख रही हूँ :
"अरे मेरी ननद रानी ! प्रेम में कुछ भी गंदा या बुरा नहीं हो सकता। हमारे शरीर के सभी अंग भगवान ने बनाए हैं और कामांग (लण्ड, चूत और गाण्ड) भी तो उसी की देन हैं तो भला यह गंदे और अश्लील कैसे हो सकते हैं? और जहाँ तक गुदा-मैथुन की बात है आजकल तो लगभग सभी नए शादीशुदा जोड़े इसका जम कर आनन्द लेते हैं। कुछ मज़े के लिए, कुछ प्रतिस्ठा-प्रतीक (स्टेटस सिंबल) के रूप में और कुछ आधुनिक बनाने के चक्कर में इसे ज़रूर करते हैं। आजकल नंगी फिल्में देख कर सारे ही मर्द इसके लिए मरे ही जाते हैं। कुछ औरतें तो बड़ाई मारने के चक्कर में गाण्ड मरवाती हैं
कि वो भी किसी से कम नहीं। कॉलेज की लड़कियाँ गर्भवती होने के डर के कारण और अपना कौमार्य बचाए रखने के लिए भी गाण्ड मरवाने को प्राथमिकता देती हैं !"
मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ, मैंने संकुचाते हुए उनसे पूछा था- क्या आपने भी कभी यह सब किया है?
तो वो हँसने लगी और फिर ज़ोर से निःस्वास छोड़ते हुए कहा- तुम्हारे भैया को यह पसंद ही नहीं है !
भाभी ने बताया कि गुदा-मैथुन तो ऐतिहासिक काल से ही चला आ रहा है। खजूराहो के मंदिर और मूर्तियाँ तो इनका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
ओह... हाँ मुझे अब याद आया कि हम भी तो अपना मधुमास मनाने खजूराहो गये थे जहाँ ‘लिंगेश्वर की काल भैरवी’ जैसे कई मंदिर देखे थे।
मैंने कहीं पढ़ा भी था कि लखनऊ के नवाब और अफ़ग़ान के पठान तो इसके बहुत शौकीन होते हैं।
मेरी तो सोच कर ही कंपकंपी छुट जाती है।
भाभी ने बताया कि यह कोई अनैतिक या अप्राक्रातिक क्रिया नहीं है, यह भी आनन्द भोगने की एक क्रिया है जिसमें पुरुष और स्त्री दोनों को आनन्द आता है। कुछ लोगों को तो इसके इतना चस्का लग जाता है कि फिर इसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता। यह तो पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेयसी के आपसी तालमेल और समझ की बात है। हाँ, इसमें कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती, उतावलापन और अनाड़ीपन नहीं करना चाहिए वरना इसके परणाम कभी भी सुखद नहीं होंगे। एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना ज़रूरी है नहीं तो आनन्द के स्थान पर कष्ट ही होगा और फिर जिंदगी बेमज़ा हो जाएगी।
भाभी ने बताया कि कई पुरुष डींग भी मारते हैं कि उन्होने अपनी पत्नी की गाण्ड मारी है पर उनके पल्ले कुछ नहीं होता।
गाण्ड मारना इतना आसान नहीं है। यह बस जवानी में ही किया जा सकता है जब लण्ड पूरा खड़ा होता है। बाद में तो छटपटाना ही पड़ता है कि हमने इसका मज़ा नहीं लिया।
बहुत समय तक पुरुषों के साथ काम करने वाली महिलाएँ उभयलिंगी बन जाती हैं और 35-36 की उम्र में हार्मोन्स बहुत तेज़ी से बदलते हैं। उस समय उनकी आवाज़ भारी होने लगती है, स्वाभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है और उनके चेहरे पर बाल (मूँछें) आने शुरू हो जाते हैं और उनका मीनोपॉज भी जल्दी हो जाता है। उन्हें साधारण सेक्स में मज़ा नहीं आता। अक्सर वो समलिंगी भी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में अगर वो गाण्ड मरवाना चालू कर दें तो उनको इन सब परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।
मैंने तो सुना था कि इसमें केवल पुरुषों को ही आनन्द आता है भला स्त्री को क्या मज़ा आता होगा। पर भाभी तो कहती है कि इसे तो स्वर्ग का दूसरा द्वार कहा जाता है। रही बात दर्द होने की तो सुनो चूत की तो झिल्ली होती है जिसके फटने से दर्द होता है पर इसमें तो ऐसा कोई झंझट भी नहीं होता। बस एक दो बार ज़रा सा सुई चुभने जैसा दर्द होता है फिर तो बस आनन्द ही आनन्द होता है। लड़की को प्रथम संभोग में थोड़ी पीड़ा होती है पर बाद में तो उसी छेद से इतना बड़ा बच्चा निकल जाता है उस दर्द से ज़्यादा तो दर्द इसमें नहीं हो सकता।
अफ्रीका महाद्वीप के बहुत से देशों में तो आज भी लड़की के जन्म के समय उनकी योनि को सिल दिया जाता है और केवल मूत्र-विसर्जन के लिए ही थोड़ी सी जगह खुली रखी जाती है। सुहागरात में पति संभोग से पहले योनि में लगे टाँके खोलता है। कुछ नासमझ तो छुरी या चाकू से योनि को चीर देते हैं ताकि लिंग का प्रवेश आसानी से हो सके। उन बेचारी औरतों की क्या हालत होती होगी, ज़रा सोचो ?
एक और बात भाभी ने बताई थी कि जब हम अपने गुप्तांगों, पेट या बगल (कांख) में हाथ लगाते हैं तो कुछ भी अटपटा नहीं लगता, ना कोई रोमांच या गुदगुदी होती है पर यही क्रिया जब कोई दूसरा व्यक्ति करे तो कितनी गुदगुदी और रोमांच होता है। बस यही गुदा मैथुन में होता है। जब एक बार इसे कर लिया जाता है तभी इसके स्वाद और आनन्द की अनुभूति होती है।
चलो मान लो कि स्त्री को मज़ा नहीं भी आता है पर यह सच है कि उसे इस बात की कितनी बड़ी ख़ुशी होती है कि उसने अपने पति या प्रियतम को वो सुख दे दिया जिसके लिए वो कितना आतुर था। यह सब करते समय और बाद में उसके चेहरे पर खिली मुस्कान और संतोष देख कर ही पत्नी धन्य हो जाती है कि आज वो अपने प्रियतम की पूर्ण समर्पिता बन गई है।
मैंने इन दिनो में महसूस किया है कि प्रेम आजकल हमारे पड़ोस में रहने वाली नीरू बेन (अभी ना जाओ छोड़ कर) के मटकते नितंबों को बहुत ललचाई दृष्टि से देखता है।
और कई बार मैंने देखा था कि अनार (हमारी नौकरानी गुलाबो की बड़ी बेटी) जब झुक कर झाड़ू लगाती है तो प्रेम कनखियों से उसके उरोज़ और नितंबों को घूरता रहता है।
मैंने एक बार अपनी नौकरानी गुलाबो से भी पूछा था। वो बताती है कि उसका पति भी दारू पीकर कई बार उसके साथ गधा-पचीसी (गुदा-मैथुन) खेलता है। उसे कोई ज़्यादा मज़ा तो नहीं आता पर अपने मर्द की खुशी के लिए वो झट से मान जाती है।
यही कारण है कि गुलाबो 40-45 साल की उम्र में भी स्वस्थ बच्चा पैदा कर सकती हैं क्योंकि वो हर प्रकार के सेक्स में सक्रिय रहती हैं और आदमी भी घोड़े की तरह जवान बना रहता है।
और फिर हमारे महिला मंडल की तो लगभग सभी महिलाएँ तो गाण्डबाज़ी के किस्से इतना रस ले लेकर सुनाती हैं कि ऐसा लगता है कि इनके पतियों के पास सिवाय गाण्ड मारने के कोई काम ही नहीं है। नीरू बेन तो यहाँ तक कहती है कि वो तो जब तक एक बार उसमें नहीं डलवा लेती उसे नींद ही नहीं आती।
बस एक मोहन लाल गुप्ता की पत्नी यह नहीं करवाती। पीठ पीछे सारी महिलाएँ उसकी हँसी उड़ाती रहती हैं कि बांके बिहारी सक्सेना की तरह उसके पति के पल्ले भी कुछ नहीं है।
भाभी कहती है कि अपने पति को भटकने से बचाने के लिए तो यह ब्रह्मास्त्र है। वरना वो दूसरी जगह मुँह मारना चालू कर देता है। कई बार पत्नी की यह सोच रहती है कि जहाज़ का पक्षी और कहाँ जाएगा, शाम को लौट कर जहाज़ पर ही आएगा पर अगर उसने जहाज़ ही बदल लिया तो?
प्रेम के साथ मेरी सगाई होने के बाद मीनल तो मुझे छेड़ती ही रहती थी, वो तो गुदा-मैथुन का गुणगान करने से थकती ही नहीं थी। अपनी सहेली शमा के बारे में बताती थी कि वो तो अक्सर इनका आनन्द लेती है उसका मियाँ तो 5 साल बाद भी उस पर लट्टू है। पति को अपने वश में रखने का यह अचूक हथियार है।
कई बार जीत रानी (रूपल- इनके मित्र जीत की पत्नी) से तो जब भी बात होती है तो वो गुदा-मैथुन की चर्चा ज़रूर करती है। वो तो बताती है कि जीत ने तो सुहागरात में ही इसका भी आनन्द ले लिया था। मुझे तो विश्वास ही नहीं होता कि कोई सुहागरात में ऐसा भी कर सकता है।
रूपल ने बताया था कि वो भी मेरी तरह हस्तरेखा और ज्योतिष में बहुत विश्वास रखती है। जीत ने उसे जब बताया कि उसे दो पत्नियों का योग है तो रूपल ने उसे गाण्ड के रूप में दूसरी पत्नी का सुख दे दिया था।
हे लिंग महादेव ! प्रेम के हाथ में भी ऐसी रेखा तो है...... ओह... हे भगवान... कहीं ??? ओह... ना...??? मैं तो कभी अपने इस मिट्ठू को किसी दूसरी मैना के पास फटकने भी नहीं दे सकती। मैंने अपने मान में निश्चय कर लिया कि प्रेम की खुशी के लिए मैं वो सब करूँगी जो वो चाहता है। मैं प्रेम को यह सुख भी देकर उसकी पूर्ण समर्पिता बन जाऊँगी। मनु स्मृति में लिखा है :
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्ता भार्या तथैव च:।
यस्मिन्नैव कुले नित्यं कल्याण तत्रेव ध्रुवम्।।
पहले तो मैंने सोचा था कि हम किसी दिन बाथरूम में ही यह सब करेंगे पर बाद में मैंने इसे 11 जनवरी के लिए स्थगित कर दिया।
आपका प्रेम गुरु
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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हे लिंग महादेव ! प्रेम के हाथ में भी ऐसी रेखा तो है...... ओह... हे भगवान... कहीं ??? ओह... ना...??? मैं तो कभी अपने इस मिट्ठू को किसी दूसरी मैना के पास फटकने भी नहीं दे सकती। मैंने अपने मान में निश्चय कर लिया कि प्रेम की खुशी के लिए मैं वो सब करूँगी जो वो चाहता है। मैं प्रेम को यह सुख भी देकर उसकी पूर्ण समर्पिता बन जाऊँगी। मनु स्मृति में लिखा है :
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्ता भार्या तथैव च:।
यस्मिन्नैव कुले नित्यं कल्याण तत्रेव ध्रुवम्।।
पहले तो मैंने सोचा था कि हम किसी दिन बाथरूम में ही यह सब करेंगे पर बाद में मैंने इसे 11 जनवरी के लिए स्थगित कर दिया।
11 जनवरी को प्रेम का जन्मदिन आता है। मेरे जन्म दिन और विवाह की वर्ष गाँठ पर तो प्रेम मुझे उपहारों से लाद ही देते हैं। मैं भी उनके जन्म दिन पर उन्हें इस बार ऐसा उपहार दूँगी कि वो इस भेंट को पाकर अपने वर्षों की चाहत पूरी करके धन्य हो जाएँगे।
प्रेम तो अपना जन्मदिन किसी होटल में मनाने को कह रहा था पर मैंने मना कर दिया कि हम इस बार उसका जन्मदिन घर पर अकेले ही मनाएँगे। मैं दरवाजे पर खड़ी प्रेम की बाट जोह रही थी। आज तो उसे जल्दी घर आना चाहिए था। मैंने रसोई का काम पहले ही निपटा लिया था और सजधज कर बस प्रेम की प्रतीक्षा ही कर रही थी। मैंने आज दिन में अपने हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाई थी और अपनी दोनों जांघों पर भी फूल-बूटे बनाए थे जैसे मीनल ने मधुर मिलन वाले दिन बना दिए थे। थोड़ी देर पहले ही मैं गर्म पानी से रग़ड़-रग़ड़ कर नहाई थी और अपनी लाडो को ही नहीं महारानी को भी ढंग से सँवारा था। कई बार उसके ऊपर क्रीम लगाई थी और अंदर भी अच्छी तरह अंगुली से बोरोलीन लगा ली थी। हालाँकि ठण्ड बहुत थी पर मैंने आज वही जोधपुरी लहंगा और कुरती पहनी थी जो मधुर मिलन वाली रात में पहनी थी। कानों में छोटी छोटी बालियाँ पहनी थी और बालों का जूड़ा बनाने के स्थान पर दो चोटियाँ बनाई थी। मैं जानती थी आज प्रेम ग़ज़रे तो ज़रूर लेकर आएगा।
मैं तो उसे फोन कर-कर के थक गई पर पता नहीं क्यों फोन बंद आ रहा था।
कोई 8 बजे प्रेम की गाड़ी आती दिखाई दी। मैं आज उसे देरी से आने का उलाहना देने ही वाली थी कि उसने अपने हाथों में पकड़ा बैग और पैकेट नीचे रखते हुए मुझे बाहों में भर कर चूम लिया। मैं तो ओह... उन्ह... करती हो रह गई। उसकी एक छुवन और चुम्बन से ही मेरा तो सारा गुस्सा हवा हो गया।
प्रेम ने बताया कि पहले तो उसके साथ काम करने वालों ने साथ चाय पीने की ज़िद की फिर तुम्हारे लिए तोहफा और ग़ज़रे लाने में देरी हो गई। वो मेरे लिए हीरों का एक हार लेकर आए थे। वो तो मुझे वहीं पहनाने लगे पर मैंने कहा,"अभी नहीं ! रात को पहना देना !"
"ओये होये... आज रात को क्या ख़ास है मेरी स्वर्ण नैना जी ?" कहते हुए उन्होंने एक बार फिर से मेरे होंठों को चूम लिया।
मैं तो मारे लाज के दोहरी ही हो गई, मुझे लगा कि फिर वही रूमानी दिन लौट आए हैं।
प्रेम हाथ-मुँह धोने बाथरूम चला गया। मैंने आज जानबूझ कर बाथरूम में उनके लिए वही सुनहरी कुर्ता और पाजामा रख दिया था जो प्रेम ने मधुर मिलन वाली रात पहना था। प्रेम जब तक बाहर आता मैंने मेज पर केक, मोमबत्ती, मिठाई और खाना आदि लगा दिया।
अब केक काटना था।
पहले तो हमने दो मोमबत्तियाँ जलाईं (एक प्रेम के लिए और दूसरी मेरे लिए) फिर मैंने केक काटने के लिए चाकू उनकी ओर बढ़ाया तो प्रेम ने मेरे पीछे आकर मेरा हाथ पकड़ कर केक काटना शुरु कर दिया। दरअसल केक काटना तो बहाना था, वो तो मेरे नितंबों से चिपक ही गया।
जैसे ही केक काटने के लिए मैं थोड़ी सी झुकी मुझे अपने नितंबों की खाई के बीच उनके खूँटे का अहसास अच्छी तरह महसूस होने लगा। मेरे सारे शरीर में मीठी गुदगुदी सी होने लगी।
प्रेम ने एक हाथ से तो चाकू पकड़े रखा और दूसरा हाथ को मेरी लाडो पर फिराने लगा। उसकी तेज और गर्म साँसें मेरे कानों के पास महसूस हो रही थी।
ऐसी स्थिति में मैं अक्सर तुनक कर कहा करती हूँ,"हटो परे ?"
पर आज मैंने ना तो उसे मना किया ना ही दूर हटाने की कोशिश की।
मैंने केक का एक टुकड़ा उठाया और "हैपी बर्थ डे !" कहते हुए अपना हाथ ऊपर करके प्रेम के मुँह की ओर बढ़ाया। प्रेम तो आँखें बंद किए मेरे बालों और गले को ही चूमे जा रहा था। केक उसके होंठों, गालों और पूरे चेहरे पर लग गया। अब प्रेम ने केक से पुता अपना मुँह मेरे गालों और होंठों पर रगड़ना शुरु कर दिया।
मैं तो ओह... उईईईई... करती ही रह गई।
प्रेम ने भी केक मेरे मुँह पर मल दिया था, हम दोनों का ही चेहरा केक से पुत गया था। अब मैंने थोड़ा सा घूम कर अपना चेहरा उनकी ओर कर लिया तो प्रेम मेरा सिर अपने हाथों में लेकर मेरे चेहरे पर लगी केक को चाटने लगा। मैं भला पीछे क्यों रहती, मैंने भी उनके चेहरे को चाटना चालू कर दिया।
भाभी सच कहती हैं, प्रेम में कुछ भी गंदा नहीं होता। ऐसी छोटी-छोटी चुहल जिंदगी को रोमांच से भर देती हैं।
अब प्रेम ने मुझे फिर से अपनी बाहों में भर लिया और मुझे गोद में बैठाते हुए पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। मुझे अपने नितंबों के बीच उनके खूँटे की उपस्थिति आज बहुत अच्छी लग रही थी। मेरा तो मन करने लगा अभी उनके पाजामे का नाड़ा खोलूँ और अपना घाघरा ऊपर करके उस खूँटे को अपनी लाडो के अंदर समेट लूँ। पर मैं अभी अपने इस रोमांच को समाप्त नहीं करना चाहती थी।
हमने थोड़ा केक और खाया और फिर खाना खा लिया। आज तो प्रेम ने अपने हाथों से मुझे खाना खिलाया था। बीच बीच में वो मेरे गालों पर भी कुछ मीठा या सब्जी लगा देता और फिर उसे अपनी जीभ से चाटने लगता।
खाना खाने के बाद हम एक दूसरे की बाहों में लिपटे अपने शयनकक्ष में आ गये। आज मैंने कमरे में पहले से ही हीटर और ब्लोअर चला दिया था और कमरे को ठीक उसी तरह सजाया था जैसा हमारे मधुर मिलन की रात सज़ा था। मैंने उसी चादर को निकाल कर पलंग पर बिछाया था जो उस रात हमारे प्रेम रस में भीग गई थी। पलंग और पूरे कमरे में मैंने सुगंधित स्प्रे भी कर दिया था। प्रेम पलंग पर बिछी उस चादर और उस पर पड़ी गुलाब की पंखुड़ियों और साथ पड़ी छोटी मेज पर रखे दूध के थर्मस को देख कर मंद मंद मुस्कुराने लगा।
अब उसने अपनी जेब से वो हार वाली डिब्बी निकाली और मेरे पीछे आकर मेरे गले में हीर-माला पहनने लगा। मैं तो आँखें बंद किए उसी मधुर मिलन वाले रोमांच में खोई रह गई। मैं तो तब चौंकी जब एक बार फिर से उनका 'वो’ मेरे नितंबों से टकराया। प्रेम का ??एक हाथ फिर से मेरी लाडो को टटोलने लगा था।
"मधुर !"
"हुंअ...?"
"तुम्हारे नितंब बहुत खूबसूरत हो गये हैं !"
"हम्म..."
मैंने भी महसूस लिया था कि जचगी के बाद मेरी कमर का माप भी 2-3 इंच तो बढ़ ही गया है। मेरे नितंब भी थोड़े भारी से हो गए हैं और कस भी गए हैं। सच कहूँ तो मेरे नितंबों की थिरकन और कमर की लचक बहुत कामुक हो गई है। मैं उनका आशय और मनसा भली भाँति जानती थी। पर मैं आज इतनी जल्दी वो सब करवाने के मूड में कतई नहीं थी। मैंने अपना एक हाथ पीछे किया और उनके "उसको" पकड़ कर भींच दिया।
प्रेम की एक मीठी सीत्कार निकल गई। उसने मुझे कंधे से पकड़ कर घुमाया और अपने सीने से चिपका कर मेरे नितंबों पर हाथ फिराने लगा।
"मधुर... पलंग पर चलें ?"
"हम्म !"
अक्सर ऐसे मौके पर मैं रोशनी बंद करने को कह देती हूँ पर आज मैंने उन्हें ऐसा नहीं कहा। हम दोनों झट से पलंग पर आकर कंबल में घुस गये। प्रेम तो मुझे कपड़े उतारते हुए देखना चाहता था पर मैंने कंबल के अंदर घुसे हुए ही अपने कपड़े उतार दिए। प्रेम ने भी झट से अपने सारे कपड़े उतार दिए और मेरे ऊपर आकर मुझे अपनी बाहों में कस कर चूमना शुरू कर दिया।
मैंने अपना एक हाथ बढ़ा कर उनके "उसको" पकड़ लिया और अपनी लाडो पर घुमाने लगी। मेरी लाडो तो पहले से ही पूरी गीली हो चुकी थी किसी क्रीम या तेल की ज़रूरत कहाँ थी। प्रेम ने मेरे होंठों को चूमते हुए एक ज़ोर का धक्का लगाया तो उनका पप्पू गच से अंदर चला गया। मेरे मुँह से एक कामुक सीत्कार निकल गई।
प्रेम ने मेरे अधरों को चूमना और उरोज़ों को मसलना चालू कर दिया। वो आँखें बंद किए हौले-हौले धक्के लगाने लगा।
मैं उसका ध्यान फिर से अपने नितंबों और महारानी की ओर ले जाना चाहती थी। मैंने उसके होंठों को अपने दाँतों से थोड़ा सा काट लिया और फिर एक सीत्कार करते हुए अपने पैर हवा में उठा दिए। ऐसा करने से मेरे नितंब भी थोड़े ऊपर उठ गये।
अब प्रेम ने अपना एक हाथ नीचे किया और पहले तो उसने नितंबों पर हाथ फिराया और फिर महारानी के छेद पर अपनी अंगुली फिराने लगा। उस पर चिकनाई तो पहले से ही लगी थी और कुछ लाडो का रस भी निकल कर उसे गीला कर चुका था। प्रेम ने अपनी एक अंगुली थोड़ी सी अंदर डाली।
मैंने ठोड़ा चिहुंकने का नाटक किया,"ओह... प्रेम मेरे साजन ... आ....."
"आ... मेरी स्वर्ण नैना... मेरी जान...." कहते हुए उसने फिर से मेरे होंठ चूम लिए और ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा।
मैंने अपनी अपनी लाडो को कस कर अंदर भींच लिया। ऐसा करने से महारानी ने भी साथ में संकोचन किया। मैं जानती थी इस समय प्रेम की क्या हालत हो रही होगी।
हमें आज कोई 10-12 मिनट तो इस प्रेम युद्ध में लगे ही होंगे। प्रेम युद्ध के अंतिम क्षणों में प्रेम मुझे हमेशा घुटनों के बल होने को कहता है। उसे नितंबों पर थपकी लगाना और उनकी खाई में अंगुली फिराना बहुत अच्छा लगता है। मैं आज उसे किसी क्रिया के लिए मना नहीं करना चाहती थी। जब उसने ऐसा करने का इशारा किया तो मैं झट से अपने घुटनों के बल हो गई।
प्रेम अब उठ कर मेरे पीछे आ गया। पहले तो उसने नितंबों पर थपकी लगाई और फिर उन पर दो-तीन बार चुंबन लिया। मेरी लाडो में तो इस समय चींटियाँ सी काट रही थी। मेरा मन कर रहा था कि प्रेम एक ही झटके में अपने पप्पू को अंदर डाल दे और कस कस कर अंतिम धक्के लगा दे।
फिर उसने मेरे नितंबों को चौड़ा किया और अपना मुँह नीचे करके लाडो के चीरे और महारानी के छेद के बीच की जगह को चूम लिया। मेरी तो किलकरी ही निकल गई। पता नहीं प्रेम को ये टोटके कौन सिखाता है।
मुझे तो लगा मेरी लाडो ने अपना धैर्य खो दिया है और अपना रस छोड़ दिया है।
अब प्रेम ने अपने पप्पू को मेरी लाडो की गीली और रपटीली फांकों पर फिराया और फिर उसे सही निशाने पर लगा कर मेरी कमर पकड़ ली। मैं जानती थी प्रेम अब ज़ोर का धक्का लगाने वाला है मैंने भी अपने नितंब ज़ोर से पीछे कर दिए। एक ज़ोर से फच की आवाज के साथ पप्पू अंदर समा गया।
प्रेम कुछ क्षणों के लिए रुका और फिर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। मुझे तो लगा मेरी लाडो में आज कामरस की बाढ़ ही आ गई है। मैंने अपना सिर तकिये पर लगा लिया और एक हाथ से अपनी मदन-मणि को मसलने लगी।
प्रेम कभी धक्के लगाता, कभी मेरे नितंबों पर हाथ फिराता, कभी उन पर थपकी लगता। बीच बीच में वो महारानी के छेद पर भी अपनी अंगुली और अंगूठे को फिराने से बाज़ नहीं आता।
वह आ... उन्ह... कर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाते जा रहा था। मैंने 2-3 बार फिर से लाडो में संकोचन किया तो पप्पू ने भी एक ज़ोर का ठुमका लगाया और फिर कुलबुलाता लावा फ़ूट पड़ा।
प्रेम की गुर्राहट सी निकल रही थी और उसने अपनी कमर को कस कर मेरे नितंबों से चिपका लिया।
मैं धीरे धीरे अपने पैर पीछे करते हुए पेट के बल लेट गई। प्रेम मेरे ऊपर ही लेट गया था। उसने मेरे कानों, गले और पीठ पर चुंबनो की झड़ी लगा दी। थोड़ी देर बाद पप्पू फिसल कर बाहर आ गया तो मुझे अपनी जांघों के बीच गीला गीला लगाने लगा तो मैंने उसे ऊपर से उठ जाने को कहा।
प्रेम की एक अच्छी आदत है, प्रेम युद्ध के बाद हम दोनों ही गुप्तांगों की सफाई ज़रूर करते हैं। अक्सर प्रेम मुझे गोद में उठा कर बाथरूम तक ले जाता है और वहाँ भी मेरी लाडो और नितंबों को छेड़ने से बाज़ नहीं आता। पता नहीं उसे मुझे सू सू करते हुए देखना क्यों इतना अच्छा लगता है। मुझे तो शुरू शुरू में बड़ी लाज आती थी लेकिन अब तो कई बार मैं अपनी लाडो की फांकों को चौड़ा करके जब सू सू करती हूँ तो उस दूर तक जाती उस पतली और तेज़ धार की आवाज़ सुनकर उसका तो चेहरा ही खिल उठता है।
प्रेम तो आज भी मुझे अपने साथ ही बाथरूम चलने को कह रहा था पर मैं आज उसके साथ ना जाकर बाद में जाना चाहती थी। कारण आप सभी अच्छी तरह जानते हैं।
प्रेम तो बाथरूम चला गया और मैंने फिर से कंबल ओढ़ लिया।
कोई 5-7 मिनट के बाद प्रेम बाथरूम से आकर फिर से मेरे साथ कंबल में घुसने लगा तो मैंने उसे कहा "प्रेम प्लीज़ तुम दूसरा कंबल ओढ़ लो और हाँ... वो दूध पी लेना ... !"
आज पता नहीं प्रेम क्यों आज्ञाकारी बच्चे की तरह झट से मान गया नहीं तो वो मुझे अपनी बाहों में भर लेने से कभी नहीं चूकता। मैं फिर कंबल लपेटे ही बाथरूम में चली आई। मैंने अपनी लाडो और महारानी को गर्म पानी और साबुन से एक बार फिर से धोया और ...

आपका प्रेम गुरु
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jay
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प्रेम तो बाथरूम चला गया और मैंने फिर से कम्बल ओढ़ लिया।
कोई 5-7 मिनट के बाद प्रेम बाथरूम से आकर फिर से मेरे साथ कम्बल में घुसने लगा तो मैंने उसे कहा "प्रेम प्लीज़ तुम दूसरा कम्बल ओढ़ लो और हाँ... वो दूध पी लेना ... !"
आज पता नहीं प्रेम क्यों आज्ञाकारी बच्चे की तरह झट से मान गया नहीं तो वो मुझे अपनी बाहों में भर लेने से कभी नहीं चूकता। मैं फिर कम्बल लपेटे ही बाथरूम में चली आई। मैंने अपनी लाडो और महारानी को गर्म पानी और साबुन से एक बार फिर से धोया और उन पर सुगंधित क्रीम लगा ली। महारानी के अन्दर भी एक बार फिर से बोरोलीन क्रीम ठीक से लगा ली।
मैंने जानबूझ कर बाथरूम में कोई 10 मिनट लगाए थे। इन मर्दों को अगर सारी चीज़ें सर्व सुलभ करवा दी जाएँ तो ये उनका मूल्य ही नहीं आँकते (कद्र ना करना)।
थोड़ा-थोड़ा तरसा कर और हौले-हौले दिया जाए तो उसके लिए आतुर और लालयित रहते हैं।
मेरे से अधिक यह सब टोटके भला कौन जानता होगा।
मैंने अपने आपको शीशे में देखा। आज तो मेरी आँखों में एक विशेष चमक थी। मैंने शीशे में ही अपनी छवि की ओर आँख मार दी।
जब मैं कमरे में वापस आई तो देखा प्रेम कम्बल में घुसा टेलीफ़ोन पर किसी से बात करने में लगा था। पहले तो वो हाँ हूँ करता रहा मुझे कुछ समझ ही नहीं आया पर बाद में जब उसने कहा,"ओह.... यार सबकी किस्मत तुम्हारे जैसी नहीं हो सकती !"
तब मुझे समझ आया कि यह तो जीत से बात कर रहा था। ओह... यह जीत ज़रूर उसे पट्टी पढ़ा रहा होगा कि मधुर को किसी तरह राज़ी करके या फिर ज़बरदस्ती पीछे से भी ठोक दे।मुझे आता देख कर प्रेम ने ‘ठीक है’ कहते हुए फ़ोन काट दिया।
"कौन था?" मुझे पता तो था पर मैंने जानबूझ कर पूछा।
"ओह. वो. जीत का फ़ोन था ...जन्म दिन की बधाई दे रहा था।" उसने एक लंबी साँस भरते हुए कहा।
"हम्म..."
"मधुर...?" शायद वो आज कुछ कहना चाहता था पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था "वो...। वो देखो मैंने तुम्हें कितना सुंदर गिफ्ट दिया है और तुमने तो मुझे कुछ भी नहीं दिया?"
"मैंने तो अपना सब कुछ तुम्हें दे दिया है मेरे साजन अब और क्या चाहिए ?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
मैं पलंग पर बैठ गई तो प्रेम भी झट से मेरे कम्बल में ही आ घुसा,"ओह... मधुर ... वो . चलो छोड़ो... कोई बात नहीं !"
"प्रेम मैं भी कई दिनों से तुम्हें एक अनुपम और बहुत खूबसूरत भेंट देना तो चाहती थी !"
"क...। क्या ?" उसने मुझे अपनी बाहों में कसते हुए पूछा।
"ऐसे नहीं ! तुम्हें अपनी आँखें बंद करनी होगी !"
"प्लीज़ बताओ ना ? क्या देना चाहती हो?"
"ना... बाबा... पहले तुम अपनी आँखें बंद करो ! यह भेंट खुली आँखों से नहीं देखी जा सकती !"
"अच्छा लो भाई मैं आँखें बंद कर लेता हूँ !"
"ना ऐसे नहीं....! क्या पता तुम बीच में अपनी आँखें खोल लो तो फिर उस भेंट का मज़ा ही किरकिरा हो जाएगा ना?"
"तो?"
"तुम अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लो, फिर मैं वो भेंट तुम्हें दे सकती हूँ !" मैंने रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए कहा।
प्रेम की तो कुछ समझ ही नहीं आया,"ओके... पर पट्टी बाँधने के बाद मैं उसे देखूँगा कैसे?"
"मेरे भोले साजन वो देखने वाली भेंट नहीं है ! बस अब तुम चुपचाप अपनी आँखों पर यह दुपट्टा बाँध लो, बाकी सब मेरे ऊपर छोड़ दो।"
फिर मैंने उसकी आँखों पर कस कर अपना दुपट्टा बाँध दिया। अब मैंने उसे चित्त लेट जाने को कहा। प्रेम चित्त लेट गया। अब मैंने उनके पप्पू को अपने हाथों में पकड़ लिया और मसलने लगी। प्रेम के तो कुछ समझ ही नहीं आया। वो बिना कुछ बोले चुपचाप लेटा रहा।
मैंने पप्पू को मुँह में लेकर चूसना चालू कर दिया। वो तो ठुमके ही लगाने लगा था। मैंने कोई 2-3 मिनट उसे चूसा और अपने थूक से उसे पूरा गीला कर दिया। अब मैंने अपनी दोनों जांघें उसकी कमर के दोनों ओर करके उसके ऊपर आ गई। फिर उकड़ू होकर पप्पू को अपनी लाडो की फांकों पर पहले तो थोड़ा घिसा और फिर उसका शिश्णमुण्ड महारानी के छेद पर लगा लिया।
मेरे लिए ये क्षण कितने संवेदनशील थे, मैं ही जानती हूँ।
प्रेम का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा तह और उसकी साँसें बहुत तेज़ हो चली थी।
मैंने एक हाथ से पप्पू को पकड़े रखा और फिर अपनी आँखें बंद करके धीरे से अपने नितम्बों को नीचे किया। पप्पू हालाँकि लोहे की छड़ की तरह कड़ा था फिर भी थोड़ा सा टेढ़ा सा होने लगा। मैंने पप्पू को अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ लिया ताकि वो फिसल ना जाए। मैं आज किसी प्रकार का कोई लोचा नहीं होने देना चाहती थी। मैं इस अनमोल एवम् बहु-प्रतीक्षित भेंट को देने में ज़रा भी चूक या ग़लती नहीं करना चाहती थी। मैं तो इस भेंट और इन लम्हों को यादगार बनाना चाहती थी ताकि बाद में हम इन पलों को याद करके हर रात रोमांचित होते रहें।
एक बार तो मुझे लगा कि यह अन्दर नहीं जा सकेगा पर मैंने मन में पक्का निश्चय कर रख था। मैंने एक बार फिर से अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर से सही निशाना लगा कर नीचे की ओर ज़ोर लगाया। इस बार मुझे लगा मेरी महारानी के मुँह पर जैसे मिर्ची सी लग गई है या कई चींटियों ने एक साथ काट लिया है। मैंने थोड़ा सा ज़ोर ओर लगाया तो छेद चौड़ा होने लगा और सुपारा अन्दर सरकने लगा।
मुझे दर्द महसूस हो रहा था पर मैंने साँसें रोक ली थी और अपने दाँत ज़ोर से भींच रखे थे। प्रेम की एक हल्की सीत्कार निकल गई। शायद वो इतनी देर से दम साधे पड़ा था। उसने मेरी कमर पकड़ ली। उसे डर था इस मौके पर शायद में दर्द के मारे उसके ऊपर से हट कर उसका काम खराब ना कर दूँ।
पर मैं तो आज पूर्ण समर्पिता बनने का पूरा निश्चय कर ही चुकी थी। मैंने अपनी साँसें रोक कर एक धक्का नीचे के ओर लगा ही दिया। मुझे लगा जैसे कोई गर्म लोहे की सलाख मेरी महारानी के अन्दर तक चली गई है।
"ईईईईईईईईईईई ईई ईईईईई...." मैंने बहुत कोशिश की पर ना चाहते हुए भी मेरे मुँह से चीत्कार निकल ही गई। मैं बेबस सी हुई उसके ऊपर बैठी रह गई। किसी कुशल शिकारी के तीर की तरह पप्पू पूरा का पूरा अन्दर चला गया था। मुझे तो लगा यह मेरे पेट तक आ गया है।
प्रेम को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं स्वयं ऐसा करूँगी। उसने एक हाथ से मेरी कमर पकड़ी रखी और दूसरे हाथ से मेरी महारानी के छेद को टटोलने लगा कि कहीं यह सब उसका भ्रम तो नहीं है?
कुछ क्षणों तक मैं इसी तरह बैठी रही। अब उसने अपने एक हाथ से महारानी और पप्पू की स्थिति देखने के लिए अपनी अँगुलियाँ महारानी के चौड़े हुए छेद के चारों ओर फिराई। उसे अब जाकर तसल्ली और विश्वास हुआ था कि यह सपना नहीं, सच है।
फिर उसने दोनों हाथों से मेरी कमर कस कर पकड़ ली।
मुझे बहुत दर्द महसूस हो रहा था और मेरी आँखों से आँसू भी निकल पड़े थे। मैं जानती हूँ यह सब दर्द के नहीं बल्कि एक अनोखी खुशी के कारण थे। आज मैं प्रेम की पूर्ण समर्पिता बन गई हूँ यह सोच कर ही मेरे अधरों पर मुस्कान और गालों पर आँसू थिरक पड़े। मैंने अपना सिर प्रेम की छाती से लगा दिया।
"मेरी जान... मेरी सिमरन... मेरी स्वर्ण नैना... उम्म्मह..." प्रेम ने मेरे सिर को अपने हाथों में पकड़ते हुए मेरे अधरों को चूम लिया।
"मधुर... इस अनुपम भेंट के लिए तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद... ओह. मेरी स्वर्ण नैना आज तुमने जो समर्पण किया है, मैं सारी जिंदगी उसे नहीं भूल पाऊँगा...! इस भेंट को पाकर मैं आज इस दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान बन गया हूँ।"
"मेरे प्रेम... मैं तो सदा से ही तुम्हारी पूर्ण समर्पिता थी !"
"मधुर, ज़्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?"
"ओह... प्लीज़ थोड़ी देर ऐसे ही लेटे रहो... हिलो मत... आ...!"
"मधुर... आई लॉव यू !" कहते हुए उसका एक हाथ मेरे सिर पर और दूसरा हाथ मेरे नितम्बों पर फिरने लगा। हालाँकि मुझे अभी भी थोड़ा दर्द तो हो रहा था पर उसके चेहरे पर आई खुशी की झलक, संतोष, गहरी साँसें और धड़कता दिल इस बात के साक्षी थे कि यह सब पाकर उसे कितनी अनमोल खुशी मिली है। मेरे लिए यह कितना संतोषप्रद था कोई कैसे जान सकता है।
"प्रेम... अब तो तुम खुश हो ना ?"
"ओह.. मेरी सिमरन... ओह... स्वर्ण नैना... आज मैं कितना खुशनसीब हूँ तुम्हें इस प्रकार पाकर मैं पूर्ण पुरुष बन गया हूँ। आज तो तुमने पूर्ण समर्पिता बन कर मुझे उपकृत ही कर दिया है। मैं तो अब पूरी जिंदगी और अगले सातों जन्मों तक तुम्हारे इस समर्पण के लिए आभारी रहूँगा !" कह कर उसने मुझे एक बार फिर से चूम लिया।
"मेरे प्रेम... मेरे... मीत... मेरे साजन...." कहते हुए मैंने भी उनके होंठों को चूम लिया। आज मेरे मन में कितना बड़ा संतोष था कि आख़िर एक लंबी प्रतीक्षा, हिचक, लाज़ और डर के बाद मैंने उनका बरसों से संजोया ख्वाब पूरा कर दिया है।
प्रेम ने एक बार फिर से मेरे नितम्बों के बीच अपनी अँगुलियाँ फिरानी चालू कर दी। वो तो बार बार महारानी के छल्ले पर ही अँगुलियाँ फिरा रहा था। एक बार तो उसने अपनी अँगुलियाँ अपने होंठों पर भी लगा कर चूम ली। मेरे मन में तो आया कह दूँ,"हटो परे ! गंदे कहीं के !" पर अब मैं ऐसा कैसे बोल सकती थी।
मैंने भी अपना हाथ उस पर लगा कर देखा- हे भगवान... उनका "वो" तो कम से कम 5 इंच तो ज़रूर अन्दर ही धंसा था। छल्ला किसी विक्स की डब्बी के ढक्कन जितना चौड़ा लग रहा था। मैं देख तो नहीं सकती थी पर मेरा अनुमान था कि वो ज़रूर लाल रंग का होगा। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि इतना मोटा अन्दर कैसे चला गया।
भाभी सच कहती थी इसमें मानसिक रूप से तैयार होना बहुत ज़रूरी है। अगर मन से इसके लिए स्त्री तैयार है तो भले ही कितना भी मोटा और लंबा क्यों ना हो आराम से अन्दर चला जाएगा।
प्रेम आँखें बंद किए मेरे उरोज़ों को चूसने लगा था। अब मुझे दर्द तो नहीं हो रहा था बस थोड़ी सी चुनमुनाहट अभी भी हो रही थी।
एक बात तो मैंने भी महसूस की थी। जब कभी कोई मच्छर या चींटी काट लेती है तो उस जगह को बार बार खुजलाने में बहुत मज़ा आता है। प्रेम जब उस छल्ले पर अपनी अंगुली फिराता तो मुझे बहुत अच्छा लगता। अब मैंने अपना सिर और कमर थोड़ी सी ऊपर उठाई और फिर से अपने नितम्बों को नीचे किया तो एक अज़ीब सी चुनमुनाहट मेरी महारानी के छल्ले पर महसूस हुई। मैंने 2-3
बार उसका संकोचन भी किया। हर बार मुझे लगा मेरी चुनमुनाहट और रोमांच बढ़ता ही जा रहा है जो मुझे बार बार ऐसा करने पर विवश कर रहा है। मीठी मीठी जलन, पीड़ा, कसक और गुदगुदी भरी मिठास का आनन्द तो अपने शिखर पर था।
अब तो प्रेम ने भी अपने नितम्ब कुछ उचकाने शुरू कर दिए थे।
मैंने अपने नितम्बों को थोड़ा ऊपर नीचे करते हुए महारानी का एक दो बार फिर संकोचन किया। प्रेम का लिंग तो अन्दर जैसे ठुमके ही लगाने लगा था। मुज़ेः भी उस संकोचन से गुदगुदी और रोमांच दोनों हो रहे थे। अब मैंने अपने नितम्बों को थोड़ा ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। आ... यह आनन्द तो इतना अनूठा था कि मैं शब्दों में नहीं बता सकती। ओह... अब मुझे समझ आया कि मैं तो इतने दिन बेकार ही डर रही थी और इस आनन्द से अपने आप को वंचित किए थी। जैसे ही मैं अपने नितम्ब ऊपर करती प्रेम का हाथ मेरी कमर से कस जाता। उसे डर था कि कहीं उसका पप्पू बाहर ना निकल जाए और फिर जब मैं अपने नितम्ब नीचे करती तो मेरे साथ उसकी भी सीत्कार निकल जाती। वो कभी मेरी जांघों पर हाथ फिराता, कभी नितम्बों पर। एक दो बार तो उसने मेरी लाडो को भी छेड़ने की कोशिश की पर मुझे तो इस समय कुछ और सूझ ही नहीं रहा था।
"आ... मेरी जान... आज तो तुमने मुझे...अया... निहाल ही कर दिया मेरी रानी... मेरी स्वर्ण नैना आ..."
"ओह... प्रेम... आ..." मेरे मुँह से भी बस यही निकल रहा था।
"मधुर एक बार मुझे ऊपर आ जाने दो ना ?"
"ओके.." मैं उठने को हुई तो प्रेम ने कस कर मेरी कमर पकड़ ली।
"ओह ऐसे नहीं ...प्लीज़ रूको... "
"तो?"
"तुम ऐसा करो धीरे धीरे अपना एक पैर उठा कर मेरे पैरों की ओर घूम जाओ। फिर मैं तुम्हारी कमर पकड़ कर पीछे आ जाऊँगा।"
मेरी हँसी निकल गई। अब मुझे समझ आया प्रेम अपने पप्पू को किसी भी कीमत पर बाहर नहीं निकलने देना चाहता था।
फिर मैं प्रेम के कहे अनुसार हो गई। हालाँकि थोड़ा कष्ट तो हुआ और लगा कि यह बाहर निकल जाएगा पर प्रेम ने कस कर मेरी कमर पकड़े रखी और अब वो मेरे पीछे आ गया। मैं अपने घुटनों के बल हो गई और वो भी अपने घुटनो के बल होकर मेरे पीछे चिपक गया। अब उसने मेरी कमर पकड़ ली और धीरे धीरे अपने पप्पू को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर अन्दर सरकाया। पप्पू तो अब ऐसे अन्दर-बाहर होने लगा जैसे लाडो में जाता है। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि इस घर्षण के साथ मेरी लाडो और महारानोई के छल्ले के आस पास बहुत ही आनन्द की अनुभूति होने लगी थी। ओह... यह तो निराला ही सुख था।
भाभी ने मुझे बताया था कि योनि और गुदा की आस पास की जगह बहुत ही संवेदन शील होती है इसीलिए गुदा मैथुन में भी कई बार योनि की तरह बहुत आनन्द महसूस होता है।
प्रेम ने मेरे नितम्बों पर थपकी लगानी शुरू कर दी। मैं तो चाह रही थी आज वो इन पर ज़ोर ज़ोर से थप्पड़ भी लगा दे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। अब वो थोड़ा सा मेरी कमर पर झुका और उसने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरे चूचों को पकड़ लिया, दूसरे हाथ से मेरी लाडो के दाने और कलिकाओं को मसलने लगा।
लाडो तो पूरी प्रेमरस में भीगी थी। उसने एक अंगुली अन्दर-बाहर करनी चालू कर दी। मैं तो इस दोहरे आनन्द में डूबी बस सीत्कार ही करती रही।
स्त्री और पुरुषों के स्वभाव में कितना बड़ा अंतर होता है, मैंने आज महसूस किया था। पुरुष एक ही क्रिया से बहुत जल्दी ऊब जाता है और अपने प्रेम को अलग अलग रूप में प्रदर्शित करना और भोगना चाहता है। पर स्त्री अपनी हर क्रिया और प्रेम को स्थाई और दीर्घायु बनाना चाहती है। इतने दिनों तक प्रेम इस महारानी के लिए मरा जा रहा था और आज जब इसका सुख और मज़ा ले लेते हुए भी वो लाडो को छेदने के आनन्द को भोगे बिना नहीं मान रहा है।
कुछ भी हो मेरा मन तो बस यही चाह रहा था कि काश यह समय का चक्र अभी रुक जाए और हम दोनों इसी तरह बाकी बची सारी जिंदगी इसी आनन्द को भोगते रहें।
"मधुर...आ... मेरी जान... अब... बस...आ....."
मैं जानती थी अब वो घड़ियाँ आने वाली हैं जब इनका "वो" अपने प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति करने वाला है। मैं थोड़ी तक तो गई थी पर मन अभी नहीं भरा था। मैं उनके प्रेम रस की फुहार अन्दर ही लेना चाहती थी।
प्रेम ने 2-3 धक्के और लगाए और फिर मेरी कमर ज़ोर से पकड़ कर अपने लिंग को जड़ तक अन्दर डाल दिया और मेरे नितम्बों से चिपक कर हाँफने लगा। मैंने अपने घुटने ज़ोर से जमा लिए। इन अंतिम क्षणों में मैं उसका पूरा साथ देना चाहती थी।
"यआआआआआअ....... ईईईईईईईईई.... मेरी जान... माधुर्र्रर....। आ......" उसके मुँह से आनन्द भारी सीत्कार निकल पड़ी और उसके साथ ही मुझे लगा उनका पप्पू अन्दर फूलने और पिचकने लगा है और मेरी महारानी किसी गर्म रस से भरती जा रही है।
अब प्रेम ने धक्के लगाने तो बंद कर दिए पर मेरी कमर पकड़े नितम्बों से चिपका ही रहा। मेरे पैर भी अब थरथराने लगे थे। मैंने अपने पैर थोड़े पीछे किए और अपने पेट के बाल लेट गई। प्रेम मेरे ऊपर ही आ गिरा।
अब उसने अपने हाथ नीचे करके मेरे स्तनों को पकड़ लिया और मेरी कंधे गर्दन और पीठ पर चुंबन लेने लगा। मैं तो उनके इस बरसते प्रेम को देख कर निहाल ही हो उठी। मुझे लगा मैंने एक बार फिर से अपना ‘मधुर प्रेम मिलन’ ही कर लिया है।
मैंने अपनी जांघें फैला दी थी। थोड़ी देर बाद पप्पू फिसल कर बाहर आ गया तो मेरी महारानी के अन्दर से गाढ़ा चिपचिपा प्रेम रस भी बाहर आने लगा। मुझे गुदगुदी सी होने लगी थी और अब तो प्रेम का भार भी अपने ऊपर महसूस होने लगा था।
‘ईईईईईईईईईई................." मेरे मुँह से निकल ही पड़ा।
जान ! मैंने अपने नितम्ब मचकाए।
तो प्रेम मेरे ऊपर से उठ खड़ा हुआ। मैं भी उठ कर अपने नितम्बों और जांघों को साफ करना चाहती थी पर प्रेम ने मुझे रोक दिया। उसने तकिये के नीचे से फिर वही लाल रुमाल निकाला और उस रस को पौंछ दिया।
मैं तो सोचती थी वो इस रुमाल को नीचे फेंक देगा पर उसने तो उस रुमाल को अपने होंठों से लगा कर चूम लिया। और फिर मेरी ओर बढ़ कर मेरे होंठों और गालों को चूमने लगा। मेरे मुँह से आख़िर निकल ही गया,"हटो परे ! गंदे कहीं के !"
"मेरी जान, प्रेम में कुछ भी गंदा नहीं होता !" कह कर उसने मुझे फिर से बाहों में भर कर चूम लिया।
मैं अब बाथरूम जाना चाहती थी पर प्रेम ने कहा,"मधुर ... आज की रात तो मैं तुम्हें एक क्षण के लिए भी अपने से डोर नहीं होने देना चाहता। आज तो तुमने मुझे वो खुशी और आनन्द दिया है जो अनमोल है। यह तो हमारे मधुर मिलन से भी अधिक आनन्ददायी और मधुर था।"
अब मैं उसे कैसे कहती,"हटो परे झूठे कहीं के !"
मैंने भी कस कर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया........
और फिर हम दोनों कम्बल तान कर नींद के आगोश में चले गए।
बस अब और क्या लिखूँ ? अब तो मैं अपने प्रेम की रानी नहीं महारानी बन गई हूँ !
-मधुर
दोस्तो ! आपको हमारी यह दूसरी सुहागरात कैसी लगी बताएँगे ना ?
आपका प्रेम गुरु
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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अंगूर का दाना

अभी पिछले दिनों खबर आई थी कि 18 वर्षीय नौकरानी जिसने फिल्म अभिनेता शाईनी आहूजा पर बलात्कार का आरोप लगया था, अपने बयान से पलट गई।
इस शाइनी आहूजा ने तो हम सब शादीशुदा प्रेमी जनों की वाट ही लगा दी है। साले इस पप्पू से तो एक अदना सी नौकरानी भी ढंग से नहीं संभाली गई जिसने पता नहीं कितने लौड़े खाए होंगे और कितनों के साथ नैन मटक्का किया होगा। हम जैसे पत्नी-पीड़ितों को कभी कभार इन नौकरानियों से जो दैहिक और नयनसुख नसीब हो जाता था अब तो वो भी गया। इस काण्ड के बाद तो सभी नौकरानियों के नखरे और भाव आसमान छूने लगे हैं। जो पहले 200-400 रुपये या छोटी मोटी गिफ्ट देने से ही पट जाया करती थी आजकल तो इनके नाज़ और नखरे किसी फ़िल्मी हिरोइन से कम नहीं रह गए। अब तो कोई भी इनको चोदने की तो बात छोड़ो चूमने या बाहों में भर लेने से पहले सौ बार सोचेगा। और तो और अब तो सभी की पत्नियाँ भी खूबसूरत और जवान नौकरानी को रखने के नाम से ही बिदकने लगी हैं।
पता नहीं मधुर (मेरी पत्नी) आजकल क्यों मधु मक्खी बन गई है। उस दिन मैंने रात को चुदाई करते समय उसे मज़ाक में कह दिया था कि तुम थोड़ी गदरा सी हो गई हो। वह तो इस बात को दिल से ही लगा बैठी। उसने तो डाइटिंग के बहाने खाना पीना ही छोड़ दिया है। बस उबली हुई सब्जी या फल ही लेती है और सुबह साम 2-2 घंटे सैर करती है। मुझे भी मजबूरन उसका साथ देना पड़ता है। और चुदाई के लिए तो जैसे उसने कसम ही खा ली है बस हफ्ते में शनिवार को एक बार। ओह … मैं तो अपना लंड हाथ में लिए कभी कभी मुट्ठ मारने को मजबूर हो जाता हूँ। वो रूमानी दिन और रातें तो जैसे कहीं गुम ही हो गये हैं।
अनारकली के जाने के बाद कोई दूसरी ढंग की नौकरानी मिली ही नहीं। (आपको “मेरी अनारकली” जरुर याद होगी) सच कहूं तो जो सुख मुझे अनारकली ने दिया था मैं उम्र भर उसे नहीं भुला पाऊंगा। आह … वो भी क्या दिन थे जब ‘मेरी अनारकली’ सारे सारे दिन और रात मेरी बाहों में होती थी और मैं उसे अपने सीने से लगाए अपने आप को शहजादा सलीम से कम नहीं समझता था। मैंने आपको बताया था ना कि उसकी शादी हो गई है। अब तो वो तीन सालों में ही 2 बच्चों की माँ भी बन गई है और तीसरे की तैयारी जोर शोर से शुरू है। गुलाबो आजकल बीमार रहती है सो कभी आती है कभी नागा कर जाती है। पिछले 3-4 दिनों से वो काम पर नहीं आ रही थी। बहुत दिनों के बाद कल अनारकली काम करने आई थी। मैंने कोई एक साल के बाद उसे देखा था।
अब तो वो पहचान में ही नहीं आती। उसका रंग सांवला सा हो गया है और आँखें तो चहरे में जैसे धंस सी गई हैं। जो उरोज कभी कंधारी अनारों जैसे लगते थे आजकल तो लटक कर फ़ज़ली आम ही हो गए हैं। उसके चहरे की रौनक, शरीर की लुनाई, नितम्बों की थिरकन और कटाव तो जैसे आलू की बोरी ही बन गए हैं। किसी ने सच ही कहा है गरीब की बेटी जवान भी जल्दी होती है और बूढ़ी भी जल्दी ही हो जाती है।
कल जब वो झाडू लगा रही थी तो बस इसी मौके की तलाश में थी कि कब मधुर इधर-उधर हो और वो मेरे से बात कर पाए। जैसे ही मधुर बाथरूम में गई वो मेरे नजदीक आ कर खड़ी हो गई और बोली,“क्या हाल हैं मेरे एस. एस. एस. (सौदाई शहजादे सलीम) ?”
“ओह … मैं ठीक हूँ … तुम कैसी हो अनारकली …?”
“बाबू तुमने तो इस अनारकली को भुला ही दिया … मैं तो … मैं तो …?” उसकी आवाज कांपने लगी और गला रुंध सा गया था। मुझे लगा वो अभी रोने लगेगी। वो सोफे के पास फर्श पर बैठ गई।
“ओह … अनारकली दरअसल … मैं… मैं… तुम्हें भूला नहीं हूँ तुम ही इन दिनों में नज़र नहीं आई?”
“बाबू मैं भला कहाँ जाउंगी। तुम जब हुक्म करोगे नंगे पाँव दौड़ी चली आउंगी अपने शहजादे के लिए !” कह कर उसने मेरी ओर देखा।
उसकी आँखों में झलकता प्रणय निवेदन मुझ से भला कहाँ छुपा था। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी और आँखों में लाल डोरे से तैरने लगे थे। बस मेरे एक इशारे की देरी थी कि वो मेरी बाहों में लिपट जाती। पर मैं ऐसा नहीं चाहता था। उस चूसी हुई हड्डी को और चिंचोड़ने में भला अब क्या मज़ा रह गया था। जाने अनजाने में जो सुख मुझे अनारकली ने आज से 3 साल पहले दे दिया था मैं उन हसीन पलों की सुनहरी यादों को इस लिजलिजेपन में डुबो कर यूं खराब नहीं करना चाहता था।
इससे पहले कि मैं कुछ बोलूँ या अनारकली कुछ करे बाथरूम की चिटकनी खुलने की आवाज आई और मधुर की आवाज सुनाई दी,“अन्नू ! जरा साबुन तो पकड़ाना !”
“आई दीदी ….” अनारकली अपने पैर पटकती बाथरूम की ओर चली गई। मैं भी उठकर अपने स्टडी-रूम में आ गया।
आज फिर गुलाबो नहीं आई थी और उसकी छोटी लड़की अंगूर आई थी। अंगूर और मधुर दोनों ही रसोई में थी। मधु उस पर पता नहीं क्यों गुस्सा होती रहती है। वो भी कोई काम ठीक से नहीं कर पाती। लगता है उसका भी ऊपर का माला खाली है। कभी कुछ गिरा दिया कभी कुछ तोड़ दिया।
इतने में पहले तो रसोई से किसी कांच के बर्तन के गिर कर टूटने की आवाज आई और फिर मधु के चिल्लाने की, “तुम से तो एक भी काम सलीके से नहीं होता। पता है यह टी-सेट मैंने जयपुर से खरीदा था। इतने महंगे सेट का सत्यानाश कर दिया। इस गुलाबो की बच्ची को तो बस बच्चे पैदा करने या पैसों के सिवा कोई काम ही नहीं है। इन छोकरियों को मेरी जान की आफत बना कर भेज देती है। ओह … अब खड़ी खड़ी मेरा मुँह क्या देख रही है चल अब इसे जल्दी से साफ़ कर और साहब को चाय बना कर दे। मैं नहाने जा रही हूँ।”
मधु बड़बड़ाती हुई रसोई से निकली और बाथरूम में घुस कर जोर से उसका पल्ला बंद कर लिया। मैं जानता हूँ जब मधु गुस्सा होती है तो फिर पूरे एक घंटे बाथरूम में नहाती है। आज रविवार का दिन था। आप तो जानते ही हैं कि रविवार को हम दोनों साथ साथ नहाते हैं पर आज मधु को स्कूल के किसी फंक्शन में भी जाना था और जिस अंदाज़ में उसने बाथरूम का दरवाजा बंद किया था मुझे नहीं लगता वो किसी भी कीमत पर मुझे अपने साथ बाथरूम में आने देगी।
अब मैं यह देखना चाहता था कि अन्दर क्या हुआ है इस लिए मैं रसोई की ओर चला गया। अन्दर फर्श पर कांच के टुकड़े बिखरे पड़े थे और अंगूर सुबकती हुई उन्हें साफ़ कर रही थी। ओह … गुलाबो तो कहती है कि अंगूर पूरी 18 की हो गई है पर मुझे नहीं लगता कि उसकी उम्र इतनी होगी। उसने गुलाबी रंग का पतला सा कुरता पहन रखा था जो कंधे के ऊपर से थोड़ा फटा था। उसने सलवार नहीं पहनी थी बस छोटी सी सफ़ेद कच्छी पहन रखी थी। मेरी नज़र उसकी जाँघों के बीच चली गई। उसकी गोरी जांघें और सफ़ेद कच्छी में फंसी बुर की मोटी मोटी फांकों का उभार और उनके बीच की दरार देख कर मुझे लगा कि गुलाबो सही कह रही थी अंगूर तो पूरी क़यामत बन गई है। मेरा दिल तो जोर जोर से धड़कने लगा।
मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया तब उसका ध्यान मेरी ओर गया। जैसे ही उसने अपनी मुंडी ऊपर उठाई मेरा ध्यान उसके उन्नत उरोजों पर चला गया। हल्के भूरे गुलाबी रंग के गोल गोल कश्मीरी सेब जैसे उरोज तो जैसे क़यामत ही बने थे। हे लिंग महादेव ….. इसके छोटे छोटे उरोज तो मेरी मिक्की जैसे ही थे।
ऐसा नहीं है कि मैंने अंगूर को पहली बार देखा था। इससे पहले भी वो दो-चार बार गुलाबो के साथ आई थी। मैंने उस समय ध्यान नहीं दिया था। दो साल पहले तक तो यह निरी काली-कलूटी कबूतरी सी ही तो थी और गुलाबो का पल्लू ही पकड़े रहती थी। ओह…. यह तो समय से पहले ही जवान हो गई है। यह सब टीवी और फिल्मों का असर है। अंगूर टीवी देखने की बहुत शौक़ीन है। अब तो इसका रंग रूप और जवानी जैसे निखर ही आई है। उसका रंग जरुर थोड़ा सांवला सा है पर मोटी मोटी काली आँखें, पतले पतले गुलाबी होंठ, सुराहीदार गर्दन, पतली कमर, मखमली जांघें और गोल मटोल नितम्ब तो किसी को भी घायल कर दें। उसके निम्बू जैसे उरोज तो अब इलाहबाद के अमरूद ही बन चले हैं। मैं तो यह सोच कर ही रोमांचित हो जाता हूँ कि जिस तरह उसके सर के बाल कुछ घुंघराले से हैं उसकी पिक्की के बाल कितने मुलायम और घुंघराले होंगे।
उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़ ……………
मधु तो बेकार ही गुलाबो को दोष देती रहती है। और हम लोग भी इनके अधिक बच्चों को लेकर नाहक ही अपनी नाक और भोहें सिकोड़ते रहते हैं। वैसे देखा जाए तो हमारे जैसे मध्यमवर्गीय लोग तो डाक्टर और इंजीनियर पैदा करने के चक्कर में बस क्लर्क और परजीवी ही पैदा करते हैं। असल में घरों, खेतों, कल कारखानों, खदानों और बाज़ार के लिए मानव श्रम तो गुलाबो जैसे ही पैदा करते हैं। गुलाबो तू धन्य है।
ओह … मैं भी क्या बेकार की बातें ले बैठा। मैं अंगूर की बात कर रहा था। मुझे एक बार अनारकली ने बताया था कि जिस रात यह पैदा हुई थी बापू उस रात अम्मा के लिए अंगूर लाये थे। सो इसका नाम अंगूर रख दिया। वाह … क्या खूब नाम रखा है गुलाबो ने भी। यह तो एक दम अंगूर का गुच्छा ही है।
मैंने देखा अंगूर की तर्जनी अंगुली शायद कांच से कट गई थी और उससे खून निकल रहा था। वह दूसरे हाथ से उसे पकड़े सुबक रही थी। मुझे अपने पास देख कर वो खड़ी हो गई तो मैंने पूछा, “अरे क्या हुआ अंगूर ?”
“वो…. वो…. कप प्लेट टूट गए….?”
“अरे … मैं कप प्लेट की नहीं तुम्हारी अंगुली पर लगी चोट की बात कर रहा हूँ…? दिखाओ क्या हुआ ?”
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी अंगुली से खून बह रहा था। मैं उसे कंधे से पकड़कर रसोई में बने सिंक पर ले गया और नल के नीचे लगा कर उसकी अंगुली पर पानी डालने लगा। घाव ज्यादा गहरा नहीं था बस थोड़ा सा कट गया था। पानी से धोने के बाद मैंने उसकी अंगुली मुँह में लेकर उस पर अपना थूक लगा दिया। वो हैरान हुई मुझे देखती ही रह गई कि मैंने उसकी गन्दी सी अंगुली मुँह में कैसे ले ली।
वो हैरान हुई बोली “अरे… आपने तो … मेरी अंगुली मुँह में … ?”
“थूक से तुम्हारा घाव जल्दी भर जाएगा और दर्द भी नहीं होगा !” कहते हुए मैंने उसके गालों को थपथपाया और फिर उन पर चिकोटी काट ली।
ऐसा सुनहरा अवसर भला फिर मुझे कहाँ मिलता। उसके नर्म नाज़ुक गाल तो ऐसे थे जैसे रुई का फोहा हो। वो तो शर्म के मारे लाल ही हो गई … या अल्लाह …… शर्माते हुए यह तो पूरी मिक्की या सिमरन ही लग रही थी। मेरा पप्पू तो हिलोरें ही मारने लगा था ……
इस्स्स्सस्स्स्स …….
उसके बाद मैंने उसकी अंगुली पर बैंड एड (पट्टी) लगा दी। मैंने उससे कहा “अंगूर तुम थोड़ा ध्यान से काम किया करो !”
उसने हाँ में अपनी मुंडी हिला दी।
“और हाँ यह पट्टी रोज़ बदलनी पड़ेगी ! तुम कल भी आ जाना !”
“मधुर दीदी डांटेंगी तो नहीं ना ?”
“अरे नहीं मैं मधु को समझा दूंगा वो तुम्हें अब नहीं डांटेंगी ….. मैं हूँ ना तुम क्यों चिंता करती हो !” और मैंने उसकी नाक पकड़ कर दबा दिया। वो तो छुईमुई गुलज़ार ही बन गई और मैं नए रोमांच से जैसे झनझना उठा। यौवन की चोखट (दहलीज़) पर खड़ी यह खूबसूरत कमसिन बला अब मेरी बाहों से बस थोड़ी ही दूर तो रह गई है। मेरा जी तो उसका एक चुम्बन भी ले लेने को कर रहा था। मैंने अपने आप को रोकने की बड़ी कोशिश की पर मैं एक बार फिर से उसके गालों को थपथपाने से अपने आप को नहीं रोक पाया।
आज के लिए इतना ही काफी था।
हे लिंग महादेव ….. बस एक बार अपना चमत्कार और दिखा दे यार। बस इसके बाद मैं कभी तुमसे कुछ और नहीं मांगूंगा अलबत्ता मैं महीने के पहले सोमवार को रोज़ तुम्हें दूध और जल चढ़ने जरूर आऊंगा। काश कुछ ऐसा हो कि यह कोरी अनछुई छुईमुई कमसिन बाला मेरी बाहों में आ जाए और फिर मैं सारी रात इसके साथ गुटर गूं करता रहूँ। सच पूछो तो मिक्की के बाद उस तरह की कमसिन लड़की मुझे मिली ही नहीं थी। पता नहीं इस कमसिन बला को पटाने में मुझे कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे। पर अब सोचने वाली बात यह भी है कि हर बार बेचारा लिंग महादेव मेरी बात क्यों मानेगा। ओह … चलो अगर यह चिड़िया इस बार फंस जाए तो मैं भोलेशाह की मज़ार पर जुम्मेरात (गुरूवार) को चादर जरुर चढ़ाऊंगा।
रात में मधुर ने बताया कि गुलाबो का गर्भपात हुआ है और वो अगले आठ-दस दिनों काम पर नहीं आएगी। मेरी तो मन मांगी मुराद ही जैसे पूरी होने जा रही थी। पर इस कमसिन लौंडिया को चोदने में मेरी सबसे बड़ी दिक्कत तो मधु ही थी। उसने यह भी बताया कि अन्नू (अनारकली) भी कुछ पैसे मांग रही थी। उसके पति की नौकरी छूट गई है और वह रोज़ शराब पीने लगा है। उसे कभी कभी मारता पीटता भी है। पता नहीं इन गरीबों के साथ ऐसा क्यों होता है?
मैं जानता हूँ मधु का गुस्सा तो बस दूध के उफान की तरह है। वह इतनी कठोर नहीं हो सकती। वो जल्दी ही अनारकली और गुलाबो की मदद करने को राज़ी हो जायेगी। अचानक मेरे दिमाग में बिज़ली सी चमकी और फिर मुझे ख़याल आया कि यह तो अंगूर के दाने को पटाने का सबसे आसान और बढ़िया रास्ता है … ओह … मैं तो बेकार ही परेशान हो रहा था। अब तो मेरे दिमाग में सारी योजना शीशे की तरह साफ़ थी।
मधु को आज भी जल्दी स्कूल जाना था। मैंने आपको बताया था ना कि मधु स्कूल में टीचर है। सुबह 8 बजे वो जब स्कूल जाने के लिए निकल रही थी तब अंगूर आई। मधु ने उसको समझाया “साहब के लिए पहले चाय बना देना और फिर झाडू पोंछा कर लेना। और ध्यान रखना आज कुछ गड़बड़ ना हो। कुछ तोड़ फोड़ दिया तो बस इस बार तुम्हारी खैर नहीं !”
मधु तो स्कूल चली गई पर अंगूर सहमी हुई सी वहीं खड़ी रही। मैंने पहले तो उसके अमरूदों को निहारा और फिर जाँघों को। फिर मेरा ध्यान उसके चेहरे पर गया। उसके होंठ और गाल कुछ सूजे हुए से लग रहे थे। पता नहीं क्या बात थी। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था और मैं तो बस उसे छूने या चूमने का जैसे कोई ना कोई उपयुक्त बहाना ही ढूंढ रहा था।
मैंने पूछा “अरे अंगूर तुम्हारे होंठों को क्या हुआ है ?”
उसका एक हाथ उसके होंठों पर चला गया। वो रुआंसी सी आवाज में बोली “कल अम्मा ने मारा था !”
“क्यों ?”
“वो … कल म…. मेरे से कप प्लेट टूट गए थे ना !”
“ओह … क्या घर पर भी तुमने कप प्लेट तोड़ दिए थे ?”
“नहीं … कल यहाँ जो कप प्लेट टूटे थे उनके लिए !”
मेरे कुछ समझ नहीं आया। यहाँ जो कप प्लेट टूटे थे उसका इसकी मार से क्या सम्बन्ध था। मैंने फिर पूछा “पर कप प्लेट तो यहाँ टूटे थे इसके लिए गुलाबो ने तुम्हें क्यों मारा ?”
“वो…. वो … कल दीदी ने पगार देते समय 100 रुपये काट लिए थे इसलिए अम्मा गुस्सा हो गई और मुझे बहुत जोर जोर से मारा !”
उसकी आँखों से टप टप आंसू गिरने लगे। मुझे उस पर बहुत दया भी आई और मधु पर बहुत गुस्सा। अगर मधु अभी यहाँ होती तो निश्चित ही मैं अपना आपा खो बैठता। एक कप प्लेट के लिए बेचारी को कितनी मार खानी पड़ी। ओह … इस मधु को भी पता नहीं कभी कभी क्या हो जाता है।
“ओह … तुम घबराओ नहीं। कोई बात नहीं मैं 100 रुपये दिलवा दूंगा।”
मैं उठकर उसके पास आ गया और उसके होंठों को अपनी अगुलियों से छुआ। आह…. क्या रेशमी अहसास था। बिलकुल गुलाबी रंगत लिए पतले पतले होंठ सूजे हुए ऐसे लग रहे थे जैसे संतरे की फांकें हों। या अल्लाह ….. (सॉरी हे … लिंग महादेव) इसके नीचे वाले होठ तो पूरी कटार की धार ही होंगे। मेरा पप्पू तो इसी ख्याल से पाजामे के अन्दर उछल कूद मचाने लगा।
“तुमने कोई दवाई लगाई या नहीं ?”
“न … नहीं …तो …?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा।
उसके लिए तो यह रोज़मर्रा की बात थी जैसे। पर मेरे लिए इससे उपयुक्त अवसर भला दूसरा क्या हो सकता था। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए समझाने वाले अंदाज़ में कहा, “ओह…. तुम्हें डिटोल और कोई क्रीम जरुर लगानी चाहिए थी। चलो मैं लगा देता हूँ … आओ मेरे साथ !”
मैंने उसे बाजू से पकड़ा और बाथरूम में ले आया और पहले तो उसके होंठों को डिटोल वाले पानी से धोया और फिर जेब से रुमाल निकाल कर उसके होंठों और गालों पर लुढ़कते मोतियों (आंसुओं) को पोंछ दिया।
“कहो तो इन होंठों को भी अंगुली की तरह चूम कर थूक लगा दूं ?” मैंने हंसते हुए मज़ाक में कहा।
पहले तो उसकी समझ में कुछ नहीं आया लेकिन बाद में तो वो इतना जोर से शरमाई कि उसकी इस कातिल अदा को देख कर मुझे लगा मेरा पप्पू तो पजामे में ही शहीद हो जाएगा।
“न…. नहीं मुझे शर्म आती है !”
हाय…. अल्लाह ….. मैं तो उसकी इस सादगी पर मर ही मिटा।
उसकी बेटी ने उठा रखी है दुनिया सर पे
खुदा का शुक्र है अंगूर के बेटा न हुआ
“अच्छा चलो थोड़ी क्रीम तो लगा लो ?”
“हाँ वो लगा दो !” उसने अपने होंठ मेरी ओर कर दिए।
मेरे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरुर सोच रहे होंगे कि अब तो बस दिल्ली लुटने को दो कदम दूर रह गई होगी। बस अब तो प्रेम ने इस खूबसूरत कमसिन नाज़ुक सी कलि को बाहों में भर कर उसके होंठों को चूम लिया होगा। वो पूरी तरह गर्म हो चुकी होगी और उसने भी अपने शहजादे का खड़ा इठलाता लंड पकड़ कर सीत्कार करनी चालू कर दी होगी ?
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