Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
"पलक..."
"हुं..."
"पर तुम्हें एक वचन देना होगा !"
" केवू वचन ?" (कैसा वचन ?)
"बस तुम शर्माना छोड़ देना और जैसा मैं समझाऊँ, वैसे करती रहना !"
"ऐ बधू तो ठीक छे पण तमे केवू आवशो ? अने आवया पेला मने कही देजो.. भूली नहीं जाता ? कई गाड़ी थी, केवू, केटला वगे आवशो ?" (वो सब ठीक है पर आप कब आओगे? आने से पहले मुझे बता देना.. भूल मत जाना? कौन सी गाड़ी से, कब, कितने बजे आओगे)
मेरे मन में आया कह दूँ ‘मेरी छप्पनछुरी मैं तो तुम्हारे लिए दुनिया भर से रिश्ता छोड़ कर अभी दौड़ा चला आऊँ’ पर मैंने कहा,"मैं अहमदाबाद आने का कार्यक्रम बना कर जल्दी ही तुम्हें बता दूँगा।"
आज मेरा दिल बार बार बांके बिहारी सक्सेना को याद कर रहा था। रात के दो बजे हैं और वो उल्लू की दुम इस समय जरूर यह गाना सुन रहा होगा :
अगर तुम मिल जाओ, ज़माना छोड़ देंगे हम
तुम्हें पाकर ज़माने भर से रिश्ता तोड़ लेंगे हम ….
उसने अपनी और सुहाना की एक फोटो मुझे भेजी थी। हे भगवान् ! उसे देख कर मुझे तो लगा मेरी तो हृदय गति ही रुक जायेगी। हालांकि सुहाना के मुकाबले उसके नितम्ब और उरोज छोटे थे पर उसकी पतली पतली पलकों के नीचे मोटी मोटी कजरारी आँख़ें अगर बिल्लौरी होती तो मैं इसके सिमरन होने का धोखा ही खा जाता।
उसकी आँखें तो लगता था कि अभी बोल पड़ेंगी कि आओ प्रेम मेरी घनी पलकों को चूम लो। सर पर घुंघराले बालों को देख कर तो मैं यही अंदाज़ा लगाता रहा कि उसकी पिक्की पर भी ऐसे ही घुंघराले रेशमी बाल होंगे। गुलाबी रंग का चीरा तो मुश्किल से ढाई इंच का होगा और उसकी गुलाब की पत्तियों जैसी कलिकायें तो आपस में इस तरह चिपकी होंगी जैसे कभी सु सु करते समय भी नहीं खुलती होंगी।
आह...... आप मेरी हालत समझ सकते हैं कि मैं उसकी पिक्की के दर्शनों के लिए कितना बेताब हो गया था। मैंने रात को बातों बातों में उससे पूछा था,"पलक तुम्हारी मुनिया कैसी है?"
"मुनिया… बोले तो ?" उसने बड़ी मासूमियत से पूछा।
"ओह.. दरअसल मैं तुम्हारी पिक्की की बात कर रहा था !"
"हटो.... तमे पागल तो नथी थाई गया ने ?" (तुम पागल तो नहीं हुए ?)
"प्लीज बताओ ना ?"
"नहीं मने शर्म आवे छे ?" (नहीं मुझे शर्म आती है ?)
"पर इसमें शर्म वाली क्या बात है ?"
"तमे तो पराविज्ञान ना वार माँ जानो छो ने ?" (आप तो पराविज्ञान भी जानते हो ना ?)
"तो ?"
"तमे ऐना थी जाननी लो ने केवी छे ?" (आप उसी से जान लो ना कि कैसी है?)
"पलक, तुम बहुत शरारती हो गई हो !" मैं थोड़ा संजीदा (गंभीर) हो गया था।
"पण मने तो मारा बूब्स ज मोटा करावा छे पिक्की तो ठीक छे ऐना वार मा जानी ने तमारे शु करवु छे ?" (पर मुझे तो अपने चूचे ही बड़े करवाने हैं, पिक्की तो ठीक ही है उसके बारे में जानकर आपको क्या करना है?)
हे भगवान् ! तुमने इन खूबसूरत कन्याओं को इतना मासूम क्यों बनाया है?
इनको 27 किलो का दिल तो दे दिया पर दिमाग क्यों खाली रखा है। अब मैं उसे कैसे समझाता कि मैं क्या जानना और करना चाहता हूँ।
हे लिंग महादेव, तू तो मेरे ऊपर सदा ही मेहरबान रहा है। यार बस अंतिम बार अपनी रहमत फिर से मेरे ऊपर बरसा दे तो मेरा अहमदाबाद आना ही नहीं, यह जीवन भी सफल हो जाए।
फिर उसने अपनी पिक्की का भूगोल ठीक वैसा ही बताया था जैसा मैंने उसकी फोटो देखकर अंदाज़ा लगाया था। उसने बताया कि उसकी पिक्की का रक्तिम चीरा 2.5 इंच का है और फांकों का रंग गुलाबी सा है। उसके ऊपर छोटे छोटी रेशमी और घुंघराले बाल और मदनमणि (भगान्कुर) तो बहुत ही छोटी सी है जो पिक्की की कलिकाओं को चौड़ा करने के बाद भी साफ़ नहीं दिखती पर कभी कभी वो सु सु करते या नहाते समय जब उस पर अंगुली फिराती है तो उसे बहुत गुदगुदी सी होती है और उसके सारे शरीर में मीठी सिहरन सी दौड़ने लगती है। एक अनूठे रोमांच में उसकी आँखें अपने आप बंद होने लगती हैं। उस समय चने के दाने जैसा उभरा हुआ सा भाग उसे अपनी अंगुली पर महसूस होता है। उसने बताया तो नहीं पर मेरा अंदाज़ा है कि उसने अपनी पिक्की में कभी अंगुली नहीं की होगी।
एक मजेदार बात बताता हूँ। उसने मुझे एक बार बताया था कि उसके दादाजी उसे पिक्की के नाम से बुलाया करते थे। जब वह छोटी थी तो वो उनकी गोद में दोनों पैर चौड़े करके बैठ जाया करती थी। मैंने उसे जब बताया कि हमारे यहाँ तो पिक्की कमसिन लड़कियों के नाज़ुक अंग को कहते हैं तो वो हंसने लगी थी। जब कभी मैं उसे मजाक में पिक्की के नाम से बुलाता तो वो भी मुझे पप्पू (चिकना लौंडा) के नाम से ही बुलाया करती थी। फिर तो मेरा मन उसकी पिक्की के साथ इक्की दुक्की खेलने को करने लगता।
उसने एक बार पूछा था कि क्या सच में मधु दीदी की जांघ पर तिल है ? और फिर मेरे पप्पू की लम्बाई भी पूछी थी। आप सभी तो जानते ही हैं वह पूरा 7 इंच का है पर मुझे अंदेशा था कि कहीं मेरे पप्पू की लम्बाई जानकर वो डर ना जाए और उसको पाने का खूबसूरत मौक़ा मैं गंवा बैठूं, मैंने कहा,"यही कोई 6 इंच के आस पास होगा !"
"पर आपने कहानियों में तो 7 इंच का बताया था?"
"ओह... हाँ पर वो तो बस कहानी ही थी ना !"
"ओह.. अच्छाजी.. फिर तो ठीक है !"
मैं तो उसके इस जुमले को सुनकर दो दिनों तक इसका अर्थ ही सोचता रहा कि उसने 'फिर तो ठीक है' क्यों कहा होगा।
"सर… एक बात पूछूं?"
"हम्म. ?"
"आपने जो कहानियाँ लिखी हैं वो सब सच हैं क्या?"
मेरे लिए अब सोचने वाली बात थी। मैं ना तो हाँ कह सकता था और ना ही ना। मैंने गोल मोल जवाब दे दिया,"देखो पलक, कहानियाँ तो केवल मनोरंजन के लिए होती हैं। इनमें कुछ बातें कल्पना से भी लिखी जाती हैं और कुछ सत्य भी होता है। पर तुम यह तो जान ही गई होगी कि मैं सिमरन से कितना प्रेम करता था !"
"हाँ सर.. तभी तो मैंने भी आपसे दोस्ती की है !"
"ओह.. आभार तुम्हारा (धन्यवाद) मेरी पलक !" मैंने 'मेरी पलक' जानबूझ कर कहा था।
अगले 3-4 दिन ना तो उसका कोई मेल आया ना ही उसने फोन पर संपर्क हो पाया। मैं तो उससे मिलने को इतना उतावला हो गया था कि बस अभी उड़ कर उसके पास पहुँच जाऊँ।
फिर जब उसका फोन आया तो मैंने उलाहना देते हुए पूछा,"तुमने पिछले 3-4 दिनों में ना कोई मेल किया और ना ही फ़ोन पर बात की?"
"वो... वो.. मेरी तबियत ठीक नहीं थी !"
"क्यों? क्या हो गया था ?"
"कुछ नहीं.. ऐसे ही.. बस..!"
मुझे लगा पलक कुछ छुपा रही है। मैंने जब जोर देकर पूछा तो उसने बताया कि परसों उसकी बुआ आई थी। उसने और दादी ने पापा से मेरी शिकायत कर दी कि मैं सारे दिन फ़ोन पर ही चिपकी रहती हूँ तो पापा ने मुझे मारा और फिर कमरे में बंद कर दिया।
हे भगवान् ! कोई बाप इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। पलक तो परी की तरह इतनी मासूम है कोई उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता है।
"मैं तो बस अब और जीना ही नहीं चाहती !"
"अरे नहीं... मेरी परी... भला तुम्हें मरने की क्या जरुरत?"
"किसी को मेरी जरुरत नहीं है मुझे कोई नहीं चाहता। इससे अच्छा तो मैं मर ही जाऊं !"
"ओह.. मेरी शहजादी, मेरी परी, तुम बहुत मासूम और प्यारी हो। अपने बच्चे सभी को बहुत प्यारे लगते हैं। हो सकता है तुम्हारे पापा उस दिन बहुत गुस्से में रहे हों?"
"नहीं किसी को मेरे मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला !"
"परी क्या तुम्हें नहीं पता मैं तुम्हें कितना प्रे.. म.. मेरा मतलब है कितना चाहता हूँ?"
"तुम भी मुझे भूल जाओगे... कोई और नई पलक या सिमरन मिल जायेगी ! तुम मेरे लिए भला क्यों रोवोगे?"
पलक ने तो मुझे निरूत्तर ही कर दिया था। मैं तो किमकर्त्तव्य विमूढ़ बना उसे देखता ही रह गया।
मुझे चुप और उदास देख कर वो बोली,"ओह. तमे आ बधी वातो ने मुको.. तमे अहमदाबाद आवशो ?" (ओह. आप इन बातों को छोड़ो.. आप अहमदाबाद कब आयेंगे ?)
"मैं कल अहमदाबाद पहुँच रहा हूँ !"
"साची ? तमे खोटू तो नथी बोलता ने ? पक्का आवशो ने ?"(सच्ची ? आप झूठ तो नहीं बोल रहे हो ना ? पक्का आओगे ना ?)
"हाँ पक्का !"
"खाओ मारा सम" (खाओ मेरी कसम ?)
"ओह.. बाबा, पक्का आउंगा मेरा विश्वास करो !"
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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कभी कभी तो मुझे लगता कि मैं सचमुच ही इस नन्ही परी से प्रेम करने लगा हूँ। मेरे वश में होता तो मैं इस परी को लेकर कहीं दूर चला जाता जहाँ हम दोनों के सिवा कोई ना होता। मैंने बचपन में 'अल्लादीन का चिराग' नामक एक कहानी पढ़ी थी। काश उस कहानी वाला चिराग मेरे पास होता तो मैं उस जिन्न को कहता कि मुझे अपनी इस परी के साथ कोहेकोफ़ ले जाए।
खैर... अब मैं इस जुगाड़ में था कि किस जगह और कैसे उससे मिला जाये। क्या उसे रात को होटल में बुलाना ठीक रहेगा ? पर सवाल यह था कि वो रात में यहाँ कैसे आएगी? मेरे मन में डर भी था कि कहीं किसी घाघ वेटर ने देख लिया और उसे कोई शक हो गया तो मैं तो मुफ्त में मारा जाऊँगा। मैं किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहता था। नई जगह थी कोई झमेला हो गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
मेरी मुश्किल पलक ने आसान कर दी। उसने बताया कि कल दोपहर में वो होटल में ही मिलने आ जाएगी। मैंने उसे होटल का नाम पता और कमरे का नंबर दे दिया।
वैसे भी रविवार था तो मुझे कहीं नहीं जाना था। मैं उसका इंतज़ार करने लगा।
कोई 1:30 बजे रिसेप्शन से फोन आया कि कोई लड़की मिलने आई है। मैंने उसे कमरे में भेज देने को कह दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा। मैंने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खोल लिया था ताकि मुझे उसके आने का पता चल जाए।
इतने में पलक सीढ़ियों से आती हुई दिखाई दी। मैं तो ठगा सा उसे देखता ही रह गया। उसने सफ़ेद रंग के स्पोर्ट्स शूज, हलके भूरे रंग (स्किन कलर) की कॉटन की पैंट और ऊपर गुलाबी रंग का गोल गले वाला टॉप पहन रखा था। मेरी पहली नज़र उसकी गोलाइयों पर ही टिक कर रह गई। उसके बूब्स तो भरे पूरे लग रहे थे। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। गहना रंग, गोल चेहरा, मोती मोती काली आँखें, सुतवां नाक, लम्बी गरदन, सर के बाल कन्धों तक कटे हुए और कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ। पतले पतली जाँघों के ऊपर छोटे छोटे खरबूजों जैसे कसे हुए नितम्ब।
इससे पहले कि मैं उसकी पैंट के अन्दर जाँघों के बीच बने उभार का कुछ अंदाज़ा लगता पलक बोली,"स… सर ? कहाँ खो गए?"
"ओह.. हाँ. प पलक अ... आओ… मैं तो तुम्हारी ही राह देख रहा था !" मैंने उसे बाजू से पकड़ कर अन्दर खींच लिया और दरवाजा बंद कर लिया। उसकी पतली पतली गुलाबी रंग की लम्बी छछहरी बाहें तो इतनी नाज़ुक लग रही थी कि मुझे तो लगा जरा सा दबाते ही लाल हो जायेंगी। उसकी अंगुलियाँ तो इतनी लम्बी थी कि मैं तो यही सोचता जा रहा था कि अगर पलक अपने हाथों में मेरे पप्पू को पकड़ ले तो वो तो इसकी अँगुलियों के बीच में आकर अपना सब कुछ एक ही पल में लुटा देगा।
"क्या आज ही आये हैं?"
"ओह.. हाँ मैं कल शाम को आ गया था !"
"तो आपने मुझे कल क्यों नहीं बताया?" उसने मिक्की की तरह तुनकते हुए उलाहना दिया।
"ब.. म.. " मैं तो उसे देख और अपने पास पाकर हकला सा ही गया था। वो मुझे घूरती रही।
बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह से निकला,"ओह… वो मैं रात में देरी से पहुँचा था ना इसलिए तुम्हें नहीं बता पाया !"
"ओ.के. कोई बात नहीं … पता है मैं कितनी उतावली हो रही थी आपसे मिलने को?"
"हाँ हाँ... मैं जानता हूँ मेरी परी ! मैं भी तो तुमसे मिलने को कितना उतावला था !"
"हुंह… हटो परे.. झूठे कहीं के?" उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं कोई बहरूपिया या चिड़ीमार हूँ।
"ओह पलक अब छोड़ो ना इन बातों को.. और बताओ तुम कैसी हो?"
"हु ठीक छूं जी तमे केवा छो मधु दीदी केम छे ?" (मैं ठीक हूँ जी आप कैसे हैं और मधु दीदी कैसी हैं ?")
"हाँ वो भी ठीक ही होंगी !"
सच पूछो तो वो क्या पूछ रही थी और मैं क्या जवाब दे रहा था मुझे खुद पता नहीं था। आप तो जानते ही हैं कि मैंने कितनी ही लड़कियों और औरतों को बिना किसी झंझट के चोद लिया था पर आज इस नाजुक परी को अपने इतना पास पाकर मेरे पसीने ही छूट रहे थे। कैसे बात आगे बढाऊँ मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
पलक के पास तो रोज़ ही प्रश्नों का पिटारा होता था, सवालों की एक लम्बी फेहरिस्त होती थी उसके पास।
एक बार मैंने उसे मज़ाक में कह दिया था कि पलक तुम तो इतने सवाल पूछती रहती हो कि थोड़े दिनों में तुम तो पूरी प्रेम गुरुआनी बन जाओगी। तो उसने बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए जवाब दिया था,"फिर तो आपको 10-12 साल बाद में पैदा होना चाहिए था !"
"क्यों ? फिर क्या होता ?"
"तमे आतला गहला पण नथी के मारी वात न समज्या होय?" (आप इतने बेवकूफ नहीं हैं कि मेरी बात ना समझे हों)
"प्लीज बताओ ना ?"
"जनाब वधरे रंगीन सपना जोवा नि जरुर नथी" (जनाब ज्यादा रंगीन सपने देखने की जरुरत नहीं है ?)
क्यों?"
"पेली.. मधु मक्खी (मधुर) तमने खाई जासे आने मने पण जीवति नथी छोड्शे (वो मधु मक्खी (मधुर) आपको काट खाएगी और मुझे भी जिन्दा नहीं छोड़ेगी) पलक खिलखिला कर हंस पड़ी।
कई बार तो लगता था कि पलक मेरे मन में छिपी बातें जानती है। मेरी और उसकी उम्र में हालांकि बहुत अंतर है पर देर सवेर वो मेरे प्रेम को स्वीकार कर ही लेगी। मैं अभी अपने ख्यालों में खोया ही था कि पलक की आवाज से चौंका।
"सर एक बात पूछूं ?"
"यस... हाँ जरुर !"
"क्या एक आदमी दो शादियाँ नहीं कर सकता?"
कहानी जारी रहेगी !
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैं अभी अपने ख्यालों में खोया ही था कि पलक की आवाज से चौंका।
"सर एक बात पूछूँ?"
"यस... हाँ जरूर !"
"क्या एक आदमी दो शादियाँ नहीं कर सकता?"
"क्यों? मेरा मतलब है तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?"
"कुछ नहीं ऐसे ही !"
"दरअसल मुस्लिम धर्म में चार बीवियाँ रखने का अधिकार है पर हिन्दू धर्म में केवल एक ही पत्नी का क़ानून है।"
"ओह.... चलो छोड़ो वो... आप मालिश और जल थेरेपी बताने वाले थे ना?"
"ओह.. हाँ अभी करता हूँ !"
"क्या ?"
"वो... ओह... अरे मेरा मतलब था कि मैं समझा देता हूँ।"
"तो समझाइए ना?" वो में इस हालत पर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
"पहले मैं तुम्हें आयल मसाज़ सिखाता हूँ, फिर जल थेरेपी के बारे में बताऊँगा !"
"हम्म ..."
"पर उसके लिए तुम्हें यह टॉप उतारना होगा !"
"वो क्यों?"
"ओह.. शर्ट पहने पहने कैसे मसाज़ होगा?"
"वो.. वो.. पर.. यहाँ कोई देखेगा तो नहीं ना.. मेरा मतलब है कोई दूसरा तो नहीं आएगा ना?"
"अरे नहीं मेरी परी, यहाँ कोई नहीं आएगा, दरवाज़ा तो बंद है। तुम चिंता मत करो !"
"पर वो आयल?"
मैं तो कुछ और ही सोच रहा था। मुझे आयल या क्रीम का कहाँ होश था पर मैंने बात सम्भालते हुए कहा,"ठहरो.. मैं देखता हूँ !"
मैं उठ खड़ा हुआ और अपने शेविंग किट से क्रीम और आयल की शीशी निकाल कर ले आया। पलक ने फिर अपना टॉप उतार दिया। उसने काले रंग की पैडेड ब्रा पहन रखी थी। अब मुझे समझ आया कि उसके उरोज इतने बड़े क्यों नज़र आ रहे थे।
उसने जब टॉप उतारने के लिए अपने हाथ ऊपर किये तो मेरी नज़र उसकी कांख पर चली गई। हे भगवान् ! उसकी बगल में तो हलके हलके रोयें ही थे। उसके कमसिन बदन की मादक महक तो जैसे पूरे कमरे में ही फ़ैल गई थी। मैं तो मंत्रमुग्ध हुआ उस रूप की देवी को देखता ही रह गया। काले रंग की पैडेड ब्रा में फंसे दो चीकू जैसे उरोज शर्म के मारे जैसे दुबके पड़े थे। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।
"पलक, इस ब.. ब्रा को भी उ... उतारना होगा !" मैं हकलाता हुआ सा बोला।
उसने ब्रा का हुक खोलने का प्रयास किया पर जब वो नहीं खुला तो वो मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गई और फिर बोली,"ओह.. यह नहीं खुल रहा.. प्लीज आप खोल दो ना?"
मैंने कांपते हाथों से ब्रा का हुक खोल कर उसे नीचे गिर जाने दिया। उसकी बेदाग़ गोरी गोरी नर्म नाज़ुक पीठ देख कर तो बरबस मेरे दिल में आया कि उसे अपनी बाहों में जकड़ लूँ पर इससे पहले कि मैं कुछ करता, वो पलट कर मेरे सामने हो गई। दो छोटे छोटे गुलाबी रंग के चीकू मेरी आँखों के सामने थे। जैसे कोई नई नई अम्बियाँ पनपी हों। उरोजों के आस पास की त्वचा शरीर के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक गोरी थी। छोटे छोटे कूचों में पतली पतली रक्त शिराएँ, एक इंच का लाल रंग का घेरा (एरोला) और चने के दाने से भी छोटे गहरे लाल रंग के दो मोती (चूचक)। बाएं उरोज पर नीचे की ओर एक छोटा सा तिल। सपाट पेट और उसके बीच छोटी पर गहरी नाभि। उभरे हुए से पेडू के दाईं ओर एक छोटा सा काला तिल। हे लिंग महादेव ! यह तो रति का अवतार ही है जैसे। मैं तो मुँह बाए उसे देखता ही रह गया। मेरा मन तो कर रहा था कि झट से इन रसगुल्लों को पूरा का पूरा मुँह में भर कर इनका सारा रस निचोड़ लूँ।
"अब क्या करना है?" अचानक पलक की आवाज सुनकर मैं चौंका।
"ओह.. हाँ ! मैंने तुम्हें समझाया था ना कि पहले तेल मालिश और फिर कुछ कसरत फिर वो जल थेरेपी तुम्हें समझाऊँगा।
उसे तो कुछ समझ ही नहीं आया उसने असमंजस में मेरी ओर ताका।
"ओह.. चलो ऐसा करो, तुम बिस्तर पर लेट जाओ !"
पलक अपने जूते उतारने के लिए झुकी तो उसके पुष्ट नितम्बों देख कर तो बरबस मेरा मन उन्हें चूम लेने को करने लगा।
जूते उतार कर वो बेड पर चित्त लेट गई। मेरी आँखें तो उसके उरोजों की सुरम्य घाटी से हट ही नहीं रही थी। मेरा दिल किसी रेल के इंजन की तरह जोर जोर से धड़क रहा था और मेरी साँसें बेकाबू होने लगी थी। पर मैं तो अपने सूखे होंठों पर जुबान ही फेरता रह गया था।
मैं अभी अगले कदम के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक पलक की आवाज मेरे कानों में गूंजी,"सर.. क्या हुआ?"
"ओह.. कुछ नहीं...."
मैंने नारियल के तेल की शीशी से लगभग एक चम्मच तेल निकाल कर अपनी हथेली पर ले लिया। मैं बेड पर उसके पास वज्रासन की मुद्रा में (अपने घुटने मोड़ कर) बैठ गया। मेरा पप्पू तो पैंट के अन्दर कोहराम ही मचाने लगा था। जैसे कह रहा था कि गुरु छोड़ो इस तेल मालिश के चक्कर को और इस खूबसूरत बला को अपनी बाहों में भर कर मेरे साथ अपना जीवन भी धन्य कर लो। पर मैं जल्दबाजी में कुछ भी नहीं करना चाहता था। मैंने तेल से सनी अपनी दोनों हथेलियाँ उसके उरोजों पर रख दी।
उफ़... रुई के फोहों जैसे नर्म नाज़ुक दो उरोजों की घुन्डियाँ तो अकड़ कर जैसे अभिमानी ही हो गई थी। जैसे ही मेरा हाथ उसके उरोजों से टकराया उसके शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई और शरीर के सारे रोम-कूप खड़े हो गए। कुँवारे नग्न स्तनों पर शायद किसी पर पुरुष का यह पहला स्पर्श था। उसे गुदगुदी भी हो रही होगी और थोड़ा रोमांच भी हो रहा होगा। उसकी साँसें भी तेज़ हो गई थी। उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी और अपनी जांघें कस कर भींच ली।
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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- jay
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैंने पहले उसके उरोजों की घाटी में हाथ फिराया और फिर हौले से उरोजों को अपनी मुट्ठी में भर कर हल्के से दबाया। मेरे ऐसा करने से वो तो अपनी नाज़ुकता खोकर और भी कड़े हो गए। मैंने हौले से उन पर हाथ फिराना और मसलना चालू कर दिया। मेरा मन तो उन छोटे छोटे चीकुओं को मुँह में भर कर चूस लेने को कर रहा था पर अभी ऐसा करना ठीक नहीं था। मैंने अपने हाथ गोल गोल घुमाने चालू कर दिए। इसे सीत्कार तो नहीं कहा जा सकता पर मुझे लग रहा था कि उसकी साँसें बहुत तेज़ हो गई हैं और वो भी अपने आप को अनोखे आनन्द में डूबा महसूस करने लगी है। जरूर उसके जिस्म में प्रेम का मीठा जहर फैलने लगा होगा।
मैंने उसके चूचकों को अपनी अँगुलियों की चिमटी में पकड़ कर जब मसला तो पलक थोड़ी सी चिहुंकी और उसकी हल्की सी सीत्कार निकल गई पर उसने आँखें नहीं खोली। उसने अपनी जाँघों को और जोर से भींच लिया। उसका सारा शरीर अकड़ने सा लगा था।
मैं जानता था कि दूसरी लड़कियों की तुलना में पलक के उरोज थोड़े छोटे जरूर हैं पर वो पूर्णयौवना बन चुकी है। प्रेम आश्रम वाले गुरूजी तो कहते हैं जब लड़की रजस्वला होने लगती है और उसके कामांगों पर बाल आने शुरू हो जाते हैं तो वह कामदेव को समर्पित कर देने योग्य हो जाती है।
मैंने कोई 10-15 मिनट तो उसके उरोजों पर मालिश करते हुए उनको जरुर मसला और दबाया होगा। ऐसा नहीं था कि बस मैं उन्हें मसले ही जा रहा था। मैं कभी कभी उसके एक उरोज को अपनी मुट्ठी में पकड़ लेता और दूसरे हाथ की हथेली उसके नुकीले हो चले चुचूक पर फिराता तो उसके मुँह से मीठी सित्कार ही निकल जाती। साथ साथ मैं उसे मालिश का तरीका भी समझाता जा रहा था कि मालिश नीचे से ऊपर की ओर करनी चाहिए ना कि ऊपर से नीचे की ओर। गलत तरीके से मालिश करने से दबाव के कारण उरोज लटक सकते हैं। मैंने उसे यह भी बताया कि उरोजों को कभी भी जोर से नहीं भींचना चाहिए बस हौले होले दबाना और सहलाना चाहिए ताकि उनका रक्त संचार बढ़ जाए। पर उसे मेरी बातें सुनने का कहाँ होश था। वो तो आँखें बंद किये हल्की-हल्की हाँ हूँ के साथ सिसिया रही थी। उसकी साँसों की गति के साथ उसके उरोज ऊपर नीचे हो रहे थे। उसके चुचूक अकड़ कर रक्तिम से हो गए थे और उसके साथ ही उसके चेहरे और कानों का रंग भी गुलाबी हो चला था। मेरे लिए तो यह दृश्य नयनाभिराम ही था।
मुझे तो लगने लगा था कि मैं अपने होश ही खो बैठूँगा। मेरा चेहरा भी अब तमतमाने लगा था और पप्पू तो पैंट के अन्दर जैसे घमसान मचा रहा था। आज तो वो इस तरह अकड़ा था कि अगर मैंने जल्दी ही कुछ नहीं किया तो उसकी नसें ही फट जायेंगी। मुझे अब लगने लगा था कि मैं अपना विवेक खो बैठूंगा। मेरा मन उसे बाहों में भर लेने को उतावला होने लगा।
मैंने जैसे ही उस पर झुकने का उपक्रम किया तो अचानक पलक ने आँखें खोल दी और उठ कर बैठ गई। मैं तो उससे टकराते टकराते बचा। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और आँखों में खुमार सा आने लगा था।
"बस सर, अब वो वो ... जल थेरपी ... सिखा दो !" उसकी आवाज थरथरा रही थी।
कहानी जारी रहेगी !
प्रेम गुरु नहीं बस प्रेम
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- jay
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"बस सर, अब वो वो ... जल थेरपी ... सिखा दो ?" उसकी आवाज थरथरा रही थी।
"ह ... हाँ ... ठीक है ... च ... चलो बाथ रूम में चलते हैं" मुझे लगा मेरा भी गला सूख गया है। मैं तो अपने प्यासे होंठों पर अपनी जबान ही फेरता रह गया।
उसने नीचे झुक कर फर्श पर पड़ी ब्रा और टॉप उठा लिया और अपनी छाती से चिपका कर उन नन्हे परिंदों को छुपा लिया और बाथरूम की ओर जाने लगी। मैं मरता क्या करता, मैं भी उसके पीछे लपका।
बात रूम में आकर मैंने गीज़र से एक बाल्टी में गर्म और दूसरी में ठण्डा पानी भरा और दो सूखे तौलिये उनमें डुबो दिए। पहले मैंने गर्म तौलिये से उसके उरोजों की सिकाई की बाद में ठण्डे से। जैसे ही ठण्डा तौलिया उसके उरोजों पर लगता उसके सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती और सारे रोम कूप खड़े से हो जाते। मैंने उसे भाप सेवन (स्टीम बाथ) के बारे में भी समझाता जा रहा था। वह तो आँखें बंद किये मेरे हाथों का स्पर्श पाकर मदहोश ही हुए जा रही थी। उसके पतले पतले होंठ अब गुलाबी से रक्तिम हो कर कांपने लगे थे। एक बार तो मन में आया कि इनको चूम ही लू। मेरा अनुमान था वो विरोध नहीं करेगी। सिमरन की तरह झट से मुझे बाहों में जकड़ लेगी। सिमरन का ख़याल आते ही मेरे हाथ रुक गए।
आप तो जानते हैं मैं सिमरन से कितना प्रेम करता था। मैं भला ऐसी जल्दबाजी और अभद्रता कैसे कर सकता था। भले ही मेरे मन में उसका कमसिन बदन पा लेना का मनसूबा बहुत दिनों से था पर मैं सिमरन के इस प्रतिरूप के साथ ऐसा कतई नहीं करना चाहता था।
हमें इस जल थरेपी में कोई 15-20 मिनट तो लग ही गए होंगे। मेरे हाथ रुके देख कर पलक को लगा शायद अब जल थरेपी का काम ख़त्म हो गया है।
"और नहीं करना ?"
"ओह... हाँ बस हो गया ?" मेरे मुँह से निकल गया। मैं तो सिमरन के खयालों में ही डूबा था।
उसने टॉवेल स्टेंड से सूखा तौलिया उठाया और अपने उरोजों को पोंछ लिया। उसने ब्रा दुबारा पहन ली और फिर जल्दी से टॉप भी पहन लिया। अब बाथरूम में रुके रहने का कोई मतलब नहीं रह गया था।
कमरे में आने के बाद मैंने कहा,"पलक एक काम तो रह ही गया ?"
"वो.. क्या सर ?"
"ओह.. तुम्हें इनको चूसवाना भी तो सिखाना था ना ?"
"चाट गेहलो ?"
"मैं सच कहता हूँ इनको चुसवाने से ये जल्दी बड़े हो जायेंगे ?"
"आज नहीं सर, वो कल सिखा देना... अब मैंने ब्रा पहन ली है ?" कह कर वो मंद मंद मुस्कुराने लगी।
ये कमसिन लडकियाँ भी दिखने में कितनी मासूम और भोली लगती हैं पर आदमी की मनसा कितनी जल्दी भांप लेती हैं। चलो एक बात की तो मुझे तसल्ली है कि उसे मेरे मन की कुछ बातों का तो अब तक अंदाज़ा हो ही होगा। अब तो बस इस कमसिन कलि को अपने आगोश में भर कर इसका रस चूस लेने में थोड़ी सी देरी रह गई है। दरअसल मैं कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। कहीं ऐसा ना हो कि वो बिदक ही जाए और उसके साथ मेरा प्रथम मिलन का सपना केवल सपना ही बन कर रह जाए। मैं किसी भी हालत में ऐसा नहीं होने देना चाहता था।
"सर ...मुझे बहुत देर हो गई है। घर पर वो दादी और बुआ को कोई शक हो गया तो मेरा जीना हराम कर देंगी।"
"क्यों ऐसी क्या बात है?"
"अरे आप नहीं जानते, मैं उनको फूटी आँख नहीं सुहाती। बस उनको तो कोई ना कोई बहाना चाहिए पापा से शिकायत करने का !"
"ओह..."
"चलो छोड़ो... मैं भी क्या बातें ले बैठी ! कल का क्या प्रोग्राम है ?" उसने आँखें फड़फड़ाते हुए पूछा। उसके होंठों पर जो शरारत भरी कातिलाना मुस्कान थिरक रही थी मैं उसका मतलब बहुत अच्छी तरह जानता था।
"तुम बताओ कल कब आओगी?"
"प्रेम क्या तुम मेरे घर पर नहीं आ सकते?" आज पहली बार उसने मुझे प्रेम के नाम से संबोधित किया था।
"पर तुम्हारे घर पर तो वो दादी और पापा भी होंगे ना?"
"ओह... पापा तो कल ही टूर पर चले गए हैं और दादी तो रात को 9 बजे ही सो जाती है !"
"और वो तुम्हारी बुआ?"
"आप भी ना पूरे गहले ही हैं? अरे भई वो तो कभी कभार दिन में ही आती है। आप ऐसा करो कल रात को 10:00 बजे के बाद आ जाना मैं सारी तैयारी करके रखूँगी।"
"कैसी तैयारी?" मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।
"ओह. आप भी घेले (लोल) हो ! मैं आयल मसाज और जल थैरेपी की बात कर रही थी !" उसके मुँह पर अबोध मुस्कान थी।
"ओह. हाँ ... ठीक है ...."
आप सोच रहे होंगे यह प्रेम गुरु भी अजीब पागल है हाथ आई चिड़िया को ऐसे ही छोड़ दिया साली को पटक कर रगड़ देते ?
दोस्तों ! आप नहीं समझेंगे। मैं भला उसके साथ ऐसी जबरदस्ती कैसे कर सकता था। मेरी मिक्की और सिमरन की आत्मा को कितना दुःख होता क्या आपको अंदाज़ा है?
भले ही पलक नादाँ, अनजान, मासूम और नासमझ है अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है पर मैं अपनी इस परी के साथ ऐसा कतई नहीं कर सकता। मिक्की और सिमरन के प्रेम में बुझी मेरी यह आत्मा उसे धोखा कैसे दे सकती है। मैं उसकी कोमल भावनाओं से खिलवाड़ कैसे कर सकता था। कई बार तो मुझे लगता है मैं गलत कर रहा हूँ। लेकिन उसका चुलबुलापन, खिलंदड़ी हंसी और बार बार रूठ जाना और बात बात पर तुनकना मुझे बार बार उसे पा लेने को उकसाता रहता है। आदमी अपने आप को कितना भी बड़ा गुरु घंटाल क्यों ना समझे इन खूबसूरत छलाओं को कभी नहीं समझ पाता।
पलक ने मुझे अपना पता बता दिया था और यह भी चेता दिया था कि घर के पास पहुँच कर उसे मिस कॉल कर दूँ, वो दरवाजे पर ही मिल जाएगी।
पलक को मैं नीचे तक छोड़ आया। ऑटो रिक्शा में बैठने के बाद उसने मुझे एक हवाई चुम्बन (फ़्लाइंग किस) दिया। अब आप मेरी हालत समझ सकते हैं कि मैंने वो रात कैसे काटी होगी। मधु से फ़ोन पर एक घंटे सेक्स करने और दो बार पलक के नाम की मुट्ठ लगाने के बाद कोई 2 बजे मेरी आँख लगी होगी। और फिर सारी रात पलक के ही सपने आते रहे। मैंने सपने में देखा कि हम दोनों नदी के किनारे रेत पर चल रहे हैं और पलक खिलखिलाते हुए मेरा चुम्बन लेकर भाग जाती है और मैं उसके पीछे दौड़ता हुआ चला जाता हूँ।
हे लिंग महादेव ! इस नाज़ुक परी के कमसिन बदन की खुशबू कब मिलेगी अब तो बस तेरा ही आसरा बचा है।
कितना अजीब संयोग था पटेल चौक से कोई आधा किलोमीटर दूर सरोजनी नगर में 13/9 नंबर का दो मजिला मकान था। तय प्रोग्राम के मुताबिक़ मैं ठीक 10:00 बजे उसके घर के बाहर पहुँच गया। मैंने टैक्सी को तो पिछले चौक पर ही छोड़ दिया था। अक्टूबर के अंतिम दिन चल रहे थे। गुलाबी ठण्ड शुरू हो गई थी। मैंने पहले तो सोचा था कि कुरता पाजामा पहन लूं पर बाद में मैंने काले रंग का सूट और सिर पर काला टॉप पहनना ठीक समझा। इन दिनों में गुजरात में गणेश उत्सव और नवरात्रों की धूम रहती है। मैंने आज दिन में पूरी तैयारी की थी। मैं आज किसी चिकने चुपड़े आशिक की तरह पेश आना चाहता था। आज मैंने अपनी झांटें साफ़ कर ली थी और रगड़ रगड़ कर नहाया था। मैंने बाज़ार से दो गज़रे भी खरीद लिए थे और अपने कोट की जेब में दो तीन तरह की क्रीम और एक निरोध (कंडोम) का पैकेट भी रख लिया था। क्या पता कब यह हुस्न परी मेरे ऊपर मेहरबान हो जाए।
मैंने अपने मोबाइल से दो बार पलक को मिस काल किया।
वो तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। उसने दरवाज़े का एक पल्ला थोड़ा सा खोला और आँखें टिमटिमाते हुए हुए पूछा,"किसी ने देखा तो नहीं ना ?"
"ना !" मैंने मुंडी हिलाई तो उसने झट से मेरा बाजू पकड़ते हुए मुझे अन्दर खींच कर दरवाज़ा बंद कर लिया।
"वो... तुम्हारी दादी?" मैंने पूछा।
"ओह दादी को गोली मारो, वो सो रही है सुबह 8 बजे से पहले नहीं उठेगी। मैंने उसे दवाई की डबल डोज़ पिला दी है। तुम आओ मेरे साथ।" उसने मेरा हाथ पकड़ा और सीढ़ियों की ओर ले जाने लगी।
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