Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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मैं तो आज भी सानिया को अपनी गोद में उठाकर बाथरूम ले जाना चाहता था पर उसने मना कर दिया। वह अपने पेंट और शर्ट (टॉप) उठाकर बाथरूम में भाग गई।

बेड पर लेटा मैं अगले प्रोग्राम के बारे में सोचने लगा था। कल ऑफिस में छुट्टी है। सानिया को बोल दूंगा कल पूरे दिन नहीं तो कम से कम दोपहर तक तो जरूर यहाँ रुक जाए। उसके पास तो कपड़े धोने और दीपावली पूर्व घर की सफाई का बहाना भी है. घर वालों को इस बात पर शायद ही कोई ऐतराज हो।
और फिर तो सानिया के साथ दोपहर तक जी भर के मस्ती की जा सकती है।

मेरा मन तो कर रहा था कल सबसे पहले उसकी उसकी बुर की केशर क्यारी को साफ़ किया जाए और फिर उसे चूमा और चूसा जाए। मेरा मन एक बार उसे लंड चुसवाने का भी करने लगा था। और फिर उसे बाथरूम में नल के नीचे घोड़े बनाकर नहाने का आनंद तो यादगार बन जाएगा। और फिर रसोई में नंगे होकर नाश्ता बनाते समय उसे प्रेम के दूसरे सबक भी सिखाये जा सकते हैं। उसके कसे हुए नितम्बों को देखकर मेरा मन तो बेईमान ही बनता जा रहा है। मुझे लगता है थोड़ी मान मनोवल के बाद सानिया गांड देने के लिए भी तैयार हो जायेगी।

सानिया 10 मिनट के बाद कपड़े पहनकर बाथरूम से बाहर आ गई। पता नहीं उसने आज इतना समय कैसे लगा। मुझे लगता है आज उसने अपनी बुर की हालत को ढंग से चेक किया होगा। कल तो मैंने उसे ज्यादा देखने का मौक़ा ही नहीं दिया था।

अब मैंने भी बाथरूम में जाकर अपने लंड को धोकर उस पर तेल लगाया और फिर कपड़े पहनकर बाहर आ गया।

आज मेरा मूड सानूजान के साथ ही नहाने का था पर सानूजान के सिर पर नाश्ते और सफाई का भूत सवार था. तो पहले उसे उतारना जरूरी था।

अब तक साढ़े आठ बज गए थे और बाथरूम वाले कार्यक्रम में भी एक घंटा तो और लगने वाला था।
मैं नाश्ते के चक्कर में अपने अपने कार्यक्रम की वाट नहीं लगना चाहता था पर मजबूरी थी।

“सानू तुम जल्दी से सफाई आदि कर लो मैं बाज़ार से तुम्हारे लिए जलेबी-कचोरी आदि लाने जा रहा हूँ जल्दी आ जाऊँगा।”
“हओ”

मुझे बाजार से नाश्ता पैक करवाकर लाने में 15 मिनट तो लग ही गए थे। रास्ते में आते समय मैंने ऑफिस में गुलाटी को बोल दिया था कि मैं आज ऑफिस में थोड़ा लेट आऊंगा।

घर पहुँच कर दरवाजा बंद करके मैंने जलेबी और कचोरी नमकीन आदि डाइनिंग टेबल पर रख दी.
और फिर लगभग भागता हुआ रसोई में आ गया। सानू जान ने सफाई कर ली थी और चाय बना रही थी।

मैंने सानिया को पीछे से बांहों में भर लिया। मेरा लंड उसके नितम्बों पर जा टकराया। मैंने उसे बांहों में भर लिया और उसके उरोजों को दबाने लगा।
“ओह … क्या कर रहे हो … आह … चाय तो बनाने दो …”
“मेरी जान आज तो तुम्हें अपनी बांहों से दूर करने का मन ही नहीं हो रहा.”
“आप बाहर बैठो. मैं चाय लेकर आती हूँ.”

और फिर सानिया ने चाय छानकर थर्मोस में डाल ली और 2 प्लेट्स और गिलास लेकर हम दोनों डाइनिंग टेबल पर आ गए।

सानिया दो प्लेटों में जलेबी और कचोरी नमकीन आदि डालने लगी।
“यार … सानू साथ खाने का मतलब यह थोड़े ही होता है?”
“क … क्या हुआ?” सानिया ने डरते हुए पूछा।
“अरे यार ये दो प्लेट में क्यों डाल रही हो?”
“तो?”
“आज हम दोनों एक ही प्लेट में खायेंगे.” और फिर मैंने एक जलेबी उठाकर उसे सानिया के मुंह की तरफ बढ़ाई।

पहले तो वह कुछ समझी ही नहीं पर बाद में रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए उसने अपना मुंह खोल दिया।
उसने आधी जलेबी मुंह से तोड़ ली और खाने लगी।

अब मैंने बाकी बची आधे जलेबी अपने मुंह में डाल ली।
“अले … मेली जूठी … ओह …”
“मेरी जान … तुम मेरी इतनी अच्छी दोस्त हो तो क्या मैं तुम्हारा जूठा नहीं खा सकता?”
बेचारी सानिया के लिए मेरे शब्दजाल में उलझे बिना कैसे रह सकती थी।

“सानू मेरा मन तो एक और बात के लिए कर रहा है?”
“आज सारे कपड़े उतार कर तुम्हें अपनी गोद में बैठा कर हम नाश्ता करें?”
“हट!”
“प्लीज आओ … ना …”

मेरा थोड़े मान-मनोवल पर सानिया शर्माते हुए अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई। अब मैंने खड़े होकर अपने कपड़े उतार दिए और फिर सानिया को भी कपड़े उतारने का इशारा किया।

सानिया थोड़ी शरमाई तो जरूर पर उसने भी अपने कपड़े उतार दिए। फिर मैं उसे अपनी गोद में लेकर कुर्सी पर बैठ गया।

मैंने अपने हाथों से उसे कचोरी और जलेबी खिलाना शुरू कर दिया। मेरा लंड उसके नितम्बों के नीचे दब सा गया। उसका उभार सानिया ने महसूस तो जरूर कर लिया था पर वह बोली कुछ नहीं।
लंड फनफनाते हुए उसकी जाँघों के बीच में लहराने सा लगा था। सानिया को भी इस नये प्रयोग में बड़ा मज़ा आने लगा था। हमने नाश्ता तो लगभग कर ही चुके थे मैं चाहता था इसे गोद में बैठाए हुए ही किसी तरह इसकी बुर में अपना लंड डाल दूं।

“सानू?”
“हओ?”
“यार आज चाय पीने का मूड नहीं है.”
“तो?”
“मैं कल तुम्हारे लिए आइक्रीम लेकर आया था। तुम बोलो तो आज नाश्ते के साथ पहले वह खाएं?”
“हओ” सानिया को भला क्या ऐतराज हो सकता था।

मैं उसे अपनी गोद से उतारना तो नहीं चाहता था पर अब तो फ्रिज से आइसक्रीम लाने की मजबूरी थी। सानिया झट से मेरी गोद से हट गई और रसोई में जाकर फ्रिज में रखी आइसक्रीम के दो कोण ले आई।

अब मैंने उसे फिर से अपनी गोद में बैठा लिया। इस बार मैंने उसकी जांघें अपने पैरों के दोनों ओर कर दी थी। ऐसा करने से मेरा लंड ठीक उसकी बुर से जा टकराते हुये दोनों जाँघों के बीच फंस सा गया।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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अब मैंने एक कोण का रेपर उतारकर तो सानिया के मुंह की ओर किया। सानिया ने एक छोटा सा टुकड़ा अपने मुंह में भर लिया। अब मैंने उस कोण को सानिया के उरोज पर लगा दिया।
“आआ … ईईइ … क्या कर रहे हो?” सानिया तो शायद सोच रही थी मैं जलेबी की उसकी जूठी आइसक्रीम खाने वाला हूँ।
और फिर मैंने उसके उरोज पर लगी आइसक्रीम को पहले तो चाटा और बाद में उसके उरोज को मुंह में भर कर चूसने लगा। मेरा लंड तो ठुमके ही लगाने लगा था।

“आह … उईईइ!” सानिया की एक मीठी किलकारी निकल गई।
मैंने 2-3 बार उस आइसक्रीम के कोण को उसके उरोजों पर लगाया और फिर उसे चाट कर उसके उरोजों के निप्पल्स को चूमने लगा। सानिया तो रोमांच के मारे उछलने ही लगी थी।

सानिया ने अपनी जांघें चौड़ी कर दी और अपना हाथ नीचे करके मेरे लंड को सहलाने लगी। लंड तो और भी ज्यादा खूंखार हो गया था। अचानक सानिया मेरी गोद से उछलकर खड़ी हो गई और इससे पहले की मैं कुछ समझ पाता सानिया ने मेरा हाथ से आइसक्रीम का कोण ले लिया और मेरे लंड पर लगा दिया। और फिर फर्श पर बैठकर लंड को मुंह में भर कर चूसने लगी।

हे लिंग देव! आज तो तेरे साथ-साथ उस कामशास्त्र की महान ज्ञाता प्रीति नामक विस्फोटक पदार्थ की जय भी बोलनी पड़ेगी।

सानिया जोर-जोर से मेरा लंड चूसे जा रही थी। आह उसके चूसने के अंदाज़ से तो यही लगता है उस प्रीति ने उसे अपनी सच्ची शागिर्द (शिष्या) बना लिया है।

मैं अपने भाग्य को सराहने लगा था। कोमल को तो लंड चुसवाने में मुझे पूरा एक महीना लग गया था और कितने पापड़ बेलने पड़े थे आप जानते ही हैं पर आज जिस प्रकार सानिया मेरे लंड को चूस रही थी ऐसा लग रहा था जैसे जन्नत की 72 हूरों में से एक यह भी है।

मेरा मन तो हो रहा था आज अपना सारा वीर्य इसके मुंह में ही निकाल दूं पर आज मैं उसके साथ नहाते हुए इस आनंद का मजा लेने की सोच रहा था।

“सानू मेरी जान … मेरी प्रेयशी तुम लाजवाब हो … आह … सानू सच में मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि तुम्हारे जैसी प्रेमिका मुझे मिली है।”

सानिया ने 5-4 चुस्की और लगाईं और फिर मेरे लंड को मुंह से बाहर निकाल कर खड़ी हो गई। मैंने उसे अपनी बांहों में भींच लिया और उसके होंठों पर चुम्बन लेते हुए उसके होंठों को चूमने लगा।
“सानू?”
“हम्म?”
“आओ आज साथ में नहाते हैं?”

और फिर मैं सानिया को अपनी गोद में उठाकर बाथरूम में ले आया। हम दोनों शॉवर के नीचे आ गए। पहले तो मैंने उसके सारे शरीर पर साबुन लगाया और फिर उसकी बुर और गांड पर भी साबुन लगाकर खूब मसला। सानिया तो आह … उईईइ … ही करती रह गई।

सानिया ने भी मुझे निराश नहीं किया। उसने मेरे सारे शरीर पर साबुन लगाया और मेरे लंड को भी अपने हाथों में पकड़ कर साफ़ किया और एक बार फिर से चूम लिया।

लंड तो घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। मन तो कर रहा था इसके मुख श्री में ही आज पानी निकाल दूं पर मैं एक बार इसे घोड़ी स्टाइल में चोदने की सोच रहा था।
“सानू जान?”
“हम्म”
“आओ … आज एक नये आशन में करते हैं.”
उसने प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी ओर देखा।

“तुम थोड़ा सा झुक कर उस नल को पकड़ लो और अपने नितम्बों को मेरी ओर करके खड़ी हो जाओ.”
“क … क्यों?” उसने हैरानी भरी नज़रों से मेरी ओर देखा।
“अरे बताता हूँ पहले होओ तो सही?”
“नहीं … नहीं मैं पीछे से नहीं करवाऊंगी … उसमें बहुत दर्द होता है.”
“अरे नहीं मेरी जान … मैं ऐसा नहीं कर रहा मेरा विश्वास रखो.”
“तो?”
“अरे इस स्टाइल में हम दोनों को बहुत मज़ा आयेगा।”

सानिया असमंजस में थी। उसे शायद मेरी बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मुझे लगता है साली उस प्रीति ने इसे कामशास्त्र का पूरा ज्ञान अभी नहीं दिया है।

वह थोड़ा डरते नल को पकड़ कर अपना सिर झुका कर खड़ी हो गई। ऐसा करने से उसके नितम्ब ऊपर उठ से गए और नितम्बों की खाई भी थोड़ी चौड़ी हो गई।

मैंने पहले तो नितम्बों पर एक चुम्बन लिया और फिर उन पर अपनी जीभ फिराने लगा।

फिर मैंने उसके नितम्बों को दोनों हाथों से थोड़ा सा खोला तो गांड का सांवला सा छेद नज़र आने लगा और उसके नीचे मोटे-मोटे गुलाबी रंग के पपोटे रस से भरे हुए। सानिया के शरीर के सारे रोयें खड़े से हो गए थे। उसका तो सारा ही लरजने लगा था।

अब मैंने अपने अंगुलियों से उसके पपोटों को पकड़कर थोड़ा सा खोला। लाल रंग का रक्तिम चीरा ऐसे लग रहा था जैसे तरबूज की पतली सी फांक हो।

मैंने अपनी जीभ उसपर लगा दी।
‘ईईईई …’ सानिया की एक किलकारी पूरे बाथरूम में गूँज उठी।

मेरा लंड तो इस समय इतना अकड़ कर लोहे की सलाख हो चुका था। मैंने सोप स्टैंड से क्रीम की शीशी निकल कर अपने लंड पर लगा ली और थोड़ी क्रीम सानिया की बुर के चीरे पर भी लगा दी। अब मैंने अपना लंड उसकी बुर के छेद पर लगाने की कोशिश की तो सानिया छिटक कर अलग हो गई।
“क्या हुआ?”
“वो आपने निरोध … तो लगाया ही नहीं?”
“ओह … हाँ … मैं भूल गया।”

साला यह निरोध का भी झंझट ही रहता है। बुर की दीवारों के साथ बिना किसी अवरोध के लंड के घर्षण में कितना मज़ा आता है और फिर स्खलन के समय बुर में पूरा वीर्य उंडेलने का आनंद तो शब्दातीत (जिसे शब्दों में बयान ना किया जा सके) होता है। मेरी कितनी बड़ी इच्छा थी कि सानिया की बुर में अपने रस की अनगिनत फुहारें छोडूं।

“अच्छा सानू … एक बात बताओ?” वह सीधी होकर खड़ी हो गई।
“क्या?”
“वो तुम्हारी पीरियड्स की डेट क्या है?”
“वो क्या होती है?”
“अरे हर महीने तुम्हारे ऊपर छिपकली गिरती है ना? मैं उसकी बात कर रहा हूँ?”
“ओह … अच्छा?” सानिया मुस्कुराने लगी थी। “वो पिछली बार जब तोते और मधुर दीदी मुंबई गए थे ना उसके 5-7 दिन पहले की बात है? पर आप यह सब क्यों पूछ लहे हैं?”

मेरी तो जैसे बांछें ही खिल उठी। मधुर को गए 20-22 तो हो गए हैं इसका मतलब इसके पीरियड्स बस आज कल में आने ही वाले हैं।
वाह … अब तो बिना किसी डर और अवरोध इसकी कमसिन बुर को वीर्य की फुहारों से सींचा जा सकता है।

“अरे वाह … मेरी जान तुमने तो मेरी सारी चिंताएं ही मिटा दी।” मैंने फिर से उसे बांहों में भर लिया और उसके गालों पर एक चुम्बन ले लिया।
“कैसे … क्या मतलब?” सानिया हैरान हो रही थी।
“इसका मतलब है तुम्हें बस 1- 2 दिनों में तुम्हें पीरियड्स आने ही वाले हैं? और तुम्हें एक बात बताता हूँ छिपकली गिरने के 7 दिन पहले और 7 दिन बाद तक इसमें सीधे करने से भी बच्चा नहीं ठहरता।”
“सच्ची?”
“अरे हाँ … मेरी जान … मैं बिल्कुल सच बोल रहा हूँ … तुम चाहो तो यह बात प्रीति से भी पूछ सकती हो.”
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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सानिया कुछ सोचे जा रही थी। अब पता नहीं वह प्रीति से कुछ पूछने वाली है या नहीं पर इतना तो पक्का है कि उसके चहरे पर खिली मुस्कान यह बता रही है अब तो वह भी बिना निरोध के करने का स्वाद और मज़ा लेना चाहती है।
“वो कोई गड़बड़ तो नहीं होगी ना?”

“अरे मेरी जान, मेरा विश्वास रख … और हाँ एक काम और करेंगे.”
“क्या?”
“अगर तुम्हें ज्यादा डर लगे तो कोई बात नहीं मैं बाज़ार से दवाई की गोली ले आऊंगा। उसे लेने के बाद तो कोई डर ही नहीं रहेगा … ठीक है ना?”
“हओ …” उसके मुंह से जैसे ही यह निकला मैंने फिर से उसे बांहों में भर कर चूम लिया।

जैसे ही मेरे हाथ उसके नितम्बों की खाई में पहुंचे उसने अपनी एक टांग थोड़ी सी ऊपर उठा ली। अब तो मेरे हाथ की अंगुलियाँ उसके चीरे के दोनों ओर मोटे-मोटे पपोटों से जा टकराई। जैसे ही मैंने अपनी अंगुली उस छेद के अन्दर घुसाने की कोशिश की सानिया ने घूमकर अपने नितम्ब मेरी ओर कर दिए।

अब मैंने उसकी गर्दन को थोड़ा नीचे करते हुए फिर से झुकाने का इशारा किया तो तो हमारी सानूजान ने नल को पकड़कर अपना सिर थोड़ा सा झुका लिया और अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए।

मैं तो कब से इन पलों का इंतज़ार कर रहा था। मैंने उसके नितम्बों को चौड़ा किया और फिर चीरे पर अपना लंड घिसने लगा। सानिया मीठी सीत्कारें भरने लगी।

अब मैंने अपने लंड को चूत के मुहाने पर रखा और फिर सानिया की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। और फिर एक धक्के के साथ मैंने अपना पूरा लंड उसकी चूत में घोंप दिया।
सानिया की घुटी-घुटी सी चींख पूरे बाथरूम में गूँज उठी- आआ आईईइ … धीरे … दर्द होता है!

मेरा धक्का इतना जबरदस्त था कि साथ सानिया गिरते-गिरते बची। यह तो शुक्र था मैंने कस कर उसकी कमर पकड़ रखी थी वरना उसका सिर दीवार से जा टकराता।
मुझे अब ख्याल आया इस बेचारी के साथ इस प्रकार का तेज धक्का नहीं लगाना चाहिए था। हाँ एक बार अगर उस लैला के साथ बाथरूम में करने का मौक़ा मिल जाए तो कसम से वह तो 2-4 दिन ठीक से चल भी नहीं पायेगी।

मैंने शॉवर को फिर से खोल दिया और ठंडी फुहारें हम दोनों पर पड़ने लगी। अब मैंने सानिया की कमर और पीठ पर हाथ फिराने चालू कर दिए। और बीच बीच में उसकी पीठ पर चुम्बन भी लेने लगा।

मैंने अब धीरे-धीरे धक्के लगाने चालू कर दिए। सानिया ने अपनी जांघें थोड़े सी और चौड़ी कर दी थी। अब तो मेरा लंड घोड़े की तरह सरपट दौड़ने लगा था।

मैंने अपना एक हाथ नीचे करके उसकी चूत के दाने को चिमटी में पकड़कर मसलना चालू कर दिया तो सानिया अपने नितम्ब और जोर से हिलाने लगी और साथ में मीठी सीत्कारें लेने लगी।
मेरे धक्कों के साथ उसकी चूत का मधुर संगीत उसकी पीठ पर फिसलते पानी की फिच्च-फिच्च की आवाज के साथ ताल मिलाने लगा।

अब मेरी निगाह उसके नितम्बों की खाई में चली गई। गांड का छेद तो और भी ज्यादा सिकुड़ सा गया था। वह छेद भी अब तो खुलने और बंद सा होने लगा था।

कल का पूरा दिन सानिया को ही समर्पित होने वाला है। और जिस प्रकार उसने समर्पण किया है मुझे नहीं लगता वह गांड देने के लिए ज्यादा ना नुकुर या नखरे करेगी। मेरा ख्याल है कल सबसे पहले तो उसकी चूत की सफाई की जाए और फिर उसको पूरा मुंह में भरकर तसल्ली से इतना चूसा जाए उसकी चूत अपना सारा शहद निचोड़ कर मुझे समर्पित कर दे।

और उसके बाद तो हमारी सानू जान मेरे लंड की मलाई भी घोंटना जरूर पसंद करेगी और मेरे एक इशारे पर अपनी गांड का कौमार्य भी हंसी ख़ुशी मुझे सौम्पने को तैयार हो जायेगी।

मेरे इन ख्यालों से मेरा लंड तो ठुमके ही लगाने लगा था। अब तो सानिया की चूत भी संकोचन करने लगी थी और उसकी चूत से चिपचिपा सा गुनगुना शहद मेरे लंड के चारों ओर महसूस होने लगा था। मुझे लगता है सानिया एक बार झड़ गई है।

मेरा मन तो कर रहा था यह चुदाई जिन्दगी भर ऐसे ही चलती रहे। मेरा मन तो अभी पानी निकालने का बिल्कुल नहीं था पर कम्बख्त यह नौकरी पीछा कब छोड़ेगी पता नहीं।

सानिया मस्ती में आह.. ऊंह किए जा रही थी और लगता है उसे इस आसन में और भी ज्यादा मजा आ रहा है। इस नैसर्गिक काम कला का आनंद तो बहुत भाग्यशाली को ही मिल पाता है और इसमें हम दोनों ही शामिल थे।

अब मुझे लगने लगा था मेरा पानी किसी भी समय निकल सकता है। मैं चाहता था सानिया भी इस नैसर्गिक आनंद को मेरे साथ ही भोगे और उसका भी स्खलन मेरे साथ ही हो ताकि भविष्य में जब भी वह अपने प्रियतम या पति के साथ इस क्रिया को दोहराए उसे ये पल शिद्दत से याद आयें।

“सानू मेरी जान मज़ा आ रहा है ना?”
“हओ … आह … कुछ मत पूछो … बस किए जाओ … आह …”

मुझे लगा सानिया स्खलन के करीब है। अब मैंने उसकी कमर जोर से पकड़ी और फिर दनादन धक्के लगाने शुरू कर दिए।

तभी सानिया ने एक जोर की किलकारी मारी और मुझे भी लगा मेरी आँखों में तारे से जगमगाने लगे हैं.
और फिर उसके साथ की अनगिनत पिचकारियाँ मेरे लंड ने छोड़नी शुरू कर दी।

सानिया की चूत ने कई बार संकोचन किया। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी चूत किसी रेगिस्तान की धरती की तरह इस बारिश का सदियों से इंतज़ार कर रही थी।

मैंने अपने वीर्य से उसे पूरा सींच दिया। सानिया मीठी सित्कारे करती अपने नितम्बों और चूत को भींचती हुयी मेरे सारे वीर्य को अन्दर समेटने लगी।

थोड़ी देर हम इसी प्रकार बने रहे और फिर मेरा लंड फिसल कर जैसे ही बाहर आने लगा सानिया सीधे हो गई और मेरे सीने से चिपक गई।
“थैंक यू मेरी जान … मेरी प्रियतमा …”
“आपका भी थैंक यू.” सानिया ने शरमाकर अपनी आँखें बंद कर ली।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ। अब एक चुम्बन तो उसकी आँखों और होंठों पर बनता ही था। मैंने उसकी भीगी पलकों और होंठों को फिर से चूम लिया।

हम दोनों ने एक दूसरे के बदन को पौंछा और फिर कपड़े पहन कर बाहर आ गए।
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आज हमने एक ही गिलास में चाय पी और फिर सानिया ने पक्का वादा किया कि कल भी वह सुबह जल्दी आ जायेगी और दोपहर तक यहीं रहेगी और … कल वह बिल्कुल भी नहीं शर्माएगी। वैसे एक बात कहूं ये कमसिन लड़कियां जब शर्माती हैं तो खुदा कसम दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगती हैं। काश कभी सुहाना के शर्माने का अंदाज़ भी नजदीक से देखने का मौक़ा मिल जाए।

घर जाते समय मैंने सानिया को आज 500 रुपए और दे दिए थे।

दफ्तर पहुंचते-पहुंचते लगभग 11 बज गए थे।

अरे हाँ … मैं बातों-बातों में सुहाना नाम की फुलझड़ी के बारे में तो बताना ही भूल गया।

उस दिन मैंने लैला के घर पर सुहाना के एक बड़े से पोस्टर (फोटो) के बारे में आपको बताया था ना?
मिनी स्कर्ट पहने हाथों में टेनिस का रैकेट पकड़े जिस अंदाज़ में उसने यह फोटो खिंचवाई है लगता है बस क़यामत अभी आने ही वाली है।
उसकी मोटी-मोटी हिरणी जैसी काली आँखें तो ऐसे लग रही थी जैसे कोई काली घटा अभी झूम कर बरस उठेगी।

हे लिंग देव! बस एक बार इस चंचल हिरणी को बांहों में भरकर चूमने का मौक़ा मिल जाए तो अपने सारे गुनाहों की तौबा आज ही कर लूँ।

ओशो रजनीश ने अपने एक व्याख्यान में में कहा है
यह ब्रह्माण्ड तो बस तथास्तु बोलना जानता है। आप जो भी सोचते हैं या कामना करते हैं यह सारी कायनात उसे पूरा करने के प्रयास में लग जाती है।

इतने में ही रिसेप्शन से फ़ोन आया कि सुहाना और उसके साथ कोई एक और स्टूडेंट आपसे मिलना चाहती है। अभी-अभी तो मैं उसे ही याद कर रहा था। मैंने उसे अन्दर भेज देने का बोल दिया।
आज वह 2-3 दिनों की छुट्टी के बाद आ गई थी और उसके साथ नई फुलझड़ी भी थी।

दोनों अभिवादन (गुड मोर्निंग) करते हुए सामने वाली कुर्सियों पर बैठ गई और अपने हाथों में पकड़ी फाइल्स और मोबाइल मेज पर रख दिया।

सुहाना ने उस नई फुलझड़ी का परिचय करवाते हुए बताया कि इसका नाम पीहू है और यह उसके साथ ही पढ़ती है।
वैसे दिखने में तो यह फुलझड़ी दुबली पतली सी लग रही थी पर उम्र के हिसाब से तो उसके बूब्स तो सुहाना से भी बड़े लग रहे थे। हे भगवान्! अगर एक रात को इन अमृत कलसों को भींचने, मसलने और चूसने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम मज़ा आ जाए।

सुहाना ने सिफारिश की कि इसे भी सेम प्रोजेक्ट पर काम करना है। अगर मैं परमिशन दे दूं तो यह भी साथ में ही अपना प्रोजेक्ट कर लेगी।

हे भगवान्! इस पीहू नामक पपीहरा (चकोरी) के घुंघराले बालों को देख कर तो लगता है इसकी चूत पर भी रेशमी बालों का झुरमुट होगा … और इसकी चूत तो पीहू-पीहू बोलने लगी होगी।

दोनों ने सफ़ेद रंग की शर्ट और काले रंग की पैंट पहन रखी थी। पतली सी कमर में कसे बेल्ट को देखकर तो लगता है इस बेरहम बेल्ट को ज़रा भी दया नहीं आ रही कितनी जोर से कसकर कमर को भींच रखा है।

अब मेरा ध्यान उसके गले में पहने स्कूल के फोटो आईडी कार्ड गया और अनायास ही मेरी नज़रें पीहू के बगलों पर चली गई। वह भाग कुछ भाग भी गीला सा नज़र आ रहा था। शायद उसकी बगलों से निकले पसीने से भीग सा गया था। एक मदहोश करने वाली गंध मेरे नथुनों में समा गई।
याल्ला … सानिया की तरह इसकी चूत से भी ऐसी ही महक आती होगी।

लौंडिया जिस प्रकार मुझे आशा भरी नज़रों से देख रही थी आप अच्छी तरह सोच सकते हैं अब उसे ना कहना मेरे लिए कितना मुश्किल था। मैंने सुहाना पर अहसान जताते हुए हामी भर दी।

अब तो वह नई चिड़िया भी चहचहाने लगी थी। केबिन से जाते समय जिस प्रकार उसने ‘थैंक यू सर’ कहने के बाद हाथ मिलाया था मैं बहुत देर तक अपने हाथ को सहलाता रहा था। साला यह मन तो हमेशा ही बेईमान ही बना रहेगा।

चलो अकबर इलाहाबादी का एक शेर मुलाहिजा फरमाएं :
इलाही कैसी-कैसी सूरतें तुमने बनाई हैं।
के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के काबिल है।

कहते हैं दो नावों की सवारी बहुत खतरनाक होती है … पर मैं तो इस समय 3 नावों पर सवार हूँ … अब सोचने वाली बात यह है कि कालिया की तरह अब तेरा क्या होगा … प्रेमगुरु???

हे लिंग देव! अब तो बस तेरा ही आसरा है। तुमने मुझे अपनी रहमत से इतना नवाज़ा है कि मैं किस प्रकार तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ मेरी समझ और बूते के बाहर है। हे लिंगदेव! बस एक बार आख़िरी बार मेरे और सुहाना के लिए तथास्तु बोल दो प्लीज …

मैं बंगलुरु ट्रेनिंग के प्रोग्राम के बारे में सोचने लगा। साली यह किस्मत भी अजीब है जिन्दगी झंड हो गई है। एक बेचारा दिल और चार राहें। अजीब इत्तेफाक है चारों दिल फरेब हसीनाएं सामने खड़ी MPK(मुझे प्यार करो) बोल कर जैसे ललचा रही हैं।

मैं अभी अपने ख्यालों में खोया हुआ ही था कि मोबाइल की घंटी बजी.
मैंने अपना मोबाइल देखा वह तो खामोश था।

ओह … यह तो मेज पर पड़ा कोई दूसरा मोबाइल बज रहा था? लगता है सुहाना अपना मोबाइल यहीं भूल गई है।

मैंने फ़ोन को उठाया तो उधर से सुहाना की आवाज आई- सॉरी सर … मैं सुहाना बोल रही हूँ।
“ओह … हाँ … बोलो डिअर?”
“सर … वो मेरा मोबाइल …?”
“अरे हाँ … तुम अपना मोबाइल यही भूल गई लगती हो?”
“सॉरी सर! आप रख लेना. मैं शाम को ले लूंगी.”
“इट्स ओके डिअर!”
सुहाना ने फोन काट दिया। मैं बाद में बहुत देर तक उसी के बारे में सोचता रहा और फिर ऑफिस के रूटीन कामों में लग गया।

कोई दोपहर के दो बजे का समय रहा होगा। सुहाना का मोबाइल फिर से बजने लगा। सुहाना ने शायद पीहू के मोबाइल से कॉल किया था।

“सर मैं सुहाना बोल रही हूँ.” सुहाना की वही मीठी आवाज फिर से मेरे कानों में पड़ी।
“ओह … हाँ … बोलो बेबी?”
“सॉरी … आपको डिस्टर्ब किया … इस मोबाइल में एक मेसेज और ओटीपी भी आया है देखकर मुझे बता दें प्लीज …”
“ओके … इसका लोक ओपन करने का पास वर्ड बताओ?”
“ओह …?” मुझे लगा शायद सुहाना कुछ झिझक सी रही है।
“क्या हुआ?”
“ना … कुछ नहीं … ठीक है नोट करें …”
फिर उसने पासवर्ड बताया तो मैंने उसमें आया मेसेज और ओटीपी उसे बता दिया।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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