प्यासी शबाना 2nd

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jay
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Re: प्यासी शबाना 2nd

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भाग - ६



एक दिन सुबह परवेज़ अभी निकला ही था कि फोन की घंटी घनघना उठी। अशरफ़ का फोन था। अशरफ़ शबाना का छोटा भाई था। उसका फोन कभी आता नहीं था - हमेशा उसके अम्मी-अब्बा ही फोन करते थे।



“हैलो, बोलो अशरफ़, सब ठीक तो है?” शबाना ने पूछा।



“ठीक है आपा! आप सुनाओ!” अशरफ़ शबाना से आठ साल छोटा था और उसे आपा ही बुलाता था।



“मेरी सगाई तय हुई है और आपको लड़की देखने आना है। परसों सुबह से पहले पहुँचना है!” अशरफ़ ने जल्दी से बात पूरी की।



“इतनी जल्दी कैसे आऊँ...? और परवेज़ नहीं आ सकेंगे इतनी जल्दी में!” शबाना को पता था कि परवेज़ अगले दिन काम से बाहर जाने वाला था, तो उसे अकेले ही जाना पड़ेगा। दूसरी परेशानी यह थी कि परवेज़ की गैर-हाज़री में उसने प्रताप और जगबीर दोनों को अगली रात अपने यहाँ चुदाई के मज़े लूटने के बुला रखा था।



“क्या शब्बो आपा! इसमें क्या प्रॉब्लम है? आप कोई बच्ची तो हो नहीं कि अकेली नहीं आ सकती... सीधी बस है और कोई बदली भी करनी है नहीं - सीधे वहाँ से बैठ जाओ और यहाँ पर मैं लेने आ ही जाऊँगा!” अशरफ़ ने आराम से कहा।



“लेकिन शाम की ही बस लेनी पड़ेगी अब!” शबाना तय नहीं कर पा रही थी, इस हालात से कैसे निपटा जाये!



“प्लीज़ आपा! सफ़र है ही कितना... सात-आठ घंटे में यहाँ पर पहुँच जाओगी और मैं बस स्टैंड से ले आऊँगा!” अशरफ़ ने ज़ोर दिया।



“देखो अशरफ़, बस रात को दो बजे पहुँचेगी... तुम लेने आ जाना... कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिये... इतनी रात को कोई रिक्शा वगैरह भी नहीं मिलती वहाँ और सब कितना सुनसान होता है!”



“आप चिंता ना करो आपा! कोई गड़बड़ नहीं होगी!” अशरफ़ ने उसे यकीन दिलाया। खैर बहुत इल्तज़ा करने के बाद शबाना राज़ी हो गयी।



परवेज़ को तो बाहर जाना था तो उसने तो जाने से मना कर दिया, मगर शबाना के अकेले जाने में उसने कोई एतराज़ नहीं दिखाया। शबाना को आटो-रिक्शा से बस स्टैंड जाने की सलाह देकर परवेज़ तो अगले दिन दोपहर को ही निकल गया। शबाना ने उदास मन से प्रताप और जगबीर को भी बता दिया कि चुदाई का प्रोग्राम रद्द करना पड़ेगा।



शबाना की बस शाम को छः बजे थी। जगबीर उसे बस स्टैंड तक अपनी जीप में छोड़ने के लिये आने वाला था। शबाना चार बजे तक बिल्कुल तैयार हो गयी और जगबीर का इंतज़ार करने लगी। आज उसने चमकीली सुनहरी कढ़ाई की हुई लाल रंग की नेट वाली साड़ी और छोटा सा सैक्सी ब्लाऊज़ पहन रखा था। साथ में उसने ऊँची पेंसिल हील वाले सुनहरी रंग के स्ट्रैपी सैंडल पहने हुए थे। जगबीर आया तो शबाना से रहा नहीं गया और वो जगबीर से लिपट कर उसके होंठ चूमते हुए उसका लण्ड सहलाने लगी। वक्त ज्यादा नहीं था तो जगबीर ने शबाना को डायनिंग टेबल पर हाथ राख कर आगे झुकाते हुए खड़ा करके पीछे से उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊठा दिये। फिर उसकी पैंटी खींच कर जाँघों से नीचे खिसका दी जो अगले ही पल उसके पैरों में गिर पड़ी। फिर उसने शबाना की कमर में हाथ डाल कर उसकी चूत में अपना लण्ड घुसेड़ दिया और खड़े- खड़े ही उसे दनादन चोदने लगा। जब दोनों का पानी छूट गया तो शबाना घूम कर नीचे बैठ गयी और जगबीर का लण्ड चाट-चाट कर चूसते हुए साफ किया। उसकी साड़ी थोड़ी बेतरतीब सी हो गयी थी लेकिन अब बदलने का वक्त नहीं था क्योंकि देर होने की वजह से बस छूटने का डर था। वैसे भी वो ऊपर बुऱका ही तो पहनने वाली थी। जल्दी में उसने पैंटी भी नहीं पहनी और साड़ी के नीचे उसकी जाँघों पर जगबीर के लंड का पानी और उसकी खुद की चूत का पानी भी बह रहा था।



शबाना ने फटाफट अपना बुऱका पहना और जगबीर ने उसे बस छूटने के ठीक पहले बस तक पहुँचा दिया। रात को पौने दो बजे शबाना ने बस से उतरकर चारों तरफ़ देखा। उसके अलावा और कोई नहीं उतरा था। गुप अंधेरे में तेज़ हवा की साँय-साँय की आवाज़ के अलावा पूरा सन्नाटा था। अशरफ़ का दूर-दूर तक कोई पता नहीं था। उसने अशरफ़ को फोन लगाया। “अशरफ़ कहाँ है तू?” वो थोड़ी घबरायी हुई थी। “शब्बो आपा! मेरी गाड़ी खराब हो गयी है... आप बस थोड़ी दूर पैदल चल कर आ जाइये! गाड़ी को ऐसे ही छोड़ने में खतरा है... यहाँ पर गाड़ी चोरी होने में देर नहीं लगेगी। मैं यहीं पर पनवाड़ी चौंक पर खड़ा हूँ!” अशरफ़ ने ऐसे जवाब दिया जैसे वो तैयार था इस हालत के लिये।



“मैं अकेले नहीं आ सकती! तू जानता है कि वहाँ तक पैदल आने के लिये उस सुनसान रास्ते से आना होगा!” शबाना के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी थी। वो जानती थी पगडंडी बिल्कुल सुनसान होती है। “आपा कुछ नहीं होगा! आप आ जाओ!” अशरफ़ ने बिना उसका जवाब सुने फोन काट दिया।



शबाना ने अपना बैग और पर्स उठाया और पगडंडी की तरफ़ चल पड़ी। गनिमत ये थी कि बैग हल्का ही था क्योंकि उसमें दो जोड़ी कपड़े, सैंडल और ब्रा पैंटी वगैरह ही थी। अभी दस मिनट ही चली थी कि उसे लगा कोई उसके पीछे है। वो बिल्कुल डर गयी और अपनी चलने की रफ्तार तेज़ कर दी। उसने अपने आपको बुऱके में पूरी तरह से ढक रखा था - सर से पैर तक। तभी उसे अपने पीछे से कदमों की आवाज़ तेज़ होती महसूस हुई। वो अभी अपनी रफ्तार और बढ़ाने वाली ही थी कि उसे सामने एक परछांयी नज़र आयी। वो उसी की तरफ़ आ रही थी। अब शबाना की डर के मारे बुरी हालत थी। तभी उसे अपनी कमर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसे पता ही नहीं चला कब वो पीछे वाला आदमी इतना करीब आ गया। उसने झट से उसका हाथ झटक दिया और पगडंडी से उतर कर खेतों की तरफ़ भागी जहाँ उसे थोड़ी रोश्नी नज़र आ रही थी। उसका बैग और पर्स वहीं छूट गया। वो दोनों परछांइयाँ अब उसका पीछा कर रही थी। “पकड़ रंडी को! हाथ से निकाल ना जाये! देख साली की गाँड देख कैसे हिल रही है आज तो मज़ा आ जायेगा छेद्दीलाल!” शबाना के कानों में ये आवाज़ें साफ़ सुनायी दे रही थीं और अचानक उसकी पीठ पर एक धक्का लगा और वो सीधे मुँह के बल घास के ढेर पर गिर गयी। घास की वजह से उसे चोट नहीं आयी।



“बचाओ, बचाओ, अशरफ़!” वो ज़ोर से चिल्लायी। तभी एक आदमी ने उसके बुरक़े को ज़ोर से खींच दिया और वो फर्रर्र की आवाज़ के साथ फट गया। उसकी साड़ी तो पहले से ही बे-तरतीब सी थी और इस भाग-दौड़ की वजह से और भी खुल सी गयी थी। उस आदमी ने उसकी साड़ी भी पकड़ कर खींच के उतार दी। शबाना की पूरी जवानी जैसे कैद से बाहर निकाल आयी। अब उसने सिर्फ़ पेटीकोट, ब्लाऊज़ और सैंडल पहन रखे थे। फिर एक आदमी उसपर झपट पड़ा तो शबाना ने उसे ज़ोर से धक्का दिया और एक लात जमायी। वो अब भी अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कशाकश कर रही थी। तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा और उसकी आँखों के आगे जैसे तारे नाचने लगे और कानों में सीटियाँ बजने लगी। वो ज़ोर से चींख पड़ी। तभी उन दोनों में से एक ने उसके पेटीकोट को ऊपर उठाया और उसकी जाँघों को पकड़ लिया। पैंटी तो शबाना ने जगबीर से चुदाई के बाद घर से निकलते हुए पहनी ही नहीं थी। उसने अपनी दोनों जाँघों को मज़बूती से भींच लिया। उस आदमी का हाथ उसकी जाँघों के बीच उसकी नंगी चूत पर था, और शबाना उस आदमी के बाल पकड़ कर उसे ज़ोर से पीछे धकेलने लगी। तभी उसे एक और ज़ोरदार थप्पड़ पड़ा। ये उस दूसरे आदमी ने मारा था। शबाना के पैर खुल गये और उसके हाथों की पकड़ ढीली हो गयी। तभी पहला आदमी, छेद्दीलाल खुश होते हुए बोला, “शम्भू! साली की चूत एक दम साफ़ है, आज तो मज़ा आ जायेगा! क्या माल हाथ लगा है!’ ये कहते हुए छेद्दीलाल ने शबाना के ब्लाऊज़ को पकड़ कर फाड़ दिया और शबाना के मम्मे एक झटके से बाहर झूल गये। ब्रा जैसा छोटा सा ब्लाउज़ फटते ही शबना के गोल-गोल मम्मे नंगे हो गये और पेटीकोट उसकी कमर तक उठा हुआ था। ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं हुई थी क्योंकि ब्लाऊज़ खुद ही किसी ब्रा के साइज़ का ही था।



शबाना ने फिर हिम्मत जुटायी और ज़ोर से छेद्दीलाल को धक्का दिया। तभी शम्भू ने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर उन्हें उसके सिर के ऊपर तक उठा दिया और नीचे छेद्दी ने उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और अपना पायजामा भी। उसने अंडरवीयर नहीं पहनी थी और शबाना की नज़र सीधे उसके लण्ड पर गयी और उसने अपनी टाँगें फिर से जोड़ लीं। वो सिर्फ अब ऊँची ऐड़ी के सुनहरी सैंडल पहने बिल्कुल नंगी घास के ढेर पर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसके हाथ उसके सर के ऊपर से शम्भू ने पकड़ रखे थे और नीचे छेद्दीलाल उसकी चुदाई की तैयारी में था। शबाना इस चुदाई के लिये बिल्कुल तैयार नहीं थी और वो अब भी चींख रही थी। “और चींख रंडी! यहाँ कौन सुनने वाला है तेरी...? आराम से चुदाई करवा ले तो तुझे भी मज़ा आयेगा!” शम्भू ने उसके हाथों को ज़ोर से दबाते हुए कहा। शबाना को शम्भू कर सिर्फ़ चेहरा नज़र आ रहा था क्योंकि वो उसके सिर के पीछे बिठा हुआ था। “छेद्दी! ये मुआ लखनपाल कहाँ मर गया?” “आता ही होगा!” अब शबाना समझ गयी कि इनका एक और साथी भी है।



तभी किसी ने उसकी चूचियों को ज़ोर से मसल दिया। ये लखन था। “क्या माल मिला है... आज तो खूब चुदाई होगी!” लखन ने उसकी एक टाँग पकड़ी और ज़ोर से खींच कर दूसरी टाँग से अलग कर दी। छेद्दीलाल तो जैसे मौके की ताक में था। उसने झट से शबाना की दूसरी टाँग को उठाया और सीधे शबाना की चूत में लण्ड घुसेड़ दिया और शबाना के ऊपर लेट गया। शबाना की चूत बिल्कुल सूखी थी क्योंकि वो चुदाई के लिये बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि आज उसका बलात्कार हो रहा है, और वो भी तीन-तीन मर्द उसको चोदने वाले हैं... वो भी ज़बरदस्ती। वैसे तो चुदाई के लिये वो खुद हमेशा तैयार रहती थी लेकिन ये हालात और इन लोगों का तबका और रवैया उसे गवारा नहीं हो रहा था। इन जानवरों को तो सिर्फ अपनी इशरत और तसल्ली से मतलब था और उसकी खुशी या खैरियत की ज़रा भी परवाह नहीं थी।



तभी उसकी चूत पर एक ज़ोरदार वार हुआ और उसकी चींख निकाल गयी। उसकी सूखी हुई चूत में जैसे किसी ने मिर्च रगड़ दी हो। छेद्दीलाल एक दम ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा था। शबाना की एक टाँग लखन ने इतनी बाहर की तरफ खींच दी थी कि उसे लग रहा था कि वो टूट जायेगी। उसके दोनों हाथ शम्भू ने कस कर पकड़ रखे थे और वो हिल भी नहीं पा रही थी। अब छेद्दीलाल उसे चोदे जा रहा था और उसके धक्कों की रफ़्तार तेज़ हो गयी थी। हालात कितने भी नागवार थे लेकिन शबाना थी तो असल में एक नम्बर की चुदासी। इसलिये ना चाहते हुए भी शबाना को भी अब धीरे-धीरे मज़ा आने लगा था और उसकी गाँड उठने लगी थी। उसकी चूत भी अब पहले की तरह सूखी नहीं थी और भीगने लगी थी। तभी छेद्दीलाल ने ज़ोर से तीन-चार ज़ोर के धक्के लगाये और अपना लण्ड बाहर खींच लिया। अब लखन ने उसे उलटा लिटा दिया।



शबाना समझ गयी उसकी गाँड मरने वाली है। लखन ने उसकी गाँड पर अपना लण्ड रगड़ना शुरू कर दिया। शबाना ने अपने घुटने अंदर की तरफ़ मोड़ लिये और अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी और एक ज़ोरदार लात पीछे लखन के पेट पेर दे मारी। लखन इस आकस्मिक हमले से संभल नहीं पाया और गिरते-गिरते बचा। शबाना के ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल की चोट काफी दमदार थी और कुछ पलों के लिये तो उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। तभी छेद्दीलाल ने परिस्थिति समझते हुए शबाना की टाँग और पैर पकड़ कर बाहर खींच लिया। तब तक लखन भी संभल चुका था। उसने शबाना की दूसरी टाँग खींच कर चौड़ी कर दी और एक झटके से अपना लण्ड उसकी गाँड के अंदर घुसा दिया। कहानी की मूल शीर्षक: प्यासी शाबाना!



“साली रंडी! गाँड देख कर ही पता लगता है कि पहले कईं दफा गाँड मरवा चुकी है... फिर भी इतना नाटक कर रही है!” कहते हुए लखन ने एक थप्पड़ शबाना के कान के नीचे जमा दिया। शबाना चकरा गयी। लखन का लण्ड धीरे-धीरे उसकी गाँड में घुस गया था। शबाना फिर ज़ोर से चिल्लायी और मदद की गुहार लगाने लगी। “अबे शम्भू! क्या हाथ पकड़े खड़ा है... मुँह बंद कर कुत्तिया का!” शम्भू ने जैसे इशारा समझ लिया। उसने अपनी धोती हटायी और अपना लण्ड उलटी पड़ी हुई शबाना के मुँह में जबरदस्ती घुसाने लगा। शबाना ने पूरी ताकत से अपना मुँह बंद कर लिया। तभी शम्भू ने उसके दोनों गालों को अपनी उंगली और अंगूठे से दबा दिया। दर्द की वजह से शबाना का मुँह खुल गया और शम्भू का लण्ड उसके मुँह से होता हुआ उसके गले तक घुसता चला गया। शबाना की तो जैसे साँस बंद हो गयी और उसकी आँखें बाहर आने लगीं। शम्भू ने अपना लण्ड एक झटके से उसके मुँह से बाहर निकाला और फिर से घुसा दिया।



अब शबाना भी संभल गयी थी। उसे शम्भू के पेशाब का तीखापन और उसकी गन्ध साफ़ महसूस हो रही थी। शम्भू का लण्ड उसके मुँह की चुदाई कर रहा था और उसके गले तक जा रहा था और नीचे लखन उसकी गाँड में लण्ड के हथौड़े चला रहा था। काफी देर तक उसकी गाँड मारने के बाद लखन ने उसकी गाँड से लण्ड निकाला और उसकी कमर को पकड़ कर उसकी गाँड ऊँची उठा दी। फिर पीछे से ही लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया। कुछ दस मिनट की चुदाई के बाद लखन ने अपने लण्ड का पानी शबाना की चूत में छोड़ दिया और शम्भू को इशारा किया। शम्भू ने अपना लण्ड शबाना के मुँह से निकाल कर उसका हाथ छोड़ दिया। शबाना एक दम निढाल होकर घास के ढेर पर औंधे मुँह गिर गयी। उसकी हालत खराब हो चुकी थी और उसकी गाँड और चूत और मुँह में भी भयंकर दर्द हो रहा था। तभी शम्भू ने उसे सीधा कर दिया। “मुझे छोड़ दो, प्लीज़, अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा... बहुत दर्द हो रहा है...!” अब शबाना में चिल्लाने की चींखने की या प्रतिरोध करने की ताकत नहीं थी।



“बस साली कुत्तिया! मेरा लण्ड भी खा ले, फिर छोड़ देंगे!” कहते हुए शम्भू ने उसकी दोनों टाँगों को उठा कर उसके पैरों को अपने कंधों पर रखा और उसकी चूत में लण्ड घुसा दिया। दर्द के मरे शबाना की आँखें फैल गयीं मगर मुँह से आवाज़ नहीं निकाली। शम्भू ने ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये। शबाना की चूत जैसे फैलती जा रही थी और शम्भू का लण्ड उसे किसी खंबे की तरह महसूस हो रहा था। शबाना ने इतना मोटा लण्ड पहले कभी नहीं लिया था। फिर शम्भू ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। शबाना एक मुर्दे की तरह उसके नीचे लेटी हुई पिस रही थी और शम्भू का पानी गिर जाने का इंतज़ार कर रही थी। उसका अंग-अंग दुख रहा था और वो बिल्कुल बेबस लेटी हुई थी। शम्भू उसे लण्ड खिलाये जा रहा था। फिर शबाना को महसूस हुआ कि इतने दर्द के बावजूद उसकी चूत में से पानी बह रहा था और मज़ा भी आने लगा था। तभी शम्भू ने ज़ोरदार झटके मारने शुरू कर दिये और शबाना की आँखों में आँसू आ गये और उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी चुदी चुदाई चूत जो कि कईं लण्ड खा चुकी थी, जैसे फट गयी थी। फिर भी इतना दर्द झेलते हुए भी उसकी चूत ने अपना पानी छोड़ दिया और झड़ गयी। शम्भू का पानी भी उसके चूत के पानी में मिला गया। इतनी दर्द भरी चुदाई के बाद किसी तरह से शबाना अभी भी होश में थी।



वो बुरी तरह हाँफ रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी बेरहम और दर्दनाक वहशियाना चुदाई के बावजूद कहीं ना कहीं उसे मज़ा भी ज़रूर आया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी फटी हुई चूत ने भी कैसे झड़ते हुए अपना पानी छोड़ दिया था जिसमें कि इस वक्त भी बे-इंतेहा दर्द हो रहा था। थोड़ी देर के बाद किसी तरह वो बैठ सकी थी। “मैं घर कैसे जाऊँगी? मेरा सामान तो ढूँढने में मेरी मदद करो!”



“तेरा सामान यहीं है… और हाँ मैंने फोन भी बंद कर दिया था!” कहते हुए लखन ने घास के धेर के पास रखे हुए सामान की तरफ़ इशारा किया। यही वजह थी लखन के देर से आने की।



छेद्दीलाल और शम्भू उसे सहारा देकर खेत में ही पास में एक छोटे से मकान में ले गये - जो कि छेद्दीलाल का था। वहाँ पर शबाना ने खुद को थोड़ा साफ किया और कपड़े बदले। शबाना से ठीक तरह से खड़े भी नहीं हुआ जा रहा था। उसने एक ग्लास दूध पिया, थोड़े बिस्कुट खाये। फिर उसकी हालत थोड़ी ठीक हुई। जो लोग कुछ देर पहले दरिंदों की तरह उसका बलात्कार कर रहे थे वो ही अब उसकी खातिरदारी भी कर रहे थे। फिर शम्भू ने उसे चौंक तक छोड़ दिया, लेकिन दूर से ही।



“आपा! इतनी देर कैसे लग गयी आने में? मैं कब से आपका फोन ट्राई कर रहा था लेकिन स्विच ऑफ आ रहा था!”



“ऐसे ही ज़रा रास्ता भटक गयी थी... अब जल्दी से चल!” शबाना ने कुछ भी बताना ठीक नहीं समझा।



“ये आपके चेहरे पर निशान कैसे हैं? क्या हुआ?”



“कुछ नहीं हुआ! तू चल अब!”



अशरफ़ ने गाड़ी स्टार्ट की और वो घर आ गये। अगले दिन अशरफ़ की सगाई हो गयी और तीसरे दिन उसने घर लौटना था। इन दोनों रातों को शबाना को बस शम्भू, लखन और छेद्दीलाल से चुदाई के ही ख्वाब आते थे और उसकी चूत भीग जाती। जागते हुए भी अक्सर उसी वाकये का ख्याल आ जाता और उसके होंठों पर शरारत भरी मुस्कुराहट फैल जाती और गाल लाल हो जाते। उस का मन होता कि कब अपने घर वापस जाये और प्रताप और जगबीर के साथ चुदाई के मज़े लूटे। तीसरे दिन रात की नौ बजे उसने बस पकड़नी थी। पूरी रात का सफ़र था और अगले दिन परवेज़ उसे लेने आने वाले थे।

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Re: प्यासी शबाना 2nd

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भाग - ७



बस लग गयी थी और शबाना अपनी सीट पर बैठ गयी। उसने अशरफ़ को जाने के लिये कह दिया ताकि अशरफ़ वक्त पर घर पहुँच जाये। अशरफ़ निकल गया और तभी अनाउन्समेन्ट हुई कि खराबी की वजह बस तीन घंटे देरी से निकलेगी। शबाना को गुस्सा तो बहुत आया मगर करती भी क्या। बैठे-बैठे उसे फिर उस रात को अपने बलात्कार के दौरान मिले दर्द और अजीब से मज़े का मिलजुला एहसास याद आने लगा। फिर कुछ सोचकर उसने अपना सामान उठाया और उसी पगडंडी वाले रास्ते से छेद्दीलाल के घर पहुँच गयी। उस कच्चे घर में से कुछ आवाज़ें आ रही थी। उसने खिड़की से झाँक कर देखा तो उसकी आँखें फटी रह गयी। अंदर छेद्दीलाल, लखन और उसका भाई अशरफ़ थे। तीनों बिल्कुल नंगे थे और लखन अशरफ़ की गाँड मार रहा था और छेद्दीलाल उसे अपना लण्ड चुसा रहा था।



तभी उसके पीछे से किसी ने जकड़ लिया। शबाना ने घूम कर देखा तो ये शम्भू था। शम्भू के हाथ में सस्ती शराब की बोतल थी। शम्भू ने शराब की एक घूँट भरी और शबाना के होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और उसके बुरक़े को उतार फेंका। शबाना की साड़ी भी एक ही झटके में शंभू ने आगे से पकड़ कर खींचते हुए उतार दी और फिर नाड़ा खींचते ही उसका पेटीकोट भी फ़िसल कर नीचे गिर गया। आज भी शबाना ने पैंटी नहीं पहनी थी। अब उसके जिस्म पर सिर्फ छोटा सा बिकिनी-ब्लाउज़ और सदा की तरह पैरों में ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल थे। शंभू ने फिर बोतल मुँह से लगा कर शराब का घूँट पिया और शबाना की तरफ बोतल बढ़ा दी, “ये ले... पियेगी?”



शबाना कुछ नहीं बोली और चुपचाप शम्भू से वो बोतल लेकर शराब के दो-तीन घूँट पी लिये। शम्भू ने उसे बरामदे में पास पड़ी खटिया पर गिरा लिया और नीचे बैठ कर उसकी टाँगों को उठा कर उसकी चूत को चूसना शुरू कर दिया। शबाना भूल गयी कि अंदर उसका भाई गाँड मरवा रहा है। शबाना की सिसकारियाँ छूटने लगीं। शराब की बोतल शबाना के हाथ में ही थी और वो मस्ती में अपनी चूत चुसवाते हुए बीच-बीच में उसमें से शराब पी रही थी। शम्भू ने उसकी चूत में उंगली घुसायी और अंदर बाहर करने लगा। ऐसा करते हुए वो उसकी चूत को चूसे जा रहा था। शबाना की चूत से पानी बहने लगा। कहानी की मूल शीर्षक: प्यासी शाबाना!



फिर शम्भू ने अपनी लुंगी उठायी और शबाना के सामने खड़ा हो गया। शबाना ने उसके लण्ड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। इसी लिये तो आयी थी वो यहाँ... फिर से चुदाई करवाने... लण्ड खाने! तीन घंटे थे बस छूटने में और वो इन तीन घंटों में खूब मज़े करना चाहती थी... अपनी चूत को लण्ड खिलाना चाहती थी। अब शराब का नशा भी उस पर चढ़ने लगा था। उसने शम्भू को खटिया पर लिटाया और उसकी गोटियाँ चूमने लगी। शम्भू के लण्ड को ऊपर नीचे करते हुए उसकी चमड़ी से अंदर बाहर होते हुए सुपाड़े को प्यार से चूमने लगी। उसने शम्भू की टाँगों को उठाया और उसकी पसीने से भीगी हुई गाँड चाटने लगी। वो शम्भू की गाँड में अपनी जीभ घुसा-घुसा कर चाट रही थी। शम्भू के पसीने भरी गाँड की तीखी महक उसे और पागल कर रही थी। अब वो शम्भू पर चढ़ बैठी और उसका लण्ड अपनी चूत में घुसा कर उछलने लगी। सस्ती देसी शराब की बोतल अब भी उसके हाथ में थी और शम्भू के लण्ड पर उछलती हुई वो बीच-बीच में बोतल मुँह से लगा कर शराब पी रही थी। शम्भू का लण्ड उसकी चूत में घुसा हुआ था उसके पेट तक जा रहा था। शबाना की सिसकारियाँ तेज़ होने लगी। वो झड़ने वाली थी और उसने पलट कर शम्भू को झटके से अपने ऊपर ले लिया। शम्भू भी उसके ऊपर चढ़ गया और शबाना की दोनों टाँगें उठाकर अपने कंधों पर रख लीं और तेज़ी से झटके देने लगा। शबाना की तो चींखें निकलने लगीं। उसकी गाँड हवा में हिलने लगी और आँखें बंद हो गयी और उसने पानी छोड़ दिया।



तभी उसे अपने मुँह पर लण्ड महसूस हुआ, जिसे उसने अपने मुँह में ले लिया और चूमने लगी। जब उसने अपनी आँख खोली तो, “अशरफ़ तू??? अपनी आपा को लण्ड चुसा रहा है... शरम नहीं आती???”



“क्या आपा! मैंने परसों रात आपको तीन-तीन लण्ड दिलवाये और आप मेरा लण्ड नहीं लोगी?” अशरफ़ मुस्कुराया। शबाना समझ गयी कि उस रात जो हुआ वो अशरफ़ का ही प्लान था।



“तूने ये सब क्यों किया?” शबाना ने पूछा। शबाना की ज़ुबान नशे में बहक रही थी।



“आपा मैं गंडियाल हूँ और मुझे गाँड मरवाने में मज़ा आता है। मुझे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है.... ये लोग मेरी गाँड मारने के बदले तुम्हें माँग रहे थे तो मुझे ये सब करना पड़ा!” अशरफ़ की आवाज़ में कोई पछतावा नहीं था।



“तो गाँडू तू शादी क्यों कर रहा है?”



“इनके लिये! अब मैं तुम्हें तो हर रोज़ नहीं बुला सकता ना? यही चोदेंगे मेरी बीवी नफीसा को भी!”



सन्न रह गयी शबाना ये सुनकर। खैर, अगले दो घंटे उसने और शराब पी कर नशे में खूब जी भर कर चुदाई करवायी। अशरफ़ का भी लण्ड चूस कर पानी पी लिया। अशरफ़ इससे ज़्यादा कुछ कर नहीं सकता था। बाकी तीनों के लण्ड भी अपने हर छेद में लेकर मज़े लूटे। सबसे ज़्यादा मज़ा तो उसे तब अया जब एक ही साथ उसकी चूत में शंभू का लण्ड और गाँड में लखन का लण्ड और मूँह में छेद्दीलाल का लण्ड चोद रहा था।



फिर अशरफ़ ने उसे वापस बस-स्टैंड पर छोड़ दिया और वो उसी तरह बस में सवार हो गयी जैसे उतर कर गयी थी। सिर्फ इतना फर्क़ था कि अब वो शराब के नशे में थी। बस में पहुँची तो कंडक्टर ने सीटें बदल दी थीं। शबाना की सीट काफी पीछे थी और उसकी सीट के पीछे सिर्फ़ एक ही कतार और थी। उसके पास एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी हुई थी। उम्र कोई पचास के करीब थी। शबाना ने सीट बदलने के लिये कंडक्टर से काफी मशक्कत की मगर उसे उसी सीट पर बैठना पड़ा। शबाना उसके पास जाकर बैठ गयी। बड़ी कोफ़्त हुई उसे... खिड़की के पास वाली सीट भी नहीं मिली। अच्छा हुआ सिर्फ़ बुरक़ा ही पहन कर आ गयी, उसने सोचा, अगर बुरक़े में कपड़े पहन लेटी तो गर्मी से दम निकाल जाता। जी हाँ! छेद्दीलाल के यहाँ से निकलते वक्त उसने अपनी साड़ी और पेटीकोट पहनने कि बजाय अपनी अटैची में रख लिये थे और इस वक्त वो बुऱके के नीचे सिर्फ छोटा सा बिकिनी-ब्लाउज़ ही पहने हुए थी और कुछ भी नहीं!



वो अपनी चुदाई के बारे में सोच-सोच कर मस्तिया रही थी। उसकी चूत और गाँड अब भी लण्ड खाने के लिये बिल्कुल तैयार थी। शबाना अब बिल्कुल रंडी बन चुकी थी, और हर वक्त उसके ज़हन में लण्ड और चुदाई के ही ख्याल आते थे। बस चल चुकी थी। करीब दो घंटे बाद बस रुकी थी चाय नाश्ते के लिये और फिर पंद्रह-बीस मिनट में चल दी।



शबाना को शराब के नशे की वजह से काफी नींद आ रही थी। तभी उसकी बगल में बैठी औरत ने अपना सर शबाना के कंधे पर रख दिया। शबाना ने एक-दो बार तो उसका सिर उठा दिया, लेकिन वो हर बार फिर शबाना के कंधे पर सिर रख देती। आखिर शबाना ने समझौता कर लिया, और उसके सिर पर अपना सिर रख कर सोने की कोशिश करने लगी। लाइट बंद होने की वजह से बस में बिल्कुल अन्धेरा हो गया था। अचानक शबाना ने अपनी आँखें खोली जब उसे अपनी कमर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसे लगा पास बैठी औरत का हाथ होगा। फिर ध्यान से देखा तो पता चला उस औरत के दोनों हाथ आगे ही थे। वो समझ गयी उसके पीछे बैठे किसी आदमी ने उसकी और उस बाजू वाली औरत की सीट के बीच में जो जगह थी, वहाँ से हाथ अंदर डाला था। अभी तक उस हाथ ने कोई हरकत नहीं कि थी। शबाना के मन में उम्मीद जागी लेकिन वो चुपचाप बैठी रही। उसकी चुदाई की आदत की वजह से वो उसकी लण्ड की भूख जाग गयी थी।



अब वो हाथ उसकी कमर को सहलाने लगा और शबाना की गरमी भी परवान चढ़ने लगी थी। मगर उसके पास वाली औरत ने अब भी अपना सिर उसके कंधों पर रखा हुआ था। शबाना को डर था कि वो उठ जायेगी। वो थोड़ी नीचे सरक गयी और अब उस बाजू वाली औरत को काफी झुकना पड़ रहा था। उस औरत ने अपना सिर उसके कंधों पर से हटा लिया और दूसरी तरफ़ खिड़की पर रख लिया। उस पीछे वाले आदमी का हाथ अब शबाना की कमर की जगह बिल्कुल उसकी बगल में आ गया था। उसने अपने हाथ को और आगे किया और शबाना के उभरे हुए मम्मों को दबाने लगा। शबाना उसकी हिम्मत से हैरान थी लेकिन वो खुद भी मस्तिया रही थी और वो चुपचाप मज़े ले रही थी। तभी उस आदमी ने दूसरी तरफ़ से भी अपना हाथ डाल दिया और शबाना के दोनों मम्मों को दबाने लगा। शबाना का मन अब बुरक़े को उतार फेंकने को हो रहा था। वो इस छुआछुई के खेल को अगली सीढ़ी पर ले जाना चाहती थी।



उसने बगल वाली औरत को हिलाकर एक बार तसल्ली कर ली कि वो गहरी नींद में है। फिर वो पहले की तरह ऊपर होकर बैठ गयी और अपने बुऱके को पीछे से उठाकर गाँड के ऊपर ले लिया ताकि मौका मिलने पर उसे ऊपर कर सके। पीछे बैठे आदमी को पता लग गया था कि उसका काम बन गया है। उसने अपना हाथ बुऱके के अंदर घुसा दिया और शबाना की नंगी चिकनी पीठ पर हाथ फिराने लगा। अचानक उसने शबाना के ब्लाउज़ की हुक खोल दी और अपना हाथ आगे लेकर उसके नंग मम्मों को मसलने लगा। शबाना ने अपनी आँखें बंद कर लीं और मज़े लेने लगी। अब वो हाथ नीचे की तरफ जा रहा था। शबाना समझ गयी कि उसकी चूत के नसीब खुलने वाले हैं। लेकिन वो हाथ उसकी नाभि तक तो पहुँच गये लेकिन चूत तक नहीं पहुँच पा रहे थे। सिर्फ़ उसकी नाभि के कुछ ही नीचे पहुँच रहे थे वो भी बड़ी मुश्किल से। अब तक तो शबाना की नंगी चूत पूरी भीग चुकी थी और उसके होंठ भी लण्ड चूमने के लिये मचलने लगे थे। उसके मुँह में पानी आ गया था और उसकी ज़ुबान उसके मुँह के बाहर निकल रही थी।



उसने अपना हाथ पीछे की तरफ़ कर दिया। लेकिन उसके हाथ में उस आदमी का लण्ड फिर भी नहीं आया। वो सिर्फ़ उसके घुटनों तक ही पहुँच पा रही थी। उसने मुड़कर देखा तो उस शख्स ने अपना मुँह ढक रखा था और एक पतली सी चादर कुछ इस तरह से लटकायी हुई थी कि किसी को भी यही लगेगा कि वो शबाना की सीट पर सिर रख कर सो रहा है। उस आदमी का हाथ अब शबाना की गाँड के नीचे से उसकी चूत पर पहुँचने की कोशिश कर रहा था। शबाना ने चारों तरफ़ देखकर एक बार फिर पक्का कर लिया कि सब सो रहे हैं। फिर उसने अपना मुँह पीछे किया और उस आदमी के कान में कहा “बाजू की सीट खाली है क्या?”



“नहीं मेरा छोटा भाई सो रहा है!” कहानी की मूल शीर्षक: प्यासी शाबाना!



“क्या उम्र है?”



“दस साल!”



“उसे उठाकर मेरी सीट पर बिठा दो!” शराब के नशे में शबाना की हिम्मत कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी थी। वो आदमी भी एक दम सन्न रह गया, लेकिन उसने शबाना की बात मान ली। वो तो अपनी किस्मत पर फूला नहीं समा रहा था। शबाना धीरे से खड़ी हो गयी और उस आदमी ने अपने सोये हुए भाई को शबाना की सीट पर बिठा दिया।



शबाना के बुऱके के अंदर सिर्फ़ ब्लाऊज़ था, वो भी खुला हुआ। फिर शबाना सीट से उतरकर नीचे घुटने मोड़कर बैठ गयी और उस आदमी ने अपने बेटे को उठाया और सीट के ऊपर से ही शबाना की सीट पर बिठा दिया। शबाना नीचे बैठी हुई थी क्योंकि खड़े होकर वो औरों की नज़र में नहीं आना चाहती थी। बैठे-बैठे वो उस आदमी के पैरों के बीच से निकल कर खिड़की वाली सीट की तरफ़ खिसक रही थी। जब वो उस आदमी के पैरों के बीच पहुँची तो उस शख्स ने उसके कंधों को पकड़ कर उसे अपने घुटनों के बीच बिठा लिया। शबाना समझ गयी उसे क्या करना है... वो भी यही चाहती थी।



उस आदमी ने अपनी चादर से शबाना को ढक लिया जिससे किसी को कुछ पता नहीं चले कि अंदर कोई बैठा है। शबाना ने उस शख्स की पैंट के बटन और ज़िप खोलकर अंदर हाथ डाला और उसके लण्ड को बाहर खींच लिया। लण्ड एक दम तना हुआ था और काफी देर से खड़ा होने की वजह से अपने ही पानी से भीगा हुआ था। उसकी महक शबाना को मदहोश कर रही थी। उसने लण्ड को अच्छी तरह से सूँघा... उसे चूमा... अपने गालों पर और नाक पर मसल कर उसका पूरा मज़ा लिया। उसकी चमड़ी को आगे पीछे करके उसके सुपाड़े का पूरा मज़ा लिया। फिर अपने होंठों पर फिराते हुए धीरे-धीरे प्यार से अपने मुँह में ले लिया। अब उसकी जीभ अपना काम करने लगी और लण्ड के रस को निचोड़ने की कोशिश में लग गयी। शबाना तो बस उस लण्ड को खा जाना चाहती थी।



वो आदमी भी शबाना के गालों पर हाथ फिरा रहा था और लण्ड को उसके मुँह में ढकेल रहा था। उसने अपने पैर के अंगूठे को शबाना की चूत तक पहुँचा दिया और उसकी चूत में अपने अंगूठे को ऊपर नीचे फिरा कर शबाना की चूत की मालिश करने लगा। शबाना की चूत से पानी रिस रहा था - बूँद-बूँद... धीरे-धीरे! फिर उसने शबाना को उठाकर अपनी बाँयी जाँघ पर बिठा लिया। शबाना का बुरक़ा पहले ही गाँड के ऊपर तक उठा हुआ था, इसलिये उसकी नंगी गाँड उस शख्स की जाँघ पर टिकी थी। शबाना ने अब पहली बार उसका उस आदमी का चेहरा देखा तो अंदाज़ा लगाया कि उसकी उम्र मुश्किल से बीस-बाईस ही साल होगी। किसी कॉलेज का स्टूडेंट जैसा लग रहा था वो।



उस शख्स ने अब शबाना की जाँघ के बीच में अपना हाथ घुसा दिया और उसकी चूत में अपनी उंगली घुसा दी। वो अपनी उंगली से शबाना की चूत की अंदर तक मालिश कर रहा था। उसकी उंगली एक लय में शबाना की चूत में घुसती और थिरकते हुए बाहर आ जाती। शबाना की चूत में जैसे मछलियाँ तैर रही थीं। शबाना ने अपना सिर उस आदमी के कंधे पर रख दिया और अपनी जाँघें और फैला दी। उसकी प्यासी चूत को मज़ा आ रहा था और उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी। उसे पता था इस चूत की प्यास अब लण्ड से छूटा हुआ पानी ही बुझा सकता है, लेकिन इस प्यास को जितना लम्बा खींचो उतना ही मज़ा देती है ये... और मज़ा तो तब और भी दुगुना हो जाता है, जब लण्ड पास ही हो और लण्ड वाला मर्द चूत से खिलवाड़ कर रहा हो।



तभी वो शख्स झटके से उठा और नीचे बैठ गया। अब शबाना सीट पर बैठी थी और वो शख्स नीचे बैठा था। अब चादर संभालने की बारी शबाना की थी। उसे पता था उसकी चूत का रस पीया जाने वाला है। उसने अपनी गाँड आगे की तरफ़ सरका कर सीट के कोने पर पहुँचा दी ताकि उसकी नरम मुलायम गुलाबी चूत तक पहुँचने में उस शख्स की जीभ को आसानी हो और उसकी चूत के अंदर तक घुसकर उसे पूरी तरह से मस्त कर दे वो लपलपाती हुई जीभ। उस आदमी ने शबाना की जाँघों को फैला कर उसकी चूत की दोनों फ़ाँखों को अपने अंगूठे से फैला दिया। शबाना भी अपना एक पैर उस आदमी की टाँगों के बीच में ले जाकर उसके लण्ड को अपने ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल के तलवे से सहलाती तो कभी सैंडल के पंजे से दबाती। शबाना को अपनी चूत के अंदर गहरायी तक जीभ के जाने का एहसास हो रहा था। उसकी गाँड अपने आप हिलने लगी। उस शख्स ने अपनी एक उंगली उसकी चूत में ढकेल दी और उस उंगली के ऊपर से ही उसकी चूत को अपने दोनों होंठों के बीच दबा लिया और शबाना को तो जैसे जन्नत नसीब हो गयी। उसकी चूत में उंगली और जीभ में जैसे होड़ लगी हुई थी और वो दोनों एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहे थीं। अचानक शबाना की कमर ऐंठने लगी और वो बिल्कुल अकड़ गयी। उसकी गाँड सीट से एक-दो सेकेंड के लिये हवा में उछली और उस शख्स के मुँह पर रस की बौछार कर दी।



अब वो आदमी उठा और शबाना के बगल में खिड़की वाली सीट पर बैठ गया। उसने शबाना का हाथ पकड़ा और अपने लण्ड पर रख दिया। शबाना अब भी बाँये हाथ से पतली सी चादर को पकड़े हुए थी। उसकी चूत में लण्ड नहीं जाने की वजह से वो अब भी मदमस्त थी और उसकी प्यास अब भी जवान थी। उसने लण्ड को अपनी हथेली में दबाते हुए थोड़ा संयत होने की नाकाम कोशिश की और फिर वो खुद अपनी उंगली चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी। वो आदमी समझ गया कि अब चूत में लण्ड घुसाना ज़रूरी है। उसने अपनी पैंट उतार दी और सीट के बीच में बने हत्थे को ऊँचा कर दिया और बीच में बैठ गया। फिर उसने शबाना को कमर से उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया और उसे एक दम आगे झुका दिया। अब उस आदमी की टाँगें शबाना की फैली टाँगों के बीच में थीं, और उसका लण्ड शबाना की गाँड पर लग रहा था। शबाना के लिये और आगे झुकना मुश्किल था। तभी उसने शबाना की गाँड के नीचे हाथ डाला और उसे उठा लिया, और अपना लण्ड उसी हाथ के अंगूठे से शबाना के नीचे सरका दिया। शबाना भी समझ गयी वो क्या करना चाहता है। शबाना ने भी अपना हाथ नीचे डाला और उसके लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत पर टिका लिया और फिर सही पोज़िशन में आकर लण्ड पर बैठ गयी। लण्ड उसकी भीगी हुई चूत में अंदर तक फिसलता चला गया। लेकिन अब मुश्किल ये थी कि धक्के लगायें कैसे। शबाना भी ऊफर-नीचे उछल नहीं सकती थी क्योंकि उस आदमी की गोद में बैठने की वजह से शबाना के पैर भी ज़मीन पर ठीक से नहीं पहुँच रहे थे। उसकी सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ हवा में उठी थीं, बस पंजे ही बस के फर्श पर टिके थे। एक दम प्यासी चूत में लण्ड तो घुस गया था, लेकिन बिना धक्कों के वो लण्ड सिर्फ़ एक लकड़ी का टुकड़ा था - ऐसा ही जैसे गरम पानी करने के लिये हीटर की रॉड को तो पानी में डाल दिया, मगर बिजली चली गयी।



फिर उस आदमी ने पतली सी चादर के एक कोने को आगे वाली सीट के हेड-रेस्ट से बाँध दिया और दूसरे सिरे को अपनी सीट के पीछे हेड-रेस्ट से। अब वो जैसे कोई अलग केबिन बन गया था... जैसे ट्रेन के सेकेंड क्लास कम्पार्ट्मेंट में होता है। फिर उसने शबाना को एक तरफ टेढ़ा कर दिया। अब शबाना का मुँह आगे वाली सीट की तरफ़ नहीं बगल वाली खिड़की की तरफ़ था। चूत में लण्ड घुसा हुआ था और आगे कुछ पकड़ने के लिये नहीं था, तो शबाना के हाथ सीधे नीचे बस के फ़र्श पर छूने लगे। उस आदमी ने अब उठकर अपनी सीट और शबाना की सीट को ऊँचा कर दिया और अब शबाना बिल्कुल कुत्तिया की तरह झुकी हुई थी और उसकी चूत में लण्ड घुसा हुआ था। उस शख्स ने फिर बिना देर किये ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये और शबाना ने अपने होंठों को दाँतों से दबा लिया। बड़ी मुश्किल हो रही थी उसे अपनी सिसकारियाँ रोकने में। फिर उसकी टाँगें फैलने लगीं और उसकी चूत पर पड़ने वाले हर धक्के के साथ उसकी चूत उसका साथ छोड़कर लण्ड के साथ मिलने लगी। उसकी चूत लण्ड को कसकर पकड़ रही थी और जब भी उसकी गाँड पर उस शख्स का जिस्म टकराता तो उसके पेट में हलचल मच जाती। उसकी कमर को पकड़े हुए वो शख्स उसे किसी बच्चे की तरह आगे पीछे झुला रहा था, और अपने लण्ड पर स्लाइड करवा रहा था। उसकी चूत जैसे किसी फिसलपट्टी पर फिसल कर नीचे आती और उसी रफ्तार से फिर ऊपर चढ़ जाती। उसकी बंद आँखों के सामने जैसे तेज़ रोश्नी-सी चमकी और उसकी चूत से रस का परनाला बहने लगा और वो एक दम से निढाल होकर बस के फ़र्श पर झुक गयी। लण्ड उसकी चूत को शाँत कर चुका था। लण्ड और चूत से निकलकर एक हो चुका रस उसकी जाँघों से होते हुए उसके घुटनों तक पहुँच रहा था। लण्ड अब भी उसकी चूत में था। फिर उस शख्स ने उसकी चूत से अपना लण्ड निकाला और सीट पर बैठ गया। शबाना थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रही। उसका बुऱका कमर के ऊपर तक उठा हुआ था और कमर के नीचे उसका नंगा जिस्म बुऱके से बाहर थ। फिर वो भी उठकर उस शख्स की बगल में खिड़की वाली सीट पर बैठ गयी। उस आदमी के पैंट के बटन और ज़िप बंद करने से पहले ही उसके अंडरवीयर में शबाना ने अपना हाथ घुसाया और उसका लण्ड बाहर निकाल लिया। फिर झुककर उसे खूब चूमा, चाटा और साफ़ किया। फिर उसने अपना बुऱका ठीक किया और खिड़की पर सर रख कर सो गयी। गहरी और ज़बरदस्त चुदाई के बाद, बहुत ही शानदार नींद आयी थी उसे।



“शबाना! उठो शबाना!” सुनकर चौंक गयी शबाना। उसने आँखें खोली तो परवेज़ उठा रहा था उसे। “चलो स्टॉप आ गया!” अब शबाना को थोड़ा होश आया। उसका स्टॉप आ गया था और परवेज़ उसे ही उठा रहा था। उसने बगल में देखा तो कोई नहीं था। शायद वो आदमी उसे छोड़कर अपने स्टॉप पर पहले ही उतार गया था।



“कुछ भी कहो कमाल का रहा ये सफ़र!” शबाना बुदबुदायी। कहानी की मूल शीर्षक: प्यासी शाबाना!



“क्या?”



“कुछ नहीं… मैंने कहा… कमाल की नींद आयी रात में!” शबाना ने बात को संभाला। बुऱके के नीचे बिल्कुल ही नंगी थी वो और पैरों तक उसकी टाँगें और जाँघें चिपचिपा रही थीं। उसका खुला हुआ ब्लाउज़ भी नदारद था जो या तो बस में ही कहीं सीट के नीचे गिर गया था या हो सकता है वो शख्स ही यादगार के लिये ले गया हो।



बस से उतरकर दोनों सीधे घर आ गये। परवेज़ को काम पर जाना था इसलिये वो उसे घर छोड़कर तुरंत निकाल गया। शबाना तो रात की बस वाली चुदाई के बारे में ही सोच रही थी। उस शख्स का नाम पता कुछ नहीं मालूम था लेकिन चूत उसे ही याद कर रही थी। अब तो गाँड भी उस लण्ड को खाने के लिये लालयित हो रही थी। तभी शबाना का ध्यान अपने बुऱके में बंधी हुई गाँठ पर गया। उसने उस गाँठ को खोला - उसमें फोन नम्बर लिखा हुआ था और नाम कि जगह ‘बस का साथी...’



शबाना के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी और उसकी आँखों में चमक आ गयी। वो जानती थी उसे क्या करना है। वो जानती थी, अब उसकी गाँड की प्यास भी बुझ जायेगी। शबाना की चूत किसी लण्ड को खाये और गाँड उसे छोड़ दे... ऐसा होना मुश्किल था। वो भी ऐसा लण्ड जिसने उसकी प्यासी चूत को किसी बियाबान रेगिस्तान में पानी पिलाया हो!!



!!!! समाप्त !!!!
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mini

Re: प्यासी शबाना 2nd

Post by mini »

is kahani ko aage badha sakte ho kya
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