बैंक की कार्यवाही compleet

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jay
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Re: बैंक की कार्यवाही मजे लेकर आई

Post by jay »

ये लो, फोन पर फोन आ रहे हैं और साहबजादे अभी तक तैयार ही नहीं हुए हैं, जल्दी से तैयार हो जा, नहीं तो ऐसे ही भेज दूंगी, कच्छे कच्छे में ही, भाभी कमरे में आते ही शुरू हो गई।
आज मेरी शादी है। पिछले दो साल से मैं शादी को टालता आ रहा था। परन्तु आखिर मुझे सबके सामने झुकना ही पड़ा और शादी के लिए हां करनी पड़ी। घर में चारों तरफ खुशियों का माहौल है। परन्तु मेरे मन में शादी की वो खुशी नहीं है।
जयपुर से दो बार फोन आ चुका है जल्दी रवाना होने के लिए। आखिरकार 9 बजे बारात जयपुर के लिए रवाना हो गई। शाम को 4 बजे जयपुर पहुंचे। किसी पॉलेस की जगह सारा प्रोग्राम घर पर ही किया गया था। जब अपूर्वा फेरों के लिए आई तो मैं तो बस उसे देखता ही रह गया। मासाल्लाह, क्या लग रही थी, एकदम अप्सरा। उसके बाईं तरफ नवरीत और दाईं तरफ प्रीत उसे पकड़ कर ला रही थी। मेरी और अपूर्वा की नजरें मिली तो मैंने उसे आंखों से इशारा किया कि एकदम परी लग रही हो। पहले तो वो कुछ समझी नहीं, परन्तु जैसे ही उसके समझ आया, एकदम से शरमा गई और चेहरा नीचे कर लिया।
मैंने नवरीत की तरफ आंख दबा दी तो वो हंसने लगी। फेरों के बाद विदाई की रस्म हुई। वापिसी के लिये निकलते निकलते 1 बज गया था। जयपुर से बाहर निकलते ही अपूर्वा ने मेरे कंधे पर सिर टिका दिया और सो गई। सुबह 8 बजे घर पहुंचे। आंखों में नींद भरी हुई थी और शरीर भी दर्द कर रहा था और उपर से इतनी सारी रस्में, शाम के चार बजे तक यही सब चलता रहा। फ्री होते ही मैं जाकर सो गया। बेचारी अपूर्वा, लेडिजों से घिरी हुई, फंसी रही। मैंने निकालना भी चाहा उसे, परन्तु भाभियों ने मुझे झिडक दिया। अब भाभियों के सामने कहां मेरी चलने वाली थी। जब बात नहीं बनी तो मैं आकर सो गया।
फोन की रिंग से आंख खुली। उठाकर देखा तो नवरीत की कॉल थी। मैंने कॉल उठाकर हैल्लो कहा।
हाय, जीजू, उधर से आवाज आई।
क्या हाल-चाल हैं, साली साहिबा के, मैंने उंघते हुए कहा।
उंघ क्यों रहे हो, सो रहे थे क्या? नवरीत ने पूछा।
हां, नींद आ रही थी तो सो गया था, अभी तुम्हारे फोन ने ही उठाया है, मैंने कहा।
सोनल को होश आ गया है, नवरीत ने कहा। उसकी बात सुनते ही मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। खुशी की वजह से मैं कुछ बोलना ही भूल गया। आंखें नम हो गई।
‘मैं आ रहा हूं, मैं अभी आ रहा हूं’, मैंने कहा। मैं उससे बात करता हुआ बाहर आ गया। अपूर्वा अभी भी मेरी बहनों और भाभियों से घिरी हुई थी।
मैं उन सबके बीच में गया और अपूर्वा के कान में सोनल के बारे में बताया। अपूर्वा एकदम से खड़ी हो गई। सभी हमें घूर कर देखने लगे। मैंने उसे फोन दे दिया। उसने नवरीत से बातें की।
अभी निकल रहे हैं, जल्दी से कपड़े चेंज कर लो, मैंने अपूर्वा से कहा और मम्मी को बता दिया कि सोनल को होश आ गया है और हम अभी जा रहे हैं।
मम्मी ने थोड़ी बहुत आनाकानी की कि सुबह चले जाना। परन्तु मैंने उन्हें मनाया। तब तक अपूर्वा भी चेंज कर चुकी थी। मम्मी ने छूटकू को भी हमारे साथ भेज दिया।
रस्ते में मैंने फिर से नवरीत का नम्बर मिलाया। सोनल को दोपहर को ही होश आ गया था। डॉक्टर्स ने अभी उसे ऑब्जर्वेशन के लिए रखा हुआ था। वो सभी हॉस्पिटल में ही थे। प्रीत से बात की तो उसकी आवाज भावुक थी। जो बोलते बोलते रूंध जाती थी। रात के दो बजे हम जयपुर पहुंचे। हम सीधे हॉस्पिटल ही गये।
नवरीत के पापा, नवरीत और प्रीत वहीं पर थे। आंटी घर चली गई थी। सबसे दुआ-सलाम की, सोनल सो रही थी। अंकल ने बताया कि अभी कुछ देर पहले ही सोई है, इतने दिनों से लेटी हुई थी तो शरीर एकदम से काम नहीं कर रहा है, डॉक्टर्स ने कहा है दो-चार दिन में नोर्मल हो जायेगी।
जिस कारण से हम तुरंत घर से भागे थे, वो तो कुछ फायदा ही नहीं हुआ। हमारे लिए तो वो अभी भी कोमा में ही लग रही थी। कुछ देर उधर बैठे, फिर अंकल ने जबरदस्ती हमें घर भेज दिया। नवरीत भी हमारे साथ ही आ गई।
अचानक हमें देखकर अंकल-आंटी चौंक गये। शायद उन्हें हमारे आने के बारे में नहीं बताया गया था। अपूर्वा का रूम गिफ्रट और दूसरे सामानों से भरा हुआ था। इसलिए हम उसी रूम में सोये जिस रूम में पहली बार दो साल पहले हम इक्कठे सोये थे, जब सोनल, कोमल, नवरीत और मैं सभी अपूर्वा के घर पर ही सोये थे।
अब सोया तो क्या जा सकता था, चार बजे तो घर ही पहुंचे थे। मैं बेड से कमर लगाकर बैठ गया। अपूर्वा ने मेरे साथ बैठकर मेरे कंधे पर सिर रख दिया। पांच बजे का अलार्म बजते ही मैं उठ गया। अपूर्वा की आंख नहीं खुली।
उठकर मैं बाथरूम गया और फ्रेश होकर अपूर्वा को उठाया। वो भी जल्दी से फ्रेश हुई और छः बजे हम हॉस्पिटल के लिए निकले। अभी हमने गाड़ी गेट से बाहर ही निकाली थी कि पिछे से नवरीत आवाज लगाती हुई भागती हुई आई।
मुझे कहां छोड़कर जा रहे हो, नवरीत ने खिड़की खोलकर अंदर घुसते हुए कहा।
अरे, छूटकू के साथ आ जाती ना तुम, वो बेचारा अकेला रह जायेगा, मैंने कहा।
रह जायेगा तो रह जायेगा, उठा क्यों नहीं, मैं आपके साथ ही चलूंगी, नवरीत ने कहा।

सोनल अभी सो रही थी। हम जाकर अंकल के पास बैठ गये। अंकल उठ चुके थे। प्रीत भी अभी सो रही थी। मैंने अपूर्वा को वहीं पर बैठाया और चाय लेने आ गया।
जब मैं चाय लेकर वापिस आया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सोनल उठ चुकी थी। अपूर्वा उसके पास बैठी बातें कर रही थी। मुझे देखते ही सोनल एकदम से उठकर खडी हो गई। मैंने चाय वहीं टेबल पर रखी और सोनल को बाहों में भर लिया। वो मेरी बांहों में सिमट गई। दोनों की आंखों से आंसु बह रहे थे। कितनी ही देर तक हम बांहों में समाये हुए एक दूसरे को महसूस करते रहे।
जब आंसुओं का सैलाब रूक चुका था तो सोनल ने अपनी बांहें खोली और अपूर्वा को भी अपनी बाहों में भर लिया।
‘मुझे बहुत अफसोस है, मैं अपने हाथों से अपूर्वा को शादी का जोड़ा नहीं पहना सकी’, सोनल ने कहा। एकबार फिर से आंसुओं का सैलाब बह निकला और मैंने सोनल को कसके बाहों में जकड़ लिया।
कितना इंतजार किया तुम्हारा, मैंने तो सबको कह दिया था कि तुम्हारे बिना शादी नहीं होगी, पर तुमने तो जैसे कसम ही खा ली थी कि शादी होने के बाद ही जागूंगी, कहते हुए मैंने सोनल को खुद से अलग किया और उसके चेहरे को हाथों में भर लिया। सोनल कुछ देर तक मेरे चेहरे को निहारती रही और फिर से मेरी बांहों में सिमट गई। अपूर्वा उसके बालों में हाथ फिरा रही थी।


‘पापा, अपूर्वा की तो कोई भी मम्मी, मेरी दूसरी मम्मी जितनी दूर नहीं रहती’ जिज्ञासा ने मेरी मूंछों से खेलते हुए कहा।

किस अपूर्वा की बात कर रही हो बेटा, मैंने आश्चर्य से पूछा।
‘धत तेरे की’, जिज्ञासा ने अपने माथे पर हाथ मारा। ‘आपको मैंने बताया ही नहीं उसके बारे में, वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है, मेरी ही क्लास में पढ़ती है, हम दोनों है ना साथ-साथ ही बैठते हैं’, जिज्ञासा ने मासूमियत के साथ कहा।
बेटा, सबकी दो मम्मीयां नहीं होती, वो तो किसी किसी ही होती हैं, कहते हुए मेरी आंखें नम हो गई।
बेटा, चलो अब सो जाओ, नहीं तो सुबह फिर लेट उठोगी, सोनल ने जिज्ञासा को खींचकर अपनी बांहों में भर लिया और अपने उपर लेटा लिया।
प्यारी-सी नन्ही-सी जिज्ञासा बहुत ही नटखट और चुलबुली है, हमेशा शरारतें करती रहती है। सोनल ने उसके लिए अपनी खुशी को कुर्बान कर दिया और खुद के बच्चे को जन्म देने से मना कर दिया। मेरे बहुत समझाने पर भी वो नहीं मानी। हमेशा यही कहकर मुझे चुप कर देती कि हो सकता है मेरे बच्चे होने पर मैं जिज्ञासा को उतना प्यार नहीं दे पाउं, उसे उसका पूरा हक नहीं दे पाउं।
आज अपूर्वा की मौत के दो साल बाद उसकी बरसी पर हम जयपुर आये हैं। अपूर्वा की मृत्यु के बाद से ही आंटी बिमार रहने लगी थी और अब उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया है, डॉक्टर्स ने भी हाथ खड़े कर दिये हैं, सभी तरह के टैस्ट होने के बाद भी किसी बिमारी का पता नहीं चल पाया।
‘बेटा, सारे काम तो निपट गये, अब और ज्यादा जीकर करना भी क्या है, मुझे तो बस इसी बात की खुशी है कि मेरी बच्ची को सोनल जैसी मां मिल गई, नहीं तो उसी की चिंता लगी रहती थी’, जब भी मैं आंटी से बात करता हूं, तो उनका यहीं जवाब होता है। ‘अपूर्वा भी बहुत खुश होगी ये देखकर कि सोनल ने एकबार फिर से तुम्हें संभाल लिया है’ आंटी ने कहा और सोनल का हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और उसको दुलारने लगी। जिज्ञासा मेरे से हाथ छुड़ाकर नानी की के बेड पर चढ़कर नानी के गालों पर किस्सी करने लगी।
जिज्ञासा को जन्म देने के 7 महीने बाद ही अपूर्वा हमें अकेला छोड़कर चली गई थी। डॉक्टर्स ने बताया था कि उसे कोई बात अंदर ही अंदर खाये जा रही है, जिस कारण से वो बिस्तर पकड़ रही है। धीरे धीरे उसने बिस्तर पर से उठना ही बंद कर दिया।
‘मैं सोनल से उसका हक नहीं छीन सकती, तुम्हारे उपर असली हक सोनल का है’, जाते-जाते उसने कहा था और सोनल से वादा लिया था कि वो जिज्ञासा और समीर को संभाल लेगी। मैंने और सोनल ने उससे बहुत मिन्नतें की थी, परन्तु उसने किसी की परवाह नहीं की, किसी की बात नहीं मानी और हमें अकेला छोड़कर चली गई।



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Re: बैंक की कार्यवाही compleet

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puani padhi hui hai
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Re: बैंक की कार्यवाही compleet

Post by jay »

mini ji kuch nai kuch puraani yahi to sangam hai he he he he he
mini wrote:puani padhi hui hai
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Re: बैंक की कार्यवाही compleet

Post by Ravi »

mst story yaar
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Re: बैंक की कार्यवाही compleet

Post by jay »

Ravi wrote:mst story yaar

thnx Dear
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