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मित्रो आरएसएस अब किसी नाम का मोहताज नही है इस पर एक से बढ़ कर एक लेखक हैं और सभी की कहानियाँ भी अनमोल नगीने हैं जिन्हे पढ़ कर हम सभी रीडर्स एंजाय करते हैं .
दोस्तो मैं भी एक कहानी स्टार्ट कर रहा हूँ आप सब के सहयोग का मुन्तिजर रहूँगा
शांत माहोल इतना भयावक की डर ही लग जाये,मानसून की हलकी फुहारे,भीगे हुए लोगो की भीड़ और भीगे हुए नयन,शमसान की सी शांति में कुछ सिसकते बच्चे और बिच में पड़ी हुई दो लाशे,ये वीर ठाकुर और उनकी पत्नी की लाश थी जो एक सडक हादसे का शिकार हो गये थे,वीर ठाकुर पुरे इलाके के सबसे ताकतवर और रुशुखदार व्यति थे,आज पूरा गाव अपने देवता के लिए आंसू बहा रहा था..लेकिन एक शख्स वहा मोजूद नहि था,बाली ठाकर,वीर ठाकुर का छोटा भाई,वीर और बाली की जोड़ी की मिशाले दी जाती थी,दोनों भाइयो कि सांडो सी ताकत वीर का तेज दिमाग और दयालुता न्याय प्रियता और बाली का भाई के लिए कुछ भी कर गुजरने का जूनून इन दोनों को खास बनाता था,
इनके माँ बाप की जमीदार तिवारीओ से खानदानी दुश्मनी थी तिवारीयो ने उन्हें मरवा दिया,लेकिन बिन माँ बाप भी ये बच्चे शेरो जैसे बड़े हुए और जमीदारो के समानातर अपना वजूद खड़ा कर दिया...आज उनका सिक्का पुरे इलाके में चलता था,
वीर की शादी तिवारीयो के परिवार में हुआ था एक बड़े ही तामझाम के साथ और खून की नदियों की बाड में उनकी शादी हुई थी..सुलेखा रामचंद्र तिवारी की बेटी थी,दोनों में प्यार पनपा और वीर ने शादी के मंडप से ही सुलेखा को उठा लिया,इस बात पर खूब खून खराबा हुआ जिसका नतीजा हुआ सुलेखा के सबसे छोटे भाई वीरेंदर की मौत, आखिर कार मुख्यमंत्री के बीच बचाव और रामचंद्र की समझदारी से मामला शांत हो गया,समय के साथ मामला तो शांत हो गया पर दुश्मनी बरकरार रही...बाली लंगोट का कच्चा था जिसका सहारा लेकर तिवारियो अपने गाव की ही चंपा को बाली से जिस्मानी सम्बन्ध बनवाया और आखीर चंपा बाली के बच्चे की माँ बन गयी और उसके माँ बाप ने वीर के आगे गुहार लगायी आखीरकार मजबूरन वीर ने अपने वसूलो का सम्मान करते हुए बाली की शादी चंपा से करा दिया,चंपा ने आते ही अपना रंग दिखाना सुरु किया और बाली को घर से अलग होने के लिए मजबूर करने लगी,बाली ने उसे मारा पिटा और प्यार से समझाने की कोसिस की पर सब बेकार बाली मजबूर था की उसके भाई की इज्जत का सवाल था वरना उसे कव का मर के फेक दिया होता,
वीर ने बाली को परेसान देख उसे अपने से ही लगा हुआ अलग घर बनवा दे दिया और चंपा से वादा किया की वो और बाली अलग अलग काम करेंगे...इस फिसले से किसी को कोई फर्क ना पड़ा क्योकि सभी जानते थे बाली और वीर अलग दिखे पर अलग नहीं हो सकते....
वीर और सुलेखा के 4 बच्चे थे जो इनके प्यार की निसानी थे सबसे बड़ा था अजय फिर सोनल और विजय जुड़वाँ थे फिर निधि ,बाली और चंपा के 2 बच्चे थे पहला उनकी हवास की निशानी किशन और दूसरी मजबूरी की निशानी रानी...तो क्रम कुछ ऐसा था की=अजय फिर 2 साल छोटे सोनल विजय फिर एक साल बाद किशन फिर एक साल बाद रानी फिर 2 साल बाद निधि...
अजय में पूरी तरह से वीर के गुण थे अपने भाई बहनों पे अपनी जान छिडकता था वही विजय और किशन बाली जैसे थे अपने भाई की हर बात को सर आँखों पर रखते थे,विजय तो पूरा ही बाली जैसा था अपने चाचा की तरह ही भाई भक्त और ऐयाश और बलशाली...
इस सन्नाटे में ये सब बच्चे ही थे किनके सिसकियो की आवाजे आ रही थी,बाली बदहवास सा आया और अपने भाई भाभी की लाश देख मुर्दों सा वही बैठ गया जैसे उसे समझ ही ना आ रहा हो क्या हो गया,अचानक से ही किशन और रानी अपने पापा को देख रो पड़े और बाली की और दौड़ पड़े की चंपा ने उन्हें पकड़ लिया और खीचते हुए ले जाने लगी,"अरे इतने काम पड़ा है घर का तुम लोग यहाँ तमाशा लगा रहे हो जो मर गया वो मर गया अब चलो यहाँ से "
चंपा के ये बोल बाली को जैसे जगा गए उसकी आँखों में अंगारे थे,वो गरजा जैसे शेर को गुस्सा आ गया हो सारा गाव बार डर से कपने लगा,"मदेरचोद तेरे ही कारन मैं अपने भाई भईया से अलग रहा ,मेरे भाई ने तुझ जैसी दो कौड़ी की लड़की को इस घर की बहु बना दिया नहीं तो तुझ जैसी के ऊपर तो मैं थूकता भी नहीं,तेरे कारन मैं अपने भातिजो से नहीं मिल पता आज तक तुझे मेरे भाई ने बचाया था देखता हु आज तुझे मुझसे कोन बचाता है," बाली ने पास पड़ी कुल्हाड़ी उठाई,और चंपा की तरफ दौड़ गया,उसको रोकने की हिम्मत तो किसी में नहीं थी...उसने पुरे ताकत से वार किया.लेकिन ये क्या,,एक हाथ कुल्हाड़ी की धार को पकड़ के रोके है बाली ने जैसे ही उस शख्स को देखा उसका गुस्सा जाता रहा,वो अजय था,
बाली को उसकी आँखों में वही धैर्य वही तेज दिखा जैसा उसे वीर की आँखों में दिखता था,आज अचानक ही जैसे अजय जवान हो गया हो,
'चाचा,चाची मेरा परिवार है,मेरे भाई बहन मेरे परिवार है ,इनपे कोई भी हाथ नहीं उठा सकता ,आप भी नहीं ,अब मेरे पापा के जाने के बाद मैं इनकी जिम्मेदारी लेता हु 'अजय का इतना बोलना था की बाली उसके पैरो को पकड कर रोने लगा,
'मेरे भईया ,मेरे भईया वापस आ गए ....'सारे गाव के आँखों में चमक आ गयी सभी बच्चे दौड़ते हुए अजय से लिपट कर रोने लगे चंपा स्तब्ध सी अपने जगह पर खड़ी थी ,उसने मौत को इतने करीब से छूकर जाते देखा की उसकी रूह अब भी काप रही थी ,और अजय ,अजय एक शून्य आकाश में देखता लाल आँखों से अब आंसू सुख चुके थे ,मन बिक्लुत शांत था और चहरे पर दृढ़ता के भाव उसके द्वारा ली जिम्मेदारी का अभाश दिला रहे थे ,.....
वक़्त को गुजरते देर नहीं लगी अजय अब *** का हो चला था ,उनका पालन पोषण उनकी माँ समान सीता मौसी ने किया बच्चो और पति से चंपा की दूरी बरकरार थी पर वो किसी से कुछ नही कहा करती ,उसने अजय से माफ़ी मांगने की कोसिस की पर हिम्मत ही नही जुटा पाई,बाली और अजय ने पूरा काम मिला लिया था ,पर अजय बाली को कुछ करने नहीं देता बस सलाह लेता था ,घर का कोई लड़का पढ़ नहीं पाया इसलिए अजय अपनी बहनों को ही पढ़ना चाहता था ,सोनल और रानी को उसने कॉलेज की पढाई के लिए बड़े शहर भेज दिया था ,वहा एक घर भी खरीद दिया था ताकि उन्हें कोई भी तकलीफे ना हो ,और एक काम करने वाली भी साथ में भेजी गयी थी ,वही निधि अभी स्कूल में थी ,निधि अजय के सबसे करीब थी ,अजय के साथ ही सोना ,खाना यहाँ तक की नहाना तक अजय के साथ ही करने की जिद करती थी,अजय की वो जान थी इसलिए सबसे जिद्दी और नकचड़ी भी थी ,शरीर तो जवान हो चूका था पर उसका बचपना अभी भी बाकि था ,और वही अजय को भी पसंद था ,सभी भाई बहन उसे बहुत जादा चाहते थे और पूरे घर की लाडली निधि ने अजय से शहर जाने से साफ इंकार कर दिया ,वो अजय को किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहती थी ,इसलिये अजय ने रूलिंग पार्टी को फंड देकर अपने गाव में ही कॉलेज खुलवाने का फैसला किया ,पर सरकार तिवारियो के भी दबाव में थी इसलिए फैसला हुआ की कॉलेज दोनों गांवो में ना खोलकर पास के कस्बे में खोला जाय....विजय और किशन दोनों बिलकुल देहाती और एयियाश हो चले थे पुरे के पुरे बाली पर गए थे ,पर किशन बाकि दोनों भाइयो की अपेक्षा थोडा कमजोर था,और अपने माँ के थोडा करीब भी था ,पर दोनों अजय के भक्त थे जो अजय कहे बिना सोचे करना ही उनका काम था ,चाहे किसी को मारना हो या मार ही देना हो ,
इधर तिवारियो का मुखिया रामचन्द्र अभी भी जिन्दा था पर कभी अपने नाती नातिन की सकल भी देखने नहीं गया ,गजेन्द्र उसका बड़ा बेटा था जिसने उसके पुरे कारोबार को सम्हाल लिया था ,गजेन्द्र के दो बच्चे थे और और उसके छोटे भाई महेंद्र के तीन इंट्रो बाद में होगा सबका ,गजेन्द्र अपने भाई अविनाश की मौत का बदला लेबा चाहता था और ठाकुरों को पुर्री तरह तबाह कर देना चाहता था ,जिसने उनकी छोटी बहन और भाई को छीन लिया ,पर रामचंद की सोच ऐसी नहीं थी इसलिए दोनों में जादा बनती नहीं थी ,
कहानी शुरू करते है आम के बगीचे से ,ये आम का बगीचा ठाकुरों का था और एक बड़े इलाके में फैला हुआ था ,और उनके खेतो से लगा हुआ था ,सुखी पत्तियों पर किसी के दौड़ाने की आवाजे और साथ में घुंघरू की आवाजे उस शांत माहोल में दूर तक फ़ैल रही थी ,वही किसी लड़की के जोर से हसने की आवाजे आई और ,
'हाय से दयिया ,ठाकुर जी आज इतने बेताब काहे है ,'रेणुका ने एक पेड़ पर खुदको छुपाते हुए कहा ,
'आजा मेरी रानी कल रात को भी तेरी माँ उठ गयी थी साला अब सबर नहीं होता ,'विजय ने दौड़ के उसे पकड़ने की कोसिस की पर ना कामियाब रहा ,
'अब कोई दूसरी ढून्ढ लो ,आज मुझे देखने लड़के वाले आ रहे है ,मेरी शादी हो गयी फिर क्या करोगे ,और इतना खोल दिया है आपने अपने पति को क्या दूंगी ,'विजय ने उसे पीछे से दबोच ही लिया ,और उसके चोली को फेक कर उसके उजोरो को मसालने लगा ,रेणुका भी मतवाली हो गयी वो विजय के ही हम उम्र थी और उस सांड को अपने चौदहवे सावन से झेल रही थी,विजय के सम्बन्ध ऐसे तो कई लडकियों से थे पर रेणुका उसकी खास थी ,और घर में काम करने वाले नौकर की बेटी थी ,
'अरे मेरी जान तू चली जाएगी तो मेरा क्या होगा ,तू ही तो है जो मुझे सही तरीके से झेल लेती है,'विजय अब अपने हाथ से घाघरे का नाडा खोल रहा था ,गाव की लडकिया कोई अन्तःवस्त्र नहीं पहनती थी,तो घाघरा खुलना यानि काम हो जाना ,
'अरे छोडो छोटे ठाकुर मेरी शादी तो अजय भईया करा के रहेंगे ,ये मछली तो आप के हाथ से गयी ,आह कितना बड़ा है ,पता नहीं शादी के बाद मैं क्या करुँगी ,आःह आअह्ह्ह्ह ठाकुर ,विजय अपना लिंग उसकी बालो से भरी योनी में रगड़ रहा था पर अन्दर नहीं डाल रहा था,वो लडकियों को गरम करने के बाद ही अपना काम करता था,उसने अपने हाथो से उसके ऊपर का कपडा भी खोल दिया ,और उसके शारीर को पीछे से चुमते हुए निचे उस करधन तक आया जो उसने ही रेणुका हो दिया था ,
'आआअह्ह्ह मार डाआआअ लोगे क्या 'विजय अपनी जिब से उसके भारी निताम्भो को चाटने लगा,और मुह आगे बड़ा कर उसके योनी में जीभ घुसा दि ,
'आआह्ह्ह आअह्ह्ह्ह अआह्ह्ह हूमम्म विजय ,'योनी को भरपूर गिला करने के बाद रेणुका को उठा के एक पेड़ के निचे बिछे चादर में ले जा लिटा दिया ,और उसके पैरो को अपने कंधे में रखता हुआ अपना पूरा लिंग एक बार में ही उसके अंदर कर दिया ,
'ईईईईई माँआआअ 'एक चीख पुरे वातावरण में फ़ैल गयी और धक्को की आवाजे सिस्कारियो और चपचप की आवाजे एक लयबद्ध रूप से आने लगी ,ये तूफान तब तक चला जब तक की रेणुका कई बार अपने चरम को पा चुकी थी और विजय अपनी सांड सी ताकत से उस मांसल और बलशाली लड़की के आँखों से आंसू नहीं निकल दिया ,विजय अपने चरम पर उसके उजोरो को अपने दांतों से काट लिया और उसके अन्दर एक लम्बी और गाढ़ी धार छोड़कर उसके ऊपर ही सो गया ,रेणुका के आँखों में आंसू तो थे पर चहरे पर अपरिमित सुख झलक रहा था ,उसने अपने बांहों में विजय को ऐसे पकड़ा था जैसे वो उसे कभी नहीं छोड़ेगी,
विजय जब घर पहुचता है तो वह रेणुका की माँ और लड़के वाले बैठे होते है ,बड़े से कमरे में,बीचो बीच एक बड़े से सोफे पर अजय बैठा होता है,बाकि सब हाथ मोडे छोटी छोटी खुर्सियो में बैठे होते है ,तभी विजय वह पहुचता है,..
विजय लड़के को देखता है ,'साला चुतिया,ये मेरी रेणुका को क्या संतुस्ट करेगा,'विजय मन ही मन उस पतले दुबले से लड़के को देख कर बोलता है,
'तो आप बताइए लड़की आपको पसंद है ना,'अजय लड़के के पिता को देखते हुए कहते है,
'ठाकुर साहब ये आप क्या कह रहे है,आप तो हमारे लिए भगवान है,आपका हाथ जिस लड़की पर है उसे हम कैसे मना कर सकते है,'लड़के के पिता ने थोडा डरते हुए कहा ,
'हम्म्म ठीक है ,तो शादी की तारीख तय कर लो क्यों मौसी क्या कहती हो ,'अजय ने सीता मौसी की तरफ मुह कर पुचा जो उस समय पास के सोफे में बैठी सुपारी काट रही थी ,
'हा कर दो लेकिन एक शर्त है,रेणुका कही नहीं जाएगी ,इस लड़के को यही नौकरी पर रख लो ,अगर ये भी चली गयी तो इसकी माँ का क्या होगा ,बेचारी का पति भी नहीं है,अकेले हो जाएगी क्यों रे,और तेरे तो 3 बेटे है ,ये निकम्मा यहाँ काम भी कर लेगा ,'मौसी ने लड़के के बाप को देखते हुए कहा,
'और ऐसे भी (विजय को देखते हुए ) रेणुका जो काम करती ही वो कोई नहीं कर सकती ना ..' विजय के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी जिसे अजय ने भी देख लिया उसे और मौसी को उसके सभी करतूतों का पता होता था ,पर इसे वो जाहिर नहीं होने देते थे,
'जैसा आप कहे मौसी जी ,ये बनवारी आज से आपका हुआ ,आप जब कहे शादी कर देंगे ,'अजय ने पंडित से तारीख निकलने को कहा और वह से उठ कर चल दिया ,सभी हाथ जोड़े खड़े हो गए ,मौसी को छोड़ ...
'मौसी बहुत बहुत धन्यवाद आपका आपने मेरी बेटी का जीवन सवार दिया,'रेणुका के माँ के आँखों में पानी आ गए थे ,
'अरे तू भी ना रे विमला ,रेणुका मेरी भी तो बेटी है ना,और विजय सारी जिम्मेदारी तुझे ही उठानी है शादी की ,पूरी तयारी अच्छे से होनी चाहिए 'सभी चले जाते है बस विजय और मौसी वह रह जाते है,
विजय मौसी के गोद में जा कर लेट जाता है ,
'मौसी जी थैंक् आपने तो रेणुका को यही रख लिया ,'
'अरे मेरे छोटे ठाकुर ,क्या मुझे पता नहीं की वो तुम्हारी जरुरत है ,और मेरा तो काम ही है तुम्हारी जरूरतों को पूरा करना ,बस अपने भाई के इज्जत में कालिक मत पोतना,नहीं तो अजय सब सहन करेगा पर इज्जत से खिलवाड़ नहीं,जो करना देख के ही करना ,'विजय उठकर मौसी के गालो को चूम लेता है ,और वहा से भागता हुआ चला जाता है ,मौसी हस्ती हुई सुपारी कटते रहती है ,
"पागल लड़का "मौसी के मुह से अनायास ही निकल पड़ता है,
एक शांत कमरा जो अजय ने अपने पढाई के लिए ही बनवाया था,जिम्मेदारियों के भोझ तले वो खुद तो नहीं पढ़ पाया पर उसे पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए उसने अपने घर में एक लिब्रेरी बनवा रखी थी,वो वह बैठ के पढ़ा करता था ,वो चाहता था की उसके छोटे भाई भी वहा पढाई करे पर किसी को इसमें कोई खासी दिलचस्पी ही नहीं थी,अजय बड़े ही मन से एक पुस्तक पढने में लगा था की किसी की पायल की आवाज से उसका धयान भंग हुआ ,वो समझ चूका था की ये निधि ही होगी ,निधि छमछम करते उसके पास आती है उसे देखकर अजय के चाहरे पर एक मुस्कान आ जाती है,निधि एक लहनगा चोली पहने हुए थी ,और किसी गुडिया की तरह सुंदर लग रही थी ,आज जरुर किसी के कहने पर उसने ये रूप लिया होगा ,अजय के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,16 साल की निधि का शारीर अपने यौवन के उचाईयो पर था पर दिल और दिमाग से वो किसी बच्चे की तरह मासूम थी ,खासकर अपने भाइयो के सामने ,उसका मासूम सा चहरा देख अजय के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,वो देख रहा था की कैसे निधि बड़ी मुस्किल से अपने लहंगे को सम्हाल रही थी,वो देहाती लहंगा जो शायद रेणुका का लग रहा था ,उसके लिए आफत ही था पर बड़ी ही उम्मीद से वो उसे पहने हुए अपने भाई को दिखने आ रही थी ,अजय ने अपनी किताब पर एक पेन रख कर उसे बंद किया और उसकी और मुड कर उसे देखने लगा .वो उसके पास पहुची तब तक निधि के चहरे में भी एक मुस्कान ने जन्म ले लिया था,
'भईया देखो मैं कैसे लग रही हु ,'एक उत्सुकता और चंचलता से निधि ने पूछा ,
'ये क्या नया शौक चढ़ा है तुझे ,'अजय उसी मुस्कान से अपनी सबसे लाडली और प्यारी बहन को देखते हुए कहा,
'बताओ ना भाई ,कितने मुस्किल से पहन कर आई हु और आप 'निधि थोड़े गुस्स्से में आते हुए बोली
'अरे मेरी प्यारी बहना ,तू जो भी पहन लेगी वो अच्छा ही होगा ना ,बहुत प्यारी लग रही है ,'अजय उसके गालो पर एक हलकी सी चपत मरते हुए बोला ,निधि उछल पड़ी
'भईया जानते हो मैं ना यही पह्नुगी रेणुका दीदी की शादी में ,'
'हम्म्म अभी से तयारी और ये देहाती वाला लहंगा क्यों पहनेगी मेरी बहन,तेरे लिए तो शहर से डिजायनर लहंगा ला देंगे,खरीददारी करने शहर जाना है ना ,'अजय की बात सुनकर निधि फिर उछल पड़ी ,
'सच्ची भईया,'
'हा और रानी और सोनल को भी तो लाना है ना ,'
'वाओ' निधि उछल कर अजय के गले लग जाती है,जब वो थोड़ी सामान्य होती है तो अजय से दूर होती है ,
'तो भईया इसे मैं दीदी को वापस कर देती हु,'अजय को हसी आ जाती है ,
'तो ये रेणुका का है ,'
'हा तो और क्या मैं भी अब बड़ी हो गयी हु ,मैं भी अब दीदी की शादी में लहंगा पहनूंगी 'निधि फिर से सम्हालते हुए बहार निकलने लगी तभी किशन अंदर आता है ,निधि को ऐसे चलता हुआ देख वो हस पड़ता है ,
'अरे बहना ,पहले ढंग से सम्हाल तो ले फिर शादी में पहनना ,'किशन की बात से निधि को गुस्सा आ जाता है ,
'मैं सम्हाल लुंगी समझे ,बड़े आये आप 'निधि मुह बनाकर वहा से चली जाती है ,किशन हसता हुआ अजय के पास आता है ...
'भईया वो बनवारी के बारे में पता कर लिया है ,सीधा साधा लड़का है ,'
'ह्म्म्म ठीक है फिर उसे भी घर में रख सकते है ,और एक दो दिन में ही शहर जायेंगे,रानी और सोनल को लाने और समान भी खरीद लायेंगे ,सबके कपडे वगेरह ,तू चलेगा ,'
'भईया यहाँ भी तो किसी को रहना पड़ेगा ना ,विजय भईया जाने को कह रहे है तो मैं यही रह जाऊँगा ,
'ठीक है फिर ,दो गाड़िया जाएँगी और दो ड्राईवर ,तीन नौकर और 5-6 पहलवान भी रहेंगे किसे भेजना है देख लेना ,'
'ठीक है भईया ,'अजय फिर से अपने किताब को उठा कर उसमे खो जाता है .....
अजय अपने कमरे में कसरत कर रहा होता है ,रात सोने से पहले उसे व्ययाम की आदत थी उसका विशाल सीना घने बालो से ढका हुआ था ,भुजाओ की गोलाई और चौड़ाई किसी पहलवान की तरह थी,बिक्लुल सपाट पेट जिसमे 6पेक वाली धरिया साफ़ दिख रही थी,
उसका रूम किसी राज महल के विशाल कक्ष जैसे बड़ा था,जहा पर एक कोने में कसरत के कुछ समान रहे थे,आदमकद का शीशा लगा था जिसपर से उसे अपने आप को देखने की सुविधा होती थी ,अजय अपने में सम्मोहित सा दर्पण में अपने को घुर रहा था और पसीने से भीगा हुआ उसका बदन कमरे की दुधिया रोशनी में चमक रही थी,भार उठाने पर उसकी मसपेशिया फुल सी जाती थी जिससे उसकी विशाल काया और भी विशाल हो जाती थी ,अपनी ताकत को वो वह पूरी तरह से खपाने में आमादा था,जैसे इसके बाद दुनिया खत्म ही हो जानी है,तभी उसे हलके हलके से किसी पायल की आवाज आई जिससे उसके चहरे पर एक मुस्कान घिर गयी ,वो जानता था की ये पायल किसकी है ,उसने मुड़कर देखा निधि उसकी ओर ही बढ़ी आ रही थी ,निधि ने एक झीनी सी सफ़ेद कलर की nighty पहन रखी थी जो पूरी तरह से पारदर्शी था और उसका साचे में ढला बदन उसे साफ़ साफ दिखाई दे रहा था ,वो पगली कभी अन्तःवस्त्र भी तो नहीं पहनती थी ,अजय की नजर जब उसके मादक शारीर पर गयी तो उसने अपना सर पकड़ लिया और मन में ,
"ये लड़की कब बड़ी होगी ,इतना बड़ा कमरा बना के दिया हु इसे और ये मेरे पास ही सोती है,इतनी बड़ी हो गयी है और ऐसे कपडे पहन के घुमती है,इसे कब शर्म का आभास होगा,कब इसे पता लगेगा की वो अब बच्ची नहीं रह गयी है ,क्या उसे सचमे नहीं पता ,नहीं ऐसा तो नहीं है ,सभी तो कहते है की गुडिया बड़ी हो गयी है समझदार हो गयी है,पर मेरे ही सामने ये क्यों बच्ची बन जाती है ,मेरी प्यारी सी गुडिया देखो कितनी खूबसूरत लग रही है ,किसी की नजर ना लग जाए इसे ,इतनी प्यारी इतनी नाजुक है मेरी बच्ची,कैसे दूर कर पाउँगा इसे ,लेकिन कब तक आज नहीं तो कल तो इसे किसी और की होना ही है ना,फिर क्या करूँगा कैसे रहूँगा इसके बिना ,नहीं कुछ भी हो जाए मैं इसे अपने से अलग नहीं करूँगा ,पर एक भाई का फर्ज भी तो अदा करना है ना मुझे ,"अजय के आँखों में पानी आ गया था,जिसे देख निधि मुस्कुरा पड़ी उसे पता था उसका भाई उसे देख के ही उसके लिए प्यार से भर गया है,अजय कितना भी बलशाली क्यों ना हो और कितना भी गंभीर क्यों ना हो वो हमेशा अपने बहनों के लिए और खाशकर निधि के लिए बहुत ही नर्म दिल का था निधि ने उसे कई बार अकेले में रोते हुए देखा था,या ये कहे की सिर्फ निधि ने उसे रोते हुए देखा था,क्योकि अजय और किसी के सामने नहीं रोता,पर निधि ही उसके सबसे करीब थी और निधि ही उसके पास अधिकतर समय गुजरती थी ,माँ बाप के मौत के बाद से निधि के लिए उसका भाई ही उसकी जिंदगी था ,पता नहीं क्यों इतने बड़े हो जाने पर भी निधि को उसके साथ रहने पर निधि की समझदारी जाती रहती है और वो बच्चो जैसे हो जाती है ,जबकि निधि में बहुत समझदारी थी वो इतनी भी भोली नहीं थी जीतनी वो दिखाती थी ,
"भईया आप क्यों रो रहे हो ,"निधि ने मजे लेने के लिए कहा
"मै कहा रो रहा हु,और तू ऐसे कपडे क्यों पहन के घूम रही है ,अब तू बड़ी हो गयी है समझी "अजय को अपनी आँखों से बहते मोती का आभास हो गया और उसने अपने हाथो से उसे पोछा,
"कहा घूम रही हु आपके ही पास तो आ रही हु अपने कमरे से और बाजु में तो है आपका कमरा,और मैं अभी बच्ची हु समझ गए ना आप ,मुझे बड़ी नहीं होना है और आपके लिए तो कभी भी नहीं ,"निधि की प्यारी प्यारी सी आवाज ने अजय के चहरे पर एक मुस्कान फैला डी ,सच में कितनी प्यारी है मेरी बहना...
"अच्छा अब तो तेरी शादी करने की उम्र हो गयी है मेरी बच्ची जी ,"अजय पुलअप मारते हुए कहा,निधि ने बुरा सा मुह बनाया और अजय के कमर को पकड लिया और उसमे झूल गयी अजय के लिए तो निधि फूल सी थी वो उसे भी अपने साथ ऊपर उठा लिया जिससे निधि को बहुर मजा आने लगा ,मगर 6-7 बार के बाद अजय की हिम्मत जवाब देने लगी वो उतरने वाला था पर निधि ने उसे टोक दिया,
"भईया मजा आ रहा है करते रहो ना "अजय अपनी बहन की बात को कैसे टाल सकता था,वो फिर पुलअप करना सुरु किया 10 लेकीन निधि का मन नहीं भरा था 15 अजय के बाईसेप और सोल्डर में दर्द भर चूका था मसल्स में तनाव बाद रहा था जैसे अभी ही फट जाने को है ,वो सामान्यतः 10-15 के रेप लेता था पर निधि का वजन भी काफी था,लेकिन अजय की हिम्मत नहीं टूटी उसने आँखे बंद की और एक गहरी साँस लेकर पूरी ताकत लगा दि ,उसने महसूस की निधि की ख़ुशी को उसके चहरे की हसी वो खिलखिलाना जब वो ऊपर जाता है ,उसका वो चहकना अजय के अन्दर पता नहीं कहा से इतनी ताकत आ गयी की वो लगातार पुलअप करने लगा 20,30,अजय के मसल्स तनाव में फटने को थे पर अजय को दर्द का कोई भी आभास ही नहीं हो रहा था,उसके चहरे पर एक मुस्कान थी और आँखे बंद थी वो निधि के चहरे को निहारे जा रहा था ,अचानक की निधि ने अजय की हालत देखि और अपने जिद पर उसे बड़ा दुःख हुआ अजय के एक एक नश जैसे फटने वाले हो वो तुरंत अजय को छोड़ डी और अजय को भी रोक दिया अजय जब निचे उतरा उसका हाथ पूरी तरह से अकड़ गया था,निधि ने उसका हाथ सीधा करना चाहा तो अजय के मुख से एक आह निकली ,निधि के आँखों में पानी आ गया वही अजय को अपनी गलती का आभास हो गया की उसकी बहन डर गयी है ,और उसने दर्द की जगह अपने चहरे में मुस्कान ला लिया ,और निधि की आँखों के पानी को अपने हाथो से साफ़ करने के लिए आगे बढ़ाया,पर निधि ने उससे पहले ही अजय के सीने में आ चिपकी...
"दर्द दे रहा था तो बोले क्यों नहीं ,भईया आप कैसे करते हो कितने गंदे हो "निधि उसकी छाती में मुक्के मरने लगी ,अजय के पसीने से उसका चहरा भी गिला हो गया ,वो उसके शारीर से चिपकी और उसका शारीर अजय के पसीने से गिला होने लगा ,वो अजय से आते मर्दाना खुसबू के आभास में डूबी हुई अजय को और जकड ली,ये खुसबू उसके लिए मर्द होने की निशानी था ,उसके भाई की निशानी था,जो उसे बहुत पसंद थी ,अजय दर्द को नजर अंदाज करता हुआ अपने अपने हाथो को निधि के सर पर रखा,
"मेरी बहन कुछ बोले और मैं उसे पूरा ना करू ऐसा हुआ है क्या कभी ,"अजय उसके सर को चूमता है,और निधि को अलग करता है ,
"चल अब मैं नहा के आता हु ,जल्दी सोना है आज कल फिर शहर जाना है,"निधि भी मुस्कुराते हुए अजय से फिर चिपक जाती है ,रुको ना अच्छा लग रहा है ,अजय उसके सर में हाथ फिरता है ,
"पूरी रात तो लिपट के ही सोएगी ना अब नहाने दे ना बहन ,"निधि मुस्कुराती हुई अलग होती है और अपनी एडी उठा कर अपने भाई के गालो पर एक किस कर लेती....