घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) complete

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rajababu
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Re: घुड़दौड़ ( कायाकल्प )

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टॉयलेट? मुझे अब कुछ कुछ समझ आ रहा था। अवश्य ही रश्मि को सम्भोग के बाद मूत्र करने का संवेदन होता है। हो सकता है। ये सब सोचते हुए मुझे एक विचार आया। हम लोग इतने दुष्कर कार्य कर रहे थे, क्यों न एक कार्य और जोड़ लें?

"टॉयलेट जाना है? और अगर मैं न जाने दूँ तो?" कहते हुए मैंने उसको अपनी बाँहों के घेरे में पकड़ कर और जोर से पकड़ लिया। रश्मि कसमसाने लगी।

"प्लीज! जाने दीजिये न! नहीं तो यहीं पर हो जाएगा!" कहते हुए रश्मि शरमा गयी।

"हा हा! ठीक है, कर लो …. लेकिन, मुझे देखना है।"

मेरी बात सुन कर रश्मि की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं! मेरी कामासक्ति के प्रयोग में रश्मि ने अभी तक पूरा साथ दिया था, लेकिन उसके लिए ये एक नया विषय था।

"क्या?! छी! आप भी न!"

"क्या छी? मैंने तो आपका सब कुछ देख लिया है, फिर इसमें क्या शर्म?" मेरी बात सुन कर रश्मि और भी शरमा गयी। मैं अब उठ कर बैठ गया और साथ ही साथ रश्मि को भी उसकी बाँहे पकड़ कर बैठा लिया, और इसके बाद मैंने रश्मि की टाँगे थोड़ी फैला दीं। मेरी इस हरकत से रश्मि खिलखिला कर हंस दी।

"इस तरह से?" मैंने सर हिल कर हामी भरी …. "मुझे नहीं लगता की मैं ऐसे कर सकती हूँ!"

"जानेमन, अगर इस तरह से नहीं कर सकती, तो फिर बिलकुल भी नहीं कर सकती।" मैंने ढिठाई से कहा।

मैंने रश्मि का टखना जकड़ रखा था, और दृढ़ निश्चय कर रखा था की मैं उसको मूत्र करते हुए अवश्य देखूँगा - और अगर हो सका तो उसकी मूत्र-धार को स्पर्श भी करूंगा। उस समय नहीं मालूम था की यह अनुभव मुझे अच्छा भी लगेगा या नहीं - बस उस समय मुझे यह तजुर्बा लेना था। अंग्रेजी में जिसे 'किंकी' कहते हैं, वही! रश्मि ने थोड़ी कसमसाहट करके मेरी पकड़ छुड़ानी चाही, लेकिन नाकामयाब रही और अंततः उसने विरोध करना बंद कर दिया। उसने अपनी मुद्रा थोड़ी सी व्यवस्थित करी - पत्थर पर ही वह उकड़ू बैठ गयी - उसके ऐसा करने से मुझे उसकी योनि का मनचाहा दर्शन होने लगा।

"आप सचमुच मुझे ये सब करते देखना चाहते हैं?" मैंने हामी भरी, "…. ये सब कितना गन्दा है!"

"जानू! इसीलिए! मैं बस एक बार देखना चाहता हूँ। अगर हम दोनों को अच्छा नहीं लगा तो फिर नहीं करेंगे! ओके? जैसे आपने मेरी बात अभी तक मानी है, वैसे ही यह बात भी मान लीजिये।"

"जी, ठीक है … मैं कोशिश करती हूँ।"

यह कहते हुए रश्मि ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और मूत्र पर ध्यान लगाया। उसकी योनि के पटल खुल गए - मैंने देखा की वहां की माँस पेशियाँ थोडा खुल और बंद हो रही थीं (मूत्राशय को मुक्त करने का प्रयास)। रश्मि के चमकते हुए रस-सिक्त गुप्तांग को ऐसी अवस्था में देखना अत्यंत सम्मोहक था।

मैंने देखा की मूत्र अब निकलने लगा है - शुरू में सिर्फ कुछ बूँदें निकली, फिर उन बूँदों ने रिसाव का रूप ले लिया, और कुछ ही पलों में मूत्र की अनवरत धार छूट पड़ी। रश्मि का मुँह राहत की साँसे भर रहा था। उसकी आँखें अभी भी बंद थीं - मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके मूत्र के मार्ग में लाया और तत्क्षण उसकी गर्मी को महसूस करने लगा।

कोई दस सेकंड के बाद रश्मि का मूत्र त्यागना बंद हुआ। वह अभी भी आँखें बंद किये हुई थी - उसकी योनि की पेशियाँ सिकुड़ और खुल रही थीं और उसमें से मूत्र निकलना अब बंद हो चला था। मेरे दिमाग में न जाने क्या समाया की मैंने आगे बढ़ कर उसकी योनि को अपने मुंह में भर लिया, और रश्मि के मूत्र का पहला स्वाद लिया - यह नमकीन और थोड़ा तीखा था। मुझे इसका स्वाद कोई अच्छा नहीं लगा लेकिन उसका स्वाद अद्वितीय था और इसलिए मुझे बहुत रोचक लगा। मैंने उसकी योनि से अपना मुँह कास कर चिपका लिया और उसको चूस कर सुखा दिया।

मेरी इस हरकत से रश्मि मेरे ऊपर ही गिर गयी - उसकी टांगों में कम्पन सा हो रहा था। उसने जैसे तैसे अपने शरीर का भार व्यवस्थित किया, जिससे मुझे परेशानी न हो, और फिर मुझे भावुक हो कर जकड कर एक ज़ोरदार चुम्बन दिया, "हनी … आई लव यू! …. ये … बहुत …. अजीब था। मेरा मतलब … यह बहुत उत्तेजक है, लेकिन बहुत ही …. अजीब!"

रश्मि को इस प्रकार अपनी भावनाएँ बताते हुए देखने से मुझे बहुत अच्छा लगा। एक प्रेमी युगल को अपनी अपनी काम भावनाएं एक दूसरे को बतानी चाहिए। तभी एक दूसरे को पूर्ण रूपेण संतुष्ट किया जा सकता है।

"आई लाइक्ड इट! इसको थोड़ा और आगे ले जायेंगे!" मैंने कहा और रश्मि को पुनः चूमने लगा।

सुमन का परिप्रेक्ष्य:

सुमन कोई पाँच मिनट से झाड़ी के पीछे खड़ी हुई अपने दीदी और जीजाजी के रति-सम्भोग के दृश्यों को देख रही थी। उसके माँ और पिताजी ने उसको उन दोनों के पीछे भेज दिया था की उनको वापस ले आये, क्योंकि मौसम कभी भी गड़बड़ हो सकता है। सुमन रास्ते में लोगो से पूछते हुए इस तरफ आ गयी थी - उसको रश्मि की इस फेवरिट स्थान का पता था। सुमन उस जगह पर पहुँचने ही वाली थी की उसको किसी लड़की के कराहने और सिसकने की आवाज़ आई।

वह आवाज़ की दिशा में बढ़ ही रही थी की उसने झील के बगल वाले प्रस्तर खंड पर दीदी और जीजू को देखा - वह दोनों पूर्णतः नंग्युल (नग्न) थे - दीदी लेटी हुई थी - उसके पाँव फैले हुए थे और आँखें बंद थीं - जीजू का सर दीदी की रानों (जाँघों) की बीच की जगह सटा हुआ था और वो उसकी पेशाब करने वाली जगह को चूम, चाट और पलास (सहला) रहे थे। उनके इस हरकत से ही दीदी की कराहटें निकल रही थीं।

'छिः! जीजू कितने गंदे हैं! दीदी दर्द से कराह रही है और वो हैं की ऐसी गन्दी जगह को पलास रहे हैं!' ऐसा सोचते हुए सुमन की निगाहें अपने जीजू के निचले हिस्से पर पड़ी - उनका छुन्नू और अंडे दिख रहे थे। वह पहले सोचती थी की दीदी बहुत दुबली है, लेकिन उसको ऐसे निरावृत देख कर उसको समझ आया की वो तो एकदम गुंट (सुन्दर और सुडौल) है। जीजू भी बिना कपड़ों के कितने सुन्दर लगते हैं!

सुमन को कुछ ही पलों में समझ आ गया की उसका यह आंकलन की दीदी दर्द से कराह रही है, दरअसल गलत था - वह वस्तुतः मज़े में आहें भर रही है। कोई चाहे कितना भी मासूम क्यों न हो, सयाना होते होते रति क्रिया का नैसर्गिक ज्ञान उसमें स्वयं आ जाता है। सुमन को स्त्री पुरुष के शारीरिक बनावट का अंतर मालूम था और उसको यह भी मालूम था की लिंग और योनि का आपस में क्या सम्बन्ध है।

लेकिन उसको यह नहीं ज्ञात था की इस संयोजन में आनंद भी आता है। इस कारण से उसको अपनी भोली-भाली दीदी को इस प्रकार आनंद प्राप्त करने को उद्धत देख कर आश्चर्य हुआ।

'कितनी निर्लज्जता से दीदी खुद भी अपनी योनि को जीजू के मुँह में ठेले जा रही थी! कैसी छंछा (चरित्रहीन औरत) जैसी हरकत कर रही है दीदी!'

एक बात देख कर सुमन को काफी रोमांच आया - जीजू के हाथ दीदी के दोनों दुदल (स्तन) और दुदल-घुंडी (निप्पल) को रह रह कर मींज भी रहे थे। इस समय दीदी जीजू के सर को पकड़ कर अपनी योनि में खीच रही थी और हाँफ रही थी। सुमन ने देखा की अचानक ही दीदी का शरीर कमानी जैसा हो गया, और उसके शरीर में झटके आने लगे। फिर वह निढाल होकर लेट गयी।

कुछ देर दीदी लेटी रही और फिर उठ कर जीजू से कुछ बाते करने लगी। फिर वह ऐसी मुद्रा में बैठ गयी जैसे पेशाब करते समय बैठते हैं - लेकिन पत्थर पर और वह भी जीजू के सामने? दीदी को ऐसा करते हुए तो वह सोच भी नहीं सकती थी - लेकिन जो प्रत्यक्ष में हो रहा है उसका क्या?

'इसको बिलकुल भी शर्म नहीं है क्या?'

सुमन को अपनी दीदी को ऐसे खुलेआम पेशाब करते देख कर झटका लगा और एक और झटका तब लगा जब जीजू ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके पेशाब की धार को छुआ। और उसका मन जुगुप्सा से भर गया जब उसने देखा की जीजू ने दीदी के पेशाब वाली जगह को अपने मुंह में भर लिया।

'ये दीदी जीजू क्या कर रहे हैं? कितना गन्दा गन्दा काम!'

सुमन वहां से वापस जाने ही वाली थी की उसने देखा की दीदी और जीजू आपस में कुछ बात कर रहे हैं और जीजू का छुन्नू तेजी से उन्नत होता जा रहा है - उसका आकार प्रकार देख कर सुमन का दिल धक् से रह गया।

'यह क्या है?' सुमन ने सिर्फ बच्चों के शिश्न देखे थे, जो की मूंगफली के आकार जैसे होते हैं। वो भी कभी कभी उन्नत होते हैं, लेकिन जीजू का तो सबसे अलग ही है। अलग … और बहुत सुंदर … और और बहुत … बड़ा भी! ये तो उसकी स्कूल की स्केल से भी ज्यादा लम्बा लग रहा था और मोटा भी था - बहुत मोटा।

दीदी ने बहुत ही प्यार से जीजू के छुन्नू को धीरे धीरे पलासना शुरू कर दिया था, और साथ ही साथ वो चट्टान पर कुछ इस तरह से लेट गयी की उसकी उसकी रानें पूरी तरह से खुल गयी। लेकिन फिर भी दीदी अपने उस हाथ से, जो जीजू के छुन्नू पर नहीं था, अपनी पेशाब करने वाली जगह को और फैला रही थी। दीदी की फैली हुई योनि को देख कर सुमन के दिल में एक आशंका या डर सा बैठ गया।

'क्या करने वाली है ये?'

और फिर वही हुआ जिसकी उसको आशंका थी - जीजू अपना छुन्नू दीदी की योनि में धीरे धीरे डालने लगे। दीदी की छाती तेज़ साँसों के कारण धौंकनी जैसे ऊपर नीचे हो रही थी।

'दीदी को कितना दर्द होगा! बेचारी देखो कैसे उसकी साँसे डर के मारे बढ़ गयी हैं!'

दीदी नीचे की तरफ, जीजू के छुन्नू को देख रही थी - जीजू अब साथ ही साथ दीदी के दुदल मींज रहे थे और चुटकी से दबा रहे थे। अंततः जीजू का पूरा का पूरा छुन्नू दीदी के अन्दर चला गया - दीदी के गले से एक गहरी आह निकल गयी। सुमन को वह आह सुनाई पड़ी - उसके दिमाग को लगा की दीदी दर्द के मारे कराह रही है, लेकिन उसके दिल को सुख भरी आह सुनाई दी।

जीजू ने दीदी से कुछ कहा। जवाब में दीदी ने सर हिला कर हामी भरी।

'दीदी ठीक तो है? बाप रे! इतनी मोटी और लम्बी चीज़ कोई अगर मेरे में डाल दे तो मैं तो मर ही जाऊंगी!' सुमन ने सोचा।

"करिए न … रुकिए मत।" सुमन को दीदी की हलकी सी आवाज़ सुनाई दी।

'दीदी क्या करने को कह रही है? और वो ऐसी हालत में बोल भी कैसे पा रही है। मेरी तो जान ही निकल जाती और मैं रोने लगती।'

दीदी की बात सुन कर जीजू की कमर धीरे धीरे आगे पीछे होने लगी - लेकिन ऐसे की उनका छुन्नू पूरे समय दीदी के अन्दर ही रहे और बाहर न निकले।

'हे भगवान्!' सुमन अब मंत्रमुग्ध होकर अपने दीदी और जीजा के यौन संसर्ग का दृश्य देख रही थी।
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Re: घुड़दौड़ ( कायाकल्प )

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रश्मि का परिप्रेक्ष्य:

रश्मि को पिछले के रति-संयोगों में वैसा नहीं महसूस हुआ था, जैसा की उसको अभी हो रहा था। उसके पति का बृहद लिंग उसकी नन्ही सी योनि का इस प्रकार उल्लंघन और उपभोग कर रहा था जिसकी व्याख्या करना अत्यंत कठिन था! वह लिंग जिस तरह से उसकी योनि द्वार को फैला रहा था और इस क्रिया से होने वाला कष्ट भी अब उसको प्रिय लगने लगा था। उस लिंग के प्रत्येक प्रवेशन से उन दोनों के जघन क्षेत्र एकदम ठीक जगह पर, एकदम ठीक बल के साथ टकरा रहे थे। और उसके पति के वृषण उसके नितम्बो पर नरम नरम चपत लगा रहे थे।

ऐसा सुख रश्मि को पहले नहीं महसूस हुआ। यह संवेदना थी आनंद की, कष्ट की, आनंदातिरेक की और एक तरह की हानि की। और कुछ भी हो, इस काम में मज़ा बहुत आ रहा था।

जब रश्मि के विवाह का दिन निकट आने लगा, तो पास पड़ोस की तीन चार 'भाभियों' ने उसको अंतहीन और अधकचरी यौन शिक्षा प्रदान की। उनके हिसाब से पुरुष का लिंग सामान्यतः संकरा, थोड़ा लटकता हुआ, पतली ककड़ी जैसे आकार का होता है। किन्तु उसके पति का लिंग तो उनके बताये जैसा तो बिलकुल ही नहीं था - बल्कि उसके विपरीत कहीं अधिक प्रबल, लम्बा और मोटा था। उन्होंने यह भी बताया था की यौन क्रिया तो बस दो से चार मिनट में ख़तम हो जाती है, और ऐसा कोई घबराने वाली बात नहीं होती, और यह भी की ये तो पुरुष अपने मज़े के लिए करते हैं। लेकिन उसका पति इस विभाग में भी निश्चित रूप में लाखों में एक है - एक तो उनके बीच का एक भी यौन प्रसंग कम से कम पंद्रह बीस मिनट से कम नहीं चला … और तो और 'उन्होंने' उसके आनंद को हर बार वरीयता दी। भाभियों के हिसाब से सेक्स का मतलब लिंग का योनि में अन्दर बाहर जाना और तीन चार मिनट में काम ख़तम। लेकिन अब तक उन दोनों ने जितनी भी बार भी सेक्स किया, उतनी ही बार सब कुछ नया नया था।

आखिर कितनी विषमता हो सकती है, इस चिरंतन काल से चली आ रही नैसर्गिक क्रिया में? रश्मि को अपनी योनि में एक तेज़ धक्का महसूस हुआ - उसने ध्यान किया की उसके पति का लिंग कुछ और फूल रहा था। और जिस तरह से वह लिंग उसके क्रोड़ को निःशेष कर रहा था, उससे वह अपने पति और उसके लिंग, दोनों की ही मुरीद बन चुकी थी। उसको मन ही मन ज्ञात हो चला था की रूद्र की वो पूरी तरह गुलाम बन गयी है। पहले तो अपने व्यक्तित्व, फिर अपने व्यवहार और अब अपने यौन-सामर्थ्य से उसके पति ने उसको पूरी तरह से जीत लिया था। इसके एवज़ में वह कुछ भी कहेंगे तो वह करेगी। अगर रूद्र चाहे तो दिन के चौबीसों घंटे उसके साथ सम्भोग कर सकता है और वो मना नहीं कर सकती थी।

मेरा परिप्रेक्ष्य:

आमतौर पर पुरुष एक स्खलन के आधे घंटे तक पुनः संसर्ग के लिए नहीं तैयार हो पाते। लेकिन रश्मि की कशिश ही कुछ ऐसी है की मैं तुरंत तैयार हो जाता हूँ। उसका अद्वितीय रूप, उसका भोलापन, उसकी सरलता और उसका कमसिन शरीर मेरी कामातुरता को कई गुना बढ़ा देता है। कभी कभी मन होता है की उसकी योनि में अपने लिंग का इतने बल से घर्षण करूँ की वहां लाल हो जाए। लेकिन, स्त्रियाँ हिंसा से नहीं, प्रेम से जीती जाती है। लिहाज़ा, मैं अपने मन के पशु पर लगाम लगा कर लयबद्ध तरीके से उसकी योनि का मर्दन कर रहा हूँ। उसकी कसी हुई और चिकनी योनि में मेरे लिंग का आवागमन बहुत ही सुखमय लग रहा है।

रश्मि का परिप्रेक्ष्य:

रश्मि की कामाग्नि कुछ इस प्रकार से धधक रही है की उसको न तो अपने नीचे के शिलाखंड की शीतलता महसूस हो रही है और न ही अपने पर्यावरण की। इस समय उसके पूरे अस्तित्व का केंद्र उसकी योनि थी, जहाँ पर उसके पति का लिंग अपन कर्त्तव्य कर रहा था। उसके हर धक्के में आनंद और पीड़ा की ऐसी मधुर झंकार छूट रही थी की उसको लग रहा था की वह स्वयं ही कोई वाद्य-यन्त्र हो। ऐसे ही आनंद के सागर में हिचकोले खाते हुए उसकी दृष्टि झाड़ियों के पीछे चली गयी।

'कोई तो वहां है!' हाँलाकि उसके नेत्रों में खींचे वासना के डोरे उसकी अवलोकन को धुंधला बना रहे थे, लेकिन थोडा जतन करने से उसको कुछ स्पष्ट दिखने लगा। जो व्यक्ति था, उसके कपडे बहुत ही जाने पहचाने थे। पर समझ नहीं आ रहा था की ये है कौन!

किन्तु, अपने आपको ऐसे नितांत नग्न और यौन की ऐसी प्रच्छन्न अवस्था में किसी और के द्वारा देखे जाने के एहसास से रश्मि की कामुकता और बढ़ गयी।

'कोई देखता है तो देखे! आखिर वह अपने पति के साथ समागम कर रही है, किसी गैर के साथ थोड़े ही! और देखना ही क्या? जा कर सबको बताये की रश्मि और उसका पति किस तरह से सेक्स करते हैं। और यह भी की उसके पति का लिंग कितना प्रबल है!'

यह सोचते हुए कुछ ही पलों में वह रति-निष्पत्ति के आनंदातिरेक पर पहुँच गयी। उसकी योनि से काम रस बरस पड़ा और रूद्र के लिंग को भिगोने लगा। आनंद की एक प्रबल सिसकारी उसके होंठों से निकल गयी। लेकिन रूद्र का प्रहार अभी भी जारी था - उसके हर धक्के के साथ ही साथ रश्मि उछल जाती। उसको इस समय न तो अपने आस पास का अभिज्ञान था और न ही भौतिकता के किसी भी नियम का। पूर्ण आनंद से ओत प्रोत होकर रश्मि इस समय अन्तरिक्ष की सैर कर रही थी।

सुमन का परिप्रेक्ष्य:

सुमन का दिल एकदम से बैठ गया - 'दीदी उसी की तरफ देख रही है! क्या उसने मुझको देख लिया होगा? चोरी पकड़ी गयी? ऐसा लगता तो नहीं! अगर देखा होता तो शायद वो अपने आपको ढकने की कोशिश करती?' उसकी दृष्टि इस समय इस अत्यंत रोचक मैथुन के केंद्र बिंदु पर मानो चिपक ही गयी थी। जीजू का विकराल लिंग दीदी की छोटी सी योनि के अन्दर बाहर जल्दी जल्दी फिसल रहा था, और दीदी उसके हर धक्के से उछल रही थी, और आहें भर रही थी।

मेरा परिप्रेक्ष्य:

मैंने अचानक ही रश्मि की योनि में चिकनाई बढती हुई देखी, जो की मेरे अगले धक्कों में ही मेरे लिंग के साथ बाहर आने लगी। रश्मि के शरीर की थरथराहट, गहरी गहरी साँसे, पसीने की परत, यह सब एक ही और संकेत कर रहे थे, और वह यह की रश्मि को चरम सुख प्राप्त हो गया है। लेकिन मेरी मंजिल अभी भी दो तीन मिनट दूर थी, इसलिए मैंने धक्के लगाना जारी रखा। कोई एक मिनट बाद रश्मि के शरीर की थरथराहट काफी कम हो गयी और वह अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ देखने लगी। कुछ देर और धक्के लगाने के बाद मुझे अपने अन्दर एक परिचित दबाव बनता महसूस हुआ। मैंने तत्क्षण कुछ नया करने का सोचा। ठीक तभी जब मेरा स्खलन होने वाला था, मैंने अपना लिंग बाहर निकाल लिया और हाथ से अपने लिंग को पकड़ कर मैथुन जैसे गति देने लगा। रश्मि ताज्जुब से मेरी इस हरकत को देखने लगी। उसके चेहरे के हाव भाव बड़ी तेजी से बदल रहे थे। मुझे उसको देख कर ऐसा लगा की उसको समझ आ गया है की मेरा प्लान अपने वीर्य को बाहर फेंकने का है। और यह एक निरादर भरा कार्य था।

वह कुछ कर या कह पाती उससे पहले ही मैंने अपने आप को छोड़ दिया - मेरे गर्म, सफ़ेद वीर्य के लम्बे मोटे डोरे उसके पेट और जाँघों पर छलक गए। वीर्य की कुछ छोटी-छोटी बूँदें उसके योनि के बालों पर उलझ गईं। ऐसा करते हुए मेरी भरी हुई साँसों के साथ कराहें भी निकल गयीं - मेरे पाँव इस तरह कांपे की मुझे लगा की मैं अभी गिर जाऊँगा। मैंने पकड़ कर अपने आप को सम्हाला।

रश्मि ने मेरे वीर्य से सने और रक्त वर्ण लिंग को देखा, फिर अपने पेट पर पड़े वीर्य को देखा और फिर बड़े अविश्वास से मेरी तरफ देखा। कुछ देर ऐसे ही घूरने के बाद उसने हाँफते हुए बोला,

"आपने ऐसे क्यों किया? मैंने आपको बोला था की आपका बीज मुझे मेरे अन्दर चाहिए!"

मैं अभी भी अपने आनंद के चरम पर था।

"जानेमन! सॉरी! आगे से सारा सीमन आपके अन्दर ही डालूँगा!"

मेरी बात सुन कर पहले तो उसको संतोष हुआ और फिर यह सोच कर की मेरा वीर्य लेने के लिए उसको सम्भोग करना पड़ेगा, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।

"इन द मीनटाइम, क्लीन दिस …" मैंने लिंग की तरफ इशारा करते हुए कहा।

रश्मि मेरे यह कहने पर उठी और मेरे अर्ध उत्तेजित लिंग को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी।

सुमन का परिप्रेक्ष्य:

सुमन ने जो कुछ देखा, उससे उसका मन जुगुप्सा से पुनः भर गया। दीदी जीजू के छुन्नू को मुँह में भर कर चूस रही थी।

'पहले जीजू, और अब दीदी! ये शादी करते ही क्या हो गया इसको? कितना गन्दा गन्दा काम! और वो भी ऐसे खुले में? और वो जीजू ने दीदी के ऊपर ही पेशाब कर दिया! (सुमन की रूद्र का वीर्यपात पेशाब करने जैसा लगा)? अरे इतनी जोर से लगी थी तो वहां बगल में कर लेते!'

सुमन ने देखा की कुछ देर चूसने के बाद दीदी जीजू से अलग हो गयी और दोनों ही उठ कर झील की तरफ चलने लगे। वहां पहुँच कर जीजू और दीदी अपने अपने शरीर को धोने लगे, और कुछ देर में वापस आकर उसी टीले पर बैठ गए। और आपस में एक दूसरे को गले लगा कर चूमने और पलासने लगे। लेकिन दोनों ने कपडे अभी तक नहीं पहने।

'अरे! ऐसे तो दोनों को ठंडक लग जाएगी और इनकी तबियत ख़राब हो जाएगी। कुछ तो करना पड़ेगा! ये दोनों तो न जाने कब तक कपडे नहीं पहनेंगे - मैं ही उनके पास चली जाती हूँ। जब इन्ही लोगो को कोई शर्म नहीं है तो मैं क्यों शरमाऊँ?'
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Re: घुड़दौड़ ( कायाकल्प )

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मेरा परिपेक्ष्य:

"दीदी?" यह आवाज़ सुन कर हम दोनों ही चौंक गए - हमारा चुम्बन और आलिंगन टूट गया और उस आवाज़ की दिशा में हड़बड़ा कर देखने लगे। मैंने देखा की वहां तो सुमन खड़ी है।

"अरे! सुमन?" रश्मि हड़बड़ा गयी - एक हाथ से उसने अपने स्तन और दूसरे से अपनी योनि छुपाने का प्रयास किया। "…. तू कब आई?" यह प्रश्न उसने अपनी शर्मिंदगी छुपाने के लिए किया था। रश्मि को समझ आ गया था की उन दोनों की गरमागरम रति-क्रिया सुमन बहुत देर से देख रही है।

मैंने सुमन को देखकर अपनी नितांत नग्नता को महसूस किया और मैं भी हड़बड़ी में अपने शरीर को ढकने का असफल प्रयास करने लगा। हमारे कपडे उस चट्टान पर थोड़ा दूर रखे हुए थे, अतः चाह कर भी हम लोग जल्दी से कपडे नहीं पहन सकते थे।

"दीदी मैं अभी आई हूँ …. माँ ने आप दोनों के पीछे भेजा था मुझे, आप लोगो को वापस लिवाने के लिए। वो कह रही थी की मौसम खराब हो जाएगा और आप लोगो की तबियत न ख़राब हो जाए!"

कहते हुए उसने एक भरपूर नज़र मेरे शरीर पर डाली। मुझे मालूम था की सुमन ने मुझे और रश्मि को पूरा नग्न तो देख ही लिया है, तो अब छुपाने को क्या ही है? अतः मैंने भी अपने शरीर को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की - उसने हमको काफी देर तक देखा होगा - संभव है की सम्भोग करते हुए भी। संभव नहीं, निश्चित है। लिहाज़ा, अब उससे छुपाने को अब कुछ रह नहीं गया था।

सुमन के हाव भाव देख कर मुझे लगा की वह हमारी नग्नता से काफी नर्वस है। हो सकता है की हमारे सम्भोग को देख कर वह लज्जित या जेहनी तौर पर उलझ गयी हो। उधर रश्मि बड़े जतन से अपने स्तनों को अपने हाथों से ढँके हुए थी।

"अच्छा …" रश्मि ने शर्माते हुए कहा। वो बेचारी जितना सिमटी जा रही थी, उसके अंग उतने अधिक अनावृत होते जा रहे थे। "…. वो हमारे कपड़े यहाँ ले आ …. प्लीज!" रश्मि ने विनती करी। सुमन बात मान कर हमारे कपड़े लाने लगी।

"आप लोग ऐसे नंग्युल …. मेरा मतलब ऐसे नंगे क्यों हैं? ठंडक लग जायेगी न! कर क्या रहे थे आप लोग?" उसने एक ही सांस में पूछ डाला।

"हम लोग एक दूसरे को प्यार कर रहे थे, बच्चे!" मैंने माहौल को हल्का बनाने के लिए कहा।

"प्यार कर रहे थे, या मेरी दीदी को मार रहे थे। मैंने देखा … दीदी दर्द के मारे कराह रही थी, लेकिन आप थे की उसको मारते ही जा रहे थे।"

‘ओके! तो उसने हम दोनों को सम्भोग करते देख लिया है।‘ मुझे लगा की सुमन हम दोनों को ऐसे देख कर संभवतः चकित हो गयी है - वैसे जब बच्चे इस तरह की घटना घटते देखते हैं, तो समझ नहीं पाते की क्या हो रहा है। कई बार वे डर भी जाते हैं, और उस डर की घुटन से अजीब तरह से बर्ताव करने लगते हैं। सुमन सतही तौर पर उतनी बुरी हालत में नहीं लग रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे। मुझे लग रहा था की उसमें इस घटना को समझने की दक्षता तो थी, लेकिन अभी उचित और पर्याप्त ज्ञान नहीं था।

उसने पहले रश्मि को, और फिर मुझको हमारे कपड़े दिए, मैंने कपडे लेते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और अपने ओर खींच कर उसकी कमर को पकड़ लिया और उसकी आँख में आँख डाल कर, मुस्कुराते हुए, बहुत ही नरमी से कहा,

"तुम्हारी दीदी को मारने की मैं सपने में भी नहीं सोच सकता - वो जान है मेरी! उसकी ख़ुशी मेरे लिए सब कुछ है और मैं उसकी ख़ुशी के लिए कुछ भी करूंगा। हम लोग वाकई एक दूसरे को प्यार कर रहे थे - वैसे जैसे की शादीशुदा लोग करते हैं। लेकिन, तुम अभी यह बात नहीं समझोगी। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी न, तब तुमको मालूम होगा की दाजू सही कह रहे थे। तब तक मेरी कही हुई बात पर भरोसा करो …. ओके? तुम्हारी दीदी और मैं, हम दोनों एक हैं!"

सुमन ने अत्यंत मिले जुले भाव से मुझे देखा (मुझे स्पष्ट नहीं समझ आया की वह क्या सोच रही थी) और फिर सर हिला कर हामी भरी। मैंने उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन दिया। मैंने देखा की उधर रश्मि कपड़े पहनते हुए हमको ध्यान से देख रही है, और जब मैंने सुमन को चूमा, तो रश्मि मुस्कुरा उठी। उस मुस्कान में मेरे लिए प्रशंसा और प्यार भरा हुआ था। सुमन मेरे द्वारा इस तरह खुले आम चूमे जाने से शरमा गयी - उसके गाल सेब जैसे लाल हो गए, अतः मैंने उसको जोर से गले से लगा लिया, जिससे उसको और शर्मिंदगी न हो।

जब वो अलग हुई तो बोली, "दाजू, आप बहुत अच्छे हो! … और एक बात कहूं? आप और दीदी साथ में बहुत सुन्दर लगते हैं!" इसके जवाब में सुमन को मेरी तरफ से एक और चुम्बन मिला, और कुछ ही देर में रश्मि की तरफ से भी, जो अब तक अपने कपडे पहन चुकी थी।

कोई दो मिनट में हम दोनों ही शालीनता पूर्वक तरीके से कपड़े पहन कर, सुमन के साथ वापस घर को रवाना हो रहे थे।

वापस आते समय हम बिलकुल अलग रास्ते से आये और तब मुझे समझ आया की रश्मि मुझे लम्बे और एकांत रास्ते से लायी थी - यह सोच कर मेरे होंठों पर शरारत भरी मुस्कान आ गयी। खैर, इस नए रास्ते के अपने फायदे थे। यह रास्ता अपेक्षाकृत छोटा था और इस रास्ते पर घर और दुकाने भी थीं। वैसे अगर मन में मौसम खराब होने की आशंका हो तो अच्छा ही है की आप आबादी वाली जगह पर हों - इससे सहायता मिलने में आसानी रहती है।

इस छोटी जगह में मैं एक मुख़्तलिफ़ इंसान था। ऐसा सोचिये जैसे की स्वदेस फिल्म का 'मोहन भार्गव'। मैं स्थानीय नहीं था, बल्कि बाहर से आया था; मेरे हाव भाव और ढंग बहुत भिन्न थे; मुझे इनकी भाषा नहीं आती थी, इन्ही लोगो को दया कर के मुझसे हिंदी में बात करनी पड़ती थी - मुझसे ये लोग कई सारे मजेदार प्रश्न पूछते जिनसे इनका भोलापन ही उजागर होता; और तो और बहुत सारे लोग मुझे बहुत ही जिज्ञासु निगाहों से देखते थे - मुझसे बात करने के बजाय मुझे देख कर आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगते। लेकिन, अब सबसे बड़ी बात यह थी की मैं यहाँ का दामाद था। इसलिए लोग ऐसे ही काफी मित्रवत व्यवहार कर रहे थे। यहाँ जितने भी लोगों ने हमको देखा, सभी ने हमसे मुलाक़ात की, अपने घर में बुलाया और आशीर्वाद दिया। नाश्ते इत्यादि के आग्रह करने पर हमने कई लोगो को टाला, लेकिन एक परिवार ने हमको जबरदस्ती घर में बुला ही लिया और हमारे लिए चाय और हलके नाश्ते का बंदोबस्त भी किया। वहां करीब आधे घंटे बैठे और जब तक हम लोग वापस आये तब शाम होने लगी थी।

इस समय तक मुझे वाकई ठंडक लगने लगी थी - और लम्बे समय तक अनावृत अवस्था में रहने से ठण्ड कुछ अधिक ही लग रही थी।

घर आकर देखा की आस पास की पाँच-छः स्त्रियाँ आकर रसोई घर में कार्यरत थी। पता चला की आज भी कुछ पकवान बनेंगे! मैंने सवेरे जो मैती आन्दोलन के लिए जिस प्रकार का सहयोग दिया था, उससे प्रभावित होकर स्त्रियाँ कर-सेवा करने आई थी और साझे में खाना बना रही थी। वो सारे परिवार आ कर एक साथ खाना खायेंगे। मैंने रश्मि से गुजारिश करी की कुछ स्थानीय और रोज़मर्रा का खाना बनाए। वो तो तुरंत ही शुरू ही किया गया था, इसलिए मेरी यह विनती मान ली गयी।

खाने के पहले करीबी लोग साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। एक भाई साहब अपने घर से म्यूजिक सिस्टम ले आये थे और उस पर 'गोल्डन ओल्डीस' वाले गीत बजा रहे थे। उन्होंने ने ही बताया की रश्मि गाती भी है, और बहुत अच्छा गाती है। उसकी यह कला तो खैर मुझे मालूम नहीं थी। वैसे भी, हमको एक दूसरे के बारे में मालूम ही क्या था? मुझे उसके बारे में बस यह मालूम था की उसको देखते ही मेरे दिल ने आवाज़ दी की यही वह लड़की है जिसके साथ तुम्हे पूरी उम्र गुजारनी है।
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007
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Re: घुड़दौड़ ( कायाकल्प )

Post by 007 »

achhi kahani hai dost
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

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pongapandit
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Re: घुड़दौड़ ( कायाकल्प )

Post by pongapandit »

thanks mitr new kahani ke liye
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