Incest भाई-बहन वाली कहानियाँ

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rajababu
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भाई-बहन वाली कहानियाँ-6

Post by rajababu »

हमने घर पर बता दिया कि कॉलेज में छुट्टियाँ हैं।
मैं - घर तो आ गए.. अब आगे का क्या प्लान है?
कांता - तुम जय को घर बुलाओ.. बाकी का काम मैं कर दूँगी।
मैं - तुम कर दोगी.. लेकिन कैसे? मैं उसको सीधा तो नहीं बोल सकता ना.. कि मेरी बहन तुमसे चुदना चाहती है और मैं तुम्हारी बहन को चोदना चाहता हूँ।
कांता - अरे नहीं.. तुम उसको बुलाओ और मैं बदन दिखा करके उसको पटा लूँगी।
मैं- ओके..
मैंने जय को फोन किया और बोला- भाई पटना में हो?
जय - पटना में.. हाँ.. क्यों?
मैं - मैं भी पटना आया हूँ..
जय - कब?
मैं - आज ही.. तू आ ना मेरे घर.. बहुत दिन हो गए मिले हुए..
जय - ठीक है भाई.. कुछ देर में आता हूँ।
मैं - ओके.. आ जा..
कांता- क्या बोला वो?
मैं - आ रहा है।
कांता- सच?
मैं - हाँ..
उसने मुझे किस करते हुए कहा- थैंक्स भाई..
मैं - अब जा.. अच्छे कपड़े पहन ले..
कुछ देर बाद घर की बेल बज़ी.. तो मैं बोला- आ जा.. खुला हुआ है।
तो जय आ गया और मैं उससे गले मिला।
मैं - आ जा.. बैठ..
तो वो मेरे बगल में बैठ गया।
जय - तो.. और बता कैसा है?
मैं - मस्त.. तू अपना बता..
जय - मैं भी मस्त हूँ..
कुछ देर हमारी बातें चलती रहीं।
मैं - क्या पिएगा?
जय- जो तू पिला दे।
मैं - कांता दो कप चाय देना तो..
जय - अरे ये कांता कब आई?
मैं - आज ही.. मैं ही लाने गया था।
कांता चाय ले कर आई.. तब उसने बहुत खुले गले का टॉप पहना था.. जो पीछे से पारदर्शी था और नीचे कैपरी भी बहुत चुस्त वाली पहने हुई थी। इस कैपरी और टॉप के बीच कुछ जगह खाली थी.. जिससे उसकी नाभि आसानी से दिख रही थी।
मैंने तिरछी नज़र से जय को देखा तो वो अन्दर से हिल चुका था और सीधे तो नहीं.. लेकिन तिरछी नज़रों से कांता के मदमस्त जिस्म को देख रहा था। तब तक कांता मेरे पास आ गई.. मैंने एक कप लिया और बोला- जय को भी दो..
वो जय को देने के लिए झुकी उसकी चूचियाँ आधी बाहर आ गईं। जय उसको ही देखे जा रहा था लेकिन तिरछी नज़र से.. जब वो जाने लगी तो वो और अपने बुरड़ों को मटका कर जा रही थी। लंड तो मेरा भी खड़ा हो गया था.. जो हमेशा इसको नंगी देखता था.. तो सोचो जय का क्या हाल हुआ होगा।
मैं- क्या हुआ.. पानी लेगा क्या?
जय- हाँ..
मैं- जा रसोई से ले आ.. और ज़ोर से बोला- कांता इसको एक गिलास पानी दे देना।
मैंने सोचा.. यहाँ तो तिरछी नज़र से देखना पड़ रहा है.. वहाँ जाएगा तो कम से कम आराम से देख तो सकेगा।
मेरी बात सुन कर तो उसको तो मुँह माँगी मुराद मिल गई और जब तक वो वहाँ खड़ा रहा.. कांता ने अपने जिस्म की नुमाइश करके उसका भरपूर मनोरंजन किया। जब वो लौट रहा था तो उसकी फूली हुई पैंट इस बात का सबूत पेश कर रही थी कि उसे कितना मजा आया।
हम लोग चाय पीने लगे।
मैं- चल.. कोई मूवी देखते हैं।
मैं अपना लॅपटॉप ले आया और उसमें एक हॉट हॉलीवुड मूवी को चला दिया। जिसमें बहुत सारे हॉट सीन्स थे। वो मूवी देखने लगा और मैं कप रखने रसोई में चला गया।
कांता - कैसे लगा मेरा परफॉर्मेंस?
मैं - जबरदस्त.. लोहा गर्म है बस हथौड़ा मारने की देरी है.. लेकिन जब तक मैं यहाँ रहूँगा.. वो तुमको कुछ नहीं करेगा.. सो मैं कोई बहाना बना कर जाता हूँ.. तब तक तुम अपना काम कर लेना।
कांता- ओके.. मेरी जान.. तुम जल्दी जाओ..
मैं - क्या बात है बड़ी जल्दी है.. उससे चुदने की..
कांता - हाँ बचपन का प्यार है..
मैं- ओके गुडलक..
उसको एक लिप किस किया और बाहर आ गया और मूवी देखने लगा।
कांता - भैया.. मैं नहाने जा रही हूँ.. नहा कर खाना बना दूँगी.. तब तक तुम मेरा सामान ला दो।
मैं- ओके ठीक है.. जाओ ला देता हूँ..
मैं- क्या बाइक से आया है भाई?
जय- हाँ..।
मैं- ला चाभी ला.. बाइक की..
जय - कहाँ जाएगा.. चल मैं भी चलता हूँ।
मैं - मार्केट जाना है.. बस 10 मिनट में आ जाऊँगा.. तू यहीं मूवी देख.. मैं आता हूँ।
जय - ठीक है जा..
मैं बाइक थोड़ी दूर पर लगा कर पीछे के दरवाजे से अन्दर आ कर छिप गया और देखने लगा कि क्या हो रहा है।
कांता बाथरूम से चिल्लाई- भाई.. भाई?
जय - वो मार्केट गया है.. कुछ काम से क्या हुआ.. कुछ काम है क्या?
कांता- हाँ.. मैं कमरे में अपने कपड़े और फेसवाश भूल गई हूँ.. ला दोगे प्लीज़?
जय- कहाँ पर है?
कांता - मेरे बिस्तर पर रखा होगा।
जय- ओके देखता हूँ..
जय उसके कपड़ों को देख कर और उत्तेजित हो गया और उसको ले कर बाथरूम के पास आया - ये लो.. देखो तो यही हैं?
कांता- नहीं रहने दो.. एक और काम कर दोगे प्लीज़..
जय- क्या?
कांता- यार पानी ख़त्म हो गया है.. सो रसोई में 2 बाल्टी पानी रखा है.. एक बाल्टी ला दोगे प्लीज़?
जय- ओके..
जब तक जय रसोई गया तब तक कांता ने जितना हो सकता था अपने कपड़े और खोल दिए.. जिससे जय उसके सेक्सी जिस्म का दीदार अच्छी तरह से कर ले।
जब वो पानी ले कर आया.. तो उसने आवाज दी- पानी ले आया.. कैसे दूँ?
कांता- रूको.. मैं दरवाजा खोलती हूँ।
कांता ने दरवाजा खोला और जय उसके बदन को देखता ही रह गया और भीगी होने के कारण उसका हर ‘सामान’ दिख रहा था.. मम्मे और उस पर तने हुए निप्पल.. गान्ड के अन्दर फंसा हुआ कपड़ा.. किसी को भी उत्तेज़ित करने के लिए काफ़ी था और जय तो पहले ही गरम था..।
लेकिन मानना पड़ेगा जय के कंट्रोल करने की पावर को.. उसने कांता को सिर्फ़ देख कर ही मजे लिए.. छूने की कोशिश भी नहीं की.. और बाल्टी रख के बाहर आ गया।
तब उसकी शक्ल देखने लायक थी.. वो पूरा पसीने से लथपथ था जैसे शायद उसका गला सूखा जा रहा था। लंड अन्दर पानी छोड़ चुका होगा और ऊपर से हॉट मूवी आग में घी का काम कर रही थी।
जय मूवी देख कर और भी चुदासा होता जा रहा था.. अगर उसे मेरा ख्याल नहीं होता या कांता मेरी बहन नहीं होती तो अब तक चोद चुका होता। लेकिन शायद उसे मेरी दोस्ती रोक रही थी। तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और जय भी उधर आँखें फाड़-फाड़ कर देखने लगा।
मैंने भी देखा.. मैं सोच रहा था कि अब क्या करामात करने वाली है..
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rajababu
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भाई-बहन वाली कहानियाँ-7

Post by rajababu »

कांता का हाथ बाहर आया.. मैं मन में ही सोचने लगा कहीं नंगे ही तो बाहर नहीं आ रही है। तभी लाल तौलिया दिखा.. तो मन में सोचा शुक्र है.. कम से कम जिस्म पर तौलिया तो लपेट लिया है।
जब पूरी बाहर आई.. तो मैं सोचने लगा कि ये क्या.. एक छोटी सी लाल तौलिया में अपने आपको किसी तरह लपेट कर निकली.. जिसमें तौलिया ऊपर निप्पल के पास बँधा हुआ था।
मतलब आधी चूचियों साफ़ बाहर थीं और नीचे बुरड़ों के पास तक ही तौलिया था.. मतलब हल्की सी भी झुकती तो बुरड़ बाहर दिख जाते और साइड में जिधर तौलिया के दोनों सिरे थे.. उधर चलते वक्त जिस्म की एक झलक दिखाई दे रही थी।
ऊपर बँधे हुए बाल और बालों से चूचियों तक का खाली भाग.. आह्ह.. एक तो गोरा बदन था.. ऊपर से पानी की बूँदें और भी कयामत ढा रही थीं। नीचे देखा तो.. बुरड़ों के नीचे गोरी सेक्सी टाँगों का तो कोई जबाब ही नहीं था। सीधी बात कहूँ तो कोई अगर देखे तो उसका लंड क्या.. सब कुछ खड़ा हो जाएगा।
मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि कोई उसको देखने के बाद अपनी पलक भी नहीं झपका पाएगा और शायद यही हाल जय का भी था.. वो बिना पलक झपकाए उसे देखे जा रहा था।
कांता से उसकी नज़र मिलीं तो कांता हल्की सी मुस्कुरा दी.. मतलब उसका खुला आमंत्रण था और कांता अपने कमरे की तरफ़ बढ़ने लगी। तभी वो फिसल गई.. शायद वो जानबूझ कर फिसली थी।
कांता- आअहह..
जय- क्या हुआ?
जय दौड़ते हुए उसके पास गया।
कांता- मैं गिर गई.. उठने में मेरी मदद करो।
जय को तो मानो इसी मौके का इंतज़ार था.. उसको छूने का और उसने उसको हाथ पकड़ कर उठाने की कोशिश की लेकिन नहीं हो पाया।
‘मुझसे नहीं उठा जाएगा.. आह्ह.. मुझे गोद में उठा कर मेरे कमरे में ले चलो प्लीज़..’
जय- ओके..
जय ने उसको गोद में उठा लिया और कमरे ले जाने लगा और उसको बिस्तर पर लिटा दिया।
‘कहाँ चोट लगा है.. बताओ?’
कांता पैर की तरफ़ इशारा करते हुए बोली- देखो.. उधर सामने बाम रखी हुई है.. जरा लगा दो ना..
जय ने एक जगह छूते हुए पूछा- यहाँ?
कांता- नहीं.. ऊपर..
ये बोल कर वो पेट के बल लेट गई।
जय जाँघों के पास हाथ ले गया.. और पूछा- यहाँ?
कांता- नहीं.. और ऊपर..
जय ने बुरड़ों को छुआ और पूछा- जहाँ से ये स्टार्ट होते हैं?
कांता- हाँ यहीं..
जय उसके नंगे बुरड़ों पर बाम लगाने लगा।
जय- अच्छा लग रहा है?
कांता- हाँ अच्छा.. थोड़ा और ऊपर करो न.. कमर के पास भी लगा दो ना.. वहाँ भी दर्द है..
जय- ठीक है..
वो अपना हाथ तौलिया के अन्दर ले गया और लगाने लगा, तब तक कांता ने अपना तौलिया की गाँठ खोल दी। जब वो पूरी तरह से बाम लगा चुका.. तब तक उसका लंड भी तन कर तंबू हो गया था। पूरी मालिश करने के बाद उसने पूछा- दर्द कैसा है?
तो कांता उठी.. उसका तौलिया बिस्तर पर ही रह गया और नंगी ही जय के गले लग गई। जय देखता ही रह गया।
कांता- थैंक्स.. तुम्हारे हाथों में तो जादू है।
जय से भी कंट्रोल नहीं हो पाया.. एक सीमा होती है कंट्रोल करने की.. इतनी हॉट लड़की खड़ी हो सामने.. और वो भी पूरी नंगी.. तो किस चूतिया से कंट्रोल होगा।
वो भी उससे चिपक गया और उसके बुरड़ों को दबाने लगा, तब तक कांता ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। अब तक कांता उसके लंड पर भी हाथ रख चुकी थी और उसकी पैंट के ऊपर से ही उसके खड़े लौड़े को मसलने लगी। कुछ देर किस करने के बाद उसको अलग किया।
जय- ये ग़लत है.. तुम मेरे दोस्त की बहन हो.. ये सही नहीं है… सब राजा को पता चलेगा.. तो वो हम दोनों के बारे में क्या सोचेगा?
वो ये बोल कर नीचे चला गया और मुझे फोन किया- कितनी देर में आओगे?
मैं- भाई तेरी बाइक खराब हो गई है.. उसी को ठीक करवा रहा हूँ।
जय- ओह.. बोल.. मैं भी आता हूँ।
मैं- रहने दे.. तू मूवी देख.. मैं ठीक करवा कर तुरंत आता हूँ.. तेरा मन हो रहा है तो आ जा..
जय- नहीं.. वैसी कोई बात नहीं है।
तब तक कांता नंगी ही आकर उसकी गोद में बैठ गई।
मैं - कांता कहाँ है.. फोन दे तो उसको..
जय - ओके.. लो..
कांता - हाँ भैया बोलो?
मैं - उसको भूख लगी होगी.. खाना खिला देना उसको.. मैं कुछ देर में आऊँगा.. समझ गई न?
कांता- ओके भैया समझ गई..
जय - ओके भाई.. तू जल्दी आ जाना।
मैं - ओके भाई..
कांता - लो भैया अभी नहीं आएंगे.. तुमको भूख लगी है ना.. लो दूध पी लो..
उसने अपनी चूचियों को उसके मुँह के पास कर दिया।
जय - उसको पता चल गया तो?
कांता - जो होगा देखा जाएगा।
तो जय ने भी उसके चुचों को पकड़ लिया और दबाने लगा, तब तक कांता ने उसकी पैन्ट को खोल दिया, उसका लहराता हुआ लंड बाहर आ गया, उसका लंड भी कम नहीं था, मेरे बराबर ही था.. या छोटा भी होगा तो बहुत कम ही छोटा होगा।
कांता उसको बड़े प्यार से सहला रही थी और जय उसके चुचों को नोंच रहा था।
तभी जय ने उसकी चूचियों को मुँह में ले लिया। मेरी दया से चूचियों इतनी बड़ी हो गई थीं कि उसके मुँह में तो जा ही नहीं पा रही थीं.. तभी..
कांता- मैं इसको मुँह में ले लूँ?
जय- ले लो.. लेकिन मैं चूचियों को अभी नहीं छोड़ने वाला हूँ.. बहुत दिनों से इसको पाना चाह रहा हूँ।
कांता- बहुत दिनों से.. मतलब.. कब से?
जय- पिछली बार जब तुमको राजा के साथ स्टेशन पर देखा था.. तब से ही मैं इनके साथ खेलना चाहता था और आज सुबह से जब से आधी चूची को खुला देखा है.. तब से मैं इसको पाने के लिए मचल रहा हूँ।
कांता- और मैं तुमको पाने के सपने पिछले 3 साल से देख रही हूँ।
जय- सच.. तो बताया क्यों नहीं?
कांता- मैंने बहुत कोशिश की लेकिन तुमने कभी ध्यान ही नहीं दिया और अभी भी ज़बरदस्ती नहीं करती तो क्या तुम मानते?
जय- राजा मुझे भाई बोलता है ना.. उसे पता चलेगा तो बुरा सोचेगा.. ये सोच कर मैं चुप था.. लेकिन अब मैं तुमसे दूर नहीं रहने वाला हूँ..
कांता- अब तो लंड मुझे चूसने के लिए दे दो.. तीन साल से तड़फ रही हूँ.. इसकी याद करके..
जय- लो.. मैं भी तो देखूँ.. तुम्हारी बुर कैसी है!
वे दोनों 69 की अवस्था में आ गए, कांता लंड को बहुत अच्छे से चूस रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे खा जाएगी। उधर जय भी बुर को आसानी से नहीं छोड़ रहा था.. साला पूरा जीभ अन्दर डाल रहा था.. दोनों सिसकारियाँ ले रहे थे।
मैंने सोचा रंग में भंग डालने का यही सही टाइम है।
मैं सामने से घूम कर अन्दर आ गया.. अभी भी वो दोनों अपने चूसने के काम में लगे हुए थे।
मैं- हे.. ये क्या कर रहे हो तुम दोनों?
मुझे देखते ही दोनों अलग हुए और कांता भाग कर अपने कमरे में चली गई और जय अपने लंड को छिपाते हुए खड़ा हो गया।
मैं चिल्लाता हुआ बोला - कपड़े पहनो अपने.. पहले कपड़े पहनो..
जय - सॉरी भाई ग़लती हो गई..
मैं - मैं तुमको भाई बोलता था.. और तुम मेरी बहन के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो यार?
जय- पता नहीं यार कैसे हो गया… मैं खुद ही दिल से बुरा महसूस कर रहा हूँ।
मैं - तुम्हारे महसूस करने से क्या सब ठीक हो जाएगा.. और भी ना जाने मैंने क्या-क्या बोल दिया और वो चुपचाप सुनता रहा।
जय- मैं इससे शादी करने को रेडी हूँ।
मैं- क्या.. तुम अब क्या ये बात मम्मी-पापा को भी बताना चाहते हो.. वो तुम दोनों को मार देंगे..
जय- तो क्या करूँ.. तुम ही बताओ?
मैं - मेरी बात ध्यान से सुनो.. तुम मेरे दोस्त हो.. सो मैंने तो माफ़ कर दे रहा हूँ लेकिन एक कहावत तो सुनी होगी.. आँख के बदले आँख.. कान के बदले कान.. तो बहन के बदले बहन..
जय- मतलब.. मैं कुछ समझा नहीं?
मैं - तुमने मेरी बहन के साथ ये सब किया.. बदले में तुम अपनी बहन को मेरे लिए रेडी करोगे।
जय - नहीं.. ये नहीं हो सकता..
मैं- क्यों नहीं हो सकता.. ओके ठीक है मैं पापा को फोन करके सब बता देता हूँ.. बाकी तू समझ लेना।
जय - ओके ओके.. मैं रेडी हूँ अपनी बहन को पटाने में मैं तुम्हारी मदद करूँगा लेकिन किस बहन को.. बड़ी को या छोटी को?
मैं - तुम्हारी दोनों में से कोई भी चलेगी..
जय - सोनिया नहीं.. तुम सुहाना पर ट्राई करना..
मैं - ओके जिस दिन मैं तुम्हारी दोनों बहनों में से किसी एक को चोदूँगा.. उस दिन मैं कांता को तेरे पास पहुँचा दूँगा.. अब जा..
जय- ओके..
मैं- लेकिन ज्यादा टाइम नहीं है तुम्हारे पास.. आज शाम को मैं तुम्हारे घर आ रहा हूँ..
जय - ओके आ जा भाई..
मैं जानता था.. कांता की बुर का रस पीकर वो उसे चोदे बिना नहीं रह सकता है। मेरा काम जल्दी ही हो जाएगा और मैं कांता के कमरे चला गया। वो नंगी ही बिस्तर पर बैठी थी।
कांता - क्या यार.. थोड़ी देर और नहीं रुक सकता था..
मैं- हाह.. हहहाहा.. चिंता मत करो.. तेरा वो अपनी बहन को मेरे से जल्द ही चुदवा देगा।
कांता - इतनी देर तुम कहाँ रह गए थे?
मैं - घर में और कहाँ?
मैंने उसको सारी बात बताई।
कांता- मतलब सब कुछ देख लिया..
मैं - हाँ सब कुछ..
कांता - कैसी लगी मेरी एक्टिंग?
मैं- जबरदस्त.. तुमको तो बॉलीवुड में होना चाहिए था.. यहाँ क्या कर रही हो।
वो मुझे मारने के लिए दौड़ी.. तो मैं उसको ले कर बिस्तर पर आ गया। मैं नीचे था और वो मेरे ऊपर.. मैं उसकी पीठ सहलाते हुए बोला।
मैं- जय तो चला गया.. अब हमारा एक राउंड हो जाए।
कांता - हाँ क्यों नहीं.. मैं तो रेडी ही हूँ.. कपड़े तुमने ही पहन रखे हो.. उतारो..
तो मैं कौन सा देर करने वाला था। सारे कपड़े उतार कर चोदने के लिए तैयार हो गया।
मैं- लो मैंने भी उतार दिए।
वो मुझसे लिपट गई.. तब हम दोनों ने 2 राउंड हचक कर चुदाई की.. फिर घड़ी देखी तो 5 बजने वाले थे।
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rajababu
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भाई-बहन वाली कहानियाँ-8

Post by rajababu »

हमने मिल कर पूरे घर को साफ़ किया और पढ़ने बैठ गए। मम्मी-पापा आ गए.. उनको कुछ भी पता नहीं चला।
शाम को हम छत पर बैठे हुए थे।
कांता- जय का फोन आया?
मैं- नहीं क्यों?
कांता- वैसे ही कहा.. कहाँ तक बात पहुँची जरा पूछो?
मैं- ओके.. मैं फोन करता हूँ..
कांता- ओके.. करो जल्दी..
मैं- क्या बात है बड़ी जल्दी है तुमको?
कांता- हा हा हा हा..
मैं- कैसा है भाई.. काम का कुछ हुआ कि नहीं?
जय - हाँ पता कर लिया.. दोनों में से किसी का कोई ब्वॉय-फ्रेंड नहीं है.. तुम ट्राइ कर सकते हो.. लेकिन अभी घर पर दीप्ति ही है.. पद्मा तो दिल्ली गई है।
मैं- दिल्ली क्यों बे?
जय - वो वहीं रहेगी अब.. आगे पढ़ने के लिए..
मैं - दीप्ति है ना अभी घर पर.. उसी से काम चला लूँगा।
जय - ठीक है।
मैं- तो बोल घर कब आऊँ?
जय - अभी आ जा.. मिल लो.. लेकिन दिन में आओगे तो मम्मी-पापा नहीं रहते हैं।
मैं - ओके कल ही आता हूँ।
कांता - क्या हुआ.. क्या बोला?
मैं - अपने घर बुलाया है कल दिन में।
कांता - अरे वॉऊ.. तब तो वो जल्द ही तुम्हारी बाँहों में होगी।
मैंने आँख मारते हुए कहा- कोशिश तो यही रहेगी.. अब तेरे लिए जय के लौड़े का इंतजाम भी तो करना ही है न..
कांता- हा हा हा.. अभी जाओ.. मिल आओ.. देख आओ.. कैसी है?
मैं - रहने दो.. कल ही जाऊँगा।
फिर पता नहीं क्या मन हुआ कि मैं जय के घर पहुँच गया। उसके मम्मी-पापा मुझे अच्छे से जानते थे.. सो उनको नमस्ते बोला और अन्दर गया.. तो सामने दीप्ति बैठी हुई थी, वो जय से 2 साल बड़ी थी, गजब की माल थी यार.. क्या बताऊँ.. उस समय उसने सफ़ेद सलवार कुरती पहन रखी थी।
मैंने उसको देखा तो पहले भी था लेकिन हवस की नज़र से आज पहली बार देख रहा था। उसकी पूरी बॉडी सन्नी लियोनि के जैसी थी। रेशमी बाल.. गुलाबी पतले होंठ.. भूरी आँखें.. उठी हुई नाक.. होंठ के ठीक नीचे एक काला तिल..
वो कयामत लग रही थी.. उसकी उभरी हुई चूचियों को देखा तो कम से कम 34बी साइज़ की तो ज़रूर होगीं। ऐसा लग रहा था… जैसे दो संतरों को बहुत कस कर बांधा गया हो। नीचे सपाट पेट.. मैं उसके रसीले हुस्न के आगोश में खोया हुआ ही था कि तभी दीप्ति बोली- हैलो हीरो.. कब आए?
मैं- आज ही..
दीप्ति- आज ही आए और आज ही यहाँ.. बात क्या है?
मैं - आपसे मिलने आ गया..
दीप्ति - हाहहहाहा हा हा इतना घूर के क्या देख रहे थे?
मैं - आपको देख कर मैं पहचान ही नहीं पाया।
दीप्ति- ऐसा क्यों?
मैं - अरे आप बहुत खूबसूरत जो हो गई हैं।
दीप्ति - मेरे घर में मुझसे ही फ्लर्टिंग?
मैं - क्या करूँ खूबसूरत लड़की को देख कर अन्दर से निकलने लगता है।
दीप्ति - जय को बताऊँ क्या?
मैं - बताना क्या है.. किसी अच्छी चीज़ को अच्छी कहना गुनाह तो नहीं है..
दीप्ति - मैं कोई चीज़ नहीं हूँ।
मैं - हाहहाहा हाहाहा..
दीप्ति - और सब बताओ.. क्या चल रहा है तुम्हारा?
मैं - बी.टेक और आपका?
दीप्ति- ग्रेजुयेशन ख़त्म हो गया है जॉब की तैयारी चल रही है।
मैं - ओके.. गुड तो कैसी चल रही है तैयारी?
दीप्ति- अच्छी और तुम्हारी पढ़ाई?
मैं- अच्छी।
कुछ देर यूँ ही फारमल बातचीत के बाद मैं वहाँ से चला गया और उसको पटाने का प्लान बनाता हुआ घर पहुँचा।
कांता- कैसी लगी भाई?
मैं - यार मैं तो घायल हो गया।
कांता - क्या हँसते हुए बोली थी ना.. सही है तुम्हारे लिए?
मैं - हाँ मजा आ जाएगा उसके साथ..
कांता- तो आगे क्या?
मैं - कुछ सोचता हूँ.. कल से उसके घर जाता हूँ।
अगले दिन मैं जय के घर पहुँचा तो दीप्ति जय को कहीं चलने को बोल रही थी।
मैं अन्दर आया।
मैं - कहाँ जाने की बात हो रही है?
जय - अच्छा हुआ भाई तू आ गया।
मैं - क्यों क्या हुआ..?
जय - दीदी को आज कुछ काम है मार्केट मे कुछ खरीदना भी है.. तू ले कर चला जा ना.. मुझे अभी कुछ काम है..
मैं - ओके चला जाता हूँ
जय - दीदी तुम राजा के साथ चली जाओ ना.. मुझे कुछ काम है..
दीप्ति - राजा को अगर कोई प्राब्लम नहीं है.. तो मैं जा सकती हूँ।
मैं - मुझे भला क्या प्राब्लम होगी.. आप जाओ.. रेडी हो कर आ जाओ जल्दी।
वो रेडी होने अपने कमरे में चली गई जय मेरे कान में सट कर बोला।
जय- ले जा बेटा.. दिन भर साथ घुमा.. अगर आज मौका खोया तो रोते रहना अपना पकड़ कर..
मैं - नहीं खोऊँगा. तू टेन्शन मत ले..
जय - ओके.. बेस्ट ऑफ लक..
दीप्ति तब तक रेडी हो कर आ गई थी उसने एक सफ़ेद रंग का टॉप और ब्लू डेनिम पहनी थी.. इस ड्रेस में वो एकदम आइटम लग रही थी।
दीप्ति- चलें?
मैं- हाँ ज़रूर..
हम लोग बाहर आ गए.. मेरी बाइक की सीट पीछे से उठी हुई थी.. जिसमें एक आदमी के बैठने के बाद दूसरा जो भी बैठेगा.. वो पहले के ऊपर भार देकर ही बैठेगा.. आप समझ ही गए होंगे कि मैं कहना क्या चाह रहा हूँ।
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भाई-बहन वाली कहानियाँ-9

Post by rajababu »

जब वो मुझसे सट कर बैठी… तो मैं अपनी फीलिंग नहीं बता सकता.. कि कितना अच्छा लग रहा था। उसकी दोनों चूचियों को मैं महसूस कर रहा था और बीच-बीच में ब्रेक मार-मार कर उसके आमों के दबने का मजा ले रहा था। लेकिन वो भी कुछ बोल नहीं रही थी। मैं समझ गया कि वो भी मज़े ले रही है। जब उसका कुछ काम था.. जो कि नहीं हुआ.. शायद उसे कोई फॉर्म भरना था जो वो नहीं भर पाई।
मैं - क्या हुआ?
दीप्ति - नहीं भर पा रहा है।
मैं- कोई बात नहीं.. मैं भर दूँगा रात में दिन में सरवर बिज़ी रहता है.. रात को भरने से हो जाएगा।
दीप्ति - ओके.. भर देना ना.. प्लीज़..
मैं - ओके और कुछ काम है या.. घर चलें..
दीप्ति- हाँ यार थोड़ी शॉपिंग करनी है.. चलोगे..?
मैं- चलो..
हम दोनों एक मॉल में गए और वो कपड़े पसंद करने लगी। मैं भी साथ था मैं हमेशा वैसे कपड़े उसको दिखा कर पूछ रहा था.. जो ज्यादा खुला हो या छोटा हो।
दीप्ति - तुम्हें ऐसे बेकार कपड़े ही पसंद आ रहे हैं.. ये सब भी पहनने की ड्रेस है.. जिसको पहनने के बाद भी नंगे होने का अहसास होता रहे।
मैं - अरे नहीं.. मेरा मतलब ये नहीं था.. बहुत सी लड़कियाँ इस तरह के कपड़े पहनती हैं और वो खूबसूरत लगती हैं। वैसे भी लड़कियाँ इतनी खूबसूरत होती हैं उन्हें थोड़ा हम लड़के भी देख लेंगे.. तो कौन सा उसका कुछ कम हो जाएगा.. लेकिन हम बेचारे लड़कों को थोड़ा तो मजा आ ही जाएगा।
दीप्ति - हाहाहा हा हा हा हा.. तुम लड़कों को और काम ही क्या है लड़कियों को देखने के अलावा।
मैं- और करना ही क्या है हम लोगों को?
कुछ देर बाद उसने कुछ कपड़े ले लिए तो मैंने भी एक कपड़ा जैसे कांता को लाकर दिए थे.. उससे बहुत छोटे-छोटे कपड़े थे.. जो थोड़े पारदर्शी भी थे.. उन्हें ले कर पैक करवा लिए और उसको देते हुए कहा - ये मेरी तरफ़ से.. एक खूबसूरत लड़की के लिए खूबसूरत सा ड्रेस!
दीप्ति - मैं नहीं पहनती ऐसे कपड़े..
मैं- तो मैं कौन सा अभी इसे पहनने को बोल रहा हूँ.. इसको रख लो.. जब तुम अकेली होओ.. तब इसको पहन कर देखना… बहुत ही खूबसूरत लगोगी, अगर नहीं लगी तो फेंक देना।
दीप्ति- नहीं यार.. मैं नहीं ले सकती इसको।
मैं - ओके नो प्राब्लम..
मैंने उसको पैकेट को डस्टबिन में फेंकने लगा।
दीप्ति- ओके बाबा.. लाओ.. रख लेती हूँ।
मैं - ओके मुझे बहुत ज़ोर से भूख लगी है कुछ खाएं?
दीप्ति - हाँ मुझे भी भूख लग रही है.. चलो किसी होटल में चलते हैं।
मैं- ओके..
हम दोनों एक होटल में गए और उसको ऑर्डर करने बोला।
दीप्ति - क्या खाओगे?
मैं - तुम जो खिला दो।
दीप्ति - तुम्हारे लिए भी मैं ही ऑर्डर कर दूँ?
मैं- हाँ.. तो उसने खाना ऑर्डर कर दिया।
दीप्ति- सो.. बताओ तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड है?
मैं - क्यों दिल आ गया है क्या मुझ पर?
दीप्ति - अरे नहीं.. वैसे ही पूछ रही हूँ..
मैं - नो.. अभी तो नहीं है.. शायद जल्दी ही बन जाए।
दीप्ति - बन जाए मतलब.. किसी पर ट्राई कर रहे हो क्या?
मैं - हाँ तुम पर इतनी देर से..
वो हँसी.. हँसी मतलब फंसी।
दीप्ति - अरे नहीं..
मैं- तुम्हारा कोई ब्वॉय-फ्रेंड है क्या?
दीप्ति - नहीं..
मैं- तब तो मेरा लाइन क्लियर है।
दीप्ति - हा हा हा हा हा हा.. अच्छा बताओ.. तुमको कैसी लड़की पसंद है?
मैं- तुम्हारे जैसी..
दीप्ति - हा हा हाहहाहा सो फन्नी.. सच बताओ न..
मैं- खूबसूरत हो.. फेस और दिल दोनों से.. मुझसे प्यार करती हो और क्या..? और तुमको कैसा लड़का पसन्द है?
दीप्ति - तुम्हारे जैसा हाहहह हहाहा.
मैं- सच.. ऐसा मत बोलो यार.. मेरा दिल बाहर निकल कर आ जाएगा।
दीप्ति- अरे नहीं..
मैं - मतलब मैं पसंद नहीं हूँ.. बदसूरत हूँ घटिया.. बोरिंग हूँ?
दीप्ति - अरे नहीं बाबा.. ऐसा मैंने कब कहा?
मैं- तो क्या पसंद हूँ.. हाँ या नहीं में बोलो यार.. कन्फ्यूज़ मत करो..
दीप्ति - हाहहाहा हा हहा तुम पागल हो.. बिल्कुल पागल..
मैं - हा हा हा हा… ठीक है पागलखाने चला जाता हूँ।
दीप्ति- हा हा हा हा यू आर सो फन्नी
मैं- थैंक्स..
दीप्ति- तुम्हें लड़कियों को छोटे कपड़ों में देखना पसंद है क्या?
मैं - अरे नहीं.. मुझे तो लड़की सब से ज्यादा सेक्सी साड़ी में लगती है.. बॅकलैस ब्लाउज हो.. तब तो सोने पर सुहागा लगता है।
दीप्ति- बैकलैस ब्लाउज क्यों?
मैं - क्योंकि इसमें खूबसूरती और भी ज्यादा दिखती है।
दीप्ति- ओह्ह.. आई सी..
मैं - यॅप..
कुछ देर बात करने के बाद हम घर चल दिए और रास्ते भर मजा लेते रहे.. मैंने उसको घर ड्रॉप कर दिया।
दीप्ति- थैंक्स.. आज पूरा दिन तुम्हारे साथ बहुत मजा आया।
मैं- माय प्लेजर.. जब भी ज़रूरत पड़े मुझे याद कर लेना.. आपका ये ड्राइवर हाज़िर हो जाएगा।
दीप्ति- ओके.. सो.. आज शाम को क्या कर रहे हो?
मैं- कोई ख़ास प्लान नहीं है.. क्यों कोई बात है क्या?
दीप्ति- मेरी एक फ्रेंड की बर्थडे पार्टी है.. अगर तुम फ्री हो तो लेकर चलते.. तो पूछा।
मैं- नो प्राब्लम आ जाऊँगा हनी..
दीप्ति- घर में भी बोल देना.. रात को यहीं रुक जाओगे.. क्योंकि फॉर्म भी तो भरना है.. लास्ट डेट में सिर्फ़ 2 दिन बचे हैं।
मैं- ओके.. अब मैं जाऊँ?
दीप्ति- ओके बाइ.. जल्दी आ जाना।
मैं- ओके..
शाम को जब मैं पहुँचा तो उसके पापा और मम्मी कहीं जा रहे थे तो मैंने पूछा- क्या बात है.. बेटा आया तो आप लोग भाग रहे हैं?
‘अरे नहीं बेटा एक रिश्तेदार के यहाँ शादी है, 4-5 दिन के लिए जाना पड़ेगा..’
‘तो स्टेशन छोड़ दूँ क्या?’
‘हाँ छोड़ दो..’
मैं और जय दोनों मिल कर उनको स्टेशन छोड़ आए।
जय- कुछ हुआ?
मैं - जल्दी हो जाएगा।
जय - साले मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है अब तुम मेरी बहन के साथ घूम रहे हो और मैं अपने लौड़े को हाथ से हिला रहा हूँ।
मैं - कोशिश कर रहा हूँ.. जल्दी ही पट जाएगी।
जय - ओके जल्दी कर.. नहीं तो मैं तेरे घर चला जाऊँगा।
मैं- तुम मेरे लिए इतना काम किए हो तो मैं भी तुम्हारे लिए कुछ करता हूँ।
जय - क्या भाई?
मैं - तुम कांता से फोन पर बात कर सकते हो।
जय - थैंक्स मेरे भाई।
मैं - अब घर चल तेरी बहन मेरा इंतज़ार कर रही होगी।
हम दोनों घर वापस आ गए और मैंने उससे बोला- देख, दीप्ति रेडी हो गई हो तो चलते हैं।
मेरी आवाज सुन कर तो वो बाहर आई तब उसने पारदर्शी गुलाबी साड़ी पहनी थी ब्लाउज भी खुले गले का और जिससे चूचियों की लाइन दिख रही थी.. नीचे नाभि से चार उंगली नीचे साड़ी को बाँध रखी थी। जिससे उसका पेट तो दिख ही रहा था.. साथ में नाभि तो और भी सेक्सी लग रही थी।
मेरे पास आई तो पीछे भी दिख गया.. मेरी आँखें खुली की खुली ही रह गईं।
उसने सचमुच बैकलैस ब्लाउज पहना था.. पीछे सिर्फ़ दो डोरियाँ थीं जो ब्लाउज को बाँध रखे थीं.. नहीं तो पीछे का पूरा भाग गर्दन से बुरड़ों के उभार तक नंगी थी। उसे देख कर तो मेरा लंड खड़ा हो गया.. मेरा क्या जय का भी हो गया होगा। वो इतनी सेक्सी लग ही रही थी कि किसी का भी खड़ा हो जाए.. और मैं ये सोच कर मन ही मन खुश हो रहा था कि ये तो पट गई। अब क्योंकि मैं जिस ड्रेस के बारे में उसको दिन में बोला था वो वैसी ही ड्रेस पहने हुई थी.. मतलब अपना काम बन गया भाई।
दीप्ति मुस्कुराती हुई बोली- चलें?
मैं- हाँ चलो..
वो बाइक पर पीछे बैठ गई..
‘ठीक से बैठ गई ना?’
दीप्ति- हाँ..
मैंने गाड़ी आगे बढ़ा दी.. तो वो मुझसे एकदम चिपक कर बैठी थी।
मैं- थैंक्स..
दीप्ति- क्यों?
मैं- मेरे पसंद की ड्रेस पहने के लिए..
दीप्ति- तुम मेरे लिए इतना किए हो तो क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती थी..
मैं- आज तुम बहुत ही सेक्सी लग रही हो।
दीप्ति- क्या?
मैं- एकदम हॉट और सेक्सी आइटम लग रही हो.. पार्टी में हर कोई तुमको ही देखेगा.. बेचारी बर्थडे गर्ल फीकी पड़ जाएगी।
दीप्ति- ऊऊओहू ऊओहो.. तारीफ कर रहे हो या फ्लर्टिंग?
मैं- तुम जो समझ लो।
कुछ दूर चलने के बाद बारिश शुरू हो गई.. तो मैंने जानबूझ कर जंगल वाला रास्ता चुना कि बारिश में फंसे तो जंगल में ही तो कुछ करने का ज्यादा चान्स मिलेगा और शायद मेरी किस्मत को भी यही मंजूर था। अभी हम लोग आधे जंगल ही पहुँचे होंगे कि बारिश तेज होने लगी। सो हम एक पेड़ के नीचे रुकने के लिए भागे.. लेकिन तब तक हम भीग चुके थे और भीगने के कारण कपड़े उसके बदन से चिपक गए थे.. जिससे वो और भी सेक्सी लग रही थी।
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rajababu
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Re: भाई-बहन वाली कहानियाँ

Post by rajababu »

मित्रो आज के बस इतना ही आगे की कहानी कल
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