जोरू का गुलाम या जे के जी
- kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
मॉम की इस तारीफ़ भरी निगाह का और छेड़ने का मेरे पास एक ही जवाब था,
चुम्मी ,
मेरे होंठ जो उनके रसीले होंठों पर थे सरक कर सीधे उनके ३६ डी डी उभारों पर आगये , पहले तो नाइटी के ऊपर से ,और फिर नाइटी सरका केसीधे तनतनाये निपल पर ,
मैं चूस भी रही थी ,चाट भी रही थी जीभ से फ्लिक भी कर रही थी ,
उनकी निगाहे हम दोनों की ओर लगी थी ,ललचाती।
और मम्मी आज मेरी हर हरकत का जवाब मुझे नही बल्कि ,उन्हें दे रही थीं।
वैसे भी बार मॉम की निगाहे उनके तने फड़फड़ाते खूंटे की ओर ही मुड़ रही थीं ,
एक झटके से उन्होंने 'उसे' अपनी गोरी गोरी मुलायम मुट्ठी में कस के पकड़ा और पूरी ताकत से चमड़ी पकड़ के खीँच दी ,
पहाड़ी आलू ऐसा बड़ा सा खूब मोटा गुलाबी सुपाड़ा बाहर ,तड़पता ,फड़फड़ाता ,भूखा ,...
मम्मी मैं भी आऊं आप दोनों के साथ , ... हलके से सिसकी के साथ उनके मुंह से आवाज निकल पड़ी।
और जवाब में मम्मी के लंबे शार्प नाख़ून ,रेड पेंटेड ,...सीधे उनके मांसल सुपाड़े पे गड गए।
और यही नहीं पहले तो उन्होंने अंगूठे से उनके खुल एक्सपोज्ड पी होल को सहलाया ,दबाया और फिर , ... मंझली ऊँगली का नाख़ून अंदर ,
सिसकते हुए वो अचानक से चीख पड़े ,...
बिना उनकी चीख की परवाह किये ,मम्मी मुझसे बोली
" ये नयी दुल्हन तो बहुत चीखती है ,इसका मुंह बंद करना पडेगा। "
और मुंह बंद करने के लिए इससे अच्छा क्या होता ,
मम्मी की कॉटन पैंटी जो उन्होंने जब से यहां आयी थी तब से पहन रखी थी ,दो दिन से भी उपर ,
उनके अगवाड़े पिछवाड़े का सब ' गंध ,स्वाद ' सब कुछ उसमें समाया ,
उनकी देह के हर छेद का रस सीज सीज कर ,उसे भिगाता हुआ ,
एकदम देह रस से गमकता ,
उसकी बॉल बनाकर सीधे उनके मुंह के अंदर ,पूरी ताकत से ठूंस दी।
और उसे बंद करने के लिए ? शायद एक पल सोचना पड़ा होगा लेकिन मम्मी की ३६ डीडी धवल लेसी हॉफ कप सेक्सी ब्रा से अच्छा और क्या होता ,उनका मुंह बंद करने के लिए ,जिसे देख कर वो हरदम ललचाते रहते थे।
बस दो दिन की मॉम के रस से भीगी गीली पैंटी उनके मुंह में और ब्रा मुंह के बाहर ,
मुझे प्रेजिडेंट गाइड का इनाम मिला था ,मेरी बाँधी गाँठ कोई नहीं खोल पाता था ,मेरे सिवाय।
बस मैंने गाँठ बाँध दी ,और अब गोंगो की आवाज के अलावा कुछ भी नहीं निकल सकता था उनके मुंह से।
" यार तेरी तो चांदी हो गयी ,मॉम का देह रस सीधे तेरे मुंह में और उससे भी बढ़कर ब्रा तेरे होंठों पर ,लेले मन भर स्वाद। " मैंने छेड़ा।
लेकिन मम्मी दूसरे काम में लगी थीं ,उन्होंने उनकी भी 'पैंटी और ब्रा भी उतार दी।
और अब वो गाँठ उन्होंने अपने दामाद की लगाई जो मैंने गर्ल गाइड के समय कभी भी नहीं सीखी थी न किसी ने सिखाया था ,
हाँ सुना जरूर था।
और जब बॉबी जासूस बन कर उनकी फेवरिट 'फेमडाम' पिक्चरों के खजाने का पता लगाया तो देखा भी,
सी बी टी
कॉक एंड बॉल टार्चर
और मम्मी वही कर रही थीं, उसका बहुत लाइट रिफाइंड संस्करण ,
और मैं देख रही थी ,सीख रही थी।
ब्रा और पैंटी , से उन्होंने बॉल और कॉक को बांध दिया ,चार पांच चक्कर , और इस कस के ,..
बस मोटा सुपाड़ा खुल कर खुला था।
जैसे गिफ्ट रैप करते हैं न बस वैसे ही उन्होंने एक फूल की तरह गाँठ बाँध दी। खूब कस के।
और अपने दामाद के गाल पे प्यार से हलकी सी चपत लगाते बोलीं ,
" मुन्ना , अब हम कुछ भी करें , तू कुछ भी कर ,.... लेकिन झड़ेगा नहीं। पक्का ,मेरी गारंटी। "
और जैसे अपनी बात के सबूत के तौर पे जोर जोर से मॉम ने उनका खड़ा सुपाड़ा रगड़ा। खूब जोर जोर से ,
उनके दामाद के चेहरे से लग रहा था की बस मस्ती से उनकी हालात खराब हो रही है ,लेकिन
कम तो छोड़िये पृ कम की भी एक बूँद नहीं निकली।
" रात भर तड़पाऊंगी रज्जा लेकिन झड़ने नहीं दूंगी समझे। "
मम्मी की आवाज में जो सेक्स था ,और आवाज से बढ़कर उनके मम्मो का जादू ,मम्मी की ब्रा तो उनका मुंह बंद करने के काम में लगी थी।
बस उनके गदराये छलकते जोबन अब इंच भर भी दूर नहीं थे उनके तड़पते होंठो से।
कुछ देर में मॉम मेरे साथ फिर पलंग पर बैठगयी थीं
और अब उनकी स्टिलेटो सैंडल फिर से मैदान में आगयी।
मम्मी ने ,क्या कोई मथानी से दही मथेगा ,अपनी दोनों सैंडल के बीच जिस तरह से उनके पगलाए लन्ड को वो रगड़ रही थी।
और मैं खिलखिला रही थी ,हंस रही थी।
" तुम अब लाख कोशिश करो नहीं झड़ोगे और झड़ोगे तो अपनी मां बहन के भोंसडे में, " माँ ने अपना फैसला सुनाया।
" चलो एक मौक़ा और ,अगर हम जब ग्रीन सिगनल देंगे तो भी ,जिस किसी के लिए भी ग्रीन सिंगनल देंगे उसी के साथ। "
मैंने हंस के सजा थोड़ी हलकी की ,लेकिन एक बात मुझे कुछ साफ़ नहीं समझ में आयी और मैंने मम्मी के कान में अपना शक जाहिर कर दिया ,
" मम्मी आपकी समधन की बात तो ठीक है , मेरी ननद ,... भोंसडे वाली। वो बिचारी तो अब तक अनचुदी है अपने प्यारे भैया के लन्ड के इंतज़ार में। "
" अरे तो तुझे यहां ले आएगी न ,नथ तो यही उतारेगा लेकिन आठ दस दिन इसके मजा लेने के बाद ,गाँव भेज देना मेरे पास। दस बारह दिन मेरे पास रहेगी न तो , सोलहवें सावन का मजा अच्छे से ले लेगी ,अगवाड़ा पिछवाड़ा सब।
फिर कुछ देर रुक कर उनकी और देख के मुस्कराते हुए बोलीं ,
" अरे फिर मैंने इसे पांच बच्चो का आशीष भी दिया है वो भी चार साल में , वो भी उसी की बुर से निकलेंगे ,आखिर इस का पुराना माल है , नथ उतारने से थोड़े ही काम चलेगा ,उसे गाभिन भी करना पडेगा न। तो जल्दी ही वो भी हो जायेगी ,... । "
मम्मी चाहे जितना धीमे बोल रही हों ,वो चाहे जितना अनसुनी कर रहे हों , ... लेकिन मैं साफ़ समझ रही थी ,कान पारे वो सब सुन रहे हैं।
और यह सब कहते हुए भी मम्मी ने उनके खूंटे को अपनी सैंडल के बीच मसलना नहीं बंद किया और साथ में वो अपनी ४ इंच की हील कभी कभी उनके सुपाड़े में
गड़ा देती थीं।
और जिस तरह से वो तनतना रहे थे ,सिसकियाँ भर रहे थे ,... ये साफ़ था की उन्हें बहुत मजा आ रहा है।
बाहर हलकी हलकी बारिश शुरू हो गयी।
सावन का मस्त मौसम था।
" हे इस खिलौने को ज़रा बरामदे में चलते हैं न , थोड़ा झूला झुलाते है। "
मम्मी बोलीं और मम्मी ने उनकी साडी की एक लीश बना के पहले तो उनकी कमर में फंसाया और फिर जो कॉक और बॉल्स में गाँठ बंधी थी उसमें से डाल के ,आलमोस्ट खींचते हुए बाहर बरामदे में ले आयीं।
जहाँ झूला पड़ा हुआ था।
मन तो झूला झूलने का होता था , लेकिन शहर में आम और नीम के दरख्त घर के बाजू में तो होते नहीं न ही अमराइयाँ ,जहां चार पांच हम उम्र लड़कियां ,भौजाइयां झूले की पेंगों के साथ मस्तियाँ कर सकें ,कजरी की धुन के साथ चिकोटियां काट के भाभियों से बीते रात की कहानियां पूछ सकें।
गाँव तो शहर में आता नहीं ,कहीं बहुत दूर ख़तम हो जाता है।
और अब शादी के बाद एक बार जब मैं गाँव गयी तो देखा अब गाँव में भी गांव नहीं रहा।
रहते तो हम लोग लखनऊ में थे ,लेकिन पास में ही मलीहाबाद के पास काफी बड़े आम के बाग़ थे , पुराना मकान था ,
और साल में एक दो बार मैं भी चली जाती थी ,ख़ास तौर से सावन में ,... वो घर आज कल की जुबान में फ़ार्म हाउस में तब्दील हो गया था। लेकिन मॉम का निज़ाम अब भी पुराने ज़माने वाला था ,सख्त भी ,मुलायम भी। और मॉम भी अब लखनऊ में भी कहां ,... शाम दिल्ली में तो दिन मुम्बई में ,... पर इस के बावजूद आमों के मौसम में वो अभी भी महीने भर तो गाँव में रहती ही थीं।
तीज में यहां भी क्लब में मेहंदी ,झूला ,गाने होते थे ,लेकिन जैसे बचपन में गुड्डे गुड़िया का खेल खेलते थे न बस वैसे ही गाँव गांव ,एकदम आज के बम्बइया फिल्मों की भोजपुरी ,न वो रस न वो मिठास ,न अपनापन।
चलिए कहाँ की बात कहाँ ले पहुंची।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
यहाँ झूला बरामदे में पड़ा था ,बस इनसे कह के चुल्ले पे दो रस्सियां डलवा के ,बीच में एक पीढ़ा सा डाल के, बरामदा खूब लंबा सा था ,इसलिए पेंग मारने की जगह भी ,और आँगन सटा था तो बारिश की फुहार ,पुरवाई ,...
मम्मी ने इसे हैमॉक की तरह करवा दिया ,आते ही। वहां से पूरा घर भी नजर आता था।
बस उसी झूले पे इन्हें चढ़ा दिया।
कमरे से निकलने के पहले इनके हाथ पैर तो खुल ही गए थे लेकिन एक बार फिर जैसे ही इनके हाथों ने रस्सी पकड़ी ,वो फिर बांध दिए गए।
बांधे गए अबकी मेरी ब्रा से और बांधने वाली मैं थी ,एकदम सख्त गांठे।
और मम्मी उनसे उनकी टाँगे उठवाने में लगीं थी।
" टांग उठा ,और ऊंचा जैसे तेरी माँ बहन उठाती हैं न हाँ वैसे ही ,और ,चौड़ा कर और ,और,... अरे छिनारों ने तुझे टांग फैलाना भी नहीं सिखाया , खुद तो झांटे बाद में आयीं ,टाँगे पहले फैलाना शुरू कर दिया ,... "
मम्मी मेरी इनइमीटेबल मम्मी ,असली प्यारी वाली ,... आज पूरे रंग में थीं।
और उन्होंने टाँगे खूब ऊँची ,चौड़ी कर दिया।
बस मम्मी ने झूले की रस्सी से उन उठी फैली टांगो को बाँध दिया।
और एक्जामिन किया ,... लेकिन अभी भी उन्हें कुछ कमी लगी।
पास पड़े केन के सोफे पर के सारे कुशन वो उठा लायीं ,
और जैसे कोई मरद , गौने की रात अपनी नयी नवेली दुल्हन के चूतड़ के नीचे ,बिस्तर पर के सारे तकिये लगा के ऊंचा उठा दे ,जिससे मोटा लौंडा भी वो घचाक से घोट सके ,बिलकुल वैसे।
और अब उनके चूतड़ एकदम हवा में उठे थे , दूर से भी दिख रहे थे।
लेकिन मॉम का काम इससे भी ख़तम नहीं हुआ।
इधर उधर बिना मुझसे कुछ बोले ,वो कुछ ढूंढती रही और उन्हें मिल भी गया।
एक लंबा मोटा सा डंडा ,
बस वो उन्होंने उनके खुले पैरों और झूले की रस्सी से ऐसे बाँध दिया की बस ,
अब वो लाख कोशिश कर लें, पैर उनके ऐसे ही खुले रहने वाले थे।
मैं प्यार से उनके बाल बिगाड़ रही थी ,सहला रही थी।
और मम्मी भी , उनकी प्यारी प्यारी लम्बी लंबी गोरी नटखट उँगलियाँ ,
उनके मोटे तड़पते छटपटाते खूंटे के 'बेस' को सहला रही थीं ,छू रही थीं , रगड़ रही थीं।
कभी मम्मी का अंगूठा उनके मांसल सुपाड़े को दबाता तो कभी घिस देता ,
और अचानक ,
मॉम के लंबे तीखे नाखूनों ने , खूब जोर से सुपाड़े पे खरोंच लिया।
पैंटी का गैग उनके मुंह में ठूंसे होने के वावजूद , हलकी सी चीख निकल गयी।
और मैंने भी साथ में, आखिर मम्मी के दामाद थे तो मेरे मेरे भी तो साजन थे , मेरी छिनार ननदिया के बचपन के यार ,
मेरे होंठ जो उनकी चौड़ी छाती पे प्यार से टहल रहे थे ,चूम रहे कभी जीभ की नोक से उनके निप्स को हलके से फ्लिक करते थे ,
उनके निप्स भी उनकी छुटकी बहिनिया की तरह एक दम टनटना रहे थे।
और अचानक ,
मैंने भी , कचकचा के उनके निप्स को काट लिया , हलके से नहीं पूरी ताकत से।
दर्द से वो बिलबिला उठे।
कभी नीम नीम ,कभी शहद शहद
कभी वो मजे से पागल हो उठते तो कभी दर्द से।
मेरी और मम्मी दोनों की जुगलबंदी चल रही थी साथ साथ।
ऊपर का हिस्सा मेरे जिम्मे ,नीचे का उनके हवाले।
लेकिन उन्हें कैसे लग रहा था , उनकी हालत का असली अंदाज उनके खूंटे के कड़ेपन से लग रहा था।
इतना कड़ा ,इतना तगड़ा तो मैंने उसे तब भी नहीं देखा था जब उन्होंने वियाग्रा की डबल डोज ली थी।
और मम्मी की हरकते रुकने का नाम नहीं ले रही थी , उनकी उँगलियाँ ,उनके नाख़ून हर बार तड़पाने के नए तरीके ढूंढ़ रहे थे।
उनके नाख़ून कभी उनके पी होल में तो कभी उनके बॉल्स को स्क्रैच कर लेते ,
कभी वो मुट्ठी में उनके बॉल्स को लेके जोर से मसल देती ,
कभी हलके से उनके बौराये पगलाये लन्ड पे चपत लगा देतीं।
मैं मम्मी की हरकतें देख रही थीं।
मम्मी ने मुझे देखते हुए देखा तो मुस्करा के दूर हट गयीं , जैसे कह रही हों अब तेरी बारी।
मैंने एक जोर का झटका दिया और काले काले बादलों ने चाँद को घेर लिया।
मेरे लंबे घने बाल खुल गए।
और फिर मेरे बालों ने अपना जादू दिखाना शुरू कर दिया , पहले तो हलके हलके उनके तड़पते खूंटे को मैं और तड़पाती रही ,फिर उससे बांधकर , कस के ,.... आगे पीछे ,...
पूरे दस मिनट तक ,
आज तक इस ट्रिक से वो पांच छ मिनट में ही ,लेकिन आज
और आधे घंटे से ऊपर हो गए थे मुझे और मॉम को उन्हें तंग करते छेड़ते ,उसके बाद मेरे काले बालों का ये जादू ,
,.
लेकिन मैं छोड़ने वाली नहीं थी उन्हें इतनी आसानी से ,इत्ता मस्त खड़ा लन्ड हो और ,...
थोड़ी देर मेंरे होंठ उनके सुपाड़े पर सपड़ सपड़ और फिर उसके बाद ,
टिट फक ,...
वो तड़प रहे थे ,मचल रहे थे , अपने चूतड़ पटक रहे थे , पर,...
बांसुरी ऐसे ही मस्त कड़ी थी ,
अब मुझे समझ में आया सी बी टी का असली मजा उनकी लन्ड की ताकत के साथ जो मम्मी ने गाँठ लगाई थी ये उसी का नतीजा था।
मम्मी नेकहा भी तो था , तू चाहे जो कुछ भी कर ले अब ये झड़ने वाला नहीं।
ये तो किसी भी लड़की के लिए एक सपना हो सकता है , एक लंबा खूब मोटा कड़क लन्ड ,जो तब तक न झड़े वो जब तक न चाहे।
मैंने मम्मी की ओर मुस्करा के देखा और उन्होंने भी मेरा मतलब समझ के, न वो सिर्फ मुस्करायीं ,बल्कि जोर से आँख मार के उन्होंने मुझे अपने पास बुला भी लिया। बांहों में मुझे भींच के बोलीं ,
" अब इस छिनार की नथ उतारने का समय आ गया है। बहुत तड़प रही है बिचारि। "
"एकदम मम्मी लेकिन ज़रा अपने इस माल को ठीक से देख तो लीजिये। " मैंने टुकड़ा लगाया।
पीड़ा में आनन्द जिसे हो , आये मेरी मधुशाला
" अब इस छिनार की नथ उतारने का समय आ गया है। बहुत तड़प रही है बिचारि। "
"एकदम मम्मी लेकिन ज़रा अपने इस माल को ठीक से देख तो लीजिये। " मैंने टुकड़ा लगाया।
…..
और मम्मी मेरी बात मान के एक बार फिर उनके पास गयीं और इस बार उनकी निगाह उनके उठे ,खूब मांसल गोरे गोरे गदराये चूतड़ों पर थी ,एकदम मक्खन जैसे चिकने ,मुलायम।
" साले अगर किसी की दुल्हन होता न तो रोज रात वो बिना नागा तेरी गांड मारता ,पक्की गारंटी है मेरी। "
और ये कहते हुए बड़े प्यार से मम्मी ने उनके चूतड़ सहलाये , और मेरी ओर देखा , मैं क्यों मौक़ा छोडती ,बोल पड़ी ,
" अरे मम्मी , गांड तो इनकी अभी भी रोज बहुत प्यार से मारी जा सकती है। "
मम्मी तब तक असली जगह का मौका मुआयना कर रही थीं।
एकदम कसा हुआ हलका सा ब्राउन छेद ,चारो और मसल्स से जकड़ा।
थोड़ी देर तक अपनी तर्जनी से मम्मी ने उसे रगड़ और उसे पुश करने की कोशिश की ,... लेकिन फेल।
उन्होंने जोर बढ़ाया पर तब भी , अंदर घुसाना बहुत मुश्किल लग रहा था।
एक बार फिर मॉम ने मेरी ओर देखा और बोलीं , " तू सच कह रह थी अभी तक कोरी है इसकी "
और फिर अपनी बात का रुख मम्मी ने उनकी ओर मोड़ दिया ,
" सुन बहनचोद , मां के भंडुए , घबड़ा मत ,... परेशान होने की कोई बात नहीं है , जैसे तेरे इस टनाटन लौंडे से तेरी उस छुटकी बहिनिया की चूत फड़वाउंगी न वैसे ही तेरी इस कच्ची कसी गांड का भी जल्द इलाज करुँगी।
अब मैं आ गयी हूँ न ,तेरे इस लौंड़े को जैसे तेरी बहन की कसी चूत का मजा दिलवाऊंगी , तेरी माँ के रसीले भोंसडे का मजा दिलवाऊंगी ,वैसे तेरी इस गांड को भी , ... बहनचोद ,मादरचोद के साथ पक्का गांडू भी ,... "
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
कुछ देर तक माँ उन की उस कसी दरार में ऊँगली रगड़ रगड़ के मजा लेती रही , फिर मेरे पास आगयी और मुझसे बोलीं ,
"सिर्फ एक कमी ऐसी मस्त गांड पे , और ये तेरी गलती है। सोच लोग गोरी गोरी हथेलियों में मेहंदी लगाते है ,पैरों में महावर लगाते है वैसे ही इस गोरे गोरे मखमली चूतड़ गुलाब के फूल खिले रहने चाहिए। ये घर में तब भी ,बाहर जाएँ तब भी , आफिस में हो टूअर पर हों , बस महावर की तरह ,तेरी याद आएगी जबी भी उन्हें वो दिखेंगे क्यों हैं न मुन्ने। "
जैसे उनकी आदत थी मम्मी की हर बात में हाँ मिलाने की ,उन्होंने सर हिला के हामी भर दी। ( बोल तो सकते नहीं थे ,बिचारे उनके मुंह में मम्मी को दो दिन की पहनी ,मम्मी के देह रस में डूबी पैंटी जो ठुंसी थी। )
और मॉम ने मेरे कान में समझा दिया की क्या करना है। उन्होंने मुझे एक दस्ताना भी दे दिया पहनने को ,एकदम मिट्स की तरह था ,रेड लेदर ग्लव विद वेलक्रो फासेनर।
" पूरी ताकत से ,... "मुझसे बोलीं वो।
मैंने पहला हाथ लगाया ,लेकिन ज्यादा जोर से नहीं ज्जहां से नितंब शुरू होते हैं वही।
मॉम ने मुझे घूर के देखा और डांटा ,
" हे कोई यारी नहीं चलेगी ,ये नहीं काउंट होगा ,चल फिर से शुरू कर "
और उनसे बोलीं , हर स्पैंक के बाद ,तुझे नम्बर बोलना होगा , १ ,२ , ३ और साथ में अपनी माँ के नाम एक मस्त गाली।
अगर ज़रा भी हलकी हुयी न तो सोच ले मैं सबेरे की ट्रेन से वापस ,
अचानक मॉम को याद आया उनके मुंह में तो मम्मी की अगवाड़े पिछवाड़े के हर तरह के रस में भीगी पैंटी ठुंसी हुयी है। और मम्मी ने उनके मुंह से पैंटी निकाल ली।
और इस बार मेरा हाथ एकदम ऊपर तक गया ,और फिर ,...चटाक
दर्द से निकलती चीख को उन्होंने किसी तरह दबाया और बोला ,एक और फिर मम्मी की समधन के नाम मोटी सी ,
मम्मी ने खुश हो के मेरी ओर देखा ,
दूसरा भी उसी जगह लगा ,लेकिन पहले से भी तगड़ा और वहां पर हल्का गुलाबी रंग खिल उठा ,
फिर और ऊपर
और उपर
दसवां सीधे गांड के छेद पर ,
दस बाएं चूतड़ पे और दस दाएं चूतड़ पे
लेकिन असली ताकत तो मम्मी के हाथ में थी ,उन्होंने तो बिना दस्ताने के ,मुझसे दस गुनी ताकत से
लेकिन साथ साथ मम्मी की आँख से कुछ बच नहीं सकता था ,
मेरे कान में बोलीं " देख बहनचोद को कितना मजा आ रहा है , " उन्होंने उनके निप्स की ओर इशारा किया ,
" एकदम टनाटन हैं न "
सच में ,और अब तक मैं सीख गयी थी मेल अराउजल की सबसे बड़ी साइन है ,निप्स।
लेकिन अब उनकी चीख चिलाहट भी चालु हो हो गयी थी।
" अरे अगर गौने की रात दुल्हन चीखे चिलाये नहीं ,पूरे घर में उसकी चीखने की आवाज न गूंजे तो सास ननद क्या सोचेंगी। यही न की मायके में अपने भाइयों से फड़वा के आ रही है ,चीखने दे इसे। तभी तो गौने की रात का मजा आएगा। "
मम्मी बोलीं ,और अब हाथ की जगह उन्होंने टेबल टेनिस का बैट मुझे थमा दिया था।
और फिर मेरे बाद मॉम का नम्बर।
तीस चालीस मिनट तक बारी बारी से , और फिर मम्मी ही रुकीं बोली देख अब इस बहन के भंडुए की गांड का सिंगार पूरा हो गया है न।
पूरा गुलाबी ,कहीं कहीं लाल भी ,एक इंच जगह नहीं बची थी जहाँ हमारे हाथ के निशान न हो।
लेकिन मेरा दिमाग भी तो शैतान की चरखी ,...मैंने वाटरप्रूफ इन्डेलिबिल क्रेयान उठाये और उनके पेट पर लिख दिया मोटा मोटा ,
रंडी ,बहनचोद।
मम्मी को मजा आ गया लेकिन उन्होंने उनके गांड के छेद की ओर इशारा किया
" असली चीज तो ये है। "
और हम दोनों ने मिल के उसे फैला दिया , फिर तो उसके चारो और ,एकदम कसी गुलाबी चूत की तरह दोनों ओर लोवर लिप्स मैने पेंट किये ,खूब मांसल
और एक तीर का निशान बना के लिख दिया
" कंट"
मम्मी उसे रगड़ते हुए उन्हें समझा रही ये तेरी मेल चूत है इसे एकदम मस्त रखना ,साफ़ सुथरी ,मुलायम और रोज ऊँगली डाल के अंदर तक वैसलीन ,.. क्या पता किस दिन इसका नंबर लग जाए , और फिर मैं चेक भी करती रहूंगी।
जैसे तेरी बहन अपने चूत को मक्खन की तरह मुलायम रखती है न एकदम उसी तरह ,समझ गयी। "
उन्होंने जोर से हामी में सर हिलाया।
" यार इसका एक घर का नाम भी रख देते हैं न पुकारने का ,.. "
और मैंने भी हामी में सर हिलाया।
कुछ देर तक हम माँ बेटी राय मशविरा करते रहे ,फिर मैंने ही मॉम को राय दी ,
" मम्मी इन्ही से पूछ लेते हैं न "
और मम्मी ने इन्ही से पूछ लिया और सही भी किया ,आखिर उनका मुंह हम लोगों ने खोल तो दिया था न।
" हे बोल साल्ले , तुझे अपना माल , वो तेरी ममेरी बहन ,उसकी छोटी छोटी चूंचियां मस्त लगती हैं न ,"
" हाँ मम्मी ," मुस्करा के बोले वो।
" बोल दिलवा दूंगी तो चोदेगा न अपनी उस छिनार ममेरी बहन को " मॉम ने फिर साफ़ किया।
" हाँ ,मम्मी एकदम चोदूगा। "
उन्होंने न सिर्फ जोर जोर से सर हिलाया बल्कि मुंह खोल के भी बोला।
" चीखे चिल्लायेगी ,चूतड़ पटकेगी , जबरदस्ती चोदना पडेगा ,एकदम कोरी चूत होगी उसकी। "
मम्मी एकदम पीछे पड़ गयी थीं कबूलवाने के।
" हाँ मम्मी चाहे जो कुछ करे ,बिन चोदे छोडूंगा नहीं उसको। "
अब वो एकदम मूड में आ गए थे।
मम्मी उन्हें छोड़ के मेरे पास आगयी और मुझसे बोलीं ,
" बस अब पक्का , इसका घर का नाम बहनचोद, हम तुम इसे घर में इसी नाम से बुलाएंगे। क्यों हैं न अच्छा नाम। "
जवाब उनकी ओर से मैंने दिया ,
" हाँ मम्मी एकदम मीठा सा नाम है , और सिर्फ अपने घर में ही नहीं इनके मायके में भी मैं तो इन्हें इसी नाम से बुलाऊंगी ,क्यों बहनचोद ठीक है न। " मैंने उनसे बोला।
और गौने की दुल्हन की तरह वो झेंप गए।
मैंने क्रेयान उठाया और मोटा मोटा सुनहले ,लाल रंग से उनकी छाती पर लिख दिया 'बहनचोद ' और फिर उसे टैटूज़ के कलर से आलमोस्ट पक्का कर दिया।
लेकिन मम्मी का ध्यान एक बार फिर गोलकुंडा की तरफ चला गया था। सहलाते हुए बोलीं
" तेरी असली चीज तो यही है , तेरी माँ के भोंसडे और बहन की चूत से कम रसीला नहीं है ये " और फिर उन्होंने उसमें ऊँगली घसेड़ने की नाकामयाब कोशिश की /
पास में एक टेबल पर ढेर सारी मोमबत्तिया रखी थीं ,हर साइज की ,हर मोटाई की।
मैं उनका इरादा समझ के झट से उनके पास गयी और कान में फुसफुसाया ,
कुछ देर में मेरी बात मान गयी और एक पतली सी मोमबत्ती , ( एक ऊँगली के बराबर मोटी रही होगी ) लेकर जबरदस्ती उनकी गांड में पेल दिया और बत्ती वाला हिस्सा बाहर था।
मम्मी ने एक लाइटर जलाया ,
" बोल माँ के भंडुए , जला दूँ ये मोमबत्ती "
वो बिचारे सिहर गए।
" तो सुन ,अगले आधे घण्टे तक ,बिना रुके अपने घर की सारी लड़कियों का नाम ले ले के ,सारी औरतों का ,तेरी बहने लगे , तेरी बुआ मौसी चाची लगें सब , ..."
" जिनकी अभी झांटे नहीं निकलना शुरू हुयी हैं वो भी , मेरे पास पूरी लिस्ट है , सब का नाम ले के " मैंने भी जोड़ा।
" अपना नाम ले के ,अपनी ससुराल के मर्दों का नाम ले के , एक से एक गाली , और अगर रुके तो बस सोच ले , .... " मम्मी ने बोला ,और चूतड़ पर स्पैंकिंग चालु कर दी।
अगर किसी का नाम अवॉयड करने की वो कोशिश करते तो मैं बता देती और बोल भी देती ," ये मत सोच छोटी है तो चुदेगी नहीं , चोद चोद के बड़ी करवा दूंगी। "
आधी से ज्यादा रात बीत चुकी थी।
आधे घंटे से ज्यादा ही मम्मी ने उनसे गाली दिलाई ,चूतड़ पे हाथ जमाये ,
और फिर हम दोनों बिस्तर पर जाके बैठ गए , पास में ही।
दो घंटे से ऊपर हो गए थे उन्हें झूले में बंधे।
" इसकी बहुत सेवा कर दी हम दोनों ने अब इससे सेवा करवाते हैं। " मम्मी बोलीं
और मैंने भी हामी भर दी। बिचारे इतने देर से ,...
" चल बहनचोद तू भी क्या याद करेगा " और मम्मी ने उनके हाथ पैर खोल दिया।
हाँ उनका 'वो ' अभी भी बंधा था।
हाँ जब वो बिस्तर के पास आये तो बस उन्हें झुका के मम्मी ने एक बार फिर उनका हाथ उनके घुटने से बाँध दिया।
बड़ी रिक्वेस्ट की उन्होंने तो मम्मी ने अपना पैर उनकी और बढ़ाया ,
क्या मम्मी की सैंडल की चटाई की ,एकदम स्पिट क्लीन।
खुश हो के मम्मी ने उन्हें अपने तलवे भी चाटने दिए और फिर गोरे गोरे पैर पिंडलियाँ और फिर वो मुड़ गयीं , उनके नितम्ब हवा में थे , डॉगी पोज में।
उनके हाथ बंधे थे फिर भी , पहले नितंबों पे होंठों से जीभ से ,
फिर मीठे मीठे किस सीधे मम्मी के पिछवाड़े केछेद पे और उसके बाद जीभ ,अंदर
मम्मी ने आँख के इशारे से मुझे उनके खूंटे को आजाद करने की इजाजत दे दी।
मारे खशी के उन्होंने अपनी आधी से ज्यादा जुबान मम्मी की रसीली गांड में ठेल दी।
मम्मी उन्हें उकसाती रही ,पुचकारती रहीं गरियाती रहीं ,
" चाट रंडी के जने ,उसकी भी ऐसी ही चटवाउंगी अपने सामने ,फिर मारना उसकी गांड ,...क्या चाटता है राजजा चाट और चाट "
और उन्होंने पूरी जुबान अंदर ठेल दी गोल गोल घुमाते रहे।
आधे घण्टे तक उनकी जुबान मम्मी के पिछवाडे अंदर घुमती रही ,वो चाटते रहे ,मम्मी चटवाती रहीं ,... तब जाके मम्मी ने उन्हें बाहर निकालने दिया।
और मैं अपने मौके के इन्तजार पे बैठी थी।
बस मैं खुद अपने चूतड़ फैलाके ,उनके मुंह पे और ,...उनकी जीभ अब मेरी रसीली गांड के अदंर।
मम्मी अब उनके लन्ड के ऊपर बैठीं थी ,ड्राई हंपिंग करती रगड़ते ,
और साथ में मैं और मम्मी एक दूसरे को किस करते , कभी बूब्स रगड़ते। ..
" बोल बहनचोद तू ले सकता है अपनी माँ के साथ ऐसे मजे। "
उनका मुंह तो मेरे चूतड़ के नीचे दबा था , जीभ मेरी गांड के अंदर ,वो क्या बोलते। लेकिन जवाब उनकी ओर से उनकी सास ने दिया ,
" तू समझती क्या है मेरे मुन्ने को मेरे तेरे सामने , चोदेगा उनको हचक हचक के गांड मारेगा देखना ,अरे ये सिर्फ बहनचोद ही नहीं मादरचोद भी है। "
" और गांडू भी मम्मी " हंस के मैंने उन्हें चिढाया।
सुबह की पहली किरण बस निकल रही थी।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
friends is se aage ki kahani fir kabhi
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जोरू का गुलाम भाग ४१
जोरू का गुलाम भाग ४१
मैं और मम्मी सोने चले गए ,लेकिन वो नहीं। उनका लन्ड एकदम पागल हो रहा था बिना झड़े।
" घबड़ा मत मौक़ा मिलेगा इसे भी बस सेवा करते रहो " मम्मी ने मुस्कराते हुए उसे जोर से मुठियाते रगड़ते कहा।
" और क्या हम लोगों ने बोला है बस जब हम लोग ग्रीन सिगनल जब देंगे बस पूरी छूट " मैंने हँसते उनके बाल बिगाड़ते बोला।
" सिर्फ एक चीज छोड़ के ,मेरी समधनों को ,इसकी ननदों की बिल में जब चाहो तब मलाई गिरा सकते हो ,तेरी मायकेवालियों के लिए पर्मांनेट ग्रीन सिग्नल "
मम्मी ने आल लाइन क्लियर दे दिया।
मम्मी और मैं एक दूसरे को पकड़ के सो गए ,रात भर के जगे ,थके थे हम दोनों।
हाँ लेकिन सोने के पहले मम्मी और मैं भी ,
उनको 'बेड टी ' पिलाना नहीं भूलीं , सुनहली किरणों के साथ ,...छरर छर्र ,घल घल
दो कप।
और उनके चेहरे की ख़ुशी देखते बनती थी।
मैं और मम्मी तो सो गए लेकिन उनके जिम्मे काम बाकी था। मंजू बाई अभी छुट्टी पर थी ,आज दोपहर को आने वाली थी।
बर्तन , झाड़ू पोंछा ,... ऊपर से मम्मी ने बोला था की ब्रेकफास्ट बना के ,खाने की तैयारी कर के ही उन्हें जगाये वो।
एक नया दिन शुरू हो गया।
नया दिन
मंजूबाई को आज भी नहीं आना था।
सुबह से सारा काम , झाडु पोंछा ,बरतन ,डस्टिंग , नाश्ता , खाने की पूरी तैयारी , और ऊपर से उन्हें मालूम था की मम्मी कितनी परफेक्शनिस्ट हैं ,अगर कहीं धूल का एक कण भी दिखाई दे गया न तो बस उनकी मां बहन सब एक कर देंगीं।
दस बजे हम कब बस उठ ही रहे थे ,वो बेड टी लेकर हाजिर हुए।
पहले उन्होंने खिड़की का पर्दा खोला , सावन की मुलायम धूप का एक टुकड़ा गुनगुनाता खिड़की से दाखिल हुआ। और मम्मी अंगड़ाई लेकर उठीं।
मम्मी ,... स्लीवलेस ,आलमोस्ट ट्रांसपैरेंट सिल्कन नाइटी , ...
जो अंगड़ाई ली उन्होंने तो उनकी गोरी गोरी मांसल बाहें ,और अंगड़ाई लेते ही उनकी काँखे , जैसे तीन दिन की बढ़ी हुयी काली काली रोमावली , काँखों में.
उनकी आँखे तो बस वहीँ चिपकी हुयी थीं।
और मेरी और मम्मी की आँखे उनके ,.. कल रात का गुलाबी साटिन पेटीकोट अभी भी उन्होंने पहन रखा था ,और खूँटा पुरे बित्ते भर तना हुआ ,... हम दोनों तो तीन तीन बार झड़े थे ,पर वो बिचारे भूखे प्यासे , और वो जा रात में खड़ा हुआ था तब से अभी तक ,...
मम्मी ने उनकी ओर अपने पैर बढ़ा के हलके से बोला ,
चप्पले।
गोरा गोरा तलवा महावर लगा , स्कारलेट कलर के नाख़ून , घँघरु वाले बिछुए ,चांदी की रुनझुन करती माँसल पिंडलियों से लिपटी पायल
खुद झुक के उन्होंने मम्मी के पैरों में चप्पल पहनाई।
और मम्मी भी न बस जैसे जाने अनजाने उनके पैर ने हलके से उनके खड़े खूंटे को सहला दिया।
और फिर जैसे अपने आप , झुक के उन्होंने स्कारलेट रेड नाखूनों को ,उनके पैरों को चूम लिया।
मम्मी मुस्करायी और अपने पैर ऐसे उठाये की स्लीपर का निचला हिस्सा उनके होंठों के सामने , ... कुछ बोलना नहीं पड़ा , उन्होंने स्लीपर को भी चूम लिया और फिर मम्मी की एड़ी।
मम्मी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया ,पकड़ के उन्होंने मम्मी को बेड पर से उठा लिया और फिर कमरे से जुड़े बाथरूम में , बड़ी कर्टसी से उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खोला। मम्मी अंदर गयी ,लेकिन दरवाजा मम्मी ने उठंगाये ही रखा, अंदर से।
और जब वो बाहर आयीं तो फर्श पे बैठ के बड़ी स्टाइल से झुक के उन्होंने चाय हम लोगों के प्याले में ढाली ,ब्रेकफास्ट के लिए पूछा। लेकिन उसके बावजूद मम्मी ने टोंक ही दिया, उनके पेटीकोट की ओर इशारा करते हुए
" ये रात के लिए तो ठीक था लेकिन दिन में काम करते समय ,... मैं ले आयी थी न "
और उन्होंने इशारा समझ लिया।
ब्रेकफास्ट टेबल पर उन्होंने एक साडी ,जो माम ले आयी थीं , उनकी पहनी हुयी ,जो पहन पहन के उनकी देह से रगड़ के घिस गयी थी , वो ,... लुंगी ऐसे ,..
ब्रेकफास्ट एकदम गरम , कार्नफ्लेक्स ,दूध , आमलेट ,बटर्ड टोस्ट , फ्रेश फ्रूट्स , मैंगो जूस।
टेबल सिर्फ दो लोगों के लिए लगी थी लेकिन मम्मी ने उन्हें भी खींच के अपने बगल में बैठा लिया और अपनी प्लेट से ही,
और जैसे ही टेबल साफ कर के वो फ्री हुए ,मम्मी ने उन्हें बुलाया और उसी टेबल को पकड़ कर झुकने का इशारा किया ,
और उनकी लुंगी बनी साडी उठा दी।
हम दोनों मुस्करा उठे , साडी के अंदर मम्मी की उतारी हुयी पैंटी , जो कल हम लोगों ने उनके मुंह में ठुंसी थी , और नितम्बो पर रात के सारे निशान ,गुलाब के फूल ,अभी भी एकदम लाल लाल।
मम्मी ने प्यार से एक हाथ जोर से ,फिर से जड़ दिया और बोलीं ,
" काम ख़तम कर के जल्दी आना ,तुझे कुछ घर के काम सिखाने हैं। "
मम्मी ने प्यार से एक हाथ जोर से ,फिर से जड़ दिया और बोलीं , " काम ख़तम कर के जल्दी आना ,तुझे कुछ घर के काम सिखाने हैं। "
आधे घंटे से पहले ही वो हाजिर थे।
मम्मी ने तय किया था ,रोज दो घंटे निडल वर्क उनके लिए।
मम्मी के लौटने के पहले उन्हें एक टेबल क्लाथ और भी कई चीजें काढ़नी थी।
मम्मी ने जब अपना सामान खोल कर उनके लिए गिफ्ट आइटम निकाले थे ,मम्मी की पहनी हुयी पैंटीज ,घिसी हुयी साड़ियां , तो उसी के साथ इन्हें एक एम्ब्रायडरी की किताब ,नीडल,क्राचेट सब ले आयीं थी। लेकिन कढ़ाई शुरू करने के पहले एक कॉटन के कपडे पे उन्हें हर तरह की स्टिच सीखनी थी।
कुछ किताब से पढ़ के कुछ मम्मी से समझ के।
चेन स्टिच ,बटनहोल स्टिच तो वो कर ले रहे थे लेकिन फिश बोन स्टिच में अभी भी उन्हें मुश्किल हो रही थी।
जब मॉम के सामनेबैठकर अपनी स्टिच का काम वो दिखा रहे थे तो , मम्मी के चेहरे पर उनके काम के एप्रोवल की हलकी सी झलक से उनके चेहरे पर ख़ुशी की लहार दौड़ जाती थी , और अगर कहीं उन्हें हलकी सी भी मम्मी की भृकुटि टेढ़ी लगी तो वो डर के मारे सिहर उठते थे।
लेकिन उनका सुबह का सब काम चेक करने के बाद मम्मी ने जब एक हलकी सी प्यारी सी मुस्कराहट के साथ उन्हें देखा तो बस उनकी बांछे खिल उठी ,उन्हें लगा सब मेहनत सफल हुयी।
फिर मम्मी ने उन्हें क्रोशेट के लिए नीडल में धागा कैसे डालें ये सिखाया फिर हाफ डबल क्रोशेट ,ट्रिपल क्रोशेट सिखाया। सीखने में तो वो तेज थे ही फिर मम्मी की सिखाई कोई बात तो वो भूल भी नहीं सकते थे। बस उन्हें लगता था क्या करने से मम्मी खुश रहेंगी,वो कर डालें।
कुछ देर तक उन्होंने प्रैक्टिस की फिर किचेन में ,मम्मी के लिए लन्च बनाने , सारी की सारी मम्मी की फेवरिट डिशेज ,सब नान वेज।
लन्च के बाद फिर , मम्मी के साथ बैठ कर वो नीडल वर्क कर रहे थे। मम्मी भी कभी मुझसे गप्पे मारतीं तो कभी बीच बीच में उनका नीडल वर्क देख रही थीं।
और वो बिचारे ,एकदम ध्यान से ,बस इतनी सफाई से काम करें की मम्मी एकदम खुश रहे और ये डर भी लगा हुआ था की अगर ज़रा सी भी गलती हुयी तो बस मम्मी ,...
जुलाई का महीना था।
रात भर पानी बरसा था और अब बारिश तो बंद थी लेकिन उमस बहुत थी।
मम्मी ने एक प्याजी रंग की चिकन की साडी ,जाली के काम वाली और साथ में मैचिंग लो कट स्लीवलेस ब्लाउज पहन रखा था जो उनके भारी गदराये उरोजों को मुश्किल से ही सम्हाल पा रहा था।
मैंने मुस्कराके मम्मी को इशारा किया की उनका दामाद बिचारा इतने ध्यान से काम कर रहा है कुछ तो इनाम बनता है। उनकी मुस्कराती शरारती आँखों ने हामी भरी.
उधर लाइट चली गयी थी। जुलाई की उमस ,पावर कट लेकिन वो एकदम ध्यान से अपने काम में लगे हुए थे।
मम्मी मेरी ओर देख के मुस्करायीं ,फिर उनका काम देखने के लिए झुकीं।
मम्मी के शरारती आँचल ने उनका साथ छोड़ दिया। मम्मी के बड़े बड़े भारी कड़े सख्त उरोज ब्लाउज के कपडे को जैसे फाड़ते हुए तने , सब कटाव उभार और ऊपर से लो कट होने से पूरा का पूरा क्लीवेज ,मांसल गोरी गोरी गहराइयाँ ,...
कनखियों से अब वो उधर देख रहे थे और नतीजा ये हुआ की उनका खूँटा एकदम तना,साफ़ साफ़ दिख रहा था। उन्होंने मम्मी की एक पुरानी घिसी हुयी सी साडी लुंगी बना के पहन रखी थी ,जो उनके 'उसे ' रोकने में एकदम नाकमयाब थी।
लेकिन मम्मी ने तो अभी तीर चलाने शुरू किये थे।
मम्मी ने अपनी लंबी गोरी मृणाल बांहे उठायीं और फिर उनकी काँखे ,...
गोरी गोरी काँखों के बीच मांसल मसल फोल्ड्स और उनके बीच हलके हलके बिन बनाये छोटे छोटे काले बाल ,
अब तो उनका खूँटा एकदम पत्थर का हो गया था।
गर्मी का महीना ,जुलाई की उमस ,ऊपर से पावर कट , ... पसीने की कुछ बूंदे उन गोरी काखों में चुहचुहा रही थीं।
' हे कुछ खुजली सी मच रही है " मम्मी ने उनसे कहा।
बहुत मुश्किल से मैंने अपनी मुस्कराहट रोकी , मुझे मालुम था असली खुजली तो उस गोरी गोरी कांख को देख के उनको मच रही होगी।
" मैं कुछ ,... " घबड़ाते हकलाते उन्होंने बोलने की कोशिश की तो मैंने उन्हें हड़का दिया।
" और क्या ,.. मम्मी तुम्हे लिख कर इंस्ट्रक्शन देंगी , यू आर हियरबाई इंस्ट्रक्टेड ,.. "
और जब मम्मी की काँखों की ओर उन्होंने हाथ बढ़ाया तो एक बार फिर डांट पड़ गयी ,
" अरे उसी हाथ से नीडल वर्क कर रहे हो और उसी हाथ से , ... कपडे पर पसीने का दाग नहीं पड़ जाएगा। "
और जब मम्मी की काँखों की ओर उन्होंने हाथ बढ़ाया तो एक बार फिर डांट पड़ गयी ,
" अरे उसी हाथ से नीडल वर्क कर रहे हो और उसी हाथ से , ... कपडे पर पसीने का दाग नहीं पड़ जाएगा। "
वो मेरा मतलब समझ रहे थे ,दिल से चाहते भी वही थे लेकिन मम्मी की एक बार उन्होंने देखा बस मम्मी की मुस्कराहट से उन्हें ग्रीन सिग्नल मिल गया।
आँचल अभी भी गिरा हुआ था , हलके प्याजी ब्लाउज से मम्मी के गोरे गदराये भारी भारी जोबन छलक रहे थे।
बस उनके होंठ सीधे मम्मी की दूधिया काँखों के बीच, पहले तो उन्होंने उस चुहचुहाते पसीने की बूँद को हलके से चूम लिया और जब उन्हें मम्मी की ओर से कोई प्रतिरोध नहीं मिला तो बस , ... वो पागल नहीं हुए।
पहले तो हलके हलके फिर तेजी से कभी वो किस करते तो कभी लिक करते , उनकी जीभ पसीने से भरी कांख के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ,
एक नशीली तीखी मतवाली गंध मम्मी की गोरी मांसल काँखों से निकल रही थी। और जैसे चुम्बक की तरह उन्हें वहां खींच रही थी।
मम्मी ने अपना हाथ उनके सर के ऊपर रख कर ,काँख समेट ली और अब उनकी सर ,मम्मी की कांख के बीच फंसा ,दबा स्मूदरड ,लेकिन उन्हें बहुत अछ्छा लगा रहा था। सडप सडप की आवाज पूरी जीभ निकाल के वो ,
और उसके साथ साथ, ... मम्मी का स्लीवलेस ब्लाउज सिर्फ बहुत ज्यादा लो कट ही नहीं था,साइड से भी वो डीप कट था यानी अब उन्हें बगल से मम्मी के खुले उरोजों की पूरी झलक ही नहीं स्पर्श भी मिल रहा था। स्पर्श ही नहीं स्वाद भी ,
और असर नीचे हुआ उसका , उनका खूँटा आलमोस्ट उछल कर उस लुंगी बनी साड़ी से बाहर आ गया।
मम्मी ने भी जैसे अनजाने में उसपर अपना हाथ रख दिया ,और हलके हलके ,....
धीरे धीरे दबाने मसलने लगीं।
और ये सब जैसे अनजाने में हो रहा हो ,मम्मी का ध्यान अभी भी उनके निडल वर्क को चेक करने में ही लगा था।
लेकिन मालुम उन्हें भी था , मम्मी को भी और मुझे भी ,... कुछ भी अनजाने में नहीं हो रहा है।
अचानक फोन की घंटी बजी और मैं फोन उठाने चली गयी।
सोफी थी ,वही ब्यूटी पार्लर वाली जादूगरनी ,जिसने इन्हें अपनी क्षत्रछाया में ले लिया था और जिसे मम्मी ने ढेर सारे काम पकड़ाए थे इनके 'सुधार' के लिए।
कुछ देर उसने काम की बातें की ,कुछ देर गप्पे , और जब मैं फिर सास दामाद की ओर मुड़ी तो गर्मी काफी बढ़ चुकी थी।
निडल वर्क का कपडा सरक कर कब का पलंग के कोने में जा पड़ा था।
जुलाई की उमस भरी गर्मी तो थी ही ,ऊपर से पावर कट।
मम्मी को थोड़ा पसीना आता भी ज्यादा था। पसीने से उनका पतले कपडे का ब्लाउज एकदम उनके उभारों से चिपक गया था। और वैसे भी वो बहुत ज्यादा झलकउवा था , 'सब कुछ ' दिख रहा था। गोरे गोरे गुदाज मांसल उभार ,एकदम ब्लाउज से चिपके, मम्मी की शियर पारदर्शी लेसी हाफ कप स्किन कलर की ब्रा कुछ भी छिपा ढँक नहीं पा रही थी।
न सिर्फ उनके इंच भर के कड़े मस्त निपल साफ़ साफ दिख रहे थे ,बल्कि चारो ओर का ब्राउन गोल गोल अरियोला भी खुल के झलक रहा था।
और इसी एक झलक के लिए तो वो कब से बेचैन थे।
और इस गर्मी में एक अलग तरह की गर्मी 'उन्हें ' बेचैन कर रही थी ,
फिर देह गंध ,पसीने की , रूप के नशे की ,...
उनके होंठ कांख से सरक कर बूब्स के खुले साइड के हिस्से पे आ चुके थे, कभी जीभ से वो मम्मी की गोरी गोरी चूंची की साइड पे वो फ्लिक करते तो कभी चाट लेते।
मम्मी ने उनका एक हाथ पकड़ के जैसे सहारे के लिए अपने दूसरे बूब्स के ऊपर रख दिया था और अपने इरादे को एकदम साफ़ करने के लिए उनकी हथेली को सीधे अपने निपल के ऊपर रख कर खुल के दबा भी रही थीं।
हिम्मत पा कर के उनकी नदीदी उँगलियाँ ,मम्मी के खूब गहरे लो कट ब्लाउज के झरोखे से ,क्लीवेज को अब खुल के छू रही थीं।
लेकिन सिर्फ वही नहीं ,मम्मी भी अब खुले खेल पे आगयी थीं।
उनका बोनर ,पगलाया ,बौराया मम्मी की साडी बनी लुंगी से बाहर आ चुका था और अब मम्मी की मुट्ठी में कैद था
एक झटके में मम्मी ने कस के मुठियाया और उनका मोटा मांसल सुपाड़ा बाहर।
खूँटा मम्मी की पकड़ से बाहर निकल आया लेकिन मम्मी का हमला अब सीधा और तेज हो गया था। मम्मी ने अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उनके सुपाड़े को जोर से दबोच रखा था और उसे रगड़ मसल रही थीं।
कुछ देर बाद उनका बड़ा शार्प नाख़ून सीधे उनके बॉल्स से शुरू हो के ,कड़े तने मांसल खूंटे के निचले भाग को रगड़ता खरोंचता सीधे पेशाब के छेद तक
और अब साथ में ,टिपिकल मम्मी उवाच ,
" बहन के भंडुए खूँटा तो खूब मस्त खड़ा किया है। देख बहुत जल्द जाएगा ये तेरी माँ के भोंसडे में, हचक हचक के चोदना उसके भोंसडे को ,अरे बहुत रस है उस के भोंसडे में , बोल बहनचोद मन कर रहा है न माँ के भोंसडे को चोदने का , ... "
उन का मुंह तो मम्मी की पसीने से भीगी कांख और साइड से खुले बूब्स के बीच फंसा ,दबा था ,लेकिन जो उनके मुंह से आवाजें निकली तो उसे सिर्फ हामी ही कहा जा सकता है।
वैसे भी मम्मी के सामने हामी के अलावा वो कुछ सोच भी नहीं सकते थे।
और अब मम्मी खुल के उनके तन्नाए लन्ड को मुठिया रही थीं। और साथ में ,
" अरे घबड़ा मत ,जल्द ही जिस भोंसडे से निकला है न उसी में घुसड़वाउंगी। और अपने सामने। हचक के पेलना दोनों चूंची पकड़ के। बहुत मजा आएगा ,कोई ना नुकुर नहीं समझे मादरचोद। अरे मादरचोद होने का मजा ही अलग है ,मेरे मुन्ने को सब मजा दिलवाऊंगी ,बहन का माँ का। "
मम्मी का दूसरा हाथ भी खाली नहीं बैठा था , वो उनके खुले सीने पे उनके निपल के चारो ओर ,उनकी तर्जनी हलके हलके सहलाते बहुत प्यार से धीरे धीरे जैसे नयी लौंडिया को पटाने के लिए उसके नए आये अंकुर के चारो ओर हलके सहलाये, बस उसी तरह ,.... और अचानक जोर से मम्मी ने उनके निपल को स्क्रैच कर दिया।
ये बात मुझे भी मालुम थी और मम्मी को भी कि ,उनके निपल किसी नयी जवान होती लौंडिया से कम सेंसिटिव नहीं है।
दूसरा हाथ जो मुठिया रहा था जोर जोर से ,एक बार फिर खूंटे को खुला छोड़ के नीचे बॉल्स पे ,हलके से सहलाते सहलाते उन्हें उसे जोर से दबा दिया और एक बार फिर नाख़ून फिर बॉल्स के पीछे पिछवाड़े के छेद तक स्क्रैच कर रहा था और वापस वहां से खूँटा जहाँ बॉल्स से मिलता है , उस जगह को पहले खूब जोर से दबाया और फिर लंबे शार्प नाख़ून से लन्ड के बेस से लेकर सुपाड़े तक स्क्रैच करते ,
" बोल चोदेगा न अपनी माँ को ,इसी मस्त लन्ड से उसके भोंसडे को , बोल ,बोल चढ़ेगा न उसके ऊपर , चोदेगा न अपनी माँ के भोसड़े को "
और अबकी साफ़ साफ़ जवाब सुनने के लिए मम्मी ने उनके सर को आजाद कर दिया अपनी कांख और उभारों के बीच से ,
और खुल के बोला भी उन्होंने ,
" हाँ मम्मी चोदूँगा। "
लेकिन मम्मी के लिए इतना काफी नहीं था। जब तक अपने दामाद से अपनी समधन के लिए खुल के वो गाली न सुन ले ,
" अरे मुन्ने खुल के बोल न ,किस के भोंसडे को चोदेगा,बोल साफ़ साफ़। " मम्मी ने जोर से उनके खूंटे को दबाते पूछा।
और मेरे कान को विश्वास नहीं हुआ ,उन्होंने एकदम खुल के बोला लेकिन उनकी आवाज कुछ कुछ घंटी में दब गयी।
बेल दुबारा बजी।
" मंजू बाई होगी ,आज दोपहर से वो काम पे आने वाली थी। "
बिजली भी आगयी , पंखा फिर से चलने लगा।
मैंने जाके दरवाजा खोला ,
आगे आगे मंजू बाई ,पीछे पीछे मैं।
अंदर हालात बदल गयी थीं लेकिन कोई भी देख के कुछ देर पहले मचे तूफ़ान का निशान साफ़ साफ़ दिख रहा था।
मम्मी ने उनका खूँटा भले ही अंदर कर दिया हो तोप ढँक दिया हो ,लेकिन वो वैसा ही बौराया ,भूखा पगलाया खड़ा था।
वो और मम्मी एकदम चिपके बैठे थे।
मम्मी का हाथ बड़े अधिकार पुर्वक उनके कंधे पर था उन्हें अपनी ओर खींचे ,चिपकाये हुए।
आँचल अभी भी मम्मी का लुढ़का पुढका था ,और उनकी ललचायी निगाहे दोनों पहाड़ियों के बीच ,गोरी मांसल गुदाज घाटी में चिपकी।
मैं और मम्मी सोने चले गए ,लेकिन वो नहीं। उनका लन्ड एकदम पागल हो रहा था बिना झड़े।
" घबड़ा मत मौक़ा मिलेगा इसे भी बस सेवा करते रहो " मम्मी ने मुस्कराते हुए उसे जोर से मुठियाते रगड़ते कहा।
" और क्या हम लोगों ने बोला है बस जब हम लोग ग्रीन सिगनल जब देंगे बस पूरी छूट " मैंने हँसते उनके बाल बिगाड़ते बोला।
" सिर्फ एक चीज छोड़ के ,मेरी समधनों को ,इसकी ननदों की बिल में जब चाहो तब मलाई गिरा सकते हो ,तेरी मायकेवालियों के लिए पर्मांनेट ग्रीन सिग्नल "
मम्मी ने आल लाइन क्लियर दे दिया।
मम्मी और मैं एक दूसरे को पकड़ के सो गए ,रात भर के जगे ,थके थे हम दोनों।
हाँ लेकिन सोने के पहले मम्मी और मैं भी ,
उनको 'बेड टी ' पिलाना नहीं भूलीं , सुनहली किरणों के साथ ,...छरर छर्र ,घल घल
दो कप।
और उनके चेहरे की ख़ुशी देखते बनती थी।
मैं और मम्मी तो सो गए लेकिन उनके जिम्मे काम बाकी था। मंजू बाई अभी छुट्टी पर थी ,आज दोपहर को आने वाली थी।
बर्तन , झाड़ू पोंछा ,... ऊपर से मम्मी ने बोला था की ब्रेकफास्ट बना के ,खाने की तैयारी कर के ही उन्हें जगाये वो।
एक नया दिन शुरू हो गया।
नया दिन
मंजूबाई को आज भी नहीं आना था।
सुबह से सारा काम , झाडु पोंछा ,बरतन ,डस्टिंग , नाश्ता , खाने की पूरी तैयारी , और ऊपर से उन्हें मालूम था की मम्मी कितनी परफेक्शनिस्ट हैं ,अगर कहीं धूल का एक कण भी दिखाई दे गया न तो बस उनकी मां बहन सब एक कर देंगीं।
दस बजे हम कब बस उठ ही रहे थे ,वो बेड टी लेकर हाजिर हुए।
पहले उन्होंने खिड़की का पर्दा खोला , सावन की मुलायम धूप का एक टुकड़ा गुनगुनाता खिड़की से दाखिल हुआ। और मम्मी अंगड़ाई लेकर उठीं।
मम्मी ,... स्लीवलेस ,आलमोस्ट ट्रांसपैरेंट सिल्कन नाइटी , ...
जो अंगड़ाई ली उन्होंने तो उनकी गोरी गोरी मांसल बाहें ,और अंगड़ाई लेते ही उनकी काँखे , जैसे तीन दिन की बढ़ी हुयी काली काली रोमावली , काँखों में.
उनकी आँखे तो बस वहीँ चिपकी हुयी थीं।
और मेरी और मम्मी की आँखे उनके ,.. कल रात का गुलाबी साटिन पेटीकोट अभी भी उन्होंने पहन रखा था ,और खूँटा पुरे बित्ते भर तना हुआ ,... हम दोनों तो तीन तीन बार झड़े थे ,पर वो बिचारे भूखे प्यासे , और वो जा रात में खड़ा हुआ था तब से अभी तक ,...
मम्मी ने उनकी ओर अपने पैर बढ़ा के हलके से बोला ,
चप्पले।
गोरा गोरा तलवा महावर लगा , स्कारलेट कलर के नाख़ून , घँघरु वाले बिछुए ,चांदी की रुनझुन करती माँसल पिंडलियों से लिपटी पायल
खुद झुक के उन्होंने मम्मी के पैरों में चप्पल पहनाई।
और मम्मी भी न बस जैसे जाने अनजाने उनके पैर ने हलके से उनके खड़े खूंटे को सहला दिया।
और फिर जैसे अपने आप , झुक के उन्होंने स्कारलेट रेड नाखूनों को ,उनके पैरों को चूम लिया।
मम्मी मुस्करायी और अपने पैर ऐसे उठाये की स्लीपर का निचला हिस्सा उनके होंठों के सामने , ... कुछ बोलना नहीं पड़ा , उन्होंने स्लीपर को भी चूम लिया और फिर मम्मी की एड़ी।
मम्मी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया ,पकड़ के उन्होंने मम्मी को बेड पर से उठा लिया और फिर कमरे से जुड़े बाथरूम में , बड़ी कर्टसी से उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खोला। मम्मी अंदर गयी ,लेकिन दरवाजा मम्मी ने उठंगाये ही रखा, अंदर से।
और जब वो बाहर आयीं तो फर्श पे बैठ के बड़ी स्टाइल से झुक के उन्होंने चाय हम लोगों के प्याले में ढाली ,ब्रेकफास्ट के लिए पूछा। लेकिन उसके बावजूद मम्मी ने टोंक ही दिया, उनके पेटीकोट की ओर इशारा करते हुए
" ये रात के लिए तो ठीक था लेकिन दिन में काम करते समय ,... मैं ले आयी थी न "
और उन्होंने इशारा समझ लिया।
ब्रेकफास्ट टेबल पर उन्होंने एक साडी ,जो माम ले आयी थीं , उनकी पहनी हुयी ,जो पहन पहन के उनकी देह से रगड़ के घिस गयी थी , वो ,... लुंगी ऐसे ,..
ब्रेकफास्ट एकदम गरम , कार्नफ्लेक्स ,दूध , आमलेट ,बटर्ड टोस्ट , फ्रेश फ्रूट्स , मैंगो जूस।
टेबल सिर्फ दो लोगों के लिए लगी थी लेकिन मम्मी ने उन्हें भी खींच के अपने बगल में बैठा लिया और अपनी प्लेट से ही,
और जैसे ही टेबल साफ कर के वो फ्री हुए ,मम्मी ने उन्हें बुलाया और उसी टेबल को पकड़ कर झुकने का इशारा किया ,
और उनकी लुंगी बनी साडी उठा दी।
हम दोनों मुस्करा उठे , साडी के अंदर मम्मी की उतारी हुयी पैंटी , जो कल हम लोगों ने उनके मुंह में ठुंसी थी , और नितम्बो पर रात के सारे निशान ,गुलाब के फूल ,अभी भी एकदम लाल लाल।
मम्मी ने प्यार से एक हाथ जोर से ,फिर से जड़ दिया और बोलीं ,
" काम ख़तम कर के जल्दी आना ,तुझे कुछ घर के काम सिखाने हैं। "
मम्मी ने प्यार से एक हाथ जोर से ,फिर से जड़ दिया और बोलीं , " काम ख़तम कर के जल्दी आना ,तुझे कुछ घर के काम सिखाने हैं। "
आधे घंटे से पहले ही वो हाजिर थे।
मम्मी ने तय किया था ,रोज दो घंटे निडल वर्क उनके लिए।
मम्मी के लौटने के पहले उन्हें एक टेबल क्लाथ और भी कई चीजें काढ़नी थी।
मम्मी ने जब अपना सामान खोल कर उनके लिए गिफ्ट आइटम निकाले थे ,मम्मी की पहनी हुयी पैंटीज ,घिसी हुयी साड़ियां , तो उसी के साथ इन्हें एक एम्ब्रायडरी की किताब ,नीडल,क्राचेट सब ले आयीं थी। लेकिन कढ़ाई शुरू करने के पहले एक कॉटन के कपडे पे उन्हें हर तरह की स्टिच सीखनी थी।
कुछ किताब से पढ़ के कुछ मम्मी से समझ के।
चेन स्टिच ,बटनहोल स्टिच तो वो कर ले रहे थे लेकिन फिश बोन स्टिच में अभी भी उन्हें मुश्किल हो रही थी।
जब मॉम के सामनेबैठकर अपनी स्टिच का काम वो दिखा रहे थे तो , मम्मी के चेहरे पर उनके काम के एप्रोवल की हलकी सी झलक से उनके चेहरे पर ख़ुशी की लहार दौड़ जाती थी , और अगर कहीं उन्हें हलकी सी भी मम्मी की भृकुटि टेढ़ी लगी तो वो डर के मारे सिहर उठते थे।
लेकिन उनका सुबह का सब काम चेक करने के बाद मम्मी ने जब एक हलकी सी प्यारी सी मुस्कराहट के साथ उन्हें देखा तो बस उनकी बांछे खिल उठी ,उन्हें लगा सब मेहनत सफल हुयी।
फिर मम्मी ने उन्हें क्रोशेट के लिए नीडल में धागा कैसे डालें ये सिखाया फिर हाफ डबल क्रोशेट ,ट्रिपल क्रोशेट सिखाया। सीखने में तो वो तेज थे ही फिर मम्मी की सिखाई कोई बात तो वो भूल भी नहीं सकते थे। बस उन्हें लगता था क्या करने से मम्मी खुश रहेंगी,वो कर डालें।
कुछ देर तक उन्होंने प्रैक्टिस की फिर किचेन में ,मम्मी के लिए लन्च बनाने , सारी की सारी मम्मी की फेवरिट डिशेज ,सब नान वेज।
लन्च के बाद फिर , मम्मी के साथ बैठ कर वो नीडल वर्क कर रहे थे। मम्मी भी कभी मुझसे गप्पे मारतीं तो कभी बीच बीच में उनका नीडल वर्क देख रही थीं।
और वो बिचारे ,एकदम ध्यान से ,बस इतनी सफाई से काम करें की मम्मी एकदम खुश रहे और ये डर भी लगा हुआ था की अगर ज़रा सी भी गलती हुयी तो बस मम्मी ,...
जुलाई का महीना था।
रात भर पानी बरसा था और अब बारिश तो बंद थी लेकिन उमस बहुत थी।
मम्मी ने एक प्याजी रंग की चिकन की साडी ,जाली के काम वाली और साथ में मैचिंग लो कट स्लीवलेस ब्लाउज पहन रखा था जो उनके भारी गदराये उरोजों को मुश्किल से ही सम्हाल पा रहा था।
मैंने मुस्कराके मम्मी को इशारा किया की उनका दामाद बिचारा इतने ध्यान से काम कर रहा है कुछ तो इनाम बनता है। उनकी मुस्कराती शरारती आँखों ने हामी भरी.
उधर लाइट चली गयी थी। जुलाई की उमस ,पावर कट लेकिन वो एकदम ध्यान से अपने काम में लगे हुए थे।
मम्मी मेरी ओर देख के मुस्करायीं ,फिर उनका काम देखने के लिए झुकीं।
मम्मी के शरारती आँचल ने उनका साथ छोड़ दिया। मम्मी के बड़े बड़े भारी कड़े सख्त उरोज ब्लाउज के कपडे को जैसे फाड़ते हुए तने , सब कटाव उभार और ऊपर से लो कट होने से पूरा का पूरा क्लीवेज ,मांसल गोरी गोरी गहराइयाँ ,...
कनखियों से अब वो उधर देख रहे थे और नतीजा ये हुआ की उनका खूँटा एकदम तना,साफ़ साफ़ दिख रहा था। उन्होंने मम्मी की एक पुरानी घिसी हुयी सी साडी लुंगी बना के पहन रखी थी ,जो उनके 'उसे ' रोकने में एकदम नाकमयाब थी।
लेकिन मम्मी ने तो अभी तीर चलाने शुरू किये थे।
मम्मी ने अपनी लंबी गोरी मृणाल बांहे उठायीं और फिर उनकी काँखे ,...
गोरी गोरी काँखों के बीच मांसल मसल फोल्ड्स और उनके बीच हलके हलके बिन बनाये छोटे छोटे काले बाल ,
अब तो उनका खूँटा एकदम पत्थर का हो गया था।
गर्मी का महीना ,जुलाई की उमस ,ऊपर से पावर कट , ... पसीने की कुछ बूंदे उन गोरी काखों में चुहचुहा रही थीं।
' हे कुछ खुजली सी मच रही है " मम्मी ने उनसे कहा।
बहुत मुश्किल से मैंने अपनी मुस्कराहट रोकी , मुझे मालुम था असली खुजली तो उस गोरी गोरी कांख को देख के उनको मच रही होगी।
" मैं कुछ ,... " घबड़ाते हकलाते उन्होंने बोलने की कोशिश की तो मैंने उन्हें हड़का दिया।
" और क्या ,.. मम्मी तुम्हे लिख कर इंस्ट्रक्शन देंगी , यू आर हियरबाई इंस्ट्रक्टेड ,.. "
और जब मम्मी की काँखों की ओर उन्होंने हाथ बढ़ाया तो एक बार फिर डांट पड़ गयी ,
" अरे उसी हाथ से नीडल वर्क कर रहे हो और उसी हाथ से , ... कपडे पर पसीने का दाग नहीं पड़ जाएगा। "
और जब मम्मी की काँखों की ओर उन्होंने हाथ बढ़ाया तो एक बार फिर डांट पड़ गयी ,
" अरे उसी हाथ से नीडल वर्क कर रहे हो और उसी हाथ से , ... कपडे पर पसीने का दाग नहीं पड़ जाएगा। "
वो मेरा मतलब समझ रहे थे ,दिल से चाहते भी वही थे लेकिन मम्मी की एक बार उन्होंने देखा बस मम्मी की मुस्कराहट से उन्हें ग्रीन सिग्नल मिल गया।
आँचल अभी भी गिरा हुआ था , हलके प्याजी ब्लाउज से मम्मी के गोरे गदराये भारी भारी जोबन छलक रहे थे।
बस उनके होंठ सीधे मम्मी की दूधिया काँखों के बीच, पहले तो उन्होंने उस चुहचुहाते पसीने की बूँद को हलके से चूम लिया और जब उन्हें मम्मी की ओर से कोई प्रतिरोध नहीं मिला तो बस , ... वो पागल नहीं हुए।
पहले तो हलके हलके फिर तेजी से कभी वो किस करते तो कभी लिक करते , उनकी जीभ पसीने से भरी कांख के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ,
एक नशीली तीखी मतवाली गंध मम्मी की गोरी मांसल काँखों से निकल रही थी। और जैसे चुम्बक की तरह उन्हें वहां खींच रही थी।
मम्मी ने अपना हाथ उनके सर के ऊपर रख कर ,काँख समेट ली और अब उनकी सर ,मम्मी की कांख के बीच फंसा ,दबा स्मूदरड ,लेकिन उन्हें बहुत अछ्छा लगा रहा था। सडप सडप की आवाज पूरी जीभ निकाल के वो ,
और उसके साथ साथ, ... मम्मी का स्लीवलेस ब्लाउज सिर्फ बहुत ज्यादा लो कट ही नहीं था,साइड से भी वो डीप कट था यानी अब उन्हें बगल से मम्मी के खुले उरोजों की पूरी झलक ही नहीं स्पर्श भी मिल रहा था। स्पर्श ही नहीं स्वाद भी ,
और असर नीचे हुआ उसका , उनका खूँटा आलमोस्ट उछल कर उस लुंगी बनी साड़ी से बाहर आ गया।
मम्मी ने भी जैसे अनजाने में उसपर अपना हाथ रख दिया ,और हलके हलके ,....
धीरे धीरे दबाने मसलने लगीं।
और ये सब जैसे अनजाने में हो रहा हो ,मम्मी का ध्यान अभी भी उनके निडल वर्क को चेक करने में ही लगा था।
लेकिन मालुम उन्हें भी था , मम्मी को भी और मुझे भी ,... कुछ भी अनजाने में नहीं हो रहा है।
अचानक फोन की घंटी बजी और मैं फोन उठाने चली गयी।
सोफी थी ,वही ब्यूटी पार्लर वाली जादूगरनी ,जिसने इन्हें अपनी क्षत्रछाया में ले लिया था और जिसे मम्मी ने ढेर सारे काम पकड़ाए थे इनके 'सुधार' के लिए।
कुछ देर उसने काम की बातें की ,कुछ देर गप्पे , और जब मैं फिर सास दामाद की ओर मुड़ी तो गर्मी काफी बढ़ चुकी थी।
निडल वर्क का कपडा सरक कर कब का पलंग के कोने में जा पड़ा था।
जुलाई की उमस भरी गर्मी तो थी ही ,ऊपर से पावर कट।
मम्मी को थोड़ा पसीना आता भी ज्यादा था। पसीने से उनका पतले कपडे का ब्लाउज एकदम उनके उभारों से चिपक गया था। और वैसे भी वो बहुत ज्यादा झलकउवा था , 'सब कुछ ' दिख रहा था। गोरे गोरे गुदाज मांसल उभार ,एकदम ब्लाउज से चिपके, मम्मी की शियर पारदर्शी लेसी हाफ कप स्किन कलर की ब्रा कुछ भी छिपा ढँक नहीं पा रही थी।
न सिर्फ उनके इंच भर के कड़े मस्त निपल साफ़ साफ दिख रहे थे ,बल्कि चारो ओर का ब्राउन गोल गोल अरियोला भी खुल के झलक रहा था।
और इसी एक झलक के लिए तो वो कब से बेचैन थे।
और इस गर्मी में एक अलग तरह की गर्मी 'उन्हें ' बेचैन कर रही थी ,
फिर देह गंध ,पसीने की , रूप के नशे की ,...
उनके होंठ कांख से सरक कर बूब्स के खुले साइड के हिस्से पे आ चुके थे, कभी जीभ से वो मम्मी की गोरी गोरी चूंची की साइड पे वो फ्लिक करते तो कभी चाट लेते।
मम्मी ने उनका एक हाथ पकड़ के जैसे सहारे के लिए अपने दूसरे बूब्स के ऊपर रख दिया था और अपने इरादे को एकदम साफ़ करने के लिए उनकी हथेली को सीधे अपने निपल के ऊपर रख कर खुल के दबा भी रही थीं।
हिम्मत पा कर के उनकी नदीदी उँगलियाँ ,मम्मी के खूब गहरे लो कट ब्लाउज के झरोखे से ,क्लीवेज को अब खुल के छू रही थीं।
लेकिन सिर्फ वही नहीं ,मम्मी भी अब खुले खेल पे आगयी थीं।
उनका बोनर ,पगलाया ,बौराया मम्मी की साडी बनी लुंगी से बाहर आ चुका था और अब मम्मी की मुट्ठी में कैद था
एक झटके में मम्मी ने कस के मुठियाया और उनका मोटा मांसल सुपाड़ा बाहर।
खूँटा मम्मी की पकड़ से बाहर निकल आया लेकिन मम्मी का हमला अब सीधा और तेज हो गया था। मम्मी ने अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उनके सुपाड़े को जोर से दबोच रखा था और उसे रगड़ मसल रही थीं।
कुछ देर बाद उनका बड़ा शार्प नाख़ून सीधे उनके बॉल्स से शुरू हो के ,कड़े तने मांसल खूंटे के निचले भाग को रगड़ता खरोंचता सीधे पेशाब के छेद तक
और अब साथ में ,टिपिकल मम्मी उवाच ,
" बहन के भंडुए खूँटा तो खूब मस्त खड़ा किया है। देख बहुत जल्द जाएगा ये तेरी माँ के भोंसडे में, हचक हचक के चोदना उसके भोंसडे को ,अरे बहुत रस है उस के भोंसडे में , बोल बहनचोद मन कर रहा है न माँ के भोंसडे को चोदने का , ... "
उन का मुंह तो मम्मी की पसीने से भीगी कांख और साइड से खुले बूब्स के बीच फंसा ,दबा था ,लेकिन जो उनके मुंह से आवाजें निकली तो उसे सिर्फ हामी ही कहा जा सकता है।
वैसे भी मम्मी के सामने हामी के अलावा वो कुछ सोच भी नहीं सकते थे।
और अब मम्मी खुल के उनके तन्नाए लन्ड को मुठिया रही थीं। और साथ में ,
" अरे घबड़ा मत ,जल्द ही जिस भोंसडे से निकला है न उसी में घुसड़वाउंगी। और अपने सामने। हचक के पेलना दोनों चूंची पकड़ के। बहुत मजा आएगा ,कोई ना नुकुर नहीं समझे मादरचोद। अरे मादरचोद होने का मजा ही अलग है ,मेरे मुन्ने को सब मजा दिलवाऊंगी ,बहन का माँ का। "
मम्मी का दूसरा हाथ भी खाली नहीं बैठा था , वो उनके खुले सीने पे उनके निपल के चारो ओर ,उनकी तर्जनी हलके हलके सहलाते बहुत प्यार से धीरे धीरे जैसे नयी लौंडिया को पटाने के लिए उसके नए आये अंकुर के चारो ओर हलके सहलाये, बस उसी तरह ,.... और अचानक जोर से मम्मी ने उनके निपल को स्क्रैच कर दिया।
ये बात मुझे भी मालुम थी और मम्मी को भी कि ,उनके निपल किसी नयी जवान होती लौंडिया से कम सेंसिटिव नहीं है।
दूसरा हाथ जो मुठिया रहा था जोर जोर से ,एक बार फिर खूंटे को खुला छोड़ के नीचे बॉल्स पे ,हलके से सहलाते सहलाते उन्हें उसे जोर से दबा दिया और एक बार फिर नाख़ून फिर बॉल्स के पीछे पिछवाड़े के छेद तक स्क्रैच कर रहा था और वापस वहां से खूँटा जहाँ बॉल्स से मिलता है , उस जगह को पहले खूब जोर से दबाया और फिर लंबे शार्प नाख़ून से लन्ड के बेस से लेकर सुपाड़े तक स्क्रैच करते ,
" बोल चोदेगा न अपनी माँ को ,इसी मस्त लन्ड से उसके भोंसडे को , बोल ,बोल चढ़ेगा न उसके ऊपर , चोदेगा न अपनी माँ के भोसड़े को "
और अबकी साफ़ साफ़ जवाब सुनने के लिए मम्मी ने उनके सर को आजाद कर दिया अपनी कांख और उभारों के बीच से ,
और खुल के बोला भी उन्होंने ,
" हाँ मम्मी चोदूँगा। "
लेकिन मम्मी के लिए इतना काफी नहीं था। जब तक अपने दामाद से अपनी समधन के लिए खुल के वो गाली न सुन ले ,
" अरे मुन्ने खुल के बोल न ,किस के भोंसडे को चोदेगा,बोल साफ़ साफ़। " मम्मी ने जोर से उनके खूंटे को दबाते पूछा।
और मेरे कान को विश्वास नहीं हुआ ,उन्होंने एकदम खुल के बोला लेकिन उनकी आवाज कुछ कुछ घंटी में दब गयी।
बेल दुबारा बजी।
" मंजू बाई होगी ,आज दोपहर से वो काम पे आने वाली थी। "
बिजली भी आगयी , पंखा फिर से चलने लगा।
मैंने जाके दरवाजा खोला ,
आगे आगे मंजू बाई ,पीछे पीछे मैं।
अंदर हालात बदल गयी थीं लेकिन कोई भी देख के कुछ देर पहले मचे तूफ़ान का निशान साफ़ साफ़ दिख रहा था।
मम्मी ने उनका खूँटा भले ही अंदर कर दिया हो तोप ढँक दिया हो ,लेकिन वो वैसा ही बौराया ,भूखा पगलाया खड़ा था।
वो और मम्मी एकदम चिपके बैठे थे।
मम्मी का हाथ बड़े अधिकार पुर्वक उनके कंधे पर था उन्हें अपनी ओर खींचे ,चिपकाये हुए।
आँचल अभी भी मम्मी का लुढ़का पुढका था ,और उनकी ललचायी निगाहे दोनों पहाड़ियों के बीच ,गोरी मांसल गुदाज घाटी में चिपकी।
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