जोरू का गुलाम या जे के जी

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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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जोरू का गुलाम भाग १३०




मैं शार्ट कट के चक्कर में आज भरौटी के बगल की एक संकरी पगडण्डी से जा रही थी की दो लौंडे दिखे ,धुत्त देसी पिए ,




एक बोला ,

" बोला बोला देबू देबू की जइबू थाना में ,... बोला हो ,... "

" अरे छोट छोट जोबना दाबे में मजा देया ,मिजवाय ला हो ,.. "

दूसरा दिन होता तो मैं सर झुका के रास्ता बदल के निकल जाती , लेकिन

आज मैं पहले तो हलके से बनावटी गुस्से से दोनों को देखा

फिर चुन्नी ठीक करने के बहाने एक बार फिर जोबन दर्शन कराया और जब थोड़ा आगे निकल गयी तो मुड़ के उनकी ओर देख के हलके से मुस्करायी ,और कसी शलवार में चूतड़ मटकाते

थोड़ी हाँ ,थोड़ी ना ,लौंडे पटाने के गुलबिया की सीख पर आज मैंने पहली बार अमल किया था।

रस्ते में आज ५-६ बार ,

और हर बार यही ,

दस मिनट का रसता पार करने में २५ मिनट लगे।

और मैं ज्योति के घर पहुँच गयी।

सोच रही थी की जीजू की रगड़ाई कैसे करेंगे ,मैंने और ज्योति ने मिल के ढेर सारे प्लान बनाये थे।

दरवाजा खुला था मैं अंदर घुस गयी।

लेकिन उसके पहले अपनी दोनों गदोरियों में गाढ़ी कालिख , पेण्ट और लाल रंग का मिक्सचर लगाकर दरवाजे के बाहर ही मैं तैयार हो गयी थी। आज घर पर मैं सीख गयी थी की ये होली का रंग जल्द छूटने वाला नहीं होता।

दबे पाँव मैं अंदर घुसी। ज्योति बरामदे में ही बैठी थी , नहायी धोयी।


मैंने इशारे से पूछा ,जीजू कहाँ है?

उसने न समझने का नाटक किया।




मैंने फुसफुसाते हुए बोला , " अरे पाहून कहाँ है। "

वो मुस्करायी फिर जोर से बोली ,मैं समझी नहीं।

" जीजू ,जीजू ,... आये नहीं क्या ? "

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

और फिर समझ में आ गया ,पर तबतक बहुत देर हो चुकी थी। स्साली कमीनी , दलबदल कर लिया था उसने।

खिलखिला के हंस रही थी , और जीजू ने पीछे से मुझे दबोच लिया। ज्योति से ज्यादा मुझे मेरे दुप्पटे ने धोखा दिया ,

मुझे लगा लालची जीजा मेरे गोरे चिकने गालों के पीछे पड़ेंगे



जवानी के कच्चे उभारों के पीछे पड़ेंगे , मैं उन्हें बचाने की कोशिश कर रही थी और उन्होंने मेरे गले में लपटी दुपकी चुन्नी को खींच लिया

और जबतक मैं कुछ समझ पाऊं ,मेरी दोनों कलाइयां मेरी ही चुन्नी में जकड़ी बंधीं।

और जीजू के हाथों ने फिर मुझे धोखा दिया।

मुझे लगा की उनकी नदीदी उँगलियाँ मेरे चिकने ,गोरे मुलायम गालों को छूने को बढ़ेंगी।

या फिर मेरी टाइट कुर्ती को फाड़ते किशोर उभारों को छूने ,सहलाने ,दबाने को ,जीजू के हाथ ,

पर जीजू के हाथ , बजाय आगे के आराम से उन्होंने मेरी कुर्ती के पीछे ,

और आगे खड़ी मेरी दलबदलू दुष्ट सहेली खिलखिला रही थी।

जीजू ने धीरे धीरे मेरी कुर्ती के पीछे लगे सारे हुक खोल दिए और , फिर कुर्ती पकड़ के उतारते हुए , मुझे चिढ़ाते ज्योति से बोले ,

" अरे होली तो इस स्साली से खेलनी है इसके कपड़ों से थोड़ी। "

बस पलभर में मैं आलमोस्ट टॉप लेस , सिर्फ छोटी सी लेसी पिंक ब्रा ,मेरे उभारों को छिपाने की नाकामयाब कोशिश करते ,


जीजू ने कुर्ती खोल दिया , आलमोस्ट उतार दिया ,... पर उतार नहीं पाए।

मेरे बंधे हाथों में वो जा के फंस गयी ,

और उसे बिना खोले ,... जीजू ने उसे खोला और मैंने मौके का फायदा उठाया।

हाँ इस बार ज्योति ने जीजू को दबोचने में मेरा साथ पूरा दिया।

उसकी दीदी ने उसे जीजू के सारे राज बता दिये थे ,ये भी की उन्हें गुदगुदी बहुत लगती है , और किस जगह सबसे ज्यादा ,

बस आगे से ज्योती ,पीछे से मैं ,दो दो किशोर सालियाँ ,नए नए जोबन वाली।

ज्योति उन्हें गुदगुदाती रही और पीछे से मैंने जीजू को दबौच लिया।

पर जीजू भी , उन्होंने ज्योति को भी आलमोस्ट टॉपलेस कर दिया ,उसका कुर्ता मेरी कुर्ती के ऊपर पड़ा था



और वो भी सिर्फ छोटी सी ब्रा में।

और अब मेरा मौक़ा था ,गुदगुदी लगाने का , फिर मैंने और ज्योति ने मिल के ,जिस चुन्नी से उन्होंने मेरे हाथ बांधे थे , वो अब उनकी कलाइयों की शोभा बढ़ा रही थी।


मैं गाइड की कैप्टेन थी और ऐसी गाँठ लगाई की जीजू लाख कोशिश करें , जल्दी खुल नहीं सकती थी।


जीजू सुबह की होली के रंगों से सराबोर कुर्ता पैजामा पहने थे ,

आगे से ज्योति पीछे से मैं बीच में जीजू ,होली में दो किशोर कुँवारी सालियों के बीच सैंडविच बने ,




मेरे जोबन की बरछी मेरी ,ब्रा और उनका कुरता फाड़ के जीजू की पीठ में छेद कर रही थी।


ज्योति ने जीजू का कुरता उतारने की कोशिश की ,पर मैंने आँख से बरज दिया।

सुबह भौजाइयों की हुयी रगड़ाई से मैंने सीख लिया था ,

होली में किसी के कपडे उतारना एकदम गलत है ,

कपडे सिर्फ फाड़ देने चाहिए ,अरे उतरे हुए कपडे कोई दुबारा पहन ले तो !

और रंगों में में भीगे कपडे तो झट से फटते हैं।

बस कुर्ते के अंदर हाथ डाल के पीछे से , चररर

और बस ज्योती भी सीख गयी , आगे से भी चरररर , थोड़ी देर में उनका फटा रंगा कुर्ता हम लोगों के कुर्ते और कुर्ती के बगल में।




" हे जीजू की ब्रा भी तो उतार , ... इनकी माँ बहने तो ब्रा पहनती नहीं ,गाँव जवार में अपना जुबना उभार के दिखाते ललचाते चलती हैं ,है न जीजू , "

पीछे से उनकी बनयान में हाथ डालते मैं बोली।

" अरे तू भी न बेकार में मेरी दीदी की सास ननद को ब्लेम कर रही है ,सही तो करती हैं वो जो दिखता है वो बिकता है। क्यों जीजू। "

" तो फिर हमारे जीजू ही क्यों ब्रा पहन के ,...कुछ छिपाने की चीज है क्या इसके अंदर ,... "


पीछे से मैंने छेड़ा पर ज्योति ने मुझे हड़का लिया।

"तो खोल के देख क्यों नहीं लेती मेरी नानी। "

सुबह की होली में मेरी भौजाइयों ने सिखा दिया था और अब मैं खोलने में नहीं फाड़ने में यकीन रखती थी ,

मैं और ज्योती एक साथ ,

चरररर ,

जीजू की फटी रंगी पुती बनयान उनके कुर्ते के ऊपर और बस अब मेरी ब्रा और उनकी पीठ।

और मेरे रगे पुते हाथ ने जीजू के मर्दाने टिट्स को , ( ये ट्रिक भी गुलबिया की सिखाई थी )

पहले तो मेरे लम्बे नाखूनों ने उसे फ्लिक किया , फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच जीजू के निप्स को रोल करते मैंने छेड़ा ,





" जीजू आपने तो हम सालियों को आधा तीहा ही टॉपलेस किया था , हमने आपको पूरा कर दिया। "

" और क्या आधे तिहे में क्या मजा "


ज्योति जीजू के गालों का आराम से मजा लेते, रंग लगाते बोली।

" स्सालियों ,जब मैं पूरा डालूंगा न तो पता चलेगा फट के , ... "

कुछ चिढ़ते ,कुछ चिढ़ाते जीजू बोले।

"अरे जीजू डालियेगा न ,ये स्साली तो डलवाने ही आयी है। लेकिन अभी मैं डाल रही हूँ ,आप डलवाने का मजा लो , ... "

ऊपर की मन्जिल पर तो मेरी सहेली ने कब्जा कर लिया था ,मैंने नीचे का रुख किया ,सीधे जीजू के पिछवाड़े , पाजामे के अंदर।

मैं हाथ में कड़ाही की कालिख , पक्के पेण्ट और गाढ़े लाल रंग की जो कातिल कॉकटेल बना के लायी थी , घर में घुसने से पहले ,वो सारा का सारा


जीजू के पिछवाड़े ,

पहले तो दोनों चूतड़ रंगे गए ,और उसके बाद एक रंगी पुती ऊँगली , दोनों चूतड़ के बीच की दरार पर , हलके हलके सहलाती।


और साथ मेरी लेसी टीन ब्रा के अंदर से मेरे जुबना जीजू की पीठ को रगड़ते ,





हलके से मैंने अपनी जीभ से बस जीजू के कान के लोब्स को छू भर लिया और पिछवाड़े मेरी ऊँगली का उनकी दरार पर दबाव भी बढ़ गया ,

" बड़ी कसी है जीजू आपकी , लगता है बहुत दिनों से आपका पिछवाड़ा कोरा है , लेकिन आज नहीं बचेगा "


और मेरी ऊँगली की टिप का , पूरा प्रेशर , घुसी नहीं लेकिन ,...

" अपनी बचाना तू ,आज बिना फाडे नहीं छोडूंगा , " जीजा खलबलाते बोले।

" अरे जीजू फाड़ लेना तो न उसकी पीछे वाले भी , स्साली है ,होली है ,... और आयी ही है ये मेरी सहेली डलवाने। "

ज्योती ,जीजा की चमची ,दलबदलू।

मैंने भी जीजा को पटाना शुरू कर दिया ,

" जीजू , वो स्साली कौन जो जीजू से होली में न डलवाये। लेकिन मेरी बात मानिये , आप ने इस ज्योती की आगे की फाड़ी थी न बस , आज इसके पिछवाड़े की भी फाड़ दीजिये , इसका पिछवाड़ा , मेरा अगवाड़ा दोनों का मजा। "

दो किशोर सालियों की गरम गरम बातें , और सबसे बढ़कर पिछवाड़े की मेरी ऊँगली ,पीठ पर मेरे जुबना का प्रेशर , ... जीजू का तम्बू तनने लगा था।

शेर जगने लगा था।

मेरा दांया हाथ तो जीजू के पिछवाड़े , .. पर उस शेर को पुचकारना मेरे बाएं हाथ का खेल था।

और अब कालिख पेण्ट और रंग का मिश्रण , मेरे बाएं हाथ से सीधे जीजू के चर्मदण्ड पर।

मेरा बायां हाथ जीजू के पजामे के अंदर , पहले तो बस जैसे गलती से छु गया हो ,

फिर रंग लगी उँगलियों ने हलके से सहलाया ,

और शेर एकदम तनतना उठा।



जीजू के अगर 'वहां ' रंग न लगा तो जीजू से होली खेलने का मतलब क्या ,

पहले तो मेरी रंगी पुती उँगलियों ने , वहां रंग पोता फिर हलके हलके मुठियाने लगीं।


खूब मोटा ,कड़ा ,

संदीप से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं था।

और एक झटके में ,

जीजू ने जोर की सिसकी ली ,

मैंने सुपाड़ा खोल दिया था और मेरा अंगूठा अब उसे सहलाने पुचकारने में लगा था।

दाएं हाथ की तर्जनी भी अब जीजू के पिछवाड़े सेंध लगाने की कोशिश कर थी

और जीजू के सीने पर ज्योति , जैसे मेरी भाभियाँ सुबह मेरी कच्ची अमियों को रगड़ मसल रही थीं , बस उसी तरह

रंग ,पेण्ट लगाती।

और फिर ब्रा के अंदर से अपने जुबना जीजू के सीने पर रगड़ती मसलती।

मुझे लग रहा था की कहीं जीजू का पजामा में उनका खूंटा छेद न कर दे बस मैंने नाडा खोल दिया।

आज सुबह घर की होली में कितनी भौजाइयों के पेटीकोट का नाडा मैं खोल चुकी थी।

और सर्रर्ररर ,... वो नीचे




जीजू सिर्फ एक वी टाइप छोटी सी चड्ढी में ,और उसके अंदर आगे ,पीछे,..... मेरे बाएं दाएं हाथ रगड़ते मसलते।

उनके सीने पर ज्योती छोटी सी ब्रा में ढंकी ,अपने जोबना को रगड़ती और पीछे पीठ पर मेरे उभार ,

लेकिन ज्योती कमीनी छिनार , उसके हाथ मैंने अपनी पीठ पर रेंगते मह्सूस किये

( मेरे दोनों हाथ तो जीजू की चड्ढी के अंदर बिजी थे )


और जब तक मैंने समझूँ ज्योती ने मेरी ३२ सी ब्रा के हुक खोल दिए





और मेरे एकदम खुले उभार जीजू की पीठ पर , ब्रा सरक कर नीचे फर्श पर।

जीजू की तो हालत खराब थी ही मुझे भी मजा आ रहा था , अपने जोबन सीधे उनकी पीठ पर रगड़ रगड़ कर उन्हें तंग करने में।

हाथ तो उनके बंधे थे ,वो कुछ तो कर नहीं सकते था।


पर मैंने ध्यान नहीं दिया की जीजू ,ज्योती के कान में कुछ फुसफुसा रहे हैं ,

कुछ देर तक तो ज्योति ना ना करती रही ,फिर उस के हाथों ने जीजू की पीठ की ओर


जीजू के बंधे हाथ खुल गए।


और मेरी शामत शुरू।
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जोरू का गुलाम भाग १३१



सामत तो आनी ही थी ,

एक नए नए आते जोबन से मदमाती हाईस्कूल की लड़की , गोरी चिकनी किशोरी

जिसकी कच्ची अमियों ने पूरे गाँव जवार में आग लगा रखी हो.




रिश्ते में स्साली। और खुद चल के अपने जीजू से होली खेलने आये ,





और जीजू जैसे ,कोई ऐसे वैसे नहीं ,

जिन्होंने अपनी शादी के चार दिन के अंदर ही अपनी छोटी साली को चोद दिया हो ,दिन दहाड़े।




और एक बार नहीं ,हफ्ते दस दिन लगातार ,बिना नागा , और वो भी चोरी छुपे नहीं ,

बल्कि अपनी बीबी को बताकर , बल्कि उकसाती तो वही रहती थीं।

और इस साली के जोबन पर कोहबर में घुसते ही न सिर्फ हाथ लगा दिया था , बल्कि कस के दरेर भी दिया था।

बल्कि चैलेंज भी दे दिया था,देखना पहली होली में तेरी क्या गत बनायेगें हम तेरी।

और उस स्साली ने ने जवाब भी वैसे ही दिया ,




" जीजू ,अरे मैं बुरा मान जाउंगी , अगर आपने अपनी पिचकारी का रंग हर बार की तरह अपनी बहनों के अंदर इस होली में भी खर्च किया। मेरी कसम है ,होली में आने की भी और सारी पिचकारी का रंग , सिर्फ मैं और मेरी ये सहेली , अर्रे अगर पिचका के न रख दिया आपकी इस पिचकारी को तो आपकी स्साली नहीं। "

और उसके पहले जिस गाली के बारे में सोच के भी शहर की लड़कियां बुरा सा मुंह बनाती है न वो सब जीजू और जीजू के दोस्तों की माँ बहने सब,

शुरुआत ज्योति ने की बाउंसर से ,

माली की गली से आया रे बन्ना लोग कहें मलिया का जना

अरे मोची की गली से आया रे बना ,लोग कहें मोचिया का जना।

टुकड़ा मैंने लगाया ,




अरे धोबी की गली से आया रे बना अरे धोबी की गली से आया रे बना ,

अरे लोग कहें गदहे का जना।

" तभी तो गदहे जैसा है ,परसों सबेरे अपनी बहिन से पूछ लेना " उनकी किसी मौसेरी बहन ने आवाज लगायी।

" मिर्च ज़रा कम है " उनके एक दोस्त ,शायद नीरज ने मुंह फुला के कहा। बस मोर्चा मैंने सम्हाल लिया।





और पहला टारगेट जीजू की गदहे के कमेंट वाली मौसेरी बहन को बनाया ,हेमा ,



अरे जीजू की बहिनी बड़ी हरजाई , अरे हेमा छिनार बड़ी हरजाई हमरे भैय्या से अंखिया लड़ाई ,

अरे पंकज भैय्या से ,अरे संजय भईया , अरे हमरे भैय्या से अंखिया लड़ाई।

अंखिया लड़ाई अरे अंखिया लड़ाई ,अरे पंकज भैय्या से खूब चोदवायी।

अरे संजय भइया से , अरे नानू भैय्या से खूब चोदवायी।

दोनों जुबना पकड़ के ,दोनों चूँची पकड़ के चोदे सटासट , अरे

हेमा छिनार लौंड़ा घोंटे गटागट , गटागट।

और उसके बाद मैंने वो जीजू के ख़ास दोस्त नीरज की रगड़ाई शुरू की ,नाम ले ले के।

अरे नीरज जीजू क बहिनी खोजें भतार , अरे उ त खोजैली यार ,

अरे गीता छिनार को चाही सात सात भतार , अरे चाही दर्जन भर यार

अरे नीरज भंडुए क बहिना को चाही दर्जन भर यार

अरे पंकज भइया हमारे कई दा उपकार , अरे संजय भैया तानी कय दा उपकार।

एक जाय आगे दूसर पिछवाड़े , बचा नहीं कउनो नउआ कहार

अरे छिनारी को चाहिए दर्जन भर भतार ,
अरे चोदे पंकज भैय्या अरे चोदा संजय भैय्या , चोदे उनको गाँव क कुल नउआ कहार।


तो सामत तो आनी ही थी।


जीजू के हाथों ने आजाद होने के बाद भी मेरी कच्ची अमियों की ओर रुख नहीं किया।

दोनों हाथ मेरी पतली कटीली कमरिया पर , और जब तक मैं कुछ सोचूँ समझूँ

मेरी शलवार का नाडा खुल चुका था ,

और सरररर , शलवार नीचे , जहां कुछ देर पहले मैंने जीजू के पाजामें का नाडा खोल कर ,

बस जीजू के पाजामे के ऊपर मेरी शलवार ,

ब्रा तो पहले मेरी उस कमीनी दगाबाज सहेली ने उतरवा दी थी और अब मैं सिर्फ एक दो इंच की पट्टी वाली लेसी पैंटी में ,

और ब्रा , एक बार फिर वो जीजू के हाथ में और मेरी नरम पतली कलाइयां मेरी ही ब्रा में कस के बंधी।

छुड़ाने को कौन कहे ,मैं कलाई हिला डुला भी नहीं सकती थी , जैसे मैंने जीजू के हाथ बांधे थे अपनी चुन्नी से एकदम वैसे ही टाइट।

एक बार फिर जीजू ने अपने तगड़े मरदाने हाथों में मुझे दिखाते मुस्कराते आराम से गाढ़ा गीला गीला पेण्ट ऐसा रंग लगाया ,और

मेरे छोटे छोटे जोबन की शामत आ गयी।




पहले तो उस के बेस पर हलके हलके सहलाते हुए उन्होंने हरा रंग , फिर रगड़ रगड़

और उस के बाद गाढ़े बैंगनी रंग के हाथ के निशान मेरी छोटी छोटी किशोर चूँचियों पर

हाँ निपल उन्होने वैसे ही छोड़ दिए।





रंग तो एक बहाना था , मीजने रगड़ने का ,और मिजवाने में बहुत मजा मुझे भी आ रहा था।

मीजी मसली चूँचियाँ जा रही थी लेकिन पनिया मेरी सहेली रही थी ,पैंटी के अंदर।

लेकिन ज्योति जयचंद , वो जीजू के पीछे पड़ी थी , जीजू अरे ये अभी जगह बची है ,वो जगह बची है।

यहाँ तक की बंधे हाथों के अंदर कांखों में भी

लेकिन उसके पहले मेरे गाल ,मेरी पीठ , और जहां मैं डरती थी ,

जीजू ने मुझे दिखा के बैंगनी रंग अपने हाथों में लगाया ,दिखाया और मेरी पैंटी के अंदर पीछे से।

कस के मेरे दोनों चूतड़ पकड़ के मसलते बोले ,

" स्साली आज तेरी गांड बचेगी नहीं। "




ऊपर से ज्योति मेरे पीछे पड़ी बोली ,

" अरे जीजू ,ये तो आयी ही है मरवाने अब आपके ऊपर है क्या क्या मारते हैं इसकी। "

और जैसे मैं जीजू के साथ कर रही थी ,जीजू ने अपनी एक ऊँगली मेरी चूतड़ की दरार के बीच में रगड़ना शुरू कर दिया

" अरे सब मारेंगे इसकी , इत्ती सेक्सी साली मेरी , और होली में कुछ भी कोरी छोड़ देना , बहुत नाइंसाफी है। "


जीजू ने बोलते हुए कचकचा के मेरे गाल काट लिए , और उनकी उंगलिया पैंटी में आगे की ओर मेरी सहेली को रंगने ,

जीजू को मैंने सिर्फ छोटी सी चड्ढी में छोड़ा था लेकिन हाथ डाल के उनके मूसलचंद को खूब रगड़ा था ,कमसे कम ६-७ कोट रंग पेण्ट

और वही खड़े बौराये मूसलचंद ,मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी गीली पैंटी और जीजू की गीली चड्ढी को फाड़ते पिछवाड़े से मेरे चूतड़ के बीच ठीक सेंटर पर रगड़ रहे थे।

सबसे बाद में जीजू ने मेरे चिकने गालों को लाल किया कुछ चूम के काट के ,तो कुछ रंग लगा के ,

और उसके भी बाद में निप्स पर एक ऊँगली से बाकायदा पेण्ट किया ,लाल रंग।

" हूँ सब हो गया है लगता तो है लेकिन एक जगह बची है ज़रा चेक करती हूँ" और दुष्ट ज्योति ने सरसरा के मेरी पैंटी भी अपने दोनों हाथों से सरका के ,

कुछ भी नहीं बचा था , जीजू ने चेहरे से भी ज्यादा रंग नीचे लगाया था मेरी चुनमुनिया पे , और चूतड़ पे।

सब रंग पेण्ट ख़तम हो गए थे।

ज्योति अंदर गयी और पेण्ट ,रंग लाने और मुझे मौक़ा मिल गया जीजू को फुसला कर अपनी ओर करने का।

योति अंदर गयी और पेण्ट ,रंग लाने और मुझे मौक़ा मिल गया जीजू को फुसला कर अपनी ओर करने का।उमरिया मेरी भली बारी थी लेकिन इस कच्ची जवानी में भी मैं लौंडे फ़साने के सारे गुर सीख गयी थी ,

और जीजू तो वैसे कोहबर से ही मेरी कच्ची अमिया के दीवाने थे।

हाथ मेरे बंधे थे पर कच्चे टिकोरे तो खुले थे।





दीवार के सहारे मैंने जीजू को दबा दिया और अपने टेनिस बॉल साइज के बूब्स उनके सीने पे रगड़ते हुए , बिना कुछ बोले मैंने अपने होंठों से हलके से जीजू के ईयर लोब्स को दबा दिया ,और फिर जीभ की टिप से जीजू के कान में हलके से घुमाते हुए बोला ,

" जीजू , जहाँ दो का मजा मिल रहा हो वहां सिर्फ एक , ... "

वो समझ के नासमझ बन रहे थे।

" अरे स्साली दो और मजा आप सिर्फ एक से ले रहे हैं , "

और अब वो मुस्करा रहे थे।

अपने खूंटे को मेरी गुलाबो पे रगड़ते बोले ," मुझे ये तो यही चाहिए। "

" अरे जिज्जू किस स्साली की हिम्मत है मेरे इस हैंडसम जीजू को मना करे "


उनसे भी जोर से मैंने अपने निचले होंठों को उनके खूंटे पे रगड़ते बोला।

और उसी तेजी से मेरे रंगे पुते जोबन जीजू की छाती पे रगड़ रहे थे।

" अरे ज़रा मेरी सहेली के कबूतरों को भी तो आजाद करिये न ,






दो से चार अच्छे, ये स्साली तो आपकी हर बात मानने को तैयार है तो आप मेरी थोड़ी सी बात ,... "

और बिना उनकी हाँ का इन्तजार किये बिना मैंने कस के चुम्मी ,

मेरे होंठों ने उनके होठों को गपूच लिया , मेरी जीभ उनकी मुंह में घुस गयी ,और मेरी देह एकदम उनकी देह से चिपकी।

ज्योती के पैरों की आहट पाकर मैं थोड़ा दूर हट गयी।

और जीजू भी जैसे कुछ हुआ न हो ,अलग।

ज्योती मुझे देख के मुस्कराती हुयी ,एक टेबल पर गहरी प्लेटों में ( कटोरे ऐसी ) गाढ़ा गीला पेण्ट ,

और जब वो झुकी थी तो जीजू ने उसे पीछे से दबोच लिया और ब्रा ज्योती की भी कलाई की शोभा बढ़ा रही थी।

और उसके बाद ज्योति की भी शलवार ,पैंटी मेरी शलवार पैंटी के साथ



जीजू अब ज्योती के अंग रंग रहे थे और मैं बता रही थी , यहां अभी बचा है।




थोड़ी देर में वो गीला गाढ़ा रंग ज्योति के अंग प्रत्यंग पर लगा हुआ


और ज्योती चिल्ला रही थी ,

" फाउल फाउल ,जीजू मैंने बोला था न की मैं इसको रंग लगवा दूंगी तो आप बिना नखड़े किये चुपचाप ,बिना उछले कूदे हर जगह रंग लगवा लेंगे। "

जीजू महा दुष्ट ,

मुस्कराते बोले ,

' अरे स्साली की बात टाले किस जीजा की हिम्मत है , चल मैं बिना नखड़े के चुपचाप , बिना उछले कूदे रंग लगवा लूंगा लेकिन हर जगह। "

"पर ,पर ,... जीजू ,.. हम दोनों के तो हाथ बंधे हैं "

" ये तुम दोनों की प्रॉब्लम है। " हँसते हुए वो बोले

" अच्छा पांच मिनट में तुम दोनों ने मुझे हर जगह रंग दिया न तो बस हाथ खोल दूंगा। "


मान गए वो।

ज्योति सोच में डूबी ,हाथ बंधे ,... कैसे


पर मेरे शैतानी दिमाग ने रास्ता ढूंढ लिया।

ज्योती जीजू की चड्ढी में फंसे तने खूंटे को देख रही थी , इसे कैसे खोलेंगे ,रंग ,... हर जगह ,..

मैं उसे देख कर मुस्करायी और जीजू से बोली ,

" जीजू शर्त मंजूर ,.. ."

और एक बार फिर ज्योती मेरे साथ।


लेकिन ज्योती की समझ में अभी भी नहीं आ रहा था की मैं ' हर जगह ' वाली शर्त कैसे पूरी करूंगी , बंधे हाथ से।

लेकिन उसे अभी भी नहीं समझ आ रहा की जवान होती लड़की के पास क्या क्या हथियार होते हैं।

मैं जीजू के सामने घुटनों के बल बैठ गयी , ज्योती टुकुर टुकुर मुझे देख रही थी।




चड्ढी एकदम तनी ,

एक जबरदस्त चुम्मा उस मस्त खूंटे पर चड्ढी के ऊपर से , और जीजू का सुपाड़ा एकदम फूल उठा।

जीभ निकाल के मैंने चड्ढी के ऊपर से ही फूले मोटे सुपाड़े को लिक किया ,

जीजू की हालत खराब ,

ज्योति को अभी भी कुछ समझ में नहीं आरहा था ,बंद हाथों के बावजूद मैं चड्ढी कैसे खोलूंगी ?

और एक झटके में मैंने अपने रसीले होंठों को खोल के , चड्ढी सहित जीजू के मोटे सुपाड़े को गप्प कर लिया और लगी चूसने।

जीजू की आँखे मस्ती से बंद हो गयीं।

लंड एकदम तन्नाया ,

बस , मैंने होंठ सिर्फ अपने होंठ ,चड्ढी की लिपस्टिक पे लगाई और हलके हलके हौले हौले नीचे सरकाने लगी , और खूंटे का बेस झलकने लगा।

अब ज्योती को भी समझ में आ गया , और पीछे से उसने भी जिज्जू की चड्ढी अपने होंठों से ,

धीरे धीरे ,हौले हौले ,




चड्ढी सरकती रही और सटाक

वो मोटा लंबा बड़ा खतरनाक खूंटा बाहर निकल आया।

खूब मोटा ,ज्योती ने तो उसे जीजू की शादी के चार दिन अंदर देख लिया था घोंट भी लिया था

मैं पहले बार देख रही थी।



और मैंने एक बार फिर अपनी जीभ से , बस एक हलकी सी लिक खड़े लंड के सुपाड़े पर




जीजू गिनगीना गए।

मुजफ्फरपुर के लीची की तरह मोटा रसीला , रस से चूता ,मांसल सुपाड़ा ,

मैंने बस अपनी जीभ की टिप

उनके सुपाड़े के पेशाब के छेद पर छुला दिया।

जैसे तेज करेंट छुला दिया हो ,उस तरह से वो काँप उठे।

अबकी उस छेद में जीभ की टिप डाल के मैं थोड़ी देर तक सुरसुराती रही ,फिर एक झटके में

गप्प।

पूरा सुपाड़ा मेरे मुंह में। मैं चुभलाती रही, चूसती रही।

और मेरी नाचती आँखे जीजू की आँखो में सीधे झांकती उन्हें उकसाती ,चिढ़ाती ,चढाती रही।

हाथ भले मेरे बंधे थे ,लेकिन होंठ कौन कम ,

सुपाड़े को , आजाद कर , मेरी जीभ लंड के बेस पर , लम्बे लम्बे लिक





एक बार तो मैंने बॉल्स भी लिक कर लिया और फिर एक झटके में पहले तो पूरा सुपाड़ा

फिर आधा लंड , गटक लिया।




ज्योति भी , वो कौन कम छिनाल थी , उसने पिछवाड़े का मोर्चा सम्हाल लिया था ,

कभी वो जीजू के चूतड़ चूमती तो कभी उसकी लिक्स बीच की दरार में





अब वो समझ गए , हमारे हाथ खोलने पर उन्हें क्या मिलना वाला है ,

लेकिन रंग तो लगाना ही था। अपने गाल से पहले मैं उस उत्तेजित लिंग पर रंग लगाना शरू किया ,फिर मेरे रंगे पुते जोबन

ज्योति भी जीजू के नितम्बो पर अपने जोबन से रंग लगा रही थी।



और तड़पाने तरसाने के बाद हम दोनों खड़े , खड़े , आगे का हिस्सा मेरे जिम्मे ,पीछे का ज्योति के




हम दोनों के किशोर उभार ब्रश से कम नहीं थे , कोई जगह नहीं बची।

और जब रंग कम पड़ गए तो उन रंग भरे कटोरों में झुक के हम दोनों ने ,अपने जुबना रंग लिया।

और एक बार फिर से , ... कोई जगह नहीं बची।




लेकिन मैंने ज्योति के कान में कुछ फुसफुसाया ,

और उसने रंग भरे वो कटोरे ,सीधे मेरे ऊपर ढरका दिया।

और मैंने जीजू को हलके से धक्का दिया और वो सीधे फर्श पर और ऊपर मैं ,

मेरे देह का रंग जीजू के

सरकते हुए , पहले मेरे जुबना ने जीजू के गाल रंगे फिर उनकी छाती , और फिर उनका खड़ा खूंटा ,

यहाँ तक की पैर ,तलुवे

बस।



टाइम पांच मिनट का ख़तम होने ही वाला था और जीजू मान गए , उन्होंने मेरे हाथ खोल दिए और मैंने ज्योति के


पर मेरे हाथ तुरंत ही बंध गए , जीजू के हाथों में

मेरी लम्बी टाँगे जीजू के कंधे पर और




देह की होली शुरू हो गयी थी।

क्या हचक के धक्का मारा था जीजू ने ,

और हथियार भी उनका खूब मोटा ,कड़ा ,मेरी चीख निकल गयी

और गाली भी , अरे जीजू हों ,स्साली हो और गाली न हो ये कैसे हो सकता है।

" अरे जीज्जु ,अपनी माँ का भोंसड़ा समझा है क्या ,जो एक धक्के में ,... "

ज्योती क्यों चुप रहती ,बोली

' अरे यार बचपन से अपनी माँ के भोंसडे में ही प्रैक्टिस की है उन्होंने , इसलिए तो। "

जवाब जीजू ने नहीं उनके हथियार ने दिया।




दोनों हाथों से कस के उन्होंने मेरी छोटी छोटी चूँची पकड़ी अपना मोटा खूंटा आलमोस्ट बाहर निकाला और अबकी ,

पहले से भी दूनी ताकत से , मोटे सुपाड़े का धक्का सीधे मेरी बच्चेदानी पर लगा , और इस जोर से की

कलेजा हिल गया।

मैं चीखी ,




पहले दर्द से फिर मजे से।

" जीजू मुझे क्या मालूम ,मंडवे में जो गारी मैंने आपकी माँ को गायी थी वो सही थी। उन्होंने गदहों और घोड़ों से चुदवाया तो आप पैदा हुए ,तभी आप का गदहे ऐसा ,... "


मैंने फिर जीजू को छेड़ा।

और जीजू ने कचकचा के गाल काट लिया।

ज्योति फिर ,

" तू न फालतू में दीदी के सास के पीछे , .... अरे तुझे बिचारी की असली कहानी तो मालुम नहीं। जवानी चढ़ते ही मायके में सगे चचेरे फुफेरे मौसेरे भाइयों ने ,गाँव के सारे मर्दों ,चमरौटी भरौटी कुछ नही बचा , ... शादी के पहले ही उनका भोंसड़ा बन गया था। तो उस पोखर में और किसी से उन्हें मजा ही नहीं मिलता ,... इसलिए मजबूरी में ,...गदहों घोड़ों के पास ,... "

जीजू जवाब ताबड़तोड़ धक्के लगा के दे रहे थे साथ में उनके होंठ कभी मेरे गालों को चूस काट रहे थे तो कभी जुबना को।




दर्द के मारे मेरी देह टूट रही थी लेकिन मजा भी खूब ,

सुबह भौजाइयों ने मजे तो खूब दिए थे ,लेकिन झड़ने नहीं दिया , वो ऊँगली करतीं ,चाटती ,चूसती लेकिन जैसे ही मैं झड़ने के कगार पर आती वो रुक जातीं।

मेरी गुलाबो सुबह से तड़प रही थी ,और यहाँ भी जीजू के साथ होली में ,...


एकदम गीली ,पनियाई


और अब मैं भी जीजू के धक्को का जवाब धक्को से दे रही थी ,चुम्मे का चुम्मे से।

और देह की होली के साथ रंगो की होली भी जारी थी।

ज्योती,... मेरे हाथों में रंग की प्लेट और ,हाथों के वो रंग कभी जीजू के गालों पर तो कभी उनकी पीठ पर ,


ज्योती साथ मुझसे भी होली खेलने का ,... अपने दोनों हाथों से जब पल भर के लिए मेरे उभार जीजू के हाथों से छूटते तो उसपर वो गाढ़ा गीला रंग मेरी सहेली

और रंग मेरे जुबना से जीजू की चौड़ी छाती पर।

लेकिन जीजू होली खेलने के लिए सिर्फ अपनी मोटी चर्मदण्ड वाली पिचकारी इस्तेमाल कर रहे थे।

हचहच हचहच

और रंगो के साथ गालियां भी नहीं रुक रही थीं मेरी ,आखिर साली थी तो गाली , ... और वो भी सिर्फ जीजू की माँ को ,


" मादरचोद ,भोंसड़ी के ,अपनी माँ के खसम ,... तेरी माँ को चमरौटी ,भरौटी के सारे लौंडों से चोदवाऊं , तानी धीरे धक्का मारो न , ... "

और बजाय धक्के धीरे करने के ,अगला धक्का एकदम तूफानी और सीधे बच्चेदानी पर साथ में उनकी उंगलियां मेरे क्लिट पे ,

और अब उनसे नहीं रहा गया ,बोल पड़े वो मेरी चूँची मसलते ,

"स्साली ,अरे अपनी माँ की याद आ रही है तो मेरी माँ का नाम ले रही है। अरे बहुत मन कर रहा है तुझे अपनी माँ चुदवाने का तो उस छिनार रंडी को भी चोद दूंगा। अरे सास को तो चोदना बनता है ,जिस भोंसडे से दूध वालों से चोदवा के दूध जैसी गोरी गोरी बिटिया पैदा की , उस भोंसडे में तो ,..

जीजू की गाली का असर क्लिट पर उनकी ऊँगली का असर ,

जुबना पर उनके होंठों का असर ,बच्चेदानी पर लगे मूसल के धक्के का असर,

मेरी देह कांपने लगी , मेरी चूत अपने आप सिकुड़ फ़ैल रही थी।

और मैंने झड़ना शुरू कर दिया।




लेकिन जीजू ने छोड़ा नहीं ,हाँ पल भर के लिए उनके धक्के रुक गए थे , पर लंड जड़ तक ,सीधे मेरी बच्चेदानी तक ठूंसा हुआ

और लंड का बेस वो हलके हलके मेरी क्लिट पर रगड़ रहा था।

वो मेरा झड़ना बंद होने का इन्तजार कर रहे थे और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई शुरू हुयी ,

मैंने भी रंग और गाली भूल के सिर्फ धक्को का मजा ले रही थी ,धक्कों का जवाब दे रही थी।

वो न मेरी चूँची छू रहे थे न क्लिट ,सिर्फ धक्के पर धक्का ,

मैं आँख बंद कर के जीजू की चुदाई का मजा ले रहे थी।

और अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू ने चुदाई रोकी भी नहीं।


मुझे लग रहा था जैसे समय रुक गया है ,बस मैं हूँ कर जीजू का लंड ,

और मैं चुद रही हूँ ,चुद रही हूँ।


मैं सिसक रही थी तड़प रही थी ,मेरी जाँघे फटी जा रही थीं ,और हलके हलके मैं भी नीचे से ,...

पांच मिनट ,दस मिनट ,... पता नहीं ,... मेरी आँखे बंद थी ,... हाँ अबकी जो मैं झड़ी तो जीजू भी साथ साथ \\\


मैं अपनी चूत में उनकी गाढ़ी मलाई महसूस कर रही थी।

गिरते हुए बहते हुए ,चूत मैंने कस के भींच लिया था ,मैं भी

जीजू के लंड को निचोड़ रही थी।

बड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में लथपथ , आँखे मेरी बंद


लग रहा था जिज्जू एक बार झड़ने के बाद दुबारा फिर मलाई ,...




उसके कुछ थक्के मेरी जाँघों पर भी ,..

जब जीजू ने अपना बाहर निकाला ,बस मन कर रहा था की ,...

उसके बाद भी मेरी आँखे बंद ,मैं थकी लथपथ ,.. और जो मेरी आँख खुली तो सामने
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

Post by kunal »

जोरू का गुलाम भाग १३२




एक खूब लम्बा तगड़ा , कसरती बदन वाला , ताकत उसके जिस्म से छलक रही थी ,





गोरा ऐसा कि लड़कियां मात , मक्खन सा चिकना , सिर्फ एक छोटे से शार्ट में ,

जो दीखाता ज्यादा था ,छुपाता कम था।

हल्के हलके मुस्कराता ,

पीछे से ज्योती उसे पकडे , खिलखिला रही थी। मुझसे बोली ,

" देख तेरा सरप्राइज पैकेट ,एक के साथ एक फ्री वाला "


मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा ,जहाँ हम तीनो रंग से लथपथ , वहां वो जैसे नाहा धो के चिकना हो के आया हो ,

" इसे तो लगाना पडेगा , "


उस चिकने को देख के मुस्कराते हुए मैं बोली।


मैं जीजू की तूफानी चुदाई के बाद उसी तरह लथपथ थकी पड़ी थी।

" हे मेरा काम लगाना है। लगवाना सालियों का काम है। "


उसने उसी तरह मुस्करा के जवाब दिया।




और मैं उछल के उसके पीछे जहां कुछ देर पहले ज्योती खड़ी थी , ज्योति हट गयी और अब मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया।

और मेरी देह का रंग उसकी देह में ,

" ससुराल में आये हो ,अब हम तय करेंगे , ... कौन डालेगा , कहाँ डालेगा ,कितना डालेगा , समझे चिकने ,चुपचाप डलवा ले। "

और उसके पिछवाड़े उस शार्ट में मेरे रंग लगे हाथ घुस गए।

और ज्योति सामने से चालू थी ,

" हाँ अगर अपनी माँ बहनो को ले आये होते तो बस उन्ही को डाल के , .... "


उसने छेड़ा पर मैंने उसकी बात काट दी।

"तू भी न ज्योती यार , अरे इनकी माँ बहनो की तो होली में साल भर पहले से बुकिंग रहती है ,सिर्फ इनके गाँव वाले नहीं , आसपास के दस पंद्रह गांव के लोग , बोली लगती है। बेचारे उनको होली में कैसे ले आ पाते ,लेकिन ये कौन कम चिकने हैं। "





शॉर्ट में पीछे से बबल बॉटम ऐसे चूतड़ों को रगड़ते मसलते मैं बोली।


ये और कोई नहीं नीरज ,जीजू का खास दोस्त ,...


मंडवे में जिसे जीजू की टक्कर की गालियां पड़ी थी , और उसके गोरे चिकने होने से हमसे ज्यादा तो गाँव की औरतों ने , हमारी नाउँन ने ,...

" ई तो लौंडे के नाच वाला चिकना लगता है ,मुछमुंडा "

" बचपन का गंडुआ है। "

" आज तो एह गांव के लौण्डेबाजन क चांदी हो गयी। "

और फिर तो हम लोग भी उसे हर गारी में गंडुआ और भंडुआ कह के ही , ...

और बात उन सब औरतों की सही भी थी ,क्लीनशेव्ड ,एकदम गोरे ,मुलायम गाल।

बस उन के पिछवाड़े दबाते ,मसलते ,रंग लगाते मैंने उन को मंडवे की याद दिलाई।

" पिछली बार बच गए थे चिकने , अब की बिना मरवाये नहीं जा पाओगे। "

" ये तो आये ही मरवाने हैं ,अरे पिछली बार तो एक इनके साथ एक से एक चिकनी माल थी ,कच्चे टिकोरों वाली से ,.. इसलिए अबकी तो मौक़ा भी है , देख नहीं रही हो ,नहा धो के एकदम चिकने ,... "


ज्योति क्यों चुप रहती , वो भी चालू हो गयी।

" ऐसी मस्त गांड हो तो न मारना एकदम नाइंसाफी है " अब मेरी ऊँगली उन के पिछवाड़े की दरार में रगड़ घिस करने लगी थी और तर्जनी पिछवाड़े के छेद में घुसने की जुगत लगा रही थी।

" और उस छिपा के रखना और नाइंसाफी है , ... "




ये कह कर ज्योति ने शार्ट आगे से पकड़ा और मैंने पीछे से ,... और वह ,... अगले ही पल के जीजू साली की होली के पेटेंट ड्रेस में हो गए ,सर रंगो को पहने।


लेकिन तबतक जीजू अपने दोस्त की सहायता के लिए आ गए और पलड़ा उन दोनों का भारी हो गया।

नीरज ने आगे से ज्योती को पकड़ लिया और उस के चूतड़ दबोचते हुए बोला ,

" स्साली सही बोल रही है , ऐसी चिकनी गांड हो तो न मारना एकदम सख्त नाइंसाफी है , "






बात नीरज की एक दम सही थी , पूरे स्कूल में क्या ,आस पास के कई गाँवों में मेरे जोबन की सानी नहीं थी।

लेकिन पिछवाड़े के मामले में ज्योति को मैं भी टक्कर नहीं दे सकती थी।




खूब गोल मटोल ,कसमस कसमस करती ,टाइट।

" और नाइंसाफी हमें पसंद नहीं है "


आगे से जीजू ने दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहा।

और मैं समझ गयी ,आज तो गांड गयी।


पर मुझे जो डर था वही हुआ।

ज्योति मौक़ा परस्त ,दलबदलू अपने को बचाने के लिए उसने मुझे आगे कर दिया ,

" पहले इसकी मारो न "





उसने मुझे खींच के नीरज के आगे कर दिया ,और जोड़ा , ये तो आयी ही मरवाने है।

मैंने अभी अभी हुयी मेरी चुदाई की दुहाई दी और बोला मेरे अगवाड़े देख लो एकदम अभी तक ,... बजबजा रही है। "

जीजू भी न मेरे ही पीछे पड़ गए , चिढ़ाते हुए बोले ,

" अरे तो अगवाड़े पिछवाड़े में अंतर् नहीं करना चाहिए न "

" एकदम ,छेद में भेद नहीं होना चाहिए। "


उन के दोस्त नीरज ने गुरुज्ञान दिया।

मैंने स्ट्रेटजी चेंज की और ज्योति की तरह बोली ,

" नहीं मेरा मतलब है , मैंने तो अभी अभी जिज्जू से ,...इसलिए आप ज्योति की ,.. "

"मारी तो तुम दोनों की जायेगी ,हाँ पहले किसकी गांड फटेगी तुम दोनों तय कर लो "



नीरज आज एकदम पिछवाड़े के पीछे ही पड़ गया था।

" टॉस कर लूँ ,... " ज्योति खिलखिलाती हुयी बोली।

" चुप कमीनी ,मुझे मालूम है तेरे पास शोले वाला सिक्का है " मैंने तुरंत उसका प्रस्ताव खारिज कर दिया।

लेकिन हम दोनों के झगडे में किसी का पिछवाड़ा नहीं बचने वाला था , नीरज जो था ,उस चिकने ने थर्ड अम्पायर की तरह फैसला सुना दिया ,

" तुम दोनों तो बचपन की सहेली हो बचपन से ही चुम्मा चाटी ,चुस्सम चुस्सायी ,रगडम रगड़ाई ,घिस्स्म घिसाई खेलती होगी ,तो बस आज हम दोनों के सामने ,...

और बस जो पहले झड़ेगी ,उसकी गांड पहले मारी जायेगी। "

और जीजू क्यों चुप रहते ,उन्होंने थर्ड अम्पायर के फैसले पर एक्सपर्ट कमेंटेटर की तरह अपना कमेंट भी सुना दिया ,

" मतलब मारी तो दोनों की गांड जायेगी ,हाँ जो झड़ेगी पहले उसकी पहले मारी जायेगी , तो बस,.. "





और ये मौक़ा मैं गवाना नहीं चाहती थी , वो खेल सच में मैने और ज्योती ने कितनी बार खेला था ,जब झांटे नहीं आयी थीं तब से।

पर अभी गुलबिया और वो कहारन , जो हमारे कुंए से पानी निकालती थी और गांव के रिश्ते से भौजाई लगती थी , आज होली में जिसने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ायी की थी , गुलबिया से भी ज्यादा इस खेल की उस्ताद थी , की सिखाई ,

ज्योती को धक्का देकर मैंने गिरा दिया , और उसके ऊपर चढ़ गयी।

पर ज्योति तगड़ी भी थी और कबड्डी चैम्पियन भी

कुछ देर में वो ऊपर ,मैं नीचे और हम दोनों 69 की पोज में।

कन्या कुश्ती चालू और आज तो ,... हमारी गांड दांव पर लगी थी।
ज्योती हर बार इस खेल में मुझसे बीस पड़ती थी ,

और ऊपर से ,.. आज वो ऊपर भी थी।




सड़प सडप ,सड़प सड़प , शुरू से ही चौथे गियर में,

लेकिन मैने गुलबिया की सीख ,पहले सीधे सीधे ,

जीभ की नोक से ज्योती की गुलाबो के किनारे किनारे जैसे लाइन खींच रही होऊं , ,




फिर जीभ से ही दो संतरे की फांको को ,दो फांक किया लेकिन जीभ अंदर नहीं घुसायी बस हलके हलके।

ज्योती की देह गिनगीनाने लगी ,

पर मेरी हालत कम ख़राब नहीं हो रही थी , ज्योती की चूत चुसाई मेरी चूत में आग लगा रही थी।

मैंने थोड़ी देर तो डिफेंस बढ़ाया यहाँ तक की ध्यान अपना इधर उधर लगाने की कोशिश की ,

पर ज्योती की जीभ मेरी चूत में सेंध लगा चुकी थी।

फिर मुझे ध्यान आया आज सुबह की होली का ,

एक मेरी दीदी गाँव के रिश्ते से ,चार पांच साल मुझसे बड़ी गौने के बाद पहली बार आयी थीं ,

ननद पहली बार ससुराल से अपने मायके आये तो बस , वो भी होली में ,सारी गाँव की भौजाइयां टूट पड़ीं ,

लेकिन मेरी वो दीदी सब पर २० पड़ रही थीं। कोई भी उनको झाड़ने में

फिर वही कहाईन , बताया तो था जो हमारे कुंवे पे पानी भरती थी ,

गाली देने और ऐसे वैसे मजाक में गुलबिया से भी आगे ,

और गाँव के रिश्ते में भौजी तो थी ही मेरी।

उसने दीदी की ऐसी की तैसी कर दी , पांच मिनट के अंदर ,

ऊँगली होंठ, जीभ दांत सब इस्तेमाल किया एक साथ

और बस मैंने भी वही ट्रिक ज्योति के ऊपर ,

पहले तो फूंक हलके हलके ,फिर तेजी से ,उसकी गुलाबी फांको पर फिर फैला के अंदर तक





और ज्योति की हालत खराब हो गयी। पर ये तो शुरुआत थी ,उसके बाद मेरी जीभ फांको के ऊपर

कस के चूसते हुए मेरी उँगलियाँ ने ज्योति की बुर फैलाई और जीभ अंदर ,

लेकिन मैं जीभ से बजाय चोदने के बुर की अंदर की दीवारों पर वो जादू जा बटन ढूंढ रही थी ,

और वो मिल गया , फिर तो

पल भर में ज्योति की बुर एक तार की चाशनी छोड़ने लगी।

फिर क्या था गोल गोल , गोल गोल मेरी जीभ उसकी बुर में और हर चक्कर पूरा होने के बाद थोड़ी देर देर उस बटन को दबा देती रगड़ देती।

और ज्योति सिहर उठती ,काँप जाती।

जब मैंने जीभ बाहर निकाली उसकी लसलसी बुर से तो मेरी दो उँगलियाँ एक साथ ,कुहनी के जोर से पूरे अंदर तक




और साथ साथ मेरे होंठों ने ज्योति की फूली ,फुदकती क्लिट को दबोच लिया और लगी चूसने पूरी ताकत से

अब ज्योति ने हार कबूल कर ली ,बजाय मुझे झाड़ने के चक्कर में पड़ने के वो सिर्फ मजा ले रही थी।

कुछ ही देर में वो झड़ने के कगार पर पहुँच गयी

और





और मैंने अपने दांतों से हलके से ज्योति की क्लिट काट ली।

बस जैसे ज्वालामुखी फुट पड़ा हो ,

तूफान आ गया हो ,

ज्योति काँप रही थी ,सिसक रही थी , झड़ रही थी।

मैंने कनखियों से देखा , नीरज जीजू मेरे होंठ की शैतानी देख रहे , खूंटा उनका पूरा कड़क ,ऊपर से मुठिया भी रहे थे।

ये बात मैंने कहाईन भौजी से सीखी थी झड़ने के बाद तो दूनी ताकत से हमला ,

और बस मेरी उंगलिया क्या कोई लंड चोदेगा , सटसट सटासट।

और होंठ अब एक बार फिर कुछ रुक के ,क्लिट चूसने में लग गए ,




ज्योति तड़प रही थी , चूतड़ पटक रही और अबकी दो मिनट में ही ,जैसे मैंने अपना अंगूठा क्लिट पर लगया

पहले से भी दूनी तेजी से झड़ने लगी।

झड़ती रही झड़ती रही ,

और अब बजाय उँगलियों के एक बार फिर उस लथपथ बुर पर मेरे होंठ

वैक्यूम क्लीनर से भी तेज सक कर रही थी।

फिर मैंने कनखियों से देखा ,नीरज वहां नहीं थे ,पर जीजू एकदम पास में


और अबकी जो ज्योति झड़ी तो झड़ती रही ,झड़ती रही,झड़ती रही।

बोलने की ताकत भी नहीं बची थी ,मुश्किल से बोल पायी ,

हार मानती हूँ मैं ,

विजयी मुस्कान से मैंने पास बैठे जीजू की ओर देखा और उन्होंने स्कोर अनाउंस कर दिया।

" अब जो पहले झड़ा उसकी गाँड़ मारी जायेगी , "

जीजू का खूंटा भी एकदम तन्नाया ,

लेकिन पीछे से तब तक नीरज जिज्जू की आवाज आयी

" और जो बाद में झड़ा,... उसकी बुर चोदी जायेगी ,"

जबतक मैं समझूँ ,कुछ बोलूं ,... ज्योति हट चुकी थी मेरे ऊपर से और नीरज जीजू का खूंटा मेरे अंदर ,एक झटके में।
………
उफ्फ्फ्फ़ ओह्ह्ह्हह्ह नहीं , ... मैं जोर से चीखी।




जवाब में नीरज जीजू ने मुझे आलमोस्ट दुहरा कर दिया , मेरी टाँगे मुड़ी हुयी ,

और अबकी जो निकाल के उन्होंने पूरी ताकत से पेला ,

मेरी चीख पहले से भी दूनी तेजी से निकल गयी ,

ओह्ह्ह्हह्हह ,उह्ह्ह्हह नहीं ,नहीं लगता है जीजू छोड़ो न उईईईईई


स्साली ज्योती , ... थकी लथपथ लेटी थी लेकिन , फिर भी बोली ,

" नीरज जीजू , मेरी सहेली जब नहीं बोलती है , तो इसका मतलब होता है, हाँ हाँ और कस के ठेलो न , "

और नीरज ने वही किया ,

जब उसके मोटे सुपाड़े का धक्का मेरी बच्चेदानी पे लगा , तो बस ,.... मेरी जान नहीं निकली और सब कुछ हो गया।

उईईईईई ओह्ह्ह्हह्ह् अबकी मेरी चीख जरूर घर के बाहर तक गयी होगी ,

और जब मैंने सांस ली तो सबसे पहले ज्योती को ,

" बहुत हंस रही है न स्साली , अभी जब दोनों जीजू तेरी गांड फाड़ेंगे न , तो मैं भी ऐसे मजे ले ले के देखूंगी ,"


पर ज्योती चुप रहने वाली थोड़े थी , बोली

" अरे यार फटने वाली चीज तो फटेगी ही , लेकिन अभी ज़रा अपनी बचाओ , ... "
,
लेकिन अब मैं बचने बचाने की नहीं सोच रही थी ,दर्द तो बहुत रहा था लेकिन मजा भी आ रहा था।

नीरज का बहुत ही मोटा था।



एकदम दरेरते ,रगड़ते , फाड़ते घुसता था और स्साले जीजू में ताकत भी बहुत थी , दोनों जुबना को पकड़ के जब वो पेलते थे ,




जान भी निकल जाती थी , मजा भी आता था।

और तभी मेरी निगाह जीजू पर पड़ी ,एकदम मेरे सर के पास , और उनका मोटा खूंटा टनटनाया ,

बस मेरे होंठ अपने आप खुल गए , जीजू समझ दार थे न उन्होंने कुछ बोला ,न मैंने

सिर्फ उन्होंने मेरे रसीले सेक्सी होंठो के बीच अपना सुपाड़ा ,सिर्फ सुपाड़ा डाल दिया ,और मैं चूसने चुभलाने लगी।

मेरे दोनों होंठों के बीच मोटे मोटे , ... मेरे जीजू के ,ऊपर वाले होंठों के बीच में जीजू और नीचे वाले के बीच नीरज जीजू।

कुछ देर के लिए नीरज जीजू ने ठेलना रोक दिया , वैसे भी उनका लंड जड़ तक मेरी चूत में धंसा था।





और मैं मजे से जीजू के लंड को चूसने का मजा ले रही थी ,और धीरे धीरे आधे से ज्यादा लंड मैंने गटक लिया था।

नीरज जीजू तो रुक गए थे ,पर ज्योती छिनार नहीं रुकने वाली थी।

पहले तो उसने मेरे ऊपर हमला किया , मेरी क्लिट पर अपनी जीभ की नोक से , और उसके बाद वही जीभ की नोक

नीरज जीजू के खूंटे के बेस पर ,सुरसुराती चाटती ,

मेरे भी हालत खराब थी और नीरज जीजू की भी ,

नतीजा वही हुआ जो होना था ,

मैं भी चूतड़ उठा उठा के और नीरज भी अब पूरी ताकत पर धक्के पर धक्का , हुमच हुमच कर पूरी ताकत से
मैं चुद रही थी चुदा रही थी।

और अब जीजू ने धक्के लगाना ,मेरे मुंह में बंद कर दिया था।

पर ज्योती रानी को ये सख्त नागवार गुजरा , और वो अब जीजू के पास ,

थोड़ी देर जीजू के पीछे बैठ कर वो स्साली अपने किशोर कच्ची अमिया ,जीजू के पीठ पर रगड़ती रही , फिर उसके हाथ ने

जीजू के लंड को पकड़ कर हलके से मेरे मुंह में पुश किया और , कुछ कान में फुसफुसाया ,

बस ताबड़तोड़ जीजू ने , धक्के पर धक्के ,मेरे मुंह में ,... और कुछ देर जीजू का लंड मेरे हलक तक

और अब दोनों पर से धक्के पूरी ताकत से लग रहे थे ,




एक का सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी पर चोट करता तो दूसरे का मेरे हलक पर ,

नान स्टाप।

और नतीजा वही हुआ जो होना था ,

कुछ ही देर में मैं झड़ने लगी , पर ज्योती दुष्ट , उसने जब मैं झड़ रही थी अपने अंगूठे से मेरी क्लिट रगड़नी मसलनी शुरू कर दी ,

और मैं झड़ती रही ,झड़ती रहे।

न तो नीरज ने न जीजू ने लंड निकाला ,हाँ धक्के उन्होंने रोक दिए ,

पर उन दोनों ने मेरे जोबन बाँट लिए थे और अब हलके हलके मसलना रगडना

और नीचे ज्योति तो थी ,कभी मेरी फैली हुयी ,चुद रही चूत की फांको को सहलाने लगती तो कभी झुक के अपनी जीभ से

मेरी क्लिट को बस छू लेती ,

बस थोड़ी ही देर में मैं ,फिर गरम हो गयी ,और हलके से मैंने चूतड़ उठाया तो नीरज जीजू के लिए ये सिगनल बहुत था।

अबकी न उन्हें जल्दी थी न मुझे ,

हलके हलके धक्के ,मेरी फैली कच्ची चूत में रगड़ते दरेरते

मस्ती से मैं गिनगीना रही थी और जवाब में अब हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।

उधर जीजू को शायद अहसास हो गया था था की उनके मोटे खूंटे को चूसते चूसते मेरे गाल दुःख रहे थे।

तो उन्होंने अपना लंड निकाल लिया और मेरे गालों पर तो कभी टेनिस बॉल्स साइज कच्चे जोबन पर रगड़ने लगे।

इतना अच्छा लग रहा था बता नहीं सकती।

और जैसे कोई लड़की लॉलीपॉप को ललचाये , जब वो मेरे रसीले होंठों से इंच भर बाहर दूर रखते तो मैं अपनी लपलपाती जीभ निकाल कर ,उनके सुपाड़े पर मुश्किल से छू भर लेती।

और अब ज्योती भी मेरे साथ आ गयी थी। हम दोनों मिल के ,कभी वो जीजू के सुपाडे को अपने होंठों के बीच लेकर चूसती चुभलाती तो कभी मैं

उधर नीरज ने भी अपने खूंटे को बाहर निकाल लिया था ,

मुझे कुछ समझ में नहीं आया।

लेकिन थोड़ी देर में सब समझ में आ गया।

बस उन्होंने उठा के ,निहुरा के , एकदम कुतिया ऐसी ,

पता नहीं क्यों सारे मर्दों को मुझे कुतिया बना के ही चोदने में ,

सामू को तो इसके बिना , और वो तो कभी भी कहीं भी ,

संदीप भी जब तक एक राउंड निहुरा के नहीं चोद लेता था


और अब नीरज ने भी


लेकिन उसने एक काम वो किया की मेरी जान निकल गयी।


पेलने के बाद ,वो ठेलता रहा धकेलता रहा ,जब तक लंड जड़ तक नहीं घुस गया। मेरी दोनों टाँगे खूब उसने फैलवा रखी थीं।

उधर जीजू ने एक बार फिर अपना लंड मुझसे चुसवाना शुरू कर दिया।





मैं मजे ले ले कर आराम से चूस रही थी , तबतक नीरज जीजू ने अपना काम कर दिया।

उन्होंने मेरी दोनों फैली टाँगे एकदम चिपका कर अपनी दोनों टांगों के बीच कैंची सी बना के फंसा ली।

और उसका असर मुझे तब मालूम हुआ जो उन्होंने लंड थोड़ा सा ही बाहर निकाल के पुश किया।

उफ़ मैं चीख भी नहीं सकती थी ,मुंह में जीजू का।


और उसके बाद तो वो तूफानी चुदाई दोनों ओर से शुरू हुयी ,

मेरी जान नहीं निकली बस।


मैं निहुरि , पीछे से नीरज जीजू चोद रहे थे ,जैसे किसी बछिया पे सांड चढ़ा हो।




और आगे से अब मैं जीजू का लंड नहीं चूस रही थी , वो हचक हचक कर ,हलक तक मेरा मुंह चोद रहे थे।

देर तक ,और मैं भी सब कुछ भूल के होली में दो दो जीजू का एक साथ मजा ले रही थी।




वो तो ज्योती की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा ,

"स्साली ,तू तो नम्बरी चुदक्कड़ निकली। "

और जब मैंने ध्यान दिया तो

न तो पीछे से नीरज ही मुझे चोद रहे थे और

न ही आगे से जीजू।

मैं खुद अपने चूतड़ के धक्के लगा लगा के पूरा लंड घोंट रही थी ,निकाल रही थी ,

आगे भी पीछे भी।


मेरे कुछ बोलने का सवाल ही नहीं था ,मुंह में जीजू का लंड भरा था ,पर दोनों जीजू मेरी ओर से बोल पड़े

" आखिर स्साली किसकी है। "

और अब उन दोनों ने ताबड़तोड़ धक्के ,

कुछ देर में मैं झड़ने लगी लेकिन अब की वो दोनों नहीं रुके ,

दो बार ,तीन बार ,चार बार ,...

और सबसे पहले नीरज ने मलाई ,

फिर आलमोस्ट उसी के साथ जीजू ने ,

" एक बूँद भी बाहर गयी तो ज्योती के पहले तेरी गांड मारूंगा। "


नीरज ने धमकाया।

और मैंने चूत निचोड़ कर

वो दोनों झड़ते रहे ,मैं भी

उसके बाद भी मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी।

देर तक ,और जब मेरी निगाह बाहर की ओर गयी तो मैं चौंक गयी ,शाम ढलने को आ गयी थी।



ज्योति को मैंने बोला था ,शाम होते मैं चली जाउंगी।







किसी तरह नीरज का सहारा लेके मैं उठी और बाथरूम

थोड़ा बहुत रंग साफ़ किया ,कपडे पहने लेकिन उसके पहले दोनों ऊँगली डाल के झुक के , दोनों जीजू की जितनी भी मलाई बुर रानी ने घोंट रखी थी , ऊँगली डाल डाल कर ,डाल डाल कर बाहर निकाला ,फिर अपनी सूखी रुमाल से अंदर ऊँगली डाल कर ,

मैं सुबह की गलती दुहराना नहीं चाहती थी।

जब जुगुनू की दो बार की मलाई मेरी बुर में बजबजा रही थी और बुआ ने जैसे ही मेरी बुर में ऊँगली की ,

उन्हें सब पता चल गया।

और जब मैं एकदम फ्रेश होकर बाहर निकली तो ,

नीरज बाथरूम फ्रेश होने गए थे और जीजू और ज्योती भी कपडे पहन कर ,...

जीजू तो दो बार मेरे ही अंदर झड़ चुके थे ,उसके पहले ज्योति की भी उन्होंने ली थी।

और नीरज भी ,तो अब उन दोनों को रिचार्ज होने में से लगने वाला था।


झुक कर मैंने जीजू और ज्योति को किस किया ,और जीजू के कान में बोली

" जीजू ,ज्योति स्साली की गांड एक बार मेरी ओर से भी मार लीजियेगा। "

जब बाहर निकली तो शाम ढल चुकी थी ,आसमान में पूनो का चाँद सोने की थाली की तरह निकल आया था।

दूर से कहीं से फाग की तो कही से जोगीड़े की आवाज आ रही थी।

मैं तेज डग भरते हुए घर की ओर चल दी।

झुटपुटा सा अँधेरा था ,और जल्दी के चक्कर में मैंने पगडण्डी का रास्ता पकड़ लिया।
और जल्द ही अँधेरा और गहरा गया , पगडंडी , गन्ने के खेत और एक गहरी अमराई के बीच ,

गन्ने के खेत भी आदमकद बल्कि उससे भी बड़े , पगडण्डी बहुत पतली सी मेड़ की तरह जिसके एक और सरपत के जुटे,

और चांदनी भी बस छनछनन कर थोड़ी थोड़ी सी ,

जीजू और नीरज ने इत्ता कस के ,रगड़ रगड़ के ,... बहुत दिन बाद एक साथ दो दो मर्दों ने ,

भगेलू और सामू के बाद , पहली बार

मेरी 'सहेली ' में दर्द भी हो रहा था ,मीठा मीठा , एक हलकी सी टीस और मुझे गुलबिया की बात याद आ रही थी ,

"जितना चुदोगी न उतना ही और मन करेगा , उस समय तो मन करेगा निकाल ले ,लेकिन जैसे ही निकालेगा न तो मन करेगा क्यों निकाला। "

सच ,में मन कर रहा था की ,... अगर कोई और लौंडा ,.. तो शायद मेरे लिए मना करना मुश्किल होता।

पास कहीं से ,शायद चमरौटी से लौंडे के नाच की जोगीड़ा गाने की आवाज आ रही थी।

और मैं भी जो सुबह कहाइन भौजी ,वही जो हमारे कुंए पे पानी भरती है और सुबह जिसने सबसे ज्यादा मेरी रगड़ाई की ,

जो वो गाना गा रही थी ,

वही मैं भी गुनगुना रही थी ,

" अरे अंचरा भीजे तो भीजन दो , मुंहवा ले चल बचाई पिया। "

अरे चोलिया भीजे तो भीजन दो , अरे जोबना ले चल बचाय पिया। "

उस समय मेरे दोनों जोबन फटी फ्राक से एकदम बाहर ,एक चंदा भाभी के हाथ में और दूसरा उस कहाईन भौजी के हाथ में रगड़ा मसला जा रहा था।

वो बोलीं ,


" अरे ननदी छिनार , ई उमर बचाने की नहीं लुटाने की है। "

" जेतना मिजवाओगी न ,उतना और दबवाने का मन करेगा। " उन्होंने जोड़ा।

सच में ,जीजू और नीरज जीजू ने इतना रगड़ा मसला था ,इत्ता मीजा दबाया था आधे घंटे भी तो नहीं हुआ

लेकिन फिर एक अजब सी टीस मेरे उभारों में उभर रही थी।

ब्रा की रगड़ भी एक अजीब अजीब सी ,

बस मन कर रहा था, ... कोई

चुन्नी तो ज्योती के यहां ही छूट गयी थी और कुर्ती मेरी इतनी टाइट की शेप साइज कड़ापन सब पता चल रहा था ,

एक बार मरद के हाथों से मीजे जाने के बाद , बस ,..

ब्रा के अन्दर एक अजब सी कसक ,एक मीठा मीठा दर्द ,...

और मैंने ध्यान नहीं दिया की मैं एकदम आलमोस्ट अँधेरे रस्ते में आ गयी हूँ ,

बस अमराई की मीठी बयार , ... बौर की महक ,बौराती देह

और पथराते जोबन में उठ रही टीस ,

तभी किसी ने मुझे पीछे से दबोच लिया ,

दो तगड़े मरदाने हाथ सीधे मेरे ,... उभारों पर ,
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

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जोरू का गुलाम भाग १३३





तगड़े और ताकतवर ,

बिना बोले मीजना रगड़ना उसने शुरू कर दिया।

वैसे भी मेरे जोबन में टीस सी उठ रही थी और उस के मीजते मसलते ही , ... और ज्यादा।




मैंने इधर उधर देखा , होली की शाम का झुटपुटा अँधेरा , एक ओर घनी अमराई और दूसरी ओर गन्ने के ऊँचे ऊँचे खेतों से और गाढ़ी हो गयी थी।

ऊपर से आसमान में न जाने कहाँ से दो चार आवारे बादल आ गए और जो थोड़ी बहुत चांदनी छिटक कर ,अमराई से छन कर आ रही थी , वो भी बंद।

और जिस पगडण्डी पर मैं चल रहे थी वो बस एक पतली सी ऊँची मेंड़ ऐसी थी , जिसके दोनों ओर खूब घने ,गहरी सी





सरपत के जुटे



और नीचे गहरी जगह ,


पकड़ बहुत तगड़ी थी उसकी , मैं लाख कोशिश करती नहीं छुड़ा सकती थी। और चीखने का भी कोई फायदा नहीं , आसपास कोई सुनने वाला नहीं थी , फिर होली की शाम सब लोग भांग की मस्ती में चूर ,

अब वो सिर्फ मींज नहीं रहा था ,कस कस के रगड़ रहा , पीस रहा था।

तब तक एक आवाज आयी , ठीक मेरे बगल से ,घने सरपत के बीच से ,

" अरे खींच के ले चल स्साली को गन्ने के खेत में ,नहीं तो इन्ही मेंड़ के नीचे निहुरा के ,... "

अब इरादे साफ हो गए थे दोनों के ,एक होता तो भी थोड़ा बहुत , दो होने से कोई सूरत नहीं थी बचने की।

लेकिन आवाज मैं पहचान रही थी , ज़रा जरा सी ,सुनी सी लग रही थी।

पर जो मेरे जोबन मींजने वाले ने बोला तो मैं पक्का समझ गयी ,

"अरे बोल बारी बारी से या एक साथ ,.. "

जवाब जिसने गन्ने के खेत में खींचने की बात कही थी , उसने दिया।



" अरे बारी बारी से जीतनी देर लगेगी उतनी देर में तो दो राउंड हो जाएगा , पहले तुम आगे से मैं पीछे से , फिर अदल बदल कर। "

और मैं समझ गयी , ... मैं अपने गाँव में आगयी थी , भरौटी के पिछवाड़े , ...





और ये दोनों वही थे ,भरौटी के लौंडे ,जो मुझसे ज्योति के घर जाते मिले थे।

और जिन्हे मैंने जोबन दिखा कर ,झुका कर अपनी गहराई दिखा के

और अब मैं समझ गयी कितनी बड़ी गलती हो गयी मुझसे ,आज होली खेलते समय ही तो वो कहाईन भौजी

" जउने दिन भरौटी के लौंडन के पल्ले पड़बू न ,... उ नाडा खोलते नहीं तोड़ देते हैं। न गन्ना न अरहर ,जहाँ मन करि उन्ही निहुरा के पेल देंगे। "

वही दोनों थे।

बादल थोड़े सरके , तो हलकी चांदनी में एक कच्चे से छोटे से घर में एक रौशनी दिखाई दी , थोड़ा दूर था।

और मदद वहीँ से आयी ,वही कहाईन ,उसी का घर था वो




उस के समझाने बुझाने पे और ये कहने पे की अरे गाँव क होली तो रंग पंचमी तक रहती है। अरे ई खुदे , .. अबहिन इनके घर में लोग खोज रहे हैं देर हो गयी है। कतौं खोजते खोजते इधर आ गए तो बड़ी

और उस पर भी जब तक मैं नहीं बोली की रंगपंचमी के पहले एक दो दिन में खुदै , तब तक वो दोनों नहीं माने ,

वो कहाईन भौजी हमको कहरौटी भरौटी की सीमा तक छोड़ने भी आयीं , बस वहां से हम लोगों का पुरवा दिख रहा था , रास्ता भी खुला खुला चौड़ा था और रौशनी भी ,लेकिन मेरे मन में एक परेशानी अलग घर कर गयी

,क्या सच में घर में सब लोग ,... मौसी ने तो खुद ही इशारा किया था ,... आराम से आना।

मैंने भौजी से पूछ ही लिया की का लोग इन्तजार कर रहे हैं ,

हँसते हुए उन्होंने मुझे दबोच लिया और बोली





" हाँ ,लेकिन तोहरे घरे नहीं ,चंदा भाभी तोहार ,.. थोड़ी देर पहले दालान में खड़ी तोहार बाट जोह रही थीं। "

और मुझे याद आया चुन्नू ,उनका वो शर्मीला लजीला भाई , मुझसे तीन चार साल ही बड़ा ,... वो आया होगा , खूब चिढ़ाती रगड़ती थी मैं उसे। भाभी ने बोला भी था।

और तेजी से डग भरती मैं चंदा भाभी के घर


दरवाजा खुला था , मैं सीधे अंदर।




भाभी किचेन में थीं ,मैंने पीछे से दबोच लिया और पूछा

"स्साला आया है की मारे डर के ,.. "

भाभी खिलखिलाने लगी और बोलीं

" यही बात वो भी कह रहा था की कहीं मारे डर के ,... "

" अरे भाभी डरूंगी मैं और वो भी उस स्साले से ,.. "




( मेरे भैय्या का स्साला तो था ही वो न तो मैं भी उसे स्साला ही कहती थी )

"लेकिन है कहाँ वो भाभी "

भाभी मुझे लेकर अपने कमरे में गयीं , उन के बिस्तर पर चुन्नू जी सो रहे थे ,सुध बुध खो के।

" जगा दूँ उसे ,.. " चंदा भाभी ने मेरे कान में पूछा।

लेकिन मेरी निगाहें भाभी की ड्रेसंग टेबल पर रखे तमाम सामानों के साथ सूखे रंग और गुलाल से भरी प्लेट पर टहल रही थी।




"नहीं भाभी , प्लीज मेरी अच्छी भाभी ,.. "

मैंने आलमोस्ट उनसे बिनती करते हुए कहा।

मेरे मन में कुछ पक रहा था।

" तू जान , वो जाने ,...मैं तेरे लिए कुछ ले आती हूँ , खाने को। " और भाभी बाहर।

मैंने अंदर से कमरा उठँगा लिया।

झुक कर देखा ,स्साला ऐक्टिंग तो नहीं कर रहा है , कान के पास चुटकी बजायी ,आँख के पास ऊँगली दिखाई ,

लेकिन वो खूब खूब गाढ़ी नींद में था , और मैनें अपना काम शुरू कर दिया।


मैंने पहले ड्रेसिंग टेबल पर से भाभी का आलता उठाया ,

चुन्नू के पैर ,एकदम भाभी की तरह , गोरे गोरे, मखमली ,खूब मुलायम चिकने।

और उस चिकने के सोने का फायदा कर मैंने रच रच के उसके गोरे गोरे पैरों में जम के महावर रचाई।




क्या कोई नाउन सुहागरात वाले दिन ,किसी दुल्हन को लगाएगी जैसे मैंने चुन्नू को लगाई थी।

और उसके बाद हाथों का नंबर , ... पिंक नेलपॉलिश ,उसके गोरे गोरे हाथों पर खूब फब रही थी।




आज मैं चुन्नू को चुन्नी बना के ही छोड़ने वाली थी। पहले तो सोचा की चूड़ियां भी पहना दूँ पर उसके जगने का ख़तरा था। इसलिए सीधे चेहरे पर

और हौले हौले ,गाढ़ी लाल लिपस्टिक ,भैय्या के स्साले के होंठों पर ,

फिर गालों पर भी थोड़ा , ... वैसे भी गाल उसके जैसे कोई दूध में गुलाबी रंग डाल दे वैसे ही।

सोती हुयी आँखों में ज्यादा कुछ तो हो नहीं सकता था ,हाँ हलका सा काजल बाहर की ओर , पतली सी काजल की धार।

अब , ... अब। ... अब मैं सोच रही थी की चंदा भाभी की टिपिकल बड़ी सी दमकती बिंदी दिख गयी ,बस अगले पल वो उनके भाई के माथे पर ,


लेकिन मेरी निगाह बार बार चुन्नू के पाजामे की ओर जा रही थी ,ये तो साफ़ था की उसने अंदर चड्ढी नहीं पहन रखी है , थोड़ा थोड़ा शेप पर साइज दिख रही थी।

ये लड़के लोग भी ना , ... चुन्नू तो घोड़े बेचकर सो रहा था पर उसका ' वो ' थोड़ा सोया ,थोड़ा जागा,...

मुझसे नहीं रहा गया , मैंने बहुत सम्हालकर पजामे का नाडा उसका हलके से खोल दिया , और पाजामा थोड़ा उठा के ,थोड़ा सरका के ,

झाँक लिया ,

चेहरे की तरह ,' वहां ' भी क्लीन शेव ,एकदम चिक्क्न मुककन

और थोड़ा सोया , थोड़ा जागा 'वो' अच्छा खासा मोटा ,

देखते ही मेरी सहेली लसलसी होने लगी , मन तो कर रहा था की ये लॉलीपॉप मुंह में ले कर ,

कुछ नहीं तो अपनी मुट्ठी में ही लेकर ,

लेकन मन मसोस कर रह गयी ,पर भौजी के भैय्या से होली शुरू करने का इससे अच्छा मौका कोई नहीं हो सकता था ,न ही जगह ,

बस गुलाल में मैंने थोड़ा गाढ़ा सूखा रंग मिलाया , और चुटकी में लेकर ,




एक बार फिर हलके से चुन्नू का पजामा उठाकर , रंग मिले गुलाल को 'उसके ' ऊपर अच्छी तरह पहले तो छिड़क दिया

फिर नहीं रहा गया तो अंगूठे और तर्जनी में थोड़ा सा गुलाल लेकर ,ज़रा सा टीका।


वो ज़रा सा कुनमुनाया और ,मैं दूर खड़ी हो गयी।

चुन्नू ने करवट ली और अब वो अभी भी एकदम गाढ़ी नींद में ,



मुझे लग रहा था की अभी कस्र बाकी है कुछ।

और मेरी निगाह उसके बालों पे पड़ गयी ,उसकी मांग




बस भाभी की सिन्दूर के डिब्बे से सिन्दूर निकाल के पहले थोड़ा सा ,

फिर मैंने खुद से कहा

" अरे जब डाल ही रही हो , तो ठीक से डालो "

और भरभरा के जैसे नयी दुलहिनिया




खूब उसकी मांग दमक रही थी।

तबतक दरवाजा खुला और चन्दा भौजी , मेरे लिए ठण्डाई , ग्लास में पानी और गुझिया ,

मेरे पास आके जैसे खड़ी हुईं वो

मुस्कराके मैं बोली



" देखिये भौजी ,आपकी चुन्नी का सिन्दूर दान हो गया ,"



" अब जब सुहागरात होगी तो पता चलेगा तुझे ,... "


खिलखिलाती हुईं वो बोलीं।

मैंने उनसे धीरे बोलने का इशारा किया और जो पानी वो मेरे पीने के लिए लायी थीं ,उसमें टेबल पर रखा सूखा रंग घोल दिया।


" आपकी ननद हूँ भौजी ,डरने वाली नहीं हूँ। " मुस्कराती हुयी मैं बोली। " देख लुंगी आपके भइया को भी "

" मेरे भैय्या को भी और अपने भैय्या को भी , फिर पता चलेगा की दोनों ने क्या फरक है। " भौजी कौन आसानी से छोड़ने वाली थीं

लेकिन हम लोगों के बोलने से चुन्नू उठ गया , और लेटे लेटे मुझे देख के मुस्करा रहा था।

" क्यों नींद में मेरी भौजी के साथ होली खेल रहे थे का ,जो एतना मुस्करा रही हो। " मैंने चिढ़ाया और एक शीशा लाकर उसे दे दिया।




वो जोर से चिल्लाया।

" चंदा भाभी देखिये रूप निखर आया है न हल्दी और चंदन से इस गोरी का। अरे आप इस गाँव के किसी लड़के को देख के इस चुन्नी की लगन कर दीजिये , आप दोनों साथ साथ रहेंगी। "

मैंने और चिढ़ाया।

चंदा भाभी मुस्करा रही थी और अपने भाई को इशारे से उकसा भी रही थीं।

बेचारा चुन्नू ,जल्दी से बिस्तर से उठकर मेरी ओर लपका ,पर मैं चंदा भाभी के पीछे छिप गयी, और उसे जीभ निकाल के चिढ़ा रही थी.

चुन्नू उसने ध्यान नहीं दिया की मैंने उसके पाजामे का नाडा खोल दिया है , बस बिस्तर से जैसे उठकर वो मेरी ओर लपका ,

सररर , पजामा नीचे , और वो लड़खड़ा के नीचे गिरते गिरते बचा।

पर उसका 'दोस्त' ज्यादा जागा थोड़ा सोया ,आलमोस्ट ९० डिग्री पर , एकदम बाहर , ( चड्ढी उसने पहनी नहीं थी ये तो मैंने पहले ही देख लिया था )

और उसके ऊपर मेरा छिड़का गुलाल ,

बिचारा , उसने छिपाने की कोशिश की तो और ,





" अरररे , अपनी बहन को देख के हाल बेहाल लग रहा है स्साले का भाभी,... "


मैंने चन्दा भाभी को छेड़ा ,

पर वो कौन चुप रहने वाली थीं ,बोली

" नहीं अपने जीजा की बहन को देख के , .... अब देख लो पिचकारी पसंद आ गयी है तुझे तो बस रंग डलवा लो"

लेकिन तब तक तो जो मैंने एक ग्लास में पानी में घोल के खूब गाढ़ा रंग बना रखा था , सीधे ,धीरे धीरे ,बूँद बूँद उसकी पिचकारी पे ,...






" रंग तो इसका मेरी भौजी ने खाली कर दिया होगा तो चलो थोड़ा और रंग भर देती हूँ इसमें। "

और जब उसने मेरे हाथ से ग्लास छीनने की कोशिश की तो बाकी का आधा रंग सीधे उसके ऊपर।

बनियान उसकी रंग से एकदम भीज गयी थी और सुबह की होली से मैं समझ गयी थी ,कपडे फाड़ ही देने चाहिए ,

इसलिए पहले तो मैंने प्लेट में रखा सारा गुलाल उसकी बनियान के नीचे ,




और फिर बनियान फाड़ने की कोशिश करते हुए मैंने फिर चिढ़ाया ,

" अपने घर की लड़कियों औरतों की तरह पेटीकोट तो तूने खुद नाड़ा खोल के उतार दिया , तो ये छोटी सी ब्रा काहें को ,इसे मैं उतार देती हूँ। "

पर होली में पासा पलटते देर नहीं लगती। और पासा पलट गया ,

वो मेरे पीछे पलट कर ,और पता नहीं कहाँ से पेण्ट की ट्यूब निकाल के अपने दोनों हाथों में रगड़ा और सीधे मेरे मुंह पे ,

पर वो शरमीला ,सीधा लजीला , मुंह से आगे जाने की उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी।

ये तो गनीमत थी की चंदा भौजी , मैदान में आ गयीं।

उन्होंने पीछे से मेरे हाथ दबोच लिए , और उसे ललकारा ,

" अरे असली जगह रंग लगवाओ , जहाँ लगावाने के लिए वो सबेरे से ललक रही है , तेरे जीजा की बहिनी। "

और तब जाके उसके पेण्ट लगे हाथ मेरी कुर्ती में घुसे ,





और एक बार कच्ची अमियों की महक पाते ही वो सीधे साधे हाथ भी एकदम गुंडे हो गए ,

और ऊपर से मैंने फ्रंट ओपन ब्रा भी पहन रखी थी ,बिचारे लड़के अक्सर आधा टाइम तो ब्रा का हुक ढूंढने में ही बर्बाद कर देते हैं।




लेकिन इससे उनका थोड़ा काम आसान हो जाता है ,

और चुन्नू का भी हो गया।

मेरे छोटे छोटे जोबन उसके हाथों में ,और दबाने मींजने में लगा था

मैं चीखने चिल्लाने में

" क्या करते हो , वहां नहीं ,प्लीज हाथ निकालो न ,.. "

वो बेचारा शायद घबड़ा के निकाल भी लेता पर उसकी बहन मेरी भौजी थी उसे उकसाने सम्हालने के लिए ,

भाई ने ब्रा खोली ,बहन ने शलवार।

मेरी शलवार का नाड़ा खोलते चन्दा भाभी ने बोला तो मुझसे लेकिन उकसाया अपने छुटके भइया को

" अरे अभी तो देखो क्या क्या डालता है मेरा भइया और कहाँ कहाँ ,... अब सिन्दूर दान तुमने किया है तो सुहागरात तो मनानी ही पड़ेगी। अभी तो तूने डाला था ,अब उसके डालने के टाइम चिल्लाने से थोड़ी बचोगी नंनद रानी। "

और अब भाभी का हाथ भी मेरी कुर्ती के अंदर , आगे से भैय्या ,पीछे से बहना।

लेकिन चंदा भाभी की होली के रंग मैं सुबह देख चुकी थी ,मेरी कुर्ती गनीमत थी ,फटी नहीं पर उतर जरूर गयी।
,
शलवार पहले ही सरक के मेरे घुटनो के नीचे ,

" भाभी ये बेईमानी है , आप बजाय अपनी ननद का साथ देने के अपने भइया का साथ दे रही हूँ। "


मैं चिल्लाई।

" मैं किसी का साथ नहीं दे रही अपनी मस्त माल ननदिया से होली खेल रही हूँ ,"

ढेर सारा गुलाल मेरी सहेली पे मलती वो बोलीं।

गुलाल तो बहाना था ,





जिस तरह उनकी उँगलियों ने मेरी फांको को मसला चंदा भाभी के अंगूठे ने मेरी क्लिट को मसला ,

मैं एकदम पनिया गयी ,

अब तो चुन्नू ज्यादा शरमाता लजाता तो मैं खुद ही उसके खड़े खूंटे पर चढ़ कर , ...

चंदा भाभी की एक ऊँगली मेरी प्रेम गली में घुस गयी थी और उधर चुन्नू भी मेरे निप्स , ...

थोड़ी देर उंगलियाने के बाद भौजी ने छोड़ा ,

" चलो जा रही हूँ अब जिस लिए सिन्दूर डाला था मेरे भाई को वो काम भी कर लो , चुन्नू छोड़ना मत आज इसको ,... एक घंटा बहुत होगा न सुहागरात के पहले राउंड के लिए ,चल मैं बाहर से दरवाजा बंद कर दे रही हूँ , "




लेकिन बाहर से दरवाजा बंद करने के पहले उन्होंने एक बार फिर से दरवाजा खोल दिया और झांकते हुए मुझे चिढ़ाया




" चल पहले मेरे भैय्या से मजा ले ले ,फिर अपने भैय्या से भी ले लेना , ... फिर पूछूँगी ननद रानी किसके साथ ज्यादा मजा आया। तो मिलते हैं ब्रेक के बाद ,एक घंटे ,"

और न सिर्फ बाहर से दरवाजा बंद करने की आवाज आयी ,कुण्डी लगने की भी और फिर ताला बंद होने की भी

और चुन्नू मेरे पीछे अब और उसका मोटा खूंटा मेरे खुले चूतड़ में गड रहा था।

देह की होली एक बार फिर शुरू हो गयी थी।


लेकिन जो मुझे डर था , सच में वो बहुत ही सीधा शर्मीला था।

पहली बार मुझे लगा की पहल मुझे करनी पड़ेगी ,

सामू तो पूरे गाँव का सांड था ,

संदीप और ज्योति के जीजू लोग भी अच्छे खासे खेले खाये ,

चुन्नू की तो लगता था नथ भी मुझे ही उतारनी पड़ेगी।

लेकिन इतना सीधा भी नहीं था वो ,कुछ देर में है पलंग पर थी ,आधी मेरी कमर तक देह पलंग पर और बाकी नीचे लटकी ,

लेकिन अगले पल मेरी दोनों लम्बी छरहरी टाँगे चुन्नू के कंधे पर , वो खड़ा ,उसका खड़ा और मैं अधलेटी ,मेरे हिप्स पलंग के एकदम किनारे ,







जिस तरह से उसने सटाया ,फंसाया और घुसाया , नौसिखिया नहीं लग रहा था , लेकिन ज्यादा खेला खाया भी नहीं।



और मेरा ख्याल भी उसे बहुत था की कहीं मुझे दर्द न हो रहा हो।

मेरे हाथों को ही चुन्नू को अपनी ओर खींचना पड़ा ,लेकिन बस मेरी थोड़ी सी कोशिश और वो हलके हलके धक्के लगाने लगा।

मैं अपनी मुस्कान रोक नहीं पायी ,

कुछ देर पहले ही तो मैं उसे चिढ़ा रही थी ,

वो बार बार पिचकारी की बात कर रहा था तो मैंने बोला ,





सुन स्साले ,अपनी बहिन के ससुराल में आया है , तेरी पिचकारी पिचका के रख दूंगी।

वो बोला मेरी तलवार देखी है ,फाड़ के रख देती है ,तो मैंने और जीभ निकाल के चिढ़ाया

" ज्जा जज्जा सिरफ तलवार बाँध के घूमने से कोई तलवारबाज नहीं हो जाता। "

धक्को की रफ़्तार तेज हो गयी थी , और अब वो पलंग पर ,

लेकिन अभी भी चुम्मा हल्का हलका ही





मैंने ही पहल की अपनी जीभ उसके मुंह में ठेल कर और वो धीमे धीमे चूसने लगा ,




और अब उसका नंबर था ,जीभ ठेलने का।




मेरे जुबना का तो वो दीवाना था ,उसकी उँगलियाँ ,





उसके होंठ , उसकी जीभ।
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी

Post by kunal »

एक नया मजा आ रहा था ,और सबसे बढ़के ,उसका औजार किसी से कम नहीं ,संदीप के तो टक्कर का ही था।

पहले कुछ देर तक उसने सहम सहम के धक्के मारे लेकिन जब मैने खुद चूतड़ उठा उठा के निचे से धक्के मारने शुरू किये



खुद अपने जोबन उसके सीने पर रगड़ने शुरू किये फिर तो उसके अंदर की आग ,बेताबी





और फिर वो भाभी के भैय्या ने धक्के पर धक्के मारा ,

हचक हचक के चोदा




एकदम मुझे दोहरा करके ,

आधे घंटे तक , मैं झड़ी और साथ साथ वो भी , ढेर सारी मलाई मेरी बुर के अंदर।


सच्च में आज तक ऐसा मजा नहीं मिला था।

एकदम अलग ,

हम दोनों एक दूसरे से लिपटे चिपटे , पर ,.. थोड़ी ही देर में चुन्नू का फिर से कुनमुनाने लगा।

और मेरी हथेली भी ,शरारत में उस पर हलके हलके रगड़ रही थी , बस थोड़ी देर में ही वो फुफकारने लगा।

उसकी तलवार भी तगड़ी थी और तलवार बाजी भी आती थी उसे।




मैंने उसे अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया ,उधर चुन्नू की शरम झिझक सब ख़तम

उसके दोनों हाथ मेरे छोटे छोटे उभार पर , कभी दबाता कभी मसलता।




और मुझे एक शरारत सूझी ,

नीचे झुक के मैंने उसके तलवार पर एक छोटी सी चुम्मी ली




और उसने इतनी जोर से सिसकी भरी की क्या कोई लड़की भरती।

बस झुक के मैंने अपनी कोमल मुठी में 'उसे ' पकड़ा दबाया ,खींच के सुपाड़ा खोल

दिया ,

और बस झुक के जीभ का कोना ,मोटे मांसल सुपाड़ा को छू लिया ,

वो गिनगीना उठा।

मैंने आँख उठा के चुन्नू की ओर देखा ,

उसने सर हिला के ना ना का इशारा किया , मैंने एक बार फिर इशारे से पूछा

और अबकी वो साफ़ साफ़ ना ना कर रहा था।

इसके दो माने थे , या तो इसके पहले किसी ने इसके साथ , मुंह वाला खेल नहीं खेल होगा या वो डर रहा होगा की क्या पता ,

या दोनों ही , पर चाहे जो हो ,मैं आज इस स्साले को अपने मुंह का मजा दिए बिना नहीं छोड़ने वाली थी।

उसकी आँखों में जो मजा आरहा था , चेहरे पर जो घबड़ाहट थी , मुझे बहुत मजा आ रहा था।




गप्प से मैंने चुन्नू का सुपाड़ा मुंह में घोंट लिया , लगी चुभलाने चूसने।

रुक रुक के मैं ऊपर देख लेती ,

साफ़ था ये उसका पहली बार था और बिचारे की हालत ख़राब हो रही थी।

अब मेरी उँगलियाँ भी मैदान में आ गयी , हलके से उसके लंड के बेस को कभी सहलाती कभी सुरसुराती , तो कभी मुट्ठी और तर्जनी से दबा देती।

बीच बीच में मेरी उँगलियाँ , उसके बॉल्स पर भी

सिसकियों के साथ वो अब चूतड़ भी उचका रहा था ,लेकिन मैं सुपाड़े से ज्यादा नहीं घोंट रही थी।

पर जब उसकी हालात बहुत खराब हो गयी तो उस बिचारे चुन्नू ने मेरे सर को दोनों हाथों से पकड़ के अपने खूंटे की ओर खींचा।

अब मुझे भी दया आ गयी , आखिर उसने अपनी बहन मेरे भैय्या को दी थी।

बस

सामू ने लंड चूसा चूसा के मुझे लंड चूसने में एकदम एक्सपर्ट बना दिया था।

और अब सरकते हुए उसके खूंटे को रगड़ते ,मेरे रसीले होंठों ने आधा से ज्यादा खूंटा अंदर घोंट लिया।

और अब मेरी जीभ चुन्नू के लंड को चाट रही थी , होंठ कस कस के उसे चूस रहे थे।

थोड़ी देर में ही मेरा नादान बालम ,सिसक रहा था उचक रहा था।


मेरे दोनों हाथ तो खाली थे , मुझे और शरारत सूझी ,

उसने मेरी कच्ची अमिया की जम के रगड़ाई मसलाई की थी बस मेरी उँगलियों ने छोटे छोटे निप्स उसके भी

ये मैं सीख गयी थी की जैसे हम लड़कियों के निप्स सेंसिटिव होते हैं वही हालत लड़कों की भी होती है।




बस मस्ती में उसने जो चूतड़ उचकाया और मैंने भी अपने होंठ , आलमोस्ट पूरा ,... मेरे हलक के अंदर तक।

और अब मैं कस कस के लंड चूस रही थी , मेरे होंठ पूरे लंड पर ऊपर से नीचे तक , कस के दबाते हुए रगड़ते हुए , और

अगले धक्के में पूरा लंड मेरे गले में




चुन्नू की हालत खराब थी।

लंड एकदम तन्नाया खड़ा ,

लेकिन पहली बार ही उसको आधा घंटा पूरा लगा था ,तो अबकी तो और ज्यादा ,

मैं समझ गयी थी ये नौसिखिया भले हो लेकिन है लम्बी रेस का घोड़ा ,

और उसके लाख सिसकने नानुकुर करने के बावजूद मैं अब कस कस के चूस रही थी।

लेकिन तब तक मैंने चंदा भाभी के पैरों की आवाज सुनी और उसने झटके से मुझे हटा दिया।



तबतक ताला खुलने की और कुण्डी भी खटकने की आवाज आने लगी ,


बस। ..

हम दोनों चादर में दुबक गए।

पर फर्श पर बिखरे हमारे कपडे बता रहे थे की हमने सिर्फ एक दूसरे को पहन रखा है।

और चंदा भाभी मुस्करा के मुझे छेड़ने लगी ,

" अरे ननद रानी कैसे रही सुहागरात मेरे भैय्या के साथ?"

हम दोनों चुप।

"अच्छा चल , मेरे भइया के साथ तो मजा ले लिया अब ज़रा अपने भैया से भी मजा ले लो , अरे तभी तो चलेगा की न किसके भइया के साथ ज्यादा मजा आया "

भौजी बोली और एक झटके में मेरी चुन्नू की चादर फर्श पर ,

वो ध्यान से मेरी चुनमुनिया में चुन्नू की मलाई देख रही थी , लेकिन उसे उन्होंने साफ़ कर दिया ,रगड़ रगड़ के ,

और मेरी ब्रा से में आँख अच्छी तरह बाँध दी और कारण भी बता दिया ,

" अरे इसलिए की नहीं तुझे शर्म लगेगी ,अरे मेरी साऱी ननदे पक्की भाई चोद हैं ,और इस गाँव के सारे मरद बहनचोद है ,इसलिए तेरे शरम लाज की बात नहीं है ,

हाँ कही तू अपने भइया की सूरत देख के जान बूझ के कह दो उनके साथ ज्यादा मजा आ रहा है , इसलिए बेईमानी नहीं चलेगी।


मेरा भैय्या और तेरे भाई एक साथ और बारी बारी से , ... पहले तो तुझे पहचानना होगा की चुन्नू है या तेरे भैय्या है , उसके बाद बताना ,

और ब्रा से मेरी आँखे बंद , चुन्नू का तो खड़ा ही था वो चढ़ गया और मैंने पहचान भी लिया ,

फिर दो चार मिनट के बाद ही उसने निकाल लिया और उसके बाद ,....


,तूफ़ान आ गया।




मैं चीख रही थी ,चिल्ला रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।

अब तक जैसे हलकी हलकी हलकी बयार चल रही थी , शरीर को शीतल करने वाली , छोटी सी मंथर गति से चल रही नदी की तरह बहती ,

पर अब तो ऐसे तूफान का मैं सामना कर रही थी जो बड़े बड़े गर्व से सीना तान कर खड़े पेड़ों को उखाड़ फेंके
,



ऐसी तूफानी नदी जिसमे बाढ़ आ गयी हो और वो किनारों को तोड़ के आसपास का सब कुछ लील लेने के लिए बेताब हो।


मैंने दोनों हाथों से कस को पलंग की चादर को पकड़ लिया था , भींच रही थी , मेरी चीखें कमरे के बाहर भी निकल रही थी ,

लेकिन उस तूफ़ान को कुछ फरक नहीं पड़ रहा था ,


वो निर्दयी ,बेदर्दी ,

बस ठेले जा रहा था ,पेले जा रहा था।

मेरी फटी जा रही थी।




खूब मोटा , ... मैंने अबतक इतने घोंटे थे ,मुझे भी लग रहा था की , क्या होगा लेकिन आज पहली बार ऊंट पहाड़ के नीचे आया था।

हलके से बाहर निकला तो मैंने गहरी साँस ली लेकिन ,वो तो इंटरवल भी नहीं था।

मुझे दुहरा कर दिया ,मेरे पैर का अंगूठा मेरी ठुड्डी को छू रहा था ,

और ,

ओह्ह्ह्हह्हह उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ्फ़ ओह्ह्ह्ह नहीं नहीं ,

अब लगा लंड क्या होता है।

बस जान नहीं निकली ,

आँखों से आंसू निकल आये।




लेकिन उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता था ,और अब जो लंड ठीक से फंस गया था ,

धंस गया था ,




उनके दोनों हाथ ,मेरे छोटे छोटे नए आये जुबना पे ,

और जैसे उनसे कोई दुश्मनी हो उसकी ,जिस तरह वो उसे रगड़ रहे ,दबा रहे थे ,मसल रहे थे।

लंड रुक गया था लेकिन चूँचियाँ अब दर्द से फटी पड़ रही थी।

और कुछ देर रगडन मसलन के बाद जो दोनों जुबना पकड़ के धक्का मारा ,




बस आँखों के आगे तारे छा गए।

सुबह जैसे बुआ की बुर में मम्मी और मौसी ने अपनी मुट्ठी ठेली थी , बस वैसे ही लग रहा था मेरी कुँवारी चूत में किसी ने मुट्ठी पेल दी हो।

मैं जल बिना मछली की तरह मचल रही थी ,तड़प रही थी।

हाँ अब वो बिना धक्के लगाए सिर्फ अंदर ठेले जा रहे थे ,और उनके दोनों हाथ अभी भी मेरे जुबना पर ही थे।

मेरी चीखें भी अब सूख गयी थीं।


बस सिर्फ तड़प रही थी ,आँख से हलके हलके आंसू छलक रही थी।

और एक बार फिर आलमोस्ट बाहर निकाल के उन्होंने जो ठेला तो ,...

मेरे चीखने के पहले मेरे होंठ पर होंठ ,

ये होंठ तो मैं सपने में भी पहचान लेती।

आज सुबह होली में इन होंठों ने मेरे हरजगह का रस लूटा था और मेरे होंठों को चूसना ,चूमना सिखाया था ,

चंदा भाभी , चूम कर उन्होंने पूछा ,




" हे ननद रानी , तूने बताया नहीं किसका , ... मेरा भइया या तेरा भइया।"

पूछने की बात थी ,चुन्नू के साथ तो एक राउंड कबड्डी खेल भी चूक थी थी ,

लेकिन मैं बोलने में शरमा रही थी ,.

और अबकी चन्दा भाभी ने कचकचा कर मेरी चूँची काट ली।

" बोल न ,वरना इन दोनों को छोड़ मैं तेरी गांड मार लूंगी। "

और दर्द के बावजूद मैं मुस्करा के बोल पड़ी

" भइया ,.. "

" भैया की सैंया " मेरे कान में फुसफुसा के बोलीं भौजी , और चिढ़ाया ,अरे सुबह यही ऑफर तो दे रही थी मैं ननदी सइंया से सइंया बदल लो। "

मेरे पूरी बुर दर्द से टपक रही थी ,जब उन्होंने निकाला और भौजी के भैया का नंबर आया।

और चुन्नू जैसे ,कोई दर्द पर मरहम लगा रहा हो , हलके हलके ,लेकिन कुछ देर में जैसे अपने जीजा कोदेख के वो भी

और वो भी हचक हचक के

लेकिन अब मैं भी उसे चिढ़ा भी रही ,छेड़ रही थी ,धक्को के साथ धक्के लगा रही थी।


और जब तूफ़ान का नंबर आया तो

इस बार मैंने भी हिम्मत कर के अपनी छाती उनके सीने में रगड़ी ,अपने हाथों से उनकी पीठ को भींचा

और हलके हलके से ही अब मेरे चूतड़ भी नीचे से धक्के लगा रहे थे ,




और फिर पहली बार से भी तेज , मेरी चूत फट रही थी



मैं समझ गयी बिचारी मेरी चंदा भौजी की पहली पहली रतिया में क्या हाल हुयी होगी ,उनकी तो एकदम कोरी थी।

हम ननदे बाहर से कान लगा के ,

और सुबह जब मैं उनको लेने गयी तो उनकी हालत सेज पर कुचले मसले फूलों से भी ज्यादा ,

लेकिन खुश ,मुस्कराते हुए ,

जब हम सब ने उन्हें छेड़ा , जबरन उनकी गुलाबो को देखने की कोशिश की तो वो

बोली ,चलो एक रात तुम भी अपने भैय्या के साथ गुजार लो न फिर पूछूँगी मैं रात का हाल।

छेड़ने में तो वो ,

दर्द भी बहुत हो रहा था ,मजा भी बहुत आ रहा था ,

बारी बारी से , हाँ भौजी ने मेरी आँखों का पर्दा थोड़ा सरका दिया था , पर खोला नहीं था था


और जब दोनों झड़े , पहले चुन्नू ही ,... तो थोड़ा सा भौजी ने सिर्फ बुर में




वरना दोनों की पिचकारी ने मेरी देह से होली खेली ,

सफ़ेद मलाई ,चेहरे पर ,


बालों पर ,




जुबना पर ,... देर तक



जब भाभी ने मेरी आँखे खोली तो मेरे और भाभी के अलावा कोई नहीं था।




चुन्नू जो मैंने उसका मेकअप किया था उसे छुड़ाने बाथरूम गया था

चंदू भैया बाहर।



और मैं चिल्ला पड़ी।







दीवाल घडी साढ़े आठ बजा रही थी।

गाँव में तो आठ बजे ही सोवता पड़ जाता है। घर में भी सब लोग सो गए होंगे , डांट पड़ेगी।

जल्दी जल्दी मैंने शलवार कुर्ती देह पर डाली ,




हाँ चंदा भाभी ने मेरी ब्रा पैंटी जब्त कर ली ,और वो मलाई भी नहीं छुड़ाने दी।





बाहर निकलते ही ,दालान में चंदू भैया थे उनसे आँखे चार हुईं , उड़ती हुयी चुम्मी भी।

सच में चारो ओर अँधेरा था ,सिवाय पूनो की चांदनी के , हम लोगों का घर थोड़ा ही दूर था।

दबे पांव घर में घुसी मैं ,की कहीं मम्मी जग न जाएँ , उनके कमरे में हलकी रौशनी भी थी।

मैं दबे पाँव ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ी पर पैर रखने ही वाली थी की एक आवाज सुनाई पड़ी ,




" आजा मेरे लौंड़े पर बैठ जा "

और मेरे पैर थम गए , अपने आप मैं मम्मी के कमरे की बाहर ,एक खिड़की में थोड़ा सा छेद था बस मेरी आँख वही चिपक गयी। .


आवाज तो मैं पहचान गयी थी ,फूफा जी की थी।


फूफा जी बैठे थे ,और उनका लौंडा एकदम खड़ा खूब मोटा ,और मुस्कराते हुए मम्मी चढ़ गयीं उसपर।

" हे मेरा क्या होगा ?" मौसा जी ने पूछा।

और खिलखिलाते हुए बुआ ने मौसा जी का तना खूंटा , मम्मी के पीछे के छेद में सटा दिया।


तब तक मुझे श श की आवाज सुनाई पड़ी , गुलबिया खड़ी थी सीढी के पास।

उसने इशारे कर के मुझे बुला लिया ,अपने पास और कस के भींचते हुए ,मेरे कान में फुसफुसा के बोला ,

" ये तेरी ऐसी बच्चियों के देखने के लिए नहीं हैं। "

फिर मुझे सीढी पर आलमोस्ट खींचते हुए ऊपर ले जाते बोली ,

" अरे तोहार महतारी हमें समझाए रहीं ,जैसे तुम आओ सीधे , ऊपर , और तोहार खाना भी हम ऊपर तोहरे कमरे में रख दिए हैं। "

कमरे में पहुँच के , कमरा बंद करने की भी न उसने जरूरत समझी। आज नीचे से किसी के ऊपर आने का कोई खतरा नहीं था।

खाना मैंने बाद में खाया , हम दोनों ने एक दूसरे को पहले खाया।

गुलबिया की पांच दिन छुट्टी आज ख़तम हो गयी थी। सारी रात हम लोगों की होली चली।







और मैंने उनके फ्लैशबैक की पतंग की डोर काट दी। रिकार्डिंग बंद कर दी।


पर उसके पहले मुझसे नहीं रहा गया ,मैंने पूछ ही लिया ,

" पर दीदी ,... होली के दिन तो आपने ,... ग़जब ,... एक दिन में पांच पांच ,... "

उन्होंने जवाब नहीं दिया सिर्फ मुस्कराती रहीं ,

मैंने अर्था के , गिन के पूछा ,

" अरे सुबह सुबह जुगनू , फिर शाम को ज्योति का जीजू और उसके दोस्त नीरज , फिर आपकी भाभी का भाई चुन्नू , और वो आपके भाई चंदू , पांच हुए न , वो भी एक दिन में। "

वो खिलखिला के हंस पड़ी ,

" अरे जब जवानी आती है न ,नए जोबन का उभार चढ़ता है न तो कोई यार नहीं गिनता। जैसे भूख लगने पर रोटी नहीं गिननी चाहिए ,उसी तरह जवानी चढ़ने में यार नहीं गिनने चाहिए। "

और मैं सोच रही थी यही जेठानी ,जब से मैं इस घर में आयी थी ,पहले दिन से ही उन्होंने संस्कार की तो माँ बहन सब ,..

और मुझे तो छोड़िये , ...इस चक्कर में उनके देवर को भी सारी मजे लेने वाली चीजें बुरी लगने लगीं।

और अब बिचारी गुड्डी , ... अगर उनकी चली होती तो वो यहीं इसी शहर में , इन्ही जेठानी की पाँव की जूती बनी ,इधर उधर घिसटती।

सिर्फ इसलिए की उन्हें मालूम था की अगर गुड्डी मेरे साथ गयी तो उसके भैय्या न उसे छोड़ेंगे न मैं उन्हें गुड्डी को छोड़ने दूंगी। उसकी फटनी तय है ,पर क्या क्या प्लान नहीं बनाये उन्होंने इसे रोकने के लिए और खुद ,...

अब रिकार्डंग मेरे हाथ में थी





और ये जेठानी भी ,....
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