मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन complete

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rajaarkey
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन

Post by rajaarkey »


मैने हिम्मत करके जैसे ही उसके हाथ के ऊपेर अपना हाथ रखा तो, उसने चोन्कते हुए एक बार मेरी तरफ देखा और फिर से नज़रें झुका ली…उसने अपने हाथों की उंगलियों को अलग किया…जो थोड़ी देर पहले उलझी हुई थी…मुझे ऐसा लग रहा था कि, नजीबा ने इसीलिए अपनी हाथो को अलग किया था…ताकि मे उसके हाथ को अपने हाथ मे ले सकूँ….मैने उसके नरम हाथ को अपने हाथ मे लिया और उसकी तरफ देखते हुए बोला….” आइ आम रियली सॉरी नजीबा…मैं बहुत बुरा इंसान हूँ…” मैं अब नजीबा का रियेक्शन जानना चाहता था..इसलिए चुप हो गया…”

किस लिए…और आपको किसने कहा कि आप बुरे इंसान है….”

मैं: तुमने….

नजीबा: क्या मैने…?

मैं: हां तुमने कहा….

नजीबा: खुदा के लिए मुझ पर इतना बड़े गुनाह का इल्ज़ाम तो ना लगाएँ…मैने कब कहा… (नजीबा का चेहरा उतर चुका था…वो अब भी नज़रें झुकाए हुए बैठी थी… अगर मैं उसे कुछ और कह देता….तो शायद वो रोना शुरू कर देती….)

मैं: मेरा मतलब है कि तुमने भले ही ना कहा हो….लेकिन तुम्हारी अच्छाई ने मुझे इस बात का यकीन दिला दिया है कि, मैं कितना बुरा इंसान हूँ…और तुम कितनी नेक दिल हो…जो मेरी हर कड़वी बातों को भुला कर हमेशा मेरा ध्यान रखती आई हो… मैने तुम्हे और तुम्हारी अम्मी को क्या क्या कुछ नही कहा…और तुम ने हर उस वक़्त मेरा साथ दिया…जब मुझे किसी अपने के सहारे की ज़रूरत होती थी…मुझे याद है.. जब मैं तुम पर गुस्सा करता था…तब भी तुमने मुझसे नाराज़गी नही दिखाई…तुम सच मे बहुत अच्छी हो…

मैने देखा कि नजीबा बड़े गोरे से मेरी तरफ देख रही थी….ऐसे जैसे उसे यकीन ना हो रहा कि, जो वो सुन रही है..वो सारे अल्फ़ाज़ मैं खुद बोल रहा हूँ..या कोई और.

“आप को क्या हो गया….आज आप ऐसी बात क्यों कर रहे है…?” नज़ीबा के चेहरे की रंगत अभी भी उड़ी हुई थी…

.”कुछ नही….आज जब मैं तुम्हारे सामने अंडरवेर मे खड़ा था…तो मुझे लगा कि, तुम मुझसे सख्ती से नाराज़ हो जाओगी. लेकिन जैसे तुमने रिएक्ट किया और मामले को संभाला….मुझे यकीन हो गया कि, मैं आज तक तुम्हारे साथ ज़्यादती करता आ रहा हूँ….”

नजीबा: अब बस करे….मैं ना कभी आपसे पहले नाराज़ हुई थी….और ना आगे कभी होना है….अब ऐसे सॅड मूड मे ना रहो….मूड ठीक कर लीजिए…

मैं: ओके मिस नजीबा….(मैने नजीबा का हाथ छोड़ते हुए कहा…) लेकिन मेरी बात एक दम सच है…तुम सच मे बहुत अच्छी हो….और…..


मुझे अहसास हुआ कि, मैं कुछ ज़्यादा ही बोलने वाला था…लेकिन अब नजीबा को भी इस बात का अंदाज़ा हो गया था…”और क्या मिस्टर. समीर….” नजीबा ने चारपाई से खड़े होते हुए कहा…और मेरे सामने आकर खड़ी हो गये…मैं भी चारपाई से खड़ा हो गया…”और खूबसूरत भी….” मेरे बात सुनते ही नजीबा ने शर्मा कर नज़रें झुका ली….वो बोली तो कुछ ना…लेकिन उसके होंटो पर आई हुई मुस्कान बहुत कुछ बयान कर रही थी…

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Jemsbond
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन

Post by Jemsbond »

thanks for new stori.............................bro
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन

Post by rajaarkey »

xyz wrote:बहूत ही मस्त कहानी है राज भाई जी
Jemsbond wrote:thanks for new stori.............................bro
Shukriya dosto
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Re: मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन

Post by rajaarkey »


रात हो चुकी थी….अब्बू और मेरी सौतेली अम्मी घर आ चुके थे…मैं अपनी सौतेली माँ नाज़िया से कम ही बात करता था….जब तक ज़रूरी काम ना होता, मैं उनसे बात करने से परहेज करता था…मैं अपने कमरे मे बैठा स्टडी कर रहा था…कि नजीबा मुझे खाने के लिए बुलाने आई….तो मैने उसे ये कह कर मना कर दिया कि, मुझे अभी भूख नही है….जब भूख होगी मैं खुद किचन से खाना लेकर खा लूँगा…. नजीबा वापिस चली गयी….मैं फिर से स्टडी मे लग गया…कल सनडे था….इसीलिए सोने की जल्दी नही थी….अब्बू खन्ना खा कर एक बार मेरे रूम मे आए….

अब्बू: तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है….?

मैं: जी ठीक चल रही है….

अब्बू: देखो समीर इस बार तुम्हारे बोर्ड के एग्ज़ॅम है….अगले साल तुम्हारा अड्मिशन कॉलेज मे होगा…और मे चाहता हूँ कि, तुम्हारा अड्मिशन किसी अच्छे कॉलेज मे हो….

मैं: जी अब्बू कॉसिश तो मेरी भी यही है…

अब्बू: अच्छा ये बताओ कि 12थ के बाद तुमने करने का क्या सोचा है…

मैं: अब्बू मैं सोच रहा हूँ कि, मे 12थ के बाद से गवर्नमेंट जॉब के लिए ट्राइ करना शुरू कर दूं….अगर मिली तो ठीक नही मिली तो स्टडी कंटिन्यू करूँगा..और अगर मिल गये तो, साथ मैं प्राइवेट ग्रॅजुयेशन कर लूँगा…

अब्बू: अच्छा सोच रहे…चलो ठीक है….तुम पढ़ाई करो…

ये कह कर अब्बू बाहर चले गये….अब्बू अपने रूम मे जा चुके थे…नजीबा और अपनी अम्मी के साथ किचन मे बर्तन वग़ैरह सॉफ कर रही थी…करीब आधे घंटे बाद वो दोनो भी काम ख़तम करके अपने रूम मे चली गयी..मैने अपनी बुक्स बंद की और उठ कर किचन मे चला गया….अपने लिए थाली मे खाना डाला और पानी की बॉटल और एक ग्लास लेकर अपने रूम मे आ गया….खन्ना खाने के बाद मे बेड पर लेट गया…दोपहर को भी आज सो गया था….इसलिए नींद का कोई नामो निशान नही था…मैने ऐसे ही ख्यालो मे लेटा हुआ था कि, मुझे वो दिन याद आ गये…जब अब्बू के कहने पर मैने फ़ारूक़ चाचा के घर जाना शुरू किया था…

मुझे फ़ारूक़ चाचा के घर जाते हुए कुछ दिन गुजर चुके थे….तब मे 7थ क्लास मे था….ना सेक्स की कुछ समझ थी…और ना औरत और मर्द के बीच के रिश्ते की, मेरे लिए स्कूल मेरे दोस्त पढ़ाई और क्रिकेट ही मेरी दुनिया थी…रीदा आपी और सुमेरा चाची दोनो ही मुझसे अच्छी तरह पेश आती थी….भले ही हमारी करीबी रिस्तेदारि नही थी….लेकिन मुझे उनके घर पर कभी इस बात का अहसास नही हुआ था कि, मेरे वहाँ आने से उनको किसी तरह की परेशानी पेश आ रही हो…रीदा आपी भी धीरे-2 मेरी मजूदगी से खुश होने लगी थी…अब वो बिना किसी परेशानी या शरम के ही अपने बच्चो को मेरे सामने दूध पिला दिया करती थी…

एक दिन मैं ऐसे ही रीदा आपी के रूम मे बैठा हुआ पढ़ रहा था…मैं उनके साथ ही बेड पर बैठा था..डबल बेड था…इसलिए रीदा आपी अपने दोनो बेटो के साथ बेड पर करवट के बल लेटी हुई थी….उसकी पीठ के पीछे उसके दोनो बेटे सो रहे थे….उसका फेस मेरी तरफ था…और वो अपने सर को हाथ से सहारा दिए…मेरी वर्क बुक मे देख रही थी…तभी डोर बेल सुनाई दी….हम पहली मंज़िल पर थे….जब सुमेरा चाची नीचे ग्राउंड फ्लोर पर थी…बेल की आवाज़ सुन कर रीदा आपी बेड से उतर गयी… और गली वाली साइड जाकर नीचे झाँकने लगी….वो थोड़ी देर वहाँ खड़ी रही…और फिर वापिस आ गयी….

तकरीबन 15 मिनट बाद रीदा आपी बेड से उठी….और मुझसे बोली….”समीर तुम अपना काम पूरा करो….मैं 15 मिनट मे नीचे से होकर आती हूँ…” रीदा आपी की बात सुन कर मैने हां मे सर हिला दिया…वो उठ कर नीचे चली गयी…आपी के दोनो बेटे सो रहे थे….मैं कुछ देर तो वही बैठा पढ़ता रहा..फिर मुझे पेशाब आने लगा तो, मे उठ कर बाथरूम जाने लगा तो, मैं कमरे से बाहर आया…और गली वाली साइड मे छत पर बाथरूम बना हुआ था…जब मैं बाथरूम के तरफ जाने लगा…तो छत के बीचो बीच लगे हुए जंगले के ऊपेर से गुज़रा…(वहाँ से छत खाली छोड़ी गयी थी…..उस पर लोहे की ग्रिल्स से बना हुआ जंगला लगा हुआ था…. ताकि नीचे रोशनी और ताज़ी हवा जा सके….) जब मे उसके ऊपेर से गुज़रा तो, मेरी नज़र रीदा आपी पर पड़ी…

वो उस समय सुमेरा चाची के रूम की विंडो के पास खड़ी थी…सुमेरा चाची का रूम पीछे की तरफ था…रीदा आपी झुक कर खड़ी अंदर विंडो से अंदर झाँक रही थी….मुझे बड़ा अजीब सा फील हुआ कि, रीदा आपी इस तरह क्यों अपनी अम्मी के रूम मे झाँक रही है….अंदर ऐसा क्या है…जो रीदा आपी इस तरह चोरो की तरह खड़ी अंदर देख रही है…उस समय नज़ाने क्यों मुझे ये ख्वाहिश होने लगी कि, मैं देखु कि, ऐसा क्या हो रहा है कमरे के अंदर जो रीदा आपी इस तरह चोरो के जैसे अंदर झाँक रही थी….तभी मुझे ख़याल आया कि, जब मैं सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपेर आता हूँ…वहाँ सीढ़ियों पर एक रोशनदान है…जो सुमेरा चाची के रूम का है….
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