गाँव की डॉक्टर साहिबा

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Jemsbond
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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

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उसने उसी पोर्न फिल की तरह बहुत धीरे से अपने दोनों हाथ काव्या के पैरो के बाजु में रखे. और खुदको को झुकाके उसके जांघो की तरफ मूह ले लिया. बहुत ही धीरे धीरे वो ये सब किये जा रहा था. काव्या की जांघो से आती हुयी मादक खुशबू उसको करीब से सुंघनी थी. उसने ठीक वैसा ही किया अपनी नाक को उसके बड़ी कुशलता से उसके गद्देदार जांघो से सटा दिया.

“आह...रंडी....मेरा निकल रहा हैं...आह..”

वहां सुलेमान अब अपनी चरम सीमा पे खड़ा था. उसका लंड अब सलमा की चूत खा के तृप्त होने जा रहा था. सलमा जो बस कुछ ही पल के पहले अपना पानी छोड़ गयी थी. उसको भी ये अंदाजालग गया के सुलेमान अपनी पिचकारी कभि भी छोड़ सकता हैं. लेकिन उस भोली कमसिन को ये नहीं समझ रहा था के वो लंड और अन्दर की तरफ क्यों सरका रहा हैं. तभी सुलेमान अपने आखरी धक्के देते हुए बोल पड़ा,

”आह...मेरी रंडी..बोल हमारी मदत करेगी न...”

“किस बात में भड़वे...आह..”

लंड और चूत के अन्दर की और घुसाते वो बोला, “कल तू उस डोक्टोरनी से मिलने जाएगी,,आह...और..और उसको मेरे घर तक लाएगी..”

“आह,...तेरे पाप में मुझे क्यों मिला रहा हैं...नहीं करती मैं ऐसा कुछ...”

“रंडी..तेरी क्या जा रही हैं....आह...इतना नहीं कर सकती क्या ...लंड तो ले रही हैं गपा गप...”

“नही...आह...म्म...नहीं करुँगी...क्या करेगा तु...कमीने....”, गुस्से से और कसमसाते हुए सलमा ने जवाब दिया.

“साली तू ऐसी नहीं मानेगी..रुक तेरा इन्तेजाम हैं मेरे पास..”

ऐसा बोलकर सुलेमान ने सलमा को जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और उसके होठो को अपने होठो में कैद कर डाला. उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी के सलमा हिल भी नही पा रही थी. उसका नाक उसकी नाक से साँसे चुरा रहा था. होठ उसके होठो की गिरफ्त में थे. बड़े कस के वो उस्को चूस रहा था. अपना बदन फेविकोल की तरह चिपकाके दोनों भी पसीने से एकदम लदबद खाट पे पड़े थे. वैसे ही अंग से अंग रगडके सुलेमान ने वो किआ जो सलमाने कभी सोचा ही नहीं था. उसने सलमा के चूत में अन्दर तक घुसे अपने लंड से वीर्य की धार सर्रर्रर्र ... बोलके छोड़ डी.

उसका लिंग आधे घंटे से फुला हुआ था. मुसल लंड सलमा की चूत में ही अपना वीर्य थूक रहा था. एक बड़ी पिचकारी ऐसे निकली के वो सलमा के बच्चेदानी पे जा कर ही रुक गयी. गरम गरम लावा उसको महसूस हुआ. सलमा ने भी आह निकली, “हाअय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य...हाआआआआआआ..गयीईईईई
ईईईईईईईईईईईईईईईईए....मीईईईईईईई,,,,हाआआआअ..कमीने.....कुत्ते”

पहली बार किसी ने कमसिन के चूत के अन्दर अपना पानी छोड़ा था. सलमा उस वक़्त सब चीजो से परे हो गयी. उसकी आवाज भी कमजोर गिरने लगी और उसकी आँखे संतुष्टि से बंद हो गयी और साथ ही नये अनुभव में उसका अंतर्मन लीन हो गया.

“आः.......रंडी.......ले साली.....आह...काव्या....”

सुलेमान वैसे हो दबोच के सलमा के चूत में अपने लंड की पिचकारी छोड़े जा रहा था. कुछ समय के बाद उसके लंड ने पिचकारी बंद कर दी. सलमा की चूत से उसका वीर्य निचे सर्र होक टपक रहा था. दोनों निढाल हो पड़े थे. सुलेमान वैसे ही उसके बदन पर चिपके हुए ढेर हो गया. काव्या का नाम अंतिम क्षण में लेके जैसे उसने आने वाले समय के संकेत दिए. पसीना शराब और वीर्य तीनो की खुशबू से झोपडी का समा रंगीन हो गया था. सत्तू बाजु में ही शराब में चूर अपना लंड हाथ में लिए अभी भी इंतज़ार में लगा हुआ था. शायद उसको आज इंतज़ार से ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला था. तभी मौसम ने भी रुख बदल दिया. शाम होने को थी गाँव क बादलो ने भी इस नज़ारे पे करवट बदल दी. आसमान में बादल आने लगे. और हलकी सी बूंदा बंदी शुरू हो गयी.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Jemsbond
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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

Post by Jemsbond »

sexi munda wrote:Superb
thanks dear
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Jemsbond
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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

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काव्या की जांघो से आती हुयी मादक खुशबू उसको करीब से सुंघनी थी. उसने ठीक वैसा ही किया अपनी नाक को बड़ी कुशलता से उसके गद्देदार जांघो से उसने सटा दिया. जांघो से आती भीनी भीनी खुशबु से उसका मन पूरी तरह से मोहमयी हो गया था. वो उस खुशबू में मदहोश हो गया. अपनी आँखे बंद करके उसने अपनी नाक और ऊपर सटा दी. धीरे धीरे करके ठीक वो काव्या के निकर के ऊपर आये हुए उसके उभरे योनी के आकार पे आ गया.वहा का स्पर्श उसके नाक को मिलते ही उसके मूह से धीरे से आह निकल गयी.
एकदम नरम और गरम गद्दी की तरह उसको एहसास हो रहा था. आती हुयी थोड़ी पसीना और इत्त्तर जैसे खुशबू से रफीक का लंड उसके देहाती कछे से बाहर तन कर आ गया. जैसे उसने बाहर की और कोई छलांग लगा दी हो. उसने अपनी आँखे खोली. उसके मूह पे पानी छा गया था. ठीक उसके नाक के नीचे काव्या की चूत जो थी बस वो निकर में नयी दुल्हन की तरह छुपी हुई थी उसको देखते हुए उसने अपना थूक निगल लिया. कितना अजीब कशमकश में था वो इन्सान. जिसके सामने खाना खुला पड़ा था पर उसके नसीब में नहीं था. उसकी किस्मत पे एक ही समय जलन भी हो रही थी और तरस भी आ रहा था.




लेकिन वासना भला वो क्या जिसमे लालसा ना छुपी हो. रफीक का सीना भले राजधानी की तरह दौड़ रहा था. पर उसका मन अब नहीं पीछे हटने वाला था. इतने पास दावत देख के जवान लंड पागल हो गया. उसका एक मन उसको टटोल रहा था तो एक मन उसको रोक रहा था. कुछ इस तरह उसके मन उसके साथ बाते कर रहें थे:

पहला मन: बस रफीक..एक बार..बस एक बार देख ले....
दूसरा मन: नहीं रफीक नहीं...ये क्या कर रहा हैं....मत कर, रुक जा,..
पहला मन: रुक जा?? फिर ऐसा मौका नही मिलेगा..जा मजे कर..किसको क्या समझेगा?
दूसरा मन: नहीं रफीक...अगर कुछ हुआ..तो तू...तेरी मा..का कैसा होगा?..गाओ में से निकल देंगे तुमको...रुको
पहला मन: अबे कौनसी तेरी सगी मा है..और क्या करने वाले लोग...जा मजे कर..
दूसरा मन: नहीं.. ये मजा कही सजा न बन जाए..रुको..रफीक...
पहला मन: जा रफीक... बस एक बार
दूसरा मन: नहीं रफीक,,नहीं
पहला मन: जा रफीक ...जा

दोनों मन के बातो में फसा हुवा नवयुवक का सर घूम रहा था. करे तो क्या करे? एक तरफ एक मन की सुने तो काव्या को अपना बना लिया जाये. और दुसरे मन की सुने तो दूर किया जाये. उसका दिल धड़क रहा था, मन कंफ्यूज था और दिमाग काम नहीं कर रहा था. वो सुने तो किसकी सुने.?

रफीक को ये सब पाप तो दूर दूर से नहीं लग रहा था पर उसको किसी अन्होनि से डर लग रहा था. इसलिए भगवान से वो मन्नत मांग रहा था. इंसान भी अजीब होता हैं मरने वाला भी और मारने वाला भी दोनों भी खुदा से ज़रूर अर्जी करते हैं. रफीक भी कुछ ऐसा ही था. उसको वासना के बादल घेर रहे थे पर ह्रदय से नाजुक रफीक को ये बादलो से घबराहट भी हो रही थी. कमजोर दिल के लोग होते ही बड़े भावुक, जीवन के उतार चढ़ाव में थक जाते हैं. अब आने वाले तूफ़ान का मुकाबला जाने कैसे करे वो मासूम.

काव्या से जांघो से लगातार आती हुयी कामुक महक ने उसके सब विचारों पे पर्दा डाल दिया और उसने सोचा...

“बस एक बार देख लेता हु..छू लेता हु..माफ़ी करना खुदा..एक बार..”

बस ऐसा खुद को समझाके उसने अपने हाथ काव्या के निकर पे ले दिए. और धीरे से उसके इलास्टिक के निचे की और अपनि उंगलिया डालने की कोशिश शुरू की. और बहुतही धीरे से एक छोर से अन्दर उसके ब्रांडेड प्यांटी में अपनी उंगलिया आराम से सरका दी.


यहाँ दूसरी और झोपड़े के बाहर हलकी सी बूंदा बंदी शुरू हो गयी. जिससे गाँव के मिटटी की भीनी खुशबू भी अब इन सबमे निमंत्रित हो गयी थी. सुलेमान सलमा के बदन पे ढेर सो गया था. सलमा जिसके चूत में अपना पानी छोड़ के १०-१५ मिनट पहलेही वो मादरजाद किसी सांड के माफिक ढेर पड़ा था. सलमा ने अपनी आँखे खोली. खोली में थोड़ी बाहर की हवा आने से सलमा को राहत मिली. उसने सांस भरी. लेकिंग साथ ही उसको अपने बदन पर सुलेमान के वजन का अनुभव मिल रहा था. उसको सुलेमान को ऊपर से हटाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा था. उसकी हालत की देख सत्तू जो बाजू में देसी शराब गटक के बैठा था वैसे ही अपना खड़ा लंड हिलाते सलमा के करीब आया.

“ अरे...उठ गयी सलमा ..तनिक हमरा भी हिसाबी करवा दो...”

सलमा थक गयी थी. उसको पहले ही सुलेमान ने निचोड़ निचोड़ के चोदा था. और उसका पानी भी उसके योनी में छोड़ा था. सलमा बड़ी रहम भरी निगाहों से सत्तू के तरफ देख के बोली,
“सत्तू,,,बस आज की बार नहीं..मैं जरूर करने दूंगी तुझे अकेले में..आज इस कमीने ने अन्दर पानी छोड़ दिया हैं....आज नहीं...”

“अरे साली..वो तो हमारा प्लान था..उस डोक्टोरनी के लिए..अब देख तू खुद उसको यहाँ लेकर आएगी..”

“अरे तुम हरामी मुझे क्यों फसाए हो...अगर मुझे कुछ हुआ मैं तुमको नहीं छोडूंगी”

सत्तु सलमा के करीब आया और उसका दाया दूध मसलते हुए बोला,
“रंडी..चल चोदता नहीं तुझे...साला मजा किरकिरा कर दिया...पर इसको शांत कौन करेगा तेरि अम्मा?”

सलमा की तरफ कोई चारा नहीं था. ऊपर शरीर पे ढेर पड़ा सांड जैसा सुलेमान और इस चुदाई से हुयी वाली वीर्य की बारिश, उसके चूत में भय और नकारात्मक विचारो की बौछार ला रहे थे. उसको पता था कलूटा सत्तू अब क्या करने वाला हैं. और ठीक उसने वही किया. सलमा के देहाती सावले खुबसूरत चेहरे की तरफ अपना नंगे लंड को मोड़ दिया. सलमा ने चुप चाप अपना मूह बिना कुछ बोले खोल दिया. सत्तू मादरजाद ने एक हसी ली और कहा,
"बहुत समजदार हो गयी हो रानी...अब जरा अपना जादू चलो दो ऊपर का ही...आह..."

ऐसा कहते जोर से सलमा के मुह को अपने लंड की और भींच लिया. इससे पहले सलमा कुछ चीख भी पाती उसने अपना लंड उसके मूह में किसी भाले के माफिक ठूस दिया. और उसकी चीख अन्दर ही अन्दर घुट गयी.
यहाँ जैसे ही रफीक ने अपनी उंगलिया काव्या के महंगी ब्रांडेड प्यांति के अन्दर डाली. रफीक को मानो गर्मी और बहुत कोमलता का अनुभव प्राप्त हुआ. जीवन में पहली बार उसने किसी स्त्री के योनी को छुआ था. इस राजसी महिला की एकदम मुलायम, मखमल जैसी गद्देदार योनी को छूते ही नवयुवक में प्रेम के भाव उमढ गए. इतना नाजुक स्पर्श जीवन में पहली बार उसने महसूस किया था. अपनी उंगलिया वो काव्या के चूत पे धीरे धीरे मलते हुए नया अनुभव प्राप्त कर रहा था.


अब आगे की पहल थी. हिम्मत बढ़ाके उसने प्यांति को धीरे से एक तरफ से बाजू किया. उसने जैसे ही एक छोर बाजू किया, उसको जन्नत के दरवाजे खुल से गए. उसके आँखे जैम सी गयी. शहर की डोक्टोरिन साहिबा की कसी हुयी मखमली चूत को देखके वो तो परलोक सिद्ध हुआ. बिलकुल उस पोर्न फिल्म में किसी मॉडल की तरह सपाट और चिकनी दूध जैसी चूत थी. हरदम साफ़ सुथरी रहनेवाली काव्या की चूत पे, बाल का नामोनिशान नहीं था. रफीक को वो देखके उसी पोर्न फिल्म का अगला सिन याद आने में कोई विलम्ब नहीं लगा जिसमे एक लड़का ऐसे ही साफ़ गोरी चूत को देखता है और उसको अपने होठो से उसको चुसने में आगे बढ़ता हैं.


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Re: गाँव की डॉक्टर साहिबा

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बस फिर क्या? अब वो उसके वश में हो गया था. उसने अपनी हिम्मत बढाई और दायने हाथ की उँगलियों से काव्या की प्यांति को एक तरफ से उठा लिया और बाए हाथ से उसको बहुतही हल्का सा महसूस किया. प्यांति बाजु में करने के कारन काव्या की चूत पूरी बाहर आ गयी. कुछ भी हो आज काव्या की चूत का दर्शन बार बार मिल रहा था. कुछ घंटो के पहले ही झाड़ियो में उसकी चूत ने अपना पेशाब छोड़ा था तब सब ने उसका नयनसुख लिया. और अब तो इतने करीब से कोई उसके साथ अपनी उँगलियों से खेल रहा था. वक़्त इतना तेज़ी से करवट बदलेगा ये तो काव्या की खुबसूरत चूत को भी पता चल गया होगा.

रफीक ने एक टक से उसकी चूत पे नजर डाली. उसका लंड तो मानो चीख रहा था, कबका कच्छे के बाहर आकर दंगल मचा रहा था. बस उसको चाहिए था वो सुनहरा छेद जिसका मजा रफीक की आँखे उठा रही थी. रफीक थोडा नजदीक गया. उसने अपनी जुबान काव्या के अंगो पे बेहद धीरे से चलाई. बड़े कोमलता से वो उनको चाट रहा था. उसका रोम रोम उत्तेंजित हो रहा था.


उसने अपनी नाक काव्या के योनी पे टिकाई. उसकी मादक खुशबू लेकर के वो और बेकाबू हो गया. उसने अपने बाये हाथ की बिच वाली ऊँगली काव्या के चूत के ऊपर से नीचे की तरफ बहुत ही हलके से घुमाई. वो स्पर्श, वो एहसास, वो महक उसकी उत्तेजना को सीमा पार बढ़ा रही थी. अब प्रेम जो चरम सीमा पर था वो रफीक को अलग दुनिया में ले जा रहा था. उसी बहाव में बहते उसकी जबान उसके मूह से बाहर आ गयी. बिना कुछ देरी लगाते उसकी उँगलियों की जगह उसके जबान ने ले ली. और देहाती नवयुवक ने देखते ही देखते शहरी राजसी महिला के मखमली चूत पे अपनी जबान फिरा दी.
**************
यहाँ दूसरी और सलमा की जबान और मूह भी कहा खुले थे. सत्तु मादरजाद अपना मुसल लंड उसके मूह में दबाते जा रहा था. उसके बालों को पकड़ के वो लंड को पूरी तकाद से उसके मूह के अन्दर बाहर कर रहा था.

“आह...रंडी...सलमा....चूस....रंडी...”

उम..उ...ऊउम्मम्म...की आवाज के अलावा सलमा के पास कोई शब्द नहीं थे. मुसल लंड उसके मूह चोदे जा रह था. उसकी चीखे आवाज सब दब रही थी. ऊपर से सुलेमान का सांड जैसा बदन उसके ऊपर कहर बरसाके सो गया था.

गल्प गल्प.....कर कर के सलमा का मूह को अछि तरह चोद के सत्तू अपनी प्यास बुझा रहा था. उसने अपने एक हाथ से सलमा के दूध के ऊपर की घुंडी को चिकोटी काट ली.

“आई.....हाई.....चूस रंडी....जोर लगा..:”

सालमाँ की आँखों से पानी टपक गया. वो पानी रोने का नहीं था बस एक मीठा सा दर्द था. जो अब उसको सहने की आदत लग गयी थी. लंड का पसीना, खोली में शराब का असर उसका गला सुखा रही थी. बस राहत थी तो बाहर से आती हुई ठंडी हवा और मीट्टी की खुशबु. उसके मूह से निकलती थूक से सत्तू का लंड पूरा का पूरा भीग गया था. सलमा को भी ये पता था के दोनों कलुटो से पीछा छूडाना हैं तो उसको खुद खेल में उतरना ही होगा. ठीक जैसे सुलेमान के साथ उसने अपना सहयोग दिखाया. उसने वक़्त ना गवाते ठीक उसी समय अपने बाय हात मे सत्तू का लंड पकड़ा और मूह के अन्दर चलने दिया.


सत्तू ये देख के बहुत खुश हुआ और बोल पड़ा..”आज पक्की रंडी बन गयी हो सलमा...आः...मजा आ गया तुमको ऐसा देखके.,,...मेरी रंडी...चूस और चूस...“

वासना भी अजीबी होती हैं. हर वो शरीर का पुर्जा जो इसमें जुट जाए वो पूरी तरह से उसके आधीन हो जाता हैं. एक तरफ एक लंड और एक तरफ एक चूत दोनों को भी बड़ी तबियत से चूसा जा रहा था.
*************************
रफीक जो बेकाबू बन गया था उसने अपने होठ काव्या के चूत को लगा दिए. उसको कुछ खारा और मीठा मिक्स स्वाद आने लगा. वो बस उसको और चखना चाहता था. उसने बेकाबू में अपनी जीभ को थोडा अन्दर की और सरकाया..और काव्या के मूह से पहली बार सिसक निकल गयी....स्स्सीईईई.......


रफीक की मानो साँसे रुक गयी. वो वैसे ही प्यांति को पकड़ के जुबान अन्दर डालके अटक गया. बिलकुल किसी मूर्ति के माफिक. पर काव्या ने जो बडबडाया उसको देख के उसने चैन की सांस छोड़ी..

“ऊओम्म्म......रमण,,,,लव मी,...बेबी.....”

काव्या नींद में रमण के ख्वाब देख रही थी. उसके योनी में लगी आग उसके नींद को भड़का रही थी. उसका दीमाग समझ रहा था के वो पति रमण के साथ हैं और रमण उसको प्यार कर रहा हैं. खैर रमण की याद में खोयी काव्या को सपनो में देख रफीक को समझ गया वो अभी भी नींद में ही हैं. उसने अपना ध्यान फिर से काव्या की चूत पे ले लिया पर अपने नज़रे काव्या के चेहरे पे ही रखी.


अपना दबाव उसने बड़ी आहिस्ते से काव्या के चूत पे बढ़ाया. उसको अपनी जीभ से वो चाट रहा था. बहुत ही नाजुकता से और धीरे से वो ये सब कर रहा था. उसको हर वो सिन याद रहा था जिस पोर्न में वो लड़का उस महिला की योनी में अपन मूह दबाता हैं, उसको चाटता हैं. उसी तरह से वो कर रहा था.उसने मूह ऊपर किया और अपना थूक काव्या के योनी पे बड़े तरीके से थूक दिया. काव्य की चूत उससे लदबद भर गयी. बस फिर क्या उसने उसके चूत के समुन्दर में अपना मूहसे एक छलाग लागा दी. और जीभ को अन्दर की और सरकाने का प्रयास शुरू रखा.



यहाँ वो चाट रहा था वह काव्या सिसक रही थी काव्या की हर सिसक की तरफ ध्यान डे के वो सब कर रहा था. वही दूसरी तरफ सलमा जो के सत्तू का लंड चूस रही थी. जैसे सब तरफ वासना ने अपनि बाजी चलायी थी फरक था तो किसिकी आँखे खुली थी किसीकी बंद. कोई जाग रहा था तो कोई नींद में था.
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