ऋचा (उपन्यास)

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: ऋचा (उपन्यास)

Post by Jemsbond »


हां ऋचा, सुनीता चाहती थी, उसके भाई की नौकरी लग जाए, उसके बाद ही वह शादी करे, पर राकेश ने जल्दी शादी के लिए दबाव डाला। उस वक्त तो उसने बड़ी-बड़ी बातें की थीं कि सुनीता अपना वेतन पहले की तरह अपने घर में देती रहेगी, पर शादी के बाद उसने रंग बदल दिया कि वह अपना वेतन उसे दे। सुनीता ने ऐसा करने से मना कर दिया। बस उसकी मनाही से उसपर अत्याचार शुरू हो गए।”

“अरे, यह तो अन्याय है, पहले तो पति ने वादा किया, बाद मे अपनी ही बात से पीछे हट गया।” ऋचा उत्तेजित थी।

“इतना ही नहीं, सुनीता नर्स है। कभी-कभी ज्यादा काम होने की वजह से उसे देर रात तक ड्यूटी करनी पड़ती है। देर से आने पर सास, सुनीता के चरित्र पर लांछन लगाकर, अपशब्द कहती और पति सुनीता को बेरहमी से पीट डालता।”

“सुनीता का अभी क्या हाल है, रोहित?”

“30ः जल गई है, वह तो पड़ोसियों ने उसकी चीखें सुनकर पुलिस में खबर कर दी, वरना सुनीता की राख ही मिलती। “

“हाँ, और हमेशा की तरह कह दिया जाता कि बेचारी किचेन में गैस या स्टोव के फटने से जल गई। मैं समझती थी, आत्मनिर्भर स्त्री की स्थिति बेहतर होती है, पर सच तो यह है कि औरत आज भी औरत ही है।”

“अब इस केस में तुम क्या करोगी, ऋचा?”

“सुबह होते ही सुनीता से मिलने जाऊॅंगी। अगर वह बात करने लायक हुई तो पूरी बात अखबार में छापॅंूगी, रोहित। थैंक्स फाॅर दि इन्फ़ाॅर्मेशन।”

“हाँ, अभी तो मैं वहीं से आ रहा हूँ। डाॅक्टर ने किसी को भी अन्दर जाने की इजाज़त नहीं दी है। वैसे पुलिस का पहरा है और सुनीता की सास मगरमच्छ के आँसू बहा रही है।”

“तुम कहाँ जा रहे हो, रोहित। तुम्हारी कमी बहुत महसूस होगी।” अचानक ऋचा को रोहित जा रहा है, याद हो आया।

“पापा चाहते हैं, अब मैं उनके काम में हाथ बटाऊॅं। वैसे भी फ़ाइनल एक्जाम्स के बाद यहाँ और रूकने का कोई अर्थ नहीं है।”

“क्यों, तुम्हारी लोकप्रियता तुम्हें नेता बना सकती थी, रोहित। तुम नेता बन जाते तो हमारा भी भाव बढ़ जाता।” ऋचा ने मजाक किया।

“तुम्हारा भाव तो आज भी खूब है। ऋचा से न सही, ऋचा के पत्रकार से तो लोग डरते ही हैं।”

तभी आकाश ने आकर खाना तैयार होने की सूचना दी थी। आजकल घर में बड़ी बहिन आई हुई थीं। दीदी के रहने से ऋचा की किचेन से छुट्टी हो जाती। दीदी और माँ की अच्छी पटती थी। अपनी इस बड़ी बहिन के लिए ऋचा के मन में बड़ी हमदर्दी और प्यार था। इस बार वह बहिन के पीछे पड़ी थी कि वह प्राइवेटली आगे की पढ़ाई करे और साथ में सिलाई का डिप्लोमा भी ले ले। अगर इला दीदी डिप्लोमा ले लेंगी तो उसे कहीं सिलाई-टीचर का काम मिल सकता है। घर के कामों के लिए कोई कामवाली रखी जा सकेगी। इला को ऋचा की बातों की सच्चाई समझ में आने लगी थी। क्या वह टीचर बन सकती है। सिलाई-कढ़ाई में इला शुरू से रूचि लेती रही है। श्वसुर-गृह में उसका काशीदाकारी किया गया सामान लोगों ने खूब सराहा था। ऋचा रोज बैठकर इला को अपने पाँवों पर खड़ी होने के सपने दिखाती। अगर कभी उन दोनों की बातों के कुछ शब्द माँ के कानों में पड़ जाते तो वह इला को चेतावनी दे डालती-
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: ऋचा (उपन्यास)

Post by Jemsbond »


“ऋचा की बातों में आकर अपनी जिन्दगी मत खराब कर डालना, इला। तू अपनी ससुराल में जैसे रहती है वैसे ही रह। अरे, हम औरतों का तो धरम ही सेवा करना है।”

“हाँ-हाँ, अपनी जिन्दगी होम करके निष्क्रिय बैठे रहना ही औरत का धर्म है। हिन्दुस्तान की आधी आबादी इसी तरह घर में रहकर धर्म निभाती है। अगर औरतें भी काम करें, पैसे कमाएँ तो अपने घर का स्तर ऊंचा उठा सकती हैं।” ऋचा उत्तेजित हो उठती।

माँ के चले जाने के बाद इला ने धीमी आवाज में कहा था –

“तू ठीक कहती है, ऋचा। काश, मुझमें भी तेरी जैसी आग होती, पर अब मैं पढूँगी, सिलाई में डिप्लोमा लेकर टीचर बनूँगी।”

“सच, दीदी, पर इस काम के लिए जीजा जी और तेरे ससुराल वाले इजा।ज़त देंगे?”

“नहीं देंगे तो भूख-हड़ताल करूँगी, जैसे तूने पत्रकारिता कोर्स में प्रवेश के लिए की थी।”

दोनों बहिनें हॅंस पड़ीं। ऋचा को विश्वास हो गया, इला दीदी अब जरूर पढ़ेंगी। घरवालों का विरोध भी सह सकेंगी।

रोहित ने जी खोलकर खाने की तारीफ की थी। इला दीदी का चेहरा खुशी से चमक उठा। हॅंसकर कहा था-

“तुम्हारी अभी शादी नहीं हुई है। बाहर का खाना खाते हो, इसीलिए घर का खाना अच्छा लगता है।”

“नही दीदी, आप सचमुच अच्छी पाक-विशेषज्ञा हैं, अपनी बहिन को भी अपना यह गुण सिखा दीजिए। यह तो टाॅम ब्वाॅय बनी घूमती है। मुझे तो इसके होनेवाले पति की चिन्ता है।” रोहित ने मज़ाक किया था।

“देखो रोहित, तुम्हें हमारे लिए इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। मैं ऐसा पति खोजॅंूगी जो तुम्हारी तरह खाने का शौकीन न हो। ” ऋचा ने गुस्सा दिखाया।

हॅंसते हुए रोहित ने विदा ली। उसके जाने के बाद इला दीदी ने दबी आवाज में ऋचा के मन की बात जाननी चाही थी-

“सच कह ऋचा, रोहित और तेरे बीच प्रेम का चक्कर तो नहीं? अगर वैसी कोई बात है तो हम माँ को मना लेंगे। रोहित अच्छा लड़का है।”

“मेरी भोली दीदी, रोहित बहुत अच्छा लड़का है, पर वह हमारा बस एक अच्छा दोस्त भर है। ज़िन्दगी में प्रेम के अलावा दूसरे रिश्ते भी हो सकते हैं। अब तुम सो जाओ।”

बिस्तर पर लेटते ही ऋचा के दिमाग में जली हुई सुनीता की तस्वीर उभरने लगी। सुनीता से ऋचा का परिचय अस्पताल में हुआ था। वहीं उसने जाना, सुनीता और रोहित पड़ोसी थे। सौम्य सुनीता के व्यवहार ने ऋचा को प्रभावित किया था। साइकिल से गिर जाने की वजह से ऋचा के पैर में चोट लग गई थी। फ़स्र्ट-एड कराने के साथ टिटनेस का इन्जेक्शन लगवाना जरूरी था। कभी-कभी सड़क की मामूली चोट भी ख़तरनाक सिद्ध हो सकती है। सुनीता के व्यवहार में एक अपनापन था। उसके बाद आकाश और माँ को जब भी जरूरत हुई, ऋचा ने अस्पताल में सुनीता की मदद ली थी। ऋचा को हमेशा सुनीता के चेहरे पर एक उदासी की छाया तैरती लगती। तीन वर्ष के एक बेटे की माँ सुनीता को क्या दुःख हो सकता है! रोहित से जब चर्चा की तो उसने बताया था, सुनीता के साथ उसके पति और घरवालों का व्यवहार ठीक नहीं रहता। अक्सर रातों में उसके घर से सुनीता की चीखें सुनाई पड़तीं। ऋचा ने रोहित से कहा था, वह सुनीता से बात क्यों नहीं करता? रोहित का सीधा जवाब था, एक युवक की दखल-अन्दाज़ी सुनीता की ज़िन्दगी की मुश्किलें और बढ़ा देंगी। रोहित की बातों में सच्चाई थी। ऋचा ने एकाध बार सुनीता से जानना चाहा, पर उसने बात टाल दी। कल सुबह कॅालेज जाने के पहले उसे अस्पताल जाना ही होगा।

सुनीता के वार्ड के बाहर पुलिस कांस्टेबल के साथ सुनीता का पति राकेश और उसकी माँ दुःखी चेहरा लिए बैठी थीं। कांस्टेबल ने सुनीता को रोकना चाहा, पर जवाब में सुनीता ने डाॅक्टर की अनुमति दिखा दी। वह पत्रकार है, सुनते ही राकेश के चेहरे पर घबराहट आ गई।

“देखिए, मेरी बीवी एक जबरदस्त हादसे से गुजरी है। उसे आराम की ज़रूरत है। आप अन्दर नहीं जा सकतीं।”

“उसको आराम की ज़रूरत है, आप यह बात समझते है।, राकेश जी?” किंचित् व्यंग्य से अपनी बात कहती ऋचा कमरे में चली गई।

सुनीता आँखें खोले छत को ताक रही थी। ऋचा की आहट पर उसने दृष्टि घुमाकर देखा था। ऋचा ने प्यार से सुनीता के माथे पर हाथ धरा तो उसकी आँखों से झरझर आँसू बह निकले। तभी पीछे से राकेश कमरे में आ गया।

“देखिए, आप पत्रकार हैं, इसका यह मतलब नहीं कि आप सुनीता को उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाएँ।”

“आपने यह क्यो ंसोचा कि मैं सुनीता को कुछ उल्टा-सीधा सिखाने आई हूँ, जबकि कुछ गड़बड़ हुआ ही नहीं है, मिस्टर राकेश। क्यों, ठीक कह रही हूँ न?”

“नहीं, मेरा मतलब यह नहीं था………..” राकेश सकपका गया।

“आपका मतलब अच्छी तरह समझती हूँ। यहाँ आने के पहले इन्स्पेक्टर अतुल को ख़बर कर दी है, वह किसी भी समय यहाँ पहुँचने वाले हैं। अच्छा हो, आप कमरे के बाहर चले जाएँ, वरना आपकी शिकायत करनी होगी।”
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: ऋचा (उपन्यास)

Post by Jemsbond »


सुनीता पर आग्नेय दृष्टि डाल, राकेश ने चेतावनी-सी दे डाली-

“एक बात याद रखना, इन लोगों के कहने से उल्टा-सीधा बयान मत देना। अर्जुन का ख्याल रहे।”

सुनीता सिहर-सी गई। राकेश की बात का अर्थ ऋचा अच्छी तरह से समझ गई। सुनीता का बेटा अर्जुन से हाथ धो बैठेगी। राकेश के बाहर जाते ही ऋचा ने सुनीता को हिम्मत दी थी।

“देखो सुनीता, अन्याय सहते रहना अपराध है। अन्यायी को दण्ड दिलाना ही न्याय है, भले ही वह तुम्हारा अपना पति हो।”

“मेरी कुछ समझ में नहीं आता। वह मुझे छोड़कर दूसरी शादी कर लेगा। मेरे बेटे का क्या होगा?” कठिनाई से अपनी बात कहकर सुनीता रो पड़ी।

“सच यही है न कि तुम्हारे पति ने तुम्हें जलाकर मार डालने की कोशिश की थी? तुम्हारे पड़ोसियों ने तुम्हारी मदद की वरना आज तुम्हारी जगह तुम्हारी राख ही बची होती।”

निःशब्द सुनीता की आँखों से आँसू बहते रहे। पति की धमकी सच बयान देने से रोक रही थी।

“देखो सुनीता, यूँ आँसू बहाने से कोई फ़ायदा नहीं होनेवाला। आज तुम बच गई हो, पर कल किसी और तरीके से तुम्हें ख़त्म किया जा सकता है। अपने बेटे की ख़ातिर तुम्हें उस नरक से बाहर आ जाना चाहिए। तुम नर्स हो, अपने वेतन से तुम अपने बेटे को एक खुशहाल जिन्दगी दे सकती हो।”

ऋचा की बात से सुनीता के चेहरे पर आशा की झलक दिखाई दी थी। ठीक ही तो कह रही है ऋचा, हर रोज घर आने पर पति और सास उसे प्रताड़ित करने का कोई-न-कोई बहाना खोज ही लेते। माँ को पिटते-रोते देख, नन्हा अर्जुन कैसे सहम जाता है! इस महीने तो वेतन का पैकेट सुनीता से छीन लेने के बावजूद शराब के नशे में पति ने उसे रूई-सा धुन डाला था, क्योंकि सुनीता ने आधा वेतन अपनी माँ को देने की मनुहार की थी। उसकी माँग उसका अपराध समझा गया था। अर्जुन के माँ से लिपट जाने के कारण, पति ने उसे भी थप्पड़ मारकर ढकेल दिया था। अर्जुन की पिटाई का विरोध करने पर सास ने उकसाया था-

“अरे, कब तक इसे झेलेगा? रोज की खिचखिच से अच्छा होगा, इसे ख़त्म कर डाल। तेरे लिए रिश्तों की क्या कमी है? कमाऊ जवान है तू।”

माँ की बात से बढ़ावा पाकर केरोसिन का डिब्बा उठा, सुनीता पर उॅंडे़ल दिया था। गनीमत यही थी, डिब्बे में थोड़ा-सा केरोसिन बाकी था वरना …… सुनीता काँप उठी। तभी इन्स्पेक्टर अतुल आ गए थे।

“कहिए ऋचा जी, कोई सफलता मिली? सच्चाई यही है कि अक्सर महिलाएँ ऐसे ससुराल वालों के सम्मान की रक्षा में झूठा बयान देती हैं, जिन्होंने उन्हें जलाकर ख़त्म करने की कोशिश की हो, बदनाम हम पुलिस वाले होते हैं कि पैसा लेकर हमने केस दबा दिया।”

“आपकी बात से मैं सहमत हूँ। ताज्जुब इसी बात का है कि जो औरतें खुद नहीं कमातीं, अगर वे ससुराल से निकाली जाने के डर से सच्चाई छिपाएँ तो बात कुछ समझ में आती है, पर सुनीता जैसी आत्मनिर्भर औरतें भी सच्चा बयान देने में हिचकती हैं। क्यों सुनीता, क्या मैं गलत कह रही हूँ?”

“अगर मैं सच्चाई बताऊॅं तो मेरा बेटा मुझसे अलग तो नहीं किया जाएगा?”

“हम तुम्हें पूरा न्याय दिलाने की हर सम्भव कोशिश करेंगे, सुनीता।”

“अगर तुम्हारी कोशिश कामयाब न हुई तो?”

एक प्रश्न-चिहन सबके सामने उभरकर आ गया।

“मुझे लगता है, हमारा कानून तुम्हें न्याय देगा।” अतुल ने तसल्ली दी।

“अपने डर की वजह से तुम फिर उसी नरक में जाने को तैयार हो, सुनीता?” ऋचा ने सीधा सवाल किया।

“नहीं……… ई ई ……. पर, मेरा बेटा?”

“बेटे के भविष्य के लिए ही तुम्हें सच्चाई बतानी चाहिए, सुनीता।”
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: ऋचा (उपन्यास)

Post by Jemsbond »


इन्स्पेक्टर अतुल और ऋचा के चेहरों पर नजर डाल, सुनीता ने निर्णय ले डाला। उसपर किए गए अत्याचारों के पड़ोसी गवाह हैं। मीना दीदी ने तो कई बार कहा, सुनीता को अलग हो जाना चाहिए। वह उसके समर्थन में कचहरी में गवाही देंगी। पड़ोसियों की हर जरूरत के वक्त सुनीता ने मदद की है, इसीलिए उनकी हमदर्दी उसके साथ है। अब सुनीता को सच्चाई से नहीं भागना चाहिए। दृढ़ स्वर में सुनीता ने कहा-

“मैं आपको सच्चाई बताने को तैयार हूँ, पर मेरी और मेरे बेटे की रक्षा की जिम्मेदारी आपको लेनी होगी, इन्स्पेक्टर।”

“मुझे मंजूर है।” इन्स्पेक्टर अतुल ने बयान दर्ज करना शुरू किया था।

पूरी घटना सुनकर ऋचा सन्न रह गई। एक पति इतना क्रूर कैसे हो सकता है! जिस पत्नी के साथ वह रातों में सोया, जिसके साथ उसे यौन-तृप्ति मिली, वह निर्ममता से उसका जीवन ख़त्म कर सकता है! सुनीता भी तो राकेश के बच्चे की माँ बनी थी। पति के सुख के लिए सुनीता ने क्या नहीं किया? क्यों एक औरत दूसरी औरत का दर्द नहीं समझ पाती? राकेश की माँ को अपने बेटे का दर्द है, पर सुनीता की ममता का उसे कोई ख्याल नहीं है। ठीक कहा जाता है, औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है। पति की उपेक्षिता पत्नी को तो अक्सर भरपेट खाना भी नहीं मिलता। ऐसी स्थितियों मंे सास को बहू नहीं, मुफ्त की नौकरानी मिल जाती है। बेटे को बहू के विरूद्ध भड़काते रहने से सास का वर्चस्व बना रहता है। सुनीता के मामले से यह सिद्ध हो गया कि अपने पाँवों पर खड़ी स्त्रियों की स्थिति भी उतनी ही दयनीय हो सकती है। अचानक घड़ी पर निगाह पड़ते ही ऋचा चैंक गई। आज कॅालेज का आखिरी दिन है। स्मिता के कॅालेज आने की बात है। वह पहले ही लेट हो चुकी है। इन्स्पेक्टर अतुल से क्षमा माँग, वह कालेज जाने के लिए खड़ी हो गई।

“इन्स्पेक्टर, अब सुनीता को न्याय आपको दिलाना है। बाहर इनके पति और सास बैठे है। उनके साथ आपको क्या करना है, आप जानते हैं।”

“ठीक है। हाँ, सुनीता के बयान की आप भी एक साक्षी रहेंगी।”

“ज़रूर। सच्चाई का मैंने हमेशा साथ दिया है और देती रहूँगी।” सुनीता को तसल्ली देकर, ऋचा ने कॅालेज की ओर रूख किया।

स्मिता को क्लास में देख, ऋचा खिल गई। स्मिता के चेहरे की व्यग्रता भी गायब हो गई थी।

“अच्छा तो हमारी स्मिता को कॅालेज आने की इजाज़त मिल ही गई?”

“हाँ, ऋचा। तेरी बातों का सुधा और रागिनी पर ऐसा असर हुआ कि दोनों माँ के सिर हो गई। बाबू जी तो पहले ही सीधे-सादे इन्सान हैं। उन्हें कोई ऐतराज नहीं था, पर माँ जी को मना पाना, मेरी ननदों के लिए ही सम्भव था।”

“चल, यह एक सुखद शुरूआत है। भगवान् को धन्यवाद दे कि तेरी ननदें समझदार हैं, वरना जिन परिस्थितियों में तेरी शादी हुई उसमें सभी अपना योगदान देकर, आग में घी डालने का काम करते हैं। सास, ननद और जेठानी यही तो नई ब्याहली के विरूद्ध मोर्चा-बन्दी करती हैं?”

“तू ठीक कहती है, पर मेरी ननदें अपवाद हैं। सास जी की भी अपनी मजबूरियाँ हैं। बाबू जी की छोटी-सी आय में परिवार चलाना और दो-दो बेटियों के ब्याह निबटाने की चिन्ता उन्हें खाए जाती है।”

“घबरा नहीं, यह एक अस्थायी स्थिति है। कुछ दिनों के बाद नीरज को अच्छी नौकरी मिल जाएगी। हाँ, अब तू भी नौकरी तलाश कर। कोई भी नौकरी कर ले, कहे तो अखबार के दफ्तर में काम देखॅंू?”

“ना …..ना, हमने न जाने क्यों जर्नलिस्म में एडमीशन ले लिया। हम इस प्रोफेशन के लिए बिल्कुल फ़िट नहीं हैं।”

“तब तो तूने बेकार एक सीट खराब की। अच्छा होता, प्रशान्त के साथ शादी करके अमेरिका जाकर मजे उड़ाती।” ऋचा ने परिहास किया।

“धत्, उसके पहले तो हम मर ही जाते। हम जैसे भी हैं, खुश हैं। नीरज हमें बहुत चाहते हैं।” स्मिता के चेहरे पर जरा-सा गर्व छलक आया।

“अच्छा-अच्छा, अब अपना नीरज-पुराण छोड़, चल आज क्लास के बाद कोई पिक्चर चलते हैं। कल से तो डटकर पढ़ाई करनी है।”

“नहीं, ऋचा। अगर हम देर से घर गए तो माँ जी नाराज होंगी। बेचारी सुधा और रागिनी को डाँट पड़ेगी।”

“ओह्हो, तो अब सुधा और रागिनी हमसे ज्यादा प्यारी हो गई? वैसे तेरी खुशी देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। सोचती हूँ, मैं भी किसी से प्रेम-विवाह कर डालूँ।” हॅंसते हुए ऋचा ने कहा।

“तेरे मुँह में घी-शक्कर। देर किस बात की है, जरा इशारा कर, लाइन लग जाएगी।”

“अच्छा, अब बड़ी बातें करने लगी है। हाँ, इतने दिन तूने जो क्लासेज मिस किए हैं, मैंने नोट्स तेरे लिए जीराॅक्स करा दिए हैं। पढ़ डाल। याद रख, तेरा पास होना ज़रूरी है।”

“थैंक्स, ऋचा। तू हमारा कितना ख्याल रखती है। तेरी मदद से हम ज़रूर पास हो जाएँगे।”

क्लासेज के बाद नीरज स्मिता को लेने आ गया था। ऋचा ने नीरज को छेड़ा-

“अब हम लोगों को भुला ही दिया। आज स्मिता आई है तो आप दिखाई दिए।”

“आपके पास हम जैसों के लिए समय ही कहाँ है? सुनते हैं, आज सवेरे-सवेरे भी आप किसी को इन्साफ़ दिलाने अस्पताल गई थीं।”

“हाँ, नीरज। बड़ी दुःख भरी कहानी है।” संक्षेप में ऋचा ने सुनीता के जलाए जाने की घटना सुना डाली। स्मिता काँप गई। दुनिया में ऐसे भी पति होते हैं? एक नीरज है, जो पूरे दिन पढ़ाई करने के बाद देर रात तक नौकरी करता है, ताकि स्मिता को कुछ सुख दे सके। नीरज पर प्यार-भरी दृष्टि डाल, स्मिता मुस्करा दी।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: ऋचा (उपन्यास)

Post by Jemsbond »


स्मिता के जाने के बाद ऋचा घर वापस लौटने ही वाली थी कि विशाल ने आकर चैंका दिया-

“अच्छा हुआ, आप पकड़ में आ गई, वरना मुझे अकेले ही भटकना पड़ता।” विशाल के चेहरे पर खुशी थी।

“अब भटकने का वक्त आप ही के पास होगा, वरना बाकी सब किताबों में डूब गए हैं।”

“ठीक कहती हैं। इन्सान अपने स्वभाव के व्यक्ति को तो पकड़ ही लेता है। इसीलिए तो सीधे चलकर आपके पास आया हूँ।”

“कहिए, क्या काम है?”

“सुभाष मैदान में हैंडीक्राफ्ट का मेला लगा है, आपके साथ एक चक्कर लगाने का मन है।”

“वाह रे आप और आपका मन! हमारे पास फालतू वक्त नहीं है।”

“सुबह-सुबह अस्पताल जा सकती हैं, घटनाओं की रिपोर्टिग कर सकती हैं, पर इस विशाल के लिए आपके पास दो घण्टों का भी वक्त नहीं है? हाय रे दुर्भाग्य!”

“आपके साथ बेकार मटरगश्ती करने और किसी मुसीबत में पड़े इन्सान की मदद करने में बहुत फर्क है, जनाब। वादा करती हूँ, मुश्किल के वक्त आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगी।” सहास्य ऋचा ने जवाब दिया।

“तो समझ लीजिए, आज हम सख्त मुश्किल में हैं। घर से छोटी बहिन ने अपने लिए हैंडीक्राफ्ट आइटेम्स खरीदने की डिमांड लिख भेजी है। मैं इस मामले में एकदम अनाड़ी ठहरा, लड़कियों की पसन्द-नापसन्द से एकदम अनजान। प्लीज ऋचा, इस मुसीबत में पड़े इन्सान की मदद करो।”

विशाल के नाटकीय अन्दाज पर ऋचा को हॅंसी आ गई। वैसे भी ऋचा के पास अभी कुछ समय था। लौटते वक्त अखबार के दफ्तर में ही बैठकर सुनीता के केस की खबर लिखकर दे देगी।

सुभाष पार्क में काफी भीड़ थी। विभिन्न प्रदेशों के कलाकारों द्वारा बनाई गई कलात्मक वस्तुएँ सचमुच सुन्दर थीं। बड़े उत्साह से ऋचा वस्तुएँ देख रही थी, पर विशाल को उसमें ज्यादा रूचि नहीं थी। एक साड़ी पर बड़ी सुन्दर काशीदाकारी की गई थी। काशीदाकारी में कलाकार की रूचि झलक रही थी-

“वाह! यह तो कला का अनुपम नमूना है। तुम्हारी बहिन को यह साड़ी जरूर पसन्द आएगी।”

“ठीक है, साड़ी पैक कर दो।”

कुछ और छोटी-मोटी वस्तुएँ लेने के बाद नीरज को ठण्डा पीने की जरूरत महसूस होने लगी। शीतल पेय लेकर दोनों एक घने पेड़ की छाया में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए। अचानक माथे पर बड़ा-सा टीका लगाए, रामनामी ओढ़े पण्डित जी ने उन्हें आशीर्वाद देकर चैंका दिया-

“जोड़ी बनी रहे। वकील साहब मुकदमे जीत कर नाम कमाएँ और बिटिया अपराधियों को सजा दिलवाएँ। हमारा आशीर्वाद याद रखना।”

“अरे महाराज, आप तो अन्तर्यामी हैं। आपने कैसे जाना कि हम वकालत पढ़ रहे हैं।”

“हम तो बेटा, माथे की लकीरें और हाव-भाव देखकर मन की बात पता कर लेते हैं।”

“पर पण्डित जी, हमारी तो शादी नहीं हुई है और आपने जोड़ी बना डाली।” ऋचा हॅंस दी।

नहीं हुई तो हो जाएगी। तुम्हारी जोड़ी तो ऊपरवाले ने बनाकर भेजी है, पर बेटा, अपने अहम् को काबू में रखना। स्त्री का सम्मान करने वाला ही जीवन में सफल होता है।

दोनों को कुछ कहने का समय न दे, ज्योतिषी महाराज तेजी से चले गए। ऋचा और विशाल विस्मित देखते रह गए। कुछ देर मैं चैतन्य होते विशाल ने परिहास किया –

“सुन लिया, हमारी जोड़ी ऊपरवाले ने बनाकर भेजी है। अब क्या इरादा है, जनाब का?”

“रहने दो, हम सब समझते हैं। यह जरूर तुम्हारी चाल थी। कहो, ज्योतिषी को कितने पैसे दिए थे?”

“यकीन करो ऋचा। मैं ऐसी फिल्मी बातों पर विश्वास नहीं करता। मैं खुद ताज्जुब में हूँ।”
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply