मनोहर कहानियाँ

Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: मनोहर कहानियाँ

Post by Jemsbond »

‘‘जब बीवी ढूंढे किसी और के बाहों में प्यार का सुख’’

अनीता एक आधुनिक विचारधारा की युवती थी। यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से तोहफे में बख्शी थी, लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार यौवन की बहार में कदम रखा तो उसकी खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी। यद्यपि वह शादी-शुदा थी, पर टी.बी. रोग से पीडि़त अपने पति से संतुष्ट नहीं थी तथा बीमारी से उसकी आर्थिक स्थिति भी दयनीय हो गयी थी। इस कारण वह जल्द ही प्रमोद के प्रेम जाल में आ फंसी थी।
प्रमोद भी विवाहित था तथा उसके दो बच्चे भी थे, पर वह वाराणसी में अकेले ही रहता था। स्वभाव से रंगीन मिजाज प्रमोद को अपनी पत्नी का साधारण नैन-नक्ष पसंद नही था। यही वजह थी कि उसने अपनी पत्नी को गांव में अपने पिता के पास छोड़ रखा था। वाराणसी में अनीता से एक बार परिचय हुआ तो जल्द ही दोनों एक-दूसरे के इतने निकट आ गए, कि उनके बीच अंतरंग संबंध भी कायम हो गये।
वक्त के साथ उनका प्यार परवान चढ़ता रहा। दरअसल प्रमोद को अनीता की हर अदा काफी पसंद थी। साल-दो साल बाद जब उसके पति का देहांत हो गया, तो अनीता ने प्रमोद से दूसरी शादी कर ली। शादी के बाद प्रमोद ने उसके तीनों बच्चों को भी ने अपना लिया था।
अनीता शुरू से ही दिलफेंक और मनचली युवती थी। एक खूंटे से बंधकर रहना उसकी आदत में शुमार नही था। शुरू के कुछ वर्ष तो वह प्रमोद के प्रति पूरी निष्ठावान रही, पर जल्द ही उसके पांव डगमगाने लगे और वह छिपी नजरों से अपने किसी नये प्रेमी की तलाश में लग गयी। उसकी पड़ोस में विजय रहता था। पड़ोसी होने की वजह से विजय व प्रमोद में अच्छी जान-पहचान थी तथा दोनों एक-दूसरे के घर अक्सर आते-जाते रहते थे।
अचानक प्रमोद का काम किन्ही कारणों से ठप पड़ गया, जिस कारण वह आर्थिक परेशानी में आ गया। ऐसे समय में विजय ने उसकी आर्थिक मदद की। विजय की स्वार्थ रहित मदद लगातार मिलते रहने पर अनीता के अंदर विजय के प्रति एक अहसान का भाव घर कर गया। साथ ही वह विजय की नेकी से भी काफी प्रभावित थी। इस कारण उसका झुकाव विजय की तरफ बढ़ता चला गया। एक रोज अनीता ने विजय से कहा, ‘‘ आपने हमारी जो मदद की, उसका एहसान शायद ही कभी चुका पाऊॅगी। आप तो हमारे परिवार के लिए साक्षात देवता के समान है।’’
‘‘इसमें अहसान की क्या बात है। एक-दूसरे की मदद करने से तो संसार चलता है।’’ मुस्कराते हुए विजय ने जवाब दिया।
‘‘पर मेरे दिल में आपकी नेकियों का एक बोझ-सा बना रहता है।’’ अनीता बोली, ‘‘फिलहाल मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नही है?’’
विजय बखूबी समझ चुका था कि अनीता उसके पहलू में आने को उतावली है। अतः उसने मजाकिया लहजे मे कहा, ‘‘जब देना ही चाहती हो तो मुझे अपना दिल दे दो। इससे तुम्हारा बोझ भी उतर जायेगा।’’
अनीता कसमसा गयी। उसने तिरछी नजरों से विजय को पलभर को देखा। फिर बोली, ‘‘ये दिल तो कब का तुम्हारा हो चुका है, पर तुमने एक औरत की चाहत को समझा ही नही।’’
‘‘अनीता मेरा मानना है कि हर चीज शांति से करनी चाहिए। अब तुम सोच लो। एक बार कलाई पकड़ूंगा तो फिर आसानी से छोड़ूंगा नहीं।’’ कहते हुए विजय ने अनीता की कलाई थाम ली।
‘‘वह तो तुम पकड़ ही चुके हो। अब जो मर्जी में आए करो। मैं कभी चूं तक नही करूंगी।’’ कहती हुई अनीता स्वयं ही कटे व्रक्ष की तरह विजय की गोद में आ गिरी।
प्रतीक चित्र
अब विजय, प्रमोद व बच्चों की अनुपस्थिति में देर तक उसके घर में रहने लगा। पड़ोसियों को जब यह संबंध खटकने लगा तो दबी जुबान से इसकी चर्चा में होने लगी। उड़ते-उड़ते यह खबर प्रमोद तक भी जा पहुंची। तब उसने अनीता को विजय से संबंध रखने को मना किया, अपने बच्चों और घर-परिवार की दुहाई दी, किन्तु कामांध अनीता को प्रमोद के उपदेश अच्छे नही लगे। जब पानी सर के उपर गुजरने लगा , तो प्रमोद के लिए अनीता का यह व्यभिचार असहनीय हो गया। वह अनीता के साथ मार पीट करने लगा।
विजय से प्रमोद झगड़ा मोल लेना नही चाहता था, क्योंकि उसे भय था कि विजय उसकी आर्थिक मदद बंद कर सकता है। जब अनीता ने विजय से अपना संबंध नहीं तोड़ा, तब प्रमोद ने वहां से मकान खाली कर लेने का निर्णय कर लिया। दरअसल प्रमोद की सोच थी कि दूसरी जगह चले जान पर अनीता व विजय की दोस्ती टूट सकती हैं। लेकिन प्रमोद की यह सोच गलत साबित हुई, यहां भी अनीता व विजय का आपस में मिलना-जुलना जारी रहा। अब प्रमोद को समझ में नही आ रहा था कि वह क्या करे।
उसने हर कोशिश करके देख ली थी, पर अनीता विजय से अपना संबंध तोड़ने को राजी नही थी। लिहाजा प्रमोद मानसिक तनाव में रहने लगा। वह जब-तब बिना किसी वजह के अनीता को पीट डालता, वहीं विजय को भी भला-बुरा करने पर अब उसे कोई संकोच नहीं था। यों कहें कि अनीता ने अपनी हरकतों से प्रमोद को मानसिक रूप से बीमार कर दिया था।
प्रमोद द्वारा लगातार मार-पीट किये जाने से अनीता आखिरकार उससे तंग आ गयी और उसने अपनी परेशनी विजय को बतायी। इस पर विजय ने राय दी ‘‘वह जब तक जिंदा रहेगा तब तक तुम उससे परेशान रहोगी और उसके जीवित रहते हम दोंनों खुलकर मिल भी नही सकते।’’
‘‘तुम सही कर रहे हो।’’ अनीता ने अपनी सहमति देते हुए कहा, ‘‘अब उसे यमलोक पहुंचा ही दो।’’
विजय ने हामी भर दी उसके बाद योजनानुसार विजय व अनीता ने प्रमोद से अपनी गलती के लिए माफी मांग ली और उसे आश्वासन दिया कि पुनः उन दोनों से ऐसी गलती नही होगी। फिर प्रमोद ने उन्हें माफ भी कर दिया।
योजनानुसार कुछ दिन बाद अनीता काम का बहाना कर अपने मायके चली गई। अगले दिन विजय प्रमोद के घर आया और बोला, ‘‘भाई साहब आज हम साथ-साथ खाना खायेंगे। ’’
प्रमोद को भला इसमें क्या इतराज था, दोनों ने छत पर साथ बैठकर खाना खाया। फिर बातचीत करते रात गहरा गई तब विजय ने प्रमोद से कहा, ‘‘आज हम यहीं सो जाते हैं। सुबह चले जायेंगे।’’
इसके बाद विनोद नीचे कमरे में चला आया जबकि प्रमोद छत पर सो गया। कुछ देर बाद जब प्रमोद खर्राटे भरने लगा तो विजय उठा और उसके जिस्म पर चापड़ से तब तक प्रहार करता रहा, जब तक उसकी मौत नही हो गई। इसके बाद वह सावधानी पूर्वक वहां से निकल भागा। अगले दिन विजय ने फोन कर इस घटना की सूचना अनीता को दी, अनीता इससे काफी खुश हुई। उसने सोचा अब वह विजय के साथ नई ग्रहस्थी बसायेगी। पर पुलिस की सूझबूझ से अनीता व विजय गिरफ्तार कर लिए गए।
********
****************************************
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: मनोहर कहानियाँ

Post by Jemsbond »

‘‘तीन दिनों का नर्क’’


उस दिन अनुराधा के शरीर पर फ्राक और चड्ढी थी। फ्राक पेट से ऊपर उठी हुई थी, अतः उसके नीचे का हिस्सा खुला हुआ था। उसके के गोरे-गोरे पैरों को देखते हुए राजेश की आंखों में सुर्ख डोरे उभर आए थे। वह बार-बार अपने होठों पर जुबान फिरा रहा था। उसने अपनी मां को देखा ता उसकी मां गहरी नींद में थी। अचानक राजेश घुटनों के बल फर्श पर बैठ गया फिर आहिस्ता-आहिस्ता अनुराधा के पेट को चूमने लगा। वह काफी देर तक ऐसा ही करता रहा। उसकी सांसे लोहार की धौंकनी की मानिंद तीव्रतर हो उठी।
फिर न जाने अचानक राजेश के मन में क्या विचार आया, उसने अनुराधा को अपनी बांहों में भरकर उठाना चाहा तभी उसके मां की आंख खुल गयी तो उसकी मां ने पूछा, ‘‘क्या बात है राजू…… अनु को उठाये कहां ले जा रहा है?’’
राजेश बुरी तरह बौखला गया। उसने अनुराधा को वापस बेड पर लिटाया और हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘मां, यहां इसे गर्मी लग रही है न……’’
‘‘क्या बात कर रहा है। यहां तो कूलर चल रहा है।’’ मां ने बेड से उठते हुए कहा।
‘‘ओह!’’ राजेश के मुख से निकला।
‘‘कितनी बार कहा तुझसे। इतनी शराब मत पिया कर। यह शराब तुझे पागल बनाकर ही छोड़ेगी।’’ राजेश की मां बोली और बाथरूम की ओर बढ़ गई।
राजेश अपने कमरे में घुस गया। वह बेड पर लोटकर सोने का प्रयास करने लगा परन्तु नींद तो उससे कोसों दूर जा चुकी थी। उसकी आंखों के सामने तो अपनी ही कमसिन बेटी अनुराधा का जिस्म थिरक रहा था । राजेश रातभर बिस्तर पर बेचैनी से करवटें बदलता रहा।
उस रात जब से राजेश ने अनुराधा के पेट आदि को अपने होठों से स्पर्श किया था, तब से वह अंदर ही अंदर तड़प रहा था। हर समय उसके सामने उसकी अपनी ही मासूम बेटी का जिस्म थिरकता रहता। जिससे उसके समूचे जिस्म में वासना का लावा भर जाता था, तथा वह यह भी भूल जाता कि अनुराधा उसी की मासूम बेटी है, जिसका कन्यादान करने से ही उसका जीवन सार्थक होगा।
अब राजेश के सामने जब भी अनुराधा पड़ती तो वह उसे गोद में बैठाने की कोशिश करता, मगर अनुराधा अपने पिता के हाव-भाव देखकर सहमी-सहमी सी रहने लग गई थी, वह मासूम बच्ची अपने बाप की आंखों में हैवानियत की चमक देख चुकी थी।
वक्त बीतता रहा एक रात जब राजेश की मां एक रिश्तेदार की शादी में गई हुई थीं, तो राजेश की हैवानियत और बढ़ गई और उसने पक्का फैसला कर लिया कि आज रात वह अपने तन-मन में सुलगती आग को शांत करके ही मानेगा। फिर कुछ सोच विचार के बाद उसने अपने छोटे भाई को भी किसी काम से इतनी दूर भेज दिया कि रात मे वह न लौट सके।
अब घर पर राजेश व अनुराधा ही रह गए थे। उस रात राजेश ने शराब का आखिरी पैग रात ग्यारह बजे लिया फिर वह नशे में झूमता आंगन में गया, जहां अनुराधा लेटी थी। एक पल अनुराधा को देखते रहने के बाद राजेश बोला, ‘‘अनुराधा, सो गई क्या?’’
‘‘नही पापा, जाग रही हूँ।’’ अनुराधा ने खटिया पर बैठते हुए कहा।
‘‘तू जल्दी से उठकर कटोरी में तेल लेकर मेरे पास आ जा।’’
‘‘क्यों पापा?’’ यह सुनकर अनुराधा सहम गई थी।
‘‘मेरे पैर में कुछ तकलीफ है। जरा तेल लगाकर मालिश कर दे।’’ इतना कहकर राजेश कमरे में चला गया। उसने कमरे की खिड़की के पट बंद किए फिर बेड पर आकर पसर गया।
कुछ ही देर में अनुराधा कटोरी में तेल लेकर वहां आ गई। उस समय उसने जींस और टी-शर्ट पहन रखी थी। उसे देखते ही राजेश की आंखों में शैतानियत के बिच्छू तैर उठे और उसने अपने होंठों पर जुबान फिराते हुए कहा, ‘‘आ, मेरे पास आकर बैठ…’’
प्रतीक चित्र
अनुराधा सहमती हुई बेड पर उसके पायताने बैठ गई तो राजेश ने फौरन ही बेड से उठकर दरवाजा भीतर से ही लाँक कर दिया। फिर वह बेड पर अनुराधा से सटकर बैठ गया और फिर उसने अनुराधा को अपनी बांहों में भीच लिया।
‘‘यह, क्या करते हो पापा?’’ अनुराधा उसकी अप्रत्याशित हरकत से भयभीत हो उठी।
‘‘प्यार कर रहा हूँ।’’ कहते ही राजेश उसके कपड़े उतारने लगा। अनुराधा ने बेड से उठने की कोशिश की मगर राजेश ने उसे जबरन बेड पर लिटा दिया।
‘‘आज मै तेरी मालिश करूंगा। तुझे बहुत अच्छा लगेगा।’’ फिर उसने अनुराधा को पूर्णतः निर्वस्त्र कर दिया। राजेश उसके कोमलांगों पर तेल लगाने लगा तो अनुराधा रोने लगी।
‘‘चुपचाप लेटी रह, रोई तो गर्दन काटकर फेंक दूंगा।’’ गुस्से से राजेश बोला फिर उसने अपने कपड़े उतार दिए। अपने बाप को जन्मजात नग्नावस्था में देख, अनुराधा ने अपनी पलके बंद कर लीं।
इसके बाद किसी भयंकर काले बादल की तरह राजेश अपनी बेटी अनुराधा पर छा गया। अनुराधा दर्द से बुरी तरह फड़फड़ाती रही। कुछ देर बाद अनुराधा पीड़ा की अधिकता से मूर्छित हो गयी।
राजेश की मां और उसका छोटा भाई तीन दिनों तक घर से बाहर रहे। इन तीन दिनों में अनुराधा के साथ राजेश ने कई बार बेरहमी से दुश्कर्म किया। इस दौरान अनुराधा दर्द से छटपटाती छोड़ देने की फरियाद करती, तो वह और ज्यादा बेरहमी दिखाने लगता था।
तीसरे दिन अनुराधा की दादी घर वापस लौटी तो उसने अनुराधा को गुमसुम-सा देख। जब उससे गुमसुम होने की वजह पूंछी तो वह अपनी दादी से लिपट कर फफक पड़ी। उसने अपने बाप की काली करतूत का खुलासा दादी के सामने कर दिया। बेटे की करतूतों को सुन राजेश की मां भौंचक्की रह गई। एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसके अस्तित्व में बिस्फोट हुआ हो और उसका सारा वजूद तिनके-तिनके होकर बिखर गया हो।
आखिरकार उन्होंने उसी दिन राजेश के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी। तब पुलिस ने अनुराधा के वह्सी बाप राजेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: मनोहर कहानियाँ

Post by Jemsbond »

गर्म गोश्त के सौदागर



दुख की मारी शीला के सिर से बाप का साया उसी समय उठ गया था, जब वह सवा महीने की थी। मां ने किसी तरह उसे पाला-पोसा, लेकिन नियति से यह भी नहीं देखा गया और वह सात साल पहले वह भी चल बसी, तो पड़ोसियों ने रहम करके शीला को बलिया में रहने वाले उसके चाचा-चाची के पास पहुंचा दिया था।
चाचा की भी माली हालत अच्छी नहीं थी। मेहनत-मजदूरी करके बेचारा बड़ी मुश्किल से अपनी ग्रहस्थी चला रहा था, इसके बावजूद वह भाई की मासूम बेटी को बेसहारा तो नहीं छोड़ सकता था, इसलिए रख लिया। चाचा-चाची की मोहब्बत और अपनेपन के चलते शीला अपने मां-बाप को भी भूल गयी, लेकिन मुसीबत तो बस जब जहां चाहे, टूट पड़ती है। करीब एक साल पहले संजीव की नजर शीला पर पड़ी तो, उसने तुरंत जाल फैलाना शुरू कर दिया और उसके चाचा से जान-पहचान बढ़ाकर एक दिन कहने लगा, ‘‘मेरी बीवी की तबियत थोड़ी खराब रहती है, इसलिए सोच रहा हूँ कि घर के काम-काज में उसकी मदद के लिए किसी लड़की को रख लूं, लेकिन मुश्किल यह है, सब पर भरोसा भी तो नहीं किया जा सकता।
शीला के चाचा ने सिर हिला दिया, ‘‘हां, यह बात तो है……’’
कुछ देर चुप रहने के बाद संजीव बोला, ‘‘एक बात तुमसे कहूं, शीला का स्वभाव मुझें काफी अच्छा लगता है, अगर तुम हां कर दो तो…… वैसे काम-काज कुछ ज्यादा नही है। यूं समझो कि यह रहेगी तो बीवी को थोड़ा सहारा मिल जायेगा और मुझे कोई फिक्र नही रहेगी।’’
‘‘लेकिन वह तो अभी बच्ची है…… रोज इतनी दूर जाना-आना……’’
‘‘रोज आने-जाने की क्या जरूरत है। उसे भी अपना ही घर समझो।’’ संजीव ने शीला की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसके चाचा से कहा, ‘‘यह जैसी तुम्हारी भतीजी, वैसी मेरी भतीजी, वहीं रहेगी। खाने-पहनने की भी फिक्र मत करो, तुम्हें तो हर महीने इसकी पूरी तनख्वाह मिल जाया करेगी।’’
प्रतीक चित्र
शीला जवान हो चली थी। इस उम्र में उसके चाचा उसे अपनी नजरों से ओझल नहीं रखना चाहता था, लेकिन अपनी गरीबी को देखते हुए उसने सोचा कि कम से कम मासूम शीला को तो तकलीफों से छुट्टी मिल जायेगी। फिर संजीव भी शक्ल सूरत और बात व्यवहार से बड़ा शरीफ लग रहा था, इसलिए उसने शीला को समझा-बुझाकर उसके यहां काम करने के लिए भेज दिया। लेकिन बेचारे को क्या पता था कि चेहरे से शरीफ-सा लगने वाला संजीव दरअसल आदमी नही हैवान है। घर पहुंचते ही वह शीला के साथ छेड़-छाड़ करने लगा तो वह चौंक पड़ी और शरमा कर परे सरकने लगी, पर संजीव ने वहशी की तरह झपटकर उसे दबोच लिया और अश्लील हरकतें करने लगा, शीला घबरा गयी और छूटने के लिए छटपटाती हुई गिड़गिड़ाने लगी।
‘‘तुम इतना घबरा क्यों रही हो…… डरने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।’’ संजीव ने पुचकारते हुए फुसलाने की कोशिश की, ‘‘मैं तो तुम्हें गरीबी के दोजख से इसलिए निकाल कर लाया हूँ कि मेरी बात मानोगी तो तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भर दूंगा। तुम्हारे पास दौलत ही दौलत होगी।’’
‘‘नहीं…… नहीं…… इज्जत से बड़ी कोई दौलत नहीं होती। मैं ऐसी दौलत नहीं चाहती।’’ शीला ने छूटने के लिए पूरा जोर लगाते हुए कहा, ‘‘खुदा के लिए मुझे मेरे घर पहुंचा दो, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं।’’
लेकिन शीला के लाख रोने-गिड़गिड़ाने के बावजूद संजीव नहीं माना और उस मासूम कमसीन लड़की को औरत बनाकर ही छोड़ा। शीला घुटनों में सिर छिपाकर सिसकने लगी तो संजीव पुचकारता हुआ बोला, ‘‘जो होना था सो हो चुका। अब तो घर लौटने का रास्ता भी बंद हो गया, क्योंकि यह सब जानने के बाद तुम्हारा चाचा तुम्हें अपने दरवाजे पर भी नहीं खड़ी होने देगा, इसलिए रोना-धोना बेकार है और जैसा मैं कहूं, वैसा ही करती रहो तो मजा भी करोगी और ऐश भी।’’
शीला अभी उस हादसे से उबर भी नहीं पायी थी कि शमीम के साथ उसका दोस्त हीरालाल ने भी वही सब करके उसे पूरी तरह जिन्दा लाश बना दिया। इन दोनों के अलावा बाबू नाम का एक और आदमी अक्सर उसके पास आया करता था। उसकी दुकान संजीव के ब्यूटी पार्लर के पास ही थी इसलिए दोनों में ज्यादा जान-पहचान हो गयी थी।
संजीव उससे जबर्दस्ती धंधा करवाना शुरू कर दिया, तब पता चला कि उसने और हीरालाल ने शहर में कई मेंस ब्यूटीपार्लर खोल रखे है, इन ब्यूटी पार्लरों में तमाम लड़कियां काम करती हैं, लेकिन यह सब सिर्फ दिखाने के लिए है। दरअसल वह सेक्स रैकेट का अड्डा है और संजीव तथा हीरालाल ब्यूटी पार्लरों की ओट में जिस्मफरोसी का धंधा करते है। वह अकेली ऐसी लड़की नही है, बल्कि संजीव और हीरालाल ने दर्जनों लड़कियों को फांस रखा है। उनमें काजल और नीटू नाम की दो खास लड़कियां हैं, जो खुद तो धंधा करती ही हैं। संजीव के इशारों पर वे दूसरी लड़कियों को भी फंसाकर लाया करती हैं, जिनमें से कई एक तो अच्छी-खासी पढ़ी लिखी और सम्भ्रांत परिवारों की भी लगती है। काजल और नीटू ने उन लोगों को लाखों रूपये की कमाई करायी ही है, खुद भी वह खूब कमाती है।
प्रतीक चित्र
शीला जैसी कम उम्र और गोरी देह दिखाकर उसे ग्राहकों के साथ होटल में या किसी और जगह भेजा जाता था, बदले में एक-एक ग्राहक से पांच-पांच हजार रूपये वसूले जाते थे। एक-एक दिन में उसे कई-कई ग्राहकों को निपटाना पड़ता था, जिससे संजीव को रोज हजारों रूपये की कमाई होती, लेकिन उसके अपने पल्ले एक भी पैसा नहीं पड़ता था। संजीव ने उसको अपनी निगरानी में रखने के लिए एक कमरा ले रखा था। इसके अलावा उसको खाना और कपड़ा भर मिलता था, बस। अगर कभी वह कुछ रूपए चुरा-छिपाकर बचाने की भी कोशिश करती तो शक होते ही संजीव उसकी तलाशी लेता और कपड़े तक उतरवाकर छिपाए गए रूपए छीन लेता था। संजीव और हीरालाल लड़कियों को ग्राहक के पास भेजने से पहले अक्सर ब्लू फिल्में दिखाया करते थे।
एक साल में ही शमीम उसे इतने ग्राहकों के सामने परोस चुका है कि अब तो उसको उनकी गिनती भी नही याद रह गयी है। बाबू का नाम सिर्फ इसलिए याद है क्योंकि वह संजीव का खास जान-पहचान वाला था और अक्सर आता रहता। ग्राहक की मांग पर संजीव कलकत्ता, पटना जैसे दूसरे शहरों से भी लड़कियां मंगवा लिया करता था और यहां की लड़कियों को भी बाहर भेजकर वह मोटी रकम कमाया करता है।
पिछले दिनों शीला को भी कलकत्ता ले जाने की बात हो रही थी। वहां से आए दो मोटे आदमियों ने उसको देख कर पसंद भी कर लिया था, पर अचानक उसकी तबीयत खराब हो गयी। कुछ खाने पीने का मन नहीं होता था, रह-रहकर चक्कर आ जाता और कई बार उलटी भी हो गयी। जब उसने डाँक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह मां बनने वाली है। यह सुनकर उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। फिर वह कुछ सोच-समझ पाती, इसके पहले ही संयोग से परस्पर बतियाते संजीव और हीरालाल की कुछ बातें उसके कानों में पड़ गयी, तब पता चला कि कलकत्ता से आए दोनों आदमियों ने उसे क्यों पसन्द किया था। दरअसल संजीव उसको बेचने के लिए कलकत्ता ले जाना चाहता था। यह जानकारी होते ही शीला अपनी सारी तकलीफ भूल गयी और वह गुपचुप ढंग से भाग कर रास्ता पूंछती-पूंछती अपने चाचा के यहां लौट आयी। उसी दिन उसके चाचा उसे लेकर थाने गए और रिपोर्ट दर्ज करवा दिया। उनकी रिपोर्ट पर कार्यवाही करते हुए पुलिस ने संजीव व उसके साथी जेल की सलाखों के पिछे पहुंचा दिया।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: मनोहर कहानियाँ

Post by Jemsbond »

‘‘हवस की चाहत में’’


कपिल व वीरेन्द्र आवारागर्द व रसिक मिजाज इंसान थे। शराब और शबाब इनकी मुख्य कमजोरी थी दोनों जो भी पैसा कमाते, उसका अधिकांश हिस्सा अपनी अय्याशी पर खर्च कर डालते थे। समान विचार और एक ही कालोनी में रहने की वजह से उनमें बेहद अच्छी दोस्ती थी। एक दिन शाम दोनों अपनी हवस की पूर्ति के लिए किसी बाजारू औरत की तलाश में साथ निकले। कैंट रेलवे स्टेशन सहित उन सभी संभावित स्थानों, जहां उनकी नजर में बाजारू औरतें खड़ी मिल सकती थी, कई चक्कर लगा लिये, लेकिन किसी पेशेवर औरत से उनकी मुलाकात नहीं हुई। वह निराश होकर वापस लौट रहे थे कि रास्ते में एक जगह उन्हें राजू दिख गया। राजू से दोनों अच्छी तरह परिचित थे, क्योंकि राजू उनके लिए कभी-कभार चाय वगैरह ला देता, तो वे उसे एक-दो रूपया दे दिया करते थे। राजू पर नजर पड़ते ही कपिल की आँखों में अचानक चमक आ गयी, ‘‘क्यों, आज इसे ले चलूं?’’ उसने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए वीरेन्द्र से पूछा।
वीरेन्द्र अधीर हो उठा, ‘‘यार! पूछ क्यों रहे हो, चल इसे ही ले चलें।’’
कपिल बोला, ‘‘हमारी तो पहले से ही इस पर नजर थी।’’
फिर कपिल ने राजू को आवाज दी, तो वह उनके पास आ गया। उस दिन वीरेन्द्र के घर पर गाजर का हलवा बना था। अतः वीरेन्द्र ने थोड़ा हलवा अपने पास रख लिया था। राजू को हलवा दिखाते हुए वीरेन्द्र ने पूछा, ‘‘राजू बेटे हलवा खायेगा?’’
‘‘हां अंकल!’’ मुस्कुराते हुए राजू ने तपाक से कहा।
‘‘तो चल मेरे साथ। हलवा के साथ तुझे पेठा भी खिलाउंगा।’’ इस बार कपिल ने कहा।
राजू उनकी बातों में आ गया और वह उनके साथ चल पड़ा। कपिल जहां नौकरी करता था, तीनों वहां आ गयें। फिर कपिल ने दफ्तर के सामने कुछ लकडि़यां एकत्र कर आग जला दी और वहां वीरेन्द्र व राजू के साथ बैठ गया। वीरेन्द्र ने अपने पास एक प्लास्टिक की पन्नी में थोड़ा गाजर का जो हलवा रखा था, वह राजू को खाने को दे दिया। राजू ने जब हलवा खा लिया, तो वीरेन्द्र ने पूछा, ‘‘बेटा! मजा आया।’’
‘‘हां अंकल! बेहद स्वादिष्ट था।’’ तोतली आवाज में राजू ने कहा।
‘‘तू केवल हमारी बात मान, हम तुझे पैसा भी देंगे और पेठा भी खिलाएंगे।’’ कपिल ने कहा।
‘‘ठीक है अंकल।’’ राजू बोला।
काफी समय तक तीनों आग के पास बैठे रहे। जब कपिल को लगा, अब आँफिस का कोई स्टाफ नही आएगा, तो वह राजू को साथ लेकर प्रथम मंजिल स्थित अपने कमरे में पहुंचा। वीरेन्द्र भी साथ था। कमरे में कपिल पहले से ही देशी शराब का आद्धा रख लिया था। दोनों ने राजू को बातों में लगाकर जल्दी-जल्दी सारी शराब अपने हलक के नीचे उतार लिया। चूँकि राजू दिमाग से कमजोर था, इसलिए वह उनकी मंशा से अनजान बना रहा। कपिल ने राजू को पूरी तरह नंगा कर दिया था, पर राजू ने कोई विरोध नहीं किया। फिर कपिल ने राजू को नीचे लिटा दिया और उसके साथ उसने अप्राकृतिक संबंध बनाने की कोशिश करने लगे, लेकिन राजू दर्द से चीख पड़ा। इस पर कपिल घबराकर हट गया।
वीरेन्द्र ने प्यार भरे स्वर में राजू से कहा, ‘‘बेटा कुछ नहीं होगा…… अरे यह तो एक खेल है, राजू तुम्हें यह खेल सीखना जरूरी है।’’ वीरेन्द्र ने बहला-फुसलाकर उसे चुप करा दिया।
थोड़ी देर बाद वीरेन्द्र ने राजू के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने की चेष्टा की, तो वह असहाय दर्द से पुनः चीख उठा तब घबराकर कपिल ने उसका मुंह जोर से दबा दिया, ताकि उसकी चीख बाहर न जा सके।
अब कपिल व वीरेन्द्र को यह भय हो गया कि राजू उनकी इस करतूत की पोल खोल सकता है। फिर उन दोनों ने इशारों ही इशारों में उसे खत्म कर देने का निर्णय ले लिया, फिर कपिल ने पूरी ताकत से राजू का गला दबा दिया। वहीं वीरेन्द ने राजू का अंडकोश पकड़कर जोर से दबाते हुए उसे खींच लिया। कुछ ही पल में राजू की मौत हो गयी।
वारदात को अंजाम देने के बाद पुलिस को गुमराह करने के लिए उसी रात राजू को उसी की टीशर्ट की मदद से गले में फंदा लगाकर अस्पताल की दीवार के साथ बने पीछे वाले कमरे की खिड़की की ग्रिल से लटका दिया तथा उसके बाकी कपड़े वहीं पास फेंककर दोनों सावधानी पूर्वक वहां से भाग निकले। कपिल व वीरेन्द्र की सोच थी, कि पुलिस को यह मामला आत्महत्या का लगेगा और पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पायेगी। लेकिन उनकी यह सोच गलत साबित हुई। कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने इस मामले का पर्दाफास कर दोनों को जेल भेज दिया।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: मनोहर कहानियाँ

Post by Jemsbond »

प्यार के दो पल
*प्यार के लिये तड़पती एक महिला की कहानी*

आज बहुत देर तक सोता रहा था वो. सूरज सर पे चढ़ आया था. इतवार था, कहीं जाना भी नहीं था और फिर कर थकान भी कुछ ज़्यादा ही हो गयी थी. आजकल ज़ल्दी थकान होने लगी थी उसे, कुछ तो उम्र का तकाजा था और कुछ अकेलापन. बात भी करे तो किस से. आजकल मेट्रोज में किस के पास टाइम है बात करने का. बस रोज़ शाम को दफ्तर से घर जाओ और इस कमरे के कैदखाने में कैद हो जाओ.
गैस जलाकर चाय चढ़ा दी और दरवाजे के नीचे पडा हुआ अखबार उठा लाया. आठ महीने हो गए प्रशांत को दिल्ली आये हुए. अपना सारा घर-बार, बीवी-बच्चे, माँ-बाप सब छोड़ कर आना पडा था. नौकरी का सवाल था भाई, छोटे शहरों आजकल नौकरी कहाँ मिलती है. आठ महीने से इसी जुगाड़ में है कि परमानेंट हो जाऊं तो जा कर बीवी-बच्चों को भी ले आऊं. तब तक इसी तरह काम चलाना पड़ेगा. बड़े शहरों में मकान मिलना भी बहुत मुश्किल है. वो तो किस्मत अच्छी थी कि इस कमरे का जुगाड़ हो गया. मकान मालकिन भी मजबूरी कि मारी एक विधवा है. भरी जवानी में पति का देहांत हो गया बेचारी अपना खर्चा चलाने के लिए कमरा किराये पर देना चाहती थी, किराने कि दूकान वाले ने बता दिया और प्रशांत का काम बन गया. तब से ये कमरा ही उसकी दुनिया है.
चाय तैयार हो गई तो कप में डाल कर खिड़की के पास आकर बैठ गया. बाहर आँगन में अनीता कपडे धो रही थी. अनीता उसी मकान मालकिन का नाम है. अनीता को देख कर उसको अपने बीवी याद आ जाती थी. दोनों कि उम्र बराबर ही तो होगी. बस फर्क इतना था कि अनीता विधवा थी इसलिए कोई श्रृंगार नहीं करती थी जबकि उसकी सुधा को श्रृंगार का बेहद शौक है. हमेशा सजी-धजी रहती है.
"तुम घर में भी लिपस्टिक क्यूँ लगाती हो सुधा" एक बार पूछ लिया था उसने. जवाब मिला "तुम नहीं लगाते हो ना इसीलिए."
"मैं कुछ समझा नहीं"
"अरे जानू ! मैं लगाउंगी तो तुम्हारे भी अपने आप लग जाएगी ना, इसीलिए...हा हा हा", जोर से शरारती हंसी सुनाई दी थी उसकी.
"दीपू बेटा जिद मत किया कर" अचानक आई इस आवाज़ ने उसे जैसे नींद से जगा दिया. सामने आँगन में अनीता अपने पांच साल के इकलौते बेटे को डांट रही थी. दीपू किसी बात को लेकर जिद कर रहा था और रो रहा था. प्रशांत ने वहीँ से आवाज़ लगाईं.." दीपू, क्या बात है क्यूँ रो रहा है ?" दीपू ने सुनकर भी अनसुना कर दिया और रोना जारी रखा. अनीता ने प्रशांत की तरफ देखते अपने पल्लू सँभालते हुए कहा "क्या करूँ, सुबह से जिद कर रहा है की सर्कस देखने जाना है. अब आप बताओ इसे मैं कहाँ से सर्कस दिखा कर लाऊं."
उसकी बात सुन कर प्रशांत मुस्कुरा दिया. उसने मन ही मन सोचा "बेचारा बिना बाप का बच्चा , इसे कौन सर्कस दिखने ले कर जायेगा." और फिर अचानक उसने जोर से दीपू को आवाज़ लगाते हुए कहा "चल दीपू आज मैं तुझे सर्कस दिखा कर लाऊँगा ..तैयार हो जा". दीपू तो ये सुनते ही ख़ुशी से झूम उठा और उधर अनीता ने झेंपते हुए कहा "अरे नहीं , आप कहाँ परेशान होंगे..ये तो बस यूँ ही जिद करता रहता है.."
"कोई बात नहीं, बच्चा ही तो है, जिद तो करेगा ही, और फिर मैं भी आज फ्री हूँ मेरा भी टाइम पास हो जायेगा. मैं ले जाऊंगा आप 3 बजे तैयार कर देना इसको." प्रशांत ने पुरे अपनेपन से कहा और फिर मन ही मन सोचने लगा चलो आज शाम पार्क में अकेले बैठने से अच्छा है बच्चे का मन ही बहलाया जाये.
प्रशांत ने अपने रविवार के बाकी सभी काम निपटाए और नहा धोकर तैयार हुआ तो घडी में २ बज गए थे. उसने कपडे बदले और अनीता के कमरे के सामने जा कर दीपू को आवाज़ लगाई. प्रशांत कभी अनीता के कमरे में नहीं जाता उसे आता देख कर अनीता कुछ असहज हो जाती है, इसलिए उसने बाहर से ही आवाज़ लगाई तो दीपू ने झट से दरवाज़ा खोल दिया. वो पूरी तरह तैयार था फिर भी प्रशांत ने पुछा "हाँ दीपू ? तैयार हो गए ", और उसके पैरो की तरफ इशारा करते हुए बोला "अरे अभी तक जूते नहीं पहने. जल्दी करो भाई सर्कस चालु हो जायेगा.." उसकी बात सुनते ही दीपू दौड़कर जूते ले आया तब तक अनीता ने थोडा शरमाते हुए उसे कमरे में भीतर बुलाया और दीपू से बोली "चल, जल्दी से आजा जूते पहन ले".
दीपू ने जूते पहनते हुए उसके कान में कुछ कहा तो अनीता ने जवाब दिया "नहीं बेटा..तू अंकल के साथ जा रहा है फिर क्या है.."
उसकी बात सुनकर प्रशांत ने पूछा "क्या बात है..क्या बोल रहा है दीपू?"
"नहीं कुछ नहीं, ये तो पागल है कहता है की माँ आप भी चलो" अनीता ने जवाब दिया..
उसकी बात सुनकर प्रशांत ने कहा "ठीक ही बोल रहा है, आप यहाँ अकेली क्या करोगी, चलो हमारे साथ आपका भी थोडा मन बहल जायेगा...वैसे भी आप कही जाती भी नहीं हैं."
"नहीं ..मैं कहा जाउंगी..आप लोग ही..." अनीता बोलने लगी तो दीपू ने बीच में ही टोका, "नहीं माँ, चलो ना आप भी..आप नहीं जाओगी तो मैं भी नहीं जाऊंगा.."
"चलिए ना..अच्छा लगेगा आपको भी.." प्रशांत ने जोर दिया तो अनीता राज़ी हो गयी और बोली ठीक है लेकिन मुझे कपडे तो बदल लेने दे बेटा. और यह बोल कर वह अपनी आलमारी में से कपडे निकालने लगी.
अनीता के पास एक ही कमरा था उसमे ही दोनों माँ बेटे रहते थे. प्रशांत अनीता की परेशानी समझ गया कपडे बदलने के लिए उसका बाहर जाना ज़रूरी था सो उसने कहा " मैं बाहर जाकर रिक्शा रोकता हूँ, आप तैयार हो कर आ जाइये."
थोड़ी ही देर में अनीता हलके गुलाबी रंग की साड़ी में तैयार हो कर आई. आज प्रशांत ने पहली बार अनीता को ध्यान से देखा. बिना किसी श्रृंगार के भी अनीता बहुत सुन्दर लग रही थी. उसने गुलाबी रंग का ब्लाउज पहना था जिसमे से उसके अन्तःवस्त्र झलक रहे थे. प्रशांत को इस तरह देखता पाकर अनीता भी थोड़ी शरमा गई.
प्रशांत ने रिक्शा रोक लिया था उसने ध्यान हटाते हुए दीपू से कहा "चलो भाई दीपू लेट हो रहे हैं जल्दी से बैठो रिक्शे में." सबसे पहले अनीता बैठी और उसने दीपू को गोद में बैठा लिया उसके बायीं तरफ उछल कर प्रशांत भी बैठ गया. रिक्शे में बस इतनी ही जगह थी की दोनों के बाहें आपस में टकरा रहीं थीं. अनीता काफी सिकुड़ कर बैठी थी फिर भी बार बार उसका कन्धा प्रशांत की बांह से टकरा रहा था. दोनों को ये स्पर्श अन्दर तक महसूस हो रहा था. अच्छा भी लग रहा था. मगर शर्म से दोनों चुप थे. बाकी काम रास्ते के गड्ढे पूरा कर रहे थे.
थोड़ी ही देर में वे लोग सर्कस के सामने पहुँच गए. दीपू तो सर्कस का तम्बू देखते ही पागल सा हो गया. उसको खुश होता देख अनीता भी खुश हो गयी और उसके साथ हंसी मज़ाक करने लगी. प्रशांत ने टिकट लिए और तीनों अन्दर चले गए. दीपू का आधा टिकट ही लिया था इसलिए उसे गोद में बैठना पड़ा. और प्रशांत और अनीता एक बार फिर से पास पास कुर्सी पर बैठे तो स्पर्श क्रिया ने अपना काम कर दिया. पुरे 3 घंटे दीपू सर्कस के करतब देखने में मगन रहा और प्रशांत और अनीता अपनी भावनाओं से खिलवाड़ करते रहे.
करते भी क्या ? प्रशांत को भी अपने घर गए एक अरसा हो गया था और उधर अनीता तो 3 सालों से विधवा का जीवन जी ही रही थी. आखिर शरीर की भी तो कुछ कमजोरियां होती हैं. इसी उहापोह में कब शो ख़त्म हुआ दोनों को पता ही नहीं चला. हाँ जो पता चला वो ये की अनीता का चेहरा आज बहुत खिला खिला लगने लगा..आज वो खुल कर हंस भी रही थी और उसकी आँखों में भी एक अलग ही चमक थी.
शो ख़त्म हो चूका था. वे लोग निकल कर बाहर आ गए. दीपू बेहद खुश था. अनीता भी खुश लग रही थी. प्रशांत ने अनीता की तरफ देखते हुए कहा "अभी तो अँधेरा होने में देर है, अगर आप चाहो तो थोड़ी देर सामने वाले पार्क में बैठते हैं, दीपू भी खेल लेगा और हम लोग भी एक एक कप चाय पी लेंगे." अनीता ने हामी भर दी और वे लोग पार्क में जाकर एक बेंच पर बैठ गए. चाय वाला आया तो प्रशांत ने दो चाय ले ली और दीपू को मूंगफली दिलवा दी. दीपू पार्क में दौड़ लगाने में मस्त हो गया. अब वे दोनों अकेले थे. कुछ देर की चुप्पी के बाद प्रशांत ने अनीता की ओर मुंह कर के कहा, "आप को अच्छा लग रहा है या नहीं ?"
अनीता बोली "हाँ अच्छा लग रहा है, मैं तो बहुत अरसे बाद यहाँ आई हूँ. पहले दीपू के पापा के साथ ही कभी आती थी. अब कहाँ....." एक ठंडी सांस ली उसने.
"मैं समझ सकता हूँ, लेकिन अगर आप किसी से बात नहीं करेंगी तो दुःख कम कैसे होगा, आप तो किसी से बात भी नहीं करती हैं. मिला जुला करो सबसे तभी तो दुःख कम होता है." प्रशांत ने अनीता को समझाने की कोशिश की.
काफी देर तक दोनों अपनी बीती जिंदगी की बातें करते रहे. आज अनीता काफी खुल गयी थी. उसने अपनी कॉलेज लाइफ के बारे में भी काफी कुछ बताया. दोनों का मन काफी हल्का हो गया था..इधर उधर की बातें करते समय का पता ही नहीं चला और अँधेरा हो गया तो अनीता बोली "अब चलना चाहिए काफी समय हो गया है." प्रशांत ने दीपू को आवाज़ लगाई और तीनों वहाँ से रवाना हो गए.
घर पहुँचते सूरज पूरी तरह डूब चूका था. अनीता अपने कमरे में चली गयी और प्रशांत ने अपने कमरे की कुण्डी खोलकर कपडे निकाले और ढीला होकर पलंग पर लेट गया. आज का दिन अच्छा निकला था उसका, वर्ना रविवार को अक्सर वो बहुत बोर हो जाया करता था. थोड़ी देर आराम करने के बाद वो उठ खड़ा हुआ. सुबह से खाली नाश्ता ही तो किया था उसने, इसलिए सोचा चलो कुछ खाने की व्यवस्था देख लें. अभी वो मुंह हाथ धोने के लिए बाथरूम में जाने ही वाला था की दरवाजे पर दस्तक देते हुए दीपू ने जोर से दरवाज़ा खोल दिया. अन्दर आते हुए दीपू बोला "अंकल मम्मी ने बोला है आप आज हमारे साथ ही खाना खायेंगे." अचानक आये इस बुलावे से प्रशांत उलझन में पड़ गया और उसने दीपू से पूछा "क्यूँ बेटा, आज कोई ख़ास बात है क्या..?" दीपू को खेलने जाने की ज़ल्दी थी इसलिए वो कमरे से बहार निकलते हुए बोला "नहीं, मुझे नहीं मालूम, बस मम्मी ने बोला है"...और दीपू बहार भाग गया.
प्रशांत खड़ा खडा सोचता रहा की क्या किया जाये, फिर उसके मन में आया चलो अच्छा है एक दिन घर का बना खाना मिल जायेगा. रोज़ तो वो ही होटल का तेल मसालों वाला खाना ही खाना पड़ता है. मगर एक उलझन थी, रविवार के दिन वो हमेशा दो पैग ज़रूर लगाता था. अब अगर अनीता के साथ खाना खायेगा तो पी नहीं पायेगा. ये सोचकर उसने विचार बदल दिया और कपडे पहन कर अनीता के पास मना करने के लिए चल दिया.
अनीता के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. प्रशांत बिना आवाज़ दिए ही अन्दर चला गया. सामने पलंग पर अनीता लेटी हुई थी, उसकी साड़ी पैरों पर थोड़ी ऊपर सरक गयी थी जिस से उसकी गोरी खूबसूरत पिंडलियाँ झलक रही थीं. साडी का आँचल भी एक तरफ को पडा था और उसके गोल, उन्नत स्तन ब्लाउज से बाहर झाँक रहे थे. इस हालत में अनीता को देखते ही प्रशांत सकपका गया और उधर अनीता भी उसको देखकर झेंप गयी और ज़ल्दी से साड़ी संभालते हुए उठ कर खड़ी हो गयी. दोनों की आँखे मिलीं और नीचे झुक गयीं. एक छोटी सी चुप्पी के बीच में प्रशांत ने अपना इरादा बदल लिया था, वो बोला "मैं बाज़ार की तरफ जा रहा हूँ, सोचा आपसे पूछ लूँ कुछ लाना तो नहीं है." अनीता ने संभलते हुए कहा "नहीं अभी तो कुछ भी नहीं लाना, वैसे आप कब तक आ जायेंगे".
प्रशांत को अच्छा लगा, उसका पूछना "मैं घंटे भर में आ जाऊँगा, वैसे भी मैं तो खाना लेट ही खाता हूँ, आप को कोई परेशानी हो तो तकलीफ ना करें मैं बाहर ही खा लूँगा" उसने तक्कलुफ़ दिखाया.
"नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं, आप हो आइये, मैं दीपू को खिला दूंगी, मुझे भी अभी भूख नहीं है मैं आपके साथ ही खा लुंगी, जब आप खाना चाहें बता देना मैं गरम गरम बना दूंगी" अनीता ने उसकी समस्या का समाधान कर दिया था. उसने मन ही मन निर्णय लिया की जब तक अनीता दीपू को खिला कर सुलायेगी तब तक वह अपना पीने का कार्यक्रम कर लेगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा.
प्रशांत घर से निकल कर सीधा वाइन शॉप की तरफ बढ़ गया, अब उस से रुका नहीं जा रहा था, उसकी आँखों में अभी भी अनीता की गोरी पिंडलियाँ और विशाल स्तन ही घूम रहे थे. आधे घंटे में ही उसने अपने पीने की सारी व्यवस्था की और कमरे में आ गया. वैसे तो अक्सर वो दो पैग ही लेता था मगर आज ना जाने क्या सोच कर पूरी बोतल ही उठा लाया था. कमरे में आकर उसने टीवी चालु कर दिया और सारे सामान टेबल पर सजाकर अपना काम चालू करने लगा तभी उसके दिमाग में आया, कहीं ऐसा न हो की मेरे पीने का पता अनीता को चल जाये और वो बुरा मान जाए. उसने डरते हुए बोतल वापस बंद कर दी. अब उसकी स्तिथि अजीब सी हो गयी थी, सामने बोतल रखी थी मगर वो पी नहीं सकता था. वैसे उसे पीने की आदत तो नहीं थी मगर इतना शौक तो था की हाथ में आया मौका गंवाना नहीं चाहता था. उसे पता था आज नहीं पी तो फिर सात दिन तक नहीं पी सकता. इसी उधेड़-बुन में उसने फैसला लिया. उसने अनीता से अनुमति लेना ठीक समझा. तुरंत उठा और अनीता के कमरे की तरफ चल दिया दरवाज़ा खुला हुआ था, मगर इस बार उसने बगिर आवाज़ दिए अन्दर जाना ठीक नहीं समझा इसलिए उसने वहीँ से आवाज़ लगाईं "दीपू, कहाँ है भाई, खेल कर आया या नहीं." उसकी आवाज़ सुनकर अनीता कमरे से बाहर निकलते हुए बोली "देखिये ना, नालायक अभी तक नहीं आया. मैं अभी बुलाती हूँ इसको". प्रशांत ने हँसते हुए कहा "रहने दो, खेल रहा होगा यहीं कहीं, अभी आ जायेगा खुद ही." अनीता ने प्रशांत को कमरे में बुलाते हुए कहा "आप आइये ना बैठिये, आप को भूख लगी होगी, सब्जी तैयार हो रही है अगर आप कहें तो चपाती बना देती हूँ आपके लिए." प्रशांत ने ज़ल्दी से जवाब दिया "अरे नहीं, अभी नहीं खाना तो थोडा लेट ही खायेगे अगर आप को कोई परेशानी ना हो तो..?" "मुझे क्या परेशानी होगी, आप बता देना जब भी खाना हो, मैं तब ही बना दूंगी."
प्रशांत अब मुद्दे की बात पर आना चाहता था "आप से एक परमिशन लेनी है अगर आप बुरा ना माने तो..?"
"हाँ, हाँ...बताईये ना, क्या बात है..?" अनीता ने सँभालते हुए पूछा.
प्रशांत ने डरते डरते कहा "अनीता जी, दरअसल मुझे बस एक रविवार ही मिलता है थोडा एन्जॉय करने के लिए. इसलिए मैं हमेशा रविवार को खाने से पहले थोड़ी से ड्रिंक लेना पसंद करता हूँ, अगर आप को कोई ऐतराज़ ना हो तो मैं ले सकता हूँ..?"
"इसमें पूछने की क्या बात है, आप अगर लेना चाहें तो बेशक लीजिये मुझे कोई दिक्कत नहीं.." अनीता ने मुस्कुराते हुए अनुमति दे दी. प्रशांत को जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी. उसने थैंक्स बोला और तुरंत अपने कमरे की तरफ बढ़ गया, ज्यादा देर वहा रुकना उसे ठीक नहीं लगा, कहीं अनीता का विचार बदल गया तो...
अपने कमरे में आ कर उसने अभी पहला पैग ही बनाया था की दरवाज़े से आवाज़ आई "मैं अन्दर आ सकती हूँ..?"
"हाँ आइये ना," कहते हुए उसने दरवाज़ा खोल दिया.
अनीता हाथ में प्लेट लिए हुए अन्दर आई और प्लेट टेबल पर रख दी, प्लेट में गर्म गर्म प्याज की पकोडिया थीं.
"अरे, ये...अआपने ये सब..क्यूँ.."प्रशांत को कुछ अजीब सा लगा.
अनीता ने उसकी बात काट दी "जब शौक ही पूरा करना है तो ढंग से कीजिये ना. मुझे पता है पकौड़ियों के साथ ड्रिंक्स का मज़ा ही और है..है ना ?उसने हँसते हुए प्रशांत की तरफ देखा.
"हा..हा..हाँ बात तो एक दम सही बोली है आपने..आज तो मज़ा आ ही जायेगा..." उसने अनीता की आँखों में झांकते हुए कहा तो अनीता झेंप गयी और फर्श की तरफ देखती हुई मुस्कुराने लगी.
"आप अपना एन्जॉय कीजिये, मैं दीपू को खाना खिला देती हूँ. दिन भर का थका हुआ है इसलिए ज़ल्दी सो जायेगा आज." अनीता ने उठते हुए कहा और तेज़ कदमों से कमरे से बाहर निकल गयी.
गिलास हाथ में लिए हुए प्रशांत देर तक अनीता के बारे में सोचता रहा. आज उसे अनीता काफी बदली बदली लगी, वो अब तक ये सोचता था की अनीता कम बोलने वाली है, कभी मुस्कुरा कर बात भी नहीं करती, शायद घमंडी है वगैरह वगैरह. लेकिन आज अनीता उसे एक खूबसूरत और जवान औरत लग रही थी. उसे दुःख हो रहा था की अनीता कैसे अपना पहाड़ सा जीवन अकेले बिताएगी. उसकी ज़रूरतें कैसे पूरी होती होंगी. जवान बदन को सिर्फ पेट की भूख ही थोड़ी होती है. क्या गुज़रती होगी उस पर. सोचते सोचते उसने दो पैग कब ख़तम कर लिए पता ही नहीं चला. आज तो दो पैग का असर भी नहीं हुआ था उसपर इसलिए उसने एक और पैग बना लिया और ध्यान बंटाने के लिए सिगरेट जलाने लगा.
तभी एक बार फिर दरवाजे पर अनीता नज़र आई, अन्दर आते हुए उसने पूछा "आप की ड्रिंक्स पूरी हुई या नहीं, दीपू तो खाना खा कर सो भी चूका है, अब हम दोनों ही रह गए हैं खाने के लिए, अगर आप बोले तो बना लूँ.."
"बस..ये लास्ट पैग है, फिर खाते हैं खाना.." अपने गिलास की तरफ इशारा करते हुए प्रशांत ने कहा. आइये न बैठिये आप भी वहां भी अकेली क्या करेंगी.
अनीता पलंग पर ही बैठ गयी. अनीता ने बोतल की तरफ देखते हुए पूछा "आप रम लेते हैं हमेशा".
"हाँ मुझे रम ही पसंद आती है.." प्रशांत ने जवाब दिया.
अनीता कुछ याद करते हुए बोली "दीपू के पापा भी रम ही लिया करते थे. बिलकुल आपकी तरह बस रविवार को." प्रशांत ने उसकी तरफ ध्यान से देखा मगर कुछ बोला नहीं बस उसके बोलने का इंतज़ार करता रहा.
अनीता अपनी पुरानी यादों में खोने लगी "उनको भी पकोड़े खाने का बहुत शौक था..हमेशा कहते थे..अन्नू तेरे हाथ के पकोड़े खाने से नशा होता है वर्ना रम में तो कुछ भी नहीं..." उसकी आँखें नम होने लगीं थी..प्रशांत ने उसे टोका नहीं. अनीता बोलती रही..बहुत देर तक ना जाने क्या क्या बोलती रही..और साथ में रोती भी रही. प्रशांत ना जाने कब उसके पास जा कर पलंग पर बैठ गया था..और ना जाने कब अनीता ने उसके कंधे पर अपना सर रख लिया था..दोनों को पता ही नहीं चला.
अनीता रोती जा रही थी और प्रशांत उसके गोरे गोरे गालों पर लुढ़क रही आंसूं की बूंदों को पौंछ रहा था..दोनों किसी दूसरी दुनिया में खो से गए थे. अनीता को भी पहली बार कोई हमदर्द मिला था और प्रशांत को भी उसके भोलेपन पर प्यार आने लगा था. प्रशांत ने उसका चेहरा ऊँगली से ऊपर उठाया और उसके होठों पर अपनी ऊँगली रख दी." बस..अनीता...अब बस करो..." उसने धीर से उसे चुप करने की कोशिश की.
अनीता ने अपनी आँखे बंद कर ली थीं मगर आंसूं की धारा अभी तक चालू थी..दोनों की चेहरे नज़दीक आ गए थे...अनीता लगभग प्रशांत की बाँहों में थी. एक दुसरे की गर्म साँसें दोनों को बैचैन कर रही थी..ऐसे में क्या हुआ जो प्रशांत ने अपने होठ अनीता के कांपते हुए होठों पर रख दिए. और बस उसी पल में जैसे कोई भूचाल आ गया...अनीता का निचला होठ अब प्रशांत के होठों में था और वो उसके होठों को चूस रहा था...अनीता बिना किसी विरोध के उसकी बाहों में खामोश लेटी हुई थी....दोनों एक दुसरे से दूर होने की कोई कोशिश नहीं कर रहे थे. प्रशांत ने अनीता की पीठ पर अपना बायाँ हाथ कसते हुए दायें हाथ से उसके गालों को सहलाना शुरू कर दिया... अनीता उसकी हर हरकत पर खामोश थी ....और ना जाने कब उसने भी प्रशांत के रम से महकते होठों को चूसना चालु कर दिया.
प्रशांत के हाथ शायद उसके काबू में नहीं थे..अनीता के बड़े बड़े उभार का आकार नापने के लिए मचलने लगे...ब्लाउज के हुक भी ज्यादा देर तक साथ नहीं दे पाए और श्वेत कपोत देखते देखते आज़ाद हो गए... प्रशांत अनिता के मांसल शरीर को जहां-तहां चूमने लगा। अनिता के लिए यह पहला पुरुष स्पर्श नहीं था। वह बौरा सी गई, उसके होंठों से आनंदतिरेक सिसकारियां निकलने लगीं, फिर तो वह प्रशांत के बदन से लता की भांति लिपट गई। प्रशांत उसके शरीर की गोलाइयां नापने लगा। जल्दी ही उनके तन के तमाम कपड़े इधर-उधर कमरे में बिखर गए. और वे दोनों जन्मजात नग्नावस्था में एक दूसरे से गुंथे अपनी ज़रूरतों को पूरा कर रहे थे...गरम गरम साँसों की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी...पेट की भूख पर बदन की भूख भारी हो चली थी.... फिर कमरे में एक तूफान आया और गुजर गया। इसके बाद कमरे में पहले की सी शांति छा गई तथा दोनों के चेहरों पर असीम तृप्ति के भाव दृष्टिगोचर हो रहे थे।
एक बार अनिता के कदम फिसले तो फिर फिसलते ही चले गए। दिन में प्रशांत काम पर चला जाता रात में अनिता अपने बेटे को सुलाकर चुपके से प्रशांत के कमरे पर पहुँच जाती। अनिता को देखते ही प्रशांत आपा खो बैठता, वह एकदम झपटकर अनिता को बांहों में भींच लेता और उन्मत्त भाव से प्यार करने लगता तो अनिता मदहोश हो जाती। उसे महसूस होता कि जैसे जीवन में पहली बार किसी पुरूष का संसर्ग मिल रहा हो। विह्नल भाव से वह प्रशांत की चौड़ी छाती में दुबक जाती।
वक्त गुजरता रहा इस तरह दो महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला। एक दिन डाकिया प्रशांत के घर से आया खत दिया तो अनिता उसे लेकर प्रशांत के पास पहुँची और बोली, “आज आप के घर से ख़त आया है..." अनिता के शब्द अभी पूरे भी न हुए थे कि प्रशांत ने फौरन ही बाहर वाला दरवाजा बंद कर दिया। उसने एकदम झपटकर अनिता को बांहों में भींच लिया और उन्मत्त भाव से प्यार करने लगा। तब अनिता उसे समझाते हुए बोली, “आपको घर आये दो महीने हो गए. इस बार तो एक-दो दिन की छुट्टी ले ही लीजिये ....." प्रशांत ने ख़त पढ़ा और मोड़ कर तकिये के नीचे रख दिया. अनीता उसके सीने के बालों से खेलते हुए बोली, “घर आते जाते रहेंगे तो कोई शक नहीं करेगा।”
अनिता की बात प्रशांत को ठीक लगी। अगले दिन ही वह छुट्टी लेकर घर गया। दो-तीन दिन के बाद लौट आया। फिर तो उसका क्रम बन गया। महीने में दो दिन के लिए वह घर चला जाता था। जब तक वह अनिता के पास रहता अनिता उसका ख्याल रखती थी...... प्रशांत भी उसका व उसके बच्चे का ख्याल रखता। इस तरह पाँच साल बीत गए और प्रशांत का तबादला हो गया तब अनिता के दिन पहले की तरह बीतने लगे।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply