हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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मारे खौफ के दिल थाड़-थाड़ करके बज रहा था ।



बोलने की लाख चेष्टाओं के बावजूद वह अपने मुंह से कोई आवाज नहीं निकाल सका।



इधर ।



नजमा के दिमाग में भी आंधियाँ चल रही थी ।



खुद उसने भी स्वप्न तक में नहीं सोचा था कि.....
खुद उसने भी स्वप्न तक में नहीं सोचा था कि----


यूं !




जैक की इतनी बडी कामयाबी 'बेवकूफी' साबित हो जाएगी।


"जैक ।" आबू सलेम ने कहा…"मैं काफी देर से तुम्हारे बोलने का इंतजार कर रहा हूं ।"


" 'भ. .......भाई जी ।" जैसे मुर्दा बोला----" म..... मेरी तो समझ में नहीं आ रहा क्या कहू?" !



“केवल इतना बताओ-मैंने गलत कहा या सही?"



"अ. . अपने कहा है भाई जी तो सही ही क्या होेगा मगर. . . "


" मगर ?"


" क... . .कम से कम मैंने जो किया, यही सोचकर किया था कि इनाम के लायक काम है । अब उसमें भी कोई खोट निकल जाए तो. . . !"


"तो ?"



"भाई जी मैंने सोचा नहीं था इसमें भी कोई खोट निकाल सकता है! "



"तुम्हारी स्थिति ठीक मेरी कहानी के चौकीदार जैसी है ।"



"ज..... . जी ।"



"उसे भी नहीं पता था मालिक की जान बचाने की धुनक में कहां गलती कर रहा है ।"




एक बार किर जैक कोशिश के बावजूद मुह से आवाज न निकाल सका



। “इसलिए मैंने तुम्हारे साथ वही सुलूक करने का फैसला किया है जो सेठ ने चौकीदार के साथ किया था ।" कहने के साथ वह ए .सी. के स्पिच के नजदीक पहुचा । उसे ओंन करने के साथ बोला-'"बोलो, तुम्हें मंजूर है या नहीं?”



फर्श का वह हिस्सा पुन: दो किवाड़ बनकर खुल गया था जहाँ से विजय-विकास नीचे गिरे थे ।



"अबे औ भाई ।” नीचे से विजय की आवाज आ रही थी----“ये कहाँ फंसा दिया तूने हमें । यहाँ से निकाल यार ।"



विजय और भी जाने क्या-क्या बक रहा था । आबू सलेम ने उसके शब्दों पर ध्यान न देकर जेक से कहा----"तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ।"


जैक जानता था…उसकै मंजूर नामंजूर कहने से कोई फर्क पडने बाल नहीं था! करना वहीं था आबू सलेम को, जो उसके दिमाग में आचुका था !
जैक जानता था…उसकै मंजूर नामंजूर कहने से कोई फर्क पडने बाला नहीं था! करना वहीं था आबू सलेम को, जो उसके दिमाग में आचुका था !




सो, वहुत सोच-समझकर कहा उसने----"आपने पहले कभी कोई गलती की है भाई जी और ना ही आगे करेगे । मुझे इस बात पर पूरा विश्वास है !


"सेठ ने चीकीदार को दस लाख रुपए दिए थे, मैं तुम्हारे परिवार को पूरे एक करोड दूगा । यह एक करोड विजय-विकास को मेरे चंगुल में फंसाने का इनाम होगा ।"



' "ज. . .जी !"



"सजा के तोर पर सेठ ने चौकीदार को नोकरी से निकाल दिया था । मगर तुम जानते हो…हमारे आर्गेनाइजेशन मेंनौकरी सै निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है । जो बोझ वन जाए उसके लिए एक ही व्यवस्था है ।"



"न . .नहीँ । नहीं भाई जी ।" उसके जिस्म में दौड़ता खुन मानो जहां का तहां रुक गया था ।


आबू सलेम ने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया ।



जैक गिड़गिड़ा उठा----"भाई जीं प्लीज़ ।"


"मुझे दुख हुआ जैक । सच मानना…तुम्हारी वर्तमान हालत को देखकर मुझे वहुत दुख हो रहा है । जानते हो क्यों, केवल इसलिए कि मैं पहले नहीं ताड़ सका तुम मौत से इतने डरते हो । ' तुम. . जिसे मैंने अपना पर्सनल सुरक्षा गार्ड बनाया था । मेरी कल्पनाओं के मुताबिक तो यह सजा तुम्हें हंसते-हंसते गले लगानी चहिए थी । तुम्हें लेकर जो उम्मीदे मैं बांधा करता -था आज तुम्हीं ने वे सारी ध्वस्त कर दी । अब तो लग रहा है-वास्तव तुम विजय-विकास को यहाँ तक अपनी किसी पूर्व सोच के कारण नहीं बल्कि अपनी जान बचाने की खातिर लाए थे । यहां आकर उन्हें तहखाने मे डालने का मोका मिला और वह काम पूरा होते ही तुमने कहानी गढ़ दी की .......... ।"



"न.. .नही…नही भाई जी । यह झूठ है ।" बह कहता चला गया…"ओर यह भी झूठ है कि में मौत से डरता हूं ।”



"वह तो चेहरा बता रहा है तुम्हारा !"


“म. . .मैं मौत से नहीं डर रहा भाई जी है"'


"ओर किस बात का खौफ है ये?”


“क. . .केवल इस बात का कि अगर थोडी बहुत गलती मुझसे हुई भी है तो सजा इतनी संगीन...........!"




इस बार आहू सलेम उसका वाक्य काटकर कह उठा --- " इसका मतलब अब तुम्हें मेरे फैसलों पर भी एतबार नहीं रहा ।"




"ऐसी बात नहीं है भाई जी । मैं तो… !"



"नहीं जैक । अब तुम जिंदा रहने के काबिल नहीं रहे !" कहने के साथ आबू सलेम ने वह सिगरेट फर्श पर डाली जो अभी आधी ही पी गई थी । जूते से कुचलता हुआ बोला ---" मुझमें तो आस्था भी खत्म हो चुकी है तुम्हारी जिसकी आस्था आबू सलेम में खत्म हो जाए वह आर्गेनाइजेशन में नहीं रह सकता ।"



"मेरी आपमें पूरी... !"


"धांय ।”



आदू सलेम के रिवॉल्वर से एक शोला निकला ।



जैक की खोपडी के चीथड़े उड़ा गया वह ।


उसका जिस्म सारे जहां की शराब पी गए शराबी की तरह लड़खड़ाया ।

अभी लड़खड़ा ही रहा था कि आबू सलेम ने आगे बढकर अपने बूट की जोरदार ठोकर मारी ।



'जैक अंतिम चीख के साथ तहखाने में जा गिरा ।
"अबे ।" मुंह से यह शब्द निकालने के साथ विजय बडी फुर्ती से कूदकर दो कदम पीछे हटा।



जैक का जिस्म "थाड़' से स्टील के फर्श पर जाकर गिरा था ।



हां । केवल जिस्म ही था वह । आत्मा तो कभी की उड़न छु हो चुकी थी । विजय उसे आंखें फाड़े देख रहा था । उसे, जिससे अभी तक 'भल्ल-भल्ल' करके खून वह रहा था ।


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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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नजर विकास की भी उसी पर थी !



यह बात दोनों में से किसी की समझ में नहीं आ रही थी उसे क्यों मार दिया गया ।



उसे, जिसने उन्हें वेहद सफाई के साथ यहां लाकर कैद में फंसा दिया था । अभा उनमें से कोई आपस में कुछ बोल भी नहीं पाया था कि ऊपर से आवाज आई…"कैसा लगा मिस्टर विजय?"



दोनों ने एक साथ पलटकर ऊपर देखा ।



आबू सलेम मोखले के नजदीक खड़ा नीचे झाँक रहा था । उस पर नजर पड़ते ही विजय चहका----" ये तो कोई बात नहीं हुई आबू भैया । अपना कचरा साला तुमने निचली मंजिल बालों के सिर पर फेंक दिया !
देखो-सारा फर्श गंदा हो गया है । अब पोंछा लगाने वाली भी तुम्हें ही बुलानी होगी ।"’



मुझे यकीन नहीं आ रहा तुम वहीं विजय-विकास हो ।"


" कौन विजय-विकास ।"


"जिनसे सिंगही और जैक्सन जैसे मुजरिम पनाह मांगते है ।"’



"अजी मांगते हैं तो मांगते रहे । हम पनाह देते कहां हैं-सालों को? पनाह आखिर पनाह है । कोई ऐसी चीज तो है नहीं कि जेब से चवन्नी की तरह निकाली और रख दी फुटपाथ पर बैठे भिखारी के हाथ पर ।”



"वाकई ।" आबू सलेम -"'बात सुनकर लगता है तुम बहीं हो । आप बाते बहुत मजेदार करते हैं ।"'



"अजी यूं ऊंट की तरह गर्दन उठाकर बाते करने में तो खुद हमे ही मजा नहीं आ रहा, फिर तुम्हें कहां से जाएगा । ऊपर खिंचवाओं हमें । सामने बैठकर बात करों । फिर देखो कितना मजा जाएगा ।"



“होगा । वेसा भी बहुत जल्द होगा ।"’ कहने के साथ हंसता हुआ आबू सलेम मोखले के नजदीक से हट गया ।




“कहां जा रहे हो आबू सलेम भैया ।" विजय जोर से चीखा…“तुम्हारा तो यार हमे यहाँ से खींचने का कोई मूड ही नजर नहीं आ रहा । सड़ा सड़ाकर ही मार डालने का इरादा है क्या?"



दोनों किवाड़ पुन: बंद हो गए।



अब छत भी सालिड स्टील की बनी नजर जा रही थी । कमरे के फर्श से करीब पंद्रह फुट ऊपर थी वह । जहाँ वे थे वह कमरा दस बाई दस से बड़ा नहीं था । को, फर्श, दीवारे-सब कुछ स्टील का ।


कहीं कोई दरवाजा, कोई खिडकी नहीं । सामान के नाम पर सुई तक नहीं बी वहां । केवल वे थे और संदूक जैसा कमरा !



"आराम से बैठ जाओ गुरु । हमारे लिए अब कुछ नहीं हो सकता ।" विकास ने एक दीवार के सहारे बैठते हुए कहा !



विजय घुटने मोड़कर इस तरह जैक की लाश के नजदीक बैठ गया जैसे "इंडियन सीट' पर बैठा हो । अफसोस सा करता बोता----" बात भेजे में नहीं घुस रही दिलजले । आबू भैया ने इसे पटकनी क्यों दी !"



'इसकी चिंता छोडो गुरु, अपनी फिक्र करों । छब्बे जी बनने आए थे दूबे जी बनकर रह गए ।"



"हम 'क्यों करें अपनी फिक्र । ऊपर वाला करेगा हमारी फिक्र.. सारी, वाला नहीं, वाली ।"
"अरे ! तुम अभी तक वहीं खडी हो !" ए .सी का स्विच अॉन करने के तुरंत
बाद आबू सलेम ने एक कोने में सिमटी खड़ी नजमा की तरफ देखते हुए कहा …""और .. .इतनी हवाइयां क्यों उड़ रही हैं चेहरे पर? नहीं संगी डार्लिग, तुम्हारा चेहरा इतना फीका अच्छा नहीं लगता । ये तो दमकता हुआ अच्छा लगता है ।"



नजमा खामोशी के साथ डरी-सहमी 'संगीता' की एक्टिंग करती रही ।




"अच्छा भाई सारी ।" हंसकर वह नजमा की तरफ़ बढ़ता हुआ बोला----"मुझे यह सब तुम्हारे सामने नहीं करना चाहिए था मगर क्या करता, मजबूर हो गया । गुनहगार को हाथों हाथ सजा देने की आदत जो पड़ गई है ! "




नजमा अब भी कुछ नहीं बोली ।


आबू सलेम ने नजदीक जाकर उसे बांहों मैं भर लिया ! बोला----"तुम तो कांप रही हो ।"



"स. . .सलेम !" वह यू बोली जैसे बड़ी मेहनत के बाद बोल पा रही हो ---- "क्या वाकई जैक का कुसूर इतना बड़ा था? म. . .मेरे ख्याल से तो ......!"



"हां! हां! बोलो तुम्हारे ख्याल से ?"



"उसका कोई कसूर नहीं था ।"

ठहाका लगाकर हंस पड़ा आबू सलेम । बोला----"छोड़ो, यह सब तुम्हारे सोचने के लिए नहीं है डार्लिग । भूल जाओं यह यब तुम्हारे सामने हुआ है । यह भी भूल जाओ----जैक नाम का कोई आदमी कभी इस दुनिया में -था ।"

“भ. . .भूल जाऊगी ---मगर इतनी जल्दी नहीं भूल सकती ।"



"बात तो ठीक है और----ज़ब तक इस मानसिक अवस्था में रहोगी तब तक प्यार करने मे भी मजा नही आएगा ।

तो आओ मूड चेंज करने के लिए तुम्हें शूटिंग दिखाता हू।"



" शूटिंग !"



"यस । तुम क्या समझती हो शूटिंग केवल स्टूडियोज में होती है । अपने यहाँ भी मैं कभी--कभी सेट लगा लिया करता हूं और हां हीरो भी बड़ा फेमस है । तुम्हारी लाइन का न सही पोलिटिक्स की लाइन कां है । मगर है फेमस !"
यह सोचकर नजमा का दिल जोर- जोर से धडकनें लगा कि शायद वह मोहम्मद इकराम तक पहुचने वाली है । बोली ---" ऐसा कौन सा नेता है जिसे तुम हीरो बना रहे हो ।"



"मोहम्मद इकराम ।"



" इ ......इकराम । वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री । रिवटजरलैंड मे सुना था उन्हें क्डिनेप. . .ओह । तो उन्हें तुम्ही ने ।"



"हां । ऐसा ही समझो ।"



" मगर क्यों? तुम्हें उसे किडनैप करने की क्या जरूरत पड़ गई !



“संगी डार्लिंग ।" थोड़ा बोर से होते आबू सलेम ने कहा---"हो क्या गया है तुम्हें? अचानक सवाल बहुत करने लगी हो ।"



" म.....मेरा मतलब था ।" थोडा गडबडाने के बाद नज़मा ने खुद को संभाल लिया----"तुम्हें उसे किडनैप करने की क्या जरूरत थी पॉलिटिक्स की दुनिया में ऐसा कौन है जिसे तुम मेसेज भेजो और बह खुद चलकर तुम्हारे पास न आ जाएगा ।"



"हालात ऐसे थे कि वह अपनी मर्जी से कहीं आ-जा नहीं सकता था !"



"में समझी नहीं । ऐसे क्या हालात थे!"



"एगर उसे किडनैप की खबर स्विटृजरलैंड पहुंच गई तो उस इंटरव्यू की खबर भी ज़रुर पहुची होगी जिसने भारत को दंगों की आग में झोक रखा है ।"




"हां । यह खबर भी थी वहां ।"



"उसी के कारण इंडियन गवर्नमेंट ने उसे अपने सुरक्षा धेरे में ले रखा था । अपनी मर्जी से कहीं नहीं आ-जा सकता था है इसलिए मेसेज भेजने की जगह उठवाना पड़ा ।"



"मगर ऐसी जरुरत क्या पड़ गई उसकी ?"

"बताया तो था-----यहां शूटिंग कराने का मूड था । आओ ---- तुम्हें भी दिखाता हूं ! " कहने के साथ लगभग जबरदस्ती उसने नजमा को दरवाजे की तरफ खींचा । उसके साथ खिंचती चली जाने के अलावा फिलहाल कोई चारा भी नहीं था !



बैसे भी, वह देखना चाहती थी --- णतनी बड़ी इमारत में मौहम्मद इकराम है कहाँ? बहरहाल उनका मकसद ही उसे यहां से निकालकर ले जाना था ।
वह बात चाहे जो कर रही हो मगर दिमाग बराबर चकरधिन्नी की तरह घूम रहा था ।
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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जिस जंजाल में विजय-विकास फंस गए थे उन्हें वहाँ से निकालने की जिम्मेदारी अब ,उसी की थी ।

यह काम कोई मुश्किल भी नहीं लग रहा था उसे ।


कारण !



आबू सलेम भी जैक की तरह उसकी तरफ़ से पूरी तरह लापरवाह था और लापरवाह दुश्मन को मौका लगते ही बड़ी असानी से 'दबोचा' जा सकता था । जरूरत थी तो केवल एक ऐसे लम्हें की जब आबू सलेम पर ऐसा प्रहार कर सके जिसके परिणामस्वरूप वह कुछ भी समझने से पहले बेदम हो जाए ।




नजमा जानती थी---यदि एक बार उसके द्वारा अचानक किया गया प्रहार खाली चला गया या इतना कमजोर हुआ जिससे आबू सलेम बेदम ना हो सका तो सारे हालात पलक झपकते ही उसकी मुटूठी से फिसल जाएंगे और. . हालात मुटुठी से फिसल जाने का अंजाम यकीनन उन तीनों की मौत होगा ।



इसलिए, उसने फैसला किया था-थोडी देर भले ही हो जाए, लेकिन प्रहार में कोई चुक न हो ।



और अब...अब तो मोहम्मद इकराम की पोजीशन जानना भी उसका लक्ष्य वन चुका था ।



सो, उसके साथ कमरे से बाहर खिंचती चली गई ।


गैलरी में पहुंचकर आबू सलेम ने जेब से रिमोट निकाला ! उसका एक बटन दबाया ।



बेडरूम का मजबूत दरवाजा बंद हो गया ।



अब वह आबू के साथ गेलरी में बढ़ रही थी ।


करीब एक मिनट बाद वे वहाँ पहुचे जहां मोहम्मद इकराम और शूटिंग टीम मौजूद थी । लाइटे आँफ थी । रिफ्लेक्टर्स समेटे जा रहे थे । कैमरे को स्टेंड से उतारा जा रहा था । यानी माहोल 'पैेकअप' का था ।



कमरे में कदम रखते हुए आबू सलेम ने पूछा…"काम खत्म हो गया लगता है !"




"हा भाई जी । मेरे हिसाब से तो काम ठीक ही हो गया है ।" खलिद मिस्त्री ने कहा---"अच्छा हुआ जो आप आ गए । आप भी देख लें तो बेहतर होगा !"
"दिखाओ !" कहने के साथ आबू सलेम एक सोफे 'पर बैठ गया ।


खालिद मिस्त्री शूट हुई कैसेट वी.सी.आर. में लगा रहा था ।


कुछ देर बार सामने रखे टीबी. के पर्दे पर फिल्म चलने लगी ।


यह वही फिल्म थी जो खालिद ने कुछ देर पहले शूट की थी । आबू सलेम एक-एक शाट को ध्यान से देखने लगा ।



ठीक सामने इकराम बैठा नजर आरहा था ! कैमरे के पीछे से एक आबाज उभरी-----" क्या आप जम्मू-कश्मीर में कहे गए अपने शब्दों को ठीक मानते है?”


मोहम्मद इकराम मजबूती के साथ जवाब देता नजर आया ---" जी हां । मैं आज भी जम्मू में कहे गये अपने शब्दों पर कायम हूं !




कैमरे के पीछे से अगला सवाल पूछा गया…"क्या आपको मालूम है आपके इस भाषण के कारण भारत में काफी हंगामा मचा हुआ है !"


मोहम्मद इकराम थोडा रोष में नजर आया । फिर बोला-"वेवजह हंगामा मचा रखा है क्टटरपंथियों ने । आखिर क्या गलत कह दिया मैंने, जम्मू में मुसलमानों को बसाने की बात ही तो कही है । इसमे क्या गलत कह दिया ।"


कैमरे के पीछे से पुन: कहा गया…"लेकिन आपके स्टेटमेंट के कारण जम्मू में बसे हिन्दू संकट में पड गए हैं ।"



इकराम कुछ और रोष में नजर आया । गुस्से में कहा --- " मुस्लमानों पर हिंसा करके ये मेरी हर बात सच साबित कर रहे हैं । जम्मू कश्मीर समस्या का केवल एक हल है ।"


और वस ।



स्कीन पर झिलमिल नजर जाने लगी ।


खालिद के असिस्टेंट ने टी.बी… आँफ कर दिया ।


"गुड ।" आबू सलेम ने कहा---“अच्छी बनी है । बस एक छोटी-सी कमी । अंतिम सवाल का जबाब देते वक्त मोहम्मद इकराम के लहजे मैं द्रुढ़ता कुछ कम है थोड्री और होती तो ज्यादा बेहतर होता । एनी वे । चलेगी ।"



, "आप तो जानते ही हैं भाईजी ।" खालिद मिस्त्री ने कहा ----" इतनी पंरफांरनेस भी मिस्टर इकराम हमारी कितनी मेहनत के बाद दे पाये हैं । फिर भी, अगर आपको कमी लगती है तो 'डबिंग' से सुथार किया जा सकता है ।"
" नहीं जरूरत नहीं है ।" कहने के बाद आबू ने संगीता से पूछा…" तुम्हें कैसी लगी संगी डार्लिंग?"



उसे, जो यह सोच रही थी --केवल दो मिनट की यह फिल्म देश में कितना खून खराबा करा देगी ! कहना पड़ा ---" अच्छी है ! परफैक्ट है !




"मंत्री जी ने जो कहा, ठीक ही कहा न?"


"ठ .... ठीक ही है ।"


"क्यों न एक बार तुम भी कैमरे के सामने जाकर यही सब कह दो !

" म.....मैं ?" छक्के छूट गए नजमा के । यह सोचकर पलक झपकते ही चेहरा पसीने से भरभरा उठा कि 'संगीता' को भी जब लोग यही सब कहते देखेंगे तो क्या हाल होगा भारत का? मुह से निकला----"मुझे इस झमेले में मत फसाओ आबू।"


और आबू।


आबू सलेम वहुत जोर से ठहाका लगाकर हंस पडा । बोला…"तुम्हारे तो होश ही उड़ गए संगी । रिलेक्स डर्लिग। रिलेक्स । मैं तो मजाक कर रहा था ।”



नजमा के "ओसान' लोटने शुरू हुए ।


आबू सलेम अभी भी कहे चला जा रहा था…“यह सव कहने के लिए मत्री जी ही काफी हैं । तुमसे तो अगर कैमरे के सामने कभी कुछ कहलवाने की जरूरत भी पडी तो रोमांटिक बाते कहलवाएंगे ।" इन शब्दों के साथ उसने नजमा की कलाई पकड़कर एक झटके से अपनी तरफ खींचा था । नजमा उसकी गोद में जा गिरी ! आबू सलेम ने सबके सामने बेहिचक उसके होंठ चूंमे !

नजमा विरोध करना चाहकर भी नहीं कर सकती थी । केवल यही कहकर खुद को अलग किया …"" सबके सामने, क्या कर रहे हो आबू । प्लीज ।"



आबू सलेम हंसता रहा । फिल्म देखने के बाद वह कुछ ज्यादा ही "मस्त" नजर आ रहा था ।



नजमा ने उसका दिमाग डाइवर्ट करने के लिए पूछा---"ये इंटरंव्यू कौन से चेनल पर आएगा?"


"मुहं से निकालो डार्लिग । जिस चेनल पर कहोगी आ जाएगा । सारे चैनल अपने हैं ।"
"उफ्फ ! अब तुम मुझे किसी और ही मूड में लग रहे हो... चलो यहां से ।"


"चलूँगा । मगर एक शर्त पर ।"


" शर्त?"


"तुम्हें भी उसी मूड में आना पडेगा, जिसमें मैं हू।"


नजमा फैसला कर चुकी थी…अब उसे काबू में करना होगा । यह काम केवल बेडरूम में हो सकता था । सो, उसका हाथ पकड़कर सोफे से उठाती हुई बोली----'' चलो तो ।"


हंसता हुआ वह उठकर खड़ा हो गया ।


बाई बांह नजमा के कंधे पर डाल ली । नजमा को उसे इस तरह दरवाजे की तरफ़ ले जाना पड़ रहा था जैसे लोग ज्यादा पी गए शराबी ' को ले जाते हैं ।


पीछे से मोहम्मद इकराम की आवाज आई----"अब मेरा क्या होगा भाई जी ।"



आबू सलेम ठिठका । नजमा को भी ठिठक जाना पड़ा ।



नजमा से अलग होकर वह मोहम्मद इकराम की तरफ मुड़ा । बहूत ही मस्ती वाले मूड में बोला--"घबराते क्यों हो, वादा कर चुका हूं ! " वह नहीं होगा जो 'शोले' वाले कालिया का हुआ था ।"



" म........मेरा मतलब है, मुझें छोडा कब जाएगा?"



"छोड़ा जाएगा? . . .यह वादा तुमसे कब किसने कर लिया कि तुम्हें छोड दिया जाएगा । नहीं, यह वादा मैंने नहीं किया और मेरे अलावा किसी और का वादा यहां चलता नहीं । मैंने केवल इतना कहा था…तुम्हारा वह नहीं होगा 'जो कालिया का हुआ था । सो नहीं होगा और सुनो. . . ।" कहने के वाद वह मोहम्मद इकराम की तरफ बढा । बेहद नजदीक पहुंचकर उसके चेहरे पर झुकते हुए बोला----"खोपडी में भेजा रखते हो तो सोचना भी मत यहाँ से निकलने के बारे में । भारत की सडकों पर देख लिए गए तो पब्लिक वो हालत बना देगी कि जन्म देने वाली मां तक लाश को नहीं पहचान सकेगी । वहाँ पहुंच गए तो वहीं हो जाएगा जो कालिया का हुआ था । अपने उस अंजाम से बचना चाहते हो तो यहीं पड़े रहो । दुनिया में अब तुम्हारे लिए यह और केवल यही एक जगह महफूज है । शुक्र मनाओ --- मैं तुम्हें कभी खलास न करने का वादा कर चुका हूं ! "

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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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मोहम्मद इकराम उसकी तरफ देखता रह गया ।
सिर्फ देखता !

कुछ बोल नहीं सका वह । न मुह से, न आंखों से । उनमें भी वीरानी छाई हुई थी ।




बोलता भी क्या?



था ही क्या बोलने के लिए।



उसके जेहन के हर कोने को मानना पडा…-ठीक ही कह रहा है आबू सलेम नाम का यह आदमी । दुनिया में अब कहीं भी उसके लिए कोई जगह नहीं है । लोग उसे देखते ही इस तरह झिझोंड़ डालेंगे जैसे शेर हिरन को झिझोड़ा करता है और यहां…यहां कब तक रहेगा वह? कब तक रह सकता है? ये जिंदगी तो मौत से भी बदतर हुई !! उस मौत से भी बदतर जिससे डरकर वह कैमरे के सामने वह कह बैठा जिसे कभी कहना नहीं चाहता था ।"



उफ्फ! ये क्या किया उसने । क्या किया । इससे तो बेहतर था मर ही जाता ।



जेहन बार-बार एक ही बात चीखने लगा…"इससे तो वेहतर था तू मर ही जाता मोहम्मद इकराम ।



अपने अंदर मच रहे शोर से परेशान हो गया वह ।



शायद इसी कारण एक झटके से आबू सलेम के कोट की जेब में हाथ डाला ।



पलक झपकते ही उसके हाथ में रिवॉल्वर था ।



कमरे में मोजूद कोई व्यक्ति अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि---


"धांय. . .धांय. . धांय ।”


आबू सलेम को निशाने पर लेकर इकराम ट्रिगर दबातां चला गया । कमरे में अफरातफरी मच गई ! नजमा सहित सभी ने खुद को किसी-न-किसी वस्तु की आड़ में छुपा लिया ।
अलू सलेम को निशाने पर लेकर इकराम ट्रिगर दबाता चला गया ।


कमरे में अफरातफरी मच गई नजमा सहित सभी ने दौड़कर खुद को किसी-न-किसी वस्तु की आड़ में छुपा लिया !


सबने यहीं कल्पना की थी कि वह पलक झपकते ही मारा गया जिसे मौत का पर्यायवाची माना जाता था ।




मगर नहीं ।



सच यह नहीं था ।



सच यह था कि वह अब भी ठीक सामने ख़ड़ा, चेहरे पर ज्वालामुखी और आंखों में अगांरे लिए इकराम को घूर रहा था ।



तीनों गोलियां उसके जिस्म से टकराकर, बगैर अपना करिश्मा दिखाए शहीद हो गई थी ।



उस दृश्य को देखकर मोहम्मद इकराम के चेहरे पर परम आश्चर्य के भाव थे ।



यूं लग रहा था उसे-जैसे सामने जिन्न खडा हो !

वे क्षण इतने थे जिनके कारण इकराम जैसे पड़े लिखे लडके के दिमाग को यह मैसेज नहीं मिल सका----आबू सलेम बुलेट प्रूफ जैकेट पहने हुए है ।



जो हुआ था, उसके लिए तो वह चमत्कार जेैसा था ।


एक चमत्कार जिसे इकराम आंखें फाडे़ देखता रह गया ।


उसने एक शख्स पर गोली चलाई थी । एक नहीं, तीन और फिर भी वह शख्स सामने खड़ा खूंखार नजरों से घूर रहा था । तीनो गोलियां उसके जिस्म से टकराकर यूं छितरा गई थी जैसे रवर की बनी थीं ।


अगर उस क्षण उसे बुलेट प्रूफ जैकेट का ख्याल आ जाता तो अगला फायर उसके चेहरे पर करता क्योंकि वहां इस किस्म का कोई आवरण नहीं हो सकता था ।



परतु तनावपूर्ण क्षणों में डरे हुए आदमी का दिमाग इतना काम कहां करता है?


वह तो वस हकवकाया सा उस चमत्कार को देखता रह गया था जबकि चमत्कारी पुरूष के हलक से गुर्राहट सी निकली----" पकड़ लो इसे ।"


उसके हुक्म के बाद किसे मरना था जो अपनी जान की परवाह करता ।


सो, एक साथ कई तरफ से शूटिंग टीम के लोग इकराम पर झपट पड़े !


मगर कामयाब न हो सके वे ।

उससे पहले ही मोहम्मद इकराम ने रिवाल्वर अपनी कनपटी पर रखा और----" धांय ।”

केवल एक गोली उसके प्राण पखेरु उड़ा ले गई ।


जहां एक पल पहले वह अपनी समस्त इंद्रियों के साथ जीता जागता बैठा था वहां निर्जीव जिस्म पड़ा रह गया ।


कनपटी से भाल्ल भल्ल करता गाढ़ा और गर्म लहू यूं वह रहा था जैसे आत्मा के अभाव में अब भी शरीर में न रहना चहता हो !


रिवाल्वर अभी-भी उसके एक तरफ़ लुढ़के हाथ में फंसा हुआ था ।




सन्नाटा छा गया था चारों तरफ ।



गहरा सन्नाटा ।


आबू सलेम सहित जो जहाँ था, वहीं का वहीँ खड़ा रह गया था ।


सबकी नजरे सिर्फ और सिर्फ खून उगलती लाश पर स्थिर थी ।


कुछ पलों के लिए मानो समय भी रुक गया था !


मगर नहीं, दो ही तो चीजे हैं जो कभी नहीं रुक सकती । समय और हवा ।


हवा आदमी को जीवन देती है और हमेशा गतिमान रहने वाला समय आदमी को बडे-से-बड़े सदमे से उबार लाता है । सबसे पहले आबू सलेम उबरा । बोला……"'समझदार था जो इज्जत की मौत मर गया ।"



कोई और अवाज कमंरे में नहीँ उभरी।


आबू सलेम खालिद मिस्त्री की तरफ़ बढा ।


कैसेट, जो इस वक्त खालिद के हाथ में थी, उसे अपने कब्जे में लेता हुआ बोला…“बेवकूफ भी था । न होता तो इस शूटिंग से पहले मरता ।"


कमरे में अभी भी सन्नाटा छाया रहा ।


"आओ डार्लिंग ।” कहने के साथ वह एक बार फिर नजमा के कंघे पर बांह रखकर दरवाजे की तरफ वढ़ गया ।
"सॉरी संगी डार्लिग । रियली-----आई एम वेरी सॉरी ।" बेडरूम में कदम रखते हुए आबू सलेम ने कहा- "अब देखो न, मैं तुम्हारा मूड दुरुस्त करने वहां ले गया और वहाँ भी.. पता नहीं क्या सूझा कम्बख्त को ।" कहने के साथ उसने कैसेट लापरवाही के साथ वेड की दराज़ के ऊपर डाल दी ।



प्रत्यक्ष में नजमा सदमा खाई संगीता का अभिनय कर रही थी मगर वास्तव में जरा भी सदमे में नहीं थी । जिस पेशे में वह थी उस पेशे के तो श्रृंगार थे ऐसे खून-खराबे।

परंतु।



मोहम्मद इकराम की मोत का अफसोस जरूर था । ऐसे अफसोस भी उसे लक्ष्य से नहीं भटका सकते थे ।



और लक्ष्य था----एक ही प्रहार मे आबू सलेम को बेबस कर देना ।


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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

Post by Jemsbond »



वह खुश-थी क्योंकि वह कैसेट भी यही थी जिसे भारंत की जडों में है मटृठा डालने के इरादे से बनाया गया था ।



बस एक बार आबू सलेम को बेबस करना था ।



उसके बाद ।



कितना आसान था सबकुछ ।



वह विजय-विकास को तहखाने से निकाल लेगी ।


कैसेट कव्जे में होगी ।



कैसेट ही क्यों?



आबू सलेम भी तो कब्जे में होगा ।


उसके बाद------विजय-विकास जाने, उन्हें इसके साथ क्या सुलूक करना है ।



उस वक्त तो उसे और ज्यादा खुशी हुई वल्कि यह कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा कि उस वक्त तो खुशी से नजमा की बांछें ही खिल गई जब उसने आबू सलेम को रिमोट की मदद से दरवाजा अंदर से लॉक करते देखा ।



बेवकूफ ।


मेरे काम को और आसान बना रहा है ।


अब उसकी मदद के लिए बाहर से यहाँ कोई आ भी नहीं सकता ।


रिमोट को लापरवाही के साथ एक तरफ डालते हुए आबू ने कहा…"वेसे मेरे हेडक्वार्टर में, इतने कम समय में इतना खून--खराबा पहले कभी नहीं हुआ । साली किस्मत ही खराब थी जो तुम्हारा मूड चौपट करने वाली घटनाएं एक के बाद एक होती चली गई । पहले जैक उसके वाद मोहम्मद इकराम ।"


नजमा अब भी चुप रही ।


"खैर ।" उसने निर्णायक स्वर में कहा----"अब मूड दुरुस्त करने का एक ही तरीका है ।"



"क्या?" संगीता ने पूछा ।



बगैर किसी लाग लपेट के एक झटके से कह दिया उसने----" तुम कपडे उतार दो ।”


नजमा के दिमाग को मानो एकदम चार सौ चालीस बोल्ट का झटका लगा ।


ऐसा तो उसने सौचा भी नहीं था कि यूं--- इतनी बड़ी बात वह इतने सामान्य अंदाज में कह देगा । इतने सामान्य अंदाज में कि कहने के बाद उसने यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि उसके वाक्य का उसके उपर असर क्या हुआ !!!!
उसने यह तक जानने की केशिश नहीं की कि उसके वाक्य का उसके ऊपर असर क्या हुआ है । बगैर उसकी तरफ देखे वह कमरे के एक कोने में रखे 'सोनी' के सबसे कीमती म्यूजिक सिस्टम की तरफ बढ़ गया था ।



नजमा को उसकी "एविटीविटीज’ से लगा…इस बात में उसे कोई संदेह ही नहीं है कि उसके हुक्म के बाद 'संगीता' वह नहीं कर देगी जो उसने कहा है । नजमा को लगा-इसका मतलब इस कमरे मे पहले भी ऐसा होता रहा है । यकीनन 'संगीता' उसके एक बार कहने मात्र से बगैर कोई ना'-नुकुर किए कपड़े उतार खड़ी हो जाती होगी । तभी तो यह बात उसने इतनी आसानी से कह दी ।



जाहिर है-उसे भी वहीं करना होगा जो संगीता करती रही है ।



और फिर, आबू सलेम का हुक्म टालने की भला हिम्मत भी किसमें हो सकती है ।



फिर वह, वह भी करेगा जो संगीता के साथ करता रहा है ।


परन्तु !


वह तो दूर , इतने खतरनाक पेशे में होने के बावजूद नजमा ने कभी किसी को अपने नाजुक अंग छेडने तक का मौका नहीं दिया था । आबू ने उसके होठ चूमे थे , उसे तो तभी से ग्लानि हो रही थी…आबू को इतना मौका ही क्यों दिया उसने?


नजमा जबरदस्त धर्मसंकट में फंस गई ।



बात उसकी अस्मत तक आ पहुंची री ।


अलू सलेम का कहा वह कर नहीं सकती थी ओर. . .न करने का मतलब था…खुद को उसके संदेह के दायरे में फंसा लेना । जो संगीता उसके कहने से पहले ही कपड़े उतार देती होगी , वह भला अब क्यों नहीं उतारेगी !



हुक्म न मानने का मतलब था-उसके कहर की शिकार होना ।



उसके कहर का अंजाम वह देख चुकी थी ।



क्या करे, क्या न करे !



अभी इसी उूहा - पोह में थी कि आबू सलेम ने म्युजिक सिस्टम आन कर दिया ।



कमरे में संगीत की लहरियाँ लहराने लगी ।


वह पलटा और 'नजमा' को ज्यों की त्यों खडी देखकर चौंक पड़ा ---"अरे! तुम अभी तक यूं ही खडी हो ?"

"" आबू प्लीज ।" वह निड़गिड़ाई--" अभी मूड नहीं है ।"



"मूड बनाने से बनेगा डार्लिंग । अपने आप थोडी वन जाएगा ।" कहने के साथ उसने बाकायदा संगीत की धुन पर थिरकना शुरू कर दिया था…"मुझे तुम्हारा सारे कपड़े उतारकर नाचना याद आ रहा है । वह ! क्या नाची थी तुम । तुम्हें मालूम है--- मेरा तो मूड ही डांस देखने के बाद बनता है और फिर, ज़रा गोर करो गाने पर । तुम्हारी ही नई फिल्प का गाना है । मैंने पर्दे पर देखा था…-क्या डांस किया है तुमने इस गाने पर । मैंने उसी समय सोच लिया था-कपड़े पहनकर तो तुम 'आडियंस' के लिए डांस कर रही हो । मेरे, लिए तो इसी गाने पर कपड़े उतारकर करोगी । वाह ! इस कल्पना से ही मरा जा रहा हूं मैं तो कि जब तुम ठुमके लगाओगी तो_क्या कयामत लगोगी ।"


"आबू प्लीज ......।"



"ओह ! समझा ।" उसकी बात पर जरा भी ध्यान दिए बगेर वह अपनी ही धून में कहता चला गया ----" पिछली बार भी तुमने बगैर 'उसके' ऐसा नहीं किया था ।" कहने के साथ वह एक अलमारी की तरफ बढा ।


उसका एक पट खोला ।


छोटा सा बार था वह ।


' संगीत की स्वर लहरियों पर थिरकते आबू सलेम ने दो पैग बनाए ।

थिरकता हुआ उसके नजदीक आया । एक पैग उसे देता बोला----"लो ।"



कांपते हाथों से नजमा को 'क्रिस्टल’ का गिलास पकडना पड़ा ।


"चलो । इस बार ये काम मैं करता हू। इसका भी अपना अलग मजा होगा ।" कहने के साथ जींस के ऊपर पहनी शर्ट में लगी चेन उसने एक झटके से खोल दी ।


शर्ट के दोनों 'पल्ले' अलग-अलग कंधों पर झूल गए ।


नजमा के दिमाग में आंधियां-सी चल रही थी । उसे लग रहा था…अंब या तो उसका भेद खुलेगा या अस्मत जाएगी । भेद खुलने का मतलब था…उसके साथ विजय-विकास तक की जान को खतरा । तभी आबू की जेब में पड़े मोबाइल ने खुदाई मददगार की तरह नजमा की मदद की !


आबू झुंझला उठा !!
जेब से मोबाइल निकालकर आँन करता भन्नाए हुए स्वर में बोला----"कौन हरामजादा है?"


"क्या बात है आबू डार्लिग । इतने गुस्से में क्यों हो? मैं स्विटज़रतैड से बोल रही दूं। संगीता ।"

"स. . .संगीता?" आबू भयंकर तरीके से चौंका, परंतु अगली - प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाया वह । हलक से चीख निकली । हाथ से मोबाइल निकलकर फर्श पर जा गिरा । वही हालं शराब के गिलास का हुआ ।



नजमा के हाथ में मोजूद शराब से भरा क्रिस्टल का गिलास थाड़ से उसके सिर पर पड़ा था ।


गिलास टूट गया । शराब बिखर गई ।




आबूकी आंखों के सामने रंग-बिरंगे तारे नाच उठे ।



किर भी उसने संभलकर पलटने की कोशिश की ।


मगर ।


जिस नजमा को यह मालूम था, अगर यह संभल गया तो सारे पासे पलट जाएंगे, वह उसे संभलने कहां दे सकती थी? पलटने की 'कोशिश अभी वह कर ही रहा था कि नजमा ने जूडो की दक्ष खिलाडी की मानिन्द एक नपी-तुली 'कराट' उसकी कनपटी पर ठीक वहां मारी जहाँ मारने के परिणाम स्वरूप आबू सलेम बेइंतहा पी गए शराबी की मानिन्द लड़खड़ाया और फिर नजमा के कदमों के नजदीक गिर गया ।


नजमा ने तब भी उसे इतना मौका नहीं दिया कि अगर उसमें कोई 'जान' हो तो उसके पैर पकड़कर खीच सके ।


इधर वह फर्श पर गिरा, उधर नजमा ने एक जोरदार ठोकर उसके जिस्म में जमाई ।


निर्जीव-सा जिस्म कई "पलटियां' खा गया


तब जाकर नजमा ने माना वह कामयाब हो गई है ।



यह मानते ही सबसे पहले उसने अपनी शर्ट की चेन बंद की । आंखों ही में नहीं, पूरे चेहरे पर घृणा के भाव लिए आबू सलेम को घूरा और उसके बाद वह मोबाइल उठाया जिससे अभी भी संगीता की आवाज निकल रही थी…"हेलो हेलो क्या हुआ ?"



“तेरा आबू डार्लिंग मर चुका है ।" नजमा के हलक से गुर्राहट -- सी निकली ।

"क.... .क्या मतलब?" लहजे से जाहिर था कि वह स्विटजरलेंड से बोलने वाली संगीता बुरी तरह से हड़बड़ा गई ----" तुम कौन हो ?"
"रूपहले पर्दे की चमक-दमक और पेसे की हवस से घिरी तुझ जैसी हरामजादी लडकियां लड़कियों के नाम पर कलंक है 1" मुकम्मल धृणा के साथ नजमा कहती चली गई…"मैं सब जान चुकी हूं कि रांउड हाउस के बेडरूम में तू आबू सलेम के साथ क्या क्या करती रही 'है !



" हो कौन तुम?” दूसरी तरफ से कहा गया---"और यह क्या कह रही हो! मेरी समझ में कुछ... ।”


"गो टू हेल !" दा'त भीचकर कहने के बाद नजमा ने संगीता के संदेह के पूरा होने के पाले मोबाइल आँफ कर दिया । गुस्से और धृना के कारण उसका चेहरा अभी भी भभक रहा था । "



खुद को सामान्य करने में उसे आधा मिनट लगा ।



सामान्य होने पर उसने मोबाइल बेड पर फेका । वह कैसेट उठाकर अपनी जेब में ठूंसी जिसमें इकराम का इंटरव्यू था । फिर ए.सी. के स्पिच की तरफ लपकी । उसे अॉन किया । एक बार फिर कमरे के वे दो पत्थर किवाडों की तरह झूल गए जिसे शायद अब नीचे बाले कमरे का दरवाजा कहना मुनासिब है । लगभग दौड़ती सी वह दरवाजे के नजदीक पहुंची । इस बीच आबू सलेम पर उसने एक नजर तक डालने की जहमत नहीं उठाई । नीचे वाले कमरे से उपर देख रहा विजय कह रहा था----" कर क्या रहे है अबू भइया, कभी पट खोलते हैं, कभी बंद कर देते है ।"



“आबू सलेम अब दुनिया का कोई पट खोलने या बंद करने की स्थिति में नहीं है ।" कहते वक्त नजमा के होंठों पर बहुत ही जीवंत मुस्कान थी--' बेहोश हुआ मेरे कदमों में पड़ा है ।”


"यानी फ़तहा" विजय चिल्लाया ।


"पूरी फ. . .त. . .ह ।" नजमा के हलक से निकलने वाले शंब्द बिगडते चले गए और अंतत एक लंबी चीख में तब्दील हो गए । उस चीख के साथ हवा में लहराता हुआ उसका जिस्म तहखाने में आ गिरा ।



विजय अगर ऐन वक्त पर मोखले के नीचे से हट न जाता तो नजमा को उसके ऊपर गिरना था । उसके हट जाने के कारण वह तहखाने के फर्श पर आ गिरी ओंर यंह सारा कमाल था…उसकी पीठ पर पडने वाली एक मात्र जोरदार ठोकर का! हड़बड़ाकर बिजय ने एक कार फिर ऊपर देखा । वहाँ आपू सलेम का चेहरा नजर आ रहा था !
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