#51
ये ही खून हवेली में बिखरा हुआ था . और ये ही रूपा के घर में . रूपा मुझसे झूठ बोल रही थी , मुझसे झूठ . इस बात से मेरे दिल को बहुत ठेस पहुंची थी . मेरी जान , मेरी होने वाली पत्नी . मेरी सरकार मुझसे झूठ बोल रही थी . बेशक जिंदगी से कोई खास ख़ुशी मिली नहीं थी पर फिर भी रूपा एक ऐसी लहर बनकर आई थी जो मुझे सकून देती थी . पर उसका ये झूठ , ये बाते छिपाने की कला अब मुझसे सही नहीं जाती थी .
मैं घर से बाहर आया और उसकी दहलीज पर दिवार का सहारा लेकर बैठ गया . कुछ लम्हों के लिए मैंने अपनी आँखे मूँद ली .
“अरे, यहाँ क्यों बैठा है तुझे ठण्ड लग जानी है , पानी बस गर्म हुआ ही .ले तब तक चाय पी ले. ” रूपा मेरे पास चाय का कप लिए खड़ी थी .
“इच्छा नहीं है मेरी ” मैंने कहा
रूपा- ये तो पहली बार हुआ मेरे सरकार चाय के लिए मना कर रहे है , क्या बात है .
मैं- तू मुझसे कितना प्यार करती है , कितना चाहती है मुझे.
रूपा- ये कैसा सवाल है देव
मैं- बता मुझे कितना चाहती है तू
रूपा मेरे पास बैठी और बोली- तू बता तुझे कैसे लगेगा की मैं तुझे कितना चाहती हूँ . तू पैमाना ला जो तुझे तसल्ली दे की मैं तुझे कितना चाहती हूँ .
रूपा ने मेरा हाथ कसकर पकड लिया.
रूपा- मेरी मोहब्बत के बारे में मुझसे ना पूछ सनम, तेरे दिल से पूछ . वो बता देगा .
मैं- मैं परेशां हूँ रूपा
रूपा- समझती हूँ ,
मैं- क्या वो नागिन तेरे पास आई थी .
रूपा- मेरे पास क्यों आएगी, तुझे तो मालूम है उस दिन मजार में हमारा झगड़ा हुआ था .
मैं- जानता हु पर तू चिकित्सक भी है यदि वो यहाँ इलाज करवाने आई हो .
रूपा- ऐसा मुमकिन नहीं .
मैं- क्यों
रूपा- वो श्रेष्ट है , उसे मेरी जरुरत नहीं
मैं- तो फिर ये खून किसका है इन्सान का तो नहीं है . इस रक्त को मैंने पहले भी देखा है .
रूपा- अच्छा तो इसलिए परेशां है तू, तू भी न देव, ये तो नीलगाय का रक्त है , इसमें कुछ दुर्लभ गुण होते है . कुछ कामो में इसका रक्त उपयोग किया जाता है . ये जो मेरी पीठ पर जख्म है उसमे इस रक्त और कुछ जड़ी बूटियों को मिलाकर एक लेप बनाते है जो मुझे आराम देता है और जल्दी ही त्वचा पहले सी हो जाएगी.
रूपा ने मेरे गाल पर हल्का सा किस किया और बोली- मैं जानती हूँ तेरे लिए ये सब अजीब है , पर तुझे आदत हो जाएगी. ये दुनिया अपने आप में रंगीली है , इसमें सब कुछ है .फ़िलहाल तो बीच में है तो परेशां है . मैं- क्या तू भी तेरी माँ जैसी जादूगरनी है .
रूपा मेरी बात सुनकर जोर जोर से हंसने लगी .
“तू भी न , अगर मैं जादूगरनी होती तो क्या मेरा ये हाल होता ” उसने मुझसे पूछा.
मैं- ठीक है मैं चलता हूँ रात बहुत हुई.
रूपा- चाहे तो रुक जा मेरे संग
मैं- फिर कभी .
मैं उठा और वहां से चल दिया. कुछ कदम ही चला था की रूपा ने मुझे आवाज दी.
“देव रुक जरा. ”
मैं रुक गया . वो मेरे पास आई .
“तू चाहे मुझ पर लाख शक करना पर मेरी मोहब्बत पर कभी शक न करना. सारी दुनिया के ताने सुन सकती हु, पर तेरी टेढ़ी नजर नहीं सह पाऊँगी. ये नूर मुझ पर तूने चढ़ाया है इसे उतरने न देना . ” बस इतना कह कर वो वापिस हो गयी. मेरे जवाब का इंतज़ार नहीं किया उसने.
और मैं उसे जवाब भी देता तो क्या मैं खुद एक चुतियापे में जी रहा था . रूपा के यहाँ से तो चल पड़ा था पर मैं घर नहीं गया मैं मजार पर गया . मैं बस उस पेड़ से लिपट कर रोता रहा . ऐसा लगा जैसे मेरी माँ ने मुझे अपने आंचल तले छुपा लिया हो.
“कभी कभी ऐसे रो भी लेना चाहिए, मन हल्का हो जाता है ” बाबा ने मुझे आवाज देते हुए कहा.
मैं बाबा के पास गया.
मैं- बाबा, मेरे पिता ने जो मंदिर तोडा था मैं उसे दुबारा बनवाना चाहता हूँ .
बाबा ने मुझे बैठने का इशारा किआ.
बाबा- बेशक तुम बनवा दोगे . पर उसका मान कहाँ से लाओगे . वहां जो पाप हुआ था उसके बदले का पुन्य कहाँ से लाओगे . बड़ी मुश्किल से उस मासूम ने खुद को संभाला है तुम मंदिर तो बनवा दोगे पर वो जब जब उसे देखेगी उसका मन रोयेगा. विचार करो .
मैं- तो क्या करू मैं.
बाबा- उसे उसके हाल पर छोड़ दो . फिलहाल मेरी प्राथमिकता तुम्हारी सुरक्षा है . एक तो तुम कहना नहीं मानते हो . दिन रात बस भटकते रहते हो . ये राते ठीक नहीं है , एक बार तुम बड़ी मुश्किल से बचे हो हर बार किस्मत साथ नहीं देगी. कुछ दिनों के लिए तुम तुम्हारी माँ की हवेली में क्यों नहीं चले जाते, तुम्हारी हर जरुरत की व्यवस्था मैं कर दूंगा.
“पर ऐसा क्या हुआ बाबा, जो आप इतने चिंतित है ” मैंने कहा
बाबा- समय बदल रहा है मुसाफिर. ये राते अब खामोश नहीं है . चरवाहों के तिबारे पर हमला हुआ है , उसे तहस नहस कर दिया गया है .
मैं- किसने किया और क्यों .
बाबा- पड़ताल जारी है .
मैं- मेरा क्या लेना देना बाबा तिबारे से
बाबा- सब तुझसे ही है मेरे बच्चे, सब तुझसे ही है .
मैं- क्या बाबा
बाबा- मुझे लगता था की तू जादूगर बनेगा. पर अभी तक लक्षण दिखे नहीं . इसी बात ने मुझे हैरान किया हुआ है.
मैं- क्या ये जरुरी है बाबा
बाबा- नहीं जरुरी नहीं , पर बस मुझे लगा था . खैर, कल तू हवेली चलेगा मेरे साथ
मैं- एक शर्त पर
बाबा- क्या
मैं- आप दूसरी मंजिल को खोल देंगे.
बाबा ने एक गहरी सांस ली और बोले- वहां कुछ नहीं है
मैं- कुछ नहीं है तो फिर कैसा ताला,
बाबा - कल शाम हम वहां चलेंगे .
मैंने हाँ में सर हिला दिया.
मैं वापिस मुड लिया था . अपने आप में खोया हुआ मैं खेत में बनी झोपडी की तरफ जा रहा था की रौशनी ने मेरा ध्यान खींच लिया. झोपडी में हुई रौशनी दूर से ही मुझे दिख रही थी . यहाँ कौन हो सकता है , शायद करतार होगा. मैंने सोचा .और झोपडी की तरफ बढ़ लिया. मैंने हलके से परदे को खोला और जो देखा............... देखता ही रह गया.
Adultery गुजारिश
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Re: Adultery गुजारिश
सैलाब दर्द का Running....वासना की मारी औरत की दबी हुई वासना Running....Thrillerकैसा होता अगर Running....
Thriller इंसाफ ....बहुरुपिया शिकारी ....
गुजारिश ....वर्दी वाला गुण्डा / वेदप्रकाश शर्मा ....
प्रीत की ख्वाहिश ....अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) ....
कमसिन बहन .... साँझा बिस्तर साँझा बीबियाँ.... द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A tell of Tilism}by rocksanna .... अनौखी दुनियाँ चूत लंड की .......क़त्ल एक हसीना का
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Re: Adultery गुजारिश
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Re: Adultery गुजारिश
#52
मेरे बिस्तर पर चुदाई चल रही थी शकुन्तला पर विक्रम चाचा चढ़े हुए थे . सारे जहाँ को भूल कर दोनों एक दुसरे में खोये हुए थे . एक औरत जिसका पति बस कुछ दिन पहले ही मरा था , वो दुसरे मर्द की बाँहों में थी . पर मुझे परवाह नहीं थी . मुझे हैरानी थी की मेरी झोपडी में ये दोनों कर क्या रहे है क्योंकि चाचा चाहता तो उसे बाग़ पर भी ले जा सकता था . खैर, मुझे चुदाई में कोई इंटरेस्ट नहीं था. मैं बस उनकी बाते सुनना चाहता था . इसलिए घूम कर मैं झोपडी की पिछली तरफ चला गया. जल्दी ही दोनों की बाते शुरू हो गयी तो मैं समझ गया की चुदाई खत्म हुई.
विक्रम- तुमने देव से झगडा करके मामला बिगाड़ दिया है ,
सेठानी- अब जो हुआ वो हुआ, वैसे भी वो बहुत ही बदतमीज है , कुछ ही मुलाकातों में उसने बता दिया था की मेरी लेना चाहता है वो.
विक्रम- इस बारे में अपनी बात हो तो गई थी , और एक दो बार चढ़ लेता तो क्या घिस जाता तुम्हारा.
सेठानी- मैं गयी थी उसके पास. मैं तैयार थी बदले में मैं लाला की जान की हिफाजत ही तो चाहती थी .
विक्रम- हम्म
सेठानी- पर जो हुआ वो हुआ.
विक्रम- पर मामला बिगड़ गया है .
सेठानी- उडती उडती खबर है की वो किसी लड़की के साथ घूमता है
विक्रम- सतनाम की लड़की है वो. न जाने कहा से ये टकरा गया उस से . मुझे लगता है की देव प्यार में है उस से, सतनाम को उसके घर जाके धमकी दे आया.
सेठानी- सच में, खैर, डरने वालो में से तो नहीं है वो . बिलकुल अपने बाप पर गया है.
विक्रम- पर युद्ध नहीं है वो.
सेठानी- तो क्या सोचा तुमने , कैसे करना है ये सब
विक्रम- सतनाम देख लेगा.
सेठानी- वो सांप पागल हुए घूम रहा है , हमारे आदमियों को मार रहा है .कुछ करते क्यों नहीं उसका.
विक्रम- मैंने सोचा है उसके बारे में इस पूनम को एक तांत्रिक सपेरा बुलाया है मैंने उमीद तो है काम कर देगा वो .
सेठानी- पर उसे मारूंगी मैं .
विक्रम- क्यों हाथ गंदे करती हो .
सेठानी- तुम तो चुप ही रहो . खुद जैसे दूध के धुले हो. इस कहानी के तीसरे सूत्रधार तुम ही तो हो.
विक्रम- श्ह्ह्हह्ह, ऐसी बाते नहीं करते , आजकल हवाओ में उडती है बाते
शकुन्तला- पर मुझे आजतक ये समझ नहीं आया की तुमने देव को क्यों रखा अपने घर जब की उसके अपनों ने ठुकरा दिया उसे.
विक्रम- ऐसा करना जरुरी था , उस घटना के बाद गाँव में छवि बिगड़ गयी थी तो उसे सुधारने का इस से अच्छा क्या मौका था . दूसरा नागेश का हुक्म था . तीसरा, बेशक ठाकुर साहब ने देव को कभी मन से अपना पोता नहीं माना था पर युद्ध की मौत के बाद उन्होंने मुझे बहुत सी जमीन दी. पैसे दिए इसे पालने को . और आज देखो मैं कहा हूँ .
सेठानी- और वो सोना-चांदी कहाँ गया .
विक्रम- मुझे नहीं मालूम
सेठानी- झूठ मत बोलो, कम से कम मुझे तो बता दो.
विक्रम- सतनाम ने छुपाये है कहीं पर वो . पर मुझे लगता है की उसने बेच खाए होंगे.
सेठानी- कभी पूछा नहीं तुमने
विक्रम- पूछा था , पर हर बार वही जवाब .
सेठानी- तो देव का क्या होगा. खबर है की नागेश लौट आया है.
विक्रम- अभी पक्की नहीं हुई है खबर. पर सुलतान जिस हिसाब से भागदौड़ कर रहा है कुछ तो बात लगती है .
सेठानी- देव की मौत का दुःख होगा तुम्हे .
विक्रम- दुःख तो मुझ को युद्ध की मौत का भी नहीं हुआ था .
ये ऐसी बाते थी जो मर दिल तोड़ गयी थी . साला इस दुनिया में हर कोई मतलब परस्त ही था . सब एक दुसरे को इस्तेमाल कर रहे थे ,कितने काले मन के थे ये लोग . दिल किया की अभी इस वक्त इनकी गांड तोड़ दू, पर फिर खुद को रोक लिया . अभी और सुननी थी इनकी बाते. देखना था कितना जहर था दुनिया में.
विक्रम- वैसे हालात अभी और बिगड़ेंगे, देव सतनाम को धमका आया , मोना कुछ दिनों से गायब है नौकरी भी छोड़ दी उसने, देव को लगता है की मोना के गायब होने में सतनाम का हाथ है .
सेठानी- तुमने सतनाम से बात की .
विक्रम- वो चाहता तो मोना को कभी का मरवा देता ,वो कभी ऐसा नहीं करेगा. छोड़ इन बातो को , मैं तुझे बताना तो भूल ही गया . सतनाम अपने छोटे बेटे की शादी कर रहा है इसी महीने .
सेठानी- बताया नहीं उसने मुझे .
विक्रम- अचानक से ही हुआ सब .
सेठानी- मोना तो जाएगी नहीं, आरती कौन करेगा
विक्रम- सोचने वाली बात है . मुझे लगता है पाली आएगी
सेठानी- मुश्किल है , मुझे नहीं लगता वो आएगी.
विक्रम- छोड़ न तू भी क्या लेके बैठ गयी , ये रात बड़ी मुश्किल से मिली है जब तुम मेरी बाँहों में हो सोचा था दो तीन बार लूँगा पर तुम टाइम पास कर रही हो .
शकुन्तला- अच्छा जी , ये बात है तो आओ मैदान में .
वो दोनों फिर से शुरू हो गए. मेरा दिल किया की अभी फूंक दू इस झोपडी को . पर मैं अपने गुस्से को पीते हुए वहां से चल दिया. ये रात साली बड़ी लम्बी हो गयी थी ख़त्म ही नहीं हो रही थी . पर मैंने अपना फैसला ले लिया था की सुबह मैं अपना रास्ता चुन लूँगा, वो रास्ता जिस पर मुझे अब अकेले चलना था .
मेरे बिस्तर पर चुदाई चल रही थी शकुन्तला पर विक्रम चाचा चढ़े हुए थे . सारे जहाँ को भूल कर दोनों एक दुसरे में खोये हुए थे . एक औरत जिसका पति बस कुछ दिन पहले ही मरा था , वो दुसरे मर्द की बाँहों में थी . पर मुझे परवाह नहीं थी . मुझे हैरानी थी की मेरी झोपडी में ये दोनों कर क्या रहे है क्योंकि चाचा चाहता तो उसे बाग़ पर भी ले जा सकता था . खैर, मुझे चुदाई में कोई इंटरेस्ट नहीं था. मैं बस उनकी बाते सुनना चाहता था . इसलिए घूम कर मैं झोपडी की पिछली तरफ चला गया. जल्दी ही दोनों की बाते शुरू हो गयी तो मैं समझ गया की चुदाई खत्म हुई.
विक्रम- तुमने देव से झगडा करके मामला बिगाड़ दिया है ,
सेठानी- अब जो हुआ वो हुआ, वैसे भी वो बहुत ही बदतमीज है , कुछ ही मुलाकातों में उसने बता दिया था की मेरी लेना चाहता है वो.
विक्रम- इस बारे में अपनी बात हो तो गई थी , और एक दो बार चढ़ लेता तो क्या घिस जाता तुम्हारा.
सेठानी- मैं गयी थी उसके पास. मैं तैयार थी बदले में मैं लाला की जान की हिफाजत ही तो चाहती थी .
विक्रम- हम्म
सेठानी- पर जो हुआ वो हुआ.
विक्रम- पर मामला बिगड़ गया है .
सेठानी- उडती उडती खबर है की वो किसी लड़की के साथ घूमता है
विक्रम- सतनाम की लड़की है वो. न जाने कहा से ये टकरा गया उस से . मुझे लगता है की देव प्यार में है उस से, सतनाम को उसके घर जाके धमकी दे आया.
सेठानी- सच में, खैर, डरने वालो में से तो नहीं है वो . बिलकुल अपने बाप पर गया है.
विक्रम- पर युद्ध नहीं है वो.
सेठानी- तो क्या सोचा तुमने , कैसे करना है ये सब
विक्रम- सतनाम देख लेगा.
सेठानी- वो सांप पागल हुए घूम रहा है , हमारे आदमियों को मार रहा है .कुछ करते क्यों नहीं उसका.
विक्रम- मैंने सोचा है उसके बारे में इस पूनम को एक तांत्रिक सपेरा बुलाया है मैंने उमीद तो है काम कर देगा वो .
सेठानी- पर उसे मारूंगी मैं .
विक्रम- क्यों हाथ गंदे करती हो .
सेठानी- तुम तो चुप ही रहो . खुद जैसे दूध के धुले हो. इस कहानी के तीसरे सूत्रधार तुम ही तो हो.
विक्रम- श्ह्ह्हह्ह, ऐसी बाते नहीं करते , आजकल हवाओ में उडती है बाते
शकुन्तला- पर मुझे आजतक ये समझ नहीं आया की तुमने देव को क्यों रखा अपने घर जब की उसके अपनों ने ठुकरा दिया उसे.
विक्रम- ऐसा करना जरुरी था , उस घटना के बाद गाँव में छवि बिगड़ गयी थी तो उसे सुधारने का इस से अच्छा क्या मौका था . दूसरा नागेश का हुक्म था . तीसरा, बेशक ठाकुर साहब ने देव को कभी मन से अपना पोता नहीं माना था पर युद्ध की मौत के बाद उन्होंने मुझे बहुत सी जमीन दी. पैसे दिए इसे पालने को . और आज देखो मैं कहा हूँ .
सेठानी- और वो सोना-चांदी कहाँ गया .
विक्रम- मुझे नहीं मालूम
सेठानी- झूठ मत बोलो, कम से कम मुझे तो बता दो.
विक्रम- सतनाम ने छुपाये है कहीं पर वो . पर मुझे लगता है की उसने बेच खाए होंगे.
सेठानी- कभी पूछा नहीं तुमने
विक्रम- पूछा था , पर हर बार वही जवाब .
सेठानी- तो देव का क्या होगा. खबर है की नागेश लौट आया है.
विक्रम- अभी पक्की नहीं हुई है खबर. पर सुलतान जिस हिसाब से भागदौड़ कर रहा है कुछ तो बात लगती है .
सेठानी- देव की मौत का दुःख होगा तुम्हे .
विक्रम- दुःख तो मुझ को युद्ध की मौत का भी नहीं हुआ था .
ये ऐसी बाते थी जो मर दिल तोड़ गयी थी . साला इस दुनिया में हर कोई मतलब परस्त ही था . सब एक दुसरे को इस्तेमाल कर रहे थे ,कितने काले मन के थे ये लोग . दिल किया की अभी इस वक्त इनकी गांड तोड़ दू, पर फिर खुद को रोक लिया . अभी और सुननी थी इनकी बाते. देखना था कितना जहर था दुनिया में.
विक्रम- वैसे हालात अभी और बिगड़ेंगे, देव सतनाम को धमका आया , मोना कुछ दिनों से गायब है नौकरी भी छोड़ दी उसने, देव को लगता है की मोना के गायब होने में सतनाम का हाथ है .
सेठानी- तुमने सतनाम से बात की .
विक्रम- वो चाहता तो मोना को कभी का मरवा देता ,वो कभी ऐसा नहीं करेगा. छोड़ इन बातो को , मैं तुझे बताना तो भूल ही गया . सतनाम अपने छोटे बेटे की शादी कर रहा है इसी महीने .
सेठानी- बताया नहीं उसने मुझे .
विक्रम- अचानक से ही हुआ सब .
सेठानी- मोना तो जाएगी नहीं, आरती कौन करेगा
विक्रम- सोचने वाली बात है . मुझे लगता है पाली आएगी
सेठानी- मुश्किल है , मुझे नहीं लगता वो आएगी.
विक्रम- छोड़ न तू भी क्या लेके बैठ गयी , ये रात बड़ी मुश्किल से मिली है जब तुम मेरी बाँहों में हो सोचा था दो तीन बार लूँगा पर तुम टाइम पास कर रही हो .
शकुन्तला- अच्छा जी , ये बात है तो आओ मैदान में .
वो दोनों फिर से शुरू हो गए. मेरा दिल किया की अभी फूंक दू इस झोपडी को . पर मैं अपने गुस्से को पीते हुए वहां से चल दिया. ये रात साली बड़ी लम्बी हो गयी थी ख़त्म ही नहीं हो रही थी . पर मैंने अपना फैसला ले लिया था की सुबह मैं अपना रास्ता चुन लूँगा, वो रास्ता जिस पर मुझे अब अकेले चलना था .
सैलाब दर्द का Running....वासना की मारी औरत की दबी हुई वासना Running....Thrillerकैसा होता अगर Running....
Thriller इंसाफ ....बहुरुपिया शिकारी ....
गुजारिश ....वर्दी वाला गुण्डा / वेदप्रकाश शर्मा ....
प्रीत की ख्वाहिश ....अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) ....
कमसिन बहन .... साँझा बिस्तर साँझा बीबियाँ.... द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A tell of Tilism}by rocksanna .... अनौखी दुनियाँ चूत लंड की .......क़त्ल एक हसीना का
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Re: Adultery गुजारिश
फिलहाल मेरी प्राथमिकता थी तांत्रिक से नागिन को बचाना. पूनम की रात ठीक दो दिन बाद थी इस रात के, मुझे जो करना था इसी समय में करना था . मैं समझ गया था की मंदिर के तीन चोर कौन कौन थे, सतनाम, लाला और विक्रम . विक्रम जिसे मैं अपने बाप सा समझता था वो मुझे सिर्फ मेरी दौलत के लिए पाल रहा था . वो दौलत जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था .
दिल साला बुझ सा गया था . जी चाहता था की मैं खूब रोऊ पर नहीं . इन आंसुओ को पीना था मुझे. मोना, नागिन, नागेश, रूपा . और ये तीन दुश्मन इनके बारे में सोचते सोचते मेरा जी घबराने लगा था . मुझे चक्कर आने लगा था .पर इस से पहले की मैं बिखर कर गिर जाता किसी की बाँहों ने थाम लिया मुझे.............................
#53
“खामोश रातो में यु अकेले नहीं भटका करते मुसाफिर ”
मैंने देखा ये रूपा थी.
“तुम यहाँ ,इस समय ” मैंने कहा
रूपा- तुम भी तो हो यहाँ, इस समय .
मैं- मेरा क्या है , मैं तो मुसाफिर हूँ भला मेरा क्या ठिकाना और वैसे भी इस जहाँ से बेगाना हु ,
रूपा- पर ऐसे कैसे फिरता है तू, क्या हाल है तेरा, मैं अगर थाम न लेती तो गिर जाता .
मैं- अच्छा होता जो गिर जाता
रूपा- क्या हुआ
मैं- जाने दे, ये गम भी मेरा ये तन्हाई भी मेरी
रूपा- मैं भी तो तेरी ही हूँ .
मैंने रूपा को सारी बात बताई की कैसे विक्रम मुझे अपने लालच के लिए पाल रहा था .
“तुझे किसी बात से घबराने की जरुरत नहीं है तेरे साथ मैं खड़ी हूँ , मेरे होते तुझे कुछ नहीं होगा. सावित्री जैसे सत्यवान के लिए यमराज के सामने खड़ी थी , तेरे और तेरे दुश्मनों के बीच एक दिवार है , उस दिवार का नाम रूपा है . ” रूपा ने कहा था .
“सावित्री पत्नी थी सत्यवान की ” मैंने कहा .
रूपा ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- चल मेरे साथ .
मैं- कहाँ
रूपा- चल तो सही .
मुझे लेकर रूपा मजार पर आ गयी.
“अब यहाँ क्यों ले आई . ”मैंने कहा
रूपा ने जलते दिए को अपनी हथेली पर रखा और बोली- पीर साहब को साक्षी मानकर मैं तुझे वचन देती हूँ की मेरी मांग में तेरा सिंदूर होगा. मैं तुझे वचन देती हूँ की तू दिल है तो मैं धड़कन बनूँगी, मैं हर कदम तेरे साथ चलूंगी . आज मेरे हाथ में ये दिया है , कुछ दिन बाद इसी अग्नि के सामने मैं तेरे संग फेरे लुंगी. आज से पंद्रह दिन बाद तू मेरे घर आना , मेरे पिता से मेरा हाथ मांगना. मैं इंतज़ार करुँगी. मुसाफिर तेरे सफ़र की मंजिल तेरे सामने खड़ी है “
रूपा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया.
“तैयारिया कर ले मुसाफिर, ” उसने मेरे कान में कहा.
इस से पहले मैं उसे जवाब दे पाता बाबा की आवाज आई- इबादत की जगह है ये ,
मैं- इश्क से बड़ी क्या इबादत भला .
बाबा- सो तो है , इतनी सुबह सुबह कैसे.
रूपा- हम जैसो की क्या रात और क्या सुबह बाबा . मैं तो इसी समय आती हु,
बाबा- मैंने इस से पूछा था
बाबा ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा.
मैं- बाबा , मैं मकान बनाना चाहता हूँ
बाबा- अच्छी बात है पर समय ठीक नहीं है . और तुम्हारे पास घर तो है ही .
बाबा का इशारा हवेली की तरफ था.
“रूपा, चा बना ला जरा ” बाबा ने रूपा को वहां से भेजा
बाबा- फिजा में एक गर्मी सी है , वक्त करवट ले रहा है मुसाफिर, जल्दी न कर .
मैंने देखा बाबा के झोले में कुछ फडफडा रहा था,
मैं- क्या है झोले में
बाबा- कुछ नहीं , तू तैयार रहना आज शाम हम चलेंगे हवेली .
मैंने हां में सर हिला दिया. तब तक रूपा चाय ले आई, सर्दी में गर्म चाय ने थोडा आराम दिया पर दिमाग में अभी भी विक्रम चाचा और शकुन्तला की बाते घूम रही थी . मैंने देखा रूपा भी बड़े गौर से बाबा के झोले को घुर रही थी .
एक मन किया की तांत्रिक वाली बात बता दू इन दोनों को पर फिर खुद को रोक लिया. क्योंकि मेरे दिमाग में एक बात और थी .
मैं- बाबा, अब जबकि मैं जानता हूँ की मंदिर के असली चोर कौन कौन थे तो क्यों न पंचायत बुलाई जाये और भूल सुधारी जाए.
बाबा- गड़े मुर्दे उखाड़ने का कोई फायदा नहीं और वैसे भी तुम्हारे पास क्या सबूत है वो लोग साफ़ मना कर देंगे फिर क्या करोगे तुम. बताओ
बाबा की बात सही थी.
मैं- तो क्या करू मैं .
बाबा- फ़िलहाल तो शांत रहो . अभी जाओ तुम दोनों
रूपा- मैं रुकुंगी, सफाई करके जाउंगी.
मैं-मैं जाता हूँ , रूपा दो मिनट आना जरा .
मैं रूपा को बाहर लाया.
रूपा- क्या हुआ.
मैं- क्या तू मालूम कर सकती है बाबा के झोले में क्या है .
रूपा- नहीं .
मैं- ठीक है चलता हूँ फिर.
मैं घर की तरफ चल पड़ा. सरोज शायद थोड़ी देर पहले उठी ही थी .
“कहाँ थे तुम रात भर ” पूछा उसने.
मैं- क्या मालूम कहाँ था , बस अपना कुछ सामान लेने आया हूँ . मैं इस घर को छोड़ कर जा रहा हूँ .
दिल साला बुझ सा गया था . जी चाहता था की मैं खूब रोऊ पर नहीं . इन आंसुओ को पीना था मुझे. मोना, नागिन, नागेश, रूपा . और ये तीन दुश्मन इनके बारे में सोचते सोचते मेरा जी घबराने लगा था . मुझे चक्कर आने लगा था .पर इस से पहले की मैं बिखर कर गिर जाता किसी की बाँहों ने थाम लिया मुझे.............................
#53
“खामोश रातो में यु अकेले नहीं भटका करते मुसाफिर ”
मैंने देखा ये रूपा थी.
“तुम यहाँ ,इस समय ” मैंने कहा
रूपा- तुम भी तो हो यहाँ, इस समय .
मैं- मेरा क्या है , मैं तो मुसाफिर हूँ भला मेरा क्या ठिकाना और वैसे भी इस जहाँ से बेगाना हु ,
रूपा- पर ऐसे कैसे फिरता है तू, क्या हाल है तेरा, मैं अगर थाम न लेती तो गिर जाता .
मैं- अच्छा होता जो गिर जाता
रूपा- क्या हुआ
मैं- जाने दे, ये गम भी मेरा ये तन्हाई भी मेरी
रूपा- मैं भी तो तेरी ही हूँ .
मैंने रूपा को सारी बात बताई की कैसे विक्रम मुझे अपने लालच के लिए पाल रहा था .
“तुझे किसी बात से घबराने की जरुरत नहीं है तेरे साथ मैं खड़ी हूँ , मेरे होते तुझे कुछ नहीं होगा. सावित्री जैसे सत्यवान के लिए यमराज के सामने खड़ी थी , तेरे और तेरे दुश्मनों के बीच एक दिवार है , उस दिवार का नाम रूपा है . ” रूपा ने कहा था .
“सावित्री पत्नी थी सत्यवान की ” मैंने कहा .
रूपा ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- चल मेरे साथ .
मैं- कहाँ
रूपा- चल तो सही .
मुझे लेकर रूपा मजार पर आ गयी.
“अब यहाँ क्यों ले आई . ”मैंने कहा
रूपा ने जलते दिए को अपनी हथेली पर रखा और बोली- पीर साहब को साक्षी मानकर मैं तुझे वचन देती हूँ की मेरी मांग में तेरा सिंदूर होगा. मैं तुझे वचन देती हूँ की तू दिल है तो मैं धड़कन बनूँगी, मैं हर कदम तेरे साथ चलूंगी . आज मेरे हाथ में ये दिया है , कुछ दिन बाद इसी अग्नि के सामने मैं तेरे संग फेरे लुंगी. आज से पंद्रह दिन बाद तू मेरे घर आना , मेरे पिता से मेरा हाथ मांगना. मैं इंतज़ार करुँगी. मुसाफिर तेरे सफ़र की मंजिल तेरे सामने खड़ी है “
रूपा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया.
“तैयारिया कर ले मुसाफिर, ” उसने मेरे कान में कहा.
इस से पहले मैं उसे जवाब दे पाता बाबा की आवाज आई- इबादत की जगह है ये ,
मैं- इश्क से बड़ी क्या इबादत भला .
बाबा- सो तो है , इतनी सुबह सुबह कैसे.
रूपा- हम जैसो की क्या रात और क्या सुबह बाबा . मैं तो इसी समय आती हु,
बाबा- मैंने इस से पूछा था
बाबा ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा.
मैं- बाबा , मैं मकान बनाना चाहता हूँ
बाबा- अच्छी बात है पर समय ठीक नहीं है . और तुम्हारे पास घर तो है ही .
बाबा का इशारा हवेली की तरफ था.
“रूपा, चा बना ला जरा ” बाबा ने रूपा को वहां से भेजा
बाबा- फिजा में एक गर्मी सी है , वक्त करवट ले रहा है मुसाफिर, जल्दी न कर .
मैंने देखा बाबा के झोले में कुछ फडफडा रहा था,
मैं- क्या है झोले में
बाबा- कुछ नहीं , तू तैयार रहना आज शाम हम चलेंगे हवेली .
मैंने हां में सर हिला दिया. तब तक रूपा चाय ले आई, सर्दी में गर्म चाय ने थोडा आराम दिया पर दिमाग में अभी भी विक्रम चाचा और शकुन्तला की बाते घूम रही थी . मैंने देखा रूपा भी बड़े गौर से बाबा के झोले को घुर रही थी .
एक मन किया की तांत्रिक वाली बात बता दू इन दोनों को पर फिर खुद को रोक लिया. क्योंकि मेरे दिमाग में एक बात और थी .
मैं- बाबा, अब जबकि मैं जानता हूँ की मंदिर के असली चोर कौन कौन थे तो क्यों न पंचायत बुलाई जाये और भूल सुधारी जाए.
बाबा- गड़े मुर्दे उखाड़ने का कोई फायदा नहीं और वैसे भी तुम्हारे पास क्या सबूत है वो लोग साफ़ मना कर देंगे फिर क्या करोगे तुम. बताओ
बाबा की बात सही थी.
मैं- तो क्या करू मैं .
बाबा- फ़िलहाल तो शांत रहो . अभी जाओ तुम दोनों
रूपा- मैं रुकुंगी, सफाई करके जाउंगी.
मैं-मैं जाता हूँ , रूपा दो मिनट आना जरा .
मैं रूपा को बाहर लाया.
रूपा- क्या हुआ.
मैं- क्या तू मालूम कर सकती है बाबा के झोले में क्या है .
रूपा- नहीं .
मैं- ठीक है चलता हूँ फिर.
मैं घर की तरफ चल पड़ा. सरोज शायद थोड़ी देर पहले उठी ही थी .
“कहाँ थे तुम रात भर ” पूछा उसने.
मैं- क्या मालूम कहाँ था , बस अपना कुछ सामान लेने आया हूँ . मैं इस घर को छोड़ कर जा रहा हूँ .
सैलाब दर्द का Running....वासना की मारी औरत की दबी हुई वासना Running....Thrillerकैसा होता अगर Running....
Thriller इंसाफ ....बहुरुपिया शिकारी ....
गुजारिश ....वर्दी वाला गुण्डा / वेदप्रकाश शर्मा ....
प्रीत की ख्वाहिश ....अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) ....
कमसिन बहन .... साँझा बिस्तर साँझा बीबियाँ.... द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A tell of Tilism}by rocksanna .... अनौखी दुनियाँ चूत लंड की .......क़त्ल एक हसीना का
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Re: Adultery गुजारिश
मेरी बात ने जैसे सरोज को सुन्न सा कर दिया था . कुछ पलो के लिए उसे समझ ही नहीं आया की मैंने क्या कह दिया उसने.
“क्या कहा तूने , घर छोड़ कर जा रहा है ” उसका गला जैसे रुंध सा गया .
मैं-मुझे कही जाना है और मैं वापिस शयद नहीं लौट पाउँगा.
सरोज-पर ऐसा क्या हुआ, ये तुम्हारा अपना घर है .
मैं-फिर कभी बताऊंगा.
मैं अपने कमरे में आया जितना सामान मुझे चाहिए था मैंने दो बैग में भर लिया . और वहां से वापिस हो गया. सरोज रोकती रह गयी पर मैं रुका नहीं . उसने रो रोकर पूछा पर मैं चाह कर भी उसे उसके पति की करतूतों के बारे में बता न सका.
बैग मैंने गाडी में डाले और जूनागढ़ पहुँच गया , मोना अभी तक नहीं वापिस आई थी. मेरे लिए बड़ी चिंता की बात थी ये.
“कुछ तो मालूम होगा, ” मैंने नौकर से कहा .
नौकर- हुकुम, बड़ी रानी सा भी दो तीन बार मेमसाहब के बारे में पूछ गयी
मैं- सतनाम के घर में क्या हाल है .
नौकर- शादी की तैयारिया चल रही है ,
मैं- ऐसी कोई तो जगह होगी जहाँ मोना अक्सर जाया करती थी . उसके कोई तो दोस्त होंगे,
नौकर- सबसे पड़ताल कर ली है सबका एक ही जवाब हमारे यहाँ नहीं आई.
मैं- नानी क्यों आई थी यहाँ पर .
नौकर- छोटे साहब की शादी है तो रस्मो में आरती का हक़ मेमसाहब है , बड़ी रानी चाहती है की शादी के बहाने परिवार के शिकवे दूर हो जाये.
मैं- सुन एक काम कर, नानी को संदेसा दे की मैं मिलना चाहता हूँ उनसे, वो हाँ कहे तो यहाँ ले आ उनको .
नौकर चला गया . मैं सोचने बैठ गया की दूसरी तरफ से क्या जवाब आएगा. करीब बीस मिनट बाद नौकर वापिस आया , उसके साथ नानी तो नहीं थी पर कोई और था , जिसके आने की मैंने कभी नहीं सोची थी .
“क्या कहा तूने , घर छोड़ कर जा रहा है ” उसका गला जैसे रुंध सा गया .
मैं-मुझे कही जाना है और मैं वापिस शयद नहीं लौट पाउँगा.
सरोज-पर ऐसा क्या हुआ, ये तुम्हारा अपना घर है .
मैं-फिर कभी बताऊंगा.
मैं अपने कमरे में आया जितना सामान मुझे चाहिए था मैंने दो बैग में भर लिया . और वहां से वापिस हो गया. सरोज रोकती रह गयी पर मैं रुका नहीं . उसने रो रोकर पूछा पर मैं चाह कर भी उसे उसके पति की करतूतों के बारे में बता न सका.
बैग मैंने गाडी में डाले और जूनागढ़ पहुँच गया , मोना अभी तक नहीं वापिस आई थी. मेरे लिए बड़ी चिंता की बात थी ये.
“कुछ तो मालूम होगा, ” मैंने नौकर से कहा .
नौकर- हुकुम, बड़ी रानी सा भी दो तीन बार मेमसाहब के बारे में पूछ गयी
मैं- सतनाम के घर में क्या हाल है .
नौकर- शादी की तैयारिया चल रही है ,
मैं- ऐसी कोई तो जगह होगी जहाँ मोना अक्सर जाया करती थी . उसके कोई तो दोस्त होंगे,
नौकर- सबसे पड़ताल कर ली है सबका एक ही जवाब हमारे यहाँ नहीं आई.
मैं- नानी क्यों आई थी यहाँ पर .
नौकर- छोटे साहब की शादी है तो रस्मो में आरती का हक़ मेमसाहब है , बड़ी रानी चाहती है की शादी के बहाने परिवार के शिकवे दूर हो जाये.
मैं- सुन एक काम कर, नानी को संदेसा दे की मैं मिलना चाहता हूँ उनसे, वो हाँ कहे तो यहाँ ले आ उनको .
नौकर चला गया . मैं सोचने बैठ गया की दूसरी तरफ से क्या जवाब आएगा. करीब बीस मिनट बाद नौकर वापिस आया , उसके साथ नानी तो नहीं थी पर कोई और था , जिसके आने की मैंने कभी नहीं सोची थी .
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