वासना का भंवर

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Re: वासना का भंवर

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एक ही झटके में राज ने डॉली के बदन से साड़ी खिकसा दी और उसके बदन को उसके वस्त्रों से आज़ादी दे दी। डॉली का गोरा बदन किसी पवित्र झरने की तरह राज के सामने था, जिसमें राज अब गोता लगाना चाहता था। राज ने अपनी हथेली धीरे से डॉली की पीठ पर क्या रखी, डॉली राज में और सिमट गयी। राज अब आसानी से उसकी पीठ सहला रहा था। राज अपने होंट धीरे से डॉली के होंटों के क़रीब ले आया। दोनों की साँसें आपस में टकराकर किसी चक्रवात के आने का संकेत देने लगी थीं। राज ने डॉली की हिम्मत की सरहाना करते हुए अपने होंट डॉली के होंटों पर रख दिये। डॉली ने भी विरोध नहीं किया। डॉली के लिए किसी पराये होंटों के रस का स्वाद एक नया अनुभव था। जो उसे अच्छा लग रहा था। राज और डॉली अब सब कुछ भुलाकर दूसरी दुनिया में पहुँच चुके थे। पर वो नहीं जानते थे कि उनकी इस राज क्रीडा पर किसी और की भी नज़र थी। 'ज्योति' जो पिछली खिड़की के परदे से अपने क्रोध को उबालते हुए ये सारा नज़ारा देख रही थी, अचानक वो वहाँ से ग़ायब हो गयी और यहाँ अब राज डॉली के संग आख़िरी गोता लगाने के लिए तैयार था। राज ने डॉली को आराम से बिस्तर पर वक्षों के बल लेटा दिया और फिर हल्के-हल्के डॉली की पीठ पर अपने होंटों से फूँकने लगा। डॉली तो बस चादर को अपनी मुट्ठियों से भींचे कांता चाची को याद कर रही थी। सही कहा था उन्होंने कि प्यार के यही सही मायने हैं। राज ने अचानक धीरे-धीरे डॉली की पीठ पर चुम्बनों को बौछार कर दी। डॉली सिहर उठी। फिर राज ने डॉली को धीरे से सीधा किया। डॉली तो इतनी शर्मा गयी कि उसने दोनों हाथों से अपने वक्ष ढँक लिये और ऑंखें ज़ोर से बंद कर लीं। राज ने
धीरे से डॉली के दोनों हाथ पकड़े और सीधे कर दिये। डॉली ने पहले तो विरोध किया पर राज की इस प्यार भरी पकड़ के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। दो बदन प्यार की आग में जलने को तैयार थे।
डॉली बंद आँखों से ही इस सुखद अनुभव को महसूस कर पा रही थी। उसका दिल अंदर ही अंदर अब उस सुखद दस्तक का इंतज़ार करने लगा जो राज किसी भी पल दे सकता था। उसके दिल ने उलटी गिनती शुरू कर दी थी। कभी भी वो उस असीम मिलन को महसूस कर सकती थी। जो क़ुदरत की रचना है। जो सच्चे प्यार की परिभाषा है। धक-धक करता हुआ उसका दिल उसके लिए ये गिनती गिन रहा था कि अचानक! अचानक! दरवाज़े पर ज़ोर से खटखटाने की आवाज़ आने लगी। बाहर से राज की मम्मी के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी।
"राज! डॉली! जल्दी बाहर आयो.. जल्दी करो!" एक घबराहट थी राज की मम्मी की आवाज़ में। ये सुनकर डॉली और राज दोनों घबरा गये उन्होंने अपने कपड़े जल्दी-से ठीक किये और राज ने जाकर दरवाज़ा खोल दिया। पीछे-पीछे डॉली भी आ गयी। उसके बाद राज ने जो देखा तो उसके होश उड़ गाये। बाहर शादी की वेदी जहाँ उसके फेरे हुए थे धूँ-धूँ करके जल रही थी। कई लोग बाल्टी में पानी लेकर उस आग को बुझाने की कोशिश कर रहे थे। यह देख तो डॉली बहुत डर गयी। वो अपनी माँ के पास जाकर खड़ी हो गयी। राज को शायद अंदाज़ा था कि ये आग कैसे लगी। उसकी नज़रें ज्योति को ढूँढ़ने लगीं थी कि अचानक किसी की थपकी ने राज को चौंका दिया। वहाँ ज्योति खड़ी थी। उसने धीरे से राज के कान में कहा-
"ये तो ट्रेलर है जीजा जी, पिक्चर तो आपको सारी ज़िन्दगी दिखाऊँगी मैं आपको!" राज का शक यक़ीन में बदल गया कि ये सब ज्योति का किया-धरा था।
राज- "क्यों किया ये सब?"
ज्योति- "कहा था न मैंने कि डॉली के संग सुहागरात मनाने से पहले तुम मेरे साथ मोहब्बत करोगे.. कहा था न मैंने? और मुझे अवॉयड करने के लिए अपना फ़ोन भी बंद कर दिया।" राज ने देखा ज्योति की बात में एक ख़तरनाक धमकी छुपी हुई थी।
ज्योति- "अभी रात बाक़ी है अगर चाहते हो ये सब दोबारा न हो तो चले आना.. छत पर मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ।" कहते हुए वो वहाँ से निकल गयी। राज समझ चुका था कि वो बुरी तरह से ज्योति के चंगुल में फँस चुका है। बात अब उसकी नहीं रही, ज्योति किसी को भी नुक्सान पहुँचा सकती थी अगर उसकी बात न मानी गयी। चारों तरफ़ अफरा-तफरी मची हुई थी। राज ने देखा कि धीरे-धीरे वेदी में लगी आग बुझ रही थी, पर वो आग ज्वाला बनने जा रही थी जो उसने अपने और ज्योति के बीच लगा ली थी।
जैसे तैसे सभी रिश्तेदारों ने मिलकर आग बुझा दी। कोई कह रहा था कि अपशगुन टल गया तो कोई कह रहा था कि बला टली। कुल मिलाकर सभी की सोच पॉज़िटिव ही थी। घर में नयी दुल्हन आयी थी, इसीलिए राज की मम्मी इस घटना को लेकार कोई टेंशन नहीं पालना चाहती थी। माहौल को सामान्य करने के लिएउसने सबसे कहा, "चलो चाय बनाते हैं.. राज तुम डॉली को लेकर अंदर जाओ और सो जाओ। डॉली की मम्मी भी इस बात से सहमत थी। उसने भी डॉली को कमरे में जाने का इशारा किया और डॉली अपने कमरे में लौट गयी। सब शांत हो गया था। डॉली के पापा, राज के पप्पा और बाक़ी लोग इस बात की अटकलें लगा रहे थे कि आख़िर ये आग लगी कैसे होगी? पर राज जानता था कि ये किसका किया-धरा है। और ये तो सिर्फ़ शुरूआत थी, एक धमकी जो ज्योति ने उसे दी थी। वो इसी उधेड़बुन में था कि राज की मम्मी ने उसका ध्यान तोड़ते हुए कहा, "जा बेटा बहू अकेली है कमरे में!" राज ने हामी भर दी। पर वो कैसे जाये, छत पर ज्योति उसका इंतज़ार कर रही थी।
इधर डॉली अपने कमरे में सहमी हुए बैठी थी। उसके पति ने उसे प्यार करना शुरू ही किया था कि ये सब हो गया। वो समझ नहीं पा रही थी कि उसके विवाहित जीवन की शुरूआत सुखद हुई थी कि दुखद कि तभी राज अंदर आ गया। राज को देखकर वो खड़ी हो गयी। उसने देखा कि राज के चेहरे पर चिंता के भाव हैं। वो समझ रही थी कि राज शायद उस हादसे की वजह से घबरा गया है, पर वो नहीं जानती थी कि राज का मन तो ज्योति की धमकी को लेकर विचिलित था। उसने देखा कि राज चुपचाप आकर बैड पर बैठ गया।
डॉली- "जो हुआ ठीक नहीं हुआ, पर कोई बात नहीं अंत भला तो सब भला.. आग बुझ गयी है।" पर राज उसकी तरफ़ नहीं देख रहा था क्योंकि वो जानता था कि आग अभी बुझी नहीं है जो ज्वाला बनके छत पर उसका इंतज़ार कर रही है। डॉली राज के सामने सहमी हुई सी बैठी थी कि अब राज जैसा कहेगा वो वैसा ही करेगी कि राज ने उसे प्यार से देखते हुए उसके गाल पर अपना हाथ रखते हुए कहा-
"तुम चैन सो जाओ कल बात करेंगे.." डॉली समझ गयी थी कि राज का मूड ठीक नहीं है। उसने मुस्कुराते हुए राज की बात मानी और बिस्तर पर तकिया लेकर लेट गयी। राज अब डॉली के सोने की इंतज़ार कर रहा था, उसे नींद नहीं आ रही थी। अचानक उसने देखा य उसके मोबाइल पर ज्योति के तीन चार मैसेज थे। उसका मोबाइल म्यूट पर था इसीलिए आवाज़ नहीं आ रही थी और हर मैसेज में एक ही बात लिखी थी, "मैं इंतज़ार कर रही हूँ।" कि डॉली ने उसके हाथ पर हाथ रखते हुए पूछ लिया-
"क्या बात है?"
राज- "एक बात कहूँ बुरा तो नहीं मानोगी?"
डॉली- "कहिये " राज ने हिचकिचाते हुए कहा, "जब कभी टेंशन हो जाती है मैं सिगरेट पीता हूँ, अगर तुम इजाज़त दो तो एक सिगरेट पी आऊँ?" डॉली ने मुस्कुराते हुए कहा, "यहीं पी लीजिये, मैं बुरा नहीं मानूँगी!"
राज- "नहीं, मुझे किसी के सामने पीना अच्छा नहीं लगता और वैसे भी घर में अभी तक किसी को पता नहीं कि मैं सिगरेट पीता हूँ।" डॉली को यह बात अच्छी लगी कि राज ने उसके साथ उसकी पर्सनल बात शेयर की थी।
राज- "मैं चुपचाप छत पर जाकर सिगरेट पीके आ जाऊँगा, तुम किसी से मत कहना। डॉली ने मुस्कुराते हुए कहा, "जाइये किसी से नहीं कहूँगी!"
राज को तस्सली थी कि उसे ज्योति के पास जाने के लिए डॉली से कोई बड़ा बहाना बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
राज- "मैं कपड़े बदलकर जाता हूँ, तुम भी कपड़े बदलकर सो जाना।" उसने बैग से अपना कुर्ता पायजामा निकालते हुए डॉली से कहा।
उधर छत पर ज्योति राज का इंतज़ार कर रही थी। उसे यक़ीन था कि राज आयेगा। उसे आना ही होगा अब तो ज्योति मन में एक ज़िद लेकर घूम रही थी। पिछली रात को छत पर जहाँ ख़ूब हंगामा था आज सन्नाटा पसरा हुआ था। जगह-जगह कुर्सियाँ और गद्दे पड़े थे। ज्योति ने दो गद्दे उठाकर दीवार के पीछे लगा दिये जहाँ कोई न देख सके। बस उसे अब राज का इंतज़ार था। सुबह के ४ बज चके थे, सूरज कभी भी उग सकता है और उसे पहले राज को आना है। अगर राज नहीं आया तो ज्योति क्या करेगी वो आगे की प्लानिंग करने लगी थी कि अचानक उसने पाया कि सीढ़ियों में किसी के आने की आहाट हो रही है। वो दीवार के सहारे छुप गयी। उसने देखा कि राज आ गया है और ज्योति को ही ढूँढ़ रहा था कि ज्योति ने हाथ बढ़ा कर राज को अपनी ओर खींच लिया। अब राज ज्योति के एक दम नज़दीक था। उसकी नज़रें ज्योति से मिल रही थीं। उसने देखा कि ज्योति की आँखों में उसे पाने की हवस थी, जिससे वो बच नहीं सकता था। वो तो पूर्ण समर्पण के लिए आया था। ज्योति उसका हाथ पकड़कर उस तरफ़ ले गयी जहाँ उसने गद्दे बिछाये थे।
राज- "लो आ गया हूँ, क्या चाहती हो?" ज्योति अपनी इस जीत पर ख़ुश थी। वक़्त न बर्बाद करते हुए उसने राज के हाथ अपने चेहरे पर रख दिए और ख़ुद ही उन्हें ज़ोर-ज़ोर से अपने बदन पर फेरने लगी। मानो अब वो राज को निर्देश दे रही थी कि उसे क्या करना है और फिर राज ने वैसा ही करना शुरू कर दिया। ज्योति ने पाया कि अब राज उसके निर्देशों का पालन करते हुए ख़ुद ही उसके हर अंग का स्पर्श कर रहा था। फिर ज्योति ने उसकी गर्दन पकड़कर अपने होंट उसके होंटों पे रखकर गहरे चुंबन देने शुरू कर दिये। ज्योति की इस क्रिया में प्यार से ज़्यादा हवस और ज़िद दिख रही थी। वो बेतहाशा अब राज के
होंटों को चूम रही थी। इसी क्रिया के दौरान दोनों गद्दे पर गिर गये। राज ने देखा कि ज्योति को उसे पाने की बहुत जल्दी थी। वो जल्दी-जल्दी उसका कुर्ता उतार रही थी और ख़ुद अपना ब्लाउज़ खोलने लगी। राज भी अब ये सब जल्दी निबटा देना चाहता था। ज्योति ने उसे छेड़ते हए कहा-
ज्योति- "बाबूराव के दर्शन करवायो न जीजा जी.." राज को ज्योति की इस अठखेली में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने ज्योति को लिटाकर उसके हाथों को ज़ोर से जकड़ लिया। राज ने आगे बढ़ने से पहले एक बार ज्योति को देखा जो राज को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही थी। राज की आँखों में ज्योति के लिए नफ़रत साफ़ दिखायी दे रही थी, पर ज्योति को उससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। उसे बस राज चाहिए थे। वो भी अपने भीतर... ।
ज्योति- "अब देर मत करो जीजा जी.. आयो न.." कहते हुए उसने राज को फिर से एक बार अपनी ओर धकेलना चाहा कि राज ने हल्का-सा ज़ोर लगाकर ख़ुद को ज्योति के भीतर धकेल दिया। ज्योति की एक आह निकल गयी। राज अपना सारा क्रोध ज्योति पर निकाल देना चाहता था। लिहाज़ा उसने ज्योति पर पूरी खुन्नस से वार करना शुरू कर दिया और जल्द ही उसका सारा बारूद ज्योति के अंदर जा कर फट गया। ज्योति ने भी एक हल्की-सी आह के साथ राज के इस आक्रमण का स्वागत किया और अगले पल थक कर आँख बंद करके लेट गयी। राज ने ज्योति को घृणा भरी नज़र से देखा और अपने कपड़े ठीक किये और खड़ा हो कर निकल गया। ज्योति की एक और जीत हुई थी। उसने अपने कपड़े ठीक करके एक अँगड़ाई ली। वो बहुत ख़ुश थी कि राज अब पूरी तरह उसके क़ाबू में है। राज चुपचाप अपने कमरे में जाकर डॉली के बग़ल में सो गया। डॉली को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि राज क्या करके आया था।
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Re: वासना का भंवर

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नयी सुबह का सूरज उग चुका था। बारात घर में बाहर हलचल शुरू हो चुकी थी। हलवाई आ गया था। लोगों का दिनचर्या शुरू हो गया था और देखते-देखते बारात घर में फिर से वो रौनक़ लौट आयी, पर सबका ध्यान अब डॉली और राज के कमरे पे था, ख़ासकर ज्योति का जो ये जानने को उत्सुक थी कि रात को डॉली के साथ राज ने कुछ किया तो नहीं। उसने देखा कि कांता चाची हलवाई से ट्रे में डॉली और राज के लिए चाय और बिस्कुट लेकर जा रही थी कि ज्योति ने उसे रास्ते में ही पकड़ लिया। उसके हाथ से ट्रे लेते हुए कहा-
"चाची मुझे दीजिये मैं ले जाती हूँ.."

कांता चाची- "तू रहने दे उन्हें डिस्टर्ब करेगी!" ज्योति ने लगभग चाची से ट्रे खींचते हुए कहा-
"रात को भी आपने मुझे डॉली के कमरे से निकाल दिया था। आख़िर बहन है मेरी।"

चाची- "ठीक है, पर अगर वो सो रहे हैं तो बाहर से ही पकड़ा कर आ जाना.." ज्योति ने चाची से ट्रे ली और डॉली के कमरे का दरवाज़ा नॉक करते हुए आवाज़ लगायी-
"डॉली! डॉली मैं हूँ ज्योति... चाय लायी हूँ।"

ज्योति की आवाज़ सुनकर डॉली ने दरवाज़ा खोल दिया। ज्योति ने देखा डॉली ने एक नाइटी पहनी हुई है। माँग में सिन्दूर बिखरा हुआ था। डॉली ने अपने लम्बे बाल पीछे जूड़े की तरह बाँधते हुए कहा-
"आ न अंदर ज्योति.." ज्योति ने वहीं से ट्रे डॉली को पकड़ते हुए फब्ती कसी-
"नहीं-नहीं मैं डिस्टर्ब नहीं करना चाहती, क्या पता जीजा जी का मूड फिर बन जाये.." डॉली ने मुँह बनाते हुए ज्योति का हाथ पकड़कर उसे अंदर खींच लिया।

"अब बस भी कर। हर वक़्त ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं.." ज्योति ने अंदर आकर देखा कि राज बाथरूम से अभी बाहर आया है। ज्योति को देखकर राज की तो सिट्टी-पिट्टी गम हो गयी कि ये यहाँ क्या कर रही है?

ज्योति- "जीजा जी अगर ऐतराज़ ना हो तो में डॉली दीदी से कुछ बातें अकेले में कर सकती हूँ?" ज्योति की बातें सुनकर राज तो काँप उठा कि कहीं ये डॉली को कुछ बता ना दे। राज की घबराहट पढ़ते हुए ज्योति ने उससे कहा-
"घबराओ नहीं जीजा जी, मेरे और दीदी के बीच बहुत से सीक्रेट्स हैं। वैसे आप भी चाहें तो मेरे साथ कोई भी सीक्रेट शेयर कर सकते हैं। बहुत माहिर हूँ मैं सीक्रेट रखने में। ट्राई करके देख लीजिये।" राज देख रहा था जहाँ एक तरफ़ ज्योति डॉली के सामने उसके साथ अपनापन दिखा रही थी वहीं उसकी बातों में राज के लिए एक छुपी हुई धमकी भी थी। डॉली ने राज की घबराहट देखते हुए ज्योति को प्यार से डाँटते हुए कहा-
"चुप कर, इज़्ज़त से बात कर, जीजा हैं तेरे।"
ज्योति- "इतना मज़ाक़ तो जीजा-साली में चलता है, क्यों है ना जीजा जी?" राज ज्योति के इस भद्दे मज़ाक़ का जवाब नहीं देना चाहता था। उसने डॉली से कहा
"मैं ज़रा बाक़ी लोगों से मिल लेता हूँ.. चाय बाहर ही पी लूँगा" डॉली ने भी मुस्कुराकर उसे इजाज़त दे दी।
ज्योति ने तंज़ मारते हुए कहा, "हाय हाय क्या बात है जीजा जी बाहर क्यों चले गये? रात को सब ठीक रहा न?"
डॉली ने शर्माते हुए चाय का कप पकड़ते हुए कहा-
"हाँ ज्योति सब ठीक था बस वो छोड़कर।"
ज्योति- "वो छोड़कर? मतलब?"
डॉली- "रात को सब ठीक चल रहा था, ये मेरे क़रीब आये बस उसके बाद आग लग गयी मम्मी जी ने दरवाज़ा खटखटा दिया.."
ज्योति- "धत्त तेरे की.. मतलब कुछ भी नहीं हुआ?.... ज़रा-सा भी नहीं .....?" डॉली ज्योति की इन बातों को सुनकर शर्मा रही थी।
"क्या ज्योति ये बातें कोई बताने की होती हैं?"
ज्योति- "हाँ-हाँ पहली बार वाली तो बिल्कुल.. पता तो चले कि तू जीती कि राज जीजू...?"
डॉली- "कितनी बेशर्म है तू?"
ज्योति- "बता ना बता ना..?" डॉली ने चाय का सिप लेते हुए कहा-
"कुछ नहीं, बस इतना कहूँगी कि राज बहुत अच्छे हैं। एक लड़की की इज़्ज़त करना जानते हैं। ख़ास कर मेरी जैसी लड़की की जिसने आज से पहले ज़िन्दगी में ऐसा कुछ न देखा हो। शायद इसे ही प्यार कहते हैं.." ज्योति ने चुटकी लेते हुए कहा, "धत्त तेरे की, मतलब काम पूरा नहीं हुआ!"
डॉली- "पूरा मतलब? बस जितना भी हुआ बहुत अच्छा हुआ। उसके बाद वो छत पर सिगरेट पीने चले गये.." ज्योति जानती थी कि राज उसी से तो मिलने आया था। उसकी आँख में जीत की चमक थी कि राज ने उसका साथ पहले वो सब कर लिया जो उसे अपनी पत्नी डॉली के साथ करना था। उसने देखा कि डॉली बात करते-करते राज के ख़यालों में खो गयी थी। उसने डॉली का ध्यान तोड़ते हुए कहा-
"और जब वो वापस आया तो?"
डॉली- "मुझे नींद आ गयी.. "
ज्योति- "मतलब तू अभी भी वर्जिन.........?" डॉली ने ज्योति के मुँह पर हाथ रख दिया।
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Re: वासना का भंवर

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डॉली- "धीरे बोल.. बस अब मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी। मुझे शर्म आ रही है। अब जो होगा हनीमून पे, डोंट वरी तुझे सारी रिपोर्ट दूँगी।" कहते हुए ज्योति के गले लग गयी। ज्योति की आँख में अब प्रश्न उठ रहे थे कि ये लोग अब हनीमून पे कहाँ जायेंगे?
ज्योति- "बस तू ख़ुश है न यही जानना था। चल जल्दी से तैयार हो जा.. आज बारात घर ख़ाली करना है.. घर निकलना है। वैसे तुम हनीमून के लिए कहाँ जा रहे हो?" डॉली ने ज्योति को छेड़ते हुए कहा-
"केरल! पर तू वहाँ मेरे पीछे मत आ जाना.." कहते हुए हँसने लगी और ज्योति के गले फिर से लग गयी।
ज्योति केरल में पुलिस स्टेशन में बैठी ये कहानी जय और कुणाल को सुना रही थी। जय हैरान था कि ये लड़की बयान दे रही है या फिर अपने जीजा के साथ अपनी रास लीला की गाथा सुना रही थी। ज्योति समझ गयी थी कि जय के मन में क्या सवाल उठ रहे हैं। उसने जय को समझाते हुए कहा-
"जानती हूँ बहुत अजीब लग रहा होगा न आपको कि एक लड़की अपने जिस्मानी रिश्तों की कहानी दो मर्दों के सामने बेबाक होकर सुना रही है! हाँ अजीब ही है। मुझे भी अजीब ही लगा था जब मैंने ये सब पहली बार किया था, पर नहीं जानती थी कि ऐसे घिनौने रिश्ते का अंत मेरी बहन की मौत पर जाकर होगा!" कहते हुए वो रोने लगी। उसके भाव से साफ़ दिख रहा था कि उसने जो भी राज के साथ किया उसे उस बात का पछतावा था। वो रोते हुए एक ही बात कहे जा रही थी-
"हाँ मैं यहाँ केरल में आकर भी जीजा जी को अपने साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर करती रही, पर उस रात डॉली दीदी को हमारे रिश्ते के बारे में पता चल गया था। उनके हाथ वो वीडियो लग गया था जो मैंने राज के साथ बनाया था। मुझे तब एहसास हुआ कि डॉली राज से कितना प्यार करती थी इतना कि इन सब बातों के बावजूद वो मुझे माफ़ करने को तैयार थी और मैं अपनी हवस में पागल अपनी ही बहन का घर उजाड़ने पे तुली थी। बस फिर मैं डॉली से माफ़ी माँगकर चली गयी। ये सोचकर कि अब वो दोनों एक सुखी जीवन व्यतीत करेंगे। यही सब ठीक करके गयी थी मैं, पर नहीं जानती थी कि डॉली...." कहते हुए वो ज़ार-ज़ार रोने लगी। कुणाल ने फ़िलहाल आगे की पूछताछ करना ठीक नहीं समझा। जय ने लेडी हवलदार को इशारा किया कि इसे ले जाये। लेडी हवलदार ने ज्योति का हाथ पकड़ा और उसे बहार की तरफ़ ले जाने को थी कि ज्योति ने पलटकर फिर से कहा-
"मैं सच कह रही हूँ मैंने डॉली को नहीं मारा, पर मैं चाहती हूँ डॉली के असली क़ातिल को सज़ा मिले इसीलिए मैं आपको हर एक बात सच बता रही हूँ!"
कुणाल ने वहीं से सवाल दागते हुए कहा,
"तो फिर किसने मारा है.. डॉली को?" ज्योति ने उन्हें ये कहकर चौंका दिया-
"राज ने.. हाँ राज ने.. मैं राज के प्यार में इतनी दीवानी हो गयी थी कि अपने और राज के बीच में किसी को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी अब वो चाहे मेरी बहन डॉली ही क्यों ना थी, पर राज हर बार डॉली से अपने रिश्ते का वास्ता देता था और उस दिन मैंने बात को टालने के लिए ऐसे ही कह दिया कि इतना डरते हो डॉली से, तो मार दो उसे.. मैं तो ये बात ग़ुस्से में कह गयी थी पर मुझे क्या पता था कि राज उसे सच में ही..." कहते हुए रोने लगी।
"राज ने ही मारा है...डॉली को हाँ राज ने ही.." कहते हुए वो लेडी हवलदार के साथ बाहर निकल गयी।
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