"अाप विश्वास कीजिए, सच्चाई यही है ।”
"मेरे विश्वास करने से कुछ नहीं होगा ।" शहजाद राय भड़क उठे-"बिश्वास पुलिस को आना चाहिए, अदालत को आना चाहिए और दावा है कि उन्हें इस बेवकूफी भरी कहानी पर विश्वास नहीं जाएगा-लोग इस बात पर हंसेंगे कि आधी रात के वक्त जिस्म पर चौंगा, चेहरे पर नकाब और हाथ में चाकू लिए बेडरूम में तुम अपनी पत्नी को "अप्रैल-फूल' बनाने के मकसद से गये थे----पूरी तरह अविश्वसनीय, असम्भव और बचकाना बयान होगा यह ।"
"तो फिर मैं क्या कंहू, आप ही सलाह दीजिये ।" मैं अधीर होकर कह उठा…"मैं आपको वकील नियुक्त करता हूं । वहीं कंरूगा जो आप कहेंगें ---- 'इस झमेले से निकालने की जिम्मेदारी अाप ले लिजिए !"
शहजाद राय खामोश हो गये ।
मुद्रा बता रही थी कि कुछ सोच रहे हैं ।
लुटा पिटा मैं उम्मीदजनक अवस्था में उनकी तरफ़ देख रहा था ।
वे बड़बड़ाये----“तुम्हें बुन्दू , निक्कू और रधिया ने रंगे हाथों पकड़ा है, तुम केवल एक अवस्था में बच सकते होतब, जबकि अदालत में इन तीनों को अविश्वसनीय साबित कर दिया जाए, और ये तीनों अविश्वसनीय तब साबित हो सकते है जब प्रमाणित किया जाये कि तुम्हें संगीता की हत्या के जुर्म में फंसाने के पीछे इनका स्वार्थ है !"
. मैं चुपचाप उनकी बड़बड़ाहट को सुन रहा था ।
एकाएक उन्होंने मुझसे पूछा --- " नोकर का तुम्हें फंसाने के पीछे क्या स्वार्थ हो सकता है ?"
"उन्होंने मुझे फंसाया ही कब है ?" मैंने मुर्खों की मानिंद कहा !!!
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"फ'साया नहीं है बेवकूफ है" शहजाद राय झुंझला उठे-“बल्कि अदालत में साबित कर रहे हैं कि उन्होंने तुम्हें फंसाया है, सोचना ये है कि वे तुम्हें क्यों फंसायेगे ?"
काठ के उल्लू की तरह मैं उन्हें देखता रहा ।
एकाएक उन्होंने पूछा'----"वह डायमंड नेकलेस कहाँ है जो तुमने अपनी मैरिज एनीवर्सरी पर संगीता को दिया था?"
. "मेरे लॉकर में ।"
"वहां क्या कर रहा है ?"
"अगले ही दिन यानि तीस तारीख को संगीता ने यह कहकर नेक्लेस मुझे दे दिया था कि इतना महंगा नेकलेस 'डेली यूज' के लिए नहीं होता-इसे विशेष अवसरों पर पहना करूंगी, वेसे भी इतना महंगा नेकलेस कोठी में रखना समझदारी नहीं थी ।"
"और तुम---नेकलेस को लॉकर में रख अाये ?"
"हां !"
वे बोले-" यह झूठ है ।"
" ज ..... जी ?" मैं चकराया ।
"यह बात तुम्हें किसी के सामने अपने मुंह से नहीं निकालनी कि नेकेलेस लॉकर में है-इस सच्चाई को भूल जाओ और इस झूठ को याद रखो कि तुमने इन तीन नीकरों में से किसी को संगीता के गले से नेकलेस खींचते देखा है ।"
" ज---जी......मैं कछ समझा नहीं ।"
" सब समझ जाओगे ।" शहजाद राय का दिमाग मानो कम्यूटर की-सी तेजी से काम कर रहा था--- यह बताओ कि क्या तुम्हें इन तीनों नौकरों में से किसी का कोई ऐसा भेद मालूम है जिसके खुलने से वह डरता हो ?"
"म-मैं समझा नहीं कि आप क्या पूछ रहे हैं ।"
"लगभग प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कोइं-न-कोई क्षण ऐसा आता है जव उससे कोई ऐसा काम हो जाता है जिसके बारे में वह अपने अलावा किसी को पता नहीं लगने देना चाहता-य-यानि वह उसके जीवन का ऐसा भेद बन जाता है कि जिसके बारे में अगर लोगों को पता लग जाये तो उसके जीवन में तूफान आ सकता है ।"
"एक दिन संगीता कह रही थी कि रधिया गर्भवती है!!"'
शहजाद राय ने उत्सुक स्वर में पूछा…" क्या वह शादीशुदा नहीं है?”
" है मगर…
"मगर?"
"उसका पति गांव में रहता है और वह छः महीने से गांव नहीं गई है ।"
चमचमा रही आँखों के साथ शहजाद राय ने तुरन्त पूछा…“फिर गर्भवती कैसे हो गई वह है ?"
"संगीता ने वताया था कि वुन्दू के साथ उसके सम्बन्ध हैं !”
"वैरी गुड, बुँन्दू शादीशुदा है या कुंवारा ?"
"शादीशुदा है , उसकी पत्नी भी गांव में रहती है !"
" वन गई कहानी!" शहजाद राय चुटकी बजाकर कह उठे और फिर उन्होंने मुझे वह कहानी सुनाई जो मैंने हवालात में इंस्पेक्टर अक्षय को और फिर अदालत में सुनाई थी---शहजाद राय के निर्देश पर मैं इसी कहानी पर डटा रहा, मगर झूठ की यह हांडी चढी नहीं, आपके पापा ने मेरे और शहजाद राय के झूठ की धज्जियां उड़ाकर रख दी--अक्षय ने केस को इतना पुख्ता बनाकर क्रोर्ट में पेश किया कि शहजाद राय की एक नहीं चली ।"
किरन गहरे सोच में डूब गई थी ।
फोटोग्राफ़र और फिंगर प्रिन्टृस विभाग बालों का काम निपटते ही अक्षय और किरन पुनः लाश के इर्दगिर्द का निरीक्षण करते हुए इन्वेस्टीगेशन में जुट गए और कुछ देर बाद किरन ने घोषणा की--" अब मैं एक बहुत ही जबरदस्त और धमाकेदार बात पूरे दावे के साथ कह सकती हूं ।"
".क्या ?" अक्षय ने पूछा ।
जाने कैसी मुस्कुराहट के साथ किरन पलटकर शेखर से बोली--" उस अादमी की लम्बाई क्या थी जिसे तुमने संगीता पर हमला करते देखा था ?"
अक्षय चौका…“इसने संगीता पर किसी को हमला करते देखा था ?"
"प-प्लीज इंस्पेक्टर, मैंने शेखर से सवाल किया है----तुमने जवाब नहीं दिया शेखर, क्या लम्बाई रही होगी उसकी?"
"इ-इस तरह तो उसकी लम्बाई बताना मेरे लिए मुश्किल होगा ।"
"यह तो बता सकते हो कि तुमसे लम्बा था अथवा गुटृटा?"
शेखर ने तुरन्त जवाब दिया--" मुझसे तो लम्बा था ।"
“इधर आओ ।" किरन ने अंगुली के इशारे से उसे नजदीक बुलाया और फिर तहखाने की एक दीवार के नजदीक ले गई ---वहाँ उसने शेखर को दीवार के सहारे लाठी की तरह खड़ा कर दिया और अपने लम्बे बालो से एक शेयर पिन निकालकर उसके सिर के ऊपर दीवार में एक निशान लगाने के बाद बोली----“हट जाओं ।"
असमंजस में फंसा शेखर हट गया ।
अकेला वह क्या ?
सभी असमंजस में फंसे हुए थे ।
औरों की तो बात ही दूर, स्वयं अक्षय नहीं समझ पा रहा था कि वह कर क्या कर रही है----सबकी नजरें किरन पर इस तरह केद्रित थी जैसे वह कोई जादूगर हो और हैरत में डाल देने वाला कोई जादु दिखाने जा रही हो--- कुछ देर तक ध्यान से दीवार को घूरती रही और फिर अचानक अक्षय की तरउ पलटकर बोली--"' मैं रधिया की हत्या का कारण बता सकती हूं !"
"दीवार पर कारण लिखा है क्या ?"
"ऐसा ही समझो ।" किरन के पतले होंठों पर बेहद प्यारी मुस्कान उभरी ।
“तो बताइये, वहाँ आपने क्या पढा ?"
"दीवार पर 'कोडवर्ड' में लिखा है कि रधिया संगीता के हत्यारे से मिली हुई थी ।"
"संगीता का हत्यारा ?" अक्षय उछल संगीता का हत्यारा तो शेखर मल्होत्रा है ।"
"नहीं ।" पूरी सख्ती और मुकम्मल दृढता के साथ कहा किरन ने---“संगीता का हत्यारा वह है जिसने रधिया की हत्या की है ।"'
"प-पता नहीं आप कौन-सी बात किस आधार पर कह रही हैं ?"
"मेरे 'एक्टिव' होते ही हत्यारा इसलिए बौखला गया क्योकि वह समझ चुका था कि मैं एक सवाल .................सिर्फ एक सवाल करके रधिया को 'तोड' सकती हू और अगर वह टूट गई तो उसके चेहरे से नकाब खुद नुंच जाएगा---ऐसा वक्त आने से पहले ही उसने रधिया हत्या कर दी ।"
“मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं ?"
एकाएक किरन ने वुन्दू से सवाल किया----तुम बोलो बुन्दू तुम्हें उस रात थाने का फोन नम्बर मालूम था जिस रात संगीता का कत्ल हुआ ?”
"नहीं, मुझे तो अाज भी मालूम नहीं है ।"
"और तुम्हें निक्कू ?"
निवकू ने कहा…"थाने के नम्बर की मुझे भला जरूरत ही क्या पड़ती जो मालूम होगा ?"
"तो रधिया को कैसे मालूम था ?"
दोनों सकपका गये, एक साथ बोले…“ह-हमेँ क्या पता? "'
“क्या उसने नम्बर डायरेक्टरी या कहीं अन्य से देखा था ?"
"नहीं ।" निक्कू बोला---"नम्बर उसने तुरन्त, इस तरह मिला दिया था जैसे उसे याद हो ।"
“आप बताइये इंस्पेक्टर साहब, अच्छी तरह दिमाग लड़ाने के बाद बताइए कि रधिया को थाने का नम्बर इस कदर रटा हुआ कैसे था कि फर्राटे के साथ अापसे सम्बन्थ स्थापित कर लिया !"
"कमाल की बात है ।" अक्षय बड़बड़ाया ।
' "इससे ज्यादा कमाल की बात ये है कि यह सवाल इन्वेस्टीगेशन के दरम्यान न आपने रधिया से पूछा और न ही कोर्ट में जिरह के वक्त शहजाद राय ने जबकि यह सवाल................यह एक मात्र सवाल रधिया को बोखलाकर रख देता-उसे बताना पड़ता कि एक अनपढ नौकरानी को अगर थाने का नम्बर मालूम था तो क्यों-यह नम्बर उसे किसने और किस मकसद से रटाया था-क्या इसलिए कि शेखर के पकडे जाते ही वह पुलिस को सूचित कर दे ?"
" म---मगर आप यह कैसे कह सकती हैं कि संगीता का हत्यारा ही रधिया का हत्यारा है ?"
"शेखर के बयान के मुताबिक हत्यारे का कद इससे ज्यादा था और मजे की बात तो ये है इंस्पेक्टर साहब कि रधिया का कत्ल उसी ने किया है जिसका कद शेखर के कद से ज्यादा है ।”
चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
"शेखर के बयान की भला क्या विश्वसनीयता.........
“मेँ जानती हूं इंस्पेक्टर !" किरन कहती चली गई… जानती हूं कि आप यह कहेंगे कि शेखर के मुंह से निकला एक भी लपज विश्वसनीय नहीं माना जा सकता---- आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मात्र शेखर के बयान के आधार पर न मैं किसी निष्कर्ष पर पहुंची हूं और न ही सब कुछ कह रही हूं ---यह सव मैं तब कह रही दूं जब शेखर के बयान की पुष्टि कर चुकी हूं !!
“कैसी पुष्टि ?"
"शेखर को यह तो मालूम नहीं था कि रधिया का हत्यारा कद में इससे ज्यादा था या कम हैं"'
“यह बात भला इसे कैसे मालूम हो सकती है ?"
"अब मान लो, मैंने शेखर से संगीता के हत्यारे का कद पूछा तो इसने तिकड़म से, जो मुह में आया बता दिया…यह वात मैं सोचकर कह रही हूं कि शेखर सरासर झूठ बोल रहा है----इसने किसी को संगीता की हत्या करते नहीं देखा, मगर क्या इतना बड़ा इत्तेफाक हो सकता है कि जो कद उसने बताया है, रधिया का कातिल उसी कद का निकल जाए ?"
"आप कैसे कह सकती हैं कि रधिया का कातिल उसी कद का है ।"
कछ देर पहले जिस दीवारके सहारे मैंने शेखर को खड़ा किया था उस दीवार पर फर्श के करीब पांच फूट दो इंच ऊपर हाकी-सी चिकनाई लगी हुई है----------
जव आप उस चिकनाई को सूंघने के बाद रधिया की लाश का सिर सुंघेगे तो पायेंगे कि दीवार पर चिकनाई का निशान रधिया के सिर से वना है और इसका कद अगर 'एक्यूरेट' नहीं तो करीब-करीब पांच फूट दो, एक या तीन इंच होगा ।
उसके करीब आठ इंच ऊपर यानि पांच फुट दस इंच के आसपास चिकनाई का एक और निशान है, उसमें कोई गंध नहीं है…यह निशान हत्यारे के सिर के अलावा किसी का नहीं हो सकता क्योंकि दोनों निशान मिलकर यह कहानी कह रहे हैं कि रधिया और हत्यारे के बीच संधर्ष हुआ, एक बार रधिया ने हत्यारे को दीवार से सटा दिया और एक बार हत्यारे ने रधिया को--यानि दूसरा निशान यह बता रहा है । हत्यारे का कद पांच फूट नौ दस' या ग्यारह इंच के आसपास होना चाहिए-दीवार पर मैंने शेखर के कद की ऊंचाई पर शेयर पिन से निशान लगा रखा है । दीवार के नजदीक जाकर अाप खुद गोर फरमा सकते हैं कि निशान गन्धहीन चिकनाई से करीब दो इंच नीचे है या नहीं ?"'
अक्षय की अक्ल मानो चमगादड़ बनकर तहखाने का चंवकर लगा रही थी ।
शेखर मल्होत्रा की समझ में यह बात आने लगी थी कि किरन उसके हक में अगर सबूत नहीं तो कुछ हद तक तर्क जुटाने में अवश्य कामयाब हो चुकी थी-----शायद इसीलिए उसकी आंखें हीरों की मानिन्द चमकने लगी थी । खुशी की ज्यादती के कारण जिस्म में पैदा होती कंपकंपाहट को वह चाहकर भी नियन्वित नहीं कर पा रहा था ।
पोस्टमार्टम वाले लाश ले गए ।
यह रहस्य अपनी जगह कायम था कि गुलाब चन्द की लाश या रधिया का हत्यारा स्टडी का दरवाजा अन्दर से बन्द करके कहीं और कैसे गायब हो गया-काफी कोशिश के बावजूद तहखाने का कोई अन्य रास्ता न अक्षय को मिल सका और न ही किरन को !
अक्षय ने शेखर, निक्कू बुन्दू और अतर एण्ड फैमिली के एक-एक मेम्बर से घोट--घोट कर पूछा कि किसी ने आज से पहले गुलाब चन्द की लाश कोठी में नहीं देखी थी ?
जिस वक्त वह सबके बयान ले रहा था उस वक्त किरन उस कमरे की तलाशी लेने पहुंची जहां रधिया रहती थी और इस तलाशी में उसे एक ऐसी चीज बरामद हुई जिसे देखते----किरन की आंखें बिस्फारित अंदाज में फटी की फटी रह गई, मगर शिघ्र ही उसने खुद को सम्हाल लिया और यहाँ से मिली चीज का जिक्र किसी से नहीं किया । "
सबका जवाब इंकार में था ।
अतर जैन से बात करके किरन ने उस कहानी की पुष्टि कर ली जो शेखर ने सुनाई थी---अतर का कहना भी यही था कि सुब्रत जैन की शक्ल उसने उस दिन के बाद से नहीं देखी जिस दिन वह घर छोडकर गया था ।
अन्त में किरन ने कहा-मुझे अाप सबका एक-एक फोटो चाहिए ।"
"फ-फोटो है"' अतर जैन चौंक पड़ा----“हमारे फोटुओं का क्या करेंगी अाप ?"
"एलबम में सजाऊंगी ।" किरन ने मजेदार स्वर में कहर-"मुझें एक शौक है, बड़ा विचित्र शोक ।"
"कैसा शौक ?”
"मैँ जिससे मिलती हूं अपनी एलबम में लगाने के लिए उसका फोटो जरूर ले लेती हुं- मिलने वाला चाहे मोची हो या रिक्शा-पुलर--आज़ तक जितने लोगों से मिली हूं --मेरे पास सबके फोटो हैं ।"
"नहीं.........असम्भव ।" अतर जैन कह उठा----'' हो ही नहीं सकता, मान लीजिए कि आप घूमने के लिए किसी हिल स्टेशन पर जाती हैं---वंहा होटल में ठहरती हैं---मेनेजर से मिलती हैं---वेटर्स के सम्पर्क में अाती है तो क्या आपके पास उन सबके फोटो.....
“मेरे पास उस खच्चर का फोटो भी है जिस पर बैठकर नैनीताल से "टिफिन टॉप' और चाइनापीक गई थी ।" किरन ने कहा----क्या अप लोगों को फोटो देने में एतराज है !""
"ए---एतराज ?" अतर जैन सकपकाया, कमल की तरफ देखता हुआ बोला----"एतराज भला क्यों होगा ?"
एकाएक किरन ने कमल की आंखों में आंखें डालकर पूछा…"आपको एतराज है ?”
"न-नहीं तो ।"
"तो लाइए, अपना एक…एक फोटो दे दीजिए मुझे और इंस्पेक्टर साहब, अाप भी ।
"म-मैं भी है"' अक्षय उछल पड़ा ।
"क्यों, क्या अपासे नहीं मिली हू मैं ?"'
"मिली तो है, खैर, कल सुबह आपके घर पहुच जाएगा ।"
"थेंक्यू! अरे आप लोग भी अभी तक यहीं खड़े हैं, अपना-अपना फोटो लेने गए नहीं ?"
कमल ने कहा---“हमारे फोटो भी कल सुबह आपके पास पहुंच जायेंगे ।" .
"" ओ.के ।" किरन के कहा-“लेकिन अगर सुबह होते ही आपमें से किसी का फोटो नहीं पहुचा तो मैं यह समझुंगी कि उसके दिल में चोर है और इतना तो अाप जानते ही होंगे कि चोर किसके दिल में होता है ?"
सभी सहम गए ।
एक अजीब-भी चेतावनी दे डाली थी किरन ने ।
अभी उनमें से किसी के मुंह से बोल न फूटा था कि किरन ने शेखर से कहा-----"मुझे एक तुम्हारा फोटो चाहिए और एक संगीता का ।"
"स-संगीता का क्यों, उससे अाप मिली हैं ?"
"बाह ! जिसके मर्डर की तहकीकात कर रही हूं क्या उसका फोटो मेरे पास नहीं होना चाहिए ?"
"ठीक है, मैं अपने कमरे से फोटो लाकर दे देता हू।"
"मैं साथ चल रही हू ।"
एकाएक अक्षय ने क्हा----"अच्छा तो किरन जी, मैं चलू !"
"ओं के सी यू इंस्पेक्टर !" किरन ने उसकी तरफ़ विदाई का हाथ हिलाया, उधर अक्षय लोहे वाले रेट के बाहर खडी अपनी जीप की तरफ़ बढा ।
इधर किरन के नजर वुन्दू और निक्कू पर पड्री, बोली-“अा्प दोनो के फोटो भी कल सुबह तक मेरे पास पहुच जाने चाहिएं ।"
"म-मगर मेमशाब, हम फोटो पहुचायेगा कहाँ ?"
"ओहू सॉरी ।" कहने के साथ उसने पर्स में से एक विजिटिंग कार्ड निकलकर उन्हें पकडा दिया और शेखर के साथ उसके कमरे की तरफ बढ़ गई-मगर उसने महसूस किया आसपास कोई नहीं है तो बोली---------अब मैं शर्त लगाकर कह सकती है शेखर कि तुम्हें बेगुनाह सबित कर दूंगीं !!
"म-मैँ. . ..मैं समझ नहीं पा रहा है किरन जी कि किन शब्दों में मैं आपका शुक्रिया अदा करू ?" खुशी की पराकाष्ठा के कारण शेखर का लहजा कांप रहा था…
“अब तो मुझे यकीन होने लगा है कि आप यह चमत्कार कर दिखायेंगी ।"
"मेरे एक सवाल का जवाब और दो ।"
पूछिए क्या---" यह बात किस-किसको पता थी कि तुम संगीता का अप्रैलफूल बनाने जा रहे हो ?"
"किसी को नहीं ।" उसके कमरे में पहुंचकर सोफे पर बैठती हुई किरन ने कहा…“ऐसा नहीं हो सकता ।"
"कैसा ?"
"यह कि अप्रैल-फूल वाली बात किसी को पता नहीं थी ! असली हत्यारे ने योजना और जिस चालाकी के साथ तुम्हें हत्यारे के 'रूप में" प्लांट किया है, उतनी खूबसूरती के साथ तुम्हारी मुकम्मल योजना जाने विना कोई नहीं कर सकती----“याद कर ले, मुमकिन है, कि यार'-दोस्ताने में तुमने अपनी योजना किसी को बता दी हो ?"
"खूब सोच चुका हु, किरन जी, इस बोरे में मैंने किसी से जिक्र नहीं किया है ।"
एक पल सोचने के बाद किरन ने अगला सवाल किया…"अपने मैनेजर के बारे में क्या ख्याल है तुम्हारा ?"
"म-मैनेजर?” तुमने उससे एक ही रात के ट्रेन और प्लेन के टिकट मंगाये … सम्भव है कि वह इस अजीब बात की तह में गया हो और फिर किसी ढंग से तुम्हारी योजना की भनक लगी हो उसे ?"
"जो योजना सिर्फ और सिर्फ मेरे दिमाग में थी--जिसका एक भी लफ्ज़ मैंने फूटे मुह से किसी से नहीं कहा, उसकी भनक भला किसी को लग ही कैसे सकती है ?"
"भनक तो लगी है----भनक लगे विना कोई शख्स वह सब कर ही नहीं सकता जो हत्यारे ने किया है-पता यह लगाना है कि तुम्हारे प्लान की भनक उसे कहां से लगी ?" शेखर चुपचाप 'चांद' को देखता रहा ।
अच्छा, ये बताओ कि---" अपनी मैरिज एनीवर्सरी तुमने कहां मनाई थी ?"
"होटल ताज पैलेस में ।"
"फर्स्ट अप्रैल पर तुम्हारे और संगीता के बीच बहस वहीं हुई थी ?"
"वंहा, डिनर के दरम्यान ।"
"और उस वक्त तुमने यह सावधानी नहीं बरती होगी कि कोई तुम्हारी बहस न सुन पाये ?"
"सावधानी बरतने का सवाल ही नहीं था, हम कोई अपराध थोड़ी कर रहे थे ?"
किरन की आंखे जुगनुओं की मानिन्द चमक उठी… “उस वक्त तुमने ये ध्यान भी नहीं दिया होगा कि दायेँ-बायेँ और आगे-पीछे वाली सीटों पर कौन बैठा है ?"
"सवाल ही नहीं ।"
"यानि उस वक्त तुम्हारे बीच हुई बहस किसी ने सुनी हो सकती है ।"
"सुनी तो हो सकती है मगर सुनने से किसी को लाभ क्या हुआ होगा -सच्चाइं ये है कि उस क्षण स्वयं मुझे . मालूम नहीं था कि संगीता को अप्रैल-फूल किस तरह बनाऊंगा, योजना तो मेरे दिमाग में बाद में वनी---., जबकि मेरे और संगीता के बीच चैलेंजों का आदान-प्रदान हो चुका था ।"
“माना कि उस वात किसी ऐसे शख्स ने तुम्हारी बहस सुनी जो ऐसे मौके की फिराक में था कि संगीता का मर्डर करके तुम्हें फंसा सके-बस बहस के बद उसने तीस-इकतीस और पहली तारीख को साये की तरह तुम्हारा पीछा किया…तुम्हें काला कपडा खरीदते, उसे टेलर को देते और चाकू खरीदते देखा--फिर किसी ढंग से यह भी पता लगा लिया कि तुमने एक ही साथ के ट्रेन और पलेन के टिकट मंगाये है----- उसने तुम्हारी योजना का अनुमान लगा लिया होगा ।"
"भला इस तरह "अनुमान कैसे लग सकता है ?"
"जो लोग जिस फिराक में होते हैं वे अपने मतलब के अनुमान बखूबी लगा लेते हैं शेखर, लिफाफा देखकर " मजमून भांप जाने वाले लोगों के बारे में तुमने ज़रूर सुना होगा और फिर कौन जानता है कि वह शख्स कौन था---खेर, मैं तुम्हारी फेवट्री के मैनेजर से मिलना चाहती हूं ! इस वक्त कहां होगा वह ?"
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
शाम के सात बजा रही रिस्टवॉच पर नजर डालते हुए शेखर ने कहा-इस वक्त तो अपने फ्लैट पर होगा ।"
“क्या तुम मुझे वहाँ ले जा सकते हो ?"
" ओंफकोर्स ?"
"तो चलो ।"
"फोटो नहीं लेंगी ?"
"ओह हां ।"
शेखर ने मेज की दराज से एलबम निकाली और " उसके पृष्ट से किसी फोटो को छुडाने का प्रयत्न करता बोला-बैसे संगीता का फोटो तो अपके घर मौजूद इस केस की फाइल में भी होगा ?'"
"उसमें विभिन्न कोणों से लिए गये संगीता की लाश के फोटो हैं…चूंकि हत्यारे ने चाकू का अन्तिम वार उसके चेहरे पर किया था इसलिए चेहरा इतना विकृत हो गया था कि ठीक से पहचान में नहीं अा रही ।"
“ये लीजिए ।" उसने संगीता का फोटो किरन की तरफ़ बड़ाया ।
किरन ने फोटो लिया ।
और !
फोटो पर नजर पड़ते ही कुछ ऐसा लगा कि किरन के सम्पूर्ण शरीर में बिजली-सी कौंध… -हक्की-बक्की अवस्था में वह कभी फोटो की तरफ़ देख रही थी--- तो कभी एलबम से अन्य फोटो निकालने मेॉ व्यस्त शेखर को फोटो पर नजर पड़ते ही कुछ ऐसा लगा कि किरन के सम्पूर्ण शरीर में बिजली-सी कौंध… -हक्की-बक्की अवस्था में वह कभी फोटो की तरफ़ देख रही थी, कभी एलबम से अन्य फोटो निकालने में व्यस्त शेखर को ।
शेखर की गर्दन एलबम पर झुकी थी ।
इसीलिए वह किरन के जिस्म में बिजली का अहसास नहीं कर पाया…फोटो पर नजर पडते ही किरन की आखों से जैसे सैकडों फुट लम्बी एक फिल्म-गुजर गुजर गई थी !
और फिर लकवा मार गया उसे ।
जब तक शेखर मल्होत्रा ने एलबम से अपना पासपोर्ट साइज का फोटो निकालकर किरन की तरफ़ बढाया तब तक प्रत्यक्ष में भले ही यह खुद को नियंत्रित कर चुकी हो, परन्तु अन्दर से नियंत्रित नहीं थी ।
दिलो--दिमाग में बवंडर-सा उठा हुआ था ।
ऐसा बवंडर जो उद्वेलित किये हुए था ।
आंखों में उस वक्त भी फिल्म-सी चल रही थी जब शेखर ने पूछा-“चलें किरन जी ?"
"क्या तुम यही कपडे़ पहनकर अपने मेनेजर के यहां चलोगे?” किरन ने खुद को सम्भाला ।
एक नजर उसने तन पर मौजूद कुतें-पायजामेँ पर डाली, बोला-“आप मुझें वे-गुनाह साबित करने जा रही हैं, इस खुशी ने मुझसे मेरा से अहसास तक छीन लिया कि मैंने क्या पहन रखा है ।"
"मेरा ख्याल है कि कपडे चेंज कर लो ।"
“ओ. के. ।" कहने के साथ एलबम को वापस दराज में रखने हेतु उसने दराज खोली ही थी कि किरन ने कहा---"एलबम मुझे दे दो, तब तक मैं इसे देखती रहूगी ।"
शेखर ने एलबम उसे पकड़ा दी ।
उधर वह सेफ से एक जोडी कपडे़ निकलकर बाथरूम में बंद हुआ
इधर किरन ने एलबम खोल ली-सबसे पहले पृष्ठ पर दुल्हन बनी संगीता का फोटो था ।
किरन इस फोटो को देखती रही ।
देखती रही ।
दिलो--दिमाग में पुन: एक जलजला-सा उठने लगा ।
वह पृष्ठ किरन ने तब जाकर पलटा जव यह अहसास हुआ कि शेखर बाथरूम से लौटने बाला होगा ।
गुलाब श्चन्द जैन और उनकी पत्नी का फोटो उसके सामने था ।
किरन की गोरी, पतली, नर्म और नाजुक ऊंगलियां तेजी से चली-फोटो एलबम के पृष्ठ से उखड़कर उसके पर्स में पंहुच गया और फिर उसने फोटुओं पर सरसरी नजर डालते हुए पृष्ठ पलटने का जो सिलसिला शुरू किया तो वह जब तक चलता रहा जब तक कि एक झटके से बाथरूम का दरवाजा न खुल गया ।
किरन की नजरें स्वत: उस तरफ़ उठ गयी ।
और ।
नजरें एक वार उठी तो जैसे चिपक कर रह गयी ।
इस क्षण से पूर्व किरन ने महसूस नहीं किया था कि शेखर मल्होत्रा कितना खूबसूरत होगा ।
" नहाया-धोया वह काली पैंट और सफेद कमीज में ठीक "चंकी पांडे' सा लग रहा था ।
वेसा ही गठा हुआ कसरती जिस्म, वेसा ही कद, वेसे ही नाक-नक्शा-फर्क था तो सिर्फ आंखों के रंग मे…चंकी पांडे की आंखें गहरी काली हैं जबकि शेखर की नीली थीं ।
गहरी नीली ।
किरन को वे आंखें चंकी पांडे की आंखों से बेहतर लगी ।
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
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जो कर रही हैं, अगर आप उसे महान् कार्य नहीं मानती तो इतना तो मानना ही पडे़गा कि मुझ पर अहसान कर रही हैं आप ।"
"भूल है तुम्हारी ।" किरन ने पुरजोर स्वर में विशेष किया---"संगीता मर्डर केस को तुम एक पेपर समझ सकते हो और मुझे वकालत की एक स्टूडेन्ट-अगर मैं इस पेपर को 'साल्ब" कर लेती हूं तो शहजाद राय, अक्षय श्रीवास्तव, जज साहब और मेरे पापा जैसे धुरंधरों को मेरी क्षमताओं और काबलियत का लोहा मानना पडेगा और साथ ही कुबूल करनी पडेगी यह सच्चाई कि "सच्चाई तर्कों से बडी है'…-सो जो कुछ कर रही हूं घुरंधुरों से अपना लोहा मनवाने के लिए कर रही हूं फिर यह सब तुम पर अहसान कैसे हुआ हैं?"
एकाएक शेखर ने कहा…“इतना लम्बा लेक्चर अापने मुझे इसलिए दिया है ताकि मैं आपकी 'आप' या "किरन जी' न कहूं ! "'
"हां !” किरन सभ्य अन्दाज में हँसी ।
"कोशिश करूंगा ।"
"अब तुम वह सवाल पूछ सकते हो जो पूछना चाहते थे ? "
"जवाब मुझे मिल चुका है ।"
किरन ने चक्ति स्वर में पूछा…“किसने दिया जवाब ?"
"अ_आप. . . सॉरी... तुमने !"
"म-मैं तुम्हारे किसी सवाल का जवाब दे चुकी हूं ?"
"दरअसल मैं यह जानना चाहता था कि आप… 'सॉरी तुम मेरी मदद क्यों कर रही हो…इस सवाल का जवाब तुम्हारे "लैक्चर' से मिल चुका है ।"
किरन खिलखिलाकर हैंस पडी ।
क्यारियों यें खिले फूल मानों उचक-उचक कर खिलखिलाने वाले को देखने लगे
फूलों के अलावा कुछ आंखें भी देख रही थी उन्हें । पूरी चौदह आखें थीं वे ।
दस आंखों में ईष्यों के भाव थे-अगर या कहा जाये तो गलत न होगा कि उन आंखों में हैरत, गुस्से और कुछ-कुछ प्रतिशोध के भाव थे-किरन और शेखर को साथ-साथ खिलखिलाते देखकर जिनकी आंखों में ये भाव थे, वे आंखें अतर एन्ड फेमिली के पांच सदस्यों की थीं ।
वुन्दू और निवकू की आंखों में कोई ऐसा भाव न था जिसे शब्द दिये जा सकें ।
अतर एन्ड फैमिली के पांचों सदस्य ' पहली मंजिल पर स्थित एक बन्द खिड़की के पीछे खड़े पारदर्शी शीशे के माध्यम से उन्हें लोहे वाले गेट की तरफ़ बढते देख रहे थे !
कुछ ऐसे जैसे न चाहते हों कि कोई उन्हें वहीं खड़ा देखे ।
लोहे वाले गेट के नजदीक पहुंचकर शेखर ने पूछा--"आप किस सवारी से अाई थी ?"
"टैक्सी से ?"
"मुझे 'ये लोग गाड़ी को हाथ नहीं लगाने देते ।"
"' कोई बात नहीं, हम टैक्सी से चलेंगे ।"
गेट के बाहर निकलते ही शेखर ने एक टैक्सी रोकी और दोनों उसमें सवार हो गये--शेखर ने ड्राइवर को मैनेजर के फ्लैट का पता बताया-उधर ड्राइवर ने टेक्सी अागे बढाई, इधर किरन ने वहुत देर से दिमाग में घुमड़ रहा सवाल किया---“संगीता से तुम्हारी पहली मुलाकात कहाँ हुई थी शेखर ?"
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
"आगरा यूनिवर्सिंटीं मे--- तब जबकि संगीता ने वहां एम. ए. प्रीवियस में एडमीशन लिया था-मे वहीं पहले ही से पढ़ता था , बी. ए. फाइनल करके एम.ए. में आया था मैं
इसमें जरा भी अतिश्योक्ति नहीं है किरन जी.. . . ओह ..... सॉरी ..... कि संगीता ने पहले ही दिन सारे कॉलिज में तहलका-सा मचा दिया था-जिसकी जुबान पर देखो संगीता की चर्चा -- लड़के जहां ठंडी आहे भर…भरकर उसकी चर्चा कर रहे थे वहीं लड़कियां मारे डाह के मरी जा रही थी ----दोस्तों में जव चर्चा चली तो मैं भी "उस लडकी' को देखने के लिए उत्सुक हो उठा जिसने सारे कॉलिज में खलबली मचा रखी थी…यह सच है कि मैं सिर्फ उसे देखने कैटींन में गया और यह भी सच है कि संगीता की स्वप्निल आंखों ने मुझ पर जादू-सा कर दिया, आज़ मुझे यह कुबूल करने में हिचक नहीं है कि मैं उसी दिन संगीता से अपना दिल हार चुका था परन्तु वह एक तरफा प्यार था… अपनी भावनाएं उसके सन्मुख रखने का न मुझमें हौंसला था, न ही परिस्थितियां उस सबकी इजाजत देती थी ।”
''परिस्थितियां ?"
"अपनी बूढी मां का इकलौता बेटा था--पिता की मृत्यु पर मेरी आयु केवल दस वर्ष की बी-तव से मेरी अनपढ मां ने मेहनत-मज़दूरी करके न केवल पाला-पोसा था बल्कि जिदूद करके पढा भी रहीं थीं---उन दिनों वह कहा करती थी कि बस'...."दो साल और हैँ…तू एम. ए. कर लेगा, कहीं अच्छी भी नौकरी मिल जायेगी और फिर मैं 'राज' करूंगी ऐसी मां के बेटे को कुदरत किसी से मुहव्वत करने की’ इजाजत नहीं देती औरे फिर-संगीता अपने परिधान तथा चेहरे से ही करोड़पति नजर आती थी --कहने का मतलब यह कि मैंने उससे कभी बात नहीं की-हां, मित्र-मण्डली में उसकी चर्चा चलती रहती थी--धीरे-धीरे दिन गुजरने लगे-उन लडकों में संगीता को फंसाने की होड़-सी लगी रहती जो काँलेज में एडमीशन पढने के लिए नहीं बल्कि मुहब्बत, दादागिरी और गुन्डागर्दी करने के लिए लेते हैं ---
मगर बाप की दौलत की नुमाइश करना जिनका शौक होता है, मगर.......पूरा साल गुजर गया-सगींता को फंसाना दूर, कोई कलाई तक न पकड सका उसकी---धीरे-धीरे सारे कॉलिज में चर्चा फेल गई कि संगीता इतनी 'बोल्ड' लड़की है कि कोई उसे छू तक नहीं सकता-जाने क्यों यह अहसास मुझे सुकून पहुंचाता था किरन जी......सॉरी....... 'कि संगीता, किसी की नहीं हुई है----: आज सोचता हूं तो लगता है कि शायद मुझे यह 'सुकून' मेरे अन्दर पल रही मुहब्त के कारण मिलता था---उधर संगीता को लेकर लडकों में शर्तें लगने लगी!
लड़के शर्ते हारने लगे और फिर कॉलिज के सबसे बड़े गुन्डे ने-अपने चमचों से वह शर्त लगा ली.....वह शर्त जो मेरे और संगीता के समीप जाने का 'बायस' भरे- पूरे ग्राउन्ड में उसने संगीता का चुम्बन लेने का ऐलान किया और सिर्फ ऐलान ही नहीं किया बल्कि ऐसा करके दिखाया भी उसने ।
हां-उसने किया, भरे-पूरे ग्राउन्ड में किया-हजारों छात्रों और सैकडों प्रोफेसर्स की मौजूदगी में किया---संगीता के पुरजोर विरोध के बाद किया-उस दिना-उस दिन मैं भूल गया कि मैं एक गरीब मां की एक इकलौती लाठी हूं यह भी भूल गया कि, अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी मां अपनी छाती पीट-पीटकर खुद को मार डालेगी-जाने यह कैसा जुनून था कि अपनी हैसियत भूलकर में बाज की तरह नगर विधायक के बेटे पर टूट पडा और फिर उसे इतना मारा कि लहुलुहान हो गया वह-सारे कॉलिज में सनसनी फैल गई---दब्बू सा नजर आने वाला 'मैं' चर्चा का केन्द्र बन गया---उस दिन भी मैंने संगीता से या संगीता ने मुझसे बात नहीं की थी और यह सच है किरन कि जोश और जुनून के काफूर हो जाने पर मैं पश्चाताप की अाग में जलने लगा----
यह सोचकर खुद को गालियां बकने लगा कि मैं क्यों इतनी बड़ी हस्ती के बेटे से भिड़ा--क्या हो गया था मुझे-जब सभी चुपचाप देख रहे थे तो मैंने ही बेवकूफी क्यों की, मगर मेरे भीतर के इस पश्चाताप से विधायक के बेटे और उसके चमचों को भला क्या लेना-देना था---अगले ही दिन हाकियों से इतना पीटा कि मेरी कई हड्डियां टूट गई-- बिस्तर पर पड़ गया---मां दहाड़े मार-मारकर रोया करती थी !
कॉलिज छूट गया मगर संगीता रोज मेरी किराये की खोली में अाने लगी----इस तरह हमारे बीच मुहब्बत के अंकूर फूटे और मेरे 'प्लस्तर' उतरने तक वे परवान चढ़ गये---मां संगीता क अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी---बह कहा करती थी कि संगीता के पिता के सामने जाकर अपनी झोली फैला देगी और संगीता को मांग लेगी पर वह दिन अाने से पहले ही 'एन्जाम' आ गए…विधायक ने ऐसा षडृयन्त्र रचा कि 'अटैन्डेस' कम होने के बहाने मुझे परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया और यह मामूली भी खबर मेरी मां के दिलो-दिमाग पर ऐसी बिजली बनकर गिरी कि उसे अर्थी पर लादकर श्मशान ले जाने के अलाबा मेरे पास कोई चारा नहीं रहा।
परीक्षायें खत्म हो गयी… संगीता अपने शहर यानि यहां आ गई-कुछ दिन बाद उसका पत्र मिला, उसने मुझे यहीं बुलाया था--" मैं अाया-उसने मुझे बाबूजी से मिलाया परन्तु बाबूजी यह सुनते ही अाग बबूला हो गए कि हम शादी करना चाहते हैं-संगीता अड़ गई, विद्रोही हो उठी वह-मैंनै उस दरम्यान उसे यह समझाने की केशिश की कि किस्मत नहीं चाहती कि हम मिलें । अतः हमें किस्मत से नहीँ लडना चाहिए मगर वह नहीं मानी और.......
जब एक दिन उसने आत्महत्या करने की कोशिश की तो बाबूजी मजबूर हो गए…
उन्होंने हमारी शादी कर दी मगर इस शर्त के साथ कि मैं घर जमाई बनकर रहूंगा !!!!!!
हालाकि आगरा में भी मेरा ऐसा कुछ नहीं बचा था जिसे " अपना कह सकता अथवा जिससे 'मोह' होता परन्तु घरजंबाई बनना इसलिए कुबूल नहीं था ।
क्योंकि बाबूजी को तो पहले से ही शक था कि मैं उनकी बेटी से नहीं बल्कि दौलत से मुहब्बत करता हूं मगर जिस तरह संगीता ने बाबूजी को शादी के लिए मजबूर किया था लगभग उसी तरह मुझे घरजंवाई बनने पर मजबूर कर दिया ।"
किरन ने एक अजीब सा सवाल पूछा-----""क्या तुम पर संगीता की चढी-चढी आंखों का भेद कभी नही खुला ।"
" क क्या मतलब ?" शेखर बुरी तरह चौंका ।
"जबाब दो शेखर ।" उसे तीक्षण दृष्टि से घूरती किरन ने अपना सवाल दोहराया-" सच-सच बताओ के तुम पर कभी संगीता की चढी-चढी आंखों का भेद खुला अथवा नहीं?"
"क-क्या तुम ? "' शेखर बुरी तरह बोखला 'उठा-----“क्या तुम उन आंखों का भेद जानती हो ?"
"सवाल मैंने तुमसे किया है शेखर ।"
"हां, मुझ पर वह भेद खुल गया था ।" शेखर को मानो बताना पड़ा !
"कब ?"'
"शादी के बाद ।"
"क्या उसने तुम्हें यह भी वताया था कि आगरा से पहले वह लन्दन कैम्ब्रिज में पढ़ती थी ?"
"बताया था ।"
. "तब यह भी बताया होगा कि वहां अपनी पढाई अधूरी छोडकर वह भारत क्यों लौट अाई ?"'
"उसका मन नहीं लगा था, एटमोस्फेयर रास नहीं आया था उसे ।"
किरन यूं मुस्करा उठी जैसे लोग इस झूठ को सुनकर मुस्करा उठे कि शाहजहां का बनवाया हुआ ताजमहल 'सोनम' की बांहों में बांहें डाले "ओबराय कॉन्टिनैटल " के डिस्को फ्लोर पर फुदक रहा था । बोली---क्या लन्दन के बारे में उसने ' तुम्हें कुछ और नहीं बताया ? "
"ऐसा कुछ खास तो नहीं मगर-----
“मगर ?"
"तुम्हारी रहस्यमय मुस्कान से लग रहा है जैसे ऐसा कुछ जानती हो जिसे मैं नहीं जानता, ऐसा आखिर क्या है?"
किरन के जवाब देने से पहले टैक्सी एक झटके के साथ सकी रूकी----------दोनों ने चौंककर बाहर की तरफ़ देखा तो पाया कि वे अपनी मंजिल पर पहुंच चुके थे ।
किरन पर नजर पड़ते ही मेनेजर उछल पड़़ा-" अ-अरे अरे । आप?"
"त-तुम ?" चौंक किरन भी गई ।
भाड़-सा मुंह फाड़े अभी वे एक-दूसरे की तरफ देख ही रहे ये कि शेखर ने कहा----“लगता है तुम एक-दूसरे को पहले से जानते हो ?"
'तुमने ठीक कहा शेखर!" किरन बोली !!!
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