दुल्हन मांगे दहेज complete

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Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"मेरा ख्याल तो यह है बाबूजी कि हमें अपने बारे में सोचना चाहिए ।"



"मतलब ? "



"इस वक्त हम बुरी तरह फंसे हुए हैं,,उस पत्र के रहते पुलिस तो पुलिस हमारा कोई सगे-से-सगा भी हमारी इस बात पर यकीन नहीं करेगा कि हमने भाभी को दहेज के लिए सताया नहीं था-----खुदा-न-खास्ता अगर भाभी को कुछ हो गया तो न केवल हमारी सच्चाई की एकमात्र गबाह खत्म हो जाएगी, बल्कि उनकी हत्या के जुर्म में हम सबके ह्मथों में हथकड़ियां होंगीं ।।"



रेखा और ललिता के तिरपन कांप गए ।


बिशम्बर गुप्ता बोले------" कह तो तुम ठीक रहे ही अमित,,हम बेगुनाह हैं----उस पत्र में जो ,कुछ लिखा है वह झूठ है-----इस सच्चाई पर कानून के साथ-साथ समाज भी सिर्फ तब यकीन करेगा, जब सुचि हमारी स्थिति स्पष्ट करें, अतः सबसे पहले उसे ढूंढ लेना जरूरी है !"




" मगर कहां ढूढें भाभी को ? अमित बोल---" हममें से किसी को इल्म तक नहीं कि इस वक्त बह कहां होगी ?"

" अजीब रहस्य है ?" बिशम्बर गुप्ता ने दात भौंचकर कसमसाते हुए मेज पर धूसा मारा---" अजीब उलझन में फंस गए हैं हम । "



"हमें जल्दी -से -जल्दी कुछ करना चाहिए बाबुजी गनीमत है अभी तक यहीं पुलिस नहीं पहुची है, मगर मेरा ख्याल है कि पुलिस किसी भी क्षण पहुचं सकती है----अगर ऐसा हो गया
तो पहले तो कोई हमारी बात सुनेगा ही नहीं------सुन भी ली तो विश्वास नहीं करेगा, दरअसल सच्चाई पर विश्वास दिलाने के लिए हम लोगों के पास कुछ है ही नहीं ।"




पुलिस के आने हथकड़ियों की कल्पना मात्र से ललिता और रेखा के चेहरे राख राख नजर अाने लगे-रिटायर्ड मजिरट्रेट होते हुए बिशम्बर गुप्ता की टांगे कांप रही थी ।


और ऐसे समय कॉलवेल चीख पड्री।



सभी उछल पडे ।


सिंट्टी पिट्टी गुंम-होशो हवास नदारद ।



"क--कौन हो सकता है ?" रेखा के मुह से निकला !


अमित बड़बड़ा उठा--"शायद पुलिस !"



रोंगटे खडे हो गए ।



"हमें बेवजह नहीं डरना चाहिए ।" बिशम्बर गुप्ता ने विवेक से काम लिया---"यह भी हो सकता है कि फैक्टरी से हेमन्त आया हो ।"


सांस में सांस आई।



कॉलबेल फिर बजी ।


बिशम्बर गुप्ता ने हुक्म दिया"--: ’तुम देखो ललिता, कौन है ?"



" म-----मैं ?" कभी उनका आदेश न टालने बाली ललिता ने हकलाकर कहा-----" न----नहीं-अाप हीं देखिए मुझे डर लग रहा है । "


अगर कोई अन्य वक्त होता तो वे ललितादेवी को हुक्म-उदूली करने की सजा जरुर देते, परं इस वक्त कुछ न कहा----दरअसल वर्तमान झमेले में फंसे होने के कारण इस प्वॉइंट की तरफ उनका ध्यान ही न गया कि उनकी पत्ती ने उनके जनादेश की अवहेलना की है-चुपचाप दरवाजे की तरफ बढ़ गये ।


गैलरी पार करते वक्त उनका दिल बूरी तरह धड़क रहा था !

भरसक चेष्टा के बावजूद जब वे अमित तो क्या उसकी परछाईं को भी न ढूंढ सके तो हांफते हुए मोहल्ले में वापस आ गए----मोहल्ले के लगभग सभी मर्द वहां भीइ लगाए खड्रे थे स्त्रियां ओर बच्चे छज्यों पर !



अमित का पीछा करने वाले दल ने जब यह घोषणा की कि वह भाग निकला है तो मोहल्ले के एक बुजुर्ग ने कहा-----"मैँ तो पहले ही कह रहा था कि उसे मारो--पीटो मत. पकडकर पुलिस के हवाले कर दो, मगर उस वक्त किसी ने सुनी ही नहीं । "


पार्वती दहाड्रे मार--मारकर अभी तक विलाप किए जा रही थी !


दीनदयाल बेचारा इस तरह घूम रहा था, जैसे उसका सब कुछ लूट लिया गया हो । मनोज एक खम्बे में चेहरा छुपाए रहा था, किसी ने सलाह दी---"इस वारदात की खबर फौरन पुलिस को कर देनी चहिए ।"



" यहां की पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर सकेगी । " किसी ऐसे व्यक्ति ने कहा जो खुद को कानूनी मामलों का 'मास्टर मानता था---" यह मैटर बुलंदशहर की पुलिस का है, बल्कि उस इलाके के थाने का जंहा सुचि की ससुराल है ।"



"मगर जो कुछ यहां हुआ उसकी रपट यही के थाने में होगी न? "



" हां , वह हमें कर देनी चाहिए -मुमकिन है कि पुलिस रात रात ही में अमित को तलाश करके गिरफ्तार कर ले-शयद अभी तक इन लोगों ने सुचि को न मारा हो । "



' यह रपट लिखवाने तो बुलंदशहर ही जाना पडेगा कि ये लोग सुचि से दहेज मांगते थे और अब उसकी हत्या कर दी ' है । " वह महाशय अपना ज्ञान बांट रहे थे । "




"सुबह से पहले बुलंदशहर केैसे जाया जा सकता है ? "



सुबह ही सही, मगर जाना तो पड़ेगा ही । उन्होंने दूसरी राय दी-----सुनो दीनदयाल, सुचि के पत्र की दस-बीस फोटो स्टेट कॉपी करां लो---आजकल ऐसे मामलों में 'ओरिजनल' कॉपी पुलिस के हाध में देने का धर्म नहीं है ।"

"इतनी रात में भला फोटोस्टेट कॉपी कहां तैयार हो जाएंगी ?"


एक उत्साही युवक ने आगे बढकर कहा-"मेरी फोटोस्टेट की दुकान है-इस काम के लिए मैं रात के इसी
वक्त दुकान खोलकर काम करने को तैयार हूं ।"




. "रोना-धोना छोड़कर पुलिस कार्यवाही शुरु कर दो दीनदयाल…वेटी तो गई, कहीं ऐसा न हो कि हत्यारे भी फरार हो जाएं, पुलिस... ।




"क्या करेगी पुलिस ?" एकाएक पलटकर मनोज ज्वाला के समान दहाड उठा…"क्या वह मेरी मरी हुई बहन जिदा कर सकेगी ?"



' सभी सन्नाटे मे आगए।



कुछ देर के लिए सनसनी सी फैल गई बहां,, फिर एक अधेड ने कहा----"सुचि को तो अब कोई बापस नहीं ला सकता बेटे, मगर पुलिस उसके हत्यारों को सजा जरूर दिलवा सकती है !"




" कोई सजा नहीं दिलवा सकती चचा-बुलंदशहर की पुलिस कुछ नहीं करेगी----क्योंक्रि इनका चाप रिटायर्ड जज है, बुलंदशहर में उसे देवता माना जाता है-अदालतें और पुलिस उनकी उन्गलियों पर नाचेगी । "



" ऐसा नहीं है बेटे !"



"सुचि ने अपने पत्र में लिखा है, मनोज दहाड उठा…"नही-पुलिस कुछ नहीं केरेगी----पुलिस हमें इन्साफ . . नहीं दिलाएगी, मगर मैं…मैं इंसाफ़ करूंगा, मैं अपनी वहन की मौत का बदला लूंगा ।"


वही महाशय बोल उठे---"कानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए ।"



"श. . .शटअप । " मनोज इतनी जोर से दहाड़ा कि महाशय की पतलून गीली होते होते बची-भावनाओंके भंबर में फंसा मनोज चिल्लाता चला गया-----"कौन सा कानून-किसका कानून-अपना कानून मैं खुद बनाऊंगा----सुचि के एक एक हत्यारे को चीर-फाड़कर न डाल मैं दिया तो मेरा नाम मनोज नहीं---- खून पी जाऊंगा उनका --- बोटी बोटी काटकर चील कौवों के सामने डाल दूंगा---उन्होंने मेरी बहन को मारा है, में उनके घर में लाशों के ढेर लगा दूंगा ।"


सनसनी फैल गई वहां, हर तरफ एक अजीब आतंक ।
सब कुछ सुनने और समझने के बाद हेमन्त भी हक्का--बक्का ऱह गया और यदि यह लिखा जाए तो . अतिशयोक्ति न होगी कि सारा वृतांत सुनने के बाद उसके चेहरे पर खौफ के चिह्न रेखा, ललिता, अनिल और बिशम्बर .गुसा की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही उभर अाए, किंतु शायद अपनी अभिनय क्षमता से उस अधिकता पर उसने जल्दी ही काबू पा लिया, बोला-"बाकी सब बाते तो समझ में अाई, मगर जब अमित रात ग्यारह बजे के करीब ही के मोहल्ले वालों के चंगुल से भाग निकला था तो यहाँ कुछ ही देर पहले क्यों पहुंचा ?"


"उनके चंगुल से मैं बच तो गया, कुछ देर तक गलियों के जाल में भागदौढ़ करके खुली सड़क पर भी पहुंच गया, मगर. अब मैं उन सडकों पर भाग नहीं सकता था, क्योंकि सड़क दूर दूर तक वीरान पडी थी-मेरे भागने से मैं संदिग्ध हो उठता---भागने के स्थान पर तेजी से चलने लगा--कुछ देर बाद मुझे अपने सामने से एक पुलिस जीप अाती नजर आईं-मै घबरा गया, मेरी हालत देखकर पुलिस का ध्यान मुझपर केद्रित हो जाना स्वाभाविक था---लगा कि अगर उन्होंने देख लिया तो हजार सवाल करेंगे और तब पहली बार मेरे दीमाग मेँ यह ख्याल अा्याकि पुलिस मुझ ही को भी तो ढूंढती फिर रही हों सकती है, मुमकिन कि भाभी के घर या मोहल्ले वालों ने पुलिस में रिपोर्ट कर दीं हो----पुलिस के चंगुल में फंसने की कल्पना मात्र से कांप उठा और के नजदीक पहुंचने से पहले ही एक गली में दौड़ लिया, उसके बाद-पुलिस के आतंक से डरा-सहमा मैं एक उजाड़ और . टूटे--फूटे मकान के कोने में दुबका ठिठुरता रहा----तीन और चार बजे के बीच जब सर्दी मुझसे बरदाश्त न हुई तो बहां से निकला'--"पक्के आम के नजदीक फुटपाथ पर बहुत-सी कारें खड़ी थीं, उनमें से एक कार चुराई और बुलंदशहर आया ----- यहां कार मैंने घर से काफी 'दूर इसलिए छोड दी ताकि कार चोर की तलाश मे पुलिस यहाँ तक न पहुंच सके ।"




"सबसे ज्यादा मुसीबतों का सामना तुझे ही करना पडा है अमित ।"




"जो गुजर गया मैं उसके बारे में नहीं सोच रहा हूँ भइया, मैं तो यह सोचकर परेशान हूं कि अब अागे क्या होने वाला है ?"



बात सच थी !



बहां-मोजूद हर शख्स यहीं सोचकर मरा जा रहा था । हेमन्त तो कुछ ज्यादा ही ।



" हमारे ख्याल से सात बजे तक दीनदयाल यहाँ पुलिस के साथ जरूर पहुंच जाएगा । " बिशम्बर गुप्ता ने कहा------तब तक हमें अपने बचाब के लिए कोई न कोइं तर्क या सबूत ढूंढ लेना चाहिए । "




"लेकिन जब हमें मालूम ही नहीं है कि भाभी किस चक्कर मेॉ उलझी हुई थीं तो हम कर क्या सकते हैं, यह भी केसे जान सकते हैं कि इस वक्त वे कहां और किस हाल में हैं ? "




"क्या इसबारे में तुम कुछ जानतेहो हेमन्त ?"


"म...मैं ?"


" मुमकिन है कि सुचि ने तुमसे अपनी किसी परेशानी का कोई जिक्र किया हो ? " बिशम्बर गुुप्ता ने कहा-"हमारा इशारा किसी ऐसी परेशानी की तरफ है जिससे निपटने के लिए-उसे बीस हजार की जरूरत पड़ी हो ? "



''मेरी नजर में तो ऐसी कोई बात नहीं थी । "



"याद करो, मुमकिन है कि उसने स्पष्ट कहने के स्थान पर कभी कुछ कहा हो या कभी तुमने यह महसूस क्रिया हो कि वह कुछ कहना चाहती हो, मगर कब नहीं पाती ---इंसान के साथ ऐसा अक्सर अनेक कारणो से होता है!"



"मैंने ऐसा कभी महसूस नहीं क्रिया ।




"फिर आखिर बात क्या थी ?" बिशम्बर गुप्ता ने अपने दुाएं हाथ का घूंसा बाई हथेली में मारा, बुरी तरह झुझला रहे थे ।
" अगर सुची के पिहर बाले पक्के तौर पर ऐसा समझता है कि हमने उसे मार डाला है तो वह आगे भी हमारे खिलाफ कार्यवाही कर रहे होंगे ?" हेमन्त ने संभावना व्यक्त की ।

"नि: संदेह !"



"क्या कार्यवाही कर सकते हैं ?"


"सुचि' का पत्र उनके पास एक ऐसा ठोस प्रमाण है । जिसे पुलिस तो क्या दुनिया का कोई भी व्यक्ति झूठा नहीं कह सकता--उस पत्र के आधार पर हम पर सुचि कि हत्या का आरोप लगाएंगे । "




"दरअसल मैं उसी आरोप से बचने की तरकीब सोचने पर जोर दे रहा हूं। झुंझलाए हुए अमित ने उनके बीच दखल दिया ।



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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"जो सच्चाई है, उसे फिलहाल हम लोग सिर्फ जानते हैँ----प्रूव नहीं कर सकते और वह इतनी हास्यास्पद भी है कि अगर हर किसी से जिक्र करें तो वह हंसेंगा-जिन हालातों भी सुचि गायब हुई है, वर्तमान परिस्थितियां उसे हमारी स्कीम साबित कर देंगी-यानी लोग यहीं कहेंगे कि पूरी तरह
सोची समझी स्कीम के अतर्गत बहू की हत्याके बाद अब हम एक कहानी घड रहे हैं ।"




"नाश जाए सुचि का ।" ललितदेबी के मुह से पहली बार ऐसे लफ्ज निकले-----"हमने क्या बिगाड़ा था उसका------हाथों पर रखा, पलकों पर बिठाने का यह क्या बदला दिया उसने हमे-जाने किस मुसीबत में फसा गई ?"


" ऐसा नहीं कहते ललिता । "



"और क्या कहूं. ?" वह बिफर पड़ी---"ऐसी क्या बुराई की थी हमने उसके साथ ?"



''निश्चय ही उसकी भी कोइं न कोई मजबूरी रही होगी ।"


"ऐसी क्या खाक मजबूरी थी, जो हममे से किसीसे नहीं कह सकती थी, अरे उसे बीस हजार ही चाहिए थे तो हममें से किसी से ले सकती थी--झूठा खत लिखकर पीहर से मंगाने
की क्या जरूरत थी ?"



हेमन्त अचानक चुटकी बजा उठा ।।



"वया हुआ?"' विशस्वर गुप्ता ने आशान्वित नेजरों से उसकी तरफ देखा ।



" मेरे दिमाग में एक ख्याल अाया है ।"



अमित ने पूछा…"क्या ?"



" हालातों पर अगर गौर से दृष्टिपात क्रिया जाए तो स्पष्ट होता है कि सुचि को पहले ही मालुम था कि उसे सारी रात गायब रहना है, हापुड़ भी नहीं पहुंचना है-पूरी योजना के साथ उसने बंराल में अमित से पीछा छुड़ाया । "



"जाहिर है ।"



" इस अवस्था में मुमकिन है के उसने गायब होने की वास्तविक वजह अपने कमरे में कहीं लिखकर रख दी हो ? "


"अगर उसकाकोई ऐसा पत्र मिल जाए तो फिर सारी समस्याएं ही न हल हो जाएं------जो पत्र उसने पीहर भेजा था उसका महत्व खुद व खुद खत्म हो जाएगा ।"



"आओ । " हेमन्त उठकर खडा होता हुअऱ बोला-----"सबसे पहले हमें बारीकी से उसके सामान और कमरे की तलाशी लेनी चाहिए ।"




उसके पीछे सभी मन मेँ यह जपते हुए लपके के----" हे ईश्वर, सुचि का कोई ऐसा पत्र मिल जाए जो हमारी इज्जत बचा सके ।
जिस वक्त हेमन्त ने अपने और सुचि के टू रूम सेट का दरवाजा खोला, उस वक्त उसके साथ-साथ घर के हर सदस्य का दिल बुरी तरह धड़क रहा था ।



अगर गूंज रही थी तो सिर्फ उनके सांसों की सरगम ।


कमरेमें अंधेरा था ।



अंधेरे में ही स्विच तक पहुंचने का अभ्यस्त हेमन्त आगे बढ़ा----उसके स्विच अॉन करते ही कमरा रोशनी से भर गया----धढ़कत्ते दिल से वे आंखें फाड़ फाड़ कर ड्राइंगरूम के रूप में इस्तेमाल क्रिए जाने बाले इस छोटे से कमरे में मौजूद हर वस्तु को घूरने लगे-----हर बस्तु और वातावरण रहस्यमय जरूर महसूस दिया ,किंतु कहीं भी किसी को कोई खास बात नजर न आई थी !



काफी देर की खामोशी के बाद हेमन्त ने कहा-"आप इस कमरे में तलाश कीजिए बाबूजी मैं और अमित बेडरूम में देखते हैं !"
ज़वाब किसी ने नहीं दिया ।



बिशम्बर गुप्ता और ललिता इसी कमरे में रह गये---हेमन्त और अमित के पीछे रेखा बढ़ गई-बीच का भिड़ा हुआ दरवाजा खोलने के बाद हेमन्त ने स्विच अॉन किया ।


कमरे में रोशनी होते ही रेखा की चीख से सारा मकान झनझना ड़ठा ।



चीखें हेमन्त और अमित के मुंह से भी निकली थीं और वे किसी भी तरह रेखा की-चीख से कम डरावनीं थी, मगर वे रेखा की तरह कर्कश न थीं-हेमन्त ने चीते की सी फुर्ती से झपटकर रेखा का मुंह भींच लिया ।


"ख. ..खून...खून.'. . ।" चिल्लाता हुआ अमित सारे कमरे सें भागा ।




"क. .क्या हुआं ? बिशम्बर गुप्ता औंर ललिता के होश उड़ गए ।



पत्ते की तरह कांपता अमित धिधियाया------"'ख. . .खून हो , गया है, भ.........भाभी को किसी ने, मार डाला है बाबूजी------ किसी ने भाभी की हत्या कर है ।"



ललितदेबी बुत में बदल गई !!



बिशम्बर गुप्ता के होश फाख्ता, काटो तो खून नहीं ! पैरों तले मानो जमीन निकल की थी !




"भ. . .भाभी का खून हो गया ,उन्हे किसी ने मार डाला है , पागलों की तरह बड़वड़ाता अमित सारे कमरे में भागा फिर रहा था------- उसकी ऐसी अवस्था देखकर बिशम्बर गुप्ता के छक्के छुट गए । इस विचार ने उन्हें आत्मा तक हिला डाला कि 'शॉक' की ज्यादती के कारण अमित का दिमाग कहीं पागल तो नहीं हो गया है, वे चिल्ला उठे---"अमित होश में अाओं बेटे , क्या हो गया है तुम्हे ? "




"भ..भाभी को किसी ने !"



"श. . .शटअप । बिशम्बर गुप्ता दहाड़ उठे । अागे कुछ कहने के प्रयास में अमित का मुंह खुला-का-खुला रह गया-सूनी सूनी आंखों से वह सिर्फ देखता रह गया , मगर इस अंदाजे में जैसे शून्य को घूर रहा हो । आंखें पथरा गई थी !"


''इस तरह कमजोर पढ़ जाने से काम नटों चलेगा बेटे ।"
विशम्बर गुप्ता के लहजे में दर्द ही दर्द था----"हौंसला रखो, अगर साहस छोढ़ दिया मेरे लाल तो खुद को निदोंर्ष साबित नहीं कर सकेंगे ।"



"म.. .मगर हमारी सच्चाई की एकमात्र गवाह भाभी ही तो थी !"



"वह बात साबित नहीं हुआ करती जो हुई ही न हो । " बिशम्बर गुप्ता ने उसे समझाने की गर्ज से कहा--"'हममें से किसी ने सुचि की हत्या नहीं की है, लाश के चारों तरफ ऐसे अनेक सूत्र होते हैं, जिनसे पुलिस 'असली हत्यारे तक पहुंच ' जाए और फिर यह भी तो हो सकता है कि सुचि ने कुछ लिख कर छोड़ रखा हो ?"



अमित के चेहरे पर से आतंक का कोई लक्षण कम न हुआ-----हां उसकी वह स्टैचू जैसी मुद्रा जरूर टूट गई-बिशम्बर गुप्ता ने ललिता की तरफ देखा----दहशत की प्रतिमूर्ति बनी वे जहां-की-तहां खड़ी थीं !"



" अपनी मां को संभालो अमित !" कहने के साथ ही वे लड़खड़ाते बल्कि कहना चाहिए कि कांपते कदमों से बेडरूम की तरफ बढे़ । कमरे का दृश्य देखते ही उनके पैर फर्श पर चिपककर रह गये !



मुह से निकलनी चाह रही चीख को उन्होने बडी मुश्किल से रोका-----चेहरा और शरीर ही नृहीं, बल्कि तलवे और हथेलियां तक पसीने से भरभरा उठे ।


सख्त सर्दी के बावजुद !


एक बार नजर सुचि कि लाश पर पडी तो वहीं चिपककर रह गई ।



डबलबेड के ठीक ऊपर छत में मौज़द उस लोहे के कुण्डे में मजबूत रस्सी का एक सिरा बंधा हुआ था, जिसमें 'सीलिंग फैन' लटकता था----इस रस्सी का फंदा सुचि की गरदन में और सुचि के पैर बेड से काफी ऊपर थे ।




बेड के नीचे एक स्टूल लुढ़का पड़ा था ।



सुचि के हाथं दाए बाएं लटके हुए थे----जीभ बाहर निकली हुई सी…अांखों से बिशम्बर गुप्ता को ही देखती सी महसूस हो रही थी वह ।
चेहरा बुझा हुआ और निस्तेज !



लाश देखते ही वहशत होती थी ।


रेखा के मुंह पर हाथ रखे हेमन्त अभी तक लाश को घूरे जा रहा अ---"चेहरे पर उड़ रही थीं हवाइयां-खौफ ही खौफ उसकी कनपटियों तक नजर अा रहा था-यह तक ध्यान न रहा उसे कि उसने रेखा का मुंह भींच रखा है ।




ताश से नज़रें हटाकर बिशम्बर गुप्ता ने उनकी तरफ देखा ।



"अरे !" चौंककर वे लपके-----"रेखा को छोडो हेमन्त !"



इतनी देर में हेमन्त को पहली बार होश आया…उसने चौंककर रेखा की तरफ देखा तो घबरा गया, क्योंकि रेखा के जिस्म में कोई हरकत न थी-गरदन से ऊपर का हिसा उसके कंधे पर झूल-सा रहा था ।



बौखलाकर हेमन्त ने अपना हाथ हटाया ।



इस संभावना ने दोनों के देवता कूच करा दिए कि कहीं रेखा का दम तो नहीं घुट गया है । तभी तो नब्ज टटोलने के बाद बिशम्बर गुप्ताने कहा---- "आतंक ही पराकाष्ठा के कारण रेखा शायद बेहोश होगई है ।"



"ऐसा ही लगता है । हेमन्त को अपनी अाबाज किसी गहरे अंधकूप से अाती महसूस हुई !




" इसे बिस्तर पर लेटा देना चाहिए !"


हेमन्त बोलना चाहता था, किंतु मुंह से अाबाज न निकली-------" रेखा को उसने ठीक से अपने कंधे पर लाद लिया-कमरे से बाहर निकलकर ड्राइंगरूम में पहुचा तो ललितादेबी चीख पड़ी---"क.....क्या हुअा---क्या हुआ मेरी वेटी को ?"




बेडरूम और ड्राइंगरूम के बीच का दरवाजा बंद करते हुए बिशम्बर गुप्ता ने कहा----"कुछ नहीं, डर के मारे बेहोश हो गई है !"



"हाय मेरी बैटीं------मेरी रेखा !"




"..श ..शटअप !" हेमन्त गुर्रा उठा---"'यह रोना--धोना बंद करों मम्मी, हमारी आवाज अमर किसी पडोसी ने सुन ली तो सब धरे जाएंगे । "



ललित देब्री हैरत से अाखें फाड़े अपने अाज्ञाकारी बेटे को देखती रह गई !
हेमन्त रेखा को संभाले अागे बढ़ गया ।


उसके पीछे लपकते हुए बिशम्बर गुप्ता ने कहा----"हेमन्त ठीक कह रहा है ललिता !"




"आओ मम्मी ।" उन्हें अमित ने संभाला ।



सभी नीचे पहुंचे, रेखा के कमरे में उसे बेड पर लिटाते हुए हेमन्त ने कहा…"रेखा की तरफ से घबराने की कोई बात नहीं है----कुछ देर बाद इसे खुद होश आ जाएगा । "



सब चुप रहे !



कुछ देर बाद अमित बड़बड़ाया-------"अब हमारे बचाव का हर रास्ता बंद हो चुका है--------------भाभी की लाश घर में है-पुलिस आती ही होगी, दुनिया की कोई ताकत हमें बचा नहीं सकती।"




" बेकार की बातें मत करो अमित !" हेमन्त ने झुंझलाए हुए स्तर में कहा--''मैं और बाबूजी ऊपर जा रहे हैं, निरीक्षण करने पर निश्चय ही हमारे हक में कोई सूत्र मिलेगा---तब तक तुम मम्मी के साथ यहीं रेखा के पास रहो----होश में आने पर अगर रेखा चीखने-चिलाने की कोशिश करे तो इसे ऐसा मत करने देना।"



अमित के मुंह से बोल न फूटा तो केवल गरदन हिलाकर रह गया !

दोनों ने मिलकर बडी सावधानी से कमरे का चप्पा -- चप्पा छान मारा…हेमन्त ने तो हिम्मत करके पलंग पर चढ़कर में झूल रही सुचि की लाश तक की तलाशी ले ली, मगर सुचि का पत्र तो क्या, उसके हाथ का लिखा कागज का एक छोटा-सा ज़र्रा तक न¸ मिला-चेहरे और मस्तिष्क पर हइबड़ाहट तथा खौफ के साथ घोर निराशा के चिह्न भी उभर अाए ।



हताश होकर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा ।


कैंसी अजीब बात थी।


कमरे में एक की प्यारी बहू और दूसरे की जिदंगी लाश वनी लटक रही थी, मगर वे रो नहीं रहे थे, दुख नहीं मना रहे थे-----मना भी नहीं सकते थे, क्योंकि कानून के पंजे इंसान को जब अपनी गरदन पर नजर अाए तो अपना बचाव करने की कोशिश के अलाबा कुछ नहीं सूझता ।



यही हालत उनकी, बल्कि परिवार की थी ।



"कहीं भी, कुछ नहीं है ।" हेमन्त बड़बड़ाया ।




आतंक से बिशम्वर गुप्ता बोले-कमाल है, कहीं सुसाइड नोट नहीं, जबकि कोई भी व्यक्ति आत्महत्या करता है तो आत्महत्या करने की वजह 'गुबार’ के रूप में उसके दिल में होती है, जिसे लिखकर वह मरने से पूर्व अपनी आत्मा को 'गुबार' से मुक्त करना चाहता है-उसे "सुसाइड नोट' कहते हैं और उसी के जरिए अक्सर पता लगता है कि मरने बाले ने अत्महत्या क्योंकी?"




"क्या अाप यह कहना चाहते हैं कि सुचि ने आत्महत्या की है?"




''लाश की स्थिति और पलंग के नीचे लुढ़के स्टूल से तो यहीं कहानी बनती है कि यह स्टूल को ठोकर मारकर पलंग से नीचे गिरा दिया।"
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"यह सब बाते तो बाद में भी सोची जा सकती है बाबूजी, फिलहाल हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पुलिस यहां किसी भी ,क्षण पहुंच सकती है-----जरा सोचिए, इस अवस्था में यदि पुलिस पहुच गई तो क्या होगा ?"




बिशम्बर गुप्ता की सिट्टी-पिट्टी गुम !




"अपने बचाव हैं लिए सबूत की तो बात ही दूर, तर्कसंगत बात तक वहीं है हमारे पास-पुलिस के ढेर सारे सवालों का क्या ज़वाब देंगें ?"



" क----कैसे सबाल?" रिटायर्ड मजिरट्रैट होते हुए इन असाधारण परिस्थितियों में फंसे बिशम्बर गुप्ता ने सबाल किया।



"सबसे पहले पुलिस यह पुछेगी कि सुचि की लाश यहाँ कहां से आगई ?"




. "ह...हमे क्या मालूम ?"' बिशम्बर गुप्ता कह उठे---"हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि यह अमित के साथ, गई थी-इसकी जिद पर अमित इसे बस में अकेली छोडकर हेयर पिन लेने बराल से लोटा------उसके बाद, हमने अब से कुछ ही देर पहले यहाँ सिर्फ इसकी लाश देखी है । "
"यानी सच बोलेंगे ?"



""झूठ बोलें भी क्यों?"



"आपके इस बयान पर पुलिसं ही नहीं, सारी दुनिया ठहाके लगाकर हंसेगी बाबूजी, कोई नहीं मानेगा कि अापके घर में सारी रात लाश लटकी रही है और आपको मालूम ही नहीँ--------लाश भी बहूकी----आजं के माहौल में इस संमाज का एक बच्चा भी आपकी इस सच्चाई पर यकीन नहीं करेगा और वह भी तब, जबकि सुचि के पीहर वालों के पास एक ऐसा पत्र जिसमें साफ लिखा है कि हम इससे दहेज़ मांगा करते थे ।




बिशम्बर गुप्ता के चेहरे का रह सहा. रंग भी उड गया बोले--" क----कुछ समझ में नहीं आ रहा है-आखिर यह
सब केसे और क्या होगया, हम क्या करेंगे । "



"आप मजिस्ट्रेट रहे हैं न बाबूजी । "
हेमन्त ने बड़ा अटपटा सवाल क्रिया ।





बिशम्बर गुप्ता बौखला गये----"इस सवाल का मतलब ?"



"अदालती कार्यवाही को अाप अच्छी तरह जानते हैं, वहां सच वह होता है जो प्रूव हो जाए-झूठ वह जो प्रूव न हो---- अपनी कु्र्सी पर बैठकर आपने कईं बार यह महसूस किया होगा कि सबूतों के अभाव में सच झूठ बन गया और झूठ सच्च----कई बार ऐसा होता है जब आप जैसा मजिस्ट्रेट अच्छी तरह यह जानता है कि मुलजिम वाले कटहरे में खडा व्यक्ति मुजरिम है, क्रिहू प्रर्याप्त सबूतों के अभाव में आप उसे बाइज्जत वरी का देते हैं !"





"ऐसा होता है मजबूरी है-कानून सबूत' चाहता है ----यह नहीं कि आपको क्या बात मालूम है, क्या नहीं-----इन सव बातों का जिक्र यहाँ क्यों ?"




"इसलिए कि अदालत में आपका सच झूठ में बदल जाएगा और जो सच नहीं है, वह सुचि के पत्र की रोशिनी में सच बन जाएगा । "



"आखिर हम क्या करें ?" बिशम्बर गुप्ता का दिमाग 'ठस्स' होकर रह गया था ।



हेमन्त ने कुछ कहने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि कॉलबेल बज उठी, दोनों इस तरह उछल पडे़ जैसे बिच्छू ने एक साथ डंक सारा हो ।

"क----कौन हों सकता है ? "



'शायद पुलिस । "



रोंगटे खड़े हो गए दोनों के-दिमाग में सांय सांय की आवाज गूंजने लगी----एक पल के लिए तो दोनों में से किसी के मुंह से बोल न फूटा फिर अचानक हेमन्त को ख्याल आया कि कहीं अमित दरवाजा न खोल दे । अतः तेजी से बोला-------"अगर पुलिस हो तो किसी भी कीमत पर उसे यहां नाहीं पहुंचने देना बाबूजी और न् ही यह बताना है कि हमऩे यहां लाश देखी है !"



"ल----लेकिन !" बिशम्बर गुप्ता कुछ कहने का प्रयास करते रह गए, जबकि हेंमन्त उन्हें भी नीचे आने के लिए कह कर तेजी से भागता चला गया ।

जो बात हेमन्त ने बिशम्बर गुप्ता से कही थी, वहीं उतनी ही तेजी से अमित और ललितादेबी से भी कही-----वे कुछ वोल न सके, डरे-सहमे, हक्के-बक्के से हेमन्त को देखते भर रह गए वह ।



रेखा को अभी तक होश नहीं अाया था ।


कॉलवेल तीसरी बार बजी !


रेखा को वहीं छोड़कर उन्हे ड्राइंगरूम में जाने के लिए कहता हुआ हेमन्त तेजी से बाहर निकल गया-तब तक
हेमन्त के शब्दों की गहराई को तौलते हुए विशम्बर गुप्ता भी नीचे आ चूके थे, हेमन्त तेजी से लपका ।



गेलरी में पहुंचकर उसने ऊंची आवाज में पूछा…"कौन है ?"



".पुलिस !" कान के पदों से यह शब्द टकराते ही हेमन्त का दिमाग नाच उठा, टागें कांप गई, मगर मजबूरी थी----" आगे बढ़कर उसे दरवाजा खोलना ही पड़ा । "


दरवाजे पर पांच सिपाहियों के साथ सुनहरे बालों और बलिष्ठ जिस्म वाला एक साढे फूट लम्बा इंस्पेक्टर खड़ा था…सुनहरी पलकों से धिरी उसके पास किसी बिल्ली की तरह भूरी आंखे थी ।।




जव उसने यह महसृम किया कि वे भूरी आँखें उसे घूर रही हैं तो पेट में गेस का गोता-सा उठकर, रह-रहकर उसकी पसलियों पर बार करने लगा…-संभालने की लाख चेष्टाओं के बावजूद चेहरा कम्बख्त पीला पड़ता ही चला गया।



पुलिस फोर्स के साथ दरवाजे पर दीनदयाल भी खड़े थे…बे उसे कुछ इस तरह घूर रहे थे जैसे कसाई बकरे को धुरता है, हेमन्त बडी मुश्किल से कह सका----"आइए !" ।



" य. . .यही हेमन्त है, इंसपेक्टर !" दीनदयाल चीखा ।


हाथ में दवे रूल को धीरे--थीरे अपनी बाई हथेली पर मारते हुए इंस्पेक्टर ने कुछ ऐसे अंदाज में गरदन हिलाई कि हेमन्त के देवता कूच कर गए----बिना कुछ बोले उसने अंदर कदम रखा ।



हेमन्त यंत्र चलित-सा एक तरफ हट गया ।



पुलिस फोर्स के साथ दीनदयाल भी ड्राइंगरूम में आगया-----"' बिशम्बर गुप्ता, ललिता और अमित एक पंक्ति में बुत बने खडे़ थे !


चेहरों पर आतंक ही आतंक !



इंस्पेक्टर ने एक-एक को घूरा और जिसको भी उसने घूरा उसी के पेट में गेस का एक गोता-सा उठकर दिल को ठोकरें मारने लगा और फिर वहां गूंजी इंस्पेक्टर की कर्कश आबाज---"आप लोगों को शायद मालूम होगा कि हम यहाँ क्यों आये हैं !"



" जी !" संक्षिप्त जवाब विशाम्बर गुप्ता ने दिया ।



मेरा नाम पी.सी. गोडारकर है और आप ही के इलाके के थाने का इंचार्ज हुं, सबसे पहला सबाल मैं आपसे करना चाहता हूं मिस्टर अमित !"



अमित के तिरपन कांप गये -- हलक से निकला --------"जी । "



"आपके जिस्म पर इतना खून क्यों हैं ? "


अमित बगलें झांकने लगा, मदद के लिए हेमन्त और बिशम्बर गुप्ता की तरफ देखा उसने, हेमन्त ने तेजी से आगे बढ़कर कहा--" अमित्त, अब तुम पुलिस के संरक्षण में हो-क्रोइ मार नहीं सकेगा, जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ है, वह साफ-साफ बता दो ।"

दुनिया-भर का साहस जुटाकर अमित ने कहा "मुझे मिस्टर मनोज, दीनदयाल जी और इनके मोहल्ले वालों ने वहुत मारा है ।"



"कब ?"


"कल रात ! "


"अाप इनके मोहल्ले में क्यों गए थे?"


जवाब देने से पूर्व अमित ने एक वार फिर हेमन्त और बिशम्बर गुप्ता की तरफ देखा, उनकी मूक स्वीकृति मिलने पर बोता--" कल शाम करीब साढ़े पांच बजे एक टेलीग्राम .....!" अमित सब कुछ ज्यों-का-त्यों बता गया ।"



सुनने के बाद इंस्पैक्टर गोडास्कर ने पूछा--'"जव तुम हैयर पिन लेकर हापुड्र पहुचे तो पायाकि सुचि वहाँ नहीं पहुंची है !"



" पिन लेकर नहीं इंसपेक्टर, क्योकि पिन तो यहां थे ही नहीं दरअसल वे तो भाभी की अटैची में ही रखे थे ।"




"जो पत्र दीनदयाल ने तुम्हें दिखाया, क्या वह सुचि का ही लिखा हुआ था !"


"लगता तो भाभी का ही था !"


"लगता था से क्या मतलब ?"


'‘यह कि एक नजर में यह राइर्टिग मुझे भाभी की ही लगी थी, मगर वहुत ध्यान से नहीं देख पाया, क्योंकि उस वक्त मुझे अपनी जान की चिंता थी, अगर मैं वहां से भाग न जाता तो मनोज और मोहल्ले के लोग मार डालते । "



" क्या उनके चंगुल से निकलने के बाद आप पुलिस की शरण मै गए ?"


"नहीं ?"



"क्यों ?" एकएक एक गोडास्कर का लहजा किसी सख्त खुरदरे और कठोर पत्थर की तरह उसके जेहन से टकराया----" आपको थाने में जाकर अपने साथ हुई मारपीट की रपट लिखबानी चाहिएं थी, आखिर बे लोग तुम्हें जान से मारने पर अामादा हो गए थे ?"


''म.. .मैं बहुत डर गया था ।"



"यहाँ आकर इसने जैसे ही सारी बातें हमें बताई, हमनें सबसे पहले यही कहा कि पुलिस की शरण में न जाकर इसने गलती की है ।" बिशम्बर गुप्ता बोले ----" बच्चा है बूरी तरह डरा हुआ था !"
एकाएक उनकी तरफ पलटकर गोडास्कर ने कहा---" आप तो बनजुर्ग और समझदार हैं ।"



"ज...जी--क्या मतलब ?" बिशम्बर गुसा सटपटा गए ।



"आपने इसके यहाँ पहुंचते ही पुलिस को सुचित क्यों नहीं क्रिया कि आपके लड़के के साथ इतंनी जबरदस्त मारपीट हुइ है, मेरे ख्याल से यहाँ पहुंचे मिस्टर अमित को काफी टाइम हो गयाहै । "



"व. . .बो बात यह थी इंस्पेक्टर कि आप देख ही रहे है !" विशम्बर गुप्ता बुरी तरह बौखला गये---"'अमित क्रो अभी तक अपने जिस्म और कपडों से खून तक साफ करने का भी होश नहीं मिला है, जो कुछ इसने बताया, उससे हम सभी का दिमाग कुंठित हो गया-अभी तक हक्के-बक्के से हैं हम…ठीक से निश्चय न कर सके कि हमें क्या करना चाहिए।"



गोडास्कर की आंखों में एक बार फिर वही सख्ती उभरी, जो सामने वाले के पेट से गैस का गोला उठा देती थी, बिशम्बर गुप्ता को धूरता हुआ वह बोला----यानी अभी तक आप ठीक से अपनी योजना नहीं बना पाए हैं ? "


" य...योजना से क्या मतलब ? "



" यह मैं आपके पूरे बयान लेने के बाद बताऊंगा मिस्टर गुप्ता । " गोडास्कर ने एक पल के लिए भी उनके चेहरे से नजरें हटाए बिना कहा--"फिलहाल अाप मेरे इस सवाल का जबाब दीजिए कि क्या मिसेज सुचि यहां पहुंच गई हैं ?" बिशम्बर गुसा के छक्के छूट गए ।



होश उड़ गये उनके, इस घाघ इंस्पेक्टर को निरंतर अपनी ही तरफ धूरता पाकर एक तो पहले ही उनके होश उडे हुए ये, दूसरे अचानक उसने सवाल भी एकदम सीधा और तीखा ठोक दिया, बोले----"यहां से क्या मतलब ?"


"'मतलब सीधा है, भूमि अगर हापुड़ नही पहुंची तो यहीं अाई होगी । "




"य. . यहाँ तो वह नहीं आई । "
" य---यहां तो वह नहीं आइ !"


"तो फिर कहां गई ?"



"ह. . .हम इस बारे में क्या कह सकते हैं । "



"तो फिर अापने अभी तक अपनी बहू के गायब होने की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी है ,आखिर सारी रात गायब रही है वह !"


इस सवाल ने विशम्वर गुप्ता का दिमाग 'भवक'' से हवा में उड़ा दिया-अपनी ही उलझनों में इस कदर फंसे रह गए थे कि सुचि के गायब होने जैसी प्राथमिक, स्वाभाविक एवं महत्वपूर्ण रपट पुलिस में लिखवाने का होश न रहा---"दरअसल यह 'रपट' उनके बचाव का सबसे पहला 'कवच' होनी चाहिए थी---वहीँ बात सामने अाने पर बुरी तरह गड़बड़ा गए और यह देखकर हेमन्त तेजी से अागे बढ़कर बोला---"बाबूजी तो पहले ही परेशान हैं इंस्पेक्टर. आप उन्हे मानसिक यातनाएं देकर जाने क्या कहलवाना चाहतें हैं ।"



‘"मतलब ?" इस बार गोडास्कर दांत भींचकर गुर्राया !


हेमन्त की पसलियों पर चोट कऱते उसके अपने दिल पर पेट से उठा गेस का गोता ठोकरे मार रहा था, उन सबको सहते हेमन्त ने कहा…"बाबूजी ने अभी तो बताया कि सारी बातें कुछ देर पहले ही हमें पता लगी हैं-अमित के जिस्म से खून साफ़ करने तक का मौका नहीं मिला----कुछ देर बाद हम रपट, लिखवाने अापके थाने जाने वाले थे । "


"मगर मिसेज सुचि तो रात से....... !"



"हमे क्या, मालूम कि वह रात से गायब है, हमारी जानकारी में तो वह हापुढ़ गई थी-----बात तो अमित के लौटने पर… पता लगी किं सुचि वहाँ भी नहीं पहुची है, यानी गायब है ? "
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"करेक्ट । गोडास्कर ने कहा-----"आपको यही जवाब सुट करता है । "



"स.. .सूट करने से क्या मतलब ?"



' "आपके इस सवाल का जवाब-भी मैं वाद में दूंगा, पहले यह बताइए कि पिछली रात अाप कहां थे ?


हेमन्त खुल गया, मगर खुद को संभालकर जल्दी ही बोला----"म---मैं कहां होता, यहीं-----घर में था । "
हेमन्त के इस जवाब ने बिशम्बर गुप्ता को ही नहीं वल्कि ललिता और अमित को भी हैरत के सागर में डुबो दिया , तीनों के दिमाग में एकदम यह सबाल उभरा कि हेमन्त बेवजह झूठ क्यों बोल रहा है-मगर हालात ऐसे नहीं थे कि वे कुछ कह सकते, जबकि गोडास्कर ने उसके जवाब में पूछा था… "यानी घर के दूसरे सद्वस्यों की तरह अाप भी अमित के आने पर
विस्तर से उठे हैं ?"



"ज. . जी हां ।"




"मगर जिस तरह मिस्टर गुप्ता के जिस्म पर नाइट गाउन और अापकी माताजी ने "स्लीपिंग सूट'' पहन रखा है, उस तरह अापके तन पर नहीं है ?"



' 'बं. . बो क्या है कि मैंने कपडे चेंज का लिए हैं ।"


"मिस्टर अमित को खून साफ करने तक का समय नहीं मिला, गुप्ताजी को रपट लिखवाने तक का होश नहीं है, मगर आपको इतना होश है कि नाइट ड्रेस उतारकर आप न सिर्फ सूट पहन लेते हैं, वल्कि बिलकुल दुरुस्त अंदाज में टाई भी लगा लेते हैं !"


"आप कहना क्या चाहते हैं ? "



"साफ़ शब्दों में यह कि अाप झूठ बोल रहे हैं ।"



"'झ...झूठ !"



"जी हा, , सरासर झूठ । " गोडास्कर का गोरा चेहरा कनपटियों तक सुर्ख हो गया-----"लिबास बता रहा है कि आप कुछ ही देर पहले कहीं बाहर से आए हैं । "




" यह बकवास और तुम्हारे दिमाग की मनधड़त कल्पना है इंस्पेक्टर ।" हेमन्त दहाड उठा--"मेरा लिबास यह बता रहा हैकि अमित को साथ लेकर मैं थाने में रपट लिखवाने जाने के लिए तैयार हुआ हूं !"



" अमित को इस हाल में ?"



"अमित को इसी हाल में थाने ले जाना जरूरी था, ताकि तुम्हें दिखाया जा सके कि इसे कितनी बूरी तरह पीटा गया है, इसके साथ ही हमें सुचि के गायब होने की 'रपट' भी लिखबानी थी और हम दोनों यहीं से निकलने ही वाले थे कि तुम लोग आ गए । ’



"आप अपने इस झूठ से मुझे संतुष्ट नहीं कर पाए हैं मिस्टर हेमन्त ।"
" और तुम वह साबित नहीं क सकते इंस्पेक्टर गोडास्कर जो करना चाहते हो।"


इस बार मोहक मुस्कान के साथ पूछा गोड़ास्कर ने--"क्या साबित करना चाहता हूं ?"



"शायद यह, कि मैं कहीं बाहर से सुचि की हत्या करके लोटा हूं । "



"आप बडी जल्दी मेरी मंशा समझ गए ? "



"मंशा तो मैं अापकी और अपने ससुर साहब की उसी क्षण समझ गया था, जब अमित के मुंड से वह सब सुना जो , इसके साथ घटा है !"
हेमन्त कहता चला गया…मगर जो कहीं हुआ नहीं है इंस्पेक्टर, उसे अाप साबित नहीं कर सकते !"



'’यह तो मैं तब साबित करूगां मिस्टर हैमन्त, जब सुचि की लाश मिल जाएगी, फिलहाल तो केवल यह साबित करना है कि एक तरह सोची-समझी गई ‘स्कीम' के अंतर्गत अाप
लागों ने सुचि को कहीं छुपाकर रखा है । "



"ह........हम उसे क्यो छुपाएंगें !"



" यह देखने के लिए ऐसा होने पर कानून तुम्हारा क्या बिगाड़ सकता है और जो गेम' तुम लोगों ने तैयार की है उससे पुलिस को किस हदतक चकमा है सकते हो । "




"यह बकवास है । " हेमन्त हलक फाढ़कर चिल्लाया ।



"बकवास नहीं, हकीकत है मिस्टर हेमन्त । " गोडास्कर उतनी ही बुलंदी के साथ गर्राया----"न तो कल अंजूकी शादी थी और न ही उसकी तरफ से कोई टेलीग्राम दिया गया । "



टेलीग्राम हेमन्त की जेब ही में पडा था । उसने निकालकर गोडास्कर को पकडा दिया, बोला----" दीदे फाड़-फाड़कर देखिए इसे !"



गोडास्कर के होठो पर, मुस्कान उभर' अाई, ध्यान से टेलीग्राम का निरीक्षण करने बांद वह बोला----"ऐसा टेलीग्राम हापुड़ के बडे पोस्ट आँफिस से कोई भी दे सकता है मिस्टर हेमन्त ।"



"हमें ख्वाब नहीं चमका था कि टेलीग्राम अंजूने नहीं भिजवाया हैे । ”गोडास्कर ने कैवेंडंर का पैकेट निकाला, एक ठोस सिगरेट सुलगाई ।"
और कश लगाने के बाद सारा धूंआ गटकता हुआ बोला-----"दरअसल इस टेलीग्राम से तुम्हारी स्कीम कार्यान्वित होनी शुरू होती है । "



" कैसी स्कीम ?"



"तुम्हे मालूम था कि अंजू तुम्हारी पत्नी की ऐसी सहेली है, जिसकी शादी का टेलीग्राम मिलने पर यह किसी भी हालत में हापुड़ पहुंचना चाहेगी, अत: किसी के द्वारा ऐसे टाईम पर हापुड़ से दिलवाया गया जिससे वह शाम को पहुंचे-----स्कीम सफल रही और सुचि का अमित के साथ जाना तय हुआ---तुम इनसे पहले ही घर से निकले, बराल पहुच गए--बराल में जब तुम इन्हें मिले तो सुचि चौकी, याद रहे-अमित नहीं चौंका, क्योंकि उसे तो मालूम ही था पुर्व नियोजित योजना के अनुसार तुम्हें वहां मिलना था----सुचि से तुमने कह दिया कि अब तुम ही उसके साथ हापुड़ चल रहे -सुचि को यह सुनकर खुशी ही हुई, अमित योजना के अनुसार घर के बाकी सदस्यों को स्कीम् की कामयाबी की सूचना देने चला जाया, स्कीम यहीं खत्म नहीं हो गई थी-तौ-हेयर पिन बाले के साथ यह बापस हापुढ़ पहुंचा---उधर, किसी बहाने सुचि को तुमने बस से रास्ते ही में उतार लिया-वह तुम्हारी पत्नी थी, अत: तुम्हरि साथ कहीं भी जाने में उसे उज्र न था, जबकि तुम उसे पुर्न निर्धारित उस स्थान पर ले गए जहां ले जाना चाहते थे, वहां कैद करके वापस लौट आए !"




"जो कुछ तुमने कहा, वह सच्चाई नहीं इंस्पेक्टर गोडास्कर, सिर्फ एक कहानी है, कहानी भी ऐसी जिसे तुमने अपने दिमाग की कल्पनाओं से घढा है और इसीलिए तुम इस कहानी को कभी साबित नहीं कर सकते !"



"हर मुजरिम जब योजना बनाकर जुर्म करता है तो यह यही सोच रहा होता है कि योजना फूल-प्रूफ' है और उसका जुर्म कभी साबित होने बाला नहीं है---- मगर कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में ऐसी गड़बड़ जरुर हो जाती है, जो उसे कानून की गिरफ्त में फंसा देती है-अपनी समझ में तुमने भी एक फुल प्रूफ योजना बनाई थी मिस्टर हेमन्त, मगर हाथ
ऐसा सूत्र लग ही गया, जिससे मैं अपनी बात साबित कर सकता हूं !"


"केैसा सूत्र !"



" सुचि का पत्र ।"


हेमन्त तिलमिला उठा--"ऐसा आखिरकार कौन सा पत्र है सुचि का ? '


"यह लो । ” पत्र की एक कॉपी निकालकर गोडास्कर उसकी तरफ बढाता हुआ बोला-----उस पत्र की फोटोस्टेट कॉपी है, दीदे फाड़…फाड़कर पढो़ कि इसमें क्या लिखा है?



पत्र अकेले हेमन्तं ने नहीं, बल्कि बिशम्बर गुप्ता और ललिता ने भी पढ़ा-उनके चेहरे फ़क्क पड़ते चले गए, जबकि गोडास्कर के होठों पर नाचने-बाली मुस्कान अाकर्षक और ज्यादा आकर्षक होती जा रही थी ।
गोडास्कर ने सिगरेट के अंतिम सिरा फर्श पर डालकर अपने भारी बूट से मसला और बोला---"सारी गड़बड़ इस पत्र की बजय से हुई है ।



"क्या मतलब ? "



"न यह पत्र होता, न आसानी से तुम पर शक क्रिया जाता अौर न ही मैं इतनी जल्दी यह समझ पाता कि तुमने सारा काम किस स्कीम के अंतर्गत किया है ! "



" यानी तुमने जो कहानी सुनाई उसका जनाधार यह है ? "




"हर चीज कां अधार यह पत्र है मिस्टर हेमन्त । गोडास्कर ने कहा-------" इसे पढ़ने के बाद कुछ भी छुपा नहीं रह जाता, सब कुछ साफसाफ लिखा हुआ है---- इसी ने मुझे सोचने के लिए एक लाइन दी और तुम लोगों से चंद सवाल करने के बाद तुम्हारी स्कीम तक पहुंच गया-क्योकिं न तो लिखित, न ही मौखिक रूप से सुचि का इसके बाद का कोई स्टेटमेंट है, अाप मजिरट्रेट्र हैं मिस्टर गुप्ता-कम-से-कम अाप तो अच्छी तरह जानते होंगे कि इन हालातों में अगर सुचि मर गई होगी तो इस पत्र का उसका मृत्यु-पूर्व बयान मान लिया जाएगा और यह पत्र न सिर्फ आपको आपके सारे परिवार को फांसी के फंदे पर झुला देगा, बल्कि पूरे शहर के सामने आपके चेहरे पर पड़ा शराफ़त का नकाब नोचकर फेंक देगा ----
जिस बुलंदशहर का बच्चा-बच्चा यह समझता है कि गुप्ताजी वहुत ईमानदार आदमी हैं-----विशम्बर गुप्ता के बोरे में यह प्रसिद्ध है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने कभी रिश्वत नहीं ली-यह सब उसी बिशम्बर गुप्ता को नंगा कर देगा-इस शहर के बच्चे-बच्चे को बता देगा कि बिशम्बर गुप्ता दहेज का लालची भेडिया है, अपनी बृहू से उसने बीस हजार रुपए मांगे और इतना ही नहीं इसी बिशम्बर गुप्ता ने अपनी बहू की हत्या तक कर दी । "



"यह गलत है । " बिशम्बर गुप्ता ममर्ताक अंदाज में चीख पड़े-----''झूठ है, अपनी बहू से हमने कभी एक पैसा नहीं मागा ! "




" तो क्या इस पत्र में गलत लिखा है ?"


"सरासर गलत है ।"



"क्या कोई बहू झूठ-मूठ ऐसा पत्र अपने मायके डाल सकती हैं !"



अचानक हेमन्त चीख़ पड़ा-" 'यह पत्र सुचि का लिखा हो ही नहीं सकता !"




"क्या जाप यह कहना चाहते है कि यह राइटिग सुचि की नहीं ।"



" राइटिंग सुचि की ही लगती है, मगर यह पत्र उसका नहीं होसकता !" गोडास्कर हंसा, बोता-----" क्या अाप खुद नहीं समझ रहे हैं मिस्टर हेमन्त कि अाप कितनी अटपटी बात कर रहे हैं ? "



" मैँ ऐसा सिर्फ इसर्लिए कह रहा हूं क्योंकि सचमुच हममें से किसी ने भी उससे कभी कोई पैसा नहीं मांगा और झूठा पत्र सुचि उपने पीहर लिख नहीं सकतीं।



" आपने खुद स्वीकार किया है कि यह राइटिंग सुचि की है !"



“हां-मैने स्वीकार क्रिया है, क्योंकि मुझे सचमुच यह राइटिंग सुचि की लगती है, मगर जरा सोचने की कोशिश करो इंसपेक्टर शब्दों की गहराई को, समझने की कोशिश करो !"


" क्या समझाना चाहते हैं अाप मुझे ?"




‘"क्या ऐसा नहीं हो सकता गोडास्कर कि यह पत्र किसी ऐसे व्यक्ति ने लिखा जो किसी की भी राइटिंग की नकल मार देने में सिद्धहस्त हो ?"
अब बौखलाहट में अाप बच्चों जैसी बात करने लगे । "



" क्या-मतलब ?"



"किसी की राइटिंग मार देने में महारत हासिल रखने वाला व्यक्ति मुझे या अाप जैसे साधारण व्यक्ति को तो धोखा दे सकता है, मगर. राइटिंग 'एक्सपर्टस को नहीं---वे दोनों ,राइटिंग्स के फ़र्क को आसानी से पकड़ लेंगें !"




"यही तो मैं कह रहा हूं कि क्यों न हम इस पत्र की राइटिंग का मिलान एक्सपर्ट द्धारा सुचि की वास्तविक राइटिंग से कराएं-----मुझे पक्का यकीन कि यह पत्र सुचि का लिखा हुआ नहीं हो सकता ।"



काफी देर से खामोश दीनदयाल एकाएक चीख पडा---" यह बकवास कर रहे हैं इंस्पेक्टर साहब, अगर यह पत्र सुचि के अलाबा किसी अन्य ने लिखा होता-तो इसमें लिखे मुताबिक चार तारिख को सुचि हमारे पास हापुड़ क्यों आती ?"



"यह एक संयोग भी हो सकता है, यहा से तो वह केवल यही कहकर गई थी कि अाप लोगों से मिलने का इसका वहुत मनकर रहा है ! "



' "इस पत्र के संबंध में वहां हमने सुचि से अनेक बातें की इंस्पेक्टर दीनदयाल ने सीधे गोडास्कर से कहा…"इसमें लिखी एक एक बात को उसने केवल स्वीकार ही नहीं किया बल्कि विस्तारपूर्वक यह बताया कि ये लोग किस किस तरह प्रताडि़त करते थे-बीस हजार रुपए भी लेकर आई है वह ।"



"हेमन्त ओंर बिशम्बर गुप्ता आदि उसका चेहरा देखते रह गए, जबकि व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ गोडास्कर ने कहा----" कहिए, क्या मिस्टर दीनदयाल की इन तर्क पूर्ण बातों के बाद भी अाप यह कह सकते हैं कि पत्र किसी अन्य का लिखा हुआ है ?"



' "हमें क्या मालूम कि यह सच ही बोल रहे हैं ?"



"झ. ..झूठ और मैं ? " दीनदयाल दहाड उठा----"भला झुठ क्या बोलने लगा ? "


" अपनी बात को पुख्ता ढंग से साबित करने के लिए । "


गोडास्कर हंसा,, बोला-----"हालांकि मिस्टर दीनदयाल के झूठ बोलने की कोई वजह नजर नहीं अाती मिस्टर हेमन्त और न ही यह बात बिलकुल पल्ले पड़ती है कि राइटिंग की नकल करने में दक्ष कोई व्यक्ति सुचि के मायके में ऐसे मजमून का पत्र डालकर क्या हासिल कर लेगा----फिर भी, राइटिंग एक्सपर्ट सुचि की वास्तविक राइटिंग से इस पत्र की राइटिंग का मिलान करके दूध का दूध पानी का पानी कर देगा और मैं इस पत्र को राइटिंग एक्सपर्ट के पास भेजने को तैयार हूं । "


"थ.....थैक्यू !"


" क्या आपके पास सुचि की वास्तविक राइटिंग है ?"


" हां , शादी से बाद जब बह हापुड़ गई थी तो उसने मुझे कई पत्र लिखे थे-मेरी सेफ में उनमें से कोईं न कोई जरूर पड़ा होगा, मैं लेकर अाता हूं !" कहने के साथ ही अति उत्साह में ड्राइंगरूम से निकल गया ।



बिशम्बर , ललितादेबी और अमित की समझ में नहीं आ रहा था कि हेमन्त क्यों और क्या 'खेल' खेल रहा है .?
"रेखा-रेखा ! हेंमन्त ने दूसरी बार उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे साथ ही पुकारा, मगर तब भी उसके जिस्म में हरकत न हुई तो हड़बड़ा गया----वह बेहद जल्दी में और व्यग्र नजर आ रहा था---तीसरी वार की कोशिश के बाद भी जब वह होश में न अाते उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें बिलकुल साफ नजर अाने लगी !"



दरअ़ासल फिलहाल पुलिस से पीछा छुडाने की उसके दिमाग में एकमात्र तरकीब यह अाई थी कि सुचि के पत्र को संदिग्ध वना दिया जाए---इस तरह वह एक या दो दिन के लिए पुलिस से पीछा छूड़ा सकता था, स्थायी रूप से नहीं ।


एकाएक उसक दिमागे में स्थायी रूप से पीछा छुडा़ने की एक तरकीब अाई ।



रेखा पर उम्मीद लगाकर उसने एक जुआ खेल डाला ।


मगर अब !


रेखा होश में ही न अा रही थी ।



उसे अपने सारे इरादे खाक होते नजर आए तो झुंझलाकर पानी से भरा पूरा गिलास उसके चेहरे पर उल्ट दिया !

रेखा ने झरझुरी सी ली ।

" रेखा.....रेखा.. !" आंखों में उम्मीद की किरण लिए उसने झंझोडा, आवाज को वह इस कदर बुलंद नहीं होने दे रहा था कि ड्राइगरूम तक पहुंचे ।




रेखा के मुंह से हल्की हल्की कराहें निकली । उसकी चेतना लोट रही थी, हेमन्त ने और प्रयास किया---- रेखा ने आखें खोल दीं और चंद पल बाद वह पूरी तरह होश में अा चुकी थी, किंतु यह याद आते ही उसका चेहरा पीला पड गया कि वह किन हालातों में बेहोश हुई थी !



" जोर से मत बोलना रेखा, बाहर पुलिस है !"



"..प ..पुलिस !" सिट्टी पिट्टी गुम ।


" हां ! मगर घबराने की कोई बात नहीं है मेरे साथ ऊपर चलो इस तरह कि हमारे बोलने फिरने की आवाज तक ड्राइंगरूम में न पहुच सके । "


"क्यों ?"


" काम है तुम से !"


" हां !"


" क्या !"


हेमन्त उसे जबरदस्ती उठाता हुआ बोला---" तुम चलो तो सही ।"



" भ भाभी की लाश कहां है ?"


"ऊपर ही !"



"न. .नहीं… । " खौफ के कारण रेखा का बुरा हाल हो गया---" 'म..मैँ ऊपर नहीं जाऊंगी, वहाँ मुझे हार्ट अटैक हो जाएगा भइया-भाभी मर कैसे गई ?"



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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"सवाल बाद में करना, मैं तुम्हें बेडरूमं में नहीं ले जाऊंगा ।" इस आश्वासन के बावजूद वह ऊपर चलने के लिए तैयार न हुई, मगर हेमन्त किसी तरह खींच-खांचकर उसे ले ही गया, उपर वाले ड्राइगरूम के सोफे पर बैठाता हुआ बोला…"तुम यहां रहो, मैं अभी आता हूं ।"


रेखा के मुंह से बोल ना फूटा ! जवकि दोनों कमरें के बीच का दरवाजा खोलकर हेमन्त बेडरूम में चला गया-----सुचि की लाश वहां ज्यों की त्यों लटक रही थी !
सारे कपडे इधर उघर पहले ही फैेले हुए थे । उसने अपनी शादी की एलबम निकाली-----उसी के बीच रखे उसे सुचि के पत्र मिल गए----एक ऐसा पत्र देखकर उसकी आखें चमक उठी,, जिसका कागज कॉपी के बीच वाले स्थान से फाड़ा गया, यानी एक साथ दो पेज । …

उल्टे - सीधे मिलाकर चार बीच में पिंस के छेद ।


मगर सुचि ने लिख एक ही पेज रखा था ! दूसरा पूरी तरह खाली ।


हेमन्त एक पैन और उस पत्र को लिए रेखा के पास आया बोला----" जल्दी से सुचि की राइटिंग में इस खाली पेज पर सुचि के पत्र का मेटर उतार दो ! "


"इससे क्या होगा ?"



"सवाल नहीं, जल्दी करो…क्विक !"



"मगर इतनी जल्दी में राइटिंग हु-ब-हू नहीं मिल सकती भईया !"


"नहीं !" हेमन्त गुर्रा सा उठा…"राइर्टिग हू-बू-हू मिलनी चाहिए अौर काम तुम्हें जल्दी भी निबटाना है, यह किसी एक की नहीं, वल्कि हमारे सारे परिवार की जिदगी और मौत का सवाल है रेखा ।"



"आखिर बात क्या है ?"



" प्लीज, समय मत् गंवाओ-जल्दी करो !"



रेखा ने पहले उसी कागज पर जिस पर सुचि ने पत्र लिख रखा था, सुचि की राइंटिग के कुछ अक्षर बनाए, फिर शब्द और कुछ देर की कोशिश के बाद पूरी एकं पंक्ति लिखकर बोली---" देखना भइया, ठीक है ,क्या ?"



देखते ही हेमन्तं की आंखें हीरों की तरह जगमग करने लगीं…उसे सुचि की राइटिंग और रेखा द्वारा लिखी गई पंक्ति में कहीं भी कोई फर्क नजर ऩहीं आया, मुंह से बरबस ही निकल गया--;-"मार्वलस-वैरी गुड रेखा-अव जल्दी से खाली कागज पर इस पत्र की नकल उतार दो । "


रेखा शुरू हो गई ।


हेमन्त का दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था ।
अब उसे यह चिंता सताने लगी थी कि पत्र लाने के बहाने नीचे बाले ड्राइंगरूम से हटे उसे कांफी देर हो गई है, वे सोच तो जरूर रहे होंगे-----इस बीच बाबूजी,, मां और अमित से जाने यह घाघ इंस्पेक्टर क्या-क्या पूछ रहा होगा ? "



कहीं उनमें से कोई कुछ उल्टा-सीधा न बक दे ।



यह शंका भी उसके दिमाग में उभरने लगी थी कि कहीँ इतनी देर होती देखकर गोडास्कर स्वयं ऊपर न चला आए-बस कल्पना ने उसके दिमाग को फिरकनी की तरह घुमा दिया था, उसके ऊपर चढ़ अाने का मतलब था !



सब कुछ खत्म !


हथकडियां, जिल्लत और फासी ।


रेखा जमी आधा ही पत्र उतार पाई थी कि बाहर वाली गैलरी से भारी बूटों की पदचाप गूंजी-हेमन्त के कान कुत्ते की तरह खडे हो गए ।


उछलकर खडा हुआ ।



हाथ रोककर रेखा फूसफसाई----"प......पुलिस ।"


"तुम अपना काम करो मैं उसे संभबालता हूं ।" कहने को तो हेमन्त ने कह दिया, झपटकर दरवाजे की तरफ बढ भी गया, परंतु गोडास्कर की कल्पना मात्र से ही उसके पेट से गेस का गोला उठाकर दिल से टकराने लगा था ।


बंद दरवाजे पर दस्तक हुई ।


"क..कौन है ?" हेमन्त की आतंक से सराबोर आवाज़ ।



एक कांस्टेबल की आबाज…"आपको नीचे इंस्पेक्टर साहब बुला रहे हैं । "


स्वयं गोडास्कर नहीं था यह सोचकर हेमन्त की हिम्मत बढ़ गई, बोला---- उनसे कहना कि ढूंढ रहा हू अभी तक मिला नहीं है-पांच मिनट में आता हूं !"



" जल्दी अाइए । सपाट स्वर में इस अवाज के बाद दूर होती भारी बूटों की पदचाप, हेमन्त फूसफूसाया-"जल्दी करो रेखा, अगर खूद इंस्पेक्टर ऊपर आ गया तो सुचि की लाश उसकी नजरों से बचानी मुश्किल हो जाएगी ।"
"अब तो हद हो रहीं है ।" अपनी रिस्टवॉच पर नजर डालते हुए गोडास्कर ने कहा-----" मिस्टर हैमन्त पत्र ढूंढ रहे है या भूसे में से सुई, पूरे पंद्रह मिनट हो गये है-----मैं ही देखता हूं !"


" मैं आगया हूं इंसपेक्टर !" हेमन्त तेजी से कमरे में दाखिल होता हुआ बोला----"देर के लिए माफी चाहता हूं---------- मगर वह बात यह थी कि सब चीजे सुचि के चार्ज में रहती थीं न, इसलिए ढूढ़ने में थोड़ी दिक्कत हुई । "



"लगता ,अंत में अाप कामयाब हो ही गए । "



"ज.. जी क्या मतलब ?"



" मेरा इशारा तुम्हारे हाथ में मौजूद इस कागज की तरफ ।"


"ओह हां-----यह लीजिए।" आते हुए हेमन्त ने पत्र उसकी तरफ बढ़ा दिया-------"आप खुद देख लीजिए, यूं देखेने पर राइटिंग में कोई फर्क नजर नहीं अाता, मगर मेरा दिल कहता है कि इन दोनों में कोई फर्क जरूर निकलेगा !"



"राइटिंग का जो विवाद तुमने खडा क्रिया है मिस्टर हेमन्त, यह तुम्हें शाम या ज्यादा-से ज्यादा कल तक बचा पाएगा क्योंकि तब तक रिपोर्ट अा जाएगी । "



कसमसाकर चुप रह गया हेमन्त ।



कुछ देर के लिए वहाँ खामोशी छा गई, ऐसी खामोशी जो भी हरेक को शूल की तरह चुभने लगी-----फिर भी हेमन्त अपनी कारगुजारी पर थोडा खुश था ! किसी भी हद तक सही, मगर वह इस घाघ इंस्पेक्टर को धोखा देने में सफल जरूर हो गया था, अचानक गोडास्कर ने कहा----"'मैं आपको इसी वक्त गिरफ्तार करता हूं मिस्टर अमित ।"



सभी उछल पड़े, गोडास्कर के शब्दों ने, बम के विस्फोट का----सा काम किया था-ओंर अमित के तो दैवता ही कूच कर गए, काटो तो खून नहीं ।


चेहरा निचुड़ सा गया ।



" क.. किसे जुर्म में । हेमन्त चीख-सा पड़ा अमित पर ऐसा क्या एक्सट्रा आरोप है, जो हम पर नहीं । "



"हापुढ़ से एक कार चुराकर बुलंदशहर तकं लाए हैँ यह ।"
गड़गड़ाकर बिजली उनके सिर पर गिरी, अमित बेचारा तो आतंक की प्रतिमूर्ति सा नजर अाने लगा था, हकला उठा-----" ल----लेकिन !"


" आपने कार चुराई थी-यह अाप कुछ ही देर पहले खुद स्वीकार कर चुके है।"



" ज---जी हां !"



"बस--मै आपको उसी जुर्म में गिरफ्तार कर रहा हूं । "



गिरफ्तारी के नाम मात्र से अमित के प्राण कंठ में आ फंसे थे---सभी कसमसा कर ऱह गए, कुछ कर नहीं सकते थे बेचारे----दरअसल इस बड़े झमेले में _'कार चोरी' जैसी मामूली घटना उनके दिमागों में ही न थी ।"




विशम्बर गुप्ता और ललिता हक्का-बक्का रह गए ।



"फिक्र मत करना अमित् तुमपर कोई बहुत बड्रा आरोप नहीं है । हिम्मत करके हेमन्त ने कहा-----''हम तुम्हे जेल तक नहीं पहुंचने देगे, अाज दिन में कचहरी से ही जमानत करा लेंगे तुम्हारी।"



आँखों में खौफ लिए दयनीय भाव से अमित ने उसे देखा ।



हेमन्त को लगा कि वह बहुत डरा हुआ है, अचानक उसके दिमाग में यह ख्याल आया कि दहशतग्रस्त अमित कहीं कुछ ,बक न दे ?




इस विचार ने उसके दिमाग की जड़ों को झंझोड़ डाला ।



अचानक उसे लगा कि 'कार चोरी' का आरोप तो मात्र बहाना है , वास्तव में गोडास्कर ने उसे सुचि बाले वे केस के बारे में सवालात करने हेतु अपने चार्ज में लिया है ।


कांप उठा हेंमन्त !



इस बारे में उसने जितना सोचा, घबराहट बढती ही गई । उसे लगा कि अमित गोड़ास्कर के सवालों के सही जवाब देना तो दूर, संतुलित भी नहीं रह पाएगा-चालाक गोडांस्कर डरा धमका कर या बातों के जाल में फंसाकर कुछ उगलवा ही लेगा ।




हेमन्त का खेल खत्म-सा लगा ।




अंत में गोडास्कर अपनी चाल चल गया था ओऱ व कुछ है भी नहीं कर सकता था ।



"चलिए मिस्टर अमित !" गोडास्कर की यह आवाज हेमन्त के कान में पड़ी, वह किसी पागल की तरह चीख पड़ा ----"होंसला रखना अमित अपने बड़े भाई पर' यकीन ऱखना-मैं किसी को भी ऐसे किसी अपरांथ में फंसने नहीं दूंगा जो हमने किया ही नहीं !"
पुलिस चली गई !


इस्पेक्टर गोडास्कर नाम की वह आफत चली गई, जो सामने वाले के पेट से गैस का गोला उठा दिया करती थी, मगर वह अमित को ले गया था, शायद इसलिएं ड्राइंगरूम में काफी देर तक खामोशी छाईं रही----बीच बीच में वे एकदूसरे की तरफ डरी-सहमी निगाहों से देख लेते थे ।"



हेभन्त धीरे धीरे आगे बढा ।



थका सा वह धम्म से एक सोफे पर गिर पहा । उसीं,क्षण रेखा ने ड्राइंगरूम में कदम रखा-उसके चेहरे
पर देसै ही भाव थे जैसे शेर के सामने बंधी बकरी के चेहरे पर होते हैँ-----जाहिर था कि उसने ड्राइंगरूम के उस दरवाजे के पीछे खड़ी होकर सब कुछ सुना या जो अंदर बाली गेलरी में खुलता था ।


अचानकं बिशम्बर गुप्ता बड़बड़ा उठे------"अब क्या होगा ?"



''आप फिक्र न करे बाबुजी भगवान ने चाहा तो सब ठीक ही होगा ।"



" अगर भगवान की ही नजर तिरछी न होती तो इतना सब कुछ क्यो होता ?" ललितादेवी कह उठी----"जाने वह कौन से जन्म के बदले ले रहा है हमसे।"



"वह अमित को ले गया है, क्या इससे तुम्हें डर नही लग रहा है हेमन्त ?"
बिशम्बर गुप्ता ने पूछा !



" लग रहा है, मगर इसमे ज्यादा हम कर ही क्या सकते थे बाबूजी जितना मैंने क्रिया, सांकेतिक भ'षा में मैंने उसे समझा दिया है कि जो बयान पुलिस को दिया गया है, उससे हटकर गोडास्कर को कुछ न बताए ।



"तुम्हारे कहने से शायद कुछ नहीं होगा, पुलिस के हथकडों को हम जानते हैं-----अगर वे चाहें तो सख्त सै सख्त मुजरिम से हकीकत उगलबा लेते हैं-पुलिस के पास ढेरों तरीके होते हैं, उनके सामने अमित शायद ठहर न सके । "

"शायद ठहर सके----यह उम्मीद लगाने से ज्यादा हम कर ही क्या सकते हैं ?"



"अगर उससे गोडास्कर ने सव कुछ उगलवा लिया तो.......।"



" शुक्रिया ! " चुटकी बजाता हुआ हेमन्त अचानक सोफे से खड़ा हो गया, बोला------" अमित को पुलिस की पूछताछ से बचाने का एक रास्ता है बाबूजी । "



"क्या ?"'




" आपके तो शहर के लगभग सभी वकील जानकार हैं, जानकार ही नहीं -बल्कि कहना चाहिए कि इज्जत करते हैं आपकी-----आप किसी अच्छे वकील को इसी समय थाने भेज सकते हैं, उसके सामने पुलिस अमित को किसी तरह का टॉर्चर नहीं कर पाएगी-----जब कोर्ट के टाइम तक वहीं रहे और अपनी देखरेख में अमित को मजिरट्रेट के सामने पेश कराए--कार चोरी केस मायने नहीं रखता, जमानत आसानी से हो जाएगी । "




बिशम्बर गुप्ता ने गंभीर स्वर में कहा-----" यह सब हो तो जाएगा हेमन्त, मगर. . . ।"



"म------------मगर क्या बाबूजी ? "




"तू आखिर करना क्या चाहता है, कुछ पता तो चले ?"



" क्या ममतलब ?"


"माना कि अमित के द्वारा पुलिस को कुल पता नहीं लगता, दिन में किसी समय हम उसकी जमानत भी करा लाते हैं,, मगर इससे होगा क्या----जो संदेह हम पर किया जाता है क्या उसमे मुक्त हो सकेंगें ?"



" कोशिश तो कर रहा हुं बाबूजी ।



" क्या कोशिश कर रहे हो , हमारा ख्याल तो यह है कि जो कुछ तुम कर रहे हो उससे पल-पल हम लेग मुसीबत की दलदल में और ज्यादा धंसते जा रहे हैं ।"



" मै समझा नहीं ?"



" सबसे पहले तो यह बताओ कि तुमने पुलिस से झूठ क्यों बोला, यह क्यों कहा कि रात तुम धर ही में थे ?"



"क्योकि सच मैं बता नहीं सकता था, उसे प्रूव नहीं कर सकता था । "
"क्यों नहीं बता सकते थे और रही प्रूव करने की बात-ओवर टाइम करने वाला, तुम्हारी फैक्टरी का हर वर्कर गवाही देता कि फैक्टरीं में सारी रात काम चला है और तुम सारी रात फैक्टरी मे ही थे।"




"ऐसा नहीं होता, क्योंकि दरअसल रात न तो फैक्टरी में क्रोई काम हुआ है, न ही मै वहां था ।"



"क...क्या मतलब ?" विशम्बर गुप्ता बुरी तरह उछल पड़े--- फिर कहां थे तुम, सारी रात क्या करते रहे ?"



हेमन्त गंभीर हो गया, बोता-------"'इस सवाल को अाप छोड ही दें तो ज्यादा बेहत्तर होगा बावूजी, बताते हुए मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा । "


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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