रात का शहज़ादा
इमरान ने झल्ला कर रिसीवर पटक दिया….उसे फोन से नफ़रत हो गयी थी….3,4 दिन से वो बेकार मक्खियाँ मार रहा था….उस पर कुछ तो बेकारी बेकारी सवार थी….कुछ फोन….
फोन सवार था….शहेर की एक लड़की ने उससे फोन पर मोहब्बत शुरू कर दी थी….वक़्त-बे-वक़्त रिंग कर के उसे ख्ह्वाम्खा बोर करती थी….
इमरान नही जानता था कि वो कौन है….कैसी है….कहाँ रहती है….बस उसने उससे फोन पर मोहब्बत शुरू कर दी थी….
इस वक़्त तो इमरान को ख़ास तौर पर गुस्सा आया था….उसने रिंग कर के “हेलो” कहा….फिर जल्दी से बोली….ओह डॅडी इधर ही आ रहे है….
और
फोन काट दिया….!
पहले तो इमरान का दिल चाहा के रिसीवर अपने सर पर मारले….
लेकिन
फिर….उसे हुक पर ही पटकने से इतमीनान करना पड़ा….
शायद
आधे ही मिनिट बाद घंटी फिर बाजी….
इमरान सोंच भी नही सकता था कि फिर वही होगी….उसने रिसीवर उठा लिया….
“हेलो”….दूसरी तरफ से लड़की की आवाज़ आई
हाईएन….फिर….? इमरान आँखें फाड़ कर बोला
जी हां….मैं समझी थी शायद डॅडी इसी तरफ आएँगे
खुदारा मुझे अपने डॅडी ही का नाम और पता बता दी जिए….इमरान ने घिघिया कर कहा
हरगिज़ नही….वरना….आप मेरी मोहब्बत का खून कर देंगे….मैं आप को अच्छी तरह से जानती हूँ
अबे ओ….सुलेमान….इमरान हलक फाड़ कर चीखा
जी….फोन से आवाज़ आई
आप से नही….इमरान झुन्झुला कर बोला….मैं अपने नौकर को पुकार रहा था
दूसरी तरफ से हँसने की आवाज़ आई….
फिरकहा गया….आप इतने बे-दर्द क्यूँ है
इमरान ने रिसीवर सुलेमान को थमा दिया
सुलेमान समझा शायद कहीं से उसका फोन आया है….उसने माउत-पीस में कहा….जी….फिर हैरत से आँखें फाड़े हुए कुछ देर तक सुनता रहा….उसके चहरे पर बौखलाहट के आसार थे….उसने फँसी-फँसी आवाज़ में कहा….जी साहब मैं सुलेमान बोल रहा हूँ
पता नही दूसरी तरफ से क्या कहा गया था….
बहेरहाल
जब वो रिसीवर रखने लगा तो उसका हाथ बुरी तरह काँप रहा था
रात का शहज़ादा--हिन्दी नॉवॅल
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रात का शहज़ादा--हिन्दी नॉवॅल
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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रात का शहज़ादा--हिन्दी नॉवॅल--2
क्यूँ बे….यह कौन थी….? इमरान ने गरज कर पूछा
साहब….मैं क्या जानूँ….?
साहब के बच्चे….तुमने अजनबी औरतों से इश्क़ लड़ा-लड़ा कर मेरा फोन नाजायज़ कर दिया
अरे….अल्लाह कसम साहब….मैं तो जानता भी नही
फिर वही बकवास….ज़ोरी और काँटा छुरी….अर्र्ररर….छुरी और…..क्या कहते है बे….?
चोरी और सीना ज़ोरी….सुलेमान जल्दी से बोला
हाँ….फिर बोल
मैं नही जानता साहब कि कौन थी….
हाईएन….क्या दर्जनों है….? इमरान आँखें फाड़ कर बोला
नही साहब….कसम ले ली जिए
कॉपोनर को पढ़ा है तू ने….?
नही साहब….
नीतशे को….?
कौन से नक़्शे को….?
बिल्कुल जाहिल है….अबे नक़्शे नही नितशे….जर्मन फिलॉसफर….नितशे
साहब….आप कुछ भूल गये है….सुलेमान जल्दी से बोला
क्या भूल गया….
यही के आप आज मुझे दिन भर की छुट्टी दे देंगे….कल आप ने वादा किया था
दफ़ा हो जाओ….लेकिन….कान खोल कर सुन ले….इश्क़-विश्क़ का चक्कर छोड़ दे….अभी तेरे बाल-बच्चे भी नही हुए है….बर्बाद हो जाओगे….गेट-आउट
सुलेमान सर खुजाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया
आज-कल इमरान फ्लॅट में तन्हा है….ऋषि ने दूसरा फ्लॅट ले लिया था….
और
अब वहीं रहती थी
इमरान जैसे आदमी को बर्दाश्त कर लेना हर एक के बस का रोग नही होता
इमरान ने अपने घर की शक्ल महीनों से नही देखी थी….रहमान साहब का हुक्म था कि उसे घर में घूसने ना दिया जाए
वैसे
वो उधर गुज़रता ज़रूर था….फाटक पर रुक कर चौकीदार को ग़ालिब के 2,4 शेर सुनाता….कोनफ़ूसिूस के बातें सुनाता और खुद का फलसफा सुनाता हुआ गुज़र जाता….
उसके ख़ास नौकर सुलेमान ने उसका साथ नही छोड़ा
रहमान साहब की मुलाज़िमत छोड़ कर वो भी इमरान के पास पहुँच गया था
ऋषि के चले जाने के बाद….इमरान ने शादी और तलाक़ का बोर्ड हटा दिया
और
अब उसकी जगह एक सादा बोर्ड ने ले ली थी….
जब वो फ्लॅट में दाखिल होने लगता तो उस पर चॉक से लिख देता
अली इमरान एमएससी-पीएचडी (ऑक्सन)
जब फ्लॅट से कहीं बाहर जाने लगता तो उसे मिटा कर लिख देता
सुलेमान (इस नालायक़ के पास कोई डिग्री नही है)
पड़ोसी देखते और हँसते….सुलेमान में इतनी हिम्मत नही थी कि वो उसे मिटा देता
साहब….मैं क्या जानूँ….?
साहब के बच्चे….तुमने अजनबी औरतों से इश्क़ लड़ा-लड़ा कर मेरा फोन नाजायज़ कर दिया
अरे….अल्लाह कसम साहब….मैं तो जानता भी नही
फिर वही बकवास….ज़ोरी और काँटा छुरी….अर्र्ररर….छुरी और…..क्या कहते है बे….?
चोरी और सीना ज़ोरी….सुलेमान जल्दी से बोला
हाँ….फिर बोल
मैं नही जानता साहब कि कौन थी….
हाईएन….क्या दर्जनों है….? इमरान आँखें फाड़ कर बोला
नही साहब….कसम ले ली जिए
कॉपोनर को पढ़ा है तू ने….?
नही साहब….
नीतशे को….?
कौन से नक़्शे को….?
बिल्कुल जाहिल है….अबे नक़्शे नही नितशे….जर्मन फिलॉसफर….नितशे
साहब….आप कुछ भूल गये है….सुलेमान जल्दी से बोला
क्या भूल गया….
यही के आप आज मुझे दिन भर की छुट्टी दे देंगे….कल आप ने वादा किया था
दफ़ा हो जाओ….लेकिन….कान खोल कर सुन ले….इश्क़-विश्क़ का चक्कर छोड़ दे….अभी तेरे बाल-बच्चे भी नही हुए है….बर्बाद हो जाओगे….गेट-आउट
सुलेमान सर खुजाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया
आज-कल इमरान फ्लॅट में तन्हा है….ऋषि ने दूसरा फ्लॅट ले लिया था….
और
अब वहीं रहती थी
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इमरान ने अपने घर की शक्ल महीनों से नही देखी थी….रहमान साहब का हुक्म था कि उसे घर में घूसने ना दिया जाए
वैसे
वो उधर गुज़रता ज़रूर था….फाटक पर रुक कर चौकीदार को ग़ालिब के 2,4 शेर सुनाता….कोनफ़ूसिूस के बातें सुनाता और खुद का फलसफा सुनाता हुआ गुज़र जाता….
उसके ख़ास नौकर सुलेमान ने उसका साथ नही छोड़ा
रहमान साहब की मुलाज़िमत छोड़ कर वो भी इमरान के पास पहुँच गया था
ऋषि के चले जाने के बाद….इमरान ने शादी और तलाक़ का बोर्ड हटा दिया
और
अब उसकी जगह एक सादा बोर्ड ने ले ली थी….
जब वो फ्लॅट में दाखिल होने लगता तो उस पर चॉक से लिख देता
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जब फ्लॅट से कहीं बाहर जाने लगता तो उसे मिटा कर लिख देता
सुलेमान (इस नालायक़ के पास कोई डिग्री नही है)
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Re: रात का शहज़ादा--हिन्दी नॉवॅल
इंटेलिजेन्स डिपार्टमेंट का कॅप्टन फायज़ इसी फिराक़ में पड़ा हुआ था कि इमरान का तालूक होम-डिपार्टमेंट से है भी या नही….
वैसे
वो सोंच भी नही सकता था कि इमरान के लिए कोई ख़ास जगह पैदा की गयी होगी….और उसकी समझ में होम-सेक्रेटरी सर सुल्तान ऐसे नही थे कि इमरान जैसे खर-दिमाग़ आदमी को मूह लगाते
बहेरहाल
यह किसी को भी नही मालूम था कि आज-कल इमरान ज़रिया माश (सोर्स ऑफ इनकम) क्या है….इमरान का ख़याल यह था कि ज़रिया माश सिरे से कोई चीज़ नही है….
अगर
कोई लड़की फोन पर पीछे पड़ जाए तो ज़रिया माश का पसमांदा किसी यतीम-खाने ही के हाथ लग सकता है….!
फोन की घंटी फिर बजी….
और
उसने रिसीवर उठा कर हांक लगाई….मैं इमरान का बाप रहमान बोल रहा हूँ
लेकिन
अब जो गौर से सुना तो वो किसी लड़की आवाज़ नही थी….
बल्कि….शायद
कहीं से ग़लत कनेक्षन हो गया था….
दो आदमी गुफ्तगू कर रहे थे….
और
इमरान एक-एक लफ्ज़ सॉफ सुन रहा था
एक तरफ से बोलने वाला यक़ीनन किसी तकलीफ़ में मुब्तेला था….
क्यूँ कि
उसके मूह से बार-बार कराह निकल जाती थी….!
मैने….आवाज़ आई….तुम्हे बहुत मुश्किल से फोन किया….ओफू….मेरे हाथ पैर एक कुर्सी में ज़कडे हुए है
फिर तुमने नंबर कैसे डायल किया….? दूसरी आवाज़ आई
पहली आवाज़….ओह….बमुश्किल कुर्सी समेत खिसकता हुआ मेज़ तक आया….मेज़ पर पड़ी हुई एक पेन्सिल दाँतों में दबाई….
और
उसी से नंबर डायल किए….रिसीवर को सर से पहले ही मेज़ पर गिरा लिया था
और
अब वो जिस पोज़िशन में है उससे मुझे तुम्हारी आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही है….और मेरी गर्दन टूटी जा रही है….मैं नही जानता कि यह इमारत कहाँ है
दूसरी आवाज़….तुम वहाँ पहुँचे किस तरह….?
पहली आवाज़….मेरी गर्दन टूट रही है….यह फिर बताउन्गा….कुछ करो….कमरे की सारी खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद है….ठहरो
दूसरी आवाज़….लेकिन….जब यही नही मालूम कि इमारत कहाँ है….?
पहली आवाज़….अरे सुनो भी तो….ठहरो….मैं तुम्हे इस फोन का नंबर बताता हूँ
वैसे
वो सोंच भी नही सकता था कि इमरान के लिए कोई ख़ास जगह पैदा की गयी होगी….और उसकी समझ में होम-सेक्रेटरी सर सुल्तान ऐसे नही थे कि इमरान जैसे खर-दिमाग़ आदमी को मूह लगाते
बहेरहाल
यह किसी को भी नही मालूम था कि आज-कल इमरान ज़रिया माश (सोर्स ऑफ इनकम) क्या है….इमरान का ख़याल यह था कि ज़रिया माश सिरे से कोई चीज़ नही है….
अगर
कोई लड़की फोन पर पीछे पड़ जाए तो ज़रिया माश का पसमांदा किसी यतीम-खाने ही के हाथ लग सकता है….!
फोन की घंटी फिर बजी….
और
उसने रिसीवर उठा कर हांक लगाई….मैं इमरान का बाप रहमान बोल रहा हूँ
लेकिन
अब जो गौर से सुना तो वो किसी लड़की आवाज़ नही थी….
बल्कि….शायद
कहीं से ग़लत कनेक्षन हो गया था….
दो आदमी गुफ्तगू कर रहे थे….
और
इमरान एक-एक लफ्ज़ सॉफ सुन रहा था
एक तरफ से बोलने वाला यक़ीनन किसी तकलीफ़ में मुब्तेला था….
क्यूँ कि
उसके मूह से बार-बार कराह निकल जाती थी….!
मैने….आवाज़ आई….तुम्हे बहुत मुश्किल से फोन किया….ओफू….मेरे हाथ पैर एक कुर्सी में ज़कडे हुए है
फिर तुमने नंबर कैसे डायल किया….? दूसरी आवाज़ आई
पहली आवाज़….ओह….बमुश्किल कुर्सी समेत खिसकता हुआ मेज़ तक आया….मेज़ पर पड़ी हुई एक पेन्सिल दाँतों में दबाई….
और
उसी से नंबर डायल किए….रिसीवर को सर से पहले ही मेज़ पर गिरा लिया था
और
अब वो जिस पोज़िशन में है उससे मुझे तुम्हारी आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही है….और मेरी गर्दन टूटी जा रही है….मैं नही जानता कि यह इमारत कहाँ है
दूसरी आवाज़….तुम वहाँ पहुँचे किस तरह….?
पहली आवाज़….मेरी गर्दन टूट रही है….यह फिर बताउन्गा….कुछ करो….कमरे की सारी खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद है….ठहरो
दूसरी आवाज़….लेकिन….जब यही नही मालूम कि इमारत कहाँ है….?
पहली आवाज़….अरे सुनो भी तो….ठहरो….मैं तुम्हे इस फोन का नंबर बताता हूँ
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Re: रात का शहज़ादा--हिन्दी नॉवॅल
आवाज़ आनी बंद हो गयी….
लेकिन
इमरान रिसीवर से कान से लगाए रहा….!
कुछ देर बाद आवाज़ आई….इसका नंबर 31860 है….डाइरेक्टरी में देखो यह नंबर किस का है पता चल जाएगा….
लेकिन
अब यहाँ फोन मत करना….
क्यूँ कि
मैं रिसीवर को किसी तरह भी हुक पर रख कर सिलसिला ख़त्म नही कर सकता….!
दूसरी आवाज़….अच्छा….मैं कोशिश करता हूँ….सिलसिला ख़त्म हो गया
इमरान ने झपट कर टेलिफोन डाइरेक्टरी उठाई….नंबर की तलाश आसान काम नही था….फिर भी वो बड़ी तेज़ी से तलाश करता रहा
उसी दौरान में फोन की घंटी फिर बजी….
और
इमरान रिसीवर उठा लिया
हेलो….दूसरी तरफ से आवाज़ आई
और
यह किसी लड़की की आवाज़ थी
इमरान बुरा सा मूह बना कर बोला….हेलो यतीम-खाना….अंजुम सादात
ओह….मुआफ़ की जिएगा….दूसरी तरफ से आवाज़ आई और फोन कट गया
इमरान रिसीवर रख कर फिर डाइरेक्टरी तलाश करने लगा….
और
इस बार उसे वो नंबर मिल गया….
लेकिन
उसकी हैरत की कोई इंतेहा ना रही जब उसने देखा कि वो नंबर….होम-डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी सर सुल्तान के निजी टेलिफोन का है
इमरान बड़ी तेज़ी से अपना सर हिलाने लगा….इतने में फोन की घंटी फिर बजी….और….इमरान सर हिलाते-हिलाते रुक कर अपने सर पर तमाचे मारने लगा
इस बार उसने रिसीवर नही उठाया….घंटी बजती रही और वो बाहर जाने के लिए लिबास तब्दील करता रहा….आख़िर घंटी बजना बंद हो गयी….
और
इमरान मेज़ पर से फेल्ट-हट उठा कर बाहर आया
लेकिन
वो इस वक़्त भी साइन-बोर्ड पर से अपना नाम मिटाना नही भूला….चूँकि सुलेमान अंदर मौजूद नही था….उसने अपना नाम मिटा कर उसका नाम लिखने की बजाए लिख दिया….अल्लाह का फ़ज़ल है….
फिर
फ्लॅट को बंद कर के वो पैदल ही उस तरफ चल पड़ा….जहाँ उसने एक गॅरेज किराए पर ले रखा था….गॅरेज से अपनी टू-सीटर निकाली
और
सर सुल्तान के बंगले की तरफ रवाना हो गया….!
लेकिन
इमरान रिसीवर से कान से लगाए रहा….!
कुछ देर बाद आवाज़ आई….इसका नंबर 31860 है….डाइरेक्टरी में देखो यह नंबर किस का है पता चल जाएगा….
लेकिन
अब यहाँ फोन मत करना….
क्यूँ कि
मैं रिसीवर को किसी तरह भी हुक पर रख कर सिलसिला ख़त्म नही कर सकता….!
दूसरी आवाज़….अच्छा….मैं कोशिश करता हूँ….सिलसिला ख़त्म हो गया
इमरान ने झपट कर टेलिफोन डाइरेक्टरी उठाई….नंबर की तलाश आसान काम नही था….फिर भी वो बड़ी तेज़ी से तलाश करता रहा
उसी दौरान में फोन की घंटी फिर बजी….
और
इमरान रिसीवर उठा लिया
हेलो….दूसरी तरफ से आवाज़ आई
और
यह किसी लड़की की आवाज़ थी
इमरान बुरा सा मूह बना कर बोला….हेलो यतीम-खाना….अंजुम सादात
ओह….मुआफ़ की जिएगा….दूसरी तरफ से आवाज़ आई और फोन कट गया
इमरान रिसीवर रख कर फिर डाइरेक्टरी तलाश करने लगा….
और
इस बार उसे वो नंबर मिल गया….
लेकिन
उसकी हैरत की कोई इंतेहा ना रही जब उसने देखा कि वो नंबर….होम-डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी सर सुल्तान के निजी टेलिफोन का है
इमरान बड़ी तेज़ी से अपना सर हिलाने लगा….इतने में फोन की घंटी फिर बजी….और….इमरान सर हिलाते-हिलाते रुक कर अपने सर पर तमाचे मारने लगा
इस बार उसने रिसीवर नही उठाया….घंटी बजती रही और वो बाहर जाने के लिए लिबास तब्दील करता रहा….आख़िर घंटी बजना बंद हो गयी….
और
इमरान मेज़ पर से फेल्ट-हट उठा कर बाहर आया
लेकिन
वो इस वक़्त भी साइन-बोर्ड पर से अपना नाम मिटाना नही भूला….चूँकि सुलेमान अंदर मौजूद नही था….उसने अपना नाम मिटा कर उसका नाम लिखने की बजाए लिख दिया….अल्लाह का फ़ज़ल है….
फिर
फ्लॅट को बंद कर के वो पैदल ही उस तरफ चल पड़ा….जहाँ उसने एक गॅरेज किराए पर ले रखा था….गॅरेज से अपनी टू-सीटर निकाली
और
सर सुल्तान के बंगले की तरफ रवाना हो गया….!
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Re: रात का शहज़ादा--हिन्दी नॉवॅल
दूसरे बंगले का फासला ज़्यादा नही था
इमरान ने टेलिफोन के तारों पर नज़र डाली
और
होंठों को दायरे की शक्ल दे कर सर हिलाने लगा….इतने में बंगले की कुंजी उसके पास पहुच गयी
सर सुल्तान खुद नही आए थे….कुंजी एक नौकर के हाथ भिजवाई थी
साहब से कह दो खुद तशरीफ़ लाये….इमरान ने कहा
मैं कैसे कहूँ साहब….? नौकर बोला
ठहरो….इमरान ने जेब से नोट-बुक निकाली….उस पर कुछ लिखा और काग़ज़ फाड़ कर नौकर के हाथ में देता हुआ बोला….नही कह सकते तो यह उन्हे दे देना….जल्दी करो
नौकर चला गया….
इमरान वहीं टहलता रहा….उसके चहरे पर उलझन के आसार थे
और
वो बार-बार उस तार की तरफ देखने लगता….जो सर सुल्तान के बंगले के तार के खंबे से दूसरे बंगले की दीवार तक फैला हुआ था
उसे तीन या चार मिनिट तक सर सुल्तान का इंतजार करना पड़ा
सर सुल्तान आए ज़रूर….
मगर
कुछ झुन्झुलाये हुए से मालूम हो रहे थे….मैं फिर कहता हूँ किसी ने मज़ाक़ किया होगा….उन्होने कहा
मगर….यह देखिए….इमरान उपर की तरफ उंगली उठा कर बोला….इस सिलसिले का क्या मतलब हो सकता है….आप के वाइयर पोल से यह कनेक्षन कैसा….?
ओहूओ….सर सुल्तान के होंठ हैरत से खुल गया….
फिर
वो इमरान की तरफ देखा फिर बोले….बड़ी अजीब बात है
बस अब आइए….इमरान दूसरे बंगल की तरफ बढ़ता हुआ बोला
वो दोनो चक्कर काट कर बंगल के बरामदे के सामने पहुँचे और जैसे ही वो आगे बढ़े
एक बार फिर सिर सुल्तान की आँखों से हैरत झाँक ने लगी….हायें….यहाँ तो ताला पड़ा हुआ था….वो बडबडाये
इमरान उनकी तरफ ध्यान दिए बाघैर आगे बढ़ता चला गया
अब सर सुल्तान की रफ़्तार भी तेज़ हो गयी थी
इमरान ने दरवाज़े पर रुक कर उसके बोल्ट को गौर से देखा और जेब से रुमाल निकाल कर अपने हाथ पर लपेट लिया….
फिर
उसी हाथ से दरवाज़े को धक्का देता हुआ अंदर दाखिल हो गया
सर सुल्तान खामोश थे….!
इमरान ने टेलिफोन के तारों पर नज़र डाली
और
होंठों को दायरे की शक्ल दे कर सर हिलाने लगा….इतने में बंगले की कुंजी उसके पास पहुच गयी
सर सुल्तान खुद नही आए थे….कुंजी एक नौकर के हाथ भिजवाई थी
साहब से कह दो खुद तशरीफ़ लाये….इमरान ने कहा
मैं कैसे कहूँ साहब….? नौकर बोला
ठहरो….इमरान ने जेब से नोट-बुक निकाली….उस पर कुछ लिखा और काग़ज़ फाड़ कर नौकर के हाथ में देता हुआ बोला….नही कह सकते तो यह उन्हे दे देना….जल्दी करो
नौकर चला गया….
इमरान वहीं टहलता रहा….उसके चहरे पर उलझन के आसार थे
और
वो बार-बार उस तार की तरफ देखने लगता….जो सर सुल्तान के बंगले के तार के खंबे से दूसरे बंगले की दीवार तक फैला हुआ था
उसे तीन या चार मिनिट तक सर सुल्तान का इंतजार करना पड़ा
सर सुल्तान आए ज़रूर….
मगर
कुछ झुन्झुलाये हुए से मालूम हो रहे थे….मैं फिर कहता हूँ किसी ने मज़ाक़ किया होगा….उन्होने कहा
मगर….यह देखिए….इमरान उपर की तरफ उंगली उठा कर बोला….इस सिलसिले का क्या मतलब हो सकता है….आप के वाइयर पोल से यह कनेक्षन कैसा….?
ओहूओ….सर सुल्तान के होंठ हैरत से खुल गया….
फिर
वो इमरान की तरफ देखा फिर बोले….बड़ी अजीब बात है
बस अब आइए….इमरान दूसरे बंगल की तरफ बढ़ता हुआ बोला
वो दोनो चक्कर काट कर बंगल के बरामदे के सामने पहुँचे और जैसे ही वो आगे बढ़े
एक बार फिर सिर सुल्तान की आँखों से हैरत झाँक ने लगी….हायें….यहाँ तो ताला पड़ा हुआ था….वो बडबडाये
इमरान उनकी तरफ ध्यान दिए बाघैर आगे बढ़ता चला गया
अब सर सुल्तान की रफ़्तार भी तेज़ हो गयी थी
इमरान ने दरवाज़े पर रुक कर उसके बोल्ट को गौर से देखा और जेब से रुमाल निकाल कर अपने हाथ पर लपेट लिया….
फिर
उसी हाथ से दरवाज़े को धक्का देता हुआ अंदर दाखिल हो गया
सर सुल्तान खामोश थे….!
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