Thanks dosto
ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
- 007
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
मैं जब घर आया तो रात बहुत बीत गयी थी पर निशा दरवाज़ पे ही बैठी थी मेरे इंतज़ार मे मुझे देख कर उसको थोड़ी तसल्ली हुई मेरे बॅग को साइड मे रखा मैं भी उसके पास ही बैठ गया
वो- आज देर हो गयी
मैं- हाँ
वो-खाना खाओगे
मैं- तुमने खाया
वो- तुम्हारे बिना कैसे खाती
मैं- हाँ फिर ले आओ यही खाते है
कुछ देर बाद वो दो थालिया ले आई उसको अपने पास देख के मैं बहुत अच्छा फील करता था वैसे मुझे भूख नही थी पर अगर मैं नही ख़ाता तो वो भी नही खाती तो फिर मैने भी कुछ नीवाले खा लिए , उसने बर्तन समेटे मैं भी अंदर आ गया कुछ देर बाद वो मेरे पास आ बैठी
मैं- जानती हो निशा, जब तुम दूर थी मैं बहुत याद करता था तुम कहाँ हो किस हाल मे हो, मैं तुम्हे याद हूँ भी या नही
वो- तुम्हे कैसे भूल सकती थी मैं आज जो हूँ तुम्हारे कारण हूँ मैं
मैं- नही रे पगली , तेरी अपनी मेहनत है मैं क्या था एक आवारा जिसकी ना कोई मंज़िल थी ना कोई ठिकाना पर फिर तुम वो दोस्त बनकर मेरी जिंदगी मे आई जिसका हमेशा से मुझे इंतज़ार था और फिर ज़िंदगी बदल गयी कितना कुछ सीखा है तुमसे वो दिन भी क्या दिन थे बस ज़ी तो तभी ही लिए थे अब तो बस सांसो का बोझ ढो रहे है , वो छोटी छोटी बाते कितनी खुशियाँ देती थी दो रोटी थोड़ी सी सिल्वट पर पिसी हुई लाल मिर्च और एक गिलास लस्सी मे ही अपना पेट भर जाता था
और वो जलेबिया जो तुम लाया करती थी क्या महक आती थी उनमे से अब वो कहाँ , निशा जब तुम पानी भरने मंदिर के नलके पे आती थी मैं तुम्हे देखता था कसम से जैसे ही तुम्हारी इन हिरनी जैसी आँखो से आँखे मिलते ही पता नही क्या हो जाता था बस वो दो पल की मुलाकात ही होंठो को मुस्कुराने की एक वजह दे जाती थी
वो- और तुम जो अपने दोस्तो के साथ उल्जुलुल हरकते करते थे जैसे ही मैं आती कितना इतराते थे तुम कितने गंदे लगते थे तुम जब तुम अपने बालो को जेल लगाते थे और उस दिन जब तुम कीचड़ मे फिसल कर गिरे थे कितना हँसी थी मैं
मैं-वो तो मैं तुम्हे इंप्रेस करने के चक्कर मे गिर गया था पर कुछ भी कहो वो भी क्या दिन थे
वो- हाँ ये तो है
मैं- और वो तो बेस्ट था जब जयपुर मे तुम टल्ली होकर सड़क पर घूम रही थी और फिर उल्टी कर दी थी तुमने
वो- तुम्हे याद है वो
मैं- वो कोई भूलने की बात थोड़ी ना है
वो- पता है उसके बाद मैने फिर कभी नही पी
मैं- क्या बात कर रही हो
वो- कसम से
मैं- चल आज फिर आजा एक बार फिर घूमते है रोड पर टल्ली होके
वो- ना बाबा ना अब बात अलग है
मैं- क्या अलग है वो ही तुम हो वो ही मैं हूँ
वो- कही फिर टल्ली ना हो जाउ
मैं- तब भी संभाला था आज भी संभाल लूँगा
वो – एक बात पुछु
मैं- दो पूछ ले यारा
वो- चल जाने दे फिर कभी पूछूंगी मैं बॉटल लाती हूँ
वो- आज देर हो गयी
मैं- हाँ
वो-खाना खाओगे
मैं- तुमने खाया
वो- तुम्हारे बिना कैसे खाती
मैं- हाँ फिर ले आओ यही खाते है
कुछ देर बाद वो दो थालिया ले आई उसको अपने पास देख के मैं बहुत अच्छा फील करता था वैसे मुझे भूख नही थी पर अगर मैं नही ख़ाता तो वो भी नही खाती तो फिर मैने भी कुछ नीवाले खा लिए , उसने बर्तन समेटे मैं भी अंदर आ गया कुछ देर बाद वो मेरे पास आ बैठी
मैं- जानती हो निशा, जब तुम दूर थी मैं बहुत याद करता था तुम कहाँ हो किस हाल मे हो, मैं तुम्हे याद हूँ भी या नही
वो- तुम्हे कैसे भूल सकती थी मैं आज जो हूँ तुम्हारे कारण हूँ मैं
मैं- नही रे पगली , तेरी अपनी मेहनत है मैं क्या था एक आवारा जिसकी ना कोई मंज़िल थी ना कोई ठिकाना पर फिर तुम वो दोस्त बनकर मेरी जिंदगी मे आई जिसका हमेशा से मुझे इंतज़ार था और फिर ज़िंदगी बदल गयी कितना कुछ सीखा है तुमसे वो दिन भी क्या दिन थे बस ज़ी तो तभी ही लिए थे अब तो बस सांसो का बोझ ढो रहे है , वो छोटी छोटी बाते कितनी खुशियाँ देती थी दो रोटी थोड़ी सी सिल्वट पर पिसी हुई लाल मिर्च और एक गिलास लस्सी मे ही अपना पेट भर जाता था
और वो जलेबिया जो तुम लाया करती थी क्या महक आती थी उनमे से अब वो कहाँ , निशा जब तुम पानी भरने मंदिर के नलके पे आती थी मैं तुम्हे देखता था कसम से जैसे ही तुम्हारी इन हिरनी जैसी आँखो से आँखे मिलते ही पता नही क्या हो जाता था बस वो दो पल की मुलाकात ही होंठो को मुस्कुराने की एक वजह दे जाती थी
वो- और तुम जो अपने दोस्तो के साथ उल्जुलुल हरकते करते थे जैसे ही मैं आती कितना इतराते थे तुम कितने गंदे लगते थे तुम जब तुम अपने बालो को जेल लगाते थे और उस दिन जब तुम कीचड़ मे फिसल कर गिरे थे कितना हँसी थी मैं
मैं-वो तो मैं तुम्हे इंप्रेस करने के चक्कर मे गिर गया था पर कुछ भी कहो वो भी क्या दिन थे
वो- हाँ ये तो है
मैं- और वो तो बेस्ट था जब जयपुर मे तुम टल्ली होकर सड़क पर घूम रही थी और फिर उल्टी कर दी थी तुमने
वो- तुम्हे याद है वो
मैं- वो कोई भूलने की बात थोड़ी ना है
वो- पता है उसके बाद मैने फिर कभी नही पी
मैं- क्या बात कर रही हो
वो- कसम से
मैं- चल आज फिर आजा एक बार फिर घूमते है रोड पर टल्ली होके
वो- ना बाबा ना अब बात अलग है
मैं- क्या अलग है वो ही तुम हो वो ही मैं हूँ
वो- कही फिर टल्ली ना हो जाउ
मैं- तब भी संभाला था आज भी संभाल लूँगा
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मैं- दो पूछ ले यारा
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
मैं और निशा टुन्न हो चुके थे पूरी तरह से कभी हँस रहे थे कभी रो रहे थे जी रहे थे अपनी यादो मे , बस ये यादे ही तो थी जो अपनी थी मैने निशा की छोटी के रिब्बन को निकाल दिया हमेशा से ही मुझे लड़किया या औरते बस खुले बालो मे ही अच्छी लगती थी
वो- ये क्या किया
मैं- ऐसे ही अच्छी लगती हो तुम
वो- मनीष , तुम यार सच मे ही अजीब हो
मैं- हाँ सब तुम्हारा ही असर है
वो- अच्छा जी और मुझ पर जो ये रंग चढ़ा है ये किसका है
मैं- मुझे क्या पता
वो- तो किसे पता
मैं- तुम जानो
तभी वो थोड़ा सा लड़खड़ाई मैने उसकी कमर मे हाथ डाला और उसको अपनी बाहों मे थाम लिया उसकी छातिया आ लगी मेरे सीने से उसकी साँस मेरे चेहरे को छू गयी वो लहराने लगी मेरी बाहों मे हल्की सी जुल्फे उसके चेहरे पर आ गयी थी मैने उन लटो को सुलझाया उसकी धड़कानों को मैने अपने सीने मे महसूस किया
मैं- देख के चल अभी गिर जाती
वो- तुम जो हो संभालने के लिए
मैं- वो तो है
उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई
वो- ये क्या किया
मैं- ऐसे ही अच्छी लगती हो तुम
वो- मनीष , तुम यार सच मे ही अजीब हो
मैं- हाँ सब तुम्हारा ही असर है
वो- अच्छा जी और मुझ पर जो ये रंग चढ़ा है ये किसका है
मैं- मुझे क्या पता
वो- तो किसे पता
मैं- तुम जानो
तभी वो थोड़ा सा लड़खड़ाई मैने उसकी कमर मे हाथ डाला और उसको अपनी बाहों मे थाम लिया उसकी छातिया आ लगी मेरे सीने से उसकी साँस मेरे चेहरे को छू गयी वो लहराने लगी मेरी बाहों मे हल्की सी जुल्फे उसके चेहरे पर आ गयी थी मैने उन लटो को सुलझाया उसकी धड़कानों को मैने अपने सीने मे महसूस किया
मैं- देख के चल अभी गिर जाती
वो- तुम जो हो संभालने के लिए
मैं- वो तो है
उसकी गरम साँसे मेरी सांसो को दहका रही थी मैने उसकी कमर को और थोड़ा सा खींच हम एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे उसके होंठ जैसे सूख से गये थे इस से पहले कि वो कुछ कहती मैने धीरे से अपने होंठो से उसके होंठो को छू लिया अगले ही पल उसकी आँखे बंद हो गयी सांसो से साँसे जुड़ गयी वो मेरी बाहों मे ढीली सी पड़ गयी मैं धीरे धीरे से उसको किस करने लगा कुछ देर बाद वो अलग हुई
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- kunal
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
nice update
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- xyz
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
bahut achha update bhai ji
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(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
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