"ये देखो यही है जोसफ और उसकी पत्नी मैरी फर्नांडेस"...........अरुण ने मोमबत्ती की लौ से जब तस्वीर को घुरा तो सच में दोनों की पुराणी तस्वीर उन्हें दिखी
"वैसे और कुछ तो मिला नहीं इस कॉटेज के हर कमरे को चेक किया नहीं जा सकता हमारे वाले कमरे में ऐसा कुछ हम्हें मिल न सका है बाकी कमरों में क्रू मेंबर्स है जरा सा भी छानबीन करने लगे तो वो डायरेक्टर राम को बता देंगे और फिर वो हमारी इन्वेस्टीगेशन में आड़े आएगा"
"तो फिर क्या करे? मुझे पक्का यकीन है की इस तूफानी रात में इस वीरान डेड लेक फिर कोई नवा हादसा घटेगा".......धीमे से खौफ्फ़ भरी निगाहो से देखते हुए दीप ने कहा
"क्या कह रहे हो? इस कॉटेज में जो कुछ भी है वो रात को ही होता है उनकी शक्ति रात को बढ़ जाती है फ़िलहाल हम्हें अपने कमरे में चलना चाहिए यहाँ रूककर कोई फायदा नहीं चलो"
"कॉटेज के बाहर भी हम इन्वेस्टीगेशन कर सकते है मैं जाता हूँ"...........अरुण के इतना कहते हुए उसके जाने से पहले ही दीप ने कस्सके उसके हाथ को पकड़ते हुए उसे मना किया
"नहीं अरुण प्लीज तुम बाहर मत जाओ बाहर जाना इस वक़्त खतरे से खाली नहीं होगा"
"लेकिन मैं यहाँ यही पता करने आया हूँ की वो क्या वजह है?"
"देखो अरुण मान जाओ मेरे खातिर कल सुबह होते ही हम चेक करेंगे पर प्लीज अभी नहीं प्लीज".......आखिर में अरुण ने दीप की बातो में अपने सर को सहमति में हिलाया |
दोनों अपने कमरे में लौटे.....लेकिन उस रात नींद किसी को ही नहीं थी....साहिल अपने कमरे में सिर्फ बिस्तर पे लेटा हुआ था| जबकि डायरेक्टर राम उसके बगल वाले बिस्तर पे सोया हुआ था| उधर सौम्या भी जैसे जैसे रात बीत रही थी उसका खौफ्फ़ उसपे बेहद सवार हो रहा था| आज जो कुछ हुआ था सब कुछ उसके ज़ेहन में घूम रहा था| रैना को भी नींद नहीं थी वो वैसे ही बाथरूम में हुए उस हादसे के बाद सदमे में थी फिर भी साहिल ने जो कुछ कहा और जो कुछ उसने दीप की बात सुनी थी उससे उसे भी भूत प्रेत आत्माओ पे विश्वास हो गया था | वो सोने की नाकाम कोशिश कर रही थी पर उसे खौफ्फ़ सा लग रहा था |
उधर सुनील और जावेद अपने अपने बिस्तर पे गहरी नींद में दुबे हुए से थे | इतने में खिड़कियों की खड़खड़ाहट ने सुनील के नींद को भंग कर दिया| उसने आँखे खोली बीच बीच में बिजलियों की तेज रौशनी कमरे में १ सेकंड के लिए दाखिल होती और फिर गुप् अँधेरा चा जाता उसी बीच बिजलियों के कड़कने का शोर कान के पर्दो को जैसे फाड़ रहा था|
सुनील ने उठके देखा की बिजलियों की रौशनी में बाहर कोई खिड़की पे दस्तक दे रहा था| उसने साफ़ पाया की जैसे कोई साया बाहर खड़ा था| सुनील ने धीमे लव्ज़ में कहा "कौन?"........जवाब में फिर आहिस्ते से उस साये ने बाहर से खिड़की पे दस्तक दी......रौशनी एक बार बिजली की इतनी तेज हुयी की उसे साफ़ दिखा की कोई खिड़की के शीशो पे एकदम सटे हुए बाहर खड़ा है| वो किसी मर्द का अक्स था जिसने कोट और शर्ट पहनी हुयी थी | उसका चेहरा खिड़की के शीशो पे धुंध के छा जाने से साफ़ दिख नहीं रहा था|
सुनील चादर हटाए उस खिड़की के करीब आया.....उसकी आँखे डर से सेहमी हुयी थी| उसने बेहद गौर से पाया तो समझ आया की वो साया उसे ही एक टक घुर रहा था | क्यूंकि उसी श्रण उसे उसकी गुलाबी अजीब सी आँखे दिखाई दी सुनील खौफ्फ़ खाये पीछे की ओर हुआ और उलटे पाव जैसे जावेद को जगाने के लहज़े से बढ़ा अचानक खिड़की अपने आप धढ़ की आवाज़ के साथ खुल गयी.....साथ ही साथ बिजली की तेज रौशनी और शोर दोनों कमरे में जैसे दाखिल हुआ.....आतंकित सुनील के गले से खौफ्फ़ भरी चीख निकल गयी|
उसने देखा की कोई था ही नहीं वहाँ पर| सिवाय बाहर की सर्द तेज हवा कमरे में दाखिल हो रही थी| उसने जावेद को उठाना चाहा तो वो गहरी नींद में सोया हुआ था| वो फिर खुली खिड़की की तरफ देखने लगा...एका एक उसके नज़दीक जाने लगा.....जैसे ही वो खिड़की से बाहर सर निकाले झांकता है तो तेज हवा और बरसात की बूंदो से उसका चेहरा भीग जाता है| "उफ़ यहाँ तो कोई नहीं है?"...स्वयं में कहता हुआ सुनील झट से खिडकी के दोनों पल्लो को लगाने लगता है और ठीक उसी पल उसे अहसास होता है की कमरे का दरवाजा अपने आप खुल रहा था|
चर्र चर्र करती उस तीखी आवाज़ में दरवाजा अपने आप पूरा खुल गया अँधेरे में सुनील को कुछ दिखा नहीं.....और न उसने गौर किया की जैसे ही उसने बिना देखे खिड़की लगायी वो साया फिर खिड़की पे खड़ा हो चूका था....एक पल को बिना मुड़कर खिड़की की ओर देखे सुनील दरवाजे की ओर बढ़ा...."कौन?"...उसने फिर आवाज़ दी
बाहर सकत अँधेरा था| उसने मोमबत्ती के लिए माचिस जलाई ही थी की इतने में उसे एक ठंडी सी सर्द का अहसास हुआ....उसने पाया की उसका पूरा बदन ठण्ड से सिहर उठा था रौंगटे खड़े हो गए थे उसके.....उसने देखा की एक सफ़ेद लिबास में एक औरत सीढिया चढ़ रही थी और ऊपर के माले की ओर जा रही थी | उसका खौफ्फ़ दुगना हो गया एक तो वैसे ही साहिल और रैना के साथ जो हुआ था वो वैसे ही डरा हुआ था और अब उसे ये दृश्य देखके और भी ज़्यादा खौफ्फ़ सताने लगा|
उसने देखा की उस औरत के हाथ में मोमबत्ती थी जिसकी रौशनी में वो एक एक सीढ़ी ऊपर की तरफ बढ़ रही थी.....सुनील ने अपना टोर्च उठाया और लिविंग हॉल के अंधेरो में खड़ा उसे ऊपर जाते हुए देखने लगा....."ये कौन हो सकती है? सौमया इस इट यू?"...........उसने जैसे उस चढ़ते साये को टोका....वो ठहर गयी और फिर उसने अपनी गर्दन को मोडे जैसे दायी ओर मुस्कुराया जैसे उसने सुनील की बात सुन ली थी.....उसने दूसरे हाथ से जैसे सुनील को अपने संग आने का ऊपर इशारा किया...
ये देखते हुए सुनील हड़बड़ाया...वो धीरे धीरे सीढ़ियों से ऊपर उसके पीछे पीछे चढ़ने लगा...बीच बीच में कड़कती बिजली का शोर सुनाई दे रहा था | बाहर का मौसम जैसे वाक़ई बेहद ख़राब था| जब वो सीढिया चढ़ते हुए ऊपर आया तो वहां गुप् अँधेरा था|
अचानक उसने देखा की एक दरवाजा अपने आप तीखी आवाज़ के साथ खुलने लगा और उसके बाद उस कमरे में धीरे धीरे सफ़ेद लिबास पहनी वो औरत मोमबत्ती हाथो में लिए उस कमरे में दाखिल हुयी.....सुनील फट से कुछ देर सोचने के बाद उस कमरे के तरफ लपका उसने पाया की दरवाजा खुला था और अंदर मोमबत्ती ठीक मेज पे रखी हुयी थी| उसे अहसास हुआ की वो कमरा तो आज सुबह से ही बंद था |
सुनील ने एक एक पाव बारे एहतियात से अंदर रखा उसने पाया की दीवारों पे मकड़ी की जालिया मजूद थी और आस पास टूटे लैम्प्स और पुराणी चीज़ें पड़ी हुयी थी| बिजली की रौशनी बीच बीच में कमरे में दाखिल हो रही थी उस टूटी खिड़की से.....हो हो करती हवाओ का शोर जैसे एक मात्रा उस खामोशी में सुनाई दे रहा था |
"सौमया? देखो अगर ये सब तुम लोगो के प्रैंक्स है तो मैं ये शिकायत राम सर से कर दूंगा वैसे भी आज जो कुछ भी हुआ उससे वो पहले से ही हमपर ख़फ़ा है आर यू लिसनिंग व्हाट आई ऍम सयिंग तो यू? सौमया?".........अचानक दरवाजा अपने आप लग गया जब दरवाजे के खट से लगने की आवाज़ हुयी तो सुनील ने दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया
"अरे सौमया ये क्या हरकत है? सौमया दरवाजा खोलो देखो ये ठीक नहीं कर रही सौमया सौमया?".........अचानक उसे अहसास हुआ की किसी ने उसके कंधे पे हाथ रखा...वो हाथ इतना ठंडा था की एक पल को सुनील सिहर उठा फिर उसने मुस्कुराते हुए बड़बड़ाया
"हाहाहा तो ये तुम्हारा प्लान है तो मुझे बहाने से बुलाने का ये तुम्हारा प्रैंक था ओह सौमया पहले ही कह देती"........एका एक जैसे ही उसने अभी पलटकर उस साये के कंधो पे अपने दोनों हाथ रखे थे तो उसे महसूस हुआ की वो सौमया नहीं थी| एका एक सुनील के चेहरे का रंग सफ़ेद हो गया|
उसके नज़रो में दहशत सिमट उठी| क्यूंकि सामने उस गाउन के लिबासँ में वही औरत मौजूद थी वही रूह वही साया मैरी फर्नांडेस का....जिसके चेहरे की चमड़ी साफ़ दिख रही थी और जिसके चेहरे पे आँख नहीं बल्कि उन दोनों जगहों से बहता खून था | वो ठहाका लगाने लगी और उसकी हसी जैसे पुरे कमरे में गूंजने लगी दोहरी उस अजीब सी हसी को सुन सुनील चिल्ला उठा और उससे अलग हुए दरवाजे से जा लगा
"छोड़ दो मुझे छोड़ दो मुझे नही नही आह्हः आह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह आआआहहहहहह"..........
"हाहाहा हाहाहाहा आओ मेरे पास आओ मेरे पास आओ".............वो कहते हुए जैसे सुनील के करीब बढ़कर उसके नब्ज़ अपने नाखुनो को धसा चुकी थी
दर्द में तड़पते हुए सुनील ने उसे अपने से दूर धकेलना चाहा लेकिन उसने उसके नब्ज़ पर अपने दांतो को बिठा दिया था| वो उसके खून को बेतरतीबी से पी रही थी और सुनील दर्द में चटपटा रहा था| इतने में दूसरे हाथ सीधे उसकी गर्दन पे कोई दरवाजे से आर पार निकलते हुए सुनील के आँखों से देखते ही देखते वो मज़बूती से उसकी गर्दनो पे किसी ने कस लिए थे|
आतंकित नज़रो से बरी बरी आँखे किये सुनील को अहसास हो चूका था अपने अंतिम घडी का और ठीक उसी पल जब मैरी ने अपने चेहरे को ऊपर उठाया तो उसके मुंह से बहता सुनील का ताजा खून लगा हुआ था| "हाहाहा हाहाहाहा".........ठहाका लगाए सुनील को बेबस तड़पते देखते हुए मैरी की आत्मा ने तेजी से सुनील के कपड़ो को फाड़ डाला.....सुनील की सांस घुटती जा रही थी...और ठीक उसी पल मैरी ने अपने नुकीले सांप जैसे दांतो से सुनील के सीने के मांस को फाड़ डाला...सुनील की दर्दनाक चीख गूंज उठी जिससे हर कोई अपने कमरे में दहशत से उठ बैठा जगके
खून जैसे फव्वारे की तरह मैरी के चेहरे पे पड़ रही थी और वो अपनी जीब से उन खूनो को जैसे पी रही थी| सुनील का सीना बुरी तरीके से फट चूका था | और उसके बीच से खून बेतरतीबी से निकल रहा था...ठीक उसी पल उसकी गर्दनो में वो जकड़े हुए गले पे हाथ की एक एक ऊँगली उसके गले के भीतर जैसे घुसती चली गयी.....गले से खून बहाने लगा और सुनील ने दर्द में ही छटपटाये अपना दम तोड़ दिया उसकी आँखे वैसी ही ठहरी खुली रह गयी|
मैरी सीने से निकलते उस बहते खून पे अपना मुंह रखकर उसे पी रही थी और फिर धीरे धीरे साये की तरह गायब होने लगी| वो हाथ अपने आप ही दीवार से आर पार होते हुए वापिस गायब हो गया...एक पल को वो दर्दनाक चीखें थम चुकी थी फिर खामोशी और वीरानापन उस अंधेर कॉटेज में छा गया मेज पे रखी वो मोमबत्ती भी जैसे गायब हो चुकी थी....
रात करीब ११:४० बज चूका था...उस वीराने कॉटेज के लिविंग हॉल में खामोशी छायी हुयी थी| लिविंग हॉल के दोनों बाज़ुओं में रखी तीन-चार मोमबत्तिया लिविंग हॉल को अपनी मध्यम रौशनी से उजागर कर रही थी| उस खामोशी में बाहर के तूफानी सन्नाटो की हो हो करती हवाएं और बीच बीच में कड़कती वो बिजलियों का शोर ही महज़ माहौल में सुनाई दे रहा था|
हर कोई चुपचाप ऐसे बूत बने खड़ा था| जैसे कोई बेहद भरी धक्का उन्हे लगा था| सौम्या कैमरामैन जावेद साहिल रैना और ठीक उनसे एक कदम आगे खड़ा खुद डायरेक्टर राम जैसे घबराया हुआ था| वो बार बार अपनी नज़रो को उस लाश से हटाने की कोशिश कर रहा था| दीप चुपचाप अपने गले में लटकी उस ताबीज़ को कस्सके थामे हुए उस लाश को देख रहा था| और ठीक उस लाश के पास अरुण बैठा हुआ था|
एक और दर्दनाक चीख complete
- kunal
- Pro Member
- Posts: 2731
- Joined: 10 Oct 2014 21:53
Re: एक और दर्दनाक चीख
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
- Pro Member
- Posts: 2731
- Joined: 10 Oct 2014 21:53
Re: एक और दर्दनाक चीख
अरुण ने आहिस्ते से सुनील की लाश के ऊपर से उस सफ़ेद चादर को धीरे धीरे ऊपर उठाया एका एक बिजलिया उस वक़्त बड़ी जोर से कड़क उठी.....सबकी निगाह बिजली की ठीक उस वक़्त आयी रौशनी में और मोमबत्ती की भी रौशनी में सुनील के चेहरे पे हुयी....जिसकी आँखे खुली ठहरी हुयी थी और जिसके गले से अब भी खून बह रहा था| पलटकर अरुण ने सबकी तरफ देखा सौम्या सुबक रही थी अपने मुंह पे हाथ रखे हुए और रैना का तो पूरा बदन काँप उठ रहा था डर से.....साहिल का भी कुछ वही हाल था| जावेद तो एकटक सुनील की लाश को देखके जैसे अपना दुःख प्रकट कर रहा था| अरुण ने इस बार इस लाश पे फिर चादर रख दिया सफ़ेद चादर पे भी खून लगे हुए थे|
"हे खुदा अब तू ही हमारी हिफाज़त कर".......एका एक दीप ने आँखे मूंदें हुए जैसे प्राथना की
अरुण उठ खड़ा हुआ| उसके चेहरे पे गंभीरता एकदम झलक रही थी| उसने एकटक सबकी ओर देखा और फिर निगाह डायरेक्टर राम पर ही ठहर गयी| डायरेक्टर राम भी बेचैनी से जैसे अपनी नज़र इधर उधर कर रहा था|
"सो मिस्टर राम सिंह अब तो आपकी शूटिंग यहाँ होने के कोई भी चान्सेस बाकी नहीं रह गए है| क्यूंकि आप ही के एक क्रू मेंबर का बड़े ही निर्दयता से किसी ने क़त्ल कर डाला है इस्पे आप अब क्या कहना चाहेंगे? की ये कौन कर सकता है? मैं मोहद दीप के साथ अपने कमरे में था जब मैंने वो दर्दनाक चीख सुनील की सुनी....और जहाँ तक मेरा ख्याल है जिस कमरे से सुनील की लाश हम्हें मिली उसपे सुबह तक ताला झूल रहा था मैंने खुद जायज़ा लिया था इस कॉटेज का अब आप क्या कहेंगे?".........अरुण के बातो को सुन हर कोई सहमे हुए था
"आई जस्ट डॉन'ट नो एनीथिंग अ...आप के कहने का क्या मतलब हमने अपने एक क्रू मेंबर को खोया है और हुम्हे इसका बेहद दुःख है लेकिन मुझे नहीं समझ आ रहा की इतनी रात गए सुनील उस बंद कमरे में आखिर पंहुचा कैसे? जबकि हम्हें किसी भी कमरे की चाबी नहीं मिली सिवाय कॉटेज के क्यूंकि हर बंद कमरों में ताला झूल रहा था जिसे हमने तोड़कर ही कमरों को हासिल किया वैसे भी अब भी कई कमरे यु ही बंद पड़े है और जैसा आपने कहा वैसे ही हम सब अपने घरो में सोये हुए थे जब हमने वो sudden सुनील की चीख सुनी वो इतनी खौफनाक थी की एक पल को मैं बहुत डर गया था | हम जब बाहर आये तो क्रू का हर आदमी बाहर अपने कमरों से निकले लिविंग हॉल में यहाँ मौजूद थे|".............राम ने अपना ब्यान दिया
"हम्म ये बात भी है अरुण सबके सब तो यही मौजूद थे और हम भी तो जब निकले तो इन लोगो को ही यहाँ इखट्टा पाया और ऊपर उस हौलनाक दृश्य को देखे तो मुझे समझ आ गया की ये कोई साज़िश नहीं किसी इंसान की हरकत नहीं किसी !"...........कहते कहते जैसे दीप ठहर गया| अरुण ने उसकी तरफ पलटकर एक बार देखा फिर उस सफ़ेद चादर से ढकी सुनील की लाश को घूरने लगा |
धीरे धीरे अरुण की तरफ हर कोई देख रहा था जो लाश के करीब खड़ा होकर उसे ही घूर रहा था | "सच में लाश ऐसी हालत में पाई गयी है की कहना मुश्किल है की किसी जानवर की हरकत है या फिर इंसान की.....लाश को इस बेदर्दी से मारा गया है की ब्यान करना मुश्किल है".......अपने में बड़बड़ाते हुए अरुण ने पलटके फिर सबकी तरफ तवज्जोह दिया |
"एनीवे ये खून का मामला है और ऐसे में हम कॉटेज से ऐसी गहरी रात को और ऐसे हालत में कही जा भी नहीं सकते | ये पुलिस केस बनता है और पुलिस का यहाँ इस वक़्त आना भी मुहाल है कारण बिगड़े मौसम की वजहों से मोबाइल का नेटवर्क काम नहीं कर रहा| इसलिए आज की रात हम्हें बस कल सुबह होने के ही इंतज़ार में काटनी पड़ेगी इसलिए मेरी सबसे दरख्वास्त है की हम सब एक ही जगह अपना वक़्त कांटे क्या मालुम? की जो सुनील के साथ घटा उसके फ़िराक में क़ातिल हमारे साथ भी कुछ करे"
"यू मीन टू से की इस कॉटेज में कोई कातिल भी छुपा हुआ है"......इस बार रैना ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा
"कुछ भी हो सकता है फिलहाल कहना आसान नहीं की कौन ?"........अरुण ने रैना को जवाब देते हुए कहा
हर कोई जैसे डायरेक्टर राम को कोस रहा था यहाँ आने का एकमात्र आईडिया उसी का था....डायरेक्टर राम उस वक़्त किनारे मेज के करीब खड़ा बार बार सुनील की लाश को देख रहा थाऔर घबरा रहा था क्यूंकि मर्डर का मामला था ज़िम्मेदारी सबको ले आने की यहाँ उसकी थी पुलिस अगर तफ्तीश करती तो अथॉरिटी को रिश्वत देने वाली बात भी सबके सामने खुल जाती डायरेक्टर राम को समझ आ चूका था की उसकी फिल्म अब बनने से रही नहीं |
"पर अरुण सुनील की लाश को यूँ ऐसे क्या पूरी रात हम कॉटेज के भीतर रखेंगे?"..........सौम्या से इस बार रहा न गया और उसने अरुण से सवाल करा....दीप भी उसकी बात से सर हिलाये अपनी सहमति को ज़ाहिर कर रहा था|
अरुण कुछ देर खामोश रहा इतने में क्रू मेंबर का हर कोई इस बात के लिए अरुण को ही टोकने लगा...."सौम्या सही कह रही है एक तो इतनी गहरी रात ऊपर से ये लाश ऐसे पूरी रात रही तो सड़ जाएगी और वैसे भी हम सब सुनील की लाश को देखके वैसे ही बहुत डरे हुए है"
"तो क्या करे? जरा सा भी लाश को टच किया तो पुलिस हमपर ही शक करने लगेगी"........अरुण ने कहा
"सब ठीक कह रहे है अरुण ये वारदात अलौकिक वजहों से घटी है ये कॉटेज अपनी असलियत से हम्हे रूबरू कर रहा है| अरुण मेरी बात मानो इस लाश को कॉटेज के पास ही कही दफना देते है"
"प..पर".......अरुण हिचक रहा था|
"प्लीज अरुण".........सौम्य ने रिक्वेस्ट भरी लव्ज़ों में कहा
अरुण ने फिर कुछ सोचा और उसके बाद सबकी ओर देखा.........कुछ ही देर में सुनील की लाश को सफ़ेद चादरों में ही लिपटाये अरुण साहिल और दीप कॉटेज से बाहर ले आ चुके थे| कॉटेज के दरवाजे पे खड़ा डायरेक्टर राम भी उन्हे ही देख रहा था| बाहर बरसात अब भी हुयी जा रही थी| लाश के भार को सहते हुए तीनो बरसात में भीगते हुए जैसे तैसे लाश को उठाये कच्ची ज़मीन के पास आये|
उन्हें कॉटेज के स्टोर रूम से ही पुराना एक फावड़ा मिल गया था| अरुण और साहिल ज़मीन को खोदने लगे| दीप कांपती टोर्च लिए लाश के चेहरे पे रौशनी मारते हुए उसे देख रहा था| बरसात से सफ़ेद चादर भी गीली हो रही थी और लाश भी......कड़कती बिजलियों की गरगराहट को सुने तीनो वैसे ही सर्द हवा और बारिश से ठिठुर रहे थे| करीब कुछ देरी में ही साहिल और अरुण ने करीब गले तक एक २ गज ज़मीन खो डाली थी|
दोनों एकबार सांस भरते हुए एकदूसरे की ओर देखे फिर दीप की ओर जो उन्हें उन अंधेरो में रौशनी दिखा रहा था| हवाएं एकदम हो हो करती हुयी चलने लगी अरुण और साहिल खोदे हुए गड्ढे में खड़े हुए थे उन्होने धीरे धीरे लाश को पकड़े अंदर गड्ढे में लाना चाहा...तभी इतने में चादर से निकला लाश का एक हाथ सीधे साहिल को जा लगा जो उसे थामे हुए था वो चिल्ला उठा| अरुण ने उसे चुप किया फिर देखा की ज़्यादा हिलाने डुलाने से लाश का एक हाथ चादर से सरकते हुए बहार निकल आया था |
दोनों फिर जैसे तैसे लाश को गड्ढे में रख चुके थे| एक बार दीप ने अरुण से कहा की वो सुनील की लाश से चादर को हटाए.....अरुण ने वैसा ही किया उसने धीरे धीरे जैसे ही चादर हटाई कड़कती चमकती बिजली की रौशनी में एक पल को तीनो सिहर उठे सुनील की आँखे अब भी खुली हुयी जैसे खौफ्फ़ में सिमटी हुयी थी| अरुण ने हलके से उसकी आँखों की पुतलियों को हाथो से जैसे बंद कर दिया| फिर दोनों गड्ढे से बाहर निकले एक एक उसपे खोदी हुयी मिटटी डालने लगे|
________________________
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
- Pro Member
- Posts: 2731
- Joined: 10 Oct 2014 21:53
Re: एक और दर्दनाक चीख
अपनी सिगरेट को जलाये राम कश पे कश लिए जा रहा था| रैना अपने हाथो में सैकड़ो पिल्स एक हाथ डालते हुए उसे जैसे मुंह से लगाने वाली थी की इतने में सौम्या ने उसे रोका "ये क्या कर रही हो तुम?".......रैना ने उसके हाथ को खींचके अपने हथेली से दूर कर दिया |
"और नहीं तो क्या करू मैं? एक तो इतनी भयानक जगह में हम्हे इस राम ने ले आया हुआ है की एक एक सेकंड भी मेरा दम घूंट रहा है ऐसा लगता है जैसे कोई तो हम्हे मारना चाह रहा है मैं यहाँ एक सेकंड भी और नहीं रुकूंगी मुझे घर जाना है"............सौम्या ने रैना को झिंझोड़ा
"रैना होश में आओ हम ऐसे बिगड़े मौसम में और ऐसी गहरी रात को कैसे वापिस शहर जा पाएंगे? ऊपर से हमने सुनील को खो दिया है क्या तुम्हे इस बात का अफ़सोस नहीं?ज़रूरी नहीं की हम भी सुरक्षित है पर हमारे साथ हर कोई तो मौजूद है न तो फिर बस आज रात की ही तो बात है जब सबकुछ मालुम ही था तो फिर क्या हमारी अंत के लिए हम्हे यहाँ लाया गया".........एक पल को हीन भावना से सौम्या ने चुप खड़े खामोश डायरेक्टर राम की ओर देखा
"अच्छा तो ये सब मेरी वजह से हुआ है डॉन'ट यू गाइस नो देट व्होम यू ब्लेमिंग? क्या हमने पहले कभी ऐसे ही कई हॉन्टेड एरियाज में शूट नहीं किये? अब मुझे क्या मालूम था? की कुछ ऐसा हो जायेगा मुझे सुनील की मौत का बेहद अफ़सोस है और मैं यही चाहता हूँ की वो जो कोई भी है पुलिस उसे धार दबोचे वैसे भी अब फिल्म का काम तो यही थम गया हमारा सुना नहीं उस अरुण ने क्या कहा था ?".......अरुण जैसे उन दोनों पे बरस पड़ा
"वाह वाह यानी आपको अपने फिल्म की पड़ी है कोई मरे या कोई जिए इससे आपको मतलब नहीं? आई दिदं'ट नो देट यूर सो नैरो माइंडेड पर्सन जो अपने लिए ही सोचता है"........सौम्य ने कहा
"शट अप सौम्य जस्ट शट अप बहुत मुंह खुल रहा है तुम्हारा ये मत भूलो की तुम किस्से और किस लहज़े में बात कर रही हो आई ऍम योर बॉस"............कर्कश स्वर में राम ने कहा
"टू हेल नाउ आई डॉन'ट गिव अ डेम"...........एक एक सुनकर राम का माथा जैसे सर चढ़ गया उसने कभी सौम्या को इतना नाराज़ और बगावती कभी नहीं देखा था|
"क्या कहा तुमने?"
"मुझे अपने शब्द दोहराने की ज़रूरत नहीं मैं आपका काम छोड़ती हूँ मुझे आप जैसे घटिया थर्ड क्लास डायरेक्टर के साथ कोई काम नहीं करना अंडरस्टैंड दू यू अंडरस्टैंड? बी-ग्रेड डायरेक्टर मिस्टर रामसिंघ"..........सौम्या ने इतनी जोर से अपने लव्ज़ों का तमाचा राम को मारा था की उसपे तो जैसे बिजली गिर पड़ी...वो इतनी बड़ी बेज़्ज़ती अपने जूनियर से हुए बर्दाश्त नहीं कर पाया
एका एक वो गुस्से में आया और उसने अपना दाया हाथ सौम्या पे उठाने के लिए जैसे बढ़ाया ही था की इतने में अरुण के मजबूत हाथो ने उसे थाम लिया उसे कस्सके जकड़ते हुए दोबारा झटके से निचे कर दिया....एकदम से हुए इस वाक़ये से साहिल और जावेद भी ठिठक गए.....अरुण ने गुस्से भरी दृष्टि से राम की तरफ देखा
"तो इस तरह अपने क्रू मेंबर के साथ आप पेश आते है मिस्टर राम सिंह".........अरुण ने कुढ़ते हुए पहलु बदलते राम की तरफ देखा....सौम्या डर से चुपचाप खड़ी हुयी थी|
"दीस इस नॉन ऑफ़ योर बिज़नेस मिस्टर अरुण बक्शी"
"इट इस मिस्टर राम सिंह...और आपको मैं ये कहना चाहता हूँ की अगर आपने दोबारा ऐसी कोई भी हरकत की तो सिर्फ आपके हाथ अभी मैंने थामे है ज़रूरत पड़ी तो इस इन्वेस्टिगेटर का घुसा भी आप न भूल पाएंगे"........राम जैसे सकते में पड़ गया उसने बेचैन होते हुए मुंह दूसरी ओर फेर लिया
"सौम्या तुम्हे इससे डरने की ज़रूरत नहीं| मैं हूँ यहाँ पर".....सौम्या के कंधे पे हाथ रखते हुए अरुण ने जैसे उसे तस्सली दी
"और वैसे भी अगर पुलिस ने इंटेररोगेशन की तो डायरेक्टर राम साहेब आप सवालों के घेरे में जा फसेंगे क्यूंकि ये आलरेडी प्रोहिबिटेड एरिया थी| जहा की परमिशन आपको ऑथोराइज़ करने वालो पे भी कार्यवाही होगी क्यूंकि आपके राइटर साहिल ने मुझे बता दिया है की वो इललीगल परमिट था| और अब जब आपके एक क्रू मेंबर का क़त्ल भी हो गया तो अब आपको भी इस केस में एहम तौर पे जोड़ा जाएगा डायरेक्टर राम सिंह".............सौम्य के साथ खड़ा अरुण बक्शी ने डायरेक्टर राम को सर से लेके पाव तक पूरा डर से कंपा दिया था| वो एक श्रण गुस्से से अपने क्रू मेंबर साहिल की ओर देखने लगा जो बेचैनी से पहलु बदल रहा था |
रात १२ बजने को था....हो हो करती हवाओ का तेज शोर खामोशी से सबके कानो में सुनाई दे रही थी| इस वीराने डेड लेक पे बिगड़ते मौसम का जैसे कहर चल रहा था बरसात थमने का नाम नहीं ले रही थी और बीच बीच में कड़कती बिजलिया अपनी कर्कश स्वर से दिलो को जैसे दहला रही थी| इसी बीच सौम्या की नींद टूटी उसे अहसास हुआ की लिविंग हॉल के सोफे और पास के कुर्सियों पे हर कोई बैठे बैठे ही वैसे ही सो गया था|
लेकिन सुनील की मौत से वो जैसे बेचैन सी उठी हुयी थी| नींद आँखों से खौफ्फ़ के सायो की वजह से दूर जा चुकी थी| उसने अपलक एक बार सबकी ओर देखा....हर कोई सोया हुआ था| डायरेक्टर राम सबसे थोड़ा दूर कुर्सी पे वैसे ही सर को कुर्सी के ऊपरी सीढ़ी पे टैक दिए वैसे ही सोया हुआ था जबकि अरुण एक ओर सोफे के ऊपर ही सर रखके ही सोया पड़ा था| अचानक सौम्या काँप उठी
क्यूंकि पीछे उस पुराणी टूटी ग्रांडफादर क्लॉक में टन्न टन्न जैसी स्वर निकली जो पुरे हॉल में गूंज उठी| सौम्य ने अपने घड़ी की तरफ देखा रात ठीक १२:०० बज चूका था| अचानक देखते ही देखते वो सोफे से उठ खड़ी हुयी फिर उसने सहमते हुए उस ग्रांडफादर क्लॉक की तरफ देखा| उसने आज सुबह कॉटेज में जब कदम रखा था तो उसने खुद जायज़ा लिया था की वो हर पुराणी चीज़ो की तरह टूटी हुयी थी और न जाने कब से बंद पड़ी हुयी थी| तो फिर ये आवाज़ उसके भीतर से कैसे आयी क्या वो अब भी चल रही थी?
सोचते सोचते वो ग्रांडफादर क्लॉक के ठीक पास आयी खड़ी हुयी| जो की करीब ७ फट लम्बा था और जिसके ऊपरी शीशे वैसे ही टूटे हुए थे उसपे धूल जमी हुयी थी पर उसने साफ़ देखा की घड़ी की एक सुई टूटी हुयी थी और वक़्त ठीक १२ के ऊपर अटकी हुयी थी| उसने अभी गौर किया ही था की वो दोबारा बज उठी|
सौम्या पीछे होते हुए सबकी तरफ देखने लगी अचानक घड़ी खामोश पड़ गयी| खामोश चुपचाप खड़ी सौम्य उलटे पाव जैसे ही अपने सोफे पे आके बैठने ही वाली थी की इतने में उसे अहसास हुआ किसी के कदमो की आहात महसूस होते हुए.....उसने पलटके देखा तो जैसे उसके प्राण काँप उठे....क्यूंकि सीढ़ियों से वो साया धीरे धीरे निचे उतर रहा था...वो साया गुनगुना रहा था| और उसके हाथ में ठीक एक मोमबत्ती की लौ थी जो अजीब सी जल रही थी|
तभी सौम्या को अहसास हुआ की सर्द से उसके पूरा बदन ठिठुर रहा था| और चारो तरफ की रखी मोमबत्तिया अपने आप भुज चुकी थी| उसने देखा बिजली की चमकती रौशनी में एक सेकंड के लिए की वो एक औरत का साया था जिसने एक मैली गाउन पेहेन रखी थी और उसकी आँखे उसके चेहरे पे थी ही नहीं उन जगहों से उसे खून बहता दिखाई दे रहा था | वो औरत मुस्कुराते हुए सौम्या के ही नज़दीक आ रही थी सौम्या हड़बड़ाते हुए सिहर उठते हुए पीछे को होने लगी तभी सौम्य की चीख निकल उठी| उसी पल सबकी आँखे एकदम से एक साथ खुल उठी|
हवाएं इतनी तेज हो गयी की खिड़किया और दरवाजे अपने आप जैसे हवा की तेज धक्को में खुलने की कगार पे होने लगे.....सौम्य की चीख सुनते ही अरुण ने देखा की सौम्य पीछे हुए जा रही थी और एक औरत ठीक उसके नज़दीक बढ़ रही थी अरुण को धक्का सिर्फ उसे देखके ही नहीं लगा उसने साफ़ पाया की वो औरत जिस तरह उसके पास चल रही थी उसके दोनों पाँव उसे एक साथ जैसे ज़मीन से उच्चे हवा में जैसे तैरते हुए दिखे बाकि सब के भी इस दृश्य को देखके प्राण काँप उठे और उसके बाद एका एक रैना भी चिल्ला उठी उस औरत को अपने करीब से गुज़रते देखकर.........तभी अरुण ने अपनी गन निकाल ली थी वो जानना चाहता था इस राज़ को और वो मौका अब उसके सामने था|
अरुण अपलक दृष्टि से उस औरत के साये को धीरे धीरे सौम्य के करीब जाते हुए देख सकता था| हर कोई एक ओर इकट्ठे खड़े होकर उस औरत के साये को सौम्य के तरफ जाते हुए देखने लगे....सौम्य चीखें जा रही थी वो कांपती निगाहो से मदद की गुहार लगा रही थी| "अरुण जावेद रैना प्लीज मुझे बचा..औ दूर रहो म..मुझसे आगे मत बढ़ना मैंने कहा आगे मत बढ़ना"...........सौम्या की किसी भी बात का उस औरत पर जैसे असर नहीं पढ़ रहा था वो एकटक उसी की करीब बढ़ रही थी| सौम्या दिवार से लगके के खड़ी हो गयी| वो साया उसके बेहद करीब आके जैसे अपने दोनों हाथ बढ़ाने वाला था|
"आह्ह्ह्ह".........सौम्य ने नज़रें फेर ली वो उस खौफनाक चेहरे को देख नहीं पा रही थी|
"आई सेड स्टॉप ओवर देअर"..........अरुण ने अपनी गन उस औरत के पीछे की ओर तान दी थी| लेकिन वो साया अरुण की धमकी के बावजूद जैसे अब सौम्य के बेहद करीब पहुंच चूका था|
राम चुपचाप सेहमी निगाहो से अपने थूक को घोंट रहा था | सौम्या चीखी जा रही थी बस कुछ पल और और वो साया उसे मार देने वाला था| अचानक दीप की कर्कश स्वर ने सबको चौका डाला उसने आगे बढ़ते हुए उस औरत का नाम लिया और एक लाल धागे को उसके अपने सीधे खड़े हाथो से उसे दिखाने के लिए लटकाया
"मैंने कहा रुक जाओ मैरी".........ये सुनते ही वो साया अचानक ठिठक गया वो खामोशी से खड़ी ही थी
किसी की कुछ समझ नहीं आ रहा था| उस वक़्त दीप की आँखे सुर्ख लाल थी| उसने अपने आँखों को जैसे उलट लिया था और फिर दोबारा अपनी दृष्टि कुछ पड़ते हुए उस साये की ओर किया.....धीरे धीरे उस मैरी की आत्मा की गर्दन अपने आप पीछे को होने लगी थी न वो पलट रही थी बल्कि उसका सर गर्दन के साथ साथ पीछे को पीठ की तरफ पलटने लगा सब चीख उठे खौफ्फ़ से ये दृश्य देखके जैसे काँप गए....सौम्या भी आँखे बड़ी किये मुंह पे हाथ रखकर दिवार से जैसे सटी इस दृश्य को देखके चीख उठी थी|
अरुण का हाथ धीरे धीरे कांपने लगा उसकी गन कब उसके हाथो से फिसले फर्श पे गिर पड़ी उसे पता ही नहीं चला.....मैरी के खौफनाक चेहरे को देख हर कोई सहमे हुए खड़ा था खुद डायरेक्टर राम का हाल बुरा था| रैना कस्सके जावेद के कंधे को थामी हुयी थी|
"हहहहहहाहाहा हाहाहाहा हहहहा"........अजीब सी ठहाका लगाती वो दोहरी आवाज़ में मैरी हस्ती ही जा रही थी.....ऐसा अहसास हुआ जैसे उस वक़्त न जाने कितने लोग एक साथ उस अजीब सी आवाज़ में हस्स रहे हो....ठीक उसी पल खिड़किया दरवाजे अपने आप खुल गए हवाएं तेजी से घर में दाखिल होने लगी आस पास की तस्वीरें चीज़े अपने आप गिर पड़ने लगे...हो हो करती हवाओ का शोरर उस तहका लगाती आवाज़ में जैसे सबके कानो में चुबने लगा....हर कोई बहार से आती इस तेज हवा से अपनी आँखों को नाकाम कोशिशों से खोल रहा था...खुद दीप जो धागा हाथो में लिए खड़ा था उसका भी हवाएं तेजी से चलने से देख पाना मुश्किल हो रहा था|
"और नहीं तो क्या करू मैं? एक तो इतनी भयानक जगह में हम्हे इस राम ने ले आया हुआ है की एक एक सेकंड भी मेरा दम घूंट रहा है ऐसा लगता है जैसे कोई तो हम्हे मारना चाह रहा है मैं यहाँ एक सेकंड भी और नहीं रुकूंगी मुझे घर जाना है"............सौम्या ने रैना को झिंझोड़ा
"रैना होश में आओ हम ऐसे बिगड़े मौसम में और ऐसी गहरी रात को कैसे वापिस शहर जा पाएंगे? ऊपर से हमने सुनील को खो दिया है क्या तुम्हे इस बात का अफ़सोस नहीं?ज़रूरी नहीं की हम भी सुरक्षित है पर हमारे साथ हर कोई तो मौजूद है न तो फिर बस आज रात की ही तो बात है जब सबकुछ मालुम ही था तो फिर क्या हमारी अंत के लिए हम्हे यहाँ लाया गया".........एक पल को हीन भावना से सौम्या ने चुप खड़े खामोश डायरेक्टर राम की ओर देखा
"अच्छा तो ये सब मेरी वजह से हुआ है डॉन'ट यू गाइस नो देट व्होम यू ब्लेमिंग? क्या हमने पहले कभी ऐसे ही कई हॉन्टेड एरियाज में शूट नहीं किये? अब मुझे क्या मालूम था? की कुछ ऐसा हो जायेगा मुझे सुनील की मौत का बेहद अफ़सोस है और मैं यही चाहता हूँ की वो जो कोई भी है पुलिस उसे धार दबोचे वैसे भी अब फिल्म का काम तो यही थम गया हमारा सुना नहीं उस अरुण ने क्या कहा था ?".......अरुण जैसे उन दोनों पे बरस पड़ा
"वाह वाह यानी आपको अपने फिल्म की पड़ी है कोई मरे या कोई जिए इससे आपको मतलब नहीं? आई दिदं'ट नो देट यूर सो नैरो माइंडेड पर्सन जो अपने लिए ही सोचता है"........सौम्य ने कहा
"शट अप सौम्य जस्ट शट अप बहुत मुंह खुल रहा है तुम्हारा ये मत भूलो की तुम किस्से और किस लहज़े में बात कर रही हो आई ऍम योर बॉस"............कर्कश स्वर में राम ने कहा
"टू हेल नाउ आई डॉन'ट गिव अ डेम"...........एक एक सुनकर राम का माथा जैसे सर चढ़ गया उसने कभी सौम्या को इतना नाराज़ और बगावती कभी नहीं देखा था|
"क्या कहा तुमने?"
"मुझे अपने शब्द दोहराने की ज़रूरत नहीं मैं आपका काम छोड़ती हूँ मुझे आप जैसे घटिया थर्ड क्लास डायरेक्टर के साथ कोई काम नहीं करना अंडरस्टैंड दू यू अंडरस्टैंड? बी-ग्रेड डायरेक्टर मिस्टर रामसिंघ"..........सौम्या ने इतनी जोर से अपने लव्ज़ों का तमाचा राम को मारा था की उसपे तो जैसे बिजली गिर पड़ी...वो इतनी बड़ी बेज़्ज़ती अपने जूनियर से हुए बर्दाश्त नहीं कर पाया
एका एक वो गुस्से में आया और उसने अपना दाया हाथ सौम्या पे उठाने के लिए जैसे बढ़ाया ही था की इतने में अरुण के मजबूत हाथो ने उसे थाम लिया उसे कस्सके जकड़ते हुए दोबारा झटके से निचे कर दिया....एकदम से हुए इस वाक़ये से साहिल और जावेद भी ठिठक गए.....अरुण ने गुस्से भरी दृष्टि से राम की तरफ देखा
"तो इस तरह अपने क्रू मेंबर के साथ आप पेश आते है मिस्टर राम सिंह".........अरुण ने कुढ़ते हुए पहलु बदलते राम की तरफ देखा....सौम्या डर से चुपचाप खड़ी हुयी थी|
"दीस इस नॉन ऑफ़ योर बिज़नेस मिस्टर अरुण बक्शी"
"इट इस मिस्टर राम सिंह...और आपको मैं ये कहना चाहता हूँ की अगर आपने दोबारा ऐसी कोई भी हरकत की तो सिर्फ आपके हाथ अभी मैंने थामे है ज़रूरत पड़ी तो इस इन्वेस्टिगेटर का घुसा भी आप न भूल पाएंगे"........राम जैसे सकते में पड़ गया उसने बेचैन होते हुए मुंह दूसरी ओर फेर लिया
"सौम्या तुम्हे इससे डरने की ज़रूरत नहीं| मैं हूँ यहाँ पर".....सौम्या के कंधे पे हाथ रखते हुए अरुण ने जैसे उसे तस्सली दी
"और वैसे भी अगर पुलिस ने इंटेररोगेशन की तो डायरेक्टर राम साहेब आप सवालों के घेरे में जा फसेंगे क्यूंकि ये आलरेडी प्रोहिबिटेड एरिया थी| जहा की परमिशन आपको ऑथोराइज़ करने वालो पे भी कार्यवाही होगी क्यूंकि आपके राइटर साहिल ने मुझे बता दिया है की वो इललीगल परमिट था| और अब जब आपके एक क्रू मेंबर का क़त्ल भी हो गया तो अब आपको भी इस केस में एहम तौर पे जोड़ा जाएगा डायरेक्टर राम सिंह".............सौम्य के साथ खड़ा अरुण बक्शी ने डायरेक्टर राम को सर से लेके पाव तक पूरा डर से कंपा दिया था| वो एक श्रण गुस्से से अपने क्रू मेंबर साहिल की ओर देखने लगा जो बेचैनी से पहलु बदल रहा था |
रात १२ बजने को था....हो हो करती हवाओ का तेज शोर खामोशी से सबके कानो में सुनाई दे रही थी| इस वीराने डेड लेक पे बिगड़ते मौसम का जैसे कहर चल रहा था बरसात थमने का नाम नहीं ले रही थी और बीच बीच में कड़कती बिजलिया अपनी कर्कश स्वर से दिलो को जैसे दहला रही थी| इसी बीच सौम्या की नींद टूटी उसे अहसास हुआ की लिविंग हॉल के सोफे और पास के कुर्सियों पे हर कोई बैठे बैठे ही वैसे ही सो गया था|
लेकिन सुनील की मौत से वो जैसे बेचैन सी उठी हुयी थी| नींद आँखों से खौफ्फ़ के सायो की वजह से दूर जा चुकी थी| उसने अपलक एक बार सबकी ओर देखा....हर कोई सोया हुआ था| डायरेक्टर राम सबसे थोड़ा दूर कुर्सी पे वैसे ही सर को कुर्सी के ऊपरी सीढ़ी पे टैक दिए वैसे ही सोया हुआ था जबकि अरुण एक ओर सोफे के ऊपर ही सर रखके ही सोया पड़ा था| अचानक सौम्या काँप उठी
क्यूंकि पीछे उस पुराणी टूटी ग्रांडफादर क्लॉक में टन्न टन्न जैसी स्वर निकली जो पुरे हॉल में गूंज उठी| सौम्य ने अपने घड़ी की तरफ देखा रात ठीक १२:०० बज चूका था| अचानक देखते ही देखते वो सोफे से उठ खड़ी हुयी फिर उसने सहमते हुए उस ग्रांडफादर क्लॉक की तरफ देखा| उसने आज सुबह कॉटेज में जब कदम रखा था तो उसने खुद जायज़ा लिया था की वो हर पुराणी चीज़ो की तरह टूटी हुयी थी और न जाने कब से बंद पड़ी हुयी थी| तो फिर ये आवाज़ उसके भीतर से कैसे आयी क्या वो अब भी चल रही थी?
सोचते सोचते वो ग्रांडफादर क्लॉक के ठीक पास आयी खड़ी हुयी| जो की करीब ७ फट लम्बा था और जिसके ऊपरी शीशे वैसे ही टूटे हुए थे उसपे धूल जमी हुयी थी पर उसने साफ़ देखा की घड़ी की एक सुई टूटी हुयी थी और वक़्त ठीक १२ के ऊपर अटकी हुयी थी| उसने अभी गौर किया ही था की वो दोबारा बज उठी|
सौम्या पीछे होते हुए सबकी तरफ देखने लगी अचानक घड़ी खामोश पड़ गयी| खामोश चुपचाप खड़ी सौम्य उलटे पाव जैसे ही अपने सोफे पे आके बैठने ही वाली थी की इतने में उसे अहसास हुआ किसी के कदमो की आहात महसूस होते हुए.....उसने पलटके देखा तो जैसे उसके प्राण काँप उठे....क्यूंकि सीढ़ियों से वो साया धीरे धीरे निचे उतर रहा था...वो साया गुनगुना रहा था| और उसके हाथ में ठीक एक मोमबत्ती की लौ थी जो अजीब सी जल रही थी|
तभी सौम्या को अहसास हुआ की सर्द से उसके पूरा बदन ठिठुर रहा था| और चारो तरफ की रखी मोमबत्तिया अपने आप भुज चुकी थी| उसने देखा बिजली की चमकती रौशनी में एक सेकंड के लिए की वो एक औरत का साया था जिसने एक मैली गाउन पेहेन रखी थी और उसकी आँखे उसके चेहरे पे थी ही नहीं उन जगहों से उसे खून बहता दिखाई दे रहा था | वो औरत मुस्कुराते हुए सौम्या के ही नज़दीक आ रही थी सौम्या हड़बड़ाते हुए सिहर उठते हुए पीछे को होने लगी तभी सौम्य की चीख निकल उठी| उसी पल सबकी आँखे एकदम से एक साथ खुल उठी|
हवाएं इतनी तेज हो गयी की खिड़किया और दरवाजे अपने आप जैसे हवा की तेज धक्को में खुलने की कगार पे होने लगे.....सौम्य की चीख सुनते ही अरुण ने देखा की सौम्य पीछे हुए जा रही थी और एक औरत ठीक उसके नज़दीक बढ़ रही थी अरुण को धक्का सिर्फ उसे देखके ही नहीं लगा उसने साफ़ पाया की वो औरत जिस तरह उसके पास चल रही थी उसके दोनों पाँव उसे एक साथ जैसे ज़मीन से उच्चे हवा में जैसे तैरते हुए दिखे बाकि सब के भी इस दृश्य को देखके प्राण काँप उठे और उसके बाद एका एक रैना भी चिल्ला उठी उस औरत को अपने करीब से गुज़रते देखकर.........तभी अरुण ने अपनी गन निकाल ली थी वो जानना चाहता था इस राज़ को और वो मौका अब उसके सामने था|
अरुण अपलक दृष्टि से उस औरत के साये को धीरे धीरे सौम्य के करीब जाते हुए देख सकता था| हर कोई एक ओर इकट्ठे खड़े होकर उस औरत के साये को सौम्य के तरफ जाते हुए देखने लगे....सौम्य चीखें जा रही थी वो कांपती निगाहो से मदद की गुहार लगा रही थी| "अरुण जावेद रैना प्लीज मुझे बचा..औ दूर रहो म..मुझसे आगे मत बढ़ना मैंने कहा आगे मत बढ़ना"...........सौम्या की किसी भी बात का उस औरत पर जैसे असर नहीं पढ़ रहा था वो एकटक उसी की करीब बढ़ रही थी| सौम्या दिवार से लगके के खड़ी हो गयी| वो साया उसके बेहद करीब आके जैसे अपने दोनों हाथ बढ़ाने वाला था|
"आह्ह्ह्ह".........सौम्य ने नज़रें फेर ली वो उस खौफनाक चेहरे को देख नहीं पा रही थी|
"आई सेड स्टॉप ओवर देअर"..........अरुण ने अपनी गन उस औरत के पीछे की ओर तान दी थी| लेकिन वो साया अरुण की धमकी के बावजूद जैसे अब सौम्य के बेहद करीब पहुंच चूका था|
राम चुपचाप सेहमी निगाहो से अपने थूक को घोंट रहा था | सौम्या चीखी जा रही थी बस कुछ पल और और वो साया उसे मार देने वाला था| अचानक दीप की कर्कश स्वर ने सबको चौका डाला उसने आगे बढ़ते हुए उस औरत का नाम लिया और एक लाल धागे को उसके अपने सीधे खड़े हाथो से उसे दिखाने के लिए लटकाया
"मैंने कहा रुक जाओ मैरी".........ये सुनते ही वो साया अचानक ठिठक गया वो खामोशी से खड़ी ही थी
किसी की कुछ समझ नहीं आ रहा था| उस वक़्त दीप की आँखे सुर्ख लाल थी| उसने अपने आँखों को जैसे उलट लिया था और फिर दोबारा अपनी दृष्टि कुछ पड़ते हुए उस साये की ओर किया.....धीरे धीरे उस मैरी की आत्मा की गर्दन अपने आप पीछे को होने लगी थी न वो पलट रही थी बल्कि उसका सर गर्दन के साथ साथ पीछे को पीठ की तरफ पलटने लगा सब चीख उठे खौफ्फ़ से ये दृश्य देखके जैसे काँप गए....सौम्या भी आँखे बड़ी किये मुंह पे हाथ रखकर दिवार से जैसे सटी इस दृश्य को देखके चीख उठी थी|
अरुण का हाथ धीरे धीरे कांपने लगा उसकी गन कब उसके हाथो से फिसले फर्श पे गिर पड़ी उसे पता ही नहीं चला.....मैरी के खौफनाक चेहरे को देख हर कोई सहमे हुए खड़ा था खुद डायरेक्टर राम का हाल बुरा था| रैना कस्सके जावेद के कंधे को थामी हुयी थी|
"हहहहहहाहाहा हाहाहाहा हहहहा"........अजीब सी ठहाका लगाती वो दोहरी आवाज़ में मैरी हस्ती ही जा रही थी.....ऐसा अहसास हुआ जैसे उस वक़्त न जाने कितने लोग एक साथ उस अजीब सी आवाज़ में हस्स रहे हो....ठीक उसी पल खिड़किया दरवाजे अपने आप खुल गए हवाएं तेजी से घर में दाखिल होने लगी आस पास की तस्वीरें चीज़े अपने आप गिर पड़ने लगे...हो हो करती हवाओ का शोरर उस तहका लगाती आवाज़ में जैसे सबके कानो में चुबने लगा....हर कोई बहार से आती इस तेज हवा से अपनी आँखों को नाकाम कोशिशों से खोल रहा था...खुद दीप जो धागा हाथो में लिए खड़ा था उसका भी हवाएं तेजी से चलने से देख पाना मुश्किल हो रहा था|
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
- Pro Member
- Posts: 2731
- Joined: 10 Oct 2014 21:53
Re: एक और दर्दनाक चीख
अरुण ने जैसे तैसे अपनी गन थाम ली थी....."मैं कहता हूँ खुदा के वास्ते इस कहर को थाम ले मैं कहता हूँ खुदा के वास्ते थम जाओ".......दीप चिल्लाते हुए जैसे आदेश दे रहा था लेकिन ठहाका लगाती मैरी की आवाज़ थम नहीं रही थी|
दीप से अब और सवर न हो सका और उसने धागे को अपने हाथो में लपेटते हुए उसपे कुछ पढ़ा और उसके बाद जैसे अपनी मुट्ठी को हवा में ही मारा......मैरी जोर से चीख उठी उसकी चीख सुन हर कोई सेहम गया.....एक पल को उसका ठहाका लगाना बंद होक उसकी चीखो में तब्दील हो गया
"आह्हः आह्हः नो नो नो नो नो आअह्ह्ह ससस आह्हः"........दीप ने फिर उस मुठी को हवा में मारा.....हर किसी ने उस वक़्त उस तेज हवाओ के आलम में भी साफ़ गौर किया की दीप जैसे जैसे उसके सामने हवाओ में अपनी मुठी को हवा में मार रहा था वैसे वैसे वो चीख रही थी चिल्ला रही थी और काँप उठ रही थी|
धीरे धीरे हवाएं अपने आप थम गयी....सौम्य को तबतलक मौका मिल चूका था उसने एक ओर से भागते हुए सीधे अरुण के पास पनाह ली....दीप ही सबसे परे आगे उस आत्मा के बेहद करीब खड़ा था....मैरी दीप को देखते हुए जैसे गुस्से में बिलबिला रही थी|
"तू एक नापाक रूह है जिसका इस दुनिया में बहुत पहले ही वजूद मिट गया| लेकिन तेरी मौत की वजह है बेदर्दी....बता किसने तुझे मार दिया था? कितने सालो से हो यहाँ? कौन कौन और भी रूहें है तुम्हारे साथ? जवाब दो".........दीप ने चीखते हुए उस धागे को जैसे बीच के हिस्से से तोड़ दिया.....ऐसा करते ही दीप के....मैरी चिल्ला उठी इस बार उसकी चीख ने सबको डरा दिया था|
सबने साफ़ देखा की उसकी हालत किसी बेबस बिन पानी की मछली जैसी तड़पती हो गयी थी| वो बस घुर्रा रही थी की एक पल का उसे मौका मिले तो वो दीप पे जैसे झपट पड़े....."तेरे कोई भी वार का अब मुझपे असर नहीं पड़ने वाला जवाब दे".........."बहुत सालो से है हम यहाँ?".........इस बार दोहरी आवाज़ में मैरी ने कहा...हर कोई चुपचाप वैसे ही बूत बने सुन रहा था|
"और कौन ?"..........दीप ने उससे जैसे सवाल किया जोर देते हुए
"म..मेरे हस्बैंड जोसफ फर्नांडेस और वो लोग जो यहाँ बरसो पहले एक दर्दनाक हादसे के शिकार हुए थे| हम सब यहाँ रहते है हम किसी को नहीं बख्शेंगे किसी को नहीं"
"क्यों कर रहे हो ऐसा? बेमौत लोगो को मार्के क्या मिलता है? जहन्नुम की आग में जलने लायक इस इंसानी दुनिया को छोड़के अब तुम लोगो को जाना होगा सुना तुमने".........दीप उस वक़्त पुरे तैश में था|
उसने अपने कोट की जेब से एक बोतल निकाली जिसे खोलते ही मैरी जैसे रेंगती हुई पीछे को होने लगी.....दीप जानता था की वो मैरी के रूह को और ज़्यादा देर तक अपने काबू में किये नहीं रख सकता| उसने तुरंत ही उस पवित्र जल को कुछ हाथो में लिया और उसी श्रण मैरी पर फैख डाला....मैरी एकदम जोर से चीख उठी जैसे उसे बढ़ी ही पीड़ा हुयी हो| एका एक उसका बदन उसकी गूंजती चीखो के साथ खद-खद होती आवाज़ में जैसे जलने लगा....पुरे लिविंग हॉल में धुआँ उठने लगा और एक अजीब सी चमड़ी जलती सी बदबू उठने लगी| हर कोई गवाह था उस रूह के धुएं में तब्दील हो जाने का| धीरे धीरे कुछ ही पल में आवाज़ें थम गयी धुआँ गायब हो गया और वहा से मैरी का नामोनिशान जैसे मिट गया |
दीप ने सांस भरते हुए पलटकर सबकी ओर देखा.....जैसे राहत का एक सुकून सबके चेहरे पे दिखा हो और डर भरी सवालाते........"ये सब क्या था? दीप ये?"............"रूह"......अरुण के कहने से पहले ही दीप ने जो बात कही उससे एक पल में ही अरुण खामोश हो गया |
"यकीन नहीं था न मुझपर किसी को भी ये रूह थी वो आत्मा जो कई सालो पहले अपना शरीर त्याग चुकी थी| जब कोई इंसान की ख्वाहिश अधूरी रह जाती है या फिर मौत उसे वक़्त से पहले मिल जाती है तो वो रूह भटकती प्रेत आत्मा में तब्दील हो जाती है| सिर्फ यही नहीं इसका पति फर्नांडेस और न जाने कितने और बेमौत मरे लोगो की आत्माओ का वास है यहाँ मैंने कहा था तुमसे अरुण की ये तुम्हारी गन ये सिर्फ इंसानो पे असर कर सकती है मरे हुयो पर नहीं"...............अरुण चुपचाप खड़ा सोच में डूबा सा था|
"क...क्या वो? अब वापिस नहीं आएगी?"...........इस बार सौम्य ने सेहमते हुए पूछा
"ये बोतल का पानी जो मैंने उसपे डाला ये पवित्र जल है जो नापाकियो के लिए खौलता तेज़ाब ऐसी न जाने और कितनी नापाक रूह होंगी मैं जानता था इसलिए मैं पुरे इंतेजामात के साथ ही यहाँ इस कॉटेज में कदम रखा था"
"तो फिर यहाँ रुकना नहीं चाहिए हुम्हे फ़ौरन इस कॉटेज से निकल जाना चाहिए"..........जावेद ने टोकते हुए कहा
"जा भी नहीं पाओगे कोई भी नहीं जा पायेगा जबतक सुबह की पहली किरण इस वीरानिस्तान में नहीं पड़ती....हम यहाँ इस वारदात को जानने ही आये थे जो अब हम सब जान चुके है और नहीं जानते की ये रूहें और कबतक हम्हें यूँ मारने की कोशिशे करेंगी अगर कोई भी कॉटेज से बहार जायेगा तो आफत उसके पीछे पीछे जायेगी जबतक वो उसकी जान न ले ले जबतक हम इस डेड लेक के इलाके में है हमारे लिए कही भी ठहरना खतरे से खाली नहीं आप सब मेरी एक बात सुनिए और जो मैं कह रहा हूँ|"............अचानक बात पूरी भी नहीं हुयी थी की इतने में मेंन दरवाजा अपने आप खुलने लगा....उसकी चर्चारती आवाज़ को सुन हर कोई सेहमते हुए दीप के पीछे हो गया
सिवाय अरुण के जो हाथो में गन लिए दरवाजे की ओर ही ताने हुए था| "दर...दरवाजा अपने आप कैसे खुल गया सारे दरवाजो पे कुण्डी लगायी हुयी थी|"............उसी पल एक अक्स दरवाजे पे खड़ा सबको दिखाने देने लगा...बाहर की बिजली की चमकती रौशनी में सबने देखा वो कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति था जिसने कोट और पैंट पेहेन रखी थी| और उसी वक़्त पुरे कमरे में सर्द जैसी कपकपाती ठण्ड महसूस होने लगी
दीप मुस्कुराया.....उसने साफ़ पाया अपनी पत्नी की रूह के खात्मे का उसे मालूमात चल चूका था| वो गुस्से निगाहो में सबकी तरफ देख रहा था| "मुझे मालूम था की तुम ज़्यादा देर अपनी मज़ूदगी को छुपा नहीं पाओगे सुनील को अपनी पत्नी के साथ तुमने ही मारा था और उस मुसाफिर को भी".........दीप के बोलते ही वो गरजा...रैना और सौम्य एक ओर हुए काँप उठे|
"म..मेरी बिलवेड वाइफ मैरी को तूने मुझसे छीना है धीरे धीरे तुम सब का अंजाम भी वही होगा जो आजतक होते आया है तुममें से एक भी इस कॉटेज से बाहर नहीं जा पायेगा सब मरोगे तुम सब मरोगे"
"हाहाहा हाहाहा मुझे ऐसा नहीं लगता बल्कि तुम्हे वो राज़ बताना होगा जिसकी वजह से तुमने यहाँ आतंक मचा रखा है मैँ वही सवाल दोहराऊंगा जो तेरी बीवी से पूछा था? किसने मारा तुम सब को कितनी रूहें और है ऐसी? और क्यों तुम सब भटक रहे हो"
"बेमौत मरे इंसान और अधूरी ख्वाहिश ही उसे इस संसार में रहने को मज़बूर कर देती है चाहे वो इंसान ही क्यों न रह न सके? हम भी बहुत खुश थे हमारी भी ज़िन्दगियों में ख्वाहिशें थी लेकिन इस मनहूस कॉटेज को खरीदते ही हमने जैसे अपनी ज़िन्दगी पे खुद ग्रेहेन लगा लिया सब जानते हुए भी मैँ अपनी पत्नी का मौत का ज़िम्मेदार रहा और खुद की मौत का भी"
हर कोई कांपते हुए सामने खड़े उस रूह की ओर देख रहा था | अरुण को तो ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी और दुनिया में पहुंच गया आजतक अपने किसी भी केस में यूँ कह लो तो कभी अपनी पूरी ज़िन्दगी में उसने ऐसा कुछ न देखा था उसने अपने चीफ प्रकाश वर्मा की बात को जैसे आज याद किया| क्यों कहा था? उन्होने की ये जगह वाक़ई कुछ अलग सी है आज उसे मालूम हो चला की इंसान के साथ साथ रूह का भी कोई वजूद होता है| अब उसके दिल में दहशत मौत की समाने लग चुकी थी|
"लेकिन अब धीरे धीरे जैसी रात गहरी होती जाएगी मौत का आतंक तुम सबका एक एक करके वजूद मिटा देगा सिर्फ रह जाओगे यहाँ एक ज़िंदा रूह बनकर हाहाहाहा हाहाहा हाहाहा हाहाहाहा हाहाहा"..........ठीक उसी पल जैसी उसकी हसी थमने का नाम नहीं ले रही थी |
डायरेक्टर राम भी सभी लोगो की तरह अपनी मौत के अंजाम को सोचते ही काँप उठ चूका था | ठीक उसी पल दीप ने कुछ पढ़ा और उसपर फूंक दिया.....जोसफ की आत्मा एक पल में ही दहाड़ उठी........"ननो नू ससस अंजाम बुरा होगा तुम्हारा आअह्ह्ह्ह"..........दोहरी आवाज़ निकालता हुआ जैसे जोसफ दीप की ओर आने लगा |
"तुम सब ऊपरी माले की ओर भागो".......दीप ने पीछे की ओर पलटते हुए तुरंत कहा....सबके सब आनन् फानन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हुए जाने लगे.....तभी हवाओ का शोर बेहद होता चला गया....खिड़कियों के शीशे अपने आप खनाक की आवाज़ के साथ टूटने लगे....अरुण ने देखा की कॉटेज के चारो तरफ खिड़की और दरवाजो से करीब करीब कई जन ज़िंदा मुर्दे चढ़ते हुए अंदर आ रहे थे|
"हाहाहा हाहाहा मौत के घर में तुम सबको हमेशा हमेशा के लिए रहना है आज तुम सब पर ये आफत बांके टूट पड़ेंगी इस राज़ को जान तो जाओगे ज़रूर लेकिन इस राज़ के साथ वापिस अपने दुनिया में लौट न सकोगे हाहाहा हाहाहाहा आआअह्ह्ह्ह"..........दहाड़ती हसी के साथ जोसफ जैसे अपनी खौफनाक आँखों से देखते हुए ठहाके लगाए जा रहा था |
अरुण ने दीप के बाज़ू को पकड़ा जो एकटक जोसफ की ओर देख रहा था...."यहाँ मत रुको तुम वो तुम्हे मार देगा दीप क'मौन"............."नहीं अरुण ये बहुत खूंखार रूह है ये हममे से किसी को नहीं छोड़ेगा आस पास अपनी देखो ये सब वही नापाक रूह है जिनका डेरा ये डेड लेक है ये तुम्हारी तरफ बढ़ रही है अरुण भागो भागो आई सेड गो"............इतना कस्सके दीप ने अरुण को धकेला की की उसे उलटे पाव सिडिया चढ़ते हुए दीप को वह अकेला छोड़के जाना पड़ा |
दीप ने उसी पल अपनी मुट्ठी पे कुछ पड़ते हुए फूंका और अपने चारो ओर हवा में ही अपने मुठी को गोल घुमाते हुए एक दायरा बना लिया था| "जबतक खुदा मेरे साथ है तू कुछ नहीं कर सकता"........अपना हाथ बढ़ाते हुए जोसफ बेहद दीप के नज़दीक पहुंच चूका था | लेकिन तभी दायरे पे पहुंचते ही एक जोर का झटका जैसे उस मृत जोसफ की आत्मा को लगा वो अपने से करीब कई दूर के फासले पे जा गिरा....उसने फिर दीप को गुस्सैल निगाहो से देखा| उसके आँख सुर्ख सफ़ेद हो चुके थे आस पास के ज़िंदा वो मुर्दे जैसे दीप पे झपट रहे थे लेकिन वो सब एक दायरे से अंदर दाखिल नहीं हो पा रहे थे|
दीप जानता था की वो ज़्यादा देर उन चीज़ो को अपने से दूर नहीं कर पायेगा| निश्चिंत उसके कमज़ोर पड़ते ही वो लोग उसपे टूट पड़ेंगे....दीप वैसे ही खड़ा बस पढ़ते जा रहा था| उसने तुरंत वो पवित्र जल निकाला और उसे पड़ते हुए सीधे जोसफ पर फैकना चाहा लेकिन पलभर में वो गायब होक उसके पीछे खड़ा होक ठहाका लगाने लगा | दीप जानता था उसे ऐसे ही फसाते हुए उसके कमज़ोर पढ़ने के इंतज़ार में जोसफ था |
"तुझे अपनी पत्नी की तरह इस इंसानी दुनिया को छोड़कर जाना ही होगा मैँ कहता हूँ खुदा के पनाह में मैँ यूँ ही खड़ा रहु और इन नापाक रूहो से तमामो तेरे बन्दे आज़ाद हो जहनुम की आग में ये शैतान जले खुदा के नाम में".........कहते हुए दीप ने अपनी पूरी ताक़तो के साथ पवित्र जल के कुछ हिस्सों को दोबारा ठहाका लगाती उस जोसफ की आत्मा पे फैक चूका था लेकिन इस बार उसका निशाना अचूक न हुआ|
जोसफ जैसे चीख उठा उसका पूरा बदन आग के भाति जल उठा| "आआअह्ह आआह्ह्ह आअह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह बेग में छोड़ दो मुझे आहहह ससस आह्ह्ह्ह आई ऍम बर्निंग आह्हः आह्हः मुझे बक्श दो बक्श दो मुझे आअह्ह्ह्ह"...........ऐसा लग रहा था जैसे किसी शैतान का अंत हो रहा हो |
उसके पुरे शरीर में आग पकड़ी हुयी थी वो उसी आग में जलता भागते हुए अपने पास राखी सभी माजूदा चीज़ो पे जैसे टूट पढ़ रहा था| और कुछ ही श्रण में उसकी अंतिम चीख के साथ वो धुएं में तब्दील होते हुए गायब हो उठा| उसी पल दीप ने देखा की उसके आस पास मजूद साड़ी शैतानी रूहें जैसे गायब हो चुकी थी| दीप ने अपने सीने को पकड़ लिया आज उसकी एक भूल उसे यकीनन मौत ही दिलवा देती|
________________________
दीप से अब और सवर न हो सका और उसने धागे को अपने हाथो में लपेटते हुए उसपे कुछ पढ़ा और उसके बाद जैसे अपनी मुट्ठी को हवा में ही मारा......मैरी जोर से चीख उठी उसकी चीख सुन हर कोई सेहम गया.....एक पल को उसका ठहाका लगाना बंद होक उसकी चीखो में तब्दील हो गया
"आह्हः आह्हः नो नो नो नो नो आअह्ह्ह ससस आह्हः"........दीप ने फिर उस मुठी को हवा में मारा.....हर किसी ने उस वक़्त उस तेज हवाओ के आलम में भी साफ़ गौर किया की दीप जैसे जैसे उसके सामने हवाओ में अपनी मुठी को हवा में मार रहा था वैसे वैसे वो चीख रही थी चिल्ला रही थी और काँप उठ रही थी|
धीरे धीरे हवाएं अपने आप थम गयी....सौम्य को तबतलक मौका मिल चूका था उसने एक ओर से भागते हुए सीधे अरुण के पास पनाह ली....दीप ही सबसे परे आगे उस आत्मा के बेहद करीब खड़ा था....मैरी दीप को देखते हुए जैसे गुस्से में बिलबिला रही थी|
"तू एक नापाक रूह है जिसका इस दुनिया में बहुत पहले ही वजूद मिट गया| लेकिन तेरी मौत की वजह है बेदर्दी....बता किसने तुझे मार दिया था? कितने सालो से हो यहाँ? कौन कौन और भी रूहें है तुम्हारे साथ? जवाब दो".........दीप ने चीखते हुए उस धागे को जैसे बीच के हिस्से से तोड़ दिया.....ऐसा करते ही दीप के....मैरी चिल्ला उठी इस बार उसकी चीख ने सबको डरा दिया था|
सबने साफ़ देखा की उसकी हालत किसी बेबस बिन पानी की मछली जैसी तड़पती हो गयी थी| वो बस घुर्रा रही थी की एक पल का उसे मौका मिले तो वो दीप पे जैसे झपट पड़े....."तेरे कोई भी वार का अब मुझपे असर नहीं पड़ने वाला जवाब दे".........."बहुत सालो से है हम यहाँ?".........इस बार दोहरी आवाज़ में मैरी ने कहा...हर कोई चुपचाप वैसे ही बूत बने सुन रहा था|
"और कौन ?"..........दीप ने उससे जैसे सवाल किया जोर देते हुए
"म..मेरे हस्बैंड जोसफ फर्नांडेस और वो लोग जो यहाँ बरसो पहले एक दर्दनाक हादसे के शिकार हुए थे| हम सब यहाँ रहते है हम किसी को नहीं बख्शेंगे किसी को नहीं"
"क्यों कर रहे हो ऐसा? बेमौत लोगो को मार्के क्या मिलता है? जहन्नुम की आग में जलने लायक इस इंसानी दुनिया को छोड़के अब तुम लोगो को जाना होगा सुना तुमने".........दीप उस वक़्त पुरे तैश में था|
उसने अपने कोट की जेब से एक बोतल निकाली जिसे खोलते ही मैरी जैसे रेंगती हुई पीछे को होने लगी.....दीप जानता था की वो मैरी के रूह को और ज़्यादा देर तक अपने काबू में किये नहीं रख सकता| उसने तुरंत ही उस पवित्र जल को कुछ हाथो में लिया और उसी श्रण मैरी पर फैख डाला....मैरी एकदम जोर से चीख उठी जैसे उसे बढ़ी ही पीड़ा हुयी हो| एका एक उसका बदन उसकी गूंजती चीखो के साथ खद-खद होती आवाज़ में जैसे जलने लगा....पुरे लिविंग हॉल में धुआँ उठने लगा और एक अजीब सी चमड़ी जलती सी बदबू उठने लगी| हर कोई गवाह था उस रूह के धुएं में तब्दील हो जाने का| धीरे धीरे कुछ ही पल में आवाज़ें थम गयी धुआँ गायब हो गया और वहा से मैरी का नामोनिशान जैसे मिट गया |
दीप ने सांस भरते हुए पलटकर सबकी ओर देखा.....जैसे राहत का एक सुकून सबके चेहरे पे दिखा हो और डर भरी सवालाते........"ये सब क्या था? दीप ये?"............"रूह"......अरुण के कहने से पहले ही दीप ने जो बात कही उससे एक पल में ही अरुण खामोश हो गया |
"यकीन नहीं था न मुझपर किसी को भी ये रूह थी वो आत्मा जो कई सालो पहले अपना शरीर त्याग चुकी थी| जब कोई इंसान की ख्वाहिश अधूरी रह जाती है या फिर मौत उसे वक़्त से पहले मिल जाती है तो वो रूह भटकती प्रेत आत्मा में तब्दील हो जाती है| सिर्फ यही नहीं इसका पति फर्नांडेस और न जाने कितने और बेमौत मरे लोगो की आत्माओ का वास है यहाँ मैंने कहा था तुमसे अरुण की ये तुम्हारी गन ये सिर्फ इंसानो पे असर कर सकती है मरे हुयो पर नहीं"...............अरुण चुपचाप खड़ा सोच में डूबा सा था|
"क...क्या वो? अब वापिस नहीं आएगी?"...........इस बार सौम्य ने सेहमते हुए पूछा
"ये बोतल का पानी जो मैंने उसपे डाला ये पवित्र जल है जो नापाकियो के लिए खौलता तेज़ाब ऐसी न जाने और कितनी नापाक रूह होंगी मैं जानता था इसलिए मैं पुरे इंतेजामात के साथ ही यहाँ इस कॉटेज में कदम रखा था"
"तो फिर यहाँ रुकना नहीं चाहिए हुम्हे फ़ौरन इस कॉटेज से निकल जाना चाहिए"..........जावेद ने टोकते हुए कहा
"जा भी नहीं पाओगे कोई भी नहीं जा पायेगा जबतक सुबह की पहली किरण इस वीरानिस्तान में नहीं पड़ती....हम यहाँ इस वारदात को जानने ही आये थे जो अब हम सब जान चुके है और नहीं जानते की ये रूहें और कबतक हम्हें यूँ मारने की कोशिशे करेंगी अगर कोई भी कॉटेज से बहार जायेगा तो आफत उसके पीछे पीछे जायेगी जबतक वो उसकी जान न ले ले जबतक हम इस डेड लेक के इलाके में है हमारे लिए कही भी ठहरना खतरे से खाली नहीं आप सब मेरी एक बात सुनिए और जो मैं कह रहा हूँ|"............अचानक बात पूरी भी नहीं हुयी थी की इतने में मेंन दरवाजा अपने आप खुलने लगा....उसकी चर्चारती आवाज़ को सुन हर कोई सेहमते हुए दीप के पीछे हो गया
सिवाय अरुण के जो हाथो में गन लिए दरवाजे की ओर ही ताने हुए था| "दर...दरवाजा अपने आप कैसे खुल गया सारे दरवाजो पे कुण्डी लगायी हुयी थी|"............उसी पल एक अक्स दरवाजे पे खड़ा सबको दिखाने देने लगा...बाहर की बिजली की चमकती रौशनी में सबने देखा वो कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति था जिसने कोट और पैंट पेहेन रखी थी| और उसी वक़्त पुरे कमरे में सर्द जैसी कपकपाती ठण्ड महसूस होने लगी
दीप मुस्कुराया.....उसने साफ़ पाया अपनी पत्नी की रूह के खात्मे का उसे मालूमात चल चूका था| वो गुस्से निगाहो में सबकी तरफ देख रहा था| "मुझे मालूम था की तुम ज़्यादा देर अपनी मज़ूदगी को छुपा नहीं पाओगे सुनील को अपनी पत्नी के साथ तुमने ही मारा था और उस मुसाफिर को भी".........दीप के बोलते ही वो गरजा...रैना और सौम्य एक ओर हुए काँप उठे|
"म..मेरी बिलवेड वाइफ मैरी को तूने मुझसे छीना है धीरे धीरे तुम सब का अंजाम भी वही होगा जो आजतक होते आया है तुममें से एक भी इस कॉटेज से बाहर नहीं जा पायेगा सब मरोगे तुम सब मरोगे"
"हाहाहा हाहाहा मुझे ऐसा नहीं लगता बल्कि तुम्हे वो राज़ बताना होगा जिसकी वजह से तुमने यहाँ आतंक मचा रखा है मैँ वही सवाल दोहराऊंगा जो तेरी बीवी से पूछा था? किसने मारा तुम सब को कितनी रूहें और है ऐसी? और क्यों तुम सब भटक रहे हो"
"बेमौत मरे इंसान और अधूरी ख्वाहिश ही उसे इस संसार में रहने को मज़बूर कर देती है चाहे वो इंसान ही क्यों न रह न सके? हम भी बहुत खुश थे हमारी भी ज़िन्दगियों में ख्वाहिशें थी लेकिन इस मनहूस कॉटेज को खरीदते ही हमने जैसे अपनी ज़िन्दगी पे खुद ग्रेहेन लगा लिया सब जानते हुए भी मैँ अपनी पत्नी का मौत का ज़िम्मेदार रहा और खुद की मौत का भी"
हर कोई कांपते हुए सामने खड़े उस रूह की ओर देख रहा था | अरुण को तो ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी और दुनिया में पहुंच गया आजतक अपने किसी भी केस में यूँ कह लो तो कभी अपनी पूरी ज़िन्दगी में उसने ऐसा कुछ न देखा था उसने अपने चीफ प्रकाश वर्मा की बात को जैसे आज याद किया| क्यों कहा था? उन्होने की ये जगह वाक़ई कुछ अलग सी है आज उसे मालूम हो चला की इंसान के साथ साथ रूह का भी कोई वजूद होता है| अब उसके दिल में दहशत मौत की समाने लग चुकी थी|
"लेकिन अब धीरे धीरे जैसी रात गहरी होती जाएगी मौत का आतंक तुम सबका एक एक करके वजूद मिटा देगा सिर्फ रह जाओगे यहाँ एक ज़िंदा रूह बनकर हाहाहाहा हाहाहा हाहाहा हाहाहाहा हाहाहा"..........ठीक उसी पल जैसी उसकी हसी थमने का नाम नहीं ले रही थी |
डायरेक्टर राम भी सभी लोगो की तरह अपनी मौत के अंजाम को सोचते ही काँप उठ चूका था | ठीक उसी पल दीप ने कुछ पढ़ा और उसपर फूंक दिया.....जोसफ की आत्मा एक पल में ही दहाड़ उठी........"ननो नू ससस अंजाम बुरा होगा तुम्हारा आअह्ह्ह्ह"..........दोहरी आवाज़ निकालता हुआ जैसे जोसफ दीप की ओर आने लगा |
"तुम सब ऊपरी माले की ओर भागो".......दीप ने पीछे की ओर पलटते हुए तुरंत कहा....सबके सब आनन् फानन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हुए जाने लगे.....तभी हवाओ का शोर बेहद होता चला गया....खिड़कियों के शीशे अपने आप खनाक की आवाज़ के साथ टूटने लगे....अरुण ने देखा की कॉटेज के चारो तरफ खिड़की और दरवाजो से करीब करीब कई जन ज़िंदा मुर्दे चढ़ते हुए अंदर आ रहे थे|
"हाहाहा हाहाहा मौत के घर में तुम सबको हमेशा हमेशा के लिए रहना है आज तुम सब पर ये आफत बांके टूट पड़ेंगी इस राज़ को जान तो जाओगे ज़रूर लेकिन इस राज़ के साथ वापिस अपने दुनिया में लौट न सकोगे हाहाहा हाहाहाहा आआअह्ह्ह्ह"..........दहाड़ती हसी के साथ जोसफ जैसे अपनी खौफनाक आँखों से देखते हुए ठहाके लगाए जा रहा था |
अरुण ने दीप के बाज़ू को पकड़ा जो एकटक जोसफ की ओर देख रहा था...."यहाँ मत रुको तुम वो तुम्हे मार देगा दीप क'मौन"............."नहीं अरुण ये बहुत खूंखार रूह है ये हममे से किसी को नहीं छोड़ेगा आस पास अपनी देखो ये सब वही नापाक रूह है जिनका डेरा ये डेड लेक है ये तुम्हारी तरफ बढ़ रही है अरुण भागो भागो आई सेड गो"............इतना कस्सके दीप ने अरुण को धकेला की की उसे उलटे पाव सिडिया चढ़ते हुए दीप को वह अकेला छोड़के जाना पड़ा |
दीप ने उसी पल अपनी मुट्ठी पे कुछ पड़ते हुए फूंका और अपने चारो ओर हवा में ही अपने मुठी को गोल घुमाते हुए एक दायरा बना लिया था| "जबतक खुदा मेरे साथ है तू कुछ नहीं कर सकता"........अपना हाथ बढ़ाते हुए जोसफ बेहद दीप के नज़दीक पहुंच चूका था | लेकिन तभी दायरे पे पहुंचते ही एक जोर का झटका जैसे उस मृत जोसफ की आत्मा को लगा वो अपने से करीब कई दूर के फासले पे जा गिरा....उसने फिर दीप को गुस्सैल निगाहो से देखा| उसके आँख सुर्ख सफ़ेद हो चुके थे आस पास के ज़िंदा वो मुर्दे जैसे दीप पे झपट रहे थे लेकिन वो सब एक दायरे से अंदर दाखिल नहीं हो पा रहे थे|
दीप जानता था की वो ज़्यादा देर उन चीज़ो को अपने से दूर नहीं कर पायेगा| निश्चिंत उसके कमज़ोर पड़ते ही वो लोग उसपे टूट पड़ेंगे....दीप वैसे ही खड़ा बस पढ़ते जा रहा था| उसने तुरंत वो पवित्र जल निकाला और उसे पड़ते हुए सीधे जोसफ पर फैकना चाहा लेकिन पलभर में वो गायब होक उसके पीछे खड़ा होक ठहाका लगाने लगा | दीप जानता था उसे ऐसे ही फसाते हुए उसके कमज़ोर पढ़ने के इंतज़ार में जोसफ था |
"तुझे अपनी पत्नी की तरह इस इंसानी दुनिया को छोड़कर जाना ही होगा मैँ कहता हूँ खुदा के पनाह में मैँ यूँ ही खड़ा रहु और इन नापाक रूहो से तमामो तेरे बन्दे आज़ाद हो जहनुम की आग में ये शैतान जले खुदा के नाम में".........कहते हुए दीप ने अपनी पूरी ताक़तो के साथ पवित्र जल के कुछ हिस्सों को दोबारा ठहाका लगाती उस जोसफ की आत्मा पे फैक चूका था लेकिन इस बार उसका निशाना अचूक न हुआ|
जोसफ जैसे चीख उठा उसका पूरा बदन आग के भाति जल उठा| "आआअह्ह आआह्ह्ह आअह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह बेग में छोड़ दो मुझे आहहह ससस आह्ह्ह्ह आई ऍम बर्निंग आह्हः आह्हः मुझे बक्श दो बक्श दो मुझे आअह्ह्ह्ह"...........ऐसा लग रहा था जैसे किसी शैतान का अंत हो रहा हो |
उसके पुरे शरीर में आग पकड़ी हुयी थी वो उसी आग में जलता भागते हुए अपने पास राखी सभी माजूदा चीज़ो पे जैसे टूट पढ़ रहा था| और कुछ ही श्रण में उसकी अंतिम चीख के साथ वो धुएं में तब्दील होते हुए गायब हो उठा| उसी पल दीप ने देखा की उसके आस पास मजूद साड़ी शैतानी रूहें जैसे गायब हो चुकी थी| दीप ने अपने सीने को पकड़ लिया आज उसकी एक भूल उसे यकीनन मौत ही दिलवा देती|
________________________
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
- Pro Member
- Posts: 2731
- Joined: 10 Oct 2014 21:53
Re: एक और दर्दनाक चीख
ठक ठक ठक ठक ठक........किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी...आतंकित चेहरे लिए हर किसी ने दरवाजे के आड़े खड़े गन थामे अरुण की तरफ सवालातों से देखा.....अरुन ने दरवाजे की ओर देखते हुए कर्कश स्वर में चिल्लाया|
"कौन है? बाहर".........जवाब में डीप की आवाज़ मिली
"नहीं अरुण दरवाजा मत खोलो दीप नहीं हो सकता दीप यकीनन मर चूका है"......सौम्या ने कहा
ठक ठक...दरवाजे पे फिर दीप ने दस्तक दी........"तुम लोग ठीक हो? दरवाजा खोलो खुदा के वास्ते दरवाजा खोलो".......अरुण से रहा न गया उसने दरवाजा खोल डाला
दरवाजे के खुलते ही दीप अंदर घुस आया...उसने अरुण को कहा की जल्दी से दरवाजा लगा दे...अरुण ने दरवाजे को लॉक करते हुए उसके दोनों कंधो पे हाथ रखकर उसकी तरफ देखा
"उफ़ दीप यू ओके? तुम्हे कुछ हुआ तो नहीं न...मैँ तो डर गया था मुझे लगा हमने तुम्हे खो दिया"
"अरे नहीं भाई मेरी मौत इतने जल्दी नहीं लिखी जो मैँ इन रूहो के हाथो की भेट चढ़ जाऊंगा"
"लेकिन वाक़ई अगर तुम न होते तो हम सबकी मौत तैय ही तो थी|".......सौम्य ने मुस्कुराते हुए जैसे शुक्रियादा लहज़े से कहा
"ये सब मेरी नहीं उस खुदा की वजह से हुआ है जिसने हुम्हे इस वीरानो में अबतक सही सलामत बचाये रखा है .....वो लोग मुझे मार ही डालते लेकिन जोसफ ये भूल गया था की मेरे पास खुदा की रेहमत है और उसके पास नापाक शैतान की झूटी ताक़त लेकिन अब भी खतरा टला नहीं है| न जाने फिर कौन सी नयी आफत हमारा इंतजार कर रही होगी"
"इसी लिए मैंने सोचा है की अब मैँ यहाँ और नहीं ठहरने वाला जबतक यहाँ रहेंगे मौत फिर दस्तक देती रहेगी मुझे अपनी जान बचानी है और मैँ यहाँ से जा रहा हूँ".......राम ने हटी स्वाभाव में अपने रस्ते को रोकते जावेद को दूर धकेलते हुए कहा
"पागल मत बनो राम ये वक़्त ज़िद्द का नहीं है न जाने कौन सी नयी आफत तुम्हारे सामने आके खड़ी हो जाये जबतक हम एक साथ है बचे हुए है नहीं तो"...........साहिल की बात को अनसुना कर अचानक से राम ने अपनी जेब से पिस्तौल बाहर खींच निकाला |
"नहीं तो क्या मौत ही आएगी न? सुनील मरा न? तब इसने क्यों नहीं हुम्हे बचाया ? जब खुद पे मुसीबत आ पड़ी तो अपने आपको मसीहा बन रहा है? सब फसाद इन दोनों का है मैँ कहता हूँ हट जाओ मेरे रास्ते से वरना मौत देने से पहले ही मैँ तुम दोनों को मौत दे डालूंगा"..........राम के इस बर्ताव को देख हक्का बक्का हर कोई था|
राम ने अरुण और दीप पर गन तान दी थी| "राम पागल हो गए हो तुम? ये क्या कर रहे हो? डर तुमपर हावी हो गया है आई सेड ड्राप डी गन यू बास्टर्ड"..........सौम्या ने जैसे राम को रोकना चाहा
"यू बेटर शट अप यू टू पीस बीच"............राम ने गन सौम्य के ऊपर तान दी
अरुण ने फ़ौरन गन अपने हाथो में संभाल ली थी....उसी श्रण राम ने गन सीधे अरुण के ऊपर तान दी...."नो नो नो नो चालाकी मिस्टर डिटेक्टिव अरुण बक्शी वरना भेजे में गोली उतार दूंगा"
"तुम ये सब करके बच नहीं पाओगे| मौत तो वैसे भी तुम्हें आ घेरेगी अगर सही सलामत निकल पाए तो पुलिस तुम्हे नहीं बक्शने वाली"
"उसी बात का तो गम है मिस्टर बक्शी लेकिन अब और नहीं जब कोई बचेगा ही नहीं तो मैँ कैसे मरूंगा हाहाहा ? मैँ यहाँ से जा रहा हूँ अगर किसी ने भी रोकने की मुझे कोशिश की तो अपनी मौत वो स्वयं चुनेगा अंडरस्टैंड दू यू आल अंडरस्टैंड?".............सबपर राम गन तानता हुआ फ़ौरन अरुण और दीप को दरवाजे पर से धकेलते हुए बाहर भागने लगा| "मैँ कहता हूँ रुक जाओ"..........लेकिन तबतलक राम सिडिया उतर चूका था
"आई सेड स्टॉप यू डैम इट "............अरुण ने भागते बाहर राम को फिर एक बार रोकना चाहा लेकिन तबतलक पलटकर राम ने फायर कर दिया था....अरुण बाल बाल बचा....वर्ण गोली उसके सीने से आर पार होती|
राम ने तुरंत बाहर निकलते हुए दरवाजे की कुण्डी लगा डाली और हस्ता हुआ अपनी गाडी पे सवार हो चूका था| उसने एक बार अरुण की गाडी के दोनों टायर्स पे फायरिंग किया और फिर अपनी गाडी को फ़ौरन स्पीड में ले जाते हुए वह से निकाल लिया
"उसे भागने दो अरुण मौत से वो कबतक भाग पायेगा चलो हमारा यहाँ रुकना ठीक नहीं हुम्हे वापिस कमरे में पहुंचना होगा"..........सुनते हुए अरुण दीप की बातों को सुन बाकियो के साथ फ़ौरन उस कमरे में वापिस आया और दरवाजे को लॉक्ड कर दिया.....दीप ने उसी श्रण दरवाजे की कुण्डी पे वो लाल धागा बाँध दिया था| "कुछ पल के लिए ही हम यहाँ सेफ रहेंगे".......सुनकर अरुण वापिस जा बैठा था...सौम्य और रैना खामोश थे उन्हे यकीन नहीं हो रहा था की उनका डायरेक्टर राम कुछ इस हदतक ऐसी हरकत कर बैठेगा.....वो लोग जानते थे मौत शायद उसकी बाहर ही लिखी हुयी थी |
"पता है अरुण तुम अबतक सेफ क्यों हो?".........दीप ने अरुण के गले में लटकी उसे चैन को अपने हाथो में फेरते हुए कहा
"इसकी वजह से ये ॐ का लॉकेट? तुम्हारे गले में कैसे?"
तभी अरुण को ख्याल आया की आज से करीब २ साल पहले चीफ प्रकाश वर्मा ने उसे तोहफे के तौर पे वो गिफ्ट दिया था....अरुण को वो इतना पसंद आया की उसने आजतक उसे अपने गले से नहीं उतारा था|
"अगर उसपर यकीन न हो न तो सच में ज़िन्दगी जीने से पहले ही इंसान मौत की आगोश में चला जाये विश्वास करना ही पड़ता है क्यूंकि ये दुनिया ऐसी ही है अबतक बुरी आफतो से इसलिए बचे रहे क्यूंकि तुमने ये पहना हुआ था"
अरुण बस अपने उस लॉकेट को पकड़े सहमति में सर हिलाये चुपचाप था...उसे न जाने क्यों पर अपने अविश्वास पे आँख मुंडके विश्वास करने की सजा मिली थी जिसका उसे अहसास हो चूका था | "आई ऍम सॉरी दीप की मैंने तुम्हे गलत ही समझा रहा".....दीप के कंधे पे हाथ रखते हुए अरुण ने भरी गले से कहा
"हाहाहा चलो भुला इंसान घर लौटके तो आया"............उस मौत के आलम में भी जैसे सबके चेहरे पे एक मुस्कराहट थी | शायद कुछ पल की ही
"अब आगे क्या करे?"............सौम्य ने टोका
अचानक दीप ने पाया की सामने लकड़ी का वो पल्ला टुटा हुआ था और एक बंद कमरे की अँधेरे को दर्शा रहा था| दीप को न जाने क्यों कुछ अहसास सा हुआ |
________________________________
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!