मायावी दुनियाँ
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Re: मायावी दुनियाँ
एक मिनट और बीत चुका था और अब ट्राली की स्पीड मात्र साढ़े बारह किलोमीटर प्रति मिनट ही रह गयी थी। उसने सोचा कि ट्राली से कूद जाये और दौड़ना शुरू कर दे। लेकिन उसकी कैलकुलेशन के अनुसार अभी भी 13 किलोमीटर का फासला बाकी था और ये फासला वह बचे हुए छ: मिनट में हरगिज़ तय नहीं कर सकता था। वह ट्राली के फर्श पर बेचैनी से टहलने लगा। आसमान में सुर्ख बादल लगातार गहरे होते जा रहे थे। और उसके दिल पर मायूसी भी उतनी ही गहरी होती जा रही थी।
लेकिन फिर अचानक सम्राट की बात उसके ज़हन में गूंजी जिसने उसके दिल में रोशनी की किरण पैदा कर दी। उसने कहा था, ''बिना एम स्पेस की गणितीय पहेलियों को समझे कोई उसे पार नहीं कर सकता। और ट्राली की स्पीड का हर मिनट इस तरह कम होना भी यकीनन कोई गणितीय पहेली ही थी।
एक बार फिर उसने अपने दिमाग़ को दौड़ाना शुरू किया और आखिरकार उसे इस पहेली का हल मिल गया। यकीनन वह तेज़ाबी बारिश से बच सकता था। लेकिन उसे जो कुछ करना था वह आखिरी नौवें मिनट में ही करना था। जिस तरह हर मिनट ट्राली की स्पीड कम हो रही थी उस आधार पर नौवें मिनट की समाप्ति पर ट्राली एक सौ निन्यानवे किलोमीटर और छ: सौ मीटर की दूरी तय कर लेती। यानि अगर वह उस समय ट्राली से कूदकर आगे की तरफ भागना शुरू कर देता तो एक मिनट में ये बचे हुए चार सौ मीटर तय कर सकता था। अब वह इत्मीनान से बैठकर नौ मिनटों के खत्म होने का इंतिज़ार करने लगा।
वक्त गुज़र रहा था और ट्राली अब लगभग कछुए की रफ्तार से रेंगने लगी थी। सुर्ख बादलों ने पूरे वातावरण को ही सुर्ख कर दिया था। अजीब डरावना मंज़र था वह।
फिर नौवां मिनट भी खत्म हुआ और उसने फौरन ट्राली से छलांग लगा दी। अब वह जान छोड़कर आगे की तरफ भाग रहा था। इस समय उसका बन्दर का जिस्म काफी काम आ रहा था जिसमें बन्दरों की ही फुर्ती भरी हुई थी। बादलों में अब रह रहकर बिजलियां कड़क रही थीं।
दसवाँ मिनट खत्म होने में कुछ ही मिनट रह गये थे जब उसे आगे ज़मीन पर एक चमकदार पीली रेखा दिखाई दी। शायद ये दो सौ किलोमीटर की सीमा को दर्शा रही थी। उसकी एक लंबी छलांग ने उसे रेखा को पार करा दिया। उसी समय उसे अपने पीछे शोर सुनाई दिया। उसने घूमकर देखा, बारिश शुरू हो गयी थी। लेकिन वह बारिश रेखा के इस पर नहीं आ रही थी। लगता था मानो किसी ने वहाँ शीशे की दीवार खड़ी कर दी है। फिर उसने ये भी देखा कि चींटी की रफ्तार से रेंगती ट्राली धीरे धीरे उस पानी में पिघलती जा रही है। उसके बदन में सिहरन दौड़ गयी। अगर वह उस ट्राली पर होता तो उसका भी यही अंजाम होता। उसने एक इतिमनान की गहरी साँस ली और आगे बढ़ने लगा।
आगे बढ़ते हुए उसे लग रहा था कि वह किसी जंगल के अन्दर घुस रहा है। क्योंकि पहले इक्का दुक्का मिलने वाले पेड़ धीरे धीरे बढ़ते जा रहे थे। जल्दी ही वह एक घने जंगल में पहुंच गया। इस जंगल में साँप बिच्छू भी हो सकते थे, अत: वह एहतियात के साथ अपने कदम बढ़ाने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि उसका जिस्म तो बन्दर का है। उसने फौरन छलांग लगाकर एक पेड़ की डाल पकड़ ली और फिर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदते हुए वह आगे बढ़ने लगा। फिर उसे भूख का एहसास हुआ जो इस धमाचौकड़ी का नतीजा थी।
रामू ने एक डाल पर ठिठककर पेड़ों की तरफ देखा। उसे तलाश थी ऐसे फलों की जो उसकी भूख मिटा सकें। यह देखकर उसकी बांछें खिल गयीं कि पेड़ तो तरह तरह के फलों से लदे हुए थे। उसने फौरन फलों के नज़दीकी गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया लेकिन उसी समय एक महीन आवाज़ उसके कानों में पड़ी, 'मर जायेगा, मर जायेगा उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया और इधर उधर देखने लगा कि ये आवाज़ किधर से आयी।
उसने फिर गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया और वही आवाज़ फिर आने लगी। अब उसने ध्यान दिया कि आवाज़ उसी गुच्छे में से आ रही है। यानि कि ये फल ही इंसानों की तरह बोल रहे थे, और शायद ज़हरीले थे, तभी तोड़ने वाले को वार्निंग दे रहे थे।
रामू ने दूसरे पेड़ की ओर देखा। उसकी डालियां भी फलों से लदी हुई थीं। वह फल भी दूसरी तरह के थे। वह छलांग लगाकर उस पेड़ पर पहुंच गया और फल तोड़ने के लिये हाथ बढ़ाया।
'मरा मरा मरा.... इस फल से भी लगातार आवाज़ें लगीं और उसने घबराकर अपना हाथ खींच लिया। यानि कि इस फल का तोड़ना भी खतरनाक था।
'ऐसा तो नहीं कि ये फल अपने को बचाने के लिये इस तरह की आवाज़ लगा रहे हैं। उसके दिमाग में विचार आया और उसने तय किया कि इस बार ये फल कुछ भी बोलें, वह उन्हें तोड़ लेगा। उसने फल की तरफ हाथ बढ़ाया और उसकी वार्निंग के बावजूद उसे तोड़ लिया। तोड़ते ही फल से आवाज़ आनी बन्द हो गयी। फिर उसने उसे खाने के लिये मुंह की तरफ बढ़ाया, लेकिन उसी समय किसी ने झपटटा मारकर उसके हाथ से उस फल को लपक लिया। उसने भन्नाकर लुटेरे को देखा। वो भी एक बन्दर ही था, लेकिन असली।
फिर उस बन्दर ने जल्दी जल्दी उस फल को खाना शुरू कर दिया और साथ ही रामू को इस तरह देखता भी जा रहा था जैसे ठेंगा दिखा रहा हो। रामू ने तय किया कि उसे सबक सिखाये और इसके लिये उसने किसी मज़बूत डण्डे की तलाश में इधर उधर नज़रें दौड़ायीं। लेकिन उसी वक्त उसने देखा कि बन्दर अपना पेट पकड़कर तड़पने लगा था। फिर तड़पते तड़पते वह ज़मीन पर गिर गया और कुछ ही पलों में वह ठण्डा हो चुका था। रामू जल्दी से उसके पास पहुंचा और हिला डुलाकर देखने लगा। लेकिन उसे यह देखकर निराशा हुई कि बन्दर मर चुका था। इसका मतलब कि फलों की वार्निंग सही थी। वे वाकई ज़हरीले थे।
अगर वह उस फल को खा लेता तो? वह अपने अंजाम को सोचकर काँप गया। उसने तय कर लिया कि वह वहाँ की कोई चीज़ नहीं खायेगा। लेकिन कब तक? भूख उसकी आँतों में ऐंठन पैदा कर रही थी। अगर वह कुछ नहीं खाता तो भले ही कुछ समय तक जिंदा रह जाता लेकिन ज्यादा समय तक तो नहीं।
अचानक उसके दिल में फिर उम्मीद की किरण जागी। जैसा कि सम्राट ने कहा था कि इस दुनिया में हर तरफ गणितीय पहेलियां बिखरी हुई हैं। और उन्हें हल करके सलामती की उम्मीद की जा सकती है। तो इन ज़हरीले फलों के बीच जीवन देने वाले फल भी मौजूद होने चाहिए जो शायद किसी गणितीय पहेली को हल करने पर मिल जायें।
यह विचार दिमाग में आते ही वह उठ खड़ा हुआ और पेड़ों पर लदे फलों पर गौर करने लगा। यहाँ पर जिंदगी और मौत का सवाल था। अत: उसका दिमाग अपनी पूरी क्षमता झोंक रहा था। इसके नतीजे में जल्दी ही वह एक नतीजे पर पहुंच गया। उसने देखा कि एक पेड़ पर फलों के जितने भी गुच्छे लगे हुए थे, उनमें फलों की संख्या निशिचत थी।
जिस पेड़ के नीचे वह खड़ा था उसमें हर गुच्छे में पाँच पाँच फल लगे हुए थे। जबकि उसके पड़ोसी पेड़ में सात सात फलों के गुच्छे थे। उसने आसपास के सारे पेड़ देख डाले। किसी में हर गुच्छे में पाँच फल थे, किसी में दो, किसी में तीन तो किसी में सात फल थे। कहीं कहीं ग्यारह फल भी दिखाई दिये। उसने इन गिनतियों को वहीं कच्ची ज़मीन पर एक डंडी की सहायता से लिख लिया और उनपर गौर करने लगा। जल्दी ही ये तथ्य उसके सामने ज़ाहिर हो गया कि ये सभी संख्याएं अभाज्य थीं। यानि किसी दूसरी संख्या से विभाजित नहीं होती थीं। तो अगर कोई गुच्छे के फल को तोड़ता तो वह एक अभाज्य संख्या को विभाजित करने की कोशिश करता जो की असंभव था। इसीलिए फलों का ज़हर उसका काम तमाम कर देता।
इस नतीजे पर पहुंचते ही वह फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। अब उसे ऐसे पेड़ की तलाश थी जिसके गुच्छे में विभाज्य संख्या में यानि चार, छ:, आठ इत्यादि संख्या में फल लगे हों। थोड़ी दूर जाने पर आखिरकार उसे ऐसा पेड़ मिल गया। इस पेड़ के हर गुच्छे में छ: फल लगे हुए थे। वह फुर्ती के साथ पेड़ पर चढ़ गया और एक गुच्छे की तरफ डरते डरते अपना हाथ बढ़ाया।
जब उसका हाथ गुच्छे के पास पहुंचा तो उसके फलों से आवाज़ आने लगी - 'आओ...आओ।
इसका मतलब उसका निष्कर्ष सही था। ये फल खाने के लायक़ थे। उसने उन फलों को तोड़ा और खाना शुरू कर दिया। काफी स्वादिष्ट और चमत्कारी फल थे। न केवल उसकी भूख मिटी थी बलिक प्यास और थकान भी मिट गयी थी। रामू अपने को पूरी तरह तरोताज़ा महसूस कर रहा था।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: मायावी दुनियाँ
'अब आगे जाने की ज़रूरत ही क्या है। इसी जंगल में बाकी जिंदगी गुज़ार देता हूं। आखिर पुराने ज़माने में सन्यास लेने के बाद साधू सन्यासी यही तो करते थे।' उसके ज़हन में आया और वह वहीं एक डाल पर पसर गया। लेकिन थोड़ी देर बाद फिर उसके विचारों ने पलटा खाया और वह उठकर बैठ गया।
'नहीं नहीं। इस दुनिया का कोई भरोसा नहीं कब पलटा खा जाये।' उसके अब तक के तजुर्बे ने उससे कहा और उसने फिर आगे बढ़ने के लिये कमर कस ली। उस घने जंगल में पेड़ों की डालों की सहारे ही वह आगे बढ़ने लगा।
उसके बन्दर वाले जिस्म के लिये डालों पर कूदना ज्यादा आसान था बजाय इसके कि वह ज़मीन पर पैदल चलता। जंगल में उस एक बन्दर के अलावा उसे कोई भी जानवर नहीं मिला था। शायद वह इसीलिए भेजा गया हो कि उसे ज़हरीले फल को खाने से बचा ले।
लगभग आधा घण्टा चलने के बाद अचानक जंगल खत्म हो गया।
लेकिन ये खात्मा रामकुमार के लिये किसी खुशी का संदेश नहीं था, बल्कि सामने मौजूद आसमान छूते पहाड़ों ने उसे नयी मुशिकल में डाल दिया था। अब तो आगे बढ़ने का रास्ता ही नहीं था।
पहाड़ भी अजीब से थे। बिल्कुल सीधे सपाट। ऐसा लगता था किसी ने पत्थर के बीसियों विशालकाय त्रिभुज बनाकर एक दूसरे से जोड़ दिये हों। उनका रंग भी अजीब था। कुछ संगमरमर जैसे सफेद थे और बाकी कोयले जैसे काले। काफी देर देखने के बाद भी रामू को उनके बीच कोई ऐसी दरार नज़र नहीं आयी जिसे रास्ता बनाकर वह उन पहाड़ों में घुस सकता था।
'लगता है यहाँ भी कोई गणितीय पहेली छुपी हुई है।' रामू ने मन में सोचा। और गौर से पहाड़ों को देखने लगा। उसे उनके रंग में ही कोई खास बात छुपी मालूम हो रही थी। लेकिन वह खास बात क्या है उस तक उसका दिमाग नहीं पहुंच पा रहा था। वह घूम घूमकर पहाड़ों की उन काली व सफेद त्रिभुजाकार रचनाओं को देख रहा था जिनके बीच से आगे जाने का कहीं कोई रास्ता नहीं था। तमाम काले व सफेद त्रिभुज कुछ इस तरह साइज़ व आकार में एक जैसे थे कि उन्हें अगर एक के ऊपर एक रख दिया जाता तो सब बराबर से फिट हो जाते।
अचानक उसके ज़हन में एक झमाका हुआ और उसे अग्रवाल सर की एक बात याद आ गयी जो उन्होंने निगेटिव नंबरों के चैप्टर की शुरुआत करते हुए बतायी थी।
''अगर बराबर की निगेटिव व पाजि़टिव संख्या ली जाये तो उसका जोड़ हमेशा ज़ीरो होता है।' अगवाल सर का ये जुमला लगातार उसके दिमाग में उछलने लगा। फिर उसे ध्यान आया कि पहाड़ों के ये त्रिभुज भी निगेटिव व पाजि़टिव ही मालूम हो रहे थे। और वह भी बराबर के साइज़ के। अगर उन्हें बराबर से एक दूसरे से मिला दिया जाये तो?' लेकिन फिर उसे अपनी इस सोच पर हंसी गयी। भला इन विशालकाय पहाड़ों को कौन हिला सकता था।
लेकिन फिर उसके दिमाग में एक और विचार आया। आजकल के ज़माने में मात्र कुछ स्विच दबाकर भारी भरकम मशीनों को कण्ट्रोल किया जाता है, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इन पहाड़ों में रास्ते के लिये भी कोई स्विच दबाना पड़ता हो।
अब वह एक बार फिर पहाड़ के आसपास चक्कर लगाने लगा। उसे तलाश थी किसी स्विच की।
थोड़ी देर वह पहाड़ों के ही समान्तर एक दिशा में चलता रहा। इससे पहले वह दूसरी दिशा में काफी दूर तक जा चुका था। फिर एकाएक वह ठिठक गया। यह एक छोटा सा चबूतरा था।
लेकिन चबूतरे ने उसे आकर्षित नहीं किया था बल्कि उसके ऊपर मौजूद दो मूर्तियों ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा था। उनमें से एक मूर्ति पूरी तरह सफेद संगमरमर की बनी थी और उसका खूबसूरत चेहरा किसी फरिश्ते का मालूम हो रहा था। उसके शरीर पर दो पंख भी लगे हुए थे। जबकि दूसरी मूर्ति जो काले पत्थर की बनी हुई थी वह किसी शैतान की मालूम हो रही थी। जिसके सर पर दो सींग मौजूद थे। दोनों मूर्तियां एक दूसरी को घूरती हुई मालूम हो रही थीं।
'यहाँ भी पाजि़टिव और निगेटिव। हो न हो इन मूर्तियों का पहाड़ों से कोई न कोई सम्बन्ध ज़रूर है।
उसने आगे बढ़कर फरिश्ते की मूर्ति को हिलाने की कोशिश की। लेकिन वह टस से मस नहीं हुई। फिर उसने शैतान की मूर्ति को भी उठाने की कोशिश की। लेकिन वह भी मज़बूती के साथ चबूतरे पर जड़ी हुई थी। काफी देर तक वह उनके साथ तरह तरह की हरकतें करता रहा लेकिन न तो मूर्तियों में कोई परिवर्तन आया और न ही पहाड़ों में कोई हरकत हुई । वह थक कर चूर हो गया था अत: चबूतरे पर चढ़ गया और फरिश्ते की मूर्ति के सामने पहुंचकर अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। मानो वह उससे प्रार्थना कर रहा था। ये अलग बात है कि इस समय उसके दिल में पूरी दुनिया के लिये निहायत बुरे शब्द गूंज रहे थे।
उसी समय उसे अपने पीछे गड़गड़ाहट की आवाज़ सुनाई देने लगी। उसने घबराकर आँखें खोल दीं और पीछे मुड़कर देखा। उसे हैरत का झटका लगा क्योंकि शैतान की मूर्ति तेज़ गड़गड़ाहट के साथ खिसकती हुई उसी की ओर आ रही थी। वह घबराकर जल्दी से चबूतरे के नीचे कूद गया। शैतान की मूर्ति लगातार फरिश्ते की मूर्ति की ओर खिसकती जा रही थी। और कुछ ही देर बाद वह उससे जाकर मिल गयी। इसी के साथ वहां इस तरह का हल्की रोशनी के साथ धमाका हुआ मानो कोई शार्ट सर्किट हुआ हो। रामू ने देखा, दोनों मूर्तियां धुवाँ बनकर हवा में विलीन हो रही थीं।
अभी वह उस धुएं को देख ही रहा था कि उसे अपने पीछे बहुत तेज़ बादलों जैसी गरज सुनाई पड़ने लगी। वह पीछे घूमा और वहाँ का नज़ारा देखकर उसका मुंह खुला रह गया।
विशालकाय त्रिभुजाकार पहाड़ तेज़ी के साथ एक दूसरे की ओर खिसक रहे थे। और काले त्रिभुज सफेद त्रिभुजों के पीछे छुप रहे थे। इस क्रिया में ही बादलों की गरज जैसी आवाज़ पैदा हो रही थी। रामू को अपने नीचे की ज़मीन भी हिलती हुई मालूम हो रही थी। लगता था जैसे भूकम्प आ गया है। उसने डर कर अपनी आखें बन्द कर लीं। उसे लग रहा था कि आज उसका अंतिम समय आ गया है। अभी ज़मीन फटेगी और वह उसमें समा जायेगा।
गरज की आवाज़ धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी और बन्द आँखों से ही रामू महसूस कर रहा था कि अब वहाँ बिजलियां भी चमक रही हैं। और उस चमक में इतनी तेज़ रोशनी पैदा हो रही थी कि बन्द आँखों के बावजूद रामू को उसकी चुभन महसूस हो रही थी। लगता था उसके सामने सूरज चमक रहा है।
लगभग पन्द्रह मिनट की गरज व चमक के बाद अचानक वहाँ सन्नाटा छा गया। उसने डरते डरते आँखें खोलीं और एक बार फिर उसका मुंह खुला रह गया।
वह ऊंचे ऊंचे पहाड़ तो अपनी जगह से नदारद थे और उनकी जगह एक उतना ही विशालकाय महल नज़र आ रहा था। उस महल की दीवारों पर सफेद व काले रंग के पत्थर जड़े हुए थे। महल में सामने एक विशालकाय दरवाज़ा भी मौजूद था जो कि फिलहाल बन्द था।
'अरे वाह। लगता है मैं अपनी मंजि़ल पर पहुंच गया। ये महल यकीनन इस तिलिस्म को तोड़ने के बाद आराम करने के लिये बना है।' ऐसा सोचते हुए रामू महल के दरवाज़े की ओर बढ़ा।
जैसे ही वह दरवाज़े के पास पहुंचा, दरवाज़े के दोनों पट अपने आप खुल गये। एक पल को रामू ठिठका लेकिन फिर अन्दर दाखिल हो गया। उसके अन्दर दाखिल होते ही दरवाज़ा अपने आप बन्द भी हो गया। लेकिन अब रामू के पास पछताने का भी मौका नहीं था।
क्योंकि महल अन्दर से एक विशालकाय हाल के रूप में था। और उस हाल के फर्श पर हर तरफ साँप बिच्छू और दूसरे कीड़े मकोड़े रेंग रहे थे। वह चिहुंक कर जल्दी से उछला और छत से जड़े एक फानूस को पकड़ कर लटक गया। हाल के फर्श पर मौजूद ज़हरीले कीड़ों ने उसकी बू महसूस कर ली थी और अब रेंगते हुए उसी फानूस की तरफ आ रहे थे। हालांकि फानूस काफी ऊंचाई पर था और जब तक वह उससे लटक रहा था, कोई खतरे की बात नहीं थी। लेकिन कब तक? एक वक्त आता जब उसके हाथ थक जाते और वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरता। और ये भी तय था कि गिरते ही साँप बिच्छुओं के खतरनाक ज़हर में उसकी बोटी बोटी गल जाती।
वक्त बीतता जा रहा था। लेकिन रामू के लिये ये वक्त बहुत ही सुस्त रफ्तार से गुज़र रहा था। एक एक सेकंड उसके लिये पहाड़ की तरह साबित हो रहा था। उसके हाथ अब अकड़ने लगे थे लेकिन फानूस से लटकने के सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं था। यह मायावी दुनिया अजीब थी। वह पूरे जंगल को पार करके आया था और उसमें उसे किसी खतरनाक जानवर की झलक तक नहीं दिखी थी। दूसरी तरफ यह महल था जहाँ उसे उम्मीद थी कि खूबसूरत बेडस पर नर्म गददे लगे मिलेंगे, वहाँ ऐसे खतरनाक कीड़े मकोड़े व साँप बिच्छू।
उसने बेबसी से फर्श की तरफ देखा जहाँ बहुत से साँप बिच्छू उसके ठीक नीचे मुंह फैलाकर खड़े हो गये थे और उसके टपकने का इंतिज़ार कर रहे थे। उसने जल्दी से फर्श पर से नज़रें हटा लीं और दीवार की ओर देखने लगा। लेकिन दीवार के नज़ारे ने उसकी हालत और खराब कर दी। उसपर इस डरावनी हक़ीकत का इज़हार हुआ कि वहाँ कुछ ऐसे कीड़े व साँप भी मौजूद थे जो दीवार पर चढ़ सकते थे। और वो आफतें दीवार पर चढ़कर लगभग छत तक पहुंचने वाली थीं और उसके बाद उस फानूस तक जिससे वह लटका हुआ था।
यानि बचने का कोई रास्ता नहीं था। हाँ मरने के उसके पास दो रास्ते थे। या तो वह फानूस को छोड़ देता। ऐसी दशा में नीचे के कीड़े मकोड़े फौरन ही उससे चिमटकर उसका काम तमाम कर डालते, या फिर वह उन कीड़ों का इंतिज़ार करता जो छत से रेंगकर उसके पास आने वाले थे।
'क्या यहाँ भी बचने का कोई गणितीय फार्मूला मौजूद है?' उसके दिमाग़ में ये विचार पैदा हुआ। और इस विचार के साथ ही उसके दिल में उम्मीद की किरण फिर पैदा हो गयी। वह हाल में चारों तरफ नज़रें दौड़ाने लगा और गौर से एक एक चीज़ को देखने लगा। फिर उसकी नज़र छत से लटकते एक छल्ले पर जम गयी।
वैसे तो हाल की छत से बहुत से फानूस लटक रहे थे। और उनका लटकना कोई हैरत की बात नहीं थी। लेकिन उन फानूसों के बीच में एक छल्ले का लटकना ज़रूर अजीब था। फिर उसने फर्श पर रेंगते कीड़ों और साँप बिच्छुओं को भी जब गौर से देखा तो उसे उनमें एक खास बात नज़र आयी।
वह सभी कीड़े मकोड़े साँप व बिच्छू रेंगते हुए किसी न किसी गणितीय अंक के आकार को बना रहे थे। मसलन एक साँप इस तरह टेढ़ा होकर रेंग रहा था कि उससे 5 का अंक बन रहा था। कुछ बिच्छू इस तरह सिमटे थे कि उनसे 3 का अंक बना दिखाई दे रहा था। एक कीड़ा 8 के अंक के आकार में था तो दूसरा 9 के अंक के आकार में। जब ये कीड़े एक दूसरे के समान्तर रेंगते थे तो उनसे बनी संख्याएं भी साफ दिख जाती थीं। फर्श पर कहीं 1512 संख्या रेंगती हुई दिख रही थी तो कहीं 5234। कहीं कहीं तो पन्द्रह बीस अंकों की बड़ी संख्याएं भी दिख रही थीं।
''कमबख्तों ये जो तुम लोग इतनी बड़ी बड़ी संख्याएं बना रहे हो। अगर मुझे कहीं से ज़ीरो मिल जाये तो तुम सब को उससे गुणा करके ज़ीरो कर दूं।" रामकुमार ने दाँत पीसकर कहने की कोशिश की और इसी के साथ उसकी आँखों ने हाल में मौजूद ज़ीरो को पहचान भी लिया। छत में फानूसों के साथ लटकता वह स्पेशल छल्ला ठीक किसी ज़ीरो की तरह ही दिख रहा था।
जिस फानूस से वह लटक रहा था उससे चार फानूस आगे जाकर वह छल्ला मौजूद था। लेकिन वहाँ तक पहुंचना भी अत्यन्त मुश्किल था। फर्श पर तो वह चल ही नहीं सकता था वरना ज़हरीले साँप बिच्छू फौरन ही उससे चिमट जाते। केवल एक ही रास्ता उसके सामने था। कि वह अपने फानूस से छलांग लगातार दूसरे फानूस तक पहुंचता और फिर तीसरे तक। इस तरह वह उस ज़ीरो नुमा छल्ले तक पहुंच सकता था। ये काम बहुत ही मुश्किल था लेकिन और कोई चारा भी नहीं था।
'मरना तो हर हाल में है। फिर कोशिश करके क्यों न मरा जाये।' उसने सोचा और आगे वाले फानूस की तरफ छलांग लगा दी। उसकी ये छलांग कामयाब रही। वह आगे के फानूस पर पहुंच चुका था। पहली बार उसे अपने बन्दर के जिस्म पर गर्व महसूस हुआ। अगर उसके पास मानव शरीर होता तो इस छलांग में फानूस टूट भी सकता था और ये भी ज़रूरी नहीं था कि वह दूसरे फानूस तक पहुंच ही जाता।
इस कामयाबी ने उसका उत्साह दोगुना कर दिया और उसने फौरन ही दूसरी छलांग लगा दी। हालांकि इसमें वह थोड़ी जल्दी कर गया था और तीसरा फानूस उसके हाथ से छूटते छूटते बचा था। उसके दिल की धडकनें एक बार फिर बढ़ गयीं।
अभी भी वह ज़ीरो नुमा छल्ला उससे दो फानूस आगे था। इसबार उसने संभल कर छलांग लगायी और एक फानूस और कामयाबी के साथ पार कर लिया। फिर अगला फानूस पार करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं हुई। अब उसकी आँखें सिर्फ उस चमकदार छल्ले को देख रही थीं।
'बस एक छलांग और फिर ये ज़ीरो मेरे हाथों में होगा।' उसने एक पल में सोचा और दूसरे पल में छल्ले की ओर छलांग लगा दी। लेकिन जैसे ही उसके हाथों ने छल्ले को पकड़ा। छत से लटकते छल्ले की ज़ंज़ीर टूट गयी और वह छल्ले को लिये दिये फर्श पर आ गया।
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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Re: मायावी दुनियाँ
जैसे ही छल्ला उन खतरनाक प्राणियों के पास पहुंचा, रोशनी का हल्का सा झमाका हुआ और वहाँ से साँप बिच्छू व दूसरे कीड़े मकोड़े इस तरह गायब हो गये मानो हवा उन्हें निगल गयी। ये देखते ही रामू जोश में भर गया और छल्ले को चारों तरफ घुमाने लगा। हाल के ज़हरीले कीड़े छल्ले के सम्पर्क में तेज़ी से आने लगे और उसी तेज़ी के साथ हवा में विलीन होने लगे। अब रामू पूरे हाल में दौड़ दौड़कर उन ज़हरीले प्राणियों को ख़त्म कर रहा था।
थोड़ी ही देर में पूरा हाल उन ज़हरीले प्राणियों से साफ हो चुका था। रामकुमार ने चैन की गहरी साँस अपने फेफड़ों के अन्दर खींची और वहीं फर्श पर बैठ गया। लेकिन उसका ये चैन ज्यादा देर तक क़ायम नहीं रह सका। क्योंकि उसकी आँखों ने हाल की दीवारों की उस खतरनाक हरकत को देख लिया था। हाल की चारों तरफ की दीवारे आहिस्ता आहिस्ता अन्दर की तरफ सिमट रही थीं। उनकी ये क्रिया शायद उसी समय शुरू हो गयी थी जब वह छल्ला छत से अलग हुआ था।
हालांकि दीवारों के खिसकने की रफ्तार बहुत ही धीमी थी लेकिन फिर भी वह वक्त आ ही जाता जब वह दीवारें आपस में मिल जातीं। और फिर उनके बीच रामकुमार का जो हाल होता उसे कोई भी समझ सकता था।
उसने किसी दरवाज़े की तलाश में नज़रें दौड़ायीं। लेकिन अब हाल में कहीं कोई दरवाज़ा नज़र नहीं आ रहा था। यहाँ तक कि वह जिस दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ था, वह भी गायब था। चारों तरफ सिर्फ सपाट दीवारें थीं जिनमें कहीं कोई खिड़की दरवाज़ा नहीं था। उसका मन हुआ कि घुटनों में सर देकर बैठ जाये और ज़ोर ज़ोर से फूट फूटकर रोने लगे।
लेकिन फिर यह सोचकर उसकी हिम्मत बंधी कि जिस तरह पिछली बहुत सी मुसीबतों से बचने का तरीका उसे सूझ गया था उसी तरह इस नयी मुसीबत से बचने का भी कोई न कोई तरीका निश्चित ही होना चाहिए था। और उस तरीके को ढूंढकर वह इस मुसीबत को भी दूर कर सकता था। एक बार फिर उसने गौर से चारों तरफ देखना शुरू किया।
लेकिन इस बार देर तक देखने के बावजूद उसे कोई ऐसा क्लू नहीं मिला जिसके सहारे वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने की तरकीब तक पहुंच सकता था। चारों दीवारें सपाट थीं जिनपर कहीं कोई निशान नहीं था और न ही फर्श पर ही कोई निशान मौजूद था। छत पर फानूस पहले की तरह मौजूद थे। फिर उसके दिमाग में एक विचार आया। अगर दीवारें पास आयेंगी तो छत पर लटके फानूसों का क्या होगा?
उसने दीवार के सबसे पास वाले फानूस पर नज़रें गड़ायीं। जो कि धीरे धीरे खिसकती दीवार के पास हो रहा था। जैसे ही दीवार उस फानूस के पास पहुंची, फानूस इस तरह हवा में विलीन हो गया जैसे वहाँ था ही नहीं। रामकुमार ने एक गहरी साँस ली। लटकते फानूस भी कोई क्लू देने से लाचार ही सिद्व हुए थे।
लेकिन नहीं। क्लू तो मौजूद था। सभी फानूस छत में इस तरह लगे हुए थे कि उनसे एक के भीतर एक कई वर्ग बन रहे थे। उसने दीवारों की तरफ देखा। हर दीवार आयताकार थी जबकि फर्श व छत वर्गाकार। उसने जब आगे गौर किया तो एक बात और समझ में आयी। चारों दीवारों के क्षेत्रफल को अगर जोड़ दिया जाता तो यह जोड़ फिलहाल फर्श के क्षेत्रफल से कम ही निकल कर आता। लेकिन जिस तरह दीवारें सिमट रही थीं बहुत जल्द ये क्षेत्रफल फर्श के बराबर हो जाना था।
फिर उसने मन ही मन कैलकुलेशन करनी शुरू की। और जल्द ही उसे वह स्पाट मिल गया जहाँ पर अगर दीवार पहुंच जाती तो दीवारों का कुल क्षेत्रफल फर्श के क्षेत्रफल के बराबर हो जाता। उसने सर उठाकर छत की तरफ देखा तो वहाँ के फानूस उसे बाकी फानूसों से रंग व रूप में अलग नज़र आये। जहाँ सारे फानूसों में सुर्खी लिये हुए गहरा पीलापन झलक रहा था वहीं इन फानूसों में हरापन था। इसका मतलब कि इन फानूसों में ही दीवार रोकने का और इस मुसीबत से बाहर निकलने का राज़ था। लेकिन वह राज़ क्या था?
इस बारे में रामू को कोई आइडिया नहीं था। फिर उसकी नज़र अपने हाथ पर गयी जिसमें ज़हरीले साँपों व कीड़े मकोड़ों को मारने वाला गोल ज़ीरोनुमा हथियार अब भी मौजूद था। उसने एक दाँव फिर खेलने का निश्चय किया और उस ज़ीरोनुमा हथियार को हरे फानूस की तरफ उछाल दिया। जैसे ही उसका हथियार फानूस से टकराया वह फानूस हलकी चमक के साथ ग़ायब हो गया। इसका मतलब उसका ज़ीरोनुमा हथियार किसी भी चीज़ का अस्तित्व मिटा सकता था।
उसने यह क्रिया सारे हरे फानूसों के साथ की और थोड़ी ही देर में वह सब फानूस ग़ायब हो चुके थे, और उनकी जगह पर सपाट वर्ग बन चुका था। अब उसने दीवार की तरफ नज़र की। लेकिन यह देखकर उसका दिल डूबने लगा कि दीवारें अभी भी उसकी तरफ खिसक रही थीं।
'हो सकता है यह ज़ीरो दीवारों का अस्तित्व भी मिटा दे। ऐसा सोचकर वह एक दीवार के पास पहुंचा और ज़ीरो को उससे टच करा दिया। लेकिन दीवार पर कोई भी असर नहीं हुआ। गहरी निराशा से उसका दिल भर गया। यानि अब उसका अंतिम समय आ चुका था। वह जाकर चुपचाप हाल के बीचोंबीच लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। हो सकता है सोते में मौत का एहसास ही न हो। लेकिन जब दिमाग ही डिस्टर्ब हो तो कैसी नींद - कहाँ की नींद?
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Re: मायावी दुनियाँ
दीवारें पास आ रही थीं और उनके सम्पर्क में आने वाले फानूस गायब हो रहे थे। अब दीवारें उस जगह के काफी पास पहुंच गयी थीं जहाँ पहले हरे फानूस मौजूद थे। लगभग पाँच मिनट बाद दीवारें उस जगह पहुंच गयीं। फिर रामू यह देखकर उछल गया कि उस जगह पहुंचते ही दीवारें भी फानूस ही की तरह हवा में विलीन हो गयीं। रामू ने देखा बिना दीवारों के सपोर्ट के छत नीचे गिर रही थी। हालांकि उसके गिरने की रफ्तार धीमी थी। उसने छलांग लगायी और छत की सीमा से बाहर आ गया। छत फर्श से टकराया और फिर ज़मीन में सुराख बनाता हुआ नीचे जाने लगा
उसने आगे झांक कर देखा, फर्श अब बहुत तेज़ी से नीचे जा रहा था और ज़मीन में एक गहरी अँधेरी सुरंग बनती जा रही थी। वह पीछे हट गया और चारों तरफ देखने लगा। घना जंगल हर तरफ फैला हुआ था।
धीरे धीरे रात का अँधेरा उस जंगल को अपनी आगोश में ले रहा था और रामू महसूस कर रहा था कि नयी मुसीबत उसके सामने आने वाली है। क्योंकि हो सकता था अभी तक न दिखने वाले जंगली जानवर अँधेरे में अपने अपने ठिकानों से निकल आये। ऐसे वक्त में उनसे बचना मुश्किल होता। एक हल्की सी आवाज़ वहाँ गूंज रही थी जो शायद फर्श के नीचे जाने की आवाज़ थी। फिर अचानक वह आवाज़ बन्द हो गयी। रामकुमार एक बार फिर ज़मीन में बने उस वर्गाकार सूराख में झाँकने लगा। बहुत नीचे जाकर फर्श रुक गया था।
रामू फिर पलट आया। लेकिन फिर उसकी आँखों में चौंकने के लक्षण पैदा हुए। अगर फर्श बहुत नीचे था तो अँधेरे में उसे दिखाई कैसे दिया? उसने दोबारा वहाँ झाँका तो मालूम हुआ कि नीचे हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। जो फर्श की साइड से निकल रही थी। और उस साइड में शायद कोई दरवाज़ा मौजूद था, जिसके भीतर से वह रोशनी आ रही थी। उसने और गौर किया तो ये भी समझ में आ गया कि वह उस दरवाज़े तक पहुंच सकता था।
हालांकि गहराई काफी थी, लेकिन नीचे उतरने के लिये उस चौकोर कुएं नुमा सुरंग की दीवारों में छोटे छोटे सूराख बने हुए थे जो कि नीचे तक गये थे। उन सूराखों में हाथ व पैर फंसाकर वह आसानी से नीचे उतर सकता था। लेकिन इस उतरने में रिस्क भी था। वह महल के अन्दर बिना सोचे समझे दाखिल होने का अंजाम देख चुका था। ऐसा न हो कि नीचे मौजूद दरवाज़े के अन्दर कोई नयी मुसीबत उसका इंतिज़ार कर रही हो।
वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया और अगले कदम के बारे में ग़ौर करने लगा। उसके सामने दो रास्ते थे। या तो वापस जंगल की तरफ चला जाता या फिर उस कुएं में उतर जाता। लेकिन शायद जंगल में प्रवेश करने पर वह वहीं जिंदगी भर भटकता रहा जाता, जबकि उस कुएं का दरवाज़ा इस मायावी दुनिया में आगे बढ़ने का शायद कोई नया रास्ता था। और इस तरह नये रास्ते की दरियाफ्त करते करते शायद वह एक दिन इस तिलिस्मी दुनिया से बाहर आने में कामयाब हो जाता।
उसे सम्राट का मैडम वान से कहा जुमला याद आ गया, ''शायद तुम ये कहना चाहती हो कि अगर किसी ने एम-स्पेस पार कर लिया तो वह हमें हमेशा के लिये अपने कण्ट्रोल में कर लेगा। यानि अगर वह इस मायावी दुनिया यानि एम-स्पेस को पार करने में कामयाब हो जाता तो न सिर्फ खुद आज़ाद होता बल्कि सम्राट व उसके साथियों को भी सबक़ सिखा सकता था। अब तक की कामयाबियों ने उसके आत्मविश्वास में काफी बढ़ोत्तरी कर दी थी। उसने नीचे उतरने का निश्चय किया।
हाथ में पकड़े ज़ीरो को उसने दाँतों में दबाया और दीवार में बने सूराखों के सहारे वह नीचे उतरने लगा। यह चमकदार ज़ीरो काफी काम का है इतना तो वह देख ही चुका था। जल्दी ही वह नीचे पहुंच गया। जिस जगह से वह रोशनी फूट रही थी वह वास्तव में एक दरवाज़ा ही था। एक सुनहरे रंग का चमकता हुआ दरवाज़ा। रोशनी उसी चमक की थी।
उसने आगे बढ़कर दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा आसानी से खुल गया । एक पल को वह अन्दर जाने से ठिठका। क्योंकि इससे पहले वह दरवाज़ें से अन्दर दाखिल होने का अंजाम भुगत चुका था। लेकिन फिर सारी आशंकाओं को किनारे फेंककर वह अन्दर दाखिल हो गया। अन्दर उसे एक बार फिर हैरतज़दा करने वाला नया मंज़र नज़र आया।
यह एक गोल कमरा था। जिसकी दीवारों पर हर तरफ बड़े बड़े टीवी स्क्रीन लगे हुए थे। और हर स्क्रीन पर पृथ्वी के किसी न किसी हिस्से का सीन नज़र आ रहा था। कहीं बर्फ से ढंके हिमालय के पहाड़ दिख रहे थे, कहीं ब्राज़ील के घने जंगल, कहीं टोकियो शहर की भरी पूरी सड़क का ट्रैफिक तो कहीं भारत के किसी भरे बाज़ार का सीन दिखाई दे रहा था।
लेकिन उन सब से भी ज़्यादा आश्चर्यजनक कमरे के बीचों बीच रखी छोटी सी गोल मेज़ थी जिसपर किसी बहुत बूढ़े व्यक्ति की कटी हुई गर्दन रखी थी। उसके लंबे सफेद बाल मेज़ पर फैले हुए थे। गर्दन हालांकि दिखने में ताज़ी थी लेकिन इसके बावजूद उसके आसपास कहीं खून गिरा नहीं दिखाई दे रहा था।
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Re: मायावी दुनियाँ
'ऐसा लगता है कि यहाँ से पूरी पृथ्वी को देखा जा सकता है और उसकी घटनाओं को कण्ट्रोल किया जा सकता है। तो क्या मैं कथित एम-स्पेस के कण्ट्रोल रूम में पहुंच गया हूं?' उसके दिमाग में यह विचार आया। लेकिन उसी वक्त एक आवाज़ ने उसके विचारों को भंग कर दिया।
'तुम गलत सोच रहे हो। उसने देखा यह आवाज़ उस कटे सर से आ रही थी। उसके होंठ हिल रहे थे। ऐसे .दृश्य को देखकर रामू की उम्र का कोई भी लड़का भूत भूत चिल्लाते हुए भाग निकलता। लेकिन इस दुनिया के पल पल बदलते रंगों में रामू पहले ही इतना हैरतज़दा हो चुका था कि अब कोई नयी घटना उसके ऊपर अपना प्रभाव नहीं डालती थी। वह उस कटे सर के पास पहुंचा।
''मैं क्या गलत सोच रहा हूं?" उसने उस सर से पूछा। इतना तो उसे एहसास हो ही गया था कि यह सर मायावी एम स्पेस की कोई नयी माया है।
''जिस जगह तुम खड़े हो वह एम-स्पेस का कण्ट्रोल रूम नहीं है। लेकिन कण्ट्रोल रूम तक जाने का रास्ता ज़रूर है।" उस सर ने कहा।
''वह रास्ता किधर है?"
''मैं मजबूर हूँ नहीं बता सकता। वरना मेरी मौत हो जायेगी। वह रास्ता तुम्हें खुद ढूंढना होगा।"
''लेकिन तुम्हारे कटे सर से तो यही मालूम हो रहा है कि तुम मर चुके हो। फिर अब कैसा मरना?"
''एम-स्पेस की एक तकनीक ने मेरे सर को धड़ से जुदा कर दिया है। लेकिन मैं जिंदा हूं।"
''अच्छा यह बताओ कि मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं कण्ट्रोल रूम पहुंच गया?" रामू ने फिर पूछा। उसके मुंह से हालांकि बन्दर की ही खौं खौं की भाषा निकल रही थी लेकिन वह कटा सर उस भाषा को बखूबी समझ रहा था। रामू की बात के जवाब में वह सर बोला, ''जिस जगह तुम मेरा कटा हुआ धड़ देखोगे वही जगह होगी कण्ट्रोल रूम।"
''लेकिन तुम हो कौन?"
''मैं कौन हूं, इसका पता तुम्हें उसी वक्त चलेगा जब तुम कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने में कामयाब हो जाओगे। और अब होशियार रहना क्योंकि आगे का रास्ता ज़्यादा मुश्किल है।"
रामू ने सर हिलाया और चारों तरफ देखने लगा। अब इससे ज़्यादा मुश्किल और क्या होगी कि वह तेज़ाबी बारिश और साँप बिच्छुओं का सामना करके आ चुका था। वैसे उस सर ने काफी हद तक उसका मार्गदर्शन कर दिया था। यानि एम स्पेस के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये कण्ट्रोल रूम तक पहुंचना ज़रूरी था। उसे तलाश थी अब कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने के रास्ते की। जिसके बाद न सिर्फ उसकी जान बच जाती बल्कि वह सम्राट की साजि़शों को भी बेनक़ाब कर देता जो कि ईश्वर बनकर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा करने का ख्वाब देख रहा था। उसके मकसदों पर पानी फेरने के लिये इस दुनिया के तिलिस्म को तोड़ना ज़रूरी था।
वह आगे के रास्ते की तलाश में पूरे कमरे का निरीक्षण करने लगा। फिलहाल कहीं कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। दीवारों पर तो टीवी स्क्रीन लगे हुए थे जबकि फर्श व छत बिल्कुल सपाट थी। एक गोल मेज़, जिसपर कटा सर रखा हुआ था, उसके अलावा कमरे में कोई सामान भी नहीं था।
'लेकिन रास्ता यकीनन है यहाँ पर।' रामू ने अपने मन में कहा। और उस गुप्त रास्ते का सम्बन्ध या तो मेज़ से है या फिर टीवी स्क्रीनों से। इन दोनों के अलावा और कोई वस्तु तो यहाँ पर है नहीं।
उसने मेज़ से शुरूआत करने का इरादा किया। पहले उसने मेज़ को हिलाने की कोशिश की। लेकिन वह फर्श से जड़ी हुई थी, अत: टस से मस नहीं हुई । मेज़ को किसी भी तरह हिलाने डुलाने की उसकी कोशिश नाकाम रही। उसने हाथ में पकड़े करिश्मायी ज़ीरो से भी मेज़ को टच किया लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर उसने फर्श को भी जगह जगह अपने ज़ीरो से टच करके देखा लेकिन कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने टीवी स्क्रीनों के आसपास कोई स्विच ढूंढने की कोशिश की लेकिन उसकी ये कोशिश भी कामयाब न हो सकी।
थक हार कर वह वहीं फर्श पर बैठ गया। और स्क्रीन पर पल पल बदलते दृश्यों को देखने लगा। कुछ देर उन दृश्यों को देखने के बाद उसपर एक नया रहस्योदघाटन हुआ। टीवी स्क्रीन थोड़ी देर विभिन्न दृश्य दिखाने के बाद एक सेकंड के लिये बन्द हो जाती थी।
वहाँ पर कुल पाँच टीवी स्क्रीनें उस गोलाकार दीवार पर एक के बाद एक मौजूद थीं और सभी में यह बात दिखाई दे रही थी। हालांकि उनके बन्द होने का वक्त अलग अलग था।
'लगता है इनके बन्द होने के वक्त में ही कोई गणितीय पहेली मौजूद है।' ऐसा सोचकर उसने एक स्क्रीन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जब उसने मन ही मन हिसाब लगाया तो उसे अंदाज़ा हुआ कि हर पाँच सेकंड के बाद ये स्क्रीन बन्द हो जाती थी। फिर उसने दूसरी स्क्रीन को देखा तो मालूम हुआ कि छ: सेंकड बाद वह स्क्रीन बन्द होती थी। तीसरी स्क्रीन दस सेंकड बाद बन्द हो रही थी जबकि चौथी बारह सेकंड बाद। सबसे ज्यादा देर पाँचवीं स्क्रीन में लग रही थी। वह पद्रह सेंकड बाद बन्द हो रही थी।
'क्या इन गिनतियों में कोई सम्बन्ध है?' थोड़ी देर विचार करने के बाद उसे इसका जवाब न में मिला। इन गिनतियों में न तो कोई खास क्रम था और न ही कोई सम्बन्ध। फिर उसने एक बात और सोची।
'वह कौन सी सबसे छोटी संख्या है जिसे ये सभी संख्याएं विभाजित कर देती हैं?' इसे निकालना आसान था क्योंकि अग्रवाल सर ने क्लास में एल.सी.एम. निकालना काफी अच्छी तरह समझाया था। थोड़ी देर की गणना के बाद उसे मालूम हो गया कि यह संख्या साठ है।
मतलब ये कि साठ सेंकड अर्थात हर एक मिनट के बाद सभी टीवी स्क्रीनें एक साथ बन्द हो जाती थीं। उसने एक बार फिर टीवी स्क्रीनों पर दृष्टि केन्द्रित कर दी। उसे ये देखना था कि जब सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द होती हैं तो उसके बाद उनपर कौन से दृश्य सबसे पहले आते हैं।
उसे ज़्यादा इंतिज़ार नहीं करना पड़ा। जल्दी ही सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द हुईं और एक सेंकंड बाद फिर चालू हो गयीं। और उनके चालू होने के बाद जो पहला दृश्य आया वह रामू के लिये आशाजनक साबित हुआ।
क्योंकि वह दृश्य उसी कमरे के एक भाग का था। सभी स्क्रीनें एक ही दृश्य दिखा रही थीं और वह दृश्य कमरे में मौजूद मेज़ के एक पाये का था। यह पाया मेज़ पर रखे सर के पीछे की ओर दायीं तरफ था। सभी स्क्रीनें उस पाये के निचले हिस्से को दिखा रही थीं।
लगभग एक सेकंड तक वह पाया दिखाई दिया फिर सभी स्क्रीनों के दृश्य बदल गये। रामू के लिये इतना इशारा काफी था। वह उस पाये के पास आया और उसका व उसके आसपास का गौर से निरीक्षण करने लगा। जल्दी ही उसे पाये से टच करता हुआ वह पत्थर नज़र आ गया जिसका रंग दूसरे पत्थरों से हल्का सा अलग था। जहाँ दूसरे पत्थर गुलाबी रंग के थे वहीं इस पत्थर के गुलाबीपन में बैंगनी रंग की भी झलक मिल रही थी। हालांकि यह झलक इतनी नहीं थी कि कोई आसानी से उसे नोटिस कर सकता।
उसने पाये को उस पत्थर से हटाने की कोशिश की, लेकिन पाया पूरी तरह जाम था। उसने पत्थर को भी ठोंक बजाकर देखा लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर उसे अपने हाथ में पकड़े ज़ीरो नुमा यन्त्र का ख्याल आया जिसने इससे पहले भी उसकी कई बार मदद की थी। उसने उस यन्त्र को पत्थर से लगा दिया।
परिणाम इस बार पाजि़टिव था। जैसे ही पत्थर यन्त्र के सम्पर्क में आया, शूँ की आवाज़ के साथ वह हवा में विलीन हो गया। और उसके गायब होते ही उससे मिले सारे पत्थर एक एक करके गायब होने लगे। मज़े की बात ये थी कि एक तरफ तो फर्श के पत्थर गायब हो रहे थे और दूसरी तरफ वह मेज़ जिसपर कटा सर रखा था वह हवा में धीरे धीरे ऊपर उठती छत की ओर जा रही थी।
फिर वह पत्थर भी गायब हो गया जिसके ऊपर रामू खड़ा था। अब क़ायदे से उसे नीचे बने हुए गडढे में गिर जाना चाहिए था लेकिन वह वहीं हवा में टिका रहा। उसे लग रहा था कि इस जगह की ग्रैविटी पूरी तरह खत्म हो गयी है। वह अब किसी नयी मुसीबत के लिये अपने को तैयार कर रहा था जो कि शायद ज़्यादा ही मुश्किल थी, जैसा कि उस सर ने बताया था।
सर जिस मेज़ पर रखा था वह मेज़ छत को फाड़कर बाहर निकल चुकी थी, और उसके बाद छत फिर से बराबर हो गयी थी। अचानक उसे अपने पैरों पर नमी सी महसूस हुई। उसने झुककर देखा तो उसे अपने पैरों के पास छोटे छोटे गुलाबी रंग के बादल नज़र आये जो धीरे धीरे घने हो रहे थे। साथ ही यह बादल उसके पैरों से ऊपर भी उठकर पूरे कमरे में फैल रहे थे।
कमरे का मौसम अचानक बदल गया था। ठंडी ठंडी हवाएं चलने लगी थीं। और उसे कुछ ऐसी ही महक महसूस हो रही थी जैसे बारिश के मौसम में पहली बारिश के ठीक बाद होती है। उसे लग रहा था जैसे वह किसी बाग़ में बैठा हुआ है और मौसम की पहली बारिश शुरू हो गयी है।
बादल इतने घने हो गये थे कि उसे कमरे की दीवारें और उनपर लगे टीवी स्क्रीन मुश्किल से ही नज़र आ रहे थे। फिर वह दीवारें दिखाई देना बिल्कुल ही बन्द हो गयीं। अब तो उसका पूरा शरीर भी बादलों में छुप गया था। लगभग दस मिनट तक वह बादल उसे घेरे रहे, फिर एकाएक वह सभी बादल गायब हो गये। लेकिन अब वह कमरा भी नज़र नहीं आ रहा था जिसमें वह मौजूद था।
बल्कि यह तो बहुत ही खूबसूरत एक बाग़ था जिसमें तरह तरह के फल लगे हुए थे। थोड़ी दूर पर एक तालाब भी था। और वह खुद उस बाग़ में पड़े एक झूले पर विराजमान था। अचानक उसे लगा कि उस बाग़ में उसके अलावा कोई और भी है। क्योंकि उसे अपने पीछे हल्की सी आहट महसूस हुई थी। उसने घूमकर देखा तो एक और झूला नज़र आया। और उस झूले पर कोई लड़की बैठी हुई हौले हौले झूल रही थी। उस लड़की की पीठ रामू की तरफ थी।
रामू ने सुकून की एक साँस ली। क्योंकि पहली बार एम-स्पेस में कोई सही सलामत इंसान नज़र आया था। वह जल्दी से अपने झूले से नीचे कूद गया और उस लड़की की तरफ बढ़ा। उसी वक्त लड़की भी उसकी आहट महसूस करके उसकी ओर घूमी और उसका चेहरा देखते ही रामू की मुंह से हैरत से भरी हुई चीख निकल गयी।
वह लड़की नेहा थी। रामू बेसब्री से उसकी ओर बढ़ा।
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