Thriller कागज की किश्ती

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rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

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मोनिका घर से मछली खरीदने की नीयत से निकली थी लेकिन मछली खरीदने की जगह वह जाकर समुद्र के किनारे बैठ गयी।
अष्टेकर के आगमन ने उसे बहुत आन्दोलित कर दिया था।
उसने मिकी की तरफ देखा जो कि आते ही रेत में खेलने लग गया था।
वाकई एकदम अपने बाप का डुप्लीकेट लगता था।
उसके जेहन पर तीन साल पहले की उस रात का अक्स उभरा जब वह पहली बार मिकी के बाप से — विलियम से — क्रिसमस बाल में मिली थी। उस क्रिसमस बाल में धारावी का लगभग सारा क्रिश्‍चियन समुदाय उपस्थित था। बच्चे, बूढ़े, नौजवान, सब। खूब रौनक थी। विलियम अपने दोस्त एंथोनी फ्रांकोजा के साथ था। दोनों खूब पी रहे थे लेकिन विलियम को ज्यादा चढ़ गयी थी। फिर वह नशे में मोनिका के पीछे पड़ गया था, मोनिका पहले उससे रुखाई से पेश आयी थी, फिर उसने उसे डांटा था, थोड़ा-बहुत इंसल्ट भी किया था लेकिन विलियम हतोत्साहित नहीं हुआ था। वहां दर्जनों और विलियम जैसे लड़कों को फौरन हामी भरने वाली लड़कियां मौजूद थीं लेकिन विलियम ने उसका पीछा नहीं छोड़ा था। खुद उसके पीछे विलियम के दोस्त एंथोनी समेत कई लड़के पड़ रहे थे लेकिन उसने किसी को लिफ्ट नहीं दी थी।
फिर आधी रात के करीब एकाएक विलियम उसके सामने आ खड़ा हुआ और नशे में झूमता बोला — “चलो यहां से।”
“कहां?” — मोनिका हड़बड़ाई।
“कहीं भी। यहां से चलो।”
“तुम्हारे साथ?”
“हां।”
“मैं नहीं जाती।”
“तुम नहीं जाओगी तो मैं चला जाऊंगा।”
“अरे जाओ, न जाओ। मेरी बला से।”
“ठीक है। जाता हूं।”
उसने हाथ में थमा विस्की का गिलास जोर से फर्श पर पटका और फर्श को लगभग रौंदता हुआ वहां से विदा हो गया।
वह अविचलित भाव से उसे जाता देखती रही।
थोड़ी देर बाद एंथोनी फ्रांकोजा उसके करीब पहुंचा।
“क्या कह दिया था तुमने मेरे यार को?” — उसने पूछा।
“मैंने तो कुछ भी नहीं कहा था।” — वह बोली।
“चर्च की छत पर जो विशाल क्रॉस लगा हुआ है न, वह उस पर चढ़ कर बैठ गया है। कहता है तभी उतरेगा जब तुम उतरने को कहोगी।”
“क्या!”
“हां। यकीन नहीं तो बाहर चल कर देख लो।”
वह एंथोनी के साथ बाहर आयी।
विलियम इतनी खतरनाक हालत में क्रॉस पर चढ़ा बैठा था कि उसका कलेजा मुंह को आने लगा। क्रॉस टूट सकता था, नशे में होने की वजह से खुद उसकी पकड़ क्रॉस से छूट सकता था और वह सीधा साठ फुट नीचे सड़क पर आकर गिर सकता था।
“नाम क्या है तुम्हारे यार का?” — मोनिका ने पूछा।
“विलियम।” — एंथोनी ने बताया — “विलियम फ्रांसिस।”
“विलियम!” — वह चिल्लाकर बोली — “नीचे उतरो।”
“पहले वादा करो” — बड़ी खतरनाक हालत में क्रॉस के साथ झूलता विलियम बोला — “तुम मेरे साथ चलोगी।”
“अच्छा बाबा, चलूंगी।”
“वादा करो।”
“किया, बाबा।”
“से क्रॉस माई हार्ट एण्ड होप टु डाई।”
“क्रॉस माई हार्ट एण्ड होप टू डाई।”
“मेरा यार टोनी तुम्हारे वादे का गवाह है। ठीक?”
“ठीक।”
तब कहीं जाकर विलियम नीचे उतरा।
उस रोज सारी रात वह विलियम के साथ, उसकी दीवानगी के साथ, मुम्बई की सड़कों पर घूमती रही थी।
सुबह छः बजे वह उसे उसके घर छोड़ने आया था तो तब पहली बार विलियम ने उसका बदन छुआ था, तब उसने उसको अपनी बांहों में लेकर उसके होंठों पर एक चुम्बन जड़ दिया था।
“बस!” — वह बोली — “एक किस हासिल करने की खातिर इतना ड्रामा किया?”
“नहीं।” — वह गम्भीरता से बोला।
“तो?”
“किस वाली को हासिल करने की खातिर।”
“मतलब!”
“मैं आज ही तुमसे शादी कर रहा हूं।”
“क-क्या?”
“मैं ग्यारह बजे आऊंगा। तुम्हें चर्च ले जाने कि लिए। तैयार रहना। ब्राइड्स मेड बनने के लिए अपनी किसी सहेली को बुलाकर रखना। मेरा बैस्टमैन तो टोनी है ही!”
“लेकिन... लेकिन...”
वह चला गया।
मोनिका ने उसे नशे का प्रलाप समझा लेकिन ग्यारह बजे वह दुल्हे की सजधज में एंथोनी के साथ सचमुच आ धमका।
वह तैयार नहीं थी। तैयार होने का कोई मतलब ही नहीं था।
शादी फिर भी उसी रोज हुई। विलियम की जिद उस पर इस कद्र हावी हुई कि इंकार करना अपना भेजा खपाना था।
उसी रात को वह उसे हनीमून के लिए गोवा ले गया।
हनीमून से जब वह वापिस लौटी तो मिकी उसके पेट में था।
तब तक उसे यह मालूम हो चुका था कि उसका यूं आनन-फानन बना पति वास्तव में एक गैंगस्टर था।
लेकिन विलियम ने उससे वादा किया कि वह एक बड़ा हाथ मारेगा और फिर वह न सिर्फ अपना वो नामुराद धन्धा बल्कि वो शहर भी छोड़ देगा और अपनी खूबसूरत बीवी और होने वाले बच्चे के साथ कहीं और जाकर रहेगा।
अगले साल सितम्बर में मिकी पैदा हुआ।
मिकी के दूसरे जन्म दिन वाले दिन विलियम का कत्ल हो गया।
उस दौरान उसका जिगरी दोस्त एंथोनी जेल में था और ऑन ड्यूटी पुलिस अधिकारी पर आक्रमण करने की सजा काट रहा था। विलियम ने उसे हमेशा समझाया था कि अगर कभी उसे कुछ हो जाए तो संकट की घड़ी में वह सिर्फ टोनी के पास जाए। लेकिन संकट की घड़ी जब सचमुच आई तो टोनी जेल में था।
अपने पति के कहे मुताबिक वह जेल में ही टोनी से मिलने गयी।
जेल में से ही टोनी ने ऐसा इन्तजाम किया कि वह उसके जेल से छूटने तक अपने बच्चे के साथ पूरी सुख-सुविधा से उसके फ्लैट में रह सके।
और दो महीने बाद वह जेल से छूटा तो मोनिका ने वहां से चले जाना चाहा लेकिन उसने मोनिका को अपने दिवंगत दोस्त का वास्ता देकर रोके रखा।
आज की तारीख में उसके टोनी के साथ जो ताल्लुकात थे, उस घड़ी तो उसने उनकी कल्पना भी नहीं की थी।
उसके मुंह से एक आह सी निकली।
फिर उसका ध्यान अष्टेकर की तरफ गया।
कैसा आदमी था? मिकी को कितनी अनुरागभरी निगाहों से देखता था। विलियम के कातिल को गिरफ्तार करने के लिए कितनी मेहनत कर रहा था बेचारा। दिन-रात एक किए दे रहा था एक ही केस पर। इन बातों की वजह से मोनिका को अष्टेकर अच्छा लगता था लेकिन पुलिसिया होने की वजह से नफरत के काबिल लगता था। टोनी ने हमेशा उसे यही कहा था कि अष्टेकर का भरोसा करना और सांप का भरोसा करना एक ही बात थी। ऐरे-गैरे की तो बात ही क्या थी, अपनी मुलाजमत में, अपनी लाइन आफ ड्यूटी वह अपने सगे बाप को बख्शने वाला नहीं था।
उसका ध्यान एंथोनी की तरफ गया।
कैसा आदमी था वो!
वह उसके पति का दोस्त था लेकिन अपने दोस्त की बीवी का पति और उसके बच्चे का बाप बनना चाहता था। क्या उसने कभी सोचा था कि जैसे आनन-फानन वह एक बार विधवा हुई थी, वैसे वह दोबारा भी विधवा हो सकती थी? विलियम अपराध की दुनिया को छोड़ने का ख्वाहिशमन्द था लेकिन टोनी का तो अपराध की दुनिया से रिश्‍ता मांस और नाखून का था। क्या वह उसको अपराध की दुनिया छोड़ने के लिए प्रेरित कर सकती थी? शायद नहीं। शायद उसकी किस्मत में पति का सुख लिखा ही नहीं था। क्या होगा उसका! क्या होगा मिकी का! विलियम की निशानी का!
“ममा चलो।”
उसने चौंक कर सिर उठाया।
मिकी उसका कन्धा हिला रहा था और अपलक उसे देख रहा था।
ऐन यूं ही विलियम उसकी तरफ देखा करता था।
उसने फिर एक आह भरी और उठ खड़ी हुई।
rajan
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गुलफाम अली थाने में इन्स्पेक्टर अष्टेकर के हुजूर में पेश हुआ।
अष्टेकर ने एक सरसरी निगाह अपनी मेज के सामने खड़े गुलफाम अली के सिर से पांव तक डाली।
“इधर कोई कुसी-वुर्सी” — वह बोला — “गिराहक के बैठने के वास्ते नहीं रखता, बाप?”
“ये दुकान है?” — अष्टेकर आंखें निकालता बोला।
“अरे! अपुन तो साला थाने में आयेला है। बाप, बाटली ज्यादा मारने पर यही पंगा होता है कि मालूम नहीं पड़ता कि किधर पहुंच गयेला है।”
“बकवास बन्द।”
“बरोबर, बाप।”
“नागप्पा को क्यों मारा? उसके हाथ-पांव क्यों तोड़े?”
“कौन नागप्पा?”
“तू नागप्पा को नहीं जानता?”
“एक नागप्पा को अपुन जानता तो है पण अपुन को ये कोई नईं बताया कि उसका हाथ-पांव टूटेला है।”
“तू कौन से नागप्पा को जानता है?”
“रामचन्द्र नागप्पा को।”
“मैं भी उसी की बात कर रहा हूं।”
“क्या बात?”
“वो मिशन अस्पताल में पड़ा है।”
“च च च। बेचारा।”
“तूने क्यों मारा उसे?”
“कौन कहता है अपुन ने मारा। नागप्पा हमेरा नाम लियेला है?”
“अभी नहीं। अभी वो बेहोश है। लेकिन होश में आयेगा तो लेगा। लेगा अपने हमलावर का नाम।”
“कोई और बोलता है अपुन नागप्पा पर हाथ उठायेला है?”
“नहीं, लेकिन...”
“बाप, जब अपुन के खिलाफ कोई गवाह नेईं, जब मार खाने वाला अपुन का नाम नेई ले रहा तो तुम काहे वास्ते खाली पीली अपुन को हलकान कर रयेला है?”
“वो पास्कल के बार के करीब पड़ा पाया गया था। जैसी चोटें उसको लगी हैं, उनसे लगता है कि वह सीढ़ियों से नीचे धकेला गया था। मुझे मालूम हुआ है कि वो पास्कल के बार के ऊपरले माले पर पत्ते पीटने अक्सर जाता था, तू भी वहां तकरीबन हमेशा होता है...”
“अपुन की तरह और भी दर्जनों लोग उधर तकरीबन हमेशा होता है।”
“तो किसी का नाम ले। मैं उससे भी पूछताछ करता हूं।”
“बाप, तुम्हेरे को मालूम अपुन यूं खाली पीली किसी का नाम लेने वाला भीड़ू नेई।”
“कहीं तूने उस पर इसलिए तो हाथ नहीं उठाया था क्योंकि वो जानता था कि विलियम के कत्ल से तेरा कोई रिश्‍ता था?”
“ये विलियम बीच में किदर से आ गया, बाप?”
“नागप्पा बेहोशी में ‘विलियम विलियम’ और ‘जानता हूं जानता’ हूं भज रहा था।”
गुलफाम के नेत्र सिकुड़े।
“ऐसा?” — वो धीरे से बोला।
“अगर तू विलियम के कातिल के बारे में कुछ जानता है तो साफ-साफ बोल।”
“अपुन क्या जानता है?”
“स्साले! सवाल मैंने पूछा है।”
“अपुन कुछ नहीं जानता।”
“और नागप्पा की दुरगत तूने नहीं की?”
“नक्को।”
“न तुझे मालूम है उसे किसने मारा?”
गुलफाम ने इंकार में सिर हिलाया।
“मूंडी मत हिला। जुबान से बोल।”
“अपुन को कुछ नेई मालूम।”
“ठीक है। मैं नागप्पा के होश में आने तक इन्तजार करता हूं। लेकिन गुलफाम अली, इस बार मैंने तेरी दादागिरी न निकाली तो कहना। इस बार मैंने तुझे लम्बा न नपवाया तो कहना।”
“बाप, अपुन को दादा कौन बोला! अपुन तो भाड़े का टैक्सी चलाने वाला गरीब भीड़ू है जो...”
“दफा हो जा।”
जिस वक्त गुलफाम अली थाने से बाहर निकला, उस वक्त उसके जेहन में हथौड़े की तरह एक ही लफ्ज बज रहा था — नागप्पा!
खंडाला में एंथोनी के मां-बाप अंग्रेजों के जमाने की एक किराये की कोठी में रहते थे जहां कि शाम की पार्टी की तैयारियां जोरों से चल रही थीं।
उसके मां-बाप ने उसका पुरजोर स्वागत किया।
क्यों न करते! उसका आगमन हमेशा घर में और दौलत आने की गारन्टी होता था।
उन्हें टोनी पर गर्व था।
क्यों न होता! आखिर टोनी ही तो था जिसने उन्हें धारावी के झोंपड़-पट्टे से उठाकर खंडाला पहुंचाया था और यूं इज्जत और ठाट-बाट के साथ रहने के काबिल बनाया था।
जीसस ऐसा बेटा सबको दे — उसकी मां अक्सर कहा करती थी।
उनके प्रेजेन्ट उन्हें पेश किए।
मां के लिए डायमंड नैकलेस!
बाप के लिए हीरे की अंगूठी और हीरे का टाई पिन।
बाप को उसने एक लिफाफा भी थमाया जिसको खोले बिना बाप को मालूम था कि उसमें सौ-सौ के नोट थे।
मां-बाप ने कृतज्ञ भाव से अपने श्रवण पुत्र की तरफ देखा।
“ये सब मामूली है।” — टोनी बोला — “आपकी शादी की वर्षगांठ का असली गिफ्ट आपको चन्द दिनों में मिलेगा। क्रिसमस से पहले?”
“क्या?” — बाप आशापूर्ण स्वर में बोला।
“बंगला।”
“बंगला!”
“किराये का नहीं। आपका अपना।”
“यहीं? खण्डाला में?”
“हां। बंगला तैयार है। सिर्फ फर्निशिंग बाकी है जोकि चन्द दिनों में हो जायेगी।”
“बेटा!” — मां बोली — “तूने हमें बताया नहीं?”
“मैं आप लोगों को सरपराइज देना चाहता था।”
“ओह!” — मां पुलकित मन से बोली।
“ओह!” — पिता बाग-बाग होता बोला।
कुछ क्षण खामोशी रही।
“क्या बात है” — फिर उसकी मां चिन्तित भाव से बोली — “तू दुबला हो गया है।”
“नहीं, मां, तुझे वहम है” — वह बोला — “मैं तो बल्कि पहले से मोटा हो गया हूं।”
मन ही मन वह सोच रहा था कि जो आदमी अभी तीन हफ्ते पहले छः महीने की जेल की सजा काटकर आया हो, वो दुबला नहीं होगा तो क्या पहलवान होगा।
“बल्कि तू दुबली हो गई है, मां!” — प्रत्यक्षतः वह बोला।
“टोनी” — तभी उसके बाप ने घर में मौजूद एक मेहमान से उसका परिचय कराया — “ये कर्नल दानी साहब हैं।”
एंथोनी ने बड़े अदब से कर्नल से हाथ मिलाया।
“ये पूछ रहे थे कि तेरी लाइन आफ बिजनेस क्या है?”
“आपने क्या बताया?” — एंथोनी सशंक भाव से बोला।
“वही जो तूने बताया। तू किसी गौरमेंट के सीक्रेट डिपार्टमेंट में है जिसके बारे में किसी को बताने की मनाही है।”
“आपने ठीक बताया।”
“मैं तो मिलिट्री मैन हूं” — कर्नल बोला — “मुझे सीक्रेट रखना आता है।”
“कर्नल साहब,” — एंथोनी बोला — “वो क्या है कि...”
“अरे, कोई हिन्ट तो दो!” — कर्नल जिदभरे स्वर में बोला।
“मैं सरकार के उस खुफिया विभाग में हूं जो कि पब्लिक सेक्टर के बैंकों की सिक्योरिटी चैक करता है।”
“ओह! आई सी। आई सी।”
कर्नल की सूरत से तो नहीं लगा कि बात उसकी समझ में आयी थी बहरहाल एंथोनी को यह देखकर बड़ी राहत महसूस हुई है कि उसने उस बाबत आगे कोई सवाल न किया।
“आइये” — फिर एंथोनी विषय परिवर्तित करने की नीयत से बोला — “एक-एक ड्रिंक हो जाए।”
कर्नल दानी खुशी-खुशी उसके साथ हो लिया।
पेड़ों के झुरमुट के नीचे समुद्र के किनारे की रेत में लल्लू खुर्शीद के ऊपर लेटा हुआ था। दोनों के कपड़े अस्त-व्यस्त थे। लल्लू के विशाल शरीर के नीचे खुर्शीद गायब सी हो गई मालूम होती थी। लल्लू का पूरा भार उसके ऊपर था लेकिन वह उसे फूल जैसा हल्का लग रहा था।
वह उसकी जिस्मफरोश, गुनाहभरी जिन्दगी का एक नया तजुर्बा था।
लल्लू ने कसकर उसके कपोल पर एक चुम्बन अंकित किया।
“तेरे लिए, किचू, तेरे लिए।” — खुर्शीद उसके कान में फुसफुसाई — “पैसे के लिए नहीं। धन्धे के लिए नहीं। तेरे लिए। मेरा विश्‍वास करना।”
“मुझे पूरा विश्‍वास है।”
“तेरे लिये।”
“और मैं तेरे लिये। इस वक्त मैं राजा हूं। तू मेरी रानी है। यह जूहू बीच हमारी बादशाहत है।”
“भेजा फिरेला है साले किचू का।”
फिर उसने आंखें बन्द कर लीं और बड़े अनुराग से और कसकर लल्लू के साथ लिपट गयी।
हवलदार पाण्डुरंग को अष्टेकर खुद अपने साथ मिशन हस्पताल लेकर गया और रामचन्द्र नागप्पा वाले कमरे के सामने बैठा कर आया।
“इधर से हिलना, नहीं, पाण्डुरंग!” — अष्टेकर सख्त स्वर में बोला — “धार मारने भी नहीं जाना। धार मारनी है तो अभी मार कर आ।”
“नहीं, साहब” — पाण्डुरंग बोला — “जरूरत नहीं।”
“किसी भी अनजाने आदमी को भीतर नहीं जाने देने का है। हस्पताल के स्टाफ की भी शिनाख्त करके भीतर जाने देने का है। कोई कितना भी जोर मारे, अपने आपको नागप्पा का सगा बाप भी बताये तो उसे भीतर नहीं जाने देना का है।”
“बरोबर।”
“नागप्पा को होश आ जाये, वह बात करने के काबिल हो जाये तो फौरन मुझे फोन बजाना है। मैंने कहा फौरन,अगली सुबह नहीं। रात के चाहे कितने बजे हों, फोन बजाना है। समझ गया?”
“जी, साहब। बराबर समझ गया।”
“कोई कोताही हुई तो सस्पैंशन।”
“कोई कोताही नहीं होगी।”
“शोभा” — शान्ता तनिक उत्तेजित स्वर में बोली — “मैं कहती हूं टोनी का खुफिया अड्डा पास्कल के बार में ही है।”
“पागल हुई है!” — शोभा बोली — “वो तो कहीं दूर दराज जगह पर है। कार पर वहां पहुंचने में कम-से-कम बीस-पच्चीस मिनट लगते हैं।”
“टोनी खामखाह, हमें धोखा देने के लिए, मुम्बई की सड़कों पर इधर-उधर गाड़ी भगाता रहता है और फिर उसे वापिस पास्कल के बार वाली इमारत के पिछवाड़े में ले आता है।”
“तुझे कैसे मालूम? तू क्या नकाब में से झांक लेती है?”
“नहीं। इतनी हिम्मत तो मेरी कभी नहीं हुई। टोनी तो मुझे नकाब को हाथ भी लगाता देखता तो मेरी गरदन मरोड़ देता।”
“तो फिर?”
“मैंने मोड़ गिने हैं और हर मोड़ के वक्फे का हिसाब रखा है। ये दोनों काम आंखें बन्द होने पर भी हो सकते हैं। गाड़ी मोड़ काटे तो क्या पता नहीं लगता?”
“लगता है।”
“उसने दायां मोड़ काटा या बायां या यू टर्न दिया, क्या यह पता नहीं लगता?”
“लगता है।”
“कितनी देर बाद कोई मोड़ काटा, क्या गिनती गिन कर इसका हिसाब नहीं रखा जा सकता?”
“रखा जा सकता है।”
“तो फिर? अरी मूर्ख, इस हिसाब का जो नतीजा निकलता है वो यह है कि वह टोनी का बच्चा हमें पास्कल के बार से कार पर बिठाता है, थोड़ी देर मुम्बई की सड़कों पर इधर-उधर कार दौड़ाता है और वापिस हमें वही ले आता है जहां से कि वो चला होता है।”
“कमाल है!” — शोभा मन्त्रमुग्ध सी बोली। वह एक क्षण खामोश रही और फिर बोली — “लेकिन पास्कल के बार में वैसी कोई सजी-धजी जगह कहां है जिसमें टोनी हमें लेकर जाता है? उस इमारत की तो हर जगह हमारी देखी हुई है।”
“गलत। बेसमेंट नहीं देखी हुई।”
“बेसमेंट! उसमें बेसमेंट भी है?”
“जरूर होगी। होनी ही चाहिए। सफर के बाद जब टोनी गाड़ी खड़ी करता है और उसे कुछ क्षण बाद दोबारा चलाता है तो गाड़ी किसी ढ़लान पर लुढ़कती साफ मालूम होती है।”
“ऐसी कोई ढ़लान पास्कल के बार वाली इमारत में कहां है?”
“पिछवाड़े में एक लकड़ी का फाटकनुमा बन्द दरवाजा है जिसे कभी किसी ने खुला नहीं देखा। जरूर वह फाटक बेसमेंट के ढलुवां रास्ते के दहाने पर है। गाड़ी रोकने के बाद जो टोनी कार से निकलता है, वह जरूर उस फाटक को खोलने के लिए ही निकलता है।”
“ओह! शान्ता, उस फाटक की किसी झिरी में से झांक कर...”
“मैं ऐसी कोशिश कर भी चुकी हूं। फाटक में कोई झिरी नहीं है। फाटक खोले बिना उसके पार नहीं झांका जा सकता।”
“तो?”
“देख, अगर फाटक के पीछे एक ढलुवां रास्ता निकला और उसके पीछे कोई बेसमेंट निकली तो तू मानेगी कि मेरा अन्दाजा सही है?”
शोभा ने अनिश्‍चयपूर्ण ढंग से सहमति में सिर हिलाया।
“लेकिन” — फिर वह बोली — “फाटक पर कोई ताला-वाला भी तो होगा!”
“है। पर वह ताला खुल सकता है।”
“कैसे खुल सकता है? तू खोल सकती है?”
“पागल! मैं क्या तालतोड़ हूं!”
“तो?”
“वह ताला हमारे लिए कोई और खोलेगा।”
“और कौन?”
“वीरू तारदेव।”
धारावी थाने के ही परिसर में इन्स्पेक्टर अष्टेकर का क्वार्टर था जिसमें वह अकेला रहता था। उसने क्वार्टर का ताला खोला और भीतर दाखिल हुआ। क्वार्टर निहायत साफ-सुथरा था, उसकी सफाई करने के लिए एक नौकरानी रोज आती थी।
उसने वर्दी उतारी और उसकी जगह लुंगी बनियान पहन ली।
उसकी तवज्जो गुलफाम की तरफ गयी।
कोई बात थी जरूर जो वह घुटा हुआ मवाली जानता था। लेकिन बता नहीं रहा था। अष्टेकर उसे और उसके वर्तमान जोड़ीदार एंथोनी फ्रांकोजा को सख्त नापसन्द करता था लेकिन अगर उनमें से कोई विलियम के कातिल को पकड़वाने में उसकी मदद करता तो वह उसके सौ खून माफ कर सकता था।
और वह बसन्त हजारे का छोकरा करम चन्द पता नहीं कैसे उन घटिया मवालियों की सोहबत में आ फंसा था!
उसने अपने साफ-सुथरे क्वार्टर में एक सरसरी निगाह दौड़ायी।
साफ-सुथरा क्वार्टर!
लेकिन क्या यह साफ-सुथरापन उसे पसन्द था?
क्या यह बेहतर न होता कि यहां बच्चों की चिल्ल-पों मची होती, चार चीजें टूटकर बिखरी होतीं, चार टूटने वाली होतीं, सोफे को चिंगम चिपटी होती और कार्पेट पर दाल बिखरी होती। बच्चों की मां चिल्ला-चिल्लाकर उन्हें चुप करा रही होती और खिलौने, कापियां उठाकर अलमारी में रखने को कह रही होती!
लेकिन वहां तो मरघट जैसी खामोशी थी।
उसने शीशे में अपनी सूरत देखी।
कितना बद्सूरत था वो!
अपनी नौजवान में भी तो वह उतना ही बद्सूरत था। बल्कि उससे ज्यादा।
लेकिन फिर भी मार्था नाम की वो क्रिश्‍चियन छोकरी उससे मुहब्बत करती थी।
बीस साल का था तब वो।
उसके मां-बाप ने उसकी मार्था से शादी नहीं होने दी थी। इसलिए नहीं होने दी थी क्योंकि वह क्रिश्‍चियन थी, और उनका बेटा — निकम्मा, बदसूरत बेटा — वीर मराठा जवान था। उसे मार्था से जुहू बीच के अन्धेरे में हुई अपनी उस आखिरी मुलाकात की याद आयी जिसमें जिन्दगी में पहली और आखिरी बार अष्टेकर किसी स्त्री से सम्भोगरत हुआ था। सम्भोग के बाद मार्था ने उसे कहा था कि अगले महीने उसकी शादी हो रही थी इसलिए वह उनकी आखिरी मुलाकात थी।
अपनी आइन्दा जिन्दगी में अष्टेकर ने हजारों बार अपने आपको कोसा था कि क्यों उसने अपने मां-बाप का कहना माना था। क्यों वह मार्था को लेकर कहीं भाग नहीं गया था!
फिर वह पुलिस में भरती हो गया था और अपने मां-बाप को सजा देने की खातिर उसने आज तक शादी नहीं की थी। दोनों शादी के लिए उसकी मिन्नतें, समानतें करते मर गये थे लेकिन उसने शादी नहीं की थी। शादी तो क्या, बावजूद पुलिस की नौकरी के हजारों वेश्‍याओं के इलाके धारावी में तैनात होने के, उसने किसी औरत से कभी जिस्मानी सुख नहीं उठाया था। उसकी वह ख्वाहिश मार्था से उसकी अलहदगी के साथ मर चुकी थी।
rajan
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वह स्त्री मार्था — उसकी नौजवानी का पहला और आखिरी नाकाम प्यार — मकतूल विलियम की मां थी।
अपने वक्त के मशहूर तालातोड़ वीरू तारदेव ने चुटकियों में फाटक पर जड़ा मजबूत पैडलॉक खोल दिया।
इतने से ही शांता के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई।
फाटक के आगे ढ़लान और अन्धेरी बेसमेंट दिखाई दी तो उसने एक विजेता की सी निगाह से शोभा की तरफ देखा।
फिर वे तीनों चुपचाप भीतर दाखिल हुए।
पीछे फाटक बदस्तूर बन्द कर दिया गया। केवल उसके बाहर ताला नहीं जड़ा हुआ था लेकिन बाहर गली में घुप्प अन्धेरा होने की वजह से ऐन फाटक के सिर पर पहुंचे बिना वह बात खुलने वाली नहीं थी।
“अगर अभी टोनी आ गया तो?” — वीरू तारदेव भयभीत भाव से बोला।
“मैं भी यही सोच रही थी।” — शोभा बोली।
“नहीं आ सकता।” — शान्ता बड़े इत्मीनान से बोली।
“क्यों?”
“क्योंकि वह अपने मां-बाप से मिलने खण्डाला गया हुआ है।”
“तुझे कैसे मालूम?”
“महीने की इस तारीख को अपने मां-बाप को खर्चा-पानी देने के लिए वह हमेशा खण्डाला जाता है। सबको मालूम है।”
“मुझे तो नहीं मालूम!” — शोभा बोली।
“मेरे कू मालूम है।” — वीरू तारदेव राहत की सांस लेता बोला — “लेकिन भूल गया था।”
वीरू तारदेव के साथ शांता ने बात की थी। वह पूरी बात जाने बिना ताला तोड़ने को तैयार नहीं हुआ था। मजबूरन उसे वीरू तारदेव को टोनी के खुफिया अड्डे की सारी कथा सुनानी पड़ी थी। उसने टोनी के अड्डे का ताला खोलना था, यह सुनकर पहले तो उसके छक्के छूट गए थे लेकिन जब दो कड़क जवान लड़कियों ने उसके दोनों पहलुओं से लिपट कर उससे मनुहार की थी तो उसने हामी भर दी थी। फिर उसने यह भी कहा था कि नकदी के अलावा हाथ आने वाले कीमती माल को वह बिकवा सकता था जो कि और भी अच्छा था क्योंकि उन दोनों को तो चोरी के माल को ठिकाने लगाने का कोई तजुर्बा नहीं था।
“अगर उसका जोड़ीदार गुलफाम आ गया तो?” — एक क्षण की खामोशी के बाद वीरू फिर बोला।
“वो नहीं आने का।” — शांता बोली — “जब टोनी शहर में नहीं है तो वो काहे को इधर आयेगा?”
“फिर भी...”
“फिर भी यह कि अभी वो ऊपर बैठा पत्ते खेल रहा है और खूब हार रहा है। मैं खुद देखकर आयी हूं। जब वह हार रहा होता है तो वह पत्तों पर से कभी नहीं उठता।”
“अगर वह जीतने लगा तो?”
“तो भी अपनी मुकम्मल हार कवर करने में उसे बहुत वक्त लगेगा। डैडी, बातों में वक्त जाया मत करो। वो सामने बन्द दरवाजा है, उसे खोलो।”
“इस दरवाजे के पीछे” — शोभा संदिग्ध भाव से बोली — “टोनी का वह सजावटी अड्डा होगा!”
“जरूर होगा।” — शान्ता बोली।
“अगर न हुआ तो?”
“तो न सही।” — शान्ता तनिक झल्लाई — “समझेंगे कि मेहनत बेकार गई। होगा तो भी सामने आ जाएगा, नहीं होगा तो भी सामने आ जाएगा।”
शोभा खामोश हो गई।
शान्ता ने देखा बन्द दरवाजे के ताले पर वीरू तारदेव अपना हुनर आजमाना शुरू कर भी चुका था।
“तुम्हें टोनी से डर लगता है?” — एकाएक वीरू तारदेव बोला।
“मुझे तो बहुत डर लगता है।” — शोभा बोली।
“यानी कि शान्ता को नहीं लगता?”
“मुझे भी लगता है।” — शान्ता बोली।
“दोनों डरती हो, फिर भी इतनी हिम्मत कर रही हो?”
“हमने उससे बदला लेना है।”
“किस बात का?”
“हमें बिच कहने का। लैग पीस कहने का। पब्लिक में जलील करने का।”
“अगर उसे पता लग गया कि उसके साथ दगाबाजी तुम दोनों ने की है तो?”
“उसे सात जन्म पता नहीं लगेगा। वह हमें इतनी सूझबूझ और अक्ल के काबिल कहां समझता है! वह तो समझता है कि हमें” — वह एक क्षण ठिठककर बोली — “एक ही काम आता है।”
“फिर भी अगर...”
“अरे, काम करो अपना।” — शोभा बोली — “अभी तो यही पता नहीं इसके पीछे टोनी का अड्डा है भी या नहीं! मुझे तो घबराहट होने लगी है!”
“अच्छा, अच्छा।”
“टोनी को पता लग गया तो वह हमें जिंदा नहीं छोड़ेगा।”
“अरे कहा न, नहीं पता लगेगा।” — शान्ता झल्लाई।
शोभा चुप हो गई।
“डैडी!” — शान्ता बोली — “मेरे को लगता कि तेरे से ताला नहीं खुलने का। तू बूढ़ा हो गया है। सब हुनर भूल गया है।”
“ताला खुलकर रहेगा। मैं कुछ नहीं भूला हूं। तुम भी अपना वादा न भूलना।”
“कौन-सा?”
“लो। भूल भी गयीं! हिस्से के अलावा तुम दोनों ने मुझे यह साबित करने का मौका भी देना है कि मैं अभी बूढ़ा नहीं हुआ हूं।”
“ठीक है। ठीक है। याद है हमें अपना वादा। तेरे को एक राइड मारने का है न तो वह...”
“एक राइड नहीं, अक्खी रात।”
“अच्छा, अच्छा! तू ताला खोल।”
“ताला तो खुल भी गया।”
उसने दरवाजे को धक्का दिया।
भीतर घुप्प अन्धेरा था।
“यहीं कहीं एक बिजली का स्विच होगा” — शान्ता भीतर दाखिल होती बोली — “जिससे कई बत्तियां जलती हैं।”
तभी उसे वह स्विच मिल गया। उसने स्विच ऑन किया। सारे में जगमग-जगमग हो गयी।
शान्ता के मुंह से खुशी की किलकारी निकलने लगी थी। उसके चेहरे पर एक विजेता की-सी चमक आ गयी। वह एकदम सही जगह पर पहुंची थी। उसका तुक्का तीर साबित हुआ था।
“यह तो” — शोभा मन्त्रमुग्ध स्वर में बोली — “खुल जा सिमसिम हो गया!”
वीरू तारदेव दोनों से लिपटने लगा।
“यह क्या कर रहा है?” — शान्ता हड़बड़ाई।
“खुशी का इजहार।” — वीरू तारदेव थूक की फुहार उसके चेहरे पर छोड़ता बोला — “तुम भी तो खुश हो रही हो...”
“साला, हरामी!” — शान्ता उसे परे धकेलती हुई बोली — “हर घड़ी एक ही बात सोचता है।”
“एक नहीं, दो।” — उसने खींसें निपोरीं — “शोभा भी तो है!”
“बकवास बन्द कर, साले, नहीं तो यहीं लाश बिछा दूंगी।”
“यह शराफत है तुम्हेरी?” — वह तत्काल गम्भीर हुआ और आहत भाव से बोला — “वादे से मुकर रही हो!”
“अरे, मेरे बाप, कौन छिनाल वादे से मुकर रही है लेकिन जगह तो देख! मौका तो देख! यह तो सोच कि हम यहां किसलिए आए हैं!”
“ठीक है। लेकिन बाद में...”
“हां। बाद में। बाद में मजे में तू हमारे पहलू में ही मर न गया तो कहना।”
“मुझे ऐसी मौत पसन्द है।”
“अब चुप कर।”
तीनों आगे बढ़े।
वहां मौजूद माल की बहार देखकर वीरू तारदेव को पसीना आने लगा।
“हमें गाड़ी लेकर आना चाहिए था।” — उसके मुंह से निकला।
“गाड़ी आवाज करती।” — शान्ता बोली।
“इतना माल हम यूं कैसे ले जा पायेंगे?”
“हमने सब माल नहीं ले जाना, मूर्ख। टी.वी., वी.सी.आर. उठाने कहीं हमारे बस के हैं?”
“तो फिर?”
“रोकड़ा। बड़ी हद जेवर भी।”
“वो सब तो यहां कहीं दिखाई नहीं दे रहा।”
“वो सामनी स्टील की अलमारी खोल।”
वीरू तारदेव ने अलमारी खोली।
भीतर जेवरात थे लेकिन रोकड़े के नाम पर एक काला पैसा भी नहीं था।
रोकड़ा वहां कहीं से भी बरामद न हुआ।
शान्ता को भारी निराशा हुई। अब उन्हें वीरू तारदेव पर और उसकी ईमानदारी पर निर्भर करना पड़ना था क्योंकि माल बेचकर रोकड़ा वही खड़ा कर सकता था।
फिर तीनों ने जेवरात घड़ियां और हेरोइन वगैरह समेटनी आरम्भ कर दी। सारा माल वीरू तारदेव के लबादे जैसे कोट में समा गया। केवल एक-एक नैकलेस और एक-एक जोड़ी कानों के बुन्दें शान्ता और शोभा ने अपनी-अपनी जींस की जेबों में ठूंस लिए।
फिर वे निर्विघ्न बाहर निकल आये।
“कितने का माल उठाया होगा हमने?” — बाहर आकर शान्ता ने पूछा।
“होगा कोई दो-ढ़ाई लाख का।” — वीरू तारदेव लापरवाही से बोला।
हकीकतन वहां से उठाया गया नॉरकॉटिक्स का स्टाक ही उससे कई गुणा ज्यादा कीमत का था।
“बस!” — शोभा मायूसी से बोली।
“माल तो ज्यादा का है लेकिन चोर बाजार में तो इतने का ही बिकेगा!”
“ज्यादा का बेचने की कोशिश करना न!” — शान्ता बोली — “इतना रिस्क लिया और एक-एक लाख रुपया भी पल्ले न पड़ा तो क्या फायदा हुआ?”
“ठीक है। मैं कोशिश करूंगा।”
“मैं तो समझ रही थी कि पन्द्रह-बीस लाख रुपया तो वहां नकद ही पड़ा होगा। ज्यादा भी होता तो कोई बड़ी बात नहीं थी।”
“हमें हमारा हिस्सा कब मिलेगा?” — शोभा व्यग्र भाव से बोली।
“घबराओ नहीं, एकाध दिन में मिल जायेगा।”
“शान्ता, यह सब माल खुद ही लेकर चम्पत तो नहीं हो जायेगा?”
“हो के तो दिखाये। मैं साले को...”
“मैं कहीं नहीं जाने वाला।” — वीरू तारदेव हंसता बोला — “मेरा जनाजा तो पास्कल के बार में से ही उठना है। और फिर मेरा बड़ा इनाम तो यह है कि मैंने तुम दोनों के साथ अभी राइड मारनी है। तुम दोनों...”
“वीरू” — शान्ता एकाएक बर्फ से सर्द स्वर में बोली — “अगर तूने हमें धोखा देने की कोशिश की तो मैं टोनी को बता दूंगी कि उसका माल तूने लूटा है।”
वीरू तारदेव सकपकाया। हकीकतन तो वह उन्हें धोखा ही देने की ही सोच रहा था।
“फिर तुम्हारा क्या होगा?” — प्रत्यक्षतः वह बोला।
“हमारा जो होगा, हम भुगत लेंगी। तू यह सोच कि तब तेरा क्या होगा! और यह न समझना कि तू जाकर कहीं छुप जायेगा। टोनी तुझे पाताल में से भी खोद निकालेगा। हम लड़कियां हैं। हम टोनी जैसे मर्द को पिघलाने के सौ तरीके जानती हैं। हम माफी मांग लेंगी। कह देंगी कि तूने जबरन हमसे यह काम करवाया था लेकिन तू कुछ नहीं कर पायेगा। टोनी तुझे वो मौत मारेगा कि तू अगले जन्म तक उसका कहर नहीं भूल सकेगा।”
“अरे, क्यों खाली-पीली बोम मार रही है, शान्ता बाई। अपुन तो सपने में भी तेरे कू धोखा देने का खयाल नहीं करने का है।”
शान्ता खामोश रही।
rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

Post by rajan »

सारे अभियान ने उसका बहुत दिल तोड़ा था। वह एक बहुत ही नाकाफी रकम के लिए टोनी का कहर जगा बैठी थी।
गुलफाम पहले ही मालूम कर चुका था कि मिशन हस्पताल में एक ही इंटेन्सिव केयर यूनिट था और वह पांचवें माले पर था।
लिफ्ट के रास्ते वह चौथे माले पर पहुंचा। उसके हाथ में एक प्लास्टिक का बैग था जिसे सम्भाले वह वहां के टायलेट में दाखिल हो गया। टायलेट में उसमे अपनी पतलून और जैकेट उतारी और उसके स्थान पर हस्पताल के आर्डरली की वर्दी पहन ली। उतारे हुए कपड़े बैग में भरकर उसने बैग वहीं रख दिया।
बाहर आकर वह सीढ़ियों के रास्ते पांचवें माले पर पहुंचा।
सीढ़ियों के दहाने से दीवार की ओट लेकर उसने गलियारे में झांका।
इन्टेन्सिव केयर यूनिट वाले कमरे के दरवाजे पर उसे हलवदार पाण्डुरंग एक पत्रिका के पन्ने पलटता बैठा दिखाई दिया।
गुलफाम ने आंखों ही आंखों मे गलियारे का जायजा लिया।
रात के एक बजे वहां मुकम्मल सन्नाटा था और गलियारे में स्टूल पर बैठे पाण्डुरंग के अलावा उसे कोई दूसरा जीव वहां दिखाई नहीं दे रहा था।
सीढ़ियों की ओट छोड़कर उसने गलियारे में कदम रखा।
पाण्डुरंग ने पत्रिका पर से निगाह हटाई और संदिग्ध भाव से उसकी तरफ देखा लेकिन जब उसने आर्डरली को उसकी दिशा में निगाह भी उठाये बिना विपरीत दिशा में जाते देखा तो वह फिर पत्रिका के पन्ने पलटने लगा।
जिधर गुलफाम बढ़ रहा था, उधर कोने में एक हाल-सा था जिसमें आगन्तुकों के बैठने के लिए एक सोफा और कुछ कुर्सियां पड़ी थीं। उनके मध्य में एक टेबल थी जिस पर कुछ अखबार और पत्रिकायें पड़ी थीं।
गुलफाम उस टेबल के करीब पहुंचकर ठिठका। उसने एक सतर्क निगाह पीछे दौड़ाई। वहां से गलियारे की लम्बाई में नहीं झांका जा सकता था इसलिए पाण्डुरंग उसे न दिखाई दिया।
वह मेज की तरफ आकर्षित हुआ। उसने अखबार और पत्रिकाओं का वरका-वरका फाड़ना आरम्भ कर दिया। कुछ ही क्षण बाद मेज पर फटे हुए कागज़ के पुर्जों का ढेर-सा लग गया। फिर उसने अपनी जेब से एक सिगरेट और एक भरी हुई माचिस निकाली। सिगरेट को आधा तोड़कर एक हिस्सा उसने फेंक दिया और दूसरा अपने होंठों में लगा लिया। भरी हुई माचिस में से उसने एक तीली निकाली और सिगरेट सुलगा लिया। उसने सिगरेट के तीन-चार लम्बे-लम्बे कश लगाये, फिर माचिस को तीलियों के मसाले वाली दिशा से थोड़ा सा खोला और सिगरेट के टुकड़े को तीलियों के बीच में यूं फंसा दिया कि उसका सुलगा हुआ भाग तीलियों के मसाले से कोई आधा इंच ऊंचा रह गया।
यूं तैयार की माचिस और सिगरेट उसने मेज पर पड़े कागज़ों के ढेर के नीचे रख दिये।
अब सिगरेट सुलगता हुआ जब तीलियों के मसाले तक पहुंचता तो सारी तीलियां सुलग जातीं, जोर का शोला उठता जो कागज़ों के ढेर को पकड़ लेता और फिर वहां आग की लपटों का बड़ा खूबसूरत वक्ती नजारा पैदा हो जाता।
सिगरेट के सुलगते हिस्से की लौ के तीलियों के मसाले तक पहुंचने में अभी बहुत वक्त था।
वह निर्विकार भाव से चलता वापिस सीढ़ियों की तरफ बढ़ा। पाण्डुरंग की तरफ निगाह तक उठाये बिना वह सीढ़ियों के करीब पहुंचा और जान-बूझकर कदमों की तनिक ऊंची आवाज करता सीढ़ियां चढ़ने लगा।
पाण्डुरंग उसके कदमों की आवाज सुन रहा था। उसकी निगाह में वह बद्तमीज आर्डरली, जो इन्टेन्सिव केयर यूनिट के करीब भी दबे पांव नहीं चल सकता था, वहां से जा चुका था। वह फिर पत्रिका पढ़ने लगा।
गुलफाम दबे पांव सीढ़ियां वापिस उतरा और आखिरी सीढ़ी पर दीवार के साथ पीठ लगाकर खड़ा हो गया। उसके आगे एक खम्भा था जिसकी ओट उसे हासिल थी।
वह प्रतीक्षा करने लगा।
पाण्डुरंग भारी दिलचस्पी के साथ पत्रिका में वह लेख पढ़ रहा था जो जैकी श्राफ की प्रेमिकाओं की बाबत था और मन-ही-मन उसकी किस्मत से रश्‍क खा रहा था। तभी उसने नाक सिकोड़ी। धुएं की मुश्‍क थी। कहां से आ रही थी? उसने पत्रिका पर से सिर उठाया, दायें-बायें देखा तो वेटिंग हाल की तरफ से धुआं उठता पाया। उसके देखते-देखते वह धुआं आग की लपटों में तब्दील हो गया।
पाण्डुरंग फौरन पत्रिका फेंककर उधर भागा। हस्पताल को आग लग जाने से भी नागप्पा की जान को खतरा हो सकता था और इस वक्त उस पर अपनी जान से ज्यादा नागप्पा की जान की हिफाजत करने की जिम्मेदारी थी।
पाण्डुरंग के सीढ़ियों के आगे से गुजरते ही गुलफाम खम्बे की ओट से निकला, उसने गलियारे में कदम रखा और निर्विघ्न इन्टेन्सिव केयर यूनिट का दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हो गया।
भीतर आठ बैड थीं जिनमें से पांच खाली थीं और तीन भरी हुई में से एक पर नागप्पा पड़ा था।
तीनों मरीज अचेत थे।
गुलफाम ने अपनी जुर्राब में से अपना उस्तुरा खींच लिया। उस्तुरा खोलते हुए वह नागप्पा की बैड के करीब पहुंचा। बायें हाथ से उसने नागप्पा की ठोढ़ी को थोड़ा ऊंचा किया ताकि गला तन जाता और फिर एक ही सिद्धहस्त वार से एक कान से दूसरे कान तक उसका गला काट दिया।
वेटिंग हॉल में कागज़ों की आग भारी मेज की लकड़ी को पकड़ चुकी थी और पाण्डुरंग एक कुर्सी की गद्दी से आग को थपक-थपककर उसे बुझाने की कोशिश कर रहा था।
गुलफाम ने नागप्पा के ऊपर पड़ी सफेद चादर से ही उस्तुरे को लगा खून पोंछा और उसे वापिस अपनी जुर्राब में खोंस लिया।
दरवाजे पर पहुंचकर उसने गलियारे में झांका।
वेटिंग हाल की तरफ से धुआं उठ रहा था। पाण्डुरंग कहीं दिखाई नहीं दे रहा था।
वह कमरे से निकला और सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।
अपने पीछे से हर क्षण वह पाण्डुरंग की आवाज आने की अपेक्षा कर रहा था लेकिन ऐसी कोई आवाज न आयी।
वह निर्विघ्न चौथे माले के टायलेट में पहुंच गया। वहां उसने आर्डरली की वर्दी, टोपी उतारकर अपने कपड़े पहने, वर्दी बैग में भरी और बैग वहीं पड़े कूड़ेदान में फेंक दिया।
जिस वक्त उसने हस्पताल से बाहर कदम रखा, उस वक्त पांचवें माले पर फायर अलार्म बजना अभी शुरू हुआ था।
रात के पौने दो बजे खण्डाला से लौटे एंथोनी ने अपने फ्लैट में कदम रखा।
मोनिका जाग रही थी।
उसके इन्तजार में या किसी और वजह से!
वजह जल्द ही सामने आ गयी।
“तुम्हारी गैरहाजिरी में अष्टेकर यहां आया था।” — वह बोली।
“कौन? वो पुलिसिया?
“हां!”
“क्यों? क्यों आया था? क्या चाहता था?”
“मेरे से रामचन्द्र नागप्पा नाम के किसी साउथ इण्डियन के बारे में सवाल कर रहा था। तुम जानते हो किसी नागप्पा को?”
“हां, जानता हूं।” — एंथोनी लापरवाही से बोला — “इलाके का मामूली डोप पैडलर है। अष्टेकर क्या कहता था उसके बारे में?”
“कहता था कि वह बेहोशी में विलियम-विलियम बड़बड़ा रहा था। टोनी, क्या वह शख्स विलियम का कातिल हो सकता है?”
“नहीं।”
“क्यों नहीं? जब वो...”
“अरे, कहा न, नहीं!” — एकाएक एंथोनी चिड़कर बोला — “नहीं हो सकता वो विलियम का कातिल। और मैंने तेरे को बोला है कि नहीं बोला कि विलियम के कातिल को मैं ढ़ूंढ़ कर रहूंगा? मैं न सिर्फ उसे ढ़ूंढ़ूंगा बल्कि खुद अपने हाथों से उसे उसकी करतूत की सजा दूंगा। मौत की सजा। एक दर्दनाक मौत की सजा। और सुन, तेरे को उस पुलिसिये से दूर-दूर रहने का है।”
“क्यों?”
“क्यों? पूछती है क्यों? क्योंकि मैं तेरे को ऐसा बोला।”
मोनिका हैरानी से उसका मुंह देखने लगी। उसे विश्‍वास नहीं हो रहा था कि वही आदमी उस वक्त उसके साथ इतनी सख्त जुबान बोल रहा था जो पिछली रात उसका प्यार पाने के लिए एक मंगते की तरफ गिड़गिड़ा रहा था।
“सुना?”
“हां, सुना।” — मोनिका बोली फिर एकाएक वह पलंग से उठी और दौड़कर बगल के बैडरूम में घुस गई।
एंथोनी को भीतर से चिटकनी लगाये जाने की आवाज यूं सुनाई दी जैसे गोली चली हो। एक क्षण को उसका जी चाहा कि वह दरवाजा तोड़ दे और घसीट कर मोनिका को बाहर निकाले। वह उसका थोबड़ा ऐसा बिगाड़ दे कि फिर कभी उसका जी उससे प्यार करने को न चाहे।
बड़ी मुश्‍किल से उसने अपने आप पर जब्त किया।
फिर वह भुनभुनाता हुआ उलटे पांव फ्लैट से बाहर निकल गया।
रास्ते में वह एक ही बात बार-बार सोच रहा था :
क्यों यह औरत हमेशा उसे हार का अहसास दिलाने में कामयाब हो जाती थी?
टेलीफोन की निरन्तर बजती घण्टी की आवाज से अष्टेकर की नींद खुली। उसने घड़ी पर निगाह डाली। दो बजने को थे। उसने रिसीवर उठाकर कान से लगाया और बोला — “हल्लो! अष्टेकर।”
दूसरी तरफ से बार-बार कुछ कहा जाने लगा जो कतई उसके पल्ले न पड़ा। जो कुछ लफ्ज उसकी समझ में आये, वो थे उस्तुरा, आग, गला, नागप्पा।
“तू पाण्डुरंग बोल रहा है न?”
“हां।”
“अपने होश काबू में कर। एक बार में एक लफ्ज बोल ताकि मेरी समझ में आये तू क्या कह रहा है!”
फिर जो अष्टेकर की समझ में आया, उसने उसका मन मसोस दिया। रो-धोकर एक सूत्र हाथ में आया था विलियम के कत्ल के केस में, वो भी खल्लास हो गया।
भारी मन में वह पलंग से उठा और हस्पताल जाने की तैयारी करने लगा।
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