Romance बन्धन

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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

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कुछ देर बाद वार्ड के अंदर से धीमी.धीमी चीखें सुनाई दीं। गोविन्द का दिल बुरी तरह धड़कने लगा। सांस तेज हो गयी
और बदन में ठंडी.ठंडी लहरें दौड़ने लगीं। बेचैन होकर वह वार्ड के दरवाजे की ओर बढ़ा।
तभी वार्ड का दरवाजा खुला औ एक नर्स बाहर आई।

"मुबारक हो मिस्टर गोविन्द राम, भगवान ने तुम्हें बेटा दिया है।"

"जच्चा.बच्चा ठीक तो हैं न सिस्टर?" गोविन्द राम ने हर्ष विभोर स्वर में पूछा।

“चिन्ता न कीजिए, दोनों ठीक हैं, बच्चा बहुत ही सुन्दर और तन्दुरूस्त है।" नर्स ने मुस्कराकर कहा।

"सिस्टर ...मैं...मेरा मतलब है...?"

"मैं आपका मतलब समझ गई," नर्स मुस्कराई, “अभी आपको कुछ देर और ठहरना होगा।"

नर्स ने कहा और फिर अंदर चली गई।

गोविन्द ने सिगरेट का एक गहरा कश लिया ही था कि नर्स ने आकर कहा, "मि0 गोविन्द राम, अब आप अन्दर जा सकते हैं।"
गोविन्द ने जल्दी से सिगरेट फेंक दी और तेजी से वार्ड की ओर बढ़ गया।

सामने ही बिस्तर पर शीला लेटी हुई थी। उसकी बगल में नन्हा मुन्ना बच्चा लेटा हुआ
था।

गोविन्द को देखते ही शीला के होंठों पर एक विचित्र.सी शान्ति छा गई। उसने धीरे से कहा, मेरे देवता...!"

__ "शीला...." गोविन्द पलंग पर बैठते हुए पूछने लगा, “कैसी तबियत है तुम्हारी?"

फिर तुरन्त ही गोविन्द की निगाहें बच्चे के चेहरे पर जा टिकीं। गोल.मटोल, सुर्ख.सफेद रंग का नन्हा सा गुडा। उसकी दोनों आंखें मुंदी हुई थीं। माथे पर बल पड़े हुए थे। नन्हे.नन्हे होंठ भिंचे हुए थे। गोविन्द के हृदय में ममता का सागर हिलोरे लेने लगा। जी चाहा कि बच्चे को उठाकर सीने से चिपटा ले।

गोविन्द ने जल्दी से झुक कर बच्चे का माथा चूम लिया। बच्चे की आंखें और अधिक भिंच गईं, माथे के बल और अधिक गहरे हो गए।

गोविन्द ने शीला की ओर देखा। शीला के लिए उसके हृदय में अपार स्नेह उमड़ आया। जी चाहा कि शीला को बाहों में भर ले। कितनी सुन्दर लग रही थी शीला।

गोविन्द ने शीला की ओर देखा। शीला के लिए उसके हृदय में अपार स्नेह उमड़ आया। जी चाहा कि शीला को बाहों में भर ले। कितनी सुन्दर लग रही थी शीला।
गोविन्द ने शीला के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए और भर्राई हुई आवाज में कहा, “शीला, तुमने मुझे वह दौलत दी है, जिसके बदले में मैं जीवन भर तुम्हें कुछ न
दे पाऊंगा।"

शीला ने हल्की.सी मुस्काराहट के साथ कहा, “आप मुझे इस दौलत के बदले में बहुत कुछ दे सकते हैं।"

"शीला, अगर मैं अपनी जिन्दगी भी तुम्हें दे दूं तो कम होगी।"

"नहीं, आपकी जिन्दगी अब मेरी नहीं, इस मासूम की है। और अब...अब यह मासूम आपके पास मेरी अमानत है।"

"तुम्हारी ही नहीं, हम दोनों की शीला।"

"आज मैं बहुत खुश हूं मेरे देवता, आज पहले मुझे इतनी खुशी कभी नहीं मिली।

आज मैं आपकी अमानत आपको सौंप रही हूं... और मैं...!"
शीला की आवाज एकदम जैसे घुट गई थी।

गोविन्द ने घबराकर कहा, “यह तुम क्या कह रही हो शीला..?"

___ "अपनी आत्मा पर से एक बोझ हटा रही हूं..एक ऐसा बोझ, जिसे अपने मन में रखकर कोई भी नारी सुख की सांस नहीं ले सकती।"

"शीला..!"

"हां, नाथ, मैं आपकी हूं...मेरी आत्मा आपकी है...मेरा तन मन आपका है, लेकिन जिस रात तूफान आया था... गोदाम में आग लगी थी, आपके मित्र मदन ने मेरे शरीर ही नहीं आत्मा को भी दूषित और कलंकित कर दिया था, लेकिन आपकी अमानत की रक्षा के लिए मैंने निश्चय कर लिया था कि इस पापी शरीर को तब तक बनाए रखूगी, जब तक कि आपकी अमानत आपको न सौंप रही हूं
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Re: Romance बन्धन

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शीला की सांसे तेज हो गईं, दांत भिंच गए। गोविन्द को ऐसा लग रहा था जैसे ऊंचाई से किसी गहरी खाई में फेंक दिया गया हो।

“मैं आपके योग्य नहीं रही...नाथा...मैंने आज आपकी अमानत आपको सौंप दी है...अब मैं जा रही हूं...!"

.
शीला के दोनों हाथ उठे और फिर कांपकर गिर पड़े।
गोविन्द एकदम चीख पड़ा.
"शीला..."

और फिर शीला के ऊपर गिर कर बच्चों की तरह बिलख.बिलख कर रोने लगा। शीला की बंद मुट्ठी कुछ देर बाद खुली और जहर की एक छोटी.सी शीशी उसकी मुट्ठी से निकलकर फर्श पर जा गिरी।

चिता की लपटें धीरे.धीरे बढ़ती जा रही थीं। उनकी रोशनी दूर.दूर तक फैलती चली जा रही थी।

चिता से कुछ दूर बच्चे को गोद में लिए गोविन्द खड़ा था। उसकी फटी.फटी आंखें चिता पर टिकी हुई थीं। लगता था, जैसे वह अपने होशो.हवास सब कुछ खो बैठा हो।

मुनीमजी ने अपनी आंखों से बहते आंसू पोंछे और आगे बढ़कर धीरे से गोविन्द के कंधे पर हाथ रखा। और फिर भर्राई आवाज में बोले, "चलिए मालिक, अब यहां रूकने से क्या लाभ!"

गोविन्द ने कोई जवाब नहीं दिया। मुनीमजी ने उसके चेहरे पर निगाह डाली, तो वह कांप उठे। और धीरे से पीछे हटकर एक पत्थर पर जा बैठे। उनका मन रह.रहकर भर आता था। उन्होंने दोनों हाथों में मुंह छिपा लिया और धीर.धीरे सिसकियां भरने लगे।

लड़कियों के चटकने की आवाजे वायुमंडल में गूंजती रहीं। उन आवाजों में मुनीमजी की सिसकियां भी शामिल थीं। काफी देर बाद उन्होंने नजर उठाकर देखा लेकिन गोविन्द वहां न था।

वह हड़बड़ा कर खड़े हो गए। उन्होंने चारों ओर नजरें दौड़ाई। लेकिन गोविन्द का कहीं पता न था।
मुनीमजी जोर से चिल्लाए.
"मालिक...!"

लेकिन उनकी आवाज गूंजकर रह गई। कहीं से कोई उत्तर न मिला।

गोविन्द ट्रेन से उतरकर स्टेशन के गेट से बाहर निकल आया। बच्चा अभी तक उसकी छाती से चिपटा हुआ था। गोविन्द को देखकर लगता था, जैसे वह पागल हो गया

कुछ दूर चलते.चलते अचानक उसे ठोकर लगी और वह लड़खड़ा कर गिरने लगा। लेकिन ठोकर लगते ही उसके होशो.हवास लौट आए। उसने अपने. आपको
संभाल लिया।

ठोकर से झटका खाकर बच्चे की नींद टूट गई और वह रोने लगा। गोविन्द ने बच्चे को छाती से लगा लिया और उसे थपथपाकर चुप कराने की कोशिश करने लगा। लेकिन बच्चा चुप होने का नाम ही न ले रहा था। गोविन्द ने बच्चे का चेहर देखा। उसके नन्हे.नन्हे होंठ सूख रहे थे। रोने की आवाज की गले की खुश्की के काराण भिंची जा रही थी। बच्चे के चेहरे को देखते.देखते गोविन्द की आंखों के आगे शीला की सूरत नाच उठी। और फिर उसे एक आवाज सुनाई दी, "यह मेरी अमानत है स्वामी, इसे संभालकर रखना...अरे तुम देख नहीं रहे, मेरा लाल भूखा है।"

गोविन्द ने हड़बड़ाकर बच्चे को सीने से चिपटा लिया।

और फिर उसके कदम एक दुकान की ओर बढ़ गए।

ठंडी हवा के झोंकों ने गोविन्द की आंखों में मिर्चे.सी भर दीं। उसने जल्दी से अपना सिर झटका और बच्चे को देखने लगा। बच्चा निपिल से दूध पीते.पीते सो गया था। दूध की बोतल आधी खाली हो गई थी।

___ गोविन्द ने धीरे.से निपिल बच्चे के मुंह से निकाल ली। बच्चा एक पल कसमसाया और फिर सो गया। गोविन्द ने बच्चे को अच्छी तरह तौलिये से लपेट कर बैंच पर सुला दिया।

___ फिर गोविन्द ने इधर.उधर नजरें दौड़ाईं। उसे जोर की प्यास लगी थी। काफी दूर पानी का नल दिखाई दिया। गोविन्द धीरे से उठा और नल की ओर चल दिया।

नल पर पहुंचकर उसने भर पेट पानी पिया और पानी पीते.पीते ही उसे चक्कर आ गया। वह धम्म से नीचे बैठ गया। उसका दिमाग बुरी तरह चकरा रहा था।
अचानक उसके कानों में एक तेज कहकहे की आवाज टकराई। वह चौंक पड़ा
और आंखें फाड़.फाड़कर इधर.उधर देखने लगा।
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(^%$^-1rs((7)
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मर्करी लैम्प की दूधिया रोशनी में उसे दो साए दिखाई दिए। दोनों बैंच के पास एक.दूसरे की कमर में हाथ डाले लिपटे खड़े थे। गोविन्द सन्नाटे में डूबा उन्हें देखने लगा। उसे लगा जैसे वह स्त्री शीला हो और उसके साथ खड़ा पुरूष वह स्वयं हो।

अचानक उस स्त्री ने अंग्रेजी में कहा, "चलो डार्लिंग, रात बहुत हो गई।"

"ऊंह होने दो...रात अपनी ही तो है डार्लिंग।" पुरूष ने लापरवाही से कहा।

गोविन्द को पुरूष का स्वर परिचित.सा लगा। उसने घूरकर देखा और फिर एकदम उठ खड़ा हुआ। ‘

स्त्री ने अंग्रेजी में कहा, “अब देर काहे की है, डार्लिंग...अब तुम से अलग रहना बर्दाश्त से बाहर हो गया है।"

"चिन्ता न करो, मैंने वकील से सारी बातें कर ली हैं। जैसे ही कमला से सेप्रेशन मिली, तुमने शादी कर लूँगा।" पुरूष ने कहा।

दोनों ने हल्का.सा कहकहा लगाया और फिर दोनों एक दूसरे से लिपटे लड़खड़ाते हुए पार्क के गेट की ओर बढ़ने लगे।

यह आवाज मदन की थी...मदन...शीला का हत्यारा मदन...उसकी बर्बादी का जिम्मेदार मदन। और गोविन्द बच्चे को भूल, उसके पीछे.पीछे चल दिया।
शम्भू उस समय तक मदन और जूली को देखता रहा, जब तक कि वे दोनों फाटक से बाहर न निकल गए।

"हे भगवान,” शम्भू ने एक लम्बी सांस लेकर कहा, “तेरे घर देर है, लेकिन अंधेर नहीं है। एक न एक दिन मालिक की आंखें जरूर खुलेंगी...कमला बिटिया को एक न एक दिन उसका अधिकार मिलकर रहेगा।"

फिर वह धीर.धीरे फाटक की ओर बढ़ने लगा।

अचानक उसके कानों से किसी मासूम बच्चे के रोने की आवाज टकराई...दूध पीता बच्चा...! वह चौंककर इधर.उधर देखने लगा।

"हे भगवान, यह बच्चे के रोने की आवाज कहां से आ रही है?" वह अपने आप में बड़बड़ाया।

बच्चे के रोने की आवाज लगातार बढ़ती जा रही थी। शम्भू ने नजरें इधर.उधर दौड़ाई।

अचानक उसे एक बैंच पर एक तौलिये में लिपटा एक बच्चा दिखाई दिया, जो बिलख.बिलख कर रो रहा था। वह तेजी से उस बैंच की ओर बढ़ गया। उसने झपट कर बच्चे को उठाकर सीने से चिपटा लिया और फिर इधर.उधर देखने लगा।
+
+

रात काफी बीत चुकी थी...पार्क में सन्नाटा छाया हुआ था। शम्भू इधर.उधर देखकर बड़बड़ाया।


"हे भगवान् न जाने कौन निर्दयी इस नन्ही.सी जान को इस तरह यहां डाल गया है, फिर वह जोर से चिल्लाया, "यह किसका बच्चा है?"

शम्भू ने बच्चे के चेहरे पर एक नजर डाली और फिर बड़बड़ाया, "समझा, तू किसी के प्यार की भूल है...कैसे पत्थर दिल होते हैं लोग, जिन्हें ऐसे मासूम बच्चों पर भी दया नहीं आती।"

शम्भू ने बच्चे को सीने से चिपटा लिया और पार्क के दूसरे फाटक की ओर चल दिया।

गोविन्द का समूचा बदन प्रतिशोध की आग से जल रहा था। उसकी मुट्ठियां भिंची हुई थीं। आंखों से अंगारे बरस रहे थे।

मदन और जूली पार्क से निकलकर एक कार के पास पहुंच कर रूक गए। कार एक इलैक्ट्रिक पोल के नीचे खड़ी थी। बिजली की रोशनी जब मदन के चेहरे पर पड़ी तो गोविन्द ने उसे अच्छी तरह पहचान लिया। मदन की आंखें शराब से लाल हो रहीं थीं। वह लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ा और डाइविंग सीट की ओर का दरवाजा खोलने लगा।
अचानक गोविन्द ने आगे बढ़कर उसके कोट का कालर पकड़ लिया और उसे पीछे की ओर खींच लिया। मदन अरे.अरे करता हुआ पीछे की ओर मुड़ा। जूली घबड़ा कर दूर जा खड़ी हुई।

___ जैसे ही मदन की निगाह गोविन्द पर पड़ी, वह उसे पहचान गया। उसने मुस्कराते हुए कहा, “अरे गोविन्द...तुम...तुम यहां कहां?"

"तुम्हारी बदौलत ही मुझे यहां आना पड़ा मदन।" गोविन्द ने नथुने फुलाकर कहा।

"ओहो, तुम मुझसे मिलने आए हो...? कब आए?" मदन ने मुस्कराते हुए कहा, "अमां यार, कालर तो छोड़ो...तुम्हारी यह मजाक की आदत अभी तक नहीं गई।"

"यह मजाक की दावत भी तुमने ही दी है मदन। तुमने मेरी जिन्दगी के साथ जो मजाक किया है, उसे मैं कभी न भूल पाऊंगा औरन उसके लिए तुम्हें कभी क्षमा करूंगा।"

"कैसी बातें कर रहे हो यार, मैंने ऐसा कौन.सा मजाक किया है?"

"तुमने ऐसा मजाक किया है मदन! जिसने शीला की जान ले ली।"

"श...श...शीला की जान ले ली?"
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मदन के मस्तिष्क को एक जोरदार झटका लगा। और फिर उसके चेहरे का रंग उड़ गया। आंखों से बदहवासी झांकने लगी।

उसने सूखे होंठों पर जबान फेरकर बड़ी कठिनाई से कहा..." यार, कैसी बातें कर रहे हो तुम?"
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"जो कुछ कह रहा हूं, सच कह रहा हूं। तुमने मेरी सीता जैसी पवित्र और पतिव्रता पत्नी की आबरू लूटकर उसे मर जाने पर मजबूर कर दिया। इस बात को तुम दोनों के अतिरिक्त तीसरा कोई भी व्यक्ति नहीं जानता था। वह चाहती तो इस भेद को जीवन भर छिपाए रखती। लेकिन उसकी आत्मा इस बोझ को सहन न कर पाई और उसने अपनी जान दे दी...और अब मैं तुम्हारी जान लेकर उसकी आत्महत्या का बदला लूंगा।...तुम्हें किसी भी कीमत पर नहीं छोडूगा।"

मदन कांप उठा...उसने घबरा कर भयभीत स्वर में कहा, "नहीं नहीं, यह झूठ है...बिल्कुल झूठ है...।"

"तू समझता है कि मैं तेरी चिकनी.चुपड़ी बातों में आकर तुझे छोड़ दूंगा...मेरे सीने में प्रतिशोध की जो आग धधक रही है, वह तभी ठंडी होगी। जब तेरी आखिरी सांस तक तेरे शरीर का साथ छोड़ देगी।"

और फिर गोविन्द के हाथ मदन की गर्दन पर पहुँच गए।

मदन जोर से चीख उठा।
"बचाओ...बचाओ...!!"
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वह चीखता चला गया।...उसने बड़ी कठिनाई से अपनी गर्दन गोविन्द के हाथों से छुड़ाई और चीखता हुआ सड़क पर भागा।

"बचाओ...बचाओ...।"
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"कमीने, भागकर कहां जाएगा...आज मैं तेरी जान लिए बिना न छोडूंगा।" गोविन्द उसके पीछे दौड़ता हुआ चिल्लाया।

दोनों आगे पीछे भागने लगे। मदन को लग रहा था, जैसे उसके पीछे गोविन्द नहीं मौत भागी चली आ रही है। वह जी तोड़कर भाग रहा था और अपनी पूरी ताकत से चीखता भी जा रहा था।

अचानक एक मोड़ पर मुड़ती हुई एक गाड़ी की हैड लाईट मदन के चेहरे पर पड़ी

और मदन गाड़ी के बम्पर से जा टकराया। गाड़ी एकदम रूक गई।

मदन बुरी तरह चिल्लाया..
"बचाओ...बचाओ...!"

दूसरे ही पल गोविन्द ने उसे धर दबोचा...और दांत किटकिटा कर चीखा, "कमीने...मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा।"

वह पुलिस की गाड़ी थी। एक इंस्पेक्टर और कुछ कांस्टेबल उससे उतरकर नीचे आ गए।

इंस्पेक्टर ने चीखकर कहा..."क्या हो रहा है यह?"

"बचाओ...मुझे बचाओ।" मदन बिलबिलाकर चीखा।

इंस्पेक्टर और कांस्टेबल एक साथ उन दोनों पर झपटे। गोविन्द पागलों की तरह चीख रहा था.

"नहीं छोडूंगा...नहीं छोडूंगा...कमीने, तेरी जान ले लूंगा मैं।"
|.
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इंस्पेक्टर और कांस्टेबलों ने बड़ी कठिनाई से गोविन्द को खींचकर मदन से अलग किया। गोविन्द अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए चीखा..."मुझे छोड़ दीजिये...मैं इस कमीने को जिन्दा न छोडूंगा...इस पापी ने मेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी...मेरी पत्नी को आत्महत्या करने पर विवश किया...मैं इसे न छोडूंगा।"

"दारोगा जी, इसे पकड़ लीजिये।" मदन दारोगा की ओर झपटते हुए चिल्लाया, "वरना...यह मुझे मार डालेगा..."
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