Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post Reply
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

इस कब्र खोदने वाले पोखर का घर भी कब्रिस्तान ही में था। वो अपनी बीवी-बच्चों के साथ रहता था। उसने अपने कच्चे मकान पर दूर ही से नजर मारी। वह कच्चा घर देखते-ही-दोते धुंधला गया। जोन क्या सोचकर पोखर की आंखों में आंसू आये थे। उसने गाड़ी में बैठते हुए कन्धे पर पड़े हुए अंगोछे से तेजी से अपने आंसू पोंछे और फिर सिकुड़-सिमट कर गाड़ी में बैठ गया।
गाड़ी एक झटके से आगे बढ़ गई।

समीर राय ने कब्रिस्तान से निकलने के बाद हवेली की तरफ जाने की बजाय जंगल की तरफ जाने वाला रास्ता अपनाया था।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

पोखर का तो जैसे खून ही सूख रहा था।

उसके होंठ सख्ती से भिंचे थे और उसके दिल पर सन्नाटा छा गया था। गाड़ी जब जंगली में दाखिल हुई तो पोखर को यकीन हो गया कि अब उसका आखिरी वक्त आ पहुंचा है। उसने कांपती आवाज में पूछा
"मालिक, मुझसे कोई गलती हो गई?"

"नहीं, पोखर, आओ.... | जरा जंगल की सैर करें...।" यह कह समीर गाड़ी से उतर आया।

"जी, मालिका....! वो डरता-डरता गाड़ी से उतर आया।

"पोखर, पिछली सीट पर मेरा रिवाल्वर पड़ा है...वह निकालकर मुझे दे दे....."

"जी मालिका.....!"

जब पोखर न कांपते हाथों से गाड़ी का पिछला दरवाजा खोला तो पीछे से समीर की आवाज आई-"रहने दो, पोखर..."

"अच्छा, मालिक....।" उसने फौरन दरवाजा बन्द किया और समीर राय के पीछे हो लिया..जो जंगल के अन्दर जा रहा था।

कुछ दूर अन्दर जाकर समीर एक घने पेड़ के नीचे खड़ा हो गया। पोखर भी रुक गया। समीर ने उसका ऊपर से नीचे तक जायजा लिया और फिर उसके दोनों कन्धों पर हाथ रखकर धीरे से बोला
"पोखर.....देखो, तुम मुझसे झूठ न बोलना। जो पूलूंगा, उसका जवाब सच-सच देना। अगर तुमने झूठ बोला तो यह बात अच्छी तरह जान लो कि मैं यहां से अकेला जाऊंगा। मेरे अकेले जोन का मतलब तुम अच्छी तरह समझ गये होंगे। अगर तुमने सच-सच बता दिया तो मेरी-तुम्हारी इस मुलाकात का किसी को भी पता नहीं लगेगा। यहां तक कि मेर मालिक को भी नहीं। यह मेरा तुमसे वायदा है....."

"जी मालिक! पूछे..... | आप जो भी पूछेगे उसका जवाब सच-सच दूंगा।" पोखर ने कांपते हुए कहा।

"शाबाश..!" समीर ने मुस्कुराकर दिखाया, फिर पूछा-"पोखर, क्या ये दोनों कā तुमने खोदी थीं....?"

"नहीं मालिक..।" उसने जवाब दिया।

"ओह....!" समीर हैरान हुआ था-"लेकिन यह काम तो तुम्हारा है.....यह काम फिर किसने किया?"

"रौली ने..." पोखर ने धीरे से जवाब दिया।

"कब्रों में जनाजे किसने उतारे...?" समीर का अगला सवाल था।

__ "मुझे नहीं मालूम........।" पोखर ने इस सवाल का जवाब सुकून से दिया।

" क्या तुमने जनाजे भी नहीं देखे..?" समीर की हैरत बढ़ती जा रही थी।

"नहीं, मालिक.....।"

"तुम कब्रिस्तान में मौजूद नहीं थे? आखिर तुम कहां थे...?"

"मुझे रौली ने हुक्म दिया था कि मैं घर जाकर सो जाऊं और सूरज निकलने से पहले घर से न निकलूं। घर से बाहर झाकू तक नहीं.......।"

"पोखर.... जो कुछ तुम कह रहे हो...सच कह रहे हो?" समीर ने उसकी आंखों से झांकते हुए पूछा।

"हां, मालिक..!'' पोखर ने सहमकर नजरें झुका ली।
.
.
"आओ, फिर मेरे साथ...अब बाकी बातें हम गाड़ी में बैठकर करेंगे......."


"मालिक....मैंने अपनी जिन्दगी दांव पर लगाकर सच बोल दिया है। अगर बड़े मालिक को मालूम हो गया कि मैंने आपको कुछ बताया है तो वह मेरे साथ मेरे बीवी-बच्चों को भी न छोड़ेंगे..... ।"

"मैं जानता हूं पोखर, तू बेफिक्र हा जा । तेरी जिन्दगी का अब मैं जिम्मेवार हूं। मेरे जीत-जी तुझको कोई टेढ़ी नजर से भी ने देख सकेगा। आ, मेरे साथ...।"

समीर तेजी से चलता गाड़ी में जा बेठा। गाड़ी स्टार्ट का उसने पोखर का गाड़ी में आने का इशारा किया।

"मालिक....आप इजाजत दें तो पीछे बैठ जाऊ......।" पोखर ने विनती की।

"ठीक है.... चल, पीछे बैठ जा....."

पोखर जल्दी से पिछला दरवाजा खोलकर गाड़ी में समा गया।

"मालिक, आपका रिवाल्वर..अगली सीट पर रख दूं..?" पोखर ने पूछा।

"नहीं, पोखर....उसे वहीं पड़ा रहने दे।" समीर ने लापरवाही से कहा और जंगल से निकलते ही गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।

"मां, एक बात पूछू, बताओगी....?" समीर ने मां का हाथ अपने हाथे में ले लिया व उसे आहिस्ता से दबाते हुए बोला।

___ "हां, पूछो बेटा। यह भी क्या कहने वाली बात नफीसा बेगम ने उसे मुहब्बत भरी नजरों से देखतें हुए कहा।


"मां.अपने मेरी नमीरा को आखिरी दीदार तो किया होगा। वह कैसी लग रही थी? और मां, मेरी बच्ची कैसी थी..... वह किस पर गई थी?" समीर ने हसरत भरे लहजे में पूछा था।

"समीर! मैं अपनी बहू और पौत्री के आखिरी दीदार नहीं कर सकी......।" नफीसा बेगम की आवाज में दुख था।

"क्यों मां...?" समीर हैरान हुआ।

"जनाओं को हवेली नहीं लाया गया और मुझे यह बात उस वक्त मालूम हुई....जब उन्हें दफना दिया गया....."

"मां.....दाबा ने ऐसा क्यों किया? आखिर क्यों मां...?"

"अल्लाह ही बेहतर जानता है।" नफीसा बेगम ने इस बहस के कतराने की कोशिश की थी।

"हां मां! उल्लाह यकीनन सब कुछ जानता है, लेकिन उसने अपने बन्दों को भी कुछ जानने के लिए अक्ल में नवाजा है और मेरी अक्ल इस वक्त यह कह रही है कि दाल में कुछ काला है।" समीर ने मां का हाथ छोड़ दिया और हाथ-पांव फैलाकर सोफे पर पसर गया।
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

नफीसा बेगम उसे खाली-खाली निगाहों से देखने लगी।

"मां, मुझसे बड़ी भूल हुई है.... | मैं उसे हवेली में छोड़कर शहर की रंगीनियों में गुम हो गया.....” समीर खोये-खोये से अन्दाज में बोला-"मां.... तुम्हें वह बुरी लगती थी ....।"

"समीर बेटे! ऐसी बाते मत करो......."

"मां..मेरी नमीरा यहां बहुत तन्हा.... बड़ी अकेली थी....वह आखिरी वक्त तक मुझे पुकारती रही और में बहरा हो गया..।

"मैंने उसका बहुत ख्याल रखा.. और तुम्हारे बाबा भी नमीरा पर जान देते थे...।"

"जान देते थे या जान लेने के चक्कर में रहते थे।...।" समीर ने मां की तरफ देखते हुए सर्द लहजे में कहा।

"कैसी बात करते हो, समीर?"

"मां...क्या मेरी नमीरा से कोई कसूर हो गया था....?" सीर ने तड़प कर पूछा था।

"नहीं....।"

"मां, एक तो वह बाहर से आई थी..दूसरे उसने बेटी को उन्म दिया...वह कसूरवार तो थी ही ना, मां।"

"वह कसूरवार थी यह नहीं....यह सवाल तो उस वक्त खड़ा होता बेटा जब वह जिन्दा सलामत हवेली में आ जाती। वह तो हस्पताल ही में चल बसी। न वह रही ना उसकी बच्चे रही। फिर झगड़ा क्या बाकी रह गया..." नफीसा बेगम ने तर्क दिया।

"नहीं, मां। जो बात बाबा जानते हैं, वह आप नहीं जानती और जो आप जानती हैं, वह मैं नहीं जानता और जो मैं जानता हूं वह कोई नहीं जानता। फिक्र मत करो, मां । वह वक्त दूर नहीं, जब सबको सब कुछ मालूम हो जाएगा और वह दिन इस हवेली में रहने वालों के लिए खुशगवार न होगा....।" समीर ने अपनी मां की तरफ देखते हुए कहा।

उसके लहजे में कोई ऐसी बात थी कि नफीसा बेगम का दिल कांप गया। वह घबराकर बोली-"देखो, बेटे! किसी गलतफहमी में कोई गलत कदम उठाने से पहले सौ बार सोचना हो सके तो मुझे मशविरा कर लेना...."

"अच्छा मां....।" समीर के होंठों पर फीकी-सी मुरूकुराहट आ गई।

फिर वह एक झटके के साथ उठा और कमरे से बाहर निकल गया।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
समीर राय जब डॉक्टर सहगल के कमारे में दाखिल हुआ तो वह समीर को देखकर उसके सम्मान में उठकर खड़ा हो गया। उसने समीर से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया और उसका हाल-चाल पूछा।

__ "मिस्टर समीर! कैसी है आपकी बच्ची...?" औपचारिक बातों के बाद डॉक्टर सहलगल ने मुस्कुराते हुए पूछा-"बड़ी प्यारी है आपकी बच्चे।"

यह सवाल सुनकर समीर को एक झटका-सा लगा। उसे तो यही बताया गया था कि नमीरा बच्ची को जन्म देते ही खुदा को प्यारा हो गई थी और उसके देहान्त के कुछ ही देर बाद बच्ची भी चल बसी थी और यह वही हस्पताल था जहां नमीरा को लाया गया था। समीर ने अपनी हैरत को बड़ी कामयाबी से छिपा लिया। वह डॉक्टर से कोई ऐसा सवाल नहीं करना चाहता था कि वह कोई उल्टा सवाल कर बैठे। वह चौंक गये।

उसने कुद सोच धीरे से व उदास लहजे में कहा-"वह बच्ची तो मर गई....."

"आहे नो. वैरी सैड...!" डॉक्टर चकित रह गया-"पर कैसे? डॉक्टर संध्या ने आपकी बीवी का केस हैंडिल किया था। मैं खुद यहां मौजूद था। रोशन राय साहब खुद हस्पताल आए थे। आपके बारे में मालूम हुआ कि आप मुम्बई में हैं। आपकी बच्ची को मैंने भी देखा था। मैं यह बात यकीन से कह सकता हूं कि आपकी बेटी पूरी तरह से स्वस्थ थी। ऐसी प्यारी और तन्दुरूस्त बच्ची कि आजकल देखने में ही नहीं आती और वह...वह तो खूबसूरत भी बहुत थी। चांद का टुकड़ा.ऐसी कि उसे देखने के बाद निगाहें हटाने को जी न चाहे। आह! यकीन नहीं आता। आखिर उसे हुआ क्या मिस्टर समीर...?" डॉक्टर सहगल जज्बाती हो रहा था।


"मेरे ख्याल में उसे नजर लग गई.?" डॉक्टर समचुच ही दुखी था-"आपकी बेगम का क्या हाल है?"

यह एक और परेशानकल व उलझा देने वाला सवाल था।

"उनकी तबियत भी ठीक नहीं है। कुद टेम्परेचर ओर कमजोरी वगैरह हो गई है। मैं उन्हें बाम्बे ले जा रहा हूं। मैं यहां कुछ काम से आया था, सोचा आपसे भी मिलता चलूं...."

___ "वैरी काइन्ड ऑफ यू मिस्टर समीर..." डॉक्टर आभारी लहजे में बोला-"अगर कहें तो किसी लेडी डॉक्टर को साथ भेज दूं..?"

___ "थैक्स, डॉक्टर! इसकी जरूरत नहीं है। आप बस बुखार वगैरह की कोई दवा लिख दें... मैं लेता हुआ निकल जाऊंगा।" समीर ने सहज भाव से कहा-"आज की रात गुजर जाएगी। कल सुबह तो मैं बाम्बे पहुंच ही जाऊंगा..."

"ठीक है, मिस्टर समीर! मैं कुद दवाएं लिख देता हूं। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं....." डॉक्टर सहगल ने कहा व फिर अपने पैड पर लिखकर, पर्चा उसके हाथ में थमा दिया और फिर उसे दरवाजे तक छोड़ने भी आया।

"ऑल दि बैस्ट....।" कहते हुए उसने समीर राय को विदा किया था।

"मां एक बात पूछू, बताएंगी..?" समीर ने मां के घुटने पकड़ लिए और नीचे कालीन पर बैठ गया।

___ "यह तुझे हो क्या गया है पगले? ऊपर बैड पर आ जा..."

__ "नहीं मां! मैं यहीं ठीक हूं| आप मेरी बात का जवाब दें...."

"हां, पूछ....."

"मां, जिस हॉस्पिटल में मेरी नीर और बच्ची का इंतकाल हुआ... वहां के बड़े डॉक्टर को उन दोनों की मौत के बारे में कोई खबर नहीं...।" समीर ने रहस्योद्घाटन किया।

"यह तुम क्या कह रहे हो.... ऐसा कैसे हो सकता है...?" नफीसा बेगम परेशान हो गई।

___ "ऐसा इस तरह हो सकता है मां कि नमीरा ओर मेरी बच्ची की मौत हस्पताल में नहीं हुई.....।"

"लेकिन तुम्हारे बाबा ने तो मुझे यही बताया..."
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

"मां, बाबा झूठे हैं.....।" समीर उनकी बात काटमे हुए उबल पड़ा और फिर उनके घुटने व सामने सोफे पर जा बैठा।

"बाप को झूठा कहते हो....कैसे बच्चे हो तुम....?"

"झूठे बाप का झूठा न कहूं तो क्या कहूं...?" समीर ने कटुता से कहा-"मां, तुम जानती हो कि मेरी बच्ची कितनी खूबसूरत थी। वह इतनी सेहतमंद और इतनी हसीन व प्यारी थी कि कोई-उसे एक बार देख लेता तो फिर उसे देखता ही रह जाता | उस पर से नजरें हटाना मुश्किल हो जाता था। मां, मैं अब ऐसी बच्ची कहां से पाऊंगा..... कहां से लाऊंगा? मेरे बाप ने मेरे साथ बहुत जुल्म किया हैं
यह कहकर वह कमरे में रुका नहीं।

नफीसा बेगम कहती ही रह गई-"बेटा, सुनो तो...."

समीर अजीब मानसिक द्वन्द्व और उद्विग्नता का शिकार था।

वह हवी के पिछवाड़े के बाग में चहलकदमी कर रहा था। वह टहल रहा था और सोच रहा था.... सोच रहा था और टहल रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या है? कैसे हुआ है?

उसकी बीवी और नवजात बच्ची का देहान्त हुआ...मगर उसे इत्तला तक नहीं दी गई। मां ने खबर करवानी चाही तो बाबा ने उन्हें रोक दिया....उसकी भलाई के लिए। भला इसमें उसकी क्या भलाई थी, यही समीर अब तक नहीं समझ पाया था। फिर जनाओं को हवेली नहीं लाया गया... मां ने अपनी पौत्री और बहू के अन्तिम दर्शन नहीं किये। इसमें भला किसी भलाई थी। एक स्थाई 'गोरकन ने कā नहीं खोदी....उसे अपने घर में कैद कर दिया गया। जनाजे कब्रों में किसने उतारे, यह बात 'गोरकन' पोखर को मालूम नहीं। आखिर पोखर को उन कब्रों से दूर क्यों रखा गया? इसमें किसी भलाई थी? मां के कथानानुसार उसकी बीवी और बच्ची का देहान्त हस्पताल में हुआ.... लेकिन जिस हस्पताल में उनका देहान्त हुआ..वहां के डॉक्टर इन्चार्ज का बयान ही कुछ और है। इतना तो तय है कि मां-बेटी हस्पताल में नहीं मरी । जाने मरी भी हैं या नहीं।

हां....अब तक की पूछताछ से जो बात सामने आई थी...वह यह थी कि नमीरा और उसकी बच्ची की लाश किसी ने नहीं देखी थी। तो फिर आखिर उन दोनों के साथ हुआ क्या?

समीर टहलता रहा ओर सोचता रहा। तब एकाएक उसके जहन में अपन बाप रोशन राय के 'फरिश्तों का ख्याल आया। समीर उन दोनों की "बाबा के फरिश्ते' ही कहता था। उन दोनों का नाम रौली और होली था।

वो दोनों जुड़वा भाई थे। उन दोनों की शक्लों में समानता थी....लेकिन बहुत ज्यादा नहीं थी। उन दोनों के हुलिये अलग-अलग रहे थे। अलग व भिन्न! एक की घनी-बड़ी मूंछे थीं, तो दूसरे की मूंछे सफाचट थीं। एक ने लम्बे बाल रखे थे.... दूसरे ने सिर मुंडा रखा था। कद दोनों के बराबर थे....बदन भी एक जैसे थे। नाटे और मोटे। देखने में दोनों 'रफ एण्ड टफ थे।

ये वो लोग थे जो रोशन राय के उठने से लेकर बैठ पर जाने तक साथ रहते थे। रोशन राय के साथ जहां कोई और नहीं जा सकता था, वहां ये दोनों या उनमें से कोई एक जरूर होता था। ये दोनों रोशन राय के खास आदमी थे। इतने खास कि जो बात रोशन राय भी अपने बारे में नहीं जानते.... वह ये जानते थे। शायद इसीलिए समीर इन्हें 'बाबा के फरिश्ते कहता था।


समीर ने अभी तक इन दोनों में से किसी को हाथ नहीं लगाया था। छुआ तक नहीं था। वैसे इन दोनों में से किसी को हाथ लगाना या छूना इतना आसाना नहीं था। इन पर हाथ डालते ही रोशन राय को खबर हो जानी थी। और यह 'खबर' खुद समीर के लिए नुकसानदेय भी साबित हो सकती थी।

समीर अपने बाप के मिजाज को जानता था। वह एक संगदिल इंसान था। निर्ममता उसमें कूट-कूट कर भरी थी। अपने किसी काम में किसी का हस्तक्षेप या किसी किस्म की रुकावट, वह किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करता था। अपनी झूठी आन-शान के लिए अपनी औलाद को भी औलाद मानने से इंकार कर सकता था। ऐसे में उन दोनों से पूछताछ करना खतरे से खाली नहीं था।

अब इस समस्या का सिर्फ एक ही हल उसके पास रह जाता था।
समीर इस 'हल पर अमल करने के लिए.. इसके विभिन्न पहलुओं पर गौर करने लगा।
वह टहलता रहा और सोचता रहा, फिर अन्ततः किसी नतीजे पर पहुंचे ही गया।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Post Reply