Adultery The Innocent Wife​ (hindi version)

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rajan
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Re: Adultery The Innocent Wife​ (hindi version)

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कड़ी_71 अदिति बात करती रही

यह सुनकर विशाल को झटका लगा और वो अदिति के चेहरे में कुछ देर देखता रहा और अदिति उसके एक्सप्रेशन्स को समझने की कोशिश कर रही थी। अदिति उम्मीद कर रही थी की विशाल कोई सवाल करेगा, मगर वो तो जैसे शाक में था और अपने सिर को झटका। बिना कुछ बोले अदिति के चेहरे में घूर कर देखता रहा काफी देर तक। दो
अदिति ने बोलाना बंद कर दिया। रुक गई वो विशाल की चुप्पी देखकर। विशाल उठकर छत की तरफ चलते हुए एक सिगरेट सुलगाया। अदिति वहीं सोफे पर बैठी विशाल को देखती रही और खुद से पूछा- “क्या मैंने सही किया विशाल को लीना के बारे में बताकर?” उसका दिल जोरों से धड़कने लगा और धीरे से चलकर वो भी छत
पर गई विशाल के पास।
विशाल के करीब जाकर अदिति ने एक हाथ को उसके कंधे पर रखते हुए कहा- “मेरे खयाल से मुझे तुमको वो
सब नहीं बताना चाहिए था ना? तुमको शाक लगा है ना? मुझे भी ऐसा ही झटका लगा था उस दिन जान। मगर क्योंकी तुमने कहा की तुम शुरू से सब जानना चाहते हो तो मैंने बताया। क्योंकी वहीं से सब शुरू हुआ बेबी.."
विशाल ने धुएं का एक कश लिया और मुश्कुराते हुए कहा- “नहीं जान मैं चकित नहीं हूँ, बल्की लीना के बारे में सोच रहा हूँ। मैंने बिल्कुल कभी भी नहीं सोचा था की ऐसी चीजों के लिए उसकी उमर भी हो गई है। मैं उसको हमेशा बच्ची समझता रहा। और मुझको साफ दिखने लगा है की क्यों राकेश भाई ने शादी नहीं करना चाहा कभी। मगर कब से वह दोनों यह सब करते थे? तुमको सब पता है ना? उसने तुमको सब बताया होगा? लीना, भाई के साथ तब से वो सब कर रही है जब वो बहुत छोटी थी, है ना? हम्म... मुझे सच बताना प्लीज?"
अदिति ने आराम से अपने सिर को विशाल के कंधे पर रखा और पूछा- “क्या तुम चाहते हो मैं तुमको सब कुछ बताऊँ? तुम डिस्टर्ब नहीं होगे जैसे अभी हुए?"
विशाल ने सिगरेट के बाकी हिस्से को अपने जूते के नीचे कुचलकर अदिति की कलाई को पकड़े लाउंज के तरफ बढ़ते हुए बोला- “हाँ जान मैं और ज्यादा और भी ज्यादा जानना चाहता हूँ, और अब तो उत्तेजित महसूस कर रहा हूँ। चलो वहाँ बैठते हैं और तुम बोलना जारी रखो सब बताओ मुझे..” और दोनों वापस सोफे पर आ गए।

अदिति को बोलना पड़ा- “मैं उनको देखते ही तुरंत दो कदम पीछे हट गई, वो सब देखकर मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई और मेरे हाथ पैर काँपने लगे थे। लीना ने मुझको नहीं देखा था मगर राकेश ने मुझको दरवाजा खोलकर बंद करते हुए अच्छी तरह से देखा था..."
विशाल- “क्यों लीना
को नहीं देखा? कैसे?"
अदिति- “लीना ने उस दरवाजे की तरफ पीठ किया हुआ था, और अपने घुटनों पर थी राकेश का लण्ड हाथ में थामकर मुँह में लिए हए। जबकी राकेश का चेहरा सीधे दरवाजे पर ही था। उसने मेरे चेहरे में देखा मगर ऐसा बिहेव किया की देखा ही नहीं, उसके होंठों पर एक अजीब सी मश्कान थी और एक पल के लिए उसने मेरी
आँखों की गहराई में देखा, इससे पहले की मैं दरवाजे को धीरे से वापस बंद करती। जितना हो सका उतना तेजी से भागते हुए मैं अपने कमरे में गई वहाँ से। मुझको डर सा लगने लगा था और हाथ पैर काँपे जा रहे थे, दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था, साँस लेना मुश्किल हो रहा था और मेरी समझ में नहीं आ रहा था के मैं क्या करूँ उस वक़्त? मैं सोचने लगी की अब कैसे राकेश को देख सकूँगी? कैसे उसका सामना करूँगी? और मैं प्रार्थना करने लगी की वो लीना को मत बताए की मैं वहाँ आई थी और उन दोनों को वहाँ देखा उस हालत में। मैं लीना से उस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती थी। मैं हम दोनों की दोस्ती नहीं बिगाड़ना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी की लीना को शर्मिंदगी महसूस हो इस बात की वजह से। मैं तो चाहती थी की उसको पता नहीं चले की मैं वहाँ आई थी। मेरा मन कर रहा था की उसी वक्त राकेश से बात करूँ और उसको बोलूं की लीना को कुछ नहीं बताए की मैं वहाँ आई थी। तो मैं झट से वापस वहाँ गई और उस दरवाजे पर कान लगाकर सुनने की कोशिश किया कि किया वो लीना को कुछ बता रहा है? मगर वहाँ मुझे सिर्फ दोनों की सिसकारियां और आहे सुनाई दे रही थीं उस वक़्त, तो मैंने डिसाइड किया की राकेश के मोबाइल पर उसको फोन करके बोलूं की वो चुप रहे लीना को कुछ नहीं बताये.”
विशाल बड़ी रुचि से सब सुन रहा था और अदिति साँस लेने के लिए रुकी तो विशाल ने पूछा- “तो तुमने राकेश
को फोन किया? पक्का किया होगा, है ना?"
अदिति ने अपने लटों को चेहरे से हटाते हुए कहा- “हाँ। मैंने उसको तुरंत काल किया। उसने काल उठाया और हाँफते हुए बात कर रहा था। मैंने उससे कहा की लीना को नहीं बताना की मैंने उन दोनों को देख लिया.”
राकेश ने हँसते हुए पूछा- “क्यों?"
मैंने उससे मिन्नतें की की मेरी प्रजेन्स को इग्नोर करे, उससे रिक्वेस्ट किए- "बस ऐसा समझो की मैंने दरवाजा बिल्कुल खोला ही नहीं..” और मैंने उससे कहा- “मैं किसी को इस बात के बारे में नहीं बताऊँगी, बस जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं...”
मगर राकेश फिर से हँसा।
फोन पर मैंने लीना को
ना, उसने राकेश से पूछा- “किससे बातें कर रहे हो?"

मगर राकेश मुझसे मजा ले रहा था बात करते हुए और अचानक उसने कहा- “क्या तुम भाग लेना चाहोगी?"
मुझे सदमा लगा और उसको “शटप” कहकर फोन काट दिया। मुझे बहुत शर्म आ रही थी और सोच रही थी की लीना से आमना सामना कैसे करूँगी, अगर उसको पता चल गया की मैं वहाँ आई थी तो? कैसे भी करके मैं अपने कमरे में गई और बहुत बेचैन थी। घंटों मैं कमरे से बाहर नहीं निकली।
सब कुछ शांत होने का इंतेजार करने लगी। फिर मैं सोचने लगी की- “लीना को कैसा महसूस होगा अगर उसको पता चलेगा की मैंने उसको राकेश के साथ देखा तो? उसको बहुत शर्म और अजीब लगेगा मुझसे सामना करने के लिए...” उसके लिए मुझे अफसोस होने लगा। मुझे इसकी भी फिकर होने लगी के वह लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे में? वह लोग यह भी सोच सकते हैं की मैं कैसी औरत हूँ जो दूसरों के कमरे में ताक झाँक करती हूँ? उल्टा सब मुझको दोषी ठहरा सकते थे।
मगर मैंने जानबूझ कर कुछ नहीं किया था। मैं तो लीना को ढूँढ़ रही थी और मुझे बिल्कुल पता नहीं था की उस वक़्त राकेश घर पर होगा, तो इसमें मेरा किया कसूर? फिर भी मैं बहुत परेशान थी की वह मेरे बारे में पता नहीं क्या सोचेंगे? अपने आपको मैं कोसने लगी थी की क्यों मैंने उस दरवाजे को खोला उस वक्त। अपने आपको कुसूरवार समझने लगी थी मैं उस वक़्त। मुझको दरवाजा नहीं खोलना चाहिए था, अपना सिर पटक पटक कर फोड़ने को दिल करता था मेरा। और यह सब सोचते हुए मेरी आँख लग गई।
विशाल ने सब सुनते हुए अदिति के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए उसको देखा और उसको महसूस हुआ की
अब भी अदिति अपने आपको दोषी मान रही है उस दरवाजे को खोलने के लिए तो उसने प्यार से कहा।
विशाल- “नहीं मेरी जान, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं था की तुमने उस दरवाजे को खोला उस दिन। तुमने वही किया जो करना चाहिए था, अच्छा आगे क्या हुआ उस दिन वो बताओ अब?"
अदिति- एक घंटे के बाद मेरे कमरे के रूम पर एक दस्तक से मेरी नींद टूटी। उस दस्तक को मैंने जैसे बहुत दूर से सुना, इतनी गहरी नींद में थी मैं उस वक़्त। लगता था एक सपना देख रही थी। गला सखा हआ था तो आवाज भी नहीं निकली जवाब देने को। तब तक दरवाजा खुला। मैंने सोचा अब लीना फ्री होगी तो मुझसे बक बक करने के लिए आई होगी। मगर मुझको एक झटका लगा यह देखकर की राकेश कमरे में घुसा आ रहा है। वैसे दोनों दीपक और राकेश को मेरे कमरे में आने की आदत थी, किसी भी वक़्त दिन में। मगर जो मैंने राकेश को करते हुए देखा उसके बाद तो मैंने सोचा की वो मेरा सामना भी नहीं करेगा, मुझसे नजरें चुराएगा, मगर यह तो बिल्कुल नहीं सोचा था की वो मेरे कमरे में आने की हिम्मत करेगा। मैं तुरंत बेड से उतारकर अपने पल्लू को सवांरने लगी, और उसके चेहरे में फिकरमंद होकर देखते हए मैंने उससे पूछा- “लीना कहाँ है इस वक़्त?” मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था और एक डर सा महसूस हो रहा था उस वक़्त मुझे।
राकेश होंठों पे एक मुश्कुराहट सजाए हुए बेड की तरफ बढ़ा और बेड पर बैठकर बोला- “क्यों तुम लीना के लिए इतनी फिकर कर रही हो अदिति?"
मैंने अपना थूक निगलने की कोशिश किया फिर भी गला सूखा हुआ ही पाया। फिर भी मैंने पूछा- “क्या लीना
को पता है की मैंने उसको देखा था?"

मगर राकेश ने शैतानी हरकतें करते हुए कहा- “और अगर मैं तुमसे कहूँ की हाँ मैंने लीना को सब बता दिया तो? तो किया अदिति?"
मैंने झट से जवाब दिया- “नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते, उसको बहुत शर्म आएगी मुझसे नजरें मिलाने में, बोलो ना क्या सच में उसको पता है की मैं वहाँ आई थी बताओ ना प्लीज?”
राकेश ने तब मेरी कलाई पकड़ा और मुझको अपनी तरफ खींचने लगा। मैं नहीं जा रही थी, प्रतिरोध कर रही थी मगर वो ज्यादा ताकतवर होने से मुझको खींच लिया और बेड पर बैठने को कहा अपने पास। मैं काँपने लगी थी
और मेरे होंठ थरथरा रहे थे।
राकेश ने कहा- “देखो इतना फिकर करने की कोई जरूरत ही नहीं। तुमने कोई गुनाह नहीं किया है। तुमको पता ही नहीं था की हम लोग वहाँ थे। है ना?"
उसकी बातों को सुनकर मुझे तसल्ली हुई और आराम मिला। फिर भी उसके चेहरे में देखते हुए मैंने पूछा “मतलब यह की तुमने लीना को कुछ नहीं बताया, बैंक यू वेरी मच। अब मेरी जान में जान आई..” मगर तब राकेश ने मेरे कंधे पर अपना बाजू रखा और उसकी उंगलियां मेरे कंधे के अंतिम हिस्से पर जैसे फेरने लगा। और मैंने अपने हाथ को उसके हाथ के ऊपर रखते हुए उसको वैसा करने से रोका।
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rajan
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कड़ी_72 राकेश लीना चालू रहे।
अदिति ने विशाल को बताना जारी रखा।
मुझे उसका उस तरह से छूना अजीब लगा तो मैं बेड से उठकर आलमारी तक गई जैसे किसी चीज को ढूँढ़ रही
थी।
मगर राकेश मेरे पीछे आया और मुश्कुराते हुए कहा- “मेरी प्यारी अदिति धीरे-धीरे तुम लीना के बारे में और बहुत कुछ जान जाओगी, फिलहाल मैंने उसको कुछ नहीं बताया है, तो फिकर मत करो तुम। एक दूसरे के चेहरे में बिना डर के देख सकती हो। मगर मैं खुद से पूछता हूँ की आखीरकार, कब तक तुम उससे हमारे रिश्ते के बारे में पूछने के बगैर रह पाओगी?"
उसके बातों का मुझे कुछ समझ में नहीं आया तो मैं मुड़कर उसको देखते हुए पूछा- “तुम क्या कहना चाहते
हो?"
तब तक वो मेरे करीब आ चुका था और ठीक मेरी पीठ के पीछे खड़ा था और उसकी हिम्मत देखो की उसने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए फुसफुसाते हुए बात किया, अपने मुँह को मेरे कान के बिल्कुल करीब लगाकर। मुझको उसकी साँसें महसूस हुई और उसके होंठ मेरे कान से टकराए, जिससे मेरे शरीर में एक कंपन सी उठी। पर उसने विषय बदलते हुए जैसे मुझसे फ्लर्ट करते हुए कहा- “बताओ मुझे तुमको क्या महसूस हुआ। जब तुमने लीना को मेरे साथ उस पोजीशन में देखा तो? तुम्हारे जिश्म में उस वक्त क्या गुजरा हमें देखकर? मैं वो जानना चाहता हूँ बाताओ ना.”

अब जबकी राकेश उन बातों को कहते हुए मुझसे बिल्कुल सटा हुआ था तो मैंने अपने कदमों को थोड़ा सा पीछे खिसकाया, तो वो भी अपने कदमों को वैसे ही खिसकाकर मेरे करीब आया। मैं उसके जिश्म को मेरे जिश्म को
छूते हुए महसूस कर सकती थी उस वक़्त। और मैं कहीं नहीं हिलडुल सकती थी। क्योंकी सामने आलमारी थी.."
विशाल सब कछ आराम से सुन रहा था मगर अदिति को रोकते हए पछा- “तब तक उसके हाथ तम्हारे कंधों पर ही थे? बहुत मजा आ रहा है मुझे अब, तुम्हारे पति का बड़ा भाई तुम्हारे बेडरूम में अकेले, एक सेक्स वाली बात करते हुए जो हाल में तुमने उसको करते हुए देखा वा। मजा आ गया, इट्स सो हाट डार्लिंग, और वो पहली बार थी। ओके आगे बताओ फिर क्या हुआ?”
अदिति ने विशाल के चेहरे की एक्सप्रेशन्स पढ़ने की कोशिश किया की क्या वो सच में उत्तेजित महसूस कर रहा है, या बहाना कर रहा है ज्यादा आगे जानने के लिए? फिर भी उसने बोलना जारी रखा।
अदिति- हाँ उसकी हथेली मेरे कंधे पर ही थी उस वक़्त और उसकी उंगलियां उन हिस्सों पर फिर रही थीं जहाँ कपड़े नहीं थे, ब्लाउज़ थोड़ा लो-कट था तो कंधे आधा नंगे थे। उन हिस्सों पर वो अपनीउंगली दबा रहा था और हल्के से फेर रहा था, मगर उसके होंठ बहत करीब थे मेरी चमड़ी से। मैं अपने कंधे पर उसकी गरम साँसों को
महसूस कर रही थी। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था और मुझे बहुत अजीब महसूस हो रहा था। तब मैंने विषय बदलते हुए उनसे कहा- “लीना कहाँ है इस वक़्त? वो मुझको ढूँढ़ते हुए यहाँ आ सकती है आप हटिये वरना वो सोचेगी के आप मेरे इतने करीब क्यों खड़े हो?"
मगर तब तो राकेश ने झट से अपने दोनों हाथों को मेरे पेट पर दबाकर मुझको पीछे से जोर से जकड़ा और उसका पूरा जिश्म मेरी पीठ से चिपक गया था वैसे करने से। मैं झुक गई नीचे की तरफ उसके बाहों से निकलने
के लिए और तब मेरा पिछवाड़ा उसके नीचे वाले हिस्से से जोर से दब गया एक पल के लिए।
विशाल ने बीच में कहा- “वाओव... सुपर्ब किया सिचुयेशन थी। और तुमने उसका लण्ड नहीं महसूस किया अपनी गाण्ड पर मेरी जान? उस वक्त तो उसका जबरदस्त खड़ा हुआ होगा तो तुमने अपनी गाण्ड पर बिल्कुल महसूस किया होगा। है ना? सच-सच बताओ मुझे...”
अदिति ने इस बार जारी रखते वक़्त बिना विशाल के चेहरे में देखे हुए कहा।
हाँ, मैंने महसूस किया, उसका बिल्कुल खड़ा हुआ था, एकदम तना हुआ था। मगर तभी मैं उसके चुंगल से निकल गई और दरवाजे तक जा चुकी थी। मेरे पशीने छूट चुके थे और मैं हाँफ रही थी, दिल की धड़कनें और
भी ज्यादा तेज हो गई थी।
राकेश मुझसे भी ज्यादा तेज रफ्तार से चलकर दरवाजे तक आया और मुझे बाहर निकलने से रोकते हुए और फिर से फुसफुसाते हुए कहा- “ओके जाना है तो जाओ बस इतना बता दो जाने से पहले की क्या तुमको उत्तेजना हुई थी लीना को मुझे ब्लोवजोब देते हुए देखकर? तुम गीली तो जरूर हुई होगी ना... है ना?”

मुझे बहुत शर्म आई और चेहरा लाल हो गया उनसे ऐसी बातें सुनते हुए। बहुत बहुत शर्म आ रही थी मुझे। मगर गुस्सा भी आया यह सोचकर की वो मुझसे ऐसे गंदी बातें कैसे कर सकते हैं? तो उसको मैंने तिरछी नजरों से गुस्से से देखा और तकरीबन चिल्लाते हुए कहा- “मुझे उत्तेजना हुई पूछ रहे हो? मुझे झटका लगा था, सदमा लगा था, शर्म आई थी। आप मुझसे ऐसीबातें करने की जुर्रत कैसे कर सकते हो भला? आप सच में बहुत कामीने हो...” यह कहकर मैंने दरवाजे को बहुत जोर से पीटा और बाहर निकल गई।
विशाल ने जोर से हँसते हुए अदिति को देखा और कहा- “हाहाहाहा... तुमने सच में भाई को वैसे कहा? हाहाहाहा... उसका चेहरा देखने लायक होगा उस वक्त ओह माई गोड... बेचारा राकेश भाई उसको क्या महसूस हुआ होगा एक छोटी 18 साल की लड़की के मुँह से ऐसे शब्द को अपने लिए सुनते हए, जबकी वो 40 साल के ऊपर का है? तुमको बाद में अफसोस नहीं हवा के तुमने राकेश भाई को वैसा कहा था अदिति? ओह गोड... हेहेहेहे... मैं अब
भी उसके एक्सप्रेशन को सोच रहा हूँ की कैसा रहा होगा उस वक़्त..."
अदिति भी विशाल को उस तरह हँसते हुए देखकर हँसने लगी। अदिति को विशाल का उस तरह से हँसते देखकर अच्छा लगा और वो उसके छाती में बंद मुट्ठी से मारने लगी।
विशाल ने कहा- “बहुत अच्छी तरह से सब बता रही हो मुझे, सही जा रही हो। ऐसे ही सब एक-एक करके बताती चलो, मुझे बेहद मजा आ रहा है। तो फिर किया हुआ जान?”
अदिति ने बताना जारी रखा।
क्योंकी तब मैं कमरे के बाहर आ गई थी तो जोर से लीना के नाम की आवाज दिया। ताकी राकेश मेरे पीछे नहीं आए। मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा की वो मेरे बेडरूम से निकला या नहीं, बस लीना को फुकारते हुए आगे चलती गई। जब दूसरी बार मैंने आवाज दी तो लीना ने किचेन से जवाब दिया तो मैं रसोई में गई उससे मिलने। और जब मैं रसोई के दरवाजे तक पहुँची तब मुड़कर देखा तो राकेश लाउंज के मेन डोर से निकल रहा था। तुमको मालूम है ना की किचेन के दरवाजे के पास से लाउंज का दरवाजा दिखता है।
राकेश निकल रहा था और उसके हाथों के इशारे से और होंठों के मूव्मेंट्स से मैं समझी की उसने कहा- “लीना को मत बताना की तुम मुझसे मिली हो। मैं जा रहा हूँ अब.."
मैं किचेन के अंदर चली गई। लीना बिल्कुल नार्मल बिहेव कर रही थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। बहुत खुश दिख रही थी। ऐसी बिहेव कर रही थी जैसे हमेशा रहती है, और मैंने खुद से पूछा की- “कैसे इस तरह से नार्मल हो सकती है वैसा काम करने के बाद अपने बड़े भाई के साथ?” मैंने उसको थोड़ी अजीब नजरों से देखा जो मुझे नहीं करना चाहिए था।
क्योंकी लीना ने नोटिस किया और मुझसे पूछा- “कोई प्राब्लम है क्या भाभी? क्यों इतनी पीली दिख रही हो आज? कुछ हुआ क्या?”
तब मैंने महसूस किया की मैं नार्मल नहीं बिहेव कर रही थी, इसीलिए उसने वैसा सवाल किया मुझसे। तो मैंने सिरदर्द का बहाना किया।

मगर तुरंत लीना बचकानी आवाज में यह कहते हुए मेरे माथे को दबाने को आई- “ओह्ह... मेली प्याली भाभी को सिरदर्द है। अभी एक पल में मिटा देती हूँ आप की सिरदर्द को। घर में सब कहते हैं की मेरी उंगलियों में जादू है, क्योंकी मैं मसाज करती हूँ तो पल भर में दर्द गायब हो जाता है...”
लीना ने वैसे कहा तो मैंने मौके का फायदा उठाते हुए उससे सवाल किया जब मैं चेयर पर बैठी उससे अपना सिर दबवा रही। मैंने कहा- “अच्छा? तो कौन लोग कहते हैं की तुम्हारी उंगलियों में जादू है?”

हा- “सब
लीना मेरे माथे के दोनों तरफ अपनी उंगलियों को गोल-गोल द यही कहते हैं, डैड, राकेश भाई और दीपक भाई...”
मैंने अपने आँखों को बंद करते हुए अपने सिर को उसके सीने पर रखा, क्योंकी बहुत आराम मिल रहा था, सच में जिस तरह से वो दबा रही थी, और मैंने उससे पूछा- “तो तुम उन सबको अक्सर मसाज करती हो?"
उसने एक बहुत सेक्सी आवाज में कहा- “अक्सर तो नहीं, मगर जब उन लोगों को शिकायत होती है की इधर दर्द है, यहां दुख रहा है, तब कभी-कभी मसाज कर देती हैं। तो वह लोग कहते हैं की मेरे उंगलियों में जादू है, जिस हिस्से को मसाज करने को वह कहते हैं वह कर देती हूँ और उनके दर्द गायब हो जाते हैं हीहीहीही.."
मैंने लीना से ज्यादा सवाल पूछने की कोशिश की, जैसे जिश्म के किन हिस्सों को मसाज करती हैं उन लोगों के? तो कुछ देर लीना जवाब देने में हिचकिचाई फिर कहा- “ऐसे ही, कभी उनकी बाहें या पैर, या सीना और कभी सिर जैसे आपका दबा रही हूँ। मगर डैड अक्सर, बहुत ज्यादा तेल से अपनी पीठ और कंधे मसाज करवाते हैं मुझसे। उनको बहुत आराम मिलता है वो कहता हैं.."
उस पल को पता नहीं क्यों मेरे खयाल में वो दृश्य नजर आया, जहाँ उसने राकेश के लण्ड को अपनी उंगलियों में थामी थी, उसको चूसते हुए और मुझको एक अजीब सी एहसास हुई तो अपनी आँखों को तुरंत खोला मैंने
और लीना की उंगलियों को देखा। फिर उसको रुकने को कहा उससे कहते हए की दर्द गायब हो गया।
लीना खुशी से चिल्लाई- “देखा भाभी... यह थी मेरी उंगलियों का कमाल। दर्द गायब आआआ...”
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rajan
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कड़ी 73 राकेश और अदिति
अदिति ने बोलना जारी रखा
उस रोज मेरा दिन बुरा गुजरा। उससे भी बुरी थी शाम उन सबके बारे में सोचने से। उस रोज तुम रात को 11:00 बजे वापस आने वाले थे, तुमने काल करके बताया था घर पर। उस शाम को जब राकेश काम से घर वापस आया तो मैं उससे नजरें चुरा रही थी, जितना हो सके उसके सामने नहीं जाती थी। मगर डिनर के वक्त सब लोग सामने थे तो मजबूरन उससे मुझे बात करनी पड़ी। क्योंकी मैं डिनर सर्व कर रही थी, और उसने जब तब मौके का फायदा उठाते हुए मुझको छुवा भी, जब पापा और दूसरे लोग नहीं देख रहे थे।

एक बार उसको कुछ सर्व करना था तो मुझे उसकी बगल में जाना पड़ा सर्व करने के लिए, तो सबके चेहरे में देखते हुए उसने मेरे पिछवाड़े पर हाथ फेरा, जब सब अपनी-अपनी प्लेटें पर ध्यान दे रहे थे। और जब मैं सिंक के पास प्लेटें धो रही थी तो दो बार वो मेरे पास आया और अपने नीचे वाले हिस्से को मेरे चूतड़ों पर पीछे से रगड़ा उसने, हाथ धोने का बहाना करते हए। हालांकी लीना वहीं थी उस वक़्त। दीपक और पापा उस वक्त लाउंज में टीवी देख रहे थे।
राकेश ने लीना से कहा- “तुम्हारा फेवुरिट सीरियल शुरू हो रही है नहीं देखने जाओगी लीना?” राकेश लीना को बाहर निकाल रहा था मेरे साथ अकेले रहने के लिए। मैं वो समझ गई और मुझे बाकी सारे प्लेटें और बर्तन धोने थे उस वक्त। तो मैंने लीना से सभी बर्तनों को सुखाकर रखने को कहा जाने से पहले।
मगर भोली लीना ने राकेश के इरादे को ना
हा- "भाई बर्तनों को उठा देना प्लीज... मैं चली अपनी सीरियल देखने अब..” और वो धड़धड़ाते हुये चली गई लाउंज में, मुझे राकेश के साथ अकेली छोड़कर किचेन में।
विशाल ने मुश्कुराते हुए अदिति को देखा और कहा- “तो उस दिन घर में तुमको एक और प्रेमी मिल गया। और बिल्कुल जिस तरह मैं तुम्हारे साथ रहता था किचेन में जिन दिनों घर पर होता था, उसने वैसे ही मुझको
रीप्लेस भी किया हाँ? तो उसने किया क्या जान, बताओ? देखो मेरा लण्ड कैसे जमकर खड़ा हो गया है यह सब सुनकर..."
अदिति- “तुमको यह सब मजाक लग रहा है? उस वक़्त मैं बहुत ही नाराज थी और उससे नफरत कर रही थी, उस वक़्त राकेश को कोई चीज उठाकर मारने को मेरा मन कर रहा था.."
विशाल- “अरे वो उसका पहली बार था ना.. इसीलिए तुमको वैसा महसूस हो रहा होगा। मगर मुझे इस बात की
उत्सुकता हो रही है जानने की कि तुमने उसको पहली बार कैसे अपने पास आने दिया? मगर मैं ऐसे ही चाहता हूँ की तुम धीरे-धीरे सब बिल्कुल डीटेल में बताओ। सही जा रही हो ऐसे ही सब एक-एक करके बताओ। मुझे बहुत ही मजा आ रहा है मेरी जान। तो तुम उसके साथ अकेली थी किचेन में, जब सब लाउंज में टीवी देख रहे थे। तब किया हुआ बताओ मुझे, बहुत बेचैन हूँ जानने के लिए, बहुत ही उत्तेजना हो रही है मेरी जान..."
अदिति- “तुम क्या सोच रहे हो की उसी दिन मैंने उसको मेरे करीब आने दिया?”
विशाल- “डिपेंड करता है। वो तुमको ब्लैकमेल कर सकता था की लीना को सब बता देगा या कुछ भी हो सकता
था। मैं तो रात को 11:00 बजे वापस आने वाला था और उसके पास बहुत टाइम था तब तक। चलो बताओ आगे क्या हुआ उसके बाद?”
अदिति को लगा उस वक़्त विशाल थोड़ा अग्रेसिव था फिर भी उसने कहना जारी रखा।
मैंने उससे कहा- “मुझे तुम्हारी हेल्प की जरूरत नहीं है, तुम भी लाउंज में चले जाओ...”
उसने लीना के सोफे पर बैठने का इंतेजार किया तब मेरे पास आया, मेरे पीछे खड़े होकर फिर से फुसफुसाते हुए मेरे कानों में कहा- “विशाल देर से आएगा क्या? कितने बजे आएगा आज?"

मैंने उसको कड़वे स्वर में जवाब दिया- “यह आपकी प्राब्लम नहीं है, वो किसी भी वक़्त वापस आए?"
मगर उसने हँसते हुए जवाब दिया- “यह तुम्हारा प्राब्लम हो सकता है। हाँ ठीक है। मगर जब तक वो नहीं आए मैं तुम्हारे साथ तो रह सकता हूँ ना... मेरी प्यारी छोटी भाभी?"
मैंने गुस्से में कहा- “मैं आपकी कोई प्यारी व्यारी नहीं हूँ, मुझको वैसे मत बुलाना। मैं लीना नहीं हूँ.."
वो कुछ ज्यादा जोर से हँसा और कहा- “मगर तुम लीना से बेहतर हो, तुम अनुभवी हो, और मुझे पूरी उम्मीद है की तुम मुझको लीना से बेहतर सर्व कर सकोगी। है ना?"
मेरा चेहरा लाल हो गया उसकी बातों को सुनकर और बहुत ही गुस्सा आया मुझे और पशीने छूट गये मेरे, गर्मी सी छा गई गुस्से से और तकरीबन चिल्लाते हुए मैंने जवाब दिया- "तुम चुप करोगे? और यहां से बाहर जाओ?"
मेरा जवाब और स्वर सुनकर उसका चेहरा थोड़ा लाल हो गया पर वो मेरे और ज्यादा पास आया और मुझको थामने की कोशिश किया।
मगर मैं पीछे हट गई यह कहते हये- “देखो अगर तुमने मुझको छुआ तो मैं सब कुछ ऐसे ही छोड़कर लाउंज में जा रही हूँ। तब तुम जवाब देना की क्यों सभी बर्तन सिंक में पड़े हुए हैं। सुना आपने?"
उसने अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए कहा- “ओहह... ओहह... ओहह... डरो मत जवान औरत। मैं तुमको हाथ नहीं लगा रहा हूँ। देखो मेरे हाथ ऊपर उठे हुए हैं। ठीक है मैं सिर्फ बात करूँगा तुम धोती रहो प्लेटों को। देखो मैं यहाँ से बात करता हूँ। ठीक है?” और वो कोई एक फूट के दूरी पर खड़ा था।
मुझे उस वक्त लगा की इस बार वो डर गया और मैं विजेता थी, तो मुझको हँसी आ गई।
फिर उसने पूछा- “हाँ तो बताओ तुमने लीना का सामना कैसे किया, जब मैं चला गया दिन में आज? सब ठीक रहा? तुमने उससे सवाल किया?"
मैंने उसको कोई जवाब नहीं दिया।
तब उसने कहा- “अगर नहीं बताओगी तो मुझे लीना से पूछना पड़ेगा। मैं उससे पू?"
मैंने फिर भी कोई जवाब नहीं दिया। वो मेरे दायीं तरफ खड़ा था और मैं अच्छी तरह से महसूस कर रही थी की वो मुझको नीचे से ऊपर तक घूर रहा था। मेरी कमर और पेट दिख रहे थे मेरी साड़ी और ब्लाउज़ में उस वक्त। और मुझे पता चला की वो मेरी कमर को देख रहा है। तो मैंने अपने हाथ से पानी झटकते हुए अपनी साड़ी से कमर को ढंका।

उसने तुरंत कहा- “क्यों जुल्म कर रही हो? कम से कम देखने तो दो, तुम्हारी चमड़ी कितनी मुलायम है, गोरी गोरी, हाट और सेक्सी वाह... लीना से बहुत ज्यादा हाट और सेक्सी हो तुम तो... छूने नहीं दे रही हो तो कम से कम प्रशंसा तो करने दो ना.."
मैंने फिर से कोई जवाब नहीं दिया। बर्तनों को धोती गई सिंक में नजरें झुकाए। मगर मैंने महसूस किया की उसने एक कदम बढ़ाया मेरे तरफ तो तुरंत मैंने मुड़कर उसको मोटी-मोटी आँखों से देखा और वो जहाँ था वहीं रुक गया।
विशाल- “हाहाहाहा... तुम भाई को डरा रही थी अदिति? बेचारा भाई, मैं सोच रहा हूँ उस वक्त उसने कैसा
महसूस किया होगा हाहाहाहा... तो तब उसने तुम्हारी कमर को छुआ क्या? उसका खड़ा नहीं हुआ था? उसका लण्ड खड़ा हो गया होगा उस वक्त, तुमने नोटिस नहीं किया?"
अदिति- “नहीं, उस वक़्त मैं इतनी गुस्से में थी की वो सब नहीं देखा था। मगर हाँ लाउंज में जाने से पहले नोटिस किया मैंने। हाँ उसक
था...”
विशाल- “पता था मुझे वो तो खड़ा होना ही था, तुम जैसी हाट जवान भाभी के जिश्म के हिस्सों को देखकर, किसी का भी खड़ा हो जाता। तो किचेन में फिर कुछ हुआ?”
अदिति- नहीं। क्योंकी मैं उसको कोई जवाब नहीं दे रही थी तो वो वहीं खड़े होकर मुझको निहार रहा था और जब मैं जाने लगी।
तब उसने इतना कहा- “मैं तुमको निहारे बिना रह नहीं सकता। तुम बहुत आकर्षित करती हो मुझे अदिति, मन करता है तुमको जोरों से अपनी बाहों में जकड़ लूँ..”
मगर मैं वहाँ से तेजी से चलते हुए निकल गई और अपने कमरे में चली गई।
जब मैं किचेन से निकलकर लाउंज से गुजरते हए रूम की तरफ जा रही थी तो लीना ने ऊँची आवाज में पूछा “भाभी भाई ने तुमको बर्तनों को समेटने में मदद किया?”
मैंने हाँ में सिर हिलाया और रूम में चली गई।
विशाल- “और उस रात को यही सब हुआ?"
अदिति- “नहीं जान, वो सब नहीं था और कुछ हुवा था उस रात को। आगे सुनो अब। मैंने शावर लिया और नाइटी पहनी। अब जैसा की तुम चाहते थे हमेशा की नाइटी पहनते वक्त मैं ब्रा नहीं पहनूं तो मैंने ब्रा नहीं पहनी
थी। वैसे तुमसे शादी से पहले मैं नाइटी के नीचे भी ब्रा पहनती थी, तुमको तो पता है ना? तो तुमने आदत दे दिया मुझे यह कहकर की नाइटी पहनते वक्त ब्रा नहीं पहननी चाहिए। इसलिये मैंने नाइटी पहनकर ऊपर वाला नाइटी का गाउन पहना हर रात की तरह, और हर रात की तरह लाउंज में जाने लगी। मगर राकेश को सोचकर

उस रात को लाउंज में जाने का मन नहीं किया। फिर मैंने सोचा की कहीं वो रूम में ना आ जाये इसलिए मैं लाउंज में गई। क्योंकी वो कभी टीवी देखता ही नहीं था, बल्की अपने रूम में रहता था..”

लाउंज में जैसे की मैं हमेशा लीना के पास बैठती थी तो उसी सोफे की तरफ बढ़ी मैं लीना के पास बैठने को, तो वहाँ राकेश को देखकर मुझे झटका लगा। वो लीना के पास बैठा था सोफे पर, तो उसको पता था की मैं वहाँ आने वाली थी और लीना के पास बैठती हूँ इसीलिए वो भी वहीं था। मुझको परेशानी महसूस हुई। मुझे आते हए देखकर लीना थोड़ी सी खिसकी मेरे लिए बैठने के लिए जगह बनाते हुए, और राकेश भी खिसका मगर इस तरह की मुझको बीच वाली सीट मिले बैठने को, तो मुझे लीना और राकेश के बीच बैठना पड़ा। पहले तो किसी और सोफे पर बैठने को चाहा मैंने। मगर सोचा की दीपक और पापा और खुद लीना सोचेंगे की क्यों आज मैं लीना के पास नहीं बैठी? यह सोचकर वहीं बैठ गई मैं।
मैं बैठ गई तो लीना ने कहा- “बहुत ही एमोशनल मूवी है भाभी..”

जैसे की तुमको पता है की टीवी देखते वक्त लाउंज की सभी लाइटें आफ होती हैं और सिर्फ टीवी की लाइट रहती हैं उस वक़्त लाउंज में। तो वैसा ही नजारा था उस रात को भी। फिर मैंने राकेश का हाथ अपनी जांघों पर महसूस किया अपने मुलायम नाइटी के ऊपर।
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