Adultery प्यास बुझाई नौकर से

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Jemsbond
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Re: Adultery प्यास बुझाई नौकर से

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रात के 12:30 का टाइम और रूबी तसल्ली करके धीरे से पीछे का दरवाजा खोलती है और धीरे-धीरे रात के घने अंधेरे में रामू के कमरे की तरफ बढ़ती है। उसका दिल रात की शांति में जोर-जोर से धड़क रहा था और वो उसकी आवाज भी सुन सकती थी। रामू के कमरे के पास आकर वो दरवाजे को धकेलती है, तो दरवाजा खुल जाता है।

दरवाजा खुलने की आहट सुनकर रामू दरवाजे की तरफ देखता है तो अपनी हसीना को सामने पाता है। रूबी कमरे में एंटर करते ही कमरे की लाइट आफ कर देती है। पूरे कमरे में अंधेरा पसर जाता है। रामू अपनी चारपाई से उठकर खड़ा हो जाता है और रूबी को रामू के पैरों की आहट सुनाई पड़ती है। रामू रूबी के पास आकर रूबी को कंधों से पकड़ लेता है।

रामू- बहुत तड़पया है आपने मुझे।

रूबी शर्माती हुई बिना कुछ बोले खड़ी रहती है।

राम- “अपने लाइट क्यों बंद कर दी? मैं आपको कैसे देख पाऊँगा। आपके हसीन खूबसूरत चेहरे के दीदार के लिए मेरी आँखें तरस गई हैं..” कहकर रामू रूबी के कंधों को छोड़कर लाइट ओन करने के लिए बढ़ता है और तभी रूबी उसका हाथ पकड़कर रोक लेती है- “नहीं.."

रामू- क्या हुआ मेरी जान? अब तो हम सिर्फ दोनों ही हैं इस कमरे में। पूरी दुनियां नींद की आगोश में है।

रूबी- नहीं मुझे डर लग रहा है। अगर कहीं घर वाले जाग गये और उन्हें पता चल गया तो?

रामू रूबी की हालत समझता है। आज पहली बार चोरी छिपे है तो थोड़ा घबराएगी ही। बस कुछ दिनों में पूरी तरह डर खतम हो जाएगा रूबी का।
रामू- ठीक है मेरी जान जैसे तुम्हें ठीक लगे।
रामू रूबी को अपनी बलिष्ट बाहों में ले लेता है। रूबी भी अपनी बाहों से राम की कमर के इर्द-गिर्द घेरा बना लेती है और दोनों ठंड में एक दूसरे के जिस्मों की गर्मी का आदान प्रदान करने लगते हैं। दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके हए थे, मानो बरसों बाद दो प्रेम करने वाले मिल रहे थे।
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Re: Adultery प्यास बुझाई नौकर से

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Jemsbond
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Re: Adultery प्यास बुझाई नौकर से

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कुछ देर दोनों एक दूसरे के जिश्म की गर्मी लेते रहे। जिससे कमरे का माहौल गरम होने लगा था। रामू धीरे-धीरे अपने दोनों हाथ रूबी की पीठ पे चलाने लगा। रूबी के जिश्म में तरंगे उठने लगी। रूबी और जोर-जोर से राम को अपने से चिपका लेती है। अब तो दोनों के बीच हवा निकलने के लायक भी जगह नहीं बची थी।

रामू- मेरी जान बहुत तड़पाया है तुमने। ऐसे लग रहा है जैसे बरसों बाद मिल रहे हों।

रूबी- सच में।

रामू- आज आपने प्यार करने के लिए सारे दरवाजे खोल दिए हैं। आज के बाद हमें कोई रोक नहीं पाएगा।

रूबी- मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ। तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूँ। बस कभी मुझे छोड़कर मत जाना।

राम- नहीं प्यारी, मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊँगा। तुम तो मेरे दिल की रानी हो।

रूबी- मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ राम्।

राम- हम भी अपको अपनी जान से भी ज्यादा चाहते हैं।

रामू और रूबी एक दूसरे की आँखों में देखते हैं। दोनों को आँखों में एक दूसरे को पाने की चाहत दिखाई देती है। रामू अपने चेहरे को आगे लेजाकर अपने होंठ रूबी के गुलाबी होंठों पे रख देता है। रूबी भी उसके होंठों का स्वागत अपने होंठ खोलकर करती है, और दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान करने लगते हैं।

दोनों एक दूसरे के होंठों में बिजी थे और इधर रामू अपने हाथ दुबारा से रूबी की पीठ पे चलाने लगता है। रूबी अपने होंठों को और ज्यादा रामू के होंठों में दे देती है। दोनों की जुबान आपस में लड़ने लगी थी। इधर रामू के हाथ रूबी के विशाल चूतरों पे चलने लगते हैं, और उनका जायजा लेने लगते हैं। चूतरों पे मर्द के हाथ लगने से रूबी रामू के साथ और खुल जाती है और रामू के होंठों को बुरी तरह चूसने लगती है, मानो जैसे बरसों की प्यासी हो।

रामू रूबी की नाइटी के ऊपर से ही रूबी के चूतरों की दरार में उंगली घुसेड़ने लगता है। इससे यह होता है की नाइटी रूबी के चूतरों की दरार में घुस जाती है मानो मछली के मुँह में कोई शिकार फँसा हो। तभी रूबी को ध्याना आता है की कमरे का दरवाजा तो लाक किया ही नहीं।

रूबी- रामू दरवाजा तो बंद कर दो।

राम रूबीके होंठों को छोड़कर दरवाजे की तरफ बढ़ता है और दरवाजा बंद करने के बाद वो कमरे में पड़े दिए को जला देता है। दिए की रोशनी से पूरे कमरे में हल्का-हल्का उजाला हो जाता है।

रूबी- दिया क्यों जला दिया?

रामू- “अरे घबराने की कोई जरूरत नहीं है। दरवाजा बंद है और हमें कोई नहीं देख सकता। इस उजाले में तुम्हें भोगने का मजा आएगा। वर्ना अंधेरे में कुछ पता नहीं चलता। अब कम से कम तुम्हें अच्छे से देख तो सकता हूँ.” कहकर रामू रूबी के पास आकर फिर से उसके होंठ चूसने लगता है।

रूबी भी खुलकर रामू के होंठों का रसपान करने लगती है। साथ ही साथ रामू के हाथ दुबारा से रूबी के चूतड़ों से खेलने लगते हैं। रूबी की चूत गीली होने लगती है। कुछ देर और होंठों का रसपान करने के बाद रामू रूबी को अपने से अलग करता है।

रामू- मेरी जान, तुम इस दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत हो।

रूबी शर्माकर अपना चेहरा नीचे झुका लेती है।

रामू- मैं हम दोनों के पहले मिलन के बाद से तुम्हारे लिए और ज्यादा तड़प रहा हूँ। मैं सोच रहा था पता नहीं दुबारा हमें कब मौका मिलेगा? पर आज तुमने अपने प्यार का इम्तिहान पास कर लिया है। तुमने मेरा दिल जीत लिया है। मैं तुम्हें अपना भरपूर प्यार देना चाहता हूँ। इस नाइटी को अपने जिश्म से अलग कर दो, जिससे हम दोनों के बीच कोई पर्दा ना रहे।
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रूबी शर्माते हए धीरे-धीरे अपने हाथों से नाइटी उतारने लगती है और कुछ सेकेंड बाद नाइटी जमीन पे होती है। अब रूबी सिर्फ ब्रा और पैंटी में ही थी। इधर राम भी अपने कपड़े उतार देता है और उसके शरीर पे अंडरवेर ही रह जाती है। राम अपनी हसीना को दिए की रोशनी में देखता है तो उसे लगता है जैसे कोई अप्सरा स्वर्ग लोक से धरती पे आ गई हो। राम आगे बढ़कर रूबी को अपनी बाहों में ले लेता है और अपने हाथों से रूबी की ब्रा के हक खोलकर ब्रा एक साइड में फेंक देता है। रूबी के गोरे-गोरे सुडौल उभार आजाद हो गये थे। राम फड़फड़ाते कबूतरों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लेता है और मसलने लगता है।

रूबी- आअहह... आराम से।

रामू- बहुत खूबसूरत है तुम्हारे उभार।

रामू अब थोड़ा सा नीचे झुक कर एक उभार को आने होंठों में कैद कर लेता है और उसका रस पीने लगता है। रूबी अब अपने हाथों से रामू के सिर के पिछले हिस्से को पकड़कर अपने उभारों की तरफ दबाने लगती है।

रूबी- पूरा मुँह में लो मेरे राजा।

रामू अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता है की रूबी के पूरे उभार को मुँह में लेकर चूसे। पर उभार काफी बड़े थे तो रामू के मुँह में पूरे नहीं आ पाते, सिर्फ 40 परसेंट ही रामू के मुँह में कैद हो रहे थे। रूबी अपने हाथों से अपने सिर के बालों को खोल देती है, जिससे वो और भी ज्यादा कामुक लगने लगती है। रामू के उभारों को चूसने से रूबी की टाँगें जबाब देने लगती है।

रूबी- राम मेरे सैय्या दर्द नहीं हो रहा।

रामू रूबी के उभारों को छोड़ता है और रूबी को अपनी बाहों में उठा लेता है और अपनी चारपाई की तरफ बढ़ता है। कितनी हल्की थी रूबी। राम को उसका थोड़ा सा भी वजन नहीं लगा। राम रूबी को बड़े ही प्यार से अपनी चारपाई पे लेटा देता है। रामू खुद चारपाई पे नहीं बैठता, बस रूबी को चारपाई के एक साइड में ही लेटाता है

और खुद जमीन पे खड़ा होकर आगे झुक कर उभारों पे टूट पड़ता है।

रूबी फिर से उसके सिर को पकड़कर अपने उभारों की तरफ दबाने लगती है। रामू की लार से दोनों उभार पूरी तरह गीले हो चुके थे। रूबी के उभारों की ब्राउन निपले टाइट हो चुकी थी। रामू अब उभारों को छोड़कर धीरे-धीरे रूबी को चूमता हुआ उसकी कमर की तरफ बढ़ता है।
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