Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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kunal
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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ज्योति ने “बचाओ, बचाओ” बोल कर जोर शोर से चिल्लाना शुरू किया। अचानक ज्योति की चिल्लाहट सुनकर कालिया चौंक गया। वह एकदम ज्योति की चूँचियों पर जोर से चूँटी भरते हुए बोला, “चुप हो जाओ। मुखिया खफा हो जाएगा।” ज्योति समझ गयी की उसे सरदार से चुदवाने के लिए ले जाया जा रहा था।

जाहिर है सरदार को खुद ज्योति को चोदने से पहले कोई और चोदे वह पसंद नहीं होगा। इस मौके का फायदा तो उठाना ही चाहिए। दुसरा कालिया सरदार से काफी डरता था। ज्योति ने और जोर से चिल्लाना शुरू किया, “बचाओ, बचाओ।”

कालिया परेशान हो गया। आगे काफिले में से किसीने ज्योति के चिल्लाने की आवाज सुनली तो काफिला रुक गया। सब कालिया की और देखने लगे। कालिया अपना घोड़ा दौड़ा कर आगे चलने लगा। उसी वक्त ज्योति को सुनीलजी की आवाज सुनाई दी। सुनीलजी जोर से चिल्ला कर बोल रहे थे, “ज्योति तुम कहाँ हो? क्या तुम ठीक तो हो?”

ज्योति ने सोचा की अगर उन्होंने सुनीलजी को अपना सच्चा हाल बताभी दिया तो वह कर कुछ भी नहीं पाएंगे, पर बेकार परेशान ही होंगें। तब ज्योति ने जोर से चिल्लाकर जवाब दिया “मैं यहां हूँ। मैं ठीक हूँ।”

ज्योति ने फिर पीछे की और घूम कर कालिये से कहा, “अगर तुम मुझे और परेशान करोगे तो मैं तुम्हारे सरदार को बता दूंगी की तुम मुझे परेशान कर रहे हो।”

कालिये ने कहा, “ठीक है। पर तुम चिल्लाना मत। राँड़, अगर तू चिल्लायेगी तो अभी तो मैं कुछ नहीं करूँगा पर मौक़ा मिलते ही मैं तुझे चोद कर तेरी चूत और गाँड़ दोनों फाड़ कर तुझे मार कर जंगल में भेड़ियों को खिलाने के लिए डाल दूंगा और किसीको पता भी नहीं चलेगा। तू मुझे जानती नहीं। अगर तू चुप रहेगी तो मैं तुझे ज्यादा परेशान नहीं करूँगा। बस तू सिर्फ मेरा लण्ड सहलाती रहे।”

कालिये की धमकी सुनकर ज्योति की हवा ही निकल गयी। उसकी बात भी सच थी। मौक़ा मिलते ही वह कुछ भी कर सकता था। अगर उस जानवर ने कहीं उसे जंगल में दोनों हाथ और पाँव बाँध कर डाल दिया तो भेड़िये भले ही उसे ना मारें, पर पड़े पड़े चूंटियाँ और मकोड़े ही उसके बदन को बोटी बोटी नोंच कर खा सकते थे।

इससे बेहतर है की थोड़ा बर्दाश्त कर इस जानवर से पंगा ना लिया जाए। ज्योति ने अपनी मुंडी हिलाकर “ठीक है। अब मैं आवाज नहीं करुँगी।” कह दिया।

उसके बाद कालिये ने ज्योति की चूँचियों को जोर से मसलना बंद कर दिया पर अपना लण्ड वहाँ से नहीं हटाया। ज्योति ने तय किया की अगर कालिया ऐसे ही काफिले के साथ साथ चलता रहा तो वह नहीं चिल्लायेगी। ज्योति ने अपनी उंगलयों से जितना हो सके, कालिये के लण्ड को पकड़ कर सहलाना शुरू किया।

दहशतगर्दों का काफिला काफी घंटों तक चलता और दौड़ता ही रहा। कभी एकदम तेज चढ़ाव तो कभी एकदम ढलाव आता जाता रहा। पर पुरे सफर दरम्यान एक बात साफ़ थी की नदी के पानी के बहाव का शोर हर जगह आ रहा था। इससे साफ़ जाहिर होता था की काफिला कोई नदी के किनारे किनारे आगे चल रहा था।

सुनीलजी और ज्योति काफी थक चुके थे। घोड़े भी हांफने लगे थे। काफी घंटे बीत चुके थे। शाम ढल चुकी थी। ज्योति को महसूस हुआ की काफिला एक जगह रुक गया। तुरंत ज्योति की आँखों से पट्टी हटा दी गयी। ज्योति ने देखा की पूरा काफिला एक गुफा के सामने खड़ा था। वहाँ काफी कम उजाला था। कुछ देर में ज्योति के हाथों से भी रस्सी खोल दी गयी।

ज्योति ने सुनीलजी और सुनीलजी को भी देखा। उनके हाथों और पाँव की रस्सी निकाली जा रही थी। सब काफी थके हुए लग रहे थे। काफिले के मुखिया ने गुफा के अंदर से किसी को बाहर बुलाया।

दुशमन की सेना के यूनिफार्म में सुसज्जित एक अफसर आगे आया और सुनीलजी से हाथ मिलाता हुआ बोला, “मेरा नाम कर्नल नसीम है। कर्नल जसवंत सिंघजी आपका और सुनील मडगाओंकरजी का स्वागत है। आप बिलकुल निश्चिन्त रहिये। यहाँ आपको हमसे कोई खतरा नहीं है। हम सिर्फ आपसे कुछ बातचीत करना और कुछ जानकारी हासिल करना चाहते हैं। अब आप हिंदुस्तान की सरहद के दूसरी और आ चुके हैं। अगर आप सहयोग करेंगे तो हम आपको कोई तकलीफ नहीं पहुंचाएंगे।”

फिर ज्योति की और देख कर वह थोड़े अचरज में पड़े और उन्होंने मुखिया से पूछा, “अरे यह औरत कौन है? इन्हें क्यों उठाकर लाये हो?”

मुखिया ने उनसे कहा, “यह ज्योति है जनाब। यह बड़ी जाँबाज़ औरत है और जब हमने इन दोनों को कैद किया तो यह अकेले ही हम से भिड़ने लगी। मैंने सोचा सरदार को यह जवान औरत पेश करेंगे तो वह खुश हो जाएंगे।”

तब सुनीलजी ने आगे बढ़कर कहा, “जनाब यह मेरी बेगम हैं। आपके लोग उन्हें भी उठाकर ले आये हैं।”

कर्नल नसीम ने अपना सर झुकाते हुए माफ़ी मांगते हुए कहा, “मैं मुआफी माँगता हूँ। यह बेवकूफ लोगों ने बड़ी घटिया हरकत की है।”

उस आर्मी अफसर ने कहा, “अरे बेवकूफों, यह क्या किया तुमने? कहीं जनरल साहब नाराज ना हो जाएँ तुम्हारी इस हरकत से।”

फिर थोड़ा रुक कर वह अफसर कुछ देर चुप रहा और कुछ सोच कर बोला, “खैर चलो देखो, आज रात को इस मोहतरमा को इन साहबान के साथ ही रहने दो। सुबह जब जनरल साहब आ जाएंगे तब देखेंगे।”

फिर उस अफसर ने सुनीलजी की और घूमकर कहा, “अब आप आराम कीजिये। आपको हमारे जनरल साहब से सुबह मिलना होगा। वह आपसे कुछ ख़ास बातचीत करना चाहते हैं। हमने आपके लिए रात को आराम के लिए कुछ इंतेझामात किये हैं। इस वीरान जगह में हमसे ज्यादा कुछ हो नहीं पाया है। इंशाअल्लाह अगर आप हमसे कोआपरेट करेंगे तो फिर आप हमारी खातिरदारी देखियेगा। फिलहाल हमें उम्मीद है आप इसे कुबूल फरमाएंगे। चलिए प्लीज।”

कर्नल नसीम एक बड़े से हाल में उनको ले गए। अंदर जाने का एक दरवाजा था जो लकड़ी का था और उसके आगे एक और लोहे की ग्रिल वाला दरवाजा था। अंदर हॉल में एक बड़ा पलंग था और साथ में एक गुसलखाना था। एक बड़ा मेज था। दो तीन कुर्सियां रखीं थीं। बाकी कमरा खाली था।

कर्नल नसीम ने बड़ी विनम्रता से सुनीलजी से कहा, “मुझे माफ़ कीजिये, पर मोहतरमा के आने का कोई प्लान नहीं था इसलिए उनके लिए कोई ख़ास इंतेजामात कर नहीं पाए हैं। उम्मीद है आप इसी में गुजारा कर लेंगे।”

जो कालिया ज्योति को गोद में बिठाकर घोड़े पर बाँध कर ले आया था वह वहीँ खड़ा था। उसकी और इशारा करते हुए कर्नल नसीम ने कहा, “अगर आपको कोई भी चीज़ की जरुरत हो तो यह अब्दुल मियाँ आपकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। तो फिर कल सुबह मिलेंगे। तब तक के लिए खुदा हाफ़िज़।”

यह कह कर कर्नल नसीम चल दिए। दरवाजे पर पहुँचते ही जैसे कुछ याद आया हो ऐसे वह वापस घूमे और कर्नल साहब की और देख कर बोले, “देखिये, अगर आप के मन में कोई भागने का प्लान हो ता ऐसी गलती भूल कर भी मत करियेगा। हमारे हाउण्ड भूखे हैं। वह आपकी गंध को अच्छी तरह पहचानते हैं। हमने उन्हें खुला छोड़ रखा है। बाकी आप समझदार हैं। खुदा हाफ़िज़।”

यह कह कर कर्नल नसीम रवाना हुए। कालिया को दरवाजे पर ही तैनात किया गया था। जैसे ही नसीम साहब गए, कालिया की लोलुप नजर फिर से ज्योति के बदन पर मंडराने लगीं।

अब उसे एक तसल्ली थी की सरदार को मोहतरमा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। कालिया को लगा की अगर वह कैसे भी ज्योति को मना लेता है तो उसकी रात सुहानी बन सकती है।

सुनीलजी ने दोनों दरवाजे बंद कर दिए। कालिया दरवाजे के बाहर पहरेदारी में था। दरवाजा बंद होते ही ज्योति, सुनीलजी और सुनीलजी इकट्ठे हो गए और एक दूसरे की और देखने लगे।

सुनीलजी ने होँठों पर उंगली रख कर सब को चुप रहने का इशारा किया और वह पुरे कमरे की छानबीन करने में लग गए। उन्होंने पलंग, कुर्सी, मेज, दरवाजे, खिड़कियाँ सब जगह बड़ी अच्छी तरीके छानबीन की।

सुनीलजी को कोई भी कैमरा, या ऐसा कोई खुफिया यंत्र नहीं मिला। चैन की सांस लेते हुए उन्होंने सुनीलजी और ज्योति को कहा, “हमारे दुश्मन की सेना के अफसर हमसे हमारी सेना की गति विधियों के बारेमें खुफिया जानकारी हमसे लेना चाहते हैं। दुश्मन का कुछ प्लान है। शायद वह हम पर कोई एक जगह हमला कर घुसपैठ करना चाहते हैं। पर उन्हें पता नहीं की हम कहाँ कितने सतर्क हैं।

वह हमारी खातरदारी तब तक करते रहेंगे जबतक हम उनको खबर देते रहेंगे। जैसे ही उनको लगा की हम उनसे कोआपरेट नहीं करेंगे तो वह हमें या तो मार डालेंगे या फिर अपनी जेल में बंद कर देंगे। यह तय है की हम हमारे मुल्क से धोखा नहीं करेंगे।

कल जब उनके जनरल के सामने हमारी पेशी होगी तो वह जान जाएंगे की हम उन्हें कुछ भी नहीं बताने वाले। वह हमें खूब त्रास देंगे, मारेंगे, पीटेंगे, जलती हुई आग के अंगारों पर चलाएंगे और पता नहीं क्या क्या जुल्म करेंगे।

हमारी भलाई इसी में है की हम इस रात को ही कुछ भी कर यहां से भाग निकलें

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गर्मी और पसीने के मारे सुनीलजी, सुनीलजी और ज्योति, तीनों की हालत खराब थी। ऊबड़खाबड़ रास्ते पर इतना लंबा सफर वह भी घोड़े पर हाथ पाँव बंधे हुए करना थकावट देने वाला था। ज्योति लगभग बेहोशी की हालत में थी।

एक तो इतना लंबा सफर उपरसे कालिया की पुरे सफर के दौरान ज्योति के बूब्स को दबाना और जाँघों पर हाथ फिराते फिराते ज्योति की चूत तक हाथ ले जाना और मौक़ा मिलने पर पैंटी उठाकर चूत के अंदर उंगली घुसाने की कोशिश करते रहना बगैरह हरकतों से ज्योति एकदम थक चुकी थी।

सुनीलजी के बारेमें सोचते हुए कई बार ज्योति उत्तेजित भी हो जाती थी और एकाध बार तो झड़ भी चुकी थी। उपर से कालिया के अजगर जैसे लम्बे और मोटे लण्ड से निकली हुई उसकी चिकनाहट ने ज्योति के पूरा हाथ को चिकनाहट से भर दिया था।

जब सुनीलजी ने कहा की उन्हें भाग निकलना चाहिए तो ज्योति को उस मुसीबत के दरम्यान भी हँसी आगयी। सुनीलजी ऐसे बात कर रहे थे जैसे बाहर निकलना बच्चों का खेल हो। बाहर कालिया भैंसे जैसा पहलवान बैठा था, जिसके हाथ में भरी हुई बंदूक थी।

उपर से कर्नल नसीम ने बात बात में उन्हें सावध कर दिया था की बाहर ही उन्होंने भयानक हाउण्ड भूखे छोड़ रखें हैं, जिनको सुनीलजी के बदन की भली भाँती पहचान थी। जाहिर है की बाहर और भी सिपाही लोग पहरा दे रहे होंगे। ऐसे में भाग निकलने का तो सवाल ही नहीं था।

कुछ ही देरमें किसीने उनका दरवाजा खटखटाया। एक चौकीदार तीन प्लेट्स और खाना लेकर आया। उसने मेज पर खाना लगा दिया। खाना सजा कर पहरेदार झुक कर चला गया। ज्योति और सुनीलजी सुनीलजी की और देख ने लगे।

सुनीलजी ने कहा, “देखो कहावत है ना की बकरे को मारने के पहले अच्छा खासा खिलाया पिलाया जाता है। चलो आज रात को तो खापी लें।

सबने मिलकर खाया।

ज्योति को कुछ आराम करने की जरुरत थी। ज्योति कमरे के साथ में ही लगे गुसलखाने (बाथरूम) में गयी। बाथरूम साफ़ सुथरा था। बाल्टी में ठंडा साफ़ पानी भी था। ज्योति का नहाने का मन किया। पर सवाल था की नहाने के बाद पोंछे किस से और कपड़ा क्या बदलें?

ज्योति ने अपने पति सुनीलजी को इशारा किया और पास बुलाया। ज्योति ने कहा, “मुझे नहाना है। साफ़ होना है। उस गंदे बदबूदार कालिये ने पुरे रास्ते में मेरी जान ही निकाल ली है। मुझे इतना गंदा सा फील हो रहा है। पर क्या करूँ? ना तो कोई तौलिया है और ना ही कोई बदलने के लिए कपड़ा।”

सुनीलजी ने कहा, “देखो, हम कोई पांच सितारा होटल में नहीं ठहरे हैं। यह जेल है। भगवान् इनका भला करे की इन्होने हमें इतनी भी सहूलियत दी है। वह सोच रहे होंगे की शायद हमें सहूलियत देने से हम उनको सारी खुफिया खबर यूँ ही दे देंगे। खैर जहां तक बात है तौलिये की और कपडे बदलने की, तो तुम नहा कर इन्हीं कपड़ों से पोंछ लेना और इन्हें सुखाने के लिए रख देना। इतनी गर्मी में यह जल्द ही सुख जाएंगे।”

ज्योति ने अपने पति की और अचम्भे से देखा और बोली, “तुम पागल हो? अरे मैंने अगर कपडे भिगोये और सुखाने के लिए रक्खे तो फिर मैं क्या पहन के सोऊंगी?”

सुनीलजी ने कहा, “रोज कौन से कपडे पहन कर सोती हो?”

ज्योति ने अपने पति की और देखा और बोली, “तुम्हारा जवाब नहीं। अरे एक ही तो पलंग है। और सोने वाले हैं हम तीन। कोई पर्दा भी नहीं है। तो क्या मैं जसस्सूजी के साथ नंगी सो जाऊं?”

सुनीलजी ने कड़ी नज़रों से ज्योति की और देखा और बोले, “वह सब तुम जानो। अगर नंगी सो भी जाओगी तो यकीन मानो सुनीलजी तुम पर चढ़ जाकर तुम्हें चोदेंगे नहीं। हम एक आपात स्थिति में हैं। यहां हम सब यह सोचकर नहीं आये।”

ज्योति ने एक गहरी साँस ली। पति के साथ बात करना बेकार था। ज्योति ने कहा, “चलो ठीक है, सबसे पहले आप लोग नहा लो या फ्रेश हो जाओ। फिर मैं सीचूंगी मुझे क्या करना है।”

सबसे पहले सुनीलजी बाथरूम में गए और नहा कर जब बाहर निकले तो उन्होंने एक छोटी सी निक्कर पहन रक्खी थी, अंदर के बाकी कपडे धो कर निचोड़ कर पलंग पर ही उन्होंने इधर उधर लटकाये। उन्होंने अपना यूनिफार्म जराभी गिला नहीं किया।

ज्योति सुनीलजी के करारे बदन को देखती ही रही। उनके बाजुओं के शशक्त माँसपेशियाँ, उनका लंबा कद, उनके घने घुंघराले बाल और छाती पर बालों का घना जंगल कोई भी स्त्री को मोहित करने वाला था। निक्कर में से उनका फनफनाते लण्ड का आकार साफ़ साफ़ दिख रहा था।

सुनीलजी की सपाट गाँड़ और चौड़े सीने के निचे सिमटा हुआ कई सिलवटदार पेट सुनीलजी की फिटनेस का गवाह था। जाहिर था की वह किसी भी औरत को चुदाई कर के पूरी तरह संतुष्ट करने में शक्षम लग रहे थे।

सुनीलजी भी नहाकर सुनीलजी की ही तरह निक्कर पहनकर आगये। सुनीलजी की निक्कर गीली होने से उनका लण्ड तो जैसे नंगा सा ही दिख रहा था। ज्योति ने उन्हें एक हल्का सा धक्का मारकर हलकी सी हंसी दे कर सुनीलजी ना सुने ऐसे कहा, “अरे तुम देखो तो, तुम्हारा यह घण्टा कैसा नंगा दिखता है।”

सुनीलजी ने भी हंसी हंसी में ज्योति के कानों में कहा, “अच्छा? तू हम दोनों के घण्टे ही देखती रहती हो क्या?” फिर वह पलंग पार जा कर लेट गए। अपने पति की बात सुनकर शर्म से लाल लाल हुई ज्योति आखिर में नहाने गयी।

ज्योति का पूरा बदन दर्द कर रहा था। उसकी कमर घुड़ सवारी से टेढ़ी सी हो गयी थी। पुरे रास्ते में कालिया का मोटा लण्ड ज्योति की गाँड़ को कुरेद रहा था।

अगर ज्योति के हाथ पीछे बंधे ना होते तो शायद वह कालिया ज्योति की पैंटी ऊपर करके अपना मोटा लण्ड ज्योति की गाँड़ में डाल ही देता।

हर बार जब कालिया ज्योति की कमर से उसका स्कर्ट ऊपर और पैंटी निचे खिसका ने की कोशिश करता, ज्योति उसका हाथ पकड़ लेती, जिससे कालिया ज्योति के चिल्लाने के डर से कुछ नहीं कर पाया था।

ज्योति ने बाथरूम में जाने के पहले कमरे की सारी बत्तियां बुझा दीं। फिर बाथरूम का दरवाजा बंद कर सारे कपडे निकाल कर पानी और साबुन रगड़ रगड़ कर अपना बदन साफ़ किया। वह कालिये की पसीने और उसके लण्ड की चिकनाहट की बदबू से निजाद पाने की कोशिश में थी।

अच्छी तरह साफ़ होने के बाद ज्योति सिर्फ अपनी पैंटी पहन कर बाहर निकली। उसने अपनी स्कर्ट और टॉप अच्छी तरह धो कर निचोड़ कर अपने साथ लेली ताकि उसे कहीं सूखा सके।

नहा कर बाहर निकलते हुए ज्योति ने जब हलके से बाथरूम का दरवाजा खोल कर देखा की कमरे में अन्धेरा था। ज्योति चुपचाप पलंग की और अपने पति के पास पहुंची।

जैसे जैसे ज्योति की आँखें अँधेरे से वाकिफ हुईं तो उसे कुछ कुछ दिखने लगा। ज्योति ने देखा की सुनीलजी सोये नहीं थे बल्कि बैठे हुए थे। ब्रा और पैंटी पहने हुए होने के कारण ज्योति को बड़ी शर्म महसूस हो रही थी। शायद सुनीलजी की आँखें बंद थीं।

ज्योति बिना आवाज किये कम्बल के अंदर अपने पति के साथ घुस गयी। उसका हाथ अपने पति की निक्कर में फ़ैल रहे लण्ड से टकराया।

सुनीलजी सुनीलजी की दूसरी तरफ बैठे हुए कुछ गहरी सोच में डूबे हुए लग रहे थे। ज्योति के पलंग में घुसते ही सुनीलजी ने ज्योति की भारी सी चूँचियों को सहलाने लगे।

इतनी ही देर में सब चौंक गए जब बाहर से कालिया की “ज्योति…. ज्योति” गुर्राने की आवाज सुनाई पड़ी।

कालिया की आवाज सुनकर ज्योति डर के मारे कम्बल में घुस गयी। तब अचानक चुटकी बजा कर सुनीलजी बोले, “मेरी बात ध्यान से सुनो। हम यहां से बाहर निकल कर भाग सकते हैं। और वह भेड़िये हाउण्ड भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे।”

सुनीलजी की बात सुनकर सुनीलजी और ज्योति अचम्भे से उन्हें सुनने के लिए तैयार हो गए। सुनीलजी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, “अगर ज्योति हमारी मदद करे तो।”

सुनीलजी की बात सुनकर सुनीलजी बोले, “हाँ ज्योति मदद क्यों नहीं करेगी? क्या रास्ता है, बताओ तो?”

सुनीलजी ने कहा, “ज्योति को कालिया के पास जाना होगा। उसे फाँसना होगा।”

सुनीलजी की बात सुनकर ज्योति अकुला कर बोली, “कभी नहीं। अगर मैं उसके थोड़ी सी भी करीब गयी तो वह राक्षस मुझे छोड़ेगा नहीं। मैं जानती हूँ पुरे रास्ते मैंने क्या भुगता है। वह वहीं का वहीं मुझ पर बलात्कार कर मुझे मार डालेगा।”

ज्योति को रस्ते की आपबीती कहाँ भूलने वाली थी? सारे रास्ते में कालिया ज्योति को यही कहता रहता था, “ज्योति, मेरी जान तू मुझे एक बार चोदने का मौक़ा देदे। मेरे इस लण्ड से मैं तुझे ऐसे चोदुँगा की इसके बाद तुझे बाकी सारे लण्ड फ़ालतू लगेंगे। उसके बाद तू सिर्फ मुझ से ही चुदवाना चाहेगी। मेरी बात मानले, आज रात को मैं चुपचाप तुझे चोदुँगा और किसीको कानो कान खबर भी नहीं होगी। बस एक बार राजी हो जा।”

यह सुनकर ज्योति के कान पक गए थे। चुदवाना या फाँसना तो दूर, ज्योति उस कालिये की शकल भी देखना नहीं चाहती थी।
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सुनीलजी ने कहा, “ज्योति, मेरा प्लान १००% सफल होगा। बस तुम्हें थोड़ी हिम्मत और धीरज रखनी होगी। समझा करो। बाहर कालिया बंदूक ले कर बैठा हुआ है। गली में भेड़िये जैसे भूखे हाउण्ड हमारा इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में हम कैसे बाहर निकलेंगे? यहां से छटक ने का सिर्फ एक ही रास्ता है। कालिया तुम पर फ़िदा है। अगर तुम उसे कुछ भी समझा बुझा कर पटा लोगी तो हम निकल पाएंगे। मेरी बात मानो और कालिया को ललचाओ।”

ज्योति ने सुनीलजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। तब सुनीलजी बोले, “देखो डार्लिंग! या तो हम यहाँ सारी रात गुजारें और कल इन लोगों की मार खाएं। सबसे बुराहाल तो तुम्हारा होगा। एक बार यह लोग समझ गए की हम उनकी बात नहीं मानने वाले हैं तो यह लोग एक के बाद एक या तो कई लोग एक साथ तुम्हारे सुन्दर बदन को भूखे भेड़िये समान नोंच नोंच कर चींथड़े कर देंगे। बाकी तुम जानो।”

ज्योति अपने पति की बात सुनकर डर के मारे काँपने लगी। उसे अपनी आँखों के सामने अन्धेरा दिखने लगा। उसे लगा की उसके लिए तो एक और कुआं था तो दूसरीऔर खाई। अगर पति की बात मानी तो पता नहीं यह कालिया उसके साथ क्या क्या करेगा। और नहीं मानी तो क्या हुआ यह तो बता ही दिया था।

ज्योति ने अपने पति सुनील से कहा, “तुम्हें पता है, मेरे साथ पुरे रास्ते में वह कालिया ने क्या क्या किया? उसने मेरे पुरे बदन को नोंचा, मेरे पिछवाड़े को अपने आगे से खूब कुरेदा और अपने हाथों से मेरी छाती को मसल मसल कर मेरे सीने को लाल लाल कर दिया। पुरे रास्ते वह मुझे मनाता रहा की मैं उसके साथ एक रात गुजारूं।

मुझे मरना है की मैं उसके साथ एक मिनट भी गुजारूं। बापरे मेरे बंधे हाथ में उसने अपना गवर्नर पकड़ा दिया था। बापरे, कितना बड़ा और मोटा था उसका गवर्नर! पता नहीं इसकी कोई बीबी है या नहीं।

पर अगर है तो वह एक भैंस जैसी ही होगी क्यूंकि इस कालिये का लेना कोई साधारण औरत का काम नहीं है। अब उसके साथ एक पल बिताना मेरे लिए पॉसिबल नहीं है। आई एम् सॉरी।”

ज्योति का डर देखकर सुनीलजी ने कहा, “ज्योति, डरो मत। तुम्हारे साथ कुछ नहीं होगा। मेरी बात ध्यान से सुनो।” उसके बाद सुनीलजी ने ज्योति को अपना प्लान बताया। सुनीलजी की बात सुनकर ज्योति को कुछ तसल्ली हुई। ज्योति अपने पति सुनीलजी की बाँहों में कुछ देर आराम कर ने के लिए सो गयी।

हालांकि बार बार बाहर से कालिया की “ज्योति…… ज्योति……. ” की आवाज सुनाई दे रही थी। सुनीलजी वैसे ही बैठे हुए सोच में डूबे हुए सही समय का इंतजार कर रहे थे। सुनीलजी भी इस ट्रिप में क्या क्या रोमांचक और खतरनाक अनुभवों के बारे में सोचते हुए अपनी बीबी की चूँचियों को सहलाते हुए तंद्रा में पड़े रहे।

रात बीती जा रही थी। ज्योति ठाक के मारे कुछ ही मनटों में गहरी नींद सो गयी। सुनीलजी की आँख में नींद का नामो निशाँ नहीं था। सुनीलजी कभी सो जाते तो कभी जाग जाते। बाहर से काइये की “ज्योति…… ज्योति…..” की पुकार कुछ मिनटों बाद सुनाई देती रहती थी।

कुछ देर बाद ज्योति को सुनीलजी ने जगाया। ज्योति गहरी नींद में से चौंक कर जागी। काफी रात हो चुकी थी। रात के करीब बारह बजने वाले थे। सुनीलजी ने ज्योति को इशारा किया।

ज्योति दबे पाँव दरवाजे के पास गयी और उसने धीरे से अंदर का लकड़ी का दरवाजा खोला। बाहर का लोहे का दरवाजा बंद था। दरवाजे के बाहर कालिया अपनी बन्दुक हाथ में लिए बैठा था।

ज्योति ने अंदर से “छी. … छी…. ” आवाज कर के कालिया को बुलाया। कालिया ने फ़ौरन देखा तो ज्योति को लोहे के दरवाजे के अंदर देखा। ज्योति ने अपना हाथ बाहर निकल कर कालिया को नजदीक आने का इशारा किया।

कालिया कुछ देर तक ज्योति के हाथ को देखता ही रहा। वह शायद इस असमंजस में था की वह दरवाजे के नजदीक जाए या नहीं। उसे डर था की कहीं इन लोगों के पास कुछ हथियार तो नहीं जिनसे वह उसको मारने का प्लान कर रहे हों।

पर जब उसने देखा की ज्योति सिर्फ ब्रा और पैंटी पहने खड़ी थी तो उससे रहा नहीं गया और वह उठकर ज्योति के पास गया।

ज्योति ने अपने होँठों पर उंगली रखते हुए धीमे आवाज में कहा, “सुनो, बिलकुल आवाज मत करो। अंदर मेरे पति और कर्नल साहब गहरी नींद सो रहे हैं, आवाज से कहीं वह जाग ना जाएँ। मैं अभी उनको गहरी नींद सुला कर आयी हूँ।’

फिर कालिया को और करीब बुलाकर लोहे का दरवाजा खोले बिना अंदर से ही एकदम धीरे से बोली, “देखो, मुझे तुम बहुत पसंद हो। मुझे तुम्हारा गर्म बदन बहुत पसंद है। पुरे रास्ते में तुमने मुझे बहुत मजा कराया। तुम्हारा वह जो है ना? अरे वह…? वह बहुत बड़ा और लंबा है। मैंने रास्ते में हिलाया तो मुझे बहुत अच्छा लगा। क्या तुम मुझसे ….. करना चाहते हो? क्या तुम जो कहते थे की तुम मुझे खूब मजे कराओगे वह करा सकते हो? तुम्हारे बॉस नाराज तो नहीं हो जाएंगे? यहाँ और कोई पहरे दार तो नहीं की हम पकडे जाएंगे? मैं किसीसे नहीं कहूँगी। बोलो?”

कालिया ज्योति को हक्काबक्का देखता ही रह गया। उसकी समझ में नहीं आया की इतनी खूबसूरत लड़की कैसे उससे इतनी जल्दी पट गयी।

ज्योति ने उसके शक को दूर करने के लिए कहा, “देखो आज तक मुझे किसीने इतने बड़े लण्ड से सेक्स नहीं किया। मैं हमेशा बड़े लण्ड वाले से सेक्स करना चाहती थी। मेरे पति का लण्ड एकदम छोटा है। मुझे बिलकुल मजा नहीं आता। क्या तुम मुझे चोदोगे?” ज्योति ने तय किया की वह राक्षस सीधी बात ही समझेगा। सेक्स बगैरह शब्द वह शायद ना समझे।

कालिया का चेहरा यह सुन कर खिल उठा। उसका तो जीवन जैसे धन्य हो गया। आजतक उसने खूबसूरत औरतों को चोदने के सपने जरूर देखे थे। पर हकीकत में उसने कभी सपने में भी यह सोचा नहीं था की एक दिन ऐसी हसीना उसे सामने चलकर चुदवाने का न्यौता देगी।

कालिया ने लोहे के दरवाजे स मुंह लगा कर कहा, “देखो, तुम बाहर आ जाओ। मेरा घर बाजू में ही है। वहाँ कोई चौकीदार नहीं है। हम पिछले वाले दरवाजे से जाएंगे। यहां से जैसे निकालेंगे ना उसके बाद तुरंत बाएं में एक दरवाजा है। मेरे पास उसकी चाभी है। उसको खोलते ही मेरा घर है। हम वहाँ चलते हैं।”

ज्योति ने अंदर की और देख कर कहा, “नहीं। तुम अंदर आजाओ। बाहर कोई भी हमें देख सकता है। मेरे पति और कर्नल साहब गहरी नींद सो रहे हैं। तुम आ जाओ और मेरी भूख शांत करो।”

कालिया कुछ देर सोचता रहा तब ज्योति ने कहा, “ठीक है। लगता है तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है। तो मैं फिर सो जाती हूँ। अगर तुम मेरी चुदाई कर मेरी भूख शांत करना नहीं चाहते हो तो मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं। कल मैं तुम्हारे जनरल साहब को कहूँगी की तुमने मेरे साथ क्या क्या किया था।”

कालिया ने सोचा नेकी और पूछ पूछ? जब यह इतनी खूबसूरत औरत सामने चलकर चूदवाने का न्योता दे रही है और ऊपर से धमकी दे रही है की अगर उसको नहीं चोदा तो वह शिकायत कर देगी, तो फिर सोचना क्या? उसके पास बन्दुक तो थी ही, तो फिर अगर कुछ गड़बड़ हो गयी तो वह उनको गोली मार देगा।

यह सोच कालिया ने कहा, “ठीक है। तुम दरवाजा खोलो।“ ज्योति के लोहे के दरवाजा खोलते ही कालिया अपनी बन्दुक लेकर डरते डरते कमरे के अंदर दाखिल हुआ। कालिया ने सावधानी से चारों तरफ देखा। चारों तरफ एकदम शान्ति थी। कोई हलचल नहीं थी…

पलंग पर से दोनों मर्दों की खर्राटें सुनाई दे रही थी। दरवाजे के पास ही गद्दा बिछा हुआ था। उस गद्दे पर ज्योति सोइ होगी ऐसा कालिया ने मान लिया। उसे अँधेरे में कुछ ज्यादा साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था…
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kunal
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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अंदर आते ही कालिया ने अपनी बन्दुक दरवाजे से थोड़ी अंदर की दीवार के सहारे रक्खी और ज्योति को अपनी बाहों में लेने के लिये ज्योति की और कमरे के अंदर आगे बढ़ा।

कालिया जैसे ही ज्योति के करीब पहुंचा की सुनीलजी और सुनीलजी दोनों पलंग पर रक्खे गद्दे को लेकर कालिया पर टूट पड़े। एक ही जबर दस्त झटके में दोनों ने कालिया को गिरा दिया और गद्दे में दबोच लिया जिससे उसके मुंह से कोई आवाज निकल ना सके।

ज्योति ने फ़ौरन बन्दुक अपने हाथों में ले ली। सुनीलजी ने फ़टाफ़ट गद्दा हटाया और ज्योति के हाथों से बन्दुक लेकर कालिया की कान पट्टी पर रख कर बोले, “अगर ज़रा सी भी आवाज की तो मैं तुझे भून दूंगा। मैं हिन्दुस्तानी सेना का सिपाही हूँ और दुश्मनों को मारने में मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। तुम अगर अपनी जानकी सलामती चाहते हो तो हमें यहां से बाहर निकालो। क्या तुम हमें बाहर निकालोगे या नहीं?”

कालिया ने कर्नल साहब की और देखा। उस अँधेरे में भी उसे कर्नल साहब का विकराल चेहरा दिखाई दे रहा था। वह समझ गया की कर्नल साहब कोरी धमकी नहीं दे रहे थे। कालिया ने फ़ौरन कर्नल साहब को अपना सर हिला कर कहा, “ठीक है।”

कर्नल साहब ने कालिया की कान पट्टी पर बंदूक का तेज धक्का देकर कहा, “चलो और अपने कुत्तों को शांत करना वरना तुम्हें और उन्हें दोनों को गोली मार दूंगा।”

कालिया आगे और उसके पीछे कर्नल साहब कालिया की कान पट्टी पर बंदूक सटाये हुए और उनके पीछे सुनीलजी और ज्योति चल पड़े। वही रास्ता जो कालिया ने ज्योति को बताया था उसी रास्ते पर कालिया सबको अपने घर के पास ले गया।

अचानक दोनों हाउण्ड कर्नल साहब की गंध सूंघते ही भागते हुए वहाँ पहुंचे। कालिया ने झुक कर उन हाउण्ड का गला थपथपाया तो वह हाउण्ड वहाँ से चले गए। वह हाउण्ड कालिया को भली भाँती जानते थे।

जब कालिया ने उनका गला थपथपाया तो वह समझ गए की अब उनको कर्नल साहब की गंध के पीछे नहीं दौड़ना है। अब यह आदमी उनका दोस्त बन गया था ऐसा वह समझ गए।

हाउण्ड से निजात पाते ही कालिया उन्हें लेकर आगे की और चल पड़ा। थोड़ा चलते ही वही नदी आ गयी जिसके किनारे किनारे वह काफिला आया था।

जैसे ही सब नदी के किनारे पहुंचे, कर्नल साहब ने अचानक ही बंदूक ऊपर की और उठायी और फुर्ती से बड़े ही सटीक चौकसी से और बड़ी ताकत से कालिया को सतर्क होने का कोई मौक़ा ना देते हुए बंदूक का भारी सिरा कालिया के सर पर दे मारा।

कालिया के सर पर जैसे ही बंदूक का भारी सिरा लगा, तो कालिया चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा। कालिया की कानपट्टी से खून की धार निकल पड़ी। इतने जोर का वार कालिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। एक उलटी कर कालिया वहीँ ढेर हो गया।

सुनीलजी और ज्योति ने सुनीलजी का ऐसा भयावह रूप पहले नहीं देखा था। उनके चेहरे पर हैरानगी देख कर कर्नल साहब ने कहा, “यह लड़ाई है। यहाँ जान लेना या देना आम बात है। अगर हम ने इसको नहीं मारा होता तो वह हम को मार देता। अब हमें इसकी बॉडी को ऐसे ठिकाने लगाना है जिससे वह दुश्मन के सिपाहियों को आसानी से मिल ना सके ताकि पहले दुश्मन कालिया की बॉडी ढूंढने में अपना काफी वक्त गँवाएँ। और हमें कुछ ज्यादा वक्त मिल सके।” सुनीलजी का सोचने का तरिका सुनकर ज्योति सुनीलजी की कायल हो गयी।

सुनीलजी ने कालिया की बॉडी को टांगों से नदी की और घसीटना चालु किया। सुनीलजी भी सुनीलजी की मदद करने आ गए। दोनों ने मिलकर कालिया की बॉडी को नदी के किनारे एक ऐसी जगह ले आये जहां से उन्होंने दोनों ने मिलकर उसे उछालकर निचे नदी में फेंक दिया। नदी के पानी का बहाव पुर जोश में था। देखते ही देखते, नदी के बहाव में कालिया की बॉडी गायब हो गयी।

वैसे ही चारों और काफी अन्धेरा था। आकाश में काले घने बादल छाने लगे और बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी। आगे रास्ता साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। दिन की गर्मी की जगह अब ठंडा मौसम हो रहा था। सुनीलजी ने सुनीलजी का हाथ थामा और उनके हाथों में कालिया की बंदूक थमा दी।

सुनीलजी ने ज्योति को कहा, “ज्योति तुम सबसे आगे चलो। मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा। आखिर में सुनीलजी चलेंगे। हम सब पेड़ के साथ साथ चलेंगे और एक दूसरे के बिच में कुछ फैसला रखेंगे ताकि यदि दुश्मन की गोली का फायरिंग हो तो छुप सकें और अगर एक को लग जाए तो दुसरा सावधान हो जाए।”

फिर सुनीलजी सुनीलजी की और घूम कर बोले, “सुनीलजी अगर हमें कुछ हो जाये तो आप इस बंदूक को इस्तेमाल करने से चूकना नहीं। अब हमें बड़ी फुर्ती से भाग निकलना है। हमारे पास ज्यादा से ज्यादा सुबह के पांच बजे तक का समय है। शायद उतना समय भी ना मिले। पर सुबह होते ही सब हमें ढूंढने में लग जाएंगे। तब तक कैसे भी हमें सरहद पार कर हमारे मुल्क की सरहद में पहुँच जाना है।”

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