Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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kunal
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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सुनीलजी की चेतावनी सुनकर सुनीलजी ने अपनी बीबी ज्योति की टांगें फैलायीं और अपनी उँगलियों से ज्योति की चूत के दोनों होँठों को अलग कर अपना लण्ड ज्योति के प्रेम छिद्र पर टिकाया। ज्योति ने भी अपना हाथ अपनी टांगों के बिच हाथ डाल कर अपने पति का लण्ड अपनी उँगलियों के बिच टिकाया और अपना पेंडू ऊपर कर अपने पति को चोदने की शुरुआत करने के लिए धक्का मारने का इशारा किया।

जैसे सुनीलजी ने चुदाई की शुरुआत की तो हर एक धक्के के बाद धीरे धीरे सुनीलजी का लण्ड उनकी बीबी ज्योति की चूत में थोड़ा थोड़ा कर अंदर अपना रास्ता बनाने लगा। सुनीलजी को आज दो दो महोतरमाओं को चोदने का सुअवसर प्राप्त हो रहा था।

दोनों की चूत में भी काफी फर्क था। ज्योतिजी की चूत काफी टाइट थी। जबकि उनकी बीबी ज्योति की चूत रसीली और नरम थी जिससे उनके लण्ड अंदर घुसने में ज्यादा परेशानी नहीं होती थी। ज्योतिजी की चूत उनको लण्ड को इतना टाइट पकड़ती थी की उनका लंड कभी ज्यादा दब जाता तो कभी वह दबाव कम हो जाता था। इसके कारण ज्योति को चोदते हुए उनके जहन में काफी उत्तेजना और रोमांच फ़ैल जाता था।

ज्योति की चूत की तो बात ही कुछ और थी। रसीली और लचकदार होने के कारण उन्हें ज्योति को चोदने में खूब आनंद मिलता था। उनका लण्ड ज्योति के रस में सराबोर रहता था। पर फिर भी उनके लण्ड को ज्योति की चूत अपनी दीवारों में जकड कर रखती थी।

ज्योति को चोदने में सबसे ज्यादा मजा ज्योति के चेहरे के हावभाव देखने में सुनीलजी को मिलता था। ज्योति अपनी चुदाई करवाते समय उसमें इतनी मग्न हो जाती थी की उसे उस समय अपनी चूत में हो रहे उन्माद के अलावा कोई भी बाह्य चीज़ का ध्यान नहीं रहता था।

कोई भी मर्द को औरत को चोदते समय अगर औरत चुदाई का पूरा आनंद लेती है तो खूब मजा आता है। अगर औरत चुदाई करवाते समय खाली निष्क्रिय बन पड़ी रहती है तो मर्द का आनंद भी कम हो जाता है। ज्योति चुदाई करवाते समय यह शेरनी की तरह दहाड़ने लगती थी। उसके पुरे बदन में चुदाई की उत्तेजना फ़ैल जाती थी।

जब एक मर्द एक औरत चोदता है और उस चुदाई को औरत एन्जॉय करती है तो मर्द को बहुत ज्यादा आनंद होता है। अक्सर हर मर्द की यह तमन्ना होती है की औरत भी उस चुदाई का पूरा आनंद ले। चोदते समय अगर औरत चुदाई का आनंद लेती है लेती है और उस उत्तेजना का आनंद जब औरत के चेहरे पर दिखता है तो मर्द का चोदने का आनंद दुगुना हो जाता है। क्यूंकि मर्द को तब अपनी चुदाई सार्थक हुईं नजर आती है।

ज्योति में वह ख़ास खूबी थी। सुनीलजी जब जब भी ज्योति को चोदते थे तब ज्योति के चेहरे पर उन्माद और उत्तेजना का ऐसा जबरदस्त भाव छा जाता था की सुनीलजी का आनंद कई गुना बढ़ जाता था। उनका पुरुषत्व इस भाव से पूरा संतुष्ट होता था। उन्हें महसूस होता था की वह अपनी चुदाई करने की कला से अपने साथीदार को (ज्योति को) कितना अद्भुत आनंद दे पा रहे हैं। अक्सर कई औरतें अपने मन के भाव प्रकट नहीं करतीं और पुरुष बेचारा यह समझ नहीं पाता की वह अपनी औरत को वह आनंद दे पाता है या नहीं।

ज्योतिजी की कराहटों से कमरा गूंजने लगा। जिस तरह ज्योतिजी कराह रहीं थीं यह साफ़ था की वह अपनी चरम पर पहुँच रहीं थीं। फिर उसमें सुनीलजी की भी आवाज जुड़ गयी। सुनीलजी ज्योति के दोनों स्तनों को कस के पकड़ कर अपनी भौंहें सिकुड़ कर ज्योतिजी की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए बोलने लगे, “ज्योति, आह्हः… क्या बढ़िया पकड़ के रखती हो…. आह्हः…. ओह्ह्ह….” करते हुए सुनीलजी के लण्ड से ज्योति जी की चूत की गुफा में जोरदार फ़व्वार्रा छूट पड़ा।

उसके साथ साथ ज्योति के मुंह से भी हलकी सी चीख निकल पड़ी। “सुनीलजी, कमाल है! क्या चोदते हो आप। ओह्ह्ह… आअह्ह्ह…. बापरे……”

कुछ ही देर में दोनों मियाँ बीबी पलंग पर निढाल होकर गिर पड़े। ज्योति ने देखा की सुनीलजी का वीर्य ज्योतिजी की चूत से बाहर निकल रहा था। सुनीलजी के वीर्य की तादाद इतनी ज्यादा थी की ज्योतिजी की चूत इतना ज्यादा वीर्य समा नहीं पायी। ज्योति की जान हथेली में आ गयी। अगर सुनीलजी को कभी ज्योति को चोदने का अवसर मिल गया तो जरूर इतने ज्यादा वीर्य से वह ज्योति को गर्भवती बना सकते हैं।

उधर सुनीलजी ज्योति की चूत में अपना लण्ड पेलने में लगे हुए थे। सुनीलजी ने ज्योति को चद्दर के अंदर ढक कर रखा हुआ था। खुद सारे कपडे निकाल कर ज्योति का गाउन भी निकाल कर दो नंगे बदन एक दूसरे को आनंद देने में लगे हुए थे। ज्योति अपने पति को ज्योतिजी से कुछ ज्यादा आनंद दे सके इस फिराक में थी। उसे पता था की उसी दोपहर को पति सुनीलजी ने कस के ज्योतिजी की चुदाई की थी।

सुनीलजी ने ज्योति को चोदने की रफ़्तार बढ़ाई। ज्योति के चेहरे पर बदलते हुए भाव देखते ही सुनीलजी का जोश बढ़ने लगा। सुनीलजी के जोर जोर से धक्के मारने के कारण ऊपर की चद्दर खिसक गयी और ज्योति और सुनील ज्योतिजी और सुनीलजी के सामने नंगे चुदाई करते हुए दिखाई दिए। ज्योति की आँखें बंद थीं उसे नहीं पता था की वह सुनीलजी को नंगी सुनीलजी से चुदवाती दिख रहीं थीं। ज्योति को पहली बार बिलकुल नंग धडंग देख कर सुनीलजी देखते ही रह गए।

ज्योति की चुन्चियाँ दबी हुई होने के कारण पूरी तरह साफ़ दिख नहीं रहीं थीं। ज्योति की कमर का घुमाव और उसके सपाट सतह के निचे सुनीलजी के बदन से ढकी हुई ज्योति की चूत देखने को सुनीलजी बेताब हो रहे थे।

ज्योति की सुडौल नंगीं जांघें इतनी खूबसूरत नजर आ रहीं थीं की बस! सुनीलजी ने गहरी साँस लेते हुए लाचारी में अपनी नजर ज्योति के नंगे बदन से हटाई।

सुनीलजी की तेज रफ़्तार से पेंडू उठाकर मुकाबला कर रही ज्योति को कहाँ पता था की उसे चुदवाने का नजारा सुनीलजी और ज्योतिजी बड़े प्यारसे ले रहे थे? सुनीलजी जब वीर्य छोड़ने के कगार पर पहुँचने वाले ही थे ज्योति की आँखें खुलीं और उसने देखा की उनको ढक रही चद्दर हट चुकी थी और वह और उसके पति के नंगे बदन और उनकी चुदाई सुनीलजी और ज्योतिजी प्यार से देख रहे थे।

ज्योति को उस समय कोई लज्जा या छोटापन का भाव नहीं महसूस हुआ। आखिर चुदाई करना औरत और मर्द का धर्म है। भगवान् ने खुद यह भाव हम सब में दिया है।

औरत के बगैर मर्द कैसे रह सकता है? दुनिया को चलाने के लिए औरत का होना अनिवार्य है। अपने पसंदीदा मर्द से चुदवाना औरत के लिए सौभाग्य की बात है।

ज्योति ने भी हिम्मत कर के ज्योतिजी और सुनीलजी की आँख से आँख मिलाई और मुस्कुरा दी। यह पहला मौका था जब ज्योति ने चुदाई को इतना सहज रूप में स्वीकार किया था। सुनीलजी ने आँख मार कर ज्योति को प्रोत्साहन दिया की चिंता की कोई बात नहीं थी।

इससे ज्योति को यह सन्देश भी मिला की सुनीलजी ज्योति की चुदाई करवाते हुए देख कर भी उतनी ही इज्जत करते थे जितनी की पहले करते थे। ज्योतिजी जो की अपनी खुद की चुदाई करवाके निढाल पड़ी हुई थीं, उन्होंने भी उड़ती हुई किस देकर ज्योति की खुल्लमखुल्ला चुदाई को सलाम किया।

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सुनीलजी से चुदवाते हुए भी ज्योति को जंगली कुत्तों की दहाड़ने की डरावनी आवाजें सुनाई देती थीं। ज्योति ने जब सुनीलजी से इसके बारे में पूछा तो सुनीलजी ने सुनीलजी से हुई बात के बारे में ज्योति को बताया।

सुनीलजी ने कहा, “सुनीलजी को शंका है की दुश्मन या आतंकवादियों के जंगली कुत्ते जिनको इंग्लिश में हाउण्ड कहते हैं उनको कुछ ख़ास काम के लिए तैनात किया हो, ऐसा हो सकता है। सुनीलजी को आशंका थी की हो सकता है की अगले दो या तीन दिनों में कुछ ना कुछ दुर्घटना हो सकती है…

पर मुझे लगता है की सुनीलजी इस बात को शायद थोड़ा ज्यादा ही तूल दे रहे हैं। मुझे नहीं लगता की दुश्मन में इतनी हिम्मत है की हमारी ही सरहद में घुसकर हमारे ही बन्दों को कैदी बनाने का सोच भी सके। यह आवाज जंगली भेड़ियों की भी हो सकती है।”

सुनीलजी की बात से सेहमी हुई ज्योति बिना कुछ बोले सुनीलजी के एक के बाद एक धक्के झेलती रही। सुनीलजी ने ज्योति की टांगें अपने कंधे पर रखी हुई थी। गाँड़ के निचे रखे तकिये के कारण ज्योति की प्यारी चूत थोड़ी सी ऊपर उठी हुई थी जिससे सुनीलजी का लंड बिलकुल उनकी बीबी ज्योति की चूत के द्वार के सामने रहे और पूरा का पूरा लण्ड ज्योति की चूत में घुसे।

सुनीलजी धीमी रफ़्तार से ज्योति की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहे थे। रफ़्तार जरूर धीमी थी पर धक्का इतना तगड़ा होता था की उनका पूरा पलंग समेत ज्योति का पूरा बदन धक्के से हिल जाता था।

ज्योति के भरे हुए बूब्स सुनीलजी के लगाए हुए धक्के के कारण हवा में उछल जाते और फिर जब सुनीलजी का लण्ड चूत के सिरे तक चला जाता और एक पल के लिए रुक जाते तो वापस गिर् कर अपना आकार ले लेते। कामोत्तेजना के कारण ज्योति की निप्पलेँ पूरी तरह से फूली हुई थीं।

निप्पलेँ थोड़े ऊपर उठे हुए फुंसियों से भरी हुई हलकी सी चॉकलेटी रंग की गोल आकार वाली एरोलाओं पर ऐसी लग रहीं थीं जैसे एक छोटा सा डंडा मनी प्लाँट को टिकाने के लिए माली लोग रखते हैं।

सुनीलजी ने अपनी बीबी के उछलते हुए स्तनों को देखा तो उस पर टिकी हुई निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचकाते हुए उत्तेजित हो गए और ज्योति के दोनों स्तनोँ को जोर से दबा कर धक्के मार कर चुदाई का पूरा मजा लेने में जुट गए।

ज्योति और सुनीलजी सुनील और ज्योति की चुदाई का साक्षात दृश्य पहली बार देख रहे थे। हकीकत में ऐसा कम ही होता है की आपको किसी और कपल की चुदाई का दृश्य देखने को मिले।

हालांकि उनको सुनीलजी का लण्ड और ज्योति की चूत इतनी दूर से ठीक से दिख नहीं रही थी पर जो कुछ भी अच्छी तरह से दिख रहा था वह वाकई में देखने लायक था। सुनीलजी ने भी देखा की खास तौर से ज्योतिजी ज्योति की चुदाई बड़े ध्यान से देख रही थी।

शायद वह यह देखना चाहती हो की सुनीलजी अपनी बीबी की चुदाई भी वैसे ही कर रहे थे जैसे की सुनीलजी ने कुछ ही घन्टों पहले ज्योति की की थी। यह तो स्त्री सुलभ इर्षा का विषय था। कहते हैं ना की “भला तुम्हारी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफ़ेद कैसे?”

जाहिर है ज्योति की चूत की पूरी नाली में चुदाई के कारण हो रहे कामुक घर्षण से ज्योति को अद्भुत सा उन्माद होना चाहिए था। पर सुनीलजी की बात सुनकर उसका मन कहीं और उड़ रहा था। वह जाँबाज़ सुनीलजी को मन ही मन याद कर रही थी।

हालांकि सुनीलजी का लण्ड सुनीलजी के लण्ड से उन्नीस बिस हो सकता है, पर काश उस समय वह लण्ड सुनीलजी का होता जिससे सुनीलजी चोद रहे थे ऐसी एक ललक भरी कल्पना ज्योति की चूत में आग लगा रही थी।

सुनीलजी के बदन की अकड़न से अपने पति का वीर्य छूटने वाला था यह ज्योति जान गयी। उसे भी तो अपना पानी छोड़ना था। वह अपने पति सुनीलजी के ऊपर चढ़ कर सुनीलजी को चोदना चाहती थी जिससे वह भी फ़ौरन अपने पति के साथ झड़ कर अपना पानी छोड़ सके। पर उसे डर था की उधर सुनीलजी उसे चुदाई करते हुए देख लेंगे।

एक होता है औरत को नंगी देखना। दुसरा होता है किसी नंगी औरत की चुदाई होते हुए देखना। दोनों में अंतर होता है। और यहां तो ज्योति सुनीलजी को चौदेगी। वह तो एक और भी अनूठी बात हो जाती है।

ज्योति का शर्माना जायज था। फिर भी ज्योति ने अपने पति से हिचकिचाते हुए धीरे से कहा, “ऐसा लगता है की तुम्हारा अब छूटने वाला है। थोड़ा रुको। मुझे भी तो मौका दो।”

सुनीलजी ने फ़ौरन कहा, “आ जाओ। मेरे पर चढ़ कर मुझे चोदो। दिखादो सबको की सिर्फ मर्द ही औरत को चोदता है ऐसा नहीं है, औरत भी मर्द को चोद सकती है।”

ज्योति जब हिचकिचाने लगी तब सुनीलजी ने कहा, “यही तो कमी है औरतों में। मर्दों के साफ़ साफ़ आग्रह करने पर भी औरतें अपनी सीमा से बाहर नहीं आतीं। फिर कहतीं हैं मर्द जात ने उन को दबा रखा है? यह कहाँ का न्याय है?”

ज्योति ने जब यह सूना तो उसे जोश आया। वह चद्दर फेंक कर बैठ खड़ी हुई और अपने दोनों घुटनें अपने पति की दोनों टाँगों के बाहर की तरफ रख अपने घुटनों पर अपना वजन लेते हुए सुनीलजी के ऊपर चढ़ बैठी।

सुनीलजी ने जब ज्योति को बिस्तर में अपने पति से चुदाई करवाती पोजीशन में से उठ कर अपने पति को चोदने के लिए पति के ऊपर चढ़ते हुए देखा तो वह ज्योति की हिम्मत देख कर दंग रह गए। पहली बार उन्होंने उस रात अपनी रातों नींद हराम करने वाली चेली को पूरा नंगी देखा।

ज्योति के अल्लड़ स्तन उठे हुए जैसे सुनीलजी को पुकार रहे थे की “आओ और मुझे मसल दो।”

ज्योति की पतली कमर और बैठा हुआ पेट का हिस्सा और उसके बिलकुल निचे ज्योति की चूत की झांटों की झांकी सुनीलजी देखते ही रह गए। अपनी प्रियतमा को उसके ही पति को चोदते देख उन्हें सीने में टीस सी उठी। पर क्या करे?

ज्योति ने अपने पति का लण्ड अपनी चूत में डाल कर ऊपर से बड़े प्यार से अपने पति को चोदना शुरू किया। उसका ध्यान सिर्फ अपनी चूत में घुसे हुए सुनीलजी के लण्ड का ही था।

हालांकि लण्ड उसके पति का ही था पर ज्योति की एक परिकल्पना थी की जैसे वह लण्ड सुनीलजी का था जिसे वह अपनी चूत में घुसा कर चोद रही थी। इस कल्पना मात्र से ही उसकी चूत में से उसका रस जोरशोर से रिस ने लगा और जल्द ही वह अपने चरम के कगार पर जा पहुंची।

कुछ ही मिनटों में सुनीलजी और ज्योति एक साथ झड़ गए। ज्योति के मुंह से सिसकारी निकली जो उसके चरम की उत्तेजना को दर्शाता था। सुनीलजी के मुंहसे “आहह…” निकल पड़ी।

दोनों मियाँ बीबी झड़ने के बाद ढेर हो गए। ज्योति जैसे अपने पति पर घुड़सवारी कर बैठी थी वैसी ही अपने पति का लण्ड अपनी चूत में रखे हुए उनपर लुढ़क पड़ी।

कुछ देर तक पति के ऊपर पड़ी रहने के बाद, चुदाई से थकी हुई ज्योति ऊपर से हट कर पति के बाजु में जाकर गहरी नींद सो गयी। उसके सपने में सारी रात जंगली कुत्तों के चीखने की आवाजें ही सुनाई दे रहीं थीं।

सुबह चार बजे ही सुनीलजी का पहाड़ी आवाज सारे हॉल में गूंज उठा। वह निढाल सो रहे सुनीलजी और ज्योति पर चिल्ला रहे थे। “अरे सुनीलजी उठिये! ४ बजने वाले हैं। देखिये अब हमें सेना के टाइम टेबल के हिसाब से चलना पडेगा। रात को आपको जो भी करना हो उसे जल्द निपटा कर सोना पडेगा। ऐसे देर तक लगे रहोगे तो जल्दी उठ नहीं पाओगे।”

सुनीलजी की दहाड़ सुनकर ज्योति और सुनीलजी चौंक कर जाग उठे। ज्योति अपने कपडे पहनना तक भूल गयी थी। जैसे ही उसने सुनीलजी की दहाड़ सुनी ज्योति ने बिस्तरे में ही कम्बल अपनी छाती के ऊपर तक खिंच लिया और बैठ गयी।

सुनीलजी हमेशा की तरह सुबह बड़ी जल्दी उठ कर तैयार हो कर अपने सुसज्जित सेना के यूनिफार्म में आकर्षित लग रहे थे। ज्योति खड़ी होने की स्थिति में नहीं थी। वह कम्बल के निचे नंगी थी। देर रात तक चुदाई कराने के बाद उसे कपडे पहनने का होश ही नहीं रहा था।

सुनीलजी ने पजामा पहन लिया था सो कूद कर खड़े हो गए और बाथरूम की और भागे। सुनीलजी ने ज्योति को देखा और कुछ बोलने लगे थे पर फिर चुप हो गए और घूम कर कैंप के दफ्तर की और चलते बने। जैसे ही सुनीलजी आँखों से ओझल हुए की ज्योति ने भाग कर बाहर का दरवाजा बंद किया और फ़टाफ़ट अपना गाउन पहन लिया।

ज्योतिजी वाशरूम में थीं। वह जानती थी की जब सुनीलजी के साथ आर्मी से सम्बंधित कोई प्रोग्राम होता है तो वह देर बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते।

ज्योति ने अपने कपडे तैयार किये और सुनीलजी के बाहर आने का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में तीनों: ज्योतिजी, सुनीलजी और ज्योति कैंप के मैदान में कसरत के लिए पहुंच गए।

सब लोग कतार में लग गए। सुनीलजी कहीं नजर नहीं आ रहे थे। प्राथमिक कसरतें करने के बाद सब को दरी पर बैठने को कहा गया। जो उम्र में बड़े थे उनके लिए कुछ कुर्सियां रखीं हुई थीं।

सब के बैठने के बाद कर्नल सुनीलजी भी वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने सब को आंतांकियों की गतिविधियों के बारेमें कहा और सबको सतर्क रहने की चेतावनी भी दी। यदि कोई सूरत में किसी का आतंकवादियों से या उनकी हरकतों से सामना होता है तो कैसे आतंकवादियों से मुकाबला किया जा सकता है उसके बारे में भी उन्होंने कुछ जरुरी हिदायतें दीं।

सबको कैंटीन में नाश्ते के लिए कहा गया। नाश्ते की समय सीमा 30 ममिनट दी गयी। सब ने फ़टाफ़ट नाश्ता किया। अगला कार्यक्रम था पहाड़ो में ट्रैकिंग करना।

याने पहाडोंमें उबड़ खाबड़ लंबा रास्ता लकड़ी के सहारे चल कर तय करना। करीब दस किलोमीटर दूर एक आर्मी का छोटा सा कैंप बना हुआ था जहां दुपहर के खाने की व्यवस्था थी। सबको वहाँ पहुँचना था।

ज्योति ने सिल्हटों वाली फ्रॉक पहनी थी। उस में ज्योति की करारी जाँघें कमाल की दिख रहीं थीं। फ्रॉक घुटनोँ से थोड़ी सी ऊपर तक थीं। देखने में वह बिलकुल अश्लील नहीं लग रही थी। ऊपर ज्योति ने सफ़ेद रंग का ब्लाउज पहना था और अंदर सफ़ेद रंग की ब्रा थी।

उसका परिवेश निहायत ही साधारण सा था पर उसमें भी ज्योति का यौवन और रूप निखार रहा था। ज्योति की गाँड़ का घुमाव और स्तनोँ का उभार लण्ड खड़ा कर देने वाला था।

ज्योतिजी ने कुछ लम्बी सी काप्री पहन राखी थी। घुटनों से काफी निचे पर यदि से काफी ऊपर वह काप्री में ज्योतिजी की घुमावदार गोल गाँड़ का घुमाव सुहावना लग रहा था।

ऊपर ज्योतिजी ने मर्दों वाला शर्ट कमीज पहन रखा था। उस शर्ट में भी उनके स्तनोँ का उभार जरासा भी छुप नहीं रहा था। दोनों कामिनियाँ ज्योतिजी और ज्योति गजब की कामिनी लग रहीं थीं। जब वह मैदान में पहुंचीं तो सबकी आँखें उन दोनों की चूँचियाँ और गाँड़ पर टिक गयीं थीं।

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कैंटीन में ज्योति और ज्योतिजी की मुलाक़ात नीतू से हुई। उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना साहब कहीं नजर नहीं आ रहे थे। नीतू ने घुटनों तक पहुंचता हुआ स्कर्ट पहना था।

उसकी करारी जाँघें खूबसूरत और सेक्सी लग रहीं थीं। ऊपर उसने सिलवटों वाला छोटी बाँहों वाला टॉप पहना था। टॉप पीछे से खुला था जो एक पतली सी डोर से बंधा था।

पीछे से नीतू की ब्रा की पट्टी साफ़ दिख रही थी। नीतू के अल्लड़ स्तन उसके छोटे से टॉप में समा नहीं रहे थे और उसके टॉप में से उभर कर बाहर आने की भरसक कोशिश में लगे हुए दिख रहे थे।

लम्बी और गोरी नीतू अपने गदराते हुए बदन के कारण हर जवान मर्द के लण्ड को जैसे चुनौती दे रही थी। नीतू ने कपाल पर टिका लगा रखा था जो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था।

“हेलो, हाई” होने के बाद ज्योति ने चुपके से जब नीतू के कान में कप्तान कुमार के बारे में कुछ पूछा तो नीतू थोड़ा शर्मायी और बोली की उसे कुमार के बारेमें कुछ भी पता नहीं था।

कुमार से उसकी मुलकात सिर्फ पिछली शामको हुई थी उसके बाद पता नहीं वह कहाँ चले गए थे। ज्योति ने नीतू की कान में कुछ और भी बताया जिसके कारण शर्म के मारे नीतू का मुंह लाल लाल हो गया। ज्योतिजी ने यह देखा पर कुछ ना बोली।

कुछ ही देर में वहाँ कुमार और ब्रिगेडियर साहब हाजिर हुए। शायद हॉल के बाहर ही वह दोनों मिल गए थे और ब्रिगेडियर साहब कप्तान कुमार की कमर में हाथ डाले उन्हें साथ लेकर अपनी बीबी नीतू के सामने आकर खड़े हुए।

नीतू के पास पहुँचते ही खन्ना साहब ने कुमार से कहा, “कुमार साहब, मैं ज्यादा चल नहीं पाउँगा इस लिए इस टेक्किंग में मैं आ नहीं पाउँगा। मैं चाहता हूँ की आप युवा लोग इस ट्रैकिंग में जाएं और खूब मौज करें। मेरी ख्वाहिश है की आप नीतू के साथ ही रहें और उसका ध्यान रखें। अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा।”

कप्तान कुमार ने झुक कर खन्ना साहब का अभिवादन किया और उनकी बात को स्वीकार कर नीतू की जिम्मेदारी लेने का वादा किया। सब ट्रैकिंग में जाने के लिए तैयार हो गए थे।

कर्नल जसवंत सिंह का इंतजार था, सो कुछ ही देर में वह भी आ पहुंचे और सुबह के ठीक छह बजे सब वहाँ से ट्रैकिंग में जाने के लिए निकल पड़े।

ज्योतिजी ने देखा की ज्योति ने नीतू को आँख मार कर कुछ इशारा किया जिसे देख कर नीतू शर्मा गयी और मुस्कुरा दी।

ज्योति जी ने ज्योति को कोहनी मार कर धीरे से पूछा, “क्या बात है ज्योति? तुम्हारे और नीतू के बिच में क्या खिचड़ी पक रही है?”

ज्योति ने शरारत भरी आँखों से ज्योतिजी की और देखते हुए, “दीदी हमारे बिच में कोई खिचड़ी नहीं पक रही। मैंने उसे कहा, ट्रैन में जो ना हो सका वह आज हो सकता है। क्या वह तैयार है?”

ज्योतिजी ने ज्योति की और आश्चर्य से देखा और पूछा, “फिर नीतू ने क्या कहा?”

ज्योति ने हाथ फैलाते हुए ज्योतिजी के प्रति अपनी निराशा जताते हुए कहा, “दीदी आप भी कमाल हो! भला कोई हिन्दुस्तांनी औरत ऐसी बात का कोई जवाब देगी क्या? क्या वह हाँ थोड़े ही कहेगी? वह मुस्कुरादी। बस यही उसका जवाब था।”

ज्योति ने आगे बढ़कर ज्योति के कान पकडे और बोली, “मैं समझती थी तू बड़ी सीधी सादी और भोली है। पर बाप रे बाप! तु तो मुझसे भी ज्यादा चंट निकली!”

ज्योति ने नकली अंदाज में जैसे कान में दर्द हो रहा हो ऐसे चीख कर धीरे से बोली, “दीदी मैं चेली तो आपकी ही हूँ ना?”

कर्नल जसवंत सिंह (सुनीलजी) ने सबसे मार्किंग की गयी पगदंडी (छोटा चलने लायक रास्ता) पर आगे बढ़ने के लिए कहा।

एक जवान को सबसे आगे रखा और कप्तान कुमार और नीतू को उनके पीछे चलने को कहा। सब को हिदायत दी गयी की सब की अपनी सुरक्षा के लिए के लिए वह निश्चित किये गए रास्ते (पगदंडी) पर ही चलें।

पहाड़ों की चढ़ाई पहले तो आसान लग रही थी पर धीरे धीरे थोड़ी कठिन होती जा रही थी। सबसे आगे एक जवान लेफ्टिनेंट थे। उनकी जिम्मेवारी थी की आगे से सबका ध्यान रखे। उसके फ़ौरन बाद नीतू और कुमार थे।

नीतू फुर्ती से दौड़ कर कुमार को चुनौती देती हुई आगे भागती और कुमार उसके पीछे भाग कर उसको पकड़ लेते। सुनीलजी और ज्योति, नीतू और कुमार की अठखेलियां देखते हुए एक दूसरे की और मुस्कराते हुए तेजी से उनके पीछे चल रहे थे।

आखिर में ज्योतिजी और सुनीलजी चल रहे थे। सुनीलजी को चलने की ख़ास आदत नहीं थी इस के कारण वह धीरे धोरे पत्थरों से बचते हुए चल रहे थे।

ज्योतिजी उनका साथ दे रही थी। नौ में से सिर्फ सात बचे थे। दो यात्री में से एक ब्रिगेडियर साहब और एक और उम्र दराज साहब ने टेक्किंग में नहीं जाने का फैसला लिया था वह बेस कैंप पर ही रुक गए थे।

रास्ते में जगह जगह दिशा सूचक चिह्न लगे हुए थे जिससे ऊपर के कैंप की दिशा की सुचना मिलती रहती थी। खूबसूरत वादियों और नज़ारे चारों और देखने को मिलते थे।

ज्योति इन नजारों को देखते हुए कई जगह इतनी खो जाती थी उन्हें देखने के लिए वह रुक जाती थी, जिसके कारण सुनीलजी को भी रुक जाना पड़ता था। सब से आगे चल रहा जवान काफी तेजी से चल रहा था और शायद काफिले से ज्यादा ही आगे निकल गया था।

रास्ते में एक खूबसूरत नजारा दिखा जिसे देख कर नीतू रुक गयी और कुमार से बोली, “कप्तान साहब, सॉरी, कुमार! देखो तो! कितना खूब सूरत नजारा है? वह दूर के बर्फीले पहाड़ से गिर रहा यह छोटी सी युवा कन्या सा यह झरना कैसे कील कील करता हुआ अल्लड़ मस्ती में बह रहा है? और पानीकी धुंद के कारण चारों तरफ कैसे बादल से छाये हुए हैं? लगता है जैसे आसमान अपनी प्रियतमा जमीन को चूम रहा हो।”

कुमार ने नीतू के हाथों में अपना हाथ देते हुए कहा, “नीतू ज़रा बताओ तो, आसमान अपनी प्रीतमा धरती को कैसे चूम रहा है?”

नीतू ने कुछ शर्माते हुए कहा, “मुझे क्या पता? तुम्हीं बताओ.”

कुमार ने नीतू के गालों पर हल्का सा चुम्बन लेते हुए कहा, “ऐसे?”

नीतू ने कहा, “भला कोई अपनी प्रियतमा को ऐसे थोड़े ही चुम्बन करता है?”

कुमार ने पूछा, “तो बताओ ना? फिर कैसे करता है?”

नीतू ने कहा, “मैं क्यों बताऊँ? क्या तुम नहीं बता सकते?”

कुमार ने हँस कर एक ही झटके में नीतू को अपनी बाँहों में भरकर उसके लाल लाल चमकते होँठों पर अपने होँठ रख दिए और एक हाथ नीचा कर नीतू की छाती पर हलके से रखते हुए शर्म के मारे लाल हो रही नीतू को जोर से चूमने और उसकी चूँचियों को टॉप के ऊपर से ही मसलने में लग गए।

अफ़रातफरीमें नीतू ने कुमार के हाथ अपनी छाती पर से हटा दिए और बोली, “शर्म करो! हमारे पीछे कर्नल साहब आ रहे हैं। अगर हम यही रास्ते पर चलते रहे तो वह जल्द ही यहां पहुँच जाएंगे।”

कुमार ने निराशा भरे अंदाज में कहा, “तो फिर क्या करें? कहाँ जाएं?”

नीतू ने बहते हुए झरने की और इशारा करते हुए कहा, “हम इस पहाड़ी वाले रास्ते से थोड़ा निचे उतर जाते हैं। वहाँ थोड़ी सी खाई जैसा दिख रहा है ना? वहाँ चलते हैं। वहाँ से नजारा भी अच्छा देखने को मिलगा और हमें कोई देखेगा भी नहीं और कोई दखल भी नहीं देगा।”

कुमार ने हिचकिचाते हुए कहा, “पर सेना के नियम के अनुसार हम इस रास्ते से अलग नहीं चल सकते।”

नीतू ने मुस्कराते हुए कहा, “अच्छा जनाब? क्या आप सब काम नियम के अनुसार ही करेंगे? क्या हम जो कर रहे हैं, नियम के अनुसार है?”

कुमार ने असहायता दिखाते हुए अपने हाथ खड़े कर कहा,”हे भगवान्! इन औरतों से बचाये! ठीक है भाई। चलो, वहीँ चलते हैं।”

नीतू ने शरारत भरी नज़रों से कुमार की और देखते हुए कहा, “अच्छा? लगता है जनाब का काफी औरतों से पाला पड़ा है?”

कुमार ने उसी अंदाज में कहा, “भाई एक ही औरत काफी है। ज्यादा को तो मैं सम्हाल ही नहीं पाउँगा।” ऐसा कह कर नीतू का हाथ कस के पकड़ कर कुमार भाग कर मुख्य रास्ते से निचे उतर गए और निचे की और एक गुफा जैसा बना हुआ था वहाँ एक बड़े पत्थर के पीछे जा पहुंचे।

वहाँ पहुँच कर कुमार ने कस कर नीतू को अपनी बाँहों में दबोच लिया और उसके होँठों पर दबा कर अपने होँठ रख दिए। दोनों एक शिला का टेक लेकर खड़े एक दूसरे का रस चूसने में लग गए।

नीतू के मुंहमें कुमार ने अपनी जीभ डाल दी। नीतू कुमार की जिह्वा को चूसकर उसकी लार निगलती गयी। कुमार नीतू के रसीले होँठों का सारा रस चूस कर जैसे अपनी प्यास तृप्त करना चाहता था।

पिछले दो तीन दिनों से कुमार इन होँठों को चूमने और चूसने के सपने दिन रात देखता रहता था। आज वही होँठ उसकी प्यास बुझाने के लिए उसके सामने अपने आप प्रस्तुत हो रहे थे।

कुमार का एक हाथ नीतू ने गर्व से उन्मत्त कड़क स्तनोँ को उसके टॉप के ऊपर से मसलने में लगा था। इन अल्लड़ मद मस्त स्तनोँ ने कुमार की रातों की नींद हराम कर रखी थी।

कुमार इन स्तनोँ को दबाने, मसलने और चूसने के लिए बेताब था। वह उन पर अपना सर मलना चाहता था वह उन स्तनों पर मंडित प्यारी निप्पलों को चूमना, चूसना और काटना चाहता था।

उधर नीतू कुमार से मिलकर उससे मिलन कर अपने जीवन की सबसे प्यारी पलों को भोगना चाहती थी। उसने उस से पहले कभी किसी युवा से सम्भोग नहीं किया था।
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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नीतू ने सिर्फ ब्रिगेडियर साहब से कुछ सालों पहले सेक्स किया था। उसे याद भी नहीं था की वह उसे वह उसे कैसा लगा था। नीतू भूल चुकी थी की जवानी क्या होती है और बदन की भूख क्या होती है।

कुमार से मिलने पर जो नीतू को महसूस हुआ वह उससे पहले उसे कभी महसूस नहीं हुआ था। नीतू ने अपनी चूत में सरसराहट और गीलापन काफी समय के बाद या शायद पहली बार महसूस किया था।

कुमार और नीतू के पीछे चल रहे सुनीलजी ने अचानक ही नीतू और कुमार को मुख्य पगदंडी से हट कर निचे झरने के करीब कंदराओं की और जाते हुए देखा तो वह जोर से चिल्लाकर उन्हें सावधान करना चाहते थे की ऐसा करना काफी खतरनाक हो सकता था।

पर उनके जोर से चिल्लाने पर भी उनकी की आवाज कुमार और नीतू के कानों तक पहुँच ना सकी। नदी के पानी के तेज बहाव की कलकलाहट के शोर में भला उनकी आवाज वह दो तेजी से धड़कते दिल और सुलगते बदन कहाँ सुनने वाले थे?

सुनीलजी वहीँ रुक गए। उन्होंने पीछ चल रही ज्योति की और देखा। तेज चढ़ाई चढ़ते हुए कदम कदम पर ज्योति का फ्रॉक उसकी जाँघों तक चढ़ जाता था।

जब ज्योति आगे की और झुकती तो उसके ब्लाउज के पीछे छिपे हुए उसके अल्लड़ स्तनोँ के काफी बड़े हिस्सों की झांकी हो जाती थी। सुनीलजी रुक गए और जैसे ही ज्योति करीब आयी, सुनीलजी ने ज्योति का हाथ थामा और उसे ऊपर चढ़ाई चढ़ने में मदद की।

सर्दी के बावजूद, ज्योति के गुलाबी चेहरे पर पसीने की नदियाँ सी बह रहीं थीं।

सुनीलजी ने ज्योति को कहा, “ज्योति, मैंने अभी वहाँ दूर कुमार और नीतू को पगदंडी से हट कर निचे नदी की और जाते हुए देखा है। वह लोग मुख्य रास्ता छोड़ कर उस तरफ क्यों गए? क्या उन्हें पता नहीं है की ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है? अब हम क्या करें?”

ज्योति सुनीलजी की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, “तो? तो क्या हुआ? सुनीलजी, क्या आप को दो धड़कते दिलों की आवाज नीतू और कुमार में सुनाई नहीं दी? यह तो होना ही था।”

सुनीलजी ज्योति की बात समझ नहीं पाए और अचम्भे से ज्योति की और देखते रह गए। तब ज्योति ने सुनीलजी की नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा, “मेरे बुद्धू सुनीलजी! आप कुछ नहीं समझते। अरे भाई नीतू और कुमार हम उम्र होने के बजाय एक दूसरे से काफी आकर्षित हैं? क्या आपने उनकी आँखों में बसा प्यार नहीं देखा?”

सुनीलजी की आँखें यह सुनकर फटी की फटी ही रह गयीं। वह बोल पड़े, “क्या? पर नीतू तो शादीशुदा है?”

ज्योति से हँसी रोकी नहीं जा रही थी। वह बोली, ” हम दोनों भी तो शादीशुदा हैं? तो क्या हम दोनों…..” यह बोल कर ज्योति अचानक चुप हो गयी। उसे ध्यानआया की कहीं इधरउधर बोल देने से सुनीलजी आहत ना हों। ज्योति सुनीलजी के घाव पर नमक छिड़कने का काम ज्योति नहीं करना चाहती थी।

सुनीलजी ने कहा, “इस कदर इस जंगल में अकेले इधर उधर घूमना ठीक नहीं।”

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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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ज्योति ने सुनीलजी का हाथ थाम कर दबाया और बोली, “यह यूनिफार्म पहन कर आप को क्या हो जाता है? अचानक आप इतने बदल कैसे जाते हो? और आपने अपने पीछे यह बैकपैक में क्या रखा हुआ है?”

सुनीलजी ने ज्योति की और आश्चर्य से देखा और बोले, “कैसे? मैं कहाँ बदला हूँ? पीछे मेरे बैकपैक में कुछ जरुरी सामान रखा हुआ है।”

ज्योति ने हँस कर कहा, “एक जवान मर्द और एक जवान खूबसूरत औरत मुख्य मार्ग छोड़कर जहां कोई नहीं हो ऐसी जगह भला क्यों जाएंगे? उस बात को समझ कर एन्जॉय करने के बजाय आप खतरे की बात कर रहे हो? अगर ख़तरा वहाँ हो सकता है, तो खतरा यहां भी तो हो सकता है?”

सुनीलजी ने कहा, “ज्योति, तुम नहीं जानती। पिछले दो तीन दिनों में इस एरिया में कुछ आशंका जनक घटनाएं हो रहीं हैं। खैर, यह सब बात को छोडो। चलो हम उन्हें जा कर सावधान करते हैं और मुख्य रास्ते पर आ जाने के लिए कहते हैं।”

ज्योति ने अपनी आँखें नचाकर पूछा, “खबरदार! आप ऐसा कुछ नहीं करोगे। आप वहाँ जाकर किसी के रंग में भंग करोगे क्या?”

सुनीलजी ने कहा, “अगर कुछ ऐसा वैसा चल रहा होगा तो फिर हम वहाँ उनको डिस्टर्ब नहीं करेंगे। पर उनको अकेला भी तो नहीं छोड़ सकते।”

ज्योति ने कहा, “वह सब आप मुझ पर छोड़ दीजिये। आप चुपचाप मेरे साथ चलिए। हम लोग छुपते छुपाते चलते हैं ताकि वह दोनों हमें देख ना लें और डिस्टर्ब ना हों। देखते हैं वहाँ वह दोनों क्या पापड बेल रहे हैं। और खबरदार! आप बिलकुल चुप रहना।”

ज्योति ने सुनीलजी का हाथ थामा और दोनों चुपचाप नीतू और कुमार जिस दिशा में गए थे उस तरफ उनके पीछे छिपते छिपाते चल पड़े। पीछे आ रहे ज्योतिजी और सुनीलजी ने दूर से देखा तो उन्हें नजर आया की ज्योति सुनीलजी का हाथ थामे मुख्य मार्ग से हट कर निचे नदी की कंदराओं की और बढ़ रही थी। आश्चर्य की बात यह थी की वह कभी पौधों के पीछे तो कभी लम्बी लम्बी घाँस के पीछे छिपते हुए चल रहे थे।

मौक़ा मिलते ही ज्योति ने कहा, “सुनीलजी, देखा आपने? आपकी पतिव्रता पत्नी, मेरे पति का हाथ थामे कैसे हमसे छिप कर उन्हें अपने साथ खींचती हुई उधर जा रही है? लगता है उसका सारा मान, वचन और राजपूतानी वाला नाटक आज बेपर्दा हो जाएगा। मुझे पक्का यकीन है की आज उसकी नियत मेरे पति के लिए ठीक नहीं है…

और मेरे पति भी तो देखो! कैसे बेशर्मी से उसके पीछे पीछे छुपते छुपाते हुए चल रहे हैं। अरे भाई तुम्हारी चूत में खुजली हो रही है तो साफ़ साफ़ कहो। हम ने कहाँ रोका है? पर यह नाटक करने की क्या जरुरत है? चलो हम भी उनके पीछे चलते हैं और देखते हैं की आज तुम्हारी बीबी और मेरे पति क्या गुल खिलाते हैं? हम भी वहाँ जा कर उनका पर्दाफाश करते हैं।”

सुनीलजी ने कहा, “उन्हें छोडो। शायद ज्योति को पेशाब जाना होगा। इसी लिए वह उस साइड हो गए हैं। उनकी चिंता छोडो। आप और हम आगे बढ़ते हैं।” यह कह कर सुनीलजी ने ज्योतिजी का हाथ थामा और उनके साथ मुख्य रास्ते पर आगे जाने के लिए अग्रसर हो गए।

थोड़ा सा आगे बढ़ते ही ज्योति ने दोनों युवाओँ को एक दूसरे की बाँहों में कस के खड़े हुए प्रगाढ़ चुम्बन में मस्त होते हुए देखा। कुमार नीतू के ब्लाउज के ऊपर से ही नीतू की चूँचियों को दबा रहे थे और मसल रहे थे। नीतू कुमार का सर अपने दोनों हाथों में पकडे कुमार के होँठों को ऐसे चूस रही थी जैसे कोई सपेरा किसीको सांप डंस गया हो तो उसका जहर निकालने के लिए घाव चूस रहा हो।

कुमार साहब का एक हाथ नीतू के बूब्स दबा रहा था तो दुसरा हाथ नीतू की गाँड़ के गालों को भींच रहा था। इस उत्तेजनात्मक दृश्य देख कर सुनीलजी और ज्योति वहीं रुक गए। ज्योति ने अपनी उंगली अपनी नाक पर लगा कर सुनीलजी को एकदम चुप रहने को इशारा किया। सुनीलजी समझ गए की ज्योति नहीं चाहती की इन वासना में मस्त हुए पंखियों को ज़रा भी डिस्टर्ब किया जाए।

सुनीलजी ने ज्योति के कानों में कहा, “इन दोनों को हम यहां अकेला नहीं छोड़ सकते।”

यह सुनकर ज्योति ने अपनी भौंहों को खिंच कर कुछ गुस्सा दिखाते हुए सुनीलजी के कान में फुसफुसाते हुए कहा, “तो ठीक है, हम यहीं खड़े रहते हैं जब तक यह दोनों अपनी काम क्रीड़ा पूरी नहीं करते।”

ज्योति ने वहाँ से हट कर एक घनी झाडी के पीछे एक पत्थर पर सुनीलजी को बैठने का इशारा किया जहाँसे सुनीलजी प्रेम क्रीड़ा में लिप्त उस युवा युगल को भलीभांति देख सके, पर वह उन दोनों को नजर ना आये। चुकी वहाँ दोनों को बैठने की जगह नहीं थी इस लिए ज्योति सुनीलजी के आगे आकर खड़ी हो गयी। वहाँ जमीन थोड़ी नीची थी इस लिए ज्योति ने सुनीलजी की टाँगे फैलाकर उन के आगे खड़ी हो गयी। सुनीलजी ने ज्योति को अपनी और खींचा अपनी दो टांगों के बिच में खड़ा कर दिया। ज्योति की कमर सुनीलजी की टांगों के बिच में थीं। घनी झाड़ियों के पीछे दोनों अब नीतू और कुमार की प्रेम क्रीड़ा अच्छी तरह देख सकते थे।

इन से बेखबर, नीतू और कुमार काम वासना में लिप्त एक दूसरे के बदन को संवार और चूम रहे थे। अचानक नीतू ने घूम कर कुमार से पूछा, “कुमार क्या कर्नल साहब हम को न देख कर हमें ढूंढने की कोशिश तो नहीं करेंगे ना?”

कुमार ने नीतू को जो जवाब दिया उसे सुनकर सुनीलजी का सर चकरा गया। कुमार ने कहा, “अरे कर्नल साहब के पास हमारे बारेमें समय कहाँ? उनका तो खुदका ही ज्योतिजी से तगड़ा चक्कर चल रहा है। अभी तुमने देखा नहीं? कैसे वह दोनों एक दूसरे से चिपक कर चल रहे थे? और उस रात ट्रैन में वह दोनों एक ही बिस्तर में क्या कर रहे थे? बापरे! यह पुरानी पीढ़ी तो हमसे भी तेज निकली।”

सुनीलजी ने जब यह सूना तो उनका हाल ऐसा था की छुरी से काटो तो खून ना निकले। इन युवाओँ की बात सुनकर सुनीलजी का मुंह लाल हो गया। पर करे तो क्या करे? उन्होंने ज्योति की और देखा। ज्योति ने मुस्कुरा कर फिर एक बार अपने होँठों और नाक पर उंगली रख कर सुनीलजी को चुप रहने का इशारा किया। ज्योति ने सुनीलजी के कान में बोला, “आप चुप रहिये। अभी उनका समय है। पर यह बच्चे बात तो सही कह रहे हैं।” उस समय सुनीलजी की शकल देखने वाली थी।

नीतू ने निचे की बहती नदी की और देख कर कुमार के हाथ पकड़ उन्हें अपनी गोद में रखते हुए कुमार के करीब खिसक कर कहा, “कुमार, देखो तो! कितना सुन्दर नजारा दिख रहा है। यह नदी, ये बर्फीले पहाड़ यह बादल! मन करता है यहीं रह जाऊं, यहां से वापस ही ना जाऊं! काश वक्त यहीं थम जाए!”

कुमर ने चारों और देख कर कहा, “मैं तो इस समय सिर्फ यह देख रहा हूँ की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा?”

नीतू ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा, “कुमार तुम कितने बोर हो! मैं यहां इतने सुन्दर नजारों बात कर रही हूँ और तुम कुछ और ही बात कर रहे हो!”

कुमार ने नीतू का गोरा मुंह अपनी दोनों हथेलियों में लिया और बोले, “मुझे तो यह चाँद से मुखड़े से ज्यादा सुन्दर कोई भी नजारा नहीं लग रहा है। मैं इस मुखड़े को चूमते ही रहना चाहता हूँ। मैं इस गोरे कमसिन बदन को देखता ही रहूं ऐसा मन करता है। मेरा मन करता है की मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूं। हमारे ढेर सारे बच्चें हों और हमारी जिंदगी का आखरी वक्त तक हम एक दूसरे के साथ रहें।” फिर एक गहरी साँस लेते हुए कुमार ने कहा, “पर मेरी ऐसी तकदीर कहाँ?”

नीतू कुमार की और गौरसे और गंभीरता से देखती रही और बोली, “क्या तुम मेरे साथ हरदम रहना चाहते हो?”

कुमार ने दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा बोले, “हाँ। काश ऐसा हो सकता! पर तुम तो शादीशुदा हो।”

नीतू ने कहा, “देखो, कहने के लिए तो मैं शादीशुदा मिसिस खन्ना हूँ, पर वास्तव में मिस खन्ना ही हूँ। ब्रिगेडियर साहब मेरे पति नहीं वास्तव में वह मेरे पिता हैं और मुझे बेटी की ही तरह रखते हैं। उन्होंने मुझे बदनामी से बचाने के लिए ही मेरे साथ शादी की। शादी के बाद हमारा शारीरिक सम्बन्ध मुश्किल से शुरू के कुछ महीनों तक का भी नहीं रहा होगा। उसके बाद उनका स्वास्थ्य लड़खड़ाया और तबसे उन्होंने मुझे गलत इरादे से हाथ तक नहीं लगाया। उन्होंने मुझे एक बेटी की तरह ही रखा है। वह मेरे लिए एक पिता की तरह मेरे लिए जोड़ीदार ढूंढ रहे हैं।

चूँकि वह सरकारी रिकॉर्ड में ऑफिशियली मेरे पति हैं, तो अगर कोई मेरा मनपसंद पुरुष मुझे स्वीकार करता है तो वह मुझे तलाक देने के लिए तैयार हैं। मैं जानती हूँ की तुम्हारे माता पिता शायद मुझे स्वीकार ना करें। मैं इसकी उम्मीद भी नहीं करती। पर अगर वास्तव में तुम तुम्हारा परिवार मुझे स्वीकार करने लिए तैयार हो और सचमें तुम मेरे साथ पूरी जिंदगी बिताना चाहते हो तो मेरे पिता (खन्ना साहब) से बात करिये।”

नीतू इतना कह कर रुक गयी। वह कुमार की प्रतिक्रिया देखने लगी। नीतू की बात सुनकर कुमार कुछ गंभीर हो गए थे। उनका गम्भीर चेहरा देख कर नीतू हँस पड़ी और बोली, “कुमार साहब, मैं आपसे कोई लेनदेन नहीं कर रही हूँ। मैं आप से यह उम्मीद नहीं रख रही हूँ की आप अथवा आपका परिवार मुझे स्वीकार करेगा। उन बातों को छोड़िये। आप मुझे अपना जीवन साथी बनाएं या नहीं; हम यहां जिस हेतु से वह तो काम पूरा करें? वरना क्या पता हमें ना देख कर कर्नल साहब कहीं हमारी खोज शुरू ना करदें।” यह कह नीतू ने कुमार की पतलून में हाथ डाला।

कुमार का लण्ड नीतू का स्पर्श होते ही कड़ा होने लगा था। कुमार ने अपने पतलून की झिप खोली और अपनी निक्कर में से अपना लण्ड निकाला। नीतू कुमार का लण्ड हाथ में लेकर उसे सहलाने लगी। नीतू ने हँसते हुए कहा, “कुमार यह तो एकदम तैयार है। तुमतो वाकई बड़े ही रोमांटिक मूड में लग रहे हो।

कुमार ने नीतू के होठोँ को चूमते हुए अपना एक हाथ नीतू की स्कर्ट को ऊपर उठा कर उसकी पेंटी को निचे खिसका कर उसकी एक टाँग को ऊपर उठा कर नीतू की जाँघों के बिच उसकी चूत में उंगली डालते हुए कहा, “तुम भी तो काफी गरम हो और पानी बहा रही हो।”

बस इसके बाद दोनों में से कोई भी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थे। वहीं पत्थर के सहारे खड़े खड़े कुमार और नीतू गहरे चुम्बन और आलिंगन में जकड़े हुए थे। कुमार का एक हाथ नीतू की मस्त गाँड़ को सेहला रहा था और दुसरा हाथ नीतू की उद्दंड चूँचियों को मसलने में लगा हुआ था।

नीतू ने कुमार से कहा, “जो करना है जल्दी करो वरना वह कर्नल साहब आ जाएंगे तो कहीं रंग में भंग ना कर दें।”

सुनीलजी कुमार और नीतू की बात सुनकर एक तरह शर्मिन्दा महसूस कर रहे थे तो दूसरी तरफ गरम भी हो रहे थे। पर उस समय वह आर्मी के यूनिफार्म में थे। ज्योति ने पीछे घूम कर सुनीलजी की पतलून में उनकी टाँगों के बिच देखा तो पाया की नीतू और कुमार की प्रेम क्रीड़ा देख कर सुनीलजी का लण्ड भी कड़क हो रहा था और उनकी पतलून में एक तम्बू बना रहा था।

मन ही मन ज्योति को हंसी आयी। ज्योति सुनीलजी का हाल समझ सकती थी। सुनीलजी एक पत्थर पर निचे टाँगें लटका कर बैठे हुए घनी झाडी के पीछे नीतू और कुमार को देख रहे थे। ज्योति उनकी टाँगों के बिच में कुछ नीची जमीन पर खड़ी हुई थी। ज्योति की पीठ सुनीलजी के लौड़े से सटी हुई थी।

सुनीलजी की दोनों टांगें ज्योति के कमर के आसपास फैली हुई ज्योति को जकड़ी हुई थीं। सुनीलजी का हाथ अनायास ही ज्योति के बूब्स को छू रहा था। सुनीलजी अपना हाथ ज्योति के बूब्स से छूने से बचाते रहते थे। ज्योति ने सुनीलजी का खड़ा लण्ड अपनी पीठ पर महसूस किया।

सहज रूप से ही ज्योति ने अपनी कोहनी पीछे की और सुनीलजी की जाँघों के बिच में टिका दीं। ज्योति ने अपनी कोहनी से सुनीलजी का लण्ड छुआ और कोहनी को हिलाते हुए वह सुनीलजी का लण्ड भी हिला रही थी। ज्योति की कोहनी के छूते ही सुनीलजी का लण्ड उनकी पतलून में फर्राटे मारने लगा
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