Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

Post Reply
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

Post by kunal »

सुनीलजी ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, “एक कहावत है की एक बार हो तो हादसा, दूसरी बार हो तो संयोग पर अगर तीसरी बार भी होता है तो समझो की खतरे की घंटी बज रही है।”

ज्योति बुद्धू की तरह सुनीलजीको देखती ही रही। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।

सुनीलजी ने ज्योति के उलझन भरे चेहरे की और देखा और ज्योति का नाक पकड़ कर हिलाते हुए बोले, “अरे मेरी बुद्धू रानी, पहली बार कोई मेरे घरमें से मेरा पुराना लैपटॉप और एक ही जूता चुराता है, यह तो मानलो हादसा हुआ। फिर कोई मेरा और तुम्हारे पतिदेव सुनीलजी का पीछा करता है। मानलो यह एक संयोग था…

फिर कोई संदिग्ध व्यक्ति टिकट चेकर का भेस पहन कर हमारे ही डिब्बे में सिर्फ हमारे ही पास आ कर हम से पूछताछ करता है की हम कहाँ जा रहे हैं। मानलो यह भी एक अद्भुत संयोग था। उसके बाद कोई व्यक्ति स्टेशन पर हमारा स्वागत करता है, हमें हार पहनाता है और हमारी फोटो खींचता है…

क्यों भाई? हम लोग कौनसे फिल्म स्टार या क्रिकेटर हैं जो हमारी फोटो खींची जाए? और आखिर में कोई बिना नंबर प्लेट की टैक्सी वाला हमें आधे से भी कम दाम में स्टेशन से लेकर आता है और रास्ते में बड़े सलीके से तुम से हमारे कार्यक्रम के बारे में इतनी पूछताछ करता है? क्या यह सब एक संयोग था?”

ज्योति के खूबसूरत चेहरे पर कुछ भी समझ में ना आने के भाव जब सुनीलजी ने देखे तो वह बोले, “कुछ तो गड़बड़ है। सोचना पड़ेगा।” कह कर सुनीलजी उठ खड़े हुए और कमरे की और चल दिए।

साथ साथ में ज्योति भी दौड़ कर पीछा करती हुई उनके पीछे पीछे चल दी। दोनों अपने अपने विचारो में खोये हुए अपने कमरे की और चल पड़े।

..........................

कर्नल साहब (सुनीलजी) ने काफी समय पहले ही कैंप के मैनेजमेंट से दो कमरों का एक बड़ा फ्लैट टाइप सुईट बुक करा दिया था। उसमें उनके दोनों बैडरूम को जोड़ता हुआ परदे से ढका एक किवाड़ था। वह किवाड़ दोनों तरफ से बंद किया जा सकता था।

जब तक दोनों कमरों में रहने वाले ना चाहें तब तक वह किवाड़ अक्सर बंद ही रहता था। अगर वह किवाड़ खुला हो तो एक दूसरे के पलंग को दोनों ही जोड़ी देख सकती थी। दोनों ही बैडरूम में एक एक वाशरूम जुड़ा हुआ था।

बैडरूम का दुसरा दरवाजा एक साँझा बड़े ड्रॉइंग कम डाइनिंग रूम में खुलता था। सुईट के अंदर प्रवेश उसी ड्रॉइंगरूम से ही हो सकता था। ड्रॉइंगरूम में प्रवेश करने के बाद ही कोई अपने कमरे में जा सकता था।

जब कैंप में आगमन के तुरंत बाद सुबह में पहली बार दोनों कपल कमरों में दाखिल हुए थे (चेक इन किया था) तब सबसे पहले सुनीलजी ने सुईट की तारीफ़ करते हुए सुनीलजी से कहा था, “सुनीलजी, यह तो आपने कमाल का सुईट बुक कराया है भाई! कितना बड़ा और बढ़िया है! खिड़कियों से हिमालय के बर्फीले पहाड़ और खूबसूरत वादियाँ भी साफ़ साफ़ दिखती हैं। मेरी सबसे एक प्रार्थना है। मैं चाहता हूँ की जब तक हम यहां रहेंगे, दोनों कमरों को जोड़ते हुए इस किवाड़ को हम हमेशा खुला ही रखेंगे। मैं हम दोनों कपल के बिच कोई पर्दा नहीं चाहता। आप क्या कहते हैं?”

सुनीलजी ने दोनों पत्नियों की और देखा। ज्योतिजी फ़ौरन सुनीलजी से सहमति जताते हुए बोली थी, “मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भाई मान लो कभी भी दिन में या आधी रात में सोते हुए अचानक ही कोई बातचित करने का मन करे तो क्यूँ हमें उठकर एक दूसरे का दरवाजा खटखटा ने की जेहमत करनी पड़े? इतना तो हमें एक दूसरे से अनौपचारिक होना ही चाहिए। फिर कई बार जब मेरा न करे की मैं मेरी प्यारी छोटी बहन ज्योति के साथ थोड़ी देर के लिए सो जाऊं तो सीधा ही चलकर चुचाप तुम्हारे पलंग पर आ सकती हूँ ना?”

उस वक्त ज्योतिजी ने साफ़ साफ़ यह नहीं कहा की अगर दोनों कपल चाहें तो बिना किसी की नजर में आये एक दूसरे के पलंग में सांझा एक साथ सो भी तो सकते हैं ना?

ज्योति सारी बातें सुन कर परेशान हो रही थी। वह फ़ौरन अपने पति सुनीलजी को अपने कमरे में खिंच कर ले गयी और बोली, “तुम पागल हो क्या? तुम एक रात भी मुझे प्यार किये बिना तो रह नहीं सकते। अगर यह किवाड़ खुला रखा तो फिर रात भर मुझे छेड़ना मत। यह समझ लो।”

अपनी पत्नी की जिद देख कर सुनीलजी ने अपनी बीबी ज्योति के कानों में फुसफुसाते हुए कहा था, “डार्लिंग, तुम्ही ने तो माना था की हम दोनों कपल एक दूसरे से पर्दा नहीं करेंगे। अब क्यों बिदक रही हो? और अगर हम प्यार करेंगे भी तो कौनसा सबके सामने नंगे खड़े हो कर करेंगे? बिस्तर में रजाई ओढ़कर भी तो हम चुदाई कर सकते है ना?”

यह सुन कर ज्योति का माथा ठनक गया। उसने तो अपने पति से कभी यह वादा नहीं किया था की वह सुनीलजी और ज्योतिजी से पर्दा नहीं करेगी। तब उसे याद आया की उसने ज्योतिजीसे यह वादा जरूर किया था। तो क्या ज्योतिजी ने उनदोनों के बिच की बातचीत सुनीलजी को बतादी थी क्या? खैर जो भी हो, उसने वादा तो किया ही था। सुनीलजी की बात सुन कर हार कर ज्योति चुपचाप अपने काम में लग गयी थी।

——

दोपहर का खाना खाने के बाद चारों के जहन में अलग अलग विचारों की बौछार हो रही थी। ज्योतिजी पहली बार अच्छी तरह कुदरत के आँगन में खुले आकाश के निचे सुनीलजी से चुदाई होने के कारण बड़ी ही संतुष्ट महसूस कर रही थी और कुछ गाना मन ही मन गुनगुना रहीं थीं। उनके पति सुनीलजी अपनी ही उधेड़बुन में यह सोचने में लगे थे की जो राज़ था उसे कैसे सुलझाएं। उस राज़ को सुलझाने का मन ही मन वह प्रयास कर रहे थे।

ज्योति मन ही मन खुश भी थी और दुखी भी। खुश इसलिए थी की उसने तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ सुनीलजी से सीखे थे और इस लिए भी की उसे सुनीलजी के लण्ड को सहलाने के मौक़ा मिला था। वह दुखी इस लिए थी की सब के चाहते हुए भी वह सुनीलजी का मन की इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी। सुनीलजी को दोनों हाथों में लड्डू नजर आ रहे थे। बिस्तर में वह अपनी बीबी को चोदेंगे और कहीं और मौक़ा मिला तो ज्योति को।

दोपहर का खाना खाने के बाद अलग अलग वजह से दोनों ही कपल थके हुए थे। डाइनिंग हॉल से वापस आते ही ज्योतिजी और सुनीलजी अपने पलंग पर और सुनीलजी और ज्योति अपने पलंग पर ढेर हो कर गिर पड़े और फ़ौरन गहरी नींद सो गए। बिच का किवाड़ खुला ही था।

शाम को छे बजे स्वागत और परिचय का कार्यक्रम था और साथ में सब मेहमानों को अगले सात दिन के प्रोग्राम से अवगत कराना था। उसके बाद खुले में कैंप फायर (एक आग की धुनि) के इर्दगिर्द कुछ ड्रिंक्स (शराब या जूस इत्यादि) और नाच गाना और फिर आखिर में खाना।

शाम के पांच बजने वाले थे। सबसे पहले सुनीलजी उठे। चुपचाप वह हलके पाँव वाशरूम में जाने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपने पत्नीकी और देखा। वह अपने गाउन में गहरी नींद सोई हुई बड़ी ही सुन्दर लग रही थी। ज्योति के घने बाल पुरे सिरहाने पर फैले हुए थे। उसका चेहरा एक संतुष्टि वाला, कभी हलकी सी मुस्कान भरा सुन्दर प्यारा दिख रहा था। सुनीलजी के मन में विचार आया की कहीं उस झरने के वाटर फॉल के पीछे सुनीलजी ने उनकी बीबी को चोदा तो नहीं होगा?

विचार आते ही वह मन ही मन मुस्काये। हो सकता है सुनीलजी और ज्योति ने उस दोपहर अच्छी खासी चुदाई की होगी। क्यूंकि ज्योतिजी और सुनीलजी काफी कुछ ज्यादा ही दोस्ताना से एक दूसरे घुलमिल रहे थे। सुनीलजी के मन में स्वाभाविक रूपसे कुछ जलन का भाव तो हुआ, पर उन्होंने एक ही झटके में उसको निकाल फेंका। वह ज्योति को बेतहाशा प्यार करते थे। ज्योति सिर्फ उनकी पत्नी ही नहीं थी। उनकी दोस्त भी थी। और प्यार में और दोस्ती में हम अपनों पर अपना अधिकार नहीं प्यार जताते हैं। हम अपनी ख़ुशी से ज्यादा अपने प्यारे की खुशी के बारे में ही सोचते हैं।

खुले हुए किवाड़ के दूसरी और जब सुनीलजी ने नजर की तो देखा की सुनीलजी अपनीं बीबी को अपनी बाँहों में घेरे हुए गहरी नींद में सो रहे थे। ज्योति अपने पति की बाँहों में पूरी तरह से उन्मत्त हो कर निद्रा का आनंद ले रही थी।

सुनीलजी फुर्ती से वाशरूम में गए और चंद मिनटों में ही तैयार हो कर बाहर आये। उन्होंने फिर अपनी पत्नी को जगाया। ज्योति आखिर एक फौजी की बीबी थी। सुनीलजी की एक हलकी आवाज से ही वह एकदम बैठ गयी। अपने पति को तैयार देख वह भी वाशरूम की और तैयार होने के लिए अपने कपडे लेकर भागी। सुनीलजी हलके से चलकर बिच वाले खुले किवाड़ से अपने कमरे से सुनील और ज्योति के कमरे में आये।

सुनीलजी ने सुनील और ज्योति के पलंग में बदहाल गहरी नींद में लेटी हुई ज्योति को देखा। ज्योति का गाउन ऊपर उसकी जाँघों तक आ गया था। अगर थोड़ा झुक कर टेढ़ा होकर दो जाँघों के बिच में देखा जाये तो शायद ज्योति की चूत भी दिख जाए। बस उसकी चूत के कुछ निचे तक गाउन चढ चुका था। ज्योति की दो जाँघों के बिच में गाउन के अंदर कुछ अँधेरे के कारण गाउन ज्योति की प्यारी चूत को मुश्किल से छुपा पा रहा था। यह जाहिर था की ज्योति ने गाउन के अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था।

सुनीलजी को बेहाल लेटी हुई ज्योति पर बहुत सा प्यार आ रहा था। पता नहीं उन्हें इससे पहले कभी किसी औरत पर ऐसा आत्मीयता वाला भाव नहीं हुआ था। वह ज्योति को भले ही चोद ना पाएं पर ज्योति से साथ सो कर सारी सारी रात प्यार करने की उनके मन में बड़ी इच्छा थी। उन्होंने जो कुछ भी थोड़ा सा वक्त ज्योति को अपनी बाँहों में लेकर गुजारा था वह वक्त उनके लिए अमूल्य था। ज्योति के बदन के स्पर्श की याद आते ही सुनीलजी के शरीर में एक कम्पन सी सिहरन दौड़ गयी।

सिरहाने की साइड में खड़े होकर देखा जाए तो गाउन के अंदर ज्योति के दो बड़े बूब्स के बिच की खाई और उसके दो मस्त पहाड़ की चोटी पर विराजमान निप्पलोँ तक का नजारा लण्ड खड़ा कर देने वाला था। वह इसलिए की गहरी नींद में लेटे हुए सुनीलजी के दोनों हाथ अपनी बीबी के उन्मत्त स्तनोँ को नींद में ही दबा रहे थे।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

Post by kunal »

सुनीलजी को सुनीलजी के भाग्य की बड़ी ईर्ष्या हुई। सुनीलजी को ज्योति के साथ पूरी रात गुजारने से रोकने वाला कोई नहीं था। वह जब चाहे ज्योति के बूब्स दबा सकते थे, ज्योति की गाँड़ में अपना लण्ड घुसा सकते थे, ज्योति को जब चाहे चोद सकते थे। एक गहरी साँस ले कर सुनीलजी ने फिर यह सोच तसल्ली की की जिस सुनीलजी को वह अति भाग्यशाली मानते थे वही सुनीलजी उनकी पत्नी ज्योति के आशिक थे। यह विचार आते ही वह मन ही मन हंस पड़े। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर।

सुनीलजी का बड़ा मन किया की सुनीलजी के हाथ हटा कर वह अपने हाथ ज्योति के गाउन में डालें और ज्योति के मस्त नरम और फिर भी सख्त बूब्स को दबाएं, सहलाएं और अच्छी तरह से मसल दें।
ज्योति करवट लेकर पलंग के एक छोर पर सो रहीथी और उसके पति सुनीलजी उसके पीछे ज्योति की गाँड़ में अपना लण्ड वाला हिस्सा पाजामे के अंदर से बिलकुल ज्योति की गाँड़ में जाम किये हुए सो रहे थे। दोनों मियाँ बीबी इतनी गहरी नींद सो रहे थे की उन्हें सुनीलजी के आने का एहसास नहीं हुआ.

सुनीलजी ने अपने आप पर बड़ा नियंत्रण रखते हुए ज्योति के बालों में उंगलियां डाल उन्हें बालों को उँगलियों से कँघी करते हुए हलके से कहा, “ज्योति, उठो।”

जब सुनीलजी की हलकी आवाज का कोई असर नहीं हुआ तब सुनीलजी सुनील के सिरहाने के पास गए और थोड़ी सख्ती और थोड़े मजाक के अंदाज में सुनीलजी से कहा, “दोपहर का आप दोनों के मिलन का कार्यक्रम पूरा हुआ नहीं क्या? उठो, अब आप एक सेना के कैंप में हैं। आप को कुछ नियम पालन करने होंगें। सुबह साढ़े चार बजे उठना पडेगा। उठकर नित्य नियम से निपट कर सबको कुछ योग और हलकी फुलकी कसरत करनी पड़ेगी। चलो जल्दी तैयार हो जाओ। ठीक छे बजे प्रोग्रम शुरू हो जाएगा। मैं जा रहा हूँ। आप तैयार हो कर मैदान में पहुंचिए।”

सुनीलजी का करारा फरमान सुनकर ज्योति चौंक कर उठ गयी। उसने सुनीलजी को पलंग के पास में ही पूरा आर्मी यूनिफार्म में पूरी तरह से सुसज्ज खड़ा पाया। सुनीलजी आर्मी यूनिफार्म में सटीक, शशक्त और बड़े ही प्यारे लग रहे थे। ज्योति ने मन ही मन उनकी बलाइयाँ लीं। ज्योति ने एक हाथ से सुनीलजी को सलूट करते हुए कहा, “आप चलिए। आपको कई काम करने होंगें। हम समय पर पहुँच जाएंगे।”

चंद मिनटों में ही सुनीलजी उठ खड़े हुए हुए और वाशरूम की और भागे। ज्योति ने देखा की ज्योतिजी नहा कर बाहर निकल रही थीं। तौलिये में लिपटी हुई वह सुंदरता की जीती जागती मूरत समान दिख रही थीं। ज्योति को वह दिन याद आया जब उसने ज्योतिजी की “मालिश” की थी। ज्योति उठ खड़ी हुई और किवाड़ पार कर वह ज्योतिजी के पास पहुंची। ज्योति को आते हुए देख ज्योतिजी ने अपनी बाँहें फैलायीं और ज्योति को अपनी बाँहों में घेर लिया और फिर प्यार भरे शब्दों में बोली, ‘ज्योति कैसी हो? मेरे पति ने तुम्हें ज्यादा छेड़ा तो नहीं ना?”

ज्योति ने शर्माते हुए कहा, “दीद झूठ नहीं बोलूंगी। जितना छेड़ना चाहिए था उतना छेड़ा। बस ज्यादा नहीं। पर मेरी छोडो अपनी बताओ। मेरे पति ने आपके साथ कुछ किया की नहीं?”

ज्योतिजी ने कहा, “बस मेरा भी कुछ वैसा ही जवाब है। थोड़ा सा ही फर्क है। तुम्हारे पति ने जितना कुछ करना था सब कर लिया, कुछ छोड़ा नहीं। अरी! तेरे शौहर तो बड़े ही रंगीले हैं यार! तेरी तो रोज मौज होती होगी। इतने गंभीर और परिपक्व दिखने वाले सुनीलजी इतने रोमांटिक हो सकते हैं, यह तो मैंने सोचा तक नहीं था।”

ज्योति अपने पति की किसी और खूबसूरत स्त्री से प्रशंशा सुनकर उसे मुश्किल से हजम कर पायी। पर अब तो आगे बढ़ना ही था। ज्योति ने ज्योतिजी से कहा, “दीदी, लाइए मैं आपके बालों को आज की पार्टी के लिए सजा देती हूँ। मैं चाहती हूँ की आज मेरी दीदी अपनी खूबसूरती, जवानी और कमसिनता से सारे ही जवानों और अफसरों पर गजब का कहर ढाये! मैं सबको दिखाना चाहती हूँ की मेरी दीदी पार्टी में सब औरतों और लड़कियों से ज्यादा सुन्दर लगे।”

सुनीलजी जब वाशरूम में से तैयार होकर निकले तो उन्होंने देखा की ज्योति ज्योतिजी को सजाने में लगी हुई थी। ज्योतिजी को आधे अधूरे कपड़ों में देख कर सुनीलजी ने अपने आप पर संयम रखते हुए दोनों महिलाओं को “बाई” कहा और खुद सुनीलजी को मिलने निकल पड़े।

शामके ठीक छह बजे जब सब ने अपनी जगह ली तब तक ज्योति और ज्योति जी पहुंचे नहीं थे। मंच पर सुनीलजी और कैंप के अधिकारी कुछ गुफ्तगू में मशगूल थे। सुनीलजी को भी मंच पर ख़ास स्थान दिया गया था। धीरे धीरे सारी कुर्सियां भर गयीं। प्रोग्राम शुरू होने वाला ही था की ज्योतिजी और ज्योति का प्रवेश हुआ। उस समय सब लोग एक दूसरे से बात करने में इतने मशरूफ थे की पूरा हॉल सब की आवाज से गूँज रहा था।

जैसे ही ज्योति और ज्योतिजी ने प्रवेश किया की सब तरफ सन्नाटा छा गया। सब की निगाहें ज्योति और ज्योतिजी पर गड़ी की गड़ी ही रह गयीं। ज्योतिजी ने स्कर्ट और उसके ऊपर एक फ्रिल्ल वाला सतह पर सतह हो ऐसा सूत का सफ़ेद चिकन की कढ़ाई किया हुआ टॉप पहना था। ज्योतिजी के बाल ज्योति ने इतनी खूबसूरती से सजाये थे की ज्योति नयी नवेली दुल्हन की तरह लग रहीं थीं। ज्योतिजी का टॉप पीछे से खुला हुआ ब्लाउज की तरह था।

ज्योति जी के सुदृढ़ बूब्स का उभार उनके टॉप से बाहर उछल कर निकल ने की कोशिश कर रहा था। ज्योतिजी के कूल्हे इतने सुगठित और सुआकार लग रहे थे की लोगों की नजर उस पर टिकी ही रह जाती थीं।

ज्योति ने साडी पहन रक्खी थी। ज्योतिजी के मुकाबले ज्योति ज्यादा शांत और मँजी हुई औरत लग रही थी। साडी में भी ज्योति के सारे अंगों के उतार चढ़ाव की कामुकता भरी झलक साफ़ साफ़ दिख रही थी। ज्योति की गाँड़ साडी में और भी उभर कर दिख रही थी।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

जब धीरे धीरे सब ने अपने होश सम्हाले तब कैंप के मुख्याधिकारी ने एक के बाद एक सब का परिचय कराया। सुनीलजी का स्थान सभा के मंच पर था। कैंप के प्रशिक्षकों में से वह एक थे। वह सुबह की कसरत के प्रशिक्षक थे और उनके ग्रुप के लीडर मनोनीत किये गए थे।

जब उनका परिचय किया गया तब ज्योतिजी को भी मंच पर बुलाया गया और सुनीलजी की “बेहतर अर्धांगिनी” (Better half) के रूप में उनका परिचय दिया गया। उस समय पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

कप्तान कुमार सुनीलजी की बगल में ही बैठे हुए थे। नीतू और उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना आगे बैठे हुए थे। कप्तान कुमार के पाँव तले से जमीन खिसक गयी जब नीतू का परिचय श्रीमती खन्ना के रूप में कराया गया। दोपहर के आराम के बाद कप्तान कुमार अच्छे खासे स्वस्थ दिख रहे थे।

मेहमानों का स्वागत करते हुए कैंप के मुखिया ने बताया की हमारा पडोसी मुल्क हमारे मुल्क की एकता को आहत करने की फिराक में है। चूँकि वह हमसे सीधा पंगा लेने में असमर्थ है इसलिए वह छद्म रूप से हम को एक के बाद एक घाव देनेकी कोशिश कर रहा है। वह अपने आतंक वादियों को हमारे मुल्क में भेज कर हमारे जवानों और नागरिकों को मार कर भय का वातावरण फैलाना चाहता है। हालात गंभीर हैं और हमें सजग रहना है।

इन आतंकवादीयों को हमारे ही कुछ धोखेबाज नागरिक चंद रूपयों के लालच में आश्रय और प्रोत्साहन देते हैं। आतंकवादी अलग अलग शहरों में आतंक फैलाने का प्रोग्राम बना रहे हैं। इन हालात में सेना के अधिकारीयों ने यह सोचा की एक आतंकी विरुद्ध नागरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाए जिसमें हमारे नागरिकों को आतंकीयों से कैसे निपटा जाए और शहर में आतंकी हमला होने पर कैसे हमें उनका सामना करना चाहिए इसके बारे में बताया जाए।

उन्होंने बताया की इसी हेतु से यह प्रोग्राम तैयार किया गया था।

सारे मेहमानों को चार ग्रुप में बाँटा गया था। कप्तान कुमार, नीतू , उसके पति ब्रिगेडियर साहब और उनके दो हम उम्र दोस्त, सुनीलजी, सुनीलजी, ज्योतिजी और ज्योति एक ग्रुप में थे। ऐसे तीन ग्रुप और थे। कुल मिला कर करीब छत्तीस मेहमान थे। हर एक ग्रुप में नौ लोग थे। सुबह पाँच बजे योग और हलकी कसरत और उसके बाद चाय नाश्ता। बाद में सुबह सात बजे पहाड़ों में ट्रैकिंग का प्रोग्राम था। दोपहर का खाना ट्रैकिंग के आखिरी पड़ाव पर था। ट्रैकिंग का रास्ता पहले से ही तय किया गया था और जगह जगह तीरों के निशान लगाए गए थे।

परिचय और प्रोग्राम की बात ख़त्म होते होते शाम के सात बज चुके थे। लाउड स्पीकर पर सब को आग की धुनि के सामने ड्रिंक्स और नाच गाने के प्रोग्राम में हिस्सा लेने का आमंत्रण दिया गया।

मजे की बात यह थी की नीतू उसके पति ब्रिगेडियर साहब और कुमार भी ज्योति, सुनीलजी, सुनीलजी और ज्योतिजी वाली धुनि के आसपास बैठे हुए थे। ब्रिगेडियर खन्ना, कप्तान कुमार के साथ बड़े चाव से बात कर रहे थे। कप्तान कुमार बार बार नीतु की और देख कर अपनी नाराजगी जाहिर करने की कोशिश कर रहे थे की क्यों नीतू ने उन्हें अपनी शादी के बारेमें नहीं कहा?

तुरंत उन्हें याद आया की नीतू ने उन्हें कहने की कोशिस तो की थी जब उसने कहा था की “जिंदगी में कुछ परिस्थितियां ऐसी आती हैं की उन्हें झेलना ही पड़ता है।” परन्तु उसके बाद बात ने कुछ और मोड़ ले लीया था और नीतू अपने बारे में बता नहीं सकी थी। अब जब नीतू शादीशुदा है तो कुमार को अपना सपना चकनाचूर होते हुए नजर आया।

ब्रिगेडियर साहब ने कुमार से अपनी जिंदगी के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने बताया की कैसे नीतू और उसके के पिता ने ब्रिगेडियर साहब और उनकी स्वर्गवासी पत्नी की सेवा की थी। बादमें नीतू के पिता की मौत के बाद नीतू को उन्होंने आश्रय दिया। उनके सम्बन्ध नीतू से कुछ ज्यादा ही निजी हो गए। तब उन्होंने नीतू को समाज में बदनामी से बचाने के लिए शादी कर ली।

ब्रिगेडियर साहब ने कुमार को यह भी बताया की वह उम्र में उनसे काफी छोटी होने के कारण नीतू को अपनी पत्नी नहीं बेटी जैसा मानते हैं। वह चाहते हैं की अगर कोई मर्द नीतू को अपनाना चाहता हो तो वह उसे तलाक देकर ख़ुशी से नितुकी शादी उस युवक से करा भी देंगे।

ब्रिगेडियर साहब ने नीतू को बुलाकर अपने पास बिठाया और बोले, “नीतू बेटा, मैं अपने मिलने जा रहा हूँ। मैं थोड़ा थक भी गया हूँ। तो आप कप्तान कुमार और बाकी कर्नल साहब और इन लोगों के साथ एन्जॉय करो। मैं फिर अपने हट में जाकर विश्राम करूंगा।” कह कर ब्रिगेडियर साहब चल दिए।

ब्रिगेडियर साहब के जाने के बाद ज्योति उठकर कप्तान कुमार के करीब जा बैठी। उसने कुमार को कहा, “कप्तान साहब, नीतू आपसे अपनी शादी के बारे में कहना चाहती थी पर वह उस वक्त उसमें कहने की हिम्मत न थी और जब वह आपसे कहने लगी थी तो बात टल गयी और वह कह नहीं पायी। वह आपका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी। आप उसको समझें और उसे क्षमा करें और देखो यह समाँ और मौक़ा मिला है उसे जाया ना करें। आप दोनों घूमे फिरें और एन्जॉय करें।

बाकी आप खुद समझदार हो।” इतना कह कर ज्योति कप्तान कुमार को शरारत भरी हँसी देकर, आँख मार कर वापस अपने पति सुनीलजी, सुनीलजी और ज्योतिजी के पास वापस आ गयी। उसे ख़ुशी हुई की अगर यह दो जवान दिल आपस में मिल कर प्यार में कुछ समय एक साथ बिताते हैं तो वह भी उनके लिए और खास कर नीतू के लिए बहुत बड़ी बात होगी।

शाम धीरे धीरे जवाँ हो रही थी। सुनीलजी और सुनीलजी ने अपने जाम में व्हिस्की भर चुस्की पर चुस्की ले रहे थे। ज्योति और ज्योतिजी चाय के साथ कुछ स्नैक्स ले रहीं थीं। सुनीलजी की उलझन ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। ज्योति ने अपने पति सुनीलजी को कहा, “ऐसा लगता है की कोई गंभीर मामला है जिसके बारे में सुनीलजी कुछ जानते हैं पर हमसे शेयर करना नहीं चाहते। आप ज़रा जा कर पूछिए ना की क्या बात है?”

सुनीलजी सुनीलजी पहुंचे। सुनीलजी आर्मी के कुछ अफसरान से गुफ्तगू कर रहे थे। कुछ देर बाद जब सुनीलजी फारिग हुए तब सुनीलजी ने सुनीलजी से पूछा, भाई, हमें हमें बताइये ना की क्या बात है? आप इतने चिंतित क्यों हैं?”

सुनीलजी ने सुनीलजी की और देख कर पूरी गंभीरता से कहा, “सुनीलजी, आपसे क्या छिपा हुआ है? आप को भी तो मिनिस्ट्री से हिदायत मिली हुई है की कुछ जासुस हमारी सना के कुछ अफसरान के पीछे पड़े हुए हैं। वह हमारी सेना की गतिविधियोँ की गुप्त जानकारी पाना चाहते हैं। वह जानना चाहते हैं की हमारी सेना की क्या रणनीति होगी। मैं सोच रहा था की कहीं जो हमारे साथ कुछ हादसे हुए हैं उससे इस बात का तो कोई सम्बन्ध नहीं है?”

सुनीलजी की बात सुनकर सुनीलजी चौक गए और बोल पड़े, “क्या इसका मतलब यह हुआ की पडोसी देश के जासूस हमारे पीछे पड़े हुए हैं? वह हम से कुछ सच्चाई उगलवाना चाहते हैं?”

ज्योति ने अपने पति के मुंह से यह शब्द सुने तो उसके चेहरे पर जैसे हवाइयाँ उड़ने लगीं। उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ भय और आतंक के निशान दिख रहे थे। ज्योति बोल उठी, “बापरे! वह टैक्सी वाला और वह टिकट चेकर क्या दुश्मनों के जासूस थे? अब मैं सोचती हूँ तो समझ में आता है की वह लोग वाकई कितने भयंकर लग रहे थे।” सुनीलजी की और मुड़कर ज्योति बोली, “सुनीलजी अब क्या होगा?”

सुनीलजी ने ज्योति का हाथ थामा और दिलासा देते हुए बोले, ” अपने नन्हे से दिमाग को कष्ट ना दो। हमें कुछ नहीं होगा। हम इतनी बड़ी हिंदुस्तानी फ़ौज के कैंप में हैं और उनकी निगरानी में हैं। मुझसे गलती हुई की मैंने तुम्हें यह सब बताया।”

तब ज्योति ने अपना खूबसूरत सीना तान कर कहा, “हम भी भारत की शक्ति हैं। मैं एक क्षत्राणी हूँ और एक बार ठान लूँ तो सबसे निपट सकती हूँ। मुझे कोई डर नहीं।”

ज्योतिजी ने ज्योति की दाढ़ी अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे हिलाते हुए कहा, “अगर क्षत्राणी है तो फिर यह जूस ही क्यों पी रही है? कुछ गरम पेय पी कर दिखा की तू भी वाकई में क्षत्राणी है”

ज्योति ने ज्योतिजी की और मुड़कर देखा और बोली, “इसमें कौनसी बड़ी बात है? चलो दीदी डालो ग्लास में व्हिस्की और हम भी हमारे मर्दों को दिखाते हैं की हम जनाना भी मर्दों से कोई कम नहीं।”

नीतू ज्योति का जोश और जस्बा ताज्जुब से देख रही थी। उसने ज्योति की हिम्मत ट्रैन में देखि थी। वाकई में तो सबकी जान ज्योति ने ही बचाई थी क्यूंकि अगर ज्योति ने कुमार की टाँगें कस के काफी देर तक पकड़ रक्खी नहीं होतीं तो कुमार फुल स्पीड में चल रही ट्रैन से गिर पड़ते और नीतू और कुमार दोनों की मौत पक्की थी।

ज्योतिजी ने ज्योति के गिलास में कुछ ज्यादा और अपने गिलास में कुछ कम व्हिस्की डाली और सोडा से मिलाकर ज्योति को दी। सुनीलजी और सुनीलजी अपनी बीबियों की करतूत देख कर मन ही मन खुश हो रहे थे। अगर पी कर यह मस्त हो गयीं तो समझो उनकी रात का मझा कुछ और होगा।

लाउड स्पीकर पर डांस संगीत शुरू हो गया था। नीतू और कुमार बाँहों में बाँहें डाले नाच रहे थे। उनको देख कर ज्योति ने ज्योतिजी से कहा, “लगता है यह दो जवान बदनों की हवस की आग इस यात्रा के दरम्यान जरूर रंग लाएगी।”

ज्योति पर व्हिस्की का रंग चढ़ रहा था। झूमती हुई ज्योति कुमार और नीतू डांस कर रहे थे वहाँ पहुंची और दोनों के पास जाकर नीतू का कंधा पकड़ कर बोली, “देखो बेटा। मैं तुम दोनों से बड़ी हूँ। मैं तुम्हें खुल्लम खुल्ला कहती हूँ की जब भी मौक़ा मिले मत गंवाओ। जिंदगी चार दिनकी है, और जवानी सिर्फ दो दिन की। मौज करो। नीतू तुम्हारे पति ब्रिगेडियर साहब ने खुद तुम्हें किसी भी तरह से रोका नहीं है। बल्कि वह तो तुम्हें कुमार से घुल मिल कर मौज करने के लिए कहते हैं। वह तुम्हें बेटी मानते हैं। वह जानते हैं की वह तुम्हें पति या प्रियतम का मरदाना प्यार नहीं दे सकते।

तो फिर सोचते क्या हो? जवानी के दो दिन का फायदा उठाओ। अगर आप के प्यार करने से किसी का घर या दिल नहीं टूटता है, तो फिर दिल खोल कर प्यार करो।

नीतू के कान के पास जा कर ज्योति नीतू के कान में बोली, “हम भी यहां मौज करने आये हैं।” फिर अपनी माँ ने दी हुई कसम को याद कर ज्योति के चेहरे पर गमगीनी छा गयी।

ज्योति थर्राती आवाज में बोली, “पर बेटा मेरी तो साली तक़दीर ही खराब है। जिनसे मैं चुदाई करवाना चाहती थी उनसे करवा नहीं सकती। कहते हैं ना की “नसीब ही साला गांडू तो क्या करेगा पांडु?”
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

Post by kunal »

नीतू और कुमार बिना बोले ज्योति की और आश्चर्य से एकटक देख रहे थे की ज्योतिजी जो इतनी परिपक्व लगती थीं शराब के नशेमें कैसे अपने मन की बात सबको बता रही थी।

सुनीलजी और ज्योतिजी हॉल की बाँहों में बाँहें डाले घूम घूम कर डांस कर रहे थे। साथ साथ में जब मौक़ा मिलता था तब वह एक दूसरे से एकदम चिपक भी जाते थे। ज्योति ने यह देखा। उसकी नजर सुनीलजी को ढूंढने लगी। सुनीलजी कहीं नजर नहीं आ रहे थे। जब ज्योति ने ध्यान से देखा तो पाया की सुनीलजी वहाँ से काफी दूर एक दूसरे कोने में अपनी बीबी के करतब से बेखबर बाहर आर्मी कैंप के कुछ अफसरान से बातें करने में मशरूफ थे।

ज्योति को व्हिस्की का सुरूर चढ़ रहा था। उसे सुनीलजी के लिए बड़ा अफ़सोस हो रहा था। ज्योति और सुनीलजी आपस में एक दूसरे से एक होना चाहते थे पर ज्योति की माँ के वचन के कारण एक नहीं हो सकते थे। यह जानते हुए भी की ज्योति उनसे चुदवाने का ज्यादा विरोध नहीं करेगी, अगर वह ज्योति पर थोड़ी सी जोर जबरदस्ती करें। पर सुनीलजी अपने सिद्धांत पर हिमाचल की तरह अडिग थे।

वह तब तक ज्योति को चुदाई के लिए नहीं कहेंगे जब तक ज्योति ने माँ को दिया हुआ वचन पूरा नहीं हो जाता और वह वचन इस जनम में तो पूरा होना संभव नहीं था।

मतलब रेल की दो पटरियों की तरह ज्योति और सुनीलजी के बदन इस जनम में तो एक नहीं हो सकते थे। हालांकि ज्योति ने स्पष्ट कर दिया था की चुदाई के सिवा वह सब कुछ कर सकते हैं, पर अब तो सुनीलजी ने यह भी तय कर दिया था की वह ज्योति को छेड़ेंगे भी नहीं। कारण सुनीलजी का लण्ड सुनीलजी के नियत्रण में नहीं रहता था।

जब जब भी ज्योति उनके करीब आती थी तो वह काबू के बाहर हो जाता था और तब सुनीलजी का दिमाग एकदम घूम जाता था। इस लिए वह ज्योति से दूर रहना ही पसंद करने लगे जो ज्योति को बड़ा चुभ रहा था।

ज्योतिजी ज्योति के पति के साथ चिपकी हुई थी। कुमार और नीतू कुछ देर डांस करने क बाद वहाँ से थोड़ी दूर कुछ गुफ्तगू कर रहे थे। ज्योति से बात करने वाला कोई वहाँ नहीं था।

ज्योति उठ खड़ी हो रही थी की एक साहब जो की आर्मी वाले ही लग रहे थे झूमते हुए ज्योति के पास आये और बोले, “मैं मेजर कपूर हूँ। लगता है आप अकेली हैं। क्या मैं आपके साथ डांस कर सकता हूँ?”

ज्योति उठ खड़ी हुई और मेजर साहब की खुली बाँहों में चली गयी और बोली, “क्यों नहीं? मेरे पति किसी और औरत की बाँहों में हैं। पर सच कहूं कपूर साहब? मुझे डांस करना नहीं आता।”

कपूर साहब ने कहा, “कोई बात नहीं। आप मेरे बदन से साथ हुमते हुए थिरकते रहिये। धीरे धीर लय के साथ झूमते हुए आप सिख जाएंगे।”

कपूर साहब करीब पैंतालीस साल के होंगे। आर्मी की नियमित कसरत बगैरह की आदत के कारण उनका बदन सुगठित था और उनके चपल चहल कदमी से लगता था की वह बड़े फुर्तीले थे। उनके सर पर कुछ सफ़ेद बाल दिख रहे थे जो उनके सुन्दर चेहरे पर जँचते थे। ज्योति ने पूछा, “क्या आप अकेले हैं?”

कपूर साहब ने फ़ौरन जवाब दिया, “नहीं, मेरी पत्नी भी आयी है।” फिर दूर कोने की और इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “वह जो उस कोने में जीन्स और डार्क ब्लू टॉप पहने हुए सुन्दर सी महिला उस अधेड़ पुरुष के साथ डांस करती दिख रही है, वह मेरी पत्नी पूजा है।”

ज्योति ने देखा तो वह सुन्दर महिला एक आर्मी अफसर के साथ काफी करीबी से डांस कर रही थी।” ज्योति का मन किया की वह पूछे की वह मर्द कौन था? पर फिर उसने पूछने की जरूरत नहीं समझी। कपूर साहबी काफी रोमांटिक लग रहे थे। वह ज्योति को एक के बाद एक कैसे स्टेप लेने चाहिए और कब अलग हो जाना है और कब एक दूसरे से चिपक जाना है इत्यादि सिखाने लगे।

ज्योति तो वैसे ही बड़ी कुशाग्र बुद्धि की थी और जल्द ही वह संगीत के लय के साथ कपूर साहब का डांस में साथ देने लगी। कपूर साहब भी काफी रूमानी मिजाज के लग रहे थे। जब बदन चिपका ने मौक़ा आता था तब कपूर साहब मौक़ा छोड़ते नहीं थे।

वह ज्योति का बदन अपने बदन से चिपका लेते थे। ज्योति को महसूस हुआ की कपूर साहब का लण्ड खड़ा हो गया था और जब कपूर साहब उससे चिपकते थे तब ज्योति उसे अपनी जाँघों के बिच महसूस कर रही थी। पर उसे कुछ बुरा नहीं लगता था। वह भलीभाँति जानती थी ऐसे हालात में बेचारे मर्द का लण्ड करे तो क्या करे?

ऐसे हालात में अगर औरत को भी कोई अपनी मर्जी के पुरुष के करीब आने का मौक़ा मिले तो क्या उसकी चूत में और उसकी चूँचियों में हलचल मच नहीं जाती? तो भला पुरुष का ही क्या दोष? पुरुष जाती तो वैसे ही चुदाई के लिए तड़पती रहती है।


,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Post Reply