Erotica मुझे लगी लगन लंड की

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kunal
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Re: Erotica मुझे लगी लगन लंड की

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फिर हम तीनों रूम से बाहर आ गए, मैं अपने रूम में आ गई जहाँ मेरे ससुर मेरा इंतजार कर रहे थे।

मुझे देखते ही मुझे अपने से चिपका लिया और बोले- कैसा रहा तुम्हारा काम?

मैंने पापाजी को पूरा किस्सा बताया तो बोले- पाँच बार उसने तुम्हें चोदा?

मैं पलंग पर बैठ गई। वो वेटर हमारे कपड़े रख गया था, मेरे हाथ में मेरी ब्रा आ गई।

पापाजी- 'इसी ब्रा-पैन्टी को देख-देख कर मैंने इतना समय पास किया, बस एक गलती हो गई।'

'क्या?' मैं बोली।

पापाजी- 'बस तुम्हारे बारे में सोच सोच कर तुम्हारी ही पैन्टी में दो बार मैं झड़ चुका हूँ।' ससुर जी ने मुझे मेरी पैन्टी पकड़ा दी।

थोड़ी सी गीली लग रही थी मेरी पैन्टी- क्या दूसरी बार अभी किया है?

पापाजी- 'हाँ बस तुम्हारे आने से कुछ देर पहले ही मेरा माल इस पर निकला है।'

'क्या पापाजी आप भी? मुझे सोचने से अच्छा था कि आप वेटर को बोल कर किसी लड़की को बुला लेते। कम से कम आपका माल जाया न जाता।'

पापाजी- 'अगर तुम चाहती हो कि मेरा माल जाया न जाये तो तुम इस पेन्टी को पहन लो, मेरा माल तुम्हारी बुर में लग जायेगा तो मैं समझ लूंगा कि मेरा माल जाया नहीं गया।'

उनकी बात सुनकर मैंने अपनी पैन्टी उतारी और पापा की दी हुई पैन्टी के उस हिस्से को जो पापा ने अपने वीर्य से गीला किया था, अपने चूत के अन्दर रगड़ा और फिर पहन ली।

पापा मेरे माथे को चूमते हुए बोले- इस तरह का जो सुख तुम देती हो, तुम्हारे अलावा कोई दूसरा नहीं दे सकता।

फिर पापाजी बोले- मैं कुछ खाना आर्डर कर देता हूँ ताकि फिर कोई हमें डिस्टर्ब न करे।

मैंने ओ॰के॰ कहा और मुंह हाथ धोने चली गई, उधर पापा जी ने खाने का ऑर्डर दे दिया। आधे घंटे के बाद खाना आ भी गया, रूम सर्विस वाले के जाने के बाद

पापाजी मुझसे बोले कि मैं अपने कपड़े उतार लूँ क्योंकि वो मेरी मालिश करना चाहते थे।

मैंने पैन्टी छोड़ अपने सभी कपड़े उतार दिये और जैसा मेरे ससुर जी ने मुझे लेटने के लिये बोले, मैं वैसे ही लेट गई। करीब आधे घंटे तक जम कर ससुर जी मेरी मालिश करते रहे, उनके मालिश करने से मुझे थोड़ी राहत मिली और जिस्म से उठती हुई पीड़ा थोड़ा कम सी लगने लगी। मालिश होने के दस मिनट बाद मैं अपने ससुर जी के साथ बाथरूम में थी, मुझे वो अच्छी तरह से नहला रहे थे। हाँ, यह अलग बात है कि बीच में उनकी जीभ मेरी चूत और गांड के छेद को अपना जलवा दिखाने से रोक नहीं पा रही थी। जब मैं नहा चुकी तो ससुर जी ने मुझे तौलिया पकड़ाया।

और बोले- मैं भी नहा कर आ रहा हूँ, तब तक तुम खाना लगा लो, हम दोनों साथ खायेंगे।

मैं खाना लगाने लगी, उधर ससुर जी भी नहा कर बाहर निकले और मुझसे तौलिया लेकर अपने आपको पौंछने लगे, उनका लंड मुरझाया था। मैं उनके लंड को छूने से अपने आपको रोक नहीं सकी, लंड को हाथ में ले लिया और

पुचकारते हुए बोली- देखो बेचारा कैसा उदास है।

ससुर जी तुरन्त बोले- तुम परेशान न हो, इसको बहुत मौके मिलेंगे अपनी उदासी दूर करने के, आओ अब हम खाना खा लें।

खाना खाते-खाते रितेश का फोन आ गया, उसको हाल चाल लेने देने के बाद हम दोनों ने खाना खत्म कर लिया। जिस्म अभी भी हल्का सा दु:ख रहा था, मैं ससुर जी को बोल कर लेट गई। उधर ससुर जी भी सामान समेट कर लाईट ऑफ करके मेरे पास ही लेट गये। कुछ ही देर के बाद मैं नींद की आगोश में आ चुकी थी लेकिन आधी रात को मुझे लगा कि कुछ हिल रहा है, इससे मेरी नींद टूट गई। मेरी नजर ससुर जी पर गई तो देखा उनका हाथ अपने लंड पर बहुत जोर का चल रहा था।

मैं उनको रोकते हुए बोली- यह आप क्या कर रहे हैं?

पापाजी- 'कुछ नहीं, ये आज मान नहीं रहा है और बार-बार कभी तुम्हारी चूत को टच करता और जब कभी तुम अपनी पीठ मेरी तरफ करता तो तुम्हारे गांड को टच करता, इसलिये मैं इसको ठंडा कर रहा था। तुम सो जाओ, ये अब ठंडा होने वाला है।'

मैं उनकी बात को समझते हुए उनके लंड को अपने मुंह में लेकर उसको ठंडा करने में लग गई। जैसे ही लंड मेरे मुंह के अन्दर आया, वैसे ही उसकी अकड़ निकलने लगी, उसके पानी से मेरा मुंह भर गया और ससुर जी को भी राहत मिलने लगी। उसके बाद हम दोनों ने करवट ली और मैंने ससुर जी से चिपक कर अपनी एक टांग उनके ऊपर चढ़ा दी और उनके हाथ को अपने चूतड़ पर रख दिया।

ससुर जी बोले- देखो, तुम मुझसे चिपक रही हो, कुछ देर के बाद ये फिर अकड़ मचाने लगेगा और उत्पात भी मचाने लगेगा तो मैं क्या करूंगा?

मैं थोड़ी मुस्कुरा कर बोली- पापा जी, आप चिन्ता मत करो, इस बार अगर इस बदमाश ने अकड़ दिखाई और उत्पात मचाया तो इसकी अकड़ और उत्पात को मैं अपनी चूत के अन्दर ही ठंडा कर दूंगी।

मेरी बात से संतुष्ट होते हुए उन्होंने मुझे कस कर चिपका लिया। थोड़ी देर तक तो ठीक रहा पर ससुर जी के जिस्म की गर्मी होटल में लगे ए॰सी॰ पर भारी पड़ रही थी और उनका लंड भी हरकत दिखाने लगा था, इधर मेरी चूत भी लंड के हरकत का रिस्पॉन्स करने लगी थी।
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जितना ससुर जी का लंड मेरी चूत के करीब जाता उतना ही मेरी चूत भी उसके करीब जाने के लिये फड़फड़ाने लगती, नीचे दोनों आपस में मिलने के लिये तड़फ रहे थे। उधर मेरी उंगलियाँ ससुर जी के निप्पल से खेल रही थी, इसका असर भी जल्दी ही ससुर जी की उंगलियों के ऊपर होने लगा और वो मेरी घुण्डियों को मसलने लगी। कुछ देर तक तो ऐसा ही चलता रहा, लेकिन कब तक? हार कर ससुर जी ने मुझे सीधा किया और मेरे निप्पल को अपने मुंह में भर कर चूसने लगे, उनके हाथ मेरी चूत के अन्दर सैर कर रहे थे। फिर मैंने ससुर जी को सीधा किया और उनके निप्पल को अपने मुंह के अन्दर भर लिया और उनके लंड को अपने हथेलियों के बीच कैद करके उसको मसलने लगी।

सिसयाते हुए ससुर जी बोले- तुम इसके ऊपर चढ़ाई कर दो ताकि यह भागने न पाये।

मैं तुरन्त उठी और उनके लंड को अपनी चूत के अन्दर ले लिया, बिना नानुकुर किये हुए ससुर जी का लंड बड़ी आसानी से मेरी चूत के अन्दर था। मैंने भी ठान लिया था कि इस अकड़ू लंड को मैं सबक सिखा कर ही छोड़ूंगी। ऐसा सोच कर मैं जोर-जोर से लंड के ऊपर उछलने लगी। लेकिन थकी होने के कारण ज्यादा देर उछल नहीं पाई और ससुर जी से चिपक गई। ससुर जी ने मुझे कस कर पकड़ लिया और मुझे नीचे से चोदना शुरू कर दिया, वो भी बीच-बीच में रूक जाते थे। जब वो रूकते थे तो मैं उछलना शुरू कर देती और जब मैं रूकती तो वो शुरू हो जाते थे। इस क्रिया में चूत और लंड को भी बड़ा मजा आ रहा था। फिर एकाएक ससुर जी ने मुझे कस कर पकड़ लिया उम्म्ह... अहह... हय... याह... और अपने लंड को मेरे और अन्दर घुसेड़ने की कोशिश कर रहे थे, उनकी जांघों ने मेरे चूतड़ों को भी जकड़ लिया था। फिर मुझे अपने अन्दर ससुर जी के पानी का गिरने का अहसास हुआ। जैसे ही उनका रस की एक-एक बूंद मेरी चूत के अन्दर उतर गई, वैसे ही उनकी मेरे पर पकड़ ढीली हो गई और मैं उनके कैद से आजाद हो गई। कुछ देर तक वो मेरी पीठ सहलाते रहे, फिर दोनों एक दूसरे से अलग हो गये और सुबह देर तक सोते रहे।

करीब आठ बजे तक दोनों की नींद खुली, नींद खुलने पर मुझे ख्याल आया कि आज कोलकाता में अन्तिम दिन है, आज रात की गाड़ी से वापस हम लोगों को बनारस जाना है। खैर मैं उठी और लेट्रिन के लिये चली गई, तब तक ससुर जी की नींद खुल गई, वो भी सीधे बाथरूम पहुंच गये,

मुझे देखते हुए बोले- जल्दी से करो, मुझे भी प्रेशर बन रहा है।

मैं- 'बस मुझे पांच मिनट, तब तक आप ब्रश कर लो!' मैं बोली।

ससुर जी वहीं खड़े होकर ब्रश करने लगे। उनके ब्रश करने तक मैं फारिग हो चुकी थी, मेरे हटते ही ससुर जी ने वो स्थान ले लिया। उसके बाद हम दोनों नहाये और नहाने के बाद ससुर जी के कहने पर मैंने साड़ी और लो कट ब्लाउज पहन ली। अपनी फितरत के कारण मैंने ब्रा पैन्टी नहीं पहनी। एक बार फिर मैं और ससुर जी के साथ ब्रेक फास्ट करनेके लिये बाहर आ गई। ऑफिस का भी टाईम हो चुका था और होटल के गेट पर ही गाड़ी भी लग चुकी थी।

मैं गाड़ी के पास पहुंची देखा जीवन ही गाड़ी में ड्राइवर सीट पर बैठा हुआ था और पीछे मोहिनी बैठी हुई थी। मैं मोहिनी के पास बैठ गई, वो लैपटॉप खोले हुए कुछ कर रही थी। हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और हैलो किया। मैंने जीवन को बताया कि आज प्रोजेक्ट कम्पलीट करना है।

मोहिनी बोली- 'डोन्ट वरी!' प्रोजेक्ट 90 प्रतिशत मैंने और सर ने मिलकर कम्पीलट कर लिया है। बाकी दस हम तीनों मिलकर कम्पलीट कर लेंगे।

मैं - 'चल कहाँ रहे हैं हम लोग?'

जीवन- 'बस देखती जाओ।'

मोहिनी वास्तव में बड़ी सेक्सी लग रही थी, उसने स्लैक्स और टॉप पहना हुआ था। फिर हम लोगों के बीच हल्की सी चुप्पी छा गई,

जिसको जीवन ने ही तोड़ते हुए मुझसे पूछा- मैंने सोचा था कि आज तुम और ज्यादा सेक्सी कपड़े पहन कर आओगी?

मैं - 'तो क्या ये सेक्सी कपड़े नहीं हैं?

मेरी बात सुनकर जीवन चुप हो गया लेकिन एक बार फिर बोला- यार रास्ता अभी काफी बाकी है और मुझे गाड़ी चलाने के मजा नहीं आ रहा है।

मोहिनी- 'तो फिर हमें क्या करना चाहिए?' मोहिनी बोली।

जीवन- 'मैं चाहता हूँ कि चलती गाड़ी में सेक्स करूं!'

मैं बोली- मेरे पास एक आईडिया है अगर मोहिनी को भी गाड़ी चलानी आती हो।

मोहिनी के हामी भरने के बाद मैंने अपना आईडिया सुनाया। मेरा आईडिया सुनकर दोनों मुस्कुराये पर इसके अतिरिक्त मेरे दिमाग में और कुछ चल रहा था, मैं सोच रही थी कि मैं यहाँ मस्ती करूंगी और वहाँ मेरे ससुर जो केवल मुझे चोदना पसंद करते हैं, वो बेचारे आज भी अपने लंड से केवल खेलेंगे। मैंने तुरन्त जीवन को कार एक किनारे लगाने के लिये कहा और बाहर आकर ससुर जी से फ़ोन पर कुछ बात की और वापस कार में आकर अपने आईडिया में थोड़ा बदलाव किया। मेरे आईडिया को सुनकर दोनों भी राजी हो गये, गाड़ी वापस होटल की तरफ चल दी।

वापस होटल जाते समय मोहिनी बोली- आज अगर आप सभी मेरे घर चलें तो और मजा आयेगा। जीवन सर की बात पूरी हो जायेगी, तुम्हारी बात भी पूरी हो जायेगी और मैं चाहती हूँ कि बाकी का मजा मैं अपने घर पर करूँ।

हम सभी सहमत हो गये। मोहिनी का घर होटल से दूर था।

होटल से मैंने अपने ससुर जी को पिक किया। गाड़ी में बैठते ही मेरे मुंह से पापा जी का पा ही निकला था कि मैंने पापा जी को पवन सम्बोधित किया।

जीवन पापाजी को देखते ही बोला- आपने आकांक्षा पर क्या जादू कर दिया कि आपकी इतनी उमर के बाद भी यह आपकी मुरीद है।

मैंने बात काटते हुए कहा- पवन, यह मोहिनी है और चलती गाड़ी में आप इसको अपना जादू दिखा सकते हैं।

(मेरे और मेरे ससुर जी के बीच की दीवार खत्म हो चुकी थी, भले ही उसका कारण मेरा तेज बुखार ही क्यों न रहा हो, इसलिये मैंने भी उनको पूरा मजा दिलाने की ठान ली थी।)

मैंने जीवन के लंड को उसकी पैन्ट से बाहर निकाला, उसका सुपारा और मेरी जीभ दोनों एक दूसरे से मिल रहे थे। उधर मोहिनी ने अपनी स्कर्ट ऊपर की और अपनी जांघें फैलाते हुए

मोहिनी बोली- आपने मैम की चूत का तो मजा ले लिया है आईये अब इस चूत को मजा दीजिये।

मोहिनी के इन शब्दों को सुनकर ससुर जी शायद उसकी चूत को चाटने के साथ-साथ काटने लगे थे, तभी वो सिसयाते हुए

मोहिनी बोली- हाँ मेरे राजा, काटो और तेज से काटो बहुत मजा आ रहा है।
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मैं अपने काम में मस्त हो गई और केवल मेरे कान ही उनकी आवाज सुनकर यह पता लगा रहे थे कि दोनों बारी-बारी से एक दूसरे को मजा दे रहे हैं। इधर मैं जीवन का लंड चूस रही थी और अपनी चूत की कामाग्नि को शांत करने के लिये अपनी उंगली का सहारा ले रही थी कि मोहिनी की आवाज आई- खूब बढ़िया मेरे शेर, बहुत मजा आ रहा है।

मैं थोड़ा रूक गई और जीवन ने गाड़ी को साईड में लगा दिया और पीछे घूम कर देखा तो मोहिनी ससुर जी के लंड के ऊपर उछल रही थी और बड़बड़ा रही थी, ससुर जी उसकी चूचियों को तेज-तेज दबा रहे थे। कुछ देर उछलने के बाद

मोहिनी चिल्लाने लगी- आई कम... आई कम... मेरा निकलने वाला है, मेरा निकलने वाला है।

उधर मेरे ससुर जी भी बोले- मेरा भी निकलने वाला है।

मोहिनी ससुर जी से अलग हो गई और फिर ससुर जी के लंड को अपने मुंह में भर लिया, ससुर जी उसके सर को हिलाते हुए अपना पानी पिलाने लगे। उसके बाद मोहिनी ने अपनी पीठ ससुर जी की तरफ की और अपने जिस्म को आधा आगे की सीट पर कपड़े की तरह लटका दिया और एक बार फिर अपनी टांग फैला दिया, ससुर जी की जीभ मोहिनी की चूत के आस-पास और उसके ऊपर चलने लगी। कुछ देर ऐसे ही देखते रहने के बाद

जीवन बोला- मोहिनी अब तुम दोनों आगे आ जाओ और तुम आकर गाड़ी ड्राइव करो, अब मेरी और आकांक्षा पीछे जायेगे। मेरा भी लंड पानी छोड़ने के लिये बैचेन हो रहा है।

हम चारों ने अपने सीट की अदला-बदली की।

अब मैं जीवन के लंड की सवारी कर रही थी या फिर यूं कहे की जीवन का लंड मेरी चूत नुमा गुफा के अन्दर टहलने चला गया। मोहिनी के घर आते आते मैं भी जीवन से चुद चुकी थी। उसके बाद हम सभी मोहिनी के घर के अन्दर थे, चुदाई का एक दौर खत्म हो चुका था।

मोहिनी ने सबसे पहले हम सबको वाईन पिलाई और फिर मैं और जीवन बाकी का बचा काम निपटाने में लग गये, उधर मोहिनी मेरे ससुर की गोद में बैठ गई और

मोहिनी मुझसे बोली- तुम्हारे इस दोस्त का भी स्टेमना बहुत है।

मैं ससुर जी को इशारा करने की नियत से बोली- इनमें स्टेमना तो बहुत है, पर इनकी पहली पसंद गांड है, चूत तो दूसरी पसंद है। ये मेरी गांड बहुत मारते हैं।

मोहिनी - 'लेकिन मैंने आज तक गांड नहीं मरवाई है।'

जीवन बोल उठा- यार, गांड मारना तो मुझे भी बहुत पसंद है, और मैं भी कल गांड मारने का मजा लेना चाहता था लेकिन चलो आज ले लूंगा। चलो, जब तक मैं और आकाक्षा इस काम को निपटा रहे हैं, तब तक तुम आज पवन से गांड मरवाने का मजा लो।

ससुर जी भी मोहिनी की तरफ मुखातिब होते हुए बोले- हाँ-हाँ, जाओ थोड़ा सा तेल या फिर कोई क्रीम ले आओ। चूत से ज्यादा मजा गांड में मिलेगा।

थोड़ा नकुर के बाद मोहिनी एक क्रीम की टयूब ले आई। ससुर जी ने टयूब लेकर एक किनारे रख दिया और फिर मोहिनी को झुकाते हुए उसकी गांड और चूत दोनों ही चाटने लगे। मोहिनी पर नशा सवार हो रहा था, वो अपने हाथों से गांड को और फैलाकर ससुर जी को अपनी जीभ उसके छेद के और अन्दर ले जाने की दावत दे रही थी। ससुर जी भी उसकी गांड चाटने के साथ-साथ एक उंगली उसकी गांड के अन्दर डालने की कोशिश कर रहे थे। फिर वो क्रीम उंगली में लेकर गांड के अन्दर लगाने लगे, ऐसा करते रहने से उनकी एक उंगली पूरी तरह से मोहिनी की गांड के अन्दर जा चुकी थी। इसी तरह वे अपनी दो-दो उंगली मोहिनी की गांड में आसानी से डालकर अन्दर बाहर कर रहे थे।

इधर हम दोनों भी काम के बीच में एक दूसरे से छेड़खानी कर ले रहे थे। मेरी नजर काम के साथ साथ मोहिनी और मेरे ससुर जी दोनों में थी। जब उंगली आसानी से जाने लगी तो ससुर जी ने अपना लंड मोहिनी के मुंह में डाल दिया, कुछ देर लंड चुसवाने के बाद एक बार फिर मोहिनी को पहले वाली पोजिशन में खड़ा कर दिया और अपने लंड से उसकी गांड को सहलाने लगे और फिर लंड को गांड के छेद में दबानए लगे। लंड का सुपाड़ा गांड में घुस चुका था।

मोहिनी- 'उइईई ईईईईई माँ, निकाल लीजिए!' वो अपने को ससुर जी से अलग करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन ससुर जी ने उसकी कमर को कस कर पकड़ा हुआ था। मैं तुरन्त मोहिनी के पास पहुंची और उसकी चूची को दबाने के साथ साथ चूसने लगी। धीरे धीरे उसका दर्द शायद कम होने लगा था, क्योंकि उसके मुंह से निकलती हुई आवाज कम होने लगी थी। ससुर जी भी उसको सहला रहे थे, जीवन ने उसकी दूसरी चूची को अपने मुंह में भर लिया। मोहिनी के स्तन को छोड़कर मैंने ससुर जी के लंड पर क्रीम लगाई और मोहिनी की गांड के अन्दर भर दी और ससुर जी को हल्का सा इशारा किया। एक बार फिर ससुर जी ने उसकी गांड सहलानी शुरू की, मैंने ध्यान दिया जब ससुर जी अपना लंड उसकी गांड से दूर करते तो उसकी गांड का छेद बन्द हो जाता और जैसे ही लंड छेद के पास आता तो छेद खुल जाता। गांड सहलाते सहलाते हुए इस बार फिर एक तेज का झटका और इस बार आधा लंड गांड के अन्दर घुस चुका था।

मोहिनी- 'उम्म्ह... अहह... हय... याह... उईई मां... मैं मर गई।'

लेकिन मेरे और जीवन के लगातार उसे सहलाने से और उसे प्रोत्साहित करते रहने से वो फिर धीरे-धीरे रंगत पर लौटने लगी थी। अब ससुर जी भी अपना काम शुरू कर चुके थे, वो धीरे धीरे उसकी गांड की चुदाई करना शुरू कर चुके थे।
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