Romance फिर बाजी पाजेब

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rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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राजेश के शरीर पर सस्ती-सी पतलून कमीज थी-कंधे पर पुराना सस्ता बैग लटक रहा था जिसमें दो-चार कपड़े थे-वह बस स्टॉप से उतरकर उस बस्ती की ओर बढ़ा जो बंगले से ज्यादा दूर नहीं थी। अचानक ही उसके कानों में एक ललकरा-सी आवाज गूंजी
.
.
"ठहर जाओ...हीरो।"

राजेश ठिठककर रूक गया। दूसरे ही क्षण उसने छगन दादा को देखा जो अपने चारों साथियों के साथ एम्बेसडर के पास खड़ा बोतल से मुंह लगाए शराब पी रहा था।

राजेश बड़े नम्र स्वभाव से आगे बढ़ता हुआ मुस्कराकर छगन दादा से बोला-“छगन दादा! बड़ा अच्छा हुआ कि आपसे भेंट हो गई।"

"छगन दादा को भी तुमसे मिलकर खुशी हुई।"
."
"अच्छा ...!"

"हां हीरो! तुम्हारा एक पुराना कर्जा चुकाना है ना"

"अरे, छोड़ो भी दादा-दस दुनिया में लेन-देन तो होता ही रहता है।

"अभी मेरी तरफ से तो केवल लेन हुआ था-देन का समय ही नहीं मिला आज सौभाग्य से देन का भी अवसर मिल गया।" यह कहकर छगन दादा ने एक जोरदार घूसा राजेश के सीने पर जड़ दिया।

राजेश लड़खड़ाकर पीछे हट गया और संभलकर बोला
"इस देन का मतलब तो समझा दो दादा।"

"भूल गए हीरो? उस दिन एक लड़की की खातिर जरा-सी देर में तूने क्या किया था?"

"लड़की की खातिर..अरे तब तो मैं जरूर उस लड़की की नजरों में हीरो बनना चाहता हूंगा...अब जाने भी दो दादा।"

"जाने कैसे दूं. मेरा पूरा पचास हजार का नुकसान करा दिया था उस दिन तुमने।"

"सिर्फ पचास हजार...बस इतनी-सी रकम? इस छोटी-सी बात पर झगड़ा?"

"यह इतनी-सी बात है।

"अगर मैं तुम्हारे पचास हजार दे दूं तो?"

"फिर हमारा कोई झगड़ा नहीं ।"

राजेश ने जेब में हाथ डालकर कहा-"तो यह लो...यह कौन-सी बड़ी बात है।" उसने दस रूपए का एक नोट निकालकर दादा की ओर बढ़ा दिया तो छगन गुस्से से बोला
"इसका मतलब?"

"तुम्हारे कर्जे का भुगतान शुरू...अभी यही है-बाकी उनन्चास हजार नौ सौ रूपए मैं नौकरी मिलने पर चुका दूंगा।"

"खूब! तो तुम बेरोजगार भी हो।"

"इस समय..मगर घबराओ मत...मुझे बहुम जल्दी नौकरी मिल जाएगी।

"अभी तो तुम धरती का बोझ हो...उसे कम करना चाहिए।"

"कार में बैठ जाऊं?"

"नहीं-परलोक जाओ।" दादा ने फिर चूंसा मारा-राजेश लड़खड़ाकर पीछे हटा-उसके होंठों के कोनों से खून निकल आया उसने आस्तीन से लहू पोंछा और बोला-"क्यों मजाक करते हो दादा?
अब बस भी करो।"

"क्यों? आज वह हीरोपन किधर गया?"

"यार! उस रोज लड़की का मामला था।"

"और आज क्या कोई लड़की सामने नहीं है?"

"और क्या?

"चलो...आज तुम जीरो ही बन जाओ सदा के लिए।" दादा ने फिर उसके सीने पर सिर मारा।

राजेश ने झुकाई दी तो छगन पूरा घूम गया-पीछे से राजेश ने उसे लात मारी और वह एम्बेसडर के बोनट से टकराया।

राजेश ने कहा-"मान जाओ दादा! दोस्ती कर लो तो फायदे में रहोगे।"

छगन ने चिल्लाकर साथियों से कहा-"मारो साले को।"

"अरे! मेरी कोई बहन नहीं तो साला कैसे बन गया?"

छगन के साथ उसके साथी भी राजेश पर टूट पड़े। राजेश ने बैग संभाला और उसे झुला झुलाकर वह उन लोगों की पिटाई करने लगा। अचानक पीछे से एक चीख भरी आवाज गूंजी-"राजेश बाबू!"

राजेश ने मुड़कर देखा..और दूसरे ही क्षण पीछे से उसके सिर पर बोतल की चोट पड़ी-राजेश लड़खड़ा गया और उसकी आंखों में अंधेरा-सा छा गया और कई तरफ से लोग उस पर टुट पड़े।

वही चिल्लाने की आवाज आई-"राजेश बाबू...राजेश बाबू!"

राजेश ने लड़खड़ाकर कहा-"सुना दादा, लड़की की आवाज।"

फिर अचानक जैसे राजेश के अंदर कोई भूत समा गया हो। उसने बैग घुमा-घुमाकर बिजली की तरह चलाया-कराहों की आवाजें आती रहीं साथ ही चीखें भी।

फिर छगन ने चिल्लाकर कहा-"चलो, पुलिस आ रही है।
rajan
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कुछ देर बाद सारे बदमाश एम्बेसडर में थे और एम्बेसडर सड़क पर दौड़ रही थी।
-
"भाग गए साले ।“ राजेश ने मुस्कराकर कहा और उसके पीछे दौड़ने लगा...सुनीता के संभालते-संभालते वह जमीन पर लेट चुका था।

पता नहीं कितनी देर बाद राजेश की बेहोशी टूटी तो उसके कानों में विद्यादेवी की आवाज आई-"हाय राम! यह तो वही लड़का है।"
.
"राजेश बाबू!"

"हां, इसी ने तो मुझे बचाया था छगन दाद से।"

हां मां...।"

"मगर इसे हो क्या गया?"

"छगन दादा ने शायद बदला लेने के लिए इन्हें घेर लिया था-मगर यह अकेले सबसे मुकाबला करते रहे थे।"

"अच्छा !"

"अगर मै इन्हें पीछे से चिल्लाकर न पुकारती तो छगन दादा की बोतल इनके सिर पर पड़ती।"

"हे भगवान!"

"यह भी बड़ी बहादुरी की बात है कि इन्होंने सबको भगा दिया, तब बेहोश हुए।"

"कहां रहता है?"

"बस्ती के पास स्टॉप से थोड़ा इधर ही।"

"यहां क्या करने आ रहा था?"

"शायद हम ही से मिलने आ रहे थे।"

"और यह बैग?"

"शायद कपड़े हैं-शेव बढ़ा हुआ है-जरूर कोई परेशानी की बात हुई है इसके साथ ।"

राजेश, जो बेहोश बना उनकी बातें सुन रहा था उसने आंखें बंद किए हौले से करवट लेने की कोशिश की...और मुंह से कराह-सी निकल गई। सुनीता चौंककर बोली-" होश में आ रहा है।"


"तू जल्दी से दूध गरम करके ले आ..हल्दी डालकर।"

अचानक राजेश ने आंखें खोल दी...पलकें झपकराई
और अपने आप बड़बड़या-"मैं कहां हूं?"

सुनीता ने कहा-"आप घबराएं नहीं..सुरक्षित जगह पर हैं।"
.
राजेश हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ..इधर-उधर देखकर हैरानी से बोला
"कौन लाया मुझे यहां?"

"मैं कुछ बस्ती वालों की मदद से लाई हूं।"

सुनीता ने कहा-"आपके ऊपर छगन दादा हमला कर दिया था।"

"छगन दादा।" राजेश चोट सहलाता हुआ बोला-"ओह! अब याद आया। अचानक उधर से पुलिस की गाड़ी आते देखकर वह भाग निकले।"

राजेश उठता हुआ बोला-"अच्छा सुनीता जी..मांजी आप लोगों का बहुत-बहुत शुक्रिया।"

सुनीता हड़बड़ाकर बोली-"अरे...अरे...आप क्या कर रहे हैं आपके सिर में चोट लगी है।"

राजेश ने सिर पर हाथ फेरकर कहा-"और यह आपने पट्टी बांधी है?"

“मगर मैं आपको इस तरह नहीं जाने दूंगी।"

“मुझे बहुत काम करना है सुनीता जी ।"

विद्यादेवी ने कहा-"तुम बैठो तो बेटे।" और उसने सुनीता से कहा-"जा, जल्दी से हल्दी डालकर गरम-गरम दूध देकर आ..हल्दी डालकर पीने से अंदर की चोट जल्दी ठीक होती है...पीड़ा भी कम होती है।"
rajan
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राजेश मुस्कराकर बोला-"मांजी ! मैं कोई दूध पीता बच्चा हूं-हां सुनीता जी...अगर चाय का एक गरम कप मिल जाए तो मेहरबानी होगी।"

सुनीता चली गई तो विद्यादेवी ने कहा-"तुम लेट जाओ बेटा।"

"क्यों मांजी?"

"तुम्हें आराम की जरूरत है।"

"अरे मांजी...मर्दो को और फिर जवान मर्दो को ज्यादा आराम शोभा नहीं देता...जीवन आराम से नहीं चलता ।"

इतने में सुनीता चाय लेकर आ गई। राजेश ने प्यालर लेकर चाय सिप करते हुए कहा-“वाह! मजा आ गया एक ही चूंट ने जैसे शरीर में नई जान फूंक दी हो।"

सुनीता ने पूछा-"आप कंधे पर बैग लटकाए कहां घूम रहे हैं?"

"बंजारो का भी कोई ठौर-ठिकाना होता है?"

"क्या मतलब ?"

"आप बंजारे का भी मतलब नहीं समझते।"

"आप पहले कहां रहते थे?"

"एक सेठ से क्वार्टर में मां के साथ ।"

“और आपकी मां?"

"वह गांव गई हैं...सेठ ने हम दोनों को निकाल दिया है।"

"क्यों ?"

"पिताजी थे नहीं...मां किचन संभालती थीं-सफाई इत्यादि करती थीं-मैं माली की काम करता था और पढ़ता भी था...मुझे इंजीनियरिंग की डिग्री मिल गई...मैने कहा अब मां सेठ से घर नौकरी नहीं करेगी और न मैं माली का काम करूंगा...सेठ ने मुझे इंजीनियर की नौकरी देने से इंकार कर दिया इसलिए मैंने मां को गांव भिजवा दिया और स्वंय नौकर ढूंदूंगा। पता चला था, इस बस्ती में कुछ लोग पेइंग गेस्ट रख लेते हैं...बस इसी खोज में था।

"तो आपको रहने की जगह चाहिए, जिसके लिए आप भटक रहे हैं?"

"और क्या करूं?"
.
"राजेश बाबू! आपने दो बार मेरी इज्जत बचाई है और जान भी-इतन बड़ा उपकार किया है आपने...क्या हम लोग इतनी भी मदद नहीं कर सकते...इतना बड़ा बंगला है।"

"यह आप क्या कह रही हैं?"

विद्यादेवी ने कहा-"हां बेटा, इतना बड़ा बंगला है हम मां-बेटी ही रहते हैं...कभी-कभी छगन दादा भी तंग करता रहता है...तुम यहां रहोगे तो हम भी खुद को सुरक्षित अनुभव करेंगे।"

सुनीता ने कहा-"जब तक आपको नौकरी नहीं मिलती, आप हमारी क्लास के बच्चों को पढ़ा
सकते हैं-खाना जो रूखा-सूखा हम खाते हैं आप भी हमारे साथ खा लिया कीजिएगा।"

राजेश ने हल्की सांस लेकर कहा-"अब आप इतनी अपनेपन के साथ कह रही हैं तो एक सजेशन मेरी भी है।"

"हां जरूर।"

"मैंने माली का काम भी सीख लिया है...क्यों न चारदीवारी के अंदर एक खूबसूरत बगीचा लगवा लें...कुछ क्यारियां सब्जी की भी लग सकती हैं... अगर आपको कोई आपत्ति न हो।"

"इससे अच्छर कोई बात भी नहीं...बच्चों को भी शिक्षा मिलेगी। फिर उन्होंने सुनीता से कहा
"राजेश को उनका कमरा दिखा दो।"
rajan
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सुनीता राजेश को लेकर ऐसे कमरे में ले गई जो पिछले कम्पाउंड की तरफ था-कम्पाउंड वाल कोई खास ऊंची नहीं थी-बरामदे से आगे क्यारियां बनी थीं..थोड़ी दूर पर समूद्र पर समुद्र की लहरें नजर आ रही थीं-बड़ा सुहाना दृश्य था। राजेश ने कहा

"यहां तो किसी राजमहल का-सा आनंद मिल रहा है। बड़ा भाग्यशाली हं जो आप लोगों से भेंट हो गई।

"आपसे ज्यादा हम भाग्यशाली हैं।"
--
"सुनीता जी! आप मुझे झाड़ पर चढ़ा रही हैं...और झाड़ मेरा बोझ नहीं संभाल सकेगा और मैं गिर पडूंगा।"

सुनीता हंसकर रह गई। राजेश का दिल धड़क उठा...उसके कानों में जैसे घंटियां-सी बज उठी थीं। अचानक किसी बच्चे के रोने के साथ किसी औरत की भी आवाज आई जो शायद रुआंसी होकर विद्यादेवी को पुकार रही थी।

सुनीता रूककर बाहर आई..राजेश भी उसके पीछे आया। विद्यादेवी बरामदे में पहुंच चुकी थीं। एक बदसूरत मैले-कुचैले कपड़ों वाली औरत बुरी तरह रो रही थी-उसकी गोद में बच्चा था और उसके सिर से खून बह रहा था। विद्यादेवी ने घबराकर पूछा

"क्या हुआ सकीना ?"

"मांजी! मेरे बच्चे को कोई कार वाला टक्कर मारकर चला गया है...घर में खाने को भी कुछ नहीं-मेरा मर्द मजदूरी करने गया है, एक हफ्ते से।

सुनीता ने जल्दी से जेब से कुछ रूपए निकाले । राजेश ध्यान से देख रहा था-सुनीता दौड़कर अंदर चली गई-विद्यादेवी ने बिना किसी झिझक के बच्चे को सकीना से लेकर सीने से चिमटा लिया। कुछ देर बाद सुनीता रूपए लेकर आ गई और विद्यादेवी ने कहा

"जल्दी से बाहर दौड़कर टैक्सी रोक ले।"

सुनीता बाहर दौड़ी तो राजेश ने हाथ बढ़ाकर कहा
"मांजी, बच्चा मुझे दीजिए, यहां टैक्सी मुश्किल से मिलती है...मैं बच्चे को लेकर जाता हूं सुनीता जी
के साथ।

"तो...।"

"हां मांजी।"

राजेश ने बच्चे को ले लिया तो सकीना बोली

"खुदा तुम्हारा भला करे भैया।"

बच्चे के शरीर और कपड़ों से बदबू आ रही थी। राजेश को कराहट महसूस हुई, लेकिन वह बच्चे को लेकर दौड़ता चला गया। संयोग से बाहर सुनीता को टैक्सी मिल गई जिसे उसने रूकवा लिया। सकीना भी अंदर आ गई कुछ देर बाद तीनों टैक्सी में थे-बच्चा राजेश ही की गोद में था
और टैक्सी दौड़ रही थी।

राजेश ने मोबाइल से नम्बर मिलाकर इंस्ट्रूमेंट कान से लगा लिया-कुछ देर बाद आवाज आई-"हां राजेश बोलो।"
.
.
"प्रेम साहब, मैं मास्टरजी के बंगले पहुंच गया हूं।"

"फाइल, कोई प्रोग्रेस?"

"रहने को जगह मिल गई है...खाने को मिल गया है...एक दिन में और क्या प्रोग्रेस हो सकती है।"
.
"नाइस...अब बात आगे बढ़े तो खबर करना ।"

"जरूर।"

राजेश ने सम्पर्क काटकर सेठजी से सम्पर्क साधा और रिसीवर कान से लगा लिया।


सेठ दौलतराम ने नम्बर देखे-फिर रिसीवर कान से लगाकर बोले
"हां बोलो।"

“सेठजी मैं कामयाब हो गया हूं।"

"किस हद तक?"
.
"बंगले में रहने की जगह मिल गई है-खाना मिलने लगा है...और मास्टर जी की बेटी भी मेहरबान है।"

"वैरी गुड...पूरी कामयाबी मिलने पर खबर करना।"


"जी..सेठ जी!"

"कोई परेशानी तो नहीं?"

"जी नहीं।"

"ओके!" सेठ दौलतराम ने फोन बंद करके हैंडपीस वापस रख लिया और कमरे से निकलकर वह डाइनिंग हॉल में आए जहां डाइनिंग टेबन पर जगमोहन मुंह लटकाए बैठा था और पारो खाना परोस रही थी। सेठजी ने अपनी घृणा और गुस्से को दबाया और कुर्सी खींचकर बैठते हुए जगमोहन को देखकर बोले

"क्या बात है भई...हमारे प्रिंस का मुंह क्यों लटका हुआ है?"

"राजेश की वजह से दुःखी है-कहां भेज दिया है उसे आपने ?"

"अरे! एक बहुत बड़ा सौदा करने भेजा है उसे ।'

"सौदा...!"

"हां पारो...एक बहुत ही अच्छी जगह एक बहुत बड़ा प्लाट है-जिसकी मालकिन आधी पागल है...बेचने को राजी नहीं-हम उसे काफी रकम और दो फ्लैट तक देने को तैयार हैं।"

"यह उसकी इच्छा है...जबरदस्ती थोड़े है।"

"अरे! वह बूढ़ी है...मर जाएगी तो प्लाट पर ऐरे-गैरे कब्जा कर लेंगे। वह प्लाट मिल गया तो करोड़ों को फायदा होगा-और हम सग की उम्र आराम से कट जाएगी।"

"और राजेश यह काम कर लेगा?"
"हमें उसकी बुद्धिमानी पर पूरा भरोसा है-इसीहिए हमने यह काम उसे सौंपा है।"
.
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