Romance बन्धन

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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

Post by Jemsbond »

शंकर ने उसे अपना घर का पता बताया और भरे.भरे मन से विदा कर दिया।
जेल के फाटक से बाहर आते ही गोविन्द को लगा, जैसे वह किसी नई दुनिया में आ गया है...सब कुछ वैसा ही था, जैसा वह छोड़ यगा था।
___ कमला ने फुलझड़ी जलाकर मोनू के हाथ में दे दी। मोनू ने फुलझड़ी को ले लिया
और हंसते हुए उसे घुमाने लगा।
मदन अपनी व्हील चेयर बढ़ा कर उसके पास आ गया और हर्ष भरे स्वर में बोला, "शाबाश बेटे...शाबाश...डरो नहीं, खूब जोर से घुमाओ।"
"मैं कहां डर रहा हूं डैडी!" मोनू ने कहा।

कमला और शम्भू तालियां बजाकर हंसने लगे।
अचानक मोनू के हाथ पर फुलझड़ी से झड़ते शोलों का एक हल्का सा छींटा आ पड़ा और वह फुलझड़ी फेंक कर मदन से लिपट गया।
"क्या हुआ मेरे बेटे को, देखू।" मदन ने जल्दी से मोनू का हाथ पकड़कर देखा।
शम्भू भी घबरा गया औरर कमला की तो जैसे जान ही निकल गई।
लेकिन मोनू जल्दी से हंसते हुए बोला, "कुछ नहीं हुआ...मुझे तो कुछ नहीं हुआ।"
"हे भगवान, तेरा लाख.लाख शुक्र है।" कमला ने इत्मीनान की सांस ली। “बस कीजिए, अब बहुत छूट चुकी आतिशबाजी...।"

"नहीं मम्मी, थोड़ी.सी और छोड़ेगे।"
"ठहरो बेटे, हम छुडायेंगे।" शम्भू ने आगे बढ़ते हुए कहा।
शम्भू ने कम्पाउन्ड के बीच में एक अनार रखकर उसमें आग लगा दी। शेलों के फब्वारे उबलकर चारों और फैलने लगे। कम्पाउन्ड में तेज रोशनी फैल गई।
और मोनू खुशी से उछल कर तालियां बजाने लगा।
गोविन्द राम के सीने पर सांप लोट गया। वह एक अंधेरे कोने से सब कुछ देख रहा था। व्हील चेयर पर बैठा मदन रह रहकर मोनू को चूम लेता था। कमला भी बार.बार बच्चे को लिपटाकर प्यार करने लगती थी।
मदन को इतना खुश और सुखी देखकर गोविन्द के मस्तिष्क में आंधियां मचल उठी...उसका समूचा बदन क्रोध से जल उठा।
"कितने सुख से रह रहा है यह कमीना...जिसने मेरी हरी.भरी दुनिया जला कर खाक कर दी...अगर आज मेरी शीला जिन्दा होती तो मेरा बेटा मेरे पास होता, और मैं भी इसी तरह दीवाली मना रहा होता।"
"क्या इसी को भगवान का न्याय कहते हैं? एक पापी को इतना सुख मिल रहा है
और मैं निरपराधी होकर ठोकरें खाता फिर रहा हूं।"
"मैं इस कुत्ते को जान से मार डालूंगा।"

गोविन्द राम ने होंठ भिंच गए, मुटिठयां कस गईं।
लेकिन तभी उसके कानों में शंकर के शब्द गूंज उठे।
"अपने प्रतिशोध की आग बुझा कर तुम फिर जेल में आ जाओगे।"
"संभव है, फिर सारी जिन्दगी इसी जेल में रहना पड़े। तब क्या तुम अपने बच्चे को खोज पाओगे? क्या तुम्हारी पत्नी की आत्मा को शान्ति मिल पाएगी?"
गोविन्द राम का समूचा बदन कांप उठा।
"तो मैं क्या करूं...मेरे सीने में धधकती यह आग किस तरह बुझेगी?"

"एक उपाय?"
"शंकर ने कहा था दुश्मन से बदला जरूर लो, लेकिन इस तरह कि उसकी जिन्दगी मौत से भी गई बीती बन जाए।"
और दूसरे ही क्षण गोविन्द राम आंखों में बिजली.सी कौंध गई।
"हां मैं ऐसा ही बदला लूंगा तुझसे मदन...तू जिन्दगी भर तड़पेगा...उसी तरह जिस तरह आज मैं अपने बेटे के लिए तड़प रहा हूं।"
रात का अंधेरा गहरा हो गया था। दीवाली के चिरागों की रोशनी मद्धिम पड़ गयी थी।
गोविन्द राम पेड़ से उतरा और कोठी के पिछवाड़े एक खिड़की के पास पहुंच कर रूक गया।
.
.
.
.

वह इस कोठी के चप्पे.चप्पे से परिचित था। अनेक बार इस कोठी में आया था। उसने धीरे से खिड़की के पट अंदर की ओर धकेले...खिड़की खुल गई। उसने धीरे से खिड़की के पट अंदर की ओर
धकेले...खिड़की खुल गई। उसने झांककर देखा। सामने एक डबल बैड था जिस पर एक ओर कमला सो रही थी; दूसरी ओर मदन और बीच में मोनू सोया पड़ा था। मदन और कमला एक.एक हाथ मोनू के ऊपर रखा हुआ था।
गोविन्द खिड़की से कमरे में कूद गया। बैड के पास पहुंचकर उसने कमला के हाथ में नाखून चुभोया और जल्दी से नीचे बैठ गया। कमला ने हाथ झटक कर करवट बदल ली। फिर गोविन्द ने मदन के हाथ में नाखून चुभोया। उसने भी जल्दी से मोनू के ऊपर रखा हाथ हटा लिया।
गोविन्द उठकर खड़ा हो गया। कुछ देर खड़ा वह उन दोनों को देखता रहा। फिर उसने बहुत धीरे से एक हाथ मोनू के मुंह पर रखा और दूसरे हाथ से मोनू उठा लिया।
और फिर उसे कंधे से लगा कर खिड़की से बाहर कूद गया।
उसके कंधे से लगा मोनू गहरी नींद सोया हुआ था।
कमरे से निकलकर गोविन्द ने कम्पाउन्ड की दीवार भी पार कर ली और तेजी से एक ओर चल दिया।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
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(^%$^-1rs((7)
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Re: Romance बन्धन

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कुछ दूर जा कर उसने एक टैक्सी ली और एक.ओर चल दिया।
कमला ने करवट बदली और अपना हाथ मोनू के ऊपर रखना चाहा। लेकिन उसका हाथ बिस्तर पर आ गिरा। झटका लगने से उसकी आंखें खुल गईं। कुछ देर तक नींद से बोझिल आंखों से मोनू की
खाली जगह को देखती रही। फिर हड़बड़ाकर उठ बैठी।
"हाय राम...!"
उसने घबड़ाकर मदन को झंझोड़ डाला।
"सुनिए...सुनिए...मेरा लाल कहां गया?"
"मोनू..." मदन हड़बड़ा कर उठ बैठा, "यहीं तो था...कहां चला गया?"

"हाय राम, मेरा लाल कहां गया?"
"जल्दी से देखों, यहीं कहीं होगा।"
हड़बड़ाहट में मदन ने झपटकर खड़े होने की कोशिश की, लेकिन औंधे मुंह फर्श पर जा गिरा। कमला ने झपटकर उसे उठाया और व्हील चेयर पर बैठा दिया और चीखती हुई भागी।
"मोनू...मोनू...मेरे लाल...कहां हो तुम?"
"क्या हुआ मालकिन...क्या हुआ।" शम्भू दौड़ता हुआ आ गया।
"काका, मेरा मोनू कमरे में नहीं है।"
"कमरे में नहीं है...?" शम्भू सन्नाटे में रह गया।

"भगवान के लिए, मोनू को खोजो काका...मेरे मोनू को खोजो।"
.
.
.
थोडी ही देर मे कमला और शम्भू ने कोठी छान मारी, लेकिन मोनू का कहीं पता न चला।
कमला बिलबिलाकर रो पड़ी।
"मोनू...मेरे लाल...तू कहां गया मेरे बेटे...!"
मदन सन्नाटे में डूबा व्हील चेयर पर बैठा था। उसकी आंखों में आंसू थे।
शम्भू की आंखों में भय की छाया थी। उसने लंबी सांस लेकर कहा,
"अब क्या होगा मालिक?"

"जल्दी से पुलिस को फोन करो काका। शहर के सभी पुलिस स्टेशनों को खबर कर दो। शहर में ढिंढोरा पिटवा दो। जो कोई मेरे बच्चे को ढूंढकर लाएगा, उसे मैं अपनी सारी दौलत उसे दे दूंगा। काका...मुझे मेरा मोनू चाहिए...वही मेरी सबसे बड़ी दौलत है।"
और फिर मदन हाथों में मुंह छिपाकर रोने लगा।
एक गली में पहुंचते.पहुंचते मोनू कसमसाया और उनींदी आवाज में पुकारने लगा.
"मम्मी...! मम्मी...!!"
गोविन्द ने जल्दी से मोनू का मुंह बंद कर दिया। मोनू बिलबिला उठा।
.
गोविन्द ने कठोर स्वर में कहा.“खबरदार, मुंह से आवाज निकाली तो गला घोंट दूंगा।"
डर के मारे मोनू की आवाज गले में ही घुटकर रह गई।
कुछ देर बाद गोविन्द गली पारकर सड़क पर आ गया।
आधे घंटे बाद वह एक कोठी के कम्पाउन्ड में पहुंच गया। कम्पाउन्ड में सन्नाटा छाया हुआ था। बरामदे में रोशनी हो रही थी। गोविन्द ने मोनू को बरामदे में खड़ा
कर दिया और अपनी सांस संभालने लगा। मोनू बरामदे के एक खम्भे से टिककर खड़ा हो गया। उसके दोनों हाथों की मुटिठयां सीने पर बंधी हुई थीं। और वह भयभीत निगाहों से गोविन्द की ओर देख रहा था।


गोविन्द को लग रहा था, जैसे मोनू की मासूम निगाहें बड़ी तेजी से उसके दिन में उतरती चली जा रही हैं। एक अनजानी शक्ति उसके हृदय को मोनू की ओर खींच रही थी। मन में प्यार और ममता का एक तूफान उमड़ आया था।
"आप...आप कौन हैं?" मोनू ने कांपते हुए भोलेपन से पूछा, "मेरे डैडी...और मम्मी...कहाँ हैं?"
.
.
.
__ अचानक गोविन्द ने किसी अज्ञात शक्ति से प्रेरित होकर मोनू को खींच कर अपने । सीने से लगा लिया।
"घबराओ मत बेटे, हम तुम्हारे अंकल हैं। तुम्हारे डैडी और मम्मी ने हीं तुम्हें हमारे पास भेजा है।"

"डैडी.मम्मी के पास ले चलिए मुझे।"
"सुबह तुम्हे तुम्हारे डैडी.मम्मी के पास ले चलेंगे। यहां तुम्हारी आंटी रहती हैं, हम उनसे मिलने आए हैं।"
"सुबह जरूर ले चलेंगे न अंकल?"
"हा.हां बेटे...जरूर ले चलेंगे।"
गोविन्द ने मोनू को गोद में उठा लिया और कॉल.बैल का बटन दबाने लगा। अंदर घंटी बजने की आवाज आई। लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला।
गोविन्द ने घंटी फिर बजाई। लेकिन बेकार।
दरवाजा अंदर से बंद था। गोविन्द कुछ देर खड़ा.खड़ा सोचता रहा। फिर बड़बड़ाया, "जरूर कोई गड़बड़ है।"
+
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Re: Romance बन्धन

Post by Jemsbond »

"अंकल...आंटी दरवाजा क्यों नहीं खोल रहीं?
___ "बेटे, उनकी तबियत खराब मालूम होती है।"
गोविन्द ने दरवाजे के ऊपर की ओर देखा और मोनू से बोला. लो बेटे, तुम मेरे कंधे पर खड़े होकर अन्दर की चटकनी खोल दो।"
गोविन्द ने मोनू को अपने कंधे पर खड़ा कर लिया। मोनू ने अन्दर हाथ डाल कर चटकनी टटोली और फिर खोल दी।
"शाबाश बेटे...!"

बन्धन गोविन्द ने दरवाजे को धक्का दिया और मोनू को गोद में लिए हुए अंदर चला गया।
अचानक अंदर किसी कमरे में किसी मासूम बच्चे के रोने की आवाज आई। गोविन्द चौंक पड़ा।
मोनू ने कहा.
"अंकल...अंकल...यह किसका बच्चा रो रहा है?"
“बेटे, यह तुम्हारी आंटी का बच्चा है।"
"मैं खिलाऊंगा इसे।"
गोविन्द मोनू को लिए आवाज की दिशा में बढ़ता रहा। फिर एक कमरे के दरवाजे पर ठिठक कर रूक गया। कमरे में बिस्तर पर एक औरत बैठी गहरी सांसे ले रही थी। और उसके पैरों के पास एक नन्ही.सी बच्ची बिलख.बिलख कर रो रही थी।
गोविन्द सन्नाटे में खड़ा रह गया।
मोनू ने जल्दी से कहा.अंकल...अंकल...देखिए आंटी कैसे रो रहीं हैं...बेबी भी रो रही है।"
गोविन्द ने मोनू को उतार दिया और औरत की ओर बढ़ा। उसने औरत का माथा छूकर देखा। वह तेज बुखार में तप रही थी। मोनू बच्ची को बहलाने की कोशिश करने लगा।
गोविन्द ने मोनू से कहा.
"बेटे, तुम्हारी आंटी की तबियत बहुत खराब है। मैं डाक्टर को बुलाने जा रहा हूं। तुम यहीं रहना और बेबी को बहलाना।"
"अच्छा अंकल।"
गोविन्द तेजी से बाहर चला गया।
मोनू बच्ची को बहलाने की कोशिश करने लगा। लेकिन जब बच्ची चुप न हुई तो, उसने बच्ची की उठाकर गोद में लिया
और बहलाने की कोशिश करने लगा।
___डॉक्टर ने शंकर की पत्नी की नब्ज देखी, आंखें, दिल की धड़कनें और सांसे देखीं और फिर निराशा भरे स्वर में गोविन्द से बोला." मुझे अफसोस है...इनको समय पर मैडिकल.एड नहीं मिली, इसलिए इनकी डैथ हो गई।"

"डैथ हो गई?"
गोविन्द हड़बड़ाकर पीछे हट गया।
डाक्टर ने गोविन्द के कंधे पर हाथ रखकर थपकी दी और बैग उठाकर बाहर चला गया।
मोनू बच्ची की गोद में लिए बैठा हुआ था और आंखें फाड़.फाड़कर कभी गोविन्द की ओर और कभी उस औरत की ओर देखने लगता था।
"अंकल...क्या आंटी मर गईं?"
"अब गुड़िया को दूध कौन पिलाएगा अंकल?"
गोविन्द की आंखों के सामने अपनी मृत पत्नी शीला और अपने मासूम बच्चे का चेहरा घूम गया। उसने गुड़िया को उठाकर सीने से लगा लिया। और फिर उसकी आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई।
___ शंकर की पत्नी की लाश हाल में रखी थी। उसके पास ही गोविन्द गुड़िया को गोद में लिए खड़ा था। उसके सामने चार आदमी सिर झुकाए खड़े थे।
एक आदमी ने आगे बढ़कर कहा, "अर्थी उठाने का प्रबन्ध किया जाए?"
गोविन्द ने उसकी ओर देखा और क्रुद्ध स्वर में बोला, “अब अर्थी उठाने का प्रबन्ध करने आए हो, तब से कहां थे तुम लोग?"
__वह आदमी हड़बड़ा कर पीछे हट गया और बड़े ध्यान से गोविन्द को देखने लगा।

अन्य तीनों भी गोविन्द को बडे आश्चर्य से देख रहे थे।
गोविन्द ने एक पल रूक कर कहा, "शंकर के जेल जाने के बाद तुम लोगों ने कभी यह भी सोचा कि तुम्हारा एक साथी जेल में जाने के बाद तुम लोगों ने कभी यह भी सोचा कि तुम्हारा एक साथी जेल में है
और उसकी पत्नी अकेली है। मां बनने वाली है। तुमने कभी उसकी खैर खबर ली? अगर उसे समय पर मैडिकल.एड मिल जाती तो आज इस मासूम बच्ची को दूध के लिए तड़पना न पड़ता।"
उन चारों ने गोविन्द की ओर देखा। आंखों आंखों में कुछ इशारे हुए। फिर एक ने आगे बढ़कर कहा.
"हमें क्षमा कर दीजिए बॉस।"

"बॉस...!" गोविन्द बडबडाया।
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"हम आपको पहचान गए हैं बॉस। हमारे गिरोह में केवल बॉस को ही मामूली से
मामूली आदमी की चिन्ता रहती है। अपने नौकरों के साथ भी हमदर्दी का व्यवहार करते हैं।"

"आप हमारे बॉस ही हैं, वरना शंकर की पत्नी को इस हालत में पाकर, आप यहां कभी न आते। शंकर साथी था, दोस्त था। लेकिन उसने हमें अपने घर आने का कभी मौका ही नहीं दिया था। वह कहता था कि उसकी पत्नी रत्ती भर भी सन्हेह नहीं होना चाहिए कि वह स्मगलर है। हम उसका बहुत सम्मान करते थे। इसलिए हम लोगों ने उसके घर आने की कभी कोशिश नहीं की।"

"जेल जाते समय शंकर ने हमें संदेश भेजा था कि हम टेलीफोन पर उसके मित्र के रूप में उसकी पत्नी का हाल.चाल मालूम करते रहें आज जब हमने टेलीफोन किया तो अपने इस दुर्घटना की सूचना दी इसलिए हम लोग यहां चले आये गोविन्द कुछ नहीं बोला उसका मस्तिष्क तेजी से काम कर रहा था। कुछ देर बाद उस आदमी ने फिर कहा.
"हमें क्षमा कर दीजिए बस...! अब आज्ञा दीजिए कि शंकर की पत्नी के क्रिया कर्म का प्रबन्ध करें।"
-
-
"अच्छी बात है...प्रबन्ध करो। और एक आय की भी प्रबन्ध करो, जो इस मासूम बच्ची को पाल सके।"
"बहुत अच्छा बस।"
उन चारों के जाने के बाद गोविन्द ने

एक ठंडी सांस लेकर मोनू की ओर देखा, जो दीवार से टेक लगाए सहम हुआ खड़ा था। गोविन्द को अपने ओर देखकर उसने सहमी हुई आवाज में कहा. “अंकल...अंटी मर गई?"
"हां बेटे...आंटी मर गई"
"मुझे डर लग रहा है अंकल मैं अपनी मम्मी.डेडी के पास जाऊंगा।"
"घबराओ नहीं जल्दी ही पहुंचा देंगे मोनू चुप हो गया।
गुडिया के रोने की आवाज सुनकर मोनू बेचैन हो गया। उसने जल्दी से हाथ का प्याला रख दिया और कुर्सी से उतरकर पालने के पास पहुंच गया। उसने गुडिया को पालने से निकालने की कोशिश की तो वह
52%: 10:52 a.m.
बन्धन पालने समेत लुढ़क गया। गुडिया पूरी तरह से रो उठी।
गोविन्द ने चीककर कहा."यह क्या हो रहा है?"
मोनू सहम गया। गोविन्द ने झपटकर गुडिया को उठा लिया और गुस्से से मोनू को घूरते हुए बोला." पालने पर इतना जोर देते हैं? मासूम बच्ची है...न जाने कितनी चोट लगी होगी!"
"गुडिया रो रही थी अंकल...मैं उसे चुप कराने के लिए गोद मैं ले रहा था।"
"आया कहां मर गई?"
"आई मालिक!" आया दौड़ती हुई आई।

"बच्ची को इस तरह छोड़कर जाते हैं...तुम्हें यहां रखा किस लिए है?"
..
"मालिक, मैं जरा बाथरूम तक गई थी।"
"लो संभालो इसे...खबरदार जो आइन्दा इसे अकेली छोड़ा।"
आया ने जल्दी से गुड़िया को गोद में लिया और बाहर चली गई। तभी पीछे से एक आवाज सुनाई दी.
"बॉस...!"
"ओह, जयकिशन...क्या बात है?"
.
"बहुत बुरी खबर है बॉस।...शंकर पुलिस की गोली से मारा गया।"

"व्हाट...!" गोविन्द बुरी तरह उछल पड़ा।
"जी हां बॉस। भाभी की मृत्यु और गुड़िया के पैदा होने की खबर सुनकर जेल से फरार होने की कोशिश कर रहा था। पुलिस ने गोली चला दी और शंकर जेल की ऊंची दीवार से गिर पड़ा।...हस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई।"
"गोविन्द सन्नाटे में खड़ा रहा। जयकिशन न जाने क्या.क्या कहता रहा, लेकिन गोविन्द ने एक शब्द भी नहीं सुना। उसकी आंखों के आगे शंकर और मासूम गुडिया के चेहरे घूमते रहे।
"अच्छा बॉस, अब मैं चलूं?"
जयकिशन के जाने के बाद भी गोविन्द यूं ही खड़ा रहा।
अचानक मोनू उसकी टांगों से लिपट गया। गोविन्द एकदम चौंक पडा."अंकल, मुझे मम्मी.डैडी के पास ले चलिए।"
"मम्मी.डैडी। "गोविन्द ने ठंडी सांस लेकर कहा, “बेटे, अब तुम अपने डैडी.मम्मी के पास कभी नहीं जा सकते।"
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