Romance बन्धन

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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

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"इतनी जल्दी क्या है बेबी। आप थकी हुई है। मालिक थोड़ी देर में आ ही जायेंगे।
आप आराम कीजिए।"
"नहीं काका, मैं इसी समय क्लब जाऊंगी।"
"जैसे आपकी इच्छा।'
नौकर सामान उतारने लगे।

मोहन ने सिगरेट होंठों के एक कोने में लगाया और आंख से निशाना लेकर स्टिक चलाई। बिलियर्ड बॉल दूसरी बॉल से टकराई
और दूसरी बाल लुढ़कती हुई एक खाने में चली गई।
"वैलडन..... वैलडन।" चारों ओर से तालियों का शोर उभरा।
मोहन ने स्टिक पर खरिया लगाई और निशाना लगाने लगा, तभी पीछे जयकिशन ने
उसके कंधे पर हाथ रख दिया।
"क्या बात है जयकिशन?" मोहन ने
पूछा।
"आपको बॉस याद कर रहे है।"
"आता हूं।"
मोहन ने निशाना लगाया। गेंद खाने में चली गयी। मोहन ने स्टिक रख दी और एक
ओर चल दिया।
एक कमरे के दरवाजे पर पहुंचकर मोहन ने सिगरेट गिराकर जूते की टोह से रगड़ दी
और दरवाजा नॉक किया।
अंदर से आवाज आई .
"आ जाओ।"
मोहन दरवाजा खोल कर अंदर चला गया। रिवाल्विंग चेयर पर बैठा गोविन्द राम सिगार पी रहा था।
मोहन ने पास जाकर कहा . “गुड ईवनिंग अंकल!"

"ईवनिंग.....," गोविन्द राम मुस्कराकर बोला, "थोड़ी देर पहले ही मुझे रॉकी से फोन पर सूचना मिली झी कि तुम पुलिस के घेराव में आ गये थे।"

"हां, आ तो गया था, लेकिन निकल गया..... मुझे पहले ही यह महसूस हो रहा ज्ञा कि आज जहां माल जा रहा है, वहां जरूर कोई.न.कोई झंझट सामने आयेगा। इसलिए मैंने रॉकी को स्पॉट से काफी दूर छोड़ दिया था, ताकि वह मुझ पर नज़र रखे और किसी तरह की आंच आने पर आपको सूचित कर दे।"
"मुझे विश्वास था कि तुम पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सकते। फिर भी चिन्ता तो थी ही इसलिए मैं यहां चला आया था।"
"अंकल, जब तक यह रिवाल्वर और

यह हाथ सलामत है, मुझ पर कोई हाथ नहीं डाल सकता।" मोहन ने रिवाल्वर निकालकर उसे चूमते हुए कहा।
___ "मुझे तुम पर पूरा.पूरा भरोसा है मोहन..... माल कहां है?"
"ऐसी दिशा में माल स्पॉट पर तो पहुंचाया नहीं जा सकता था और शहर में वापस लेकर जाना भी खतरे से खाली नहीं था। क्योंकि हर नाके पर पुलिस के दस्ते मौजूद थे। एक नाके पर मुझे कार की तलाशी जी देनी पड़ी।"
"ओह ..... तो क्या माल.....?"
"नहीं अंकल।" मोहन मुस्कराया, "पुलिस की तलाशी लेने से पहले ही मैंने माल कार से हटा दिया था।"

“फिर माल कहां है? जानते हो, पूरे पचास लाख का माल है।"
"जानता हूं। माल जहां भी है, सुरक्षित
"क्या मतलब?"
"मैंने माल एक कार की डिग्गी में रख दिया था, जिसे एक लड़की ड्राइव कर रही
थी। वह मुझे माल रोड पर मिली थी। उसकी गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो गया था। उसने मुझसे पेट्रोल लिया था और तभी उसकी
आंख बचाकर मैंने माल उसकी गाड़ी की डिग्गी में रख दिया था।"
"लेकिन उस कार को हम ढूंढेंगे कहां?"
"मैंने उसका नम्बर याद कर लिया है, बड़ी आसानी से मिल जायेगी।"
-
-
"क्या नम्बर है?"
मोहन ने नम्बर बताया, तो गोविन्द राम एकदम उछल पड़ा।
"इस नम्बर की कार में माल रखा था तुमने?"
"जी हां, क्या आप उस लड़की को जानते हैं?"
'बहुत अच्छी तरह।"
"बस, फिर तो और भी ज्यादा आसानी हो गई। कौन है वह लड़की?"
"मेरे एक मित्र की बेटी है।"
"मुझे पता बता दीजिए, मैं माल ले आऊंगा।"
"नहीं तुम रहने दो, मैं मंगा लूंगा।..... और हां। तुम्हारी गोली से कोई मरा तो
नहीं?"
+
"नहीं अंकल, आपको तो याद होगा कि मैंने इस बात की कसम खाई है कि मेरी गोली से जिस पहले व्यक्ति की मृत्यु होगी, वह होगा मेरे माता.पिता का हत्यारा.... और उसके बाद शायद मैं कभी रिवाल्वर न चलाऊंगा..... आप मुझे उसका पता कब बतायेंगे?"

"जब समय आयेगा।"
"समय कब आयेगा अंकल?"
"बेटे, मैं स्वयं बड़ी बेचैनी से उस घड़ी का इंतजार कर रहा हूं। मदन खन्ना अपनी
आंखों का इलाज कराने अमेरिका गया हुआ है। जैसे ही वह आयेगा, मैं बता दूंगा।"
"अच्छी बात है अंकल।"
"अब तुम जा सकते हो, मैं भी आज यहां अधिक देर तक नहीं ठहर सकता। घर पर कुछ मेहमान आने वाले हैं।"
___ मोहन कमरे से निकल आया। वह हॉल के दरवाजे में पहुंचा था कि अचानक उसकी निगाहें सदर दरवाजे पर पड़ी..... रीता उस दरवाजे से अंदर आ रही थी। वह चौंक उठा। रीता एक बैरे को रोक कर कुछ पूछने लगी।
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Re: Romance बन्धन

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बैरे ने एक ओर हाथ उठाकर रीता को कुछ बताया। रीता उसी ओर बढ़ने लगी। मोहन जहां था, वहीं खड़ा रीता को देखता रहा। वह सोच रहा था कि रीता यहां क्यों आई है? क्या उसकी तलाश में आई है? नहीं, भला उसे क्या मालूम कि मेरा इस क्लब से किसी प्रकार का कोई संबंध है। संभव है, मन बहलाव के लिए आई हो।
रीता एक गैलरी में चली गई।
अचानक वह बैरा मोहन के पास से गुजरा, जिससे रीता ने कुछ पूछा था।
मोहन ने उसे पुकारकर रोक लिया।
"वह लड़की अभी तुमसे कुछ पूछ रही थी?"

"साहब, वह बॉस का आफिस पूछ रही थी।"
"बॉस का आफिस?"
मोहन के मस्तिष्क को एक झटका.सा लगा...... 'यह लड़की अंकल का आफिस क्यों पूछ रही है? कौन है यह लड़की?'

अचानक किसी अनजाने विचार से मोहन के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। वह दूसरी गैलरी से गोविन्द के आफिस की ओर चल दिया।
गैलरी में पहुंचते ही मोहन ने रीता को दरवाज़ा खोलकर गोविन्द के आफिस में जाते हुए देखा।
मोहन दबो पांव उस दरवाजे की ओर बढ़ा और उसके पास पहुंचकर एक ओर खड़ा हो गया।
__ दरवाजे में पांव रखते ही रीता ने गोविन्द को देखा। वह किसी सोच में डूबा सिगार के हल्के.हल्के कश ले रहा था।
रीता ने पुकारा, "पापा.....!"
गोविन्द बुरी तरह चौंक पड़ा और हड़बड़ाकर एकदम खड़ा हो गया।
"रीता बेटी, तुम.....?"
“पापा....!" रीता आगे बढ़कर गोविन्द से लिपट गई।
गोविन्द ने रीता का माथा चूमा और घबराई हुई मुद्रा में दरवाजे की ओर देखते हुए बोला .
-
"तुम यहां क्यों आई बेटी?"
"मैं इतने दिन बाद आई लेकिन आपने मेरा इंतजार भी नहीं किया। क्या आपको
अपनी बेटी से प्यार नहीं है?" शिकायत भरे स्वर में रीता बोली।
"यह तुम क्या कह रही हो बेटी? अपनी बेटी से किसे प्यार नहीं होता। कुछ जरूरी काम आ गया था, इसलिए मैं यहां चला आया, बस पहुंचने ही वाला था। लेकिन तुम यहां क्यों चली आईं?"
"आप घर पर नहीं मिले, इसलिए यहां चली आई। पिछले छः महीने से आपको देखा नहीं है। ..... लेकिन आप बार.बार यह क्यों पूछ रहे है?..... अगर मैं यहां चली आई, तो हुआ क्या?"
"कुछ नहीं बेटी...... मैं तो यूं ही पूछ रहा था।"
"नहीं पापा, सच.सच बताइए, आप मुझे अपने से दूर क्यों रखना चाहते हैं? छोटी.सी उम्र में ही आपने मुझे पढ़ने के लिए इतनी दूर भेज दिया और छः महीने में कुल एक बार मुझे देखने आते रहे। लेकिन मुझे छुट्टियों में भी घर आने नहीं दिया। एक.दो बार छुट्टियों में आई भी तो एक दो दिन भी यहां रहने नहीं दिया फौरन कभी काश्मीर भेज दिया और कभी नैनीताल..... आखिर आप मुझसे दूर.दूर क्यों रहते हैं पापा? क्या बेटी का इतना भी अधिकार नहीं कि अपने बाप के पास चार दिन रह सके। आप मुझ पर हज़ारों रुपए खर्च करे हैं, मेरे लिए आपने कार भी खरीद कर भेज दी। लेकिन इनसे मुझे वह सुख तो मिल नहीं सकता, जो आपके पास रहने से मिल सकता है।"
"यह तू क्या कह रही है बेटी? तेरे सिवाय इस भरी दुनिया में मेरा और है ही
कौन? मैं चाहता हूं कि तू खूब पढ़े लिखे...... मैं तो पढ़ाई के लिए तुझे योरोप भेजने वाला हूं।"
"नहीं पापा, मैंने बी.ए. कर लिया। हुत है। अब मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।"
रीता ने गोविन्द के गले में बांहें डाल दीं। गोविन्द ने उसका माथा चूमकर प्यार भरे स्वर में कहा, "अच्छा बेटा, न जाना..... लेकिन जब तेरी शादी घुघरु के साथ हो जायेगी, तब तो तुझे जाना ही पड़ेगा।"
"ओह पापा, आपने यह किस डफर को मेरे पीछे लगा दिया। जब से उसे यह मालूम हुआ कि आप उसके डैडी के मित्र हैं और
आप मेरी शादी उसके साथ करना चाहते हैं, वह सारे कॉलेज में गाता फिर रहा है कि मैं उसकी मंगेतर हूं। मुझे किसी लड़के से बात तक नहीं करने देता।"
"बेटी, घुघरु बहुत बड़े आदमी का बेटा है..... उसका बाप यहां का एस. पी. है। अच्छा खानदान है। इसीलिए मैंने उससे तुम्हारा रिश्ता.तय किया है। क्या वह तुम्हें पसन्द नहीं है?"

"पसन्द और नापसन्द का प्रश्न नहीं है पापा..... घुघरु तो एकदम आउट आफ आर्डर रहता है। आते समय मेरे सिर पड़ गया है कि कार से अकेले नहीं जाने दूंगा। मेरे साथ ही आया। यहां पहुंचते ही कहने लगा कि मैं पापा जी का आशीर्वाद लेकर ही अपने घर जाऊंगा। बड़ी मुश्किल से मैंने उसे उसकी कोठी पर छोड़ा।'
गोविन्द हंस दिया।
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"अच्छा बेटी चलो.... बाकी बातें घर पर होंगी।"
"चलिए, मैंने अभी तक खाना नहीं खाया है, बड़े जोर की भूख लगी है।"
गोविन्द ने हुक पर से जैकेट उतारा और रीता के साथ दरवाजे की ओर बढ़ गया।

मोहन बड़ी तेजी से दरवाजे के पास से हट गया। उसे लग रहा था कि उसका दिल आज अपनी सारी धड़कने पूरी कर लेगा। सारे बदन में बिजली की.सी लहरें दौड़ रही थीं.... तो यह रीता.... गुड़िया है..... उसके बचपन की दोस्त।
कुछ देर बाद रीता और गोविन्द मोहन के पास से गुजरे। मोहन एकदम तिरछा हो गया और रीता की निगाह उस पर पड़ गई। उसे देख कर वह एकदम चौंक पड़ी।
"अरे..... आप...?"
.
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.
मोहन के होंठों पर मुस्कराहट फैल गई। लेकिन गोविन्द के चेहरे से लगा, जैसे कोई भूचाल आ गया हो।
रीता ने कहा, “आप यहां कैसे?"

लेकिन मोहन के कुछ कहने से पहले ही गोविन्द बोल पड़े, “बेटी, यह तो क्लब है.... कोई भी यहां आ सकता है..... लेकिन तुम इन्हें कैसे जानती हो?"
___ "आज ही इनसे मुलाकात हुई पापा.....। मेरी गाड़ी में पैट्रोल खत्म हो गया था। इन्होंने ही पैट्रोल दिया था।"
"ठीक है.... अब घर चलो. देर हो रही है।"
रीता ने मोहन की ओर देख कर "सी यू" कहा और गोविन्द के साथ चल दी। मोहन अवाक्.सा खड़ा रहा।
फिर जैसे उसके मस्तिष्क में कोई तूफान जाग उठा। वह तेजी से अपने कमरे में चला आया।
दरवाजा बंद कर के उसने व्हिस्की की बोतल निकाली और एक गिलास में उंडेलकर गिलास होंठों से लगा लिया। फिर खाली गिलास मेज़ पर रखकर सिगरेट के कश लेने लगा।
उसकी आंखों के आगे रह.रहकर गुड़िया का चेहरा उभर आता था, जो धीरे.धीरे रीता के चेहरे में परिवर्तित हो जाता था। गुड़िया, जिसके साथ उसके बचपन के कई साल बीते थे। जिसके लिए वह आम के पेड़ों पर चढ़कर कच्ची.कच्ची कैरियां तोड़ा करता था..... जिसके लिए उसने एक बिल्ली जान से मार डाली थी , क्योंकि उस बिल्ली ने रीता के हाथ पर पंजा मारा था... लेकिन मोहन को लगा था, जैसे बिल्ली ने रीता के हाथ पर नहीं, उसके अपने दिल पर पंजा मारा हो।
उसे लगा जैसे किसी ने उसका दिल अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया हो। इतने सालों के बाद उसने रीता को देखा था...... लेकिन अंकल ने उसे रीता से मिलने क्यों नहीं दिया? ..... उन्होंने हम दोनों को बचपन में ही अलग क्यों किया? शायद उन्हें मालूम हो गया था कि वे दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे हैं। इसलिए उन्होंने रीता को इतनी दूर भेज दिया कि वह मोहन को देख न सके और न मोहन उसे देख पाए। और फिर आज भी उन्होंने उसे रीता से मिलने नहीं दिया। आखिर वह रीता से उसे दूर क्यों रखना चाहते हैं?..... और लगता है रीता भी
अपने बचपन के साथी मोनू को भूल गई है।
मोहन का दिल बुरी तरह से बेचैन हो उठा। उसने गिलास उठा कर एक बूंट भरा और फिर एक नई सिगरेट सुलगा कर पीने लगा।
तभी किसी ने चुपके से उसके कानों में कहा, "रीता जब तुझ से अलग हुई थी, तो बहुत छोटी थी। बचपन की यदें होश संभालने के बाद भूला दी जाती है। लेकिन उन्हें फिर से याद दिलाया जा सकता है। रीता के दिल में जरूर तेरे लिए उतनी ही जगह होगी।"
"लेकिन अंकल.....।"
मोहन की विचारधारा एकदम छिन्न भिन्न हो गई। उसने सिगरेट एश.ट्रे में डाल दी और उठकर खड़ा हो गया।
फिर उसने अपना ओवरकोट पहना, फैल्ट हैट सिर पर ओढ़ा और तेजी से बाहर निकल आया।

एस. पी. वर्मा ने गोविन्द राम का सिगार सुलगाया और फिर अपना पाइप सुलगाकर कश लेते हुए बोले, "मेरा इरादा है कि घुघरु को पढ़ने के लिए अमेरिका भेज दूं। तुम्हें तो मालूम ही है कि वह मेरा इकलौता बेटा है। पुलिस की नौकरी में फंसा रहने के कारण मैं उसकी शिक्षा.दीक्षा पर ध्यान ही नहीं दे सका। इसीलिए उसका मानसिक विकास नहीं हो पाया। सोच रहा हूं, अमेरिका जाकर इसकी पाई भी हो जायगी और मानसिक विकास भी।"
"मैं भी यहीं चाहता हूं।" गोविन्द ने कहा, "मेरी इच्छा है कि शादी के बाद रीता
और धुंघरु को अमेरिका भेज दिया जाए...... ताकि तुम्हें विलायती बहू का डर न रहे।"
वर्मा साहब हँस पड़े, "मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती है। मैं तो इस रिते के लिए बिल्कुल तैयार हूं।"
"बस कुछ दिन बाद रीता के ग्रेजुएट हो ने की खुशी में एक पार्टी होने वाली है, उसी पार्टी में दोनों की सगाई की घोषणा कर दी जाएगी और फिर अमेरिका जाने से पहले दोनों की शादी कर देंगे।"
"ठीक है।"
अचानक रीता झल्लाई हुई आई। घुघरु उसके पीछे था।
"देखिए अंकल," रीता ने झल्लाकर वर्मा से कहा, "यह घुघरु कैरम के खेल में बड़ी बेईमानी करता है।"
"हाय..... मैंने कब की बेईमानी?"
"बोर्ड जब शुरू हुआ, मेरी गोटियां काली थीं और घुघरु की सफेद लेकिन जब आधा बोर्ड हो गया और काली गोटियां तीन
और सफेद नौ की नौ रह गईं तो कहने लगा, काली गोटिया मेरी हैं और सफेद तुम्हारी।"
"क्यों घुघरु?" वर्मा ने पूछा।
'डैडी, मुझे अच्छी तरह याद है कि काली गोटियां मेरी थीं।"
"तुम्हारा यह आपसी झगड़ा है, खुद ही निबटाओ।" गोविन्द ने कहा।
"पापा, मैं अपनी सहेली कुसुम के घर जा रही हूं।"
"ठीक है जाओ, लेकिन जल्दी लौट आना।"
“आप पर जल्दी पहुंचिएगा। मैं तब तक खाना खाऊंगी, जब तक आप न पहुंच जायेंगे।"
"अच्छा, अच्छा, मैं जल्दी पहुंच जाऊंगा।"
रीता वर्मा को नमस्ते करके दरवाजे की ओर तेजी से बढ़ी तो घुघरु ने जल्दी से अपने पिता से कहा, "डैडी मुझे भी कुसुम से मिलना है मैं रीता के साथ जा रहा हूं।"
फिर वह दौड़कर बाहर चला गया।
रीता ने जैसे ही कार स्टार्ट की घुघरु भी जल्दी से आ बैठा। रीता ने झल्लाकर कहा, "यह क्या बेहूदगी है?"
"बेहूदगी नहीं रीता, एकता है। हमें एक साथ जिन्दगी बितानी है इसलिए हर काम में एक.दूसरे का साथ देना चाहिए।"
रीता ने झल्लाकर कार स्टार्ट कर दी।
सड़क पर पहुंचकर घुघरु बोला, “एक सलाह दूं रीता?"
"क्या?" रीता ने झटके से पूछा।
"क्यो न हम, कुसुम के यहां जाने के बजाय जुहू चलें?"
"किस खुशी में?"
"इस खुशी में कि हम दोनों की शादी होने वाली है। पिछले छः महीने से हम एक.दूसरे के मंगेतर कहलाते है। लेकिन आज तक एक भी रोमांटिक सीन नहीं हुआ।"
रीता भिन्न उठी, "तुम्हारे साथ और रोमांटिक सीन!"
"शादी के बाद तो हजारों होंगे। शादी से पहले एक हो जाए।"
__“अच्छी बात है, आज यही सही।" रीता ने दांत भींच कर रहा और फिर उसने कार जुहू की ओर मोड़ दी।
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Re: Romance बन्धन

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जुहू की रेत पर पहुंचकर कार रुक गई। रीता और धुंघरु कार से उतर आये। धुंघरु ने बड़े मूड में रीता का हाथ पकड़ने की कोशिश की। लेकिन रीता ने झटके से हाथ छुड़ा लिया, "व्हाट इज दिस नानसेन्स.... अभी हमारा पहला रोमांटिक सीन कहां हुआ है?"
"फिर कैसे होगा?"
"मार्डन एज मे पहला रोमांटिक सीन इस तरह होता है कि मुहूर्त के लिए हीरोईन नारियल तोड़कर समुद्र में फेंकती है और हीरो उसे उठाकर लाता है। फिर दोनों उसे खाते हैं।"
"वाह वाह!" घुघरु खुशी से झूम उठा, "तो फिर शुरू करो।"
"मैं नारियल खरीदकर लाती हूं, तब तक तुम कपड़े उतारो।"
"हाय, कपड़े क्यों उतारूं?"
"अरे तो क्या कपड़े पहने.पहने समुद्र में घुसोगे?..... फिर गीले कपड़े पहन कर घर जाओगे क्या?"

"अरे तो क्या कपड़े पहने.पहने समुद्र में घुसोगे?..... फिर गीले कपड़े पहन कर घर जाओगे क्या?"

"अरे, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। ठीक है, तुम नारियल खरीदो मैं कपड़े उतारता हूं।"
घुघरु जल्दी.जल्दी कपड़े उतारने लगा।
रीता नारियल खरीद लाई।
"सिर झुकाओ।"
"हाय..... क्यों?"
+
"अरे नारियल तोडूंगी और क्यों? हर हीरोइन हीरो के सिर पर ही नारियल तोड़ती है।"
"अरे बाप रे....!" घुघरु अपना सिर टटोलने लगा।
"बस इतने ही दम पर आशिक बने फिरते हो?"
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"रीता..... क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम नारियल पत्थ्ज्ञर पर फोड़ लो।"
"चलो यही सही..... लेकिन ऐसा करने से प्यार अधूरा ही रहेगा। क्योंकि मुहूर्त ही गलत हो रहा है।"
"परवाह नहीं, शादी के बाद पूरा हो जायेगा।"
"जैसी तुम्हारी मर्जी।"
रीता ने नारियल पत्थर पर फोड़ा। जैसी ही उसमें से पानी निकलने लगा, घुघरु ने
ओक लगा दी।
रीता बोली, "अरे अरे..... यह मय करते हो?"
"बहुत मीठा पानी होता है, इसे रेत पर नहीं गिराना चाहिए!"
रीता ने घुमाकर नारियल समुद्र में फेंक दिया।
"जाओ, जल्दी से ले आओ!"
"अरे बाप रे..... पानी ठंडा तो नहीं होगा?"
प्रेमी ठंडे और गर्म पानी की परवाह नहीं किया करते।"

घुघरु ने दो तीन बैठकें लगाई और फिर पानी में घुस गया।
रीता ने घुघरु के कपड़े उठाए और कार में जा बैठी। उसने कार स्टार्ट करने की
कोशिश की, लेकिन कार स्टार्ट नहीं हुई। रीता कार से निकल आई और तेजी से खजूरों के झुरमुट की ओर भाग गई। वह घबरा.घबराकर पीछे की ओर देखती जा रही थी। अचानक उसे किसी की टांगों की ठोकर लगी और वह हल्की.सी चीख के साथ तिरछी होकर रेत पर जा गिरी। जिसकी टांगों से वह टकराई थी, उसने जल्दी से उसे उठा लिया।
रीता हड़बराकर उसकी बाहों से निकल आई। और फिर जैसे ही अनजान व्यक्ति ने फैल्ट उतारा, रीता चौंक पड़ी। और फिर हल्के से आश्चर्य के साथ मुस्कुराती हुई
बोली, "आप?"
"मोहन .... मेरा नाम मोहन है।"

"आश्चर्य की बात है। इतने बड़े शहर में इतने थोड़े.से समय में आपसे यह तीसरी मुलाकात है।"
"लेकिन मुझे बिलकुल भी आश्चर्य नहीं है।" मोहन ने ठंडी सांस लेकर धीरे से कहा।
"क्यों?" रीता को आश्चर्य हुआ।
"इस क्यों के उत्तर पर शायद आपको विश्वास नहीं होगा।"
"विश्वास न होने की क्या बात है?

भला आप झूठ थोड़े ही बोलेंगे।"
"संभव है, आप मेरी बात झूठ समझें।"
"इसका निर्णय तो बात सुनने के बाद ही किया जा सकता।"
"क्या आप विश्वास करेंगी कि मैं यहां बैठा आप ही के बारे में सोच रहा था?"
"वह क्यों?" रीता चौंक पड़ी।
"इस क्यों का उत्तर आप अपने दिल से पूछिए।"
"यह क्या बात हुई। मेरे प्रश्न का उत्तर मेरा दिल कैसे देगा?"
"जीवन में ऐसे क्षण भी आते हैं, अब हम अपने प्रश्न का उत्तर दूसरे से चाहते हैं, लेकिन हमारे उस प्रश्न का उत्तर हमारे ही पास होता है।"
रीता विचित्र.सी नजरों से कुछ क्षण मोहन की ओर देखती रही।
"कहीं आपके दिमाग का कोई पेच ढीला तो नहीं हो गया?"
मोहन के होंठों पर एक मीठी मुस्कान फैल गई। उसने धीरे से कहा, "यह कोई नई बात नहीं है। हर प्यार करने वाले को शुरू में अपनी प्रेमिका से ऐसी ही बातें सुननी पड़ती है।"

"व्हाट.....?" रीता हड़बड़ा कर खड़ी हो गई, "आप मुझसे प्यार करते हैं?"

"हां," गंभीर और धीमे स्वर में मोहन बोला, "अरे आज से नहीं, सदियों से..... जन्म.जन्मान्तर से....।"
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