Romance बन्धन

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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

Post by Jemsbond »

रीता आश्चर्य से मोहन को देखती रही। मोहन ने एक ठंडी सांस भरी और फिर फैल्ट उठाकर खड़ा हो गया और रीता की आंखों में देखता हुआ बोला, "संभव है, आप भी मुझे प्यार करती हों। अपना दिल और दिमाग टटोल कर देखिये.... शायद किसी कोने में मेरे प्यार की खुशबू मिल जाएं"

फिर वह बड़े इत्मीनान से एक ओर चल पड़ा।
रीता हक्की.बक्की.सी उसे देखती रही। लेकिन मोहन ने पलटकर नहीं देखा। वह एक कार की ओर बढ़ रहा था, जो खजूरों के झुरमुट से बहुत आगे खड़ी हुई थी।
अचानक रीता के कानों से घुघरु की आवाज़ टकराई।
"रीता..... रीता.... कहां हो तुम?.... आओ हमारे प्यार का मुहूर्त हो गया।"
रीता के चेहरे पर उकताहट नाच उठी और एकदम मोहन के पीछे दौड़ गई।
मोहन कार के पास पहुंच गया था। भागती हुई रीता भी वहां पहुंच गई। धुंघरु की आवाज़ पास आती जा रही थी। वह जल्दी से मोहन की कार में घुस गई।
मोहन रीता की ओर देखने लगा। तभी घुघ/ उसके पास पहुंचा और उसके कंधे पर हाथ मार कर बोला, “ऐ मिस्टर..... आपने इधर किसी लड़की की आते देखा है?"
मोहन घुघरु की ओर मुड़ा। घुघरु के बदन पर केवल नेकर था, जो भीगा हुआ था। उसके हाथ में नारियल था।
मोहन का चेहरा देखते ही घुघरु उछल पड़ा।
"अरे बाप रे..... मिस्टर पेट्रोल.... यानी कि आपने ही उस समय मेरी और रीता की मदद की थी।"
"जी हां।"
"अब आप मेरी मंगेतर को खोजने में मेरी मदद कीजिये। मैं आप का अहसान ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगा।"
"जरूर।" मोहन मुस्कराकर ड्राइविंग सीट पर जा बैठा।
"हाय.... यह क्या कर रहे हैं आप?"

"आपकी मदद कर रहा हूं। मोहन ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा।
"मदद कहां कर रहे है? आप तो जा
"जी नहीं, ममद कर रहा हूं।"
फिर उसने कार आगे बढ़ा दी और घुघरु हक्का.बक्का.सा खड़ा रह गया।
कार सड़क पर लाकर मोहन ने ब्रेक लगाए और रीता की ओर देख कर बोला, "अब आप उस पागल की पहुंच से दूर

"बहुत.बहुत धन्यवाद, आपने उस पागल से मेरा पीछा छुड़ा दिया, वरना वह मुझे बोर करके आत्महत्या कर लेने पर मजबूर कर
देता।"
"बुरी बात है। अपने मंगेतर के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए।
"मंगेतर..... यू," रीता ने बुरा.सा मुंह बनाया, "जिस अहमक का साक्ष घड़ी भर भी बर्दाश्त नहीं होता, उसके साथी पूरी जिन्दगी कैसे बिताई जा सकती है।"
"आप को कहां छोडूं?"
"उस ओर मेरी कार खड़ी है। मुझे मेरी कार तक छोड़ दीजिए।"

मोहन ने कार आगे बढ़ाइ। लेकिन जैसे ही उसकी कार रीता की कार के पास पहुंची उसे घुघरु खड़ा दिखाई दिया, जो आंखों पर हाथ की ओट किए इधर.उधर देख रहा था।
+
+
+
+
___ "अरे बाप रे...... यह बोर तो यहां खड़ा है।'' रीता घबड़ाकर बोली।
"फिर क्या आज्ञा है?" मोहन ने पूछा।
"सीधे चलिए।.... चाबी कार में ही है। यह खुद पहुंच जाएगा।"
मोहन ने कार सड़क पर डाल दी।
रीता अभी तक सीट के नीचे ही बैठी हुई थी। मोहन ने कहा .
"अब आप बहुत दूर आ गयी हैं। सीट पर बैठ जाइए।"
"क्या आपको मेरा गाड़ी में बैठना अच्छा नहीं लगा?"
"अगर आप जिन्दगी भर यहां बैठी रहें, तब भी बुरा न लगेगा।"
“धन्यवाद, मुझे चिल्ड्रन पार्क के पास उतार दीजिएगा।"
"अच्छी बात है।"
फिर खामोशी छा गई।
कुछ देर बाद कार चिल्ड्रन पार्क पहुंच कर रुक गई।
रीता दरवाज़ा खोलकर नीचे उतर आई।

"आपका बहुत.बहुत धन्यवाद।"
मोहन ने गोयर बोर्ड पर हाथ खा ही था कि रीता ड्राइविंग.सीट की खिड़की के पास पहुंचकर बोली, “सुनिए।"
"जो फर्माइए," मोहन ने कहा।
"आप कुछ देर तक रुक नहीं सकते?"
मोहन मुस्करा उठा।
"आप कहें, तो मैं भगवान से प्रार्थना करके इस घूमती हुई पृथ्वी को भी रोक
लूं।"
रीता की आंखों में फिर विचित्र से भाव नाच उठे। मोहन इंजन बंद करके बाहर आ गया। दोनो पार्क में चले गए। रीता ने
इधर.उधर देखकर एकान्त कोने की ओर इशारा करके कहा, "चलिए, वहां बैठे।"
दोनों उस कोने में जा बैठे।
रीता ने मोहन की ओर ध्यान से देखते हुए कहा, “एक बात बताइएगा?"
"पूछिए।"
"आप हैं कौन?"

"मोहन।"
"यह तो आपका नाम है।"
"नाम के अतिरिक्त आदमी और होता ही क्या है? लोग नाम से ही उसे पहचानते

"क्या आप मुझे पहले से जानते हैं?"

+
"यह बात आप क्यों पूछ रही है?.... शायद इसलिए कि मैं तीसरी मुलाकात में ही प्रेम.प्रदर्शन कर बैठा हूं। रीता जी, हर आदमी एक दूसरे को सदियों से जानता है। उसके बीच अपरिचय की दीवारों तो होती हैं लेकिन एक बार की मुलाकात उन तमाम दीवारों को तोड़ देती है। लेकिन हमारी तो यह तीसरी मुलाकात है।"
"लेकिन एक अपिरिचत लड़की से कोई भी तीसरी मुलाकात में प्रेम प्रदर्शन नहीं कर बैठता।"
"क्या यह आपको अच्छा नहीं लगा?"
"इसी बात पर तो मुझे आश्चर्य हो रहा है। कालेज में एक बार मेरे एक क्लास फैलो ने एक प्रेम पत्र लिखकर एक किताब में रख कर मुझे दे दिया था। मैंने एक साल के लिए उसे कालेज से निकलवा दिया था। धुंघरु मुझे अपनी मंगेतर कहकर मेरे पीछे लगा रहता है। मुझे बहुत बुरा लगता है। लेकिन
आपने तीसरी बार ही मिलने पर जब अपना प्रेम प्रदर्शित किया, तो न जाने क्यों मुझे बुरा नहीं लगा।"
"क्या यह बात आपके प्रश्न का उत्तर नहीं है?"
"नहीं यह बात तो मेरे दिमाग में और अधिक उलझन पैदा कर रही है। आखिर आप में ऐसी क्या बात है कि आपकी बात मुझे बुरी नहीं लगी। सच बताइए, क्या बात मुझे पहले से नहीं जानते?"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: Romance बन्धन

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(^%$^-1rs((7)
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Re: Romance बन्धन

Post by Jemsbond »

"नहीं यह बात तो मेरे दिमाग में और अधिक उलझन पैदा कर रही है। आखिर आप में ऐसी क्या बात है कि आपकी बात मुझे बुरी नहीं लगी। सच बताइए, क्या बात मुझे पहले से नहीं जानते?"
"संभव है, हम दोनों ही एक दूसरे को पहले से जानते हों।"
"आज के आणविक युग में जन्म.जन्मान्तर और पुनर्जन्म पर कौन विश्वास करता है। और अगर यह सच भी है, तो भी मुझे पता नहीं है कि मैं भी आपको प्यार करती हूं।"
___ "आपने अपना दिल टटोल कर देखा है?"
"देख रही हूं, लेकिन मुझे ऐसा महसूस नहीं होता।"
"भूली बातें सहज याद नहीं आतीं।..... इसलिए जल्दी कोई निर्णय न कीजिए। आप
भी इसी शहर में रहती हैं और मैं भी। इत्मीनान से मेरे बारे में सोचिएगा। और जब कभी..... भले ही सालों क्यों न बीत जाएं.....

आप मुझे बुलायेंगी, मैं आपके पास पहुंच जाऊगा और तब आप मुझे मेरे सवाल का जवाब दे दीजिएगा।"
मोहन खड़ा हो गया और फिर बोला, "मैं जानता हूं कि आपका निर्णय मेरे ही पक्ष में होगा।"
"इस विश्वास का कारण है?"
"मेरा विश्वास, मेरी भावना और मेरा प्यार, जो मेरे हृदय तक ही नहीं बल्कि मेरी
आत्मा तक में सीमित है।"
"रीता अवाक् खड़ी रह गई। और जब मोहन बाहर की ओर चल पड़ा, तो उसके पीछे लपकी, “सुनिए।"
"फर्माइए," मोहन ने मुड़कर कहा।

"क्या आप मुझे मेरे घर तक पहुंचा देंगे?"
"आपके किसी काम आ सकू, इससे बड़ा सौभाग्य मेरे लिए और क्या होगा?"
दोनों कार में जा बैठे और कार रीता की कोठी की ओर बढ़ गई।

कोठी के फाटक पर पहुंचकर कार रुक गई। विचारों में डूबी रीता चौंक पड़ी और फिर हड़बड़ा कर इधर.उधर देखती हुई बोली, "अरे यह तो मेरी ही कोठी है।"
"जी हां आप ही की कोठी है।" मोहन ने कहा।
"लेकिन आपको कैसे मालूम हुआ कि मैं यहां रहती हं?"
__ "आपको याद है, हम दूसरी बात क्लब में मिले थे..... और उस क्लब के मालिक गोविन्द राम जी हैं.... जिनकी आप सुपुत्री हैं।"
"तो आप पापा को जानते हैं?"
"बहुत अच्छी
तरह।"

"वह कैसे?"
"क्या आप हर प्रश्न का उत्तर इसी मुलाकात में चाहती है?"
"नहीं...... आज से ठीक चार रोज़ बाद शाम की पांच बजे जुहू पर मिलिएगा।"
"धन्यवाद..... सन एन सैंड के सामने रेत पर मैं आप का इंतजार करूंगा।"
रीता कार से उतर गई। मोहन ने एक ठंडी सांस ली और कार आगे बढ़ा दी।
रीता अंदर पहुंची तो उसे पोर्टिको में अपनी कार खड़ी दिखाई दी। वह समझ गई कि घुघरु पहुंच चुका है। वह आगे बढ़ी तो उसे ऊपर बाल्कनी में गोविन्द राम खड़े दिखाई दिए, जो चिन्तित मुद्रा में उसी की ओर देख रहे थे।
रीता ने मुस्कराकर हाथ हिलाते.हुए ऊंची आवाज में कहा “पापा..... आप आ गए?"

"हां बेटी, तुम्हारी गाड़ी अभी.अभी घुघरु छोड़कर गया है।"
रीता हाल में पहुंची, तो गोविन्द राम अंदर की बालकनी में आ चुके थे। उन्होंने पूछा, "तुम कहां रह गई थी बेटी?"
"पापा, यह घुघरु बहुत बोर करता है। बहुत मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाया है।"
"बेटी, वह तुम्हारा होने वाला पति है। उसके बारे में तुम्हें इस तरह नहीं कहना चाहिएं।"

"मैंने अभी इस बारे में कोई निर्णय नहीं किया है पापा।"
"खैर, यहां तक तुम आईं कैसे?"
"मोहन बाबू की कार से.... वही, जिन्होंने उस दिन पेट्रोल दिया था।"
गोविन्द राम धीरे.धीरे नीचे उतर आए। उन्होंने पूछा, “मोहन तुम्हें कहां मिला था?"
"जुहू पर।"
"उसने तुम्हें खुद लिफ्ट दी थी?"
"नहीं, मैंने मांगी थी।"
"रास्ते में उसने तुमसे बातें भी की होंगी?"

"बातें क्यों न करते? क्यों हम लोग गूंगे.बहर थे?"
"उसने यह भी बताया कि वह कौन है?"
__ "नहीं...... लेकिन आप तो जानते हैं उन्हें।"
"नौकर अगर मालिक को न जानेगा, तो कौन जानेगा।"
"क्या मतलब?"
"वह उस क्लब का मैनेजर है. जिसकी तुम मालिक हो।"
"लेकिन मोहन बाबू ने तो मुझे यह बात बताई नहीं।"
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Post by Jemsbond »

"बता देने से क्या उसकी हैसियत तुम्हारे बराबर हो जाती। तुम सेठ गोविन्द राम की बेटी हो। तुम्हें कुछ दिन बाद पता चलेगा कि तुम्हें पापा की क्या हैसियत है। .... बेटी, मैं
आजकल के नौजवानों को अच्छी तरह समझता हूं। मोहन जानता है कि तुम एक करोड़पति बाप की बेटी हो।"
“आप क्या कहना चाहते हैं पापा?"
"यही कि मुझे उससे तुम्हारा मेल.जोल पसंद नहीं है। लोग तुम्हें उसके साथ देखेंगे, तो क्या सोचेंगे?"
रीता कुछ नहीं बोली। गोविन्द राम ने ध्यान से रीता को दाते हुए कहा, क्या मैं आशा करूं कि मेरी बेटी अपने बाप की बनाई हुई इज्जत मिट्टी में नहीं मिलाएगी?"
“आप मेरे बारे में ऐसा क्यों सोचते हैं?"
"मुझे विश्वास है कि मेरी बेटी मेरे सम्मान पर आंच न आने देगी। लड़कियों के बारे में मोहन नेक आदमी नहीं है।"
रीता कुछ नहीं बोली, तभी एक नौकर ने आकर कहा, "मालिक, खाना तैयार है।"
“आओ बेटी, हाथ धोकर जल्दी से आ जाओ। मुझे बहुत भूख लगी है।"
रीता सोच में डूबी हुई बाथरूम की ओर बढ़ गई।

घड़ियाल ने रात के बारह के घंटे बजाए। रीता ने करवट बदल कर घड़ियाल की ओर देखा फिर कसकर आंखें भींच लीं। आंखें भींचते ही उसके सामने मोहन का चेहरा उभर आया। उसने जल्दी से आंखें खोल दीं।
"हे भगवान," रीता धीरे से बड़बड़ाई "यह क्या हो गया मुझे?"
किसी ने चुपके से कहा, "तू अनजाने में मोहन को प्यार करती है।
"यह झूठ है। भला मैं उसे कैसे प्यार कर सकती हूं, जिसे मैंने कल ही देखा है।"
"संभव है, जन्म.जन्मान्तर का प्यार हो.....!"
"यह बकवास है। मैं ऐसी बातों को नहीं मानती।"
"फिर उसके बारे में क्यों सोच रही हो?"
"न जाने क्यों?"
"इसी अनजानी भावना को प्यार कहते हैं पगली।"
"मैं उसे प्यार नहीं कर सकती, मेरे पापा उसे पसन्द नहीं करते।"
"प्यार किसी के अधिकार में नहीं होता.... इस पर कोई बन्धन नहीं लगाया जा सकता।"
"लेकिन मेरा मन मेरे वश में है। मैं अपने पापा की इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकती।"
"तू अपने आप को बहला रही है। तू मोहन से मिलने जरूर जाएगी।"
"मैं उससे मिलने नहीं जाऊंगी। पापा कहते हैं, वह अच्छा आदमी नहीं है।"
"क्या तुझे मोहन में कोई बुराई दिखाई दी है?'
"नहीं।"
"तेरे साथ कोई अनुचित व्यवहार किया उसने?"
"नहीं।"
"फिर तूने कैसे विश्वास कर लिया कि वह अच्छा आदमी नहीं है?"
"पापा झूठ नहीं बोल सकते।"
"पगली, बड़े.बूढ़े समाज के नियमों को बनाए रखने के लिए ऐसे झूठ अक्सर बोल दिया करते है। वरना तीसरी बार ही तुझे
मोहन के साथ देखते ही यह बात न कहते।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आता?"
रीता ने करवट बदलकर तकिए में मुंह छिपा लिया। आंखें कसकर मूंद लीं। मोहन
का निर्दोष फिर उसके सामने आ गया। उसके होंठ हिले .
"मैं तुमको प्यार करता हूं।"

"सदियों से।"
"जन्म.जन्मान्तर से।"
"मैं तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा करूंगा।"
रीता हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसने एक गिलास पानी पिया और फिर झटके से रजाई ऊपर खींच ली।

पियानो के सुर रुक गए। लेकिन मोहन की उंगलियां सुरों पर ही रखी रहीं। उसने पलटकर नहीं देखा। लेकिन उसे पता चल गया कि उसके पीछे आकर खड़ा होने वाला व्यक्ति गोविन्द राम है।
कुछ देर खामोशी रही.... फिर मोहन ने धीरे से कहा .
"आप मुझसे कुछ कहना चाहते है?"
"हां, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं।"
"कहिए।"
"तुम्हें मालूम है कि रीता मेरी बेटी है?"
"मुझे यह भी मालूम है कि मैंने रीता के साथ बचपन का एक अहम् हिस्सा बिताया है।"
"तब तो शायद तुम्हें यह भी याद होगा कि मैंने रीता को बाहर पढ़ने क्यों भेजा था?"
"याद है, मेरी आंखों में रीता के प्रति झलकते प्यार को देखकर।"
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रीता ने एक बड़ा.सा पत्थर उठाकर समुद्र की सतह पर फेंक दिया। लहरों में हलचल जाग उठी। रीता ने कलाई की घड़ी देखी। साढ़े पांच बज चुके थे, लेकिन मोहन का कहीं पता न था। वह बेचैनी से इधर.उधर देखने लगी।
रीता निराश हो उठी और सन एन्ड सैंड की ओर चल दी। थोड़ी दूर ही उसे एक पत्थर पर बैठा मोहन दिखाई दिया।
रीता का चेहरा चमक उठा। वह जल्दी से मोहन की ओर बढ़ी। मोहन के पास पहुंच कर वह ठिठककर रुक गई। मोहन विचारों में डूबा समुद्र की उठती गिरती लहरों को देख रहा था।
रीता ने धीरे से पुकारा, "मोहन बाबू.....!"

"तुम....!" मोहन ने उसकी ओर देखे बिना कहा।
"आप कब आए?"
"ठीक पांच बजे।"
"मैं पौने पांच बजे से आपकी राह देख रही हूं। आप मेरे पास क्यों नहीं आए?"
मोहन ने एक ठंडी सांस लेकर धीरे से कहा, "इतनी देर तक मैं यह सोचता रहा कि वह बात आपसे कैसे कहूं, जो मैं कहने आया हूं।"
"आपने मेरी बात तो सुनी नहीं, जो मैं कहने आयी हूं।
"मैं जानता हूं, आप जो कहने आयी
"नहीं आप नहीं जानते।"
"आप यही बताने आई हैं न कि आपके पापा ने आपको मेरी गाड़ी से उतरते देख लिया था और वे नहीं चाहते कि आप मुझसे मिलें।"
रीता हक्की.बक्की.सी रह गई।
मोहन ने मुस्कराकर कहा, "आप हैरान क्यों हैं? वास्तविकता जितनी कटु होती है, उतनी स्पष्ट भी होती है।"
"आप मुझ से क्या कहने आए थे?"
"यही कि मैंने अपने दिल में आपके लिए जो प्यार अनुभव किया था वह धोखा
था। मेरा जीवन प्यार जैसी चीज नाम के लिए भी नहीं है।"
रीता के चेहरे का रंग उतर गया। उसने ध्यान से मोहन का चेहरा देखा और कांपते स्वर में बोली, “आप झूठ बोल रहे हैं।"
"तब आप भी झूठ बोल रही है। सच बताइएँ? क्या आपके दिल में मेरे लिए प्यार छिप हुआ नहीं है?"
"हां यह सच है। मैं नहीं जानती कि मैं आपको कब से जानती हूं। लेकिन पिछले चार दिन से मुझे ऐसा लग रहा है कि जन्म.जन्मांतर से हम एक दूसरे से परिचित है..... एक दूसरे से प्यार करते हैं। और एक दूसरे के लिए जन्म लेते हैं। .... मैं नहीं । जानती कि हम दोनों के बीच कौन.सी डोर बंधी हुई है, जो हमें एक दूसरे की ओर खींचती रहती है। लगता है जैसे मैं सदियों से आपकी प्रतीक्षा करती रही हूं।"
रीता ने एक शान्ति भरी सांस ली। मोहन ने धीरे से रीता से अलग होकर कहा, "आत्मा को आत्मा ही पहचानती है.... प्यार को प्यार ही पहचानता है रीता जी!"
"यह सच है। अगर ऐसा न होता, तो मैं आज पापा की आज्ञा ठुकराकर आपसे मिलने न चली आती। पापा को हमारा मेल.जोल पसंद नहीं, आप पापा के नौकर हैं और आपसे मिलना.जुलना उनके लिए सम्माननीय नहीं है। उनका यह भी कहना है कि लड़कियों के संबन्ध में आप बहुत बदनाम हैं। और मुझसे पहले भी कई लड़कियों से आपका संबंध रह चुका है। लेकिन पापा की इन बातों पर न जाने क्यों, मैं विश्वास नहीं कर सकी। आपकी आंखों में झांकती सच्चाई और प्रेम की भावना ने मुझे इन बातों पर विश्वास नहीं करने दिया। लेकिन मोहन बाबू, पापा मुझे आपसे दूर क्यों रखना चाहते हैं?"
मोहन के होंठों पर एक हल्की.सी मुस्कान नाच उठी, "वे तुम्हें बहुत ही प्यार करतो हैं। मेरे ऊपर उनके बहुत.से अहसान हैं, इसलिए मैं भी उनका उतना ही सम्मान करता हूं, जो एक बेटे को पिता का करना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि मेरा प्यार बाप.बेटी के बीच किसी प्रकार की गलतफहमी पैदा करे। तुम्हारे पापा ने झूठ बोलकर तुम्हें मेरे विरुद्ध करने की कोशिश की है, लेकिन इसमें उनकी कोई बुरी भावना नहीं है। मैं जानता हूं कि उन्हें ऐसा करने पर क्यों मजबूर होना पड़ा है। लेकिन वह बात मैं तुम्हें नहीं बता सकता।"
"क्या आपको मुझ पर विश्वास नहीं है?"
"प्रेम का दूसरा नाम ही विश्वास है रीता, लेकिन जीवन में कुछ ऐसे कटु यथार्थ भी होते हैं, जिन्हें कभी.कभी अपने आपसे भी छिपाना पड़ता है।"
रीता अपलक मोहन को देखती रही।
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