Romance बन्धन

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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

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"मुझे गलत न समझना रीता। मेरे प्यार पर संदेह न करना। लेकिन मैं बहुत ही मज़बूर हूं। तुम्हें कुछ बता नहीं सकता। मैं बहुत ही भाग्यशाली हूं रीता कि तुम्हारा प्यार मुझे मिला। लेकिन मेरा जीवन जिस राह पर चल रहा है, उस राह पर तुम्हें लाकर मैं तुम्हारे जीवन को नष्ट नहीं करना चाहता।"
"यह आप क्या कह रहे है?"
"सच कह रहा हूं रीता.... जब दूसरी बार मैंने तुम्हें देखा, अगर उसी समय मेरे कर्तव्य ने मुझे चेता दिया होता, तो तुम पर अपना प्रेम कभी प्रकट न करता। लेकिन अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। हम आज भी बड़ी आसानी से एक दूसरे से दूर हो सकते हैं। तुम अपने पापा की इच्छा के अनुसार घुघरू से विवाह कर सकती हो।"
"यह बात आप आज कह रहे हैं...! मेरे मन.मन्दिर में तो आपके अतिरिक्त और किसी की मूर्ति है ही नहीं। नारी जीवन में केवल एक बार ही किसी को प्यार करती है। मैं जीवन भर अब किसी दूसरे को अपन मन में कोई स्थान नहीं दे सकती। न आपको ही कभी भुला सकती हू।।" कहते.कहते रीता का गला भर आया।
"रीता....
"हां मोहन बाबू, मेरे पास होने की खुशी में पापा एक पार्टी दे रहे हैं। उस पार्टी में मेरी और घुघरु की सगाई की घोषणा की जायेगी। अगर आप मेरे प्यार की निर्भीकता देखना चाहते हैं, तो पार्टी में आइए।.... मैं परसों पार्टी में आपकी प्रतीक्षा करूंगी...... अगर आप न आए तो....!"
.
रीता ने वाक्य पूरा नहीं किया। वह मोहन की ओर देखने लगी। उसकी आंखों में जोश और विद्रोह की भावना भरी थी।
रीता तेज़ी से मुड़ी और अपनी कार की ओर चली गई।
मोहन चुपचाप खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा।

टेलीफोन की घंटी की आवाज सुनकर मोहन चौंक पड़ा। उसने शराब का गिलास मेज़ पर रखकर बढ़े हुए शेव पर हाथ फेरा और फिर धीरे से रिसीवर उठा लिया। उसने लड़खड़ाते स्वर में कहा .
“यस?"
"मोहन?"
"स्पीकिंग।"
"मैं गोविन्द बोल रहा हूं।"
"ओह, अंकल.... फर्माइए।"

"तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है।"
"खुश खबरी और मेरे लिए?" मोहन के होंठों पर एक कड़वी मुस्कान फैल गई।
"हां, मोहन, कल सवेरे आठ बजे तुम्हारे माता.पिता का हत्यारा मदन खन्ना पांच साल बाद अमेरिका से लौट रहा है।.... तुम ठीक समय पर एयर पोर्ट पहुंचा और उस हत्यारे को अपने देश की धरती पर पांव रखने से पहले मौत के घाट उतार दो।"
मोहन के दिल की धड़कन बढ़ गई। आंखों से आग बरसने लगी। दूसरी ओर से गोविन्द राम ने कहा, "सुन रहे हो मोहन?"
"जी हां, सुन रहा हूं।"
"साइलेंसर लगा रिवाल्वर तुम्हारी मेज़ की दराज़ में रखा हुआ है। उस रिवाल्वर की एक गोली तुम्हारे माता.पिता की भटकती हुई आत्माओं को शान्ति प्रदान कर देगी।"
फिर फोन डिस्कनेक्ट हो गया। मोहन ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया। उसके समूचे बदन में सन्नाटा.सा दौड़ रहा था।
फिर उसने गिलास उठाया और एक ही सांस में खाली कर दिया।
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हवाई जहाज की आवाज़ वायुमंडल में गूंज उठी।
मोहन ने हवाई जहाज की ओर इस तरह देखा, जैसे उसके जीवन और मृत्यु से हवाई जहाज़ का गहरा संबंध हो। उसके माथे पर पसीने की बूंदें थर.थर्रा रही थीं खून लावे की तरह गर्म होकर तेजी से दौड़ रहा था।
हवाई जहाज रन.वे पर उतर आया और रुकने के लिए पोजीशन लेने लगा।
मोहन ने ओवर कोट की जेब में पड़े रिवाल्वर को मजबूती से पकड़ लिया। उसे लग रहा था, जैसे उसने किसी नाग का फन पकड़ रखा है और अगर उसकी पकढ़ ढीली हो गई तो यह नाग उसे ही डस लेगा। उसका गला सूखता जा रहा था और दिल की धड़कनें लगातार तेज़ होती जा रही थीं।
हवाई जहाज़ रुक गया..... सीढ़ियां लगा दी गईं..... और मोहन की निगाहें हवाई जहाज़ के दरवाजे पर जम गईं।
कछ देर बाद दरवाज़ा खुल गया और मुसाफिर सीढ़ियों से उतरने लगे।
फिर कुछ देर बाद मोहन को वह चेहरा दिखाई दिया, जो गोविन्द राम ने फोटो में दिखाया था। मदनकुमार खन्ना..... लेकिन वह अकेला नहीं था। उसके साथ एक स्त्री भी थी। उस स्त्री के चेहरे से स्नेह और ममता की किरणें फूट रही थीं। आंखों में प्रसन्नता की चमक थी। लगता था वह साधारण स्त्री नहीं कोई देवी है।
दोनों धीरे.धीरे सीढ़ियों से उतरने लगे।

मोहन का रिवाल्वर वाला हाच थर.थर कांपने लगा।
अचानक उसे अपने पास ही प्रसन्नता से कांपती हुई एक बूढी अवाज़ सुनाई दी .
"मालिक....! मालिक....!"
.
.
मोहन चौंककर बूढ़े की ओर देखने लगा। बूढ़े की दाढ़ी और सिर के बाल दूध की तरह सफेद थे। वह मदन की ओर देखता हाथ हिला रहा थ। उसके रोम.रोम से प्रसन्नता फूट रही थी।
मदन और वह स्त्री भी बूढ़े की ओर देख कर हाथ हिलाते हुए धीरे.धीरे रेलिंग की ओर बढ़ रहे थे। मदन ने उस स्त्री के कंधे का सहारा ले रखा था।

"कितना खुश हो हा है तेरे माता.पिता का हत्यारा।"

"सोच क्या रहा है, निकाल रिवाल्वर.... चला दे गोली।"
"केवल एक गोली तेरे माता.पिता की भटकती हुई आत्माओं को शान्ति पहुंचा देगी।"
"हां मैं इसे मार डालूंगा.... इस खूखार भेड़िए को जिन्दा नहीं छोडूंगा।"
मदन अब उसके रिवाल्वर की रेंज में आ चुका था।
"केवल एक गोली...!"
मोहन की निगाहें मदन के चेहरे पर जमी हुई थी और उसका हाथ्ज्ञ जेब से निकलने के लिए बेचैन हो उठा था।
अचानक मोहन की निगाहों में रीता का चेहरा घूम गया।
"मैं तुमसे प्यार करती हूं मोहन।"
"अगर मेरे प्यार की निर्भीकता देखना चाहते हो, तो पार्टी में आना।"
"अगर तुम पार्टी में न आए तो....?"
एक चेलेंज..... एक धमकी....!

फायर की आवाज़.... मदन की लहराती हई चीख! मदन की साथी स्त्री का करुण भरा रुदन....!

हथकड़ियां... और फांसी का फंदा...!

फिर रीता का चेहरा! वीरान! सुनसान! निस्तेज!
"मैं भी तुम्हारे पास आ रही हूं मोहन।"
"तुमने मेरे प्यार को बदनाम कर दिया।"
"मेरा प्रेमी हत्यारा हो सकता है, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।"
"प्यार तो मान को सत्य की ज्योति दिखाता है। भगवान को पहचानने की प्रेरणा देता है।"
"लेकिन तुम भगवान को पाने की बजाए, शैतान बन गए।"
"मैंने तो तुम्हें देवता समझा था, तुमने इतना नीच कर्म कैसे किया?"
"क्या बिगाड़ा था मैं तुम्हारा?"
फिर जैसे मोहन का अन्त:करण बोल उठा।
"मैंने कोई पाप नहीं किया रीता...... मैंने अपने माता.पिता के हत्यारे से बदला लिया
"तुमने बदला क्यों लिया? क्या तुम्हें भगवान पर, कानून पर विश्वास नहीं था?"
"तुमने कानून अपने हाथ में क्यों लिया?"
और तभी पीछे से आवाज आई.

"मालिक....!"
मोहन बुरी तरह चौंक पड़ा।
मोहन ने देखा मदन और वह स्त्री उसके पास ही खड़े थे। वह स्त्री उस बूढ़े के पैर छू रही थी।
"अरे मालकिन, यह आप क्या कर रही है?"
"शम्भू काका," स्त्री ने भरे गले से कहा, "अपने कर्तव्य का पालन कर रही हूं शम्भू काका।"
"हां काका, तुम्ळारे इन चरणों के प्रताप से कमला दोबारा घर लौट कर आई और इसी की तपस्या ने मेरे पैरों को फिर से शक्ति प्रदान की है।" मदन ने कहा।

मोहन के मस्तिष्क में आंधियां चलने लगीं।
"मैं इस देवी का सुहाग उजाड़ने आया हूं.... हे भगवान, यह क्या हो रहा है।
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(^%$^-1rs((7)
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मोहन के मस्तिष्क में अनगिनत छनाके गूंज उठे। वह हड़बड़ाकर वापस जाने के लिए मुड़ा। अचानक उसका कंधा कमरा से टकरा गया और कमला लड़खड़ाकर गिरने लगी। मोहन ने जल्दी से संभाला। कमला का हाथ मोहन के कंधे पर आ गया और मोहन
की बांह कमला की पीठ पर। कमला ने चौंककर मोहन की ओर देखा। मोहन कमला की ओर देख कर जैसे सब कुछ भूल गया। उन बूढी, प्यार और स्नेह भरी आंखों में न जाने कैसी आकर्षक चमक थी जो मोहन को बरबस अपनी ओर खींचे लिए जा रही थी।

कुछ देर बाद मोहन को होश आया। उसने कमला को छोड़ते हुए कहा, “क्षमा कीजिएगा माता जी।"
"कोई बात नहीं बेटे।"
"माताजी ..... बेटे.... मातजी.... बेटे...।"

उसके मुंह से यह शब्द क्यों निकला....? कितनी मिठास है, इस शब्द में।
और कमला के मुंह से निकले शब्द उसकी आत्मा की गहराइयों में उतरते चले गए।
शम्भू और मदन भी बड़े ध्यान से मोहन को देख रहे थे।
अचानक मोहन को अपनी अनजानी भूल अनुभव हुई और वह तेजी से आगे बढ़ गया।
वे तीनों उसे जाते देखते रहे।
फिर कमला बोली, “आपने देखा इस लड़के को?"
"हां, देख रहा हूं।"
"इसका चेहरा अपने मोनू से कितना मिलता.जुलता है।"
"मैं भी यही सोच रहा हूं मालकिन।" शम्भू ने कहा।
"मेरा मन न जाने क्यों इसकी ओर खिंचा जा रहा है.... जब इसने मुझे संभाला तो मुझे लगा, मेरे अंदर छिपी ममता जाग उठी हो.... कहीं यह अपना मोनू ही तो नहीं है?" कमला ने कहा।
___"न जाने कहां होगा अपना मोनू।" मदन ने एक ठंडी सांस ली। और फिर वे लोग एरोड्रम आफिस की ओर बढ़ गए।
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Re: Romance बन्धन

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गोविन्द राम ने कलाई की घड़ी देखी और बेचैनी से एक नम्बर डायल किया और फिर रिसीवर कान से लगा लिया।
थोड़ी देर में दूसरी ओर से आवाज आई, "हैलो!...."
"कौन...... जयकिशन?"
"यस बॉस!"
"मोहन आ गया?"
"जी, अभी तक नहीं आया।"
"तुमने उसे एयरपोर्ट पर देखा था?"
"मैं रॉकी के साथ उससे थोड़ी दूर पर ही खड़ा था। ताकि अगर उसे किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता पड़े, तो हम दोनों उसकी सहायता कर सकें। लेकिन उसने आपकी आज्ञा का पालन नहीं किया। और हमारे देखते.देखते न जाने कहां चला गया।"
"जैसे ही वह आए, हमें सूचना दो।"
"ओ. के. बॉस।"
"दैट्स आल।"
गोविन्द राम ने रिसीवर पटक दिया। उनके आंखें गुस्से से लाल हो गई। उन्होंने सिगार निकालकर उसका कोना इस तरह तोड़ा जैसे मोहन की गर्दन तोड़ी हो।
तभी एक नौकर भीतर आया।
"मालिक सारे मेहमान आ चुके है।"

"हूं चलो...... हम आते हैं।"
नौकर के जाने के बाद उन्होंने कई गहरे.गहरे कश लिए और फिर सिगार ऐश.ट्रे में रगड़कर बुझा दिया। और फिर उसे तोड़कर फेंकते हुए बाहर आ गए।
___ हाल की सीढ़ियों में पहुंचकर उन्होंने देखा, सारा हाल मेहमानों से भरा हुआ था। एक ओर एस. पी. वर्मा और घुघरु खड़े थे। रीता अपनी सहेलियों साथ अठखेलियां करती इधर.उधर घूम रही थी। बरबस ही उसकी निगाहें दरवाजे की ओर उठ जाती थीं, जैसे वह किसी का इंतजार कर रही हो।
अचानक वर्मा साहस की निगाहें गोविन्द राम की ओर उठ गईं। वह हाथ हिला कर मुस्कराए। गोविन्द राम ने अपने आपको संभाला और मुस्कराते हुए सीढ़यां उतरकर नीचे आ गये।
उन्हें देखते ही रीता उनकी ओर लपकी।
"ओह पापा..... सारे मेहमान आपको पूछ रहे थे..... आप क्या कर रहे थे?"
"एक जरूरी संदेश का इंतजार कर रहा था बेटी।"
फिर गोविन्द राम सुपरिटेन्डेंट आफ पुलिस मि. वर्मा की ओर बढ़े।
"हैलो वर्मा....!"
.
..
"हैलो," वर्मा ने हान मिलाते हुए मुस्कराकर पूछा, "कहां थे भई?"
घुघरु ने झुककर गोविन्द राम के पैर छुए।
"गुड ईवनिंग! माई वुड बी फादर इन लॉ।"
"जीते रहो।" गोविन्द राम ने उसके सिार पर हाथ फेरा।
वर्मा साहब हँस दिए।
"भई, धुंघरु तो आपसे इतना प्रभावित हो गया है कि मुझे डर लगने लगा है कि कहीं शादी के बाद मुझे भूल न जाए।"
दोनों ने कहकहा लगाया। घुघरु ने लजाकर उंगली दांतों में दवाई और रीता की
ओर बढ़ गया।
वर्मा ने गोविन्द राम के कंधे पर हाथ रख कर कहा, "रीता की सफलता के लिए बधाई।"
"तुम्हें भी।" गोविन्द राम मुस्कराए।
"अब जल्दी से रीता को मुझे सौंप दो।"
"आज पार्टी में ही सगाई की घोषणा किए देता हूं। फिर मुहूर्त निकलवा कर जल्दी ही शादी कर दूंगा।"
"हां, बहू को घर में देखने के लिए आंखें तरस रही हैं। फिर मैं जल्दी ही इन दोनों को अमेरिका भेज देना चाहता हूं।"
रीता के पास पहुंचकर घुघरु बोला, "सुनो रीता...!"

रीता ने मुस्कराकर कहा, “फर्माइए।"
"चारों ओर कोयल की तरह कूकती फिर रही हो, एक.आध बोल अपने होने वाले पति की ओर भी फेंक दो।"
रीता ने हल्का.सा ठहाका लगाया और तभी उसकी निगाह दरवाज़े की ओर उठ गई।
दरवाजे में मोहन खड़ा था। चेहरे पर गहरी गंभीरता, आंखों में एक विचित्र.सा निश्चय और दृढ़ता लिए।
रीता की आंखें खुशी से चमक उठीं। उसने कनखियों से गोविन्द राम की ओर देखा। वह खा जाने वाली आंखों से मोहन को घूर रहे थे। उनकी आंखों से शोले बरस रहे थे।

रीता को एक जोरदार झटका लगा।
लेकिन फिर वह मुस्कराती हुई मोहन की ओर लपकी, "आप आ गए मोहन बाबू...... मुझे पूरा.पूरा विश्वास था कि आप ज़रूर आयेंगे।"
मोहन ने मुढकराते हुए धीरे से कहा, "अगर आज न आता तो शायद फिर कभी न आता।"
"फिर आप अपनी रीता को कभी न पाते।"
"इसलिए तो मैं आ गया रीता।"
रीता ने हाथ बढ़ा दिया, “आइए।"
मोहन की निगाहें अचानक
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