फोरेस्ट आफिसर

Post Reply
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: फोरेस्ट आफिसर

Post by rajan »

जगन सेठ ने कड़ी नजरों से जगतार को धूरा।
क्रोध से नथने फड़कने लगे थे और गाल लाल हो गए थे।
कड़े स्वर में जगतार से बोला वह-'आखिर तुम ओ इस मेयर से जा मिले?'
'मैं किसी से मिला हुआ नहीं हूं।' जगतार बोला-'न तुम से न मेयर से। मत भूलो कि मैं इस समय पंच बना हुआ हूं और पंच में परमेश्वर बोलता है जो किसी का पक्ष नहीं लेता। सिर्फ वही करता है जो न्याय की बात होती है।' 'मेरी गरदन हमेका इस मेयर की गरदन में फंसी रहे इसे तुम न्याय कहते हो।' जगन सेठ ने रोष पूर्ण स्वर में कहा-'यानि तुम हमेशा-हमेशा के लिए इस मेयर का कुत्ता बना देना चाहते हो?'

'नहीं लगन सेठ, मैं किसी को किसी का कुत्ता नहीं बनाना चाहता। सिर्फ समझौता चाहता हूं बराबर की शर्तों पर। आपको मेरी इस कोशिश में कोई गलत बात नजर आ रही है?'

अन्तिम बात जमतार ने जयकर को सम्बोधित करके कही थी और जयकर ने बड़ी गम्भीरता से सिर हिलाते हुआ कहा-'नहीं इसमें तो कोई गलत बात नहीं है। यह तो बिल्कुल न्याय की बात है कि समझौता हो लेकिन बराबरी के आधार पर हो।'

'आपको मंजूर हैं?' उसने जगन सठ से पूछा।

'हां बराबरी के आधार पर समझौता हो तो किसे मंजूर नही होगा।' जगन सेठ ने अपने को संयत करके जवाब दिया।

'आपको कोई एतराज है?' उसने मेयर से पूछा।

'नहीं।'

मेयर का जवाब मिलने के बाद जगतार बोला-'तब मेरा फैसला है कि वे कागजात मेयर के पास ही सुरक्षित रहेंगे। बतौर गारन्टी ताकि जगन सेठ कभी सपने में भी मयर साहब के खिलाफ जाने की बात न सोच सके।'

'यह क्या बात हुई।' जगन सेठ एकदम बिफर कर बोला-'यह तो तुमने मेरी गरदन पर छुरी फेर दी और इसे तुम समझौता कह रहे हो।'

'बिलकुल सही किया है।' मेयर उत्साहित स्वर में बोला-'क्योंकि इन्हें मालूम है कि मैं कमी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता। और तुम्हें भी यकीन दिलाता हूं कि वे कागजात चाहें रहें मेरे पास ही लेकिन जब तक तुम मेरे खिलाफ कोई गलत हरकत नहीं करोगे मैं उनका तुम्हारे खिलाफ उपयोग नहीं करूगा।'

'जब बात बराबर के समझौते की है तो खाली यकीन दिलाने से कुछ नहीं होने का।' जगतार ने मेयर से कहा। 'यकीन को क्या मैं रखकर चाहूंगा।' जगन सेठ बोला-'मेरी गरदन तो तुम्हारे हाथों में रहेगी। मेरे पास तुम्हारे खिलाफ क्या रहेगा झुनझुना?'

'तुम्हें मेरी बात का यकीन करना होगा ।'

'यकीन से कोई बात हल नहीं होने वाली एफ मेयर साहब।' जगतार बोला-'समझौता बराबर के ही ढंग से होगा। अगर आप उन कागजातों को अपने कब्जे में रखना चाहते हैं तो आपको अपने अपराधों का पूरा विवरण एक कागज पर लिखकर और दस्तखत करके जगन सेठ को देना होगा।'
जगतार की यह रात सुरकर मेयर चौकड़ी सी भूल गया।

'मम्म मैं-।' बौखलाए से स्वर में यह बोला-'मैं भला क्यों कुछ लिखकर दूंगा।'

'मत लखकर दीजिए।' ‘

'क्या मतलब?'

'अगर आप लिखकर नहीं देंगे तो वो वाले कागजात जगन सेठ को वापिस दे देने होंगे। फिर जगन सेठ जाने और आप।' जगतार की बात सुनकर मेयर के चेहरे पर हवाईयाँ सी उड़ने लगी। सांप छछूदर जैसी हालत होगई थी, उसकी न निगलते बन रहा न उगलते।

'मैंने पहले ही कह दिया था कि समझौता होगा तो बराबर की शर्तों पर होगा।' जगतार बोला-'तराजू के दोनों पलड़े बराबर होंगे। कोई किमी की तरफ ज्यादा नहीं झुकने दिया जाएगा।'

'यह बात हुई ना कायदे की जगतार गुरु।' जगन सेठ ने उत्साहित स्वर मे उसका समर्थन करते हुए कहा-'अगर मेरी गरदन इसके हाथ में हो तो इसकी गरदन मेरे हाथ में होनी चाहिए। ताकि अगर कोई किसी की गरदन दबाए तो उसे इस वात का अहसास तो रहेगा कि दूसरा भी उसकी गरदन दबा सकता है।'

'यह बात मानने वाली है।' पुलिस कमिश्नर जयफर भी बोला-'जगतार गुरु ने जो फैसला दिया है इससे ज्यादा सही और सच्चा फैसला और कोई नहीं हो सकता। समझौता बराबर की शर्तों पर डोगा तमी मजेदारी भी है और आगे हम मिल-जुल कर सही ढंग से बेहतर काम कर सकेंगे।'

फोरेस्ट आफिसर 'मुझे कुछ सोचने का टाईम दो।' मेयर ने विवश से स्वर में कहा।

'जो कुछ भी सोचने का टाईम है वह यहीं पर है।' जगतार बोला-'इस कमरे से बाहर जाने का मतलब है कि फिर कभी कोई समझौता नहीं होगा। अगर आप समझौते की शतं मानने के लिए तैयार नहीं हैं तो मजबूरन हमें ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी कि हम नोग आपके विना भी काम चला सकें।'

मेयर को लगा कि उसके पास और कोई चारा नहीं है।

बोला-'मै तो तहे दिल से समझौते के पक्ष में हूं। अगर आप लोग यही चाहते हैं तो ऐसा दरी सही।लाईए कागज कलम मैं लिख देता हूं।'
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: फोरेस्ट आफिसर

Post by rajan »

जगतार ने उसे एक ओर रखा कागज उठाकर दे दिया। जयकर ने अपनी जब से पैन निकालकर दिया।

मेयर लिखने लगा।

'भैरों सिंह।' जगतार ने कहा-'तुम जरा फोन उठाकर रूम सर्विस से कहो कि एक बोतल ओर पांच गिलास भिजवा दे। इस ऐतिहासिक समझौते की खुशी में यहा बैठे पंच परमेश्वर सुबह सुबह भगवान शकर का प्रसाद तो चख ले।'

भैरों उठा और उसने कोने में रखे फोन द्वारा आदेश दुहरा दिया। फिर कमरे में चहलकदमी सी करने लदा। मेयर ने कागज लिखकर दस्तखत किए और फिर उसे जगतार की और बढ़ा दिया।


जगतार ने जगन सेठ को संकेत किया--देख लो जगन सेठ जो कुछ लिखा गया है उसे पढ़कर तुम्हारी तसल्लो है ना?" जगन सेठ ने पढ़ा।

फिर सन्तोष से सिर हिलाते हुए कहा-'हां ठीक है।'

'तो इसका मतलब है कि अब समझौता तसल्लीबक्श हो गया है।' जगतार बोला-'अब दोनों जने बड़े प्रेम से आपस मैं दोस्ताने का हाथ मिलाओ।'

'हाय तो मिला लूं।' मेयर बोला-'पर वे कागजात तो पहले मझे मिलने चाहिए।'

पर आपमें से किसी को कोई एतराज तो नहीं है।'

'यह सब प्रोग्राम तो बाद में बन जाएगा।' जगन सेठ बोला -'लेकिन जब तक वह कागजात मुझे वापिस नही मिल जाते तब तक समझौते की कोई बात करना बेकार है।'

'तो फिर इस बात को यही खत्म कर दिया जाए।' जगतार ने एकदम निर्णायक स्वर में कहा-'आगे बातचीत करने का कोई फायदा नहीं।'

'क्या मतलब?' उसकी बदली हुई टोन सुनकर जगन सेठ एकदम चौंका।

'मतलब साफ है जगन सेठ।' जगतार तनिक कड़े स्वर में बोला-'अगर वो कागजात तुम्हारे हाथों में पहुंच ही गए तो फिर तुम मेयर साहब को किस खेत की मूली समझोगे?'

'यानि यानि ।'

जगतार की बात पर कोशिश के बावजूद भी मेयर अपनी प्रसन्नता न रोक सका और हकला सा गया। मगर फिर एकदम अपने आपको संयत करता हुआ बोला-'अगर कागजात एक बार दे दिए तो फिर जगन सेठ ने किसे पूछना है। फिर तो तू कौन और में कौन।'

जगन सेठ ने कड़ी नजरों से जगतार को धूरा।

क्रोध से नथने फड़कने लगे थे और गाल लाल हो गए थे।

कड़े स्वर में जगतार से बोला वह-'आखिर तुम ओ इस मेयर से जा मिले?'

'मैं किसी से मिला हुआ नहीं हूं।' जगतार बोला-'न तुम से न मेयर से। मत भूलो कि मैं इस समय पंच बना हुआ हूं और पंच में परमेश्वर बोलता है जो किसी का पक्ष नहीं लेता। सिर्फ वही करता है जो न्याय की बात होती है।'

'मेरी गरदन हमेका इस मेयर की गरदन में फंसी रहे इसे तुम न्याय कहते हो।' जगन सेठ ने रोष पूर्ण स्वर में कहा-'यानि तुम हमेशा-हमेशा के लिए इस मेयर का कुत्ता बना देना चाहते हो?'

'नहीं लगन सेठ, मैं किसी को किसी का कुत्ता नहीं बनाना चाहता। सिर्फ समझौता चाहता हूं बराबर की शर्तों पर। आपको मेरी इस कोशिश में कोई गलत बात नजर आ रही है?'

अन्तिम बात जमतार ने जयकर को सम्बोधित करके कही थी
और जयकर ने बड़ी गम्भीरता से सिर हिलाते हुआ । कहा-'नहीं इसमें तो कोई गलत बात नहीं है। यह तो बिल्कुल न्याय की बात है कि समझौता हो लेकिन बराबरी के आधार पर हो।'

'आपको मंजूर हैं?' उसने जगन सठ से पूछा।

'हां बराबरी के आधार पर समझौता हो तो किसे मंजूर नही होगा।' जगन सेठ ने अपने को संयत करके जवाब दिया।

'आपको कोई एतराज है?' उसने मेयर से पूछा।

'नहीं।'

मेयर का जवाब मिलने के बाद जगतार बोला-'तब मेरा फैसला है कि वे कागजात मेयर के पास ही सुरक्षित रहेंगे। बतौर गारन्टी ताकि जगन सेठ कभी सपने में भी मयर साहब के खिलाफ जाने की बात न सोच सके।'

'यह क्या बात हुई।' जगन सेठ एकदम बिफर कर बोला-'यह तो तुमने मेरी गरदन पर छुरी फेर दी और इसे तुम समझौता कह रहे हो।'

'बिलकुल सही किया है।' मेयर उत्साहित स्वर में बोला-'क्योंकि इन्हें मालूम है कि मैं कमी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता। और तुम्हें भी यकीन दिलाता हूं कि वे कागजात चाहें रहें मेरे पास ही लेकिन जब तक तुम मेरे खिलाफ कोई गलत हरकत नहीं करोगे मैं उनका तुम्हारे खिलाफ उपयोग नहीं करूंगा।'

'जब बात बराबर के समझौते की है तो खाली यकीन दिलाने से कुछ नहीं होने का।' जगतार ने मेयर से कहा।
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: फोरेस्ट आफिसर

Post by rajan »

'जब बात बराबर के समझौते की है तो खाली यकीन दिलाने से कुछ नहीं होने का।' जगतार ने मेयर से कहा।

'यकीन को क्या मैं रखकर चाहूंगा।' जगन सेठ बोला-'मेरी गरदन तो तुम्हारे हाथों में रहेगी। मेरे पास तुम्हारे खिलाफ क्या रहेगा झुनझुना?'

'तुम्हें मेरी बात का यकीन करना होगा ..।'


'यकीन से कोई बात हल नहीं होने वाली एफ मेयर साहब।' जगतार बोला-'समझौता बराबर के ही ढंग से होगा। अगर आप उन कागजातों को अपने कब्जे में रखना चाहते हैं तो आपको अपने अपराधों का पूरा विवरण एक कागज पर लिखकर और दस्तखत करके जगन सेठ को देना होगा।'

जगतार की यह बात सुरकर मेयर चौकड़ी सी भूल गया।
'मम्म मैं-।' बौखलाए से स्वर में यह बोला-'मैं भला क्यों कुछ लिखकर दूंगा।'

'मत लिखकर दीजिए।'

'क्या मतलब?'

'अगर आप लिखकर नहीं देंगे तो वो वाले कागजात जगन सेठ को वापिस दे देने होंगे। फिर जगन सेठ जाने और आप।'

जगतार की बात सुनकर मेयर के चेहरे पर हवाईयाँ सी उड़ने लगी। सांप छडूंदर जैसी हालत हो गई थी, उसकी न निगलते बन रहा न उगलते।

'मैंने पहले ही कह दिया था कि समझौता होगा तो बराबर की शर्तों पर होगा।' जगतार बोला-'तराजू के दोनों पलड़े बराबर होंगे। कोई किमी की तरफ ज्यादा नहीं झुकने दिया जाएगा।'

'यह बात हुई ना कायदे की जगतार गुरु।' जगन सेठ ने उत्साहित स्वर मे उसका समर्थन करते हुए कहा-'अगर मेरी गरदन इसके हाथ में हो तो इसकी गरदन मेरे हाथ में होनी चाहिए। ताकि अगर कोई किसी की गरदन दबाए तो उसे इस वात का अहसास तो रहेगा कि दूसरा भी उसकी गरदन दबा सकता है।'

'यह बात मानने वाली है। पुलिस कमिश्नर जयफर भी बोला-'जगतार गुरु ने जो फैसला दिया है इससे ज्यादा सही और सच्चा फैसला और कोई नहीं हो सकता। समझौता बराबर की शर्तों पर डोगा तमी मजेदारी भी है और आगे हम मिल-जुल कर सही ढंग से बेहतर काम कर सकेंगे।'

'मुझे कुछ सोचने का टाईम दो।' मेयर ने विवश से स्बर में कहा।

'जो कुछ भी सोचने का टाईम है वह यहीं पर है।' जगतार बोला-'इस कमरे से बाहर जाने का मतलब है कि फिर कभी कोई समझौता नहीं होगा। अगर आप समझौते की शतं मानने के लिए तैयार नहीं हैं तो मजबूरन हमें ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी कि हम नोग आपके विना भी काम चला सकें।'

मेयर को लगा कि उसके पास और कोई चारा नहीं है। बोला-'मै तो तहे दिल से समझौते के पक्ष में हूं। अगर आप लोग यही चाहते हैं तो ऐसा ही सही। लाईए कागज कलम मैं लिख देता हूं।'
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: फोरेस्ट आफिसर

Post by rajan »

जगतार ने उसे एक ओर रखा कागज उठाकर दे दिया। जयकर ने अपनी जब से पैन निकालकर दिया।
मेयर लिखने लगा।
'भैरों सिंह।' जगतार ने कहा-'तुम जरा फोन उठाकर रूम सर्विस से कहो कि एक बोतल ओर पांच गिलास भिजवा दे। इस ऐतिहासिक समझौते की खुशी में यहा बैठे पंच परमेश्वर

सुबह सुबह भगवान शकर का प्रसाद तो चख ले।' भैरों उठा और उसने कोने में रखे फोन द्वारा आदेश दुहरा दिया। फिर कमरे में चहलकदमी सी करने लगा।
मेयर ने कागज लिखकर दस्तखत किए और फिर उसे
जगतार की और बढ़ा दिया।
जगतार ने जगन सेठ को संकेत किया--देख लो जगन सेठ जो कुछ लिखा गया है उसे पढ़कर तुम्हारी तसल्ली है ना?" जगन सेठ ने पढ़ा।

फिर सन्तोष से सिर हिलाते हुए कहा-'हां ठीक है।'

'तो इसका मतलब है कि अब समझौता तसल्लीबक्श हो गया है।' जगतार बोला-'अब दोनों जने बड़े प्रेम से आपस मैं दोस्ताने का हाथ मिलाओ।'

'हाथ तो मिला लूं।' मेयर बोला-'पर वे कागजात तो पहले मुझे मिलने चाहिए।' 'वो भी देता हू। पहले हाथ तो मिलाओ।'
'क्या मतलब?' जगन सेठ ने एकदम चौंककर कहा--'तुम तो
कह रहे थे कि रात तुमसे सेफ खुली ही नही!'
'झूठ बोला था मैंने जगन सेठ।' जगतार बोला-'लेकिन यह तो तुम मानोगे कि अच्छे काम के लिए बोले गए झूठ को झूठ नहीं कहा जाता। पहले बाली स्थिति बेहतर रहती या अदकी स्थिति बेहतर है।'
.

जगन सेठ के जबाब देने से पहले दन्वाजे पर दस्तक हुई। भैरों ने दरवाजा खोला। तभी सामने पुलिस को देखकर चौंक मया। उसने पिस्तौल निकालने की कोतिल की किन्तु पुलिस अधिकारी की पिस्तौल से निकली गोली ने उसका हाथ धायल कर दिया। उसके साथ ही कई पुलिसवाले भीतर घुस आए।
यह वही पुलिस अधिकारी था जो हास्पिटल मे जगतार के कमरे के बाहर घेराबन्दी किए हुए था।
सबको पिस्तौल के निशान पर लेता हुआ बोला-'अब तुम्हारा खेल खतम हो गया जगतार। मेरा खेल शुरू है।'
00

'यह कौन था?' रात जब भैरोंसिंह उसे उसके बंगले पर छोड़कर गया तो साधना ने उससे पूछा था। भैरोंसिंह।' उसने अनमने ढंग से जवाब दिया था।
'वही जो यहां सबसे पहले रिश्वत लेकर आया था?'
उसने साधना के इम सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे की ओर चल दिया। उसका दिमाग नशे से बोझिल था और सिर गे जगतार द्वारा की गई चोटों की धमक गूज रही थी। अन्दर ही अन्दर एक विवशतापूर्ण क्रोध का लावा सा उबल रहा था जो उसकी नस-नस को जलाए दे रहा था।
असफलता और असफलता।
आज उसने कम से कम उस हरामजादे मेयर को तो निश्चित रूप से ठिकाने लगा दिया होता अगर उस जगतार ने अचानक ही वहां पहुंच कर सारा काम खराब न कर दिया होता।
लेकिन वह जगतार वहां पहुंचा कैसे?

साफ जाहिर है कि वह साला मेयर सं भी मिला हुआ था। वह निश्चित रूप से मेयर का आदमी था तभी तो उसके दुश्मन जगन सेठ के आदभी कालिया से उलझ पड़ा वह ओर दीदी समझ रही है कि वह हम बचाने के लिए अपनी जान पर खेल गया।

'तुमने मेरी बात का जवाब नही दिया?' साधना ने उसका रास्ता रोकत हुए पूछा -'कहा रहे तुम इतनी रात तक और यह भैर तुम्हे यहां फैस छोड़ने के लिए आया?' 'मैं तुम्हारे सवाल के जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हूं।'
'बाध्य हो तुम।' साधना दृढ़ स्वर मे बोली-जब तक मैं यहां हूं तुम मेर हर सवाल का जवाब देने के लिए बाध्य हो। शराब भी पी है ना तुमने।'
'हां पी है।' दम एकदम जोरदार आवाज में बोला-'शराब पी है मैंने। लेकिन लोगों का लहू नहीं पिया तुम्हारे उस जगतार की तरह थे।'
Post Reply