Thriller कागज की किश्ती

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rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

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अगले रोज एंथोनी ने लल्लू की मौत की खबर सुनने के लिये जब नरेश माने को फोन किया तो यह सुनकर उसके छक्के छूट गये कि लल्लू सही-सलामत था और उसके लिये तैनात किया गया जल्लाद नट्टू रविराम उसके हाथों शहीद होने से बाल-बाल बचा था।
“ऐसा कैसे हो गया?” — एंथोनी अविश्‍वासपूर्ण स्वर में बोला।
“पता नहीं कैसा हो गया लेकिन हो गया।” — नरेश माने बोला — “और अब तो छोकरा जेल का बड़ा बाप है।”
“नहीं!”
“हां। अपुन एकदम सच बोल रयेला है।”
“विश्‍वास नहीं होता।”
“टोनी, तूने उस छोकरे को गलत समझा। वो मुंह फाड़ने वाला नहीं। वो दिन में चार बार जवाबतलबी के लिए बुलाया जाता है लेकिन वो मुंह से एक अक्खर फूट कर नहीं दियेला है।”
“हूं।”
“और टोनी, उसको यह भी मालूम हो चुका है कि उसको खल्लास करने का हुक्म नट्टू को तू दियेला था।”
“क्या!” — एंथोनी चौंक कर बोला।
“हां।”
“तेरे कू कैसे मालूम?”
“और कैदियों ने बताया। नट्टू और उस छोकरे में जो बातचीत हुई थी, वो अक्खा कम्पाउन्ड सुन रयेला था। नट्टू ने खुद बोला था कि वो तेरे कहने पर लल्लू को खल्लास करने की कोशिश कर रयेला था। कितना ही कैदी लोग नट्टू को ऐसा कहते अपने कानों से सुनेला था।”
एंथोनी के मुंह से एक भद्दी गाली निकली।
“अपुन जो सुना, वो तेरे कू बोल रयेला है। और अगर अपुन तेरी जगह होयेंगा तो उस छोकरे को खल्लास करवाने की दोबारा कोशिश नहीं करेंगा। अब कोई तेरे वास्ते यह काम करने को तैयार नहीं होयेंगा। अब तेरा छोकरा जेल का बड़ा बाप है। बड़ा बाप के खिलाफ जाना तेरे कू मालूम ही है कि कितना जिगरे का काम है। ऐसा काम करने कू हामी भरने कू...”
एंथोनी ने आगे माने की बात न सुनी। उसने रिसीवर वापिस क्रेडल पर पटक दिया।
बड़ी विकट स्थिति पैदा हो गई थी।
अगर लल्लू ने यूं आनन-फानन जेल का बड़ा बाप बन जाने का दिलगुर्दा दिखाया था तो वह बहुत खतरनाक साबित हो सकता था। अगर वाकई उसे मालूम हो चुका था कि उसकी मौत का सामान एंथोनी ने करवाया था तो उसके मन में बदले की भावना जागृत हो सकती थी और वह और भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता था।
उस विकट स्थिति से निपटने का एक ही तरीका था कि लल्लू के मन में विश्‍वास पैदा किया जाता कि नट्टू ने जो कुछ कहा था, वो गलत था, झूठ था। इस बात को स्थापित करने के लिये लल्लू का विश्‍वास जीतना जरूरी था और उसका विश्‍वास जीतने की कोशिश में पहला कदम यही हो सकता था कि उसकी जेल से रिहाई का इन्तजाम करवाया जाता। जेल में लल्लू को खल्लास करवाना अगर मुमकिन नहीं था तो ऐसा जेल से बाहर किया जा सकता था।
और इस काम के लिये उसकी जमानत होना जरूरी था।
रात को लल्लू अपनी पहले वाली बैरक में पहुंच गया।
उसे पांडी का साथ पसन्द था।
आखिर पांडी की वजह से ही वह नट्टू के हाथों मरने से बचा था।
उसे अभी भी यकीन नहीं आ रहा था कि टोनी ने ही जेल में उसकी मौत का सामान किया था।
लेकिन नट्टू को झूठ बोलने की क्या जरूरत थी! जरूरत तो क्या, वो तो झूठ बोलने की स्थिति में ही नहीं था।
टोनी उसके खून का प्यासा हो सकता था, इस खयाल ने उसे इतना विचलित किया कि वह उठकर टहलने लगा।
उसने देखा बैरेक के कोने में पांडी और लंगड़ा नागप्पा बैठे सिगरेट के कश लगा रहे थे। वह उनके करीब पहुंचा तो नागप्पा ने सिगरेट उसकी तरफ बढ़ा दिया।
“क्या है?” — लल्लू ने पूछा।
“समैक!” — लंगड़ा नागप्पा होंठ चटकाता बोला।
“मैं नहीं पीता।”
“बाप” — पांड़ी बोला — “जेल में टेम काटने का है तो कोई न कोई अमल जरूरी।”
“मैं नहीं... अच्छा, ला दिखा।”
लंगड़े ने सिगरेट उसे थमा दिया।
लल्लू ने उसके दो लम्बे कश लगाये और सिगरेट वापिस नागप्पा की तरफ बढ़ाया।
“एक और।” — लंगड़ा बोला।
लल्लू ने कहना माना।
फिर सिगरेट एक बार लंगड़े और पांडी में फिरा और खत्म हो गया।
लल्लू, जिसने पहली बार स्मैक का कश लगाया था, अपना सिर बहुत हल्का महसूस करने लगा। टोनी का खयाल भी दिमाग पर छाने लगी तरंग की धुंध में घुलने लगा।
“मैं” — लल्लू लंगड़े से बोला — “तेरे भाई कू जानता था।”
“अच्छा!” — लंगड़ा बोला।
“तब मेरे कू मालूम नहीं था कि उसका कोई भाई भी था और जेल में था।”
लंगड़ा खामोश रहा।
“तेरे कू जेल में यह समैक वाला सिगरेट कैसे मिलता है?”
“टोनी से। माने की मार्फत।”
“ओह!”
“बाप” — पांडी बेहद धीमे स्वर में बोला — “नागप्पा भी बोल रयेला है कि टोनी के कहने पर नट्टू तेरे कू खल्लास करने का कोशिश कियेला था।”
“तेरे कू कैसे मालूम?” — लल्लू नागप्पा से सम्बोधित हुआ।
“मालूम हो जाता है।” — लंगड़ा लापरवाही से बोला — “अपुन की टांग लंगड़ी है लेकिन कान एकदम चौकस हैं और आंख और भी चौकस हैं।”
“फिर भी!”
“अबे लंगू” — पांडी बोला — “बता न बड़ा बाप को।”
“अपुन” — लंगड़ा एक क्षण हिचकिचाया और फिर धीरे से बोला — “माने और नट्टू का थोड़ा डायलाग सुनेला था।”
“ओह!”
“बाप, तू भला आदमी है। ऊपर से तू मेरे दुश्‍मन नट्टू को धूल चटायेला है। इ‍सलिये अपुन तेरा भला करना मांगता है। अपुन तेरे को एक लेसन देना मांगता है।”
“क्या?”
“भीतर का कोई सीक्रेट बात मालूम होये तो उसको बाहर किसी को बता कर रखने का है।”
“अपुन कुछ समझा नहीं।”
“मैं तेरे कू समझाता है। देख। अपुन है न! मामूली, कमजोर आदमी लेकिन टोनी की मार्फत अपुन की भीतर कितना खातिर होयेला है! नट्टू से भी अपुन टोनी की वजह से ही सेफ है। टोनी अपुन का कोई सगे वाला तो नहीं! वो अपुन पर ऐसा मेहरबान काहे?”
“काहे?”
“क्योंकि अपुन टोनी का एक ऐसा सीक्रेट जानेला है जो टोनी को डैमेज कर सकता है। वह सीक्रेट अपुन बाहर पहुंचाया। अपने भाई के पास। एक बार सीक्रेट बाहर हो जाने पर वो और बाहर हो सकता है। टोनी को यह बात मालूम। इसलिए वो अपुन से दबेला है और अपुन के लिए इधर इतना अच्छा इन्तजाम छोड़ के गयेला है।”
“तू टोनी का कोई सीक्रेट कैसे जानता है?”
“बाप, तू टोनी का फिरेंड है, तेरे कू एक बात नेई मालूम?”
“कौन-सी बात?”
“कि टोनी नींद में बड़बड़ायेला है।”
“ओह! तो टोनी जब इधर जेल में था तो नींद में बड़बड़ाता था! तभी वो ऐसा कुछ बोला जो तूने सुना!”
“बरोबर। न सिर्फ सुना, उसे फौरन बाहर अपने भाई के पास पहुंचाया। अपुन ऐसा न किया होता तो टोनी अपुन को खल्लास करके अपुन का मुंह बन्द कर देता।”
लल्लू सोचने लगा। कहीं लंगड़े के भाई का हस्पताल में कत्ल टोनी ने ही तो नहीं करवाया था। उसका मुंह बन्द करने के लिए। उसने पहले उस कत्ल का जिक्र करना चाहा लेकिन फिर खयाल छोड़ दिया। पता नहीं लंगड़े को अभी अपने भाई के कत्ल की खबर भी थी या नहीं।
“बाप” — लंगड़ा बोला — “अब तू अपुन की बात समझा?”
“हां।” — लल्लू अनिश्‍चित भाव से बोला — “समझा।”
“तभी तेरे कू बोला कि अगर तू किसी की कोई भीतर की बात जानेला है तो उसे बाहर पहुंचा।”
“टोनी का सीक्रेट” — लल्लू ने पूछा — “तू अपने भाई को ही बतायेला है या किसी और को भी?”
“और को भी।” — लंगड़े के चेहरे पर बड़ी धूर्ततापूर्ण मुस्कराहट आई — “और टोनी को मालूम नहीं कि ऐसा आदमी कौन है, कितना है! बाप, अगर तेरे को भी टोनी का कोई टॉप का सीक्रेट मालूम हो तो उसे बाहर किसी को बोल के रख। फिर टोनी की हिम्मत नहीं होयेंगा जेल के किसी नट्टू को बोलने का कि वो तेरे को खल्लास कराना मांगता है। बाप, तू बाहर वालों को बोल कर जो रखेगा कि अगर तेरे को जेल में कुछ हो जाये तो तेरा बाहर वाला टोनी के खिलाफ क्या करना मांगता था, किधर जाकर जुबान खोलना मांगता था!”
“मुझे अभी भी विश्‍वास नहीं कि मेरे कत्ल का सामान टोनी कियेला था।”
“ठीक है। मर्जी तेरी।”
“तू टोनी का क्या सीक्रेट जानता है? मेरे कू बता न!”
“बाप, जब तू अपने आपको टोनी का जिगरी बोलता है तो कैसे बतायेंगा! तू टोनी के खिलाफ कोई बात भला कैसे सुनेंगा!”
लल्लू ने पांडी की तरफ देखा।
पांडी ने आंखों ही आंखों में उसे एक आश्‍वासन दिया।
लल्लू खामोश हो गया।
अभी बहुत वक्त था और उसे लग रहा था कि पांडी लंगड़े की जुबान खुलवा सकता था।
जोगेश्‍वरी से वापिसी में एंथोनी कार खुद चला रहा था। उसके जख्म को अभी ड्रैसिंग की जरूरत थी, उसके जिस्म में अभी काफी कमजोरी थी लेकिन चलने-फिरने के काबिल वह हो चुका था। डॉक्टर अटल ने उसे खाने को कुछ दवाईयां और रोज ड्रैसिंग कराने की हिदायत देकर डिसचार्ज कर दिया था।
कार धारावी पहुंची।
“तेरे को खुर्शीद का घर मालूम?” — एंथोनी ने पूछा।
गुलफाम अली ने सहमति में सिर हिलाया।
“रास्ता बता।”
गुलफाम के निर्देश पर कार चलाता टोनी उस इमारत के सामने पहुंचा जिसमें खुर्शीद रहती थी।
“देख, वो घर है!” — एंथोनी बोला — “हो तो उसे इधर बुलाकर ला।”
गुलफाम सहमति में सिर हिलाता कार से बाहर निकला। थोड़ी देर बाद वह अकेला इमारत से बाहर निकला।
“क्या हुआ?” — वो कार में आकर बैठा तो एंथोनी ने पूछा।
“वो अब यहां नहीं रहती।” — गुलफाम ने बताया — “उसकी मां ने उसे पीटकर घर से निकाल दिया है।”
“तो कहां रहती है? मालूम हुआ?”
“हां, हुआ। पालवाड़ी में एक होटल है, वह उसके एक कमरे में रहती है।”
“पालवाड़ी में तो एक ही होटल है। वो चूहेदान जिसका नाम न्यू स्टार है।”
“वही।”
एंथोनी ने कार आगे बढ़ाई।
उसने कार को चाल से भी गन्दे होटल न्यू स्टार से थोड़ा आगे करके रोका। गुलफाम कार से निकला और होटल की तरफ बढ़ गया।
थोड़ी देर बाद वह खुर्शीद के साथ इमारत से बाहर निकला।
एंथोनी कार से बाहर निकल आया और अपनी घायल टांग पर बिना जोर दिए कार का सहारा लेकर खड़ा हो गया।
उसने देखा खुर्शीद एक सिलवटों से भरी सूती साड़ी पहने थी और उसके चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी।
वह एंथोनी के करीब आकर ठिठकी।
“क्या है?” — वह रूखे स्वर में बोली — “तीन सौ रुपये देकर थप्पड़ मारने आयेला है?”
एंथोनी जबरन मुस्कराया।
“तू मुझे गलत समझ रही है। मैं तो इधर तेरी मदद के वास्ते आया!”
“कैसी मदद?”
“तू लल्लू को जेल से बाहर देखना चाहती है न?”
“हां।”
“लेकिन तेरे पास उसकी जमानत भरने का रोकड़ा नहीं। होता तो तू कब की उसकी जमानत भर चुकी होती। बरोबर?”
खुर्शीद ने यन्त्रचालित भाव से सहमति में सिर हिलाया।
rajan
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“वो रोकड़ा मैं तेरे कू देंगा।”
“लल्लू तेरा भी तो दोस्त है! तू खुद ही जमानत क्यों नहीं भर देता?”
“क्योंकि पुलिस वाला लोग मेरे कू मवाली समझता है। वो मेरे से सवाल करेंगा कि मेरे पास एक लाख रुपया किधर से आया!”
“ऐसा सवाल मेरे भी तो हो सकता है?”
“अव्वल तो होयेंगा नहीं। होयेंगा तो तेरे वास्ते जवाब देना आसान होयेंगा।”
“क्यों?”
“क्योंकि तू औरत है।”
खुर्शीद ने तमक कर उसकी तरफ देखा।
“अरे, मेरा वे मतलब नहीं।” — एंथोनी जल्दी से बोला।
“तो क्या मतलब है?”
“तू बोल सकती है कि तू अपना जेवर बेचकर रोकड़ा इकट्ठा किया। अपनी मां का जेवर बेचकर रोकड़ा इकट्ठा किया। लल्लू की मां का जेवर बेचकर रोकड़ा इकट्ठा किया। क्या?”
खुर्शीद का सिर धीरे से सहमति में हिला।
“मुझे क्या करना होगा?” — फिर उसने पूछा।
“कुछ भी नहीं। तेरे कू कुछ भी नहीं करना होगा। सब काम वकील कर लेगा। तेरे कू जमानत की रकम पेश करनी होगी और कुछ कागज़ साइन करने होंगे। वकील का इन्तजाम गुलफाम कर देगा। आज शाम को नहीं तो कल सुबह तक लल्लू आजाद होयेंगा।”
खुर्शीद की उदास आंखों में उम्मीद की चमक आयी।
“तू एक घन्टे बाद कचहरी पहुंच जाना। गुलफाम रोकड़ा लेकर आ जायेगा।”
खुर्शीद ने सहमति में सिर हिलाया।
“देर न करना। कल क्रिसमस की छुट्टी है। आज कागज़ी कार्यवाही पूरी न हुई तो बात परसों पर पड़ जायेगी।”
“मैं एक घन्टे से पहले पहुंचूंगी।”
“बढ़िया। और थोड़ा हुलिया भी सुधार कर आना। इतनी खूबसूरत लड़की है तू और क्या हाल बनायेला है अपना! लल्लू तेरे कू इस हाल में देखेंगा तो क्या सोचेंगा!”
खुर्शीद सहमति में सिर हिलाती वापिस होटल की तरफ दौड़ चली।
एंथोनी और गुलफाम फिर कार में सवार हो गए।
“अब आगे तेरे कू मालूम” — एंथोनी बोला — “कि तेरे कू क्या करने का है।”
“हां” — गुलफाम लापरवाही से बोला — “मालूम।”
“छोकरी बचनी नहीं चाहिए।”
“पहले कोई बचा?”
“और अपना लल्लू भी।”
“वो भी।”
जमानत की सारी कार्यवाही पूरी होने में तीन घण्टे लगे।
गुलफाम अली कचहरी में खुर्शीद के साथ नहीं रुका था। वह जमानत की रकम खुर्शीद को सौंपकर और उसके लिये वकील मुकर्रर कर के वहां से विदा हो गया था।
अकेली खुर्शीद ही वकील के साथ कमरा-दर-कमरा भटकी थी।
“अब वो छूटेगा कब?” — खुर्शीद ने वकील से पूछा।
“आज शाम को ये कागज़ात जेल में पहुंच जायेंगे और कल सुबह उसे छोड़ दिया जाएगा। कागज़ात मैं खुद जेल में लेकर जाऊंगा। तुम चाहो तो मेरे साथ चल सकती हो।”
“नहीं, मैं पहले उसकी मां और दादी को यह खबर सुना कर आना चाहती हूं कि उनका बेटा घर लौट राह है। वो बहुत खुश होंगी। आप मेरे पर एक मेहरबानी करेंगे?”
“क्या?”
“लल्लू को — हजारे को — बोल देना कि मैं उसे लेने आऊंगी।”
“दस बजे आना। जमानत पर छूटने वाले तकरीबन उसी वक्त छोड़े जाते हैं।”
“ठीक है।”
वकील से जुदा होकर वह इमारत से बाहर निकली। सड़क पर आकर वह टैक्सी तलाश करने लगी। अगले रोज क्रिसमस थी और क्रिसमस ईव का शापिंग का ऐसा रश था कि कोई टैक्सी खाली दिखाई नहीं दे रही थी।
अष्टेकर कचहरी की इमारत से निकलकर पार्किंग में खड़ी अपनी जीप की ओर बढ़ रहा था कि उसे फुटपाथ पर टैक्सी के लिए हलकान होती खुर्शीद दिखाई दी। उसको उसकी वहां मौजूदगी की लल्लू की जमानत के अलावा कोई वजह न सूझी।
वह जीप में सवार हुआ और उसे घुमा कर फुटपाथ के करीब ले आया।
“टैक्सी नहीं मिल रही?”
खुर्शीद ने चौंककर सामने देखा तो पाया कि जीप में अष्टेकर बैठा था और उसी से सम्बोधित था।
“मिल जाएगी।” — वो भावहीन स्वर में बोली।
“इधर कैसे आयी?”
“यूं ही कुछ खरीदारी करने।”
“खरीदा दिखाई तो नहीं दे रहा कुछ!”
“कुछ पसन्द नहीं आया।”
“हजारे की आजादी भी नहीं?”
“क-क्या?”
“मैं लाख रुपये की खरीदारी की बात कर रहा था। हजारे की आजादी की।”
खुर्शीद खामोश रही।
“जमानत भर दी?”
खुर्शीद ने उत्तर न दिया।
“मैं पुलिस वाला हूं, शायद भूल गयी हो। जो बात भीतर जाकर चुटकियों में मालूम की जा सकती हो, उसे छुपाने से फायदा!”
“हां। जमानत भर दी मैंने। वो कल छूट रहा है।”
“अच्छा है। क्रिसमस है।”
“वो ईसाई नहीं है।”
“फिर भी क्या हुआ! त्यौहार का दिन तो है! ईसा मसीह की नेमत किसी पर भी बरस सकती है। पीर पैगम्बरों के आशीर्वाद सिर्फ उन्हीं के धर्म के अनुयायियों के लिए ही थोड़े ही होते हैं! मुझे खुशी है कि उसकी जमानत हो गई। अच्छा लड़का है हजारे। मूर्ख है लेकिन अच्छा है, खुशकिस्मत है।”
“खुशकिस्मत! वो कैसे?”
“उसे तुम्हारे जैसी दिलदार प्रेमिका जो हासिल है! उसकी जमानत कराने वाली। पल्ले से पूरा लाख रुपया जमा कराने वाली। रोकड़ा कहां से आया? सान्ता क्लास तो नहीं दे गया?”
“सान्ता क्लास?”
“एंथोनी फ्रांकोजा।”
खुर्शीद ने उत्तर न दिया। उसने करीब आती एक और टैक्सी को हाथ दिया लेकिन वो सर्र से उसके सामने से गुजर गयी।
“जीप में बैठो।” — अष्टेकर बोला — “धारावी ही तो जाओगी! वहीं मैं जा रहा हूं।”
खुर्शीद हिचकिचायी।
“विश्‍वास जानो, मैं यह जानने की जबरदस्ती नहीं करूंगा कि जमानत भरने के लिए लाख रुपया तुम्हारे पास कहां से आया! फिर तो ठीक है?”
“धारावी में लोग मुझे तुम्हारे साथ जीप में बैठा देखेंगे तो समझेंगे कि तुम मुझे गिरफ्तार करके ले जा रहे हो।”
अष्टेकर जोर से हंसा।
“टैक्सी के लिए हलकान होने के मुकाबले में वो छोटी असुविधा है।” — वह बोला।
खुर्शीद हिचकिचाती हुई जीप में सवार हो गयी।
अष्टेकर ने जीप आगे बढ़ायी।
“एक” — रास्ते में वह बोला — “तुम्हारी पसन्द की बात कहूं?”
“क्या?”
“लल्लू के खिलाफ कोई बहुत पुख्ता केस नहीं है। एक अंगूठे के निशान के दम पर उसे डकैती के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। फिंगरप्रिंट्स आइडेन्टिफिकेशन के लिए एक से ज्याद फिंगरप्रिंट्स दरकार होते हैं। उसका ट्रेन में खोया पर्स और जोगलेकर नाम के आदमी की उसके खिलाफ गवाही भी निर्विवाद रूप से उसे अपराधी साबित नहीं करती। सिर्फ शक की बिना पर अदालत किसी को सजा नहीं देती। वो रिहा हो सकता है। सजा भी हुई तो बड़ी हद साल-छ: महीने की होगी। लेकिन अगर उसका हाथ घाटकोपर की बैंक डकैती में भी पाया गया तो फिर वह बहुत बुरा फंसेगा। उस डकैती में तीन आदमियों की जान गई है।”
खुर्शीद बेहद चिन्त‍ित दिखाई देने लगी।
“एक तरीके से वो फिर भी छूट सकता है।”
“वो कैसे?”
“सरकारी गवाह बन कर। उसकी गवाही की बिना पर तब मैं एंथोनी और गुलफाम को गिरफ्तार कर लूंगा। उन्हें कड़ी सजा होगी और हजारे वादामाफ गवाह होने की वजह से रिहा कर दिया जाएगा।”
“अच्छा!”
“हां। मैंने उसे बहुत समझाया है लेकिन मेरे कहे से वह सरकारी गवाह बनने को तैयार नहीं हो रहा है। अब तो वह घर आ रहा है! तुम समझाकर देखना। हो सकता है वो तुम्हारी बात मान ले।”
खुर्शीद का सिर अपने आप ही सहमति में हिला।
शाम को लल्लू को जेल‍र के कमरे में ले जाया गया जहां जेलर की जगह उसने फिर अष्टेकर को बैठा पाया।
“बैठो।” — अष्टेकर बोला।
लल्लू उसके सामने बैठा गया।
“बधाई हो।”
“किस बात की?” — लल्लू सकपकाया।
“कल घर जो जा रहा है।”
“क्या!” — लल्लू की हैरानी छुपाये न छुपी।
“तेरी जमानत हो गई है।”
“मुझे पता था।” — फिर लल्लू इतमीनान से बोला।
“क्या पता था?”
“कि टोनी मुझे जरूर छुड़वायेगा।”
“बेवकूफ, तेरी जमानत टोनी ने नहीं दी।”
“त-तो?”
“तेरी जमानत खुर्शीद ने दी है। अब तू बता कि खुर्शीद के पास तेरी जमानत भरने को लाख रुपया कहां से आया?”
“इधर-उधर से जमा किया होगा बेचारी ने।”
“रोकड़ा इधर-उधर बिखरा नहीं पड़ा रहता कि जो चाहे हाथ बढ़ाए और उठा ले।”
लल्लू खामोश रहा।
“घाटकोपर में जो बैंक लुटा है, कभी तू उसकी कैंटीन में चाय वाला छोकरा हुआ करता था। ठीक?”
लल्लू चौंका।
“उस बैंक डकैती में किसी ऐसे आदमी का हाथ साफ दिखाई देता है जोकि वहां हर हफ्ते पहुंचने वाली बख्तरबन्द गाड़ी की रूटीन को खूब समझता था। वह आदमी तू हो सकता है। तेरी रिश्‍तेदारी उस डकैती से अभी नहीं जोड़ी गई। अभी तू सिर्फ कल्याण की डकैती वाले केस में गिरफ्तार है। तू घाटकोपर के बैंक की कैंटीन में चाय वाला छोकरा हुआ करता था, यह बात अभी मेरे सिवाय किसी को नहीं मालूम। अपनी यह जानकारी में अभी घाटकोपर थाने में पहुंचा दूं तो सबसे पहला काम तो यही होगा कि तेरी जमानत रद्द हो जाएगी। फिर तू कल भी यहीं होगा, अगले महीने भी यहीं होगा और अगले साल भी यहीं होगा।”
उस बात ने लल्लू को हिला दिया।
“लेकिन हौसला रख, यह बात मैं किसी को नहीं बताऊंगा।”
“मेरे पर” — लल्लू अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरता हुआ बोला — “इतनी मेहरबानी किसलिए?”
rajan
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“कई वजह हैं। जैसे तेरा बाप मेरा दोस्त था। जैसे कल क्रिसमस है। जैसे मुझे खुर्शीद पर तरस आता है जो तेरे जैसे अवली के लिए अपनी जिन्दगी खराब कर रही है। और सौ बातों की एक बात यह है कि तू मेरा निशाना नहीं।”
“क्या!”
“मेरा निशाना टोनी और गुलफाम हैं। अगर तूने गोली नहीं चलाई तो तू उनके खिलाफ गवाह बन, मैं गारन्टी करता हूं कि तेरा बाल भी बांका नहीं होगा।”
“मैं पहले ही कह चुका हूं कि मुझे मुखबिरी कबूल नहीं।”
“बहुत ढीठ है तू।” — अष्टेकर असहाय भाव से गर्दन हिलाता बोला — “निरा घौंचू है तू।”
लल्लू खामोश रहा।
“अच्छा, कोई ऐसी बात ही बता जो मुखबिरी का दर्जा न रखती हो!”
“वो क्या?”
“विलियम फ्रांसिस के कत्ल के बारे में तू क्या जानता है?”
“मेरी बात पर विश्‍वास कर लोगे?” — लल्लू बड़ी संजीदगी से बोला।
“हां, हां।” — लल्लू की संजीदा आवाज से अष्टेकर प्रभावित हुए बिना न रह सका — “क्यों नहीं?”
“तो सुनो, मैं अपने उस मरे हुए बाप की, जोकि तुम्हारे कहने के मुताबिक तुम्हारा यार था, कसम खाकर कहता हूं, अपनी मां की कसम खा कर कहता हूं, खुर्शीद की कसम खाकर कहता हूं कि विलियम के कत्ल के बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम। मैं गणपति की कसम खाकर कहता हूं कि अगर मुझे कुछ मालूम होता तो मैं जरूर बताता।”
अष्टेकर कुछ क्षण खामोश बैठा अपलक लल्लू को देखता रहा और फिर बड़ी गम्भीरता से बोला — “मुझे तेरी बात पर विश्‍वास है, बेटा।”
कई क्षण कमरे में बड़ा बोझिल सन्नाटा छाया रहा।
फिर अष्टेकर उठ खड़ा हुआ। वह मेज के पहलू से घूमकर लल्लू के करीब पहुंचा। उसने अपनी जेब से एक लिफाफा निकाल कर लल्लू को दिखाया — “ये मेरी तेरे बारे में रिर्पोट है जिसे मैं पुलिस के उस असिस्टेंट कमिश्‍नर को भेजने वाला था जिसके अन्डर घाटकोपर थाना आता है। इस पर ए.सी.पी. का पता लिखा है, डाक टिकट लगी हुई है, बस इसे बम्बे में छोड़ना भर था मैंने। इत्तफाक से यहां आती बार इसे बम्बे में छोड़ना मैं भूल गया था। यह रिपोर्ट तेरे सारे कल-पुर्जे ढीले कर सकती है। यह रिपोर्ट तेरे खिलाफ सशस्त्र डैकती और हत्या की एक नयी तफ्तीश चालू करवा सकती है।”
लल्लू के गले की घन्टी जोर से उछली। उसने व्याकुल भाव से लिफाफे की तरफ देखा। एक बार पुलिस की तवज्जो उसकी तरफ जाने की देर थी, फिर दर्जनों चश्‍मदीद गवाह उसके खिलाफ पैदा हो सकते थे। टोनी की खातिर जब वह वापिस लौटा था तो तब तो वहां भीड़ जमा हो चुकी थी। और तब तो कई लोगों ने उसे देखा हो सकता था।
“मुझे नहीं पता” — अष्टेकर बोला — “तू क्यों टोनी से इतनी वफादारी दिखा रहा है। शायद इसलिए क्योंकि तुझे मालूम है कि तेरी जमानत के लिए दरकार रकम टोनी ने भरी है। लेकिन बावजूद ऐसे गलत आदमी के लिये वफादारी दिखाने के तू बहुत खुशकिस्मत है। तेरे को खुद नहीं मालूम तू कितना खुशकिस्मत है! कल्याण की डकैती में तेरे खिलाफ कोई तगड़ा केस नहीं। कोई अच्छा वकील तेरे खिलाफ उस केस की धज्जियां उड़ाने में कामयाब हो जाएगा। तू आजाद हो जाएगा। तू मुखबिर बने बिना भी आजाद हो जाएगा। लेकिन अगर तू तब भी टोनी का ही शागिर्द बना रहा तो यह आजादी महज चार दिन की होगी। हजारे, अगर तेरे में राई रत्ती भर भी अक्ल बाकी है तो आजाद होते ही अपनी छोकरी का हाथ थामना और मुम्बई से कहीं इतनी दूर निकल जाना कि टोनी को तेरी भनक भी न लग सके। समझा?”
लल्लू ने सहमति में सिर हिलाया। उसने व्याकुल भाव से अष्टेकर के हाथ में थमे लिफाफे की तरफ देखा।
अष्टेकर ने एक गहरी सांस ली। फिर उसने लिफाफे के पहले दो, फिर चार, फिर आठ और फिर सोलह टुकड़े किए और उन्हें लल्लू की गोद में डाल दिया।
“क्रिसमस मुबारक।” — अष्टेकर बोला।
लल्लू ने जोर से थूक निगली। उसका जी चाहा वह जोर-जोर से रोने लगे। उसने कृतज्ञ भाव से इन्स्पेक्टर की तरफ देखा।
लेकिन अष्टेकर तब तक उसकी तरफ से पीठ फेर चुका था और मेज पर पड़ी घण्टी बजा रहा था।
खुर्शीद ने मक्खियों से भिनभिनाते रिसैप्शन काउन्टर पर जाकर वहां रखे टेलीफोन पर अपने लिसे आयी काल रिसीव की।
फोन गुलफाम अली का था जो बड़े बौखलाहटभरे स्वर में उसे बता रहा था कि लल्लू की जमानत में अड़ंगा आन खड़ा हुआ था।
“कैसा अड़ंगा?” — खुर्शीद ने व्याकुल स्वर में पूछा।
“पुलिस को बताने का है कि तेरे पास जमानत के लिए रोकड़ा किदर से आयेला है!”
“वो तो तुम लोगों ने कहा था न कि मैं कह सकती हूं कि जेवर बेचकर...”
“बरोबर। लेकिन तेरे कू एक सर्टिफिकेट देने का है कि रोकड़ा तेरे पास जेवर बेचकर ही आयेला है।”
“कब?”
“अब्बी का अब्बी, नेई तो कल लल्लू कैसे छूटेंगा!”
“तो मैं कैसे...”
“वो टोनी सब इस्ट्रेट कियेला है पण तेरे कू इधर आना मांगता है।”
“इधर किधर?”
“वो अपने पास्कल का बार है न...”
“ठीक है। मैं बार में आती हूं।”
“अरे, बार में नहीं आने का है।”
“तो?”
“बारे के पीछू गली है?”
“हां।”
“उदर एक बन्द फाटक है। देखा?”
“देखा। लेकिन वो फाटक तो हमेशा बन्द रहता है!”
“आज खुला होयेंगा। उसको धक्का देने का है और भीतर आ जाने का है। भीतर आने से पहले आजू-बाजू देखने का है।”
“वहां कौन होगा?”
“अपुन होयेंगा। टोनी होयेंगा।”
“लेकिन वहीं क्यों आने का है?”
“क्योंकि वो सेफ ठीया है। उधर किसी को मालूम नेई होयेंगा कि तेरे कू टोनी से कोई मतलब।”
“अजीब बात है! बार में टोनी से बात करने में क्या आफत आ जायेगी?”
“जैसा बोलता है, वैसा कर खुर्शीद बेगम, इसी में... लल्लू का भला है।”
“टाइम कितना लगेगा?”
“बड़ी हद पांच मिनट। बस तेरे को वो सर्टिफिकेट और कुछ और पेपर ही तो साइन करने का है।”
“ठीक है। आती हूं।”
“अब्बी का अब्बी।”
“हां, हां। अभी।”
उसने रिसीवर रख दिया।
ड्राइंगरूम में एक सीढ़ी पर चढ़ा एंथोनी छत को छूते क्रिसमस ट्री को सजा रहा था। फर्श पर बैठा मिकी सजावट के साजोसामान को इधर-उधर उछालने में व्यस्त था। मोनिका नीचे सीढ़ी थामे खड़ी थी।
एंथोनी को घर का वह माहौल बहुत पसन्द आ रहा था। ऐसी क्रिसमस उसकी अपनी जिन्दगी में पहले कभी नहीं आयी थी।
पता नहीं वह त्यौहार का असर था या एंथोनी की फ्लैट से एक हफ्ते की गैरहाजिरी का, लेकिन तब मोनिका भी वैसे मूड में थी जैसे में वह उसे देखना चाहता था।
वह सीढ़ी से उतरने लगा तो एकाएक उनकी घायल टांग पर ज्यादा जोर पड़ा गया। वह लड़खड़ाया और सम्भला तो उसने अपने आपको मोनिका की बांहों में पाया।
उसने कस कर एंथोनी को अपने आगोश में जकड़ लिया।
एंथोनी ने उसके होंठों पर एक चुम्बन जड़ा और फिर उसके कान में बोला — “मैरी क्रिसमस।”
“मैरी क्रिसमस।” — मोनिका बोली।
गली में घुप्पा अन्धेरा था।
खुर्शीद ने झिझकते हुए गली में कदम रखा।
जिस फाटक का टेलीफोन पर गुलफाम ने जिक्र किया था, वह उसने कई बार देखा था लेकिन उसे मालूम नहीं था कि उस फाटक के पीछे क्या था। देखने में वह गैरेज का दरवाजा लगता था।
वह फाटक के सामने पहुंची। उसने दाये-बायें निगाह दौड़ाई। कहीं कोई नहीं था। गली में मुकम्मल सन्नाटा था।
झिझकते हुए उसने हौले से दरवाजे को धक्का दिया।
दरवाजा निशब्द खुल गया।
भीतर भी गहरा अन्धेरा था।
वह कितनी ही देर आंखें फाड़-फाड़कर देखती रही तो उसने पाया कि वह गैरेज नहीं, बेसमेंट को जाता एक ढलुवां रास्ता था।
“टोनी!” — उसने आवाज लगायी — “गुलफाम!”
कोई उत्तर न मिला।
डरते झिझकते उसने आगे कदम बढ़ाया।
अजीब जगह थी। कोई रोशनी नहीं। कोई आवाज नहीं।
टोनी और गुलफाम वहां थे तो कहां थे!
ढलुवां रास्ता अभी उसने आधा ही पार किया था कि उसकी हिम्मत दगा दे गई। वह वापिस लौटने को घूमी।
तभी एक मजबूत हाथ उसके मुंह पर पड़ा। हाथ ने उसका चीखने को तत्पर मुंह दबोच लिया और उसे यूं ऊपर को उमेठा कि उसका गला तन गया।
rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

Post by rajan »

वह बुरी तरह छटपटाने और हाथ पांव मारने लगी।
फिर तना हुआ गला एकाएक ढ़ीला पड़ गया।
एक क्षण के लिए उसे अपने कटे गले से भल-भल करते खून का अहसास हुआ और फिर उसका निश्‍चेष्ट शरीर आक्रमणकारी की बांहों में झूल गया।
दस बजे लल्लू जेल से बाहर निकला।
उसने चारों तरफ निगाह दौड़ायी।
खुर्शीद उसे कहीं दिखाई न दी।
उसके साथ और भी कैदी सजा मुकम्मल करके या उसकी तरह जमानत पर छूटे थे और उन्हें लेने आये अपने रिश्‍तेदारों से गले लग-लगकर मिल रहे थे। उस घड़ी वहां लल्लू ही इकलौता शख्स था जिसे कोई लेने नहीं आया हुआ था।
लेकिन खुर्शीद ने आना था — मन ही मन उसने अपने आप को तसल्ली दी — वो कहीं बस के चक्कर में अटक गई होगी। उसने न आना होता तो वो सन्देशा क्यों भिजवाती कि वो उसे लेने आएगी।
जेल के बड़े फाटक के करीब ही बस स्टैंड था।
वह बस स्टैंड पर जाकर बैठ गया।
जो भी बस वहां पहुंचती थी, वह बड़ी आशापूर्ण निगाह से उचककर उसकी तरफ देखता था लेकिन बस से उतरे मुसाफिर में जब वह खुर्शीद को नहीं पाता था तो मायूस हो जाता था।
बारह बज गए।
लल्लू अब मायूस होने की जगह आशंकित होने लगा।
क्यों नहीं आयी थी खुर्शीद! कहीं रास्ते में कोई एक्सीडेंट तो नहीं हो गया था! क्या पता वो बस की जगह टैक्सी पर आ रही हो और टैक्सी वाले ने टैक्सी कहीं मार दी हो!
खुर्शीद के किसी अनिष्ट की कल्पना से उसका दिल लरजने लगा।
अब उसे वहां खुर्शीद का इन्तजार बेमानी लगने लगा।
वह धारावी जाने वाली बस में सवार हो गया।
खार के इलाके में वो एक छोटा सा मकान था जिसके सामने अष्टेकर ने जीप रोकी। जीप से निकल‍कर उसने काल बैल बजाई और फिर दरवाजे से परे हटकर खड़ा हो गया।
उसके हाथ में एक बड़ा सा पैकेट था जिसे बेध्यानी में उलटता पलटता वह दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगा।
उसके दिल की धड़कन एकाएक तेज हो गई थी और वह बार-बार बेचैनी से पहलू बदलने लगा था।
यह दोबारा घण्टी बजाने की सोच ही रहा था कि एकाएक दरवाजा खुला और एक महिला बाहर निकली। आयु में वह पचास के पेटे में पहुंची हुई थी लेकिन उसके जिस्म या सूरत से उम्रदराजी के कोई आसार नहीं झलकते थे।
अष्टेकर को देखकर महिला के चेहरे पर फौरन चमक आई। उसकी आंखों में ऐसा भाव झलका जैसे उसे अष्टेकर के आगमन से सख्त हैरानी हो रही हो।
“हल्लो, मार्था!” — अष्टेकर मुस्कराता बोला।
“हल्लो।” — महिला के मुंह से निकला।
“मैरी क्रिसमस।” — अष्टेकर बोला।
“मार्था!” — तभी भीतर से कोई दहाड़ा — “कौन है बाहर! फिर तेरा कोई यार आ गया तुझे मैरी क्रिसमस विश करने! डर्टी बिच, इतना ही काफी नहीं था कि खुद यारों के पास जाती थी, अब यारों को घर बुलाने लगी!”
“कौन है?” — अष्टेकर दबे स्वर में बोला।
“मेरा हसबैंड!” — मार्था अवसादपूर्ण स्वर में बोली।
“ये तेरे से ऐसी जुबान बोलता है?”
“हां।”
“हमेशा?”
“हां। जब से अपाहिज हुआ है, व्हीलचेयर के हवाले हुआ है।”
“अपाहिज! कब से?”
“शुरू से ही। शादी के एक महीने बाद से ही।”
“मार्था!” — अष्टेकर दहशतनाक स्वर में बोला — “तूने सारी जिन्दगी एक अपाहिज के साथ काटी!”
“हां।”
“और मुझे खबर तक नहीं!”
“कैसे होती! मेरे घर में पहले कभी आये हो?”
“मुझे तो पता भी नहीं था कि तुम्हारा घर कहां है! पता लगा तो इसलिए क्योंकि यह विलियम का भी घर था।”
“आज कैसे आ गये?”
“मार्था!” — मर्दाना दहाड़ फिर सुनाई दी — “यू बिच! यू डर्टी बिच! बाहर क्या कर रही है? किससे बातें कर रही है?”
“जैक!” — मार्था याचनापूर्ण स्वर में बोली — “प्लीज, बी क्वाइट।”
“ठहर जा बी क्वाइट की बच्ची!”
पीछे एक दरवाजा भड़ाक से खुला और व्हीलचेयर लुढ़काता एक आदमी बरामदे में प्रकट हुआ। वो आदमी इतना खस्ताहाल था कि हैरानी होती थी कि जिन्दा था।
“बाहर क्यों निकल आए?” — मार्था बोली — “बाहर ठण्डी हवा चल रही है। भीतर जाओ।”
“ताकि तू यहां मस्ती मार सके। साली, तू क्या समझती है कि मैं तेरी करतूतों को जानता नहीं! समझता नहीं! कमीनी, क्रिसमस पर तो अपनी बेहयाई छोड़ देती!”
“तुम्हें ठंड लग जाएगी।”
“तो क्या होगा? निमोनिया हो जाएगा। मैं मर जाऊंगा। यही तो तू चाहती है। अब यार चौखट तक आया है, फिर बैडरूम तक आयेगा और...”
मार्था उसके पास पहुंची, उसने उसकी व्हीलचेयर घुमायी और उसे वापिस भीतर धकेल कर दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया।
वह वापिस लौटी।
भीतर उसका पति पूर्ववत् चिल्लाता रहा, गालियां बकता रहा और दरवाजा पीटता रहा।
“यह” — अष्टेकर ने कहना चाहा — “यह...”
“अभी खामोश हो जाएगा।” — मार्था बोली — “चीखने-चिल्लाने और दरवाजा पीटने के लिए भी दमखम चाहिये जोकि उसमें नहीं है।”
“ओह!”
फिर सच ही भीतर से आवाजें आनी बन्द हो गईं।
मार्था फिर अष्टेकर की तरफ घूमी।
“और क्या हाल है?” — अष्टेकर ने निरर्थक सा सवाल किया।
“और हाल भी वही है जो तुमने अभी देखा। कितनी खुशकिस्मत हूं मैं कि अपने देवता सामान पति की छत्रछाया में स्वर्ग में रह रही हूं।”
“यह अपाहिज कैसे हो गया?”
“एक्सीडेंट हो गया था।”
“ओह!”
“ज्यादा इसलिए कलपता है कि हसबैंड का रोल निभाने के काबिल नहीं रहा। औलाद पैदा करने के काबिल नहीं रहा।”
“लेकिन विलियम... विलियम...”
“वो उसकी औलाद नहीं। विलियम तुम्हारा बेटा है। तुम्हें मालूम है।”
“मैं पूछना चाहता था कि उसे... उसे मालूम है?”
“यकीनन नहीं मालूम लेकिन शक करता है कि विलियम उसकी औलाद नहीं।”
“ओह!”
“लेकिन फिर भी विलियम की मौत का अफसोस बहुत है उसे। इस घर में जो खुशहाली आयी, वो विलियम के लाए आयी। मेरे हसबैंड के नाकारा होने के बावजूद घर में चूल्हा जलता है — और आगे जलता रहेगा — तो विलियम की वजह से। और बातों से वह कितना ही नावाकिफ हो लेकिन इस एक बात से मेरा हसबैंड पूरी तरह से वाकिफ है। जिसके वो अपनी औलाद होने पर शक करता है, उसी के सदके वो रोज विस्की पीता है, रोज मुर्गा चबाता है और रोज उसी बच्चे की मां को बिच कहता है।”
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