Thriller कागज की किश्ती

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rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

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लल्लू की जमानत न हो सकी।
जेल जाते समय लल्लू की पांडी नाम के एक जेबकतरे से मुलाकात हुई जो कि अभी चार महीने पहले जेल से छूटा था और डेढ़ साल की सजा पाकर फिर जेल जा रहा था। पुलिस की वैन में वह लल्लू की बगल में बैठा था और दोनों की एक-एक कलाई में एक ही हथकड़ी थी इसलिए जेल के भीतर बैरेक में पहुंचने तक वह उसके साथ ही रहा। उसने हंसते हुए खुद ही बताया कि वह उसकी सातवीं जेल यात्रा थी।
लल्लू को उम्र में वह बड़ी हद चालीस का लगा।
लल्लू ने उसे नहीं बताया था लेकिन फिर भी पांडी को मालूम था कि लल्लू पर बैंक डकैती का अभियोग था। इतने में ही पांडी लल्लू से बहुत प्रभावित दिखाई देने लगा था।
बैरेक में उनकी हथकड़ी खोल दी गयी।
“तू” — पांडी उसकी बगल में बैठता बोला — “वाकई बैंक लूटता है?”
“नहीं” — लल्लू लापरवाही से बोला — “मैं तो सिर्फ डिरेवर था। गाड़ी चलाने कू।”
“फिर भी हिस्सा तो तेरा बराबर का होयेंगा?”
“हां।”
“जब पैसे वाला आदमी है तो जमानत काहे नहीं कराई?”
लल्लू ने उत्तर नहीं दिया। हकीकतन इस बात से वह खुद हैरान परेशान था कि खुर्शीद ने उसकी जमानत नहीं भरी थी।
“अब तू इधर आ ही गया है” — पांडी उसके और करीब सरकता बोला — “तो तेरे को एकाध लैसन देने का है।”
“लैसन! कैसा लैसन?”
“इधर नट्टू रविराम नाम का एक लाइफर है...”
“लाइफर क्या?”
“लाइफर नहीं समझता! जिसे उम्र कैद हुई हो।”
“ओह!”
“जो इधर का बड़ा बाप है।”
“बड़ा बाप!”
“हां। इधर जो सबसे बड़ा दादा होता है, जिससे सब डरते हैं, कैदी भी और पुलिस वाले भी।”
“पुलिस वाले भी?”
“हां। बड़े साहब नहीं। छोटे-मोटे पुलिस वाले। सन्तरी हवलदार वगैरह।”
“हूं।”
“हां तो मैं बोला, इधर का जो ऐसा बड़ा दादा होता है, उसको सब लोग बड़ा बाप बोलता है। तेरे को उससे बच के रहना मांगता है। नये कैदी को तो वो बहुत ही ज्यादा खराब करता है।”
“क्या करता है?”
जवाब ने पांडी खीं-खीं करके हंसा।
लल्लू उलझनपूर्ण भाव से उसकी तरफ देखता रहा।
“पिछली बार जब मैं इधर था, तब नट्टू बड़ा बाप नहीं था। तब बड़ा बाप कोई और था। उससे नट्टू भी डरता था। वो छूट गया तो उसकी जगह नट्टू बड़ा बाप बन गया।”
“पहले बड़ा बाप कौन था?” — लल्लू ने यूं ही पूछ लिया।
“बड़ा टॉप का हेंकड़ था वो भी। उसका नाम एंथोनी फ्रांकोजा था लेकिन हर कोई उसे टोनी पुकारता था।”
“वो टोनी? धारावी वाला?”
“हां, वही। तू उसे जानता है?”
“वो तो मेरा यार है!”
“अरे बाप, क्यों बोम मार रयेला है?”
“मैं सच कह रहा हूं। वो तो मेरा जिगरी यार है। उसी के साथ तो मैं...”
लल्लू खामोश हो गया।
“सच्ची?” — पांडी बहुत प्रभावित दिखाई देने लगा।
“हां।”
“फिर तेरे को कोई डर नहीं। नट्टू को यह मालूम होगा तो वो तेरे को कुछ भी नहीं बोलेंगा। टोनी से नट्टू भी डरता था। देखने में नट्टू टोनी से डबल है लेकिन फिर भी डरता था। टोनी की निगाह में ऐसी कोई बात थी कि उसके घूर लेने भर से लोगों के पेशाब निकलने लगते थे। तेरे कू तो मालूम होयेंगा!”
“हां, मालूम है।”
टोनी की ऐसी धाक जानकर लल्लू का उसे बताने को जी चाहने लगा कि उसने टोनी की जान बचाई थी, वह डकैती के बाद एक बार भाग निकलने के बाद वापिस न लौटा होता तो टोनी खतम था, लेकिन वह खामोश रहा।
फिर वह टोनी को भूलकर, पांडी को भूलकर, जेल को भूलकर खुर्शीद के सपने देखने लगा।
बहुत सुहाने सपने। जन्नत के सपने। उस जन्नत के सपने जो उसके हाथों में आते-आते रह गयी।
सुबह के नौ बजे थे जब कि गुलफाम ने एंथोनी को झिंझोड़ कर जगाया।
एंथोनी कराहता हुआ उठा। उसने देखा गुलफाम उसके सामने एक विशेष स्थान से मोड़ा हुआ उस रोज का अखबार लहरा रहा था।
एंथोनी ने अखबार उसके हाथ से ले लिया और अपनी नींद से भरी आंखें उस पर फोकस करने की कोशिश करने लगा। हैडलाइन पर निगाह पड़ते ही उसकी आंखों से नींद उड़ गयी :
कल्याण बैंक डकैती का अभियुक्त गिरफ्तार।
उसने जल्दी-जल्दी बाकी समाचार पढ़ा। लिया था :
कल्याण पुलिस ने दावा किया है कि पिछले सप्ताह कल्याण के पंजाब बैंक पर पड़े डाके के कम-से-कम एक अभियुक्त की शिनाख्त की स्थिति में वे पहुंच गए हैं। उस कथित अभियुक्त का नाम करम चन्द हजारे बताया जाता है जोकि मुम्बई के धारावी नामक इलाके का रहने वाला है। उसके एक अंगूठे का निशान डकैती में इस्तेमाल की गई एम्बैसेडर कार, जो कि एक वीरान फार्म में खड़ी पाई गई थी, में पड़ी उस फिफ्टी पर से उठाया गया था जो उसने सिख बहुरूप धारण के लिए इस्तेमाल की थी।
कल्याण थाने के एस.एच.ओ. अजय पेनणेकर ने अपने एक बयान में इस सम्वाददाता को बताया कि हजारे नामक अभियुक्त अभी मुम्बई पुलिस की ही कस्टडी में है क्योंकि अभी उससे हाल ही में हुई तीन हत्याओं का कोई सूत्र मिलने की मुम्बई पुलिस की पूरी आशा है। इन्स्पेक्टर पेनणेकर ने फिलहाल यह बताने से इंकार कर दिया है कि कैसे उन्हें हजारे नामक अभियुक्त की खबर लगी। उसका कहना है कि यह बात आम हो जाने से डकैती में शामिल अन्य दो व्यक्तियों की गिरफ्तारी में दिक्कत पेश आ सकती है। फिर भी इन्स्पेक्टर पेनणेकर ने इतना जरूर बताया कि उसके पास एक गवाह है जो निर्विवाद रूप से कल्याण बैंक डकैती में हजारे का हाथ सिद्ध कर सकता है।
खबर अभी और भी लम्बी थी लेकिन एंथोनी ने उसे अक्षरश: पढ़ने की कोशिश न की। उसने जल्दी-जल्दी बाकी सत्तरों पर निगाह दौड़ाई और फिर अखबार परे फेंक दिया।
उसने गुलफाम की तरफ देखा।
गुलफाम का चेहरा बेहद गम्भीर था।
“अपना मिस्टेक था।” — एंथोनी बड़बड़ाया — “फुल मिस्टेक अपना था। अपुन साला सॉफ्ट पड़ गया। सेन्टी हो गया साला। लल्लू के बच्चे को तभी खल्लास करना मांगता था। साला, ढक्कन, पीछे फिंगरप्रिंट छोड़कर आयेला था।”
“वो स्टोरी अब खत्म है।” — गुलफाम गम्भीरता से बोला — “अब यह बोल कि अब क्या करना मांगता है! वो साला एक मिनट में मुंह फाड़ देंगा। सब कुछ बक देंगा। फिर सोच ले कि हम दोनों किधर होयेंगा!”
“उसका मुंह बन्द करना होयेंगा।”
“कैसे? वो तो जेल में बैठेला है!”
“उसका जेल में मुंह बन्द करना होयेंगा।”
“वो कैसे होयेंगा?”
“मेरे किए होयेंगा। उस जेल में एक आदमी है जो वहीं लल्लू को खल्लास कर देंगा। बस मेरे कू उसको मैसेज पहुंचाना मांगता है। फिर लल्लू का मुंह बन्द हो चुका होयेंगा।”
“अगर वो पहले ही मुंह फाड़ चुका होयेंगा तो?”
“जो होयेंगा, सामने आयेंगा। मेरे को टेलीफोन करने का है। टेलीफोन कू इधर ही लाने का इन्तजाम कर।”
गुलफाम सहमति में सिर हिलाता उठकर बाहर चला गया।
दोपहर को ही लल्लू को जेल के मौजूदा ‘बड़े बाप’ के दर्शन हो गए।
नट्टू रविराम ढ़ाई मन की थुलथुल लाश था। उसका चेहरा लाल भभूका और आंखें अंगारों की तरह दहकती थीं। उसका सिर घुटा हुआ था और गर्दन इतनी मोटी थी कि कंधों का ही हिस्सा मालूम होती थी।
वह मैस का खाना खा रहा था और दो कैदी उसकी अगल-बगल खड़े थे।
“अबे, पांडी!” — पांडी को देखकर वह बोला, उसकी आवाज ऐसी थी जैसे भैंसा डकरा रहा हो — “साले, फिर आ गया!”
“हीं हीं हीं।” — पांडी ने खींसें निपोरीं — “बाप, यह साला मुम्बई का पब्लिक लोग कुछ ज्यादा ही होशियार हो गयेला है।”
“तेरे साथ यह नया छोकरा कौन है?”
“यह हजारे है। यह अपने एंथोनी फ्रांकोजा का जिगरी है।”
“कौन बोलता है?”
“यही बोलता है।”
“साले, कभी टोनी का थोबड़ा भी देखेला है?”
लल्लू ने उत्तर न दिया। उसे सूझा तक नहीं कि सवाल उससे हो रहा था।
“अबे, बहरा है?” — नट्टू दहाड़ा।
“क-क... क्या?” — लल्लू हड़बड़ाया।
“मैं तेरे कू पूछा, कभी टोनी का थोबड़ा भी देखेला है?”
“हां। देखेला है। टोनी अपना पक्का यार है। जिगरी।”
“उसका पक्का यार तो कोई और था।”
“हां! पहले था। विलियम फ्रांसिस। लेकिन अब करम चन्द हजारे।”
“उसका मां-बाप किधर रह रयेला है?”
“खण्डाला में।”
“धरावी में उसका अड्डा कहां है?”
“पास्कल के बार में।”
“विलियम को कौन खल्लास कियेला था?”
“यह अपुन को नहीं मालूम।”
नट्टू हंसा।
“ठीक।” — वह बोला — “मेरे कू तू पसन्द आयेला है। इदर कोई मुश्‍किल होयेंगा तो अपुन तेरे कू इधर बड़ा बाप के पास आना मांगता है। टोनी के दोस्त के साथ अपुन कोई ज्यास्ती होना नेई मांगता। सब लोग सुना।”
वहां मौजूद तमाम कैदियों ने सहमति में सिर हिलाया।
फिर नट्टू ने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया।
तभी छड़ी टेकता एक कैदी उनके करीब से गुजरा।
“यह नागप्पा है।” — पांडी ने बताया — “कुछ महीने पहले नट्टू इसके साथ बद्सलूकी करने का कोशिश कियेला था।”
“कैसी बद्सलूकी?” — लल्लू बोला।
पांडी ने अपने बायें हाथ की पहली उंगली और अंगूठे का गोल दायरा बनाया और उसमें अपने दायें हाथ की उंगली फिराई।
“ओह!” — लल्लू के मुंह से निकला।
“इसने नट्टू का कहना तो माना ही नहीं था, ऊपर से उससे भिड़ बैठेला था। नट्टू ने इस कू बहुत मारा और टांग तो ऐसी तोड़ी कि आज तक ठीक नहीं हुयी।”
“नट्टू को कुछ नहीं हुआ?”
“उसको मैजिस्ट्रेट के सामने पेश कियेला था जेल वाला दरोगा। नट्टू की दो साल की सजा बढ़ गयी थी लेकिन उसे साला कौन परवाह है!”
“एक नागप्पा तो मेरे इलाके में भी होता था!”
“रामचन्द्र नागप्पा! वो नशे की गोलियां बेचने वाला! जिसका हस्पताल में मर्डर होयेला है?”
“हां। वही।”
“यह लंगड़ा नागप्पा उसी का तो भाई है!”
“ओह!” — लल्लू एक क्षण ठिठका और फिर बोला — “यह किस जुर्म में जेल में है?”
“स्मैक बेचने के जुर्म में।”
“बाद में नट्टू ने इसे छोड़ दिया?”
“छोड़ता तो नट्टू इसे नहीं! मानता तो वो इसका खून करके ही! लेकिन किसी के कहने पर छोड़ दिया।”
“किसके कहने पर?”
“यहां के पुराने बड़े बाप के कहने पर।”
“किसके? टोनी के?”
rajan
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“हां। टोनी यहां से छूटते वक्त भी बोलकर गयेला था कि लंगड़े नागप्पा को कोई कुछ न कहे। तब से ये साला लंगड़ा इधर फुल सेफ है।”
“टोनी ऐसा क्यों बोला?”
“क्या मालूम क्यों बोला! तेरे कू नहीं मालूम! तू बोलता है वो तेरा पक्का फिरेंड है।”
“नहीं” — लल्लू अपलक लंगड़े को देखता बोला — “मेरे कू नहीं मालूम।”
एंथोनी ने दसवीं बार अपने फ्लैट पर फोन किया तो दूसरी तरफ से मोनिका का जवाब मिला।
“कहां थी?” — एंथोनी चिल्लाया — “दसवीं बार फोन कर रहा हूं।”
“बाजार गयी थी। तुम कहां हो?”
एंथोनी ने बताया और फिर पूछा — “क्या खबर है?”
“अष्टेकर फ्लैट की सर्च का वारन्ट लेकर आया था। पूरी तलाशी लेकर गया है।”
“कुछ मिला?” — एंथोनी हड़बड़ाया।
“नहीं। नकली फायर प्लेस पर उसे शक हुआ था लेकिन टीन की चादर उससे सरकी नहीं थी।”
“ओह!” — एंथोनी ने चैन की सांस ली — “और?”
“लल्लू गिरफ्तार है। जेल में है वो...”
“मुझे मालूम है। मैंने अखबार में पढ़ा है। दरअसल मैंने उसी की वजह से फोन किया है। मेज के दराज में मेरी एक डायरी है। उसमें नरेश माने नाम के एक आदमी का टेलीफोन नम्बर है! वह नम्बर मुझे चाहिए।”
“वो कौन है?”
“वो जेल में हवलदार है। मैं चाहता हूं वह जेल में लल्लू का वैसा ही खयाल करे जैसा उसने कभी मेरा किया था।”
“या जैसे तुमने रामचन्द्र नागप्पा का किया था!” — मोनिका व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली।
“क्या मतलब हुआ इसका?” — एंथोनी सख्ती से बोला।
“अष्टेकर कहता है कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से यह साबित होता है कि जिस आदमी ने नागप्पा का खून किया था, उसी ने विलियम का भी खून किया था।”
“यानी कि अष्टेकर ज्यादा भरोसे का आदमी है तेरे लिये! तुझे अष्टेकर की बात पर विश्‍वास है, मेरी बात पर नहीं! बेवकूफ औरत, वो पुलिसिया तेरे को मूर्ख बना कर गया। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से ऐसी बातें साबित नहीं होतीं। वो दोनों कोई गोली खाकर नहीं मरे थे जो साबित किया जा सकता कि दोनों को लगी गोलियां एक ही रिवॉल्वर से निकली थीं। उस्तुरे से कटे गले का मुआयना करके नहीं बताया जा सकता कि दोनों वार करने वाला हाथ एक ही था। नागप्पा उस्तुरे के वार से इसलिए मरा है क्योंकि मैं चाहता था कि वो वैसे ही मरे जैसे उसने विलियम को मारा था। अगर मुझे मालूम होता कि तू ऐसे अहमकों जैसे नतीजे निकालेगी तो मैं नागप्पा को शूट करवाता।”
“लेकिन” — मोनिका उलझन में पड़ गयी — “अष्टेकर कहता था कि...”
“उस पुलिसिये की बातों पर मत जा। वह मेरा दुश्‍मन है। वह तुझे बहका कर, बेवकूफ बनाकर मेरे खिलाफ तेरी जुबान खुलवाना चाहता है। मोनिका, मुझे अपना खैरखाह मानना सीख। मेरे पर भरोसा करना सीख।”
“स-सॉरी। सॉरी, टोनी।”
“तेरे को सॉरी होना ही मांगता है। तू तो ऐसे बोलने लगती है जैसे विलियम का कत्ल मैंने किया हो! ऐसी बातों का मेरे को बुरा नहीं लगेगा?”
“सॉरी।”
“छोड़। अब वो नम्बर बता।”
एक मिनट बाद मोनिका ने उसे नरेश माने का टेलीफोन नम्बर बताया।
टोनी ने सम्बन्धविच्छेद करके वो नया नम्बर डायल किया।
“माने?” — दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोला।
“हां।” — आवाज आयी — “कौन?”
“टोनी।”
“टोनी!”
“हां। पहचाना?”
“पहचाना। क्या मांगता है?”
“एक मेहरबानी।”
“कैसी मेहरबानी?”
“एक मैसेज डिलीवर करने का है।”
“ऐसे काम डाकखाने में होते हैं। तारघर में होते हैं।”
“वहां फीस कम लगती है और देर ज्यादा लगती है। टोनी को ज्यादा फीस देकर जल्दी काम कराना पसन्द है।”
“मैसेज बोला।”
“तू फीस बोल।”
“जो तू देगा। मेरे को तेरे पर एतबार है।”
“मेरे पर एतबार करके कभी घाटे में नहीं रहेगा, माने।”
“मैसेज बोल, टोनी।”
“मैसेज जेल में अपने नट्टू रविराम को देने का है। जेल में एक नया छोकरा आयेला है। नाम है करम चन्द हजारे। तेरे को नट्टू को सिर्फ इतना बोलना है कि उस छोकरे का रिकार्ड बन्द करने का है क्योंकि जो बात लंगड़ा नागप्पा जानता है, वो बात वह छोकरा भी जानता है और छोकरा अपना रिकार्ड चालू करने की तैयारी कर रहा है। बाकी नट्टू खुद समझ जायेगा।”
“उसे करना क्या होगा?”
“वो तेरे मतलब की बात नहीं। नट्टू जानता है उसका क्या करने का है, कैसे करने का है, कब करने का है।”
“ठीक है। मैसेज पहुंच जायेगा।”
“तेरा रोकड़ा तेरे पास पहुंच जायेगा।”
“शुक्रिया।”
सम्बन्धविच्छेद हो गया।
शाम को लल्लू को जेलर के आफिस में तलब किया गया।
लल्लू वहां पहुंचा तो उसने वहां जेलर की जगह इन्स्पेक्टर अष्टेकर को बैठा पाया।
उसने लल्लू को अपने सामने एक कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। वह बैठ गया तो वह बोला — “कैसा है, हजारे?”
“ठीक हूं।” — लल्लू भावहीन स्वर में बोला।
“यह जगह पसन्द आयी?”
“ठीक है।”
“पसन्द कर ही ले। लम्बा रहना है तूने यहां।”
लल्लू खामोश रहा।
“तूने मेरी राय के बारे में कुछ सोचा?”
“कौन-सी राय के बारे में?”
“सरकारी गवाह बनने की राय के बारे में।”
“मुझे मुखबिरी पसन्द नहीं।”
“मैं तेरी वफादारी की कद्र करता हूं लेकिन यह वफादारी तू गलत लोगों के लिए दिखा रहा है, हजारे। टोनी और गुलफाम ऐसी वफादारी दिखाने के काबिल नहीं। क्या?”
लल्लू चुप रहा।
“देख। देर सवेर उन दोनों ने फंसना तो है ही। कानून के हाथ बड़े लम्बे होते हैं। मुजरिम इनकी पकड़ से वक्ती तौर पर बचा रह सकता है, हमेशा के लिए नहीं। छोड़ना तो मैंने उन दोनों को है नहीं। वे लोग बाद में मेरे फन्दे में फंसे तो उसका तेरे को क्या फायदा पहुंचेगा? कुछ भी नहीं। वो दोनों जब फांसी पर लटक रहे होंगे तो तू तब भी यहीं होगा। यानी कि तेरी वफादारी बेकार जाएगी। हजारे, अगर तेरे में रत्ती भर भी अक्ल बाकी है तो इस सुनहरे मौके को कैश कर। तू हामी भर, मैं कल ही तुझे यहां से आजाद करवा दूंगा, बोल, क्या कहता है?”
“मुझे नहीं पता तुम क्या कह रहे हो, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा।”
अष्टेकर ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई। वह कुछ क्षण अपलक हजारे को देखता रहा, फिर बोला — “कचहरी में तूने अपनी मां की सूरत नहीं देखी होगी। मैंने देखी थी। जब तुझे हथकड़ी डालकर ले जाया जा रहा था, उस वक्त उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे चाहती हो कि तभी जमीन फट जाती और वह उसमें समा जाती। एक ही बेटा और वो भी तेरे जैसा! पास-पड़ोस में क्या मुंह दिखाएगी वो? लोग जब नकली हमदर्दी जताते हुए ताने देंगे कि बेचारी विधवा माई का इकलौता बेटा सात साल के लिए जेल में बन्द है तो बेचारी वहीं गिर के मर नहीं जाएगी!”
“स... सात साल!” — लल्लू के मुंह से निकला।
“साल-छः महीने कम सही। पांच साल से ऊपर सजा तो तुझे होगी ही होगी।”
लल्लू के मुंह से बोल न फूटा।
rajan
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“हजारे, वफादारी दिखाना चाहता है तो अपनी बूढ़ी, बेसहारा मां के लिए दिखा, अपनी कब्र में पांव लटकाये बैठी दादी के लिए दिखा। खुर्शीद के लिए दिखा जो कचहरी में बैठी तेरे अंजाम से खौफ खाती आंखों ही आंखों में अपने आंसू पी रही थी। तेरी वफादारी के हकदार वे लोग हैं, न कि वो डेढ़ दीमाक एंथोनी फ्रांकोजा और गुलफाम अली। हजारे, जरा सोच, अगर वे दोनों तेरी वफादरी के इतने ही हकदार हैं तो उनमें से कोई तेरी जमानत कराने क्यों नहीं आया? कैसे यार हैं वो तेरे?”
“वो मेरे यार नहीं हैं। मैं पहले ही कह चुका हूं, मेरी उनसे मामूली वाकफियत है, मामूली दुआ-सलाम है।”
“तू मुझे येड़ा समझता है जो ऐसी बकवास कर रहा है! मैंने आम देखा है तुझे उन दोनों की सोहबत में। दर्जनों बार मैंने पास्कल के बार में तुझे उनके साथ जाम टकराते हंसी ठट्ठा करते देखा है। बोल, येड़ा समझता है मुझे! तू ही एक रोज टोनी की यह कहकर हिमायत नहीं कर रहा था कि वो भला आदमी है! जब तू उससे ठीक से वाकिफ नहीं तो तुझे क्या पता कि वो भला आदमी है या बुरा! ऐसी हिमायत आदमी उसी की करता है जिसके साथ गहरी छन रही हो।”
“मेरी निगाह में सभी भले हैं। मेरी निगाह में हर वो आदमी भला है जो मेरे साथ कोई बुराई न करे। मैं तुम्हें भला कहूं तो तुम क्या मेरे जिगरी दोस्त हो जाओगे?”
“बहस अच्छी कर लेता है। जेल में गुजरे एक ही दिन ने अक्ल की मैल उतार दी है।”
लल्लू ने उत्तर न दिया।
“तो” — अष्टेकर समापन-सा करता बोला — “तुझे नहीं मंजूर टोनी और गुलफाम के खिलाफ वादामाफ गवाह बनना?”
लल्लू परे देखने लगा।
“ठीक है।” — अष्टेकर उठ खड़ा हुआ। उसने बड़े गुस्से से मेज पर पड़ी घण्टी बजाई।
रात के खाने के दौरान एक भारी-भरकम हवलदार डंडा हिलाता मैस में आया और नट्टू रविराम के करीब ठिठका।
लल्लू ने देखा दोनों में चुपचाप कोई इशारेबाजी चली।
“इस हवलदार का नाम नरेश माने है।” — पांडी बोला — “तेरा दोस्त टोनी यहां बड़ा बाप था तो यह एक वेटर की तरह उसके आगे-पीछे फुदका करता था। टोनी बहुत रोकड़ा चढ़ाता था इसे।”
“बड़ा बाप होने की वजह से?”
“नहीं। पैसे वाला होने की वजह से। बड़ा बाप तो साला नट्टू भी है लेकिन नट्टू के आगे-पीछे यह वेटर की तरह नहीं फुदकता।”
“अभी तो बहुत घुट-घुटकर बातें कर रहा है उससे?”
“कोई तेरी ही बात होती मालूम हो रयेली है। दोनों रह-रहकर तेरे को देख रयेले हैं।”
“अपुन भी यही नोट कियेला है।”
“एक बात बता।”
“क्या?”
“जब टोनी तेरा इतना जिगरी है तो उसने तेरी जमानत क्यों नहीं भरी?”
लल्लू ने उत्तर न दिया। हकीकतन वही सवाल उसे भी साल रहा था। टोनी ने उसकी जमानत का इन्तजाम क्यों नहीं किया था? क्या वह भूल गया था कि उसने अपनी जान पर खेलकर टोनी की जान बचाई थी? माना कि वो घायल था लेकिन गुलफाम अली तो घायल नहीं था!
तभी उसकी निगाह लंगड़े नागप्पा पर पड़ी।
टोनी लंगड़े नागप्पा पर इतना मेहरबान हो सकता था तो उस पर क्यों नहीं? लंगड़े नागप्पा ने ऐसा कौन-सा बहुत ही खास अहसान चढ़ाया हुआ था टोनी पर! कहीं ऐसा तो नहीं था कि इस लंगड़े का टोनी पर कोई जोर था जिसकी वजह से टोनी बतौर रिश्‍वत उसका मुंह बन्द करने के लिए उसकी खिदमत करवा रहा हो! टोनी जेल की कई कहानियां सुनाता था लेकिन इस लंगड़े नागप्पा का तो उसने कभी जिक्र तक नहीं किया था!
जबसे लल्लू टोनी की सोहबत में आया था, तब से उस घड़ी पहली बार लल्लू का टोनी पर से विश्‍वास हिला था।
“क्या सोच रयेला है?” — पांडी ने पूछा।
“कुछ नहीं।” — लल्लू चिन्तित भाव से बोला।
तभी ड्रम की तरह लुढ़कता नट्टू उनके करीब आया। उसने बड़े प्यार से लल्लू के कन्धे पर हाथ रखा और बोला — “अपुन हवलदार से बात कियेला है। अब तू मेरे वाली बैरक में ट्रांसफर हो गयेला है।”
“वो काहे को?” — लल्लू सशंक भाव से बोला।
“टोनी माने के हाथ संदेशा भिजवायेला है कि तू उसका भीड़ू है। अपुन तेरा पूरा खयाल रखने का है इसलिए अपुन तेरे को मेरे वाली बैरक में रखना मांगता है। तेरे कू कोई एतराज?”
“मेरे कू क्या एतराज है!” — लल्लू लापरवाही से बोला — “मेरे कू तो सब बैरेक एकीच जैसी हैं।”
“अच्छा बच्चा है।” — नट्टू ने एक बार फिर उसका कन्धा थपथपाया और फिर वहां से चला गया।
लल्लू को टोनी पर और भी गुस्सा आने लगा।
जो आदमी जेल में उसके आराम से रहने का इन्तजाम करवाना सोच सकता था, उसे उसकी जमानत करवाना क्यों नहीं सूझा था?
लल्लू ने देखा, पांडी के चेहरे पर अजीब से चिन्ता और उत्कंठा के भाव थे।
“तेरे कू क्या हुआ?” — लल्लू बोला — “तू क्या सोच रयेला है?”
“बाप” — पांडी धीरे से बोला — “मेर कू बोलना नहीं चाहिए पण बोलता है।”
“क्या?”
“नट्टू को पता लग गया तो वो मेरे कू जान से मार डालेगा।”
“अरे, कुछ बोल भी तो सही!”
“नट्टू तेरे पीछे पड़ गयेला है। वो तेरा बैरेक तेरे खयाल के लिए नहीं, अपने खयाल के लिए चेंज करायेला है। तू रात को इससे खबरदार रहने का है।”
“खबरदार! काहे कू?”
“वो रात को तेरे को अपना वाइफ बनाने का कोशिश करेंगा।”
लल्लू पहले तो कुछ समझा नहीं लेकिन जब समझा तो उसका चेहरा कानों तक लाल हो गया।
“मैं साले का खून नहीं कर दूंगा!” — वह दांत भींचकर गुर्राया।
“नहीं कर सकेंगा, बाप। तू नट्टू से लड़ेंगा तो बैरेक के अक्खे कैदी नट्टू का साथ देंगे। वैसे तो तू उस राक्षस से अकेला ही नहीं लड़ पायेगा, बाप।”
लल्लू सोच में पड़ गया।
“एक बात और बोलने का है तेरे कू।”
“वो क्या?”
“इधर जो नहाने का ठिकाना है न, जिधर एक लम्बी कतार में कई टूटियां लग रयेली हैं, वहां बहुत लोग फिसल कर हाथ-पांव तुड़ेले हैं। एकाध तो भेजा फटने से खल्लास भी होयेला है।”
“क्यों? वहां के फर्श पर काई जम रयेला है?”
“नहीं। फर्श एकदम चौकस है, बाप। पण जब उधर फिसल कर किसी का हाथ-पांव, माथा फूटेला है तो बोला यही जाता है कि बेचारे का बैलेंस बिगड़ गया। या साबुन पर से फिसल गया।”
“यानी कि असल में बैलेंस बिगाड़ा जाता है!”
“अभी आयी बात समझ में। आपुन को तू राइट आदमी लगा इसलिए तेरे कू बोला।”
“यानी कि ऐसा खतरा मेरे कू भी है?”
“चौकस रहने में क्या वान्दा है, बाप! नट्टू की तेरे ऊपर खास मेहरबानी होयेला है इसीलिए तेरे कू बोला।”
“शुक्रिया। लेकिन अपुन को नहीं लगता कि...”
तभी घण्टी बजने लगी।
rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

Post by rajan »

कैदी अपने-अपने स्थान से उठने लगे और एक कतार में मैस से बाहर निकलने लगे।
उस रोज सारी रात लल्लू को नींद न आई।
बत्तियां जलती रहने तक वह निश्‍चिन्त रहा लेकिन जब बत्तियां बुझा दी गईं तो वह फिक्रमन्द हो गया। हर क्षण वह अपने पर होने वाले आक्रमण की प्रतीक्षा करता रहा। आधी रात के करीब उसे नट्टू के खर्राटे भरने की आवाज भी सुनाई देने लगी तो भी उसकी पलक झपकने की हिम्मत न हुई। कभी आंख लग भी जाती तो वह यूं चौंक कर उठता आंखें खोलता था जैसे नट्टू पहले से ही उस पर सवार हो।
उसके न सोने का और इतना चौकस रहने का ही यह नतीजा निकला कि सवेरे उसने नट्टू को अपने पाजामे के नेफे में एक लोहे के पाइप का टुकड़ा घुसेड़ते देख लिया।
और थोड़ी देर बाद वे नहाने की खातिर उस तबेले जैसे ब्लॉक में पहुंचे जहां लम्बी कतारों में पानी की टूटियां लगी हुई थीं।
नट्टू उससे अगली टूटी के नीचे खड़ा था। उसने अपनी वर्दी उतार दी थी और अपनी विशाल कमर के गिर्द तौलिया लपेटे था।
लल्लू को तौलिये के भीतर पाइप का आभास नहीं मिल रहा था लेकिन उसे गारन्टी थी कि पाइप वहां था।
“चल बे, नहा।” — वह लल्लू से बोला — “नहाता क्यों नहीं?”
“नहाता हूं।”
“मेरे सामने नंगा होने से शरमाता है?”
“ऐसी कोई बात नहीं।”
“ये ले साबुन।” — नट्टू ने उसे साबुन की एक टिक्की थमाई — “बढ़िया वाला है। इधर नहीं मिलता। बाहर से आयेला है। बड़ा बाप के लिए। क्या?”
लल्लू ने साबुन ले लिया।
उसने नलका खोला, उसके नीचे खड़े होकर बदन गीला किया और साबुन मलने लगा।
“तू तौलिये समेत नहाता है?” — वह बोला।
“नहीं, बच्चे। मैं तौलिया अभी उतारता हूं। खास तेरे वास्ते।”
उसने एक झटके से तौलिया उतार फेंका।
पाइप का कोई दो फुट लम्बा टुकड़ा उसने वाकई तौलिये के भीतर छुपाया हुआ था। उसने पाइप को हाथ में थामा और उसे सिर से ऊंचा किये लल्लू की तरफ झपटा।
लल्लू ने साबुन की साबुत टिक्की खींच कर उसके मुंह पर मारी। साबुन उसकी एक आंख से टकराया। तुरन्त उसके मुंह से एक सिसकारी निकली और क्षण भर को उसकी दोनों आंखें मुंद गयीं।
लल्लू सिर नीचा बैल की तरह उसकी छाती से टकराया। नट्टू पीछे को लड़खड़ाया और उसकी पीठ पीछे दीवार से टकराई। पीठ को सहारा मिलने के बावजूद उसके पांव उखड़ गये और वह नीचे को गिरने लगा।
लल्लू ने बड़ी सहूलियत से उसके हाथ से पाइप झपट लिया। उसने नीचे को झुककर पाइप उसकी ठोड़ी के नीचे गले के पास फंसाया और पूरी शक्ति से उसे अपनी तरफ खींचने लगा। उस कार्य में सुविधा पैदा करने के लिये उसने अपना एक घुटना उसकी पीठ जमा दिया।
और नहाने वाले कैदी चुपचाप तमाशा देख रहे थे। किसी की उनके पास फटकने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
नट्टू अब उसकी पकड़ में तड़प रहा था, छटपटा रहा था और बुरी तरह से आतंकित था।
“छ-छोड़ दे। छोड़ दे।”
“तू मुझे मारने लगा था।” — लल्लू कहरभरे स्वर में बोला।
“मेरे कू बोला गया था।” — नट्टू बड़ी कठिनाई से बोल पा रहा था। उसका चेहरा लाल से बैंगनी हो गया था और आंखें कटोरियों से बाहर उबली पड़ रही थीं।
“क्या बोला गया था? जल्दी-जल्दी बोल नहीं तो तेरी गरदन कन्धे से नीचे लटकी पड़ी होयेंगी।”
“तेरे कू खल्लास करने को बोला गया था।”
“काहे कू?”
“मालूम नहीं।”
“कौन बोला?”
“टोनी!”
“कौन टोनी?”
“टोनी फ्रांकोजा।”
“क्या बकता है?”
“माने उसी का सन्देशा लायेला था। वही तेरे को खल्लास करने को बोला। बोला तेरी जुबान बन्द करने का है। तू वो सब जानेला है जो लंगड़ा नागप्पा जानेला है। अब मेरे कू छोड़ मेरे बाप, नेई तो मेरा दम घुट जायेंगा।”
“तू झूठ बोलता है।” — लल्लू जोर से पाइप उमेठता बोला — “टोनी मेरा दोस्त है। वह जानता है मैं उसके खिलाफ जुबान खोलने वाला नहीं।”
“अपुन सच बोल रयेला है।” — वह तड़पता बोला — “मेरा विश्‍वास कर, बाप। अपुन जो कुछ किया, टोनी के कहने पर किया।”
“लंगड़ा नागप्पा क्या जानता है जो कि टोनी समझता है अपुन जानता है?”
“अपुन को नई मालूम। अपुन को इतना ही मालूम है कि लंगड़े का टोनी पर कोई जोर है। तभी टोनी उसका इतना खयाल रख रयेला है।”
लल्लू एक क्षण खामोश रहा और फिर एक बार फिर पाइप उमेठता बोला — “मैं कौन?”
“हजारे।”
“हजारे कौन?”
“बड़ा बाप।” — नट्टू उसका इशारा समझकर तुरन्त बोला।
“तू चोट कैसे खाया?”
“साबुन से फिसल कर गिरा।”
“पुलिसिया लोग आ रयेला है। मेरे कू उनके सामने यही कुछ न सुनाई दिया तो रात को अपुन अपने दांतों से तेरी छाती फाड़ के तेरा कलेजा निकाल के खायेगा। समझा?”
“समझा।”
लल्लू ने उसे छोड़ दिया।
फिर उठकर सीधा होने की कोशिश करते नट्टू की गंजी खोपड़ी पर उसने पाइप का भरपूर प्रहार किया। नट्टू की खोपड़ी खुल गयी और वह फिर धराशायी हो गया।
पुलिस वालों के करीब आने से पहले पाइप कहीं गायब हो चुका था। कैदियों के हाथों में होता पाइप कहीं का कहीं निकल गया था। बड़े बाप की ऐसी खिदमत तो कैदियों से अपेक्षित होती ही थी। आखिर लल्लू अब कोई मामूली कैदी तो नहीं था। बड़े बाप को धूल चटाने वाला नया बड़ा बाप था।
लल्लू को जेल में अभी डेढ़ दिन पूरा नहीं हुआ था कि वह वहां का बड़ा बाप बन गया था। जिन्दगी में पहली बार लल्लू को अपनी शक्ति और सामर्थ्य का अहसास हुआ था।
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