Thriller हिसक

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kunal
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Re: हिसक

Post by kunal »

द्विवेदी ने सवालात का सिलसिला शुरू किया जिसके दौरान सिर्फ दो बार कुणाल को अपनी कनपटी को छूना पड़ा । निखिल ने अनुपम के गर्भवती होने से ताल्लुक रखती वो ही कहानी दोहरा दी जो कि उसने मुलाकात के दस मिनट के मोहलत के वक्फे में पहले सुनायी थी ।
वृद्ध उस सिलसिले से सन्तुष्ट जान नहीं पड़ते थे लेकिन उस दौरान वो बिल्कुल खामोश रहे ।
आखिरकार सवाल-जवाब का वो सिलसिला बन्द हुआ ।
पुलिस की जानकारी में इस इजाफे के साथ कि उनका मुलजिम अपनी जुबानी कबूल करता था कि बुधवार वो न सिर्फ दिल्ली में था कत्ल के वक्त के आसपास मौकायवारदात पर भी था ।
“अब जरा” - कुणाल बोला - “रैसिप्रोकेशन का जलवा दिखाइये ।”
“सुनिये ।” - द्विवेदी बोला - “गौर से सुनिये । इसने अपनी जुबानी ये कबूल करके, कि बुधवार ये दिल्ली में था और दोपहर को मकतूला से उसके फ्लैट में मिला था, कोई बड़ा तीर नहीं मारा । ये बात हम इसके बयान के बिना भी बाखूबी साबित कर दिखने की स्थिति में हैं ।”
“दिस इज ए टाल क्लेम ।”
“आप बात सुनना चाहते हैं तो खामोश रहिये । खामोश रहिये क्योंकि अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई ।”
“सारी ।”
“ये कहता है कि ये मकतूला को पीछे सही सलामत छोड़ कर उसके फ्लैट से रुखसत हुआ था । साथ में ये ये भी कहता है कि उस वक्त वो अच्छे मूड में थी और उसने इसे बाकायदा गले लगाकर रुखसत किया था । वकील साहबान, हमारा कहना ये है कि हमारे पास एक बड़ा मजबूत गवाह है जो कसमिया ये बयान देता है कि असल में उस वक्त मकतूला डॉली मदान इस बात से बेहद भड़की हुई थी कि इस शख्स ने उसकी कुंआरी लड़की को हामला कर दिया था । इतनी भड़की हुई थी कि उसका बस चलता तो इसका खून पी जाती ।”
“कौन है वो गवाह ?”
“गवाह कोई ऐसा शख्स नहीं है जिससे आनन्द साहब नावाकिफ हों ।”
“कौन ?” - वृद्ध ने संशक भाव से पूछा ।
“सुभाष मेहरा । आपका भूतपूर्व दामाद । आपकी इकलौती बेटी मीता का तलाकशुदा खाविन्द ।”
“ओह !”
“अब आप ये कहें कि आपसे खुंदक निकालने के लिये, भतीजे के जरिये आपको चोट पहुंचाने के जरिये आपको चोट पहुंचाने के लिये वो ऐसा बयान दे रहा है तो आपकी मर्जी ।”
वृद्ध खामोश रहे । सुभाष मेहरा के जिक्र भर से उनके चेहरे पर परेशानी झलकने लगी थी ।
“और” - द्विवेदी ने जैसे तपते लोहे पर चोट की - “इस सिलसिले में वो हमारा इकलौता गवाह भी नहीं ।”
“अभी और भी ?” - वृद्ध के मुंह से निकला ।
“बिलाशक । आप मकतूला के किरायेदार बसन्त मीरानी को भूल रहे हैं जो कि मौकायवारदात से एक मंजिल ऊपर रहता है और जो पहला शख्स था जिसने 100 नम्बर पर फोन करके पुलिस को वारदात की खबर दी थी ।”
“चोर-चोर मौसेरे भाई ।” - वृद्ध के मुंह से निकला ।
“मुझे मालूम है आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ! सब जानते हैं कि बसन्त मीरानी गे है । खुद उसने इस बात को कभी नहीं छुपाया । सोसायटी के एक खास दायरे में ये खुसर-पुसर तक आम होती है कि सुभाष मेहरा में और बसन्त मीरानी में समलैंगिक सम्बंध हैं । लेकिन इन बातों से बतौर गवाह उन दोनों की हैसियत में कोई फर्क नहीं पड़ता । बसन्त मीरानी को अदालत में आप सिर्फ इसलिए झूठा करार नहीं दे पायेंगे क्योंकि वो अपने मुंह से कबूल करता है कि वो गे है, होमोसैक्सुअल है । न ही आप...”
“लैट्स गो ।” - एकाएक वृद्ध बोले और फिर उन शब्दों की कुणाल पर कोई प्रतिक्रिया होने से पहले बाहर को चल दिये ।
***
श्याम बिहारी आनन्द का आवास उसी इमारत के टॉप फ्लोर पर स्थित एक फ्लैट में था जिसकी पहली मंजिल पर आनन्द आचार्य एण्ड प्रधान का आफिस था । इसलिये और कोई पार्टनर आये या न आये, वो साल के तीन सौ पैंसठ दिन आफिस में पाये जाते थे और उन्हीं की वजह से एक चपरासी और एक स्टेनोग्राफर छुट्टी वाले दिन भी - जैसे कि उस रोज रविवार के दिन - आफिस की हाजिरी भरते थे ।
रविवार सुबह ग्यारह बजे वो अपने आफिस में मौजूद थे जबकि उनके पार्टनर राज आचार्य ने भीतर कदम रखा ।
राज आचार्य छरहरे बदन और चाक-चौबन्द तन्दुरुस्ती वाला और उम्र में कोई पैंतालीस साल का व्यक्ति था जो कि उसकी संजीदा सूरत से वकील की जगह कोई लेखक या कलाकार लगता था । उस घड़ी उसका संजीदा चेहरा और भी संजीदा था और आंखों में उदासी की झलक थी । उसकी चाल में उस फुर्ती का सर्वदा अभाव था जो कि हमेशा पायी जाती थी । बड़े झोलझाल अंदाज से चलता वो आकर एक विजिटर्स चेयर पर ढेर हुआ और फिर उसने यूं अपने सीनियर पार्टनर का अभिवादन किया और जैसे पहले वो औपचारिकता निभाना भूल गया हो ।
वृद्ध ने आवाक उसकी तरफ देखा ।
“कहां थे तीन दिन से ?” - फिर वो बोले ।
राज ने उत्तर न दिया, उसने तनिक बेचैनी से पहलू बदला ।
“ये क्या हाल बना रखा है ? तीन दिन बाद आफिस में कदम रखा और वो भी ऐसी उजड़ी सूरत के साथ !”
“वो... वो क्या है कि...”
“मुझे मालूम है वो क्या है ! मुझे मालूम है डॉली के लिए तुम्हारे मन में क्या था ! मुझे उसकी मौत का अफसोस है । मुझे तुमसे हमदर्दी है । लेकिन जो चला गया, अफसोस और हमदर्दियां उसे वापिस नहीं ला सकतीं । तुम कोई बच्चे नहीं हो । मेरे से बेहतर समझते हो इन बातों को । काबू में करो अपने आपको ।”
“मैं... मैं उससे शादी करने वाला था ।”
“मुझे अफसोस है, सख्त अफसोस है, लेकिन होनी ने तो होना ही होता है । भगवान की मर्जी पर कहीं किसी का जोर चलता है ?”
“इंसान की मर्जी पर तो चलता है ?” - वो गुस्से से बोला - “क्यों किसी ने भगवान बनने की कोशिश की और भगवान का काम खुद कर डाला ।”
“मैं समझ रहा हूं तुम्हारा इशारा किस तरफ है । लेकिन तुम जो सोच रहे हो, गलत सोच रहे हो । मेरा भतीजा बेगुनाह है ।”
“यानी कि खामखाह गिरफ्तार है ?”
“खामखाह ही गिरफ्तार है । पुलिस उसे बेगुनाह फंसा रही है और गढ़कर उसके खिलाफ केस तैयार करने में लगी हुई है ।”
“आप तो ऐसा कहेंगे ही ।”
“कहूंगा, क्योंकि ये हकीकत है । हकीकत को तुम्हें भी कबूल करना चाहिये । आज उसकी गिरफ्तारी का तीसरा दिन है । अभी तक पेपर में या टी.वी. में उसके खिलाफ पुलिस का कोई वर्शन आया है ?”
राज ने इंकार में गर्दन हिलायी ।
“क्यों नहीं आया ? क्योंकि कोई ठोस सबूत उनके पास नहीं है । जो कुछ टूटा-फूटा निखिल के खिलाफ उनके पास है, अभी वो उसकी मरम्मत में लगे होंगे और जब उन्हें लगेगा कि मुनासिब मरम्मत हो गयी थी, खंडहर अपनी बुनियाद पर खडे रहने के काबिल हो गया था तो वो मीडिया के लिये प्रेस कांफ्रेंस करेंगे और अपनी गढ़कर, सजा-संवारकर तैयार की गयी कहानी पेश करेंगे ।”
“वो... वो गिरफ्तार क्यों है ?”
“बदकिस्मती से । इस इत्तफाक के तहत कि डॉली के यहां उसकी और उसके कातिल की तकरीबन एक ही वक्त में आमद हुई । पुलिस को डॉली की बेटी अनुपम से निखिल के ताल्लुकात की अब खबर है । लड़के की नालायकी से अनुपम हामिला हो गयी थी, उसी सिलसिले में वो डॉली से बात करने पहुंचा था । बातचीत के बाद उसके जाते ही कातिल पहुंच गया और... और वो कारनामा कर गया ।”
“कातिल कौन ?”
“मालूम पड़ेगा । जरूर मालूम पड़ेगा । दागदार दामन छुपाये नहीं छुपता । आस्तीन का लहू मुंह से बोलता है । खुदा के घर देर है, अंधेर नहीं है इसलिये देर-सवेर असली कातिल जरूर गिरफ्तार होगा । निखिल नौजवान है, तब तक की असुविधा को वो झेल लेगा ।”
“मुम्बई से कौन आया है ?”
“बड़े आनन्द साहब का भेजा एक नौजवान वकील है जो मर्डर केसिज को हल करने में माहिर बताया गया है... हालांकि वो ऐसा नहीं मानता...!”
“मोडेस्टी दिखा रहा होगा ?”
“हो सकता है । कुणाल माथुर नाम है । शक्ल से तो जहीन लगता है, आगे उसकी कारगुजारी अपने मुंह से बोलेगी ।”
“अभी कहां है ?”
“अपने काम में ही लगा है । पुलिस तो कुछ पल्ले डाल नहीं रही इसलिये सरकारी वकील आर.के. अधलखा से कोई डायलाग बनाने की कोशिश में लगा है । आता ही होगा ।”
“हूं ।”
“मैं देख रहा हूं कि डॉली की मौत को तुम अपनी जाती ट्रेजेडी मान रहे हो और उस सिलसिले में निखिल के लिये तुम्हारी सोच कंडीशंड होती जा रही है । मेरी दरख्वास्त है कि ऐसे खयाल तुम अपने मन से निकाल दो । लड़के में कुछ खामियां है, लेकिन वो वैसी ही हैं जैसी कि आज के हर नौजवान में होती हैं । छोटा-मोटा ऐब, छोटी मोटी गैरजिम्मेदारी आज के नौजवान का लाइफ स्टाइल बन गयी है, लेकिन कत्ल ! रेप ! सेक्सुअल मोलेस्टेशन ! लूटमार ! ये सब भी निखिल कर सकता है, मैं हरगिज कबूल नहीं कर सकता । असल में क्या हुआ, उसकी डिटेल की बाबत पुलिस अभी खामोश है लेकिन जितना वो कबूल करती है, जितना सामने आया है, उससे ये काम किसी वहशी का जान पड़ता है, किसी ऐसे शख्स का लगता है जो कि जेहनी तौर पर बीमार है । क्या कहते हैं ऐसे शख्स को ?”
“साइकोपैथ ।”
“एग्जैक्टली । अब बोलो, तुम्हें निखिल साइकोपैथ लगता है ?”
“नहीं ।”
“अपना दिमागी तवाजन खो चुका कोई नौजवान लॉ की पढाई कर सकता है ?”
“नहीं । कामयाबी से नहीं ।”
“वो साफ किसी चोर का कारनामा जान पड़ता है जो चोरी की नीयत से घर में घुसा और डॉली को अकेली पाकर उस पर झपट पडा । इसके अलावा और कुछ नहीं हुआ हो सकता । निखिल खामखाह फंसा हुआ है और अपने मौजूदा हालात में हम सबकी मदद का तलबगार है । हम सबकी बोला मैंने । तुम अपने आपको संभालोगे नहीं, डिप्रेशन के अपने मौजूदा मूड से उबरोगे नहीं तो कैसे लड़के की कोई मदद करोगे ?”
“मैं क्या मदद कर सकता हूं ? आप जानते हैं कानून के कारोबार में मेरी स्पैशलिटी का फील्ड कोई और ही है ।”
“जानता हूं फिर भी तुम बहुत मदद कर सकते हो ।”
“कैसे ?”
“कुणाल माथुर से अटैच्ड रहो, जो वो करता है उसे मानीटर करो और अपना सुपीरियर जजमेंट इस्तेमाल करके कोई फैसला करो कि वो सही राह पर है या नहीं ! उसकी कोशिशों से हमारे पल्ले कुछ पड़ेगा या नहीं ! ओके ?”
राज ने तनिक हिचकिचाते हुये सहमति में सिर हिलाया ।
“लेकिन पहले एक वादा करो ।”
राज की भवें उठी ।
“तुम अपने आपको सम्भालोगे - ये उजड़ी आशिकी का नकाब ओढ़े मुझे दोबारा नहीं दिखाई दोगे - और निखिल के लिये मन में कोई विद्वेष, कोई वैर भाव नहीं पनपने दोगे ।”
उसने सहमति से सिर हिलाया ।
तभी कुणाल माथुर ने वहां कदम रखा ।
उसने सरकारी वकील से अपनी प्राइवेट मुलाकात की रिपोर्ट पेश की ।
“इसमें तो खास कुछ नहीं ।” - वृद्ध बोले - “सिवाय इसके कि मेरा भूतपूर्व दामाद सुभाष मेहरा प्रेत की तरह फिर सिर उठा रहा है और मेरी जिन्दगी में दखलअन्दाज होने की धमकी दे रहा है ।”
“सर, ऐसी कोई राय आप अभी कैसे कायम कर सकते हैं ?” - कुणाल बोला - “अभी हमें नहीं मालूम कि उसका बयान क्या होगा और वो केस के किस पहलू की बाबत होगा ! मैंने सरकारी वकील से इस बाबत कोई जानकारी निकलवाने की बहुत कोशिश की लेकिन अफसोस कि कामयाब न हो सका ।”
“उसका बयान जो भी होगा, अप्रत्यक्ष में मेरे पर वार होगा । बदला निकालेगा कमीना । ज्यादा से ज्यादा डैमेजिंग बयान देगा ।”
“अधलखा भी मुलजिम के साथ किसी रियायत के मूड में नहीं है । वो केस को पैशन क्राइम के तौर पर पेश कर सकता है, जुनून में न चाहते हो गया कत्ल बता सकता है लेकिन उसने साफ कहा है कि वो इसे डेलीब्रेट कोल्डब्लडिड मर्डर के तौर पर प्रोजेक्ट करेगा ।”
“ऐसा वो निखिल की मौकायवारदात पर मौजूदगी को पिन-प्वायन्ट किये बिना कर सकेगा ? निखिल की गवाही की बिना पर नहीं - जिससे कि वो कोर्ट में मुकर सकता है या इस जिद पर बरकरार रह सकता है कि वारदात उसके वहां से चले जाने के बाद हुई थी - अपनी खुद की कोशिशों से वो ऐसा कर दिखायेगा ?”
“उसकी बातों से मुझे ऐसा लगा था कि उनके पास कोई गवाह है जिसने ऐन वारदात के वक्त निखिल को वहां से रुखसत होते देखा था, लेकिन वो गवाह सुभाष मेहरा ही है या कोई और शख्स है, ये मैं न भांप सका ।”
“और ?”
“मैंने कल रात मुम्बई बड़े आनन्द साहब से बात की थी और उनके हुक्म के मुताबिक उन्हें सूरतअहवाल की रिपोर्ट पेश की थी और इस बात की सख्त जरूरत जाहिर की थी कि हमारे पास अपनी इंडीपेंडेंट इन्वेस्टीगेशन और जांच पड़ताल के लिये पुलिस जैसा कोई पुख्ता, मुस्तैद और व्यापक जरिया होना चाहिये । उन्होंने, शुक्र है कि, मेरी बात से इत्तफाक जाहिर किया था और दिल्ली के चन्द्रेश रोहतगी नाम के एक प्राइवेट डिटेक्टिव का हवाला दिया था जो कि उनका पूर्व परिचित है और जिसके पास फील्ड ओपेरटरों की इतनी बड़ी टीम है जो काम पुलिस वाले कर सकते हैं, उसे वो सबसे पहले करके दिखा सकता है ।”
“हम उस शख्स के नाम से वाकिफ हैं, अलबत्ता हमारा कोई व्यावसायिक वास्ता उस शख्स के साथ कभी नहीं पडा ।”
“अब पड़ेगा । मैंने उसे यहीं बुलाया हैं ।”
“कराना क्या चाहते हो उससे ?”
“कई ऐसे काम मेरी निगाह में हैं जिनकी बाबत या तो पुलिस कुछ बताये - जो कि वो बताती नहीं जान पड़ती - या हम बाजरिया इस पी.डी. जानें । मसलन मकतूला के फ्लैट से उसके जो जेवरात चोरी गये हैं, इतने दिन से उनको कहीं कोई अहमियत मिलती नहीं दिखाई दे रही - वारदात के उजागर होने के बाद एक बार जिक्र आया बताया जाता है कि वहां चोरी भी हुई थी, लेकिन कत्ल को चोरी की भूमिका मानने को पुलिस तैयार नहीं ।”
“कैसे मानेंगे वो लोग ! ये मानकर चलने से निखिल के खिलाफ उनका केस कमजोर नहीं हो जायेगा !”
“सही फरमाया आपने । बहरहाल मैं ये कह रहा था कि हमारा जासूस चोरी गये उन जेवरात को ट्रेस करने की कोशिश कर सकता है, फिर अगला कदम चोर को थामना होगा जो कि जाहिर है कि निखिल के अलावा कोई होगा । ऐसे किसी शख्स का वजूद उजागर होना निखिल के डिफेंस में हमारे हाथ बहुत मजबूर करेगा ।”
“यू आर एब्सोल्यूटली राइट, माई ब्वॉय । दिस इज ए ब्रिलियन्ट थिकिंग ।”
“ऐसा कोई शख्स” - राज आचार्य बोला - “पकड़ाई में आ जाये तो पुलिस का केस तो अपने आप ही ढेर हो जायेगा ।”
“एग्जैक्टली । मिस्टर, तुम्हारी शुरूआती बातों से मैं नाउम्मीद हो चला था, लेकिन मुझे लग रहा है कि बड़े आनन्द साहब ने बिल्कुल सही आदमी दिल्ली भेजा है ।”
“आपको गलत लग रहा है, जनाब, लेकिन इस वक्त इस बात का जिक्र बेमानी है ।”
“मे बी यू आर राइट । और ?”
“और वो पुलिस के गवाहों की पड़ताल कर सकता है जिनमें दो तो - सुभाष मेहरा और बसन्त मीरानी - प्रत्यक्ष हैं, कोई तीसरा, चौथा या पांचवा भी है तो वो उन्हें खोज निकाल सकता है ।”
“गुड ! और ?”
“और वो मकतूला की बैकग्राउंड टटोल सकता है । इस सिलसिले में कम से कम एक साल पीछे तक तो उसे जाना ही चाहिये और उससे मिलने-जुलने वालों को, करीबी लोगों को टटोलना चाहिये क्योंकि जो लोग पिक्चर में नहीं हैं, उनसे हमें कोई ऐसा क्लू हासिल हो सकता है जिस तक कि पुलिस की पहुंच नहीं बन पायी होगी । सर, ये तमाम कोशिशें जाया भी जा सकती हैं, लेकिन इस वक्त हम कोशिश भी न करे तो क्या करें ?”
“यू आर राइट ।”
“ऐसे और भी कोई इन्वेस्टिगेटिव काम हो सकते हैं जिनके लिये लैग वर्क का इन्तजाम उसी के पास है और जिनकी बाबत वक्त-वक्त पर हम उसे बताते रहेंगे ।”
“इतने बड़े प्रोजेक्ट की” - राज बोला - “फीस तो उसकी करारी होगी ?”
“जाहिर है ।”
“कौन भरेगा ?”
“मैं भरूंगा ।” - वृद्ध बोले - “अपनी जाती हैसियत में ।”
“बड़े आनन्द साहब ने मुझे खास तौर से बोला है” - कुणाल बोला - “कि इस बाबत किसी को कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं । ये उनके और चन्द्रेश रोहतगी के बीच का आपसी मामला है जिसका जिक्र यहां दिल्ली में बिल्कुल नहीं उठेगा ।”
“क्या मतलब हुआ इसका ?”
“जो मेरी समझ में आता है वो तो ये ही है कि पी.डी. की फीस सीओ भरेंगे ।”
“ऐसा ?”
“जी हां ।”
“हर्ज तो कोई नहीं है । आखिर निखिल उनका भी भतीजा है ।”
“जी हां ।”
“खुद तुम्हारा क्या इरादा है ? तुम क्या करोगे ?”
“मेरे एजेंडे में पहला काम तो निखिल से एक और मुलाकात का मौका हासिल करना है ।”
“किसलिये ?”
“मैं चाहता हूं कि वो अपनी बुधवार के रोज की एक एक मिनट का मूवमेंट को मेरे सामने रीकंस्ट्रक्ट करे, चण्डीगढ से रवाना होने और वापिस पहुंचने के पूरे शिड्यूल का मुकम्मल खाका मेरे सामने खींचकर दिखाये ।”
“क्या फायदा होगा ?”
“पता नहीं ।”
“माई डियर बॉय, दिस इज ऐन आनेस्ट आनसर, बट दिस इज नाट ए होपफुल आनसर ।”
“आई एम सॉरी, सर ।”
“खैर, मैं इसे भी उन कोशिशों में शुमार करता हूं जो, बकौल तुम्हारे, हम न करें तो क्या करें ! आगे बोलो और क्या करना चाहते हो ?”
“और मैं मौकायवारदात की पड़ताल करना चाहता हूं, लेकिन मौजूदा हालात में ये काम मुमकिन नहीं दिखाई देता ।”
“क्यों भला ?”
“पुलिस ने इमारत की दूसरी मंजिल को सील किया हुआ है और उस पर यूं अपना पहरा बिठाया हुआ है कि वहां कोई परिन्दा भी पर नहीं मार सकता ।”
“तुम कोई परिन्दा नहीं हो, खास परिन्दा हो । तुम डिफेंस अटर्नी हो, तुम्हें ऐसे मुआयने से नहीं रोका जा सकता ।”
“रोका जा रहा है । फिलहाल इस मामले में पुलिस मुझे प्रिविलेज्ड पर्सन तसलीम करने को तैयार नहीं । कोर्ट में केस लगने पर, बचाव पक्ष के वकील के तौर पर पेश होने पर ही मेरा वो दर्जा बनेगा । तब मैजिस्ट्रेट ही पुलिस को हिदायत देगा कि मुलजिम के वकील को मौकायवारदात का मुआयना करने का मौका दिया जाये तो पुलिस का अडियल रवैया बदलेगा ।”
“ठीक ।”
“मेरा चण्डीगढ का भी एक चक्कर लगाने का इरादा है ।”
“अच्छा !”
“निखिल वहां जिन लोगों में उठता-बैठता है उनसे कोई कारगर टिप्स हासिल हो सकती हैं, कोई उसके कैरेक्टर की बारीकियों को उजागर करने वाली बातें मालूम हो सकती हैं ।”
“अगर तुम समझते हो कि यूं तुम्हें मालूम होगा कि निखिल परपीड़ा से आनन्दित होने वाला कोई सैडिस्ट है या वो कोई होमिसिडल मैनियाक है तो गलत समझते हो । निखिल एक नेक, शरीफ, खानदानी लड़का है, उसकी ऐसी किन्हीं हरकतों की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।”
“उसके मां-बाप दोनों नहीं हैं ?”
“हां । दोनों इकट्ठे तब तक एक एक्सीडेंट में मारे गये थे जबकि वो पांच साल का था । पिछले अट्ठारह साल से वो मेरे सरपस्ती में हैं, इसलिये उसके पालन-पोषण की वजह से उसमें कोई खोट पैदा हुई नहीं हो सकती । ऐसी कोई खोट उसमें है तो समझो वो मेरे में भी है, तो समझो कि उसके लिये मैं जिम्मेदार हूं और उसका गुनाहगार हूं ।”
“आप में कोई खोट क्योंकर होगी ! आप तो खालिस आदमी हैं । नकुल बिहारी आनन्द के भाई हैं जो कि आपसे भी खालिस आदमी हैं ।”
“ऐसा समझते हो तो फैमिली ट्रेट के तौर पर निखिल में कोई खोट तलाश करना, कोई नुक्स निकालना बेमानी होगा । एक घड़े का पानी एक जैसा होता है, उसका एक हिस्सा पवित्र और दूसरा दूषित नहीं हो सकता ।”
“आई अग्री विद यू । वो पूरी तरह आप पर आश्रित है ? उसकी अपनी कोई असैट्स नहीं ? जैसे कि मां-बाप की छोड़ी कोई प्रॉपर्टी, कोई बैंक-बैलेंस, कोई इंश्योरेंस ?”
“नहीं । निखिल का पिता नौकरी-पेशा आदमी था और मां हाउसवाइफ थी । तनखाह अच्छी कमाता था, लेकिन रहन-सहन बहुत खर्चीला था, इसलिए कोई असैट्स न बना सका, कोई बैंक-बैलेंस न जमा कर सका । कोई इंश्योरेंस भी नहीं थी, ये उसके मरने के बाद ही पता चला था ।”
“फिर तो निखिल आप पर आश्रित हुआ !”
“हमेशा के लिये नहीं । आखिरकार उसने वकील बनना है और वैसे ही तरक्की करनी है जैसी मैंने की, उसके बाकी मुम्बई वाले तीन अंकल्स ने की ।”
“आपके बेटी का सुभाष मेहरा से तलाक क्यों हुआ ? रिश्ता टूट चुका होने के बावजूद अभी भी वो आपके खिलाफ क्यों है ?”
“वो एक लम्बी कहानी है और उसका मौजूदा केस से कोई रिश्ता नहीं ।”
“अगर आपको अंदेशा है कि कोई बदला उतारने की नीयत से आपके भतीजे के खिलाफ - अपने भूतपूर्व साले के खिलाफ - कोई खतरनाक गवाही दे सकता है तो रिश्ता तो हुआ ।”
“हर अन्देशा सच साबित नहीं होता ।”
“लिहाजा उस बाबत कुछ कहना नहीं चाहते ।”
वो खामोश रहा ।
“सरकारी वकील उसके बसन्त मीरानी से समलैंगिक सम्बन्ध बताता था । कहीं तलाक की ये ही वजह तो नहीं थी कि आपके भूतपूर्व दामाद की औरतों से ज्यादा मर्दों में दिलचस्पी थी ? होमो था वो ?”
“भई, तुम तो मुझे ही क्रॉस क्वेश्चन करने लगे । अपनी ये एनर्जी यहां नष्ट करने की जगह अदालत में गवाहों को एग्जामिन करने के लिये बचाकर रखो ।”
“आप हर बात को टाल रहे हैं । एक सवाल को न टालियेगा, उसका जवाब जरूर दीजिए ।”
“कौन सा सवाल ?”
“आपको नीचा दिखाने की खातिर, आपसे बदला उतारने की खातिर क्या सुभाष मेहरा कोर्ट में झूठ बोल सकता है ?”
“बोल सकता है ।”
“निखिल के खिलाफ झूठी गवाही दे सकता है ?”
“दे सकता है ।”
“ये तो चिन्ता का विषय है । एक तो झूठी गवाही दूसरे पुलिस की शह । इस कम्बीनेशन का तोड़ तो बड़ा मुश्किल होगा ।”
वृद्ध ने चिंतित भाव से सहमति में गर्दन हिलायी ।
तभी चपरासी वहां पहुंचा, उसने चन्द्रेश रोहतगी के आगमन की सूचना दी ।
“बुलाओ ।” - वृद्ध बोले ।
प्राइवेट डिटेक्टिव वहां पहुंचा ।
वो फौजियों जैसा कद्दावर और मजबूत आदमी था और उम्र में कोई पचास साल का जान पड़ता था । उसने सबका अभिवादन किया और एक विजिटर्स चेयर पर बैठ गया ।
कुणाल ने उसका परिचय बुजुर्गवार से और राज आचार्य से कराया । फिर उसने उसे समझाया कि उन्हें उससे क्या-क्या अपेक्षाये थीं ।
“आई विल डू माई बैस्ट ।” - वो बड़ी संजीदगी से बोला - “सच पूछिये तो कल मुम्बई बात होने के फौरन बाद से ही मैंने इस केस पर काम करना शुरू कर दिया था और मैं मकतूला का एक स्थूल सा बायोग्राफिकल कैरीकेचर तैयार कर भी चुका हूं ।”
“दैट, आई मस्ट से, इज फास्ट वर्क ।” - वृद्ध बोला - “आई मस्ट कमैंड यूअर एफर्ट ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“केस की बाबत तुम्हारा जाती खयाल क्या है ?”
“जैसे कत्ल हुआ है, जिस हालत में लाश पायी गयी है और जो चोरी गये जेवरात की बात बताई जाती है, उनसे तो एक नजर में जो नतीजा निकलता है, वो ये ही है कि लड़का कातिल नहीं हो सकता । कोई पुख्ता सबूत एक नजर में उसके खिलाफ दिखाई नहीं देता; जो दिखाई देता है वो सब परिस्थितिजन्य है, सरकमस्टांशल है ।”
“एक नजर में ही तो ।” - कुणाल बोला - “लेकिन पुलिस केस पर एक नजर तो नहीं डालती । वो तो कई नजरें डालती है और कई बार डालती है ।”
“ये भी ठीक है ।”
“इस बात के मद्देनजर राय दो कि क्या किया जाना चाहिए ?”
“पहला कदम तो ये ही उठाना चाहिये कि लड़के के बयान पर, उसकी बेगुनाही पर एतबार लाना चाहिये । अब अगर वो बेगुनाह है तो जाहिर है कि कोई और गुनहगार है । वो कोई और यकीनन ऐसा शख्स होगा जिसकी मकतूला से कोई रंजिश होगी क्योंकि खामखाह तो कोई किसी का कत्ल कर नहीं देता । मेरा जोर मकतूला की जाती जिन्दगी को टटोलकर, खंगालकर ऐसे शख्स की शिनाख्त को उजागर करने पर होगा, जो कि मकतूला के वाकिफकारों, दोस्तों, सहयोगियों, करीबियों में से ही कोई होगा ।”
“ये तो बहुत लम्बी लिस्ट बन जाएगी ।” - वृद्ध बोला - “सबकी जानकारी निकाल पाओगे ?”
“क्यों नहीं निकाल पाऊंगा ? और मेरा काम क्या है ?”
“गुड ।”
“मुझे मालूम पडा है कि लाश के साथ कोई घिनौनी बद्सलूकी की गयी थी, लेकिन ये पता नहीं चल सका था कि असल में क्या हुआ था ? आप लोगों को पता हो ?”
“नहीं, हमें भी पता नहीं ।”
“ये पता भी” - कुणाल बोला - “तुम्हीं निकालो तो बड़ी बात होगी ।”
“कोशिश करूंगा । पुलिस चोरी गये जेवरात के बारे में कोई पूछताछ जरूर कर चुकी होगी । अगर वो जेवरात इंश्योर्ड थे तो इंश्योरेंस कम्पनी में उनकी लिस्ट भी उपलब्ध होगी । आप लोगों को इस बारे में कोई जानकारी है ?”
“वो लिस्ट” - जवाब राज ने दिया - “इंश्योरेंस कम्पनी में पुलिस हासिल कर चुकी है और मकतूला की बेटी से मशवरा करके मार्क कर चुकी है कि उसमें से कौन से जेवर चोरी गये हैं और कौन से पीछे से उपलब्ध हैं । वो लिस्ट तुम चाहो तो तुम्हें मैं मुहैया करा सकता हूं ।”
“पुलिस से ?”
“पुलिस से नहीं, भई - पुलिस तो मुझे लिस्ट के पास भी नहीं फटकने देगी - इंश्योरेंस कम्पनी से । वहां मेरा एक आदमी है जिससे लिस्ट की कॉपी मैं निकलवा सकता हूं ।”
“जरूर निकलवाइये ।”
“कल सुबह ग्यारह बजे तुम्हें वो लिस्ट मिल जायेगी ।”
“बढ़िया ।”
“लेकिन उससे होगा क्या ?” - वृद्ध बोला - “चोर क्या इतना ही अहमक होगा कि जेवरात बेचने निकल पड़ा होगा ?”
“इतना अहमक कोई चोर नहीं होता कि जिस शहर में चोरी करे, उसी में चोरी का माल ठिकाने लगाने की कोशिश करे, और वो भी वारदात के फौरन बाद । शातिर चोर या तो एक लम्बा अरसा चोरी के माल को छुपाकर रखता है या फिर उसे सैकड़ों - बल्कि हजारों मील दूर ले जाकर बेचता है । लेकिन चोर जरूरतमन्द हो तो ऐसी नादानी कर सकता है ।”
“जरूरतमन्द ?”
“और डैस्प्रैट । जैसे कोई जंकी, नशेबाज, जिसे कि फिक्स के लिये फौरन रकम की जरूरत हो । वैसे भी हालात का इशारा कातिल के कोई नशेबाज, एडिक्ट, होने की तरफ ही है ।”
“ऐसा हुआ तो उसका पता निकाल लोगे ?”
“उम्मीद तो पूरी है । राजधानी के हर फैंस की - चोरी के माल की खरीद-फरोख्त करने वाले की - मुझे वाकफियत है ।”
“गुड !”
“इस वक्त” - कुणाल बोला - “तुम्हारे पास कोई और केस है ?”
“क्यों पूछ रहे हो ?”
“हम चाहते हैं कि फिलहाल तुम्हारी मुकम्मल तवज्जो हमारे केस की तरफ हो - तुम्हारे तमाम संसाधनों की सेवा हमें उपलब्ध हो । ऐसा क्योंकर होगा अगरचे कि तुम्हारे पास और भी केस होंगे ?”
“फिर भी ऐसा ही होगा ।” - पी.डी. पूरे विश्वास के साथ बोला - “इसलिये होगा क्योंकि मुम्बई वाले आनन्द साहब से मेरा ऐसा ही मुलाहजा है । मेरी फर्म खासी बड़ी है, उसमें कई एसोसियेट्स हैं । जो और केस हमारे पास हैं, वो अब मेरे एसोसियेट्स के हवाले होंगे और मेरी कम्प्लीट अनडिवाइडिड अटेंशन इस केस पर होगी । ये मेरा आप लोगों को आश्वासन ही नहीं, मेरी गारंटी है ।”
“फिर क्या बात है ? फिर तो समझो कि हम तहेदिल से तुम्हारे शुक्रगुजार हैं ।”
“अभी और होंगे, जबकि मेरा काम देखेंगे ।”
“गुड । वुई आर ग्लैड ।”
***
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