एक अधूरी प्यास- 2

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rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

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स्कूल जाने का समय हो गया था शुभम जल्दी जल्दी तैयार हो गया वैसे भी आज उठने में देर हो गई थी इसलिए जैसे तैसे करके नाश्ता करके वह अपनी मम्मी को आवाज लगाने लगा।

मम्मी..... ओ मम्मी आज बहुत देर हो रही है आप कहां रह गई...

अभी आई...(इतना कहकर निर्मला फिर से अपनी ब्लाउज की डोरी बांधने की कोशिश करने लगी जो कि उससे बांधी नहीं जा रही थी। जब निर्मला को लगने लगा कि उससे ब्लाउज की डोरी नहीं बांधी जाएगी तब वह शुभम को आवाज लगाते हुए बोली।)

शुभम औ शुभम जरा इधर तो आना..

क्या बात है मम्मी..

अरे इधर तो आ तब मैं तुझे बताती हूं... एक तो देर हो रही है और यह डोरी नहीं बांधी जा रही..(निर्मला अपने आप से ही बोलते हुए फिर से अपने हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर आईने में अपने प्रतिबिंब को देखते हुए डोरी बांधने की कोशिश करने लगी लेकिन उसकी कोशिश फिर नाकाम हो गई तब तक दरवाजे पर शुभम पहुंच चुका था और उससे आईने में देखते ही बोली।)

शुभम जरा ले ब्लाउज की डोरी तो बांध देना आज पता नहीं क्यों मुझसे बांधी नहीं जा रही।
(जिस तरह से निर्मला परेशान होते हुए अपने ब्लाउज की डोरी को बांधने की कोशिश कर रही थी उसे देख कर शुभम बंद मन मुस्कुराने लगा और इस समय निर्मला कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी बाल अभी भी गीले थे और उसमें से आ रही मादक खुशबू पूरे कमरे को मोहक बना रही थी। शुभम अपनी मां के कमर के नीचे के भरावदार ऊभार को देखते हुए अपने कदम आगे बढ़ाते हुए बोला।)


क्या बात है मम्मी आज तो तुम एकदम कयामत लग रही हो।

आज क्या खास बात है रोज ही तो लगती हूं।

आज तुम्हारी यह कुछ ज्यादा बड़ी बड़ी लग रही है (शुभम अपनी मां की गांड पर चपत लगाते हुए बोला)

आऊचचच.... क्या कर रहा है पागल हो गया है क्या? कितनी जोर से मारा। (निर्मला अपनी गांड सहलाते हुए बोली।)

अच्छा अभी लग रही है मुझे पूरा लंड अंदर डालकर जोर जोर से धक्के लगाता हूं तब तो बोलती हो और जोर से और जोर से....(शुभम साड़ी के ऊपर से अपनी मां की गांड सहलाते हुए बोला।)

तब की बात कुछ और होती है उस समय पूरे बदन में जोश भरा होता है तो उस समय चाहे जितनी जोर जोर से धक्के लगा चपत लगा कुछ भी कर सिर्फ और सिर्फ मजा ही आता है ( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली)

मम्मी तुम्हारी बड़ी बड़ी गांड देखकर आज मेरा मन कुछ और कर रहा है। (शुभम जोश के साथ पीछे से अपनी मां को बांहों में भरते हुए और अपने पेंट में बने तंबू को साड़ी के ऊपर से अपनी मां की गांड पर रगड़ते हुए बोला।)

अच्छा तो बता क्या कर रहा है तेरा मन....( निर्मला आईने में अपने बेटे को अपने आप को बाहों में लिए हुए देखते हुए बोली। जो कि इस समय शुभम ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी मां की खरबूजे जैसी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया था।)

आज मेरा मन तुम्हारी गांड मारने को कर रहा है।
(इतना सुनते ही निर्मला उछल पड़ी और बोली।)

पागल हो गया क्या ना ना ना ना बिल्कुल नहीं उस बारे में सोचना भी नहीं .. बहुत दर्द होता है और तेरा लंड कोई पतला तो है नहीं कि आराम से चला जाएगा साला है मुशल जैसा.... एकदम हड़कंप मचा देता है।(डोरी ना बदले की वजह से धीमी हो चली ब्लाउज को वह वापस से पीछे की तरफ ले जाते हुए बोली।)

क्या मम्मी तुम्हें भी तो मजा आता है ना।

हां आता है मजा लेकिन दर्द भी बहुत होता है। इसलिए अभी इस बारे में कोई बात नहीं करनी है जब करना होगा तब सोचेंगे अभी तू बस जल्दी से मेरे ब्लाउज की डोरी बांध दे बहुत देर हो रही है स्कुल भी पहुंचना है।(शुभम अभी भी अपनी मां को कस के बाहों में झगड़ा हुआ था जिसकी वजह से उसके पेंट में बना तंबू बराबर गांड के बीचो बीच अपने लिए जगह बना रहा था शुभम को अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर अपना लंड रगड़ना में मजा आ रहा था और निर्मला भी अपने बेटे की मस्ती में मस्त हुए जा रही थी लेकिन वह इतना जरूर जानती थी कि अगर वह शुभम को नहीं रोकी तो स्कूल जाने से पहले ही लगता है वह उसकी चुदाई कर देगा और भाई ऐसा नहीं चाहती थी क्योंकि बहुत देर हो चुकी थी।इसलिए वह एक हाथ पीछे की तरफ ले जाकर पेंट में बने तंबू को अपने हाथ से पकड़ कर उसे पीछे की तरफ ठेलते हुए बोली।)


बेटा अपने इस मुसल को पीछे ही रखना... बड़ा बदतमीज है... घुसता ही चला रहा है।

इसका काम ही है घुसना जहां थोड़ी सी जगह देखी नहीं की घुसना शुरू कर देता है।(शुभम वापस अपनी कमर को अपनी मां की गांड पर सटाते हुए बोला।)

तो क्या कहीं भी घुस जाएगा (निर्मला फिर से उसे उसी तरह से पकड़कर पीछे की तरफ ठेलते हुए बोली।)

हां घुस जाएगा क्योंकि इसके घुसने लायक छोटे-छोटे बिल सिर्फ तुम्हारे पास है।
(इस तरह की अश्लील गंदी बातें करके निर्मला को भी मजा आने लगा था लेकिन दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखते ही अंदर ही अंदर गुस्सा होने लगी क्योंकि वह भी अपने बेटे की हरकत की वजह से काफी उत्तेजित हो चुकी थी और उसे अपनी पेंटी गीली होती हुई महसूस होने लगी थी वह भी अपने बेटे के पेंट में बने तंबू को अपनी पेंटी के अंदर छुपे खजाने में घुसाना चाहती थी लेकिन समय का अभाव था इसलिए वह मन मारते हुए बोली।)

बहुत बातें करने लगा है चल अब जल्दी से मेरे ब्लाउज की दूरी बांधे बहुत देर हो चुकी है समय पर पहुंचना भी है।

क्या मम्मी ....(शुभम उदास होता हुआ बोला।)

मुझे कुछ नहीं कहना बस जल्दी से आप डोरी बांध दे।

(शुभम भी अच्छी तरह से समझ रहा था कि स्कूल पर उस समय पर पहुंचना बहुत जल्दी है और वास्तव में उन दोनों को बहुत देर हो रही थी इसलिए वह भी अपने मन से अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को बांधने लगा। और इसके बाद दोनों मुस्कुराते हुए कार में बैठकर उसको की तरफ निकल गए । घर में एकांत पाते ही निर्मला अपने बेटे के द्वारा की गई हरकत का पूरा मजा उठाती थी उसे अपने बेटे की इस तरह की गंदी हरकतों में बहुत मजा आने लगा था और उसे मालूम भी रहता था कि जब घर में कोई नहीं होता है तो वह अक्सर उसके साथ इस तरह की छेड़खानी करता रहता है।
और निर्मला भी अपने बेटे की हरकतों का खुलकर मजा लेती थी और उसे पूरी तरह से मजा लूटने देती थी क्योंकि उसकी जिंदगी में जिस तरह का बदलाव आया था और एक तरह से हुआ दूसरा जन्म ली थी वह सिर्फ शुभम के बदौलत थी।इसलिए वह शुभम को किसी भी तरह से नाराज नहीं करना चाहती थी और वैसे भी इसमें नाराजगी की कोई बात नहीं थी बरसों से प्यासी है निर्मला इस तरह की हरकतों को महसूस करने के लिए तरस गई थी अशोक के साथ रहकर उस पर आधार रखकर वह जिंदगी के असली सुख को भूल गई थी घर गृहस्ती मे वह इस कदर डूब गई थी कि औरतों की जिंदगी में उनकी एक अलग दुनिया भी होती है इस बात का एहसास उसे बिल्कुल भी नहीं था और इस बात का एहसास उसे उसके बेटे ने कराया था इसलिए वह अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटे पर निछावर कर देना चाहती थी बदले में उससे वही प्यार चाहती थी जो एक प्यार एक प्रेमी और एक पति दे सकता था और शुभम दोनों का फर्ज बखूबी निभा रहा था। और कुल मिलाकर निर्मला अब अपनी जिंदगी से बहुत खुश थी।

शाम ढल चुकी थी अंधेरा होने लगा था। छत पर निर्मला सूखे हुए कपड़ों को इकट्ठा कर रहे थे और बाजू वाली छत पर सरला चाची भी आज सूखे हुए कपड़ों को रस्सी पर से उतार कर उन्हें इकट्ठा कर रही थी। निर्मला की नजर सरला चाची पर पढ़ते ही वह अंदर ही अंदर सिहर उठी क्योंकि अब जब भी निर्मला की नजर सरला चाची पर पड़ती थी तो उसे इस बात का डर रहता था कि... कहीं वह उसके और शुभम के बारे में पूछताछ करना शुरू कर दें इसलिए इस समय भी छत पर सरला चाची को देखकर वह घबरा गई थी और उसकी घबराहट तब और ज्यादा बढ़ गई जब वह उसे पुकारते हुए उसकी तरफ ही बढ़ते चले आ रही थी.... उसे इस बात का डर लग रहा था कि कहीं वह कुछ पूछना ले....

रुको निर्मला ..(निर्मला सरला से बिना कुछ बोले जाने वाली थी कि उसकी बात सुनते ही रुक गई।)

शुभम कहां है कहीं नजर नहीं आ रहा।

इतना सुनते ही निर्मला के पैर वहीं के वहीं जम गए उसे लगने लगा कि लगता है या वह फिर से पूछताछ करेगी।

क्यों क्या हुआ क्या बात है। (निर्मला सरला की तरफ देखते हुए बोली।)

अरे हुआ कुछ नहीं है (एकदम खुश होते हुए निर्मला की तरफ कदम बढ़ाते हुए) आज घर पर कद्दू की सब्जी बनने वाली है इसलिए मैं कह रही थी कि शुभम को बोल देना कि आज वह मेरे घर पर खाना खा ले...

कद्दू की सब्जी ... लेकिन......(निर्मला आश्चर्य के साथ बोली।)

लेकिन वेकिन कुछ नहीं बस उसे इतना कह देना कि आज का खाना मेरे घर पर है और वह समय पर चले आए।


लेकिन सरला कद्दू की सब्जी....( निर्मला फिर से आश्चर्य जताते हुए बोली)

हां हां मैं जानती हूं शुभम को कद्दू की सब्जी बहुत पसंद है।

यह आपको किसने कहा।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

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शुभम खुद मुझे बताया कि उसे कद्दू की सब्जी बहुत पसंद है उस दिन बाजार से लौटते समय वह बाद बाद में मुझे बताया था कि उसे कद्दू की सब्जी बहुत अच्छी लगती है इसलिए मैं कही थी कि जिस दिन बनाऊंगी तुझे अपने घर बुलाऊंगी।... उसे भेज जरूर देना मुझे बहुत काम है मैं जा रही हूं।
( इतना कहकर सरला वापिस चली गई और निर्मला उसे जाते हुए देखती रही उसे समझ में नहीं आ रहा था कि शुभम ने उसे ऐसा क्यों कहा कि कद्दू की सब्जी उसे बहुत पसंद है जबकि कद्दू की सब्जी वह बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था....। अब वह शुभम से इस बारे में बात करना चाहती थी। वो जानती थी कि कुछ ही देर में शुभम घर पर आने वाला था इसलिए वह नीचे चली गई।


सरला चाची के वापस जाते ही निर्मला ने राहत की सांस ली लेकिन सरला चाची की बातों ने निर्मला को कशमकश में डालकर रख दिया था। क्योंकि एक मां होने के नाते निर्मला अच्छी तरह से जानती थी कि उसके बेटे को कद्दू की सब्जी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी... लेकिन सरला उसे अभी अभी बता कर गई थी कि उसके बेटे को कद्दू की सब्जी अच्छी लगती है और वह घर पर खाने का उसे आमंत्रण भी दे गई थी.. इसलिए निर्मला को कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वह कपड़ों को इकट्ठा करके नीचे कमरे में ले आई.. और शुभम का इंतजार करने लगी..
थोड़ी ही देर में डोर बेल की आवाज सुनते ही निर्मला जल्दी-जल्दी दरवाजा खोलने के लिए गई क्योंकि वह जानती थी कि शुभम वापस आ गया है।
दरवाजा खुलते ही शुभम मुस्कुराते हुए घर के अंदर आया और उसे मुस्कुराता हुआ देखकर जवाब में निर्मला भी मुस्कुरा दी और वह दरवाजा बंद कर दी।

क्या बात है आज बहुत खुश नजर आ रहा है। (निर्मला दरवाजा बंद करके अपने बेटे... की तरफ आगे बढ़ते हुए बोली...)

मैं तो हमेशा खुश रहता हूं मम्मी...

मैं इस खुशी की वजह जान सकती हूं (निर्मला अपने दोनों हाथ को बांधते हुए बोली।)

तुम ......हां तुम मेरी खुशी की वजह हो ..(शुभम आगे बढ़कर अपनी मां के गले में बाहें डालता हुआ बोला)

मैं .....लेकिन मैं कैसे...?

अरे मम्मी इतना भी नहीं जानती मेरी खुशी की वजह तुम हो क्योंकि तुम मुझे कितना खुश रखती हो मेरा इतना ख्याल रखती हो और तो और दूसरे तरीके से भी मेरा कितना ख्याल रखती हो......(शुभम अपनी मां की आंखों में आंखें डालता हुआ बोला)

दूसरे तरीके से मतलब मैं कुछ समझी नहीं....( निर्मला अनजान बनते हुए बोली)

अच्छा अब इतना भी अनजान मत बनो कि मेरे कहने का मतलब ना समझ रही हो मैं सब जानता हूं कि तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मैं क्या कहना चाहता हूं।

नहीं मैं बिल्कुल नहीं समझी तू मुझे ठीक से समझ आएगा तब ना मैं समझूंगी कि तू क्या कहना चाहता है ।(नीम्रला जानबूझकर चुटकी लेते हुए बोली)

बताऊ किस तरह से....(शुभम बड़ी गहराई से अपनी मां की आंखों में जागता हुआ बोला निर्मला को अपने बेटे की आंख में कुमारी की चमक साफ नजर आ रही थी वह अच्छी तरह से समझ रही थी कि वह क्या करना चाह रहा है लेकिन निर्मला को भी अच्छा लग रहा था इसलिए वह भी शरारती अंदाज में बोली.)

बताना ....मैं तो जानना चाहती हूं कि दूसरे तरीके से मैं कैसे तुझे खुश रखती हूं।

रुको अभी बताता हूं....(बातों ही बातों में शुभम काफी उत्तेजित हो चुका था इस तरह से अपनी मां के गले में बाहें डाल कर खड़े रहने की वजह से और एकदम करीब रहने की वजह से निर्मला के बदन से आ रही माता खुशबू उसके बदन में उत्तेजना की लहर बढ़ा रहे थे और ब्लाउज में कैद निर्मला की दोनों बड़ी-बड़ी चूचियां उसके सीने से स्पर्श हो रही थी जिसकी वजह से उसके बदन में गर्माहट बढ़ती जा रही थी.... शुभम अपने होठों को अपनी मां के तपते हुए होठों के करीब ले जाने लगा घर में इस समय दोनों के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था इसलिए दोनों जब चाहे तब एक दूसरे से छेड़खानी कर लेते थे और इस पल का भरपूर फायदा उठाते थे शुभम के होठ निर्मला के मदमस्त होठ के करीब होते जा रहे थे....एक बार फिर से निर्मला के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी तन बदन में उत्तेजना की चिंगारी भड़कने लगी थी। जैसे-जैसे शुभम के प्यासे होठ निर्मला के तपते हुए होठों के करीब आ रहे थे वैसे वैसे निर्मला उत्तेजना के मारे सूखे हुए पत्ते की तरह फड़फड़ा रही थी शुभम दोनों हाथों में अपनी मां के चेहरे को इस तरह से ले लिया था मानो गुलाब के फूल को अपनी हथेली में संभाल कर भर लिया हो।
दोनों के चेहरे इतने करीब हो गए थे कि दोनों की नसों में से निकल रही गर्म सांसों की हवा चेहरे पर पड़ते ही वाष्प की तरह घुल जा रही थी।
दोनों बैठक घर में खड़े थे । जबसे निर्मला को इस बात का आभास हुआ है कि उनकी पड़ोस की सरला चाची उन दोनों पर नजर रख रही है तब से वह घर की खिड़कियों के पर्दे हमेशा लगाकर रखते थे ताकि कुछ भी नजर ना आए इसलिए वह निश्चिंत थी। दोनों एक दूसरे की बाहों में थे शुभम धीरे-धीरे अपने होंठ को अपनी मां के होठों के एकदम करीब ले आया वह अपनी मां की खूबसूरत चेहरे को अपने दोनों हथेली से संभाले हुए था और देखते ही देखते शुभम ने अपने होंठ को अपनी मां की गुलाबी होंठ पर रखकर उन्हें पागलों की तरह चूसना शुरू कर दिया अपने बेटे की इस हरकत की वजह से निर्मला काफी उत्तेजित हो गई थी और वह भी अपने बेटे का साथ देते हुए अपने होठों को खोल दी और उसके होठों को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दी दोनों जितना हो सकता था एक दूसरे के होठों से चासनी चुस लेना चाह रहे थे। दोनों एक दूसरे को किसी इंग्लिश मूवी के हीरो हीरोइन की तरह चुंबन कर रहे थे पल भर में ही दोनों एकदम मदहोश हो गए अपनी मां के मदमस्त होंठों को चूसने से शुभम को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वह अपनी मां के होठों को नहीं बल्कि किसी बेहतरीन इंग्लिश दारू की बोतल को मुंह से लगाया हो उसके बदन में नशा की खुमारी छाने लगी आंखों में मदहोशी का आलम इस कदर छाने लगा कि अपने आप ही उसकी आंखें बंद होने लगी और यही हाल निर्मला का भी हो रहा था उसकी भी आंखे मस्ती में बंद होने लगी वह अपनी बाजुओं में अपने बेटे को भरकर चुंबन का मजा ले रही थी और शुभम अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ ले जाकर अपनी मां की कमर के नीचे के उपहार को अपनी हथेली में भर कर दबाना शुरू कर दिया और लगातार अपनी मां के होठों को चूसता चला जा रहा था।
निर्मला चुदवासी होने लगी थी.. उसकी बुर चुदासपन से भरी जा रही थी जिसकी वजह से उसमें से लगातार नमकीन मधुर रस बहने लगा था और उसकी पेंटी उसके मधुर रस से गीली होने लगी थी।
शुभम का लंड पेंट के अंदर गदर मचाया हुआ था जो कि अब खड़क होने के बाद निर्मला की टांगों के बीच साड़ी के ऊपर से ही शिरकत कर रहा था लेकिन उसका कठोरपन इतना ज्यादा मजबूत था कि निर्मला को अपनी कचोरी जैसी फूली हुई बुर पर उसकी दस्तक बराबर महसूस हो रही थी।

दोनों दुनिया को भूल कर एक दूसरे के होठों की चुसाई करने में लगे थे। शुभम का मोटा तगड़ा लंड एक बार फिर से अपनी औकात में आ गया था जोकि पजामे के बाहर निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था। शुभम अपनी मां के होठों को ऐसे चूस रहा था जैसे कि उस पर रसमलाई लगी हो वह लगातार अपनी मां के लाल लाल होंठों को चूसता चला जा रहा था। उत्तेजना के मारे निर्मला का खूबसूरत चेहरा सुर्ख हो चुका था उत्तेजना के मारे गला सूख रहा था।निर्मला को अपने बेटे की यही अदा तो बहुत अच्छी लगती है कि कभी भी वह मूड बना देता है और ऐसा अभी भी हो रहा था निर्मला की चुदवासी बुर किसी गुब्बारे के भांति फूल पिचक रही थी। पूरे घर में केवल दोनों के मुख से चुम्मा चाटी और गर्म सिसकारी की आवाज ही आ रही थी।
पल भर में माहौल पूरी तरह से बदल गया था दोनों पर मदहोशी का आलम अपना असर दिखा रहा था।
शुभम का लंड पूरी तरह से तैयार था निर्मला की रसीली बुर के अंदर जाने के लिए बस उसे रास्ता दिखाने की जरूरत थी। जो कि अभी तक साड़ी के ऊपर से ही दोनों टांगों के बीच खुली हुई बुर पर ठोकर मार रहा था। और इस ठोकर को खाकर निर्मला की बुर पेंटी के अंदर होने के बावजूद भी हल्की सी खुल गई थी जो कि उसकी तरफ से लंड को पूरी तरह से स्वीकृति थी कि वह अंदर आ सकता है। और बुर की आत्मसमर्पण को देखकर लंड का हौसला बढ़ने लगा था वह और जोर-जोर से बुर के ऊपर दस्तक दे रहा था ऐसा लग रहा था मानो कि वह निर्मला की बुर पर अपने नाम का सिक्का लगा रहा हो।

निर्मला भी अपने बेटे की मोटी तगड़ी लंड की ठोकर को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी वह उसे अपनी बुर की गहराई में लेने के लिए मचल रही थी। अपने बेटे के इस तरह के लाजवाब चुंबन का नशा उसके ऊपर पूरी तरह से छा चुका था आंखों में मदहोशी का आलम अपने अंदर समाने को बेकरार कर दिया था।

शुभम होंठों की चुसाई जारी रखते हुए अपना हाथ निर्मला के बदन पर चारों तरफ घुमा रहा था अब उससे बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हुआ जा रहा था वह अपने हाथ नीचे की तरफ ले जाकर अपने दोनों हाथों में साड़ी पकड़ कर ऊपर की तरफ उठाने लगा लेकिन जानबूझकर निर्मला उसे रोकने की कोशिश करते हुए उसके हाथ को पकड़ लिया और अपनी साड़ी को नीचे की तरफ करने लगी लेकिन अत्यधिक उत्तेजना का असर शुभम पर साफ नजर आ रहा था वह जबरदस्ती अपनी मां की साड़ी को ऊपर की तरफ उठा रहा था। निर्मला बार-बार अपनी साड़ी को नीचे की तरफ करने की कोशिश कर रही थी और शुभम बार-बार साड़ी को ऊपर उठा दे रहा था। इस तरह से दोनों तरफ से जोर-जबर्दस्ती हो रही थी और इस जोर-जबर्दस्ती में निर्मला को मजा आ रहा था। वह जानबूझकर शुभम को रोक रही थी ताकि वह देख सके कि सुभम उसके साथ क्या कर सकता है....हालांकि छेड़खानी में जोर जबरदस्ती में निर्मला को अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव हो रहा था वह पूरी तरह से गीली हो चुकी थी.
होठ चुसाई का लगातार आनंद लेते हुए निर्मला बार-बार अपनी साड़ी को पीछे की तरफ करने की कोशिश कर रही थी और शुभम बार-बार साड़ी को पर उठा दे रहा था। शुभम पूरी तरह से न चुदवासा हो चुका था अपनी मां का इस तरह से रोकना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। वह उतावला हो चुका था अपनी मां की बुर में लंड डालने के लिए ... अपनी मां की हरकत देखकर उसे और कोई रास्ता नजर ना आता देखकर वह दोनों हाथों को अपनी मां की नितंबों के उभार के निचले हिस्से पर रखकर उसे उठा लिया कर जल्दी-जल्दी उसे चार पांच कदम चल कर दीवार से सटा दिया.... निर्मला तो अपने बेटे की भुजाओं की ताकत देखकर हैरान रह गई.. वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि उसका बेटा उसे इस तरह से उठा लेगा जैसे कि कपड़े का गट्ठर हो वह भली भांति जानती थी कि उसका वजन कुछ ज्यादा ही था लेकिन उसके बेटे ने अपनी ताकत दिखाते हुए उसे बड़े आराम से अपनी गोद में उठाकर उसे दीवार से सटा दिया था इस बात का एहसास उसे अंदर तक उत्तेजित कर गया था उसकी बुर से लगातार नमकीन पानी बह रहा था... दीवार से लगाते ही शुभम अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा दिया और एक हाथ से उसकी पेंटी को नीचे की तरफ सरका ते हुए घुटनों तक ला दिया.... रास्ता एकदम साफ था दो टांगों के बीच उसे अपनी मंजिल नजर आ रही थी। वह बिना वक्त गवाएं एक हाथ से अपने पेंट की बटन खोलने लगा दो कि अभी भी निर्मला जानबूझकर अपनी साड़ी को नीचे करने की नाकाम कोशिश कर रही थी। और देखते ही देखते शुभम अपने हाथ में अपने खड़े लंड को पकड़ कर ही नाता हुआ उसे अपनी मां की दोनों टांगों के बीच लगा दिया जो कि इस समय निर्मला के बुर किसी भट्टी की तरह तप रही थी।
निर्मला निर्मला उसे बिना बोले उसे रोकने की कोशिश करती रही और शुभम अपनी मनमानी करते हुए अपने लंड को अपनी मां की बुर के अंदर धीरे-धीरे करके पूरा डाल दिया....
निर्मला अपने बेटे की हरकत की वजह से आनंद से सराबोर हो गई उसे अपने बेटे की जबरदस्ती बहुत अच्छी लग रही थी शुभम का लंड पूरा बुर में समाया हुआ था। जिसे शुभम धीरे धीरे अंदर बाहर करता हुआ चोदना शुरू कर दिया था।
आखिर कब तक निर्मला दिखावे का नाटक करके अपने मजे को किरकिरा कर दी वह भी अपने बेटे का साथ देते हुए उसके कंधे पर हाथ रखकर और अपनी नजर को नीचे की तरफ करके अपने बेटे के खातिर लंड को अपनी बुर की गहराई में अंदर बाहर होता हुआ देखकर चुदाई का मजा लेने लगी। अब दोनों के बीच किसी भी प्रकार का संवाद नहीं हो रहा था क्योंकि अब दोनों के बीच वार्तालाप केवल उनके लंड और बुर कर रहे थे जिसमें से ठाप ठाप की आवाज लगातार गूंज रही थी। शुभम को बहुत मजा आ रहा था वह ब्लाउज के ऊपर से यह अपनी मां की बड़ी-बड़ी चुचियों को दबाता हुआ अपनी कमर को आगे पीछे करके चोद रहा था। निर्मला काफी उत्तेजित हो चुकी थी उसे आज एक नया अनुभव मिला था क्योंकि दोनों के बीच ड्राइंग रूम में ही एक अद्भुत संभोग का दृश्य रचा जा रहा था । जो कि दोनों को उम्मीद भी नहीं थी कि इस तरह से दोनों चुदाई का आनंद लूटेंगे। शुभम लगातार किसी मशीन की तरह अपनी कमर को हीला रहा था।
निर्मला अपने बेटे की आंखों में झांकते हुए उसके दमदार लंड की ठोकर को अपनी बुर की गहराई में महसूस कर रही थी उसकी आंखों में साफ नजर आ रहा था कि वह अपने बेटे से कहना चाह रही थी कि और जोर जोर से धक्के लगाए और जैसे शुभम एक अनुभवी मर्द की तरह अपनी मां की आंखों में उसके दिल के जज्बात को पढ़कर जोर जोर से अपनी कमर को हिलाने लगा। पूरे कमरे में निर्मला की सिसकारी की आवाज गुंजने लगी....
शुभम अपनी मां की कमर थामे हुए जोर जोर से धक्के लगा रहा था उसका हर एक प्रहार निर्मला के मुख से आह निकाल दे रही थी लेकिन इस आह में भी सुकून और आनंद छिपा हुआ था। शुभम कुछ देर तक ऐसे ही अपनी मां की चुदाई करता रहा उसकी रफ्तार एक पल के लिए भी कम नहीं हो रही थी वह एक हाथ से चूची दबा रहा था और दूसरे हाथ से कमर पकड़कर उसे मसल रहा था जिससे निर्मला को और ज्यादा मजा आ रहा था।
निर्मला पूरी तरह से भाव विभोर होकर अपने बेटे से चुदने का आनंद लूट रही थी। हालात पूरी तरह से कैसे बदल गए उसे खुद समझ में नहीं आया क्योंकि कुछ देर पहले अपने बेटे से सरला चाची के दिए गए आमंत्रण के बारे में पूछताछ करना चाहती थी लेकिन शुभम के घर में आते ही जिस तरह से एकाएक दोनों के बीच चुंबन की बौछार होने लगी और वह बौछार अब घमासान चुदाई में बदल चुकी थी और निर्मला अपनी बात भूल चुकी थी और जुदाई का आनंद ले रही थी।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

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निर्मला अपने बेटे की हर तबके के साथ अपनी कमर को पीछे की तरफ कर दे रही थी क्योंकि शुभम कुछ ज्यादा ही जोर लगाकर धक्के मार रहा था और यह बात शुभम को अच्छी तरह से पता चल रही थी लेकिन उसे बहुत मजा आ रहा था लेकिन थोड़ी देर बाद वह अपना लंड पूरी तरह से बाहर निकाल दिया जो कि अभी भी पानी निकला नहीं था जिसका मतलब साफ था कि शुभम का मन भरा नहीं था और ना ही निर्मला का मन कर रहा था कि अपने बेटे के लंड को अपनी बुर से बाहर निकाल ले लेकिन शुभम के मन में कुछ और चल रहा था वह अपनी मां की बुर से लंड बाहर निकाल कर उसके कंधों को पकड़कर घुमाने की कोशिश करने लगा और अपने बेटे का इशारा समझ कर निर्मला अपनी साड़ी को दोनों हाथों से कमर तक उठाए खड़ी होकर अपनी टांगों का सहारा लेकर घुटनों में फंसी पेंटी को पैरों से बाहर निकालने लगी और अगले ही पल उसकी गीली पैंटी फर्श पर पड़ी थी और वह दीवार की तरफ मुंह करके अपनी साड़ी को दोनों हाथों से उठा है अपनी मदमस्त गांड को किसी दुश्मन की तरफ लगाए जाने वाली तोप की तरह ऊपर की तरफ उठा दी.... शुभम को और क्या चाहिए था बिना बोले ही उसकी मां उसका इशारा समझ गई थी ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी भूखे के सामने स्वादिष्ट व्यंजन से भरी थाली रख दी गई हो वह अपनी भूख मिटाने के लिए उस थाली पर टूट पड़ा और शुभम अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड को पकड़कर एक बार फिर से उसके अंदर समा गया और जोर जोर से धक्के लगाते हुए उसे चोदना शुरु कर दिया पूरे कमरे में गर्म सिसकारी की आवाज किसी मधुर ध्वनि की तरह बज रही थी। तकरीबन 35 मिनट की घमासान चुदाई के बाद दोनों की सिसकारी की आवाज तेज हो गई और दोनों एक साथ झड़ गए।...
निर्मला की सांस इतनी तेज चल रही थी कि मानो जैसे अभी रुक जाएगी... शुभम का भी यही हाल था घर में आने से पहले उसे उम्मीद नहीं थी कि इस वक्त उसे जबरदस्त चुदाई का सुख भोगने को मिलेगा... जिससे अनायास ही मिले इस सुख से वह पूरी तरह से तृप्त हो चुका था....

निर्मला अपने कपड़े व्यवस्थित करके फर्श पर से अपनी पूरी तरह से गिरी हुई पेंटी को उठाकर जाने लगी तो शुभम बोला...

पहनोगी नहीं क्या.....?
(इतना सुनकर वहां रुक गई और अपने बेटे की तरफ मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए उसके करीब आई और अपने दोनों हाथ में पेंटी को फैलाते हुए उसकी आंखों के सामने दिखाते हुए बोली।)

पहनने लायक तूने छोड़ा है क्या...
(शुभम साफ-साफ देख पा रहा था कि उसकी मां की पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी जो कि पहनने लायक बिल्कुल भी नहीं थी वह मुस्कुराता हुआ बोला...)

अब इसमें मेरी क्या गलती है तुम पानी इतना छोड़ती हो....

तुझसे तो भगवान बचाए....( इतना कहकर वो मुस्कुराते हुए जाने लगी लेकिन तभी उसे एकाएक सरला की बात याद आ गई और वह रुक कर बोली)

तुझे कद्दू की सब्जी कब से पसंद आने लगी ..

क्यों क्या हुआ ....?(शुभम अपने पेंट की बटन बंद करता हुआ बोला)

सरला चाची कह रही थी कि तुझे कद्दू की सब्जी बहुत पसंद है और आज तुझे खाने पर बुलाई है।

क्या बात कर रही हो मम्मी सच्ची ...(शुभम चाहते हुए बोला)

बड़ा खुश हो रहा है कुछ और इरादा है क्या... जहां तक मैं जानती हूं कि तुझे कद्दू की सब्जी बिल्कुल भी पसंद नहीं है तो यह एकाएक तेरी फेवरेट सब्जी कैसे बन गई।

मम्मी इसमें बहुत बड़ा राज है।

राज ......कैसा राज .....

मम्मी तुम ही बता रही थी ना कि पड़ोस वाली सरला चाची को हम दोनों पर थोड़ा थोड़ा शक होने लगा है.... (निर्मला अपने बेटे की बात को बड़े ध्यान से सुन रही थी.. और वह अपने बेटे की बात सुनकर जवाब में हां में सिर हिला दी।)
तो मैं उनके इसी शक को दूर करने के लिए उनके छोटे-मोटे काम में मदद करने लगा हूं।ऐसे ही उस दिन में बाजार से लौट रहा था तो सरला चाची को दो थैला उठाकर जाते हुए देखा तो उनकी मदद करने के बहाने में उनसे दोनों थे ना अपने हाथ में लेकर उनकी मदद करने लगा और बाती बाद में मुझे पता चला कि उन्होंने कद्दू भी खरीद रखी है और मेरे मुंह से निकल गया कि मुझे कद्दू की सब्जी बहुत पसंद है और मैं अपने संस्कार का ऐसा असरदिखाया कि वह मेरे से पूरी तरह से इंप्रेस हो गई मैं आए दिन उनका छोटे-मोटे काम में मदद करने लगा और वह उस दिन मुझे प्रॉमिस की थी कि जब भी वह कद्दू की सब्जी बनाएगी तो वह मुझे जरूर बनाएंगी....(निर्मला अभी भी अपनी बेटी की बात को गौर से सुन रही थी. और शुभम तो यही चाहता था कि शरदा चाची का ध्यान उन दोनों पर से हट जाए ताकि उन दोनों को किसी बात का डर ना रहे और उसके मन में सरला चाची और उनकी बहू दोनों को भौं डने का ख्याल मन में चल रहा था...और इस बात की भनक हो अपनी मां को नहीं होने देना चाहता था इसलिए अपनी बात को गोल-गोल घुमा कर समझा रहा था क्योंकि अच्छी तरह से जानता था किसी दल को लेकर उसके साथ कैसा बखेड़ा खड़ा हुआ था इसलिए वह नहीं चाहता था कि इन दोनों को लेकर भी उसकी मां का दिल टूटे और जो खिचड़ी उसने सरला चाची और उसकी बहू को लेकर पकाने की सोच रखा है वह कच्ची ही रह जाए।) और जिस तरह से हमें उनकी इज्जत करता हुआ उनके छोटे-मोटे में काम में मदद कर रहा हूं उसका ही नतीजा है कि आज वह मुझे खाने पर बुला रही है।
देखा मम्मी मैं अपनी बातों के जादू में उनको ऐसा फंसा लूंगा कि वह हम दोनों के ऊपर कभी शक भी नहीं कर पाएंगी की मैं उस तरह का लड़का हूं।

अपने बेटे की यह बात सुनकर निर्मला खुश हो गई क्योंकि वह किसी भी तरह से सरला चाची से पीछा छुड़ाना चाहती थी इसलिए अपने बेटे के गाल पर हल्के से हाथ रखते हुए बोली।

तो बहुत समझदार हो गया है बेटा और अब जल्दी से जा कर तैयार हो जा समय पर चले जाना... इतना कहकर निर्मला बाथरूम की तरफ चली गई हो शुभम उसे जाता हुआ देखता रहा और अपने अगले प्लान के बारे में सोचने लगा....

शुभम काफी खुश नजर आ रहा था आखिरकार निमंत्रण जो मिला था सरला चाची की तरफ से हालांकि उसे कद्दू की सब्जी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी लेकिन सरला और उनकी बहू रुचि के करीब रहने का बहाना जो मिल गया था इसलिए अब उसे कद्दू की सब्जी खाने में कोई दिक्कत नहीं थी। .... वैसे भी निमंत्रण भले भोजन का मिला था लेकिन स्वाद उसे सरला चाची और उसकी बहू रुचि के खूबसूरत बदन का चखना था। उसे कद्दू की सब्जी की महकसे नहीं बल्कि दोनों औरतें के बदन से उठने वाली मादक खुशबू से आनंद लेना था उनकी बेहतरीन जवानी जो कि एक की तो ढलने को थी लेकिन फिर भी कसाव भरी जवानी से भरपूर उसके अंग अंग से टपक रहे मधुर रस का स्वाद किसी जवान औरत से कम नहीं था और दूसरी चौकी जवानी की दहलीज लांघ चुकी थी और अपनी बेहतरीन रुबाब पे थी। ... शुभम के लिए इस समय दोनों औरतें बहुत खूबसूरत और मदहोश कर देने वाली जवानी से भरी हुई थी जिसके नशे में वह अपने आप को भुलाना चाहता था।
शुभम इस तरह की पहली मुलाकात में दोनों को अपने आकर्षण में बांध लेना चाहता था अपने बातों के जादू मेंदोनों को सम्मोहित कर लेना चाहता था जिसमें वह किसी भी प्रकार की कसर बाकी रखना नहीं चाहता था इसलिए वह पूरी तैयारी के साथ जाना चाहता था इसलिए वह बाथरूम में जाकर अच्छे से नहा कर फ्रेश हो गया था और अच्छे कपड़े पहन कर... परफ्यूम का छिड़काव करके हुआ है अपने कमरे से निकल गया....
तैयार होते-होते तकरीबन 8:00 बज चुके थे। वह पड़ोस के घर में पहुंचकर डोर बेल बजाने लगा... दो-तीन बार बार जाने के बाद दरवाजा खुला तो सामने रुचि को देखकर उसका अंग-अंग कसरती अंदाज में अंगड़ाई लेने लगा। शुभम रुचि के खूबसूरत चेहरे को देखा तो देखता ही रह गया एक अजीब सा भोलापन और मदहोश कर देने वाला हर एक अदा रुचि के चेहरे में था। रुचि अच्छी तरह से जानती थी कि इस समय सुभम ही आने वाला है... इसलिए तो उसकी सास ने उसे कद्दू की सब्जी बनाने को बोली थी। शुभम एकटक रुचि कोई देखे जा रहा था जोकि रुचि इस तरह से देखे जाने पर शर्मा गई थी... और शरमाते हुए बोली।

ऐसे क्या देख रहा है ऐसे मत देखा कर मुझे शर्म आ रही है...

मैं देख रहा हूं कि आसमान से चांद उतरकर नीचे जमीन पर आ गया है और आया भी तो आया कहा मेरे पड़ोस में..(शुभम आराम से दरवाजे पर ही दीवार का टेका लेते हुए बड़े ही शांत स्वर में बोला..)

धत्त तू ऐसी बातें मत किया कर कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा...(रुचि उसी तरह से शरमाते हुए बोली)

कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा अरे मैं कौन सा तुम्हें भला बुरा कह रहा हूं मैं तो तुम्हारी तारीफ कर रहा हूं।

मैं जानती हूं कि तू मेरी तारीफ कर रहा है लेकिन इस तरह से तारीफ करने का हक हर किसी को नहीं होता।

तो किसे होता है बताओ? (शुभम रुचि के खूबसूरत चेहरे की तरफ देखते हुए बोला... जहां से उसकी नजर सीधे गर्दन के नीचे दोनों चुचियों के बीच बनी गहरी घाटी की तरफ जा रही थी जो कि बहुत ही मनमोहक लग रही थी...)

मुझे नहीं पता....

मुझे नहीं पता अरे अभी तो तुम कह रही थी कि इस तरह की बातें करने का हक सबको नहीं होता तो किसको होता है वही तो पूछ रहा हूं।


मैं नहीं बताऊंगी.....

बता दो ना भाभी.....

मुझे देर हो रही है मुझे खाना बनाना है इसलिए तो तुझे यहां बुलाए हैं और कहींदेर हो गई तो मम्मी जी ने मुझ पर बिगड़ेगी मुझे खाना बनाने दे....

तो मैंने कहा तुम्हें रोका हूं... एक तो घर बुलाकर अंदर आने को भी नहीं कह रही हो और ऊपर से मुझे ही भला बुरा कह रही हो....

(शुभम की बातें सुनकर रुचि को इस बात का अहसास हुआ कि दोनों अभी तक दरवाजे पर ही खड़े थे और वह उसे अंदर आने के लिए बोली भी नहीं थी इसलिए अपनी गलती का एहसास होते ही वह बोली।)

सॉरी ......सॉरी में भूल ही गई तो बातें ही ऐसी करता है कि मैं सब कुछ भूल जाती हूं.... आप जालंधर आजा मुझे दरवाजा बंद करने दे...
(इतना सुनते ही शुभम घर में प्रवेश करने के लिए अंदर कदम बढ़ाया ... और रूचि दरवाजा बंद कर दी....दरवाजा बंद करने के बाद वह उसे बैठने के लिए बोली लेकिन तभी शुभम बोला...)

चाची नजर नहीं आ रही है कहां है?

वह ऊपर अपने कमरे में है मिलना चाहो तो मिल सकते हो....(इतना कहकर रूचि रसोई घर की तरफ जाने लगी और शुभम कुछ पल वहां खड़े होकर रुचि को जाते हुए देखता रहा और उसकी नजर रुचि की मटकती हुई गोल-गोल कांड पर टिकी हुई थी जो कि कसी हुई साड़ी पहनने की वजह से उसके नितंबों का घेराव साफ-साफ साड़ी के ऊपर झलक रहा था जब वह चल रही थी तो उसके दोनों नेता किसी पानी से भरे गुब्बारे की तरह लहरा रहे थे जिसकी वजह से नितंबों में उठने वाली नहर से शुभम के पजामे में तूफान हिलोरे मारने लगा था।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

रुचि की मटकती हुई गांड के आकर्षण में शुभम पूरी तरह से सम्मोहित हो चुका था। क्योंकि साड़ी के ऊपर से ही देखने पर शुभम ने अंदाजा लगा लिया था कि साड़ी के अंदर उसकी नंगी गांड कितना गदर मचा रही होगी जब वह उसे अपने हाथों से उसके एक-एक वस्त्र उतारकर जब उसकी मत मस्त गांड को देखेगा तो उसकी खूबसूरत गोल गोल गांड उसके दिल पर छुरिया चलाएंगी...वह मन ही मन उस पल का इंतजार करने लगा जब वह अपने हाथों से रूचि के कपड़े उतार कर उसे नंगी करेगा वह मन में ठान लिया था कि जब कातिल इतना हुस्नो दार हो तो उसके हाथों से क़त्ल होने में कोई हर्ज नहीं है....

रुचि रसोई घर में चली गई थी और रूचि के बचाए अनुसार वह सीढ़ियों से ऊपर की तरफ जाने लगा हुआ सरना चाची से मिलना चाहता था कुछ दिनों में सरला चाची से उसका लगाव कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था आए दिन उससे मुलाकात हो ही जाती थी ..और सरला चाची जिस तरह से एकदम खुले मन से उससे बात करती थी शुभम को लगने लगा था कि उसका साथ उसे भी अच्छा लगने लगा है जो कि यह बात एकदम हकीकत थी क्योंकि शुभम को उसकी नजरें अब हमेशा ढूंढती रहती थी...
सीढ़ियों से चढ़कर शुभम ऊपर आ चुका था और वह सरला चाची के कमरे को ढूंढ रहा था ऊपर तीन कमरे बने हुए थे... वह धीरे-धीरे हर एक कमरे की तरफ आगे बढ़ रहा था... कमरे के पास पहुंच कर उसे इतना तो पता चली जा रहा था कि कमरे के अंदर कोई नहीं है क्योंकि दरवाजे के नीचे बिल्कुल भी रोशनी नहीं थी।.... लेकिन तीसरे कमरे के दरवाजे के नीचे से हल्की हल्की रोशनी आ रही थी शुभम को समझते देर नहीं लगी कि सरला चाची तीसरे कमरे में ही है... शुभम जैसे ही तीसरे कमरे के करीब पहुंचा तो देखा कि दरवाजा हल्का खुला हुआ था। दरवाजा खुला देखते ही शुभम के तन बदन में उत्सुकता बढ़ने लगी उसे ना जाने क्यों ऐसा एहसास होने लगा कि कमरे के अंदर जरूर कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जिससे उसके तन बदन को गर्मी और आंखों को राहत मिलेगी.... क्योंकि ऐसे ही हल्का खुले दरवाजे की ओर से वह कमरे में जाकर अपनी खूबसूरत मां की खूबसूरत नंगे बदन के दर्शन कर चुका था वही सोच करवा धीरे से दरवाजे को थोड़ा और खोलने के लिए हाथ बढ़ाया और जैसे ही थोड़ा सा और दरवाजा खोला तो अंदर का नजारा देखकर उसकी आंखें चौंधिया गई.... उसका मुंह खुला का खुला रह गया उसकी उत्सुकता उत्तेजना में बढ़ गई उसे मन में हिसाब तो हो रहा था कि अंदर जरूर उसे कुछ देखने को मिलेगा लेकिन उम्मीद से दोगुना देखने को मिलेगा इस बात की उम्मीद उसे बिल्कुल भी नहीं थी.... उसके दिल की धड़कन जोरों से धड़क रही थी सांसो की गति एकदम तेज हो गई वह कर भी क्या सकता था उसकी आंखों के सामने नजारा ही कुछ ऐसा था। सरला चाची की नंगी चिकनी मलाई जैसी गोरी पीठ दरवाजे की तरफ थी जिस पर नजर पड़ते ही शुभम की उत्तेजना बढ़ने लगी थी उनके बदन पर केवल पेटिकोट भर् थी.... सरला की नंगी चिकनी पीठ देखकर ही शुभम के लंड में तनाव आना शुरू हो गया था। बाल खुले हुए थे जो कि इस समय एकदम गीले थे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अभी अभी नहा कर आई हो।
सरला चाची की अर्ध नग्न बदन को देखकर शुभम को ऐसा ही लग रहा था कि उसकी आंखों के सामने कोई कामदेवी खड़ी हो और सरला चाची के बदन का पीछे का भाग बहुत ही खूबसूरत लग रहा था इस उम्र के पड़ाव पर भी सरला चाची के बदन का कसाव लगभग लगभग बरकरार था। कमर से पेटीकोट कस के बाद ही होने की वजह से पेटीकोट की दूरी कमर में जैसे हल्का सा अंदर की तरफ धंस गई हो और उसकी वजह से पेटीकोट की डोरी के इर्द-गिर्द हल्का सा बदन का उठाव बदन को और ज्यादा मोहक बना रहा था.... शुभम का दिल जोरों से धड़क रहा था वह अलमारी में कुछ ढूंढ रही थी। उसका वहां ज्यादा देर तक खड़ा रहना उचित नहीं था लेकिन उसे सरला चाची के बदन का और ज्यादा हिस्सा देखने का मन कर रहा था... बदन पर केवल पेटिकोट पहने होने की वजह से शुभम अच्छी तरह से जानता था कि कमर के ऊपर का पूरा बदन निर्वस्त्र था जिससे उसकी चूची भी एकदम नंगी थी और वह उसे देखने के लिए आह भर रहा था...
सरला इस बात से बेखबर कि उसे अर्धनग्न अवस्था में दरवाजे पर खड़े होकर शुभम उसकी खूबसूरती के जाम को अपनी आंखों से पी रहा है वह अपने आप में ही खोए हुए अलमारी में से ब्रॉ ढुंढ रही थी।
वैसे तो काफी अरसा गुजर गया था सरला को ब्रा और पेंटी पहने लेकिन जिस दिन से शुभम ने उसकी खूबसूरती की तारीफ किया था तब से उसकी इच्छा ब्रा पेंटी पहनने के लिए करने लगी थी और वह उसे पहनना शुरू भी कर दी थी क्योंकि वह आईने के सामने नंगी होकर अपने बदन को निहारती रहती थी और अपनी चुचियों के कसाव को बरकरार रखने के लिए वह समझ गई थी कि उसे ब्रा पहनना बहुत जरूरी है वरना उसकी चूची दूसरी औरतों की तरह लटक जाएगी क्योंकि शीसे मैं से जिस तरह की खूबसूरती से भरे बदन को उसने अपनी आंखों से देखी थी तब से उसके मन की भी इच्छा अपने बदन की रखरखाव करने के लिए बढ़ने लगी थी।
इसलिए तोबा अलमारी में से ब्रा ढूंढ रही थी अब शुभम के लिए वहां ज्यादा देर तक खड़ा रहना ठीक नहीं था लेकिन उसके मन में सरला की बड़ी-बड़ी चुचियों को देखने की प्यास बढ़ती जा रही थी लेकिन कैसे देखना है यह उसे पता नहीं था क्योंकि इस तरह से कमरे के अंदर जाने में भलाई नहीं थी... और वहां खड़े रहकर सरला के घूमने का इंतजार करना बेवकूफी भरा था क्योंकि इससे सरला को शक हो सकता था कि वह काफी देर से दरवाजे पर खड़े होकर उसके नंगे बदन को देख रहा था जिससे हो सकता है सरला को यह बात खराब लगी ऐसा सोचकर शुभम कुछ तरकीब सोचने लगा और वापस अपने कदम को कमरे से बाहर कर लिया... कमरे से बाहर कदम खींचे अभी उसे 4 - 5 सेकंड का ही वक्त गुजरा था कि .. वह बिना वक्त गांव आए झटके से दरवाजे को खोलता हुआ अंदर आते हुए आवाज लगाया....

सरला चाची कहां हो.... मैं तुम्हारा कब से.....(इतना कहने के साथ ही सामने का नजारा देखकर शुभम के शब्द उसके गले में ही अटके रह गए... क्योंकि इस तरह से दरवाजा खुलने की वजह से सरला को इस बात का एहसास बिल्कुल भी नहीं हुआ कि दरवाजे पर शुभम है वह सोचा कि उसकी बहू रुचि ने दरवाजा खोला है इसलिए वह बिना सोचे समझे शुभम की तरफ घूम गई लेकिन सामने शुभम को कमरे में आता देखकर वह एकदम से चौंक गई...शुभम तो जानबूझकर चौक ने का नाटक कर रहा था क्योंकि यह उसकी युक्ति ही थी इस तरह से कमरे में प्रवेश करने की वजह जताना चाहता था कि वह कमरे में अनजाने में ही आया है जानबूझकर कुछ भी नहीं किया है इसलिए वह चौक ने का नाटक करने लगा लेकिन सरला तो वास्तव में चौक गई थी वजह से ही शुभम की तरफ घूमी थी उसकी नंगी चूचियां अपनी मदहोश जवानी का प्रदर्शन करते हुए शुभम की आंखों के सामने पानी भरे गुब्बारे की तरह लहराने लगी और उन्हें एकटक देखकर शुभम की आंखों में चमक आ गई उसकी आंखों में खुमारी जाने लगी उसे उम्मीद नहीं थी कि सरला चाची की चूचियां इतनी खूबसूरत होंगी... वह एकटक सरला चाची की गोल-गोल खरबूजे जैसी चूचियों को देखता ही रह गया जैसा उसने सोचा था कि सरला चाची की चुचियों में कसाव नहीं होगा ऐसा बिल्कुल भी नहीं था वह तो सरला चाची की चूचियों को देखा तो देखता ही रह गया लगभग लगभग सरला चाची की चूचियां उसकी मां की चुचियों जैसी जी हुबहू नजर आ रही थी बस थोड़ा सा फर्क था कि उसकी मां की चुचियों का कसाव कुछ ज्यादा ही था। लेकिन फिर भी सरला चाची की चूचियां किसी से कम नहीं थी एक बहू वाली होने के बावजूद भी सरला चाची कहीं से भी नहीं लगती थी कि वह सांस बन चुकी है... शुभम तो बस प्यासी नजरों से एक अटक सरला की भरपूर छातियों को देखे जा रहा था और सरला भी उसकी तरफ घूम कर अनजाने में ही अपनी मदमस्त चूचियों के दर्शन उसे करा रही थी ...दरअसल यह सब इतनी जल्दी हुआ कि सरला यह बात भूल गई की कमर के ऊपर उसने किसी भी प्रकार के वस्त्र नहीं पहने हुए हैं और उसकी चुचियां एकदम नंगी है। सरला भी कुछ सेकंड तक अपनी चुचियों को ढकने की जगह शुभम को ही देखती रह गई क्योंकि उसे भी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि कमरे में इस तरह से शुभम आ जाएगा.... लेकिन जब इस बात का एहसास सरला को हुआ कि उसकी आंखों के सामने एक गैर मर्द शुभम अब एक भरपूर जवानी से भरा हुआ मर्द ही था।जो कि उसकी चूचियों की तरफ देख रहा था इस बात का अहसास होते ही सरला के मुख से हल्की सी चीख निकल गई....
आअअअअअअअअ....... (इस तरह की चीख निकलने के साथ ही वह बिस्तर पर पड़ी टावेल को पकड़कर अपनी चुचियों को ढकने की कोशिश करने लगी लेकिन हड़बड़ाहट में उसके हाथ से टावल छुट कर नीचे गिर गई..टावल नीचे गिरने की वजह से वह अपने अंगों को ना छुपा पाने के कारण पूरी तरह से घबरा गई थी... और शुभम इतना डिठ हो चुका था किवह अपने मन में निश्चय कर लिया था कि जब तक सरला अपनी चुचियों को उसकी आंखों से नहीं दूर करेगी तब तक वह उसे जी भर कर देखता रहेगा...
और हड़बड़ाहट में कुछ हाथ ना आता देखकर सरला अपने दोनों हथेलियों में अपनी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चुचियों को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगी अब शुभम की बारी थी वह एकदम से चौंक ने का नाटक करते हुए बोला...

सससससस..... सॉरी सॉरी सॉरी सॉरी चाची सॉरी (इतना कहते हुए वह दरवाजे की तरफ घूम गया...लेकिन तब तक उसने सरला चाची की मदहोश जवानी के दोनों उड़ते हुए कबूतरों को देख लिया था शुभम अपने मन की कर लिया था।)
मुझे माफ करना चाची मुझे नहीं मालूम था कि आप ..... आप इस तरह से कमरे में होंगी मैं तो आपको ढूंढता ढूंढता यहां तक आ गया था मुझे मालूम नहीं था चाची मुझे माफ करना....(इतना कहते हुए वह जानबूझकर फिर से सरला की तरफ घुमा तो सरला की मासूमियत और जिस तरह से उसने अपनी दोनों हथेलियों में अपने दोनों खरबूजे को छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए खड़ी थी उसे देखकर वह पूरी तरह से उत्तेजित हो गया और एक बार फिर से छूटने का नाटक करता हुआ फिर से दरवाजे की तरफ घूम गया और बोला...)

मुझे माफ करना चाहिए मुझे नहीं मालूम था।
(माफी मांगते हुए शुभम अपनी सभ्यता का परिचय दे रहा था जो कि वह लगभग सरला के दिलों दिमाग पर अपनी चालबाजी का मस्का लगा रहा था और उस मस्के का असर सरला पर बखूबी हो भी रहा था लेकिन जब दुबारा शुभम उसकी तरफ घुमा था तब सरला की नजर उसकी टांगों के बीच पेंट में बने तंबू की तरफ चली गई थी और उसे इस बात का अंदाजा लग गया था कि शुभम का लंड खड़ा हो रहा था...
शुभम के पेंट में बने तंबू को देखकर उसे इस बात का एहसास हो गया कि शुभम का लंड खड़ा हो गया था और इस बात को जानते हैं ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके दिल की धड़कने बढ़ने लगी हो उसके होश उड़ने लगे थे। वह शुभम से कुछ ज्यादा नहीं कह पाई बस उसे इतना कहीं....

कोई बात नहीं सुभम तुम जाओ मैं तैयार होकर आती हूं..
(इतना सुनकर वह सरला की तरफ देखे बिना ही जानबूझकर एक बार फिर सॉरी कहते हुए कमरे से बाहर चला गया उसका काम बन चुका था वह मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसकी आंखों के सामने जिस तरह का नजारा पैसा आया था उसे देखकर उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था उसकी आंखों ने उम्मीद से दुगुना नजारे का दर्शन जो कर लिया था सरला चाची की मदहोश जवानी के सबूत उसके दोनों फड़फड़ाते हुए कबूतर थे .... जोकि चिल्ला चिल्ला के कह रहे थे कि अभी भी वह जवान है...
शुभम अपनी उत्सुकता को उत्तेजना में बदल कर वापस सीढ़ियों से नीचे उतर गया...

सरला इस पल को लेकर काफी उत्साहित नजर आ रही थी वह मंद मंद मुस्कुराने लगी अभी भी वह अपने दोनों हथेलियों से अपनी दोनों चुचियों को छुपाए हुए थे उसे इस बात का एहसास तक नहीं हुआ कि शुभम वापस चला गया है वह काफी खुश नजर आ रही थी इसका एक कारण था कि उसकी आंखों ने शुभम के पेंट में बने तंबू को देख ली थी जो कि इस बात का प्रतीक था कि उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था और वह सिर्फ उसकी मदहोश कर देने वाली सूचियों की वजह से था जिसे सुबह एक टक तक खा जाने वाली प्यासी नजरों से देख रहा था इस बात से वह काफी खुश नजर आ रही थी क्योंकि उसे लगने लगा था कि अभी भी उसकी मदहोश जवानी और उसका खूबसूरत बदन किसी के भी सोए हुए लंड को जगाने में सक्षम है।
उसे इस बात की पूरी तरह से तसल्ली हो गई थी कि उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां देकर शुभम का लंड खड़ा हो गया था वह एक बार फिर से आईने में अपने आप को देखने लगी और उसे अपनी चुचियों पर गर्व होने लगा ....खामखा वह एक नीरस जिंदगी जी रही थी जो कि शुभम की वजह से बदलने लगी थी और आज वह शुभम को खाने पर निमंत्रण देकर अच्छे से तैयार होना चाहती थी ताकि वह उसकी खूबसूरती की तारीफ और अच्छे से कर सके।
उसका शुभम को घर पर खाने पर बुलाना लगभग लगभग सफल होता नजर आ रहा था कुछ इस तरह की खूबसूरती के दर्शन उसे कराना चाहती थी अनजाने में उससे कई ज्यादा वह अपने बदन की खूबसूरती का प्रदर्शन कर चुकी थी।
और उसके बदन की खूबसूरती का प्रदर्शन का जादू शुभम के ऊपर पूरी तरह से हो गया इस बात की तसल्ली उसे इस बात से मिल चुकी थी कि कमरे में आकर शुभम का लंड खड़ा हो गया था एक जवान होता लड़का जब उसकी बड़ी-बड़ी चुचियों को देखा कर उत्तेजित हो सकता है तो वह उसके साथ क्या क्या कर सकता है। इस बात का ख्याल उसे अनजाने में ही आ गया था और अपने इस बात पर गौर करके उसे अपने आप पर शर्म भी आ रहे थे कि वह यह कैसी बातें सोचने लगी शुभम उसके बेटे की उम्र का है भले ही छोटा क्यों ना हो वह उसको लेकर इतना ज्यादा उत्तेजित क्यों है उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन उसे संपूर्ण संतुष्टि का अहसास हुआ था और वह खुश होकर फिर से अलमारी खंगालने लगी थी वह अपनी पसंदीदा ब्रा पहनना चाहती थी।

और दूसरी तरफ सरला चाची के कमरे से निकलकर सीढ़ियों से नीचे जाकर सीधा वह रुचि से मिलने के लिए रसोई घर में चला गया...
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