वासना का भंवर

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Re: वासना का भंवर

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उस रात ज्योति अपने कमरे में लौट तो आयी पर अब वो बदली हुई ज्योति थी। वो डॉली के बग़ल में लेटकर उन लम्हों में खो गयी जो वो राज के संग बिताकर आयी थी। चाची से मिलने के बाद तो अब उसे किसी भी बात का गिल्ट नहीं था। वो बस बिस्तर पर करवट लेकर उन यादों को दोबारा जीने की कोशिश कर रही थी। वो इमैजिन कर पा रही थी कि डॉली को किस लेवल का सुख मिलने वाला था। उसने पलटकर डॉली को देखा। उसके मन में अब अजीब से विचार आने लगे थे। डॉली की शादी को अभी एक दिन बाक़ी था। अब वो उससे पहले राज को एक बार और पाना चाहती थी और ये थी एक ख़तरनाक खेल की शुरूआत।
उधर राज अपने कमरे में परेशान था उसे नींद नहीं आ रही थी। वो रह-रहकर घड़ी को देख रहा था कि कब सुबह होगी और ज्योति ये बात सबको बता देगी और फिर जो होगा? बस अपने मन में एक डर बिठा लिया था उसने। बस मन ही मन भगवान से प्राथना कर रहा था के कुछ भी करके इस मुसीबत से बाहर निकाल दे कि अचानक उसके फ़ोन
पर एक मैसेज आया। नाम था ज्योति शर्मा। वो डर गया के न जाने ज्योति ने क्या लिखा होगा। उसने डरते-डरते मैसेज खोला उसमें ज्योति ने लिखा था-
"हाय! कैसे हो जीजू?' राज तो इतना घबरा गया था कि उसने एक लम्बा-सा मैसेज टाइप कर डाला-
"ज्योति देखो जो हुआ सब अनजाने में हुआ। मैंने बहुत पी रक्खी थी। हो सके तो इस बात को भुला दो!" ज्योति ने जब राज का ये मैसेज देखा तो वो समझ गयी कि राज अंदर से डरपोक है। उसके साथ अब खेला जा सकता है उसने जवाब में लिखा
"अगर न भूलाऊँ तो?" राज ने जवाब दिया-
"प्लीज़ तुम जो कहोगी मैं वही करूँगा!"
ज्योति- "ठीक है तो इसी वक़्त मुझे वहीं आकर मिलो... उसी कमरे में.."
राज- "दिमाग़ ख़राब हो गया है तुम्हारा.. मैं तुम्हें बात को ख़त्म करने को कह रहा हूँ और तुम बात को बढ़ा रही हो.."
ज्योति- "आते हो या फिर इस बात को नाश्ते के समय सुबह वायरल कर दूँ? मर्ज़ी तुम्हारी है... राज बाबू.. अभी मिलना है अकेले में या फिर सुबह नाश्ते पे सबके बीच!" राज के पसीने छूट रहे थे। वो समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर ज्योति चाहती क्या है। उसने काँपते हाथों से टाइप किया-
"ठीक है मैं आता हूँ!" ज्योति ने मुस्कुराकर फ़ोन बंद किया वो ख़ुश थी कि अब राज उसकी मट्ठी में है। वो डॉली को देखकर मुस्कुरायी जो गहरी नींद में सो रही थी। उसके माथे पर हाथ रखकर कहा-
"थैंक्स डॉली तुम्हारी शादी पे तोहफ़ा तो मुझे तुम्हें देना चाहिए था पर मुझे ये तोहफ़ा मिल गया.. तुमसे.."
ज्योति अब बदल चुकी थी। वो अब इस खेल को खुल के खेलने के लिए तैयार थी। वो चुपचाप दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली गयी। उसने देखा सब थक के सो रहे थे। दीवार पर लगी घड़ी में रात के २ बज रहे थे। दबे क़दमों से वो बाहर निकल गयी। अब पूरे बारातघर में सन्नाटा छाया हुआ था। ज्योति चुपचाप उस कमरे में पहुँच गयी जहाँ दहेज़ का सामान पड़ा था। अंदर पहुँचते ही ज्योति ने देखा राज उससे पहले पहुँच चुका था। ज्योति ने अंदर आते ही दरवाज़ा बंद कर दिया। ज्योति को देखते ही राज उसके पाँव में गिर गया-
"ज्योति प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो... मैं सच कहता हूँ ऐसा दोबारा नहीं होगा!" ज्योति राज की ये मजबूरी देख अंदर ही अंदर ख़ुश हो रही थी। उसने राज के मज़बूत काँधे पकड़कर उसे सीधा खड़ा किया। राज अभी भी माफ़ी माँगने की मुद्रा में था।
ज्योति- "बस मिस्टर राज अब घबराना बंद करो और मुझे बाबूराव के दर्शन करवायो.."
राज- "बाबूराव? कौन बाबूराव? मैं समझा नहीं!" ज्योति ने उसके काँधे पर अपना हाथ घुमाते हुए उसकी शर्ट के बटन खोलते हुए कहा-
"शर्ट उतरिये.." राज के पास ज्योति की बात मानने के सिवाए कोई चारा नहीं था। उसने अपनी शर्ट उतर दी। ज्योति अब अपने हाथ उसकी छाती पर फेरने लगी थी।
ज्योति- "जिम जाते हो लगता है?"
राज- "हाँ.. रेगुलर.." ज्योति अब उसके सामने सोफे पर पाँव रखकर बैठ गयी।
ज्योति- "चलो पायजामा उतारो.." इतना सुन राज घबरा गया। पर ज्योति की नज़रों में उसे एक हुकुम दिखायी दे रहा था। राज ने वैसा ही किया। ज्योति ने देखा के पायजामे के नीचे राज ने भूरे रंग का वी शेप जाँघिया पहना हुआ था।
ज्योति- "लगता है आपको भूरा रंग बहुत पसंद है.." कहते हुए उसने उसके जाँघिये पर अपना हाथ हल्का-हल्का घुमना शुरू कर दिया। राज हैरान था कि ज्योति क्या कर रही है और ज्योति ने महसूस किया कि उसके जाँघिये में हरकत शुरू हो गयी। उसने मुस्कुराते हुए कहा-
"बाबूराव जाग रहा है.. पहचान नहीं करवायोगे इनसे हमारी? " ज्योति की तीखी मुस्कराहट देख राज समझ गया था कि ज्योति बाबूराव किसे कह रही थी। ज्योति एक दम पीछे हटी। उसने राज के जाँघिये की तरफ़ इशारा करते हुए कहा
"अब इसे भी उतार दो होने वाले...जीजा जी.."
राज- " मैं तुम्हारे सामने कैसे?" ज्योति ने एक धमकी भरे स्वर में कहा, "क्यों पीछे से ही सब करना जानते हो? सामने से शर्म आ रही है? उतारो जल्दी!"
राज ने डरते-डरते अपना जाँघिया नीचे खिसका दिया। राज के गुप्त अंग को देख ज्योति की ऑंखें फटी की फटी रह गयीं। उसने किसी लड़के के गुप्त अंग को इतनी क़रीब से कभी नहीं देखा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई चिड़िया पेड़ से लटक कर अपने घोंसले में सो रही है। ज्योति उसे महसूस करना चाहती थी उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए राज से इजाज़त माँगी-
ज्योति- "छु लूँ?" राज जानता था कि अगर वो मना भी करेगा तो भी ज्योति मानने वाली नहीं उसने अपना चेहरा घूमा लिया और ज्योति ने हाथ आगे बढ़ाकर उसके गुप्त अंग को छू लिया जो फ़िलहाल नीचे की तरफ़ झुका हुआ था। ज्योति उसे ऐसे प्यार करने लगी जैसे कोई किसी पालतू जानवर को पुचकारता है। ज्योति ने महसूस किया जैसे-जैसे उसके हाथ राज के अंग पर चल रहे थे उसमें हरकत हो रही थी। मानो वो जाग रहा हो। अचानक ज्योति ने पाया कि राज का वो अंग अब धीरे-धीरे सीधा होकर ज्योति को देखने लगा था। ज्योति के लिए ये एक अद्भुत अनुभव था। उसके चेहरे की रौनक़ बता रही थी कि उसे यक़ीन ही
नहीं था कि उसके छूने से किसी का गुप्त अंग ऐसे हरकत करने लगेगा। किसी नन्हे बच्चे की तरह उत्साहित को कर बोली-
"देखो राज.. बहुत जल्दी पहचान हो गयी तुम्हारे बाबूराव से..." अब वो अपने हाथ को ऊपर नीचे करके उसे और सहलाने लगी और कुछ ही पल में राज का वो अंग छोटे हाथी की सूंड की तरह चिंघाड़ रहा था, मानो ज्योति को सलामी दे रहा हो। पर राज को ये सब बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।
राज- "क्यों कर रही हो तुम ये सब ज्योति? कम से कम हमारे रिश्ते का तो लिहाज़ तो करो!" ज्योति ने उसके लिंग को अपनी मट्ठी में दबोचते हुए कहा-
"यही सवाल मैंने तुमसे पूछा था, तुमने किया था लिहाज़? मैं रोयी, चिल्लायी पर तुमने इस रिश्ते का फ़ायदा उठाया! तो अब मैं इस खेल को तुम्हारे ही अंदाज़ में खेलना चाहती हूँ तो प्रॉब्लम क्या है तुम्हें?" ज्योति ने देखा कि राज के पास इस बात का जवाब नहीं था। कहते हुए ज्योति राज की कमर के पास झुक गयी अब राज का बाबूराव उसकी मट्ठी में था। जो अब इतना सख़्त और आकार में बड़ा हो चुका था कि ज्योति की मट्ठी भी उसके लिए छोटी पड़ रही थी।
राज ज्योति के इस पागलपन से परेशान हो रहा था पर उसके पास ज्योति की इस दीवानगी को सहने के सिवाए कोई चारा नहीं था कि ज्योति एक दम खड़ी हुई उसने धीरे-धीरे राज के सामने अपनी चोली के बटन खोलने शुरू कर दिये। राज ने नज़रें फेर लीं। ज्योति ने उसका चेहरा अपनी ओर करते हुए कहा-
"ये सब आपके लिए ही तो कर रही हूँ जीजा जी देखो.." कहते हुए उसने अपने ब्लाउज़ के सारे बटन खोल डाले। राज ने देखा कि उसने काले रंग की ब्रा पहनी हुई है जो उसके गोरे बदन को और निखार रही थी। ज्योति ने अपना हाथ पीठ पर ले जाकर एक ही झटके में ब्रा का हुक खोल डाला और काँधे से स्ट्रिप हटाते हुए ब्रा को नीचे गिरा दिया। राज देखकर स्तब्ध रह गया ज्योति के वक्ष छोटे-छोटे से थे परन्तु एक दम तने हुए थे। मानो अभी-अभी उन पर जवानी आयी थी। न कोई दाग़ न ही कोई सिलवट और गुलाबी रंग के वक्ष कांता। ज्योति अब राज की नज़रें पढ़ रही थी। वो जान गयी थी कि राज उसके चंगुल में फँस चुका है। वो एक पॉंव रखकर सोफे पे चढ़ गयी जिससे उसके वक्ष राज के चेहरे के पास आ जायें। उसने अपने दोनों वक्ष हाथ में लिये और अपने वक्ष बिन्दुओं राज के होंटों पर घूमाने लगी और कुछ ही पल में राज ने अपने होंट खोल दिये और उसकी ज़ुबाँ बाहर आकर लार टपकाने लगी थी। ज्योति एकदम नीचे उतर गयी और एक ही झटके में बाबूराव को ज़ोर से दबोच लिया। राज सिहर उठा।
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ज्योति- "अब बोलो हमसे दोस्ती होगी इसकी?" राज ने दर्द से करहाते हुए कहा-
"हाँ! पर इसकी क़ीमत बहुत बड़ी है ज्योति। कल मेरी तुम्हारी बहन से शादी है!"
ज्योति- "उसकी चिंता तुम मत करो जीजू.. पति तुम डॉली के ही रहोगे.. बस मुझे तो बाबूराव से थोड़ी-सी दोस्ती चाहिए।" राज अब सबकुछ भुलाकर ज्योति के जाल में फँस चुका था। उसने देखा ज्योति ने अपनी बाज़ू राज के काँधे पे डाल दी थीं। राज से अब रुका नहीं जा रहा था, उसने अपना हाथ बढ़ाकर ज्योति की पीठ को दबोचना शुरू कर दिया और अपने होंटों के रस से ज्योति के वक्षों को नहलाने लगा। खिलाड़ी था राज, वो जानता था कि लड़की के किस अंग पर क्या क्रिया करने से उत्तेजना बढ़ती है। ज्योति ने अब अपने बदन को ढील देते हुए उसे राज के हवाले कर दिया। राज ने ज्योति को गोद में उठाया और वहाँ सोफे पर लेटा दिया। ज्योति भी अब तैयार थी। राज ने पूछा-
"अब बाबूराव के लिए क्या हुकुम है?" ज्योति ने मुस्कुराते हुए कहा-
"बोलो खुल जा चुनमुनियाँ.." राज को अब ज्योति का ये अंदाज़ अच्छा लग रहा था उसने भी कहा-
"खुल जा चुनमुनियाँ.." और ज्योति ने अपनी टाँगे फैलाकर राज के लिए चुनमुनियाँ के द्वार खोल दिये और राज ने भी एक ही झटके में बाबूराव को चुनमुनियाँ के द्वार में प्रवेश करवा दिया। ज्योति को अद्भुत सुख की प्राप्ति हो रही थी। उसने अपने सारे नाख़ून राज की पीठ में गाड़ दिये।
राज का डर अब जा चुका था। अपनी साली के साथ संग करने की उत्तेजना ही अलग थी। अब वो दोनों स्वयं को भोग रहे थे। और कुछ ही पल बाद दोनों ने उस अद्भुत विस्फोट को अपने भीतर महसूस किया। जिसे चरम सुख कहते हैं। ज्योति राज पदार्थ को अपने भीतर महसूस करते ही राज को एक पल के लिए कसकर जकड़ लिया। एक पल का सन्नाटा था। अचानक ज्योति ने टाइम देखा सुबह के तीन बजने वाले थे। उसने जल्दी से अपने कपड़े पहने।
"कल मिलते हैं... " कहते हुए निकल गयी। राज हैरान था कि कल? फिर से यही करना पड़ेगा क्या? पर जो भी हुआ राज को राहत ही नहीं ख़ुशी भी देकर गया था। कपड़े पहनते हुए वो मुस्कुराकर मन में यही सोच रहा था कि सुना था साली आधी घरवाली होती है, पर उसने तो महसूस कर लिया था उसे ऐसा लग रहा था कि अब उसके दोनों हाथों में लड्डू हैं, पर वो ये नहीं जानता था कि ये लड्डू कितने ज़हरीले होने वाले थे।
अगले दिन बारात घर शादी के मण्डप से सज चुका था। राज बहुत ख़ुश था उसके दिमाग़ पे कोई टेंशन नहीं थी। बारात वहीं से चलकर, एक चक्कर लगाकर वापस वहीं आ गयी। ख़ूब नाचे घोड़ी के आगे लड़के वाले और राज भी घोड़ी पे बैठा-बैठा नाच रहा था। शादी से ज़्यादा उसे डॉली और ज्योति दोनों को एक साथ पाने की ख़ुशी थी।
शादी की रस्में विधिपूर्वक हुईं। ज्योति हर रस्म में डॉली के साथ ही चिपकी रही और राज ने भी ऐतराज़ नहीं किया। सभी ख़ुश थे। शादी अच्छे से निपट गयी थी। जैसे-जैसे विदाई का वक़्त नज़दीक आ रहा था, राज की चिंता बढ़ रही थी। वो नहीं जानता था कि ज्योति का अब अगला क़दम क्या होगा!
विदाई भी बारात घर के आहाते में ही होनी थी। बस सबको इंतज़ार था कि दुल्हन कपड़े बदलकर आ जाये। उधर राज दुल्हन की विदाई करवाने का इंतज़ार कर रहा था कि ज्योति ने देखा कि राज अकेला है, उसने मौक़े का फ़ायदा उठाया और उसके पास जाकर बैठ गयी।
"कैसा महसूस कर रहे हैं जीजा जी?"
राज- "समझा नहीं.. मतलब जैसा एक दूल्हा महसूस करता है.."
"नहीं आज तो सुहागरात है न आपकी?" फब्ती कसते हुए ज्योति ने कहा। राज समझ गया था कि ज्योति के दिमाग़ में कोई तो ख़ुराफ़ात चल रही थी।
"हाँ शादी के बाद तो सुहागरात ही होती है.."
ज्योति- "क्या करोगे सुहागरात में "
राज ने हिचकिचाते हुए कहा " मतलब .. क्या है तुम्हारा? .. क्या करूँगा?"
ज्योति- "सेक्स! आप कहने से शर्मा रहे हैं.. पर कहना यही चाह रहे थे है ना? है ना?" कहते हुए ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी। राज ने दबी आवाज़ में कहा- "क्या कर रही हो लोग देख रहे हैं!"
ज्योति- "हाँ तो यही समझ रहे होंगे कि जीजा साली में मज़ाक़ चल रहा है.. हाँ तो मैं पूछ रही थी सुहागरात में क्या करोगे?" राज समझ गया था कि ज्योति वही जवाब सुनना चाहती है जो वो चाहती थी। राज ने ज्योति को टालने के लिए दबी आवाज़ में उससे कहा- "हाँ सेक्स!!"
"पर डॉली के साथ नहीं मेरे साथ!" कहते हुए वो मुस्कुराकर राज को देखने लगी मानो अपनी हँसी में वो भरी बिरादरी के बीच उसे हुकुम दे रही थी जो राज के लिए धमकी जैसा था। ज्योति ने राज की आँखों में डर देखते हुए कहा-
"डरो नहीं मैं आपको मैसेज करके बताऊँगी कि कहाँ आना है.. बस आप डॉली दीदी के नज़दीक मत जाना, कोई भी बहाना बना देना...मेरे लिए मेरे बाबूराव को सँभालकर रखना.." कहकर हँसते हुए वहाँ से निकल गयी। राज को अब लगने लगा था कि ज्योति का ये खेल ख़तरनाक मोड़ ले रहा है कि ज्योति की मम्मी ने आवाज़ लगायी-
"कोई डॉली को लेकर आयो डोली का वक़्त हो गया है.." ज्योति ने झट से कहा- "मैं लेकर आती हूँ।" उसने मुड़कर एक बार राज को देखा मानो एक रिमाइंडर था उसके लिए कि रात को उसे क्या करना है।
उधर कमरे में डॉली दुल्हन बनी अपनी विदाई का इंतज़ार कर रही थी। उसे रह-रहकर नींद आ रही थी कि उसकी एक सहेली ने उसे छेड़ते हुए कहा-
"अभी से नींद आ रही है?.. अभी तो राज ने तुझे रात भर जगाना है.." उस सहेली की बातें सुनकर डॉली की सभी सहेलियाँ हँस दीं। राज का स्मरण कर डॉली भी मन ही मन शर्मा गयी थी कि इतने में ज्योति दनदनाती हुई अंदर आ गयी।
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"चलो-चलो सब बाहर निकलो मुझे डॉली दीदी से अकेले में बात करनी है।" सभी सहलियों के बाहर जाते ही ज्योति ने दरवाज़ा बंद कर लिया। इतना देख डॉली एक दम ज्योति के गले लग गयी-
ज्योति- "क्या हुआ?"
डॉली- "बहुत डर लग रहा है ज्योति .."
ज्योति- "कैसा डर?"
डॉली- "पता नहीं आज क्या होगा.. अब ऐसा लग रहा है काश कल तेरी बात मान ली होती तो आज ये डर निकल गया होता.. बे मतलब दारू पीकर लुढ़क गयी।" ज्योति ने कुछ सोचते हुए कहा, "कोई बात नहीं अब पूरी ज़िन्दगी वही तो करना है।"
डॉली- "यार तू समझ नहीं रही आयी ऍम वर्जिन!"
ज्योति- "हाँ तो कोई जुर्म थोड़े न है? हर लड़की वर्जिन होती है और ये तो वो परीक्षा है जिसे देने में डर बेशक लगता है पर पास होने की पूरी गारंटी होती है।"
डॉली- "हाँ तू तो ऐसे कह रही है जैसे तुझे बड़ा एक्स्पीरिंस है... दिल डर रहा है राज कैसा होगा? वो मुझसे क्या बात करेगा... देख मुझसे तो पहले-पहल नहीं होगी.. तू बता ना नेट पे देखकर मुझे क्या करना चाहिए.."
ज्योति- "डॉली तू न बे-मतलब में नर्वस हो रही है.. इट्स नैचुरल प्रोसेस यार.. और सुन आज की रात तो राज को नज़दीक आने मत दियो!" डॉली ने चौंकते हुए पूछा-
"क्यों? नहीं नहीं अगर वो चाहेगा मैं मना नहीं करूँगी.. आफ़्टर ऑल अब वो मेरा हस्बैंड हैं यार... वैसे मुझे थोड़ा बहुत पता चल गया है कि क्या करना है।"
ज्योति- "किसने बताया तुझे?" ज्योति डॉली से इस बात का जवाब ले पाती कि अचानक दरवाज़ा खुल गया और कांता चाची अंदर आ गयी थी। उसकी नज़र ज्योति पर थी कि कहीं ज्योति डॉली को कुछ बताकर गड़बड़ ना कर दे।
चाची- "लो बाहर सब विदाई का इंतज़ार कर रहे हैं और ये लड़कियाँ अभी तक गप्पे मार रही हैं।"
ज्योति- "नही बस वो मैं डॉली को बता रही थी कि शादी के बाद क्या करना होता है।" चाची ने डॉली को उठाकर उसका भारी लहँगा सँभालते हुए कहा-
"कोई ज़रूरत नहीं, मैंने सब समझा दिया है इसे कि पहली रात ही पति का दिल कैसे जीतना है।" ज्योति समझ रही थी कि चाची उसे डॉली से दूर रहने का इशारा कर रही थी। चाची ने डॉली का घूँघट सीधा करते हुए उसके कान में कुछ कहा जिसे सुनकर डॉली ने शर्माते हुए हाँ में सर हिला दिया और बाहर जाते हुए ज्योति को एक आँख मार गयी। ज्योति अब चिंतित थी कि राज से उसने वादा लिया है कि वो डॉली के साथ आज रात किसी भी हाल में सेक्स नहीं करेगा पर चाची तो जैसे डॉली को जिता कर रहेगी। उसके भाव बदलने लगे थे। बात अब उसके अहम् पे आ गयी थी। मानो उसने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाये राज आज सुहागरात उसकी बहन डॉली के साथ नहीं बल्कि उसके साथ मनायेगा।
बाहर बैंडवालों ने वही परिचित धुन छेड़ दी थी बाबुल की दुआएँ लेती जा... जा तुझको सुखी संसार मिले..' बरसों से बैंड वाले हर दुल्हन की विदाई पर यही धुन बजाते आये हैं। ज्योति देख रही थी कि डॉली रोते हुए सबके गले लग रही थी और सभी रो रहे हैं। ये मौक़ा ही ऐसा होता है न चाहते भी आँसू निकल ही आते हैं, पर ज्योति की नज़र तो राज पर जमी थी जो ज्योति के आगे-आगे चल रहा था। जहाँ डोली वाली कार खड़ी थी। ज्योति कोशिश कर रही थी कि राज उसे एक बार देख ले पर राज रिश्तेदारों के डर से उसे नहीं देख रहा था। क्योंकि वो नहीं चाहता था कि उसके और ज्योति के रिश्ते के बारे में किसी को भनक भी लगे। राज डॉली को डोली में लेकर बैठ गया। रागिनी ने उनकी आख़िरी तस्वीर खींचते हुए कार की खिड़की से झुक कर राज से कहा-
"ओके राज आल दा बेस्ट फ़ॉर योर न्यू लाइफ़.. बस इतना ही कहूँगी कि इस रिश्ते को ईमानदारी से निभाना जैसे तुमने आज तक हर रिश्ते को निभाया है।" डॉली के गाल को छूकर वो उसे बाय कहकर चली गयी। डोली की कार चक्कर लगाकर वापस आ गयी। मइके, ससुराल दोनों तरफ़ की रस्में सबकुछ इसी बरात घर में ही होनी थीं।
मइके से चलकर अब डॉली अपने ससुराल पहुँच गयी थी और यहाँ डॉली के साथ अभी भी कांता चाची थी। राज की मम्मी और बाक़ी की औरतों ने डॉली के साथ वो सभी रस्में बड़े चाव से कीं जो एक नयी नवेली दुल्हन के साथ होती हैं। डॉली बहुत ख़ुश थी। आज उसके नये जीवन की शुरूआत होने जा रही थी। उसका मन राज के साथ सुहाग के कमरे में जाने के लिए उतावला हो रहा था। शादी होते ही सेक्स करने की इच्छा जागृत हो जाती है। ये नेचुरल प्रोसेस ही है। सही तो कहती थी ज्योति। वो मन ही मन ज्योति को बहुत
दुआएँ देने लगी। जो सामने दरवाज़े पे खड़ी इन रस्मों को देख रही थी। वो बेचारी नहीं जानती थी कि जिस बहन को वो इतनी दुआएँ दे रही थी वही उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी के दरवाज़े पर आग के दरिया बिछा चुकी थी कि तभी कांता चाची डॉली को उसके सुहाग के कमरे में ले गयी।
राज को उसके दोस्तों ने कमरे से बाहर ही रोक लिया। सुहाग का कमरा ख़ुशबूदार फूलों से सजा हुआ था। चाची ने प्यार से डॉली को बैड पर बिठाया।
"आज से तेरी नयी ज़िन्दगी शुरू होने वाली है डॉली। पता है जब मेरी शादी हुई थी तो तेरी माँ ने मुझे सारी बातें समझायी थीं जो आज मैं तुझे समझाने जा रही हूँ।
देख हर लड़की के जीवन में यह मोमेंट आता है। पहली बार जब वो सेक्स के लिए तैयार होती है। डर लगता है किसी अजनबी चीज़ को देखकर।" चाची की बातें सुनकर डॉली शर्मा रही थी।
"क्या चाची कैसी बातें कर रही हो!"
चाची- "ये बातें जो तेरे साथ अब होंगी.. देख डरना नहीं... राज को भी तो कोई सिखाकर भेजेगा.. अगर वो तुझसे बड़ा खिलाड़ी निकला तो? ये खेल तुझे ही जीतना है समझी? याद रखना पहली रात जिस लड़की ने बिल्ली मार ली.. मतलब पति को ख़ुश कर लिया, उसका प्यार पा लिया, ज़िन्दगी भर पति को क़ाबू में रखती है।"
वो जब डॉली को ये सब समझा रही थी वो नहीं जानती कि ज्योति कमरे के अंदर आ चुकी है। वो देख रही थी कि कैसे चाची डॉली को राज के लिए तैयार कर रही हैं।
चाची- "देख हो सकता है राज शर्माये, नर्वस हो.. पर तू नहीं होना अगर वो पहल करने से डरे तो तू पहल करना।
डॉली- "अगर उसने मेरी तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया तो?"
चाची- "क्यों नहीं देगा? इतनी सुंदर बीवी है उसकी, बाई चांस उसने ऐसा किया तो उसके सामने कपड़े बदल लेना शर्मना नहीं। बस ध्यान रहे उसकी नज़र तुम्हारे बदन से नहीं हटनी चाहिए बस बाक़ी फिर वो करेगा... समझ गयी?" डॉली चाची को हैरानी से देखे जा रही थी। डॉली-पाठ करने वाली कांता चाची ऐसी बातें भी खुलकर कर सकती है। चाची डॉली को प्यार करके बाहर जाने को थी कि उसने पाया ज्योति वहाँ खड़ी है।
चाची- "तू यहाँ क्या कर रही है?"
ज्योति- "मुझे ज़रा डॉली से बात करनी थी!" चाची ने ज्योति का हाथ पकड़ते हुए कहा-
"बस आज कुछ नहीं, आज उसे राज के साथ छोड़ दे.. आज उसका दिन है.. तू चल मेरे साथ।" वो लगभग ज्योति को अपने साथ खींचकर ले गयी। दरवाज़ा बंद था। डॉली
की नज़र अब दरवाज़े पर थी जहाँ से अब राज को आना था। राज... नाम में ही प्यार था जो डॉली को मिलना था। एक अजीब-सी गुदगुदी हो रही थी उसके दिल में। आज उसके दिलो-दिमाग़ में राज के सिवाय कुछ भी नहीं था। बस उस सुखद अनुभव को लेने के लिए अपने घुटनों पर सर रख के राज का इंतज़ार करने लगी।
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सुहाग के कमरे के बाहर ही राज खड़ा था.. सफ़ेद शेरवानी सर पर बाल बिखरे हुए क्योंकि गर्मी के कारण अपनी पगड़ी उतार दी थी। राज की बड़ी चाची छोटी चाची, बुआ सभी तो उसे तंग कर रहे थे, अंदर नहीं जाने दे रहे थे। हँसी खेल चल रहा था और दूर खड़ी ज्योति यही सोच रही थी कि राज से जो उसने वादा माँगा है वो पूरा करेगा कि नहीं कि तभी राज की मम्मी ने सबको टोकते हुए कहा-
"चलो अब सब हटो अंदर जाने दो, राज को बहुत थक गया है। नींद आ रही होगी बेचारे को।" कि सभी औरतों ने हँसते हुए राज को डॉली के कमरे में धक्का दे दिया और राज की बुआ ने बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया। ज्योति ने देखा के राज की बुआ ने तो बाहर से कुण्डी लगा दी है अब राज को अगर बाहर आना होगा तो कैसे आयेगा? और उधर अंदर डॉली ने जैसे ही दरवाज़े पर आहट महसूस की वो समझ गयी कि राज आया है। वो सर पर साड़ी का पल्लू सँभालते हुए सहम कर बैठ गयी।
राज अब डॉली के क़रीब था। डॉली तो राज को अपने पीछे खड़ा देख सहम ही गयी। किसी पराये लड़के को ऐसे बंद कमरे में उसने अपने इतनी क़रीब कभी नहीं महसूस किया था। वो भी, वो लड़का जिसके सामने उसे अपना सब कुछ निछावर करना था। डॉली के तो हाथ-पैर फूलने लगे थे। राज ने देखा कि लाल रंग की साड़ी, लाल ब्लाउज़, गले में मंगल सूत्र, माँग में लाल सिन्दूर और हाथ में लाल रंग की चूड़ियाँ और पूरी की पूरी गहनों से लदी हुई थी डॉली। किसी ज्वैलरी की मॉडल लग रही थी। डॉली बिस्तर पर बैठकर चादर के कोने को उँगलियों से घुमाने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि पहला क़दम कौन बढ़ाएगा। राज ने सामने आकर हल्की-सी मुस्कान से उसका अभिनन्दन किया और अपनी शेरवानी के बटन खोलने लगा। उसके दिमाग़ से ज्योति का डर जा नहीं रहा था और डॉली समझ रही थी कि पहल कौन करेगा! उसने देखा कि राज ने शेरवानी उतारी, पर उससे पहले डॉली ने राज की शेरवानी पकड़ ली और साइड में रख दी। पहली ही रात उसने अपने पत्नी धर्म का परिचय दे दिया था। डॉली ने देखा कि राज अब बनियान और नीचे सिल्क का पायजामा पहने हुए था। वो फिर से राज के अगले क़दम का इंतज़ार करने लगी पर राज था कि वो बार-बार अपने फ़ोन को देख रहा था कि कहीं ज्योति का मैसेज ना आ जाये। डॉली ने उसका ध्यान तोड़ते हुए पूछ लिया-
"किसी ख़ास फ़ोन का इंतज़ार है?" डॉली की बात सुनकर राज घबरा गया-
"नही.. वो बस कुछ दोस्तों के फ़ोन जो शादी में नहीं आ पाये.. " राज ने अपने डर को छुपाते हुए डॉली से झूठ बोल दिया।
डॉली- "कोई बात नहीं आप आराम से अपने दोस्तों से बात कर लीजिये।" कहते हुए उसने अपना चेहरा AC की तरफ़ कर दिया।
"कितनी गर्मी है ना!" कहते हुए वो अपनी साड़ी का पल्लू नीचे करके ए सी की तरफ़ मुँह करके ठंडी हवा लेने लगी। राज ने शीशे में से देखा कि डॉली बहुत सुंदर थी। शादी की थकान के कारण मेकअप जगह-जगह से बिखर गया था। बालों की लटें यहाँ-वहाँ से उसके जूड़े का साथ छोड़कर उसके चेहरे पर लहरा रही थीं। अजीब-सा आकर्षण था डॉली में। राज की नज़रें डॉली से हट नहीं रही थीं। उसका जी कर रहा था बस उसे देखता ही जाये। अचानक डॉली की नज़रें राज से मिल गयीं। ये देख राज भी चौंक गया। उसने अपनी नज़रें फेर लीं। डॉली भी मुँह फेरकर मन ही मन मुस्कुरा दी। आख़िर राज ने उसे देख लिया था, पर सवाल था कि पहला क़दम कौन उठाएगा? पर डॉली तो हर क़दम के लिए तैयार थी। यही तो सिखाया था कांता चाची ने उसे और राज भी यही सोचे जा रहा था कि इतनी सुंदर पत्नी थी उसकी और वो हाथ में फ़ोन थामे साली के फ़ोन का इंतज़ार कर रहा था! उससे रहा नहीं गया, उसने अपना मोबाइल ऑफ़ कर दिया। उसने देखा कि डॉली अब चुपचाप बैड पर आकर बैठ गयी। मानो आमंत्रण था राज के लिए। राज भी धीरे से डॉली के पास जाकर बैठ गया। राज को क़रीब पाते ही डॉली के दिल की धड़कने बढ़ने लगीं कि अब राज का अगला क़दम क्या होगा? राज ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाकर डॉली के हाथ पर रख दिया। राज का स्पर्श क्या पाया डॉली ने किउसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। डॉली के दिल की धड़कन राज अब महसूस कर रहा था। डॉली ने आधे मन से अपना हाथ खींचना चाहा कि राज ने उसका हाथ पकड़ लिया और धीरे से अपने होंट डॉली के होंटों के पास ले गया। राज की साँसों को अपने होंटों पर महसूस कर डॉली तो ऐसे काँप गयी जैसे राज कोई ह्यूमन बम हो, जो कभी भी फट जायेगा। उसने आँख बंद करके दूसरे हाथ से चादर को मुट्ठी में भींच लिया।
"पहली बार?" डॉली की घबराहट देखते हुए राज ने डॉली से पूछ डाला। पहले तो डॉली को कुछ समझ नहीं आया कि राज ने अपने होंट उसके कान के पास ले जाकर पूछा-
"मतलब इससे पहले किसी लड़के ने तुम्हें छुआ है?" डॉली ने आँख बंद किये ही 'ना' में सर हिला दिया। इसके बाद राज ने धीरे से डॉली के हाथ से चादर की पकड़ ढीली की और उसके हाथ पकड़कर अपने गाल पर रख दिया। डॉली तो सिहर उठी। पहला स्पर्श था डॉली के लिए किसी मर्द का। वो तो बस आँख बंद करके काँपे जा रही थी। बस इजाज़त दे दी थी राज को कि वो जो चाहे करे।
"डर लग रहा है तो रहने देते हैं?" राज ने डॉली की घबराहट देखते हुए अपना हाथ पीछे खींचना चाहा कि डॉली ने राज का हाथ पकड़ लिया और 'ना' में सर हिलाते हुए फिर से आँख बंद कर लीं। संकेत था ये राज के लिए कि वो उसकी घबराहट की परवाह किये बिना आगे बड़े।
डॉली- "लाइट बहुत ज़्यादा है मुझे शर्म आ रही है।" राज के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। उसने जाकर लाइट बंद की तो पाया कि उस कमरे में एक नीले रंग का बल्ब जल रहा था। जिसकी रौशनी बड़ी रोमांटिक थी। उसने देखा कि नीले रंग की रौशनी डॉली के बदन पर पड़कर उसे और निखार रही थी। वो धीरे से डॉली के पास गया और धीरे से उसके सर से उसका पल्लू सरका दिया। कितनी ख़ूबसूरत थी डॉली और फिर धीरे-धीरे उसके गहनों के संग खेलने लगा। हर गहने को वो छूकर देख लेता जो डॉली की ख़ूबसूरती को निखार रहे थे। सर का माँग टिका, फिर कानों के झुमके। डॉली राज की इस क्रिया में उसका साथ दे रही थी। जब-जब राज उसके गहने छूता, उसकी उँगलियाँ डॉली को छू जातीं। एक सुखद अनुभव था डॉली के लिए और फिर अंत में राज ने उसके गले से एक बड़ा-सा सोने का हार जिसकी डोरी पीछे की ओर थी, धीरे से उतार दिया। जैसे ही वो हार डॉली के बदन से सरकता हुआ उतरा। डॉली की तो जैसे जान ही निकल गयी। राज ने देखा डॉली का असली रूप अब उसकी नज़रों के सामने था। इतनी सुंदर थी उसके बदन की बनावट। क्यों न हो सिर्फ़ २४ साल की सुन्दरी थी डॉली। वो भी अनछुई ख़ूबसूरती। राज को अब डॉली के बदन की ख़ुशबू अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वो अब ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना चाहता था, पर डॉली को पूरा सम्मान भी देना चाहता था। उसने हाथ बढ़ाकर डॉली की पीठ से उसके ब्लाउज़ को डोरी धीरे से खोल दी। डॉली उत्तेजनावश एक पल के लिए छटपटाई, जिसका प्रमाण उसकी खनकती चूड़ियों ने दिया। राज के हाथ डॉली की पीठ पर जैसे ही आये, डॉली को न जाने क्या हुआ वो राज से लिपट गयी और राज ने भी अब डॉली को अपने आग़ोश में ले लिया। दो प्रेमी अब इस राज-सफ़र के लिए तैयार थे। राज ने धीरे से डॉली की पीठ पर हाथ सरकाकर धीरे-धीरे उसके ब्लाउज़ के हुक खोलने लगा। वो डॉली के गाल चूमता और एक हुक खोलता, फिर दो, फिर तीन। जैसे ही वो ब्लाउज़ के हुक खोलता डॉली आँख बंद करके अपनी मुट्ठी से चादर को पकड़ लेती। राज के इस वार से उसे मीठे मीठे झटके लग रहे थे और अगले ही पल डॉली का ब्लाउज़ अब डॉली के बदन को त्याग चुका था। प्रेमे के सामने अब डॉली के उभरे हुए वक्ष थे। जो अब पूर्ण आज़ादी के लिए बेताब हो रहे थे, जिसके लिए राज राज़ी था पर उन नन्हे क़ैदियों को आज़ाद करने से पहले राज एक बार डॉली के होंट चूम लेना चाहता था, पर उसने पाया कि डॉली ने अब भी डर के मारे आँखें बंद की हुई हैं। राज डॉली की
इस मासूमियत का फिर से क़ायल हो गया। उसके दिल ने आवाज़ दी कि उसे डॉली से प्यार हो गया है। वो एक टक डॉली को देखा जा रहा था। उसने हाथ बढ़ाकर डॉली के ब्रा का हुक खोल डाला। हुक के खुलने के हल्के झटके ने ही डॉली के अंदर एक अजीब से सरसराहट पैदा कर दी। राज देख रहा था कि कैसे डॉली आँख बंद किये अपनी साड़ी से अपने वक्षों को ढँके काँप रही थी। राज ने डॉली की मासूमियत देखते हुए उसके कान में फुसफुसाया-
"एक बार देखोगी भी नहीं डॉली कि तुम्हें चाहने वाला चेहरा कैसा है?" इतना सुनते ही डॉली ने आँखें खोल दीं। राज का चेहरा बिल्कुल उसके सामने था। इतना क़रीब कि उसकी साँसें डॉली की साँसों से टकरा रही थीं। डॉली की साँसें बढ़ने लगीं। इतनी कि उसके वक्ष अब रह-रहकर राज को अपने होने का प्रमाण दे रहे थे। ये भी उसके लिए नया अनुभव था। डॉली ने हिम्मत करके कहा-
"आपकी छवि तो मैंने दिल में बसा ली है। आँख बंद करती हूँ तो भी आप ही दिखते हैं मुझे!" कहते हुए उसने फिर आँखें बंद कर लीं।
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