वासना का भंवर

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Re: वासना का भंवर

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इस पर कुणाल ने मुक्सुराकर कहा-
"लगा तो आपको है, आपने उस लड़की को पुलिस स्टेशन भेज दिया।"

जय- "कुणाल जी तेवर देखे थे उसके? ऊपर से उसके कमरे से एक दो लाशें बरामद हुई हैं।"

कुणाल- "तो उससे वो मुजरिम तो साबित नहीं हो जाती?"

जय- "पर अगर हुई तो? अगर मैं उसे जाने की इज़ाज़त दे दूँ और वो फ़रार हो गयी तो?"

कुणाल ने मुस्कुराते हुए कहा-
"देखा फिर आपको बहुत जल्दी है केस क्लोज़ करने की, अभी तो हमें ये भी नहीं पता कि राज ने डॉली को मारा है कि बचाव में डॉली ने उसे! या फिर कोई तीसरा है जिसने इन दोनों पर हमला किया और अगर कोई तीसरा है तो वो ज्योति है या कोई और? अब ये बात तो तभी सामने आयेगी जब एक बार पोस्टमॉर्टेम की रिपोर्ट आ जाये या फिर राज को होश!"

जय ने कुणाल की बात को समझते हुए अपना ग़ुस्सा शांत किया। कुणाल ने जय को पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा-
"फ़िलहाल इस कहानी में तीन पात्र हैं.. एक डॉली जिसकी मौत हो गयी है.. दूसरा उसका पति राज जो हॉस्पिटल में ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहा है और तीसरी ज्योति, फ़िलहाल ज्योति ही है जो इस कहानी की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ सकती है।" कहते हुए उसने जेब से सिगरेट निकाली।

जय ने भी उसके पैकेट से एक सिगरेट निकालते हुए पूछा-
"आपको लगता है कि वो लड़की इतनी आसानी से मुँह खोलेगी? बस एक सबूत मिल जाये न.." वो अपनी बात पूरी ही नहीं कर पाया था कि एक हवलदार ने जय को कुछ सामान लाकर दिया जो उसे डॉली और राज के कमरे से मिला था। यानी कमरा नंबर 331 से। उस सामान में डॉली और राज के मोबाइल भी थे।

कुणाल ने राज का मोबाइल उठाते हुए हवलदार से पूछ लिया-
"ये कमरा नंबर 331 से मिला तुम्हें?"

हवलदार- "जी सर!" कुणाल ने मोबाइल देखना शुरू किया, तो उसकी आँखें चमख उठीं। उसने एक लंबा कश लेते हुए कहा-
"लो आपको ज्योति की ज़ुबान खुलवाने के लिए कोई सबूत चाहिए था ना? ये रहा!" कहते हुए उसने जय के हाथ में राज का मोबाइल थमा दिया।

जय ने जब राज का मोबाइल देखा तो उसकी आँखों में भी एक चमक आने लगी। मानो उसके हाथ जैकपोट लग गया हो।
……………………………………………………….

उधर पुलिस स्टेशन में ज्योति परेशान बैठी थी। वो बार-बार हवलदार को अनुरोध कर रही थी कि उसका मोबाइल दे दें, उसने अपने घरवालों से बात करनी है, पर उसकी कोई नहीं सुन रहा था। अचानक उसने देखा सामने ही जय अपनी सिगरेट सुलगा रहा था। ज्योति ने वहीं से चिल्लाते हुए कहा-
"तुम मुझे ज़बरदस्ती फँसा रहे हो। यही करते हो पुलिस स्टेशन में मासूम लोगों के साथ?"

इतना सुनते ही जय तेज़ी से उसकी और आया और राज का मोबाइल दिखाते हुए ज्योति से कहा-
"तो क्या है ये? बोल दो ये वीडियो भी झूठ है?"

ज्योति के होश उड़ गये। उस वीडियो में उसकी और राज की एक अश्लील फ़िल्म चल रही थी। जहाँ वो और राज निर्वस्त्र, प्रेम क्रीड़ा में लीन थे।

जय ने ज्योति से मोबाइल छीनते हुए कहा-
"इस वीडियो में तुम और तुम्हारा जीजा राज ही हैं न? यही ग़लत था जो तुम ठीक करके गयी थीं? है ना?... क्या बोली थीं कि बहन और जीजा के साथ घूमने नहीं आ सकती? तुम उनके साथ घूमने आयी थीं कि घुमाने? बोलो ये तुम ही हो ना, या तुम्हारे घरवालों को बुलवाकर इस वीडियो की पुष्टि करूँ?"

ज्योति जानती थी वो फँस चुकी है। वो वहीं बैठकर रोने लगी-
"हाँ ये मैं ही हूँ...पर मैंने डॉली को नहीं मारा... नहीं मारा.."

जय ने थोड़ी नर्मी दिखाते हुए कहा-
"देखो अगर तुम चाहती हो कि हम तुम्हारी मदद करें तो हमें सारी कहानी बताओ सच सच। इस वीडियो की सच्चाई की कहानी!"

ज्योति की आँख मैं आँसू थे। वो समझ गयी थी कि पुलिस को सच्चाई बताने के सिवा उसके पास कोई रास्ता नहीं था। और अगले ही पल पुलिस स्टेशन के एक कमरे में ज्योति कुणाल और जय के सामने बैठी थी। जय ने अपने मोबाइल में रिकॉर्डर ऑन कर दिया। कुणाल ने ज्योति को रिलैक्स्ड करते हुए कहा-
"बोलो जो भी बोलना है, पर याद रखना तुम्हारे बयान की सच्चाई ही तुम्हें बेगुनाह साबित कर सकती है!"

ज्योति अतीत में जाने लगी। मानो वो सारे घटनाक्रम को याद करने की कोशिश कर रही थी। उसके दिमाग़ में जैसे अब सारी बातें किसी फ़िल्मी फ़्लैशबैक की तरह घूमने लगी थीं।
इस कहानी की शुरूआत कुछ दिन पहले मानेसर से हुई थी। गुड़गाँव से सटे मानेसर के एक फ़ार्म हाउस में शादी का माहौल था। हर तरफ़ रौनक़ ही रौनक़ थी। सामने एक बड़ा-सा बोर्ड चमक रहा था। राज वेड्स डॉली। दो दिन बाद राज शर्मा और डॉली शर्मा की शादी जो थी। यह एक अरेंज्ड मैरिज थी। राज के पिता प्रेम शर्मा और डॉली के पिता सिद्धेश्वर शर्मा बचपन के दोस्त थे। इसी के रहते उन्होंने अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल लिया था।

डॉली को तो राज पहली नज़र में ही भा गया था। डॉली की मम्मी ने जब डॉली को राज की तस्वीर दिखायी थी तो उसने तभी ही शर्माकर हामी भर दी थी और एक महीने में ही शादी की तारीख़ भी निकल आयी। सेंट मैरी दोनो के पिता ने मिलकर मानेसर में एक रिसोर्ट बुक कर डाला। नज़दीकी रिश्तेदारों और दोस्तों को ही निमंत्रण भेजा था।

उसी रिसोर्ट में सभी रस्में एक साथ करने का फ़ैसला दोनों परिवारों का ही था। हाँ डेस्टिनेशन मैरिज। हर तरफ़ ख़ुशी का माहौल था। रिसोर्ट के एक तरफ़ लड़की वाले और दूसरी तरफ़ लड़के वाले। इधर लड़की वालों के यहाँ डॉली को हल्दी लग रही थी। उसकी चाचियाँ, उसकी मामियाँ सभी उसके गोरे बदन पर हल्दी लगाकर उसे निखार रही थीं और सबसे आगे थी कांता चाची। कांता चाची डॉली से तक़रीबन ६-७ साल ही बड़ी रही होंगी इसीलिए वो कुछ ज़्यादा ही खुली हुई थीं डॉली से।

कांता चाची ने देखा कि सभी औरतें डॉली के पाँव पर या बाज़ुओं पर हल्दी लगा रही थीं, मानो सिर्फ़ औपचारिकता कर रही हों। कांता चाची की नज़र ज्योति से मिली और दोनों ने आँखों ही आँखों में ये तो तय कर लिया था कि सब बहुत बोरिंग चल रहा है। मज़ा नहीं आ रहा। बस फिर क्या था कांता चाची को शरारत सूझी, उसने मट्ठी में ढेर सारा हल्दी का लेप उठाया और डॉली का ब्लाउज़ खोलकर उसके अंदर अपना हाथ घुसा दिया। डॉली को तो कांता चाची की इस हरकत की उम्मीद ही नहीं थी। उसने कस कर अपना ब्लाउज़ पकड़कर अपने गले के साथ दबा लिया और चिल्लाने लगी-
"अरे!.. ये क्या कर रही हो चाची...?"

कांता चाची की नज़रें ज्योति से मिलीं, दोनों के बीच इस शरारत को लेकर सहमती हुई और फिर कांता ने डॉली पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए कहा-
"अब भला चाची से कैसी शर्म? वही तो तेरे पास है जो मेरे पास.." कहते हुए उसने हाथ में और हल्दी भरी और डॉली के ब्लाउज़ में हाथ डालकर उसके वक्षों पर मसलने लगी।

डॉली को गुदगदी सी हो रही थी।
डॉली- "क्या कर रही हो चाची, गुदगुदी हो रही है।" कि एक मामी ने फब्ती कसते हुए कहा-
"राज तो और भी कई जगह छूएगा.. तब भी यही कहगी कि गुदगुदी हो रही है?" कहते हुए वो क्या हँसी वहाँ बैठी सभी औरतें हँस दीं।

डॉली को तो जैसे समझ ही नहीं आया कि इसमें हँसने की क्या बात थी! इतनी सीधी थी डॉली और यह बात उसकी छोटी बहन ज्योति जानती थी। डॉली के विपरीत एक दम चंट थी ज्योति। ज्योति डॉली से बेशक एक साल छोटी थी पर बातों में डॉली से कहीं बड़ी। वो भी चाची और मामी के इस मज़ाक़ में शामिल हो गयी।

"चाची ज़रा बताओ तो सही जीजा जी दीदी को कहाँ कहाँ छुएँगे?"

कांता चाची को समझने में देर नहीं लगी कि ज्योति अब मज़ाक़ के मूड में है। उसने मामी को आँख मारी जिसने इस मज़ाक़ में अपने शामिल होने की सहमती दे दी थी।

कांता चाची- "ज्योति ज़रा दरवाज़ा तो बंद कर।"

इतना सुनते ही ज्योति ने फट से कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया और फिर बड़ी चाची और मामी ने तो डॉली के हाथ-पॉंव पकड़ लिये।

"अरे!अरे! ये क्या कर रही हैं आप लोग?" डॉली ने घबराते हुए पूछा। पर इन औरतों के आगे उसकी एक नहीं चल रही थी और फिर जो हुआ डॉली को तो उसकी कल्पना भी नहीं थी। सबने मिलकर डॉली के हाथ-पॉंव पकड़ लिये। किसी ने उसका ब्लाउज़ खोल दिया तो किसी ने उसका घाघरा ऊपर उठा दिया और फिर एक लोक गीत गाते हुए उसके बदन पर हल्दी का उबटन लगाने लगे। लोक गीतों के बोलों में किसी सुन्दरी की ख़ूबसूरती की प्रशंसा थी। उसके हर अंग के बारे में ज़िक्र और जिस अंग का नाम उस गीत में आता। सभी औरतें उसी अंग पर हल्दी मलने लगतीं। डॉली इस बेहूदगी से छटपटा उठी-
"व्हाट इज दिस नॉनसेंस... मम्मी! मम्मी!"

चाची- "इसमें तेरी मम्मी क्या कर लेगी डॉली? ये तो हमारे ख़ानदान की परम्परा है। हर नवेली दुल्हन के बदन को उसके पति के लिए यूँ ही हल्दी और उबटन का लेप लगा के सजाया जाता है ताकि वो अपनी नयी नवेली दुल्हन के बदन को ऐसे छुकर आनंद ले सके। ये जो हम कर रहे हैं न?.. ये सब राज करेगा.. बस उसे इमेजिन कर.." कहते हुए वो हँस दीं।
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Re: वासना का भंवर

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डॉली देखकर हैरान थी कि इतनी सीधी सांस्कारिक दिखने वाली उसकी मामियाँ और चाचियाँ, इस तरह की गंदी और बेहूदा बातें भी कर सकती हैं। पर चाहकर भी वो उन सब का विरोध नहीं कर पा रही थी। धीरे-धीरे डॉली ने आँख बंद करके अपने बदन को उन सबके हवाले कर दिया था। अब डॉली के बदन पर हल्दी की एक चादर-सी बन गयी थी। अब उसे भी सभी औरतों का स्पर्श अच्छा लगने लगा था।

ज्योति भी अब ये सारा नज़ारा देखकर हैरान थी। डॉली की ये हालत देख उसके मन में भी तितलियाँ उड़ने लगीं। उसका भी मन कर रहा था कि ये सब उसके साथ भी हो कि अचानक उसने देखा चाची अब डॉली की दोनों टाँगों के बीच हल्दी का लेप लगा रही है, पर अचानक चाची का हाथ डॉली की दोनों टाँगों के बीच में जाकर रुक गया-
"ये क्या डॉली तूने यहाँ नीचे से क्लीनिंग नहीं करवाई?" और सभी औरतें डॉली का घाघरा उठाकर उसकी टाँगों के बीच झाँक कर देखने लगीं।

अब डॉली का सब्र का बाँध टूट रहा था। वो ज़ोर-ज़ोर से अपनी टाँगे हिलाकर छटपटाने लगी।
"बेशरम हो गये हो आप सभी लोग। ऐसा कौन करता है?" वो रोने की कगार पर थी, पर वो कुछ कर नहीं पा रही थी क्योंकि औरतों ने उसके हाथ पॉंव जकड़े हुए थे और लोक गीत गाने में मस्त थीं।


डॉली- "चाची स्टॉप इट ...ज्योति मम्मी को बुला... मम्मी को बुला!" वो ज़ोर से चिल्ला रही थी।

पर ज्योति भी अब मज़े लेने के मूड में थी। चाची के कहने पर तो वो हेयर रिमूवर ले आयी।

डॉली के होश उड़ गये, उसने देखा दो महिलाओं ने उसके हाथ जकड़ लिये और छोटी मामी की मदद से चाची ने डॉली की टाँगे फैला दीं। ये देख डॉली डर गयी। उसका मुँह खुल गया।
"ये क्या करने लगे हो आप लोग? ये क्या बदतमीज़ी है? हाथ छोड़ो मेरे नहीं तो चिलाऊँगी!!"

ज्योति ने हेयर रिमूवर की डिब्बी खोलते हुए चाची के हाथ में थमा दी और चाची अब लोक गीत गाते हुए हेयर रिमूवर से डॉली की टाँगों के बीच लगाने लगी थी। डॉली का रोना निकल आया, "इसकी क्या ज़रूरत है?"

चाची- "ज़रूरत तेरी नहीं बाबूराव की है जो चुनमुनियाँ का दरवाज़ा खोलने आयेगा और उसे कोई रुकावट नहीं मिलनी चाहिए।" इतना सुन सभी औरतों की हँसी छूट गयी और बेचारी डॉली इन औरतों के पागलपन पर रोये जा रही थी।

ज्योति ने आज जाना कि बाबूराव किसे और चुनमुनियाँ किसे कहते हैं। उसके बाद चाची ने एक कपड़े का टुकड़ा उठाया और डॉली की टाँगों के बीच में रख दिया। डॉली जानती थी कि इसके बाद क्या होने वाला था। वो पहले ही चिल्लाने लगी, पर चाची ने बिना परवाह किये उस कपड़े को ज़ोर से खींच डाला और डॉली की चीख़ उस लोक गीत के शोर में दब के रह गयी। वो रोये जा रही थी।

"बहुत ग़लत कर रहे हो तुम लोग!!" बेशक डॉली के आँसू निकल आये थे। पर ज्योति का मन तो राज और डॉली की सुहागरात तक पहुँच चुका था कि बड़ी चाची की आवाज़ ने उसे चौंका दिया।

बड़ी चाची- "जल्दी करो लड़के को भी हल्दी लगाने जाना है.."

उधर लड़के वालों के यहाँ यही कार्यक्रम चल रहा था। राज को उसकी भाभियाँ हल्दी लगा रही थीं और रागिनी अपनी टीम के साथ इस पूरे कार्यक्रम की फ़ोटोग्राफ़ी कर रही थी कि तभी राज की माता जी श्रीमती शर्मा ने आकर बताया-
"लड़की वाले राज को मेहँदी लगाने आ रहे हैं.."उसने रागिनी को भी कहा-
"रागिनी सबकी अच्छी-सी तस्वीरें खींचना। एल्बम में कमी नहीं रहनी चाहिए।"

रागिनी- "जी आंटी जी..." कहते हुए उसने अपना कैमरा नीचे किया और उसका कार्ड बदलने के लिए अंदर अपने कमरे की ओर चली गयी। राज भी खड़ा हो गया। ये देख उसकी मम्मी ने उसका हाथ पकड़ते हुए पूछ लिया-
"अरे तू कहाँ जा रहा है राज? ऐसे बीच में नहीं उठते अपशगुन होता है।"

राज-"मम्मी बाथरूम आ रहा है, यहीं निकल गया तो वैसे ही शगुन अपशगुन हो जायेगा!"

यह सुन सभी हँस पड़े। राज की ताई जी ने कह दिया-
"जाने दे लीला, कोई अपशगुन न होता। हल्दी तो लग चुकी है।" ताई की बात पर राज को अंदर जाने की इजाज़त मिल गयी थी।
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Re: वासना का भंवर

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कुछ देर बाद उस हॉल में लड़की वाले राज को हल्दी लगाने पहुँच गये। ज्योति, उसकी चाचियाँ, मामियाँ, सभी औरतें वहाँ आ गयी थीं। ज्योति की नज़रें राज को तलाश रही थीं। उसने राज की मम्मी से पूछ लिया-
"आंटी जी जीजू कहाँ हैं? दिख नहीं रहे.. या हमारे डर से छुप गये हैं?"

इतना सुन सभी हँस पड़े। राज की मम्मी राज को पुकारने ही वाली थी कि तभी राज आ गया। राज की मम्मी ने राज को प्यार से बिठाते हुए ज्योति से कहा-
"लो! आ गया तेरा जीजू, कर ले अपने अरमान पूरे.." और फिर कांता चाची ने हल्दी रस्म शुरू कर दी। सभी औरतें लोक गीत गाने लगीं और राज के बदन पर हल्दी लगा रही थीं। इस बार गीत के बोलों में लड़के को उसकी होने वाली पत्नी के लिए सँवारने की बात हो रही थी।

ज्योति देख रही थी कि राज का बदन वर्ज़िशी है। माँसपेशियाँ काफ़ी सख़्त हैं। उसके मन में कई ख़याल आने लगे कि इन्हीं सख़्त मसल्स को उसकी बहन कल रात छूएगी। ज्योति ने देखा कि राज ने पायजामा पहना हुआ है और वो चुपचाप सभी औरतों से हल्दी लगवा रहा था। ज्योति अब कल्पना करने लगी कि राज के पायजामे के अंदर बाबूराव आराम कर रहा होगा! जो कल रात उसकी बहन की चुनमुनियाँ में प्रवेश करेगा। कैसा होगा? ये जानने के लिए उसके मन की उत्सुकता बढ़ने लगी थी। उसे एक शरारत सूझी। उसने चाची के कान में कहा-
"चाची जीजा जी को भी वैसे ही हल्दी लगाओ न जैसे डॉली दीदी को लगायी थी!" चाची ज्योति की बात समझकर ख़ुद ही शर्मा गयी।

"पागल हो गयी है क्या.. चुप ऐसी बात नहीं करते।"

ज्योति- "क्यों? दीदी के साथ वो सब कर सकते हो, जीजा के साथ क्यों नहीं?" वो इतनी ज़ोर से बोली कि सभी देखने लगे के आख़िर ज्योति ने क्या बोला! बल्कि सब अब ये जानना चाहते थे कि ज्योति क्या चाहती है।

राज की मम्मी ने ज्योति से प्यार से पूछ ही लिया-
"बोल ज्योति बेटा क्या बात है? मुझे बता.. शर्मा नहीं अब ये घर भी तेरा भी है .. बोल!" कांता चाची घबरा रही थी कि कहीं मुँहफट ज्योति कुछ उल्टा-सुलटा न बोल दे। पर वही हुआ, ज्योति ने बेबाक होकर सबके सामने राज की मम्मी से कह दिया-
"आंटी जी जब मेरी दीदी को हल्दी लगी, तो उसके सारे कपड़े उतार कर उसके पूरे बदन पर हल्दी लगायी गयी, ये कहकर जीजा जी उसके पूरे बदन को छुएँगे तो उनको अच्छा लगेगा.. और जब जीजा जी की बारी आयी तो इन्होंने तो कमर से लेकर पॉंव तक सब ढँक रखा है। क्यों डॉली दीदी जीजा जी को कमर के नीचे नहीं छूएगी क्या?" ज्योति की ये बातें सुनकर सभी औरतें अपनी बग़लें झाँकने लगीं कि कैसी अजीब लड़की है ये और कांता चाची ने तो उसे चिमटी काटते हुए चुप रहने की सलाह दे डाली।

"चुप कर जा ज्योति.. क्या बकवास किये जा रही है। कोई अक्ल वक्ल नाम की चीज़ है कि नहीं तुझमे?" पर ज्योति तो समझ रही थी कि उसकी बात में तर्क है। उसने अगला सवाल राज की मम्मी पर दाग दिया। जिससे राज की मम्मी अब पानी पानी हो गयी-

"आंटी जी आप ही मुझे बताइए एक लड़के के लिए लड़की के हर अंग को सँवारा जाता है। सर से पॉंव तक हल्दी उबटन लगाया जाता है.. तो लड़के को ऐसे आधा ढँक कर क्यों रखा जाता है? ये कहाँ की परम्परा हुई भला?" इतना सुनकर सबने अपने कान बंद कर लिये। कांता चाची ने तो ज्योति को डाँटते हुए कह दिया-
"तू जा यहाँ से, तेरी कोई ज़रूरत नहीं है!" पर ज्योति जाने को तैयार नहीं थी। ज्योति का बेबाकपन देखकर राज की मम्मी वहाँ से कहते हुए निकल गयी-

"बेटा अब राज तुम्हारा है जो मर्ज़ी करो इसके साथ.." राज भी कहाँ कम था.. वो तो ज्योति की बड़ी-बड़ी आँखों में उसकी मासूमियत देखकर दंग था। ज्योति की आँख में आँख डालते हुए उसने फट से अपने पायजामे का नाड़ा खोलना शुरू कर दिया। यह देख वहाँ सभी औरतों ने ऑंखें बंद कर लीं।


चाची- "नहीं नहीं दामाद जी.. ये ज्योति तो पागल है... मत करो ये सब!" बेशक सब औरतों ने अपनी आँखें बंद कर लीं थी पर ज्योति ने नहीं। उसकी उत्सुकता बढ़ रही थी। वो देखना चाहती थी कि डॉली की चुनमुनियाँ के लिए उसका बाबूराव कैसा होगा।
राज ने तब अपना पायजामा खोलकर सबको चौंका दिया। उसने नीचे वो एक भूरे रंग का वी शेप जाँघिया पहने हुआ था। सभी औरतों की जान में जान आयी कि राज ने कम से कम नीचे कुछ तो पहना हुआ था, पर ये देख ज्योति निराश हो गयी। उसकी तो बाबूराव के दर्शन की अभिलाषा ही रह गयी थी। वक़्त बर्बाद न करते हुए कांता चाची ने लोक गीत गाते हुए हल्दी का कार्यक्रम शुरू कर दिया और रागिनी इस पूरे कार्यक्रम को


अपने कैमरे में क़ैद करने लगी। ज्योति ने हल्दी का लेप लेकर राज की टाँगों पे मलना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे उसकी मज़बूत जाँघों पर। उसके हाथ राज के जाँघिये को छूने को मचल रहे थे। मानो वो जानना चाह रही थी कि ऐसा क्या छुपा रखा है राज ने जो उसकी बहन डॉली को मिलने वाला है और राज अब समझ चुका था कि बेशक ज्योति बड़बोली है पर है मासूम। चाची ने यह देख लिया और उसने ज्योति का हाथ पीछे करके कार्यक्रम को जल्दी से ख़त्म कर दिया और सभी औरतें राज को आशीर्वाद देकर निकल गयीं।



लड़की वालों के जाते ही राज की मम्मी अंदर आयीं-
"कितनी बेशर्म है यह लड़की ज्योति!"

कि राज की चाची ने कहा-
"भाभी आज कल की लड़कियाँ ऐसी ही होती हैं, वैसे उसकी बात में लॉजिक तो था। आप ही जवाब नहीं दे पायीं!" कहते हुए सभी हँस दिए। पर राज के दिमाग़ में ज्योति छा चुकी थी। अब वो उस मौक़े की तलाश में था जब ज्योति से वो अकेले में मिल सके।
पूरे बारातघर में एक हलचल थी। सभी ऐसे घुले मिले थे जैसे कि एक ही परिवार के हों। अक्सर ऐसी शादियों में ऐसा ही माहौल होता है, ख़ास कर जब दोनों तरफ़ का हलवाई एक ही हो। उस दिन हलवाई गरमा-गरम पकोड़े तल रहा था और ज्योति लड़की की बहन होने का अपना हक़ दिखाते हुए लाइन तोड़कर सबसे आगे आ गयी और अपनी प्लेट हलवाई के आगे करते हुए बोली-
"भईया जी पहले मुझे दे दो.."

राज की मामी भी वहीं खड़ी थी, उसने हँसते हुए कहा-
"ज्योति ऐसे कैसे तू लाइन तोड़कर आगे आ रही है!"


ज्योति- "आंटी लड़की की बहन हूँ, डॉली के लिए ले जा रही हूँ!"

मामी- "मैं भी लड़के की मामी हूँ, ये पकोड़े तेरे होने वाले जीजा राज के लिए ले जा रही हूँ!"

कि तभी राज वहाँ पहुँच गया, शायद पहले से ही वहीं-कहीं था। बस ज्योति के क़रीब आने का इंतजार कर रहा था। उसने मामी से प्लेट लेते हुए कहा-
"जाने दो मामी जी, हमारी होने वाली साली है और साली का हक़ तो घरवाली से ज़्यादा होता है।" कहते हुए उसने ज्योति को मुस्कुराकर देखा।

ज्योति राज की तीखी नज़रों को ज़्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पायी। उसने नज़रें झुकाते हुए कहा-
"नहीं जीजा जी, पहले आप ले लीजिए.." इतना सुन मामी वहाँ से कहते हुए निकल गयी-
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"वाह राज अब तो तू ससुराल वालों का हो गया है, अब तो तेरी साली ही तेरी सेवा करेगी!" राज ने हलवाई से प्लेट में गरम पकोड़े डलवाकर ज्योति को अलग ले जाकर प्लेट उसके आगे कर दी
"लो.. ले जाओ।" ज्योति ने शिष्टाचार का परिचय देते हुए कहा-
"नहीं जीजा जी, आप पहले ले लीजिये।"
राज- "ना, अब तो न खाते हम ये पकोड़े!"
ज्योति- "क्यों?"
राज- "-अब तो जलन हो रही है हमें तुम्हारी दीदी से?"
ज्योति ने हैरानी से पूछा, "क्यों?"
राज ने हँसते हुए कहा, "भाई डॉली को पकोड़े खिलाने के लिए इतनी सुंदर ज्योति है और हमें देखो बूढ़ी मामी खिला रही थी!" ज्योति ने राज की अठखेली को समझते हुए कहा-
"ओके जीजा जी, लीजिये हम आपको ऑफ़र कर देते हैं!" कहते हुए उसने प्लेट लेकर राज के आगे कर दी। राज को पकोड़ों से ज़्यादा ज्योति के सौन्दर्य में दिलचस्पी थी। एक ही पल में उसने ज्योति को ऊपर से नीचे तक नाप लिया था। उसने प्लेट को पीछे करते हुए कहा-
"ना! अब तो हम पकोड़े तब खाएँगे जब तुम हमें देने आयोगी। सामने ऊपर कोने वाला कमरा मेरा है!" कहकर मुस्कुरा कर चला गया। ज्योति को समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए! पर इतना तो वो जानती थी कि राज उसका होने वाला जीजा है तो उसे सेवा करवाने का हक़ भी है। ये सोच वो मुस्कुरायी और राज के कमरे की ओर चल पड़ी।
राज का कमरा पहली मंज़िल पर कोने में था। जहाँ कम ही लोग आते-जाते थे। ज्योति पकोड़ों की प्लेट लेकर राज के कमरे के पास पहुँच गयी। उसने जैसे ही दरवाज़े पर हल्की-सी दस्तक दी, अंदर से राज की आवाज़ आयी-
"अंदर आ जाओ.." ज्योति दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गयी। ज्योति ने देखा कि वहाँ बिस्तर पर राज के कपड़े बिखरे हुए हैं और वहाँ शीशे के सामने राज शेव करने के लिए चेहरे पर साबुन लगा रहा था। राज के बदन पर कोई कपड़ा नहीं था। सिर्फ़ नीचे पायजामा पहन रखा था। ज्योति ने देखा राज का बदन बहुत सुडोल है। उसने नज़रें झुकाकर कहा-
"लीजिये आपके लिए पकोड़े लायी हूँ.." राज ने मुड़कर ज्योति को देखा। वाक़ई अनछुई कच्ची कली थी ज्योति। ज़ुबान की बेशक तेज़ रही हो पर एक दम मासूम। राज प्लेट पकड़ने के बहाने ज्योति का हाथ पकड़ लिया। ज्योति सिहर उठी। ये देख राज ने मुस्कुराते हुए पूछ लिया-
"अरे तुम तो डर गयीं, नाबालिग़ हो?" ज्योति को राज से ऐसे किसी भी सवाल की उम्मीद नहीं थी।
ज्योति- "नहीं! २३ की हूँ।" राज ने छेड़ते हुए कहा- "बिहेवियर तो १५ साल की लड़की की तरह कर रही हो, अच्छा चलो अपने हाथ से पकोड़े खिलाओ अपने जीजा जी को.."
ज्योति- "आप ख़ुद खा लीजिये!" हिचकिचाते हुए कहा। राज में ज्योति के हाथ अपने मुँह के पास ले जाते हुए कहा-
"क्यों डर लग रहा है कि मैं तुम्हारा हाथ खा जाऊँगा, सुबह तो खुलकर मेरे बदन पर हल्दी लगा रही थीं, तब घबराहट नहीं हो रही थी?" कहते हुए वो ज्योति का हाथ अपने होंटो के पास ले आया। ज्योति समझ गयी थी कि राज ने उसे ऐसी बात पर घेर लिया था जिसका जवाब उसके पास नहीं था। ज्योति ने सर झुकाकर अपने हाथ राज के होंटों के नज़दीक कर दिया जिससे वो पकोड़ा खा सके और राज ने मौक़े का फ़ायदा उठाकर ज्योति की दो उँगलियाँ ही अपने मुँह में डाल लीं और अपने होटों से लगभग चाट डालीं। ज्योति सिहर उठी। वो तो बस प्लेट वहाँ रखकर जाना चाहती थी कि राज ने उसकी कलाई पकड़ते हुए कहा-
"क्या हुआ? ऐसा क्या कर दिया जो भाग रही हो?"
ज्योति- "मुझे जाना है, देर हो रही है!" राज ने अपने मज़बूत हाथों से ज्योति को अपने क़रीब खींचते हुए कहा-
"क्यों मेरा साथ अच्छा नहीं लग रहा?" कहते हुए वो अपने गाल ज्योति के इतने क़रीब ले आया कि उसके चेहरे पर लगा साबुन ज्योति के गाल पर लग गया। ज्योति सँभल पाती कि राज ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा और ज्योति के कँधे पकड़कर उसे शीशे के सामने कर दिया। ज्योति ने देखा कि उसके चेहरे पर साबुन से दाढ़ी-मूँछ बन गयी है। ज्योति ने प्यार भरी शिकायत करते हुए अपना चेहरा पोंछना शुरू कर दिया-
"ये क्या किया जीजा जी!" राज ने ज्योति के दोनों हाथ पकड़ लिया-
"नहीं रुको, एक ही बार पोंछना! तुम्हें एक खेल दिखता हूँ। बस सीधी खड़ी रहो।" कहते हुए उसने अपने गाल से ज्योति के गाल पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। पहले तो ज्योति ने हल्का विरोध किया-
"जीजा जी प्लीज़ मुझे जाने दीजिये.." राज ने ज्योति के दोनों हाथ जकड़ते हुए कहा, "कुछ कहा मैंने? कुछ ग़लत किया? नहीं ना। बस एक खेल खेल रहा हूँ, साबुन खेल। बचपन में हम सब खेला करते थे!" कहते हुए उसने अब अपना चेहरा ज्योति की गर्दन पर घूमना शुरू कर दिया। ज्योति को अब राज की ये छुवन अच्छी लग रही थी। उसका विरोध ढीला होता जा रहा था और राज की पकड़ मज़बूत। राज ने देखा कि ज्योति की आँख बंद ,है उसके वक्ष उसके सामने थे। उसने साहस करके धीरे से अपने हाथ ज्योति के एक
वक्ष पर रख दिया। राज का हाथ अपने वक्ष पर अचानक से पाकर ज्योति चौंक उठी। उसने लगभग राज को धक्का दे दिया-
"जीजा जी ये क्या कर रहे हैं आप, हटिये मुझे जाने दीजिये!" कहते हुए वो जाने को थी के राज जोर से हँस पड़ा।
"सॉरी! सॉरी! यार मुझे नहीं पता था तुम एक डरपोक, पिछड़ी हुई नाबालिग़ बच्ची हो। सॉरी!" ज्योति को ऐसा महसूस हुआ जैसे राज ने ये तीन शब्द कहकर उसे गाली दे दी है। उसके अहम को ठेस पहुँच गयी थी। उसने वहाँ पड़े टॉवेल से अपना मुँह पोंछते हुए कहा-
"ना मैं डरपोक हूँ, ना पिछड़ी हुई और ना ही नाबालिग़!" इसके तुरंत बाद जो राज ने जो किया ज्योति को उसकी उम्मीद ही नहीं थी। राज ने अपनी दोनों हथेलियाँ ज्योति के वक्षों पर रख दीं।
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