वासना का भंवर

Post Reply
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

वासना का भंवर

Post by kunal »

वासना का भंवर

केरल के सेंट मैरी शहर के पुलिस स्टेशन में सुबह ८ बजे की हलचल थी। रात के स्टाफ़ की ड्यूटी ख़त्म हो रही थी लिहाज़ा मॉर्निंग स्टाफ़ के साथ हैन्डिंग ओवर की प्रक्रिया चल रही थी। थाना इंचार्ज जय सिंह जिसकी उम्र लगभग ३6 साल की थी, क़द ६ फ़ीट, रंग गेहूँआ। अपने रिलीवर का इंतज़ार कर रहा था।

ये रात भी बिना किसी जुर्म के कट गयी। कोई वारदात नहीं हुई थी। इस बात की तसल्ली के साथ वो चाय की चुस्कियाँ ले रहा था कि अचानक कंट्रोल रूम का फ़ोन लम्बी घंटी के साथ बज उठा। वहाँ खड़े सभी पुलिसकर्मी चौंक गये। कंट्रोल का फ़ोन एक ऐसा फ़ोन था जिसकी घंटी कोई भी नहीं सुनना चाहता था।

जय ने हाथ बढ़ाकर फ़ोन उठा लिया-
"हैलो पंजिम पुलिस स्टेशन, एस एच ओ जय सिंह।" जय ने कंट्रोल से कुछ आदेश लिये और हरकत में आ गया। उसने अपनी टोपी उठायी और स्टाफ़ को आवाज़ लगाते हुए कहा-
"जल्दी चलो.. होटल तलसानियाँ.." अगले ही पल पुलिस की वैन अपना परिचित सायरन बजाते हुए केरल की सड़कों पर दौड़ रही थी। जिसमें तीन हवलदार और दो लेडी कांस्टेबल भी थीं। मामला गंभीर लग रहा था। जय ने वक़्त बर्बाद न करते हुए रास्ते में ही डिटेक्टिव कुणाल को फ़ोन लगा दिया।

कुणाल जिसकी उम्र ४० के आस पास रही होगी। सर पे हल्के घुँघराले बाल। हर काम धीमी गति से करने की जिसकी आदत है। यहाँ तक कि बात भी उसी गति से करता है। उसने सुबह की पहली उबासी लेते हुए पूछा-
"बोलिये जय जी सुबह-सुबह मेरी याद कैसे आ गयी।

जय जो अभी भी अपनी जीप में होटल तलसानियाँ की तरफ़ बढ़ रहा था उसने मुस्कुराते हुए कहा-
डिटेक्टिव कुणाल अभी-अभी एक वारदात हुई है होटल तलसानियाँ में, वहीं जा रहा हूँ। सोचा आप इस केस में इंट्रेस्टेड होंगे तो फ़ोन कर दिया।"

कुणाल- "क्या हुआ है?"

जय- "मर्डर
एक नहीं दो-दो ..हनीमून कपल था।" इतना सुनकर कुणाल की नींद हवा हो गयी।

"रियली? साउंड्स वीयर्ड! ठीक है मैं पहुँचता हूँ।" कहते ही वो बाथरूम में घुस गया।

उधर होटल तलसानियाँ की तीसरी मंज़िल के कमरा नंबर 224 के बाहर होटल के स्टाफ़ की भीड़ जमा थी। तभी इंस्पेक्टर जय को अपनी टीम के साथ वहाँ पाकर, वहाँ के मैनेजर कुलकर्णी ने सबको पीछे कर दिया और जय को रास्ता दिखाते हुए रूम नंबर 224 में ले गया। जय वो नज़ारा देखकर चौंक गया। वहाँ ज़मीन पर एक लड़का जिसकी उम्र लगभग २८ साल की रही होगी, सर से ख़ून बहकर सूख गया था। हाथ में चाक़ू था जो ख़ून से सना हुआ था। ये राज है। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसने इस चाक़ू से उस लड़की का क़त्ल कर दिया है जिसकी लाश सामने ही बैड पर पड़ी थी। जय ने नज़दीक जाकर देखा, बैड पर एक ख़ूबसूरत लड़की की लाश पड़ी थी। ये डॉली थी। बदन से काफ़ी ख़ून बहने से पूरा का पूरा बिस्तर ख़ून से भरा हुआ था। जय ने कुलकर्णी की तरफ़ रुख़ करते हुए पूछा-
"कौन हैं ये लोग?"

कुलकर्णी- "सर इस लड़के का नाम राज शर्मा है और ये इसकी पत्नि डॉली शर्मा। हनीमून के लिए आये थे यहाँ। दो दिन पहले ही इन्होंने इस होटल में चेक इन किया था और आज सुबह जब हाउस कीपिंग वाला राउंड पर आया तो उसने रूम नंबर 224 में इन दोनों की लाश देखी... फ़ौरन मैंने १०० नंबर पर फ़ोन कर दिया।" जय ने हवलदार को दोनों लाशों का मुआयना करने को कहा और ख़ुद कुलकर्णी के साथ बाहर आ गया।

जय अभी कुलकर्णी से पूछताछ कर ही रहा था कि जय ने देखा डिटेक्टिव कुणाल भी वहाँ पहुँच चुका था। सर पर एक भूरे रंग की हैट और उससे मैचिंग लम्बा कोट। जय ने उसे आधी ही बात बतायी थी पर कुणाल पूरी बात समाझ गया था। यही तो उसकी ख़ासियत थी कि वो इन्सान की चाल देखकर बता देता था कि वो कहाँ से आया है और कहाँ को जायेगा। वक़्त बर्बाद ना करते हुए उसने जय के साथ रूम नंबर 224 का रुख़ किया। जहाँ पुलिस टीम वारदात के सारे सबूत इकठ्ठा कर रही थी। कुणाल ने डॉली की लाश को ग़ौर से देखा जिसकी उम्र २५-२६ के आस पास थी। निहायत ख़ूबसूरत, रंग गोरा। कुणाल ने तो आँखों से ही उसका क़द नाप लिया ५" ७' और फिर राज की लाश को जिसका रंग गोरा था, वर्ज़िशी बदन, देखने में किसी अच्छी फ़ैमिली से लग रहे थे दोनों।

जय- "मुझे तो कोई आपसी झगड़े का मामला लगता है। शायद एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर का चक्कर। हाल में कुछ मामले आये हैं मेरे सामने कि शादी के बाद लड़कियाँ अपने पुराने बॉयफ़्रेंड्स से मिलती हैं जिससे उनके पतियों को तकलीफ़ होती है या लड़के को उसकी एक्स-गर्लफ़्रैंड मिलने आती है और पत्नि को पता चल जाता है। कुणाल ने ग़ौर से दोनों लाशों को देखते हुए कहा,

"पोस्सीबल है.." पर अब इस बात की पुष्टि करने के लिए दोनों में से कोई ज़िन्दा नहीं है! अब तो हमें उन सुबूतों पर निर्भर होना पड़ेगा जो यहाँ मिलेंगे या फिर वही पोस्टमोर्टम रिपोर्ट, CCTV फ़ुटेज। आप एक काम कीजिये लाशों को पोस्टमोर्टम के लिए भिजवाइये, CCTV फ़ुटेज चेक करवाइये फिर देखते हैं।" कहते हुए उसने अपनी सिगरेट निकाली और उसे सूँघता हुआ बाहर कॉरिडोर में आ गया।

पुलिस टीम के लोग, प्राथमिक औपचारिकता के बाद दोनों लाशों को स्ट्रेचर पर ले जा रहे थे। जय कुलकर्णी से पूछताछ करने लगा। कुणाल जेब से लाइटर निकालकर सिगरेट जलाने लगा कि अचानक सिगरेट जलाते हुए कुणाल की नज़र ज़मीन पर गयी। उसने पाया कि कुछ ख़ून की बूँदें कॉरिडोर में गिरी हुई हैं। उसने वहीं से आवाज़ लगाकर उन लोगों को रोक दिया जो इन लाशों को ले जा रहे थे।

कुणाल-"ऐ ... एक मिनट रुको.." और भागता हुआ डॉली और राज की लाश के पास आ गया। उसकी ये हरकत देख जय भी चौंक गया। कुणाल ने ग़ौर से देखा के ख़ून की बूँदें राज की लाश से टपक रही थीं। उसने फट से अपने कोट की जेब से रबर का दस्ताना निकालकर पहना और राज की गर्दन पर हाथ रख कर उसकी नब्ज़ देखने लगा। जय भी ये नज़ारा देखकर हैरान था। कुणाल ने तब सबको ये कहकर चौंका दिया-
"ये लड़का ज़िन्दा है! जय जी जल्दी एम्बुलेंस बुलवाइए।"

कुणाल की बात सुनकर जय हरकत में आ गया उसने एक हवलदार को इशारा किया और वो हवलदार अपना फ़ोन निकालकर काम पे लग गया।

जय- "आपको कैसे शक हुआ कि ये ज़िन्दा है?"

कुणाल- "इसकी बॉडी का ख़ून अभी सूखा नहीं है, जबकि इस लड़की की बॉडी का ख़ून सूख चुका है।" कहते हुए उसने अपनी सिगरेट जला दी।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: वासना का भंवर

Post by kunal »

जय भी कॉरिडोर में राज के बदन से टपकी इक्का-दुक्का ख़ून की बूँदों को देख रहा था। इतनी बारीक नज़र रखता है डिटेक्टिव कुणाल, इसीलिए तो जय भी उसे मानता है।

कुछ ही पलों में एम्बुलेंस होटल के आहाते में आ गयी और डॉली की लाश को मुर्दाघर में और राज को इलाज के लिए हॉस्पिटल भेज दिया गया। अगले ही पल जय और कुणाल होटल तलसानियाँ के रेस्टोरेंट में बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। होटल का मैनेजर अपना रजिस्टर लेकर जय को उपयुक्त जानकारी दे रहा था। जय ने मैनेजर से पूछा-
"ये दोनों 224 में कब से रुके हैं?" कि मैनेजर कुलकर्णी ने कुणाल को ये कह कर चौंका दिया-

"नही सर ये दोनों राज शर्मा और उनकी पत्नी डॉली शर्मा तो 331 नंबर रूम में रुके थे। ये रूम तो कल तक ज्योति शर्मा नाम की लड़की के नाम से बुक था।"

"ज्योति शर्मा?" इस केस में नया नाम सुनकर कुणाल ने हैरानी से जय की ओर देखा। जय जानता था कि उसे क्या करना है, उसने फट से मैनेजर से कहा-
इस वक़्त ज्योति शर्मा कहाँ मिलेगी? उसका कोई फ़ोन नंबर?"

मैनेजर रजिस्टर पलटकर उसे ज्योति शर्मा की सारी इन्फ़ोर्मशन देने लगा।
उधर केरल एयरिपोर्ट पर अनायुन्स्मेंट हो रही थी, "मिस ज्योति शर्मा जो गो एयर की उड़ान संख्या GA 563 से दिल्ली जा रही हैं, उनके लिए ये फ़ाइनल कॉल है। कृपया बोर्डिंग के लिये प्रस्थान करें।" कि अचानक वहाँ बैठी एक ख़ूबसूरत लड़की की ये आवाज़ सुनकर नींद खुली। ये ज्योति थी। रंग गोरा उम्र लगभग २४ साल, सर पे हल्के घुँघराले बाल। किसी मॉडल से कम नहीं लग रही थी। उसे एहसास हुआ कि नींद के कारण उसकी फ़्लाइट छूटने वाली थी। उसने तो अभी सिक्यूरिटी चेक भी नहीं किया था। बस हाथ में बोर्डिंग पास पकड़े सो गयी थी। उसने अपना एक हैण्ड बैग हाथ में लिया और ट्राली बैग को घसीटते हुए सिक्यूरिटी चेक इन काउंटर की तरफ़ दौड़ने लगी।

"हट जाइये... प्लीज़ मेरी फ़्लाइट छूट जायेगी... प्लीज़ रास्ता दीजिये।" वो दौड़ते हुए सभी से आग्रह कर रही थी, पर वो जैसे सिक्यूरिटी चेक इन काउंटर पर पहुँचने वाली थी कि उसका फ़ोन बज उठा। उसने देखा कि ट्रू कॉलर पर केरल पुलिस फ़्लैश हो रहा था। ज्योति हैरान हुई कि केरल पुलिस का फ़ोन उसे क्यों आ रहा है? उसने झट से फ़ोन उठाया-
"हैलो, कौन?"

दूसरी ओर होटल तलसानियाँ के रिसेप्शन से जय कुलकर्णी के साथ खड़ा था। जिसने रजिस्टर में ज्योति का नंबर देखकर अपने मोबाइल से उसे फ़ोन लगाया था।

जय- "मिस ज्योति मैं इंस्पेक्टर जय बोल रहा हूँ, केरल पुलिस। आपसे ज़रूरी बातचीत..."

ज्योति ने उसकी बात काटते हुए कहा-
"देखिये आपको जो भी बात करनी है ५ मिनट के बाद कीजिये प्लीज़, मेरी फ़्लाइट छूट जायेगी।"

जय ने सख़्ती से जवाब दिया-
"आप कहीं नहीं जा रहीं, आप होटल तलसानियाँ के जिस कमरा नंबर 224 में ठहरी थीं उसमें एक ख़ून हो गया है.."

ज्योति- "ख़ून? किसका?"

जय- " एक लड़की का.... नाम है डॉली... हेलो! हेलो, मिस ज्योति आप सुन रही हैं?"

ज्योति को तो काटो ख़ून नहीं, वो सुन रही थी कि उसके नाम की अनाउंसमेंट बार-बार हो रही है।

ज्योति- "जी हाँ.."

जय ने आगे लगभग उसे चेतावनी देते हुए कहा-
"आप इसी वक़्त अपनी फ़्लाइट कैंसिल करवाकर होटल तलसानियाँ पहुँचिए, वर्ना आपको यहाँ बुलवाने के लिए हमें गुड़गाँव पुलिस की मदद लेनी पड़ेगी..."

ज्योति ने ख़ुद को सँभालते हुए कहा-
"हाँ... मैं आ रही हूँ वापस.." उसकी आँख भीगने लगी थी, गला भर रहा था।

जय- "थैंक्स.. क्या आप जानती थीं इस लड़की को?"

ज्योति ने एक छोटा-सा विराम लेते हुआ कहा-
"जी हाँ! डॉली मेरी बड़ी बहन है।" इसके आगे तो ज्योति के सर के ऊपर से उड़ते हवाई जहाज़ के शोर में कुछ सुनायी नहीं दिया कि ज्योति और जय में क्या बातचीत हुई।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: वासना का भंवर

Post by kunal »

कुणाल अब जय के पीछे होटल तलसानियाँ के रिसेप्शन पर आ चुका था। कुणाल ने जय की आँखों में हैरानी भरे भाव पढ़ते हुए पूछ लिया-
"क्या हुआ?"

जय- "224 नंबर रूम में जहाँ डॉली का क़त्ल हुआ, वो उस रूम में नहीं बल्कि 331 में अपने पति के साथ ठहरी हुई थी।"

कुणाल- "तो फिर इस रूम में कौन ठहरा था?"

जय- "डॉली की छोटी बहन...ज्योति शर्मा।" ये सुनकर तो कुणाल भी चौंक गया, उसके चेहरे पर एक चमक थी कि केस इंट्रेस्टिंग होने वाला था।

जय- "मुझे तो लगता है दो बहनों के झगड़े का मामला है।"

कुणाल ने जय की बात काटते हुए कहा-
"बहुत जल्दी रहती है आपको केस क्लोज़ करने की जय जी। आपको क्लूज़ मिले हैं, सबूत नहीं। सब्र कीजिये अभी तो कहानी शुरू हुई है। अभी तो किरदारों ने कहानी में आना शुरू किया है। अभी तो कई किरदार आने बाक़ी हैं।" अपने परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए उसने जेब से सिगरेट निकाली और उसे सूँघता हुआ वहाँ से निकल गया।

जय जानता था कि बहुत मेहनत करवाने वाला था कुणाल उससे, पर वो उसके लिए तैयार था। क्योंकि वो जानता था बेशक वक़्त लेता है डिटेक्टिव कुणाल पर जुर्म की जड़ तक पहुँचता है कि अचानक एक हवलदार ने जय को आकर बताया कि ज्योति शर्मा होटल पहुँच रही है।


जय- "ठीक है कुलकर्णी से कहो कुछ वक़्त के लिए उनका कॉफ़्रेंस हॉल हम इस्तेमाल करेंगे।" वो हवलदार से बात करते हुए होटल के मेन गेट पर पहुँच गया। उसने देखा कि कुणाल उससे पहले ही वहाँ मौजूद था। वो रह-रहकर अपनी घड़ी देख रहा था।

जय हैरान था कि कुणाल किसका इंतज़ार कर रहा है! कि तभी वहाँ एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से उतरी ज्योति शर्मा। उसके हाव भाव देखकर कुणाल पहचान गया कि यही ज्योति है और जय भी जान गया कि कुणाल ज्योति का ही इंतज़ार कर रहा था। कुणाल ने आगे बढ़कर ज्योति की तरफ़ हाथ बढ़ा दिया-
"आप मिस ज्योति शर्मा हैं? हाय! आई एम डिटेक्टिव कुणाल और ये इंस्पेक्टर जय इन्होंने आपको फ़ोन किया था।"

ज्योति वहीं खड़े-खड़े रो दी।

"क्या हुआ डॉली को? कहाँ हैं वो मुझे उसे देखना है।"

जय- "उनकी बॉडी को पोस्टमोर्टेम के लिए ले गये हैं, आप अंदर चलिये, अंदर बैठकर बात करते हैं।" कहते हुए उसने शिष्टाचार का परिचय देते हुए ज्योति का बैग ख़ुद पकड़ लिया।

होटल तलसानियाँ के कॉफ़्रेंस हॉल में कुलकर्णी ने सारा इंतज़ाम कर दिया था। जहाँ ज्योति अब बीच में एक कुर्सी पर बैठी थी। उसके आँसू बहकर सूख चुके थे और सामने जय बैठा था। कुणाल दूर कोने में उस वार्तालाप के शुरू होने का इंतज़ार कर रहा था जो अब जय और ज्योति के बीच होने वाली थी।

ज्योति ने पानी पीकर टेबल पर ख़ाली गिलास रखकर जय से पूछा-
"क्या मेरे घरवालों को पता है कि डॉली..?"

जय ने उसकी बात को काटते हुए कहा-
"उनको भी फ़ोन कर देंगे पर कुछ सवाल पहले आपसे पूछना चाहता हूँ। ये तो आपने बता दिया कि डॉली आपकी बहन थी और राज आपका जीजा। वो लोग हनीमून के लिए यहाँ आये थे, पर सवाल मेरा ये है कि आप इन दोनों के हनीमून के बीच क्या कर रही थीं? वो भी उनके ही होटल में और उनके बग़ल वाले कमरे में?"

जय के इस सवाल का जवाब ना देते हुए ज्योति ने जय को ही पूछ लिया-
"मेरे जीजा जी.. राज शर्मा कहाँ है?"

जय ने एक बार कुणाल को देखा, "वो हॉस्पिटल में हैं.. उनका इलाज चल रहा है!"

ज्योति - "क्या हुआ राज को?"

"वो भी उसी कमरे में बुरी तरह ज़ख़्मी हालत में हमें मिले जहाँ आपकी बहन की लाश। उनके हाथ में एक चक्कू था जिससे शायद डॉली का.." कहते हुए वो रुक गया।

ज्योति- "मतलब! राज ने डॉली को मार दिया...?"

जय- "फ़िलहाल हम कुछ नहीं कह सकते, कि राज ने डॉली को मारा या फिर दोनों को किसी तीसरे ने?" कहते हुए उसने ज्योति पर अपनी तीखी नज़र गाड़ दी।

जय की बात सुनकर ज्योति चौंक गयी। उसके मुँह से अचानक निकल गया-
"ये कैसे हो सकता है, मैं सबकुछ तो ठीक करके गयी थी!"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: वासना का भंवर

Post by kunal »

जय ने ज्योति के इस वाक्य को अपने अगले सवाल का आधार बनाते हुए पूछा-
"क्या ग़लत था दोनों के बीच जो तुम ठीक करके गयी थीं? बोलो ज्योति!"

ज्योति अब अपनी बात कहकर घबरा गयी थी। वो अब जय की किसी भी बात का जवाब नहीं देना चाहती थी।

"देखिये पहले आप मेरे घरवालों को इन्फ़ॉर्म कर दीजिये.."

जय ने उसकी बात को काटते हुए कहा-
"यही सवाल तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे पूछेंगे? क्या कर रही थीं तुम अपनी बहन के हनीमून पर? क्या ठीक करने आयी थीं तुम यहाँ? जिससे तुम्हारी बहन डॉली की जान चली गयी और तुम्हारे जीजा जी जान से जा-जाते!" ज्योति चुप थी मानो वो कोई सच्चाई छुपाना चाह रही हो।

जय ने कुणाल को देखा मानो थोड़ी सख़्ती की अनुमति माँग रहा हो और कुणाल ने अपना सर हिलाकर उसे अनुमति दे दी। इसके बाद जय अपनी कुर्सी ज्योति के और क़रीब ले आया और सीधा उस पर इल्ज़ाम लगा डाला-
"कोई झगड़ा था डॉली के साथ तुम्हारा? जिसका बदला लेने के लिए तुम उसके पीछे आ गयीं?"

ज्योति- "बदला? मैं? अपनी बहन से?"

जय- "हाँ बदला.. वही तो मैं जानना चाहता हूँ! किस बात का बदला लेना चाहती थीं तुम अपनी बहन से? ऐसी क्या ग़लती हो गयी थी उससे कि तुमने इतनी बेरहमी से उसका मर्डर कर दिया, फिर अपने जीजा को मारने की कोशिश की!" कहते हुए उसने ज़ोर से टेबल पर अपना हाथ दे मारा।

ज्योति पहले तो जय के मज़बूत हाथों की थाप सुनकर डर गयी। पर फिर ख़ुद को सँभालते हुए बोली-
"गलत कर रहे हैं आप इंस्पेक्टर साहब। आपके पास पावर है इसका मतलब ये नहीं कि आप मुझे पर दबाव डालकर मुझसे कुछ भी क़बूल करवा लेंगे। मैंने डॉली का ख़ून नहीं किया, ना ही अपने जीजा को मारने की कोई ऐसी कोशिश की। मैं तो रात को १ बजे ही होटल से चली गयी थी। ये देखो मेरा बोर्डिंग पास १.४० पे मैंने लिया था।" कहते हुए उसने अपना बोर्डिंग पास निकालकर जय को थमा दिया।

जय ने भी ज्योति की बात की पुष्टि की और बोर्डिंग पास कुणाल को थमा दिया जो उसे ध्यान से देखने लगा। ज्योति ने आगे कहा-
"आप पुलिस वालों का यही काम है, असली मुजरिम को कभी पकड़ते नहीं, जो हाथ आया उसे मुजरिम साबित करने के लिए पूरी ताक़त लगा देते हो।"

जय की नज़रें कुणाल से मिलीं, मानो उससे पूछ रहा हो कि अब आगे क्या करना है।

ये देख कुणाल ने मुस्कुराते हुए ज्योति को देखा और उसके सामने कुर्सी पर आकर बैठ गया। वो अपने परिचित अंदाज़ से अपनी गर्दन इधर-उधर घूमा रहा था। जय जानता था कि जब भी कुणाल ऐसे गर्दन घूमाता है तो अपने पिटारे से कुछ न कुछ ज़रूर निकलता है।

कुणाल ने ज्योति के सामने एक मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा-
"देखो ज्योति सही कहा तुमने ये पुलिस वाले कई बार अपनी पावर का ग़लत इस्तेमाल करते हैं और असली मुजरिम को पकड़ने की बजाए अपनी सारी पावर किसी कमज़ोर बेगुनाह को मुजरिम साबित करने में लगा देते हैं।" वो ये बात अब ज्योति की आँख में आँख डालकर कह रहा था और ज्योति ख़ुद को कुणाल के अगले सवाल के लिए तैयार कर रही थी। कुणाल ने एक लम्बा साँस लेते हुए कहा-
"और तुम अब इंस्पेक्टर जय के हत्ते चढ़ गयी हो और मुझे पूरा यक़ीन है कि ये अपनी सारी पावर तुम्हें मुजरिम साबित करने में लगा देंगे और कामयाब भी हो जायेंगे। मैं इनकी क़ाबिलियत को जानता हूँ।"

ज्योति- "पर मैं आपसे कह रही हूँ कि मैंने डॉली का ख़ून नहीं किया!"

कुणाल- "फिर किसने? आई मीन तुम्हें किसी पे शक?

ज्योति- "शायद .. शायद राज ने?"

कुणाल- "शक? कि यक़ीन?"

ज्योति- "मुझे क्या पता? आप ही ने अभी-अभी कहा है कि दोनों एक ही कमरे में ज़ख़्मी हालत में मिले। राज के हाथ में चक्कू था।"

"वो कमरा तुम्हारा था.... तुम उसमें रुकी हुई थीं।" कुणाल ने अपनी आवाज़ हल्की सी ऊपर करते हुए कहा।

"मैंने कहा मैं रात को कमरा छोड़ चुकी थी!" ज्योति से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था वो फूट-फूट के रो पड़ी।

"मैं कुछ नहीं जानती... कुछ नहीं जानती!"

कुणाल- "ठीक है तो जो जानती हो वो बताओ!" ज्योति ने देखा कि कुणाल रुकने का नाम नहीं ले रहा था। उसके पास हर सवाल के जवाब में एक नया सवाल था। कुणाल ने ज्योति को आश्वासन देते हुए कहा-
"देखो ज्योति तुम्हारे पास ख़ुद को बचाने के लिए सिर्फ़ एक ही रास्ता है कि तुम मुझे पूरी कहानी सच-सच सुनाओ.. नहीं तो..."

ज्योति ने हैरानी जतलाते हुए कहा-
"नही तो क्या? मतलब क्या है आपका? ग़लती कर दी जो आपके कहने पर यहाँ चली आयी। हाँ मैं आयी थी अपनी बहन और जीजा के साथ घूमने। इसमें क्या बुराई है! और फिर किस बिनाह पर आप मुझ पर ये इल्ज़ाम लगा रहे हैं?"

कुणाल- "क्यों कि तुम्हारी बहन की लाश तुम्हारे कमरे में मिली है!"

ज्योति- "मैंने कहा मैं अपना कमरा छोड़कर जा चुकी थी, उसके बाद कौन मेरे कमरे में आया, मुझे क्या मालूम। आपको एक बार में बात समझ नहीं आती? बार-बार एक ही सवाल पूछे जा रहे हैं!"

कुणाल ज्योति की आँखें पढ़ रहा था जिनमें कई राज़ छुपे थे जो ज्योति बताना नहीं चाहती थी। ज्योति ने अपनी नज़रें घूमाते हुए कुणाल के हर सवाल को नकारते हुए कहा-
"आप मुझसे यूँ ही कुछ भी नहीं उगलवा सकते, समझे? मुझे अपने घरवालों से बात करनी !"

जय की अब सब्र की सीमा पार होने लगी थी। उसने टेबल पर ज़ोर से हाथ मारते हुए कहा-
"बोलती हो या दूसरा रास्ता अपनाऊँ?"

ज्योति भी बेबाक थी। उसने भी टेबल को धक्का देते हुए कहा-
“मारो! मरोगे मुझे? मारो। वीडियो बनाकर वायरल कर दूँगी कि कैसे पुलिस वाले पूछताछ करने के बहाने से बुलाकर मासूम लोगों को जुर्म क़बूल करने के लिए मजबूर करते हैं!"

जय की आँखों में क्रोध देखकर कुणाल ने उसे शांत रहने की सलाह दी। इस पर ज्योति ने आगे कहा-
"जो करना है कर लो, पर मैं ऐसा कोई भी बयान नहीं दूँगी जो आप चाहते हैं। मुझे कुछ नहीं पता ना ही मैं जानती हूँ।"

ये देख जय ने दरवाज़ा खोलकर दो लेडी हवलदार को बुलवाया और उन्हें ज्योति को पुलिस स्टेशन ले जाने का आदेश दे दिया। जय का आदेश पाकर हवलदार ज्योति को घसीटने लगे और ज्योति यही चिल्ला थी-
"ग़लत कर रहे हैं आप। बिना किसी सबूत के आप मुझे रोक नहीं सकते...मैंने डॉली का ख़ून नहीं किया।"

ज्योति के जाते ही जय ने कुणाल की ओर देखा जो अपने दिमाग़ में कोई नयी गणित कर रहा था। उसने उत्सुकतावश कुणाल से पूछ लिया-
"क्या लगता है आपको?"
Post Reply