वासना का भंवर

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Re: वासना का भंवर

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राज-"अभी साबित हो जायेगा!" कहते हुए उसने वैसे ही ज्योति को दीवार की तरफ़ धकेल दिया। ज्योति के बाल बिखर गये उसके साँसें बढ़ने लगीं थीं पर इस बार ज्योति ने राज का विरोध नहीं किया, वो ग़ुस्से में राज को देखे जा रही थी। ज्योति की साँसें ज़ोर-ज़ोर से चल रही थीं। जिससे उसके वक्ष ज़ोर-ज़ोर से हिल रहे थे और राज के हाथ उसके वक्षों से ताल-मेल बिठा रहे थे।
"वर्जिन हो?" राज का अगला प्रश्न भी ज्योति के अहम को एक और चोट पहुँचाने के लिए काफ़ी था। ज्योति के जवाब से पहले ही राज ने कह दिया-
"जानता हूँ, कभी किसी लड़के ने नहीं छुआ तुम्हें। इतने तने हुए आकर्षित वक्ष सिर्फ़ एक वर्जिन लड़की के ही हो सकते हैं। कभी इन्हें शीशे में देखा है? देखना ख़ुद महसूस करोगी कितने ख़ूबसूरत हैं, जिन्हें किसी की तारीफ़ की ज़रूरत है.." ज्योति तो राज की किसी भी बात का जवाब नहीं दे रही थी। वो बस राज को देखे जा रही थी। राज भी अब समझ चुका था कि चिड़िया जाल में फँस चुकी है। उसने ज्योति के चेहरे पर अपनी साँस बिखरते हुए कहा-
"किस कर लूँ?" ज्योति बस लम्बे-लम्बे साँस लेकर राज को घूरे जा रही थी। उसकी लटें माथे पर बिखर कर राज को आमंत्रण दे रही थीं कि राज ने हिम्मत दिखायी और वो अपने होंट जैसे ही ज्योति के गाल के नज़दीक लेकर गया, ज्योति ने राज को एक धक्का दिया और राज के चेहरे पर तीन चार चपत जड़ डाले। राज एकदम अवाक रह गया। उसे ज्योति से इस रव्विये की उम्मीद नहीं थी। एक पल के लिए वो डर भी गया। उसने देखा कि ज्योति अभी भी ग़ुस्से से साँसें फूला रही है। अब राज को लगा कि उसे ज्योति से माफ़ी माँग लेनी चाहिए,
पर उससे पहले ही ज्योति वहाँ से भाग गयी। राज की नज़रों में एक डर था कि कहीं ज्योति ये बात किसी को जाकर बता ना दे।
उधर ज्योति जैसे ही लड़की वालों की तरफ़ पहुँची, तो पाया वहाँ काफ़ी हलचल थी। हॉल में हर औरत अपनी सुविधा अनुसार जगह ढूँढ़ कर तैयार हो रही थी। ज़्यादातर सभी औरतें, चाची, ताई, मामियाँ, बुआ सभी तो पेटीकोट और ब्लाउज़ में ही थीं। किसी को किसी से शर्म नहीं थी कि अचानक कांता चाची ने उसके कँधे पर हाथ मर कर उसे चौंका दिया-
"कहाँ रह गयी थी तू? पकोड़े लेने गयी थी ना!" इतना सुनते ही ज्योति के सामने राज के संग उसकी मुलाक़ात में मंज़र उभर गये।
"वो मैं.. ज़रा अरेंजमेंट देख रही थी.." कहते हुए उसने देखा कि कांता चाची ने हाथ में एक छोटा-सा शीशा पकड़ा हुआ है और उसमें देखकर वो लिपस्टिक लगा रही है। उसने नीले रंग का ब्लाउज़ और पेटीकोट पहना हुआ था। जिसमें से चाची के बड़े-बड़े वक्ष ब्लाउज़ से दब रहे थे। अचानक चाची ने देखा कि ज्योति उसके वक्षों को बड़े ध्यान से देख रही है।
"क्या देख रही है?" चाची ने अपने होंटों से लिपस्टिक को दबाते हुए पूछा। ज्योति ने शरारत भरे स्वर में कहा-
"चाची चाचू आपके वक्षों की तारीफ़ करते हैं?" इतना सुन तो चाची का मुँह खुला का खुला रह गया-
"एक मिनट में यहाँ से चली जा नहीं तो थप्पड़ खा लेगी, चल जाकर तैयार हो, पता है न कीर्तन है। तेरी माँ को पता चल गया ना!" चाची की बात पूरी होने से पहले ही ज्योति ने चाची के गाल चूम लिये और उसके वक्षों की तरफ़ इशारा करते हुए बोली-
"यू आर हॉट चाची.." और चाची को आँख मार कर कमरे में चली गयी। अब तारीफ़ किसे अच्छी नहीं लगती? चाची भी एक पल के लिए मुस्कुरायी और फिर से शीशे में देखकर अपने होटों पर लिपस्टिक लगाने लगी।
इधर ज्योति जब कमरे में आयी तो देखा कि उसकी माँ डॉली का बैग पैक कर रही थी।
"ये देख इस तरफ़ तेरी सारी साड़ियाँ रखी हैं और इस तरफ़ ये तेरे नाइट सूट्स।" और डॉली भी किसी छोटे बच्चे की तरह हाँ में सर हिलाकर सब ध्यान से देख रही थी कि ज्योति को देखकर उसकी माँ उस पर बरस पड़ी-
"आ गयीं महारानी। घर में इतना काम पड़ा है और इनके सैर सपाटे ही ख़त्म नहीं होते!"
ज्योति- "माँ मुझे आज तक समझ नहीं आया कि मुझे देखकर तुम मुझ पर बरस क्यों पड़ती हो?"
माँ- "क्योंकि तेरी हरकतें ऐसी हैं। यहाँ इतने काम पड़े हैं। मैं मेहमानों को देखूँ या डॉली को?"
ज्योति- "अच्छा आप जाकर मेहमानों को देखो मैं डॉली को देख लूँगी!"
माँ बड़बड़ाती हुई बाहर निकल गयी। ज्योति ने देखा कि डॉली के लिए काफ़ी शौपिंग हुई थी। हर ड्रेस पे टैग लगा हुआ था। डॉली ने पैकिंग करते हुए ज्योति से पूछ लिया-
"कहाँ ग़ायब थी तू?" ज्योति ने एक पल के लिए डॉली को चौंका दिया-
"जीजा जी से मिलने गयी थी!"
डॉली- "क्या? पर क्यों?"
ज्योति- "कमाल है जीजा हैं मेरे, मिल नहीं सकती?" डॉली के पास इस बात का जवाब नहीं था। ज्योति बैड पर दोनों हाथों का सहारा लेकर बैठ गयी।
"जानना नहीं कि उन्होंने क्या कहा?"
डॉली- "नहीं!"
ज्योति- "ठीक है तो फिर नहीं बताते कि जीजा जी ने क्या-क्या कहा? क्या-क्या किया?
डॉली- "क्या किया? मतलब क्या है तेरा?" ज्योति ने शरारत भरी मुस्कान बिखरते हुए कहा-
"जब तुझे जानना ही नहीं तो फिर जाने दे!" अब डॉली के मन में उत्सुकता बढ़ रही थी कि अचानक दरवाज़ा, खुला चाची ने लगभग डॉली को खींचते हुए कहा-
"जल्दी चल बाहर, तेरी सास आयी.." कहते हुए वो डॉली को बाहर ले गयी।

ज्योति वहाँ पड़े डॉली के कपड़ों को देख रही थी। उसने डॉली की ब्रा उठा ली, जो गुलाबी रंग की थी। मानो वो अब कल्पना कर रही थी कि राज इस ब्रा को देखकर डॉली के वक्षों की तारीफ़ करेगा। अचानक वो ब्रा लेकर बाथरूम में घुस गयी। ख़ुद को शीशे में देखने लगी। उसके कानों में अभी भी राज की आवाज़ पड़ रही थी, 'तुमने कभी अपने वक्षों को ग़ौर से देखा है? बहुत सुंदर हैं..' राज की इन बातों को याद कर न जाने उसे क्या हुआ उसने फट से अपने ऊपर से अपनी कुर्ती उतार दी। उसने काले रंग की ब्रा पहनी हई थी। अब वो ध्यान से अपनी ब्रा कर हाथ फेर कर अपने वक्षों को देख रही थी। उसके कानों में राज का स्वर बार-बार गूँज रहा था। वो अपनी ब्रा उतारकर अपने वक्षों को देखना चाहती थी, पर ये उसे क्या हुआ आज उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी, बल्कि मन में एक गुदगुदी-
सी जो उसे ऐसा करने से रोक रही थी। फिर भी उसने हिम्मत की और अपनी ब्रा उतार कर फेंक दी और ख़ुद ही अपने वक्षों को अपने हाथ से ढँक लिया। ये पहली बार तो नहीं था कि वो अपने वक्षों को देख रही थी। पर आज वो अपने वक्षों को राज की नज़रों से देखने वाली थी। उसने धीरे-धीरे अपने हाथ अपने वक्षों से खिसका दिये। सही था राज, उसने बिना देखे ही अंदाज़ा लगा लिया था कि उसके वक्ष एक दम तने हुए हैं। हाँ वो वर्जिन थी ये भी वो समझ गया था। न जाने आज उसे ऐसा क्यों लग रहा था कि वो अपने वक्षों को सहलाये। वो वैसा ही करने लगी। उसे ये क्रिया अच्छी लग रही थी। अचानक उसने डॉली की पिंक ब्रा उठायी और अपने वक्षों पर लगाकर ऐसे महसूस करने लगी, मानो यही एक तार हो जो राज की छुवन को वक्षों से जोड़ेगी। पर वो वक्ष डॉली के होंगे। अभी वो इन अजीब से ख़यालों में गुम थी कि अचानक उसके पीछे बाथरूम का दरवाज़ा खुल गया। पीछे डॉली खड़ी थी। डॉली ये नज़ारा देखकर हैरान थी कि ज्योति निर्वस्त्र अपने वक्षों को सहला रही थी और उसके हाथ उसकी ब्रा थी। डॉली को तो समझ ही नहीं आया कि वो ज्योति से सवाल भी क्या पूछे-
"छी! क्या कर रही है तू, और ये मेरी ब्रा?"

ज्योति- "नहीं कुछ नहीं डॉली, वो मैं तेरी ब्रा देख रही थी कि मुझ पर कैसी लगेगी!" डॉली ने ज्योति के हाथ से अपनी ब्रा छीनते हुए कहा- "तेरा न इलाज करवाने वाला हो गया है। जल्दी तैयार होकर आ, वो लोग आ गये हैं। कीर्तन शुरू होने वाला है।" कहते हुए दरवाज़ा बंद करके चली गयी। अब ज्योति बेबाक होकर अपने वक्षों को शीशे में देख रही थी। मानो उसे उन पर गर्व हो। उसे राज की तारीफ़ पर यक़ीन हो चला था। पर वो ये क्या सोच रही थी। राज उसका होने वाला जीजा था, उसकी बहन डॉली का होने वाला पति। उसने जल्दी फ़व्वारा खोला और उसके नीचे खड़ी हो गयी। अपने बदन पर ख़ास कर वक्षों पर हाथ से मल-मलकर पानी साफ़ किया, जैसे कि वो राज के ख़यालों को मिटा देना चाहती हो।
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उस शाम ग्राउंड में टेंट लगाकर माता का कीर्तन था। कीर्तन गाने के लिए अरविंदर सिंह की पार्टी आयी हुई थी। बेशक मेहमान कम थे, सिर्फ़ लड़के वाले और लड़की वाले ही थे। पर अरविंदर सिंह ने अपने परिचित अंदाज़ से समा बाँध दिया था। पूरे कीर्तन में राज की नज़र ज्योति की नज़रों से मिलने को बेताब थी पर ज्योति ने उसकी तरफ़ नज़र ही नहीं की और इस बात को राज ने ईगो पर ले लिया था। कीर्तन ख़त्म होने के बाद आरती हुई, जहाँ परम्परा अनुसार डॉली और राज द्वारा आरती करवायी जा रही थी। इस पूरे फ़ंक्शन को प्रिय अपने कैमरे में क़ैद कर रही थी। वो शायद कैमरे के लेंस से देख पा
रही थी कि राज की नज़र ज्योति पर है। इसीलिए तो जब आरती ख़त्म हुई और राज ज्योति से बात करना चाहता था, रागिनी ने राज के कँधे पर हाथ रखकर उसे मुस्कुराते हुए कहा-
"राज प्लीज़ इस वक़्त मुझे तुम्हारा थोड़ा टाइम चाहिए, डॉली के साथ थोड़ी फ़ोटो खिंचवा लो.." राज ने भी मुस्कुराकर हामी भर दी और रागिनी उन दोनों को लेकर बाहर गार्डेन में चली गयी जहाँ राज और डॉली का फ़ोटो शूट होने लगा। बेशक राज रागिनी के कहने पर हर पोज़ दे रहा था, उसकी आँखें डॉली पर थीं पर मन की आँखों से वो ज्योति को ही देख रहा था। उस फ़ोटो शूट में सभी मौजूद थे, हर कोई अपने स्टाइल के पोज़ बता रहा था दोनों को।
ये सारा घटनाक्रम ज्योति कुणाल और जय को केरल के पुलिस स्टेशन में बता रही थी। कुणाल ने देखा कि इन लम्हों को याद करके ज्योति परेशान हो रही थी। ज्योति ने कहा-
"मैं समझ गयी थी कि मैंने राज की शिकायत किसी से नहीं लगायी तो उसका हौसला बढ़ गया था। अब वो रह-रहकर मुझसे अकेले में मिलने का मौक़ा तलाश करने लगा। जब कभी मौक़ा मिलता मुझे अकेले में पकड़ लेता। कभी मुझे हर जगह छूने की इजाज़त माँगता तो कभी किस करने की। इतना कि मैं डरने लगी थी।"
जय- "ये बात तुमने घर में किसी को क्यों नहीं बतायी?"
ज्योति- "क्या बताती? कि जीजा जी मेरे साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं? बवाल हो जाता। शादी सर पे थी। कुछ भी होता, मुझे ग़लत और राज को सही ठहराकर मुझे चुप करवा दिया जाता। बस मैंने तय कर लिया था कि मैं अपने तरीक़े से इस बात को सोल्व करूँगी।"
कुणाल- "तो फिर क्या किया तुमने?"
ज्योति- "मैं समझ चुकी थी कि राज मुझे पाने के लिए उतावला हो रहा है और अगर मैं राज को ख़ुद के बजाए डॉली के नज़दीक ले आऊँ तो शायद राज मुझे भूल जाये और मैं भी उस घटना को एक हादसा समझकर भूला दूँगी। मैंने तय कर लिया कि किसी भी तरह मैं डॉली को राज के साथ अकेले में मिलने भेज दूँगी।"
उसके बाद जो ज्योति ने बताया वो किसी फ़िल्मी मंज़र की तरह जय और कुणाल के सामने घूमने लगा। उस रात कोकटेल पार्टी और लेडीस संगीत का कार्यक्रम एक साथ रखा गया था। नीचे हॉल में औरतें बॉलीवुड के गानों पर थिरक रही थीं तो वहीं छत पर जेंट्स के लिए बार बन चुका था। ज्योति ने देखा कि डॉली इन औरतों के बीच बोर हो रही है। वो डॉली को चुपचाप छत पर ले आयी। उसने देखा दूर मर्द शराब पी रहे हैं, उनके बीच में ही कहीं राज भी होगा। ज्योति डॉली को साइड में ले गयी। ये देख डॉली ने ज्योति से पूछ लिया-
"तू मुझे यहाँ क्यों ले आयी है?"
ज्योति- "जीजू से मिलवाने.."
डॉली- "क्यों?"
ज्योति- "मिल के देख, कैसा है तेरा निर्णय, कितना सही है। मैं तो कहती हूँ आज ही अपनी वर्जिनिटी..." ज्योति इतना ही कह पायी थी कि डॉली ने फिर से अपने कानों पर हाथ रख लिया।
"छी.. फिर से मत शुरू हो जाना नहीं सुननी मुझे कोई गंदी बात.." डॉली के कान से उँगली हटाते हुए ज्योति ने कहा, "क्या छी? तो शादी क्यों कर रही है? अगर सेक्स नहीं करेगी तो बच्चे कैसे पैदा होंगे..?"
डॉली- " हाँ तो ये बातें कहने की थोड़े न होती हैं!" शर्माते हुए उसने कहा।
ज्योति- "हाय मेरी बुलबुल.. आम चूसना भी है पर उसके रस से हाथ गंदे भी न हों!"
डॉली- "मतलब?"
ज्योति- "मैं ना जीजू को हल्दी लगाने गयी थी... यार क्या बॉडी है उसकी! एक दम टाइट मसल्स। सच्ची पता है मैंने तो उसका पायजामा भी उतरवा दिया.."
डॉली- "पता चला मुझे, जो बेवक़ूफ़ी करके आयी तू वहाँ.. जा मैंने बात नहीं करनी तुझसे.." कहकर आधे मन से जाने को थी कि ज्योति ने उसे रोकते हुए कहा-
"सुनना तो सब चाहती है तू है ना?.. अच्छा सुन.. पता है मैं तो बस ये देखना चाहती थी कि मेरी बहन की चुनमुनियाँ में प्रवेश करने वाले बाबूराव का आकार क्या होगा। सच्ची मैंने न जब राज की जाँघों पर हल्दी लगायी न... तो उसके जाँघिये में हरकत हुई! सच्च्ची!.. मैंने कहा नॉक-नॉक... उसने मुझसे पूछा कौन? मैंने कहा साली... एक बार सूरत तो दिखायो बाबूराव.. पता तो चले कि मेरी बहन की क़िस्मत में क्या है?" ज्योति के मुँह से ऐसी बातें सुनकर डॉली बहुत हैरान थी।
डॉली- "हे राम... कहाँ से सीखती है तू ये सब बातें"
ज्योति- "सब नेट पे है.. ये देख.." कहते हुए ज्योति ने अपने मोबाइल पर एक पोर्न क्लिप चला दी। ये देख तो डॉली बस बेहोश ही होने वाली थी। उसने अपनी आँख बंद कर ली और वापस जाने लगी कि ज्योति ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा-
"अच्छा सुन.. जीजू से मिलना है अकेले में?
डॉली- "अकेले में? क्यों? क्या बकवास किये जा रही है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा!"
ज्योति- "चल स्ट्रैट टॉक... हाँ? सेक्स करना है जीजू के साथ?"
डॉली- "छी...मैं जा रही हूँ.. तेरी तरह अपना दिमाग़ ख़राब नहीं कर सकती मैं!" कहते हुए डॉली निकल ही रही थी कि ज्योति ने उसका रास्ता रोक लिया।
ज्योति- "हर्ज ही क्या है? जो कल करना है सो आज क्यों नहीं!..पति है तेरा.."
डॉली- "अभी हुआ नहीं!"
ज्योति- "तो तुझे डाउट है कि कल तुझसे शादी नहीं करेगा?"
डॉली- "नहीं...मतलब हाँ.. मतलब.. नहीं.. ज्योति शादी से पहले ये सब ठीक नहीं है!"
ज्योति- "इसका मज़ा ही कुछ और होता है डॉली... सच्ची बोल रही हूँ याद करेगी ज़िन्दगी भर मुझे..रुक...." डॉली कुछ बोल पाती कि उसने देखा एक लड़का सोनू जो उनकी बुआ का बेटा था, एक ट्रे में बर्फ़, सोडा और पानी लेकर जा रहा है। उसे देख ज्योति ने सीटी मारी। सोनू मुड़ा और ज्योति ने उसे इशारे से उसे अपनी और बुलवाया।
सोनू- "हाँ ज्योति दीदी कुछ चाहिए?"
ज्योति- "ये सब कहाँ लेके जा रहा है?"
सोनू- "वो वहाँ दूसरी तरफ़ सभी अंकल लोग बैठे हैं न!"
ज्योति- "सुन सोनू एक पऊआ मिलेगा?"
सोनू- "पऊआ नहीं, अधिया है.. ये मेरी बायीं जेब में, निकल लो!" डॉली तो शर्म से पानी-पानी हो रही थी कि ज्योति कैसे किसी गली के गुंडे की तरह सीटी मारकर उसके कज़न से शराब माँग रही थी।
ज्योति ने सोनू की जेब से एक अधिया निकला, पानी की एक बोतल और दो गिलास ट्रे से उठाये और सोनू को जाने के लिए कहा।
डॉली- "क्या कर रही है तू? वो सबको बता देगा!" ज्योति ने फिर सीटी मारी सोनू पलटा-
ज्योति- "ऐ सोनू... ये बात किसी को बताना नहीं!" सोनू भी स्मार्ट था, "मैं आपको जानता ही नहीं!.." कहकर हँसता हुआ चला गया।
ज्योति- "ये हैं आज की जैनरेशन.. चल आ जा.." कहते हुए डॉली का हाथ पकड़ते हुए किसी अँधेरे कोने में ले गयी। उसने दो गिलास में दो पैग बनाये, पानी डाला। डॉली देख रही थी कि ज्योति को तो पैग बनाने भी आते हैं। ज्योति ने डॉली को उसका गिलास पकड़ाते हुए कहा-
"गटक जा.."
डॉली- "नहीं, मैं नहीं पीती!.. मतलब कभी पी नहीं.. मुझसे नहीं पी जायेगी सच्ची ज्योति.."
ज्योति- "ओके चल खड़ी हो अभी पापा से जा के बोल दे कि तू ये शादी नहीं कर रही, चल खड़ी हो!" डॉली ज्योति की इस हरकत पर हैरान थी कि शराब न पीने से उसकी शादी का क्या तअल्लुक़ है? डॉली की आँख में सवाल पढ़ते हुए ज्योति ने कहा-
"शादी के बाद जीजा जी तेरे साथ सेक्स करेंगे और तू उन्हें यही कहने वाली है न? ना ना.. जी मैंने ये सब पहले नहीं किया... मुझसे नहीं हो पायेगा ...सच्ची!" मुँह बनाते हुए वो डॉली की नक़ल उतार रही थी। डॉली जानती थी कि ज्योति उसे पिलाये बिना मानेगी नहीं। उसने एक हाथ से अपना नाक पकड़ा और किसी कड़वी दवा की तरह उसने सारा गिलास एक ही घूँट में ख़ाली कर दिया। ज्योति के चेहरे पर एक जीत भरी मुस्कान थी।
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लड़के वालों की तरफ़ अब राज अपने दोस्तों और कज़ंस के साथ बियर पी रहा था। सभी राज को एक सुखद गृहस्थ जीवन की नसीहत दे रहे थे। कुल मिलाकर वो ख़ुद को एक जोकर महसूस कर रहा था। जैसे कि दुल्हे का तो मज़ाक़ उड़ने का हक़ हर एक को होता है। पूरी छत एक मिनी बार में बदल चुकी थी। जगह-जगह लोग छोटे-छोटे झुण्ड बनाकर व्हिस्की और बीयर पी रहे थे और एक ढोल वाला पंजाबी बोलियों के साथ सबको नचा रहा था। ज़्यादातर लोगों को चढ़ चुकी थी। सबके बेढंगे डांस इस बात का प्रमाण थे और रागिनी यह मोमेंट्स अपने कैमरे में क़ैद कर रही थी कि राज के एक दोस्त ने रागिनी को आवाज़ लगते हुए कहा-
"रागिनी मैडम एक फ़ोटो हमारी राज भाई के साथ हो जाये.. आज तो बैचलर है कल से इसके गले में भी पति नाम का पट्टा आ जायेगा। उसकी बात पर सभी ने सहमती दिखाते हुए राज को बीच में कर लिया और हाथों में गिलास पकड़कर रागिनी के कैमरे के लिए पोज़ देने लगे थे।
और उधर दूसरी ओर ज्योति और डॉली अब दो-दो पैग पी चुके थे। डॉली को चढ़ने लगी थी। उसने गिलास नीचे रखते हुए कहा-
"बस ज्योति.. अब मुझे नींद आ रही है.. मैं सोने जा रही हूँ.." ज्योति ने उसे झिंझोड़ते हुए कहा, "नहीं.. ऐसा करोगी तो राज तुम्हें कभी प्यार नहीं करेगा.. समझी.. आज की रात तो उसके टैस्ट की रात होनी चाहिए। अच्छा बताओ वर्जिन हो?" ज्योति के इस बेतुके सवाल पर डॉली हैरान थी।
डॉली- "ये क्या सवाल हुआ.. राज मेरी ज़िन्दगी में पहला लड़का है.. और आख़िरी भी होगा। पर ये सवाल तू क्यों पूछ रही है? क्या तू वर्जिन नहीं है?"
"हाँ पर मेरा अभी टाइम नहीं आया, तेरे एक्सपीरियंस से ही सीखूँगी ना" कहते हुए पागलों की तरह हँसने लगी ज्योति.." डॉली ने मुँह पर हाथ रखते हुए कहा-
"हे भगवान्!" ज्योति की ये बेतुकी बातें सुनकर अब डॉली का दिमाग़ ख़राब हो रहा था।
"तू न बहुत ही गंदी हो गयी है ज्योति, मुझे न तुझसे बात ही नहीं करनी.." कहते हुए निकलने ही लगी थी कि ज्योति ने डॉली का हाथ पकड़ते हुए कहा- "किसी भी लड़के को ऐसी लड़की पसंद नहीं आती है जिसे कुछ ना पता हो.. डरी हुई सी घबराई हुई सी। जैसी कि तुम अब हो.. "डॉली जिसे अब चढ़ रही थी-
"मैं डरी हुई? हैं? मैं किसी से नहीं डरती बल्कि देखना राज मुझसे डरेगा!" कहते हुए अपनी ही बात पर हँस दी।
ज्योति- "दैन प्रूव इट.. नाओ... देखो नीचे, वो बड़ा कमरा है ना? जिसमें दहेज़ का सामान पड़ा है.. वहाँ उस कमरे में कोई नहीं आता जाता। मैं जीजू को वहाँ भेजती हूँ.. ठीक है तू चुपचाप जाकर उस कमरे में बैठ जा."
डॉली- "और मुझे क्या करना होगा?" ज्योति ने माथे पे हाथ मारते हुए कहा-
"जो शादी के बाद करोगी... वो आज करना है.. वैसे तुम्हें कुछ नहीं करना, जो करेगा राज करेगा.. समझी तुम.. बस उसे करने देना.. रोकना नहीं।" डॉली जो नशे में थी उसने आत्मविश्वास भरी हामी भर दी।
ज्योति- "गुड.. अब मैं राज को उस कमरे में भेजती हूँ.. ओके... तुम चुपचाप उस कमरे में जाकर बैठ जाओ।" कहते हुए ज्योति अपना घाँघरा सँभालते हुए वहाँ से निकल गयी। वो उस जगह पहुँच गयी थी जहाँ लड़के वाले थे और राज के होने की संभावना थी और कुछ ही देर में उसे सामने राज दिख गया कि तभी राज के चाचा हाथ में गिलास लेकर वहाँ आ गये।
"यार राज कहाँ घूम रहा है..चल आजा.. चाचा के साथ एक-एक हो जाये।" कहते हुए वो राज को अपने साथ ले जाकर ढोल की ताल पर नाचने लगा। ज्योति निराश हो गयी पर वो हर मानने वालों में से नहीं थी। वो वहाँ खड़े होकर मौक़े का इंतज़ार करने लेगी और जब भी उसे मौक़ा मिलता वो चुपके से सोनू के गिलास से एक छोटा-सा पैग पी लेती।
ज्योति ने देखा कि राज अब इन सब शराबियों से ख़ुद का पीछे छुड़वाने के तरीक़े खोज रहा था। मौक़ा अच्छा था, जैसे ही राज की नज़र ज्योति पर पड़ी उसने राज को इशारे से अपनी ओर बुलाया और उसके कान में इतना कह कर भाग गयी-
"वो दहेज़ वाले कमरे में आपका कोई इंतज़ार कर रहा है.." कहते हुए वहाँ से भाग गयी। राज की तो जैस बाँछे ही खिल गयीं। उसने दूर से देखा जहाँ ज्योति उसे उस रूम में जाने के लिए कह रही थी। उसकी उत्सुकता बढ़ गयी। उसने वहीं से जाम उठाकर ज्योति
को सहमती दे डाली। अब ज्योति सुनिश्चित हो गयी कि उसके जीजा को उसकी बहन डॉली का सन्देश मिल गया है जो उस दहेज़ वाले कमरे में पहुँच चुकी है और अब राज और उसके बीच अब कोई रिश्ता नहीं बनेगा।
पर राज जैसे ही अपना गिलास ख़ाली करके निकलने को था कि चाचा ने उसके गले में फिर से हाथ डाल दिया-
" कहाँ चल दिए बरखुरदार... आज की रात तो जाने नहीं देंगे तुम्हें.." राज ने देखा कि बड़े चाचा ने उसे गोद में उठा लिया और ढोल की तान पर नाचने लगे। राज परेशान था कि उसे दहेज़ वाले कमरे में पहुँचना है और यहाँ चाचा जी उसे नचाये जा रहे हैं। उसके पास कोई चारा नहीं था। बस वो इंतज़ार करने लगा कि एक-एक करके सब लुढ़कें तो वो जाये। रात गहराती जा रही थी। वक़्त बीत रहा था और राज की बैचनी बढ़ रही थी।
उधर लड़की वालों के यहाँ डॉली का कहीं पता नहीं चल रहा था। उसकी माँ डॉली का नाम पुकारकर उसे ढूँढ़ रही थी। पर किसी को नहीं पता था कि डॉली कहाँ गयी। अचानक उसे ज्योति दिखी जो चाची के साथ बैठकर मेहँदी लगवा रही थी। उसे देखते ही उसकी मम्मी ने उससे पूछा-
"डॉली कहाँ है?"
ज्योति- "मुझे क्या पता? मैं तो यहाँ मेहँदी लगवा रही हूँ!" इतना सुन उसकी मम्मी घबराती हुई बाहर निकल गयी। ज्योति जानती थी कि डॉली इस वक़्त राज के साथ दहेज़ वाले कमरे में है। पर इतनी देर कैसे लग गयी उसे? रात का एक बजने को था और डॉली अभी तक लौटकर नहीं आयी थी। इसे पहले ये बात सामने आ जाये ज्योति ने तय किया कि वो डॉली को लेकर आएगी। वो चुपचाप वहाँ से निकल गयी। बरात घर में तक़रीबन अब सभी सो चुके थे.. चारों तरफ़ अँधेरा पसरने लगा था। पर मिर्ची लाइट्स की रौशनी में सब साफ़ दिखायी दे रहा था।
ज्योति जैसे-तैसे दहेज़ वाले कमरे के सामने पहुँच गयी उसने धीरे से दरवाज़े को धकेला अंदर कोई नहीं था, हल्का-सा अँधेरा।
"डॉली? डॉली?" वो धीरे-धीरे आवाज़ लगा रही थी पर कोई जवाब नहीं आया। वो अपने पीछे दरवाज़ा बंद करके कमरे के अंदर आ गयी। वो डॉली को ढूँढ़ रही थी कभी सोफे के पीछे झाँक कर तो कभी पलंग के पीछे। अचानक उसे महसूस हुआ कि उसके पीछे कोई आया है। वो मुड़ पाती कि उससे पहले मज़बूत हाथों ने उसके सर पर हाथ रखकर उसे सोफे पर झुका दिया। ज्योति कुछ बोल पाती, उससे पहले एक मज़बूत हाथ ने उसकी चोली को पीठ से उठाकर ऊपर कर दिया। ज्योति चौंक गयी वो जैसे ही पीछे हटने को थी कि उसने देखा राज था। उसने अपने हाथ से ज्योति के मुँह को बंद करके धीरे से
जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया। ज्योति को तो इस हादसे की उम्मीद ही नहीं थी, वो तो डॉली को ढूँढ़ने आयी थी। पर डॉली उसे कहीं नज़र नहीं आ रही थी और राज समझ रहा था कि ज्योति उसी से मिलने आयी है। राज ने बढ़कर ज्योति की ब्रा के नीचे से हाथ डालकर उसके वक्ष अपने हाथों में ले लिये। ज्योति इस बात का विरोध करने लगी।
ज्योति- "नहीं जीजा जी ये!" ज्योति अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले राज ने अपने होटों से ज्योति के होटों को जकड़ लिया। ज्योति ने बेशक अपने होंट कस कर बंद कर लिये थे पर राज की ज़ुबाँ के वार के आगे वो ज़्यादा देर टिक नहीं पायी। जैसे-जैसे राज के होंटों से रस ज्योति के मुँह में प्रवेश करने लगा ज्योति को हल्का-हल्का आनंद आने लगा था। एक तो ज्योति ने ख़ुद भी पी रखी थी ऊपर से राज के होंटों से वो नशीला रस ग्रहण कर रही थी। ज्योति का विरोध कम होने लगा कि अचानक उसे इस बात का एहसास हुआ कि ये सब तो डॉली का हक़ है, उसी के लिए तो वो सब कर रही थी। उसने राज को धीरे से पीछे करते हुए कहा-
"बस जीजा जी इसके आगे कुछ नहीं, ये सब डॉली के लिए है!" ज्योति की बात पूरी होने से पहले ही राज ने ज्योति का हाथ पकड़कर अपने लिंग पर रख दिया। ज्योति ने जैसे ही राज के तने लिंग का स्पर्श पाया वो घबरा गयी।
"नहीं जीजा जी प्लीज़ मुझे जाने दो!" पर राज पर तो अब काम क्रिया की सारी शक्तियाँ सवार थीं। उसने ज्योति के दोनों हाथ जकड़ते हुए उसके वक्षों पर चुम्बनों की बौछार कर दी।
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Re: वासना का भंवर

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"कुछ नहीं होगा डरो नहीं, सब आराम से करूँगा, ट्रस्ट मी तुम्हें अच्छा लगेगा.." बेशक ज्योति का मन इस बात का विरोध कर रहा था परन्तु उसके शरीर में राज को पाने की भूख जग चुकी थी। राज ने ज्योति के इस कमज़ोर लम्हे का फ़ायदा उठाते हुए दीवार की तरफ़ घूमा दिया। अब ज्योति अपने दोनों हाथों से दीवार का सहारा लेकर खड़ी थी और राज उसके पीछे। ज्योति ने जैसे ही नज़रें उठायीं सामने ड्रेसिंग टेबल थी। हल्की-सी रौशनी में वो शीशे में से राज को अपने पीछे देख पा रही थी। उसने देखा राज बहुत जल्दी में है। उसकी आँख बंद थीं, उसकी साँसों से उसकी भूख का अंदाज़ा लग रहा था। वो ज्योति की कमर को अपनी ओर ज़ोरों से खींच रहा था। अब ज्योति को भी राज का स्पर्श अच्छा लग रहा था, इसीलिए अब विरोध नहीं बल्कि राज की मदद कर रही थी। वो अपनी टाँगों को अँगूठे के बल उठाकर राज के क़द के बराबर ले आयी, जिससे राज आसानी से वो कर सके जो वो करना चाहता था। और फिर राज एक ज़ोर का झटका देते हुए ज्योति में समा गया। ज्योति की चीख़ निकलने वाली थी पर उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया। राज की चाल तेज़ होने लगी। वो ज्योति के भीतर विस्फोट करने को तैयार था और ज्योति उसे समेटने के
लिए। और फिर ज्योति को ऐसा लगा मानो कोई रेलगाड़ी का इंजन उसके अंदर से धधक-धधक करता हुआ तेज़ भाप छोड़ता हुआ अचानक स्टेशन पर थम गया हो। दोनों शांत हो गये। ज्योति अभी भी झुकी हुई थी। राज ने अपने कपड़े ठीक करते हुए उसकी पीठ को एक बार चूम लिया।
"थैंक्यू... अब तुम जाओ इससे पहले किसी को शक हो जाये!" पर उसने पाया कि ज्योति ने अचानक रोना शुरू कर दिया। अब राज डर गया।
"क्या हुआ रो क्यों रही हो? देखो जो भी हुआ सिर्फ़ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगा, किसी को पता नहीं चलेगा!"
ज्योति- "पर ऐसा क्यों किया आपने जीजा जी, मेरी बहन से शादी हो रही है आपकी और आपने.?"
राज- "क्या मैंने? मैं थोड़े न तुम्हें बुलाने आया था तुम ख़ुद मेरे पास..." ज्योति ने राज की बात को काटते हुए कहा-
"मैंने तो डॉली को आपके पास भेजा था और अभी भी मैं डॉली को ही इस कमरे में ढूँढ़ने आयी थी। ये आपने ठीक नहीं किया, ठीक नहीं किया!" कहते हुए वहीं बैठकर रोने लगी। ये देख अब राज के हाथ पॉंव ठण्डे पड़ने लगे थे।
"यार तुम मुझे ये बात पहले नहीं बोल सकती थी?"
ज्योति- "आपने बोलने कहाँ दिया? बस सवार हो गये। बहुत ग़लत हो गया, बहुत ग़लत!" कहते हुए उसने अपने कपड़े ठीक किये और वहाँ से भाग गयी।
अब तो राज के चेहरे की हवाइयाँ उड़ रही थीं कि उसने जो भी ज्योति के संग किया उसमें उसकी रज़ामंदी नहीं थी। उसके पॉंव काँपने लगे कि ये उससे क्या हो गया। अब अगर बात बाहर आ गयी तो न जाने कितना बड़ा बवाल खड़ा हो जायेगा। यही सोचता हुआ वो अपने कमरे की तरफ़ चला गया। अपने कमरे में पहुँचकर वो भगवान को याद करने लगा। एक ही बात बड़बड़ाए जा रहा था-
"हे भगवान् इस बार बचा ले, आगे से ऐसा कोई काम नहीं करूँगा, बस एक बार भगवान् एक बार.."
उधर लड़की वालों की तरफ़ जब ज्योति पहुँची तो हैरान रह गयी कि कांता चाची उसे ही ढूँढ़ रही थी।
"कहाँ चली गयी थी तू?..तेरी माँ तुझे कब से ढूँढ़ रही है.. उसे सब पता चल गया है। आज तेरी ख़ैर नहीं। एक पल के लिए ज्योति घबरा गयी।
"क्या पता चल गया है?"
चाची- "जाकर देख डॉली कैसे उल्टियाँ कर रही है.... तूने उसे शराब पिलायी थी?"
ज्योति- "किसने कहा?" इतना सुनते ही ज्योति की मम्मी हाथ में चप्पल लेकर बाहर आ गयी जहाँ हाल में सभी औरतें बिस्तर लगाकर सोने की तैयारी कर रही थीं। डॉली की मम्मी ने चप्पल से ज्योति को पीटने शुरू कर दिया-
"किसने कहा? डॉली ने ख़ुद कहा कि तूने उसे शराब पिलायी ... इतनी... कि छत पर छोड़ आयी.... ये तो सोनू ने देख लिया... कहीं लड़के वाले देख लेते तो?... तू आज नहीं बचेगी.. जान से मार दूँगी तुझे!" कहते हुए उसने ज्योति पर चप्पलों की बौछार कर दी।
"कब सुधेरेगी ये... अक्कल है कि नहीं... आज तो में इसे जान से मार दूँगी।.. कल लड़की की शादी है और ये उसे शराब पिलाने ले गयी!" अचानक कांता चाची की नज़र ज्योति के कपड़ों पर पड़ गयी। उसे कुछ गड़बड़ लग रही थी। उसने जैस-तैसे ज्योति को उसकी माँ के हाथों से छुड़वाकर अंदर कमरे में जाने को कहा। ज्योति के कमरे में जाने से पहले उसने ज्योति का कान में कहा-
"सीधे बाथरूम में जाना नहाने के लिए.." ज्योति समझ गयी थी कि चाची ऐसा क्यों कह रही है।
ज्योति ने अपने कमरे में आकर देखा वहाँ डॉली ओंधे मुँह सो रही थी। ज्योति समझ गयी थी कि जब उसने डॉली को दहेज़ वाले रूम में जाने के लिए कहा था तो ये वहीं लुढ़क गयी थी। अचानक उसने महसूस किया कि उसकी टाँगों पर एक पतली-सी ख़ून की धारा बह रही है। वो समझ गयी कि चाची ने उसे नहाने के लिए क्यों कहा था। वो फट से बाथरूम में घुस गयी और बाथरूम में पहुँचते ही उसने अपने कपड़े एक-एक करके उतारने शुरू कर दिये। अगले पल वो शीशे के सामने निर्वस्त्र खड़ी थी। उसने अपनी जाँघों को छूकर देखा जहाँ से ख़ून का रिसाव हो रहा था। वो समझ गयी कि वो अपनी वर्जिनिटी खो आयी थी। वो भी राज के संग जो उसका होने वाला जीजा था। उसने अपने ऊपर फ़व्वारा खोल दिया और देखते-देखते पानी की तेज़ फ़ुहार में उसकी टाँगों में जमा ख़ून पानी के साथ नाली में बहने लगा। ज्योति उस बहते हुए ख़ून को देख रही थी। एक तरफ़ जहाँ वो अपनी वर्जिनिटी खोने का सुख उसे गुदगुदा रहा था तो दूसरी तरफ़ उसे इस बात का ग़ुस्सा था कि ये सब उसके साथ राज ने किया जो उसके होने वाला जीजा था। वो टॉवल से अपने बदन को पोंछते हुए यही सोच रही थी कि अचानक बाथरूम का दरवाज़ा खुल गया। उसने पाया किवो दरवाज़े की कुण्डी बंद करना भूल गयी थी और चाची सीधी अंदर आ गयी। उसकी नज़र से नाली में बह रहा लाल रंग का पानी छुप नहीं पाया। जैसे ही उसने अपनी आँखों में सवाल भरते हुए ज्योति को देखा, ज्योति का रोना निकल आया। कांता चाची
समझ गयी थी कि कुछ तो गड़बड़ हो गयी है। उसने मुँह पर उँगली रखकर ज्योति को चुप रहने का इशारा किया कि कहीं डॉली न जाग जाये और उसे कपड़े बदलकर बाहर आने के लिए कहा।
अगले पल कांता चाची बारात घर में बने बड़े से बग़ीचे में खड़ी थी, जहाँ मज़दूर डॉली की शादी की वेदी तैयार करके गये थे। इस वक़्त पूरे बरात घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। ज्योति अपने कमरे बाहर आयी उसने देखा कांता चाची बहुत घबराई हुई है मानो वो सब समझ चुकी थी। ज्योति को अपने क़रीब पाकर उसने ज्योति पर सवाल दाग दिया-
" क्या हुआ? कैसे हुआ? बोल?" ज्योति हैरान थी कि चाची को कैसे शक हो गया? क्यों न हो आख़िर दो बच्चों की माँ है, सब पता होगा उसे। ज्योति की चुप्पी देखकर चाची ने ज्योति को झिंझोड़ते हुए पूछ ही लिया-
"बोल कौन?" ज्योति के मुँह से एक दम निकल गया।
"राज!" राज का नाम सुनते ही कांता चाची के तो होश उड़ गये, वो तो चकराकर गिरने ही वाली थी कि उसने वहाँ बनी वेदी के खम्बे का सहारा लेते हुए कहा-
"कल यहाँ इसी वेदी में तेरी बहन के फेरे राज से होने वाले हैं और तू अपने होने वाले जीजा के साथ? छी! छी! ज्योति मैं समझती थी कि तू सिर्फ़ बड़बोली है। अच्छे गंदे जोक्स मार लेती है, पर तूने तो हद पार कर दी ज्योति!"
"नहीं चाची ऐसा नहीं है, मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती थी, वो तो राज.." ज्योति अभी अपनी बात पूरी कर ही नहीं पायी थी कि चाची ने उसका हाथ झटकते हुए कहा-
"हाँ राज तुझे ज़बरदस्ती उठाकर ले गया ना और तू बेजान गुड़िया चुपचाप ... सब कुछ होने दिया। मैं तुझे अच्छी तरह जानती हूँ ज्योति। हल्दी के टाइम भी तो राज के साथ गंदी हरकत कर रही थी। उसका पायजामा उतरवा दिया, उसको यहाँ-वहाँ छूने की कोशिश कर रही थी। दिख नहीं रहा था मुझे क्या? अंधी हूँ?" ज्योति अब रोये जा रही थी। "चाची मेरी बात सुनो, इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है.." कि चाची ने हाथ उठाते हुए उसकी हर दलील ख़ारिज करते हुए कहा-
"बस ज्योति! ग़लती किसी की भी रही हो पर सज़ा डॉली को ही भुगतनी पड़ेगी और अगर ये बात बाहर आ गयी तो समझ लेना कि सारा खेल ख़त्म। कितने ही रिश्ते टूटेंगे, कौन जियेगा कौन मरेगा कुछ नहीं पता और इस सब की ज़िम्मेदार तू होगी। बस एक ही रास्ता है कि जो भी हुआ उसे एक दम भूला दे और दुबारा डॉली और राज के नज़दीक भी मत आना.... अगर तू सबकी ख़ुशी चाहती है।" कहते हुए चाची वापस जाने को थी कि ज्योति ने उसे पुकार कर पूछा-
"और मेरी ज़िन्दगी? मेरे दुःख सुख?"
"वो इस वक़्त कोई मायने नहीं रखते!" कहते हुए कांता निकल गयी। ज्योति वहीं खड़े-खड़े रोने लगी। वो रोते हुए उस वेदी के पास बैठ गयी जहाँ अगले दिन डॉली और राज ने फेरे लेने थे।
इधर केरल में ज्योति ये सारी कहानी जय और कुणाल को सुना रही थी। कहानी सुनते-सुनाते उसके भी आँसू निकल आये। कुणाल ने उसके आगे पानी का गिलास करते हुए पूछा-
"उसके बाद तुमने क्या किया?"
ज्योति- "उस वक़्त तो मैं बहुत दुखी थी। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे संग धोखा हुआ है। जो राज ने मेरे साथ किया था। चलो माना कि उसमें कुछ हद तक मेरी नादानी थी, पर मुझे एक ही बात खाए जा रही थी कि कोई मेरी ज़िन्दगी के साथ ऐसे खिलवाड़ करके कैसे निकल सकता है। उस रात चाची ने मुझसे जो भी कहा, अगर मेरी मम्मी होती तो शायद वो भी मुझे यही कहकर चुप करवा देती। मैंने तय कर लिया कि अगर इस खेल में मैं अकेली पड़ गयी हूँ तो फिर ये खेल मैं खुलकर खेलूँगी। अगर यही इस खेल के नियम हैं तो यही सही!"
कुणाल- "मतलब क्या है तुम्हारा? कैसा खेल? कैसे नियम?" जय कुणाल की इस उत्सुकता को अपनी सहमती दे रहा था।
ज्योति ने कहा, "अब मुझे राज चाहिए था हर हाल में हर क़ीमत पर। चाची के जाने के बाद मैं अपने कमरे में चली आयी जहाँ डॉली सो रही थी। उसके बाद जो ज्योति ने बताना शुरू तो जय और कुणाल के सामने सब कुछ किसी फ़िल्मी मंज़र की तरह फिर से चलने लगा।
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