फूफी और उसकी बेटी से शादी

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फूफी और उसकी बेटी से शादी

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फूफी और उसकी बेटी से शादी

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पात्र (किरदार ) परिचय

01. वसीम- उम्र 22 साल, ठीक ठाक हूँ, छोटा परिवार, अम्मी और अब्बू की मौत हो चुकी है,

02. रुखसाना- वसीम की फूफी, विधवा, दिखने में बहुत सुंदर, बदन थोड़ा मोटा, सेक्सी,

03. शाजिया- फैशन का शौक, रुखसाना की बेटी, उमर 18 साल, 11वीं क्लास में, रंग दूधिया सफेद, पतला बदन, दिखने में हाट,
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Re: फूफी और उसकी बेटी से शादी

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मैं बिहार के एक छोटे से गाँव से हूँ, मेरा नाम वसीम है, मेरी उमर 22 साल है, दिखने में भी ठीक ठाक हूँ। मेरा परिवार बहुत छोटा सा है क्योंकी मेरे अम्मी की मौत बचपन में और अब्बू की मौत जब मैं 19 साल का था तभी हो गई थी। अब मेरे परिवार में विधवा फूफी रुखसाना, फूफी की बेटी शाजिया, और दादाजी है।

फूफी के बारे में कुछ बता दूं। वो दिखने में बहुत सुंदर हैं, और एक सिंपल सी औरत हैं। उनका बदन थोड़ा सा मोटा है लेकिन बहुत सेक्सी दिखती है।

शाजिया अभी 11वीं क्लास में है। वो 18 साल की है। देखने में बहुत हाट है, और उसकी बाड़ी पतली है, दूध जैसा सफेद रंग है उसका शाजिया को फैशन का बहुत शौक है लेकिन गाँव में होने के कारण उसकी ये इक्षा पूरी नहीं हो सकती थी।

जब अब्बू की मौत हुई थी तब मैंने 12वीं पास ही किया था उनकी मौत के बाद हमारी माली हालत कुछ ठीक नहीं चल रही थी। दादाजी के पास एक छोटा सा खेत था जिसमें खेती करते थे। उसी से हमारा घर चलता था। हमारे गाँव में 12वीं तक ही स्कूल था। कोई कालेज नहीं था इसलिए मैंने आगे पढ़ाई नहीं की।

घर की हालत देखते हुए मैंने शहर जाकर पैसे कमाने का फैसला किया। मैं अपने खानदान का एकलौता बेटा हूँ। क्योंकी मेरे दादाजी के कोई भी भाई बहन नहीं हैं और हमारे कोई भी खास रिलेटिव भी नहीं है और जो हैं भी उनसे मनमुटाव चल रहा है। दादाजी शहर जाने से मना करने लगे। वो मुझे अपने से अलग नहीं करना चाहते थे पर मैंने उन्हें मना लिया।

मेरे एक दोस्त का भाई लखनऊ में काम करता है। उसने मुझसे कहा था की वो मेरी कोई छोटी मोटी जाब लगा सकता था, तो मैं लखनऊ चला गया। मुझे वहां एक अच्छे रेस्टोरेंट में वेटर की नौकरी मिल गई। मेरे दोस्त के भाई ने कहा- “तुमने बारहवीं के बाद पढ़ाई की होती तो तुझे और अच्छी नौकरी मिल सकती थी।

तब मैंने डिसाइड किया की थोड़ा और पढ़ लेता हूँ तो उसके कहने पर मैंने वहीं कानपुर के कालेज से बी. काम. का प्राइवेट फार्म भर दिया, क्योंकी ये डिग्री मुझे आगे चलकर अच्छी नौकरी दिला सकती थी। अब शुरू करते हैं 5 महीने पहले की कहानी ।

मैं लखनऊ में 22 साल से रह रहा था मेरा बी. काम भी कुछ महीने में कंप्लीट होने वाला था। मैं गाँव में पैसे देता था। सब कुछ ठीक चल रहा था की अचानक गाँव से खबर आई की दादाजी चल बसे। मैं तुरंत छुट्टी लेकर गाँव गया, हमें बहुत दुख हो रहा था। पर दादाजी अपनी जिंदगी जी चुके थे सबसे ज्यादा दुख फूफी और शाजिया को हो रहा था की अब उनका क्या होगा ? क्योंकी दादाजी उन्हें बहुत प्यार से रखते थे और अब उनका कोई नहीं है मेरे सिवाए ।

अब फूफी और रुखसाना की जिम्मेदारी मुझ पे आ गई। वो दोनों अकले हो गये थे, क्योंकी गाँव में कोई भी रिश्तेदार नहीं था और जो थे उनसे बनती नहीं थीं।
फूफी ने कहा- "वसीम बेटा, हमें अपने साथ लखनऊं ले चलो हम दो अकेली औरतें यहां नहीं रह पाएंगी..."

पर मेरा मन नहीं कर रहा था उन्हें ले जाने का, क्योंकी में लगभग 22 साल से अकेला रह रहा था और मुझे अपनी प्राइवेसी खोनी नहीं थी। इसलिए मैंने फूफी को बहाना बनाते हुए कहा- "फूफी मेरा बी. काम, कंप्लीट होने वाला है और मुझे कानपुर की एक फैक्टरी में मेरे दोस्त का भाई जाब लगा रहा है, तो मैं अब कानपुर में रहूँगा और जब मेरी नई नौकरी लग जाएगी तब तुम लोगों को बुला लूंगा..."

फूफी ये सुनकर रोने लगी, और रोते-रोते कहने लगी- "हम यहां अकेले क्या करेगी?"

मैंने उन्हें समझाया- “फसल की कटाई का समय आ गया है तो आप वो करो और जो पैसे आए उनसे घर चलाना और मैं भी बीच-बीच में आकर आपको पैसे दूंगा..."

शाजिया भी ये सुनकर रोने लगी।

तब मैंने उन दोनों को अपने सीने से लगाकर कहा- "मैं तुम लोगों को यहां से ले जल्दी जाऊँगा. "

उन दोनों ने मुझे कस के पकड़ रखा था, इस पकड़ से मुझे ऐसा लगा की मैं ही इन दोनों का सब कुछ हूँ, अब वो दोनों शांत हो गई थी। कुछ दिनों में सब कुछ शांत हो गया। अब मैं दो हफ्ते की छुट्टी के बाद लखनऊं जा रहा था।

फूफी और शाजिया रोने लगे और कहने लगे- "हमारा तुम्हारे सिवाए कोई भी नहीं है तो हो सके तो हमें जल्दी बुला लेना.” और जाते-जाते फूफी ने दादाजी की अलमारी से घर और जमीन के कागज मुझे निकाल के दिए और कहा- "दादाजी ने ये तुम्हारे नाम कर रखी थी तो इसे तुम्हीं ले जाओ...

मैंने उसे ले लिया और लखनऊं के लिए निकल पड़ा। सब कुछ नार्मल हो रहा था। मेरे जाने के बाद एक महीने बीत चुके थे, फूफी मुझे फोन कर-करके आने के लिए कह रही थी। पर मैं बहुत बिजी था। तभी एक दिन फूफी का फिर फोन आया और वो बहुत रो रही थी और बार-बार शाजिया का नाम ले रही थी।
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मैंने उन्हें शांत करके पूछा- “क्या हुवा?"

उन्होंने बताया- "सरपंज के बेटे ने रात में आकर शाजिया के साथ जबरजस्ती करने की कोशिश की...."

ये सुनकर मेरी जान हलक में आ गई तो मैंने पूछा- “आप कहां थी उस वक़्त ?”

उन्होंने बताया- "मैं एक शादी में गई थी और शाजिया को थोड़ा सा बुखार था इसलिए वो नहीं गई मेरे साथ । इसी मौके का फायदा उठाकर वो घर में घुसने लगा तो शाजिया ने शोर मचा दिया। आवाज सुनकर पड़ोसी आ गये और उन्होंने शाजिया की इज्जत बचा ली और वो कमीना भाग गया...."

मैंने पूछा- “अब शाजिया कैसी है?"

फूफी ने कहा- “अब शाजिया को बहुत तेज बुखार हो गया है और तुम्हें बुला रही है..."

"
मैंने कहा- "मैं अभी निकल रहा हूँ यहां से गाँव के लिए और तुरंत रात की ट्रेन से निकला और वहां सबेरे में पहुँच गया।

फूफी ने दरवाजा खोला। मुझे देखकर फूफी की आँखों में आँसू आ गये। पर मैं भागता हुआ शाजिया के पास गया तो वो सो रही थी। इसलिये मैंने उसे डिस्टर्ब नहीं किया और सोने दिया। मैं फूफी के पास गया और उन्हें गले से लगा लिए।

फूफी फूट-फूट के रोने लगी और सारी कहानी फिर से बताने लगी। उन्होंने कहा- "तुम्हारे जाने के बाद गाँव के मर्दों और लड़कों की नजर मुझपर और शाजिया पर थी..."

मैंने कहा- “आपने मुझे ये पहले क्यों नहीं बताया?"

फूफी कहने लगी- "मुझे लगा की तुम परेशान हो जाओगे, और तुमने कहा था की तुम कानपुर जाने वाले हो तो इसलिए तुम्हें परेशान नहीं किया..."

हमारी आवाज सुनकर शाजिया उठ गई और कमरे से बाहर निकली और मुझे देखकर रोती हुई मेरी तरफ आई और मुझे गले लगा लिया..."

मैं शाजिया को शांत करने की कोशिश करने लगा। पर वो शांत नहीं हो रही थी। वो रोते-रोते कह रही थी- “मुझे अपने साथ ले चलो अब मैं यहां नहीं रहना चाहती...”

मैंने उससे वादा किया- “अब तुम लोग मेरे साथ चलोगी." और अपने मन में कहा- “पर सबसे पहले उस सरपंच के बेटे को सबक सिखाना होगा...."

मैंने उसी वक़्त होटेल में फोन करके दो हफ्ते छुट्टी माँग ली पारिवारिक एमर्जेन्सी है कहकर हमारी मैनेजर बड़ी अच्छी है इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा। अब मैं और मेरे दोस्त मिलकर सरपंच के बेटे को ढूँढ़ने लगे और हम लोगों ने पोलिस में शिकायत भी कर दी, और इसी बीच मैं घर और खेत के लिए ग्राहक भी ढूँढ़ने लगा। मेरे पास दो हफ्ते का समय था। इसी दो हफ्ते में मुझे ग्राहक और सरपंच के बेटे इमरान को ढूँढ़ना था। तीन दिन बीत गये।

मैं और फूफी शाजिया के साथ हमेशा रहते थे। वो दोनों बहुत खुश थीं। क्योंकी मैंने वादा किया था की उन्हें मैं अपने साथ ले जाऊँगा। चौथे दिन सुबह घर का एक ग्राहक आया, मैंने उसे पूरा घर दिखा दिया।

उसे मकान पसंद भी आया तो उसने पूछा- "कितने में बेचेंगे इसे?"

मैंने कहा- "7 लाख में" क्योंकी हमारा घर बड़ा था पर गाँव की जमीन की ज्यादा कीमत वल्यू नहीं होती ।

थोड़ा मोल-भाव करने के बाद 6.7 लाख में बात पक्की हो गई। मैंने उससे ये भी कह दिया की हमें घर जल्दी बेचना है।

उसने कहा- "ठीक है। मैं दो दिन के बाद आता हूँ..'

पाँच दिन बीत गये पर सरपंच के बेटे इमरान का कुछ पता नहीं चल रहा था। उसी दिन हमारे घर पर सरपंच जी और उनकी बीवी आए और माफी माँगने लगे और रो-रोकर पोलिस से शिकायत वापस लेने को कहने लगे। पर मैंने मना कर दिया और वो रोते-रोते चले गये।

सात दिन बीत गये उस घर के ग्राहक का कोई फोन नहीं आया।

शाम को एक फोन आया पर वो मेरे दोस्त अकरम का था, जो बगल के गाँव में रहता था। उसने मुझसे बताया की उसने इमरान को अपने गाँव में देखा है। मैं भागते हुए अपने दोस्तों के पास गया और उन्हें फोन के बारे में बता दिया। हम सब सोचने लगे की वो बगल वाले गाँव में कहां रह रहा होगा और उसको ढूँढ़ें कैसे? तभी मुझे ध्यान आया की इमरान की बहन की शादी उसी गाँव में हुई थी, तो इसका मतलब है की वो अपनी बहन की ससुराल में छुपा हो सकता है।

उसी वक़्त मैंने अकरम को फोन लगाकर कहा- “इमरान की बहन के घर पे नजर रखो। हम लोग कल आ रहे हैं। सुबह 3:00 बजे हम सारे दोस्त मिल के अकरम के गाँव जाने लगे। इतनी सुबह इसलिए की हमें कोई देख ना सके की ये सारे लोग कहां जा रहे हैं। जब हम लोग गाँव पहुँचे तो हम लोग अकरम के घर जाकर छुप गये । क्योंकी मैं नहीं चाहता था की इमरान को पता चले की मैं यही हूँ।
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Re: फूफी और उसकी बेटी से शादी

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अकरम ने सारे दिन इमरान के बहन के घर पर नजर रखी, पर इमरान नहीं दिख रहा था। शाम को अचानक इमरान घर से निकला और कहीं जाने लगा। अकरम ने तुरंत मुझे फोन किया तो मैंने उससे कहा की तुम उसका पीछा करो हम अभी आ रहे हैं।

मैं मेरे दोस्त भेष बदल के निकले और अकरम के साथ उसका पीछा करने लगे। तभी हम लोगों ने देखा की वो एक घर में घुस रहा है। मैंने पूछा- “ये किसका घर है?"

अकरम ने बताया- “ये एक रंडीखाना है..."

हम लोग भी उस रंडीखाने में घुस गये और देखा की इमरान एक औरत के साथ एक कमरे में घुस गया और दरवाजा बंद कर लिया। अब हमारे पास इंतजार करने के सिवाए और कोई रास्ता नहीं था, तो हम लोग बाहर निकले। पर मेरे दोस्तों का मन रंडीखाने में रंडियों को देखकर डोलने लगा और अंदर जाने के लिए कहने लगे।

मैंने उन लोगों को बहुत समझाया तो वो लोग एक शर्त पे माने की मैं उन लोगों को अपना बदला पूरा होने के बाद इस रंडी खाने में लाऊँगा तो मैंने हाँ कर दी।

50 मिनट इंतजार करने बाद इमरान निकला तो हम लोग उसका पीछा करने लगे। तब तक अंधेरा हो चुका था। वो जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते से बहन के घर जाने लगा। रास्ते में एक सुनसान गली थी तो हम लोग ने उसको उसी लगी में रोका।

इमरान कहने लगा- "कौन हो तुम लोग?"

हमने कोई जवाब नहीं दिया। फिर मेरे एक दोस्त ने तुरंत उसका मुँह पकड़ लिया और मैंने लात घूसों की बरसात कर दी। ये देखकर बाकी दोस्त भी शुरू हो गये। दस मिनट बाद अकरम ने चाकू निकाला और मुझे दिया। हम सबने उसे मारना बंद किया और उसके हाथ पैर पकड़ लिए। अब मैंने उसको उल्टा किया और चाकू से उसके प्राइवेट पार्टस पे कट मारने लगा, उसकी गाण्ड पे, जांघों पे, और उसके लण्ड के पास ।

इमरान दर्द के मारे रोने लगा। मैंने उसको लगभग नामर्द बना दिया, और उसको वहीं छोड़कर हम वहां से भागे । अब वो जब भी बैठेगा या मूतने जाएगा उसको वो कट के दर्द और उसको देखकर रोना आएगा और अब वो कभी सेक्स नहीं कर पाएगा।

इस बदले से मैं बहुत खुश था हम भागते हुए अकरम के घर गये और वहां पार्टी की। अब बारी थी वादे की तो उन लोगों को मैं रंडी खाने ले गया, और उन लोगों ने खूब एंजाय किया। पर मैं अंदर नहीं गया, क्योंकी मैंने ये प्लान बनाया था की हम सब एक-एक करके अपने गाँव जाएंगे, क्योंकी अगर हम एक साथ गये तो सबको शक हो जाएगा। तो मैं उन लोगों को रंडीखाने में छोड़कर तुरंत गाँव के लिए निकल पड़ा। रात के अंधेरे में घर पहुँचा


फूफी और शाजिया को जब बताया की मैंने उनका बदला ले लिया है तो शाजिया बहुत खुश हुई और उसने कस के मुझे अपनी बाहों में पकड़ लिया। मेरा हाथ उसके नंगे पेट में था, तब मुझे अजीब सी फीलिंग होने लगी। इस फीलिंग की वजह से मैंने भी उसे कस के पकड़ लिया और उसके पेट पर हाथ फेरने लगा।

तभी फूफी पीछे से बोली- “बेटा अगर तुमको किसी ने पहचान लिया तो?"

मैंने उन्हें समझाया- “हमें यहां से किसी ने जाते या आते हुए नहीं देखा। इमरान को मारते हुए नहीं देखा। अगर देख भी लिया होगा तो हम लोगों ने भेष बदल रखा था। यहां तक की इमरान को खुद नहीं पता होगा की उसे कौन मार गया?"

ये सुनकर दोनों बहुत खुश हुए। रात थी इसलिए हम सब सोने चले गये।

9वें दिन दोपहर में वो ग्राहक आया और मुझसे घर की रजिस्ट्री की बात करने लगा।


मैंने कहा- "कल ही हम लोग रजिस्ट्रार आफिस जाएंगे और फार्मेलिटीस पूरी कर लेंगे..” तो वो चला गया ।

शाम को पता चला की सरपंच का बेटा हास्पिटल में भरती है और पोलिस उसके ठीक होने बाद उसको अरेस्ट कर लेगी। पर वो इतनी जल्दी ठीक कहां होने वाला कहा था।

दसवें दिन सुबह वो ग्राहक आया और हम लोग रजिस्ट्रार आफिस गये और सारी फार्मेलिटीस पूरी कर ली। उसने मुझे घर के पैसे दे दिए, जो मैं तुरंत बैंक में जाकर जमा कर आया। मैं बहुत खुश था। मैंने फूफी और शाजिया के लिए कपड़े खरीदे और मिठाई लेकर गया। वो दोनों डील की बात सुनकर और कपड़े देखकर बहुत खुश हुए।

उसी दिन सरपंच की बीवी आई और फिर से से माफी माँगने लगी। उसने कहा- "मेरे बेटे को उसकी किए की सजा मिल चुकी है, वो अब कभी भी बाप नहीं बन सकता...*

मैंने अपने मन में कहा- “बाप तो तब बनेगा जब किसी को चोद पाएगा...

सरपंच की बीवी कहने लगी- “कृपया आप लोग अपनी शिकायत वापस ले लो...

मैंने फूफी और शाजिया की तरफ देखा, तो उनके मुँह पे मंद-मंद मुश्कान थी। मैं समझ गया की अब बदला पूरा हो चुका है, तो मैंने सरपंच की बीवी से कहा- "हमें आपकी स्थिति पर दया आ रही है। इसलिए हम लोग शिकायत वापस ले लेंगे...

फिर वो चली गई, और शाम को ही मैंने शिकायत वापस ले ली। हम तीनों बहुत खुश थे।
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11वें दिन, हमारे खेत के लिए कोई ग्राहक नहीं मिल रहा था तो मैंने निर्णय किया की ये खेत किसी किसान को किराए में दे देंगे, वो इस पर खेती करेगा और हमें सालाना किराया देगा। तो मैंने ऐसा ही किया और एक किसान को सारे पेपर वर्क करने बाद खेत किराए में दे दिया।

12वें दिन हम लोगों के जाने का दिन आ गया तो मैं अपने सारे दोस्तों से जाने से पहले मिल लिया और टिकेट करने स्टेशन चला गया। फूफी और शाजिया खुशी के मारे उछल रहे थे। क्योंकी अब उन्हें कोई परेशानी नहीं थी, और उन्हें मेरे साथ रहना पसंद भी था। जब मैं टिकेट लेकर आया तो उन दोनों ने मुझे बाहों में भर लिया और फूफी ने मेरे दायें गाल पे किस किया और शाजिया ने लेफ्ट गाल पे मुझे बहुत अच्छा लगा तो जवाब में मैंने भी उन दोनों के माथे पे किस किया। दोनों बहुत खुश हो गईं।

रात में 10:00 बजे के करीब हम लोग लखनऊं स्टेशन पहुँचे। मेरे घर के बारे में कुछ डीटेल्स | मेरा घर एक ऐसे एरिया में है जहां ज्यादा घर नहीं बने हैं, वो अंडर डेवलप एरिया है। सारे घर एक दूसरे से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हैं। मेरे घर जो की किराए का है, घर में एक बेडरूम, किचेन, बाथरूम, टायलेट और एक छोटा सा गार्डन एरिया भी है। बेडरूम में एक बेड, टीवी और कूलर है। मेरा घर एक नार्मल सा घर था। पर अब मेरे पास 6 लाख से ज्यादा रुपये थे तो मैंने उसे अपग्रेड करने की सोची। अब हम लोग स्टेशन से घर के लिए निकले। एक घंटे में घर पहुँच गये। मैंने घर का ताला खोला और अंदर गये।

फूफी ने घर देखा और कहा- “अच्छा घर है बेटा..."

शाजिया तो बस टीवी को घूरे जा रही थी। क्योंकी हमारे गाँव में दो या तीन लोगों के पास ही टीवी था और उसने टीवी एक-दो बार ही देखा होगा |

काफी रात हो चुकी थी तो मैंने कहा- "सो जाते हैं..."

अब दिक्कत ये थी की बेड था सिंगल और सोने वाले थे तीन, तो फूफी ने कहा- "मैं और शाजिया चद्दर बिछाकर नीची सो जाते हैं। तुम ऊपर सो जाओ..."

हम लोगों ने खाना स्टेशन पर ही खा लिया था तो सबको नींद भी खूब आ रही तो सब लोग सो गये।
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