मायावी दुनियाँ

Jemsbond
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Re: मायावी दुनियाँ

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''नेहा! तुम तुम यहाँ? नेहा कुछ नहीं बोली। एक मधुर मुस्कान के साथ वह बस उसकी तरफ देखे जा रही थी। दो तीन छलांगों में रामू उसके ठीक सामने पहुंच गया।
''नेहा! तुम यहाँ एम-स्पेस में क्या कर रही हो?"
''मैं तुम्हें यहाँ से बाहर निकालने आयी हूं। चलो मेरे साथ।" उसने जवाब दिया। और झूले से नीचे कूद गयी।
''लेकिन तुम यहाँ पहुंचीं कैसे ? क्या सम्राट ने तुम्हें भी कैद कर दिया?"

''मुझे कौन कैद कर सकता है। उसे तो मेरा आभास भी नहीं हो सकता।" नेहा ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा।
''समझा यानि तुम्हारे पास भी कोई अनोखी शक्ति आ चुकी है।" रामू ने अंदाज़ा लगाया।

''अब बातों में वक्त न बरबाद करो और मेरे साथ आओ। हमें यहाँ से बाहर निकलना है।" वह आगे बढ़ गयी। रामू भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा। उसे लग रहा था कि भगवान ने नेहा के रूप में उसके पास मदद भेजी है। लेकिन नेहा यहाँ तक पहुंची कैसे यह सवाल किसी पहेली से कम नहीं था।

जल्दी ही वे बाग़ के किनारे पहुंच गये जहाँ सामने एक ऊंची बाउण्ड्री वाल नज़र आ रही थी।
''आगे तो रास्ता ही बन्द है। भला इस ऊंची दीवार को कौन पार कर पायेगा।" रामू बड़बड़ाया।
''दीवार के बीच में एक दरवाज़ा भी है। वह देखो उधर।"

नेहा ने जिस तरफ इशारा किया था जब उधर रामू ने नज़र की तो अजीबोगरीब संरचना दिखाई दी। ये संरचना नीचे से ठोस घनाकार थी और सफेद संगमरमर जैसे किसी पत्थर की बनी हुई थी। वह घन दीवार में फिट था और आगे की ओर निकला हुआ था। उस घन के ऊपर एक काले रंग का वर्ग बना हुआ था। फिर उस वर्ग के ऊपर भी सफेद रंग की छड़ निकल कर और ऊपर गई हुई थी, और उस छड़ के ऊपर काले रंग से 1 लिखा हुआ स्पष्ट दिखाई दे रहा था।

उस संरचना से सफेद रंग की अलग ही रोशनी निकल रही थी जो बाग़ में फैली रोशनी से थोड़ी अलग थी और उस संरचना को स्पष्ट देखने में मदद कर रही थी। लेकिन नेहा ने जो कहा था कि वहाँ पर एक दरवाज़ा है तो ऐसे दरवाज़े का कहीं दूर दूर तक पता नहीं था।

''लेकिन दरवाज़ा कहाँ है? वहाँ पर तो मुझे ठोस संरचना दिखाई दे रही है।" रामू ने पूछ ही लिया।
''जिस संरचना को तुम देख रहे हो वही तो दरवाज़ा है बाहर जाने का। तुम चलो तो सही।" नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा। अचानक रामू के दिमाग़ में ख्याल आया कि जिस तरह यहाँ कदम कदम पर गणितीय पहेलियों के दर्शन हो रहे हैं, और उस संरचना के ऊपर भी एक संख्या लिखी हुई है तो हो सकता है कि वह संरचना वाकई आगे जाने का दरवाज़ा ही हो और किसी तकनीक से खुलता हो। ऐसा सोचकर उसने आगे कदम बढ़ाया।

अब दोनों लगभग उस संरचना के पास पहुंच चुके थे। अचानक पीछे से कोई चिल्लाया, ''रुक जाओ रामू बेटा।"
जानी पहचानी आवाज़ सुनकर रामू फौरन पीछे घूम गया।
''माँ, तुम यहाँ।" वह चीखा। यकीनन वह उसकी माँ थी जो हाथ फैलाये हुए उसकी तरफ बढ़ रही थी। उसने भी उससे मिलने के लिये आगे बढ़ना चाहा लेकिन उसी समय नेहा उसके सामने आ गयी।

''कहाँ जा रहे हो रामू। वह तुम्हारी माँ नहीं है।" वह केवल एक धोखा है।
उसी समय उसकी माँ ने उसे आवाज़ दी, ''रामू उस डायन के साथ आगे मत जाना वरना हमेशा के लिये कैद हो जाआगे। अगर तुम्हें यहाँ से बाहर निकलना है तो मेरे साथ चलो।"

अब तक उसकी माँ उसके काफी पास आ चुकी थी और रामू देख रहा था कि वह वाकई उसकी माँ थी, न कोई धोखा थी और न कोई और उसके मेकअप में था। लेकिन दूसरी तरफ नेहा भी कोई डायन तो मालूम नहीं हो रही थी।

''रामू इस बुढि़या की बातों में मत आना वरना कभी एम-स्पेस से बाहर नहीं निकल सकोगे। वह एक फरेब है जो तुम्हारी माँ की शक्ल में है। नेहा ने फिर उसे सावधान किया।
''फरेब तो तू है डायन! जो मेरे भोले भाले बेटे को अपने साथ ले जाकर हमेशा के लिये कैद कर देना चाहती है।" उसकी माँ ने दाँत पीसकर कहा, फिर रामू से मुखातिब हुई , ''बेटा मैंने तुझे अपना दूध पिलाया है। क्या तू मुझे नहीं पहचान रहा। अपनी सगी माँ को नहीं पहचान रहा।"

रामू ने देखा उसकी माँ आँचल से अपने आँसू पोंछ रही थी। वह तड़प गया।
''नहीं माँ, मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। पूरी दुनिया धोखा दे दे लेकिन माँ कभी नहीं धोखा देती।"
वह उसकी तरफ बढ़ा लेकिन उसी समय पास के एक घने पेड़ से कोई धप से ज़मीन पर कूदा।

रामू ने देखा, यह निहायत काला भुजंग मोटा सा व्यक्ति था जिसके सर पर एक सींग भी मौजूद था। इस कुरूप व्यकित के चेहरे पर निहायत वीभत्स मुस्कुराहट सजी हुई थी।


''किधर जा रहा है रे। बहुत बड़ा धोखा खायेगा तू।" वह राक्षस अपनी खौफनाक मुस्कुराहट के साथ बोला।
''राक्षस दूर हो जा यहाँ से। मैं अपने बेटे को इस जगह से निकालने के लिये आयी हूं।" उसकी माँ ने गुस्से से उस वीभत्स राक्षस को लताड़ा।
''तू इसे निकालेगी या और फंसा देगी। इसे यहाँ से सुरक्षित सिर्फ मैं निकाल सकता हूं। फिर वह रामू से मुखातिब हुआ, ''देख क्या रहा है। मेरे साथ आ। मैं तुझे यहाँ से निकालता हूं।"

वह कुरूप राक्षस रामू की तरफ बढ़ा। रामू के दिमाग़ की चूलें इस वक्त हिली हुई थीं। उसका मन कर रहा था कि अपने सर के सारे बाल नोच डाले।
''वहीं रूको। मैं खुद ही यहाँ से बाहर निकल जाऊंगा।" उसने चीख कर कहा और उस संरचना की ओर तेज़ तेज़ कदमों से जाने लगा जिसे नेहा ने दरवाज़े का नाम दिया था। वह उस विशाल संरचना के सामने पहुंचा और उसमें किसी दरवाज़े का निशान ढूंढने की कोशिश करने लगा। लेकिन उस संरचना में कहीं कोई दरार भी नहीं दिखाई दी।

उसने घूमकर देखा। नेहा, उसकी माँ और वह राक्षस अपनी जगह चुपचाप खड़े उसी की तरफ देख रहे थे। उसने अपने हाथ में पकड़े ज़ीरो को उस संरचना से टच कराया। टच कराते ही उस संरचना से बादलों की गरज जैसी आवाज़ पैदा हुई जो कि शब्दों में बदल गयी।

उस संरचना से आने वाली आवाज़ कह रही थी, ''मेरे अन्दर आने के लिये तुम्हें उन तीनों में से एक को साथ लाना पड़ेगा। इतना कहकर आवाज़ बन्द हो गयी। रामू ने दोबारा अपना ज़ीरो उससे टच कराया और संरचना ने फिर यही शब्द दोहरा दिये।

यानि रामू के पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था कि वह उन तीनों में से किसी एक को साथ लेकर आता। लेकिन किसको? उन तीनों की आपसी सर फुटव्वल से यही ज़ाहिर हो रहा था कि उनमें से दो गलत हैं और एक ही सही है। गलत का साथ पकड़ने का मतलब था कि वह हमेशा के लिये किसी अंजान जगह पर कैद हो जाता।

लेकिन उनमें सही कौन था इसे ढूंढ़ना टेढ़ी खीर था। वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया और इस नयी पहेली को सुलझाने की कोशिश करने लगा। लेकिन बहुत देर सर खपाने के बाद भी इस पहेली का कोई हल उसे समझ में नहीं आया। एक तरफ नेहा थी, उसकी स्कूल की दोस्त। जिसने अक्सर मैथ के सवाल हल करने में उसकी मदद की थी। और उससे पूरी हमदर्दी रखती थी। दूसरी तरफ माँ थी जिसने उसे जन्म दिया था, उसकी हमेशा हर ख्वाहिश को पूरा किया था और जब जब वह किसी मुश्किल में पड़ा तो उसकी माँ ने आसानी से उसे उस मुश्किल से उबार लिया। फिर तीसरा वह राक्षस था जो खुद ही कोई नयी मुसीबत मालूम हो रहा था। लेकिन इस मायावी दुनिया का कोई भरोसा नहीं। वही वास्तविक मददगार भी हो सकता था।

बहुत देर सर खपाने के बाद भी जब वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका तो उसने अपने सामने मौजूद संरचना पर दृष्टि की और सोचने लगा कि आखिर इस तरह की संरचना क्या सोचकर बनायी गयी। एकाएक उसकी अक्ल का बल्ब रोशन हो गया। उसे अफसोस हुआ कि उसने इस संरचना पर पहले गौर क्यों नहीं किया। यह संरचना तो खुद ही सही मददगार की ओर इशारा कर रही थी।

दरअसल यह संरचना एक गणितीय समीकरण को बता रही थी। वह समीकरण क्यूबिक इक्वेशन थी। अगर उस अज्ञात दरवाज़े को एक्स माना जाता तो नीचे का सफेद क्यूब पाजि़टिव एक्स क्यूब बना। फिर उसके ऊपर काला स्क्वायर निगेटिव एक्स स्क्वायर हो गया। उसके ऊपर सफेद छड़ पाजि़टिव एक्स को बता रही थी और फिर सबसे ऊपर निगेटिव वन था। इस तरह यह क्यूबिक समीकरण मुकम्मल हो रही थी। अब जहाँ तक रामू को जानकारी थी कि इस क्यूबिक समीकरण के दो हल तो काल्पनिक मान रखते हैं और एक ही हल वास्तविक होता है और इस वास्तविक हल का मान वन के बराबर होता है।

इसका मतलब ये हुआ कि बाग़ में मौजूद तीनों प्राणी इस क्यूबिक समीकरण के तीन हल थे। और इस समीकरण को ज़ीरो करने के लिये यानि दरवाज़े को खोलने के लिये उनमें से एक को साथ लाना ज़रूरी था। लेकिन अगर रामू गलती से काल्पनिक मान को ले आता तो समीकरण रूपी संरचना के अन्दर जाते ही वह खुद भी काल्पनिक बन जाता और उसका वास्तविक दुनिया से हमेशा के लिये नाता टूट जाता। जबकि वास्तविक मान को साथ में लाकर वह दरवाज़ा भी खोल लेता और वास्तविक दुनिया में भी मौजूद रहता।

अब वह सोचने लगा कि उन तीनों में से कौन से दो मान काल्पनिक हो सकते हैं थोड़ा दिमाग लगाने पर यह राज़ भी उसपर खुल गया। थोड़ी देर पहले नेहा ने उससे कहा था, ''मुझे कौन कैद कर सकता है। उसे तो मेरा आभास भी नहीं हो सकता।"

इसका मतलब कि नेहा एक काल्पनिक मान के रूप में यहाँ मौजूद थी। क्योंकि काल्पनिक मान का वास्तविक दुनिया में आभास नहीं होता। और अगर नेहा काल्पनिक थी तो उसकी माँ भी काल्पनिक थी। वैसे भी दोनों का इस दुनिया में मौजूद रहना अक्ल से परे था। क्योंकि वह खुद तो सम्राट द्वारा वहाँ लाया गया था जबकि उन दोनों की वहाँ मौजूदगी का कोई कारण नहीं दिखाई देता था।

वह दोबारा उन तीनों की ओर बढ़ने लगा। नेहा और उसकी माँ मुस्कुराने लगीं क्योंकि दोनों को लग रहा था कि रामू उनके ही पास आ रहा है। जबकि राक्षस के चेहरे पर पहले की तरह वीभत्स मुस्कान सजी हुई थी।
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Re: मायावी दुनियाँ

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रामू वहाँ पहुंचा और उसने राक्षस का हाथ थाम लिया।
''रामू! नेहा ने गुस्से में भरी एक चीख मारी जबकि उसकी माँ अपना आँचल आँखों पर रखकर सिसकियां लेने लगी। रामू का दिल एक पल को मचला लेकिन उसे इस वक्त अपने दिमाग से काम लेना था। राक्षस ने उसका हाथ थाम लिया और दरवाज़े की ओर बढ़ा।
''रुक जा मेरे लाल। वह राक्षस तुझे खत्म कर देगा।" उसकी माँ ने पीछे से पुकार लगाई।

एक पल को रामू ठिठका। उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। कहीं उसका डिसीज़न गलत तो नहीं। अगर ऐसा होता तो वह कहीं का नहीं रहता। फिर उसने अपने दिल को दिलासा दिया और माँ व नेहा की पुकार अनसुनी करके आगे बढ़ गया।

अब वह उस संरचना के ठीक आगे पहुंच चुका था। उसने घूमकर देखा माँ और नेहा दोनों ही उसे तेज़ी से हाथ हिला हिलाकर बुला रही थीं। उसने राक्षस की ओर देखा।
''अभी मौका है तुम्हारे पास। वापस भी जा सकते हो तुम।" राक्षस ने डरावनी आवाज़ में कहा।
''नहीं। मैंने तय कर लिया है। वापस नहीं जाऊंगा।" रामू ने दृढ़ता के साथ कहा।

उसके इतना कहते ही राक्षस ने उस समीकरण रूपी संरचना पर हाथ रख दिया। दूसरे ही पल उस क्यूब का आगे का हिस्सा गायब हो गया और राक्षस उसे लेकर अन्दर प्रवेश कर गया।
जैसे ही दोनों अन्दर पहुंचे आगे का हिस्सा फिर बराबर हो गया। रामू ने देखा कि आगे का हिस्सा साफ शीशे की तरह बाहर बाग़ का दृश्य दिखा रहा था। जहाँ नेहा और उसकी माँ दोनों का जिस्म धीरे धीरे पारदर्शी हो रहा था। और फिर दोनों के जिस्म बिल्कुल ही दिखना बन्द हो गये।

रामू ने एक गहरी साँस ली और बड़बड़ाया, ''इसका मतलब कि मेरा अंदाज़ा सही था।"
''अगर तुम उन दोनों में से किसी के साथ आते तो तुम भी उनही की तरह गायब हो जाते हमेशा के लिये।" राक्षस ने कहा।

''उस कटे सर ने ठीक कहा था कि होशियार रहना क्योंकि आगे का रास्ता ज्यादा मुश्किल है। इससे पहले तो सिर्फ शारीरिक कष्ट ही झेलना पड़ता था। लेकिन इस बार तो दिमाग़ की भी चूलें हिल गयीं। रामू ने एक गहरी साँस ली और इधर उधर देखने लगा।

फिर उसे एहसास हुआ कि वह एक ऐसे बक्से में मौजूद है जिससे बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं। सामने शीशे की दीवार से सामने बाग़ का मंज़र दिखाई दे रहा था जबकि बाकी तीन तरफ की दीवारें, छत और फर्श सभी स्टील की मोटी चादर के बने मालूम हो रहे थे।

''कहीं तुमने मुझे कैद में लाकर तो नहीं फंसा दिया है?" रामू ने उस राक्षस को घूर कर देखा।
''तुमने ऐसा क्यों सोचा?" राक्षस के चेहरे पर हमेशा की तरह यांत्रिक मुस्कुराहट बनी हुई थी।
''अगर मैं कैद में नहीं हूं तो आगे बढ़ने का रास्ता किधर है?"
''इस समय तुम जिस कमरे में हो यही कमरा तुम्हें आगे ले जायेगा।"

''वह कैसे? यह तो शायद अपनी जगह पर जाम है।" रामू ने उसकी ओर बेयकीनी से देखा।
''मैं ठीक कह रहा हूं। लेकिन इसके लिये तुम्हें अपना ज़ीरो मुझे सौंपना होगा।" राक्षस ने उसकी ओर हाथ फैलाया।

रामू एक बार फिर ज़हनी कशमकश में फंस गया। उस ज़ीरो ने कई बार उसकी मदद की थी। फिर उसे वह उस राक्षस को कैसे सौंप देता। शायद राक्षस ने अभी तक इसीलिए उसे नुकसान नहीं पहुंचाया था क्योंकि वह करिश्माई ज़ीरो उसके हाथ में था। लेकिन ज़ीरो को अपने से अलग करते ही वह ज़रूर किसी न किसी नयी मुसीबत में फंस जाता।

''क्या सोच रहे हो?" उसे यूं विचारों में गुम देखकर राक्षस ने पूछा।
''इस बात की क्या गारंटी है कि तुम ज़ीरो लेने के बाद मुझे धोखा नहीं दोगे।" रामू ने उसी से पूछ लिया।
''गारंटी तो कोई नहीं। लेकिन जब तक ज़ीरो मेरे पास नहीं आता मैं कुछ नहीं कर सकता।" राक्षस ने रामू को और उलझन में डाल दिया था।

''तुम्हें कम्प्यूटर के बाइनरी सिस्टम के बारे में सोचना चाहिए।" थोड़ी देर बाद राक्षस फिर इतनी सी बात बोला और चुप हो गया।
'भला यहाँ कम्प्यूटर का बाइनरी सिस्टम कहाँ से टपक पड़ा।" रामू ने झल्लाकर कहा। यह राक्षस भी पहेलियों में बातें कर रहा था। रामू बेचैनी से इधर उधर टहलने लगा। जबकि राक्षस अपनी जगह हाथ बांधे हुए खड़ा था। उसके चेहरे पर सजी फिक्स मुस्कुराहट अब रामू को सुलगा रही थी।

फिर उसने अपने दिमाग को ठंडा किया। अभी तक उसे जो कामयाबी मिली थी वह ठंडे दिमाग से सोचने का ही परिणाम थी। उसने उस राक्षस की बात पर विचार करना शुरू किया और कम्प्यूटर के बाइनरी सिस्टम के बारे में गौर करने लगा। उसके कम्प्यूटर के टीचर ने बताया था कि कम्प्यूटर की पूरी गणित केवल दो अंकों पर आधारित होती है। ज़ीरो और वन। इन दोनों के मिलने से सारी गिनतियाँ बन जाती हैं।

रामू के दिमाग का बल्ब फिर रोशन हो गया। ज़ीरो तो उसके हाथ में था जबकि वह राक्षस क्यूबिक समीकरण के मान 'वन को निरूपित कर रहा था। अब दोनों को अगर मिला दिया जाता तो जिस तरह बाइनरी सिस्टम में समस्त संख्याएं बन जाती हैं, उसी तरह यहाँ पर दोनों के मिलने से कोई नयी शक्ति पैदा होने का पूरा चाँस था जो रामू को इस मुशिकल से उबार सकती थी।

हालांकि इसमें रिस्क भी था। हो सकता था कि ज़ीरो के मिलते ही वह राक्षस उसके लिये घातक सिद्ध होता। काफी देर सोचने विचारने के बाद रामू ने यह रिस्क लेने का फैसला किया। वैसे भी और कोई चारा नहीं था। अगर वह रिस्क न लेता तो शायद पूरी जिंदगी उस छोटे से कमरे में गुज़ार देनी पड़ती।


उसने अपने हाथ में मौजूद ज़ीरो को राक्षस की ओर बढ़ा दिया। जैसे ही ज़ीरो राक्षस के हाथ में पहुंचा उसके शरीर से तेज़ रोशनी कुछ इस तरह फूटी कि रामू को अपनी आँखें बन्द कर लेनी पड़ीं। उसने आँखें मिचमिचाते हुए देखा राक्षस के शरीर का रंग पल पल बदल रहा था। उसका कालापन गायब हो चुका था और उसके जिस्म में ऊपर से नीचे तक रंगीन रोशनियां लहरा रही थीं। फिर धीरे धीरे उन रोशनियों की तीव्रता कम होकर इस लायक हो गयी कि रामू अपनी पूरी आँखें खोल सका।

उसने देखा राक्षस के जिस्म से निकलने वाली रोशनियों ने पूरे कमरे को जगमगा दिया था और अब वह राक्षस भी नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके सर का सींग गायब हो गया था और चेहरा निहायत खूबसूरत हो गया था। लेकिन उसका जिस्म अभी भी मानव का जिस्म नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके पूरे धड़ में तरह तरह के रंगों की रोशनियां इस तरह लहरा रही थीं मानो बादलों में बिजलियां चमक रही हैं।

''अरे वाह। तुम तो अब खूबसूरत हो गये। फिर तुमने मेरा ज़ीरो बाहर ही क्यों नहीं माँग लिया था?" रामू ने खुश होकर पूछा।
''मैं उसे बाहर नहीं माँग सकता था। इसके दो कारण थे। पहला तो ये कि वहाँ मेरे माँगने पर तुम उसे देते ही नहीं।"

रामू ने दिल में सोचा, ''यह ठीक कह रहा है। यकीनन अगर वहाँ पर कोई भी उससे उसका यन्त्र माँगता तो वह हरगिज़ उसे नहीं देता।
''और दूसरा कारण?" उसने पूछा।

''दूसरा कारण ये था कि अगर मैं उस ज़ीरो को बाहर ले लेता तो इस क्यूबिक समीकरण रूपी दरवाज़े को खोलना मुमकिन न होता। क्योंकि ज़ीरो ग्रहण करने के बाद मेरा मान 'वन' नहीं रह जाता।"
''ठीक है। मैं समझ गया। अब तुम आगे क्या करने जा रहे हो?"

''अब हम अपनी मंजि़ल की ओर बढ़ने जा रहे हैं।" कहते हुए उसने एक छलांग लगायी और कमरे की छत से चिपक गया। उसके छत से चिपकते ही कमरा हवा में ऊपर उठने लगा। थोड़ी ऊँचाई पर जाकर कमरा एक दिशा में तेज़ी से आगे की तरफ उड़ने लगा था। ऐसा मालूम हो रहा था कि कमरे को वह राक्षस अपने ज़ोर से हवा में उड़ा रहा है। वैसे अब उसे राक्षस कहना मुनासिब नहीं था। बल्कि वह तो कोई फरिश्ता मालूम हो रहा था।

रामू ने एक तरफ बनी पारदर्शी दीवार से बाहर की ओर देखा। यह कमरा आसमान में किसी हवाई जहाज़ की ही तरह उड़ रहा था। और उस कमरे के बाहर आसमान में तरह तरह की रंग बिरंगी किरणें लहरा रही थीं और एक निहायत खूबसूरत दृश्य देखने को मिल रहा था।

''एक बात बताओ!" रामू ने उस राक्षस या फरिश्ते को मुखातिब किया, ''इस कमरे को उड़ाने में तुम जितनी ताकत लगा रहे हो। उससे कम ताकत में तुम अकेले मुझे उड़ाकर ले जा सकते थे। फिर इतना झंझट क्यों मोल लिया?"

''मैं इस कमरे को उड़ने के लिये केवल एनर्जी सप्लाई कर रहा हूं। जबकि उड़ने का मैकेनिज्म इसके अन्दर ही बना हुआ है। और सबसे अहम बात ये है कि अगर तुम इस कमरे से बाहर निकलोगे तो आसमान में नाचती ये रंग बिरंगी किरणें तुम्हारे शरीर को नष्ट कर देंगी। क्योंकि ये किरणें काफी घातक हैं।"
''तो अब हम जा कहाँ रहे हैं?"

''जहाँ ये कमरा हमें ले जा रहा है।" राक्षस ने जवाब तो दे दिया था लेकिन वह जवाब रामू के लिये किसी काम का नहीं था। वह खामोश हो गया।

कमरा अपनी गति से उड़ा जा रहा था या राक्षस उसे उड़ाये ले जा रहा था। लगभग एक घंटे तक उड़ने के बाद कमरा अचानक एक अँधेरी सुंरग में घुस गया। हालांकि रामू के लिये वहाँ पूरी तरह अँधेरा नहीं था क्योंकि राक्षस के जिस्म से फूटती रोशनी में उसे आसपास की चीज़ें नज़र आ रही थीं। थोड़ी देर उस सुरंग में उड़ने के बाद कमरा अचानक रुक गया। और साथ ही उसका शीशे का दरवाज़ा भी खुल गया।

रामू ने देखा, कमरा एक चौकोर प्लेटफार्म पर आकर रुका था। और उस प्लेटफार्म से नीचे जाने के लिये सीढि़यां भी मौजूद थीं। वह जल्दी जल्दी सीढि़यों से नीचे उतरने लगा। वहाँ पर एक हल्की सी आवाज़ गूंज रही थी। जो मच्छरों के भनभनाने जैसी थी। इस अँधेरी सुरंग में मच्छरों का होना कोई हैरत की बात नहीं थी। रामू ने सीढ़ी के आखिरी डण्डे से नीचे कदम रखा लेकिन फिर उसे पछताने का मौका भी नहीं मिल सका।

क्योंकि उसे मच्छरों की वह फौज सामने ही नज़र आ गयी थी जो तेज़ी से उसपर हमला करने के लिये आगे बढ़ रही थी। और मच्छर भी कैसे। हर एक का साइज़ टेनिस बाल से कम नहीं था। उनके सामने लगे तेज़ डंक किसी नुकीले खंजर की तरह नज़र आ रहे थे।

इससे पहले कि वह नुकीले डंक रामू के शरीर को पंचर कर देते रामू का मददगार यानि वह राक्षस या फरिश्ता तेज़ी से सामने आया और उन मच्छरों को दोनों हाथों से मारने लगा। जैसे ही उसका हाथ किसी मच्छर से टकराता था एक चिंगारी के साथ वह मच्छर गायब हो जाता था।

''वेरी गुड!, रामू चीखा, ''सबको खत्म कर दो।"
''मैं तुम्हें ज़्यादा देर नहीं बचा सकता। इससे पहले कि ये बहुत ज़्यादा बढ़ जायें तुम्हें इनका स्रोत ढूंढकर नष्ट करना होगा। हवा में हाथ लहराते हुए उस फरिश्ते ने भी चीखकर कहा।

रामू ने देखा मच्छरों की संख्या धीरे धीरे बढ़ रही थी। और वाकई में अगर उनके निकलने को रोका न जाता तो थोड़ी ही देर में ये इतने ज़्यादा हो जाते कि उनसे बचना नामुमकिन हो जाता। फरिश्ते के जिस्म से निकलती रोशनी में वह देख रहा था कि ये मच्छर सामने मौजूद एक दीवार के सूराखों से निकल रहे हैं। ये सूराख भी टेनिस की बाल जितनी गोलाई के थे और संख्या में बीसियों थे।

''मैं क्या कर सकता हूं? मेरा ज़ीरो भी तुमने ले लिया।" रामू हाथ मलते हुए बोला।
''अकेले ज़ीरो से इन मच्छरों का कुछ भला नहीं होने वाला था। यहाँ तुम्हें कोई और तरकीब लगानी होगी।"
''कौन सी तरकीब?"

''मैं नहीं जानता। तुम्हें अपनी अक्ल लगानी होगी। लेकिन जो कुछ करना है जल्दी करो।" फरिश्ता मच्छरों को तेज़ी से मारते हुए फिर चीखा।
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Re: मायावी दुनियाँ

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रामू ने अपनी अक्ल लगानी शुरू की और सूराखों पर अपनी नज़रें गड़ा दीं। सूराख काफी ज़्यादा संख्या में थे।
'अगर उन्हें बन्द कर दिया जाये तो?" रामू ने सोचा और कमरे में इधर उधर नज़र दौड़ाने लगा कि शायद कोई चीज़ उन सूराखों को बन्द करने के लिये मिल जाये। उसे निराश नहीं होना पड़ा। क्योंकि कमरे में स्टेज के पास ही लकड़ी के ढेर सारे गोल ढक्कन पड़े हुए थे जो उन सूराखों के ही साइज़ के थे।

'अरे वाह! सूराखों को बन्द करने के औज़ार तो यहीं पड़े हैं।" रामू ने खुश होकर आठ दस ढक्कन एक साथ उठा लिये और मच्छरों से बचते बचाते उन सूराखों की ओर बढ़ा। उसने पहला ढक्कन एक सूराख पर फिट किया। लेकिन यह क्या? हाथ हटाते ही वह ढक्कन नीचे गिर गया था क्योंकि उसे धक्का मारते हुए उसी समय कई मच्छर बाहर निकल आये थे।

'क्या इन ढक्कनों को लगाने की भी कोई ट्रिक है?" रामू सोचने लगा। यहाँ पर खड़े रहकर सोचना काफी मुश्किल था क्योंकि मच्छर लगातार डिस्टर्बेंस पैदा कर रहे थे। वह सूराखों से निकलते हुए मच्छरों को गौर से देखने लगा। और उसी समय उसपर एक नया राज़ खुला।

हालांकि सूराख लगभग पूरी दीवार में वर्गाकार क्षेत्र में बने हुए थे। लेकिन उन सबसे हर समय मच्छर नहीं निकल रहे थे। बल्कि उनके बाहर आने में एक पैटर्न नज़र आ रहा था। एक खड़ी लाइन में बने तमाम सूराखों में से कभी सभी सूराखों में से मच्छर निकल आते थे तो कभी कुछ सूराखों से। और जब एक लाइन के सूराखों से निकलने वाले मच्छर कम होते थे तो उसके आसपास की कुछ लाइनों से निकलने वाले मच्छरों की संख्या बढ़ जाती थी।

रामू को याद आया कि एक बार वह नेहा के साथ लाइब्रेरी गया था और वहाँ पर नेहा ने उसे तरंग गति के बारे में कुछ समझाया था और किताब में तरंग गति का डायग्राम भी दिखाया था। अब यहाँ मच्छरों के निकलने में उसे तरंग गति ही नज़र आ रही थी।

''तुम खड़े सोच क्या रहे हो। मेरी ताकत धीरे धीरे कम हो रही है। जल्दी कुछ करो।" उसके चारों तरफ चकराते फरिश्ते ने उसके विचारों को भंग कर दिया।
''बस थोड़ी देर और इन्हें झेलो, मुझे लगता है मैं किसी नतीजे पर पहुंच रहा हूं।" फरिश्ता एक बार फिर ज़ोर शोर से उन मच्छरों से मुकाबला करने लगा। जबकि रामू मच्छरों के निकलने के पैटर्न पर और गौर करने लगा था।

किसी तरंग की तरह एक खड़ी लाइन के सूराखों से निकलने वाले मच्छरों की संख्या पहले बढ़ते हुए सबसे ऊपर व सबसे नीचे के सूराख तक पहुंच जाती थी और फिर घटते घटते एक समय के बाद शून्य हो जाती थी। ऐसा हर खड़ी लाइन में कुछ इस तरह हो रहा था मानो कोई चल तरंग आगे बढ़ रही है।

फिर रामू ने एक तजुर्बा करने का फैसला किया। एक खड़ी लाइन में जैसे ही मच्छरों के निकलने की संख्या शून्य हुई, उसने उसके बीच के सूराख में ढक्कन लगा दिया।
परिणाम उसके अनुमान से भी ज्यादा आशाजनक साबित हुआ। न केवल उस सूराख से मच्छरों का निकलना बन्द हो गया बल्कि उस खड़ी लाइन के सभी सूराखों से मच्छरों का निकलना बन्द हो गया।

रामू को मालूम हो चुका था कि ढक्कन लगाने का सही समय क्या है। उसने यह क्रिया सभी खड़ी लाइनों के साथ दोहरायी और जल्दी ही सूराखों से मच्छरों का निकलना पूरी तरह बन्द हो गया।

''वो मारा।" फरिश्ता खुशी से चीखा। लेकिन उनकी ये खुशी ज्यादा देर कायम न रह सकी। क्योंकि अब वह दीवार बुरी तरह हिल रही थी जिसके सूराख बन्द किये गये थे।
''य...ये क्या हो रहा है?" रामू घबराकर बोला।

''लगता है अब सारे मच्छर दीवार गिराकर बाहर आना चाहते हैं।" फरिश्ता भी घबराकर बोला। अगर ऐसा हो जाता तो दोनों के लिये बचना नामुमकिन था। लेकिन फिलहाल उन दोनों को गिरती हुई दीवार से बचना था। अत: वे कई कदम पीछे हट गये।

फिर एक धमाके के साथ दीवार नीचे आ गयी। लेकिन ये देखकर उन्होंने इतिमनान का साँस ली कि दीवार के पीछे कोई भी मच्छर नहीं था, बल्कि वहाँ एक और कमरा दिखायी दे रहा था। उस कमरे में हर तरफ लाल रंग की लेसर जैसी किरणें फैली हुई थीं। उसकी रोशनी में उन्होंने देखा कि कमरे के दूसरे सिरे पर एक बन्द संदूक़ मौजूद है।

''वो संदूक कैसा है?" फरिश्ते ने ही उसकी ओर उंगली से इशारा किया।

''बचपन में दादी ने कुछ कहानियां सुनाई थीं। जिसमें किसी खज़ाने की रक्षा के लिये इस तरह के तिलिस्म बनाये जाते थे। और उन्हें सख्त सुरक्षा में रखा जाता था। जिस तरह यहाँ खतरनाक टाइप के मच्छर घूम रहे थे, और जिस तरह यहाँ तक आने में रुकावटें पैदा हुईं, हो न हो उस संदूक़ में ज़रूर कोई खज़ाना है।"


''तो क्या मैं उस संदूक़ को उठा लाऊं?" फरिश्ते ने पूछा। रामू ने सहमति में सर हिलाया।
फरिश्ते ने एक छलांग लगायी और दूसरे कमरे में पहुंच गया। लेकिन जैसे ही वह उन लेसर टाइप किरणों से टकराया, उसके जिस्म में आग लग गयी और वह ज़ोरों से चीखा।
''मुझे बचाओ मैं जला जा रहा हूं!"
रामू ने भी चीख कर उसे आवाज़ लगायी। लेकिन उसके पास हाथ मलने के अलावा और कोई चारा नहीं था। देखते ही देखते वह फरिश्ता धूं धूं करके पूरा जल गया और वह बेबसी से उसे देखता रह गया।

अब तो वहाँ उसकी राख भी नहीं दिख रही थी। रामू पछताने लगा। क्यों उसने बिना सोचे समझे उसे संदूक लाने के लिये भेज दिया था। दूसरे कमरे में बिखरी हुई किरणें काफी खतरनाक थीं।
अपने सर को दोनों हाथों से थामकर वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया। जब वह राक्षस पहली बार मिला था तो रामू को उससे बहुत डर लगा था। लेकिन इतनी देर में वह रामू से इतना घुलमिल गया था और इतनी मदद की थी कि वह उसे अपना बहुत करीबी दोस्त मानने लगा था। और अब उस दोस्त की इस तरह जुदाई उससे सहन नहीं हो रही थी।

थोड़ी देर बाद जब उसके दिल को कुछ तसल्ली हुई तो उसने अपने सर को उठाया और चारों तरफ देखने लगा। उसे बहरहाल आगे बढ़ना था और उस कन्ट्रोल रूम को ढूंढना था जो उसे एम-स्पेस से आज़ादी दिला देता। उसने अपने चारों तरफ देखा। लेकिन फिलहाल उसे आगे बढ़ने का कहीं कोई रास्ता नज़र नहीं आया। जो यान उसे लेकर आया था वह अपने प्लेटफार्म पर टिका हुआ था। लेकिन उसका आगे उड़ना अब नामुमकिन था क्योंकि उसे बढ़ाने के लिये फरिश्ते के रूप में जो एनर्जी थी वह खत्म हो चुकी थी।

काफी देर सोच विचार करने के बाद उसकी समझ में यही आया कि फिलहाल उस संदूक तक पहुंचने के अलावा उसके पास करने को और कुछ नहीं। हो सकता है उस बन्द संदूक के अंदर आगे बढ़ने का कोई राज़ छुपा हो। या ज़ीरो जैसा कोई हथियार। लेकिन उस संदूक तक जाना निहायत खतरनाक था। क्योंकि लेसर रूपी किरणें रास्ते में फैली हुई थीं और संदूक तक जाने के लिये उसे उनसे हर हाल में बचना था।

उसने ये खतरा उठाने का निश्चय किया। मरना तो ऐसे भी था। उस बन्द कमरे में बिना खाना व पानी के वह कितनी देर जिंदा रहता।
वह उठ खड़ा हुआ और सामने मौजूद लाल किरणों को गौर से देखने लगा। किरणों के बीच के गैप से उसने अंदाज़ा लगाया कि उसका जिस्म उनके बीच से निकल सकता था। हालांकि उसमें काफी खतरा था। ज़रा सी चूक उसे किरणों के सम्पर्क में ला सकती थी और वह मिनटों में स्वाहा हो जाता।

वह धड़कते दिल के साथ आगे बढ़ा। इस समय उसका दिमाग और जिस्म पूरी तरह ऐक्टिव था क्योंकि यह जिंदगी और मौत का मामला था। उसने किरणों वाले कमरे में कदम रखा और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। किरणों से बचते बचाते वह आगे बढ़ रहा था। उसकी एक आँख संदूक पर जमी हुई थी और दूसरी किरणों पर। चींटी की चाल से वह आगे बढ़ रहा था।

आखिर में लगभग आधे घंटे बाद जब वह संदूक तक पहुंचा तो सर से पैर तक वह पसीने में नहा चुका था। यह आधा घंटा उसे सदियों के बराबर लग रहा था। संदूक तक पहुँचने के बाद उसने सुकून की एक गहरी साँस ली और कुछ मिनट आराम करने के बाद वह संदूक का निरीक्षण करने लगा। फिर उसने संदूक का कुंडा पकड़ लिया। कुंडा पकड़ते ही कमरे में बिखरी सारी किरणों गायब हो गयीं। और वहाँ घुप्प अँधेरा छा गया।

अँधेरे में ही टटोलकर उसने कुंडे की मदद से संदूक का ढक्कन उठाया और फिर पछताने लगा कि संदूक तक आने के लिये उसने इतना खतरा क्यों मोल लिया।

उस संदूक के अन्दर हल्की रोशनी फैली हुई थी। और उस रोशनी में उसे किसी बच्चे का सर कटा धड़ साफ दिखाई दे रहा था। धड़ गहरे पीले रंग का था और उस धड़ के अलावा उस संदूक में और कुछ नहीं था।
''क्या इसी सरकटी लाश को देखने के लिये मैंने इतना खतरा मोल लिया?" उसने झल्लाकर संदूक बन्द कर दिया। लेकिन संदूक बन्द करते ही कमरे में फिर घना अँधेरा छा गया।

अचानक उसके ज़हन में एक नया विचार चमका।

इससे पहले उसने एक मुकाम पर कटा हुआ सर देखा था। और उस सर ने कहा था कि, ''जिस जगह तुम मेरा कटा हुआ धड़ देखोगे वही जगह होगी कण्ट्रोल रूम। लेकिन वह सर तो बूढ़े का था जबकि सर बच्चे का।

फिर उसे याद आया कि जिस ग्रह के लोगों ने उसे एम-स्पेस में कैद किया था वह बच्चे के साइज़ के बौने प्राणी ही मालूम होते थे। और अगर बूढ़ा जिसका सर उसने देखा था उसी ग्रह का था तो यह धड़ उसका हो सकता था।

''तो क्या यही कण्ट्रोल रूम है? लेकिन ऐसा कोई आसार तो नज़र नहीं आ रहा था। चारों तरफ घुप्प अँधेरा फैला हुआ था। उसने संदूक का ढक्कन फिर उठा दिया, क्योंकि संदूक से निकलती हल्की रोशनी में कमरे का अँधेरा कुछ हद तक दूर हो रहा था। रोशनी में भी रामू को आसपास ऐसा कुछ नज़र नहीं आया कि वह उसे कण्ट्रोल रूम मान लेता। हर तरफ की दीवारें सपाट थीं। कहीं कोई भी मशीनरी दिखाई नहीं दे रही थी।

एक बार फिर उसने अपना ध्यान संदूक की तरफ किया। क्योंकि वही एक चीज़ थी जो कुछ खास थी। वह बारीकी से संदूक का निरीक्षण करने लगा। उसने देखा कि ताबूत में मौजूद धड़ ताबूत के फर्श पर न होकर नुकीली कीलों के ऊपर टिका हुआ था जो ताबूत के पूरे तल में जड़ी हुई थीं। रामू ने उन कीलों को गिनने की कोशिश की, लेकिन वे संख्या में बहुत ज़्यादा थीं। शायद उनकी संख्या दस हज़ार से भी ऊपर थी।
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Jemsbond
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Re: मायावी दुनियाँ

Post by Jemsbond »


'शायद इन बेशुमार कीलों में कोई राज़ छुपा हुआ है।' रामू के दिल में विचार पैदा हुआ।
उसने एक कील को हिलाने डुलाने की कोशिश की। और इसी क्रिया में वह कील नीचे की तरफ धंस गयी। उसी समय कमरे की दीवार का एक हिस्सा किसी टीवी स्क्रीन की तरह रोशन हो गया और उसपर हरे रंग का लहराता हुआ धुवां जैसा दिखाई देने लगा था। रामू ने कील पर से अपना हाथ हटा लिया। उसके हाथ हटाते ही कील वापस उभर आयी और साथ ही दीवार पर दिखने वाला हरा धुवां गायब हो गया।

रामू ने कुछ समझते हुए सर हिलाया और दूसरी कील दबा दी। एक बार फिर उसी दीवार पर रंगों से कोई अनजान पैटर्न बनने लगा था जो कि पिछले पैटर्न से अलग था।

अब उसने और एक्सपेरीमेन्ट करने का इरादा किया और दो कीलें एक साथ दबा दीं। इस बार नतीजा कुछ और था। दीवार पर किसी अनजान जगह की तस्वीर उभर आयी थी। शायद यह किसी वीरान ग्रह की शुष्क ज़मीन थी। उन्हीं दोनों कीलों को दबाये हुए रामू ने एक तीसरी कील भी दबा दी। इसबार भी नतीजा आश्चर्यजनक था।

उस वीरान ग्रह की तस्वीर अब थ्री डी होकर कमरे के भीतर उभर आयी थी। रामू ने सर हिलाते हुए तीन पुरानी कीलों के साथ चौथी कील को भी दबा दिया। और वह थ्री डी तस्वीर चलती फिरती नज़र आने लगी। ऐसा लगता था कि कोई अंतरिक्षयान उस ग्रह की भूमि के ऊपर उड़ रहा है और उसकी मूवी बना रहा है।

वह अपने दोनों हाथों से चार से ज्यादा कीलें नहीं दबा सकता था अत: उसने उन्हें छोड़ दिया। कीलों को छोड़ते ही कमरे में दिखने वाली थ्री डी मूवी गायब हो गयी। कुछ कुछ कीलों का रहस्य रामू की समझ में आ गया था। अब उसने यह एक्सपेरीमेन्ट कीलों के नये सेट के साथ करने को सोचा। और चार नयी कीलें एक साथ दबा दीं।
इस बार भी एक थ्री डी मूवी कमरे में दिखने लगी थी। लेकिन दृश्य नया था। यह दृश्य किसी विशाल समुन्द्र का था जहाँ दैत्याकार लहरें कभी पहाड़ की ऊंचाई तक उठ रही थीं तो कभी नीचे गिर रही थीं। अपने एक्सपेरीमेन्ट को आगे बढ़ाते हुए उसने दो नयी और दो पुरानी कीलों को दबाया। इसबार उसे उस वीरान ग्रह पर ज़मीन से फूटता फव्वारा दिखाई दिया जो तेज़ी से विशाल तालाब का आकार ले रहा था। फिर वह तालाब देखते ही देखते विशाल समुन्द्र में बदल गया।

''यह सब क्या है?" इतने एक्सपेरीमेन्ट करने के बावजूद रामू अभी तक कुछ नहीं समझ सका था। कीलों को दबाने पर कुछ दृश्य उभरते थे और उसके बाद गायब हो जाते थे। इतना ज़रूर उसने देखा था कि चार कीलों को एक साथ दबाने पर थ्री डी मूवी चलने लगती है जबकि तीन को दबाने पर किसी अनजान जगह का स्टिल थ्री डी फोटोग्राफ नज़र आता है।

जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उसने संदूक में से उस सरकटे धड़ को निकालने का निश्चय किया।

उसने दोनों हाथ उस धड़ के नीचे लगाये और उसे उठाने के लिये ज़ोर लगाने लगा। उसके बंदर वाले जिस्म के लिये ये निहायत मुश्किल काम था। भरपूर ताकत लगाने के बाद आखिरकार वह उसे संदूक में से निकालने में कामयाब हो गया।

जैसे ही उसने उस धड़ को निकाला उसने देखा कि दीवार की स्क्रीन एक बार फिर रोशन हो गयी थी और उसपर कोई थ्री डी मूवी इस तरह चल रही थी मानो कोई वीडियो कैसेट तेज़ी से रिवर्स की जा रही हो। लगभग दस मिनट तक वह मूवी 'रिवर्स' होती रही फिर एक तस्वीर पर आकर रुक गयी। और यह तस्वीर जानी पहचानी थी।

उस थ्री डी तस्वीर में वही कटा सर मेज़ पर रखा हुआ दिखाई दे रहा था जो इससे पहले वह कुएँ नुमा कमरे में देख चुका था। वह थ्री डी फोटोग्राफ अजीब था। लगता था जैसे हक़ीक़त में थोड़ी दूर पर मेज़ मौजूद है और उसपर कटा सर रखा हुआ है।

'कहीं ऐसा तो नहीं वह फोटोग्राफ न होकर वास्तविकता हो?' रामू ने सोचा और उस मेज़ की तरफ बढ़ा। मेज़ के पास पहुंचकर उसने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। उसे यकीन था कि हाथ हवा में लहराकर रह जायेगा। क्योंकि वह इससे पहले कई थ्री डी फिल्में देख चुका था।

लेकिन यह क्या? मेज़ तो वाकई ठोस और वास्तविक थी। उसके हाथों ने मेज़ की सख्ती महसूस कर ली थी। फिर उसने देखा, मेज़ पर रखा सर भी वास्तविक था। उसने सर को उठाने की कोशिश की और सर आसानी से उसके हाथ में आ गया।

'इसका मतलब मैं वाकई एम-स्पेस के कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने में कामयाब हो चुका हूं।' ये विचार आते ही उसका अंग अंग खुशी से फड़कने लगा। लेकिन आगे कौन सा कदम उठाना है? ये सवाल ज़हन में आते ही वह फिर मायूस हो गया। अभी तक तो अंधी चालें कामयाब साबित हुई थीं। शायद उसपर तक़दीर भी मेहरबान थी। लेकिन आगे क्या हो जाता कुछ नहीं कहा जा सकता था।
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Jemsbond
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Re: मायावी दुनियाँ

Post by Jemsbond »

''तुम ही बताओ कि मैं आगे क्या करूं?" रामू ने हाथ में पकड़े सर से पूछा। लेकिन सर खामोश रहा। हालांकि उसकी पलकें झपक रही थीं जिससे मालूम होता था कि वह सर अभी भी जिंदा है। फिर रामू ने देखा उस सर की आँखें धड़ की तरफ इशारा कर रही हैं।
कुछ सोचकर रामू वापस धड़ तक पहुंचा और सर को उस धड़ के ऊपर रख दिया। फिर उसने हैरत से देखा कि अब तक बेजान धड़ एकाएक उठ खड़ा हुआ। लेकिन अब उसे धड़ कहना मुनासिब नहीं था क्योंकि सर उसके ऊपर पूरी तरह जुड़ चुका था। और अब वह बूढ़ा व्यक्ति पूरी तरह मुकम्मल था।

और अब वह अपना हाथ रामू की तरफ बढ़ा रहा था। रामू डर कर जल्दी से दो तीन कदम पीछे हट गया।

''डरो नहीं मेरे बच्चे। तुमने बहुत बड़ा काम किया है। जिसके लिये मैं अगर जिंदगी भर तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं तो भी कम होगा।" उस बूढ़े ने मोहब्बत से उसके सर पर हाथ फेरा।

''अ...आप कौन हैं?" रामू ये सवाल पहले भी उस बूढ़े के सर से पूछ चुका था और उस समय उसका जवाब नहीं मिला था।

''मैं एम-स्पेस का क्रियेटर हूं।" बूढ़े की बात सुनकर रामू को एक झटका सा लगा।

यानि वह बूढ़ा इस पूरे खतरनाक चक्रव्यूह का रचयिता था। लेकिन फिर वह खुद ही इस चक्रव्यूह में कैसे कैद हो गया? और उसने इस खतरनाक चक्रव्यूह को बनाया ही क्यों? अपने दिमाग में उमड़ते सवालों को रामू उस बूढ़े से पूछ बैठा।

''एम-स्पेस स्वयं कोई खतरनाक चक्रव्यूह नहीं है। बल्कि इसकी मदद से चक्रव्यूह की रचना की जा सकती है।" बूढ़ा बताने लगा, ''वास्तव में एम-स्पेस एक ऐसी मशीन है जो गणितीय समीकरणों द्वारा कण्ट्रोल होती है। और उन समीकरणों में उलट फेर करके कोई व्यक्ति इस यूनिवर्स में कहीं भी जा सकता है। और वहाँ की घटनाओं को कुछ हद तक कण्ट्रोल कर सकता है। सच कहा जाये तो हम जिस वास्तविक यूनिवर्स में रहते हैं वह भी गणितीय समीकरणों पर ही आधारित है। ये समीकरण ही फिजि़क्स के नियम कहलाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि एम-स्पेस वास्तविक यूनिवर्स का छोटा सा गणितीय माडल है।

''और इस माडल को आपने बनाया है।" रामू ने प्रशंसात्मक दृष्टि से उस जीनियस को देखा।

''हाँ। ये जो बाक्स तुम देख रहे हो। जिसमें मेरा धड़ कैद था, ये एम-स्पेस को कण्ट्रोल करने का यन्त्र है। इसमें सैंकड़ों कीलों के अलग अलग काम्बीनेशन के द्वारा एम-स्पेस यूनिवर्स के अलग अलग स्थानों की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सकता है। और उन घटनाओं के लिये चक्रव्यूह की भी रचना की जा सकती है।

''हाँ, मैंने भी कुछ कीलों को दबाकर घटनाओं को देखा था।"

''किसी जगह की घटनाओं को नियनित्रत करने के लिये कम से कम चार कीलों को एक साथ दबाना ज़रूरी है। क्योंकि यूनिवर्स की सभी घटनाएं स्पेस-टाइम की चार विमाओं से कण्ट्रोल होती हैं। और चार कीलों का ग्रुप उन चारों विमाओं को प्रभावित करता है। लेकिन यूनिवर्स की घटनाओं को सुचारू तरीके से कण्ट्रोल करने के लिये कीलों के सही काम्बीनेशन की जानकारी होना बहुत ज़रूरी है वरना इसे इस्तेमाल करने वाला गंभीर मुसीबत में भी गिरफ्तार हो सकता है।"

बूढ़े की बात रामू के पल्ले पूरी तरह नहीं पड़ी। अत: उसने अगला सवाल पूछा जो बहुत देर से उसके दिमाग में घूम रहा था, ''लेकिन आप खुद अपनी बनायी मशीन के चक्रव्यूह में कैसे फंस गये थे?"

बूढ़े ने एक ठंडी साँस ली और कहने लगा, ''दरअसल मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया। जब मैं अपनी मशीन को लगभग मुकम्मल करने की आखिरी स्टेज में था तो कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग मेरे शागिर्द बनकर मेरे ग्रुप में शामिल हो गये। सम्राट उनका लीडर था, वही सम्राट जिसका दिमाग तुम्हारे शरीर में फिट है। उन्होंने मेरी इस मशीन पर कब्ज़ा करके मुझे कैद कर लिया। इसी मशीन द्वारा उन्होंने मेरा सर अलग और धड़ अलग कर दिया था जिसके कारण मैं कुछ भी करने से लाचार हो गया। यहाँ तक कि मैं किसी को मदद के लिये भी नहीं कह सकता था वरना हमेशा के लिये मेरे सर का सम्पर्क धड़ से टूट जाता। यही वजह है कि मैंने हमेशा तुमसे इशारों में बात की। फिर इसी एम स्पेस द्वारा उन्होंने एक यान की रचना की और उसे लेकर पृथ्वी पर उतर गये। लेकिन उन्होंने कोई तकनीकी गलती कर दी थी अत: पृथ्वी पर उतरते समय सम्राट का शरीर नष्ट हो गया और उसने तुम्हारा शरीर ग्रहण कर लिया।"

''तो क्या अब मुझे कभी अपना शरीर वापस नहीं मिलेगा?" रामू ने थोड़ी आशा और थोड़ी निराशा के साथ बूढ़े की ओर देखा।

''तुम अपने दिमाग से सम्राट द्वारा बनाये गये एम-स्पेस के चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब हुए है। इसलिए तुम्हारा शरीर तुम्हें ज़रूर मिलेगा। अब ये जि़म्मेदारी मेरी है। बूढ़े ने उसका कन्धा थपथपाया।
-------

उस मैदान में कम से कम एक लाख लोगों का मजमा था जो रामू बने सम्राट के भक्त हो चुके थे। उनकी जय जयकार से पूरा मैदान गूंज रहा था। अभी तक उनके भगवान का वहाँ पर अवतरण नहीं हुआ था अत: टाइम पास करने के लिये वे उसकी तस्वीरों को नमन कर रहे थे। लगभग सभी के हाथों मे रामू उर्फ सम्राट की तस्वीरें पायी जाती थीं।

फिर उन्होंने देखा आसमान से एक सिंहासन उतर रहा है। और उस सिंहासन पर रामू बना सम्राट विराजमान था। पब्लिक की जय जयकारों की आवाज़ें और तेज़ हो गयीं। सम्राट का सिंहासन चबूतरे पर उतर गया। और वह शान से सामने आकर पब्लिक को दोनों हाथ उठाकर शांत करने लगा। पब्लिक उसके प्रवचन को सुनने के लिये पूरी तरह शांत हो गयी।

रामू बने सम्राट ने कहना शुरू किया, ''मेरे भक्तों, तुमने मुझे ईश्वर मान लिया है। अत: तुम्हें मैं इसका पुरस्कार अवश्य दूंगा। अभी और इसी समय।"

''भगवान, लेकिन मैंने तो सुना है कि ईश्वर भक्तों को उनका पुरस्कार मरने के बाद देते हैं।" एक जिज्ञासू भक्त बोल उठा।

''यह उस समय होता है जब ईश्वर का अवतरण नहीं होता। अब ईश्वर का अवतरण हो चुका है अत: पुरस्कार भी अवतरित होगा।"

''वह पुरस्कार किस प्रकार का होगा भगवान?" एक भक्त ने भाव विह्वल होकर पूछा।
''अभी थोड़ी देर में यहाँ पर हीरे मोतियों की बारिश होगी। और वह हीरे मोती केवल मेरे भक्तों के लिये होंगे।"

सम्राट की बात सुनकर लोगों की नज़रें फौरन आसमान की ओर उठ गयीं। कुछ अक्लमंद भक्तों ने अपने सर पर कपड़े व बैग भी रख लिये। अगर बड़े हीरों की बारिश हुई तो उनकी खोपड़ी फूट भी सकती थी।

सम्राट ने अपना हाथ हवा में लहराया मानो वह हीरे मोतियों की बारिश करने के लिये कोई मन्त्र पढ़ रहा हो। लोगों ने देखा कि आसमान में चमकदार बादल छाने लगे थे। शायद यही बादल हीरे मोतियों से भरे थे। फिर थोड़ी देर बाद बारिश शुरू हो गयी।

लेकिन यह क्या? इस बारिश में हीरे मोतियों का तो कहीं अता पता नहीं था। बल्कि यह गंदे बदबूदार पानी की बारिश थी जिसमें साथ साथ मोटे मोटे कीड़े भी टपक रहे थे। वहाँ खलबली मच गयी। लोग बुरी तरह चीखने लगे। कुछ महिलाएं जो सुबह नाश्ते में अच्छी तरह खा पीकर आयी थीं वह वहीं उगलने लगीं।

''भगवान ये सब क्या है?" कुछ भक्तों ने चीखकर पूछा। लेकिन भगवान खुद ही बदहवास हो चुके थे। ये माजरा उनकी समझ से भी बाहर था। रामू बने सम्राट के सामने चीख पुकार मची थी। लोग अपने ऊपर रेंगते कीड़ों को गिनगिनाते हुए फेंक रहे थे और किसी आड़ में जाने की कोशिश में भाग रहे थे। लेकिन उस मैदान में किसी आड़ का दूर दूर तक पता नहीं था।

''भगवान .. भगवान! हमें इन बलाओं से बचाईये ।" लोग हाथ जोड़ जोड़कर विनती कर रहे थे।
फिर रामू बने सम्राट ने चीखकर कहा, ''आप लोग शांत रहें। शैतान ने मेरे काम में रुकावट डाली है। ये मुसीबत शैतान की लायी हुई है। उससे निपट कर मैं अभी वापस आता हूं।

वह फौरन अपने सिंहासन पर सवार हुआ और वहाँ से रफूचक्कर हो गया। मैदान में पहले की तरह अफरातफरी मची थी।
-------

अपने सिंहासन पर सवार सम्राट यान में दाखिल हुआ और उसके साथी उसके अभिवादन में खड़े हो गये। सम्राट जल्दी से यान से नीचे उतरा।

''क्या बात है सम्राट?" उसे यूं हड़बड़ी में देखकर डोव ने पूछा।
''कुछ गड़बड़ हुई है। मैंने एम-स्पेस द्वारा हीरे मोतियों की बारिश के लिये समीकरण सेट की थी लेकिन वहाँ से कीचड़ और कीड़ों की बारिश होने लगी।"

''क्या ऐसा कैसे हो सकता है?" सिलवासा हैरत से बोला।
''कहीं एम-स्पेस में कोई खराबी तो नहीं आ गयी?" रोमियो ने विचार व्यक्त किया।
''या तो किसी ने समीकरण को बदल दिया है।" सम्राट ने अंदाज़ा लगाया।
''लेकिन ऐसा कौन कर सकता है?" रोमियो ने कहा।

''ये मैंने किया है।" वहाँ पर एक आवाज़ गूंजी और सब की नज़रें यान की स्क्रीन पर उठ गयीं जहाँ बन्दर के शरीर में रामू नज़र आ रहा था।
''तुम?" सम्राट ज़ोरों से चौंका। रामू को स्क्रीन पर देखकर सभी के चेहरों पर हैरत के आसार नज़र आने लगे।

''हाँ। मैं जिसको तुम लोगों ने एम-स्पेस के चक्रव्यूह में फंसा दिया था। लेकिन मैं वहाँ से बाहर आ चुका हूं।"
''नहीं। ये असंभव है। पृथ्वी का कोई मानव उस चक्रव्यूह को पार ही नहीं कर सकता।" सम्राट बेयकीनी से बोला।

''तुम लोगों ने पृथ्वीवासियों की क्षमता के बारे में गलत अनुमान लगाया था।" वे लोग एक बार फिर उछल पड़े क्योंकि अब वह बूढ़ा स्क्रीन पर दिखाई दे रहा था जो एम-स्पेस का क्रियेटर था। वह कह रहा था, ''इस बच्चे ने न केवल तुम्हारे चक्रव्यूह को भेद दिया बल्कि कण्ट्रोल रूम तक पहुंचकर मुझे भी आज़ाद कर दिया। और अब तुम लोग अपनी सज़ाओं को भुगतने के लिये मेरे पास आने वाले हो।"

''नहीं!" वे लोग एक साथ चीखे लेकिन उसी समय लाल रंग की किरणें उनके पूरे यान में बिखर गयीं और उन किरणों के बीच वे सभी गायब हो गये।
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