चमकता सितारा compleet

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Jemsbond
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चमकता सितारा compleet

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चमकता सितारा

दोस्तो इंसान शौहरत के पीछे दिवाना हुआ फिरता है पर उसे नही पता होता कि जिंदगी किस मोड़ पर ले जाती है फिर भी इंसान शौहरत के पीछे भागता रहता है
‘चारों तरफ हज़ारों कैमरों की जगमगाती चमक, जहाँ तक नज़रें जाए बस पागल होती बेकाबू सी भीड़ और उस भीड़ को काबू करने में लगे हुए कितने ही पुलिस वाले.. कानों में गूंजता हुआ बस आपका ही नाम.. हर चौराहे पर आपकी बड़ी-बड़ी तस्वीरें.. हर खबर की सुर्ख़ियों में बस आपका ही ज़िक्र..’
‘यूँ तो हर मोड़ पर बहुत सी जिंदगियाँ साँसें लेती दिखाई देंगी.. पर उन जिंदगियों में जान नहीं होती..
जीते तो सब हैं.. इस दुनिया में,
पर यहाँ हर किसी की..
खुद की पहचान नहीं होती..।’
कुछ ऐसी ही पहचान बनाने की चाहत आज एक छोटे शहर के लड़के को मुंबई ले आई थी.. जेब में गिनती के कुछ रूपए और अपनी किस्मत मुट्ठी में लेकर आज एक 23 साल का लड़का मुंबई पहुँच चुका था.. नाम था उसका ‘विजय’
हाँ दोस्तो, मैं विजय.. आज मेरा दिल बड़े जोर से धड़क रहा था.. घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था।
आँखें रुआंसी हुई जा रही थीं।
अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की आदत थी।
आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं.. क्या करूँगा.. इतने बड़े शहर में..? कैसी होगी मेरी माँ..? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को एफआईआर भी करवा ही दिया होगा।
मैं तीन महीने पहले यूपी के अलीगढ़ शहर में चार कमरों के मकान में रहता था.. मेरा एक खुशहाल मध्यम वर्गीय परिवार था।
मम्मी.. पापा.. मैं और मेरी एक बहन.. कितने खुश थे हम सब..
जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को मज़े से जीना.. वो पापा का मम्मी को चिढ़ाते हुए ‘जुम्मा.. चुम्मा दे दे..’ वाले गाने पर डांस करना.. बहन के ब्वॉय-फ्रेंड को धमकी देना और खुद पड़ोस में आई नई-नई लड़की को देखने के लिए गर्मियों की धूप में उसका इंतज़ार करना।
कितनी अच्छी बीत रही थी मेरी जिंदगी.. पर कहते हैं न, ‘जिंदगी में अगर खूबसूरत सुबह होती है.. तो वहीं काली अँधेरी रात भी होती है।’
जिसने इस रात में हौसला बनाए रखा उसकी नईया पार और जिसने हौसला खो दिया.. वो इन्हीं अँधेरी राहों में खो सा जाता है।
आज 17 फ़रवरी की सुबह.. मेरा जन्म दिन था.. मम्मी की आवाज़ से मेरी आँखें खुलीं.. मेरे सामने घर के सभी सदस्य थे।
‘हैप्पी बर्थडे टू यू…’
इस आवाज़ के साथ सबने मेरे गाल खींचने शुरू कर दिए। अपने बर्थडे की यही बात मुझे पसंद नहीं आती थी। आखिर में मम्मी ने नहा कर मंदिर जाने का निर्देश दिया और फिर सब बाहर हॉल में चले गए।
मैंने एक लम्बी सी जम्हाई ली.. और अपने सेल फ़ोन को चैक करने लगा।
डॉली (मेरी पडोसी और मेरी गर्ल-फ्रेंड) का व्हाट्स ऐप पर मैसेज था- ‘हैप्पी बर्थडे माय लव.. मंदिर जाओ तो मैसेज कर देना… मिस यू सो मच!’
ऐसा नहीं है कि मुझे दूसरों ने शुभ कामनाएँ नहीं भेजी थीं.. पर कसम से इस एक मैसेज ने मेरा दिन बना दिया।
मैंने डॉली को जवाब भेज दिया, ‘अभी एक घंटे में मंदिर के लिए निकलूंगा’ और मैं फ्रेश होने चला गया।
ये मेरा 23 वाँ जन्म-दिन था.. छह फीट की लम्बाई.. हल्का सांवला पर साफ़ रंग.. हल्की भूरी आँखें और जिम में बनाई हुई बॉडी..।
जब मैं अपने फेवरेट गहरे काले रंग के कपड़े पहन कर आईने के सामने खड़ा हुआ.. तभी डॉली मेरे कमरे में दाखिल हुई, ‘ ओह जनाब.. कहाँ आग लगाने का इरादा है..?’
मैंने डॉली के फ्रॉक सूट में ऊँगली फंसा कर उसे अपनी ओर खींचा और बड़े प्यार से उसके कान में कहा- जान हम अपने अन्दर प्यार का समंदर समेटे हैं.. हमने आग लगाना नहीं.. बुझाना सीखा है।
तभी मम्मी की आवाज़ आई- कौन है बेटा..?
मैंने जवाब दिया- डॉली आई है माँ.. वो बर्तन लौटाने और मुफ्त में मिठाई खाने।
मेरा इतना कहना ही था कि तभी पास पड़े मेरे बिस्तर के तकियों की बरसात मुझ पर शुरू हो गई।
खैर.. मैं घर में था.. सो बाहर भाग कर बच गया।
मम्मी- क्या हुआ..? फ्रिज से मिठाई लाओ और खिलाओ डॉली को..
मैंने कहा- अरे माँ अभी पूजा तो कर लूँ, फिर भूखों को खिलाऊँगा.. नहीं तो पुण्य कैसे मिलेगा।
डॉली की गुस्से वाली आँखों ने मुझे एहसास करा दिया कि बेटा.. अब चुप हो जा.. वर्ना ये जन्मदिन को मरण दिन बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा।
मैं घर से निकला और मंदिर में पूजा करके अपने सारे करीबियों को मिठाइयाँ बांटी और सबसे आखिर में डॉली के घर पहुँचा।
दोपहर के 12 बज रहे थे, हमेशा की तरह डॉली के पापा ऑफिस जा चुके थे और उसकी मम्मी सारे काम निबटा कर सीरियल देख रही थीं।
घर का दरवाजा डॉली ने ही खोला.. मैं एक शरीफ बच्चे की तरह डॉली पर ध्यान न देते हुए सीधा आंटी की ओर मिठाईयों का डब्बा लेकर चला गया।
मैं- आंटी जी ये मिठाई.. आज मेरा जन्मदिन है।
आंटी- ओह.. वैरी गुड बेटा जी.. हैप्पी बर्थ-डे..
मैं- आंटी आज ग्रेजुएशन का रिजल्ट आने वाला है मेरा.. सो मैं कंप्यूटर पर देख लेता हूँ।
आंटी- ठीक है बेटा.. डॉली.. जाओ ज़रा कंप्यूटर ऑन कर देना।
आंटी फिर से अपने सीरियल देखने लग गईं और मैं और डॉली उसके कमरे की ओर बढ़ चले।
डॉली ने कंप्यूटर ऑन किया और मुझे कुर्सी पर बैठने को बोली।
मैंने डॉली के हाथ को पकड़ा और एक झटके से उसे अपनी ओर खींच लिया। डॉली अब मेरी बांहों में थी।

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Jemsbond
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Re: चमकता सितारा

Post by Jemsbond »

डॉली- छोड़ो मुझे.. मम्मी आ जाएँगी।
मैं- जान.. आप कुछ भूल तो नहीं रही..
(अपने होंठों पे चूमने सा भाव लाते हुए मैंने डॉली को देखा) मेरा बर्थडे गिफ्ट..?
डॉली ने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए।
मेरे हाथ अब डॉली की पीठ पर फिसल रहे थे। मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था। मैंने उसे चूमते हए उसके सूट के पीछे लगी चैन को खोलने लगा।
एक हाथ से चैन खोलते हुए.. मेरा दूसरा हाथ उसकी गोलाईयों को नापने लगा।
डॉली की सिस्कारियाँ अब तेज़ होने लगी थीं।
तभी डॉली मुझे खुद से दूर करती हुई अलग हुई और उसने कहा- जान.. अभी मम्मी घर पर हैं.. थोड़ा सब्र करो।
मैं- वहीं तो नहीं होता जान.. खैर अभी रिजल्ट पर ध्यान देता हूँ.. कभी तो अकेली मिलोगी.. तभी सारी कसर निकाल लूँगा।
मेरे अन्दर इस रिजल्ट को लेकर एक घबराहट सी भी थी। मैंने विज्ञान का विषय चुना था.. मैं इसके बाद एमबीए करने जाने वाला था।
दिल्ली में मेरे एक दोस्त ने मेरे लिए सब कुछ सैट किया हुआ था.. सो मैं इस बार किसी भी तरह बस पास होने की उम्मीद कर रहा था.. नहीं तो मेरा पूरा साल बर्बाद हो जाता।
डॉली ने रिजल्ट वाली वेबसाइट खोली और उसने रिजल्ट वाले लिंक पर क्लिक किया। मेरी धड़कन तो जैसे अब जैसे आसमान छू रही थीं।
डॉली ने मेरे एक हाथ को अपने हाथ लिया और अपने सर को मेरे सीने से लगा दिया। तभी रिजल्ट दिखना शुरू हुआ.. पूरे कॉलेज की लिस्ट एक ही पीडीएफ फाइल में थी।
मैंने अपना रोल नंबर ढूँढना शुरू किया।
एक बार.. दो बार.. पूरे बारह बार मैंने उस लिस्ट को मिलाया.. पर मेरा नाम कहीं भी नहीं था.. मैं पागल सा होता जा रहा था। मेरी ऐसी हालत देख डॉली ने मुझे बिस्तर पर बिठा दिया और खुद रिजल्ट देखने लग गई।
थोड़ी देर में उसे मेरा रोल नंबर मिला, पर वो एक पेपर में फेल हुए लड़कों की लिस्ट में था।
रसायन शास्त्र (केमिस्ट्री) में मैं फेल हो गया था।
मैं तो अब तक सदमे में ही था.. अब मैं घर में किसी को क्या जवाब दूँगा.. अपने रिजल्ट के बारे में क्या बताऊँगा सबको..?
मैं तो दिल्ली जाने की लगभग सारी तैयारी कर चुका था।
वैसे ये इतनी बड़ी भी नहीं थी। पास और फेल तो जीवन के ही दो पहलू हैं। आज जो मैं फेल हुआ हूँ.. तो कल फिर से मुझे मौका मिलेगा ही.. तब मैं इसे ठीक कर दूँगा।
हाँ.. पर एक बात तो पक्की थी कि मैं इस साल दिल्ली तो नहीं जा सकता था। क्यूंकि वैसे ही इन्होंने तीन साल के कोर्स को चार साल में पूरा किया था।
अब फिर से एग्जाम लेने में कितना वक़्त लगेगा.. मैं भी नहीं जानता था।
मेरे दिमाग में ये सब ख्याल आ ही रहे थे कि डॉली ने मेरे हाथों को अपने हाथ में ले लिया।
मैं अभी भी बिस्तर पर ही बैठा था। डॉली मेरे बगल में बैठ गई.. हालांकि मैं अब काफी सामान्य हो चुका था.. पर फिर भी मैं अब मज़े लेने मूड में था।
मैं बस ये देखना चाहता था कि आखिर वो मेरी परेशानी में मुझे कैसे संभालती है।
डॉली मेरे सर को अपनी गोद में रख मेरे बालों को सहलाने लगी और साथ-साथ समझाने भी लगी।
डॉली- जय (वो मुझे प्यार से यही बुलाती थी) तुम उदास मत हो.. कम से कम आज के दिन तो नहीं.. मैं भी पागल ही थी कि तुम्हें रिजल्ट दिखाने लग गई.. जब तुम्हारा नाम नहीं मिला था.. तो मुझे भी छोड़ देना था। देखो.. आज का पूरा दिन खराब कर दिया मैंने..
वैसे तो सच में.. मुझे उसकी सूरत देख हंसी आ रही थी।
मैं उदास सी शकल बनाते हुए बोला- जानू.. इसमें तुम्हारी क्या गलती.. मैंने पेपर सही से नहीं लिखा तो मैं फेल हुआ.. वैसे मैं तो हूँ ही इसी लायक.. सबको परेशान करता हूँ.. तो भला मेरे साथ अच्छा कैसे हो सकता है। देखो तुम्हारा दिल भी तो दुखाता हूँ न..!
डॉली- नहीं बाबू.. मैं क्यूँ परेशान होने लगी तुमसे.. वो तो बस तुम्हें चिढ़ाने को गुस्सा होने का नाटक करती हूँ.. पर जब तुम उदास होते हो तो मेरी जान निकलने लगती है।
ये कहते हुए उसने मेरे सर को चूम लिया।
अब उसकी हालत देख मुझे बुरा लगने लगने लगा। तभी मैंने डॉली के हाथ को.. जो मेरे बाल सहला रहे थे.. पकड़ कर उससे कहा- जानू एक बात कहूँ..?
डॉली- हाँ कहो..
मैं- वो अपने 42 को 32 के शेप में लाओ न.. तुम्हारी प्यारी सी सूरत देख नहीं पा रहा हूँ।
वो मेरे कान मरोड़ते हुए कहने लगी- कमीने.. मैं भैंस दिखती हूँ तुम्हें.. जो मेरे 42 के होंगे.. खैर.. इन सब बातों में मैं तुम्हें तुम्हारा गिफ्ट देना ही भूल गई।
वो उठी और अपनी अलमारी से एक पैक किया हुआ गिफ्ट ले आई। वो गिफ्ट मेरे हाथ में दे अपना गला साफ़ करने लग गई।
मैंने अपने कान पर हाथ रखा और उससे कहा- जान अब गाना भी सुनाओगी क्या..? आज के लिए वो रिजल्ट वाला सदमा ही काफी था। इससे तो कैसे भी उबर जाऊँगा.. पर तुम्हारे गाने को भूलने में सदियाँ बीत जायेंगी।
अब गुस्सा होती हुई वो बोली- एकदम चुप हो जाओ.. वर्ना हाथ-पैर सलामत नहीं बचेंगे.. गाने का मन तो नहीं था.. पर अब तो छोडूंगी नहीं.. तुम्हें अब सुनना ही पड़ेगा।
मैंने अपने होंठों पर ऊँगली रखी और उससे शुरू होने का इशारा किया।
कहते हैं कि आँखें कभी झूठ नहीं कहती हैं। उसकी आँखें ही काफी थीं.. हाल-ए-दिल बयाँ करने के लिए।
‘दिल में हो तुम.. आँखों में तुम… कैसे ये तुमको बताऊँ… पूजा करूँ.. सजदा करूँ जैसे कहो.. वैसे चाहूँ.. जानू.. मेरे जानू… जाने जाना.. जानू..’
वो अपनी आँखों में आते हुए आंसुओं को रोकते हुए मेरे सीने से लग गई।
‘और कहो मेरे बदमाश जानू.. कानों के परदे फटे या नहीं?’
मैंने उसके चेहरे को सामने किया और कहा- आई लव यू..
मेरे होंठ उसके होंठों से मिल गए।
काश.. ये पल यहीं रुक गए होते.. बस इन्हीं लम्हों में हम अपनी जिंदगी बिता देते।
मैंने उसे चूमते हुए बिस्तर पर लिटा दिया.. हम दोनों एक-दूसरे के आगोश में खो से गए थे.. हमें दुनिया का कुछ भी होश नहीं था। उसके सूट के चैन तो पहले से ही खुली हुई थी। अब मैंने उसके सूट को उसके बदन से अलग किया।
काले रंग की ब्रा और उसी रंग की लैगिंग उस पर बहुत जंच रही थी।
मैं उसके हर हिस्से को चूमता हुआ बारी-बारी से उसके कपड़े अलग करने लग गया। उसके ये रूप किसी अप्सरा को भी ईर्ष्या दिलाने के लिए काफी था।
मैं कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो चुका था। मैंने अपने कपड़े उतारे और डॉली को अपनी बांहों में भर लिया। उसके होंठों का रसपान करता हुआ उसके कूल्हों की दरार में मैंने अपनी ऊँगली फंसा दी।
एक बार तो मेरी इस शरारत से वो चिहुंक गई। मैंने उसकी टांगें ऊपर की और उसकी योनि को अपने लिंग से भर दिया। उत्तेजना की वजह से मेरे धक्के में रफ़्तार ज्यादा थी। थोड़ी देर वैसे ही धक्कों के बाद मैंने उसे गोद में उठाया और दीवार से सटा दिया। उसकी टांगें मेरे कंधे पर थीं और उसका पिछला छेद अब मेरे लिंग के कोमलने पर था।
मैंने उसके होंठों को अपने होंठों से बंद किए और उसके पिछले छेद को एक धक्के से भर दिया।
उसकी आवाज़ घुट कर रह गई। अब मेरे धक्के तेज़ होते जा रहे थे। आखिरकार मैं उसी अवस्था में स्खलित हो गया।
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Re: चमकता सितारा

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हम दोनों फिर जल्दी-जल्दी कपड़े पहने और मैं जाने को हुआ.. तभी डॉली ने मुझे अपनी ओर खींच बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे होंठों को अपने होंठों का जाम पिलाने लग गई।
तभी दरवाज़े की दस्तक ने हमें चौंका दिया।
‘हे भगवान्.. तुझे सारे सैलाब आज ही लाने थे मेरी जिंदगी में… बेहद गुस्से में डॉली की माँ दरवाज़े पे खड़ी थी।’
आंटी ने मेरी ओर देखते हुए कहा- तुम अपने घर जाओ।
मैं- आंटी मैं डॉली से शादी करना चाहता हूँ.. प्लीज हमें गलत मत समझिए।
आंटी ने इस बार लगभग चिल्लाते हुए कहा- मैंने कहा न तुमसे.. अपने घर जाओ… मतलब जाओ यहाँ से..
मैं बात ज्यादा बढ़ाना नहीं चाहता था। मैं बाहर दरवाज़े तक पहुँचा ही था कि किसी सामान के गिरने की आवाज़ आई, मैंने पलट कर देखा तो डॉली के दरवाज़े के बाहर डॉली के सेल फ़ोन के टुकड़े छिटक कर आए थे।
मतलब आंटी ने सबसे पहले उसका फ़ोन तोड़ दिया था। मैं अब दरवाज़े के बाहर आ चुका था।
ये बर्थ-डे तो मैं जिंदगी में कभी भूलने वाला नहीं था।
मैं यूँ तो डॉली के घर अक्सर जाया करता था। आज से लगभग दो साल पहले मैंने उसे प्रपोज किया था। तब से मैं अक्सर किसी न किसी बहाने से उसके घर आया जाया करता था। कभी भी किसी को हमारे बारे में शक़ तक नहीं होने दिया था।
आज तो दिन ही खराब था.. ऐसा लग रहा था कि जैसे हिरोशिमा और नागाशाकी वाले विस्फ़ोट आज मुझ पर ही कर दिया गया हो। पता नहीं डॉली को क्या-क्या झेलना पड़ रहा होगा.. वो भी मेरी वजह से..
एक बार तो मन कर रहा था कि अभी उसके घर जाऊँ और उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ कहीं दूर ले जाऊँ.. पर मुझे पता था कि अभी सही वक़्त नहीं है। मेरे किसी भी कदम से दोनों परिवारों में तूफ़ान सा आ सकता था।
डॉली भी अपने माँ-बाप की अकेली बेटी ही थी। मेरे ऐसे किसी भी कदम से उसके मम्मी-पापा का खुद को संभालना मुश्किल हो जाता।
मैं वापिस अपने घर आ गया।
मम्मी- आ गए.. खाना खा लो, आज तुम्हारी पसंद के समोसे भी बनाए हैं।
मैं मम्मी के पास गया और उनके गले से लग गया।
कहते हैं न कि माँ को अपने बच्चे के दर्द का एहसास उससे पहले हो जाता है।
मम्मी- क्या हुआ..? परेशान से लग रहे हो?
मैं- वो ग्रेजुएशन में एक पेपर में फेल हो गया हूँ।
मैं तो डॉली वाली बात बताना चाह रहा था.. पर नहीं बोल पाया।
माँ- अगली बार ठीक से पढ़ाई कर के एग्जाम देना और ज्यादा परेशान मत हो.. खाना खा लो और आराम करो।
मुझे वैसे भी कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा था। जैसे-तैसे खाना खा कर मैं अपने कमरे में आ गया।
अभी भी मैं डॉली को ही कॉल करने की कोशिश कर रहा था.. पर उसके सारे नंबर ऑफ आ रहे थे।
मन में एक साथ कितने ही सारे ख़याल आने लगे। ये सोचते हुए कब नींद आ गई.. मुझे पता ही नहीं चला।
अब 6 बज गए थे और पापा की आवाज़ से मेरी नींद खुली।
पापा- कितनी देर तक सोते रहोगे? जल्दी आओ.. केक आ गया है.. नहीं आए.. तो हम सब तुम्हारे बिना ही केक ख़त्म कर देंगे।
मैं ऊँघता हुआ उठा और चेहरे को धो कर हॉल में आ गया। मेरा सबसे पसंदीदा केक (चोकलेट केक) था। उस पर लिखा था ‘ हैप्पी बर्थ-डे टू माय लविंग सन..’
मेरे घर में हम किसी का जन्मदिन ऐसे ही मनाते थे। दिन में पूजा कर सभी रिश्तेदारों को मिठाई दे देता था और रात में बस हम घर के चारों लोग केक काटते.. गाने गाते और खूब डांस करते।
पापा का फेवरेट गाना बजा, ‘जुम्मा चुम्मा दे दे…’ और फिर वो शुरू हो गए और मम्मी ने पापा को डांटना शुरू कर दिया, ‘बच्चे बड़े हो गए हैं.. कुछ तो शर्म करो..’
मम्मी जितना गुस्सा होतीं.. पापा और एक्सप्रेशन देने लग जाते।
कुछ पलों के लिए तो मैं अपने सारे दर्द भूल ही गया था।
खैर.. सबसे आखिर में हमने डिनर किया.. वो भी एक-दूसरे की प्लेट से खाना लूट-लूट कर और फिर हम सोने चले गए।
अगले तीन दिनों तक मैंने बहुत कोशिश की.. पर डॉली की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी।
जब से डॉली से दूर हुआ था.. किसी काम में मन ही नहीं लगता था। बस उसी की यादों में खोया-खोया सा रहता था।
बस.. हर वक़्त उसी की यादें.. वो कैसे हम छुपते-छिपाते मिलते थे। हमने एक साथ ना जाने कितने ही लम्हे गुज़ारे थे। हमारे घरों की छत एक साथ लगी हुई थीं.. सो मैं अक्सर मेन गेट से जाने के बजाए छत से कूद कर चला जाता था।
जब से डॉली की माँ ने हमें पकड़ लिया था.. तब से ज्यादातर छत पर.. दरवाज़े में ताला लगा रहता था।
डॉली के पापा शहर के जाने-माने वकील थे और उस काण्ड के बाद जब भी मुझे देखते तो ऐसे घूरते मानो बिना एफ आई आर के ही उम्र कैद दे देंगे।
आज उस बात को एक लंबा अरसा बीत चुका था.. मैं डॉली की हालत जानने के लिए हर तरीका अपना चुका था।
उसके घर जिनका आना-जाना लगा रहता था.. हर किसी से पूछ कर थक चुका था।
सब यही कहते कि अभी डॉली घर पर नहीं थी।
मेरा मन किसी अनजान आशंका से घिर गया था। पता नहीं.. डॉली के साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई..
मैं उसी शाम को छत पर गया.. ये डॉली के यहाँ काम करने वाली के आने का वक़्त था। ठीक समय पर वो छत पर आई.. छत का दरवाज़ा खोल कर कपड़े समेटने लग गई।
मेरे लिए यही सही वक़्त था। मैं उनकी नज़रों से बचता हुआ धीरे-धीरे दरवाज़े तक पहुँचा और सीढ़ियों से होता हुआ नीचे डॉली के कमरे के बाहर आ गया।
उसके कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद किया हुआ था।
मेरे दिल की धड़कन अब आसमान पर पहुँच चुकी थी। उसके घर में तीन बेडरूम थे.. तीनों हॉल से जुड़े थे। मैं जहाँ खड़ा था.. वहाँ पर बाथरूम था और मेरे ठीक सामने डॉली की माँ सोफे पर बैठ टीवी देख रही थीं। मैं हल्की सी आवाज़ भी नहीं कर सकता था.. और उधर कामवाली कभी भी सीढ़ियों से नीचे आ सकती थी।
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Re: चमकता सितारा

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उधर पास में ही हाथ धोने के लिए बेसिन लगा था और वहाँ पर टिश्यू पेपर पड़े थे।
मैंने एक पेपर लिया और उस पर पानी से लिखा, ‘जय’ और उसे दरवाज़े से नीचे सरका दिया।
अब तो मैं बस दुआ ही कर सकता था कि ये डॉली को मिले और वो दरवाज़ा खोल दे।
अभी मैं सोच ही रहा था कि छत पर दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई। मेरी तो धड़कन रुकने वाली थी।
तभी डॉली के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आई। इससे पहले कि कोई मुझे देख पाता.. मैं डॉली के कमरे में था।
मैंने राहत की सांस ली। डॉली मेरे सीने से लगी थी.. उसके आंसुओं ने और उस कमरे की हालत ने बहुत कुछ बयाँ कर दिया था।
मैंने पहले कमरा बंद किया और डॉली के चेहरे को थोड़ा ऊपर किया.. उसका चेहरा जो कभी कमल के फूलों सा खिला-खिला रहा करता था.. आज वो चेहरा न जाने कहाँ खो गया था।
मैं गुस्से में पागल हुआ जा रहा था।
मैं पलटा और दरवाज़े को खोलने ही वाला था कि डॉली ने मुझे रोक लिया। उसने मेरे होंठों पर ऊँगली रखी और इशारे से मुझे शांत होने को कहा।
मैंने उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया। दरवाज़े की कुण्डी लगाई और बिस्तर पर आ गया। डॉली ने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया और खुद मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गई।
बाहर टीवी का शोर इतना था कि हमारी आवाज़ बाहर नहीं जा सकती थी।
मैं- क्या हुआ था मेरे जाने के बाद?
डॉली- मम्मी ने फ़ोन तोड़ दिया और… वैसे ये सब बातें इतनी जरूरी नहीं हैं। तुम मेरे पास हो इतना ही काफी है। मम्मी-पापा ने जो भी किया.. वो उनका हक़ था.. वो मेरी जान भी ले लेते तो भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता।
मैंने उसके होंठों पर अपने हाथ रख दिए। पता नहीं क्यों.. मेरी आँखों में आंसू आ गए थे। कभी भी मैंने ये नहीं सोचा था कि हमारे परिवार वाले नहीं मानेंगे। हमारी कास्ट अलग थी.. पर हमारा पारिवारिक रिश्ता काफी गहरा था।
आंटी हमेशा मुझे ‘बेटा जी’ कह कर ही बुलाती थीं और आज हमारे बीच इतनी दूरियाँ पैदा हो गई थीं कि एक-दूसरे को देखना भी गंवारा नहीं था।
डॉली- मेरी शादी होने वाली है.. अगले महीने..
इस बात से मुझ पर तो जैसे बिजली गिर गई हो, मैंने उससे कहा- और तुम? शादी की शॉपिंग करने कब जा रही हो?
यह कहते हुए मेरा गला भर आया था।
डॉली- मैंने कहा न उनका मुझ पर इतना हक़ है कि वो चाहें तो मेरी जान भी ले लें..
मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था, मुझे रोना आ गया, मैं उठ कर बैठ गया।
डॉली ने मुझे पकड़ते हुए कहा- जानू तुम्हीं तो कहते थे न.. मैं तो फंस गया तुम्हारे चक्कर में.. कोई और आप्शन दिखती भी है तो.. छोड़ना पड़ता है।
मैं- जा रहा हूँ मैं.. अब कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊँगा.. तुम्हारा यही फैसला है.. तो यही सही.. मर भी जाओगी.. तो तुम्हारी तरफ देखूँगा तक नहीं..।
डॉली ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर से मेरे गले लग गई।
डॉली- ऐसे मत जाओ.. आज मुझे तुमसे एक वादा चाहिए.. अगर तुमने मुझसे प्यार किया है.. तो मुझे ‘ना’ नहीं कहोगे।
मैं- जब मैं कुछ हूँ ही नहीं तुम्हारे लिए.. फिर क्यूँ करूँ तुमसे कोई वादा?
डॉली- मैं हमेशा से तुम्हारी थी.. हूँ.. और हमेशा रहूँगी.. मेरे लिए ये आखिरी बार मेरी बात मान लो।
मैं- कौन सी बात?
डॉली- जब मैं अपनी शादी का जोड़ा पहनूँ.. तब मुझे सबसे पहले तुम देखोगे.. जब भी मैंने शादी के सपने सजाए हैं.. हर बार मैंने यही कल्पना की है कि तुमने मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले देखा है।
मैं- किसी और के नाम के जोड़े में अपने प्यार को देखूँ.. इससे अच्छा तो मेरी जान मांग लेती.. एक बार भी ‘ना’ नहीं कहता।
डॉली- बस मेरे प्यार के लिए.. मान जाओ।
वो ये कहते हुए मेरे गले से लग गई और रोने लगी।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिसे मैं प्यार करता हूँ.. उसे इतनी तकलीफ देने वाला मैं ही होऊँगा। मुझे एहसास था कि उस वक़्त मेरे दिल पर क्या बीतेगी जब वो शादी के जोड़े में होगी.. वो भी किसी और के नाम के जोड़े में..
पर इश्क में दर्द भी किस्मत वालों को ही मिलते हैं।
मैंने उससे कहा- ठीक है।
कमरे में सन्नाटा सा पसरा था। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि क्या बात करूँ उससे.. तभी बाहर के दरवाज़े खुलने की आवाज़ आई.. शायद डॉली के पापा कोर्ट से आ चुके थे। उसके पापा शहर के जाने माने वकील थे।
लगभग 15 मिनट बाद डॉली ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर चली गई। मैं दरवाज़े के पास खड़ा हो गया.. ताकि बाहर क्या हो रहा है.. मैं सुन सकूँ।
डॉली के पापा अब हॉल में बैठ चुके थे। डॉली भी मम्मी-पापा के साथ हॉल में बैठ गई।
डॉली- पापा मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ।
उसके पापा- कहो।
डॉली- आप हमेशा कहते थे न.. कि हम चाहे कोई भी मसला हो.. एक साथ बैठ कर.. शांत दिमाग से बात करें.. तो उसे सुलझा सकते हैं। आज आप मेरे लिए थोड़ी देर शांत होकर- मेरी बात सुनिएगा।
उसके पापा- ठीक है बेटा.. कहो।
डॉली- मुझे पता है.. मैंने आपका दिल दुखाया है। मैं आपकी राजकुमारी नहीं बन सकी। आपने जो भी किया वो आपका हक़ था। आप मुझे जान से भी मार देते तो भी मुझे अफ़सोस नहीं होता। मैंने आपको बहुत तकलीफें दी हैं.. पर अब आप जैसा कहेंगे.. मैं करने को तैयार हूँ.. पर क्या आप मेरी एक बात मानेंगे?
उसके पापा- मैं तुम्हारा भला ही चाहता हूँ.. मैं तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं हूँ और गलती सभी से होती है.. आपसे हुई तो मुझसे भी हुई है। खैर.. बताओ तुम्हें क्या चाहिए?
डॉली- पापा मैं विजय को समझा दूँगी और मुझे पता है.. वो मान जाएगा। मैं अपनी शादी से पहले फिर से वही मुस्कुराते चेहरे देखना चाहती हूँ.. जो कभी हम दोनों के घर में हुआ करता था। क्या हम पहले की तरह नहीं रह सकते? और एक आखिरी बात.. अब मैं जाने वाली हूँ.. तो आप दोनों ने मुझसे अब तक जितना प्यार किया है.. उसका दोगुना प्यार मुझे आने वाले दिनों में चाहिए।
मैंने दरवाज़े को ज़रा सा सरकाते हुए हॉल में क्या हो रहा है.. उसे देखने की कोशिश की.. हाल में डॉली बीच में बैठी थी और उसके मम्मी-पापा उसे माथे पर चूम रहे थे।
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बन्धन
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Jemsbond
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Re: चमकता सितारा

Post by Jemsbond »

मैंने देखा कि डॉली के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून था।
थोड़ी देर में डॉली कमरे में आई.. उसने मुझे बिस्तर पर पटका और अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था।
आखिर ये लड़की चाहती क्या है? उधर अपने मम्मी-पापा को ये कह कर आई कि आप जहाँ कहोगे.. मैं शादी करूँगी और इधर मेरी बांहों में… क्या कोई ये बताएगा मुझे… कि लड़कियों को समझा कैसे जाए।
मैं डॉली की आँखों में अपने सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करने लगा.. पर शायद मैं भूल गया था कि ये वहीं आँखें हैं.. जिसने मुझे कभी ऐसे कैद किया था.. किस जादू से.. कि मैं आज तक बाहर नहीं आ पाया हूँ।
जितना मैं उसे देखता गया.. उतना ही उसका होता चला गया। हमारी साँसें तेज़ होती गईं.. हम दोनों एक-दूसरे में खोते चले गए।
आज पहली बार मैं उसके इतने करीब होते हुए भी उससे खुद को कोसों दूर पा रहा था.. पर अब भी शायद थोड़ी ये उम्मीद बाकी थी कि वो मेरी अब भी हो सकती है।
मैं उसके इंच-इंच में इतना प्यार भर देना चाहता था कि चाह कर भी वो किसी और की ना हो पाए। आज मैं उसे खुद से किसी भी हाल में दूर नहीं होना चाहता था। जब-जब वो मुझे खुद थोड़ा अलग करती.. मैं उसे खींच कर फिर से अपने सीने से लगा लेता।
हमारे कपड़े वहीं कमरे के कोने में पड़े हुए थे.. हमारी साँसें एक हो गई थीं।
पर आज जैसे मुझे किसी भी काम में भी मन नहीं लग रहा था। मेरे सीने की आग इतनी ज्यादा बढ़ी हुई थी कि ये तन की आग भी उसे काबू में कर पाने में असमर्थ थी।
डॉली मेरी इस हालत को समझ गई.. उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे पूरे जिस्म पर अपने होंठों की छाप छोड़ने लग गई। वो मुझे चूमते हुए मेरे लिंग के पास पहुँची और उसने मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया।
मेरे लण्ड को चूसते हुए उसके नाख़ून मेरे जिस्म को खरोंच रहे थे।
आखिरकार मेरे अन्दर भी शैतान जाग उठा। मैंने उसी अवस्था में उसे बिस्तर पर पटका और अपने लिंग को उसके गले तक पहुँचाने लगा।
फिर उसे घोड़ी वाले आसन में उसके पिछले छेद में अपनी तीन ऊँगलियाँ अन्दर तक घुसा दीं और उसकी योनि को अपने लिंग से भर दिया।
अब मैं उसे बिस्तर के किनारे तक ले आया था। अपने लिंग और उँगलियों को उसी जगह पर रख अपने पैर के अंगूठे को उसके मुँह में दे दिया।
इसी अवस्था में थोड़ी देर में मेरी भावनाओं का ज्वार शांत हुआ और मैं निढाल होकर- उसके साथ बिस्तर पर गिर पड़ा।
जब एक तूफ़ान शांत हुआ.. तो मेरे अन्दर जो भावनाओं का तूफ़ान था.. वो सामने आ गया।
मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
अब तक मैंने उसे कस कर पकड़ा हुआ था.. मानो कोई उसे मुझसे जबरदस्ती दूर ले जा रहा हो। मैं अब तक इसी उम्मीद में था कि शायद वो मेरी हो जाए।
डॉली ने मेरे माथे को चूमते हुए कहा- आज मेरे पास ही रह जाओ न.. मैं अपना हर लम्हा तुम्हारी बांहों में जीना चाहती हूँ।
मैंने उसे रोकते हुए कहा- अधूरी बातों से दिलासा देने की ज़रूरत नहीं है। कहो कि शादी तक मैं तुम्हारी बांहों में रहना चाहती हूँ और शादी के बाद..
यह कहते-कहते मैं रुक गया.. मेरा गला भर आया था.. अब कुछ भी कहने की हिम्मत बची भी नहीं थी।
मैं- अब मुझे जाना होगा।
डॉली- अभी ना जाओ छोड़ के.. कि दिल अभी भरा नहीं..
उसकी बातें मुझे गुस्सा दिला रही थीं।
मैंने उसके बाल पकड़ अपने पास खींचा- जान लेने का कोई नया अंदाज़ है क्या यह?
डॉली- इस्स्स्स.. जनाब आपका ये गुस्सा.. आपकी जान जाए या न जाए.. पर इतना तो पक्का है.. आपके ये गुस्सा होने का अंदाज़ हमारी जान जरुर ले लेगा।
यह कहते हुए फिर से उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
मुझे गुस्सा आ रहा था और उसे ये सब मज़ाक लग रहा था। मैंने उससे कहा- मुझे अब घुटन सी हो रही है, प्लीज मुझे थोड़ी देर अकेला छोड़ दो। मैं अभी यहाँ नहीं रह सकता।
डॉली- ठीक है तो फिर कल मिलने का वादा करो।
मैं- ठीक है..
डॉली मेरा हाथ अपने सर पर रखते हुए- ऐसे नहीं मेरी कसम खा कर कहो.. तुम्हें हर रोज़ मुझसे मिलोगे।
मैं- जिससे शादी हो रही है.. उससे मिल न.. मुझे क्यों तकलीफ दे रही हो। जो करना है.. करो उसके साथ.. मेरी जान छोड़ दो अब.. बस..
डॉली- मुझसे प्यार करने की सज़ा ही समझ लो.. या फिर यही कह दो कि तुमने कभी भी मुझसे प्यार किया ही नहीं.. मैं कुछ नहीं कहूँगी।
मैं अब उसे कुछ भी नहीं कह सका।
‘ठीक है जैसा तुम कहो!’
डॉली- ऐसे नहीं.. मेरी कसम खा कर कहो कि तुम मुझसे हर रोज़ मिलोगे.. भले ही मुझे डांटो.. मारो या मेरी जान ले लो.. लेकिन मुझसे हर रोज मिलोगे।
‘हाँ मैं कसम खाता हूँ.. अब तो जाने दो।’
डॉली ने मुस्काते हुए कहा- ह्म्म्म.. अब ठीक है.. अभी बंदोबस्त करती हूँ आपको बॉर्डर पार करवाने का..
वो बाहर गई.. उसके घर का माहौल अब सामान्य हो चुका था, उसने छत की चाभी उठाई और छत पर चली गई।
थोड़ी देर में वो वापिस कमरे में आई और मुझे पीछे-पीछे चलने का इशारा किया।
शायद उसके मम्मी-पापा अपने कमरे में थे। मैं अब छत पे आ चुका था। मैं दीवार पार करने जैसे ही आगे बढ़ा.. डॉली मुझसे लिपट गई, थोड़ी देर रुक के वो मुस्कुरा के मुझसे अलग हो गई। पता नहीं आज उसकी आँखें मुझसे बहुत सी बातें कहना चाह रही थीं.. पर इस सैलाब को अपने अन्दर ही समेटे रह गई।
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