चमकता सितारा compleet

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Jemsbond
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Re: चमकता सितारा

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रात हो चुकी थी.. उस रात का खाना हम दोनों ने मिल कर बनाया था। वो सोफे पर बैठ गई.. मैंने उसकी गोद में सर रखा और फर्श पर बैठ गया। डॉली मुझे खिलाने लग गई। मैं तो बस उसे देखता ही जा रहा था, पता नहीं फिर कब उसे जी भर कर देखने का मौका मिले।
हमारा खाना-पीना हो चुका था और मम्मी का कॉल भी आ चुका था तो अब जाने का वक़्त हो चुका था।
डॉली की आँखें भी नम हुई जा रही थीं.. वो कुछ कहना चाह रही थी.. पर बात उसके गले से बाहर नहीं आ पा रही थी।
ना मुझमें अब कुछ बोलने की हिम्मत बची थी।
मैं दरवाज़े की ओर मुड़ा और दरवाज़ा खोल ही रहा था कि डॉली का मोबाइल बज उठा।
कॉलर ट्यून थी ‘लग जा गले.. कि फिर हसीं रात हो ना हो… शायद इस जन्म में मुलाक़ात हो ना हो..’
मैं पलटा और डॉली को जोर से बांहों में भर लिया, हम दोनों रोए जा रहे थे।
थोड़ी देर ऐसे ही रुक मैंने खुद को उससे अलग किया और दरवाज़े से बाहर आ गया।
मेरे सीने में आग लगी हुई थी, मैं जोर जोर से चिल्लाना चाह रहा था।
मैं थोड़ी देर अकेला रहना चाहता था पर कहते हैं न- ‘बड़ी तरक्की हुई है इस देश की मेरे दोस्त… तसल्ली से रोने की जगह भी नहीं है यहाँ तो..’
सारे दर्द को यूँ ही सीने में दबाए.. मैं अपने कमरे में आ गया। अब मुझमें कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं बची थी.. मैं सोने चला गया।
उस दिन को बीते लगभग एक हफ्ता हो गया था। यूँ तो हर रोज़ हम किसी न किसी बहाने से मिल ही लेते थे.. पर आज शाम से डॉली का कोई पता ही नहीं था, उसके घर में भी कोई नहीं था, मैंने अपना सेल फ़ोन निकाला और डॉली को मैसेज किया।
‘कहाँ हो? मैं छत पर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।’
डॉली का ज़वाब थोड़ी देर में आया- मैं पटना में हूँ.. कल मिलती हूँ।
आखिर वो पटना में क्या कर रही है..? यह सवाल मुझे परेशान किए जा रहा था। मैं नीचे गया, मम्मी नूडल्स बना रही थीं।
मैं- मम्मी.. वो डॉली के घर पर कोई नहीं है। सब कहीं गए हैं क्या?
मम्मी- डॉली ने तुम्हें नहीं बताया है क्या?
मैं- कौन सी बात.?
मम्मी- आज डॉली की सगाई है। लड़के वाले पटना के हैं.. सो वहीं किसी होटल से हो रही है।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाला। जब से डॉली की शादी की बात हुई थी.. मुझे लगा था कि मैं डॉली और उसके परिवार वालों को मना लूँगा। डॉली की प्यार भरी बातें उसका मेरे करीब आना.. यूँ मुझ पर अपना हक़ जताना। अब तो जैसे सब बेमतलब सा लग रहा था।
उसे जब यही करना था.. तो मुझे उसने ये एहसास क्यूँ दिलाया कि सब ठीक हो जाएगा। क्यूँ उसने मुझे खुद से दूर जाने ही नहीं दिया। क्या प्यार बस खेल है उसके लिए..
सुना था कि दिलों से खेलना भी शौक होता है.. पर जान लेने का यह तरीका कुछ नया था मेरे लिए..
आज मैं एक बात तय कर चुका था.. उसकी हर याद को मिटाने की.. मैंने शुरुआत उसकी तस्वीरों से की.. छत पर गया और मैंने उसकी तस्वीरों को उसी के घर की छत पर रख कर आग लगा दी।
हर जलती तस्वीर और मेरे आंसुओं की हर बूँद के साथ उसकी हर याद को मैं खुद से अलग कर देना चाहता था।
पर मैं इस प्यार का क्या करता.. जो मेरे दिल की हर धड़कन के साथ उसके मेरे पास होने का एहसास कराता जा रहा था।
मैं गुमसुम सा हो गया उस दिन के बाद..
मुझे किसी अजनबी के पास जाने से भी डर सा लगने लगा था.. अब तो अपनी धड़कन भी पराई सी लगती थी।
मैं अब ना तो कहीं जाता और ना ही किसी से बात करता। माँ ने बहुत बार मुझसे वजह जानने की कोशिश की.. पर मैं उन्हें क्या बताता कि उनके बेटे को उसके अपने दिल का धड़कना गंवारा नहीं..
डॉली की शादी की तारीख 15 मई को तय हुई थी। मैं बस इस सैलाब के गुज़र जाने का इंतज़ार कर रहा था।
जैसे-जैसे दिन करीब आ रहे थे.. मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी।
उसकी शादी में अब दो दिन बचे थे। शादी के गीतों का शोर अब मेरे बंद कमरे के अन्दर भी सुनाई देने लगा था।
मैं पापा के कमरे में गया और वहाँ उनकी आधी खाली शराब की बोतल ले छत पर आ गया।
रात के 8:30 बजे थे.. मैंने अपनी छत के दरवाज़े को बंद किया और किनारे की दीवार के सहारे जमीन पर बैठ गया।
जब-जब शराब की हर घूंट जब मेरे सीने को जलाती हुई अन्दर जाती.. तब-तब ऐसा लगता.. मेरे जलते हुए दिल पर किसी ने मरहम लगाया हो।
मेरी आँखें अब बंद थीं.. अब तो मैं यह मान चुका था कि मैंने किसी बेवफा से मोहब्बत की थी।
तभी ऐसा लगा मानो कोई मेरी शराब की बोतल को मुझसे दूर कर रहा हो। मैंने अपनी आँखें खोलीं… सामने डॉली थी।
मैं डर गया और लगभग रेंगता हुआ उससे दूर जाने लगा।
‘ज..जाओ यहाँ से..’ मैं लगभग चिल्लाते हुए बोला।
मेरी दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चुकी थी.. मेरा पूरा शरीर कांप रहा था।
डॉली- क्यूँ जाऊँ मैं.. तुम ऐसे ही घुट-घुट कर मरते रहो और मैं तुम्हें ऐसे ही मरते हुए देखती रहूँ..
मैं- जान भी लेती हो और कहती हो.. तुम्हारा तड़पना मुझे पसंद नहीं.. जाओ शादी करो और अपनी जिंदगी में खुश रहो। अब तो तुम्हारी हमदर्दी भी फरेब लगती है मुझे..
डॉली ने मेरे पास आते हुए कहा- मत करो मुझसे इतना प्यार.. मैं लायक नहीं तुम्हारे प्यार के..
मैं- दूर रहो मुझसे.. और किसने कहा कि तुमसे प्यार करता हूँ मैं..
उँगलियों से उसे दिखाते हुए मैंने कहा- मैं इत्तू सा भी प्यार नहीं करता.. तुम्हें..
डॉली मेरे गले से लग गई- पता है मुझे..
मैं- अब क्या बचा है.. जो लेने आई हो।
डॉली ने मेरी बोतल से एक घूंट लगाते हुए कहा- कुछ नहीं.. बस अपनी जिंदगी के कुछ बचे हुए पलों को तुम्हारे साथ जीने आई हूँ।
मैं- तुम्हें कुछ महसूस नहीं होता क्या..? जब चाहो दिल में बसा लिया.. जब जी चाहा.. दिल से दूर कर लिया।
डॉली- होता है न.. पर दिल से दूर करूँगी तब न.. तुम तो हमेशा से मेरे दिल में हो.. तो मुझे क्यूँ दर्द होगा।
मैंने उसकी सगाई की अंगूठी देखते हुए कहा- किसी और के नाम की अंगूठी पहनते हुए भी कुछ महसूस नहीं हुआ क्या?
डॉली- जब पापा मेरे लिए प्यार से कुछ कपड़े लाते थे.. तो उसे पहन कर बहुत खुश होती थी मैं.. घर में सबको डांस कर-कर के दिखाती थी कभी.. आज मेरी इस अंगूठी के पहनने से उन्हें ख़ुशी मिल रही है.. तो मैं उनके लिए इतना भी नहीं कर सकती? जिन्होंने दिन-रात मेहनत की और मेरी हर कामना को पूरा किया.. आज मैं उन्हें थोड़ी सी भी ख़ुशी दे सकूँ.. तो ये मेरे लिए खुशनसीबी होगी।
मैं- अपने मम्मी-पापा की ख़ुशी का ख्याल है तुम्हें और मैं..? जब से तुम्हें जाना है.. तुम्हारे लिए ही जिया है मैंने..। जब से तुमसे प्यार हुआ है तब से तुम्हारे हर दर्द को बराबर महसूस किया है मैंने..। तुम्हारे लबों पर एक मुस्कान के लिए.. तुम्हारी हर ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश की है मैंने.. और मैंने क्या चाहा था तुमसे… तुम्हारा प्यार..। तुमने तो उसे भी किसी और के नाम कर दिया।
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Re: चमकता सितारा

Post by Jemsbond »

डॉली- तुम्हारे इस सवाल का जवाब भी बहुत जल्द दे दूँगी.. पर तुम्हारी ये हालत मैं नहीं देख सकती। अपना हुलिया ठीक करो और याद है न तुमने मुझसे वादा किया था कि मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले तुम ही देखोगे। आओगे न..? मेरी आखिरी ख्वाहिश समझ कर आ जाना।
मैं- काश कि मैं तुम्हें ‘ना’ कह पाता.. हाँ मैं आऊँगा..
डॉली अपने घर चली गई। आज बहुत दिनों के बाद मुझे नींद आई थी। शादी वाला दिन भी आ चुका था। आज एक वादे को निभाना था। अपने लिए ना सही.. पर आज अपने प्यार के लिए मुस्कुराना था मुझे.. सुबह-सुबह मैंने शेविंग कराई.. बाल ठीक किए और डॉली की गिफ्टेड शर्ट और पैंट को ठीक किया।
शाम तक मैंने अपने आपको घर में ही व्यस्त रखा। अपने चेहरे से मुस्कान को एक बार भी खोने ना दिया। कभी आँखों में आंसू आए.. तो कुछ पड़ने का बहाना बना देता।
शाम को चाचा जी घर पर आए- विजय.. पापा को भेजना जरा..
मैंने जवाब दिया- जी.. घर पर अभी कोई भी नहीं है.. सब बगल में शादी में गए हुए हैं।
चाचा जी- और तुम?
मैं- हाँ.. बस थोड़ी देर में घर में ताले लगा कर मैं भी जाऊँगा।
चाचा जी- ठीक है ये लो पैसे.. पापा को दे देना, पचास हज़ार हैं.. गिन कर अन्दर रख दो।
मैं- पापा को ही दे दीजिएगा।
चाचा जी- तुम्हारे पापा का ही है और बार-बार इतने पैसे लाना ले जाना सुरक्षित नहीं है।
मैंने पैसे गिने और कहा- ठीक है.. अब आप जाईए.. मैं पापा को दे दूँगा।
चाचा जी चले गए।
अब मेरे लिए परेशानी थी कि इस रकम को रखूँ तो कहाँ रखूँ। लॉकर की चाभी पापा कहीं रख कर गए थे। सो मैंने उस हज़ार की गड्डी के दो हिस्से किए और आधा अपनी एक जेब में और बाकी आधा.. दूसरी जेब में रख लिया।
आज वैसे ही कोई कम चिंता थी क्या.. जो एक और भी आ गई। अब तक मैंने अपने दिल को मना लिया था। मैं जानता था.. खुद को काबू में रखना मुश्किल होगा.. पर मैंने सोच लिया था कि किसी और के सामने अपनी भावनाओं को आने से रोकूंगा। अगर किसी और के साथ घर बसाने में ही डॉली की ख़ुशी है.. तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा।
वक़्त अब हो चला था, डॉली तो अब तैयार भी हो गई होगी, मैंने घर को ताला लगाया और डॉली के घर की तरफ बढ़ चला।
डॉली के घर की ओर मेरे हर बढ़ते कदम मेरे दिल की धड़कन को तेज़ और तेज़ किए जा रहे थे, मैं मुख्य दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ। सभी अपने-अपने काम में लगे थे।
मैं सबको नमस्ते कहता हुआ डॉली के कमरे के पास पहुँचा, उसकी बहनें और भाभियाँ उसे घेर कर उसका श्रृंगार कर रही थीं।
मैं खांसता हुआ कमरे में घुसा- अरे मेरे टीपू सुलतान.. जंग की तैयारी हो गई क्या?
मैंने देखा कि डॉली के मुझे देखते ही उसकी आँखों से आंसू बहने लगे थे, वो बोली- भाभी आप सबको थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाईए।
सबके बाहर जाते ही उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और बहुत जोर-जोर से रोने लगी।
मुझे ऐसा लगा कि जैसे इतने दिनों से उसने जो दर्द अपने अन्दर भरा हुआ था.. आज वो सैलाब रुक ना सका।
‘बहुत दुःख दिया है न मैंने तुम्हें? अब कोई तुम्हें परेशान नहीं करेगी।’ मेरे गाल खींचते हुए डॉली बोली।

मैं- तुम्हारे नाम का दर्द भी ख़ास है मेरे लिए.. वरना औरों से मिली खुशियाँ भी ख़ुशी नहीं देती। वैसे जानू.. आज मैं देखने आया हूँ.. देखूँ तो कैसी लग रही हो..!
डॉली मुझसे थोड़ी दूर हटाते हुए अपना शादी का जोड़ा दिखाने लगी। इन तीन महीनों में बस एक ही बात थी.. जो मुझे डॉली में अजीब लगी थी।
उसकी आँखें कुछ कहती थीं और उसकी जुबान पर कुछ और ही बात होती थी।
आज जो उसकी आँखों में था.. वहीं उसके जुबां पर भी था।
डॉली- कैसी लग रहीं हूँ मैं?
मैं- जैसी मैं अक्सर अपने ख्यालों में तुम्हें देखता था.. पर ये नहीं मालूम था कि मैं अपने ख्यालों में किसी और की बीवी को देखता हूँ।
डॉली मेरे गले से लगते हुए बोली- आज भी ताने दोगे..? मेरी विदाई का वक़्त आ चुका है.. अब तो माफ़ कर दो। एक बात मानोगे मेरी… आज मुझे तुमसे एक तोहफा चाहिए।
मैं- कौन सा तोहफा?
डॉली- याद है जब तुमने मुझे पहली बार प्रपोज किया था। आज एक बार फिर से करो न।
मैं अपने घुटने के बल बैठ गया। उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर:
‘सुन मेरी मयूरी.. ये मोर तुझसे एक बात कहता है.. दिल तो उसका है.. पर तेरा ही नाम ये जपता रहता है। मेरे दिल में बस जा.. मेरी साँसों में समा जा.. मेरी नींद तू ले ले.. मेरा चैन तू ले ले.. पर सुन ले मेरी बात। जल्दी से तू ‘हाँ’ अब कर दे.. वर्ना कहीं आ ना जाए तेरा बाप।’
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Re: चमकता सितारा

Post by Jemsbond »

मैंने ये लाईनें ख़त्म की और हम दोनों ही ज़मीन पर बैठ कर हंसने लगे।
डॉली- मेरी बात और थी.. पर अगर किसी और को ऐसे प्रपोज करोगे तो चप्पल खोल कर मारेगी। ऐसे करता है कोई प्रपोज..?
मैं- वही तो कह रहा हूँ.. नहीं आता है मुझे किसी को अपने दिल की बात बताना.. पर तुम तो हर बात बिना बताए समझती हो न.. मेरे साथ भाग चलो न..!
तभी आवाज़ आई ‘डॉली’ और डॉली की माँ लगभग चिल्लाते हुए कमरे में आ गई।
आंटी ने मेरी ओर देखते हुए कहा- जाओ यहाँ से.. तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है।
मैं- आज नहीं जाऊँगा.. आप मेरी बात सुन लो.. तब मैं चला जाऊँगा।
आंटी- ठीक है.. कहो.. क्या कहना है तुम्हें?
मैं- माना कि हमसे गलती हुई.. हमें हमारे रिश्ते के बारे में आपको बता देना चाहिए था.. हम तो छोटे थे.. नासमझ थे.. हमसे गलती हो गई। पर आपसे गलती कैसे हुई। आप तो समझदार थे.. अपने ही हाथों अपनी बेटी का गला घोंट दिया। कहते हैं कि एक माँ अपने बच्चे को सबसे अच्छी तरह जानती है। एक बार बस अपनी बेटी को देख कर आप कह दें कि वो खुश है। मैं कुछ नहीं कहूँगा और चुपचाप चला जाऊँगा..
आंटी चुप थीं।
मैंने कहा- आपकी खामोशी ने सब कह दिया मुझसे.. जाता हूँ मैं.. और मैं इस बात के लिए आपको कभी माफ़ नहीं करूँगा।
मैंने आंटी के सामने ही डॉली को गले लगाया और उसे चुम्बन किया।
‘जा रहा हूँ.. अपना ख्याल रखना।
डॉली मुझे रोकने को हाथ बढ़ा रही थी.. पर तब तक मैं जा चुका था।
मैं बाहर गया.. बाहर पापा खड़े थे।
पापा- क्या हुआ बेटा.. उदास दिख रहे हो?
मैं- कुछ ख़ास नहीं.. आपकी होने वाली बहू की शादी किसी और से हो रही है।
पापा- तुमने मुझे बताया क्यूँ नहीं.. तभी इतने दिनों से तुम परेशान थे। मैं डॉली के पापा से बात करता।
मैंने पापा की बात काटते हुए कहा- मैं डॉली के बारे में कहाँ कह रहा था.. मैं तो मज़ाक कर रहा था। मैं आता हूँ बारात में डांस करके।
मैं जल्दी से वहाँ से निकल आया.. कहीं पापा मेरी आँखों में आँसू न देख लें।
अब मैं पास के ही हाईवे पर था। शराब की दुकान खुली थी और लगभग बाकी सारी दुकानें बंद थीं।
शादियों के मौसम में यही दुकान तो देर तक चलती है। मैं दुकान में गया और स्कॉच की हाफ-बोतल ले आया।
पास में ही एक बंद दुकान की सीढ़ियों पर बैठ गया। थोड़ी देर में वहाँ जो बची-खुची दुकानें थीं.. वो भी बंद हो गईं।
अब तो वहाँ बिल्कुल अकेला सा लग रहा था। आसमान में दिवाली सा पटाखों का शोर.. दूर-दूर से आता बारात के गानों का शोर और मेरे मन के ख्यालों का शोर.. मैं वहाँ पर अकेला होता हुआ भी अकेला नहीं था।
यहीं बैठे-बैठे अब तक चार बारात मैं देख चुका था.. ना जाने कितने ही आशिकों के दिल वीरान होंगे आज की रात..
अभी मैं सोच ही रहा था कि एक और बारात गुजरने लगी। उसी में से एक उम्र में मुझसे थोड़ा बड़ा लड़का मेरे पास आया।
‘भाई यहाँ दारू की दुकान है क्या आसपास?’
मैं- नहीं भाई…
अपनी आधी बची बोतल आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- यही ले लो।
वो साथ में ही बैठ गया। बोतल लेने के साथ ही पूछा- पानी और चखना कहाँ है?
मैंने इशारे में ही कहा- नहीं है।
उसने पूछा- क्यूँ भाई आशिक हो क्या?
मैंने कहा- नहीं.. दीवाना हूँ।
वो हंसने लग गया। हाथ बढ़ाते हुए बोला- हैलो मैं रवि..
मैंने भी उससे हाथ मिलाया।
‘मैं विजय।’
रवि- चलो मेरे साथ.. ये बारात भी दीवानों की ही है।
वैसे भी मैं क्या करता, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं डॉली की शादी होता देख सकता। मैं रवि के साथ ही चल पड़ा।
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Re: चमकता सितारा

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बारात पास की ही थी। रवि और उसके दोस्तों के साथ थोड़ी देर के लिए ही सही.. पर मैं भूल गया था कि आज डॉली की शादी है। बारात पहुँचने पर वहाँ भी शराब और कबाब का दौर चला।
अब नशा हावी हो चला था मुझ पर… सो थोड़ी देर के लिए नींद सी आ गई।
मैं वहीं बारात की गाड़ी में सो गया। तकरीबन पांच बजे मेरी नींद खुली, ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे गहरी नींद से जगाया हो।
मैं गाड़ी से बाहर निकला.. आस-पास कोई भी नहीं था। अपने चेहरे को धोया फिर अपना मोबाइल देखा। मैंने उसे रात को स्विच ऑफ कर दिया था।
अब उसे ऑन किया और अपने कदम घर की ओर बढ़ा दिए। तभी मोबाइल की घंटी बजी.. डॉली का मैसेज व्हाट्स ऐप पर आया था।
मैंने उसे देखा तो दो ऑडियो मैसेज थे।
पहला मैसेज-
‘आई लव यू जान.. मेरा यह आखिरी मैसेज तुम्हारे लिए.. मुझे माफ़ कर देना जय, मैंने इन तीन महीनों में तुम्हें बहुत दुःख दिए.. पर सच कहूँ तो तुमसे ज्यादा मैं जली हूँ इस आग में.. जब-जब तुम्हारी आँखों में आंसू आए.. तो ऐसा लगा कि किसी ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए हों। जब भी तुमने मुझे बेवफा की नज़रों से देखा.. तो मुझे खुद पर घिन सी आने लगी। जब पहली बार माँ को हमारे बारे में पता चला.. तो लगा कि ये तुरंत का रिएक्शन है.. अगर मैं शांत होकर- सब को समझाऊँगी तो सब मान जायेंगे। मैंने शादी की आखिरी रात तक अपने मम्मी-पापा को समझाने की कोशिश की.. पर कोई अपनी जिद के झुकने को तैयार ना हुआ। मैंने हर तरीका अपना लिया.. पर मैं तुम्हारी ना हो सकी। उन्होंने कहा था कि मैंने अगर तुम्हें अपनाया.. तो वो मौत को गले लगा लेंगे। जानू.. जिन्होंने मुझे जिंदगी दी.. उनकी मौत कारण मैं बनूँ.. ये कैसे हो सकता था। इसलिए मैंने एक फैसला किया। अगर मैं तुम्हारी ना हो सकी तो मैं किसी और की भी नहीं होऊँगी। ये ज़हर की शीशी मैं पीने जा रही हूँ। आई लव यू फॉर एवर..
मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं दूसरा मैसेज देख पाता। मेरी साँसें जैसे रुकने को हो आई थीं। मेरा दम घुटने लगा था। ये मैसेज रात बारह बजे का था। मैंने बहुत हिम्मत जुटा कर दूसरा मैसेज देखा।
दूसरा मैसेज-
जानू.. मेरा दम घुट रहा है.. पर एक बात मैं कहना चाहती हूँ.. तुम कभी खुद को अकेला मत समझना। मैं हमेशा तुम्हारे एकदम पास रहूँगी। जब भी मेरी याद आए तो अपनी आँखें बंद करना और अपनी बाँहें फैला लेना… मैं तुम्हारे गले लग जाऊँगी। अपना ख्याल रखना..
फिर एक हिचकी की आवाज़ आई और मैसेज ख़त्म..
मैं वहीं जमीन पर बैठ गया। मैं अब करूँ तो क्या करूँ.. जिसे अपनी दुनिया माना था मैंने.. वही मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गई।
मैं बीच सड़क पर बैठा चिल्लाता जा रहा था.. पर मुझे सुनने वाला वहाँ कोई भी नहीं था..
मैंने जिसे शादी के जोड़े में देखने का सपना संजोया था.. उसे कैसे कफ़न में लिपटा देखता। जिसके साथ जीवन के हर पड़ाव को पार करने का सपना देखा था.. कैसे उसे अकेले ही उसके आखिरी पड़ाव पर जाने देता। मुझे अब उसकी हर बात याद आ रही थी। मेरे पास वक़्त था.. मैं उसे रोक सकता था.. पर रोक न पाया।
मैं उठा और पैदल ही रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा। मैं बस इन सब चीज़ों से दूर जाना चाहता था..
मैंने अपने मोबाइल को पास के गटर में फेंक दिया। स्टेशन पर पहुँचते ही सामने एक गाड़ी लगी थी ‘हावड़ा- मुंबई मेल।’
मैं सामने वाले डब्बे में चढ़ गया।
थोड़ी देर में ट्रेन चल गई.. पीछे छूटते स्टेशन के साथ ही हर रिश्ते-नाते.. मैं छोड़ कर आगे बढ़ा जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे डॉली मुझे प्लेटफार्म से अलविदा कह रही हो।
मैंने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ने की कोशिश की.. तभी पीछे से किसी ने मेरा कालर खींच लिया।
टीटी- मरने का इरादा है क्या..? टिकट दिखाओ..!
मैंने जेब से 2000 रूपए निकाल कर उसे दे दिए।
टीटी- कहाँ जाना है?
मैं- जहाँ ये ट्रेन जा रही है।
टीटी- ये एसी क्लास है..2000 और दो मैं सीट दे देता हूँ।
मैंने पैसे दे दिए।
उसने मुझे एक रसीद और बर्थ का नंबर लिख कर दे दिया। फिर वो दूसरी बोगी में चला गया।
मैं सामने की बेसिन में अपना चेहरा धोने लगा।
तभी मेरी नज़र शीशे पर गई.. कल रात डॉली ने जो मुझे किस किया था.. उसके लिपस्टिक के कोमलन अब तक मेरे चेहरे पर थे। मैंने रुमाल निकाल उसे पोंछा।
उस कोमलन को देख कर मुझे और भी रोना आ रहा था। मैंने उस रुमाल को जेब में डाला.. और अपने आप को थोड़ा संयमित करने की कोशिश करने लगा।
एक पेंट्री वाला वहाँ आया। मैंने उसे रोका और कहा- भाई दारू है क्या?
पेंट्री वाला- हम दारू नहीं बेचते।
मैं- हाँ हाँ.. पता है.. तू पंचामृत बेचता है।
मैंने जेब से एक हज़ार का नोट निकाला और उसकी जेब में डालते हुए कहा।
‘अब जा और मेरे लिए एक ढक्कन पंचामृत लेते आ।’
मैंने उसे अपना बर्थ नंबर बता दिया।
अब मैं अपनी केबिन में पहुँच चुका था। यहाँ पहले से तीन लोग थे। मेरी बर्थ नीचे की थी सो मैं भी वहीं बैठ गया।
वे तीनों लड़कियाँ थीं.. उन तीनों की लगभग 25 के आस-पास की उम्र होगी। मैंने अपना सर खिड़की से लगाया और अपने शहर के रास्तों को खुद से दूर होता देख रहा था।
मेरे मन में डॉली के साथ बीते हुए दिन फ्लैशबैक फिल्म की तरह चल रहे थे।
एक लड़की जो मेरे सामने बैठी थी, बगलवाली से बोली- यार ये तो जब वी मेट का केस लग रहा है।
दूसरी ने जवाब दिया- हाँ यार सच में.. कितना गुमसुम है।
तभी जो मेरे बगल में बैठी थी.. अपना हाथ मेरे तरफ बढ़ाते हुए बोली- हैलो.. मैं कोमल और आप?
मेरा ध्यान अब तक बाहर ही था, मैंने कुछ नहीं कहा, मुझमें कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी, मैं अब तक अपने शहर को ही देख रहा था।
कोमल- हाँ यार.. सच में पक्का ‘जब वी मेट’ फिल्म वाला केस ही है।
फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली- क्या हुआ है? किसी एग्जाम में फेल हो गए हो? मम्मी-पापा का डाइवोर्स हो गया है? गर्ल-फ्रेंड किसी और के साथ भाग गई है?
उसका हर एक सवाल ने मेरे दिल को चीरे जा रहा था।
मैं बेहद गुस्से में उनकी तरफ देखता हुआ बोला- वैसे सवाल किसी से नहीं पूछने चाहिए.. जिस सवाल के शब्द ही जान लेने के लिए काफी हों।
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Re: चमकता सितारा

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कोमल- यह सफ़र हम सबके लिए नया है। पहली बार हम अपने-अपने घर से इतनी दूर अपनी पहचान बनाने के लिए निकले हैं। मैं तो बस दोस्त बनाने की कोशिश कर रही हूँ। आपको बुरा लगा हो तो आप मुझे माफ़ कर देना।
मैं- किसी के ज़ख्म कुरेद कर दोस्ती करने का अंदाज़ पहली बार देखा है।
कोमल- ज़ख्म कुरेद कर.. मैं बस ये देख रही थी कि तुममे अब भी जान बाकी है या नहीं।
उसके बोलने का अंदाज़ बिल्कुल डॉली जैसा था.. या मैं हर आवाज़ में डॉली को ही ढूंढने की कोशिश करने लगा था।
मैं- क्या दिखा तुम्हें?
कोमल ने मुस्कुराते हुए- ज़िंदा हो और दोस्ती कर सकते हो..
और फिर से उसने अपना हाथ बढ़ा दिया।
मैं हाथ मिलाते हुए- विजय…
बाकी दोनों ने भी अपने हाथ बढ़ाए.. एक का नाम पायल था और दूसरी का ललिता।
पायल- कहाँ जा रहे हो?
मैं- नहीं जानता।
ललिता- किस लिए?
मैं- नहीं जानता।
पायल- कहाँ रहोगे वहाँ?
मैं- नहीं जानता।
पायल ललिता से- मैंने कहा था न ! पक्का वही केस है।
फिर मेरी तरफ देखते हुए- तुम किसी बड़ी कंपनी के मालिक के बेटे हो क्या?
‘क्या?’ चिढ़ते हुए मैंने कहा।
पायल- नहीं ‘जब वी मेट’ में हीरो की यही तो कहानी थी।
मैं- कभी फिल्मों की दुनिया से बाहर भी आओ। यहाँ किसी की जिंदगी स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं चलती।
कोमल- क्या डायलॉग बोलते हो यार। हैंडसम हो और आवाज़ भी जबरदस्त है, फिल्मों में कोशिश क्यूँ नहीं करते।
मैं- मैं अपने आप से भाग रहा हूँ और ये रास्ते किस मंजिल पे मुझे ले जायेंगे मुझे नहीं पता..
कोमल- मैं तो बस दरवाज़ा खटखटाने को कह रही हूँ। क्या पता तुम्हारी मंजिल भी वहीं हो.. जहाँ हम जा रहे हैं।
मुझमें अभी कुछ भी फैसला लेने की हिम्मत नहीं थी। मैं तो बस अपने दर्द से भागने की कोशिश कर रहा था।
तभी पैंट्री वाला आया और सस्ती व्हिस्की की एक बोतल और कुछ स्नैक्स दे गया।
बाकी तीनों मेरी शकल ही देखती जा रही थीं।
मैंने कोमल को देखा और पूछा- गिलास है?
कोमल ने बिना कुछ कहे चार गिलास निकाले और मेरे बगल में रख दिया उसने।
मैं- चार गिलास क्यूँ?
कोमल- दारू और दर्द जितना बांटोगे उतना ही खुश रहोगे।
मैं- मैं तो अपने दर्द को भूलने के लिए पी रहा हूँ। तुम सब क्यूँ पी रही हो?
कोमल- मुस्कुराते हुए चेहरे ही सबसे ज्यादा ग़मों को समेटे होते हैं। दो पैग अन्दर जाने दे.. फिर जान जाओगे हमारे राज़।
मैंने बोतल उसके हाथों में दे दी और कहा- लो मेरे लिए भी बना देना।
मैंने गिलास उठाया और खिड़की से बाहर देखने लगा।
बाहर खेतों की हरियाली.. पहाड़ों की घाटियाँ और भी न जाने कितने ही जन्नत सरीखे रास्ते से हो कर हमारी ट्रेन गुज़र रही थी। पर आज मुझे ये खूबसूरत नज़ारे भी काट रहे थे जैसे। मैं अपने ही ख्यालों में खोया था कि तभी पायल की आवाज़ से मैं अपने ख्यालों से बाहर आया।
पायल- चलो अब बताओ अपने बारे में.. अब हम दोस्त हैं और दोस्तों से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए।
मैं- मुझसे नहीं कहा जाएगा..
और फिर जैसे मेरी आँखें डबडबाने लगीं।
कोमल- ठीक है.. पहले हम बताते हैं अपने बारे में.. शायद तुममें थोड़ी हिम्मत आ जाए।
कोमल ने अपनी कहानी बतानी शुरू की.. वो शराब के असर से थोड़ा रुक-रुक कर कह रही थी।
‘मैं कोलकाता में ही पैदा हुई थी। मेरा बचपन अब तक की मेरी सबसे हसीन यादों में से एक है। मैं, मम्मी-पापा और दादा- दादी हम सब एक खुशहाल परिवार की तरह रहते थे। मेरे पापा का कोलकाता में ही गारमेंट्स का बिज़नेस था। हमारे पास पैसों की कभी भी कमी नहीं थी।
बचपन में दादी अक्सर मुझे परियों की कहानियाँ सुनाया करती थीं और मैं हर बार उन परियों की कहानी में खुद को ही देखा करती थी..
पर कहते हैं न.. जीवन में अगर अच्छे दिन आते हैं.. तो कुछ बुरे दिन भी होते हैं।
जब मैं आठ साल की थी.. तब मेरे पापा को उनके बिज़नेस में जबरदस्त घाटा लगा। वे अपने बिज़नेस को जितना बचाने की कोशिश करते.. उतना ही वो कर्जे में डूबते चले गए।उसके लगभग एक साल बाद दादा और दादी का भी देहाँत हो गया।
मुझे आज भी याद है… वो दिन जब हर रोज़ कोई ना कोई लेनदार हमारे दरवाज़े पर खड़ा रहता। पापा रात को नशे में धुत घर में आते और मुझ पर और माँ पर अपनी नाकामयाबी का गुस्सा निकालते।
एक दिन मैं अपने स्कूल से आई तो मेरे घर पर भीड़ लगी थी। मम्मी उसी कॉलोनी के अंकल के साथ भाग गई थीं और पापा मेरी मम्मी की चिट्ठी हाथ में लिए ज़मीन पर पड़े थे।
मैंने पास जाकर देखा तो उनकी साँसें नहीं चल रही थीं। मैं एक पल में ही अनाथ हो चुकी थी। पापा के बीमा से जो पैसे मिले.. उनसे मैंने कर्जे चुका दिए और बाकी पैसे अपनी पढ़ाई के लिए रख लिए। दस साल की उम्र से मैंने खुद को संभालना सीख लिया।
पिछले महीने मैंने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी और वो बॉम्बे में एक डायरेक्टर को पसंद आ गई.. सो अब मैं मुंबई जा रही हूँ.. एक कामयाब डायरेक्टर बनने..’
फिर पायल ने खुद के बारे में बताना शुरू किया। अब उसकी आवाज़ में कुछ ज्यादा ही भारीपन था।
‘एहें एहें..’ उसने अपना गला ठीक करते हुए बताना शुरू किया- कहाँ से शुरू करूँ.. समझ नहीं आ रहा मुझे.. वैसे मुझे तो याद भी नहीं कि मेरे माँ-बाप कौन हैं।
उन्होंने बचपन में ही सिलीगुड़ी के एक गाँव में बने देवी मंदिर में मुझे दान कर दिया था, शायद बेटी बोझ थी उनके लिए..
मुझे वहीं के पुजारी परिवार ने पाला। जब मैं शायद तीन साल की थी.. तब उन्होंने पूरे गाँव में एलान करवा दिया कि मैं किसी देवी का अवतार हूँ और इन अफवाहों ने मंदिर की कमाई बहुत बढ़ा दी। पांच साल की उम्र में मैं हर रोज़ छह घंटे रामायण पाठ करती और उसके बाद कीर्तन में हारमोनियम, तबले बजाने वालों के साथ थोड़ा रियाज़ भी करती थी।
बीस साल की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते मैं शास्त्रीय संगीत में माहिर हो चुकी थी। अब तो मैंने टीवी पर आने वाले गाने भी गुनगुनाने शुरू कर दिए थे।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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